वह साँवली लड़की

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Jemsbond
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Re: वह साँवली लड़की

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मालती जी बच्चों-सी उत्साहित थीं। सलवार-कमीज पानी में भीग उनकी काया से चिपक गई थीं, पर वे निश्चिन्त सागर-स्नान का मजा ले रही थी। अंजू बार-बार कपड़े निचोड़ रही थी। मालती जी हॅंस पड़ी थीं-
”अरे यहाँ कोई किसी को नहीं देखता। जानती है दो साल पहले गोआ-तट पर नंगे विदेशियों को फुटबाल खेलते देख मैं तो आँखें भी न उठा सकी थी, दो दिन बाद सब सामान्य-सा लगा था।“

”अब चलें मालती दी, भूख लग आई है।“

”ब्रेकफास्ट में क्या लेगी? यहाँ हर तरह का ब्रेकफास्ट उपलब्ध है। आलू के पराठे खाएगी?“

”आलू के पराठे यहाँ?“

”हाँ, वह सामने इस्माइल का रेस्ट्राँ है न, वह नार्थ इंडियन डिशेज का एक्सपर्ट है। चल वहीं उसके होटेल में कपड़े चेंज भी कर लेंगे।“

मालती सिन्हा को देखते ही इस्माइल आगे बढ़ आया।

”वेलकम, मैडम। आज खाने में क्या स्पेशल चाहिए?“

”पहले तो हमें एक बाथरूम- अटैच्ड रूम दो, हम कपड़े बदल लें, तब आलू के पराठे और अपना इमली वाला मिर्ची का अचार तैयार रखना।“

”ओ के मैडम, हफ़ीज़, मैडम को फिफ्टी टू में ले जा फटाफट।“

रेस्ट्राँ के पीछे बने कमरों में विदेशी टूरिस्टों की भीड़ थी। मालती दी जैसे कोवलम की एक-एक बात से परिचित थीं। बाथरूम में शॉवर के नीचे खड़ी अंजू, ठंडे पानी की बौछार में भीगती रही।
मालती जी ने द्वार पर दस्तक दी – ”ऐ अंजू, क्या सो गई, मुझे भी चेन्ज करना है, जल्दी कर।“

”सॉरी दीदी, अभी निकली।“

तौलिये से भीगे बाल सुखाती अंजू जल्दी ही बाहर आ गई थी। बालों से गिरती छोटी-छोटी बूंदें माथे पर बिखर आई थीं।

”वाह, क्या रूप पाया है। सच कह, ऐसे रूप के साथ तू आज तक कुंवारी कैसे रह गई ,अंजू?“

”आप तो हद कर देती हैं, मालती दी।“ मालती सिन्हा की मुग्ध दृष्टि पर अंजू लजा आई।

आलू के पराठे परोसता इस्माइल मालती दी से चुहल करता था रहा था-
”आशीष साहब तंदूरी चिकन खाता था और दीदी आलू का पराठा। साहब शिकायत करता था-‘इस्माइल, तुम दीदी के पराठे में ज्यादा घी डालता है, दीदी मोटा हो जाएगा तो उन्हें इधर ही छोड़ जाएगा।’ दीदी तो सचमुच मोटा हो गया अब बताओ दीदी, साहब तुमको छोड़ा या नहीं?“

मालती का चेहरा पीला पड़ गया। पराठे का ग्रास जैसे गले में अटक गया था।

”इस्माइल, थोड़ा पानी मिलेगा?“ अंजू ने बात टालनी चाही।

”एक बात बता अंजू, मुझे इस रूप में देख क्या आशीष मुझसे नफरत करेंगे? जानती है उस समय तुझसे भी एक-आध किलो कम वजन रहा होगा मेरा।“ मालती जी जैसे कहीं खो गई।

”छिः मालती दी, आप भी किन ख्यालों में खो गई हैं। प्यार क्या सिर्फ़ शरीर से होता है? प्यार तो आत्माओं का मिलन होता है, वर्ना क्या कोई बिना किसी बात या कारण के सगाई तोड़ सकता है?“

”किसकी बात कर रही है, अंजू? किसने सगाई तोड़ दी है?“

”किसी ने नहीं, मैंने तो एक उदाहरण-भर दिया था ,मालती दी। अब अगर आपकी भूख नहीं रही तो चलते हैं।“

”नहीं-नहीं……… तूने तो आधा पराठा भी नहीं खाया, ये अचार चखा तूने?“

नारियल के पेड़ के नीचे पड़ी केन की कुर्सियों पर बैठी अंजू और मालती जी अपने-अपने ख्यालों में खो गई थीं। सागर-तट पर तैनात सुरक्षा गार्ड, सागर स्नान का मजा ले रहे पर्यटकों को, सीटियाँ बजा सतर्क कर रहे थें जिधर सागर का जल बढ़ रहा था, वहाँ से हटने के लिए सीटियों के साथ-साथ हाथ से भी संकेत कर निर्देश दे रहे थे।

”पहले तो ये गार्ड यहाँ ड्यूटी नहीं देते थे, इस्माइल?“

इस्माइल के हाथ से पाइन ऐपल जूस लेती मालती दी ने पूछा।

”दो बरस पहले एक ट्रेजेडी हो गया था, तभी से ये गार्ड लोग इधर ड्यूटी करता है, दीदी साहेब।“

”कैसी ट्रेजेडी, इस्माइल?“

”वो सामने रॉक देखता है न, दीदी? याद है वहाँ बैठ आशीष साहब ने एक पेटिंग खींचा था……….“

”हाँ इस्माइल, सब याद है……. तब ये पहाड़ी पानी में इतनी डूबी नहीं थी…… पूरे चार दिन आशीष ने वहाँ बिताए थे।“

”दो बरस पहले दिल्ली से एक साहब शादी बनाकर आया था। अपनी वाइफ़ को उस रॉक पर खडे़ होने को बोल, वह फोटो खींच रहा था तभी एक जोर का वेव आया और उसकी वाइफ़ को बहा ले गया…..। बेचारा पानी के साथ उसकी फोटो लेना माँगता था-पानी उसकी वाइफ़ को ही ले गया।“

”ओह माई गॉड, फिर क्या हुआ? उसे बचाया जा सका या नहीं, इस्माइल?“ अंजू डर गई।

”बचाने को उस टाइम कोई नहीं था, फिशरमैन तो मार्निग में इधर रहता है, शाम को वहाँ कौन था? वह साहब चिल्लाता रहा। डेड बॉडी भी नहीं मिला उसका। बस तब से ये सिक्यूरिटी गार्ड की ड्यूटी लगती है और उस रॉक पर जाना एकदम मना है।“

”आज न जाने क्या सुनना पड़े। चल अंजू ,गेस्ट-हाउस ही चलते हैं।“

उदास मन अंजू और मालती जी गेस्ट हाउस चली गई थीं।
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Re: वह साँवली लड़की

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चार

दूसरे दिन आयोजकों की और से त्रिवेन्द्रम की प्रमुख फ़ैक्टरीज दिखाने का कार्यक्रम बनाया गया था। किन्हीं मिस्टर खन्ना की ओर से डेलीगेट्स के लंच के लिए त्रिवेन्द्रम के नामी होटल में बुकिंग कराई गई थी। मालती सिन्हा प्रसन्न थीं।

”इस बार की कॉन्फ्रेंस सचमुच एन्ज्वॉय की है, पहले तो बस हाल में बैठ, बोरिंग लेक्चर ही सुनने पड़ते थे। मैं तो कहूँगी हर साल कॉन्फ्रेंस यहीं ऑरगेनाइज की जाए।“
”पर मैं तो इसका पक्का विरोध ही करूँगी, बेचारे सिन्हा साहब घर में अकेले रहें और आप यहाँ एन्ज्वॉय करें, मुझे मंजूर नहीं।“

”वाह, यह भली कही, दीदी मैं हूँ और हमदर्दी सिन्हा साहब से। अरे, उन्हें अपनी बेटी इतनी प्यारी है कि उसके रहते उन्हें अकेलेपन का एहसास भी नहीं होता।“

”कितनी बड़ी बिटिया है, दीदी? उसकी जरा भी चिन्ता नहीं है?“

”शुरू से ही वह अपने पापा और दादी की दुलारी है। इस मामले में मैं लक्की रही, वर्ना कई कामकाजी स्त्रियों को बच्चों के कारण जॉब छोड़ना पड़ जाता है।“

”आपसे उसका लगाव कम है, इससे दुख नहीं होता, दीदी?“

”सच कहूँ अंजू, कभी जी चाहता है उसे अपने से लिपटा, अपने को भूल जाऊं, पर ऐसा हो नहीं पाता……….।“

”न जाने क्यों वह मुझे आशीष की याद दिलाती है। उसी की तरह मीनू को भी पेंटिंग का शौक है। आँखों में वैसे ही सपने…… न जाने क्या सिमिलैरिटी है कि उसके पास जो, मैं खो जाती हूं……..।“

”ऐसी बेकार की बातें सोचनी भी नहीं चाहिए, दीदी, जो तुम्हारे अस्तित्व को नकार कर चला गया, उसके प्रति मोह रखना क्या ठीक है?“

”तू क्या अपने मोह-पाश को तोड़ सकी है, अंजू? यह बात इतनी आसान होती तो क्यों मृग-तृष्णा के पीछे कोई भागता?“

”जिस दिन किसी और का वरण कर लूँगी-मोह-पाश को तार-तार कर दूँगी।“ दृढ़ता से अपनी बात कह अंजू ने होंठ भींच लिए थे।

”यह बात तो बाद में पूछूंगी……। शायद तू ऐसा कर सके, अंजू। मैं भी कोशिश तो करती हूँ, पर अनजाने ही आशीष याद आने लग जाते हैं।“

”जो चीज नहीं मिल पातीं उसके प्रति आकर्षण ज्यादा ही होता है, भले ही प्राप्य वस्तु उससे हजार गुना ज्यादा अच्छी हो।“

”तू कितनी समझदार है, अंजू? तू जिसकी जीवन-साथी बनेगी वह बहुत भाग्यवान होगा।“

”सिन्हा साहब भी कम भाग्यवान नहीं हैं, जिन्हें हमारी मालती दी मिली हैं।“

”कल मेरा प्रेजेण्टेशन है, अभी से नर्वस हूँ, और तू मेरे गुण गाए जा रही है।“

”अरे आप बेकार डर रही हैं, देखिएगा आपका प्रेजेण्टेशन ए वन होगा।“

”कल डर इसलिए और लग रहा है क्योंकि कल सुजय स्पेशलिस्ट है। तू नहीं जानती वह कितना बड़ा विद्धान है। कहीं कुछ पूछ बैठा और जवाब न दे पाई तो?“

”आप भी मालती दी, कमाल करती हैं, जवाब क्यों नहीं दे पाएँगी। अपने को अंडर-एस्टीमेट करना तो कोई आपसे सीखे।”

”मैडम, कार वेट कर रही है। लंच के लिए सागर होटल चलना है।“ एक वालंटियर ने आकर नम्रता से उनकी बातों में बाधा डाली।

होटल सागर की भव्य इमारत आकाश छूती लग रही थी। राजसी सोफा-सेट, कार्पेट, शैंडेलियर सभी कुछ भव्य था। पीछे लगे शीशे के पार फ़ाउंटेन चल रहा था। फ़ाउंटेन के नीचे तरह-तरह के पेड़-पौधे अद्भुत दृश्य उपस्थित कर रहे थे। शीतल पेय सर्व किया जा चुका था, पुरूष-वर्ग ठंडी बीयर के ग्लासों के साथ बातों में व्यस्त थे।

मालती सिन्हा, अंजू, नम्रता नागपाल, दीपा गांगुली, अर्चना सब एक जगह सिमट आई थीं।

”आज हमारे लंच का होस्ट कौन है ,मालती दी? इस तरह के प्रोग्राम से सेशन्स का बोरडम दूर हो जाता है न।” नम्रता चहकी।

”पता नहीं आज का होस्ट कौन है, पर उसके लिए ज्यादा उत्सुकता ठीक नहीं, मेरिड है वह ,नम्रता।“

”छिः मिसेज सिन्हा आप तो मजाक की हद कर देती हैं, क्या मैं यहाँ मैच खोजने आई हूँ?“

सब हॅंस पड़े। तभी दीपा गांगुली ने इशारा किया- ”वो देखो, लगता है आज के होस्ट आ गए।“

पीछे मुड़कर देखती अंजू के चेहरे का रंग बदल गया। कीमती सूट में विनीत का व्यक्तित्व और निखर आया था। उसके साथ चल रही युवती क्या विनीत की पत्नी हो सकती थी? इतना गहरा रंग, उस पर मेकअप की पर्ते उसके चहरे को अजीब बना रही थीं। कीमती साड़ी और जेवर भी उसके शरीर पर जैसे अपनी आभा खो बैठे थे।

”हाय राम, प्रिन्स चार्मिग के साथ नज़र का टीका होना क्या ज़रूरी है?“ नम्रता मुस्करा पड़ी।

आयोजक ने आगे बढ़ विनीत का स्वागत किया। सबसे परिचय प्राप्त करते विनीत के चेहरे पर मंद मुस्कान तैर रही थी। उसकी पत्नी को आयोजक दल का एक व्यक्ति महिलाओं की ओर ले आया था।

”मैडम खन्ना …….. हमारी आज की मेजबान हैं। ये हैं मालती सिन्हा…… नम्रता नागपाल…….“

सबके अभिवादन ग्रहण करती मिसेज खन्ना पास पड़े सोफे पर बैठ गई। दूसरी ओर से चलकर विनीत महिलाओं के सामने आ खड़ा हुआ। हाथ में पकड़ा ग्लास कहीं रखने जाने के बहाने, अंजू पीठ फेर आगे चल दी। दिल जोरों से धड़क रहा था। अपनी ओर से काफ़ी देर लगा, वापिस आती अंजू को आयोजक ने घेर लिया।

”वाह मिस मेहरोत्रा, आप तो छूट ही गई। सर, ये हैं मिस अंजलि मेहरोत्रा, परसों इनका प्रेजेण्टेशन था, बहुत बढ़िया रहा। अंजलि जी, आज के हमारे होस्ट मिस्टर विनीत खन्ना…………।“

”हलो अंजू, कब पहुँची? मुझे इन्फ़ार्म कर देतीं, कहाँ ठहरी हो?“

उत्तर में अंजू का मौन बहुत जोरों से गूँज उठा था।

”वाह ! सर आपको जानते हैं, हमें पता ही नहीं था …….. लीजिए आप लोग बातें करें, मैं अभी आया।“

आयोजक के हटने के साथ ही अंजू भी विनीत को अकेला खड़ा छोड़ मालती जी की ओर बढ़ गई।
”मालती दी, मैं वापिस होटल जाना चाहती हूँ……।“

”क्या बात है अंजू, तेरा चेहरा इतना उड़ा हुआ क्यों है? चल मैं भी चलती हूँ।“

”न ……. न……….. आप यहीं रहें, किसी से कुछ कहने की जरूरत नहीं है, नीचे टैक्सी लेकर चली जाऊंगी। प्लीज डोंट मेक अ फ़स आफ इट।“

मालती सिन्हा को और कुछ कहने का मौका दिए बिना, अंजू तेजी से रिसेप्शन की ओर चल दी थी।

”कैन आई गिव यू अ लिफ्ट?“ सुजय शायद अंजू के साथ ही बाहर आ गया था।

”नो, थैंक्स…….।“

”लेकिन मैं तो आपके लिए ही लंच छोड़ आया हूँ।“

”किसने कहा था, आप लंच न लें, प्लीज गो एंड हैव योर लंच एंड थैंक्स फ़ॉर दी सेक्रीफ़ाइस…….।“

”जब तक मेरे सवाल का जवाब नहीं मिलेगा मैं आपको छोड़ने वाला नहीं ,मिस मेहरोत्रा।“

”मुझे आपके किसी सवाल का जवाब नहीं देना है। प्लीज लीव मी अलोन।“ अंजू के तेजी से बढ़ते कदमों के साथ सुजय भी रिसेप्शन से बाहर आ गया था। द्वार पर खड़े संतरी ने शालीनता से द्वार खोल, कार का नम्बर पुकारा।

”टैक्सी प्लीज……।“ अंजू ने संतरी से कहा।

”नहीं, आप मेरे साथ चल रही हैं।“ अंजू के अनुरोध पर दृढ़ता से अपनी बात कहते सुजय ने संजरी को टैक्सी न बुलाने का इशारा कर दिया था।

पल-भर में सुजय की कार होटल-पोर्टिको में आ खड़ी हुई। तत्परता से उतरे वर्दीधारी चालक ने सुजय के लिए कार का पिछला दरवाजा खोला।

”आइए…….।“ सुजय ने अंजू को निमंत्रण दिया।

”नो थैंक्स………।“

”डू यू वांट टू क्रिएट ए सीन, मिस? चलिए देर हो रही है। वैसे मिस्टर खन्ना का लंच लेना है तो आराम से रूक सकती हैं।“

रूकती-रूकती अंजू न जाने क्या सोच कार में बैठ गई थी।

”परिवेश ………..।“

स्वामी का आदेश पाते ही चालक ने कार की गति बढ़ा दी।
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Re: वह साँवली लड़की

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”आई वांट टु गो टु माई होटेल ओनली………।“

”डोंट वरी, यू विल रीच देयर, बट फ़ॉर दि टाइम बींग कुड यू कीप क्वाइट प्लीज?“

खिसियाई अंजू कार-मिरर के बाहर ताकती रह गई थी। एयर कंडीशण्ड कार में बंद शीशे को खोलने की मूर्खता कर, चालक की दृष्टि में उपहास-पात्री ही बनना था। उस ठंडे वातावरण में भी अंजू का पारा ऊपर ही चढ़ता जा रहा था।

भारतीय कलाकृतियों से अलंकृत ‘परिवेश’ सचमुच दक्षिण भारत का सात्त्विक परिवेश प्रस्तुत कर रहा था। बड़े-बड़े तैल चित्र, केन का फर्नीचर, चटाइयों से सज्जित दीवारें, लैम्पों से निकलती हल्की रोशनी के साथ विशुद्ध भारतीय वाद्यों की धुन पर अंजू मुग्ध हो उठी ।

‘परिवेश’ का सभी स्टाफ सुजय को पहचानता था। एकान्त केबिन में सुजय अंजू के ठीक सामने बैठा था। कुछ ही देर में वेटर दो थम्स- अप रख गया।

” ऑर्डर सर?“

”अपना स्पेशल लंच लाइए।“

”ओ के “, विनीत भाव से सिर झुका वेटर चला गया था।

”आपने मिस्टर खन्ना को क्यों नहीं पहचाना, मिस मेहरोत्रा?“

”इट्स नन ऑफ योर बिजनेस ,सर।“ अंजू के शब्दों में व्यंग्य घुल आया था।

”इट्स वेरी मच माई बिजनेस, जानते-बूझते किसी अपने को न पहचानना कितना तकलीफदेह हो सकता है, पता है आपको?“ सुजय के उस स्वर पर अंजू चौंक गई।

”अगर कहूँ मैंने इसे भोगा है तो?“

”इमपॉसिबिल ……एक बार उस तकलीफ़ को भोग, दुबारा उसे कोई दोहरा ही नहीं सकता……।“

”मैं किसी विनीत खन्ना को नहीं जानती…………..।“

”यह झूठ है….. विनीत खन्ना आपके बहुत क्लोज था।“

”प्लीज मिस्टर कुमार, अपनी निजी जिन्दगी में इंटरफ़ियर करने की मैंने आपको इजाज़त नहीं दी है।“

”आप नहीं जानतीं आपके सिर्फ न पहचानने से उसकी पूरी जिन्दगी बदल सकती है।“
“जो स्वयं पूरा बदल गया,उसकी ज़िंदगी मे अब बदलने को रह ही क्या गया है?

”हो सकता है इसमें गलती आपकी हो वर्ना……….।“

”निश्चय ही पुरूष हैं आप, उसी का तो पक्ष लेंगे।“ अंजू जैसे उदास हो गई थी।

”आई एम सॉरी, आपकी फीलिंग्स हर्ट करने का मेरा कोई इरादा नहीं था, पर आज विनीत खन्ना के आपकी ओर बढ़ते कदम, आपने जैसे रोक दिए………. उसने मुझे कोई पुरानी बात याद दिला दी थी।“

”मैं कभी एक विनीत मेहता को जानती थी, विनीत मेहता विनीत खन्ना कैसे बन सकता है, पर शायद गलत कह रही हूँ, मैंने विनीत मेहता को ही कब जाना था?“ अंजू जैसे अपने-आप से बातें कर रही थी।

लंच सजाकर वेटर चला गया था। निःशब्द सुजय डोंगे उठाकर अंजू को थमाता गया। बिना प्रतिवाद किए अंजू स्वीकार करती गई, पर खाने के नाम पर जैसे दोनों ही की भूख खत्म हो चुकी थी।

”आपके घर में कौन-कौन हैं, मिस मेहरोत्रा?“

”माँ, भाई, भाभी……… पापा को जरूर होना था, पर वह दो वर्ष पूर्व हमें छोड़ गए ….. दो बड़ी बहिने हैं-अपने-अपने घरों में……।“

”फिर विवाह के विषय में नहीं सोचा ,अंजलि जी?“

”नहीं सोचूंगीं, ऐसा आपसे किसने कहा ,मिस्टर कुमार? एक बात जान सकती हूँ, मैंने आपको कौन-सी बात याद दिला दी थी?“ अंजू के उत्सुक नयन सुजय के मुख पर गड़ गए थे।

”जान जाएँगी….।“ संक्षिप्त उत्तर दे सुजय ने भोजन की थाली परे सरका दी ।

वेटर फिर हाजिर हुआ था।

”स्वीट डिश मैडम?“

”क्या लेंगी………..?“

”कुछ नहीं…….।“

”कडुवाहट भुला, हमें मिठास के साथ अलग होना चाहिए न?“ दो टूटी-फ्रूटी……..।“

”मुझे प्लेन स्ट्राबेरी चाहिए, टूटी-फ्रूटी नाम से न जाने क्यों लगता है, सब कुछ टूट गया है।“

अंजू की उस व्याख्या पर सुजय हॅंस पड़ा।

”कभी आप इतनी मैच्योर लगती हैं कि डर लगता है, कभी एकदम बच्ची बन जाती हैं।“

”बच्ची तो किसी तरह नहीं हूँ, पर कुछ शब्द मुझे अजीब-से अहसास कराते है, उनमे से यह एक है। आपके साथ कभी ऐसा नहीं हुआ?”-
“आपको देखकर ऐसा लगा जैसे बहुत पहले से जानता रहा हूं, जबकि सच यह है, हम पहले कभी नहीं मिले।“

”इसके बावजूद जब पहली बार आपके साथ लिफ्ट ली……….।“

”उस बात को जाने दीजिए। समझ लीजिए गलती हो गई। अब तो हम शत्रु नहीं हैं न?“

”इस जीवन में मेरा कोई शत्रु नहीं है, मिस्टर कुमार।“

”विनीत खन्ना भी नही?“

”आप बार-बार विनीत खन्ना का नाम क्यों ला रहे हैं? मैंने कहा न मैं किसी विनीत खन्ना को नहीं जानती, मेरा मूड खराब करके ही शायद आपको आनंद मिले तो लेते रहिए यह नाम……… ऐण्ड थैंक्स, फ़ॉर दि हास्पिटैलिटी।“

आधा खाया अइसक्रीम छोड़ अंजू उठ खड़ी हुई ।

”सॉरी…… न जाने क्यों मैं आपको हर्ट कर जाता हूँ।“ सुजय सोच में पड़ गया।

गोदावरी के पोर्टिको में कार रूकते ही अंजू तेजी से उतर, लिफ्ट की ओर बढ़ गई । पीछे आ रहे सुजय को उसके साथ पहुँचने के लिए काफ़ी तेज कदम बढ़ाने पड़े थे। फोर्थ फ्लोर पर लिफ्ट पहुँच गई । लिफ्ट से उतरते सुजय ने अंजू का हाथ हल्के से पकड़ कर कहा-
”अगर माफ़ कर सकें तो आभारी रहूँगा आपका दिल दुखाने की सोच भी नहीं सकता, शायद मैं गलत था।“

अपना हाथ छुड़ाती अंजू कुछ भी नहीं कह सकी। सुजय फिर रूका नहीं, वापिस मुड़, उतर गया।

कमरे में पहुंच, सीधे शॉवर के नीचे जा खडे़ होने की इच्छा हो आई । तौलिये से भीगे बाल पोंछती अंजू फिर विनीत में खो गई।
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अच्छा हुआ वह विनीत की पत्नी नहीं बनी। धन-सम्पत्ति के लिए जो अपना नाम भी बेच दे, वह क्या पुरूष कहलाने योग्य है? और उसकी वह पत्नी…… क्या उसे देखते विनीत ने अपनी आँखें बन्द कर ली थीं? और यह सुजय………लगता है कहीं कुछ है जो उसे मथता रहता है। शाहीन उसकी कितनी तारीफ़ करती है।

अचानक अंजू को शाहीन बेतरह याद आने लगी, वह होती तो उसका मन बदल जाता। अभी उसके आने में दो दिन बाकी थे। तभी फोन की घंटी जोरों से धनधना उठी।

”हलो ……हाँ, मैं अंजू बोल रही हूँ…. कौन पूनम भाभी… हाँ-हाँ, मैं बिल्कुल ठीक हूँ, खूब एन्ज्वॉय कर रही हूँ। कल ही लेटर डाला है। अम्मा से कहना परेशान न हों, बिल्कुल ठीक हूँ……।“

”नहीं ….. मेरी किसी से मुलाकात नहीं हुई अच्छा भाभी, कोई डोर-बेल बजा रहा हैं, फिर कॉल करूँगी…. हाँ-हाँ, पूरे हाल लिखे हैं…….ओ के बाय…….।“

रिसीवर क्रेडल पर रख, अंजू ने दरवाजे की लैब खोली थी। सामने खड़े विनीत को देख अंजू चैंक गई थी।

”मैं अन्दर आ सकता हूँ?“

”क्यों आना चाहते हैं?“

”माफी माँगने का अधिकार भी नहीं दोगी, अंजू?“

”आई एम अंजलि मेहरोत्रा………।“

”इतनी कठोर न बनो, अंजू।“

विनीत जैसे गिड़गिड़ा उठा।

”मिस्टर खन्ना, अगर आपको कुछ कहना है तो आइए। विजिटर्स-रूम में चलते हैं।“

”नहीं अंजू, वहाँ जाने की जरूरत नहीं, मैंने जो गलती की उस अपराध का दंड भोग रहा हूँ। मेरी पत्नी मुझे हमेशा हीनता का बोध कराती रहती है। मेरा सब कुछ उसके कारण है, जैसे मैं निरा अकर्मण्य व्यक्ति हूँ। क्या यह दंड मेरे लिए काफी नहीं, अंजू?“

”मिस्टर खन्ना, आपकी व्यक्तिगत जिन्दगी में मेरी जरा सी भी रूचि नहीं है। अच्छा हो आप ये बातें अपने किसी हमदर्द से करें।“

”तुम ठीक कह रही हो अंजू, मैं इसी योग्य हूँ। काश, मैंने तुम्हारे साथ अपना जीवन बाँधा होता!

”मिस्टर खन्ना, आप मेरे लिए एक अपरिचित व्यक्ति हैं, आपके साथ बॅंधने का सवाल ही नहीं उठता। हाँ, अगर कभी आपको ऑफिस अकाउंट की ऑडिट-चेकिंग की जरूरत हो तो मेरे रेट्स पता कर लीजिएगा।“

”तुम, मुझे अपने विनीत को नहीं जानतीं, अंजू?“

”किस विनीत की बात कर रहे हैं, विनीत मेहता या विनीत खन्ना?“ न चाहते भी अंजू के स्वर में व्यंग्य घुल आया।

”फादर-इन-ला का बिजनेस उन्हीं के नाम से चलता है, इसीलिए लोग मुझे भी खन्ना कहने लगे हैं। पापा का कहना हैं मैं उनके बेटे जैसा ही तो हूँ, पर मैं तो आज भी तुम्हारा विनीत मेहता हूँ, अंजू।“

”दिस इज़ लिमिट मिस्टर खन्ना, फ़ॉर हेवन्स सेक, आप वापिस चले जाएँ। मेरी जिन्दगी से विनीत मेहता का नाम कब का मिट चुका है- आपको अपना नया नाम-नया जीवन मुबारक हो मिस्टर खन्ना।“

दरवाजे के बाहर खड़े विनीत के मुँह पर अपने कमरे का द्वार अंजू ने जोरों से बन्द कर दिया।

अंजू का पूरा शरीर थरथरा उठा था। दुस्साहस की भी कोई सीमा होती है। पत्नी को वहाँ छोड़, मेरे पास भागा आया है। आँखें आक्रोश से जल उठीं , अपमान के आँसू छलछला आए। अंजू को ठंडे पानी से आँखें धोने की जरूरत पड़ गई।

एक साँस मे पानी का ग्लास गले से नीचे उतार कर भी जैसे अन्तर में आग लग रही थी। कहाँ जाए अंजू, यहाँ कोई तो अपना नहीं… वक्त का अंदाज किए बिना थोड़ी देर में अंजू रिसेप्शन पर आई थी।

”अगर मुझसे कोई मिलने आए तो पहले मुझसे पूछ लीजिए, बिना मेरी परमीशन किसी को रूम में न भेजें।“

”आई एम सॉरी मैम…. एनी प्रोब्लेम? इन फ़ैक्ट, मैं आपको इन्फ़ॉर्म कर ही रहा था, पर मिस्टर खन्ना को टोकना कठिन है…… यू नो ही इज ए बिग शॉट।“

”आई अंडरस्टैंड, एनी हाओ, फ्यूचर के लिए प्लीज, याद रखें।“

”श्योर मैम।“

”यहाँ से सी-बीच के लिए कैसे जाना होगा?“

”होटल गेट से राइट टर्न ले लें, हार्डली टेन मिनट्स वाक पर सी-बीच है,पर अभी इस टाइम उधर बहुत हॉट होगा। ईवनिंग में……………।“

”थैंक्स ।“

अंजू बाहर आ गई। उसके मन के कोलाहल को सागर ही समझ सकता था।
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Re: वह साँवली लड़की

Post by Jemsbond »

पाँच

अजीब मनोदशा में अंजू होटल से निकल पड़ी थी। सिर पर चमक रहे सूरज का ताप जैसे उसे छू भी न गया था। दस की जगह पन्द्रह मिनट पैदल चलने के बाद अंजू को दूर लहराता सागर नजर आया। किनारे नारियल के हरे-हरे पेड़ आकर्षक दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे, पर उस समय कुछ सोचने-समझने की जैसे शक्ति ही शेष नहीं रह गई थी।

थके कदमों से चलती अंजू ने समुद्र के खारे पानी में पाँव डाल दिए। स्कूल में जिस दिन दौड़ हुआ करती, अंजू घर आकर निढाल पड़ जाया करती।

‘अम्मा पाँव में बहुत दर्द हो रहा है।’

‘किसने कहा था तुझसे दौड़ लगाने को? डेढ़ हड्डी का शरीर भला एक मील दौड़ने लायक है? अब जैसा किया है वैसा भुगत।’ अम्मा झुंझला उठतीं। घर के काम भी तो ढेरों हुआ करते थे। नौकर या दाई रखने के लिए अतिरिक्त पैसों की जरूरत होती है, यह बात अंजू काफ़ी देर में समझ पाई थी।

‘उस पर बेकार नाराज क्यों हो रही हो? माला बेटी, थोड़ा नमक डालकर पानी गर्म कर दे, अंजू के पाँवों में दर्द है।’ पापा ने अंजू को हमेशा बेहद दुलार दिया था।

‘पापा तो अंजू को एकदम बिगाड़ कर रख देंगे। अब अम्मा के काम निबटाएँ या इसके लिए पानी गर्म करें।’ माला दीदी भुनभुनाती भगौने में गर्म पानी ला, पटक देती थीं-‘
“ये लो रानी साहिबा, गर्म पानी तैयार है।’

सच, पापा का बताया नुस्खा अक्सीर का काम करता था। दूसरे दिन सोकर उठती अंजू एकदम नॉर्मल होती थीं। खल-कूद में अंजू भले ही आगे न रही हो, पर पढ़ाई में उस-सा घर में कोई नहीं था।

तीन बहिनों में सबसे छोटी अंजू को अम्मा का आक्रोश और पापा का अतिशय दुलार मिला था। एक तो तीसरी बेटी उस पर साँवला रंग, अम्मा हर समय भुनभुनाती ही रहती थीं। दूसरे नम्बर पर जन्मे अतुल भइया अम्माँ और दादी के लाड़ले, आँखों के तारे थे, पर उनकी सामान्य बुद्धि उनके प्रति पापा की उदासीनता का कारण बनी थी। समझदार होने पर अंजू को अतुल भइया के प्रति बहुत सहानुभूति हो आई थी। पापा का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तिरस्कार भइया को मौन और अन्तर्मुखी बना गया था। अंजू को उनका तिरस्कार कभी-कभी बहुत चुभता था। भइया के तिरस्कार पर वह पापा से नाराज हो उठती थी। हर बार भइया का रिजल्ट, उनके अपमान का कारण बन जाता था।
‘पापा, आप तो भइया के पीछे ही पड़े रहते हैं, जरूरी तो नहीं जो फ़र्स्ट आए बस, वही बुद्धिमान है?’

‘तू नहीं समझेगी अंजू, यह तो कूढ़ मगज है, दिमाग में कुछ घुसता ही नहीं। क्या-क्या सपने देखे थे, पर इससे कुछ उम्मीद रखना ही बेकार है।’

अपनी बुद्धिहीनता की बात सुनते भइया बड़े जरूर हो गए, पर मन से पापा को उन्होंने शायद कभी क्षमा नहीं किया था।

‘एक बात बता अंजू, अगर उन्नति के लिए सिर्फ तेज दिमाग ही जरूरी है तो पापा क्यों अकाउण्टैट ही बन पाए?’

सचमुच अपनी तीक्ष्ण बुद्धि के बावजूद पापा को उनका प्राप्य नहीं मिल सका था। ऑफिस में उन्नति के मानदंड कुछ और हुआ करते हैं, वर्ना अति सामान्य बुद्धि वाले नागर अंकल क्या पापा को सुपरसीड कर सकते थे? उस घटना के बाद से ही पापा मानो टूट गए थे। पहला हार्ट-अटैक भी उन्हें तभी पड़ा था। हमेशा अपनी बुद्धि का गुणगान करने वाले पापा अचानक चुप पड़ गए थे। भइया तब तक एम0एस-सी0 कर चुके थे। पापा ने उनकी सर्विस के लिए सहायता की पेशकश की थी, पर भइया की ओर से उत्साह न था। पापा झुंझला उठे थे-‘बिना सिफारिश मामूली सेकेंड क्लास को अच्छी नौकरी तो मिलने से रही। क्लर्की के लिए भी सोर्स चाहिए।”

भइया ने स्थानीय कॉलेज में लेक्चररशिप के लिए आवेदन दिया था। प्रिन्सिपल नगेन्द्र नाथ को उनमें न जाने क्या दिखा कि फ़र्स्ट क्लास उम्मीदवार की जगह भइया को नौकरी मिल गई थी। कुछ ही दिनों में भइया की मेहनत रंग लाई। आत्मविश्वास से उनका चेहरा चमकने लगा। प्राचार्य उनकी सिंसियरिटी से बेहद प्रसन्न थे। प्राचार्य के प्रिय पात्रों में भइया भी एक थे। पापा फिर भी संतुष्ट नहीं थे-
‘मास्टरी करने के लिए एम0एस-सी0 करने की जरूरत थी? सोचा था, एक लड़का है ढंग से लग जाए तो घर बन जाएगा।’

‘पापा, भइया कॉलेज में प्रोफेसर हैं, मास्टर नहीं है। अपने बल पर काँलेज में कितने लोग जॉब ले पाते हैं, कभी सोचा है आपने?’

बारहवीं में पढ़ रही अंजू तब तक भइया का दुख समझने लगी थी। अंजू के परीक्षा-परिणाम सदैव पापा को उत्साहित कर जाते।
‘इस लड़की ने मेरा दिमाग पाया है। देख अंजू, मैं तो घर-गृहस्थी के पचड़ों में कुछ नहीं कर पाया, पर तुझे खूब पढ़-लिखकर बड़ा ऑफीसर बनना है। मैं तो चाहता हूं मेरे ही डिपार्टमेंट में तू बड़ी अधिकारी बनकर आए ताकि सबके सामने सीना तान कर सकूं-देखो यह है मेरी बेटी……….’

पापा की उन बातों से अंजू का उत्साह बढ़ता ही जाता था। कुशाग्र बुद्धि अंजू का प्रिय विषय गणित ही था। जिस दिन उसने चार्टर्ड अकाउंटैंसी में एडमीशन का फ़ार्म भरा उस दिन से पापा अंजू का विशेष ध्यान रखने लगे थे।

‘देखो कमला, अंजू को दूध जरूर मिलना चाहिए। मेरी जगह अंजू को दूध दिया करो।’

‘वाह, भली कही, बेटी के प्यार में ऐसा दीवाना होते किसी को नहीं देखा। बेचारे अतुल पर इतना लाड़ उड़ेला होता तो कुछ फायदा भी था।’ अम्मा भुनभुनातीं।

‘क्या खाक फायदा होता? मैं तो कहता हूँ तुम्हारे ही लाड़ ने उसे निकम्मा बना दिया है।’ पापा झुंझला उठते।

‘अरे वंश तो उसी से चलना है, लाख लड़की पर प्राण न्योछावर करो, आखिर तो पराई ही कहलाएगी।’ तुलसी की माला हाथ में लिए दादी की कड़ी दृष्टि अंजू पर पड़ती।

रात में अम्मा एक कप दूध भइया को दिया करती थीं, बहुत बाद में पता लगा था, अम्मा को अपनी कसम दे, भइया ने अपने हिस्से का दूध, अंजू के नाम कर दिया था।

चार्टर्ड अकाउंटैंसी एडमीशन के सफल प्रत्याशियों में अंजू का नाम देख पापा ने पूरे ऑफिस को मिठाई खिलाई थी। उस दिन पापा का गर्वित चेहरा अंजू का श्रम सार्थक कर गया था।

शाम को एकान्त में भइया ने एक पैकेट थमाते कहा था-
‘तेरी इस सफलता के लिए तो बहुत बड़ा इनाम देना चाहिए था, पर तू तो मेरी औकात जानती ही है, पापा के सपने तू सच कर, यही मेरा आशीर्वाद है।’

‘भइया’ कहती अंजू अतुल के सीने पर सिर रखकर रो पड़ी थी।

”वाह ! क्या यहाँ खड़े-खड़े कोई खास साधना की जा रही है?“

अचानक पीछे से आई आवाज पर अंजू चैंक उठी। सुजय न जाने कहाँ से उसके पीछे आ खड़ा हुआ था।

”ओह……नहीं……बस, यूँ ही पाँव सेंक रही थी।“

”सचमुच तपते सूरज का छत्र लगाए, गर्म पानी में भी कोई यूँ आराम से खड़ा रह सकता है, देखा न होता तो विश्वास कर पाना कठिन था।“

”मेरी तो गर्म पानी में पाँव डाल, घंटों बैठने की आदत है, मिस्टर कुमार, पर आप इस समय यहाँ?“

”क्यों, सागर-तट पर आने के लिए कोई खास समय हुआ करता है? चारों ओर नजर दौड़ाइए, नारियल के पेड़ो के नीचे से लेकर चारों ओर बिखरे लोगों को गिनिए, तो गिन नहीं पाएँगी। समझ लीजिए उन्हीं कुछ लोगों में से मैं और आप भी हैं। काफ़ी है न, ये एक्सप्लेनेशन?“ स्वर में शरारत स्पष्ट थी।

”आपके एक्सप्लेनेशन से मुझे कुछ लेना-देना नहीं है, अपनी स्वतंत्रता में किसी की दखलअंदाजी मुझे पसंद नहीं, बस।“
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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