वह साँवली लड़की

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Jemsbond
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Re: वह साँवली लड़की

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”शायद आपको पता नहीं, पानी में टखनों तक साड़ी उठाए खड़ी आप, कितनी आँखों का आकर्षण बन चुकी है। न जाने कितने कैमरों में आपकी यह अविस्मरणीय छवि कैद हो चुकी है।“

”ओह नो।“ ऊपर कर पकड़ी साड़ी, अनायास ही हाथ से छूट, पानी में गिरते ही गीली हो गई थी। न जाने लोग क्या सोचते होंगे……। अंजू के साथ सुजय ने भी कदम बढ़ाए।

”क्या विनीत खन्ना से झगड़ा किया था या द्वार से खाली हाथ लौटाए व्यक्ति के लिए यहाँ दुख मनाने आई थीं?“

”आपकी व्यर्थ की बातों के लिए मेरे पास कोई जवाब नहीं है, मिस्टर कुमार।“

”तो आइए काम की बात हो जाए। चलिए वहाँ बैठ, ठंडा नारियल का पानी पीते है।“

”मुझे नारियल-पानी कतई पसंद नहीं।“

”तो एक ग्लास समुद्र का खारा पानी ऑफर करूँ……..वैसे तो आपकी आँखों में भी आक्रोश का सागर लहरा रहा है।“

”टु हेल विद यू ,मिस्टर कुमार। किसी इन्सान को शांति से अकेला जीने का अधिकार है या नहीं?“

”अगर अकेलापन शांति दे तो जरूर है, पर कभी अकेलापन खाने को दौड़ता है, उस समय लगता है, कोई होता जिससे अपना सब कुछ बाँट पाता………..।“ सुजय अचानक बेहद गम्भीर हो आया था।

‘वह’ कोई मैं नहीं बन सकती ,मिस्टर कुमार……।

”जानता हूँ वो कमी, कभी कोई पूरी नहीं कर सकता…….।“

”फिर बेकार कोशिश क्यों? भगवान के लिए अब मेरा पीछा न करें।“

तेज कदमों से वापिस लौटी अंजू के लिए मालती सिन्हा वेट कर रही थीं।

”अरे मालती दी, आप यहाँ……….?“

”तू अचानक लंच छोड़ वापिस क्यों चली आई, अंजू? मैं परेशान थी……. क्या हुआ पूछने आ गई।“

”कुछ नहीं, बस अजीब-सी घुटन होने लगी थी…….।“

”तेरे पीछे सुजय भी चले आए थे, कुछ कहासुनी हो गई थी, अंजू?“

”नहीं दीदी, वैसी कोई बात नहीं है। चलो रूम में चलते हैं।“

कोल्ड ड्रिंक सिप करती मालती सिन्हा कुछ गम्भीर हो उठी थीं।

”इतने दिन तेरे साथ बड़े अच्छे बीत गए। चार दिन बाद हम अलग-अलग राहों पर होंगे। फिर न जाने कब मिलें।“

”क्यों आपने प्रॉमिस किया है न सिन्हा साहब और बिटिया के साथ लखनऊ आएँगी?“

”तू जल्दी से शादी कर डाल, हम बस जरूर आएँगे।“

”यानी आपके लखनऊ आगमन के लिए मुझे अपनी बलि देनी होगी?“

”बलि कैसी? माँ बनकर ही नारीत्व सार्थक है, अंजू।“

”तुम अपने नारीत्व को सार्थक कर सकी हो, मालती दी?“

”कुछ भी कह, आशीष के बाद अगर विवाह न करती तो बहुत रीती रह जाती। पति-बेटी के साथ पूर्ण तो हूँ।“

मालती सिन्हा की बात पर अंजू चुप रह गई थी।

दूसरे दिन कॉन्फ्रेंस में आए डेलीगेट्स के लिए स्थानीय पाँच सितारा होटल से डांस कम्पिटीशन के निमन्त्रण आए थे। कम्पिटीशन के बाद डिनर के लिए सभी आमन्त्रित थे।

मालती सिन्हा के साथ-साथ दीपा, नम्रता, अर्चना चहक उठीं।

”वाह मजा आ गया, हमें ये सब देखने की ओपरच्यूनिटी कहाँ मिलती है? चलेंगी न, मालती जी! दीपा विशेष उत्साहित थी।“

”क्यों नहीं, तू भी चलेगी न, अंजू?“

”अभी डिसाइड नहीं किया है।“

”सुजय, तुम तो जरूर चलोगे न? एलिजिबिल बैचलर ठहरे, शायद वहाँ कोई लाइफ-पार्टनर के लिए जंच जाए।“ पास खडे़ सुजय से मालती जी ने परिहास किया था।

”नानसेंस! नंगे जिस्मों की नुमाइश देखने में मुझे कोई इंटरेस्ट नहीं। ऐसी लड़कियाँ…….. किसी धनी व्यक्ति की जेब खाली करना उन्हें खूब आता है, आई सिम्पली हेट सच थिंग्स……।“

आक्रोश के कारण सुजय का चेहरा तमतमा आया।

पास खडे़ लोग चौंककर देखने लगे। मालती सिन्हा का चेहरा स्याह पड़ गया और महिलाएँ धीमे से हट गई थीं।

सुजय तेजी से बाहर चला गया।

”मैंने ऐसी कौन-सी बात कही अंजू, जिससे सुजय इस तरह चिढ़ गया?“

”पता नहीं ,मालती दी। आप बेकार परेशान न हो, इसमें आपकी कहीं कोई गलती नहीं थी।“

उसके बाद मालती जी सहज नहीं रह सकीं। डांस कम्पिटीशन में जाने का उत्साह कपूर-सा उड़ चुका था। शाम को प्रोग्राम खत्म होने के बाद अंजू मालती जी के साथ बाहर आ रही थी कि दूर से शाहीन ने आवाज दी- ”अंजू……….।“

”अरे शानी तू? कब आई। मैं रोज तेरा इंतजार कर रही थी।“

”इसीलिए आज हम पर निगाह भी नहीं डाली?“

”मुझे क्या पता था तू आज आ रही है। सलीम भाई भी आ गए हैं क्या?“

”आने वाले तो कल थे, पर जैसे ही सुना उनकी प्यारी साली यहाँ हैं, सारा काम छोड़ दौडे़ आए हैं।“

”धत्त, शैतान की बच्ची………।“

”अच्छा, अंजू, मैं चलती हूँ।“

”नहीं मालती दी, आज आप डिप्रेस्ड हैं, आप मेरे साथ चलेंगी।“

”नहीं वैसी कोई बात नहीं हैं, आज इतने दिनों बाद शाहीन मिली है, तुझे सुनाने के लिए ढेर-सी बातें होंगी उसके पास। मैं एकदम ठीक हूँ।“

”आर यू श्योर, मालती दी?“

”एकदम श्योर, अब कल-भर का ही तो साथ है, फिर हम कहाँ होंगे।“ मालती सिन्हा चली गई।
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Jemsbond
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अंजू शाहीन के साथ उसके घर चली गई थी। अंजू ने सलीम को फोन से बुला लिया। आते ही सलीम ने अंजू को सलाम बजाया-
”अपनी महबूबा की प्यारी दोस्त को बन्दे का आदाब।“

”आदाब, भाईजान। वैसे ये शाहीन की बच्ची आज तक आपकी महबूबा बनी हुई है, जानकर हैरत हुई।“

”अब आप इनकी जगह ले लें तो बेशक यह हमारी महबूबा नहीं रहेंगी।“

”तुम्हारी ऐसी की तैसी, शर्म नहीं आती बीवी के सामने ऐसी बातें करते?“

”आह! यह बात तो मैं भूल ही गया था, बताइए क्या हाजिर करूँ आपकी खिदमत में?“

”होटल की सबसे लाजवाब डिशेज डिनर में और फिलहाल कोल्ड ड्रिंक्स के साथ पनीर पकौड़े ठीक है न ,अंजू?“

”तेरा हुक्म तो मानना ही होगा वर्ना कैसे बचूँगी।“

”आप भी मानती हैं न ये बात। अब सोचिए यह बंदा किस मुश्किल में जिन्दगी काट रहा है।“

”तुम्हारी तो……….।“ शाहीन ने तकिया उठा सलीम पर फेंक मारा।

वह शाम अंजू की बहुत अच्छी कटी। शाहीन और सलीम के साथ वक्त को जैसे पंख लग गया था। बहुत रात हो जाने पर शाहीन अंजू से वहीं रूकने की जिद करती हार गई, पर अंजू नहीं मानी थी। सलीम के साथ स्कूटर पर उसे भेजती शाहीन हिदायतें देती जा रही थी-
”देखो स्कूटर धीमे चलाना, अंजू को इम्प्रेस करने के लिए स्कूटर दौड़ाने की जरूरत नहीं है, समझे?“

”ठीक है भई, समझ गया। ऐतबार न हो साथ ही चली चलो। दोनों को एक साथ बिठाकर उड़ा ले जा सकता हूँ।“

”जानती हूँ, कितने पानी में हो, एक तो झेली नहीं जाती, दो की बातें करते हैं। अच्छा अंजू, कल मिलेंगे। बाय।“

रिसेप्शन काउंटर पर अंजू के लिए एक हल्का नीला लिफाफा और दूसरा पूनम भाभी का पत्र रखा था। दोनों चिट्ठियाँ ले अंजू रूम में आ गई थी।

पूनम भाभी को अंजू के बिना घर अच्छा नहीं लगता। अम्मा भी अंजू को बेहद याद कर रही हैं। पूरे घर के हालचाल लिख अन्त में एक लाइन जोड़ दी थी-विनीत से उसका सामना तो नहीं हुआ? उसके भइया का फ़ॉरेन जाने का चांस करीब पक्का हो गया है……. आदि-आदि………। पत्र रख अंजू सोच में पड़ गई थी। काश, पापा भइया की यह सफलता देख पाते!

”हल्का नीला लिफाफा साइड टेबिल पर धर अंजू ने उस पर से ध्यान हटा लेना चाहा था। बिना खोले उसे पता था नीला रंग विनीत का फेवरिस्ट कलर था। सगाई टूटने के बाद ऐसे नीले लिफाफे पूनम भाभी ने जबरदस्ती उसके सूटकेस से निकलवा लिए थे।

‘इन्हें सहेज कर रखने से फ़ायदा? झूठ में पगे अक्षर दोहराने की कोई जरूरत नहीं, उसकी तरह उसके ये पत्र भी दगा देंगे, अंजू। उसमें जरा भी शराफ़त हुई तो तेरे पत्र भी वापिस भेज देने चाहिए वर्ना ब्लैक-मेल के न जाने कितने किस्से लड़की की जिन्दगी बर्बाद कर गए हैं।’“

‘वे ऐसे नहीं हैं भाभी।’ स्वंय उससे अपमानित होने के बावजूद अंजू के दिल में विनीत के लिए बहुत जगह थी।

‘वह कैसा है, बताने की जरूरत नहीं।’ पूनम भाभी नाराज हो उठीं।

पलंग पर लेटती अंजू की नजर फिर उसी लिफाफे पर पड़ी। दिमाग कहता था बिन पढ़े फाड़कर डस्टबिन में डाल दे अंजू, पर दिल उसके अन्दर बन्द इबारत पढ़ने को बेचैन था। टेबिल से लिफाफा उठा कुछ देर उसे हाथ में लिए रही फिर खोल डाला। विनीत की परिचित लिखाई सामने थी-अंजू……….

‘मेरी अंजू’ लिखने का तो स्वंय अधिकार खो चुका, शिकायत कैसे करूँ? देखो बिना पढ़े खत फाड़कर मत फेंक देना। फाँसी के अपराधी को भी अंतिम इच्छा व्यक्त करने की अनुमति मिलती है, पर मेरा अपराध शायद उससे भी ज्यादा है।

कल तुम्हें देख, बहुत मुश्किल से जो कुछ भुलाना चाहा था, फिर दुगनी तीव्रता से याद आ रहा है। कितने अच्छे थे वे दिन। आज इतने सुख-ऐश्वर्य के बीच करवटें बदलता, कितना अकेला छूट गया हूँ मैं। तुम्हारे साथ कितना पूर्ण पाता था अपने-आप को। तुम्हारी आँखों में उतरते मेरे सपने तुम्हारी आँखों की चमक बढ़ा जाते थे। पत्नी से प्राप्त ऐश्वर्य का स्वाद कितना फीका है, काश, तुम्हें बता पाता! मैने वो सब कुछ पा लिया है, जिसका कभी मैंने स्वप्न देखा था, पर सब कुछ पाकर भी मैंने आत्म-विश्वास, गौरव और सम्मान खो दिया है, अंजू।

सविता मेरी पत्नी कम, स्वामिनी अधिक है, यह स्वीकार करते मैं तुम्हारे प्रति किए अपराध का दंड भोग रहा हूँ, अंजू। कभी जी चाहता है वो दिन फिर वापिस आ जाते -नन्ही गौरैया-सी तुम किस कदर मुझ पर डिपेंड करती थीं। तुम्हारी मुग्ध चमकती आँखें मेरी हर बात कैसे सराहती थीं…… मैं अन्दर से टूट चुका हूँ ,अंजू। विनीत मेहता-वह महत्वाकांक्षी युवक उसी दिन मर गया जिस दिन उसने अपना मूल्य लगाया था……..इकलौती बेटी के पिता, मिस्टर खन्ना ने इतनी ऊंची बोली लगाई थी कि लगा सारे सपने अचानक एक साथ मेरी मुट्ठी में कैद हो गए हैं। आज मेरी मुट्ठी एकदम खाली है-बिल्कुल रीती है, मेरी तरह।

क्या हम आगे मिलते रह सकते हैं, अंजू? तुम्हारी दो पंक्तियाँ मेरा मनोबल बढ़ा, मुझे जीवन दे सकती हैं, अंजू।

विनीत

न चाहते हुए भी अंजू की आँखें भीग आई थीं। विनीत को उसने अपने से अधिक चाहा था, पर आज का यह पत्र क्या उसके जीवन का सत्य है? सगाई टूटने के बाद पूनम भाभी ने कहा था-
‘अंजू, मेरी बात मान, उसे अच्छी तरह समझाते हुए एक खत डाल दे। भला यह कोई गुड्डे-गुड़िया का खेल हुआ, जब जी चाहा सगाई कर ली, जब जी चाहा सगाई तोड़ दी?’

‘न भाभी, यह मैं किसी हालत में नहीं कर सकती। उससे अपने लिए भीख नहीं माँगी जाएगी मुझसे।’ आगे अंजू बोल नहीं सकी थी।

आज वही विनीत उससे दो पंक्तियों की भीख माँग रहा है, क्या करे अंजू? पूरी रात शायद जागते बीत गई थी, पर सुबह तक अंजू निर्णय ले चुकी थी। पुरूष हमेशा स्त्री की कोमल भावनाओं पर प्रहार कर, विजय पाता रहा, अब वह अपने पर विनीत की विजय नहीं होने देगी। वह विनीत का शिकार बनी नहीं रह सकती।

धीमे से चिट्ठी के छोटे-छोटे टुकड़े कर लिफाफे में बन्द कर, एक पंक्ति लिखी थी-

‘अगर यह पत्र आपकी पत्नी को भेज देती तो? अपने को दयनीय दिखाने वाले व्यक्ति को मैं कायर कहती हूँ। कायर पुरूष को किसी भी स्थिति में सम्मान दे पाना या उससे सम्बन्ध बनाना, मुझे सम्भव नहीं। अपनी नियति के निर्माता हम खुद हैं।

विनीत खन्ना के नाम लिफाफा पोस्ट कर, अंजू काफी हल्का महसूस कर रही थी। इतने दिनों से विनीत जिस तरह उस पर हावी था, आज उससे वह अपने को मुक्त महसूस कर, हल्की हो आई थी।

त्रिवेन्द्रम में आज सबका अंतिम दिन था, कल सब अपनी अलग राहों पर होंगे। आज लंच के बाद सेशन समाप्त हो जाना था। कई डेलीगेट्स अंजू को अपने-अपने कार्ड थमा रहे थे।

”आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा ,मिस मेहरोत्रा।“

”कभी हमारी ओर आएँ तो फोन-भर कर दें, आपका स्वागत रहेगा।“

”आप हमारी स्मृति में हमेशा सजीव रहेंगी, मिस मेहरोत्रा। आपका जीवन्त व्यक्तित्व भुलाना आसान नहीं है।“

सबकी बातें सुनती, कार्ड्स पर्स में धरती अंजू हौले-हौले मुस्करा रही थी। मालती सिन्हा सबसे हॅंस-हॅंस कर विदा ले रही थीं। नेहा, नम्रता, दीपा, अंजू सब एक-दूसरे से सम्पर्क बनाए रखने के वादे कर रही थीं। तभी पीछे से मालती सिन्हा ने अंजू की पीठ पर हाथ धर स्नेह से कहा था- ”सबमें मेरा भी नाम है या नहीं?“

”क्या कहती हैं ,मालती दी? आपका नाम ही क्यों, आप तो मेरे दिल में हमेशा-हमेशा बसी रहेंगी।“

”इधर आ, तुझसे कुछ कहना है।“ अंजू का हाथ पकड़ मालती जी एकान्त में ले गई।

”जानती है कल क्या हुआ?“

”क्या हुआ कैसे जानूंगी मालती दी, अन्तर्यामी तो हूँ नहीं।“ अंजू हॅंस पड़ी।

”बहुत डिप्रेस्ड मूड में होटल पहूँची थी। सोचा था बिना खाए-पिए किसी तरह रात काटूंगी। मेरे पहुँचने के तीन-चार घण्टे बाद सुजय आ पहुँचा था। आते ही पाँवों पर झुक गया-
‘मुझे माफ कर दो दीदी, आज अनायास ही आपसे ऊंचे स्वर में उल्टा-सीधा बोल गया।’“ मैं चौंक गई थी, समझाते हुए कहा था-

”ठीक है। हरएक की अपनी कोई मजबूरी होती है। शायद तुम्हारा मूड ठीक नहीं था ,जय।“

”‘मूड तो मेरा हमेशा के लिए बदल चुका है, दीदी। कभी मैं, आज का रूखा सुजय कुमार, एक खुशमिजाज, लापरवाह युवक-भर हुआ करता था। पापा की अपार सम्पत्ति से बेखबर, अपनी धुन में मस्त।“

”ऐसा क्या हो गया ,जय?“

”‘बता पाना सम्भव नहीं, अगर हो सके तो ये चंद पंक्तियाँ लिख लाया हूँ, पढ़ देखना।’“

”‘उन पंक्तियों को पढ़, मैं तो ताज्जुब में पड़ गई ,अंजू। लड़कियां भी इतनी क्रुएल हो सकती हैं, विश्वास नहीं होता। बहुत दुख पाया है बेचारे ने।’“
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Re: वह साँवली लड़की

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”आप भी मालती दी, इन बातों पर विश्वास करती हैं? स्त्री की वीकनेस ये खूब जानते हैं। आपकी भावनाएँ उभारने के लिए कोई मन-गढ़न्त कहानी लिख डाली होगी और आप पसीज गई।“ अंजू को विनीत के खत का ख्याल हो आया।

”अरे नहीं, मैं क्या कोई बच्ची हूँ जो बहकावे में आ जाऊं, विश्वास नहीं होता तू ही पढ़ देख।“ मालती दी ने चार-पाँच पृष्ठ अंजू की ओर बढ़ाए थे।

”मुझे क्या पड़ी है जो ये सब पढ़ अपना टाइम वेस्ट करूँ?“

”मेरे लिए तू पढ़कर तो देख अंजू, फिर अपना फ़ैसला देना। अभी तेरे पास टाइम नहीं है तो ले, तू ही इसे रख ले।“

मालती जी ने जबरन अंजू के बैग में वो कागज डाल दिए।

विदाई की बेला भावभीनी हो उठी थी। मालती सिन्हा ने अंजू को अपने सीने से चिपटा प्यार किया था।

”देख अंजू, बहिन बनी है तो बड़ी बहिन के घर आना होगा। लखनऊ से झाँसी ज्यादा दूर तो नहीं है।“

”सात समुन्दर पार भी आपसे मिलने पहुँचूँगी ,मालती दी।“ अंजू भावुक हो आई।

बहुत मना करने के बावजूद शाहीन ने एक सलवार-सूट का पैकेट अंजू को थमा दिया-
”उम्र में हम भले ही बराबर हों, पर शादी हो जाने की वजह से मेरा दर्जा तुझसे ऊपर है। छोटी बहिन खाली हाथ विदा नहीं की जाती।“

सलीम को शिकायत थी अंजू कॉन्फ्रेंस में बिजी रही, इसीलिए उन्हे टाइम नहीं दिया। फिर आने का वादा कर, अंजू वापिस होटल आई थी।

दूसरे दिन बहुत सवेरे लखनऊ की फ्लाइट अंजू को पकड़नी थी। सामान पैक कर, पास के सी-बीच तक घूम आने के इरादे से अंजू नीचे उतरी थी। रिसेप्शन पर उसके नाम एक स्लिप छोड़ी गई थी-

भविष्य में हमें कभी नहीं मिलना है, जितना मिले याद रहेगा।

-सुजय

स्लिप पढ़ते ही अंजू का मन उदास-सा हो आया। पिछले कुछ दिनों में जैसे यहाँ एक नया परिवार-सा बन गया था-शाहीन, मालती दी, सलीम और हमेशा उस पा व्यंग्य कसते रहने वाला सुजय, भी उस परिवार का सदस्य बन गया था। आज सब अपनी अलग-अलग राहों में होंगे। कुछ दिन एक-दूसरे से पत्र-व्यवहार चलेगा फिर सब खत्म हो जाएगा। इस सच को जानते हुए भी उन दो पंक्तियों ने अंजू को उदास कर दिया। विनीत के प्रति मोह-भंग पर अंजू को ताज्जुब हो रहा था। जिनसे मात्र कुछेक दिनों का परिचय था, उनसे बिछोह पर मन उदास हो रहा था, पर जिसे प्राणों से भी अधिक चाहा था, जाते समय वह दूर तक कहीं नहीं था। पूनम भाभी भला उसकी इस बात पर विश्वास कर सकेंगी? सी-बीच तक घूम आने का जैसे उत्साह ही खत्म हो गया। कमरे में वापिस लौट अंजू बालकनी में जा बैठी थी।

रेसेप्शन पर वेकअप-काल देने के निर्देश दे अंजू सोने की तैयारी कर ही रही थी कि मालती जी का फोन आ गया था-

”क्या कर रही है ,अंजू? बहुत खाली-खाली महसूस कर रही थी इसीलिए कॉल किया।“

”बहुत अच्छा किया मालती दी, मुझे भी बड़ा सन्नाटा-सा लग रहा है। पैकिंग हो गई?“

”हाँ, सब हो गया, सच कहूँ तो इस वक्त बेटी बेतरह याद आ रही है। लग रहा है पंख लगा उड़ जाऊं।“

”कल तो जा ही रही हैं, पहुँचकर खत लिखना मत भूलिएगा।“

”वह कैसे भूल सकती हूँ ,अंजू। तेरे बारे में तो सिन्हा साहब को ढेर-सी बातें बतानी हैं।“

”तारीफ ही कीजिएगा दीदी, बुराई तो नहीं करेंगी?“

”तेरी तो सभी तारीफ करते हैं। आज शाम सुजय भी तेरी ही बात कर रहा था।“

”मेरी बात?…… सुजय?…….क्या कह रहे थे?“ अंजू ताज्जुब में पड़ गई।

”तेरी बुराई नहीं कर रहा था क्या यह कम नहीं है? वैसे भी उसकी बुराई-तारीफ़ से तुझे तो कुछ लेना-देना है नहीं, ठीक कहा न, अंजू?“

”जी……ई…..। कल कितने बजे निकलना है मालती दी?“ अंजू की आवाज लड़खड़ा गई थी।

”ओह, मैं तो भूल ही गई, तेरी फ्लाइट तो अर्ली मार्निग है, ओ के बाय। फिर मिलेंगे।“

”मेरा यह मतलब तो नहीं था मालती दी……..।“

”नहीं-नहीं, मुझे भी रेस्ट लेना है, ऑल दि बेस्ट।“ मालती जी ने फोन काट दिया।

सुजय मालती जी से मिलने गया, उनसे अंजू के बारे में न जाने क्या बात की, अंजू को वो स्ल्पि देना जरूरी था क्या? उधेड़बुन में पता नहीं कितनी देर अंजू सोई, कितनी देर जागी, हिसाब लगा पाना कठिन था।

सुबह की ताजी हवा ने रात का नैराश्य भुला दिया था। काउंटर पर ताजे लाल गुलाबों का बुके, कार्ड सहित अंजू की प्रतीक्षा कर रहा था।

विनीत ने गुलाब भेजे ये। एक पंक्ति थी-

अपने सबसे अच्छे मित्र को बहुत प्यार सहित……।

-विनीत

बुके हाथ में लिए अंजू मुस्करा उठी थी। विनीत का चेहरा गुलाबों में साकार हो उठा था। प्यार से फूलों को सहलाती अंजू ने घर पहॅचते ही विनीत को पत्र लिखने का निर्णय ले डाला था। कमजोरियों के बावजूद विनीत से अंजू नफरत नहीं कर सकी। मित्र रूप् मे विनीत का स्नेह उसे आहृलादित कर गया था।
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छह

घर पहुंचते ही अम्मा ने बाँहो में भर लिया।

”पन्द्रह दिनों में तेरी तो शक्ल ही बदल गई है। पहले ही कमजोर थी, अब और भी सूख गई है।“

”तुम्हें तो अम्मा, अपने बच्चे हमेशा ही दुबले नजर आएँगे। मेरे ख्याल में तो अंजू को चेंज सूट किया, चेहरा चमक रहा है।“ अतुल भइया ने स्नेह से उसकी पीठ थपथपाई।

पूनम भाभी एकांत की तलाश में थीं। अकेला पाते ही अंजू पर प्रश्नों की बौछार कर डाली-
”सच कह अंजू, विनीत मिला था न?“

”हाँ………आँ……….।“

”क्या…….? कहाँ मिल गया? क्या तूने इन्फार्म किया था?“

”इतना ही जान पाई हो अपनी अंजू को, मैं उसे इन्फ़ार्म कर सकती हूँ, भाभी?“

”फिर कैसे मिल गया, सच मेरी तो जान सूखी जा रही है।“

”मैं अच्छी-भली तुम्हारे सामने खड़ी हूँ और तुम्हारी जान सूख रही है। अब क्या मैं बीस साल की अंजू हूँ?“

”देखने में तो अब भी कोई फ़र्क नहीं आया है, ज्यादा ही निखर आई हो। पूरी बात नहीं बताई तो देख लूँगी।“

”देख लेना, अब हम दोनों अच्छे दोस्त बन गए हैं, भाभी। सच तो यह है ,वह एक बेहद कमजोर इंसान था। उस समय बचपने में सब कुछ ठीक लगता था, पर इस बार लगा उसका अपना व्यक्तित्व ही नहीं है।“

”तो अब सही व्यक्ति की तलाश शुरू की जाए?“

”तलाशने की क्या जरूरत है भाभी, अब तो मैं भी भगवान की इच्छा-अनिच्छा मानने लगी हूँ। जो होना है सो होगा।“

”अच्छा मेरी पुरखिन दस-पन्द्रह दिनों में ही इतना ज्ञान बटोर लाई है, कोई गुरू मिल गया था क्या?“

”क्यों मुझमें मेरी अपनी अकल नहीं है क्या?“

”अरे उसकी तो बात ही नहीं, तुझ-सा कोई दूसरा है इस घर में?“

”क्यों, भइया क्या किसी से कम हैं? भइया इज ए सेल्फ़-मेड पर्सन, आई एम प्राउड ऑफ हिम।“

पूनम का मुँह चमक उठा।

कुछ दिन घर-ऑफिस की व्यस्तता में बीत गए। रात में अंजू को कभी-कभी सब कुछ बहुत याद आता था। कोवलम-सी- बीच तो स्मृति में बार-बार कौंधता था। मालती सिन्हा को लम्बा-सा खत लिख, अंजू उनके पत्र की प्रतीक्षा करने लगी।

पूनम भाभी के साथ शॉपिंग को जाने को तैयार अंजू ने अपना बैग निकाला। त्रिवेन्द्रम से इसी बैग में अंजू ढेर सारे नारियल भरकर लाई थी। इस बैग की यही खासियत थी फोल्ड करने पर एकदम छोटा हो जाता था और सामान भरने पर खूब बढ़ जाता था। बैग झाड़ते वक्त कागज के कुछ पृष्ठ निकल आए थे। उन कागजों पर अंकित अपरिचित लिखाई ने उत्सुकता जगा दी-

………. जब से होश सम्हाला अपने को अकेला ही पाया। मम्मी के लिए पापा बहुत बड़ी जायदाद और फैक्ट्री छोड़, उन्हें बहुत जल्दी अकेला कर गए थे। मम्मी ने अपना सब कुछ ही नहीं, अपने को भी सागर अंकल को सौंप दिया था- ये बातें बड़े होने पर समझ पाया था। तब से सागर अंकल मेरे प्रतिद्वन्द्धी बन गए थे। मम्मी ने मुझे न जाने क्यों बड़ा हो जाने दिया।

उस रात मम्मी जिद करके क्लब के बाल-डांस में ले गई थीं।

‘हमेशा घर में पड़े किताबें चाटते हो, घर के बाहर भी कोई दुनिया है, तुम्हें जानना चाहिए।’

‘क्यों?’

‘क्यों…….पूछ रहे हो, इतनी बड़ी सम्पत्ति के अकेले वारिस हो, इसलिए अच्छा-बुरा जानना जरूरी है न?’

‘इस सम्पत्ति से मेरा कोई लेना-देना नहीं है, मम्मी”
“दिमाग तो नहीं खराब हो गया तेरा?

‘कुछ भी समझ लो, यह सब कुछ मेरे लिए अस्पर्श्य है।’

‘पर क्यों? तेरे पापा के कारोबार पर और किसका हक है?’

”जिसे तुम यह हक दे चुकी हो, मम्मी……..“

‘पागल हो गया है? किसे हक दिया है मैंने?’

‘कई बार हक अनजाने ही दे दिए जाते है। खैर, उस बात को छोड़ दो। वैसे भी इस सब पर फिर अधिकार पा सकना आसान नहीं होगा।’

‘तेरी बातें मेरी समझ से परे हैं, पर आज मेरी खातिर चला चल, प्लीज, जय बेटे।’

मम्मी ने बहुत कम बार मुझे बेटा कहा होगा, उनकी उस मनुहार पर मैं पसीज गया। मम्मी की जिद के कारण सूट पहन कर जाना पड़ा था।

पूरा क्लब विद्युत झालरों से जगमगा रहा था। ढेर सारी लड़कियाँ, रंग-बिरंगे परिधान, तरह-तरह की परफ्यूम्स की सुगन्ध, उनकी खिलखिलाहटें अजीब समाँ बाँध रही थीं। वहाँ पहुँच ,अपने को अजनबी-सा महसूस करने लगा था। मम्मी न जाने किस-किससे मुझे इंट्रोड्यूस कराती जा रही थीं। न जाने क्यों सारी लड़कियाँ मेरे आस-पास ही मॅंड़रा रही थीं। शायद मेरी अपार सम्पत्ति मेरे प्रति उनके प्रबल आकर्षण का कारण थी।

मेरे सामने वाले सोफे पर बैठी लड़की मेरी ही तरह भौचक दर्शक थी। तभी एक युवक ने उसके पास पहुंच शायद उससे डांस की रिक्वेस्ट की थी। लड़की उसके अनुरोध पर अपने-आप मे और भी सिकुड़ गई थी। युवक ने जैसे उसे जबरन खींच डांस- फ्लोर पर ला खड़ा किया था। मैं स्पष्ट देख पा रहा था कि वह लड़की डांस नहीं जानती थी। शर्म से पानी-पानी हो रही लड़की को युवक ने हल्के से फ्लोर के बाहर कर दिया। डांस कर रहे एक जोड़े से टकराती वह लड़की ठीक मेरी गोद में आ गिरी थी। उसके स्पर्श से मेरा सर्वाग रोमांचित हो उठा था-‘सॉरी………।’ अपने को सॅंभालती लड़की रोने-रोने को हो आई थी।

‘इट्स ओ के ! आइए यहाँ आराम से बैठ जाइए।’

मेरे पास सिमट कर बैठी लड़की भयभीत चिड़िया-सी लगी। पास से गुजर रहे वेटर को कोल्ड ड्रिंक लाने का आर्डर दे, मैंने बातचीत शुरू की-

‘आपका नाम?’

‘मोनिका।’

‘कहाँ रहती हैं?’

‘उदयपुर….. यहाँ मामा के घर आई हूँ।’

‘कौन हैं आपके मामा?’

‘बैरिस्टर विश्वम्भर राय।’

”ओह आप राय अंकल के घर ठहरी हैं?“

‘आप मामा को जानते हैं?’

‘उनके घर तो मम्मी की ब्रिज पार्टी होती है।’

‘आप भी कार्ड खेलते हैं?’ दो भोली आँखें मन की सारी उत्सुकता समेटे मुझ पर निबद्ध थीं।

‘अगर खेलता हूँ तो?’

‘तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा, आई हेट कार्ड ऐंड ड्रिंक पार्टीज……….।’

‘मी टू।’

मोनिका के साथ कितना सुकून मिल रहा था। उस भीड़ और घुटन-भरे हाल के कोने में मोनिका खुली हवा के झोंके ले आई थी। इस बीच न जाने कितनी जोड़ी ईष्र्यालु आँखें हमें तरेरती रहीं, पर हम दोनों उनसे उदासीन कोल्ड ड्रिंक्स खत्म कर, आइसक्रीम ले बाहर आ गए।

‘तुम्हारे मामा इतने एडवांस्ड हैं और तुम उनसे इतनी डिफरेंट कैसे हो?’

‘तुम भी तो अपनी मम्मी से कितने अलग हो, फिर वह तो मेरे मामा ठहरे।’

‘क्या तुम जानती हो मुझे?’ मैं चौंक गया।

‘इस पार्टी की कौन लड़की तुम्हें नहीं जानती? मोस्ट एलिजिबिल बैचलर…….पढ़े-लिखे सुन्दर अमीर। मेरी कजिन अनिता तो तुम पर मरती है।’

‘मुझे इस क्लास से नफरत है।’

‘किस क्लास की बात कर रहे हो? मुझे तो अपना क्लास बेहद पसन्द है। मेरी टीचर मुझे मोस्ट रिमार्केबल गर्ल ऑफ दि क्लास कहती हैं।’

मैं बेतहाशा हॅंस पड़ा।

‘तुम्हारे भोलेपन का जवाब नहीं।’

‘मैं भोली हूँ? शायद इसीलिए अनीता मुझे ‘लल्ली’ कहती है।’

‘नो प्रोब्लेम, यहाँ की ज्यादातर लड़कियाँ पीठ पीछे मुझे ‘लल्लू’ पुकारती हैं। जानता हूँ यह बात, लेकिन मुझे इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मैं अपने को जानता हूँ, वही काफ़ी है।’

मोनिका मुझे खिली पांखुरी पर शरद की ओसबिन्दु-सी मोहक लगी थी।

दूसरे दिन से मम्मी के साथ मैं भी राय अंकल के घर जाने को तैयार था। मम्मी खुश थीं।

‘चलो तुम्हें अक्ल तो आई। चार लोगों में बैठोगे तो एटीकेट्स सीखोगे। सब कहते है, तुम्हारा बेटा कितना घरघुस्सू है।’
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Jemsbond
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Re: वह साँवली लड़की

Post by Jemsbond »



उस दिन के बाद से मैं हर बार राय अंकल के घर जाता रहा। मेरे पहुँचते ही मोनिका खिल उठती। कोई बहाना बना हम दोनों घंटों बाहर लॉन की घास पर बैठे बातें करते रहते थे। मोनिका के बिना जीवन की कल्पना भी कर पाना कठिन था।

मम्मी मेरे बदलते रूख से बेहद खुश थीं, जाने-अनजाने उनका प्यार मेरे लिए छलकने लगा था।

एक बात के लिए मम्मी का अहसान मानता हूँ- अगर वे चाहतीं तो सागर अंकल से शादी कर लेतीं, पर पापा की डेथ-बेड पर उन्होंने पापा को वचन दिया था, मेरे लिए वह दूसरी शादी नहीं करेंगी। उस समय मैं दो साल का था। पापा की बात रखकर मम्मी ने उन्हें जो मान दिया, उसके लिए मैं हमेशा उनका आभारी रहा। कभी-कभी पापा की सेलफिशनेस पर उन्हें मन-ही-मन दोषी भी ठहराया- क्यों उन्होंने मम्मी को अपने वचन से जकड़ दिया? मम्मी की उस समय उम्र ही क्या थी।

मम्मी के प्रति सदय होते मन पर, कहने वालों ने इतने क्रूर आघात किए थे कि उनकी चोटों से मैं तिलमिला जाता। शादी न करके मम्मी ने सागर अंकल से जो सम्बन्ध रखे उसके लिए मम्मी अपनी अन्तिम साँस तक अक्षम्य रही……। आज सोचता हूँ क्या यह मेरे पुरूष का अहं नहीं था………स्त्री पर जिसका कानूनन अधिकार है, वह उसके साथ कैसा भी व्यवहार करे, स्त्री का धर्म आजीवन उसी खूँटे से बंधकर रहना है। पापा को ऐयाशी का हक था, पर जाते-जाते भी वे मम्मी को अपने वचन की सूली पर चढ़ा गए। मोनिका पर किसी और का अधिकार क्या मैं सह सकता हूँ?

उस दिन पियानो बजाती मोनिका के पीछे मैं मुग्ध खड़ा था। मेरी ताली की आवाज से मोनिका चौंक गई-
‘अरे तुम, कब आए?’

‘मैं गया ही कब था, हमेशा तुम्हारे पास ही तो हूँ न?’

‘ये तो ठीक कहा, कैसा बजाती हूँ पियानो?’

‘तुम्हारे स्वभाव से मेल नहीं खाता।’

‘क्यों?’

‘भारतीय परम्परा के अनुरूप् तो तुम पर वीणा सोहेगी।’

‘तब तो मेरे सामने सिर झुकाकर वीणा वादिनि, वर दे गाना पड़ेगा।’ मोनिका हॅंस रही थी।

‘जो वरदान माँगूँ, मिलेगा न?’

‘माँगकर तो देखो।’

‘आज नहीं, फिर कभी, पर याद रखना वचन दिया है।’

‘ओ के । आज क्या प्रोग्राम है?’

‘आठ-दस दिनों के लिए बांबे जा रहा हूँ। न्यू ईयर पर विश करने और तूमसे वरदान माँगने वापिस पहुंच जाऊंगा।’

‘वादा रहा, बहुत मिस करूँगी तुम्हें।’

मोनिका की हथेली पर हाथ धर मैंने वायदा किया था।

बाम्बे में काम जल्दी खत्म हो गया था, उसी दिन की फ्लाइट ले घर पहुँचा। मोनिका के घर फोन करने पर पता लगा, वह क्लब गई हुई थी। सरप्राइज देने के लिए इससे अच्छा मौका कब मिलता! कार दौड़ा, क्लब पहुंच गया। अपनी फेवरिट जगह मोनिका को न पा, हाल में पहुँचा था। डांसिंग फ्लोर पर युवा जोड़े नृत्य कर रहे थे। मोनिका को वहाँ पाने की आशा व्यर्थ थी, पर शायद उसकी कजिन अनिता उसका पता दे सके, यही सोच, अनिता की खोज में नजरें दौड़ाई थीं, पर जो देखा, उसने चौंका दिया । अत्याधुनिक परिधान में एक सुन्दर युवक के कन्धे पर सिर टिकाए मोनिका, आत्मविस्मृत-सी झूम रही थी। स्तब्ध खड़ा मैं उसे पुकार भी न सका।

धुन समाप्त होते ही युवा जोडे़ अपनी-अपनी जगहों पर जा बैठे थे। युवक का सहारा लिए मोनिका एक कोने में उसी युवक के कन्धे पर सिर टिकाए बैठ गई थी। पेग बना युवक ने मोनिका के होंठों से लगा दिया था। यह सब सहन कर पाना कठिन था, सीधे उनके सामने जा खड़ा हुआ। विश्वास करोगी मालती दी, मोनिका ने मुझे कतई नहीं पहचाना- सुजय को नहीं पहचाना। मैं शायद उत्तेजित था, चीख-सा पड़ा था-

‘मोनिका, यह क्या तमाशा है? कौन है यह ………. आई वांट ऐन एक्सप्लेनेशन………..।’

‘हाउ डेयर यू? हू आर यू? गेट लॉस्ट………। रोहित, मुझे यहाँ से ले चलो प्लीज।’

‘नहीं, तुम यहाँ से ऐसे नहीं जा सकतीं, तुम्हें बताना होगा।’

मेरी आवाज पर काफी लोग घिर आए थे। उनमें अनिता भी थी। मेरा हाथ जबरन खींच एक ओर ले गई।

‘आई एम सॉरी सुजय, ही इज मोनिकाज फियान्सी। अमेरिका में बहुत बड़ा बिजनेस है उसका। परसों दोनों की एंगेजमेंट हुई है। तुम उसे भुला दो, वह एक मजाक था। यू आर नॉट हर च्वाइस…….।’

‘क्या वह एक खेल था……..नानसेंस। वह मुझे प्यार करती थी। हम दोनों……….।’

‘शायद सच्चाई तुम्हें नहीं पता, हम लड़कियों में तुम्हें इम्प्रेस करने की शर्त लगी थी। मोनिका वह शर्त जीत गई। दैट्स ऑल, टेक इट ईजी। मोनिका वह नहीं थी, जिसे तुमने प्यार किया, मोनिका यह है।’

समझ सकती हो मालती दी, उस अपमान-पीड़ा का दंश किस तरह झेला होगा मैंने! माँ से लेकर मोनिका तक का सफर तय करना आसान तो नहीं रहा होगा?

जलते कान और सुलगते मन के साथ मैं कैसे घर पहुंचा, पता नहीं। उस दिन पहली बार पापा की बोतल नीट चढ़ा गया था। पूरी रात न पहचाने जाने की आग में जलता रहा था मैं। उस रात का नशा उतरा भी तो कैसे- सुबह-सुबह दरबान ने जगाया था।

ड्राइंग रूम में पुलिस इंस्पेक्टर उस मनहूस खबर के साथ मेरी प्रतीक्षा कर रहा था। क्लब से सागर अंकल के साथ वापिस आती मम्मी की कार को ट्रक ने सामने से हिट किया था। मम्मी और सागर अंकल ने वहीं दम तोड़ दिया था।
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