लक्की चादर

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rajsharma
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Re: लक्की चादर

Post by rajsharma »


मेरा जिस्म खुशी से सराबोर था और मैं बहुत ही खुश थी. कुच्छ देर तक मुझे किस किया तो भैया के शॉर्ट मे से लंड ने उठना (स्टॅंड) शुरू कर दिया. जोकि मेरी टाँगों के बीच, मेरी चूत के नीचे महसूस हो रहा था. भैया ने मेरी शलवार उतार दी और फिर मेरी शर्ट को भी उतार कर मुझे नंगा कर दिया. मैं बिस्तर पर लेटी हुई थी और अब भैया अपनी शॉर्ट भी उतार कर नंगे हो गये. अब हम दोनों नंगा होकर एक दूसरे को प्यार कर रहे थे. भैया बहुत ही खुश नज़र आ रहे थे और मैं भी खुश थी. लेकिन दोनो एक दूसरे से कोई बात नहीं कर रहे थे. भैया मुझे होंठो पर चूमते हुए नीचे चले गये और मेरी चूचियों पर पहून्च गये और मेरी चूचियों को चूमना शुरू कर दिया. मैं भैया को देख रही थी कि वो किस बुरी तरह मेरी चूचियों को चूस रहे थे.

उस रात को भी मेरी चूचियाँ चूस रहे थे लेकिन उस रात अंधेरा था और कुच्छ नज़र नहीं आ रहा था और आज तो कमरा ट्यूब लाइट से खूब रोशन था और हर चीज़ नज़र आ रही थी. भैया अब मेरे पैरो पर थे और वहाँ अपनी कड़ी ज़ुबान से गुद गुदा रहे थे. मेरे जिस्म के रोंगटे खड़े हो गये थे. मेरा जिस्म खूब गरम हो गया था और मैं सिर्फ़ मज़ा ले रही थी. भैया पैरों को छोड़ कर मेरे पैरों मे आ गये और मेरे पैरों के तले को चाटने लगे. भैया का पैरों को चाटना अजीब और लज़्ज़त से भर पूर लगा लेकिन इस से ज़्यादा भैया की मोहब्बत का इज़हार अच्छा लगा. भैया अब पैरों के एक एक हिस्से को चाट'ते हुए ऊपेर की ओर बढ़ रहे थे. मेरी दोनो थाइस को चाटने लगे तो मेरे जिस्म में झूर झुरी सी भर गयी. अब वो मेरी चूत तक पहून्च चुके थे और जब चूत पर ज़ुबान रखी तो मेरे अंदर एक नया तूफान बरपा हो गया.

भैया कित'नी मोहबत से मेरे जिस्म के एक एक हिस्से को चाट'ते हुए मेरी चूत को चाट रहे थे कि उनकी मोहब्बत और अंदाज़ ने मुझे पागल कर दिया. मैं खुद को बहुत ही खुश नसीब महसूस कर रही थी और खुश थी कि उस रात मैने मामा की बजाय भैया से चुद'वाया था. भैया की नोकीली ज़ुबान मेरी चूत को खूब चाट रही थी. कभी ज़ुबान की नोक चूत के अंदर आ लगती तो कुच्छ नया लग'ता और जब अपनी ज़ुबान से पूरी चूत के बाहर चाट'ते और भी भला लग'ता. उस वक्त मैने सोचा कि वो लड़कियाँ कित'नी खुश क़िस्मत होंगी जो अपने सगे भाइयों से चूत मर'वाती होंगी. हक़ीक़त में जिस से मोहब्बत हो उस से मर'वाने का मज़ा ही कुच्छ और होता हे. अपने भैया का जिस्म अपना अपना लग रहा था.

भैया मेरी चूत को बुरी तरह गीली कर चुके थे. मेरे जिस्म की आग थी कि दहेक ही रही थी. भाई अब मेरी दोनो टाँगों के बीच आ गये और अब अपना लंड मेरी चूत में डालने लगे. उन्हों ने मेरी टाँगों को फेला कर बीच में अपने लिए जगह बनाई. मैं अब तक भैया के लंड को देख नही पाई थी और ख्वाहिशमंद थी कि उनके लंड को देखूं. भाई का लंड मेरी चूत पर था और अब अंदर आने वाला था. भैया का लंड मेरी गीली बुर के अंदर दाखिल होने लगा और मेरी चूत भी उनके लंड पर लपकने लगी चूँकि बहुत देर से प्यासी थी. लंड अंदर आ रहा था और आज मुझे दर्द बहुत ही कम हुआ था. भैया ने लंड थोड़ा सा अंदर किया और मेरे ऊपर लेट गये. ज़्योन्ही भैया को अपने क़रीब पाया मैने उनको अपनी बाँहों में ले लिया और उनको भूकी शेरनी की तरह चूमने लगी.

भैया ने भी मुझे लिपटा लिया और उनका लंड भी अंदर होने लगा. प्यारे और मुझ से 12 यियर्ज़ बड़े सगे भैया का लंड अपनी सग़ी छोटी 17 साल की बहेन की चूत में धीरे धीरे अंदर आ रहा था. भैया का लंड अब पूरी तरह अंदर आ चुका था और भैया ने लंड को अंदर बाहर कर'ना शुरू कर दिया था. दर्द तो था लेकिन उस्दिन के मुक़ाबले में कुच्छ कम था लेकिन मैं बर्दाश्त कर रही थी और उफ्फ तक नहीं कर रही थी. कहीं मुझ से इस क़दर प्यार करने वाले भैया फिकर मंद ना हो जाएँ. भैया मुझे चूम रहे थे और बहुत ही अहतियात से अपने लंड को अंदर बाहर कर रहे थे कि कहीं मुझे तकलीफ़ ना हो जाय. मैं भैया को खूब चूम रही थी और एक बार फिर मैं भैया के कंधे पर उसी जगह चूमने लगी. भैया ने खामोशी तोड़ी और कहा,

क्यों समा ! फिर काट'ने का इरादा है क्या?

मैने कहा,
नहीं भैया उस रात यह मेरे साथ पह'ली बार हुआ था और उस वक़्त मेरा दर्द ना क़ाबिले बर्दाश्त था.

भैया ने यह सुना तो मेरी पेशानी पर अपने होन्ट रख दिए और सॉरी कहा. भैया का लंड अभी अंदर ही था और मेरी चूत में इस'तरह फिट हो चुका था कि अगर नीडल भी डालो तो ना जाए. भैया अब बातें कर रहे थे और पूछा,

समा जानू यह कैसे हुआ.. भैया जब बहुत प्यार कर'ते तो जानू ही कहते.

मैने कहा,
तैराकी कर'ते हुए जब आप भाबी के साथ खेल रहे थे तो मेरा बहुत दिल चाहा कि आप मुझ से खेलें चूँकि आप को मैने एक बार भाबी को यह कर'ते कर'ते हुए देख लिया था जब से मेरा दिल चाह रहा था कि आप मुझ से भी इसी तरह करें. भैया का लंड मेरी चूत के अंदर खामोश बैठा हुआ था और मैं मुसलसल झूठ बोल रही थी. भैया ने फिर कहा,

तुम'ने जब देखा तब मैं तुम्हारी भाभी के साथ क्या कर रहा था? तुम ने 3 बार एस क्यों लिखा था? मैने कहा,

भैया जो आप अभी मेरे साथ कर रहे हैं, वही भाभी के साथ कर'ते हुए मैने आप'को देखा था. और 3 एस का मतलब मैने अपना पूरा नाम इसे लिए लिखा था कि आप मुझे पहचान लेंगे. इसपर भैया हंस पड़े और कहा,

यह तो अब मालूम हुआ कि 3 एस का क्या मतलब है वरना मैं तो अब तक नहीं समझा था. भैया मेरी आँखों में देख रहे थे और पूछा,

पह'ली बार दर्द तो बहुत हुआ होगा. पर तुम को भी मान'ना पड़ेगा कि उस रात मेरा पूरा घोंट गयी थी.

मैने कहा,
दर्द नहीं बल्कि उस रात तो मेरे ऊपर कयामत बरपा थी. जब आप भाबी से यह कर रहे थे तो उस वक़्त भी आपका यह भाबी के अंदर था और इस'का साइज़ मैं ठीक से देख नहीं पाई, वरना मैं शायद पहले से ज़हनी तोर पर तैयार होती. मैं भैया के सामने लंड या चूत का नाम, बावजूद सेक्स कर'ने के, नही ले पा रही थी. भैया ने जब सुना कि मैने उनका लंड नहीं देखा तो उन्हों ने फॉरन अपना लंड बाहर निकाल लिया और मेरे पहलू में लेट गये. मैं सब समझ गयी और बिजली की सी तेज़ी के साथ बैठ गयी. भैया का लंड बहुत ही हसीन लग रहा था जैसे पूरी दुनियाँ में वहीं एक लंड है बहुत ही मगरूर लग रहा था और छत की तरफ अपनी एक आँख से देख रहा था.

मैने भैया के लंड को देखा और फिर अपने प्यारे भैया के लंड को हाथों से थाम लिया. किस क़दर बड़ा था कि मेरी हथेली (पाम) से भी लंबा था और मोटा भी इतना कि मेरे हाथों में नहीं समा रहा था. गोल मटोल और खूब तंदुरस्त लंड इतना बैक़ाबू और गरम था कि मेरे हाथों में रुक ही नहीं रहा था. भैया सीधे लेटे हुए सब कुच्छ देख रहे थे कि मैं किस तरह नादीदे(ग्रीडी) की तरह अपने भैया के मस्त लंड को देख रही थी. मैं भैया की टाँगों के बीच आ गयी और बेताबी से भैया के लंड पर अपने गुलाबी होंठ रख दिए. ओहो यह तो मेरे मूँह मे बड़ी मुश्किल से आ रहा था. मैने आइस क्रीम की तरह भैया के लंड को चूसना शुरू कर दिया. कितना प्यारा लंड था और उसे चूमने मे कितना मज़ा आ रहा था.



भाई का लंड हल्का हल्का नमकीन लग रहा था और यह मेरी चूत की लज़्ज़त थी जो मैं लंड को अपनी ज़ुबान से चाट रही थी. सिर्फ़ आधा लंड मेरे मूँह में आ रहा था और वो भी बुरी तरह फँसा हुआ था. मैने लंड को हाथों से पकड़ा हुआ था और मूँह में डाल कर अंदर बाहर कर रही थी. मुझे तो मज़ा आ ही रहा था भैया भी मज़े में मचल रहे थे और मेरे बालों को सहला रहे थे. भाई का लंड मेरे मूँह मे था और ऐसा लग रहा था कि जैसे लंड की हज़ारों नसें(वेन्स) हिल रही हो. मैं लंड को चूसने के लिए कब बिस्तर से उठ कर भैया की टाँगों के बीच चली गयी, मुझे पता ही नहीं चला. भैया का सीना खूब भरा हुआ था और दोनों मर्दाना निपल्स ब्राउन कलर के थे. भैया का पत्थर(स्टोन) की तरह सख़्त सीना बहुत ही चौड़ा था और मैं पूरे सीने के एक एक इंच को मस्ती में सह'ला रही थी.

आख़िर मेरे ही सगे भैया का सीना था किसी और का नही. भैया ने मुझे पकड़ करके ऊपर खींच लिया और उन'के होन्ट अब मेरे होंठो में थे और भैया की साँसें मेरे चेहरे से टक'रा रही थी. भैया अपनी चमक दार और खूब रोशन और कूट कूट कर भरी हुई बड़ी बड़ी आँखों से मुझे देख रहे थे जबकि उनका लंड मेरी चूत के नीचे दबा हुआ इधर उधर भाग'ने की कोशिस कर रहा था. . मैं उठी और अपनी ज़ुबान से लंड को एक बार फिर गीला किया और देखा कि लंड बिल्कुल भीग चुका है. अब हम दोनो के बीच कोई शर्म ऑर हया तो थी नहीं. मैने अपने दोनो पैर भैया के चूतड़ की थाइस के दोनो तरफ रखे और उनके लंड पर अपनी चूत रख कर बैठने लगी.भीगा हुआ मगर खूब तैयार जवान लंड मैं ज्यों ही बैठी, अंदर आने लगा. मैने दोनो हाथ भैया के सीने पर रखे और आहिस्ता आहिस्ता अपना बोझ(वेट) भैया के लंड पर डालने लगी.


भैया ने मेरी दोनो चूचियों को पकड़ा हुआ था और सहला रहे थे. मैं सिर झुकाए भैया के लंड को अपने अंदर आते हुए देख भी रही थी और भैया चूचियों के अलावा मेरी कमर को भी सहला रहे थे. लंड को देख रही थी किस तरह मेरी चूत को चीर'ता हुआ अंदर आ रहा था और मेरी चूत के अन्द्रूनि हिस्से मे एक जश्न का समा था. पूरा जिस्म गन गना रहा था कि भैया का लंड अपनी बहेन की चूत को पहचान कर अंदर आ रहा था उस रात तो मालूम ही नहीं था कि लंड किस की चूत में था जबकि खुस क़िस्मत चूत को भी नहीं मालूम था कि किसका लंड अंदर आ रहा है.

लंड की हेल्त ने मेरी चूत और रूह में एक धमाका किया हुआ था. लंड अंदर आ चुका था और अब मैने भैया की तरफ सिर उठा कर देखा तो वो मुस्कुरा रहे थे. मैं उनके सीने पर लेटे हुए उन पर झुक गयी और उनके होंठो को अपने होंठो से सख्ती से पकड़ लिया.

मैने कहा, भैया यह वही चादर है जिस पर मैने और भाबी ने आपसे पहली बार कर'वाया था. भाई ने यह सुना तो और भी जज़्बाती हो गये और मेरी आँखों को चूसना शुरू कर दिया. उनका लंड भी यह सुन लिया था. वो भी चूत के अंदर ही हिलकर अपनी इस खुशी का ऐलान कर रहा था. मैं भैया के लंड पर ऊपेर नीचे होने लगी और दर्द जो हो रहा था वो अच्छा लग रहा था. मैं भैया के लंड को चूत से प्यार कर रही थी और अंदर बाहर करने का खेल खेल रही थी और लंड भी पूरा साथ दे रहा था. भाई जान मेरी ज़ुबान को चूस रहे थे और उन्हों ने अपने हाथों से कमर को भी पक'डा हुआ था.

मैं भाई की पेशानी पर होन्ट रखी हुई थी और मेरी चूचियाँ भैया के होंठो पर थी. मेरा दिल भी चाह रहा था कि भैया मेरी मासूम और उभरी हुई चूचियों को चूसें और वे अच्छे भैया की तरह चूस रहे थे. मैं खूब मस्त हो चुकी थी और लंड को यूँ अंदर बाहर कर रही थी कि जैसे लंड को सज़ा(पनिश) दे रही हूँ. अब मैं और तेज हो गयी और मेरी साँसें भी तेज हो गयीं. मैं इत'नी ज़ोर ज़ोर से भैया के लंड पर उठ कर बैठ रही थी कि जब लंड पर बैठ'ती तो टीवी की आवाज़ के बावजूद धप की आवाज़ आती. भाई के लंड में भी अंदर ही अंदर कुच्छ ज़्यादा हलचल मची हुई थी. भैया ने मेरी मांसल गान्ड पर अपने हाथ रखे हुए थे और वो भी मेरे चुतड़ों को खूब ज़ोर लगा कर भींच रहे थे.

हम दोनो की आँखों की चमक और रूह की तड़प बढ़ चुकी थी और अब एक मशीन की तरह भाई बहेन के लंड चूत का मुक़ाबला हो रहा था. मेरे भैया के लंड ने अपनी थमी हुई मोहब्बत मेरी चूत मे उगल दी और मेरी चूत ने भी अपना सब कुच्छ उगल दिया. हम दोनो रुक गये थे और एक दूसरे को होंठो और गालों पर खूब काट रहे थे. भैया कभी लबों को, कभी गालों को और कभी आँखों को चूम रहे थे और मैं भी इस'तरह उन्हे प्यार कर रही थी जैसे माँ रूठे हुए बच्चे को प्यार कर'ती हो.

मेरा जिस्म फूलों की तरह हल्का फूलका हो चुका था. भैया का लंड भी मेरी चूत को चोद करके निकल चुका था. मैं उठी और मैने एक बार भैया के लंड को देखा कि वो इस हालत में भी कितना बड़ा था. मैने उसे अपनी आँखों से लगा कर प्यार किया और भैया के पहलू में आ गयी. मैने भैया को गले लगा कर चूमा और भाई ने भी मुझे प्यार किया. भैया चले गये और मैं लकी चादर को देख'ती रही जो आज फिर सगे भाई बहेन के मिलाप से गीली हो गयी थी. भाबी तो थी नहीं रात को भैया अपनी जानू के बिस्तर पर आ गये और फिर वहीं हुआ जिसका हमे शौक नहीः जुनून था.

समाप्त
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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rajsharma
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Re: लक्की चादर

Post by rajsharma »

mastram wrote:mast kahani hai Raj bhai
Dhanywad dost
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pongapandit
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Re: लक्की चादर

Post by pongapandit »

*कही मेरा सोचना गलत तो नही आप ही बताइये*
1- दूध पीने से शरीर का विकास होता है.....
तो बिल्ली आज भी वर्षो से एसी ही है 😜😜

2- waking करने से चर्बी कम होती हैं....
तो हाथी का वज़न कम कहा हुवा 😠

3- तैरने से शरीर स्लीम होता है..
तो व्हेल मच्छी पतली हो गई होती 😃😃😃

4- हर रोज़ जल्दी उठने से समृद्धि घर में आती है...
तो पेपर बेचने वाला BMW मे घूमते. 😳

5 आप भी जादा चक्कर मे मत पडो जैसे हो ठीक हो !

😜😃😌😉😀😀
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