ऋतुसंहार
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- Joined: 18 Dec 2014 12:09
Re: ऋतुसंहार
रूप यह किसके हृदय को?
प्रिये ! आई शरद लो वर!
प्रिये ! आई शरद लो वर!
मदिर मंथर चल मलय से
अग्रशाख विकंप आकुल
प्रचुर पुष्पोद्गम मनोहर
चारुतर ले नर्म कोंपल
मत्त भ्रमरों ने पिया
मद प्रस्रवण हो विकल जिस पर
मधुर चमरिक वृक्ष चित्त
विदीर्ण किसको दें नहीं कर
प्रिये ! आई शरद लो वर!
प्रिये ! आई शरद लो वर!
सुभग ताराभरण पहने
मुक्त घन अवरोध से अब
चंन्द्र वदनी, अमल ज्योत्सना
के दुकूलो में रुचिर सज
मुग्ध प्रमदा यामिनी
संवर्धित है प्रति दिवस त्वर
प्रिये ! आई शरद लो वर!
प्रिये ! आई शरद लो वर!
घर्षिता है वीचिमाला
मुखों से कारण्डवों के
तीर भू आकुल हुई
कलहंस और सारस कुलों से
कमल के मकरंद से
आरक्त शैविलिनी मनोहर
हंस रव से जन हृदय में
प्रीति को जाग्रत रही कर
प्रिये ! आई शरद लो वर!
प्रिये ! आई शरद लो वर!
रश्मि जालों को बिछा
आल्हाद भरता जो हृदय हर
नयन उत्सव, हिम फुही झर
इंदु भी है अब कठिनतर
पति-विरह विष-सिक्त शर-क्षत
नारियों का ताप दुखकर
प्रिये ! आई शरद लो वर!
प्रिये ! आई शरद लो वर!
मत्त-हंस मिथुन विचरते
स्वच्छ फुल्लाम्भोज खिलते
मन्द-गति प्रातः पवन से
वीथियों के जाल हिलते
ज्योति में अवदात वे सर
हृदय हर लेते अवश कर
प्रिये ! आई शरद लो वर!
प्रिये मधु आया सुकोमल
तीक्ष्ण गायक – आम्र और-
प्रफुल्ल की कर में उठाये
भ्रमर माला की मुकर
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Re: ऋतुसंहार
अभिराम प्रत्यन्चा चढ़ाये
सुरत सर से हृदय को
करता विदग्ध विदीर्न व्याकुल
प्रिये! वीर वसन्त योद्धा
आ गया मदपूर्ण चंचल
प्रिये मधु आया सुकोमल
लो प्रिये! मुक श्री मनोरम
देखते जो तृप्त होकर
देखते करुबक मदिर नव
मंजरी का रूप क्षण भर
कामशर में व्यथित होते
कुसुम से बर दीप्त किंशुक
राशि नव ज्वाला शिखा-सी
लो कि अब सुखमय विकंपित
मलय से,आरक्त चंचल
रक्त वसना नववधु सी
वसुमती दिखती सुनिर्मल
प्रिये मधु आया सुकोमल!
द्रुम कुसुमय, सलिल
सरसिजमय हुए,सुखपूर्ण यामिनि
पवन गंधित, रम्य रे दिन
कामरुचिमय युवति कामिनि
वापियों के वारि में
मणि मेखला का रूप बरता
इन्दु छवि स्त्री को, कुसुम दे
आम्र तरुओं को पुलकता
दे रहा सबों वसन्त
नवीन जीवन लालसा कल
प्रिये मधु आया सुकोमल
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Re: ऋतुसंहार
मृदु तुहिन से शीतकृत हैं
हर्म्य, चंपक सुरभिमयशिर
योषिताएँ डालती उर
पर कुसुम के हार मनहर
रक्त वर्ण कुसुम्भ से
सुन्दर दुकूल नितम्ब पर हैं
और कुसुम राग के
अंशुक स्तनों पर अति रुचिर है
विलासिनियाँ कान पर नव
कर्णिकार लगा रही है
सघन नीले चल अलक में
अब अशोक सजा रही है
मल्लिका नव फुल्ल, नूतन
कान्ति देती है समुज्जवल!
प्रिये मधु आया सुकोमल
धवल चंदन लेप पर
सित हार उर पर डोल सुन्दर
भुजाओं पर वलय अंगद
जघन पर रसना क्वणन कर
नितंबिनि उर अनगातुर
में नवल-श्री भर रहे हैं
हेम कमलों से मुखों पर
पत्र लेखन खिल रहे हैं,
स्वेद कन मुक्ता सदृश
उस पत्र रचना में झलक चल
फेल जाते हैं, नया
उन्माद नयनों में समाकुल
प्रिये मधु आया सुकोमल!
मधु सुरभिमुख कमल सुन्दर
लोघ्र के से ताम्र लोचन,
कुरुव्रकों से ग्रथित अलकें
पीनगुरुतर दीप्तिमयस्तन
सुमंसल मनहर नितम्ब
किसे न कर देते सुचंचल
काम के यह अग्रदूत
सुरभि भरे निश्वास आकुल
ओ विसुध सीमन्तनी!
मधु वंदनाकर प्राण विह्वल
प्रिये मधु आया सुकोमल!
हर्म्य, चंपक सुरभिमयशिर
योषिताएँ डालती उर
पर कुसुम के हार मनहर
रक्त वर्ण कुसुम्भ से
सुन्दर दुकूल नितम्ब पर हैं
और कुसुम राग के
अंशुक स्तनों पर अति रुचिर है
विलासिनियाँ कान पर नव
कर्णिकार लगा रही है
सघन नीले चल अलक में
अब अशोक सजा रही है
मल्लिका नव फुल्ल, नूतन
कान्ति देती है समुज्जवल!
प्रिये मधु आया सुकोमल
धवल चंदन लेप पर
सित हार उर पर डोल सुन्दर
भुजाओं पर वलय अंगद
जघन पर रसना क्वणन कर
नितंबिनि उर अनगातुर
में नवल-श्री भर रहे हैं
हेम कमलों से मुखों पर
पत्र लेखन खिल रहे हैं,
स्वेद कन मुक्ता सदृश
उस पत्र रचना में झलक चल
फेल जाते हैं, नया
उन्माद नयनों में समाकुल
प्रिये मधु आया सुकोमल!
मधु सुरभिमुख कमल सुन्दर
लोघ्र के से ताम्र लोचन,
कुरुव्रकों से ग्रथित अलकें
पीनगुरुतर दीप्तिमयस्तन
सुमंसल मनहर नितम्ब
किसे न कर देते सुचंचल
काम के यह अग्रदूत
सुरभि भरे निश्वास आकुल
ओ विसुध सीमन्तनी!
मधु वंदनाकर प्राण विह्वल
प्रिये मधु आया सुकोमल!
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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