ऋचा (उपन्यास)

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Jemsbond
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Re: ऋचा (उपन्यास)

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घर के काम निबटाना सबकी मजबूरी थी, वरना आजकल टी.वी. सीरियल के मुकाबले उन्हें ऋचा की कहानी में ज्यादा मज़ा आ रहा था।

थाने में ऋचा को देख इन्स्पेक्टर कुलकर्णी हक्का-बक्का रह गया।

“आप……….. खुद यहाँ आई हैं?”

“जी हाँ, मैं जानना चाहता हूँ, केस की क्या स्थिति है? तीनों अभियुक्त कहाँ हैं?”

“जी…….. उन्हें तो कल ज़मानत पर छोड़ दिया गया है। उनपर मुकदमा चलाया जाएगा।” इन्स्पेक्टर हड़बड़ा-से गए।

“ज़मानत पर छोड़ दिया गया ताकि बाहर जाकर किसी और लड़की का बलात्कार करें?” ऋचा की आँखों से चिनगारियाँ छूट रही थीं।

“देखिए, कोर्ट के आर्डर के सामने हमारी बात नहीं चल सकती।”

“ठीक है मि. कुलकर्णी, मैं देखती हूँ, क्या किया जा सकता है।”

उत्तेजित ऋचा सीधी चीफ़ जस्टिस गर्ग के घर पहुँच गई। दरबान के रोकने की परवाह न कर, डोर-बेल बजाती गई। दरवाजा खुलते ही ऋचा अन्द प्रविष्ट हो गई।

चीफ जस्टिस गर्ग ब्रेकफास्ट ले रहे थे। ऋचा को देख चेहरे पर नाराज़गी-सी उभर आई। नाराज़गी की परवाह न कर, संक्षेप में ऋचा ने अपना केस सुना दिया।

“आप मुझसे क्या चाहती हैं? अन्ततः हर बात का एक तरीका होता है। इस तरह बिना इजाज़त घर में घुस आना अपराध है। आपको सज़ा दी जा सकती है। कानून का अपना नियम है। हर फैसला नियम-कानून के अधीन किया जाता है।”

“किस कानून की बात आप कर रनहे हैं, सर? जहाँ एक लड़की का तीन-तीन युवक सामूहिक बलात्कार करने के बाद खुले घूम रहे हैं और फ़रियादी लड़की को कानून के नियम-कायदे समझाए जाते हैं?”

“कोर्ट के फ़ैसलों में वक्त तो लगता ही है। तुम्हें सब्र से काम लेना चाहिए।”

“सब्र रखने की बात कहना बहुत आसान है, अगर यही हादसा आपकी अपनी बेटी के साथ होता तो क्या आप इसी सब्र से काम लेते? नहीं सर, नहीं। जब तक बलात्कार झेलनेवाली लड़की के साथ आप जुड़ाव न महसूस करेंगे, तब तक रोज़ किसी शीला, मीना, लीला, रमा का बलात्कार होता रहेगा। कुछ देर के लिए मुझमें अपनी बेटी को देख लीजिए, सर, तब आप उस पिता के हाहाकार को समझ सकेंगे, जो आज मेरे पिता सह रहे हैं।”

चीफ़ जस्टिस गर्ग मौन रह गए। उनकी पत्नी की आँखों में आँसू आ गए।

“मैं तुम्हारा दर्द समझ रही हूँ, बेटी। मुझे खुशी है, तुमने हिम्मत नहीं हारी। मेरा आशीर्वाद है, तुम्हें कामयाबी मिले।”

“ठीक हैं, तुम अपना मुकदमा दाखिल कराओ। विश्वास रखो, तुम्हारे साथ अन्याय नहीं होगा।”

“थैंक्यू, सर!”

ऋचा का चेहरा चमक उठा। रास्ते में महिलाओं का जुलूस जोरदार नारों के साथ सड़क पर उतर आया था। एक बार जुलूस में शामिल होने की इच्छा हो आई, पर अब उसे अपने केस के लिए वकील ढॅूँढ़ना है।
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Re: ऋचा (उपन्यास)

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घर वापस आती ऋचा को विशाल बेतरह याद आने लगा। काश, आज इस मुश्किल के वक्त विशाल उसके साथ होता, पर वह तो इतना कायर निकला कि झूठी तसल्ली के दो शब्द देने भी नहीं आ सका। ऋचा जानती है, अब वह पहले वाली स्थिति में नहीं है, शादी न सही, दोस्ती तो कायम रखी जा सकती थी। शायद अन्य सामान्य पुरूषों की तरह ही बलात्कार की शिकार लड़की के साथ किसी भी तरह का सम्बन्ध बनाए रखने में उसे अपना सम्मान घटने का डर होगा। इस वक्त ऋचा के सामने सच शीशे की तरह साफ़ था। हाँ, वह विशाल से बहुत प्यार करती है। पर शायद विशाल के लिए ऋचा बस एक समय काटने की साथिन भर थी।

साइकिल रख, बैठक में विशाल को देख, ऋचा चैंक गई। क्या यह सच था!

“तुम…….. यहाँ?”

“हाँ, ऋचा। बड़ी देर से तुम्हारा इन्तज़ार कर रहा हूँ।”

“थैंक्स, विशाल! वैसे यहाँ आने की तो तुम्हें कोई जल्दी नहीं थी।” अनजाने ही ऋचा की आवाज में व्यंग्य उतर आया।

“देर या जल्दी का सवाल तो तब उठता, जब मैं शहर में मौजूद होता, ऋचा।” उदास स्वर में विशाल ने बताया।

“ओह! तो हादसे की बात सुनते ही आप शहर छोड़ गए। ठीक कहा न, विशाल?” अपनी सवालिया आँखें ऋचा ने विशाल पर निबद्ध कर दीं।

“मुझे इतना ही जान सकीं, ऋचा?” आहत स्वर में विशाल ने पूछा।

“तुम्हें जान ही कहाँ सकी, विशाल? मैं तो भ्रम में जीती रही।”

“और मेरी गैरहाज़िरी ने तुम्हारा वह भ्रम तोड़ दिया।”

“शायद, यही सच है।”

“तुम कुछ नहीं जानती, ऋचा। उस रात पिक्चर के बाद जब घर पहुँचा, पापा का मेजेस था, माँ को सीरियस हार्ट-अटैक हुआ था। रात में ही घर के लिए निकल गया। आज लौटते ही तुम्हारे पास आया हूँ।”

“सच कह रहे हो, विशाल?” कुछ अविश्वास से ऋचा ने पूछा।

“माँ की बीमारी का बहाना ओछे इन्सान बना सकते हैं, मैं, वैसा इन्सान नहीं हूँ।”

“अब माँ कैसी हैं?”

“ख़तरे के बाहर हैं, पर छह हफ्तो का बेड़-रेस्ट बताया गया है।”

“इस वक्त तो तुम्हें उनके पास होना चाहिए था, विशाल। “

“मेरा जिसके साथ इस वक्त रहना जरूरी है, उसी के पास आया हूँ, ऋचा। तुम्हारा केस फ़ाइल करना है। सारे पेपर्स तैयार हैं, तुम्हारे सिग्नेचर चाहिए।”

“मुझसे कुछ नहीं पूछोगे, विशाल?” ऋचा की आँखें भर आई।

“जिस ऋचा को इतने करीब से जाना है, उससे कुछ पूछने की क्या सचमुच कोई ज़रूरत है?”

“विशाल, मैंने हर पल तुम्हें याद किया, तुम्हारी कमी महसूस की।” ऋचा की आँखों से आँसू बह निकले।

“छिह, यह कौन-सी ऋचा है? मेरी ऋचा आँसू नहीं बहा सकती।” बड़े प्यार से विशाल ने ऋचा के आँसू पोंछ दिए। ऋचा मुस्करा दी।

“ठहरो, तुम्हारे लिए चाय लाती हूँ।”

“चाय क्यों, मैं तो खाना खाऊॅंगा, अम्मा जी अपने होनेवाले दामाद के लिए खाना बना रही हैं।” शैतानी से विशाल मुस्करा दिया।

“क्या ……… क्या कहा तुमने?”

“वही जो तुमने सुना है। कहो, तुम्हें तो कोई इन्कार नहीं है, ऋचा?”

“नहीं, विशाल। अब स्थिति दूसरी है। तुम्हारे परिवारवालों को बलात्कार की शिकार लड़की स्वीकार नहीं होगी। शायद तुम भी दयावश मुझसे शादी करना चाहो। पर जब भी मुझे देखोगे हमेशा वह हादसा तुम्हें याद आएगा। मैं तुम्हें मुक्त करती हूँ, तुम किसी और लड़की से विवाह कर लो।”

“अरे वाह, पहले खुद प्यार के बन्धन में बाँधा और अब अपनी मर्ज़ी से मुक्त कर दिया। देखो ऋचा, मैं तुम्हारे इशारों पर नाचने वाला गुलाम नहीं, मेरी भी मर्ज़ी है।”

“तुम्हारी क्या मर्ज़ी है, विशाल?”

“मैं तुम्हारे साथ शादी करूँगा। हमारा एक प्यारा-सा घर होगा। घर में ढेर सारे गुलाब खिलेंगे। नन्हे-मुन्ने बच्चे होंगे………”

“बस-बस। अब ये सपने मत दिखाओं। विशाल, मैं नहीं चाहती, शादी का उपकार करके बाद में पछताओ।”

“मैं कोई काम ऐसा नहीं करता, जिसके लिए पछताना पड़े। मैंने एक जुझारू पत्रकार को अपनी पत्नी के रूप में चुना है और मैं चाहता हूँ, मेरी वह कर्मठ पत्रकार जल्दी-से-जल्दी अपने कर्म-क्षेत्र में जुट जाए।” विशाल हॅंस रहा था।

“तुम कितने अच्छे हो, विशाल। अपने चुनाव पर मुझे भी गर्व है।” ऋचा की आँखें चमक उठीं।

खाना खाते, विशाल ने ऋचा के पिता से ऋचा का हाथ माँग सबको चैंका दिया-

“बाबूजी, हम दोनों एक-दूसरे को बहुत चाहते हैं। ऋचा के साथ जल्दी-से-जल्दी विवाह करना चाहता हूँ। हमारे विवाह से बहुत-सी समस्याएँ दूर हो जाएँगी। आपकी अनुमति चाहिए।”

बाबू जी और माँ का चेहरा खुशी से चमक उठा। क्या दुनिया में विशाल जैसे भी लोग हैं?

“जुग-जुग जियो, बेटा, पर क्या तुम्हारे परिवारवाले ऋचा को स्वीकार कर सकेंगे?” पिता ने शंका जताई।

“उनकी आज्ञा लेकर ही आपसे ऋचा का हाथ माँग रहा हूँ। मैं चाहता हूँ, हमारा विवाह सादगी के साथ मन्दिर या आर्य-समाज में सम्पन्न किया जाए।”

“नहीं, बेटा। वर्तमान स्थिति में इस तरह के विवाह को लेकर लोग बातें बनाएँगे। हम चाहते हैं, विवाह पूरे विधि-संस्कार से इस घर से हो।” माँ ने अपने मन की बात कही।
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Re: ऋचा (उपन्यास)

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“लोगों की परवाह मत करो, माँ। वो तो हर तरह से कुछ-न-कुछ कहने का बहाना खोज ही लेंगे। विशाल ठीक कहते हैं, विवाह में कोई तामझाम नहीं चाहिए।” ऋचा ने अपना निर्णय दे डाला।

“माँ की बीमारी की वजह से मेरे घर से बस मेरी बहन माधवी ही आ सकेगी। यहाँ के मेरे मित्र-बन्धु भी साथ रहेंगे।” विशाल ने स्थिति बता दी।

दो दिन बाद आर्य-समाज-मन्दिर में विवाह होना तय हो गया। बाबू जी और माँ के चेहरों का विषाद छंट गया। इला दीदी और जीजा जी भी पहुँच गए। इला दीदी ने सिलाई का डिप्लोमा ले लिया था। अब उन्हें नौकरी की तलाश है। दीदी का चमकता चेहरा देख, ऋचा खुश हो गई।

आर्य-समाज के प्रबन्धक ने स्वंय ही आदर्श विवाह की सूचना समाचार-पत्रों में छपवा दी। विवाह के समय भारी भीड़ जमा हो गई। लोग विशाल को बधाई देते यह कहना नहीं भूलते कि उसने बड़ी हिम्मत का काम किया है। ची।फ़ जस्टिस को विवाह में सम्मिलित होते देख, लोग ताज्जुब में पड़ गए। ऋचा के सिर पर आशीर्वाद का हाथ धर, उनकी पत्नी ने एक सोने की चेन उसे पहना दी। ऋचा की आँखें भर आई। वह स्नेहमयी स्त्री सचमुच ऋचा की शुभाकांक्षिणी थीं। स्मिता, सुधा, परेश, नीरज, रागिनी सबने अलग-अलग बधाई दी।

विवाह के बाद ऋचा और विशाल को शहर के एम.एल.ए. की कार द्वारा उनके घर तक पहुँचाया गया। विशाल के छोटे से घर मंे कोई सजावट नहीं थी। माधवी ने भाई-भाभी के स्वागत में खीर बनाई थी। सहास्य भाभी को छेड़ती माधवी ने कहा-

“भाभी, भइया को तो आपने उनकी मंजिल तक पहुँचा दिया। अब हमेें एयरफ़ोर्स तक पहुँचाने की जिम्मेदारी उठानी होगी।”

“तुम जिस भाई की बहिन हो, उस बहिन के लिए कुछ भी कर पाना सम्भव होगा, यह मेरा विश्वास है, माधवी। अपना लक्ष्य तुम जरूर पा सकोगी।” ऋचा ने सच्चे मन से आशीर्वाद दिया।

रात के एकान्त में ऋचा ने विशाल से एक अनुरोध किया-

“जब तक मैं अपने अपराधियों को सज़ा नहीं दिलवा लेती, हमारी मधु-यामिनी स्थगित रहेगी। मेरा यह अनुरोध मान सकोगे, विशाल?”

“तुम्हारे मन की आग मैं महसूस कर सकता हूँ, ऋचा। यही ठीक होगा। पहले वकील साहब मुकदमा जीतकर दिखाएँ, फिर मधु-यामिनी मनाएँ। वाह! क्या तुक बनी है।”

विशाल के परिहास पर दोनों जी खोलकर हॅंस पड़े।

अगले कुछ दिन भारी व्यस्तता में कटे। इस बीच युवकों के पिताओं ने ऋचा और विशाल पर हर तरह के दबाव डाले। पैसों से लेकर पाँव पड़कर माफी माँगने तक की बात कही गई, पर ऋचा अविचलित रही। शहर में ऋचा की हिम्मत की दाद दी जाती। अखबार-पत्रिकाओं ने ऋचा को उच्च पद देने के प्रस्ताव रखे, पर ऋचा ने निश्चय कर लिया, अब वह अपना खुद का अखबार निकालेगी, जिसमें सच्ची पत्रकारिता को प्रोत्साहन दिया जाएगा।

विशाल ऋचा के केस की तैयारी में जुटा था, कहीं कोई बात छूट न जाए। सुनीता के केस की तारीख भी आनेवाली थी। अच्छी बात यह हुई कि सुधा के मामले में इन्क्वॅायरी-कमेटी ने सुधा को निर्दोष बताते हुए उसे पुनः नौकरी पर रखने के आदेश दे दिए। सुधा फिर उसी जगह जाने से हिचक रही थी, पर परेश ने हिम्मत दिलाते हुए कहा-

“तुमने अपनी ऋचा दीदी से कोई सीख नहीं ली। उन्होंने किस हिम्मत से अपने बलात्कार की रिपोर्ट न सिर्फ थाने में दर्ज कराई बल्कि अखबारों में छपवाई और एक तुम हो जिसे फिर जॅाब आॅफर किया जा रहा है और तुम ज्वाइन करते डर रही हो। याद रखो, तुम्हारी पुनः नियुक्ति के लिए ऋचा जी ने कितनी बड़ी कीमत चुकाई है।”
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Re: ऋचा (उपन्यास)

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“ठीक कहते हो, परेश। अगर मैं ड्यूटी ज्वाइन नहीं करती तो यह ऋचा दीदी की हार होगी और मैं किसी भी हालत में उन्हें हारने नहीं दूँगी।”

परेश और सुधा के साथ स्मिता और नीरज भी आए थे। सुधा को बधाई देती ऋचा सचमुच खुश थी। नीरज बेहद शर्मिन्दा था-

“मुझे क्या माफ़ कर सकती हो, ऋचा? उस दिन होश गॅंवा, न जाने क्या-कुछ कह गया। तुमने सुधा के लिए जो किया, एक भाई होकर भी मैं नहीं कर सका।”

“जाने दो, नीरज। उस दिन तुम नहीं, एक परेशान भाई बोल रहा था। लड़की के साथ कुछ ऊॅंच-नीच हो जाने पर घरवालों की मनोदशा मैं समझ सकती हूँ। हमें इस समाज को बदलना होगा, नीरज।”

“उसकी पहल तो हो चुकी है, ऋचा। सारा शहर तुम्हारे मुकदमे के फ़ैेसले के लिए बेचैन है।” नीरज हॅंस रहा था।

“सुना है, वे तीनों तो गूँगे-से हो गए हैं। उनके बाहर निकलते ही लोग उॅंगलियाँ उठाते हैं। सारी हेकड़ी धरी-की-धरी रह गई।” परेश खुश था।

“इसका श्रेय तो ऋचा दीदी को जाता है। अगर उन्होंने डर के कारण अपनी बात छिपा ली होती तो आज भी वे लोग खुले साँड़-से सड़कों पर घूम रहे होते। मेरा तो जी चाहता है, हम सब मिलकर उन्हें सबक सिखाएँ।” सुधा उत्तेजित थी।

“नहीं, सुधा। मुझे पूरी उम्मीद है, कानून उन्हें कड़ी-से-कड़ी सजा दिलवाएगा। वैसे तुमलोग शादी कब कर रहे हो?”

“जिस दिन उन दुष्ट बलात्कारियों को सज़ा दी जाएगी, आप केस जीत जाएँगी, उसके बाद ही हमारा विवाह होगा। यही हमारा निश्चय है।” दृढ़ स्वर में परेश ने बात कही।

“थैंक्स, परेश, पर यह तो तुम्हारे साथ अन्याय ही होगा।” विशाल ने कृतज्ञता जताई।

“हाँ, ऋचा, तुम्हारे प्रशंसकों में प्रकाश जी का नाम भी जुड़ गया है। जल्दी ही वह तुमसे मिलने आने वाले हैं। रागिनी और प्रकाश आज ही आते, पर स्कूल में कुछ काम निकल आया है।” स्मिता ने मुस्कराकर ऋचा की बड़ाई की।

“अच्छा-अच्छा, हम काफ़ी नाम कमा चुके। अब बता, तेरे जॅाब का क्या रहा? इन दिनों तूने तो मुझे भुला ही दिया न, स्मिता?”

“नहीं, ऋचा, तू क्या भुलाई जा सकनेवाली चीज है। असल में हमारा जी अच्छा नहीं रहता, इसलिए अभी जॅाब की बात छोड़ दी है।” कुछ शर्माती स्मिता ने कहा।

“आप जल्दी ही मौसी बननेवाली हैं, ऋचा जी। भाभी उम्मीद से हैं। एक और खुशखबरी, नीरज भइया बैंक-सर्विस के लिए चुन लिए गए हैं।” सुधा ने दो-दो खुशखबरियाँ दे डालीं।

“अरे वाह! तब तो मिठाई के साथ आना चाहिए था।” ऋचा चहक उठी।

“सोचा तो हमने भी था, फिर लगा, तेरे साथ ऐसा हादसा हुआ, उसके बाद क्या मिठाई लाना ठीक होगा?” कुछ संकोच से स्मिता ने कहा।
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Re: ऋचा (उपन्यास)

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“ठीक कहती हो, स्मिता। अगर विशाल मेरे साथ न होते तो हिम्मत न हारने पर भी लोगों की नज़रों में मैं बेचारी लड़की भर बनकर रह जाती। अपने खुशहाल जीवन के लिए मैं विशाल की आभारी हूँ। विशाल ने मुझे यह विश्वास दिलाया है कि जो हुआ, वह एक दुर्घटना थी और दुर्घटनाएँ दुःस्वप्नों की तरह भुला दी जानी चाहिए।” कृतज्ञ दृष्टि से ऋचा विशाल को देख, मुस्करा दी।

“अच्छा-अच्छा, अब विशाल-प्रशंसा-पुराण बन्द करो। अपने दोस्तों को बढ़िया-सी कॅाफ़ी पिला दो।”

ऋचा के हटते ही नीरज पूछ बैठा-

“एक बात पूछना चाहता हूँ विशाल, क्या ऋचा के साथ हुए हादसे का तुमपर ज़रा-सा भी असर नहीं हुआ? मेरी बात को अन्यथा मत लेना प्लीज!”

“सच तो यह है, मैं स्तब्ध रह गया था। एक पल को लगा, मेरी दुनिया ही उजड़ गई, सब कुछ ख़त्म हो गया। हाॅस्पिटल में माँ की बेड के पास बैठा जागता रहा। अचानक लगा, ये मैं क्या सोचने लगा। ऋचा को मैंने पूरे मन से चाहा, क्या मात्र शरीर ही सबकुछ हो गया। आखिर लोग विधवा से भी तो विवाह करते हैं। उस स्थिति में तो उसका अपने पति के साथ भावनात्मक जुड़ाव भी रहता होगा। ऋचा तो उनसे नफ़रत करती है। उसके मन ने तो बस मुझे चाहा है, उस मन को कैसे नकार दूँ? बस सारी दुविधा दूर हो गई।” विशाल गम्भीर हो आया।

“वाह विशाल भाई, आपने तो पूरा नज़रिया ही बदल दिया। काश, दूसरे पुरूष भी आपकी तरह ऐसी स्थिति का विश्लेषण कर पाते।” परेश की आँखों में सच्ची प्रशंसा की चमक थी।

“लीजिए गरमा-गरम कॅाफ़ी हाजिर है।” कॅाफ़ी के साथ बिस्किट लेकर ऋचा आ गई।

सबके जाने के बाद ऋचा विशाल से पूछ बैठी-

“विशाल, क्या तुम पहले जैसा सहज अनुभव करते हो या लोगों के सामने एक्टिंग करना तुम्हारी मजबूरी है?”

“मैं कभी अच्छा एक्टर नहीं रहा, ऋचा। क्या तुम मेरे साथ असहज महसूस करती हो?”

“नहीं, विशाल, पर कभी-कभी दुःस्वप्न मुझे जगा जाते हैं। जी चाहता है, अपने हाथों से उन्हें सज़ा दूँ।”

“वक्त सबसे बड़ा मरहम है, वह बड़े-बड़े दुःख भुला देता है, यह तो बस एक हादसा था।” विश्वास से विशाल ने ऋचा की आँखों में आँखें डालकर देखा।

“अच्छा विशाल, तुम मेरे केस को लेकर बिज़ी हो। सुनीता के केस का क्या हो रहा है? “

“पन्द्रह दिसम्बर को उसकी सुनवाई है। सिस्टर मारिया जैसी चश्मदीद गवाह की वजह से उसका केस काफ़ी मजबूत है। सुनीता ने बताया, राकेश उससे माफ़ी माँगने को तैयार है, पर सुनीता उस नरक में वापस नहीं जाना चाहती।”

“बिल्कुल ठीक निर्णय है। राकेश इन्सान नहीं, राक्षस है।”

“और मेरे बारे में आपका क्या ख्याल है, ऋचा जी?” विशाल ने ऋचा को छेड़ा।

“तुम? बस ठीक-ठाक हो।” ऋचा हॅंस पड़ी।

“तुम्हारे लिए एक और खुशखबरी है, तुम अपना अखबार निकालना चाहती हो, उसके लिए चन्द्रमोहन जी पैसा लगाने को तैयार हैं। उन्हें विश्वास है, तुम जैसी कर्मठ संपादिका के साथ अखबार खूब चलेगा।”

“वाह! यह तो सचमुच अच्छी ख़बर है। मैं कल ही से तैयारी में जुट जाती हूँ।” ऋचा खुश हो गई।

ऋचा के मुकदमे के दिन कोर्ट में तिल रखने की जगह नहीं थी। शहर के सारे पत्रकार, युवा पीढ़ी और दूसरे लोग उमड़ पड़े थे।
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