तेरी आँखे तो बड़ी चंचल है
ये बात कुछ समय पहले की है। मैंने कुछ किताबें कहानियां लिखी थी। उन किताबों को लिखने में पूरा एक साल का समय लगा था। बड़ी मेहनत बड़ा दिमाग मैंने खपाया था, आखिर मेरी किताब एक कंपनी से पब्लिश कर दी। मैंने फेसबुक पर उस किताब का बड़ा प्रचार किया। जी तोड़ मेहनत का ये नतीजा हुआ की मेरी किताब मार्किट में चलने लगी और बिकने लगी। कुछ दिनों बाद एक रीडर ने शिकायत की कि एक कंपनी मेरी किताब बिना मुझसे पूछे ,बिना परमिशन लिए प्रकाशित कर रही है।
मैंने उस कंपनी को कई फ़ोन किये। हर बार कोई लड़की फोन उठाती। जब मै पूछता की कंपनी के मालिक से बात करवाओ तो वो लड़की फोन काट देती, उस लड़की से अपना नाम आशा बताया। उन कंपनी ने कभी कोई जवाब नही दिया। बस चुपके चुपके मेरी कहानियां किताबे पब्लिश करती रही और बेचती रही।
इससे पहले मेरे एक लेखक दोस्त के साथ बुरा वाकया हुआ था। उसकी कहानी भी एक कंपनी चोरी चोरी पब्लिश कर रही थी। उसको उन असामाजिक तत्वों ने मारा पीटा भी था। इस तरह की किसी भी अप्रिय घटना से निबटने के लिए मैंने कसाई मोहल्ले के 100 लड़कों को ले लिया। सब हाकी, लोहे के राड, छुरे, चाकू लेकर गए। मैंने अपनी हिफाजत के लिए अपनी मौसर गन ले ली। हालाँकि कही गलती से मुझसे गोली ना चल जाए, इसलिए मैंने उसमे सेफ्टी लॉक लगा लिया। गन मैं अपनी जीन्स में पीछे लगा ली। एक दिन मैैं पता लगाते लगाते उस कंपनी के पते पर गया। देखा की एक बड़ी मैली कुचैली सी बस्ती थी। सायद वो कोई पुरानी हवेली रही होगी। पर अब ये हवेली जगह जगह से टूट गयी थी।
मैं दूसरे माले पर गया उसी के पते पर। एक बड़ा का हवेली नुमा बड़ा सा दरवाजा था। एक बढ़िया चमकदार पर्दा लगा था।
कोई है?? इस कंपनी का मालिक कौन है? मैंने आवाज।दी।
अंदर ने कुछ खड़बड़ाने की आवाज आई। मुझे लगा की जो लोग मेरी कहानी की नकल करके पब्लिश करते है, सायद मुझपर हमला करने वाले हो। मेरा एक हाथ पीछे मौसर गन पर चला गया। अगर वो मुझपर हमला करेंगे तो मैं उनको शूट कर दूंगा। मैंने सोचा।
मेरे पीछे 6 लड़के हाकी, लोहे की सरिया, छुरे के साथ मुस्तैद थे। मैंने पर्दा हटा दिया। अंदर का दृश्य देखकर मैं हैरान था। अंदर उस कंपनी में एक बूढी औरत थी, एक जवान लड़की थी , एक बूढ़ा चारपाई पर लेटा था। सायद उसको फालिस मार गया था। उसका आधा शरीर टेढ़ा था। प्रथम दृष्टया वो जवान लड़की ही मुझे सही सलामत लगी। वो बूढी औरत और वो
लड़की मेरी किताब के एक एक पन्ने को अलग कर रही थी। वो लोग मेरी किताब की नकल बनाकर बेचते थे। उस मकान या कहे कंपनी की हालत बड़ी ख़राब थी। पहली नजर में वो लोग बड़े भूखे नँगे लगे। लगा की वो लोग एक एक पैसे के मोहताज है।
मैंने अपनी जीन्स में लगी मोउसर गन ने हाथ वापिस खीच लिया। मैंने लड़कों ने नार्मल होने हो कहा। मैंने ईशारा किया कि ये लोग कोई हमला नही करने वाले है। लड़के शांत हो गए।
हे!! ये क्या है?? तुम लोग मेरी किताब की नकल करके नही बेच सकते हो। कॉपीराइट का उल्लंघन है ये! तुम लोग ऐसा नही कर सकते! मैंने मुट्ठी बांधते हुए कहा। अपनी कहानी वाली किताब की नकल करते देख मेरा खून उबल गया।
वो बूढी औरत ने कोई रिस्पांस नही दिया। वो मेरे किताब की एक एक पन्ना निकाल रही थी। मुझे लगा सायद वो ऊँचा सुनती होगी।
हे! क्या तुम ही आशा हो?? क्या तुम भी बहरी हो क्या?? ये मेरी कहानी है, तुम इसकी नकल बनाके नही बेच सकती! मैं चिल्लाकर बोला। पास रख मिट्टी का मटका मैंने मारे गुस्से के गिरा दिया। मटका टुकड़े टुकड़े हो गया। सारा पानी फ़ैल गया।
अब बुढ़िया की आँखे खुली। वही वो बूढ़ा आदमी जो सायद उस बूढ़ी का आदमी था, जिसके हाथ टेढ़े थे और जिसको लकवा मार गया था वो मेरी ओर देखने लगा और बुढ़िया को मेरे ओर देखने का इशारा करने लगा।
हमको माफ़ कर दिजिये!! हमारे पास रोजी रोटी का दूसरा रास्ता नही है!! वो जवान और देखने में ठीक ठाक लड़की बोली।
मेरा ही नाम आशा है! मेरा भाई तुम्हारी कहानी की नकल बनाके बेचता है! हम बहुत गरीब है! हम पर तरस खाइये! ये मेरी माँ है, ऊँचा सुनती है! आशा बोली
आशा को देखकर मेरा गुस्सा एक पल को शांत हुआ।
देखो आशा! गरीब तो सारा हिंदुस्तान है! जिस कहानी की तुम नकल बना रही हो, घण्टो घण्टो आँखे फोड़कर मैंने किताब लिखी है। तुम नकलचियों की वजह से मेरे पब्लिशर की किताब नही बिक रही है! तुमको इसके लिए जेल भी हो सकती है! जानती जो तुम?? मैं कर्कश आवाज में बोला।
अगर तुमको इस कहानी को ही बेचना है तो तुमको मेरे पब्लिशर से राइट्स खरीदने पड़ेंगे! मैंने गुसस्कर कहा।
कह देना अपने भाई से!! मेरी कहानी की नकल करनी है तो पहले राइट्स खरीदे!! मैं फन फ़नाकर कहा। गुस्से से मेरी नाक के नथुने फड़कने लगे।
कृपया रहम कीजिये!! हमे ये कहानी छापने दीजिये!! मैं आपके पैर पड़ती हूँ! वो देखने में ठीक ठाक लड़की आशा गिडगिडाने लगी।
भाई!! इसके घर वाले को एक आध लाफा लगा देते है। आगे से इसका भाई अपुन लोग की किताब नही नकल करेगा! मेरा लड़का लोग बोला। मैंने मना किया और घर लौट आया।
मुझे सारी रात बस आशा ही याद आती रही। बड़ी कशिश थी उसकी आँखों को। थोड़ा लम्बा चेहरा था, पतला छरहरा बदन, किसी बेलदार पेड़ की टहनी लगती थी। छोटे छोटे 30 साइज की छातियां रही होंगी। बड़ी नही, बल्कि छोटी। वो लड़की आशा मेरी आँखों में बैठ गयी। मेरा तो लण्ड ही खड़ा हो गया। उसने काली सलवार सूट पहन रखा था। बड़ी चंचल आँखे थे। आशा की फोटो मेरी आँखें में कैद हो गयी। अच्छी खासी साढ़े पांच फुट की लौण्डिया थी। बड़ी मस्त मॉल लगी मुझे। मैं बार बार आशा के बारे में सोच रहा था। काश उसकी चू… मिल जाती तो! मैं गरम हो गया।
कुछ दिन बाद मैं फिर उसी जर्जर कंपनी में पहुँच गया। उसका भाई ही किताब बेचता था। कुछ दुकानों पर, कुछ सड़कों की क्रोसिंग पर। मैं जब पंहुचा तो वो मेरी किताब की नकल छाप रहा था।
हे!! मैंने तुमको मना किया था ना? मैंने कहा
उसने मेरा कॉलर पकड़ लिया।
तेरी माँ की आँख!! मैंने कहा! हम लोग एक दूसरे को माँ बहन की भद्दी भद्दी गलियां देने लगे। आशा का भाई लात गुसों से मुझ पर पिल पड़ा और मैं भी लात मुक्कों से पिल पड़ा। वो मुझको हाथ से मार रहा था और लात ही लात जमा रहा था। हम दोनों गली के कुत्तों की तरह लड़ने लगें। माँ बहन की गालियां और लात मुक्के चल रहे थे। हम दोनों के कपड़े फट गये, उसका भी मुँह फूटा ,मेरा भी। इतने में आशा आ गयी। वो रोने चीखने लगी। उसकी माँ भी रोने लगी।
हम इसलिए हम दोनों लग हो गए।
देख तू जो कोई अफलातून हो! मेरी कहानी की नकल करके नही बेच सकता !! मैं चिल्लाया। मेरे बाल बिखरे गुंजे हुए थे। आशा के भाई ने मेरे , मैंने उसके बाल नोच लिए थे।
तू क्या कर लेगा? मैं नकल बनाऊंगा! आशा का भाई बोला
आशा बगल में खड़ी थी। उसकी माँ एक और बैठ के आँशु बहा रही थी। उसका बाप हमेशा की तरह चारपाई पर पड़ा अपने आख़िरी दिन गिन रहा था।
देख! मैं तेरा मुँह तोड़ दूँगा! साला एक तो मेरी कहानी की नकल बना रहा है, ऊपर से आँख दिखा रहा है। बहन…. मेरे मुँह से गली छूट गयी।
आशा के भाई ने मुझपर मुट्ठी तान ली। मैंने भी मुट्ठी बांध ली की साला या तो आज ये बचेगा या मैं।
उसकी माँ बिच में आ गयी। उसने आशा के भाई को पकड़ लिया। उसको अंदर खीच ले गयी। वो मेरे पास आई।
बेटा! तुम जो चाहे मांग लो पर अपनी किताब मत छीनो! आशा के बाप को कैंसर है। इनके इलाज में हमारा सब कुछ बिक गया। एक भी पैसा नही बिका। तुम चाहो तो… माँ जी ने आशा की ओर इशारा किया।
अरे तेरी तो! माँ जी तो अपनी लड़की जी चूत ओफर कर रही है! मैं चौक पड़ा। आशा एक मैले पर्दे के पीछे चुप खड़ी थी। खामोश और शून्य।
ठीक है! मैंने कहा। आशा के नाम पर मेरा गुस्सा गायब हो गया। माँ जी ने उसके भाई को बाहर भेज दिया। मैंने जूते निकाल दिए ,अंदर आशा के कमरे में चला गया।
ये लोग तो जमाने के गरीब थे। बिस्तर काले, मैले, फ़टे चीथड़े थे। दीवारे काली थी, बरसों से पेंटिंग नही हुई थी। माँ जी अपनी लड़की को खुद चुदवा रही है, पर दरवाजा तो भेड़ ही दूँ। मैंने कुण्डी नही लगायी, हल्का सा दरवाजा भेड़ दिया। आशा बिस्तर पर बैठ गयी। आज भी उसने वो काला सलवार सूट पहन रखा था। मैं भी उसके पास बिस्तर पर बैठ गया। मैंने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया। वो कोई अल्टर, छिनार तो थी नही। घरेलू , सांसारिक संस्कारवान लड़की थी। वो दूसरी ओर देखने लगी। शरमा गयी सायद।
आशा! अरी ओ आशा! तू बड़ी सूंदर है रे!! तेरी आँखे तो बड़ी चंचल है!! मैंने कहा और आगे बढ़कर उसके गाल पर पुच्ची दे दी। वो हया से हाथ छुड़ाने लगी पर मैंने नही छोड़ने दिया। आशा की आँखों में मैंने पूरी एक जिंदगी जी ली। कितना दर्द था, आँखों में। आशा के गालों में शाहरूख जैसे डिंपल थे। मैंने उसको डिंपल पर फिर चूम लिया। मैंने उसको बाँहों में कस लिया। आशा बड़ी शर्मिली निकली। मैंने आशा के कमरे की बत्ती जलने दी। मैंने उसको कसके पकड़ लिया। मैं उसे प्रेमी की तरह जगह जगह चूमने लगा।
आशा जानती थी की माँ जी उसको चुदवा कर मेरी कहानी के राइट्स लेना चाहती थी। वो चुदने को तैयार थी। उसने जादा विरोध् नही किया। मैंने उसके छोटे छोटे मम्मो पर हाथ रख दिया। ऊपरवाले की नियामत समज मैं हल्के हल्के 30 साइज वाले मम्मे दबाने लगा। सायद आशा पहली बार किसी लड़के से अपनी नरम मुलायम छातियां दबवा रही थी। मैंने उसको अपनी ओर होले से झुकाया और लपक के उसके होंठों को अपने होंठों में ले लिया। आशा की सांसों की महक मेरी नाक में रच बस गयी। मैंने उसकी आत्मा को छू लिया। मैं भर भरके उसके होंठों को पीने लगा।
आशा मस्त हो गयी। मेरा लण्ड तो बिलकुल खड़ा हो गया था। पहली मुलाकात में ही मेरी नजरे उस पर ठहर गयी थी। पहली मुलाक़ात में ही मैं उसको चोदना चाहता था मगर प्यार से। उसके होंठ पीते पीते मैं कस कसके उसकी छोटी छोटी नींबू की साइज की छातियां दबाने लगा। वो गर्म और चुदासी होने लगी। मैंने आशा का काला दुप्पटा दरवाजे पर टाँग दिया। उनको बिस्तर पर लेटा लिया। उसके सर के नीचे एक तकिया लगा दी। मैंने उसका सूट निकाल दिया।
आशा शरम से पानी पानी हो गयी। बताओ! अपने परिवार का पेट भरने के लिए उसे आज चुदना पड़ रहा है। उसकी माँ ही उसको चुदवा रही है। मैं आशा पर पागलों की तरह टूट पड़ा। मैंने उसकी समीज निकाल दी जो बहुत पुरानी थी और जगह जगह से फ़टी थी। आशा अपने हाथों से अपनी नँगी पेपर्दा छतियों को छुपाने दौड़ी, पर मैंने जल्दी से उसके हाथ पकड़ लिए। वो सायद रोने लगी। मुझसे बचने को बिस्तर के दूसरे ओर भागने लगी। मैंने लपक कर उसके दाँये मम्मे को मुँह में ले लिया।
उफ्फ्फ!! अलग स्वाद, थोड़ा नमकीन, थोड़ी चिकनाहट! और मैं मुँह भर भरके उसकी छाती को पीने लगा।
हाय आशा रानी!! तुम्हारी छातियां तो अब तक या तो तुम्हारी माँ से बचपन में देखी होंगी या आज मैंने देखी है!! मैंने मन ही मन कहने लगा। आशा रोने लगी। रोती हुई लौण्डिया को पुचकार पुचकार के चोदने में तो जन्नत जैसा सुख मिलता है। दायीं छाती को पीने का बाद मैंने जल्दी से बायीं छाती को मुहँ में भर लिया और चूसने पीने लगा। ना जाने कैसा अजीब सा सुख मिला। मैं आशा रानी के मम्मे खूब पिया, खूब दबोटा। धीरे धीरे आशा नार्मल हो गयी। अब विरोध् बन्द करक किसी गाय की तरह अपना ढूध पिलाने लगी।
मैं नही कह सकता कि आशा बड़ी गोरी थी, पर ठीक ठाक रंग था जैसे सारे इंडियंस का गेहुआं रंग होता है। मैं उसका पतला पेट सहलाने लगा। मैंने उसको अपनी ओर करवट करा लिया, मुँह से उसकी छोटी छातियां पीने लगा तो दूसरे हाथ से उसकी पीठ सहलाने लगा। मैं मिनटों दूध पिया। नारा खोल के मैंने उसी काली रंग की सलवार नीचे सरका दी। चिकने पैरों को सहलाकर मेरे हाथ उसके उतपत्ति स्थल यानि उसकी चूत की ओर बढ़ गए। मैंने उसकी पैंटी जो काले रंग की थी, उतार दी। जब मैंने आशा के दोनों पैरों के बीच में हाथ डाला तो, पता चला की उसकी चूत ऊपर की ओर उठी हुई है।
कुछ लड़कियों की चूत नीचे की ओर बैठी हुई होती है, जैसे किसी ठठेर से हथौड़ा मार मार के बैठा दी हो। उनको चोदने में मजा नही आता है। पर आशा की चूत ऊपर उठी हुई थी। इतना ही नही चूत के दोनों लब बड़े बड़े ऊपर ही और उठे थे। मैंने चूत में ऊँगली डाल दी और रगड़ने लगा। मैं दोनों ओंठों को घिसने लगा। आशा का बदन ऐंठने लगा। मैं जान गया कि अब इसको पेलो। मैंने अपना निकर निकाल दिया। लण्ड बरसात में भीगी छत की तरह चू रहा था। मैंने एक दो बार लण्ड को मुठ दे के लण्ड को ताव दिया। आशा की चूत को मैंने एक दो बार चूमा चाटा। लण्ड उसकी उठी हुई बुर में लगाया और पेल दिया साली को। वो भेड़ की तरह छटपटा गयी।
मैं चोदने लगा।
बस मुझे हफ्ते में इसी तरह चूत दे दिया कर,, और जितना मन करे उतनी मेरी किताब की नकल करो तुम भाई बहन! मैंने चोदते चोदते मन ही मन कहा। मारे लाज शरम के आशा ने आँखे बंद कर ली। दोंस्तों, बेहया लड़की को घिसने में तो जरा भी मजा नही आता है, हाँ आशा जैसी घरेलू लौण्डिया को चोदने का मजा ही निराला है। मैंने आशा के दोनों पैरों को किसी हेलीकॉप्टर की तरह खोल दिया और जहाज चलाने लगा। मैं कूद कूद कर छिनाल को चोदने लगा। गहरे और गहरे धक्कों ने आशा की नई चूत ही धज्जियाँ उड़ा दी।
फिर मैंने उसको अपने बदन में साँप की तरह लपेट लिया और हुमक हुमक के बजाने लगा। काफी देर तक चोदने के बाद आशा का मुख लाल हो गया। उसके माथे पर पसीने की कुछ बूंदें आ गयी। मुझे उसकी अवस्था पर प्यार आ गया। मैंने वो पसीने की बुँदे चूम ली और अपनी चुदाई की मेहनत की कमाई को पी गया। मुझे इतना प्यार आ गया कि मैंने भी आँखे बंद कर ली और लगा बजाने आशा को। चट चट के शोर से जब आशा का कमरा आवाज करने लगा तो माँ जी आयी और दरवाजा बंद कर गयी।
कहीं माँ जी ने अपनी लौण्डिया को चुदते तो नही देख लिया?? मैंने सोचा । फिर आशा को चोदने खाने में व्यस्त हो गया। उसको मैंने गठरी की तरह अपने बदन में लपेट लिया था और रंडी के छेद को मस्त चोदे जा रहा था।
रांड! तेरा छेद तो मैं चोद चोदकर इतना बड़ा कर दूंगा की माँ जी का सर उसने चला जाए! मैंने उसके कान में कहा और चोदना जारी रखा।
दो चमड़ी की घिसन से इतनी गर्मी पैदा हुई के लगा कहीं उनके छेद में आग ना लग जाए। मैं उसे बेरोक टोक ठोकता रहा। करीब एक घण्टे बाद मैं झड़ने को आया। मैंने तुरन्त लण्ड निकाला और उसके मुंह पर गरमा गरम खीर की बारिश कर दी।
आशा को चोद चोद के उसकी बुर फाड़के मैं बाहर निकला। माँ जी मेरी कहानी की नकल बना रही थी। उन्होनें मुझको देखा। मैंने अपनी पैंट की जीप लगायी।
माँ! जी जितना मन करे उतनी नकल बना लो, मेरी कहानी की, पर मैं हर शनिवार आऊंगा! मैंने माँ जी को आशा के कमरे के दरवाजे की ओर इशारा किया।
माँ जी बड़ी उदास थी की मेरी किताब के राइट्स के लिए उनको अपनी लौण्डिया को चुदवाना पड़ गया।
ठीक है! माँ जी से धँसी हुई आँखों और सूखे मुँह से चेहरा लटकाकर कहा।
मैं बाहर आ गया उस टूटी फूटी हवेली से। 6 महीने तक आशा को चोद चोद कर मैंने एक नया उपन्यास लिखा जो बहुत हिट हुआ। आशा को मैंने एक कॉपी दिखाई।
देख आशा! तू मेरे लिए कितनी लकी है। तुझको चोद चोदकर कर मैंने एक नया नोवेल लिखा है। मैं उसके हाथों में किताब रख दी।
तेरी आँखे तो बड़ी चंचल है
- kunal
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- Joined: 10 Oct 2014 21:53
तेरी आँखे तो बड़ी चंचल है
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!