देवयानी

Jemsbond
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Re: देवयानी

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’’देवयानी को स्कूल में दाखिल करा दीजिए। मैं घर का सारा काम करूँगी, जो कहेंगे, वैसा करूँगी। देवयानी का भविष्य बना दीजिए।’’ कल्याणी की आँखें भर आईं।

दूसरे दिन खाने की मेज़ पर कलमलकांत ने शशिकांत से कहा-

‘‘मेरे ख्याल में देवयानी को स्कूल भेजा जाना चाहिए। शशि तुम रितु के सकूल में देवयानी का भी नाम लिखा दो।’’

‘‘क्या-आ ? आप क्या कह रहे हैं, पापा ? रितु के स्कूल की फ़ीस कितरी भारी है, क्या आप जानते हैं ?’’

‘‘वाह! पापाजी, गाँव की लड़की को आप उतने बड़े अंग्रेजी स्कूल में भेजना चाहते हैं। वो भला वहाँ की लड़कियों के सामने सिर उठाकर बात कर पाएगी ? अगर पैसा फ़ालतू है तो कहीं दान कर दीजिए। रागिनी की आवाज़ का रोष छिपा नहीं था।

‘‘अरे इनकी तो उमर के साथ बुद्धि ही ख़त्म होती जा रही है। उस दिहातिन लड़की को मेम साहब बनाना चाहते हैं।’’ कमलकांत की पत्नी ने भी बेटे-बहू का साथ दिया।

‘‘अगर रितु के स्कूल में नहीं पढ़ सकती तो किसी दूसरे स्कूल में तो नाम लिखाया जा सकता है। आख़िर लड़की को अनपढ़ तो नहीं रखा जा सकता है।’’

‘‘ठीक है, पास ही में सरकारी स्कूल है। ड्राइवर से कह दूँगा, उसका नाम उसी स्कूल में लिखा दे।’’

पहले दिन स्कूल जाती देवयानी का चेहरा खुशी से चमक रहा था। स्कूल घर के पास ही था, इसलिए पैदल जाना आसान था। घर के दास-दासियों के पास देवयानी को पहुँचाने-लाने के लिए व्यर्थ का समय कहाँ था ? कल्याणी ने खुशी-खुशी ये दायित्व ले लिया। रागिनी ने ताना देकर कहा-

‘‘हां-हां, इसी बहाने कल्याणी बाहर की सैर कर आया करेगी।’’

स्कूल की बातें देवयानी पूरे उत्साह से सुनाती। उसकी टीचर महिमा दीदी बहुत अच्छी हैं। वो देवयानी को बहुत प्यार करती हैं। पहली ही परीक्षा में हर विषय में पूरे अंक लाकर देवयानी ने महिमा जी को विस्मित कर दिया।

‘‘तुम्हें घर में कौन पढ़ाता है, देवयानी ?’’

‘‘अब तो कोई नहीं पढ़ाता। जब तक पापा थे, वे मुझे ही नहीं, पूरे गाँव के बच्चों को पढ़ाया करते थे, दीदी।’’ गर्व से देवयानी ने बताया।

‘‘तुम्हारी माँ तुम्हें नहीं पढ़ाती, देवयानी ?’’

‘‘मां को घर के बहुत सारे काम करने पड़ते हैं, दीदी। उन्हें पढ़ाने का वक्त कहाँ से मिलेगा ?’’ देवयानी के चेहरे पर उदासी छा गई।

‘‘क्यों तुम्हारे घर के और लोग काम नहीं करते ?’’

नहीं, दीदी। घर के नौकर-ताई और दादी के कहने से काम करते हैं। माँ को सबका काम करना होता है। माँ की मदद कोई नहीं करता। देवयानी के उज्ज्वल मुँह पर उदासी की छाया तैर गई।

‘‘ऐसा क्यो, देवयानी ?‘‘

‘‘हमारे पापा जो नहीं हैं, दीदी।’’ देवयानी की गंभीरता से कही गई बात ने महिमा जी के दिल को छू लिया। ये नन्हीं बच्ची अपनी स्थिति से कैसे समझौता कर रही है। उस दिन के बाद से महिमा जी, देवयानी पर विशेष ध्यान देने लगीं। खाने की छुट्टी के वक्त देवयानी के डिब्बे में रूखी रोटी और शायद रात की बासी सब्ज़ी देख, महिमा जी, देवयानी की स्थिति पूरी तरह समझ गईं। देवयानी की मेंधा उन्हें विस्मित करती, एक बार बताई गई बात देवयानी के मस्तिष्क में कम्प्यूटर की तरह अंकित हो जाती।

आठवी की परीक्षा में देवयानी को हर विषय में पूरे अंक मिले थे। पहले नम्बर पर आई देवयानी ने, अपना रिपोर्ट-कार्ड, बाबा को बड़े उत्साह से दिखाया।

‘‘बाबा, हम पूरे क्लास में फ़र्स्ट आए हैं। महिमा दीदी कहती हैं, हमे कुछ बनके दिखाना हैं।’’

रिपोर्ट-कार्ड देखते, कमलकांत की आँखों में चमक आ गई। उनका अमर भी हमेशा पहले नम्बर पर आता था। चाय पीते कमलकांत जी ने सबको बताया-

‘‘देवयानी अपने क्लास में फ़र्स्ट आई है। उसे कुछ इनाम मिलना चाहिए।’’

‘‘क्यों नहीं, उस स्कूल में पढ़ने वालों में देवयानी की स्थिति अंधों में काने राजा वाली ही तो है। रितु के स्कूल में पढ़ती तो देखते।’’ व्यंग्य से रागिनी ने ओंठ टेढ़े किए।

‘‘अगर हम रितु दीदी के स्कूल में पढ़ते तो भी हम फ़र्स्ट आते,-ताई। हम हमेशा पहले नम्बर पर रहे हैं।’’ कुछ अभिमान और खुशी से देवयानी ने जवाब दिया।

‘‘हाय राम, ज़रा देखो तो बित्ते भर की छोकरी और गज़ भर की जुबांन। बड़ों से बात करने की तमीज़ नहीं है।’’ रागिनी का क्रोध फूट पड़ा।

‘‘अरे, सब माँ का सिखाया-पढ़ाया है। ऊपर से चुप रहती है, पर अंदर से पूरी घुन्नी है।’’ अमर की माँ ने हामी भरते हुए, कल्याणी के प्रति अपना आक्रोश जताया।

‘‘नहीं, माँ हमें कभी ग़लत बात नहीं सिखातीं।’’ देवयानी की आँखें छलछला आईं।

उस बहसा-बहसी में देवयानी के इनाम की बात वैसे ही आई-गई हो गईं उस दिन के बाद से देवयानी अपना पूरा ध्यान पढ़ाई में लगाने लगी। उसके पापा कहते, अगर मन में पढ़ने की इच्छा हो तो कहीं भी स्कूल लग सकता है। पापा जब भी दूसरे गांवों तक ऊँट पर जाया करते तो साथ जा रही देवयानी को भूगोल और गणित के पाठ पढ़ाया करते। न जाने कितनी कविताएँ तो उसने ऊंट की सवारी में ही याद की थीं। देवयानी ने जब ये बात रितु और रोहन को बताई, तो वे ठठाकर हँसे पड़े। भला ऊंट की पीठ पर भी सकूल लग सकता हैं ? देवयानी को चिढ़ाने के लिए अब उन्हें एक और बात मिल गई। अब उसका नया नाम ‘‘ऊँट वाली लड़की’’ पड़ गया। बिना प्रतिवाद किए, देवयानी ने सबसे अपने को काट लिया। अब पुस्तकें ही उसकी मित्र थीं। महिमा जी उसे नई-नई किताबें देतीं और देवयानी उन्हें पा, खिल जाती।

धीमे-धीमे, देवयानी के ज़रिए महिमा जी को देवयानी और उसकी माँ की वास्तविक स्थिति ज्ञात हो गई। देवयानी की बातों में उनका अपना अतीत झाँकता लगता। देवयानी की तरह कभी वे भी चाचा के आश्रय में रहने को बाध्य हुई थीं, पर देवयानी तो अपने पिता के घर में ही तिरस्कृत थी। महिमा जी की आँखों के सामने उनके अतीत के चित्र उभरते आ रहे थे।

पिता की आकस्मिक मृत्यु के बाद, आठवीं कक्षा पास माँ के सामने अपनी तीन बेटियों का पेट भरने की समस्या थी। चाचा को माँ और बेटियाँ फूटी आँखों न सुहातीं’’

‘‘मरने वाले खुद तो चले गए, अपना बोझा हमारे सिर छोड़ गए। चार-चार प्राणियों का पेट भरना क्या आसान बात है।’’ चाची मुहल्ले की औरतों के सामने अपना दुखड़ा रोतीं।

सच्ची बात तो महिमा को कुछ दिनों बाद समझ में आई। पिता की मृत्यु के बाद भोली माँ से ज़ायदाद के कागज़ों पर धोखे से दस्तखत करा, उन सबका हिस्सा चाचा ने हड़प लिया। दिन-रात काम करने के बाद भी बचे-खुचे खाने पर ही संतोष करना पड़ता। तीनों लड़कियाँ जल्दी ही अपनी स्थिति समझ गई थीं। माँ सेन्हों ने कभी कोई माँग नहीं की।

चाचा के घरन के पास समाज-सेविका शांता बहिन जी आसपास की लड़कियों को पढ़ाया करती थीं। एक दिन महिमा उनके पास पहुँच गई।

‘‘हम भी पढ़ना चाहते हैं, बहन जी।’’

‘‘वाह ! ये तो बड़ी अच्छी बात है। कुछ पढ़ना-लिखना जानती हो ?’’ बहन जी ने प्यार से पूछा

‘‘नवीं पास की थी, मैट्रिक की परीक्षा की तैयारी की थी, पर बाबूजी नहीं रहे।’’

‘‘कोई बात नहीं, इस साल तुम मैट्रिक की परीक्षा दे सकती हो?’’

‘‘कैसे, बहन जी। चाची हम बहनों को पढ़ाई की इजाज़त नहीं देंगी।’’

‘‘ये ज़िम्मेदारी मेरी है, मैं तुम्हारे चाचा-चाचा से बात कर लूँगी।’’

चाचा के घर आई, शांता बहन जी उन चारों की स्थिति देख द्रवित हो गईं। चाची को समझाया, लड़कियाँ पढ़-लिखकर चार पैसे कमा सकती हैं, वर्ना उन्हें पूरी ज़िंदगी ढोना होगा। बात चाची की समझ में आ गई। सुबह जल्दी उठकर तीनों बहनें घर के काम निबटा, शांता बहन जी के पास पढ़ने जाने लगीं। महिमा की माँ बहुत सुंदर कशीदाकारी और सिलाई जानती थीं। शांता बहन जी ने माँ को रात की कक्षा में पढ़ाना शुरू कर दिया।
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Re: देवयानी

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तकलीफ़ें उठाकर भी अन्ततः तीनों की मेहनत रंग लाई। महिमा ने बी.ए. परीक्षा पास कर ली और माँ ने मंट्रिक की परीक्षा पास करके, सिलाई-कढ़ाई में डिप्लोमा ले लिया। शांता बहन जी के सहयोग से माँ को एक सिलाई-स्कूल में नौकरी मिल गई। महिमा ने प्राइवेट स्कूल में नौकरी करते हुए टीचर्स ट्रेनिंग भी पूरी कर ली। माँ-बेटी दोनों की नौकरी के बाद शांता बहन जी ने उन्हें अलग घर लेकर रहने की सलाह दी थी। महिमा जी को याद है, वो दिन उन सबके लिए कितनी बड़ी खुशी का दिन था। माटी के गणेश जी की स्थापना कर उन्होंने नई जिंदगी की शुरूआत की थी। आज महिमा जी, उनकी माँ और बहनें, नौकरी करके आत्मसम्मानपूर्ण जीवन जी रही हैं। महिमा जी को महसूस हुआ उन्हें जो जीवन शांता बहन जी की मदद से मिला है, उनका फ़र्ज़ है, वैसा ही जीवन देवयानी और उसकी माँ का दिलाने में सहयोग दें।

दो दिन बाद घर की छुट्टी के बाद महिमा जी ने देवयानी से कहा-

‘‘देवयानी, आज मुझे अपने घर ले चलोगी ?‘‘

‘‘आप हमारे घर चलेंगी, दीदी ?‘‘ खुशी से देवयानी का मुह चमक उठा।‘‘

“हाँ, देवयानी। ले चलोगी अपने घर?‘‘

‘‘ज़रूर दीदी, पर हमारा कमरा बहुत छोटा है। हम बस दो ही लोग हैं, न…….।‘‘ तुरन्त अपने छोटे कमरे के लिए देवयानी ने सफ़ाई दे डाली।

देवयानी के साथ कल्याणी के पास पहुँच महिमा जी ने, कल्याणी को चौंका दिया।

‘‘अरे, आप यहाँ ?‘‘ कल्याणी हड़बड़ा-सी गई।

‘‘क्यों, क्या एक बहन अपनी दूसरी बहन के घर नहीं आ सकती ?‘‘ सहास्य महिमा जी ने कहा।

‘‘नहीं-नहीं, ऐसी बात नहीं है। मुझे अपनी बहन कहकर आपने मेरी ज़िंदगी की एक बहुत बड़ी कमी पूरी कर दी।‘‘ कल्याणी की आँखों में आँसू झिलमिला उठे।

‘‘ठीक है, तो आज से हमारा रिश्ता पक्का हुआ। हम दोनों बहनें हैं, और देवयानी, मैं तुम्हारी मौसी हूँ। अब तुम मुझे दीदी नहीं, मौसी कहोगी, समझीं।‘‘

‘‘समझ गई, मौसी।‘‘ मुस्कराती देवयानी ने सबको हँसा दिया। महिमा जी ने कमरे में दृष्टि डाली तो एक अल्मारी में समाज-शास्त्र, हिन्दी आदि की किताबें देखकर पूछ बैठीं –

‘‘ये किताबें क्या देवयानी के पापा की हैं?‘‘

‘‘नहीं, वो चाहते थे, हम बी.ए. करके अपने पाँवों पर खड़े होने लायक बन सकें। ये सब हमारी किताबें हैं।‘‘

‘‘वाह ! मतलब तुमने बी.ए. की पढ़ाई की तैयारी की थी ?‘‘

‘‘हाँ, पर बीच में देवयानी के जन्म के बाद मेरा स्वास्थ्य इतना ख़राब हो गया कि परीक्षा नहीं दे सकी। उसके बाद तो वो खुद ही चले गए।‘‘ कल्याणी का स्वर भीग गया।

‘‘अमर जी की इच्छा पूरी करना क्या तुम्हारा फ़र्ज़ नहीं बनता है, कल्याणी ?‘‘

‘‘मतलब ? मैं समझी नहीं, महिमा।‘‘

अमर जी तुम्हें आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे और तुम पराश्रयी जीवन जी रही हो। क्या ये जीवन, उनकी इच्छा का अपमान नहीं है ?‘‘

‘‘मैं क्या कर सकती हूँ ? मेरी स्थिति बहू की नहीं, एक आश्रिता की है, महिमा।‘‘

‘‘तो अपनी इस स्थिति को सुधारो, कल्याणी। तुम्हें भी सम्मानपूर्ण जीवन जीने का अधिकार है।‘‘

‘‘मैं क्या करूँ, महिमा ?‘‘ कल्याणी का स्वर करूण था।

‘‘इन किताबों पर जमी धूल झाड़कर भूले हुए पाठ दोहराओ, कल्याणी। अगले वर्ष तुम्हें बी.ए. की परीक्षा देनी है।‘‘

‘‘सच, मौसी ? क्या माँ भी पढ़ेगी ?‘‘ देवयानी ताली बजाकर हँस पड़ी।

कल्याणी की आँखों के सामने एक नई दुनिया की तस्वीर खोलकर, महिमा जी चली गईं। कल्याणी के साथ देवयानी ने अल्मारी से पुस्तकें उतार, मेज़ पर सजा दीं। पुस्तकों कें पृष्ठों के बीच अमर का मुस्कराता चेहरा साकार था। अमर कहता –

‘‘पढ़ाई पूरी करके तुम्हें गाँव की स्त्रियों को सही अर्थों में शिक्षित करना है, कल्याणी, तभी तुम मेरी सच्ची जीवन-संगिनी बन सकोगी।‘‘

‘‘अच्छा जी, क्या अभी हम आपकी सही जीवन संगिनी नहीं है ?‘‘ मान भरे स्वर में कल्याणी कहती।

‘‘तुम मेरी जीवन-संगिनी नहीं, मेरा जीवन हो, कल्याणी।‘‘ अमर की प्यार भरी दृष्टि कल्याणी को सराबोर कर जाती।

सारे काम निबटाने के बाद देर रात तक कल्याणी किताबों में सिर झुकाए, पाठ दोहराती रहती। पुस्तकें खोलते ही जैसे अमर उसके पास आ बैठता। अब समस्या परीक्षा देने की थी। महिमा जी ने कमलकांत जी से विनम्र निवेदन किया-

‘‘अमर जी अपनी पत्नी को आत्म निर्भर बनाना चाहते थे। उसके लिए किताबें खरीदी थीं। बेटे की इच्छा पूरी करके आप उनकी आत्मा को शांति पहुँचा सकते हैं, पापा जी।‘‘

‘‘हमारे घर की बहू बाहर कॉलेज पढ़ने नहीं जा सकती।‘‘ रूखे स्वर में कमलकांत ने फ़ैसला दे दिया।

‘‘कल्याणी कॉलेज नहीं जाएगी, घर में ही पढ़ाई करेगी। मैं उसकी मदद करूँगी, आप बस परीक्षा देने की इजाज़त दे दीजिए।‘‘

‘‘मैं सोचकर जवाब दूंगा।‘‘

दो दिन कल्याणी ने बेचैनी में काटे। न जाने श्वसुर का क्या फै़सला होगा। अचानक देवयानी ने कमलकांत को चौंका दिया।

‘‘बाबा, अगर आप माँ का परीक्षा नहीं देने देंगे तो पापा आपसे नाराज़ हो जाएँगे। आप पापा की बात नहीं मानेंगे, बाबा ?‘‘

देवयानी की बात ने जैसे उन्हें निर्णय तक पहुँचा दिया –

‘‘ठीक है, तुम्हारी माँ परीक्षा दे सकती है, पर तुम्हें भी मेरी एक बात माननी होगी।

‘‘कौन-सी बात, बाबा ?‘‘

‘‘हमेशा फ़र्स्ट आती रहोगी, वर्ना तुम्हारे बाबा नाराज़ हो जाएँगे।‘‘ अचानक देवयानी के लिए उनके मन में ममता उमड़ आई।

‘‘थैंक्यू, बाबा। आप बहुत अच्छे हैं।‘‘ माँ को खुशख़बरी सुनाने, देवयानी चिड़िया-सी उड़ गई।

कल्याणी बी.ए. की परीक्षा देने के लिए जी-ज़ान से जुट गई। देवयानी ने नवीं कक्षा सर्वोच्च अंकों के साथ उत्तीर्ण की थी। अब मेट्रिक की पढ़ाई के लिए उसे तैयारी करनी थी। बाबा को दिखाना है, देवयानी हमेशा फ़र्स्ट आएगी।

वक्त गुज़रता गया। कल्याणी ने बी.ए. की और देवयानी ने मेट्रिक की परीक्षा दे दी। दोनों उत्सुकता से परीक्षा-परिणामों की प्रतीक्षा कर रही थीं। अन्ततः परिणाम आ ही गए। देवयानी को पूरे ज़िले में दूसरी पोज़ीशन मिली थी, सभी विषयों में डिस्टींकशन पाकर, उसने महिमा जी तक को विस्मित कर दिया। कल्याणी का परीक्षा-परिणम तो और भ चौंकाने वाला था। उसे बी.ए. में प्रथम श्रेणी मिली थी और समाज-शास्त्र में सर्वोच्च अंक थे।

महिमा जी ने कल्याणी को बधाई देकर कहा, ‘‘अब तुम्हें अपनी राह खोजनी है, कल्याणी। ग्रेज्युएशन के बाद कोई नौकरी मिल सकती है।‘‘ कल्याणी ने चुपचाप अख़बार में नौकरी के विज्ञापन देखने शुरू कर दिए। अमर के शब्दों में उसे अब शक्ति संपन्न नारी बनना था। अचानक एक दिन महिमा जी एक विज्ञापन के साथ आ पहुँची। विज्ञापन में एक स्थानीय कार्यालय में सहायक समाज-कल्याण अधिकारी पद के लिए महिला उम्मीदवारों से आवेदन माँग गए थे। प्रत्याशी के पास बी.ए. में समाज-कल्याण एक विषय होना आवश्यक था। महिमा जी की सलाह पर कल्याणी ने आवेदन दे दिया। कल्याणी को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया तो वह असमंजस में पड़ गई। पढ़ाई करने तक की बात तो मान ली गई, पर क्या उसे नौकरी करने जाने की इजाज़त मिल सकेगी ?

माँ की दुविधा, देवयानी ने दूर कर दी-

‘‘पापा के सपने सच करने के लिए तुमने जो कदम बढ़ाया है, माँ, उसे अब मत रोको। चुनौतियों का सामना करने के लिए साहस जुटाना ही होगा।‘‘

ग्यारहवीं में पढ़ रही अपनी बेटी को कल्याणी जैसे पहचान नहीं पा रही थी। वो तेजस्विनी, क्या कल की नन्हीं बालिका देवयानी थी ?

अन्ततः कल्याणी ने साक्षात्कार देने जाने का निर्णय ले ही लिया। साक्षात्कार में कल्याणी की सादगी, सच्चाई और प्रतिभा ने इंटरव्यू बोर्ड के लोगों को बहुत प्रभावित किया। कल्याणी का चयन हो गया। कल्याणी को बधाई देकर महिमा जी ने कहा –

‘‘इस पद पर कार्य करते हुए शोषित स्त्रियों का कल्याण कर सको, यही मेरी कामना है।‘‘

‘‘ठीक कहती हो, मौसी, पर सबसे पहले तो माँ को अपने को शोषण-मुक्त कराना होगा। देखना है, माँ की नौकरी की बात लेकर आने वाले भूचाल का, माँ कैसे सामना करती है।‘‘ सहास्य कही देवयानी की बात में सच्चाई थी।

कल्याणी की नौकरी की बात को लेकर घर में शोर मच गया। शशिकांत ने सारा दोष कमलकांत पर डाल दिया –

‘‘ये सब पापा का किया-धरा है। बड़ा शौक़ था, बहू पढ़ेगी। दुनिया वाले तो हमें ही भला-बुरा कहेंगे, भाई नहीं रहा तो उसकी बीवी को दो वक्त की रोटी भी नहीं खिला सके।‘‘

‘‘हमारे खांदान की बहू, बाहर नौकरी करने जाए ये तो नाक कटाने वाली बात हुई। हम तो किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रह जाएँगे।‘‘ सास ने बेटे की बात का समर्थन किया।

‘‘रहने दो, दादी। माँ को इस घर में बहू का दर्ज़ा ही कब दिया गया है ? सच तो ये है, माँ के साथ जैसा बर्ताव किया जाता रहा है, खांदान की नाक तो उसके लिए नीची होनी चाहिए थी।‘‘ देवयानी का गोरा चेहरा उत्तेजना से लाल पड़ गया।

‘‘एहसानफ़रामोश लड़की, अगर हमने रोटी न दी होती तो भूखी मरती।‘‘ शशिकांत क्रोध से हाँफ़ उठे।
‘‘रोटी दी तो कौन-सा एहसान किया, ताऊजी। मेरा भी इस घर पर उतना ही हक है, जितना रितु और रोहन का है।‘‘

‘‘अच्छा, मुझसे हक की बात करती है। अभी तेरी औक़ात बताता हूँ।‘‘ शशिकांत के देवयानी को थप्पड़ मारने को उठे हाथ को, देवयानी ने दृढ़ता से पकड़कर रोक लिया।

‘‘नहीं, अब और अन्याय नहीं सहेंगे।‘‘

कल्याणी डर गई। उसकी बेटी पूरे खांदान से टक्कर ले रही है हाथ जोड़कर माफ़ी माँग बैठी-

‘‘इसे माफ़ कर दीजिए, भाई साहब। ये अभी नादान है। ग़लती हो गई।‘‘

‘‘नहीं, मां। मैने कोई ग़लती नहीं की और तुम किनके आगे हाथ जोड़ रही हो? याद है, पापा कहते थे, अन्याय करने वाला और अन्याय सहने वाला, दोनों अपराधी होते हैं।‘‘

‘‘वाह री छोकरी। माँ को चार पैसे की नौकरी क्या मिल गई, बड़ी-बड़ी बातें बना रही है। इतने दिनों तक क्यों चुपचाप अन्याय सहती रही ? रागिनी ताई ने हाथ नचाकर कहा।

‘‘ठीक कहती हो, ताई। ज्वालामुखी का उदगार तभी होता है, जब उसके गर्भ में लावा उबलने लगता है। अब मेरे अंतर में भी आक्रोश उबल रहा है।‘‘

देवयानी के दृढ़ शब्दों ने सबको चौंका दिया। अमर की माँ को लगा, जैसे देवयानी में उनका अमर ही बोल रहा था। जब कभी दोनों भाइयों में लड़ाई होती तो अपनी बात की सच्चाईं बताते अमर का चेहरा भी तो बिल्कुल ऐसा ही लाल हो जाता था। उस वक्त उनके मन में देवयानी के लिए ममता का ज्वार-सा उमड़ आया। ये उनके अमर की वही बेटी थी, जिसे उन्होंने न कभी प्यार से चिपटाया न बात की। कल्याणी के प्रति आक्रोश की वजह से उसकी बेटी भी दुश्मन ही लगती रही। नहीं-नहीं, देवयानी से उनका कोईं रिश्ता नहीं, वो कल्याणी की बेटी है। अपनी ममता को झटक, वो वहाँ से चली गईं।

शशिकांत ने अपना फ़ैसला सुना दिया- ‘‘अगर कल्याणी को नौकरी करनी है तो खुशी से करे, पर उस स्थिति में कल्याणी और देवयानी को उस घर में रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती।‘‘

सौभाग्यवश कल्याणी को कार्यालय की ओर से दो कमरों वाला घर दिया गया था। देवयानी के उत्साह ने घर छोड़ने के डर को, दूर कर दिया। कल्याणी का घर शहर के कोलाहल से दूर था। चारों ओर शाल और महुआ के पेड़ों की हरियाली थी। नया घर पाकर देवयानी को जैसे नईं ज़िंदगी मिल गईं। छोटे से बंद कमरे की जगह खुला घर और हरा-भरा परिवेश उसे गाँव के घर की याद दिला जाता।
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Re: देवयानी

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घर के पीछे वाला महुआ, रात भर रोता और सुबह होते ही पास के गाँव की लड़कियाँ महुआ बटोरने आ जातीं। महुए की मीठी खुशबू वातावरण को मिठास से भर देती। उन्हीं लड़कियों में से एक लड़की पारो थी। अचानक एक सुबह कल्याणी के सामने आ खड़ी हुई।

‘‘घर में काम कराने का है, दीदी ?‘‘

‘‘कैसा काम करेगी, नाम क्या है, तेरा ?‘ कल्याणी ने हँस कर पूछा।

‘‘पारो, जो काम दोगी, करेंगे।‘‘

‘‘पगार क्या लेगी, पारो ?‘‘

‘‘पगार का क्या है, दीदी ? जो भी पैसा होगा, बापू छीनकर दारू पी जाएगा।‘‘ पारो हँस दी।

‘‘क्यों, मेहनत तुम करो और पैसा बापू छीन ले। अपनी मेहनत की कमाई पर तुम्हारा हक़ है, पारो।‘‘ देवयानी उत्तेजित हो उठी।

‘‘छोटी बीबी, ये तो गाँव के घर-घर की कहानी है। औरत कमाई करती है और उसका मरद दारू पीकर मस्ती करता है।‘‘ पारो उदास हो आई।

‘‘तुम्हारा मरद भी ऐसा ही करेगा, पारो ?‘‘ देवयानी ने ताज़्जुब से पूछा।

‘‘नहीं-नहीं, चंदन ऐसा नहीं है। वो स्कूल में पढ़ता था। अब ठेकेदार के साथ काम करता है।‘‘ पारो के चेहरे पर लजीली मुस्कान आ गई।

‘‘चंदन तेरा आदमी है, पारो ?‘‘ कल्याणी ने पूछा।

‘‘अभी हमारी शादी नहीं हुई है, पर चंदन कहता है, वो बस हमसे ही शादी कारेगा।‘‘ पारो हँस रही थी।

‘‘ठीक है, तू घर के कामकाज में हमारी मदद करेगी, पर अपनी पगार अपने पास ही रखेगी।‘‘ देवयानी ने चेतावनी दी।

दूसरे दिन से पारो काम पर आने लगी। घर में झाड़ू-बुहारू, बर्तन-बासन साफ़ करके भी उसके पास काफ़ी वक्त गाँव की कहानियाँ सुनाने के लिए बच जाता। पारो की बातों से गाँव की स्त्रियों की दुखद स्थिति स्पष्ट हो जाती। कल्याणी को लगता, काश् वह उनके लिए कुछ कर पाती।

बारहवीं कक्षा में देवयानी के साथ एक नई लड़की सुष्मिता ने प्रवेश लिया। सुष्मिता की सादगी और गांभीर्य ने देवयानी को आकृष्ट किया। जल्दी ही दोनों अच्छी सहेलियाँ बन गईं। दोनों के जीवन में भी बहुत समानता थी। दोनों के पिताओं का जीवन गाँव में बीता था। सुष्मिता के पिता गाँव म डॉक्टर थे। दोनों के पिता अपनी बेटियों को डॉक्टर बनाना चाहते थे। अब घर आकर देवयानी अक्सर सुष्मिता की ही बातें करती। सुष्मिता जब पाँच वर्ष की थी, उसकी माँ की मृत्यु हो गई। कल्याणी के साथ उसे माँ की कभी पूरी होती लगती।

वक्त पंख लगाकर उड़ जाता है, कहावत सच लगती है। देवयानी ने बारहवीं की परीक्षा देकर मेडिकल एंट्रैंस-परीक्षा दे दी। न जाने क्यों सुष्मिता ने डाक्टर बनने का ख़्याल, अचानक छोड़ दिया। देवयानी के लाख पूछने पर उसका एक ही जवाब था-

‘‘मैं टीचर बनना चाहती हूँ, देवयानी। टीचर बनकर गाँव की लड़कियों को सही दिशा दूँगी।‘‘

‘‘डाॅक्टर बनकर भी तो तू वही काम कर सकती है, सुबी ?‘‘

‘‘नहीं, देवयानी, मेरे अपने कारण हैं। मैं अपना निर्णय नहीं बदल सकती।‘‘ हढ़ता से ओंठ भींच सुष्मिता ने कुछ और कहने का मौक़ा ही नहीं दिया।

बारहवीं की परीक्षा में भी देवयानी को सभी विषयों में डिस्टींक्शन के साथ सरकार की योग्यता छात्रवृत्ति भी मिल गई। मेडिकल एंट्रैंस परीक्षा का परिणाम और भी ज़्यादा उत्साहजनक था। माँ की सुविधा को ध्यान में रखकर देवयानी ने उसी शहर के मेडिकल कॉलेज में प्रवेश ले लिया।

हल्के गुलाबी रंग के सलवार सूट में कॉलेज पहुँची देवयानी की सादगी में अनोखा सौंदर्य था। चेहरे पर चमकता आत्मविश्वास और बुद्धि का तेज़ उसे अपूर्वा बना जाता था। सीनियर बैच रैगिंग कर रहा था। देवयानी को भी रोक लिया गया-

‘‘अपना नाम बताइए, मोहतरमा ?‘‘

‘‘देवयानी।‘‘

‘‘वाह भई, क्या दक़ियानूसी नाम छाँट कर रखा है। आपका नाम तो कामायनी होना चाहिए था। साक्षात् काम की प्रतिमा हैं।‘‘ सीनियर छात्र रोहित ने रिमार्क कसा।

‘‘जिन्हें भारतीय संस्कृति से प्यार है, उन्हें देवयानी नाम का अर्थ ठीक समझ में आ सकता है। ये नाम मेरे पापा ने दिया है और किसी भी कीमत पर इस नाम का उपहास, मुझे पसंद नहीं।‘‘ गंभीरता से देवयानी ने कहा।

‘‘अरे रे रे, ग़लती हो गई। आपके पापा हमें कड़ी सज़ा वो नहीं देंगे।‘‘ व्यंग्य से मोहनीश ने दयनीय मुँह बनाया।

‘‘पापा किसी को सज़ा कैसे दे सकते हैं, तो बहुत पहले ही इस दुनिया से जा चुके हैं। वैसे भी मेरे पिता सज़ा में नहीं, क्षमा में विश्वास रखते थे। ‘‘ देवयानी का चेहरा उदास हो आया।

‘‘सॉरी। आपका दिल दुखाने का हमारा कतई इरादा नहीं था, देवयानी।‘‘ रोहित ने सच्चे दिल से क्षमा माँगी।

‘‘आपकी गंभीरता देखकर लगता है, आप हम जैसों-सी मस्त मौला नहीं, पढ़ाकू टाइप लड़की दिखती हैं। क्यों ठीक समझा न ? बाई दि वे टवेल्थ में कितने परसेंट मार्क्स मिले थे ?‘‘ मोहनीश ने माहौल हल्का करना चाहा।

‘‘ नानटी सिक्स परसेंट (96%) अंक मिले थे।‘‘ शांति से देवयानी ने जवाब दिया।

‘‘ओह माई गॉड। यानी कि आपने ही टॉप किया होगा ?‘‘ रोहित विस्मित था।

‘‘जी नहीं, मेरी तीसरी पोजीशन थी।‘‘

‘‘यार। आजकल नम्बर मुफ़्त में लुटाए जाते हैं, ख़ासकर लड़कियों पर एक्जा़मिनर्स ज़्यादा मेहरबान होते हैं, तेरा क्या ख़्याल है, रोहित ?‘‘

‘‘माफ़ कीजिए। कॉपी पर नाम नहीं रोल नम्बर लिखे जाते हैं।‘‘ देवयानी मुस्करा रही थी।

‘‘चलिए, आप हँसी तो। वैसे देवयानी जी पाश्चात्य संगीत के बारे में आपके क्या विचार हैं ? अगर एक पॉप साँग गा दें तो आपकी रैगिंग ख़त्म।‘‘ रोहित ने वादा किया।

सधे मीठे गले से देवयानी ने एक पाश्चात्य गीत गाकर सबको मुग्ध कर लिया। गीत समाप्त होने के बाद कुछ पलों को सन्नाटा रहा फिर समवेत तालियों ने देवयानी का अभिनंदन-सा किया।

‘‘थ्री चियर्स फ़ॉर मिज़ देवयानी‘‘

‘‘हिप-हिप हुर्रे।‘‘

‘‘आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई। उम्मीद है, हम अच्छे मित्र बन सकेंगे।‘‘ रोहित के बढ़े हाथ के उत्तर में देवयानी ने हाथ जोड़ दिए।

घर लौटी देवयानी ने माँ को अपनी रैगिंग की कहानी सुनाई। कल्याणी देवयानी के उत्साहित प्रसन्न मुख को देखकर खुश हो गई।

‘‘आज तेरे चेहरे पर तेरी सफलता की कहानी पढ़ पा रही हूँ, देवयानी। तेरे पापा का सपना ज़रूर सच होगा। तू एक नामी डॉक्टर बनेगी।‘‘

‘‘नामी नहीं, एक अच्छी डॉक्टर बनना चाहूँगी। पापा का गाँव मेरा कर्म-क्षेत्र होगा, माँ।‘‘

‘‘तेरे पापा की इच्छा थी, मै गाँव की औरतों को सही दिशा दूँ। एक योजना मेरे दिमाग़ में आई है।‘‘

‘‘वाह, माँ अब तो जल्दी से अपनी योजना बता डालो।‘‘ देवयानी खुश थी।

‘‘देख, हमारे ऑफ़िस में ग्रामीण स्त्रियों के विकास के लिए फंड आया है। मैं सोच रही हूँ, पारो के गाँव की औरतों के विकास के लिए ऐसी योजना तैयार करूँ जिसके द्वारा उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा सके।‘‘

‘‘ये तो बड़ी अच्छी बात होगी, माँ। मुझे पूरा विश्वास है, तुम्हारी योजना सफल होगी।‘‘

कल्याणी ने महिमा जी के साथ भी अपनी योजना की चर्चा की। महिमा जी ने कल्याणी को योजना में समर्थन देने का विश्वास दिलाया। योजना बनाने के पहले औरतों की स्थिति और उनकी ज़रूरतें जानना ज़रूरी था। कल्याणी और महिमा जी ने गाँव जाकर सर्वे करने का निश्चय किया।

पारो ने गाँव की औरतों को इकट्ठा कर रखा था। कल्याणी ने औरतों से बात करनी शुरू की, उनसे कहा, उन सबके पास कोई न कोई हुनर है। अपने इसी हुनर के ज़रिए वे पैसे कमा सकती हैं। अपने बच्चों को अच्छा खिला-पिला सकती हैं, उन्हें पढ़ा सकती हैं। शरबती ने उठकर कहा-

‘‘ये बातें सुनने में अच्छी लगती हैं, पर गाँव की अनपढ़ औरतों के हुनर की कौन कदर करेगा, दीदी?‘‘

‘‘ऐसी बात नहीं है, शरबती। आजकल गाँव की बनी चीज़ो की तो बाहर के देशों तक में माँग है।‘‘ महिमा जी ने समझाया।

‘‘हमे घर के काम निबटाने होते हैं। चूल्हा जलाने को सूखी लकड़ी पत्ते बटोरने होते हैं। कामकाज सीखने का बखत कहाँ से मिलेगा।‘‘ शीलो ने समस्या बताई।

‘‘देखो शीलो, जहाँ चाह-वहाँ राह। अगर ठीक से सोचकर काम किया जाए तो हर काम के लिए वक्त निकाला जा सकता है।‘‘ कल्याणी ने कहा।

‘‘आप की बात और है, दीदी। हम दिहात की औरतों की बात अलग है।‘‘ कजरी ने गहरी साँस ली।

‘‘नहीं, कजरी। हममें और तुममें बस एक फ़र्क है। हमने शिक्षा पाई है। हम सही-ग़लत समझ सकते हैं। अगर तुम भी पढ़ाई करो तो तुम भी अपना भला-बुरा समझ सकती हो।‘‘ कल्याणी ने कहा !

“अरे अब क्या हमारी पढने की उमर है? यह तो वही बात हुई बूढी घोड़ी लाल लागाम्।” जमीला चाची ने कहा।

‘‘अरे वाह ज़मीला चाची, तुम तो कहावत बोल रही हो। वैसे सच बात ये है, पढ़ने की कोई उमर नहीं होती। हमारी अम्मा ने तुम्हारी उमर में पढ़ाई पूरी करके नौकरी की और हम तीन बहनों को पढ़ाया।‘‘ महिमा जी ने अपनी कहानी दोहराई।

‘‘सच। क्या हम पढ़ सकते हैं ?‘‘ ज़मीला के चेहरे पर विस्मय था।

‘‘ज़रूर पढ़ सकती हो, चाची, पर गले में लाल लगाम डालनी होगी।‘‘ पारो ने ज़मीला को चिढ़ाया।

‘‘ठहर तो लड़की। आज चंदन से कहेंगे तेरे गले में लाल चूनर डाल, जल्दी से ले जा। बहुत पर निकल आए हैं, छोकरी के।‘‘

‘‘अरे चाची, ये बात जल्दी कह दो, हमारा तो भला ही होगा।‘‘ पारो खुलकर हंस दी।
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Re: देवयानी

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‘‘देख रही हैं, दीदी। पारो कैसी बेशरम हो गई है। अपनी शादी की बात खुद कर रही है।‘‘ शीलो भी हँस रही थी।

‘‘अरे से सब चंदन की सोहबत का असर है। वो पढ़ा-लिखा, नए ज़माने का लड़का जो ठहरा। वो तो पारो को भी पढ़ाता है।‘‘ शरबती ने जानकारी दी।

औरतों में हास-परिहास चल रहा था कि सामने से कमीज़-पैंट पहने एक युवक आ पहुँचा। उसे देखते ही पारो का चेहरा खिल उठा। ज़मीला ने उसे आड़े हाथों ले लिया-

‘‘क्यों रे, चंदन। काम-काज छोड़कर, होने वाली बहुरिया के पीछे दौड़ा आया है। सुन ले, पारो की लगाम कस कर बाँधे रखना वर्ना ये घोड़ी न जाने कौन राह जाए।‘‘

‘‘अरे चाची, तुम्हारे रहते भला पारो ग़लत राह जा सकती है। पारो ने बताया था, औरतों से बात करने दो दीदी आ रही हैं, सो उनसे मिलने चला आया।‘‘ मुस्कराते चंदन ने कहा।

‘‘हाँ, चंदन। हम गाँव की औरतों की तरक्की के लिए पढ़ाई के साथ कुछ काम शुरू कराना चाहते हैं। इन कामों के लिए उन्हें ट्रेनिंग दी जाएगी।

‘‘वाह ! ये तो बड़ी अच्छी बात है। सबसे पहले तो पारो को अपनी शिष्या बना लीजिए। इसे पढ़ा-लिखाकर कुछ अक्ल दे दीजिए।‘‘ पारो की ओर कनखियों से देख, चंदन मुस्करा दिया।

‘‘अच्छा जी, क्या हम बेअकल हैं? जाओ, हम तुमसे बात नहीं करेंगे।‘‘ पारो ने मान दिखाया।

‘‘नहीं, पारो, तुम तो बुद्धिमान लड़की हो। तुम्हारी मदद से ही तो गाँव में काम शुरू कर पाएंगे।‘‘ कल्याणी ने पारो को प्यार से देखकर कहा।

‘‘दीदी, आप हम लोगों को कौन-से काम कराएँगी ?‘‘ अब तक चुप बैठी युवती बन्तो ने पूछा।

‘‘देखो तुममें से बहुत-सी औरतें घर में सूत कातती हैं, चटाई, मूढ़े बनाती हैं, सिलाई-कढ़ाई करती हैं। अगर इन कामों को और ज़्यादा सुंदर ढ़ंग से किया जाए तो शहरों के बाज़ारों में बेचने से काफ़ी पैसा मिल सकता है।‘‘ कल्याणी ने बताया।

‘‘इतना ही नहीं, अचार-चटनी, पापड़, बड़ी-मुंगौरी जैसी चीज़ो की भी शहर में खूब माँग रहती है। घर जैसी चीज़ें सभी पसंद करते हैं।‘‘ महिमा जी ने प्यार से समझाया।

‘‘तुम जो सूत बुनती हो उससे हथकरधे पर कपड़ा बुनना सीख सकती हो।‘‘ चंदन ने भी जानकारी दी।

‘‘दीदी, आप हमें जो सपने दिखा रही हैं, वो सच कैसे होंगे ? हमारे मरदों को तो बस दारू चाहिए। हम कमाएँगे वो उड़ाएँगे।‘‘ शीलो ने दुख से कहा।

‘‘हाँ, दीदी। अगर हम पढ़ना चाहें तो भी नाराज़ होते हैं। मरदों को लगता है, अगर हम पढ़ गए तो उनकी बात नहीं सुनेंगे।‘‘ नादिरा ने कहा।

‘‘ठीक है, हम गाँव के मरदों से बात करेंगे। एक बात कहना चाहूँगी, सही बात सुनना ठीक बात है, पर डर के कारण ग़लत बात के लिए दबना ठीक बात नहीं है।‘‘ कल्याणी ने दृढ़ता से कहा।

‘‘देखो, औरतों में बहुत ताकत होती है। अपनी ताकत पहचानना ज़रूरी है। जानती हो आंध्र प्रदेश में गाँव की औरतों ने एक जुट होकर अपने मरदों की शराब-बंदी करा दी।‘‘ महिमा जी ने जोश से कहा।

‘‘क्या, औरतों ने मरदों की शराब-बंदी करा दी, कैसे दीदी ?‘‘ कजरी के चेहरे पर ढ़ेर सारा आश्चर्य था।

‘‘हाँ, कजरी। औरतों ने मिलकर शराब-बंदी के लिए जुलूस निकाले, नारे लगाए, शराब की बुराइयों पर गीत गाए। वहाँ की सरकार को भी उनकी मदद करनी पड़ी।‘‘ महिमा जी ने बताया।

‘‘हाँ, औरतों ने शराब की भट्टियों पर धरने दिए। शराब पीकर आए मरदों के लिए घर के दरवाज़े नहीं खोले। आख़िर मरदों को हार माननी पड़ी।‘‘ कल्याणी ने तस्वीर-सी खींच दी।

‘‘हाय दैया, क्या हम भी ऐसा कर सकते हैं ?‘‘ शीलो ने पूछा।

‘‘क्यों नहीं, पर तुम सबको एक जुट होना पड़ेगा।‘‘

‘‘अरे ये क्या एकजुट होंगी, दीदी। ज़रा-ज़रा-सी बात पर तो लड़ती हैं।‘‘ चंदन ने सच्चाई बयान कर दी।

‘‘ऐ चंदन, अगर हम लड़ते-झगड़ते हैं तो क्या ? वक्त-ज़रूरत में एक-दूसरे के लिए दिन-रात भी तो एक करते हैं। बड़ा आया बातें बनाने वाला।‘‘ ज़मीला चाची ने गुस्सा दिखाया।

‘‘ये हुई न बात। अब दीदी जैसा कहें, उसके लिए एकजुट होकर दिखाओ, चाची।‘‘ चँदन हंस रहा था।

‘‘हाँ-हाँ, हम दिखा देंगे। औरतें हैं तो क्या हम सब मिलकर गाँव के मरदों को सही राह दिखा देंगे।‘‘ शीलो ने जोश से कहा।

‘‘अरे शीलो मौसी, कहीं मुझे ही तो सही राह नहीं दिखा दोगी।‘‘ चंदन ने परिहास किया।

‘‘घबरा मत। तुझे सही राह दिखाने के लिए हमारी पारो ही काफ़ी है।‘‘ बन्तो हँसी।

‘‘बाप रे , किसका नाम ले लिया। अब तो यहाँ से भाग जाने में ही भलाई है। प्रणाम दीदी, भगवान आपकी मदद करें।

चंदन के जाते ही औरतें हँस पड़ीं। पारो का चेहरा लाज से लाल हो उठा। कल्याणी और महिमा जी आज की बातचीत से संतुष्ट वापस आईं। फ्रेशर्स की रैगिंग के बाद कॉलेज के सीनियर्र्स फ्रेशर्स को पार्टी देते थे। एक लाल गुलाब के साथ रोहित ने देवयानी को अलग़ से इन्वाइट किया।

‘‘कल शाम आप मेरी मेहमान रहेंगी। ये रहा आपका निमंत्रण।‘‘ कार्ड और गुलाब रोहित ने थमाया।

‘‘निमंत्रण के साथ गुलाब का फूल देने की क्या आपके कॉलेज की परंपरा है ?‘‘ मुस्कराती देवयानी ने जानना चाहा।

‘‘नहीं, ये गुलाब हमारी मित्रता का प्रतीक है। आपको गुलाब पसंद हैं?‘‘

‘‘गुलाब तो फूलों का राजा ही है। हाँ, वैसे मुझे ये बहुत प्रिय है। थैंक्स।‘‘ गुलाब पर प्यार भरी नज़र डालती देवयानी ने कहा।

‘‘इसका मतलब मैं भी आपका प्रिय हुआ ?‘‘ रोहित के चेहरे पर शरारत आ गई।

‘‘जी नहीं। आप गुलाब के काँटे हो सकते हैं क्योकि गुलाब के साथ काँटे होते ही हैं।‘‘ देवयानी ने भी परिहास का सीधा जवाब दे डाला।

‘‘चलिए काँटा ही सही, कोई तो रिश्ता हमारे बीच बन ही गया। कल शाम आपका इंतज़ार करूँगा। आएँगी न ?‘‘

‘‘अगर माँ से इजाज़त मिली तो ज़रूर आऊँगी। देर रात तक बाहर रहना माँ को पसंद नहीं है।‘‘ गंभीरता से देवयानी ने कहा।

‘‘मैं उनकी बात समझ सकता हूँ। यकीन कीजिए, आपको रात में अकेले वापस जाने की गुस्ताख़ी मैं भी नहीं कर सकता। प्रोग्राम में सभी लड़कियों को वापस पहुँचाने का इंतज़ाम रहेगा। आपको सही-सलामत घर पहुँचाने की जिम्मेदारी मेरी रही।‘‘

‘‘थैंक्स। मैं आने की कोशिश करूँगी।‘‘

‘‘कोशिश नहीं, वादा करना होगा वर्ना प्रोग्राम छोड़, आपको लेने घर पहुँच जाऊँगा। मुझ पर रहम कीजिएगा, मोहतरमा।’’

‘‘मुझ पर ये ख़ास मेहरबानी क्यों, रोहित जी ? क्या आप सबको ऐसे ही निमंत्रित कर रहे हैं?’’

‘‘ओह नो! सच बात ये है कि आप दूसरों से बिल्कुल अलग हैं। आपकी असाधारणता से मै प्रभावित हूँ, ऐंड दैट्स ऑल। बाय।

देवयानी के जवाब का इंतज़ार किए बिना, रोहित चला गया। देवयानी गुलाब के फूल को देखती सोच में पड़ गई। रोहित ने उसमें ऐसा क्या देखा, जो दूसरी लड़कियों में नहीं था।

घर पहुँची देवयानी को कल्याणी ने अपनी गाँव-यात्रा की कहानी उत्साह से सुनाई। माँ के चेहरे की खुशी देख, देवयानी का मन माँ के प्रति सम्मान और करूणा से भर आया। अगर पापा होते तो माँ को उनका साथ और साहस मिलता। माँ की सफलता पापा को कितना खुश करती। देवयानी ने हाथ में पकड़ा गुलाब माँ को देते हुए कहा-

‘‘श्रीमती कल्याणी जी की पहली सफलता के लिए ये गुलाब भेंट करती हूँ।‘‘

‘‘अरे वाह ! ये तो बड़ा प्यारा गुलाब है, कहाँ से लाई ?’’

‘‘मेरे सीनियर्स कल हम फ़्रेशर्स को पार्टी दे रहे हैं। निमंत्रण के साथ मित्रता का प्रतीक, ये गुलाब दिया गया है।’’ न जाने क्यों देवचानी रोहित का नाम नहीं ले सकी।
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Re: देवयानी

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‘‘वाह ! ये तो बड़ी अच्छी परंपरा है। पहले रैगिंग में परेशान करो, फिर पार्टी और फूल देकर दोस्ती करो।’’ कल्याणी खुले दिल से हँस दी।

‘‘हाँ, माँ, कहते हैं रैगिंग से परिचय गहरा होता है। वैसे सीनियर्स रैगिंग में भले ही कितना भी परेशान करें, बाद में जूनियर्स की बहुत मदद करते हैं।’’

‘‘ठीक कहती है। तू खाना खाकर सो जा, मैं काम करूँगी।’’

‘‘अब रात में कौन-सा काम करना है, माँ ?’’

‘‘अरे आज गाँव में जो सर्वे किया है उसके आधार पर प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करूँगी तभी तो फंड मिल सकेगा। बस यही चाहती हूँ, मेरी प्रोजेक्ट स्वीकार कर ली जाए।’’ कल्याणी की बातों में उत्साह और खुशी दोनों थीं।

‘‘तुम्हारी योजना जरूर स्वीकार की जाएगी, माँ। जो काम सच्चाई और ईमानदारी के साथ किया जाता है, उसमें जरूर सफलता मिलती है।’’

‘‘भगवान तेरी बात सच करें।’’

देर रात तक कल्याणी अपनी योजना तैयार करती रही। पेन रखने के बाद उसके चेहरे पर संतोष की झलक थी। देवयानी को चादर ओढ़ा, जब वो पलंग पर लेटी तो पुरानी यादें साकार होने लगीं।

बारहवीं की परीक्षा की तैयार कर रही कल्याणी कभी-कभी मेज़ पर सिर टिका सो जाती थी। सोती कल्याणी को प्यार से उठा, अमर चारपाई पर ले जाता था। दूसरे दिन सुबह परिहास में कहता-

‘‘तुम्हें अपना वज़न घटाना चाहिए, कल्याणी वर्ना ये बंदा तुम्हें उठाते, बेमौत मर जाएगा।’’

‘‘अच्छा, तुम्हें हम भारी लगते हैं। याद रखो, बाबूजी के अंतिम समय में तुमने हमारा भार उठाने का वादा किया था।’’

अचानक कल्याणी की आँखें भीग आईं। मास्टर पिता के लिए कल्याणी ही सब कुछ थी। लू लग जाने से व्याकुल पिता को कल्याणी की ही चिन्ता थी। उस वक्त उनकी व्याकुलता देख, अमर ने वचन किया था, वह कल्याणी से विवाह करेगा। बस इतनी बात सुनने के लिए ही वह जीवित थे। मास्टरजी को चिन्ता-मुक्त कर, अमर ने अपना वचन निभाया था। घर-परिवार से निष्कासन का दुख उसे अन्दर जरूर सालता होगा, पर उसके मुँह से कभी एक शब्द भी नहीं निकला। देवयानी के जन्म के समय उसने माँ के पास बेटी के जन्म की सूचना भेजी थी, कोई जवाब न पा, उसके चेहरे पर अवसाद की छाया बस कुछ देर के लिए झलकी भर थी। देवयानी को गोद में उठा, प्यार से कहा था-

‘‘हमारी बेटी डॉक्टर बनेगी। हमारे बुढ़ापे में हमारी देवयानी ही हमारी देखरेख करेगी, कल्याणी’’ आज देवयानी डॉक्टरी की पढ़ाई कर रही है, पर अमर कहाँ है ? काश, अमर उनके साथ होता।

करवट बदलती देवयानी का हाथ माँ के नम चेहरे पर चला गया-

‘‘ये क्या माँ, तुम रो रही हो ? पापा की याद आ रही है ?’’

नन्हीं बच्ची-सी माँ को प्यार से दुलारती देवयानी कुछ देर को कल्याणी की माँ ही बन गई। सुबह कल्याणी के उत्फुल्ल चेहरे को देख, देवयानी खुश हो गई। क्लांति का कहीं चिन्ह भी नहीं था।

‘‘दैट्स लाइक. माई ब्रेव मदर.। आज कितने दिनों बाद तुम खुश हो माँ।

‘‘वो तो ठीक है, देवयानी, पर कभी सोचती हूँ, क्या उनके परिवार वालों से अलग रहने की वजह से तेरे पापा की आत्मा को दुख तो नहीं होता होगा ?’’

‘‘मम्मी, तुम किस दुनिया की बात सोचती हो। मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में कौन जानता है ? आज जो है, बस वही सच है, उसी में जीना चाहिए।’’

‘‘वाह ! मेरी देवयानी तो फ़िलॉसफ़ी झाड़ने लगी है।’’

‘‘अरे याद आया। माँ आज की पार्टी में जाऊँ ?’’

‘‘तू अकेली कैसे लौटेगी, देवयानी।’’

‘‘लड़कियों को पहुँचाने का इंतज़ाम है, माँ तुम परेशान मत होना।’’

‘‘ठीक है, कौन-सा सूट पहनकर जाएगी ?‘‘

चाहे तो मेरी आसमानी तारों वाली साड़ी पहन जा।’’

‘‘ओह, माँ। मैं कॉलेज की पार्टी में जा रही हूँ, किसी की शादी में थोड़ी जा रही हूँ। कोई-सा भी सूट पहन लूँगी।’’ देवयानी मुस्करा उठी।

‘‘हो सकता है, मुझे लौटने में देर हो जाए। तू घर बंद करके चाभी लेती जाना।’’

‘‘ओ.के. माँ। मैं जानती हूँ, मेरी माँ कामकाजी महिला हैं। अब उसके पास अपनी बेटी के लिए वक्त नहीं है।’’ देवयानी ने चिढ़ाया।

‘‘तू ऐसा सोचती है, देवयानी ? अगर ऐसी बात है तो मैं गाँव की प्रोजेक्ट जमा नहीं करूँगी।’’

‘‘अरे रे रे, तुम तो सच मान गईं। सच्चाई तो ये है, तुम्हें काम करते देख, मुझे बहुत खुशी होती है, माँ। क्या महिमा मौसी भी तुम्हारे साथ गाँव जाएँगी ?’’

‘‘हाँ, महिमा से मुझे जो प्यार मिला है, वो शायद अपनी सगी बहिन से भी नहीं मिल पाता।’’

‘‘सच, मौसी बहुत अच्छी हैं। उन्होंने हमारी ज़िंदगी बदल दी वर्ना……..’’

देवयानी का वाक्य पूरा भी नहीं हुआ था कि महिमा आ गई।

‘‘किसने किसकी ज़िंदगी बदल दी देवयानी ?’’

महिमा ने सहास्य पूछा।

‘‘तुम्हारे ही बारे में बात कर रहे थे। अगर तुम हमारी ज़िंदगी में न आतीं तो हम उसी काल-कोठरी में रह जाते।’’ कल्याणी ने कहा।

‘‘अच्छा अब महिमा-पुराण रहने दो। तुम्हारी प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार है, कल्याणी ?’’

‘‘हाँ, रात भर लिखती रही। एक बार तुम भी देख लो। कोई कमी न रह गई हो।’’

दोनों को बातें करती छोड़, देवयानी कॉलेज के लिए तैयार होने चली गई।

ऑफिस में प्रोजेक्ट रिपोर्ट जमा करने के बाद सुनीता और कुसुम के साथ महिमा और कल्याणी गांव पहुँची। सुनीता और कुसुम भी समाज कल्याण विभाग में सहायक पद पर काम करती थीं। कल्याणी की बातें उन्हें अच्छी लगतीं, इसीलिए उन दोनों ने कल्याणी की योजना में साथ देने का निर्णय लिया था।

आज गाँव की औरतें नदारद दिखीं। पारो और बन्तो ने आकर बताया, गाँव के मरदों ने अपनी औरतों को कल्याणी दीदी की बातें न सुनने की सख़्त हिदायत दे रखी हे। जो औरत उनकी बातों में आएगी, उसे घर में जगह नहीं मिलेगी।

‘‘अरे वाह ! ये तो सरासर दादागिरी है। हमे कुछ करना होगा, कल्याणी।’’ महिमा तैश में आगईं।

‘‘हूँ, चलो, हम ग्राम- प्रधान जी से बात करेंगे।‘‘

‘‘उनसे बात करने का कोई फायदा नहीं होगा। वो भी तो मरद हैं, दीदी।‘‘ पारो ने शंका जताई।

‘‘मरद होने के साथ वो गाँव के प्रधान भी तो हैं। मुखिया परिवार की देखरेख करता है। गाँव की औरतें उनके परिवार की बहू-बेटियाँ हैं, उनकी भलाई देखना भी तो उनका काम है।’’ गंभीर कल्याणी ने कहा।

‘‘ये बात तो ठीक कही, दीदी। ठहरिए हम चंदन और उसके कुछ नौजवान साथियों को बुला लाते हैं। वो लोग भी आपका साथ देंगे। पारो चंदन को बुलाने दौड़ गई।

चदन के साथ पाँच-सात जोश से भरे नौजवान ग्राम-प्रधान के पास पहुँचे। पहले तो ग्राम प्रधान उनसे बात करने को ही तैयार नहीं थे, पर जब कल्याणी ने अपनी योजना विस्तार में समझाई तो बात उनकी समझ में आ गईं। उन्हें बताया गया अगर उनके गाँव की औरतें साक्षर और आत्मनिर्भर बन जाएँगी तो उसका श्रेय गाँव के प्रधान को दिया जाएगा। हो सकता है उनका गाँव सर्वश्रेष्ठ गाँव के रूप में पुरस्कृत किया जाए। सबसे बड़ी बात औरतों की आय से परिवारों का जीवन-स्तर ऊपर उठ सकेगा। जो भी खर्चा होगा, उसे कल्याणी के ऑफिस की सरकारी योजनाओं से दिया जाएगा। ग्राम-प्रधान ने गाँव के पुरूषों को समझाने का दायित्व ले, कल्याणी के साथियों को विदा किया।

देवयानी कालेज से जल्दी लौट आई। शाम के फ़ंक्शन की वजह से क्लासेज एक बजे ख़त्म कर दी गईं। अपने गिने-चुने कपड़ो में से शाम के लिए कपड़े चुनने में देवयानी को ज़्यादा देर नहीं लगी। माँ ने अपनी प्याज़ी साड़ी का सलबार-सूट देवयानी के लिए सिलवा दिया था। साड़ी के ज़रीदार किनारे ने सूट की शोभा बढ़ा दी। एक मेले से प्याज़ी मोती की माला और बुंदे, देवयानी ने शौक से खरीद लिए थे। सूट से साथ गले और कानों में मोती पहन, जब देवयानी ने आइने में अपने को निहारा तो चेहरे पर मुस्कान बिखर गई।

नियत समय पर पहुँची देवयानी के लिए रोहित प्रतीक्षा में खड़ा था। देवयानी को देखते ही उसके ओंठ गोल हो गए-

‘‘वाउ, यू लुक चार्मिंग। मुझे डर था कहीं आप न आएँ।‘‘

‘‘दोस्ती तो निभानी ही पड़ती है। आपने इतना प्यारा गुलाब जो दिया था।‘‘ देवयानी हल्के से मुस्करा दी।

‘‘थैंक्स,ग़ॉड। यानी मेरी दोस्ती कुबूल हो गई। आइए हॉल में चलें।‘‘

रंगीन झिलमिलाती झालरों के साथ रजनीगंधा की लड़ियों से हॉल सजाया गया था। हल्का संगीत माहौल रंगीन बना रहा था। लड़कियाँ और लड़के मिलजुल कर बातें कर रहे थे। रोहित के साथ देवयानी को आते देख, एक सीनियर ने रिमार्क कसा-

‘‘लो दोस्तो, प्रिंस चार्मिंग अपनी सिंड्रेला के याथ आ रहे हैं।‘‘

सबकी हँसी पर देवयानी अपने में सिमट आई। देवयानी के उस संकोच पर रोहित हँस पड़ा-

‘‘कम ऑन, देवयानी। ऐसी बातों की तो आदत डालनी होगी। वैसे तुम्हारे मुकाबले सिंड्रेला की क्या औकात, हाँ, तुम्हें परियों की राजकुमारी कहा जाना चाहिए।‘‘ मंद स्मित के साथ रोहित ने कहा।

‘‘छिः। अब आप भी बनाने लगे।‘‘ शर्म से देवयानी के गोरे गाल लाल हो गए।

‘‘अरे, आपको तो भगवान ने गढ़कर भेजा है, इंसान की क्या मज़ाल जो आपको बना सके।‘‘

‘‘कुछ देर पहले आपने मुझे ‘तुम‘ कहा था। प्लीज़ हमे तुम कहकर ही बात करें। आपसे छोटी हूँ।‘‘

‘‘मंज़ूर। पर तुम्हें भी एक शर्त माननी होगी।‘‘

‘‘कौन-सी शर्त।‘‘ बड़ी मासूमियत से देवयानी ने पूछा।

‘‘तुम भी मुझे रोहित जी नहीं, सिर्फ़ रोहित कहोगी। और हाँ, मैं भी तुम्हारे लिए ‘आप‘ नहीं बस ‘तुम‘ हूँ। दोस्ती में ये जी और आप जैसे शब्द बड़े फ़ॉर्मल से लगते हैं, देवयानी।

‘‘लेकिन आप तो हमसे उम्र और क्लास दोनों में बड़े हैं।‘‘

‘‘अमरीका में तो माँ-बाप, टीचर को भी नाम से पुकारा जाता है।‘‘

‘‘ये अमरीका तो नहीं।‘‘

‘‘देखो, या तो मेरी शर्त मंज़ूर करो या दोस्ती तोड़ दो।‘‘ रोहित की उत्सुक हष्टि देवयानी पर गड़ गई।

‘‘ये तो ठीक शर्त नहीं है, रोहित जी।‘‘
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