देवयानी

Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: देवयानी

Post by Jemsbond »



‘‘अगर मैं ग़लत हूँ, तो इतना जान लो, इस कॉलेज में फ़ॉर्मेलिटी नहीं, अपनापन मिलेगा। तुम अपनी माँ को अगर ‘आप‘ कहकर संबोधित करती हो तो उनसे निकटता महसूस नहीं करतीं।‘‘ रोहित ने अपना फ़ैसला सुना दिया।

निरूत्तर देवयानी का हाथ पकड़ रोहित ने कहा-

‘‘तुम्हारी चुप्पी तुम्हारी स्वीकृति है। हमारी दोस्ती हमेशा बनी रहे। चलो, अब प्रोग्राम शुरू होने जा रहा है।‘‘

लड़को ने लड़कियों को कुछ चिटें बाँटी। उन पर नम्बर लिखे थे। जिस नम्बर को पुकारा जाएगा, उस लड़की को स्टेज पर जाकर उससे जो फ़र्माइश की जाए, उसे पूरा करना होगा। देवयानी के हाथ में नं. 5 की चिट थी। अचानक नम्बर 5 की पुकार पर देवयानी को स्टेज पर जाना पड़ा। लड़कों ने आवाज़ लगाई-

‘‘एक प्यार से सराबोर ग़ज़ल गाइए, मोहतरमा‘‘ देवयानी की हिचक पर रोहित आगे बढ़ आया-

‘‘दोस्ती के नाम पर एक ग़ज़ल सुना दो, देवयानी।‘‘

देवयानी ने जैसे ही माइक थामा, हॉल तालियों से गूँज उठा। देवयानी ने अपनी फ़ेवरिट ग़ज़ल शुरू की –

‘‘दिल चीज़ क्या है, आप मेरी जान लीजिए, बस एक बार मेरा कहा, मान लीजिए…….‘‘ सुरीले गले से निकली ग़ज़ल में मानो उमराव जान साकार थी। ग़ज़ल समाप्त होने पर कुछ पलों के लिए आत्म- विस्मृत सन्नाटा छाया रहा। अचानक ज़ोरदार तालियों की गड़गड़ाहट ने जैसे सबकी तंद्रा भंग कर दी।

‘‘एक और, वन्स मोर‘‘ के शोर के बीच देवयानी मंच से नीचे उतर आई। सब देवयानी की ओर मुग्ध दृष्टि से ताक रहे थे। रोहित ने देवयानी को बधाई देते कहा-

‘‘तुम में और कितने गुण छिपे हैं, देवयानी ? जितना ही तुम्हें जान रहा हूँ, उतना ही विस्मित हो रहा हूँ।‘

उसी वक्त देवयानी को सर्वसम्मति से कालेज की ‘लंता मंगेशकर‘ का खि़ताब मिल गया।

कुछ ही देर में नृत्य के लिए संगीत शुरू हो गया। लड़कों ने लड़कियों को आमंत्रित कर डांस शुरू कर दिया। देवयानी हॉल के कोने में बैठी नृत्य करते जोड़ों को कौतुक से देख रही थी। एक-एक करके कई साथियों ने देवयानी को नृत्य के लिए आमंत्रित किया, पर देवयानी प्रस्ताव शालीनता से अस्वीकार करती गई-

‘‘क्षमा करें, मुझे नृत्य नहीं आता।‘‘

‘‘आइए न, हम सिखा देंगे, बशर्ते आप हमे संगीत सिखा दें।‘‘ मुस्कराते मोहनीश ने कहा।

‘‘अरे पाश्चात्य नृतय में होता ही क्या है, बस इधर-उधर पाँव रखते रहिए।‘‘ अनुराग ने समझाया।

‘‘मुझे दूसरों को नृत्य करते देखना अच्छा लगता है। प्लीज़ हमे एन्ज्वॉय करने दें।‘‘

‘‘ओ. के. ऐज़ यू विश।‘‘

अचानक पीछे से आए रोहित ने देवयानी को कंधे से पकड़ जबरन खड़ा कर लिया। रोहित के साथ करीब-करीब घिसटती-सी देवयानी डांस- फ़्लोर पर पहुँच गई।

‘‘हमे छोड़ दो, रोहित। प्लीज़, हमे डांस नहीं आता।‘‘ देवयानी रूँआसी-सी थी।

‘‘ऐ बेबी, ज़िंदगी का एक-एक पल एन्ज्वॉय करना सीखो। न जाने कब हमें ये खूबसूरत दुनिया छोड़कर चले जाना पड़े। नाउ लेट्स स्टार्ट लाइक दिस………।‘‘

रोहित की बातों मे न जाने क्या जादू-सा था, देवयानी के पाँव उसके साथ उठते गए।

साथियों ने तालियाँ बजाकर, आवाजें कसीं-

‘‘हियर-हियर। रोहित यार, मान गए।‘‘

‘‘अब तू मेडिसिन की पढ़ाई छोड़, डांस-टीचर बन जा।‘‘ रोहित के साथी जयंत ने सलाह दी। हँसी-खुशी को वो शाम बड़ी जल्दी बीत गई। अचानक कलाई-घड़ी पर नज़र पड़ते ही देवयानी चौंक गई। ग्यारह बजे रात तक वो पहली बार बाहर रही थी। माँ का चिंतित चेहरा याद हो आया।

‘‘अब हमें जाना है, माँ परेशान होंगी।‘‘ साथ बैठी रितु हंस पड़ी

‘‘अरे, घर में तो रोज़ ही रहती हो, एक दिन यहाँ भी एन्ज्वॉय कर लो।‘‘

‘‘नहीं, रितु, हमारी परिस्थिति सबसे अलग है। माँ परेशान होंगी। हम जा रहे हैं।‘‘

देवयानी को खड़ा होते देख, रोहित पास आ गया।

‘‘क्या बात है, देवयानी ?‘‘

‘‘हमे घर जाना है, रोहित।‘‘

‘‘इतनी जल्दी ?‘‘

‘‘इतनी जल्दी ?‘‘

‘‘हमारे लिए ग्यारह बजे रात का मतलब बहुत देर हो जाना है, रोहित।‘‘

‘‘ओह, समझा। चलो तुम्हें घर तक छोड़ आऊँ।‘‘

हॉल के बाहर आकर रोहित अपनी मोटरबाइक के पास देवयानी को ले गया।

‘‘मोटरबाइक में पहलेकभी बैठी हो ? डर तो नहीं लगेगा ?‘‘ रोहित के चेहरे पर कंसर्न था।

‘‘नहीं, पर तुमने तो कहा था लड़कियों को घर तक छोड़ने का इंतजाम है।‘‘

‘‘अरे, इससे अच्छा इंतज़ाम क्या होगा, देवयानी। मिनटों में घर पहुँच जाओगी।‘‘

‘‘हमे मोटरबाइक पर बैठते डर लगता है। हम कभी नहीं बैठे हैं। अगर कोई रिक्शा मिल जाए तो हम चले जाएँगे।‘‘

‘‘व्हाट रबिश। इतनी रात गए अकेले रिक्शे में जाना क्या सेफ़ होगा। वेल। डोंट बिहेव लाइक ए चाइल्ड। कम ऑन। मैं बाइक स्टार्ट करता हूँ। तुम मेरे पीछे बैठ जाना। डर लगे तो मुझे कसकर पकड़ लेना। यकीन रखो गिराऊँगा नहीं।

देवयानी की झिझक देख फिर कहा-

‘‘क्या करूँ, अभी मेरे पास कार तो है नहीं। चलो, जल्दी करो वर्ना और देर हो जाएगी।‘‘

विवश देवयानी को रोहित के पीछे बैठना पड़ा। मोटरबाइक के झटकों से डरकर उसका हाथ रोहित के कंधे को जकड़े हुए था। घर के सामने पहुँच, रोहित ने मोटरबाइक रोक कर, देवयानी को उतार कर कहा-

‘‘डरीं तो नहीं ? हाँ, माँ को बता देना तुम मेरे साथ आई हो। अगर डाँट पड़े तो कोई बात नहीं, पर झूठ बोलना ग़लत होगा।‘‘

‘‘थैंक्स रोहित। मुझे आज तक माँ से कभी झूठ बोलने की ज़रूरत नहीं पड़ी न पड़ेगी। हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त हैं एक-दूसरे की बात खूब समझते हैं।‘‘

‘‘मुझे तुमसे यही उम्मीद थी, देवयानी। ओ.के.बाय। गुड नाइट।

किक मार, रोहित उड़ गया।

कल्याणी खिड़की से देख रही थी। अंदर पहुँचते ही देवयानी ने कहा-

‘सॉरी, माँ। प्रोग्राम इतना अच्छा था वक्त का पता ही नहीं लगा।

‘‘किसके साथ आई थी, देवयानी ?‘‘

‘‘वो हमारे सीनियर रोहित थे…….‘‘

‘‘देख, देवयानी, आगे से किसी लड़के के साथ मोटरबाइक पर आने की ज़रूरत नहीं है।‘‘ गंभीरता से कल्याणी ने कहा।

‘‘ठीक है, माँ।‘‘

दूसरे दिन सुबह देवयानी ने अपने पिछली रात के प्रोग्राम के बारे में बताते हुए उत्साह से माँ से कहा-

‘‘जानती हो, माँ। कल हमें क्या खि़ताब मिला ?‘‘

‘‘मै तो वहाँ थी नहीं, कैसे जानूंगी, देवयानी ?‘‘

‘‘माँ, कल हमें कॉलेज की ‘लता मंगेशकर‘ का खि़ताब मिला है। हमने उमराव जान की ग़ज़ल सुनाई थी। हम तो नहीं गाना चाहते थे, पर सबने इतनी रिक्वेस्ट की कि गाना ही पड़ा।‘‘

‘‘कोई बात नहीं, अपनी कला को छिपाना नहीं चाहिए। मुझे खुशी है, तेरी ग़ज़ल सबको पसंद आई।‘‘ मुस्करा कर कल्याणी ने देवयानी का उत्साह बढ़ाया।

‘‘तुम बहुत अच्छी हो, माँ। हम तो डर रहे थे, कहीं तुम नाराज़ न हो। हाँ, तुम्हारी गाँव की औरतों वाली प्रोजेक्ट की क्या प्रगति है ?‘‘

‘‘देख, देवयानी, जो बात छिपाने की ज़रूरत पड़े, उसके लिए मैं नाराज़ हो सकती हूँ। तूने कुछ ग़लत नहीं किया। कल गाँव के मुखिया से बात की है, उम्मीद है अब औरतें हमारे कामों में सहयोग देंगी।‘‘

‘‘ये अच्छी बात है, माँ। तुम्हारे लिए मैं बहुत खुश हूँ। तुमने अब जीने के लिए एक मक़सद पा लिया है।‘‘

‘‘मेरी ज़िदगी का सबसे बड़ा मक़सद तो तुझे डॉक्टर बनाना था। वो पूरा हो रहा है। कल्याणी हल्के से मुस्करा दी।

‘‘नहीं माँ, कोई भी इंसान किसी दूसरे के नाम पर अपना मक़सद पूरा नहीं कर सकता। तुम्हारा मक़सद अब उन शोषित स्त्रियों को आत्मनिर्भर बनाना है, जिन्होंने खुशी का उजाला कभी जाना ही नहीं है।‘‘

‘‘आफ़िस से प्रोजेक्ट स्वीकृत हो जाए तब जल्दी ही काम शुरू हो जाएगा।‘‘

‘‘ऑफ़िस वालों का क्या रूख़ है ?‘

‘‘मेरे बॉस को योजना बहुत पसंद आई है। उन्होंने रिकमेंड करके फ़ाइल ऊपर भेज दी है।‘‘

‘‘वाह ! तब तो बात बन गई, समझो।‘‘

‘‘मेरी चिन्ता छोड़, तू अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे, याद रख, तुझे अच्छे नम्बरों से पास होना है।‘‘

‘‘घबराओ नहीं, माँ तुम्हारी बेटी हूँ। तुम्हारा नाम रौशन करूँगी।‘‘

‘‘मुझे तुझ पर पूरा विश्वास है। काश् रोहन और रितु भी तेरी तरह मेहनत से पढ़ते तो आज वो भी किसी प्रोफ़ेशनल लाइन में होते। रोहन तो अभी तक बारहवीं भी पास नहीं कर पाया और रितु मेट्रिक पर ही अटकी है।‘‘
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: देवयानी

Post by Jemsbond »



‘‘ओह, माँ! तुम आज भी उन लोगों के बारे में सोचती हो, जिन्होंने हमें कभी अपना माना ही नहीं। हमेशा हमारा अपमान किया। आज भी रागिनी ताई की चेतावनी याद है, जब उन्होंने कहा था रितु के स्कूल में किसी को न बताना कि हम रितु के रिश्तेदार हैं।‘‘ देवयानी का मुँह उदास हो आया।

‘‘जाने दे, अगर उन्होंने ग़लती की तो हम भी उन जैसी ग़लती क्यों करें? आज तेरी सफलता से पापा जी ज़रूर खुश होते होंगे।‘‘

‘‘अच्छा माँ, चलती हूँ। कॉलेज के लिए देर हो रही है।‘‘

कॉलेज पहुँचते ही रोहित से सामना हो गया। वो सीनियर डॉक्टर के साथ राउंड ख़त्म करके आया था।

‘‘हलो। कल रात माँ ने डाँटा तो नहीं ?‘‘

‘‘नहीं, पर कहा है, आगे से हम किसी के साथ मोटरबाइक पर न बैठें।‘‘

‘‘उन्हें पता नहीं रोहित किसी ऐरे-गैरे की श्रेणी में नहीं आता। एक साल बाद एक ज़िम्मेदार डॉक्टर बन जाऊँगा।‘‘ कालर ऊँचा कर, रोहित ने गर्व से कहा।

‘‘क्या डॉक्टर बन जाने से कुछ ख़ास बन जाते हैं, रोहित ? हम तो चाहते हैं एक आम इंसान की तरह रहते हुए अपना काम करें।‘‘

‘‘ओह गॉड। तुम सचमुच सबसे बहुत अलग हो, देवयानी। बाई दि वे, आपके जीवन का उद्देश्य क्या है ?‘‘ हल्के से मुस्कराते रोहित ने पूछा।

‘‘हम अपने पापा के गाँव में काम करेंगे, रोहित। उस गाँव में पापा एक अस्पताल खोलना चाहते थे।‘‘ देवयानी के चेहरे पर उदासी की छाया घिर आई।

‘‘अच्छा, क्या तुम्हारे अस्पताल में मुझे भी काम मिल सकेगा ?‘‘

‘‘तुम्हारे पापा का शहर में इतना बड़ा नर्सिंग-होम है। तुम्हें तो उनके काम में मदद देनी होगी।‘‘

‘‘ये तो वक्त ही बताएगा, मै क्या करूँगा। अच्छा, अब चलता हूँ। कल फिर मिलेंगे।‘‘

कल्याणी के कार्यालय में उसकी योजना स्वीकृत हो गई। कल्याणी योजना का प्रथम चरण जल्दी शुरू करना चाहती थी। महिमा जी और देवयानी की सलाह थी, पहले चरण में औरतों को साक्षर बनाने के साथ कुछ घरेलू बुनियादी कामों को शुरू किया जाए। गाँव की औरतें चटाई-मूढ़े बनाती हैं, कशीदाकारी का हुनर भी शरबती, ज़मीला जैसी कई स्त्रियों के पास है। इन कामों के साथ लिफ़ाफ़े बनाना, टोकरी बुनना जैसे कामों को जोड़ा जा सकता है।

‘‘माँ, हमारे पास एक कशीदाकारी वाला बेड-कवर है, अगर गाँव की स्त्रियाँ वैसे बेड-कवर, तकिया गिलाफ़, मेजपोश बना सकें तो शहरों में ऐसे सामान की खूब माँग होगी।‘‘ देवयानी का चेहरा चमक रहा था।

‘‘हाँ, कल्याणी । देवयानी ठीक कह रही है अब शहरों में ही क्यों विदेशों में भी हाथ की बनी कलात्मक वस्तुओं की बहुत माँग है। मै तो कहती हूँ, साड़ियों और सलवार-सूट का भी काम शुरू कराना चाहिए।‘‘

‘‘हाँ, माँ। एक सलवार-सूट पर मेरे लिए भी बेल-बूटे कढ़वा देना।‘‘ देवयानी उत्साहित थी।

‘‘घबरा मत, तेरी शादी के लिए तेरी माँ साड़ी पर भी कशीदाकारी करवा देगी। क्यों कल्याणी ठीक कहा न ? महिमा जी ने परिहास किया।

‘‘छिः मौसी। अब तुम भी मज़ाक करने लगीं। हमें नहीं करनी है, शादी।‘‘ देवयानी तुनक गई।

‘‘अच्छा भई, मत करना शादी। चल मौसी को एक कप बढ़िया चाय तो पिला।‘‘

‘‘अभी लाई, मौसी।‘‘

कल्याणी और महिमा जी उदघाटन समारोह की योजना बनाने लगीं। दोनों समारोह को एक ख़ास कार्यक्रम बनाना चाहती थीं।

दो कप चाय के साथ देवयानी आ पहुँची। माँ और मौसी की बातें ध्यान से सुनती देवयानी को अचानक एक बात याद हो आई।

‘‘माँ, मेरे दिमाग़ में एक और सुझाव है। इस काम की चाभी तुम्हारे पास है।

‘‘मेरे पास कौन-सी चाभी है, देवयानी ?‘‘ कल्याणी सोच में पड़ गई।

‘‘अपना बक्सा कभी खोला है, माँ ?‘‘ देवयानी मुस्करा रही थी।

‘‘मेरे बक्से में क्या ख़ास है, देवयानी ? हमेशा ही खुला पड़ा रहता है।‘‘

‘‘मैं उस बक्से की बात कर रही हूँ, जिसमें तुम्हारे बनाए चित्र रखे हैं, माँ। शायद तुम नहीं जानतीं आजकल मघुबनी पेंटिंग्स कितनी डिमाँड में हैं। तुम औरतों को अपनी ये कला सिखाकर कई आधुनिक चीज़े बनवा सकती हो।‘‘

‘‘सच, कल्याणी। तुम्हारी इस कला के बारे में तो मुझे पता ही नहीं था। पंद्रह दिन पहले एक प्रदर्शनी में साड़ियों, टाई, स्कार्फ़ो पर मधुबनी शैली के चित्र बने थे। चे चीज़े हाथो-हाथ बिक गई।‘‘ महिमा जी ताज़्जुब में थी।

‘‘अगर ये संभव है तो मैं गाँव की औरतों को चित्र बनाने की कला ज़रूर सिखाऊँगी। घरेलू औरतें तीज-त्योहारों पर दीवारों और आँगन या दरवाज़ों पर अल्पना बनाती ही हैं। उन्के इस शौक को बस व्यावसायिक रंग देना होगा।‘‘ कल्याणी के चेहरे पर आत्मविश्वास था।

देवयानी के कॉलेज में इंटर- कालेज नृत्य प्रतियोगिता आयोजित की जानी थी। एक दिन बातों-बातों में देवयानी ने अपने साथ की लड़की नीता से कह दिया था, उसे नृत्य की शिक्षा नहीं मिली है, पर उसकी नृत्य में बहुत रूचि है।

‘‘अगर तुने क्लासिकल डांस सीखा होता तो क्या स्टेज परफ़ारर्मेंस दे सकती थी, देवयानी ?‘‘

‘‘पता नहीं, पर कभी-कभी जी चाहता है, मै भी नृत्य-कला में प्रवीण होती।‘‘

‘‘अगर तुझे नृत्य-कला का इतना ही शौक़ है, तब तो फ़िल्मी गानों पर ज़रूर नाचती होगी?‘‘

‘‘नहीं, हमे लोक-गीतों पर नृत्य करना अच्छा लगता है। बचपन में गाँव में हम सब लड़कियाँ मिलकर त्योहारों पर खूब नाचते थे।‘‘ बचपन की मीठी याद की खुशी से देवयानी का चेहरा जगमगा उठा। कॉलेज के नोटिस-बोर्ड पर नृत्य-प्रतियोगिता के लिए देवयानी का नाम लिखा देख, रोहित चौंक गया।

‘‘वाह ! मुझे तो पता ही नहीं था, संगीत के साथ-साथ तुम नृत्य-कला में भी एक्सपर्ट हो।‘‘

‘‘क्या….आ ? तुमसे ये किसने कहा ?‘‘ देवयानी ताज़्जुब में आ गईं।

‘‘अरे पूरा कॉलेज जान गया है। अपना नाम नोटिस-बोर्ड पर नहीं देखा ?‘‘

नोटिस-बोर्ड पर अपना नाम देख, देवयानी चौंक गई। ऑर्गनाइज़र ने देवयानी का नाम हटाने से साफ़ इंकार कर दिया। उसका नाम दूसरे कॉलेजों तक भेजा जा चुका था। बात अब कॉलेज के प्रेस्टिज की थी। दूसरी कोई लड़की लोक-नृत्य के लिए प्रस्तुत नहीं थी। आशा नाम की लड़की कत्थक नृत्य के लिए और सीता भरत-नाट्यम नृत्य-प्रतियोगिता में भाग ले रही थीं।

देवयानी समझ गई ये नीता की चाल है। नीता से जब पूछा तो उसने सहास्य जवाब दे डाला-

‘‘देख, देवयानी, तेरी बातों से मैं जान गई तुझमें एक नृत्यांगना छिपी हुई है। एक बात समझ ले, गाँव की सोंधी माटी वाले गीतों पर तेरे पाँव उसी तरह थिरक उठेंगे जैसे कभी बचपन में थिरकते थे‘‘

‘‘नहीं, नीता। हमें अपनी हँसी नहीं उड़वानी है। गीत गाना दूसरी बात है, पर स्टेज पर नृत्य करना एकदम अलग बात है। हमसे नहीं होगा।‘‘

‘‘होगा, ज़रूर होगा, बस एक बार ठान ले तो तू क्या नहीं कर सकती, देवयानी।‘‘

‘‘घर में नाच-गा लेना चलता है, पर हज़ारों की भीड़ में स्टेज़ पर जाना संभव नहीं होगा। माँ सुनेगी तो नाराज़ होगी, नीता।‘‘

‘‘माँ को मनाने और तेरे रिहर्सल की ज़िम्मेदारी मेरी है, देवयानी।‘‘

दूसरे ही दिन नीता, कल्याणी से मिलने जा पहुँची। कल्याणी को मनाने में देर ज़रूर लगी, पर नीता के तर्कों के आगे, कल्याणी को हथियार डालने ही पड़े। नीता ने कॉलेज की कुछ लड़कियों को इकट्ठा कर लिया। देवयानी के गीतों को उन्हें स्वर देना था। कॉलेज की ऑकेस्ट्रा- टीम ने म्यूज़िक देना स्वीकार कर लिया।

एक बार फिर देवयानी का बचपन सजीव हो उठा। उत्साह के साथ वह लोक-नृत्य की तैयारी में जुट गई। कल्याणी भी बेटी को उत्साहित करती।

उसी व्यस्तता में कल्याणी की योजना का उदघाटन-दिवस आ पहुँचा। योजना का उदघाटन करने स्वयं ऑफ़िस के डाइरेक्टर आए थे। समारोह में महिमा जी, सुनीता, कुसुम से साथ देवयानी भी उपस्थित थी। गाँव की स्त्रियाँ कौतुक से तैयारी देख रही थीं। वे यह समझने में असमर्थ थीं कि उतना बड़ा आयोजन उनके लिए हो रहा था। चंदन और उसके नौजवान साथियों में ख़ासा उत्साह था। पुरूष-वर्ग के बीच ज़रूर फुसफुसाहट चल रही थी।

पारो और बन्तो के साथ गाँव की लड़कियों ने नृत्य प्रस्तुत कर समाँ बाँध दिया। नृत्य के बीच पारो, देवयानी को भी खींचकर ले गई। सचमुच लोक-संगीत की लय पर देवयानी के पाँव आसानी से थिरक उठे। नीता ठीक कहती थी, बचपन का नृत्य आज फिर साकार था।

स्त्रियों के सामने ‘उ‘ लिखकर कल्याणी ने समझाया, उसकी योजना स्त्रियों के ही नहीं उनके परिवार की ज़िंदगी में उजाला लाएगी। घूँघट की ओर से कुछ स्त्रियाँ मुस्कराईं और लड़कियों ने उतावली में ‘उ‘ लिखना शुरू कर दिया।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: देवयानी

Post by Jemsbond »



कल्याणी की योजना ने स्त्रियों की आँखों में सपने जगा दिए। उनकी समझ में आ गया आत्मनिर्भर बनकर ही वे सुखी हो सकती हैं। शुरू-शुरू में पढ़ने के नाम पर औरतों को संकोच होता, पर धीरे-धीरे वे खुलने लगीं। उन्हे पढ़ाने के लिए जया और नमिता नाम की दो हँसमुख लड़कियाँ आने लगीं।

जिस दिन पहली बार उन्होनें अपना नाम लिखा, उनकी खुशी देखते बनती थी। स्लेट पर सिर झुकाए पारो को लिखता देख, बन्तो ने छेड़ा-

‘‘अरे ये क्या, पारो ने अपने नाम की जगह चंदन का नाम लिख दिया।‘‘

‘‘चल, झूठी कहीं की। हमने तो अपना ही नाम लिखा है, दीदी। हमें बंतो से बात नहीं करनी है।‘‘ पारो ने झूठा गुस्सा दिखाया।

‘‘ओय होय। मन-मन भावे मुडिया हिलावे। सच कह, तेरे मन में बस चंदन का ही नाम बसता है या नहीं ?‘‘ पारो हंस रही थी।

‘‘हाँ-हाँ, बसता है,तेरा क्या जाता है ? तू भी तो मनोहर पर मरती है।‘‘

औरतें हँस पड़ीं। कल्याणी का ये केंद्र सिर्फ़ काम सीखने-सिखाने का ही केंद्र नहीं था बल्कि स्त्रियों के लिए वह मनोरंजन की भी जगह थी। हँसी-ठिठोली करतीं स्त्रियों को काम करना सहज लगता। कपड़ो पर फूल काढ़ते, उनके सपने खिलते जाते। उनके बनाए कलात्मक सामान को देख, लोग आश्चर्य करते। पारो और चंदन की शादी तय हो गई थी। पारो अपने लिए एक साड़ी पर कशीदाकारी कर रही थी। खुशी में समय बीतता जा रहा था।

देवयानी के कॉलेज में नृत्य-संध्या की तिथि आ पहुँची। कल्याणी ने देवयानी के लिए हल्के गुलाबी रंग का लहंगा-चुन्नी तैयार किया था। लहंगे-चोली और चुन्नी पर सुनहरे बूटे चमक रहे थे।

मंच पर गाँव का दृश्य बनाया गया था। कुएँ के पास पनिहारिन बनी देवयानी अपूर्व लग रही थी। धड़कते दिल से गीत के बोलों पर देवयानी ने नृत्य प्रस्तुत किया। नृत्य की समाप्ति पर एक क्षण के सन्नाटे के बाद हॉल तालियों से गूँज उठा। सपने से जगाए गए से लोग विस्मय-विमुग्ध थे।

प्रतियोगिता के निर्णय की घड़ी आ गई। कत्थक नृत्य में कॉलेज की आशा को तीसरा स्थान मिला, सीता किसी भी पुरस्कार से वंचित रही। देवयानी के प्रथम पुरस्कार की घोषणा का दर्शकों ने ज़ोरदार तालियों से स्वागत किया। नीता ने देवयानी को गले से लगा लिया-

‘‘तूने आज कॉलेज का सम्मान बढ़ाया और मेरे विश्वास की रक्षा की है, देवयानी। अब किसी भी चीज़ को असंभव मत समझना।‘‘

‘‘थैंक्स, नीता। तूने मुझे नई हिम्मत और ताक़त दी है। तेरी बात हमेशा याद रखूँगी।

पुरस्कार ग्रहण कर मंच से उतरती देवयानी को रोहित ने रोक लिया-

‘‘कांग्रेच्युलेशन्स। अब और कितने सरप्राइज़ेज़ दोगी, देवयानी। जितना ही तुम्हें जानता हूँ, मुग्ध होता हूँ।‘‘

‘‘शुक्रिया। वैसे हम इतनी तारीफ़ के लायक नहीं है, रोहित। हमें तो ये पता भी नहीं था हम स्टेज पर डांस कर सकते हैं।‘‘ शर्माती देवयानी ने कहा।

‘‘आज की तुम्हारी इस सफलता के लिए मेरी ओर से ट्रीट तय रही। बोलो कहाँ चलना है।‘‘

‘‘कहीं नहीं, माँ घर में इंतज़ार कर रही होंगी।‘‘

‘‘ओह, मैं तो भूल ही गया। वो भी तो कम्पटीशन के रिज़ल्ट का इंतज़ार कर रही होंगी। चलो, मैं ड्राप कर देता हूँ।‘‘

‘‘नहीं, तुम्हारी मोटरबाइक से कही भी न जाने का माँ से वादा किया है। सॉरी, रोहित।‘‘

‘‘अजी आज हम देवयानी दि ग्रेट के लिए बाइक नहीं कार लाए हैं। अब तो चलें?‘‘

सकुचाती देवयानी, रोहित के साथ आगे की सीट पर बैठ गई। घर पहुँची देवयानी के साथ रोहित भी उतर आया। देवयानी के विस्मय पर हँसते रोहित ने कहा-

‘‘आज तो माँ जी से मिलकर ही वापस जाऊँगा। इजाज़त है ?‘‘

‘‘अपने आप निर्णय ले लिया फिर इजाज़त का सवाल ही कहाँ उठता है ?‘‘

दरवाज़ा खोलती कल्याणी देवयानी के साथ खड़े रोहित को देखकर ताज़्जुब में पड़ गई। कल्याणी का संशय खुद अपना परिचय देकर रोहित ने दूर कर दिया।

‘‘माँ जी, रोहित। फ़ाइनल इअर कम्प्लीट कर रहा हूँ। देवयानी के गुणों का प्रशंसक हूँ। सोचा इतनी गुणवान लड़की की माँ से मिलना ज़रूरी है।‘‘

‘‘अच्छा-अच्छा। आओ।‘‘

‘‘माँ, मुझे लोक-नृत्य में फ़र्स्ट प्राइज़ मिली है।‘‘ खुशी से उमगती देवयानी ने माँ को बताया।

‘‘चल, तेरी मेहनत सफल हुई।‘‘

‘‘बस, क्या इतना कहना ही काफ़ी है ? मैं तो मिठाई खाए बिना टलने वाला नहीं हूँ, माँजी।‘‘

‘‘ज़रूर, लेकिन आज तो बस घर का हलवा ही मिल सकेगा। पहले से पता होता तो मिठाई मँगाकर रखती।‘‘ कुछ संकोच से कल्याणी ने कहा।

‘‘अरे वाह ! मज़ा आ गया। घर के हलवे के सामने बाज़ार की मिठाई कौन पसंद करेगा। जब तक मम्मी थीं, हर मंगल को हलवा बनाती थीं।‘‘ रोहित उदास था।

‘‘तुम्हारी मम्मी को क्या हुआ रोहित ?‘‘

‘‘दो दिन की बीमारी में माँ ये दुनिया छोड़ गईं। पापा भी कुछ नहीं कर सके।‘‘

‘‘हाँ, बेटा। ऊपर वाले के सामने किसी की नहीं चलती। देवयानी के पापा की क्या जाने की उम्र थी ?‘‘ कल्याणी ने लंबी साँस ली।

‘‘होनी को कोई नहीं टाल सकता, पर देखिए, देवयानी की वजह से माँ के रूप में आप मिल गईं। मैं आपको माँ कह सकता हूँ ?‘‘

‘‘क्यों नहीं, रोहित। जब जी चाहे हलवा खाने आ जाना।‘‘ कल्याणी हल्के से मुस्करा दी।

‘‘ये हुई न बात। देवयानी तुम बस बातें ही सुनती रहोगी या मेरा हलवा भी लाओगी।‘‘

हँसी-खुशी में वो शाम बीत गई। उस दिन के बाद से रोहित अक्सर देवयानी के साथ घर आ जाता। रोहित के आने से घर जैसे चहक उठता। कल्याणी की इजाज़त ले, रोहित कभी-कभी देवयानी को किसी रेस्ट्र या पार्क जैसी जगहों में भी ले जाता। न जाने क्यों देवयानी को रोहित के साथ देख, कल्याणी के मन में रोहित के लिए बहुत प्यार और ममता उमड़ आती।

दिन-महीने-साल, बीतते देर नहीं लगती। दो वर्षों में कल्याणी का केंद्र एक खुशहाल केंद्र बन चुका था। गाँव की औरतों का हुनर उनके बनाए सामान में चमकता। गाँव के प्रधान और ब्लॉक डेवलपमेंट अधिकारी भी प्रसन्न थे। उनकी मदद से औरतों का बनाया सामान शहर के बिक्री केंद्रों में जाने लगा। पहली बार जब औरतों के हाथों में पैसे आए तो सब खुशी में जी भर कर नाचीं। ज़मीला चाची ने चेतावनी दे डाली-

‘‘याद रखो, ये हमारी मेहनत की कमाई है। इससे हम अपने बच्चों को पढ़ाएँगें, उन्हें अच्छा खाना खिलाएँगें। ये पैसा मरदों की दारू के लिए नहीं देना है।‘‘

‘‘हाँ, चाची। इतना ही नहीं, हम शराबी पति के लिए दरवाज़े नहीं खोलेंगे।‘‘ शरबती ने ज़ोरदार आवाज़ में घोषणा कर डाली।

‘‘आज तुम सच्चे अर्थों में साक्षर बनी हो। बस इसी तरह तुम्हें आगे बढ़ते जाना है।‘‘ कल्याणी ने हौंसला बढ़ाया।

‘‘हां दीदी, हम आपके साथ आगे ही बढ़ते जाएँगे, ‘‘ बंतो ने खुशी से कहा।

‘‘तुम सबके लिए एक और खुशख़बरी है। अगले महीने तुम्हारे लिए हथकरधा आ रहा है। तुम्हें हथकरधे पर कपड़ा बुनना सिखाया जाएगा।‘‘

‘‘जुग-जुग जीओ बेटी। तुमने तो हमारे सपने सच कर दिए।‘‘ बूढ़ी काकी ने कल्याणी को सच्चे मन से आशीर्वाद दिया।

देवयानी मेडिसिन के तीसरे वर्ष की पढ़ाई पूरी कर रही थी। माँ की विजय-गाथा उसे विस्मित करती।

‘‘माँ, तुम गाँव की औरतों की प्रेरणा हो। उनका जीवन तुमने बदल दिया, पर अपने लिए क्या कर रही हो ?‘‘

‘‘क्या मतलब है, तेरा ?‘‘

‘‘यही कि तुम समाज-कल्याण में एम.ए. क्यों नहीं कर लेतीं। सबके विकास के साथ तुम्हें अपना भी विकास करना चाहिए, तभी पापा की आत्मा को संतोष मिलेगा।‘‘ दृढ़ स्वर में देवयानी ने कहा।

‘‘तू ठीक कहती है, मैं आज ही से पढ़ाई शुरू करूँगी। तेरी मेडिसिन की पढ़ाई पूरी होगी और मैं भी एम..ए कर लूँगी।‘‘

‘‘चलो अब घर में दो-दो विधार्थी हो गए।‘‘ प्यार से देवयानी ने माँ के गले में हाथ डाल दिए।

दूसरे दिन देवयानी को अपनी प्रोन्नति का आर्डर मिला। उसे वरिष्ठ समाज कल्याण अधिकारी बनाया गया था। डाइरेक्टर ने सबके सामने कल्याणी की प्रशंसा करते हुए कहा-

‘‘हमारे समाज को कल्याणी जैसी कर्मठ स्त्रियाँ चाहिए। कल्याणी ने तो गाँव की स्त्रियों तक उजाला पहुँचाया है। मैं कल्याणी के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ।‘‘

उस दिन रोहित देवयानी के साथ कल्याणी को भी जबरन रेस्ट्रा लेगया। वर्षो बाद कल्याणी ने बाहर की जगमगाहट देखी थी। उसके संकोच पर रोहित हँस पड़ा-

‘‘अपने को पहचानिए, माँ। आज आप भले ही लोगों से अपरिचित हैं, पर जल्द ही लोग आपको एक समाज-सेविका के रूप में सम्मान देंगे। उस दिन आपको ट्रीट देनी होगी।‘‘ रोहित की आवाज़ में विश्वास था।

देवयानी और कल्याणी अपनी-अपनी पढ़ाई में जुट गईं। कार्यालय, घर के दायित्वों के साथ कल्याणी गाँव की औरतों के प्रति पूरी तरह सजग थी। हथकरधा- केंद्र चालू हो गया था। पारो अपने चंदन के लिए एक दोशाला बुन रही थी। पाँच दिन बाद पारो की शादी थी, उसके पहले उसे दोशाला पूरा कर लेना था।

पारो और चंदन की शादी में खूब धूम-धड़ाका रहा। बंतो और उसकी सहेलियों ने पूरी रात नाच-गाकर खूशी मनाई। चंदन के जूते बंतो ने चुराकर अच्छी रकम वसूल की। कल्याणी और देवयानी के साथ रोहित भी शादी में शामिल होने आया था। बंतो ने देवयानी को छेड़ा-

‘‘ऐ दीदी, तुम्हारे साथ तुम्हारा दूल्हा आया है, क्या ? एकदम राजकुमार-सा लगे है।‘‘

‘‘छिः, जोक मुंह में आया बक देती है माँ से तेरी शिकायत करनी होगी, बंतो।‘‘ देवयानी का चेहरा लाल हो आया। रोहित हल्के से मुस्करा दिया।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: देवयानी

Post by Jemsbond »



पारो की शादी की धूमधाम ख़त्म होने के बाद औरतें अपने काम में लग गईं। उनका केंद्र अब ‘‘चेतना‘‘ के नाम से जाना जाता था। कुछ पत्रकारों ने आकर जब ‘चेतना‘ केंद्र की प्रगति देखी तो अपने अख़बारों में कल्याणी की भूरि-भूरि प्रशंसा कर डाली। अख़बारों की ख़बर ज़िले और राज्य तक पहुँची। सर्व सम्मति से उस गाँव को सर्वश्रेष्ठ गाँव का पुरस्कार देने का निर्णय लिया गया।

पुरस्कार समारोह में कई पत्रकार, कलक्टर महोदय के साथ कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। कल्याणी को मंच के बीच में स्थान दिया गया था। ग्राम-प्रधान ने ईमानदारी से स्वीकार किया कि उसके गाँव की औरतों के विकास का श्रेय कल्याणी को जाता है। आज गाँव की सभी स्त्रियाँ साक्षर बन चुकी हैं। पत्रकारों ने जब कल्याणी से ‘चेतना‘ के भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछा तो उसने सच्चाई से जवाब दिया-

‘‘सरकार ने पंचायत में तैंतीस प्रतिशत स्थान स्त्रियों के लिए नियत किए हैं। मैं चाहती हूँ चेतना की स्त्रियाँ सच्चे अर्थों में पंच बनकर फैसले सुनाएँ। वे किसी को दबाव में काम न करें।’’

‘‘आपकी इच्छा पूरी होगी, दीदी। इस बार पारो और ज़मीला चाची पंचायत में जाएँगी, ये हमारा फैसला है।’’ शरबती ने पूरे विश्वास से कहा। औरतों ने तालियाँ बजाकर शरबती की बात का अनुमोदन किया।

‘‘मैं ये भी चाहती हूँ कि स्त्रियाँ अपना बैंक चालएँ। जिस दिन वे ऐसा कर सकेंगी, मैं समझूंगी, मेरा कार्य सफल हुआ।’’

तालियों की गड़गड़ाहट के साथ कल्याणी का अभिनंदन किया गया। दूसरे दिन समाचार पत्रों में कल्याणी के चित्र के साथ उसके कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई थी।

समाचार पत्र पढते कमलकांत का सीना गर्व से फूल उठा। पत्नी को बुलाकर कहा-

‘‘जिस बहू का हमने तिरस्कार कर घर से निकाल दिया। आज उसकी वजह से हमारा खांदान गौरवान्वित है, सरस्वती।’’

पत्नी की कोई प्रतिक्रिया न देख, उन्होंने फिर कहा-

‘‘चलो, हम चलकर अपनी बहू ओर पोती को घर ले आएँ। अब तो देवयानी डॉक्टर बनने वाली होगी। हमारे परिवार का नाम और सम्मान हमारी पोती ने बढाया है।”

‘‘क्या वे हमारे साथ आएँगी ?’’

‘‘हम अगर कोशिश करेंगे तो वो क्यों नहीं आएँगी, सरस्वती। आखिर देवयानी हमारा खून है। हमारे अमर की निशानी है।’’

सास-ससुर को अचानक अपने घर आया देख, कल्याणी चौंक गई। उनके पाँव छू, आदर से बैठाया। कमलकांत ने बिना किसी भूमिका के कहा-

‘‘हम तुम दोनों को लेने आए हैं, बहू। अपने घर चलो।’’

‘‘हम अपने घर में ही हैं, पापा जी। आप किस घर में ले जाने की बात कर रहे हैं ?’’ शांत स्वर में कल्याणी ने कहा।

‘‘ये तुम्हारा घर नहीं है, बहू। किराए का घर अपना नहीं हो सकता। अमर का घर तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है।’’

‘‘नहीं, पापा जी। इस घर ने हमें वो सब कुछ दिया है, जो आपका बेटा हमे देना चाहता था। वैसे भी अमर का घर तो वो गाँव है, जहाँ देवयानी जाकर उनके अधूरे सपने पूरे करेगी। हमें क्षमा करें, पापाजी। हाँ हमारे इस छोटे से घर में आपका हमेशा स्वागत रहेगा।’’

‘‘देख लिया, तुमने ही इसे पढ़ने की इजाज़त दी। आज ये जो कुछ भी है, उसके लिए तुम्हारा एहसान मानने की जगह, उल्टे जवाब दे रही है। चलो, हम चलते हैं।’’ सरस्वती क्रुद्ध थी।

‘‘क्षमा करें, माँ। पापा जी और आप हमेशा हमारे पूज्य रहेंगे। पापा जी, आपने हमारी जो सहायता की उसके लिए मैं आपकी बहुत आभारी हूँ। अगर हम कभी आपके काम आ सकें तो प्रसन्नता होगी। बड़े विनम्र स्वर में कल्याणी ने अपनी बात कह दी।

‘‘रहने दो, भगवान न करें हमे कभी तुम्हारी ज़रूरत पड़े। तुम्हारी औकात ही क्या है ? चलिए जी, चलें। मै तो पहले ही यहाँ नहीं आना चाहती थी।’’ सरस्वती का आक्रोश शब्दों में फूट पड़ा।

‘‘चुप रहो, सरस्वती। इसी अभिमान की वजह से हमने बेटा खोया घर आई बहू और बेटी का निरादर किया। अब और एक शब्द भी मत कहना। हमे माफ़ करना, बहू। देवयानी को देखने की साध थी, उसे हमारा आशीर्वाद देना।’’ स्नेह विगलित कंठ से आशीर्वाद दे, कमलकांत चले गए।

कॉलेज से वापस लौटी देवयानी से कल्याणी ने सास-ससुर के आगमन की बात बताई। देवयानी को निर्णय लेने में देर नहीं लगी।

‘‘तुमने ठीक किया माँ। वो घर कभी हमारा था ही नहीं। एक-एक पल हमने अपमान के साथ जिया। हाँ, बाबा के मन में ज़रूर कभी हमारे लिए दया उमड़ती थी, पर घर के बाकी सदस्य हमें सिर्फ नफ़रत की नज़रों से देखते रहे। ऐसे खून के रिश्तों के मुकाबले, महिमा मौसी के साथ रिश्ते को मैं ज़्यादा बड़ा मानती हूँ। माँ।’’

‘‘ठीक कहती है, देवयानी। तूने मेरे मन का भार हल्का कर दिया। चल हाथ-मुँह धोकर कुछ खाले।”

‘‘तुम्हारी पढ़ाई का क्या हाल है, माँ ? जानती हो एक साल बाद मैं पूरी डाक्टर बन जाऊँगी। मेरे साथ तुम्हें भी एम.ए. कर लेना है।

‘‘घबरा नहीं, तुझसे पीछे नहीं रहूँगी।’’ सहास्य कल्याणी ने कहा।

रोहित मेडिसिन की पढ़ाई पूरी कर, डॉक्टर बन चुका था। न जाने क्यों पिता के नर्सिंग होम में काम करने की जगह, वह अपने ही मेडिकल कॉलेज में रेसीडेंस की तरह जॉब करने लगा। देवयानी पूछ बैठी-

‘‘क्या बात है, रोहित, अपने पापा की शानदार नर्सिंग होम छोड़कर तुम यहाँ जॉब कर रहे हो ? कहीं अपने पापा से लड़ाई तो नहीं कर डाली, देवयानी ने परिहास किया।

‘‘सच कहूँ, तो इस कॉलेज में मुझे जो अनमोल रत्न मिला है, उसे छोड़कर स्वर्ग जाना भी संभव नहीं है, देवयानी। वैसे मैं क्या लड़ाका इंसान लगता हूँ, जो अपने पापा से भिड़ जाऊँगा। रोहित हँस रहा था।

‘‘अरे, इस जगह तुम्हें कोई रत्न मिल गया। कमाल की बात है, कहाँ है वो रत्न ?’’ देवयानी हँस रही थी।

‘‘वो रत्न तुम हो, देवयानी। कभी सोचा नहीं था यहाँ तुम जैसा हीरा मिल सकेगा।’’

क्या ? मुझ जैसी मामूली लड़की को तुम हीरा कह रहे हो, रोहित ?’’

‘‘तुम नहीं जानतीं, तुम क्या हो, देवयानी। सच्चाई तो ये है, मैं तुम्हें बेहद प्यार करता हूँ। लगता है, तुमसे एक पल अलग रहना भी भारी पड़ेगा। बस इसीलिए यहाँ जॉब ले लिया है। आई लव यू, देवयानी।’’

‘‘नहीं, रोहित। ऐसा मत कहो, हमें डर लगता है।’’ देवयानी जैसे घबरा-सी गईं

‘‘किससे डरती हो, देवयानी ? मुझसे या मेरे प्यार से ? सच कहो, क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करतीं, देवयानी ?’’ रोहित की सवालिया निगाहें, देवयानी के चेहरे पर गड़ी थीं।

‘‘हमे कुछ नहीं पता, रोहित। प्लीज़ ऐसी बातें मत करो हमारी ज़िंदगी का मकसद प्यार या शादी नहीं है।’’

‘‘तुम्हारा मकसद ही मेरा मक़सद होगा। तुम्हारे रास्ते में कभी बाधा नहीं बनूँगा, ये मेरा वादा है।’’ रोहित गंभीर था।

‘‘ऐसा नहीं हो सकता। अपनी वजह से तुम्हारी ज़िंदगी बर्बाद नहीं कर सकते, रोहित। तुम शानो-शौकत की दुनिया में पले-बढ़े हो। मैंने कांटों का रास्ता तय किया है। उस रास्ते पर तुम नहीं चल सकोगे, रोहित।

‘‘आज़मा कर देखो, देवयानी। तुम्हारे साथ कांटे भी फूल बन जाएँगे।’’

‘‘ये बातें सच नहीं होती, रोहित। जिंदगी की कड़वाहट प्यार-व्यार भुला देती है।’’

‘‘कुछ भी कहो, मैंने तय कर लोया है, तुम्हारे सिवा किसी और लड़की से न शादी करूँगा न प्यार। तुम्हीं मेरी जिंदगी की पहली और आखिरी लड़की हो और हमेशा रहोगी। सोचकर जवाब देना, देवयानी।’’ देवयानी को कुछ कहने का मौका दिए बिना, रोहित तेज़ कदमों से चला गया।

घर आई देवयानी को सोच में डूबा देख, कल्याणी ने प्यार से वजह जाननी चाही। बिना कुछ छिपाए देवयानी ने रोहित के प्रस्ताव के बारे में सब कुछ बता दिया। कल्याणी को अपना अतीत याद हो आया। अमर के प्रस्ताव को भी वह आसानी से कहाँ स्वीकार कर पाई थी। आज कल्याणी को साफ़ नज़र आ रहा था, रोहित और अमर में कितना साम्य है। शायद इसी वजह से रोहित के साथ देवयानी को घूमने-फिरने की छूट उसने दे रखी थी। अमर की तरह ही रोहित, देवयानी से सच्चा प्यार करता है। बेटी के माथे पर आई लटें प्यार से सहलाती कल्याणी ने कहा-

‘‘सच्चा प्यार किस्मत से ही मिलता है, देवयानी। अगर इस प्यार को ठुकरा दिया जाए तो शायद ज़िंदगी भर पछताना पड़ सकता है।’’

‘‘नहीं, माँ अभी मैं शादी या किसी भी दूसरे बंधन के लिए तैयार नहीं हूँ। इंटर्नशिप खत्म करके मैं पापा के गाँव जाऊँगी। पापा का अधूरा सपना मुझे ही पूरा करना है। अब आगे कभी इस बारे में बात मत करना।’’

बेटी के दृढ़ चेहरे को देख, कल्याणी की और कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं हुई।

कल्याणी का एम.ए. का रिज़ल्ट और देवयानी की एम.बी.बी.एस. की डिग्री एक साथ ही मिलीं। कल्याणी ने एम.ए. परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी और देवयानी ने पूरे कॉलेज मे टॉप किया था। देवयानी के प्रोफ़ेसर डा0 राघव ने कहा था-

‘‘मै चाहता हूँ तुम रिसर्च-वर्क करके, कोई नई खोज करो। तुम जैसी जहीन लड़की साधारण डॉक्टर भर बनकर रह जाए, ये ठीक बात नहीं है।’’

‘‘थैंक्स, सर। मेरी जरूरत एक ऐसे गाँव में है, जहाँ बरसों से मेरा इंतज़ार किया जा रहा है। मुझे माफ करें, पर मैं वचनबद्ध हूँ।’’
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: देवयानी

Post by Jemsbond »



घर पहुचने पर कल्याणी ने देवयानी को एक और खुशख़बरी दी। कल्याणी के कार्यालय में निर्देशक के रिक्त पद पर कल्याणी की नियुक्ति की गई थी। माँ का चमकंता चेहरा देख, देवयानी का मन संतोष से भर उठा-

‘‘ओह, माँ। आज तुमने पापा के सपने साकार कर दिए। अब तो जिंद़गी तुम्हारी मुट्ठी में है। मुझे तुम पर गर्व है, माँ।’’

‘‘गर्व तो मुझे भी अपनी बेटी पर है। मेरा सच्चा गौरव तो तू, मेरी बेटी देवयानी हैं’’

‘‘माँ, मैंने गाँव में चौधरी जी को चिट्ठी भेजी है। उन्हें लिखा है, मै गाँव पहुँच रही हूँ। हमारा घर ठीक करा दें।’’

‘‘तू क्या अकेली वहां रह सकेगी, देवयानी ? मैं भी तेरे साथ चलूँगी। मै यहाँ की नौकरी छोड़ दूँगी।’’

‘‘ना बाबा, ऐसा ग़जब मत करना। तुम्हारे चले जाने के बाद, तुम्हारे चेतना-केन्द्र का क्या होगा ? सुना है जल्दी ही गाँव में औरतें अपना बैंक खोलना चाह रही हैं।’’

‘‘हाँ, देवयानी। जब से पारो और ज़मीला चाची पंचायत में आई हैं, चेतना केंद्र’ दिन-ब-दिन तरक्की ही करता जा रहा है। पारो इस साल मेट्रिक की तैयारी कर रही है। चंदन की मदद से पारो अपने काम आसानी से पूरे कर लेती है।’’

‘‘चंदन बहुत समझदार युवक है। काश् गाँव के और पुरूष भी उसकी तरह समझदार होते।’’

‘‘वैसे गाँव के कई नौजवानों के सोच में बदलाव आया है। प्रधान जी का बेटा भी चेतना केंद्र की तरक्की में साथ दे रहा है।’’

‘‘ये तो अच्दी बात है, माँ। अब मुझे जाने की तैयारी करनी है।’’

‘‘समझ में नहीं आता, तेरे बिना कैसे जी सँकूगी?’’ कल्याणी उदास थी।

‘‘तुम अकेली कहाँ हो, माँ। यहाँ तो महिमा मौसी और चेतना का भरा-पुरा परिवार तुम्हारे साथ है। अकेले तो हम अपने बाबा के घर में थे।’’

‘‘उन बातों को भूल जा, देवयानी। गाँव में चौधरी काका की उम्र हो गई है, पर उनके साथ तेरे पापा को प्यार करने वाले और लोग तेरा ख़्याल रखेंगे, इसी बात का संतोष है।’’ कल्याणी ने गहरी साँस ली।

‘‘हाँ माँ, ठीक कह रही हो। चौधरी काका ही क्यों, गाँव में पापा को प्यार करने वाले कम तो नहीं हैं। जो पापा को प्यार करते थे, वो क्या उनकी बेटी को प्यार करेगे। मेरी सहेलियाँ भी तो गाँव में होगी। रमा काकी, सुगना बुआ सब हमें कितना प्यार करती थीं।’’ देवयानी पुरानी मीठी यादों में खो गई।

‘‘अरें, अपने गोपाल भइया को भूल ही गई। तुझे पीठ पर बैठाकर, गाँव भर का चक्कर लगाता था।’’

‘‘उन्हें कैसे भूल सकती हूँ। पापा के सबसे बुद्धिमान छात्र थे। अब न जाने वो कहाँ होंगे।’’

‘‘हाँ, देवयानी। गाँव छोड़े अरसा हो गया। न जाने कौन कहाँ होगा।’’

‘‘घबराओं नहीं, माँ। मै नए रिश्ते जल्दी ही कायम कर सकती हूँ।’’

‘‘और पुराने रिश्तों को तोड़ भी आसानी से देती हो। क्यों ठीक कहा न, देवयानी।’’ खुले दरवाज़े से अंदर आए रोहित ने कटु स्वर में कहा।

‘‘अरे, रोहित, तुम कब आए ?’’

‘‘तब ही, जब तुम नए रिश्ते कायम कर रही थीं।’’

‘‘सॉरी, रोहित। मेरा वो मतलब नहीं था।’’

‘‘तुम्हारा जो भी मतलब हो, मैं समझना नहीं चाहता। बस इतना बता दो नए रिश्ते बनाने कब जा रही हो। कम से कम तुम्हें जाते वक्त अपनी शुभकामनाएँ तो दे सकूं।’’

” चौधरी काका की चिट्ठी आते ही ख़बर करूंगी, रोहित और प्लीज़ इतने कड़वे मत बनो। हम अच्छे दोस्त थे और हमेशा अच्छे दोस्त बने रहेंगे।’’

‘‘इस कृपा के लिए एक बार फिर शुक्रिया। अब चलता हूँ।’’

अरे, बेटा, जब आए हो तो खाना खाकर जाओ’’ कल्याणी जैसे सोते से जागी।

‘‘नहीं, माँ, भूख नहीं है।’’ रोहित तेज़ी से चला गया। कल्याणी उदास हो गई।

‘‘देख रही है, देवयानी, तेरे जाने की बात सुनकर रोहित का मुँह कैसा सूख गया है। खिले-खिले चेहरे पर काली बदली छा गई है। तू शादी के बाद भी तो अपना काम कर सकती है?’’

‘‘ओह, माँ। फिर वही पुराना राग मत अलापो। जाते वक्त मेरा मूड तो मत ख़राब करो।’’

देवयानी गाँव जाने को तैयार थी। कल्याणी ने मंगल-तिलक लगाकर आशीर्वाद दिया। देवयानी के लाख मना करने के बावजूद रोहित उसे गाँव तक छोड़ने, अपनी कार ले आया था। रास्ते भर रोहित चुप बैठा, ड्राइव करता रहा। गाँव में प्रविष्ट होते ही देवयानी चहक उठी-

‘‘वो देखो रोहित, उस कुंएँ पर हम पापा के साथ पानी खींचकर, मुँह धोते थे। ये हैंड पंप पापा ने लगवाया था। इस खेत के गन्ने हम खुद उखाड़कर खाते थे। इस आम और सामने वाले अमरूद के फल तो हमने किसी और को खाने ही नहीं दिए।’’

बरसात की हरियाली चारों ओर बिखरी पड़ी थी। ठंडी-ठंडी हवा ने रोहित का मूड ठीक कर दिया। बच्चों-सी उत्साहित देवयानी की ओर देख, वह हल्के से मुस्करा दिया।

‘‘थैंक्स गॉड। तुम्हारे चेहरे पर हँसी तो आई।’’ देवयानी खुश थी।

अपने घर के सामने पहुँच देवयानी कुछ देर के लिए अपने को भूल-सी गई। जीवन के ग्यारह वर्ष उसने उसी घर में बिताए थे। आज भी दीवारों पर माँ के बनाए चित्र धूमिल होकर भी देवयानी की स्मृति में चमक रहे थे।

कार रूकते ही लाठी टेकते चौधरी काका के साथ पूरा गाँव उमड़ पड़ा। चौधरी काका के पाँव छूती देवयानी की आंखें भर आईं। सुगना बुआ, रमा, काकी, देवयानी को सीने से लगा, रो पड़ीं।

‘‘एकदम अपनी माँ जैसा रूप पाया है। हमारी कल्याणी को क्यों नहीं लाई, बिटिया?’’ आँचल से आंसू पोंछती रमा काकी ने पूछा।

‘‘माँ ठीक हैं। जल्दी ही आप सबसे मिलने आएगी। बुआ शन्नो, बसंती कैसी हैं?’’

‘‘अरे उन सबकी शादी हो गई। अपने-अपने घरमें खुश हैं। तुझसे मिलने आ रही होंगी। जमना चाची ने सूचना दी।

‘‘तेरे साथ तेरा दूल्हा है, देवयानी ?’’ सुगना बुआ ने धीमे से पूछा।

बुआ के धीमे से पूछे गए सवाल ने देवयानी के कान तक लाल कर दिए और रोहित के चेहरे पर शैतान मुस्कान तैर गई।

‘‘नहीं, बुआ। ये हमारे सीनियर डॉक्टर रोहित हैं।’’ दोनों के लिए हर घर से खाना आया था। सब उन्हें अपना भोजन खिलाने की कोशिश कर रहे थे।

रोहित उनके आतिथ्य से अभिभूत था। देवयानी के लिए घर में सभी ज़रूरी सामान की व्यवस्था कर दी गर्ह थी। पिता की मेज़-कुर्सी की मरम्मत कराकर नया-सा कर दिया गया था।

‘‘अमर बेटे ने हमें जो राह दिखाई, हमने उस पर अमल करने की कोशिश की है, बेटी। अब गाँव में बिजली-पानी की कोई कमी नहीं है। स्कूल में एक तुम्हारी उम्र की मास्टरनी आई है। बहुत अच्छी लड़की है।’’ गदगद कंठ से चैधरी ने कहा।

‘‘ये तो बहुत अच्छी बात है, काका। मैं जल्दी ही स्कूल जाकर टीचर से मिलूँगी।’’

रोहित के वापस जाते वक्त देवयानी अचानक उदास हो आई। लगा, कोई अपना अभिन्न उसे अकेला छोड़कर जा रहा है।

‘‘तुम आते रहोगे न, रोहित ?’’

‘‘तुम कहो तो हमेशा के लिए तुम्हारे साथ ही रह जाऊँ।’’ मुस्कराते रोहित ने कहा।

फिर वही बात ठीक है जाओ, पर माँ की खोज-खबर लेते रहना, प्लीज़।’’

‘‘ये भी क्या कहने की बात है ? वो मेरी भी तो माँ हैं’’ गंभीर रोहित ने कहा।’’

‘‘सॉरी गलती हो गई।‘‘

देवयानी ने अपने को काम में पूरी तरह डुबो लिया। सुबह से देर रात तक वह रोगी देखती। घरों में जाकर औरतों को सफ़ाई की शिक्षा देती। सब देवयानी को आशीष देते न थकते। अचानक एक दिन देवयानी के सामने उसकी सहेली सुष्मिता आ खड़ी हुई। देवयानी खुशी से लगभग चीख़ उठी……

‘‘सुषी तू यहाँ ?’’

‘‘हाँ, देवयानी। मैं यहाँ स्कूल में टीचर हूं।’’

‘‘ठीक कहा जाता है, दुनिया बहुत छोटी है। मैं तो तुझे खो ही चुकी थी। एक बात बता, तू इस गाँव में क्यों आई ?’’देवयानी विस्मित थी।

‘‘लम्बी कहानी है, देवयानी। इतवार को स्कूल बन्द रहेगा। घर आ जाना, वहीं बैठकर बातें करेंगे। हाँ, खाना मेरे साथ ही खाना।’’

‘‘ज़रूर, सुषी। अब तो इतवार का इंतजार कर पाना मुश्किल होगा। तुझे देखकर कितनी खुशी हो रही है, बता नहीं सकती।’’

‘‘ठीक है, मैं चलती हूँ, तू अपना काम कर।’’

इतवार को जल्दी से नहा-धोकर देवयानी सुष्मिता के घर पहुँच गई। सुष्मिता का घर स्कूल कम्पाउण्ड में ही था। खपरैल के दो कमरों वाले घर को सुष्मिता ने सादगी से सजा रखा था। देवयानी को वो घर बहुत अच्छा लगा। घर के काम करने के लिए एक हँसमुख लड़की कमली को देख, देवयानी को पारो याद आ गई।

चाय पीती देवयानी ने अपना सवाल फिर दोहराया, सुष्मिता इस गाँव में क्यों आई। बड़ी गंभीरता से सुष्मिता ने अपनी बात कही-

‘‘मेरे पिता की इस गाँव में डॉक्टर की तरह पहली पोस्टिंग थी। उनके घर एक आदिवासी लड़की महुआ, खाना बनाने आती थी। महुआ के भोलेपन पर पिता रीझ गए और अपनी सीमा तोड़ दोनों एक हो गए।’’

बात कहती सुष्मिता चुप हो गई।

‘‘फिर क्या हुआ, सुषी ? क्या तेरे पिता ने महुआ से शादी कर ली ?’’

‘‘अगर ऐसा होता तो अपने पिता पर मैं गर्व करती, पर वह तो कायर निकले। महुआ ने जब उनसे अपने माँ बनने की बात बताई तो पिताजी रातों-रात गाँव छोड़कर शहर चले गए।’’

‘‘ओह ! फिर महुआ का क्या हुआ, सुषी ?’’

‘‘महुआ पिताजी के घर के सामने बैठी, उनका इंतज़ार करती रही। उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया। विक्षिप्तावस्था में ही उसने एक बेटी को जन्म दिया। एक दिन महुआ मृत पाई गई और उसकी बच्ची गायब थी।’’

‘‘ये तो बड़ी करूण कहानी है, सुषी। तुझे ये सब किसने बताया ?’’ देवयानी उदास थी।

‘‘पिताजी की मृत्यु के बाद उनकी डायरी मिली। वो भी अपने कृत्य पर शर्मिन्दा थे। तू तो जानती है मेरा कोई भाई नहीं, पिता के अन्याय का प्रायश्चित तो मुझे ही करना है। इस गाँव की लड़कियों में महुआ की बेटी और अपनी बहिन को खोजती हूँ , देवयानी।’’ सुष्मिता का कंठ भर आया।

‘‘तू डॉक्टर बनकर भी तो यही कर सकती थी, सुषी। तेरे पापा तो तुझे डॉक्टर बनाना चाहते थे, न ?’’

‘‘हाँ, देवयानी। पिताजी को दंड तो नहीं दे सकती थी, पर उनकी इच्छा पूरी न कर, एक तरह से उन्हें दंडित ही तो किया है, देवयानी।’’
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Post Reply