सिफली अमल ( काला जादू ) complete

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sexi munda
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सिफली अमल ( काला जादू ) complete

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सिफली अमल ( काला जादू )

ये कहानी पूरी तरीके से काल्पनिक है इस कहानी का किसी के साथ कोई संबंध नही इस कहानी को रियल समझने की भूल ना करे..ये सिर्फ़ एंजाय्मेंट के लिए लिखी गयी है बस एंजाय करे इन्सेस्ट हेटर्स प्ल्स इफ़ यू हेट इन्सेस्ट प्ल्स डॉन'ट विज़िट आप अपना कीमती वक़्त बर्बाद करेंगे ये कहानी किसी घटना का दावा नही करती इस कहानी के कुछ एलिमेंट्स बहुत शॉकिंग है बट हॉरर इंट्रेस्टेड रीडर्स दिल को मज़बूत कर लेना

कहानी में लिखा हर पात्र सिर्फ़ मनोरंजन के लिए लिखा है इसका कोई असल ज़िंदगी से मतलब नही...इस कहानी में लिखे कुछ चीज़ें रीडर्स को शॉक भी कर सकते है इसलिए बड़े अहेतियात और सावधानी से पढ़ें और ये ना सोचे कि ये सब रियल है....सिफली अमल सिर्फ़ गुनाह का काम है ऐज अ राइटर आइ आम टेल्लिंग माइ ऑल रीडर्स जस्ट एंजाय दिस स्टोरी डॉन'ट बिलीव ऑन इट

दुनिया में अगर मैं किसी को सच्चे दिल से किसी को चाहता था तो वो थी मेरी इकलौती बाजी शीबा...हम दोनो के बीच बचपन से ही भाई बेहन से ज़्यादा घनिष्ट प्यार था...और यही वजह थी कि हम दोनो एक दूसरे से एक सेकेंड के लिए भी अलग नही हो पाते....बचपन में ही साथ साथ खेले और साथ बड़े हुए जबकि मेरी बाजी की उमर मुझसे करीबन २ साल बड़ी थी....बाजी मेरा हमेशा ख्याल रखती मम्मी और पापा जब नही होते तब वही मुझे संभालती खाना देती....हमारे इस प्यार की चर्चा पापा और मम्मी भी करते थे लेकिन उन्हें नही पता कि हम दोनो के बीच एक रिश्ता और जल्द ही कायम होने वाला है

धीरे धीरे बाजी तकरीबन २३ साल की हो चुकी थी जबकि मैं अपने 21 के बीच में ही था...हम लोग मम्मी पापा की आब्सेंट में ही घर में बनी बुखारी की छत के नीचे कच्ची ईंट वाली बाथरूम में एक साथ नहा लेते थे मेरी बाजी की चूत पर काफ़ी घने बाल उगे हुए थे जबकि मेरे लंड पर भी जंगल उगा हुआ था....मेरा लंड उस वक़्त खड़ा हो जाता था और बाजी की गान्ड को देख कर हिलोरे मारने लग जाता...बाजी ने कहा कि ये सब नॉर्मल है क्यूंकी वो जानती थी कि ना उनमें शरम और हया का कोई परदा था और ना ही मेरे अंदर....धीरे धीरे गाँव में रह कर हम अपने घर को अच्छा संभाल लेते थे पापा भी पूरी मेहनत करते और शहर में ही कमाने को चले जाते वहाँ उनको अच्छा ख़ासा वेतन मिलता था

इधर हम और मम्मी भी ख़ुदग़र्ज़ थी हम पर ज़्यादा ध्यान नही देती थी...हम कब घर से निकलते है कहाँ जाते है? इस्पे भी सवाल नही करती थी..और यही वजह थी कि ये आज़ादी हमारे रिलेशन्षिप को बहुत आगे बढ़ाने वाली थी और जल्द ही हम दोनो के बीच वो हुआ जो शायद लोगो की नज़रों में एक गुनाह हो पर हम दोनो के लिए एक दूसरे की ज़रूरत जिस्मानी तालुक़ात..ना बाजी अपनी चूत की गर्मी को शांत कर पाती और ना मैं अपने लंड की हवस को काबू कर पाता....हम दोनो एक दूसरे को किस करते चूत पे लंड रगड़ते और उनकी गान्ड के छेद पे लंड मलके थोड़ा सा घुसा देना यही सब हमारे अकेले पन का खेल बन गया था....और धीरे धीरे ये खेल चुदाई में तब्दील हो गया बाजी की सहेलिया गाओं की अक्सर गंदी गंदी चीज़ों और लौन्डो की ही बात करती थी..और इधर मेरा कोई दोस्त नही था काम के बाद सीधे स्कूल और वहाँ भी पढ़ाई में ही मन लगता था फिर बाकी टाइम या तो साइबर केफे जो था छोटा सा वहाँ जाके ब्लू फिल्म देखना और तरह तरह की अप्सराओं के नाम की मूठ मारना यही आदत थी और बाद में तो बाजी हवस पूरी कर ही देती थी...ब्लू फिल्म और सेक्स रिलेटेड चीज़ों को जानते जानते मैं पूरा पका आम बन गया था गाँव से सटे टाउन से जाके सस्ते में कॉंडम मिल जाता था केमिस्ट से लेके....और फिर बाजी को चुपके चुपके जंगल या फिर खेत मे ले जाके चोद देता

बहुत मज़ा आता था...और शायद आज भी वही मज़ा मिलने वाला था.... पढ़के घर लौटा ही था...कि मम्मी ने आवाज़ दी

मम्मी : अर्रे बेटा शीबा अकेले खेत पर चली गयी सब्ज़िया तोड़ कर लाने तू भी जाके मदद कर दे

मैं : ठीक है मम्मी (मैने कपड़ों को बदला और पाजामा और शर्ट में ही खेतों की तरफ रवाना हो गया पापा उस वक़्त शहर में थे)

जल्द ही कच्चे रास्ते से बस्ती से निकलते हुए खेतों मे पहुचा....तो शीबा बाजी अपने मुँह पे वॉटर पंप से पानी मार रही है....मैं उसके करीब गया और ठीक उसके पीछे खड़ा होके अपना लंड उसकी गान्ड के बीच फसि सलवार के भीतर लगाया और झुक कर उसकी चुचियों को दबाने लगा..."उफ़फ्फ़ हाीइ म्म्ममममम तू नहिी सुधरेगा"......मेरी बाजी अपनी फीके चेहरे से मेरी ओर देखा और हँसने लगी हम दोनो भाई बेहन खेत में पॅकडम पकडायि खेलने लगे फिर मैने बाजी को अपनी गिरफ़्त में खींच लिया और उनके होंठो से होंठ लगा के पागलों की तरह चूसने लगा...बाजी भी अपनी गीली ज़ुबान मेरे मुँह में डाल के चलाने लगी हम दोनो एक दूसरे को पागलो की तरह किस करते रहे.."उम्म आहह सस्स चल उस साइड अभी इतनी कड़क धूप में कोई आएगा नही"........बाजी ने कान में फुसफुसाया


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sexi munda
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Re: सिफली अमल ( काला जादू )

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फिर क्या? हम भाई बेहन बड़े बड़े गन्ने के खेतो के भीतर गये और एक खाली जगह पे सुखी घास पे मैने बाजी को बैठाया और उनकी सलवार का नाडा खोला ...अपना पाजामा नीचे किया और उनकी जंपर को भी उपर कर दिया और ब्रा से ही चुचियों को बाहर निकाल के उसके मोटे ब्राउन निपल्स को चूसने लगा...बाजी असल में गोरी बहुत हैं और उनके निपल्स बहुत मोटे है चुचियाँ भी काफ़ी थुल्लि थुल्लि सी निकली हुई है और आँख भूरी सी हैं...मैं बाजी के होंठो को पागलो की तरह चूमते हुए उनके निपल्स को चूसने लगा...बाजी का एक हाथ मेरे लंड पे सख्ती से आगे पीछे चल रहा था....मेरा बंबू बहुत मोटा हो गया था..मैने बाजी की ज़ुल्फो को हटा के उनके गले को चूमा और एक प्रेमी की तरह उन्हें लिटा के उनके होंठो को फिर चूसने लगा...."इसको भी चूस"....बाजी ने दूसरी चुचि को मेरे मुँह से सटाते हुए कहा

मैने उस चुचि को भी ज़ोर ज़ोर से मसला और उसे खूब चूसा....बारी बारी से दोनो चुचियों को चूसने के बाद बाजी को हान्फ्ते पाया...और फिर उनकी गोरी टाँगो को थोड़ा फैलाया और उसमें से महकती नमकीन छोड़ती रस भरी चूत में मुँह लगा के खूब रगड़ा...उफ्फ कितनी लज़्ज़तदार चूत है मेरी बाजी की उफ्फ बाजी का पेट काँप रहा था उसकी नाभि पे मेरी उंगली चल रही थी बाजी के दोनो हाथ सख्ती से मेरे सर पे टिका हुआ था और वो मुझे जितना हो सके मेरे मुँह को अपने भीतर चूत में दबा रही थी मैं उनकी चूत के दाने को चुसते हुए उनकी फांको में ज़ुबान घुसाए करीब बहुत देर तक चूस्ता रहा "आहह सस्स ओउर्र ज़ोरर्र स आहह आअहह आईईइ"........बाजी चिल्लाती रही और मेरे हाथ ज़बरदस्ती उनकी चुचियों को मसल्ते रहे फिर मैने उनकी लबालब चूत से मुँह हटाया और फिर बाजी को किस किया बाजी ने मेरा पूरा साथ दिया हम दोनो ऐसे ही कुछ देर घास पे लेटे रहे फिर उन्होने मुझे खड़ा किया "देखता रह कोई आ ना जाए"......बाजी मेरा लंड खूब बारीक़ी से चुस्ती रही उफ़फ्फ़ क्या मज़ा था? उसने पहले मेरे मोटे सुपाडे को मुँह में लेके चूसा फिर अंडकोष पे ज़बान फिराई फिर पूरे लंड को मुँह में लेके चूसा..ओउू अओउू करती उनकी गले से घुटि आवाज़ उफ़फ्फ़

मेरी टाँगें काँपे जा रही थी की अब रस छोड़ा कि तब...मैने बाजी के मुँह में ही धक्के मारने शुरू किए और उनके गरम मुँह में लंड चुस्वाता रहा...वो बड़े ही प्यार से मेरे लंड को चूस रही थी अपने भूरी निगाहों से मुझे देख रही थी मेरी गान्ड के छेद पे अंगुल कर रही थी....उफ्फ इतना मज़ा हाए रे....बाजी को फ़ौरन मैने अपने लंड से अलग किया उनके मुँह से थूक की लार सीधे लंड से चिपकी हुई थी फिर लंड को पोन्छा हाथो से ही और फिर ढेर सारा थूक बाजी की गान्ड पे लगाया....बाजी मना करती थी की उनकी ज़्यादा चूत ना मारु वरना आगे चलके अगर उनका विवाह हुआ तो बात खुल जाएगी की वो चुदि हुई है और आप तो जानते हो हमारे यहाँ गान्ड मारने से लोगो को बड़ा परहेज़ है ये सब कहानियो में सुना है...लेकिन मुझे मेरी बाजी की गान्ड बेश कीमती प्यारी थी

मैने बाजी की गान्ड को उचकाया "बाजी एक बार मार लेने दो ना अपनी चूत"......बाजी का पूरा मुँह लाल था पर उन्होने मना किया पर ज़्यादा नही..."तू कॉंडम लाया है ना"......

फिर मैने कॉंडम निकाला...दो कॉंडम लंड पे चढ़ाए इस मामले में अब बहुत अहतियात बरतते थे...फिर बाजी ने खुद ही मेरे लंड पे कॉंडम चढ़ाया "अब ठीक है आराम से लगा देती हूँ"...उन्होने मुझे खड़ा करके मेरे लंड पे कॉंडम लगाया और बोला जल्दी धक्के मार कोई आ जाएगा...मैने बाजी की चूत पे धीरे से लंड को टिकाया और उसके ल्यूब्रिकेशन से लंड अंदर धंसता रहा बाजी इतनी देर में काँपती रही...फिर मैने उनकी चूत में एक करारा धक्का दे मारा...बाजी पस्त हो गयी उनकी तो आदत थी पर उन्हें सख़्त दर्द होता था

वो चिल्लाति रही आहें भरती रही....अगर उस वक़्त कोई 40 कदम भी दूर खड़ा हो तो सुन ले....मैने बाजी के मुँह पे हाथ रख कर धक्के मारने शुरू किए....बाजी लेटी उम्म्म उम्म की आवाज़ निकालके कराहती रही....फिर कुछ देर में ही बाजी की चूत पूरी खुल गयी और वो रस छोड़ने लगी....मैं बाजी के हाथो को सख्ती से पकड़े उनकी गान्ड में ताक़त लगाए धक्को पे धक्के मारता रहा...फिर कुछ देर तक धक्को की रफ़्तार तेज़ की फिर धीमी कॉंडम इस बीच बाहर आ जाता..फिर बाजी उसे सेट करती और फिर शुरू होता चुदाई का सिलसिला...

बाजी की चूत बीच बीच में एकदम काँप उठ रही थी....और वो सिसकते हुए बस मेरे गान्ड पे हाथ चला रही थी....बाजी का मदमस्त जिस्म मुझे पागल कर रहा था मैं सख्ती से उनके चुचियों को भीच रहा था दबा रहा था...और कुछ ही देर में बाजी ने मुझे रोक दिया और मेरी लंड को अपनी चूत के मुहाने से निकाला और ढेर सारा पानी छोड़ दिया उनकी सलवार थोड़ी गीली हो गयी फिर अहेतियात बरतते हुए मैं उन्हें फिर धक्के पे धक्के लगाते हुए चोदता रहा...फिर बाजी ने बोला कि अब उनसे नही होगा वो थक चुकी है

मैने उन्हें उठाया क्यूंकी अब मेरा भी निकलने को ही था...और उनको घोड़ी बनाया और पीछे खड़ा होके उनके गान्ड की छेद पे थोड़ा सा थूक लगाया बाकी तो चूत का रस लगे गीले कॉंडम और लंड की करामात थी घुसने की....फछक्क से लंड थोड़ा अंदर घुसा..बाजी काँप उठी और फिर मेरे लंड को खाने लगी जब देखा कि गान्ड ने रास्ता बना लिया तो उसे बाहर खींचा तो बाजी ने हल्की पाद छोड़ा....बदबू काफ़ी महेक दार थी पर मस्त थी मैने एक और करारा धक्का मारा और अब गान्ड के भीतर लंड डालने लगा फिर बाहर खींचता फिर घुसाता इस बीच मेरी रफ़्तार बहुत तेज़ हो चुकी थी बाजी मुझे झडने के लिए पूरी गालियाँ और गंदी गंदी बातें कह रही थी "ज़ोरर से चोद डाल निकाल ले अपना लंड रस्स बाहर निकाल दे".....कुछ ही देर में मैं ऐसा काँप उठा कि मैं और रुक ना पाया धड़ा धड़ धक्के लगाता रहा रस छोड़ता रहा और रस सीधे कॉंडम में भरती रही...बाजी की उछलती चुचियो को हाथो से नीचे से दबा भी रहा था फिर कुछ देर बाद मेरा दिल जब पूरा हट गया सेक्स से तो लंड को बाहर खीचा
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Re: सिफली अमल ( काला जादू )

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लंड से कॉंडम फैंका जिसने आधे से ज़्यादा लंड को पूरा रस से भीगा दिया था....फिर मैने ज़ेब से रुमाल निकाला लंड को सॉफ किया फिर बाजी की चूत के अंदर तक उंगली से सॉफ करके पोन्छा और उनकी चौड़ी गान्ड के होल को भी सॉफ किया...बाजी काफ़ी खुश थी और थक चुकी थी "अब हो गया चलें".......बाजी ने मुस्कुरा कर मेरे गाल को चूमा मैने बाजी के गीले होंठो को चूमते हुए बोला चलो.

हम दोनो झाड़ियो से बाहर आए और अपने कपड़ों को ठीक करते हुए पास रखके सब्ज़ियो को इकट्ठा किया उसे बोरी में डालके अपने कंधे पे उठा लिया और बाजी के साथ घर लौट आया मम्मी का यूषुयल डाइलॉग इतनी देर कैसे हो गयी?..बाजी ने बात संभाल ली मम्मी ने भी कोई ख़ास सवाल नही किया फिर मैं कमरे में आके नहाने चला गया....फिर बाजी सारा काम काज करके नहाने चली गयी

दिन ही ऐसे ही कटने लगे हम भाई बेहन के बीच जो अटूट रिश्ता था वो कभी टूटने वाला तो नही था...और इसी वजह से मैं बाजी से दूर नही रह पाता था...पापा ने ज़ोर देना शुरू किया कि आगे की पढ़ाई करने के लिए तो शहर जाना ही होगा...आइडिया मुझे भी भाया क्या पता? बाजी को मैं यहाँ ले आउ और शहर के खुले वातावरण और आज़ादी में मज़े ले सकूँ यहाँ ना कोई रोकेगा ना कोई टोकेगा पर बात आसान नही थी....बाजी से 5 साल के लिए दूर हो गया और यहाँ आके ग्रॅजुयेशन ख़तम करके मैने खुद को काफ़ी काबिल बना लिया ढंग की जॉब हासिल कर ली और यही शहर में मन लगने लगा गाओं जाने का दिल तो था पर काम की वजह से हफ्ते में ही जा पाता था और इन हफ़्तो में बाजी से कोई भी रिश्ता नही जोड़ पा रहा था मैं अकेले में मुझे खाली हाथ लौटना पड़ता...एक दिन हादसे में मेरे मम्मी और पापा चल बसे...सदमे ने हम लोगो को घैर लिया था बाजी अकेली पड़ चुकी थी...गाँव छोड़ने के सिवाय और कोई चारा नही था वहाँ सिर्फ़ ग़रीबी ही थी....बाजी को मैने संभाला और उन्हें मान कर अपने साथ शहर ले आया

गाँव को हमने छोड़ दिया जो कुछ भी था उसे बेच बाचके बॅंक में फिक्स कर दिया...पैसो की कोई कमी नही थी ना ही बाजी के कोई ज़्यादा खर्चे थे वो आम बनके रहती थी...बाजी ने निक़ाह के लिए कोई रिश्ता नही सोचा था और ना मैं किसी से चर्चा कर पा रहा था....पूरे दिन ऑफीस उसके बाद घर पे सिर्फ़ हम दोनो भाई बेहन थे अब हम दोनो के अंदर एक दूसरे के लिए बहुत मोहब्बत जाग गयी थी बाजी मुझे सोते वक़्त अपनी चुचियों पे सर रखकर सुलाती कभी मेरे बालों से खेलती बाजी और हम चादर लपेटे एक दूसरे के साथ हमबिस्तर होकर सोते थे....लेकिन किस्मत ना जाने क्या खेल खेल रही थी

एक दिन ऑफीस मैं था फोन आया कि शहर के बीचो बीच भारी ट्रॅफिक में बाज़ार से सटे रोड पे एक लड़की का आक्सिडेंट हुआ है और वो कोई और नही थी मेरी बाजी शीबा थी...मेरे पाओ से जैसे ज़मीन खिसक गयी आनन फानन हॉस्पिटल पहुचा....डॉक्टर कोशिशें कर रहा था और मैने उनसे मिन्नत माँगी काफ़ी पैसे खर्च हुए लेकिन बाजी को बचाया ना जा सका ऑपरेशन फेल हुआ और डॉक्टर ने मुझसे सिर्फ़ नज़रें झुकाए मांफ माँगी

मेरा सबकुछ छिन गया था....मेरी प्यारी बाजी मुझसे हमेशा हमेशा के लिए दूर हो गयी थी पहले पापा और मम्मी और अब मेरी बाजी उस वक़्त मैने अपने आप को कैसे संभाला था आस पड़ोस के लोगो ने मुझे कैसे संभाला था कुछ याद नही? मेरी बाजी की लाश को जल्द ही गाढ दिया गया अब घर में सिर्फ़ खामोशियाँ थी और दर्द था जो आँसू बनके मेरे आँखो से निकलता...ज़िंदगी इतनी अधूरी सी लगने लगी थी कोई ना दोस्त था ना कोई परिवार मैं बहुत अकेला था...रोज़ नमाज़ में खुदा से दुआ करता कि मेरी बाजी को वापिस भेज दो चाहे इसमें मेरी जान भी क्यू ना ले लो मुझे उसके पास रहना है वरना मैं मर जाउन्गा लेकिन भला खुदा कहाँ से मरे इंसान को वापिस भेज पाता.....

धीरे धीरे ज़िंदगी को चलाने के लिए खुद को बिज़ी करने के लिए काम तो करना ही था...लेकिन हर बार मेरा सवाल सिर्फ़ मेरी बेहन को वापिस पाने का होता...कोई मुझे पागल कहता कोई मुझे तुम डिप्रेस हो कहके टाल देता डाँट देता कोई कहता डॉक्टर के पास जाओ...लेकिन मुझे एक गुस्सा था एक जुनून चढ़ गया था कि मैं अपनी बाजी को इस दुनिया में वापिस लाउन्गा....एक दिन इंटरनेट पे एक आर्टिकल देखा....जानने में आया कोई सिफली आमाली था जिसके पास हर मुस्किल का हल है...मैं जो रास्ता इकतियार कर रहा था शायद ये मुझे अपनी क़ौम से बाहर ले जा रहा था मैने ना अपनी क़ौम की परवाह की ना ही परवाह की क्या ग़लत था क्या सही?

उस आमाली से मिलने का प्लान बना लिया....ऐसे कयि आमाली होते है जो पैसे के लिए लोगो को लूट लेते है....पर मुझे अंजाम की फिकर नही थी....आमाली को अपना मसला बताया जो आग के सामने ध्यान कर रहा था उसने मेरा परिचय नही लिया उसे सबकुछ पहले से पता था...मैं बस उससे कितनी मिन्नते कर रहा था ये मैं ही जानता था और वो....वो उठा और काफ़ी गंभीर सोच से इधर उधर टहलने लगा

"ना क़ौम इसकी इज़ाज़त देता है ना ही हमारा खुदा....हम ऐसे रास्ते को कभी इकतियार कर लेते है जिसमें सिवाय गुनाह और सज़ा के कुछ नही मिलता"....उसकी जलती आँखो में मेरे लिए उसका जवाब था....लेकिन मेरी आँखो में सिर्फ़ सवाल मुझे मेरी बाजी वापिस चाहिए थी चाहे कैसे भी?....मेरे जुनून मेरे पागलपन को देख कर उसे ना जाने क्यू लगा कि शायद मैं कामयाब हो सकता हूँ पर इसकी कोई गारंटी नही थी क्यूंकी ये अमल ना तो किसी ने पहले किया था और ना ही कोई करने की ज़ुर्रत कर सकता था....इस अमल में मरे इंसान को वापिस लाया जा सकता था मैं चुपचाप सुनता रहा उनकी बात...लेकिन वो इंसान इंसान नही इंसान के जिस्म में एक जीता जागता शैतान बन जाएगा एक पिसाच.....जिसे इंग्लीश में बोलते है वेमपाइर

बिजलिया जैसे मेरे माथे में गूँज़ रही थी....क्या ये मुमकिन था? मैं इतना पढ़ा लिखा कभी इन सब बातों पे यकीन तो क्या कभी मानता तक नही था...उसने मुझे मुस्कुरा कर अपने पास रखी वो किताब दी...उसमें ये सारा अमल करने का तरीका लिखा था शर्तें थी....लेकिन उसने सख़्त हिदायत दी कि ना इसकी खुदा उसे इज़ाज़त देगा ना मुझे जो भी कर रहा हू अपने बल बूते पे ही करना होगा वरना अंजाम मौत से भी बत्तर

मेरे अंदर इतना जुनून था कि मैं कुछ भी करने को तय्यार था वो अमल था...एक मरे हुए इंसान में उसकी रूह को वापिस डालना जो इंसान नही बल्कि एक पिसाच बन जाएगी जो लोगो को दिखेगी लेकिन वो मरी हुई होके भी एक नया जनम पाएगी पिसाच का जो सालो साल जीती रहेगी...और कभी नही मरेगी....पिसाचिनी लिलिता नाम की एक पिसाचनी से मुझे गुहार लगानी थी और इस अमल में उसकी हर शरतो को मानने के बाद ही मुझे मेरी बाजी वापिस मिल सकती थी लेकिन अमल को पाने से पहले मुझे कुछ और भी चीज़ें लानी थी जो अमल में काम आए
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Re: सिफली अमल ( काला जादू )

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मैं उसी रात अपने काम के लिए निकल गया ये जानते हुए कि जो रास्ता मैं इकतियार कर रहा हूँ सिवाय मौत और गुनाह के उसमें कुछ नही लिखा मुझे अपनी क़ौम से निकाल दिया जाएगा कि मैं एक शैतान से दुआ माँग रहा हूँ....लेकिन कहते है ना जुनून इंसान के अंदर शैतान ही पैदा करता है...उस रात काफ़ी सन्नाटा था...आँखो से आँसू गिर रहे थे और मैं फावड़े से ज़मीन खोद रहा था....मेरी बाजी को यहीं दफ़नाया गया था....कुछ देर में ही बाजी का जिस्म मेरे सामने था जो एकदम सफेद सा पड़ चुका था आँखे मुन्दि हुई टांका लगा हुआ था उस खूबसूरत चेहरे की गर्दन के आस पास किस बेरहेमी से उसका आक्सिडेंट हुआ था....मैने रोते हुए अपनी बाजी की लाश को बाहों में उठाया और जैसे तैसे बाहर निकाला इससे पहले कोई मुझे देख ले मुझे यहाँ से निकलना था

जल्द ही गाड़ी को मैं घर ले आया मैने पहले से ही शहर से दूर इस वीराने में एक घर ले लिया था हालाँकि ये मेरे ऑफीस से दूर था लेकिन मुझे अपना काम यही अंजाम देना था इस सुनसान वातावरण में....मैने बाजी की लाश को उठाया और उसे ज़मीन पे रख दिया दरवाजा खिड़की सब बंद कर लिए बाजी के बदन से निहायती बदबू आ रही थी लाश अभी सड़ी नही थी क्यूंकी महेज़ 12 दिनों के अंदर ही मैं उन्हें ले आया था वापिस ज़मीन से दोबारा खोदके....अमल शुरू किया चारो ओर मोमबत्तिया जलाई जैसा जैसा आमाली ने बताया था सबकुछ करने लगा और फिर धीरे धीरे मोमबत्तीी की लौ मेरे पढ़ते उस मंत्रो से फडफडाने लगी कहीं खिड़की से हवा अंदर आ रही थी और मोमबति के बनते चक्र के बीच बाजी का बेशुध कपड़े से लिपटा जिस्म पड़ा हुआ था मानो जैसे अभी गहरी नींद से जाग जाएगी मेरी निगाह बाजी की लाश पे थी और होंठ मंत्रो का जाप कर रहे थे

धीरे धीरे मोमबत्ती की लौ फड़ फड़ा रही थी...और फिर एकदम से हो हो करती हवाओं का शोर अंदर आने लगा.....मेरे मंत्रो का जाप कमरे में ही गुंज़्ने लगा....और अचानक परदा हिलने लगा..मुझे कुछ ध्यान नही था सिर्फ़ मंत्रो को पढ़ता रहा मैने सिर्फ़ एक तौलिया ओढ़ रखा था और जिस्म नापाक जैसा आमाली ने बताया था किताब का पन्ना अपने आप हवा से फड़ फड़ा रहा था पलट रहा था जिसपे उंगली रखके मैं आगे पढ़ता रहा....अचानक मोमबत्ती की लौ बुझने लगी...लेकिन मैं पढ़ता रहा आख़िर कुछ देर में सबकुछ थम सा गया मानो जैसे एक तूफान आके गया हो..लेकिन इस बीच ना बाजी के शरीर में कुछ हरक़त हुई और ना ही मुझे कुछ ऐसा महसूस हुआ....मैने बाजी के करीब आके रोटी निगाहो से उनके चेहरे पे उंगलिया चलाई....फिर अपने आखरी रिचुयल को फॉलो करने के लिए उठ खड़ा हुआ

मैं जानता था मुझे क्या करना है? मैने फ्रिज से एक मग भरा बकरे का ताज़ा ताज़ा खून निकाला जिसे कैसे हासिल करके मैं लाया था मैं ही जानता हूँ कसाइयो ने मुझे कितनी अज़ीब निगाहो से देखा ये मैं ही जानता हूँ...एक जान को पाने के लिए मैं कुछ भी कर सकता था मैने बाजी से लिपटी चादर को उतार दिया...और उनका नंगा जिस्म मेरी आँखो के सामने था

"मुझे मांफ करना बाजी अगर मैं आपके साथ कुछ गुनाह कर रहा हूँ तो ये सब आपको पाने के लिए ही तो है"......मैने धीरे से बाजी की लाश को कहा और धीरे धीरे मग का खून उनके उपर डालने लगा....जल्द ही वो खून से तरबतर भीग गयी उनका बदन एकदम लाल हो गया मैं मत्रो को पढ़ता हुआ खुद को भी ताज़े खून से नहलाने लगा चारो ओर एक अज़ीब सी महेक थी....मैं काँपते हुए ज़ोर ज़ोर से पिसाचिनी का नाम लेने लगा...."लिलित्ता लियिलिताया"....उसके बाद उसे बुलाने का आखरी वो 4 मन्त्र जिसे पढ़ते ही जैसे पूरा बदन सिहर उठा कभी एकदम से कप्कपाती ठंड महसूस होती और कभी एकदम सख़्त गर्मी

पूरा कमरे अंधेरे में डूब गया मोमबत्तिया भुज चुकी थी खून से तरबतर बाजी का जिस्म चक्र के अंदर वैसे ही लेटा हुआ था...मेरे सामने एक अज़ीब सी औरत खड़ी थी जिस देख कर मैं घबरा गया लेकिन घबराने से काम नही बनने वाला था क्यूंकी मेरा एक ग़लत कदम मुझे मौत के घाट उतार देता..वो मुस्कुरा रही थी उस जैसी अज़ीब सी औरत बिना कपड़ों के एकदम नंगी मेरे सामने खड़ी थी मैने कभी आजतक नही देखा था क्या ये आँखो का धोखा था? मैने धीरे धीरे अपनी बात कहना शुरू किया "म्म..एररी बी.हाँ मुझे वापिस चाहिए मुझे मेरी बेहन लौटा दो मैं उसे जीता देखना चाहता हूँ प्लज़्ज़्ज़ प्लज़्ज़्ज़"....मैं मिन्नत करते हुए उसके आगे झुक गया था आँसू फुट फुट के बह रहे थे और उसकी ठहाका लगाती आवाज़ मानो जैसे कितनी डायन एक साथ ठहाका लगाके मेरी दुखिपने पे हँस रही हो लेकिन उसने कुछ और नही कहा बस चुपचाप ठहाका लगाती रही


उसके बाद मुझे कुछ याद नही कि मेरे साथ क्या हुआ क्यूंकी मैं मिन्नत करते करते बेहोश हो गया था...जब होश आया तो सुबह के 4 बज चुके थे..मैं वैसे ही खून में लथपथ पड़ा हुआ था जब दूसरी ओर निगाह की तो देखा तो चौंक उठा मेरी बेहन करवट बदले दूसरी ओर सो रही है...य..ए कैसे हो सकता है? मैं बाजी के पास आया और उनके जिस्म पे हाथ फेरा उसका शरीर एकदम ठंडा था लेकिन उसका चेहरा अज़ीब सा हो गया था मैने फ़ौरन उसकी नब्ज़ को चेक किया लेकिन कुछ महसूस नही हुआ...मैने उसे झिन्झोडा जगाया "बाजी उठो बाजी उठो प्ल्ज़्ज़ बाजी आँखो खोलो".......लेकिन सब बेकार तो फिर वो सब क्या था महेज़ एक सपना? मैं अपने आप पे गुस्सा कर रहा था चीख रहा था चिल्ला रहा था अपनी बेबसी और नाकामयाबी पे खुद ही के हाथ के पास रखा वेस फोड़ दिया मेरे हाथो से खून बहने लगा मुझे दर्द हुआ था मैने फ़ौरन उठके बाजी की लाश को उठाया और उसे बाथरूम में जाके सॉफ किया उसे टेबल के उपर लिटा दिया कुछ देर तक चुपचाप हाथ से बहते खून को पकड़े उसके ओर सख़्त निगाहों से देखने लगा कि अब क्या करूँ?
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