देवयानी

Jemsbond
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Re: देवयानी

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देवयानी विस्मय से सुष्मिता के दृढ़ चेहरे को देखती रह गई। खाने का स्वाद ही जैसे बिगड़ गया। घर लौटकर देवयानी सोचती रह गई, कहाँ होगी, महुआ की बेटी। न जाने किसके हाथ वो नन्हीं बच्ची पड़ी होगी। अपने पिता पर देवयानी को गर्व हो आया, परिवार से निष्कासन सहकर भी उन्होंने माँ को अपनाया। सुष्मिता के प्रति उसके मन में अभिमान था, पिता की भूल का प्रायश्चित कर वह पुत्र का कर्तव्य निभा रही थी। अचानक एक दिन कल्याणी के साथ रोहित गाँव आ पहुँचा। कल्याणी से लिपट देवयानी रो पड़ी।

‘‘हे, ब्रेव गर्ल। ये आँसू कैसे ? माँ आई है’’ तो खुशी मनाओं।’’ रोहित ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा तो देवयानी हँस पड़ी।

‘‘थैंक्स, रोहित। माँ को लाकर तुमने बहुत अच्छा काम किया हैं’’

‘‘तो मेरा इनाम मिलेगा?’’

‘‘क्या इनाम चाहिए?’’

‘‘पहले वादा करों, जो माँगू दोगी।’’

चलो, वादा किया, पर ऐसी चीज़ मत माँग बैठना जो दे न सकूं, ये गाँव हैख, समझे।’’

‘‘मंजूर। वही माँगूगा, जो तुम-सिर्फ तुम दे सकती हो।’’

‘‘ठीक है, माँगकर देखों, जरूरत मिलेगा।’’

‘‘मुढे स्वीकार कर लो, देवयानी। मै तुम्हारे बिना अधूरा हूं। तुम इस गाँव को अपनी कर्म-भूमि बनाए रखों, मुझे कोई ऐतराज नहीं है। जब समय मिलेगा, हम मिलते रहेंगे।’’

‘‘ये तो तुमने ऐसी चीज़ माँग ली, जिसे मै पहले ही अस्वीकार कर चुकी हूं।’’

‘‘अभी तुमने वादा किया है, जो चाहूंगा, मिलेगा। माँ साक्षी हैं, अब तुम वादा नहीं तोड़ सकतीं।’’

‘‘रोहित ठीक कह रहा है, देवयानी। मुझे खुशी है, तूने अपनी सेवा से गाँव वालों का दिल जीत लिया है। जिंदगी में और भी दायित्व पूरे करना तेरा फ़र्ज है। रोहित से अच्छा पति नहीं मिल सकेगा।’’

‘‘अच्छा ये तुम दोनों की मिली भगत है, इसीलिए रोहित तुम्हें यहां लाया है।’’

‘‘जी हां। एक बिगड़ी हुई लड़की को उसकी माँ ही सम्हाल सकती है। ठीक कहा न, माँ?‘‘

कल्याणी की मुस्कान पर देवयानी चिढ़ गई –

‘‘वाह, माँ। कुछ ही दिनों में बेटी को भुलाकर बेटे को अपना बना लिया।‘‘

‘‘अब ये तो बेटे के गुण पर निर्भर करता है। मै एक समझदार, सुलझा हुआ बेटा हूँ।‘‘

‘‘ठीक है, अपने मुंह मियां मिट्ठू। आत्मप्रशंसा से बड़ा दुर्गुण दूसरा नहीं, जानते हो, न?‘‘

‘‘चलो, तुम वादा तोड़कर तो हार ही गईं।‘‘

‘‘नहीं, रोहित। मेरी बेटी वादा कभी नहीं तोड़ सकती। ये गुण इसे अपने पिता से विरासत में मिला है। ठीक कहा न, देवयानी ?‘‘

‘‘माँ, तुम भी अब इमोशनली ब्लैकमेल कर रही हो। मुझे सोचने का वक्त चाहिए। हाँ, कल ज़िला-कलक्टर का गाँव का दौरा है, मुझे अपने स्वास्थ्य-केंद्र को ठीक करना है।‘‘

‘‘वाह ! इस काम में तो मैं भी तुम्हारी मदद कर सकता हूँ। चलें।‘‘

दूसरे दिन कलक्टर के रूप में जो युवक कार से उतरा, उसका चेहरा देवयानी को बहुत परिचित लगा। नाम सुनते ही देवयानी की स्मृति में गोपाल नाम का वह लड़का कौंध गया जिसकी पीठ पर बैठ, वह घंटों गाँव के चक्कर लगाती थी।

‘‘गोपाल भइया, आप गोपाल भइया हैं, न ? मेरी याद है, मैं देवयानी…… अमरकांत……जी की बेटी।‘‘

‘‘देवयानी……तू इतनी बड़ी हो गई। जब मुझे पता लगा गाँव में देवयानी नाम की डॉक्टर आई है, तब से मन में तुझसे मिलने की इच्छा थी।‘‘

‘‘पापा ठीक कहते थे, आखिर तुम कलक्टर बन ही गए।‘‘

‘‘ये सब उन्हीं का प्रताप है। बचपन से कुछ कर-गुज़रने की इच्छा उन्होंने ही पैदा की थी। माँ कैसी है, देवयानी ?‘‘

‘‘माँ अब एक शक्ति-संपन्न महिला बन गई हैं। आज वो यहाँ आई हुई हैं, मिलोगे ?‘‘

‘‘उनके चरण छुए बिना कैसे जा सकता हूँ। तुम्हारा स्वास्थ्य- केंद्र देखकर बहुत खुशी हुई। जो भी सामान चाहिए, मैं व्यवस्था करा दूँगा। तुम्हारी सहायता के लिए जल्दी ही दो नए डॉक्टर भी आने वाले हैं।‘‘

‘‘ये तो बड़ी अच्छी बात है। गाँव के स्कूल मे मेरी सहेली सुष्मिता टीचर है। उसकी भी मदद कर देना, भइया।‘‘

‘‘तुम सुष्मिता जी को जानती हो ? मै पहले से ही उनकी मदद करता आ रहा हूँ। तुमने देखा नहीं, स्कूल की इमारत और फ़र्नीचर कितना अच्छा है। जब तुम छोटी थीं तो टाट की दरी पर बच्चे बैठते थे।‘‘ गोपाल हँस पड़ा।

कल्याणी के पाँव छू गोपाल ने आशीर्वाद पा लिया। पुरानी यादों में काफ़ी रात हो गई। कल्याणी के अनुरोध पर गोपाल ने खाना भी खा लिया। रोहित का परिचय पाकर, गोपाल हल्के से मुस्करा दिया। देवयानी के कान में धीमे से कहा-

‘‘कांग्रेच्युलेशन्स। अच्छी पसंद है।‘‘ देवयानी फिर लाल पड़ गई।

कल्याणी और देवयानी से विदा लेते गोपाल ने कार स्कूल की ओर मोड़ दी। सुष्मिता उसे आया देख चौंक गई।

‘‘कहिए, स्कूल कैसा चल रहा है। सुना है शाम को खाली वक्त में आप औरतों को भी पढ़ाती हैं?‘‘ मुस्कराते गोपाल ने पूछा।

‘‘जी, वक्त तो काटना ही पड़ता है। अगर कुछ और सुविधाएँ मिल जातीं तो अच्छा होता।‘‘ कुछ संकोच से सुष्मिता ने कहा।

‘‘आप हुक्म कीजिए। सब कुछ आ जाएगा। आप जैसी टीचर का होना, गाँव वालों का सौभाग्य है।‘‘

‘‘शुक्रिया। यहाँ के लोगों से जो प्यार और अपनापन मिलता है, वो मेरी भी तो खुशकिस्मती है।‘‘

‘‘आप तो बहुत कुछ डिजर्व करती हैं, सुष्मिता जी। आज चलता हूँ, आता रहूँगा। यहाँ मेरी मुंहबोली बहिन देवयानी, आपकी सहेली है। आपका वक्त उसके साथ अच्छा बीतेगा। बॉय।‘‘

रोहित के साथ शहर लौटती कल्याणी ने देवयानी को अकेले में बहुत समझाया, अब वह सेटल हो चुकी है। स्वास्थ्य-केंद्र में भारी भीड़ के बीच भी देवयानी के चेहरे पर थकान का चिन्ह तक नहीं आता। अब उसे रोहित के प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार करना चहिए। रोहित को छोड़ना, सबसे बड़ी ग़लती होगी। कल्याणी की बातों में सच्चाई थी। अकेला जीवन काटने में उसके साथ उसकी बेटी देवयानी थी, पर देवयानी के सामने कौन है ?

माँ के चले जाने के बाद देवयानी सोच में पड़ गई। इतने दिनों में वह जान गई थी, रोहित ने उसके दिल पर अधिकार कर लिया था। वह मन ही मन उसे चाहने लगी थी। सुष्मिता के सामने जब उसने अपने मन की बात रखी तो उसने भी कल्याणी की ही बात का समर्थन किया। अगर रोहित को देवयानी के गाँव में रहने पर आपत्ति नहीं तो देवयानी के पास उसका प्रस्ताव ठुकराने का क्या कारण हो सकता है। बड़े संकोच से सुष्मिता ने बताया, गोपाल ने उसके सामने भी विवाह का प्रस्ताव रखा है। वह सुष्मिता से अक्सर मिलता रहा है। देवयानी खुशी से सुष्मिता से लिपट गई। अब वह उसे भाभी कहेगी।

सुष्मिता ने कल्याणी के पास देवयानी की रोहित के साथ विवाह की स्तीकृति भेज दी । ख़त पाते ही रोहित और कल्याणी आ पहुँचे। देवयानी ने गोपाल को भी फ़ोन करके बुला लिया। पूरी बात सुनते ही गोपाल ने एक शर्त रख दी-

‘‘अपनी बहिन की शादी के लिए मेरी एक शर्त है। देवयानी की बारात इसी गाँव में आएगी। ये गाँव देवयानी के पिता की कर्म-भूमि थी और अब देवयानी का भी कर्म-क्षेत्र है।‘‘

‘‘सौ बार मंजूर है, साले साहब। कहिए तो बारात चाँद तक ले जाऊँ।‘‘

‘‘एक शर्त मेरी भी है, गोपाल भइया को हमारी सुष्मिता से शादी करनी होगी।

ये शादी माँ के घर से होगी।‘‘ देवयानी ने मुस्कराते हुए गोपाल की मनचाही शर्त रख दी।
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Re: देवयानी

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‘‘शर्त मंज़ूर की जाती है, पर पहले शादी बहिन की होनी चाहिए वर्ना ननद भाभी में झगड़ा होगा। ननद के ससुराल जाने के के बाद कोई ख़तरा नहीं रह जाएगा।‘‘ गोपाल के परिहास पर सब हँस पड़े।

गोपाल के साथ पूरा गाँव देवयानी की शादी की तैयारियों में जुट गया। सात-आठ दिन पहले से रात-रात भर नाच-गाकर, औरतों ने गाँव को गुलज़ार कर दिया। कल्याणी के अनुरोध पर देवयानी के बाबा-दादी और शशिकांत भी विवाह में सम्मिलित होने आ गए। देवयानी का सम्मान देख, उनका हृदय गर्व से फूल उठा। अमर की लोग पूजा करते थे। सरस्वती के मन का मैल दूर हो गया, देवयानी को सीने से लगाकर, वह रो पड़ीं। ये वही लड़की थी, जिसे एक ग्लास दूध को उन्होंने तरसाया था। बाबा-दादी का प्यार पाकर देवयानी की आँखों से भी गंगा-जमना बह निकलीं।

नियत दिन धूम-धड़ाके के साथ रोहित की बारात आई। मेडिकल कॉलेज के बहुत से साथी बारात में भाँगड़ा करते नाच रहे थे। नीता भी शादी में शामिल होने आई थी। गाँव वालों के आतिथ्य ने बारातियों को गदगद कर दिया। देवयानी और रोहित परिणय-सूत्र में बँध गए।

गाँव की परंपरानुरूप उनकी मधु-यामिनी गाँव में ही संपन्न होनी थी। सुष्मिता ने बेले और रजनीगंधा की लड़ियों से कमरा सजाया। गोपाल ने धीमे से पूछा-

‘‘हमारी सुहाग-रात में हमारा कमरा कौन सजाएगा ? अपनी पसंद बता दो, पहले से ही तैयारी करा लूँगा।‘‘

‘‘धत्त्। हम बात नहीं करेंगे।‘‘सुष्मिता लजा गई।

‘‘ज़िंदगी भर साथ रहना है, क्या मौन-व्रत रखोगी।‘‘ गोपाल हँसता हुआ चला गया।

सूर्योदय की चिड़ियों की चहचहाहट ने देवयानी और रोहित को जल्दी जगा दिया। दूर कहीं कोयल बोल रही थी। आम्र-मंजरियों से सुवासित हवा उन दोनों को छू गई। आँखें खोल रोहित ने देवयानी को अपने वाहुपाश में जकड़ना चाहा, पर देवयानी छिटक गई-

‘‘तुमने कभी गाँव की भोर देखी है, रोहित। यहाँ का सवेरा कोयल में बोलता है, सुन रहे हो ?‘‘

‘‘मैं तो बस अपनी देवयानी को देख सुन रहा हूँ। इधर मेरे पास आओ।‘‘

‘‘प्लीज़ रोहित, थोड़ी देर को इस खिड़की के पास आ जाओ। तुमने ऐसा सूर्योदय कभी नहीं देखा होगां‘‘

जबरन रोहित को बिस्तर छोड़, उठना पड़ा। पूरब से चमकता लाल सूरज उभरता आ रहा था। गाँव जैसे लाल-सुनहरे रंग में रंग गया था।

‘‘जानते हो राहित, जब मैं छोटी थी, सूरज को मुट्ठी में पकड़ने की ज़िद करती थी, तब पापा कहते थे, अगर अपनी शक्ति और अपने पर विश्वास रखो तो सूरज ज़रूर मुट्ठी में आ जाएगा।‘‘

‘‘पापा की उस बात का मबलब समझती हो, देवयानी। सच, उनका कहना कितना सार्थक था।‘‘

‘‘क्या मतलब था, रोहित ?‘‘ भोलेपन से देवयानी ने पूछा।

‘‘उनके कहने का मतलब यही था, अपने विश्वास और मेहनत से अपने लक्ष्य पा लेने का अर्थ, सूरज को मुट्ठी में कैद कर लेना ही तो होता है। आज उनकी देवयानी ने सचमुच सूरज को अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया है।‘‘

‘‘तुम कितने अच्छे हो, रोहित। पापा की बात की व्याख्या कितनी अच्छी तरह की है। शायद मैं उनकी बेटी होकर भी उनकी बात नहीं समझ पाई।‘‘

‘‘अरे उनकी बेटी तो स्वयं चमकता सूरज है, जिसका उजाला दूर-दूर तक फैल रहा है।‘‘ प्यार से देवयानी की ठोढ़ी उठाकर रोहित ने कहा।

देवयानी ने शर्माकर रोहित के सीने में सिर छिपा लिया। उगते सूर्य की रश्मियाँ कमरे में अनुराग का रंग छिठका गईं।
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