एक न एक दिन तो फंसेगी ही

Post Reply
User avatar
rangila
Super member
Posts: 5698
Joined: 17 Aug 2015 16:50

एक न एक दिन तो फंसेगी ही

Post by rangila »

एक न एक दिन तो फंसेगी ही

बड़ी नटखट और चुलबुली सी लड़की मंजू (औरत ही लगती थी वह) उस समय करीब इक्कीस या बाइस साल की होगी। भरी जवानी उसके कपड़ों में से जैसे छलक रही थी। वैसे भी उनकी जमात में छोटे ब्लाउज और छोटा घाघरा ही पहनते थे। शायद वह कबायली जाती की थी। कानों में बाली, नाक में नथनी, आँख में काजल और हाथ और पाँव के नाखुन लाल रंग से रँगे, मंजू साक्षात रति की प्रतिकृति लगती थी। ऐसे हो ही नहीं सकता की मंजू को देखते ही, कोई भी मर्द का मन और लण्ड मचल ने न लगे। उसकी भौंहें गाढ़ी और नजर तीखी थी।

उसके उरोज इतने उभरे हुए थे की उनको उस धागों से कारीगिरी भरी और आयने के छोटे छोटे गोल गोल टुकड़ों को अलग अलग भड़काऊ रंगीले कपड़ों में भरत काम से शुशोभित चोली में समाना लगभग नामुमकिन था। उसके लाल पंखुड़ियों जैसे होठों को लिपस्टिक की जरुरत ही नहीं थी। वह जब चलती थी तो पिछेसे उसकी गांड ऐसे थिरकती थी की देखने वाले मर्दों का सोया हुआ लण्ड भी खड़ा हो जाए। हमारे घर में वह बर्तन, झाड़ू पोछा का काम करती थी।

वह बर्तन साफ़ करने अपना घाघरा अपनी टांगों पे चढ़ा कर जब बैठती थी तो वह एक देखने वाला द्रश्य होता था। मैं उस समय स्कूल में पढ़ता था। मैं अक्सर कई बार उसे बर्तन माँजते हुए देखता रहता था और मन ही मन बड़ा उत्तेजित होता था। जब मैं उसे लोलुपता भरी नजरों से देखता था तो वह भी मुझे शरारत भरी नजरों से देख कर मुस्कुराती रहती थी। मैं अकेला ही नहीं था जो मंजू के बर्तन साफ़ करने के समय उसकी जाँघों को देखने का शौक़ीन था। एक और शख्श भी उसका दीवाना था। उसका नाम था देव प्रसाद। सब उसे देव के नामसे बुलाते थे। हमारी कोठीमें वह पाइप से पानी भरने लिए आता था। वह यूपी का भैया था और हॉस्पिटल में वह वार्ड बॉय का काम करता था।

हम एक छोटे से शहर में रहते थे। मेरे पिताजी एक डॉक्टर थे। हमें हॉस्पिटल की और से रहनेके लिए घर मिला था जिसमें पानी का नल नहीं था। हॉस्पिटल के प्रांगण में एक छोटा सा बगीचा था। उसमें एक नल था। हमारे घरमें एक बड़ी टंकी थी जिसमें रोज सुबह देव एक लम्बे पाइप से उस नल से पानी भर जाता था। उसी में से रोज हम पानी का इस्तेमाल करते थे।

पता नहीं क्यों, पर मंजू भी शायद मुझे पसंद करती थी। मैं उससे छोटा था। वह मुझे छोटे भैया कह कर बुलाती थी। खास तौर से जब माँ कहीं बाहर गयी होती थी और घरमें मैं अकेला होता था तो झाड़ू लगाते हुए अवसर मिलता था तब वह मेरे कमरे में आती थी वह मेरे पास आकर अपनी मन की बातें करती रहती थी। शायद इस लिए क्यूंकि मैं उसकी बातों को बड़े ध्यान से सुनता था और बिच बिच में अपने सुझाव या अपनी सहमति दर्शाता था। इसी लिए शायद वह मुझे भी खुश रखना चाहती थी।

मैं उससे उम्र में छोटा था। उसका और मेरा शारीरिक सम्बन्ध उन दिनों होना संभव नहीं था फिर भी वह थोड़े समय के लिए ही सही, मेरे पास आकर कुछ न कुछ बातें जरूर करती थी। और मैं जब कुर्सी या पलंग पर से पाँव लटका कर बैठता था तो वह मेरे पास आकर निचे बैठ कर मेरे पाँव पर थोड़ी देर के लिए अपना हाथ फिरा देती थी जिससे मेरे मनमें एक अजीब सा रोमांच होता था और मेरे पाँव के बिच मेरा लण्ड फड़फड़ाने लगता था। पर मैं उस समय अपनी यह उत्तेजना को समझ नहीं पाता था।

अक्सर देव सुबह करीब साढ़े नव बजे आता था। उसी समय मंजू भी झाड़ू, पोछा, बर्तन करने आती थी। मैं देखता था की देव मंजू को देख कर मचल जाता था। कई बार मेरी माँ के इधर उधर होने पर वह मंजू को छूने की कोशिश करता रहता था। पर मंजू भी बड़ी अल्हड थी। वह उसके चंगुल में कहाँ आती? वह हँस कर देव को अंगूठा दिखाकर भाग जाती थी। मंजू की हँसी साफ़ दिखा रही थी की वह देव को दाना डाल रही थी। घर में सब लोगों के होते हुए देव भी और कुछ कर नहीं पाता था।

एक दिन माँ पूजा के रूम में थी। माँ को पूजा करने में करीब आधा घंटा लगता था। देव को यह पता था। मंजू घर के सारे कमरे में झाड़ू लगा रही थी। जैसे ही देव पाइप लेकर आया की मंजू ने मुझसे बोला, "देखो ना छोटे भैया, आजकल के जवानों के पास अपना तो कुछ है नहीं तो लोगों को पाइप दिखा कर ही उकसाते रहते हैं।" ऐसा कह कर वह हँसते हुए भाग कर पूजा के कमरे में झाड़ू लगाने के बहाने माँ के पास चली गयी।

वह देव को छेड़ रही थी। थोड़ी देर के बाद मंजू जब झाड़ू लगाकर माँ के कमरे से बाहर आयी तो देव अपना काम कर रहा था। जब देव ने उसे देखा तो देव फुर्ती से मंजू के पास गया और उसको अपनी बाहों में जकड लिया। मंजू देव के चँगुल में से छूटने के लिए तड़फड़ाने लगी, पर उसकी एक भी न चली। तब उसने जोर से माँ के नाम की आवाज लगाई। देव ने तुरंत उसे छोड़ दिया। जैसे ही मंजू भाग निकली तो देव ने कहा, :आज तो तू माँ का नाम लेकर भाग रही है, पर देखना आगे मैं तुझे दिखाता हूँ की मुझे पाइप से काम नहीं चलाना पड़ता। मेरे पास अपना खुद का भी मोटा सा पाइप है, जिसका तू भी आनंद ले सकती है।"

मंजू उससे दूर रहते हुए बोली, "हट झूठे, बड़े देखें है आजकल के जवान।" और फिर फुर्ती से घर के बाहर चली गयी।

मैं देव को देखता रहा। देव ने कुछ खिसियाने स्वर में कहा, "भैया यह नचनियां मुझ पर डोरे डाल तो रही है, पर फंसने से डरती है। साली जायेगी कहाँ? एक न एक दिन तो फंसेगी ही। "

खैर उसके बाद कुछ दिनों तक देव छुट्टी पर चला गया। मंजू आती थी और मैं देख रहा था की उसकी आँखें देव को ढूंढती रहती थी। दो दिन के बाद जब मैंने देखा की वह देव को ढूंढ तो रही थी पर बेबसी में किसी को पूछ ने की हिम्मत जुटा नहीं पा रही थी। मैंने तब चुपचाप मंजू के पास जा कर कहा, "देव छुट्टी पर गया है। उसके दादा जी का स्वर्गवास हो गया है। एक हफ्ते के बाद आएगा।"

तब वह अंगूठा दिखाती ठुमका मारती हुई बोली, "उसको ढूंढेगी मेरी जुत्ती। मुझे उससे क्या?"

मैं जान गया की वह सब तो दिखावा था। वास्तव में तो मंजू का दिल उस छोरे से लग गया था और उसका बदन देव को पाने के लिए अंदर ही अंदर तड़प रहा था।

करीब दस दिन के बाद जब देव वापस आया और घरमें पाइप लेकर आया तो मंजू को देख कर बोला, "याद कर रही थीं न मुझे? बेचैन हो रही थीं न मेरे बगैर?"

मंजू अंदर से तो बहुत खुश लग रही थी, पर बाहर से गुस्सा दिखाती हुई बोली, "कोई आये या कोई जाए अपनी बला से। मुझे क्या पड़ी है? मझे बता कर कोई थोड़े ही न जाता है?" बात बात में मंजू ने देव को बता ही दिया की उसके न बता ने से मंजू नाराज थी।

खैर देव के आते ही वही कहानी फिर से शुरू हो गयी। देव मौक़ा ढूंढता रहता था, मंजू को छूने का या उसे पकड़ने का, और मंजू बार बार उसे चकमा दे कर भाग जाती थी।

जब देव आता और मंजू को घाघरा ऊपर चढ़ाये हुए बर्तन मांजते हुए देखता तो वह उसे आँख मारता और सिटी बजा कर मंजू को इशारा करता रहता था। मंजू भी मुंह मटका कर मुस्कुरा कर तिरछी नजर से उसके इशारे का जवाब देती थी। हररोज मैं मेरे कमरे की खिड़की में से मंजू और देव की यह इशारों इशारों वाली शरारत भरी हरकतें देखता रहता था। उस समय मुझे सेक्स के बारें में कुछ ज्यादा पता तो नहीं था पर मैं समझ गया था की उन दोनों के बिच में कुछ न कुछ खिचड़ी पक रही थी। मैं मन ही मन बड़ा उत्सुक रहता था यह जानने के लिए की आगे क्या होगा।

कुछ अर्से के बाद मुझे भी मंजू की और थोड़ा शारीरिक आकर्षण होने लगा। मैं उसके अल्हडपन और मस्त शारीरिक रचना से बड़ा उत्तेजित होने लगा। मैंने अनुभव किया की मेरा लण्ड उसकी याद आते ही खड़ा होने लगता था। मुझे मेरे लण्ड को सहलाना अच्छा लगने लगा। पर मैं तब भी मेरी शारीरिक उत्तेजनाओं को ठीक से समझ नहीं पा रहा था।

एकदिन मैं अपने कमरे में बैठा अपनी पढ़ाई कर रहा था। माँ पडोसी के घर में कोई धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होने गयी थी। झाड़ू लगाते हुए मंजू मेरे कमरेमें आ पहुंची। जब उसने देखा की आसपास कोई नहीं था तो वह मेरे पास आयी और धीरे से फुफुसाकर बोली, "छोटे भैया, एक बात बोलूं? तुम बुरा तो नहीं मानोगे?"

मैं एकदम सावधान हो गया। लगता था उस दिन कुछ ख़ास होने वाला था। मैंने बड़ी आतुरता से मंजू की और देखा और कहा, "नहीं, मैं ज़रा भी बुरा नहीं मानूंगा। हाँ, बोलो, क्या बात है?"

मंजू मेरे [पाँव के पास आकर बैठ गयी और बोली, "तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो। तुम सीधे सादे भले इंसान हो। आगे चलकर पढ़ लिख कर तुम बड़े इंसान बनोगे। मैं भला एक गंवार और गरीब। क्या तुम मुझे याद रखोगे?"

ऐसा कह कर वह मेरे निचे लटकते पाँव पर वह हलके हलके प्यारसे हाथ फिराने लगी। उस दिन मैंने चड्डी पहन रखी थी। धीरे धीरे उसका हाथ ऊपर की और बढ़ा और उसने मेरी जांघों पर हाथ फिराना शुरू किया। मेरे मनमें अजीब सी हलचल शुरू हो गयी। मंजू ने फिर उसका हाथ थोड़ा और ऊपर लिया और उसका हाथ मेरी चड्डी के अंदर घुसेड़ा। मैं थोड़ा हड़बड़ाकर बोला, "मंजू यह क्या कर रही हो?"

मंजू अपना हाथ वहीं रखकर बोली, "भैया, अच्छा नहीं लग रहा है क्या? क्या मैं अपना हाथ हटा दूँ?"

मैं चुप रहा। अच्छा तो मुझे लग ही रहा था। मैं जूठ कैसे बोलूं। मैंने कहा, "ऐसी कोई बात नहीं, पर यह तुम क्या कर रही हो?"

"ऐसी कोई बात नहीं" यह सुनकर मंजू समझ गयी की मुझे उसका हाथ फिराना बहुत अच्छा लग रहा था। उसने अपना हाथ मेरी चड्डी में और घुसेड़ा और मेरा लण्ड अपनी उँगलियों में पकड़ा और उसे प्यार से एकदम धीरे धीरे हिलाने लगी। मेरा लण्ड किसी ने पहली बार पकड़ा था। मुझे एहसास हुआ की मेरे लण्ड में से चिकनाई रिसने लगी थी। उस चकनाई से शायद मंजू की उंगलियां भी गीली हो गयी थी। पर मंजू ने मेरे लण्ड को पकड़ रखा। जब मैंने उसका कोई विरोध नहीं किया तो साफ़ था की मैं भी मंजू के उस कार्यकलाप से बहुत खुश था। मैंने महसूस किया की मेरा लण्ड एकदम बड़ा और खड़ा हो रहा था। देखते ही देखते मेरा लण्ड एकदम कड़क हो गया।

मंजू ने बड़े प्यार से मेरी निक्कर के बटन खोल दिए और मेरे लण्ड को मेरी चड्डी में से बाहर निकाल दिया। मंजू बोली, "ऊई माँ यह देखो! हे दैया, यह तो काफी बड़ा है! लगता है अब तुम छोटे नहीं रहे। भैया, देखो, यह कितना अकड़ा हुआ और खड़ा हो गया है।"

मैं खुद देखकर हैरान हो गया। मैं मंजू की और देखता ही रहा। मेरा गोरा चिट्टा लण्ड उसकी उँगलियों में समा नहीं रहा था। मंजू ने कहा, "भैया तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो। चलो आज मैं तुम्हें खुश कर देती हूँ।"

ऐसा कहते हुए मंजू ने मेरे लण्ड को थोड़ी फुर्ती से हिलाना शुरू किया। तब मेरी हालत देखने वाली थी। मैं उत्तेजना के मारे पागल हो रहा था। मैंने लड़का लडकियां एक दूसरे से सेक्स करतें हैं और उसमें लण्ड की भूमिका होती है यह तो सूना था पर यह पहली बार था की मेरा लण्ड कोई दुसरा इंसान हिला रहा था। जब भी मुझे कोई उत्तेजनात्मक विचार आता था या तो मैं कोई लड़की की सेक्सी तस्वीर देखता था तो मैं ही अपना लण्ड सहलाता था। पर जब मंजू की उंगलियां मेरे खड़े लण्ड से खेलने लगी तो मुझे एक अजीब एहसास हुआ जो बयान करना मुश्किल था।

मेरे पुरे बदन में एक अजीब सी उत्तेजना और आंतरिक उन्माद महसूस होने लगा। न सिर्फ मेरा लण्ड बल्कि मेरे पूरा बदन जैसे एक हलचल पैदा कर रहा था। जैसे जैसे मंजू ने अपनी उंगलियां मेरे लण्ड की चमड़ी पर दबा कर उसे मुठ मारना तेजी से शुरू किया तो मेरे मन में अजीब सी घंटियाँ बजने लगीं। मंजू ने मुठ मारने की अपनी गति और तेज कर दी। अब मैं अपने आपे से बाहर हो रहा था ऐसा मुझे लगने लगा।

मैंने मंजू का घने बालों वाला सर अपने दोंनो हाथों के बिच जकड़ा और मेरे मुंह से निकल पड़ा, "अरे मंजू यह तुम क्या कर रही हो?" मुझे एक अजीब सा अद्भुत उफान अनुभव हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे मैं उत्तेजना के शिखर पर पहुँच रहा था। मेरा पूरा बदन अकड़ रहा था। मैं मंजू के हाथ से किया जा रहा हस्तमैथुन की लय में लय मिलाते हुए अपना पेडू ऊपर निचे करने लगा जिससे मंजू को पता लग गया की मैं भी काफी उत्तेजित हो गया था और जल्दी ही झड़ने वाला था। मंजू ने अपने हाथों से मुठ मारने की गति और तेज कर दी। मेरा सर चक्कर खा रहा था। एक तरह का नशा मेरे दिमाग पर छा गया था। मेरे शरीर का कोई भी अंग मेरे काबू में नहीं था।

एक ही झटके में मेरे मुंह से "आह..." निकल पड़ी और इस तरह सिसकारियां लेते हुए मैंने देखा की मेरे लण्ड में से पिचकारियां छूटने लगीं। सफ़ेद सफ़ेद मलाई जैसा चिकना पदार्थ मेरे लण्ड में से निकला ही जा रहा था। मंजू की उंगलियां मेरी मलाई से सराबोर हो गयीं थी।

मैंने पहली बार मेरे लण्ड से इतनी मलाई निकलते हुए देखि। इसके पहले हर बार जब मैं उत्तेजित हो जाता था, तब जरूर मेरे लण्ड से चिकना पानी रिसता था। पर मेरे लण्ड से इतनी गाढ़ी मलाई निकलते हुए मैंने पहली बार देखि।

मंजू अपनी उँगलियों को अपने घाघरे से साफ़ करते हुए बोली, " भैया अब कैसा लग रहा है?"

मैं बुद्धू की तरह मंजू को देखता ही रह गया। मेरी समझ में नहीं आया की क्या बोलूं। उस समय मैं ऐसे महसूस कर रहा था जैसे मैं आसमान में उड़ रहा था। मैं अपने आपको एकदम हल्का और ताज़ा महसूस कर रहा था जैसे पहले कभी नहीं लगा। इतना उत्तेजक और उन्माद पूर्ण अनुभव उसके पहले मुझे कभी नहीं हुआ था।

मेरी शक्ल देखने वाली रही होगी, क्यूंकि मेरी शक्ल देखकर मंजू खिलखिला कर हंस पड़ी और बोली, "देखा न? अब चेहरे पर कैसी हवाईयां उड़ रही हैं? भैया आज आप एक लड़के से मर्द बन गए। अब समझलो की आपको कोई अपनी मर्जी से तैयार हो तो ऐसी औरत को चोदने का लाइसेंस मिल गया। "

मैं मंजू के इस अल्हड़पन से हतप्रभ था। एक लड़की कैसे इतनी खुल्लमखुल्ला सेक्स के बारेमें ऐसी बात कर सकती है, यह मेरी समझ से बाहर था। खैर, उस दिन से जब भी मौक़ा मिलता, मंजू जरूर मेरे कमरे में झाड़ू पोछे का बहाना करके आती और एक बार मेरे लण्ड को छूती। जब कोई नहीं होता तो वह अपने हाथों से मुझे हस्तमैथुन करा देती। मैं भी उसका इंतजार करने लगा। पर यह कहानी मेरे बारे में नहीं है।
User avatar
rangila
Super member
Posts: 5698
Joined: 17 Aug 2015 16:50

Re: एक न एक दिन तो फंसेगी ही

Post by rangila »


देव के वापस आने के बाद देव और मंजू की शरारत भरी मस्ती बढ़ती ही जा रही थी। करीब हर रोज, माँ की नजर चुका कर देव मंजू को जकड ने कोशिश में लगा रहता था और मंजू उसे अंगूठा दिखाकर एक शरारत भरी नजर से देख हंस कर खिसक जाती थी। एक दिन सुबह मैं कमरे में पढ़ाई कर रहा था तब मंजू आयी। थोड़ी देर तक तो हम दोनों बात करते रहे पर फिर मुझसे रहा नहीं गया, तो मैंने पूछ ही लिया की उसके और देव के बिच में क्या चल रहा था।

मंजू ने मुझे कहा,"छोटे भैया, उसके लण्ड में जवानी की खुजली हो रही है। वह अपनी हवस की भूख मुझसे बुझाना चाहता है। "

तब मैंने मंजू की और देखा और पूछा, "और तुम? तुम क्या चाहती हो?"

मंजू ने सीधा जवाब दिया, "छोटे भैया, सच कहूं? मेरा भी वही हाल है। मुझे भी खुजली हो रही है। पर मैं आसानी से उसके चुंगल में फंसने वाली नहीं हूँ। मैं देखना चाहती हूँ की उसमें कितना दम है।"

मैं मंजू की बात सुन हैरान रह गया। बापरे! एक सीधी सादी गॉंव की लड़की और इतनी चालाक?

मेरी उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी। मैं देखना चाहता था की उन दोनों की जवानी क्या रंग लाती है।

ऐसे ही दिन बितते चले गए। देव को मंजू को फाँसने का मौक़ा नहीं मिल रहा था। माँ के रहने से मंजू को खिसक ने का मौक़ा मिल जाता था, और देव हाथ पे हाथ धरे वापस चला जाता था।

कुछ दिनों के बाद एक दिन हमारी कॉलोनी के दूसरे छोर पर सुबह कॉलोनी की सारी महिलाओं ने मिलकर एक घर में सत्संग का कार्यक्रम रखा था। माँ सुबह तैयार हो कर मुझे घर का ध्यान रखने की हिदायत दे कर सत्संग में जाने के लिए निकली। मैं अपनी पढ़ाई में लगा हुआ था की मंजू आयी और बर्तन मांजने बैठ गयी। बर्तन करने के बाद जब रसोई में झाड़ू लगा रही थी तब तो देव प्रसाद पाइप लेकर घरमें दाखिल हुआ। उसे पता लग गया की घर में मेरे और मंजू के अलावा कोई नहीं था।

देव ने मुझे देखा तो इशारा कर के मुझे मंजू के बारेमें पूछने लगा। मैंने देव को रसोई की और इशारा किया। देव समझ गया की मंजू रसोई में है। देव ने मुझे अपने नाक और होंठों पर उंगली रखकर चुप रहने का इशारा किया। मैं समझ गया की उस दिन कुछ न कुछ तो होने वाला था। बस फिर क्या था? उसने चुपचाप टंकी में पाइप डाला और बाहर जा कर नलका खोल कर पाइप को टंकी में पानी भर ने छोड़ दिया। मंजू तब रसोई घर में झाड़ू लगा रही थी। उसे पता नहीं था की देव आया था। देव चोरीसे दरवाजे के पीछे छुपते हुए मंजू को देखने लगा। मैं सारा नजारा देख रहा था। जैसे ही मंजू दरवाजे से बाहर निकलने लगी की देव ने उसे अपनी बाहों में दबोच लिया।

मंजू देव की बाहोंमें छटपटाने और चिल्लाने लगी। उसे पता था की घरमें मेरे अलावा कोई भी नहीं था। जैसे तैसे देव से अपने आपको छुड़ा कर वह मेरे कमरे की और भागी और मेरे कमरे में घुस कर उसने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। मैं अपने कमरे में ही था। तब मैंने मंजू से पूछा, "क्या मैं चिल्ला कर सब को बुलाऊँ?"

मंजू ने मेरा हाथ पकड़ा और बोली, "यह हमारे तीनों के बिच की बात है। किसी चौथे को पता नहीं लगना चाहिए। ठीक है?"

मैंने अपना सर हिलाया। उधर बाहर से देव दरवाजा खटखटाने लगा। मैंने मंजू की और देखा। वह जोर जोर से हाँफ रही थी। जोर जोर से सांस लेने के कारण उसकी छाती धमनी की तरह ऊपर निचे हो रही थी। उसके मोटे फल सामान परिपक्व स्तन ऊपर निचे हो रहे थे। मैं उसे देखते ही रहा। मंजू ने मुझे उसकी छाती को घूरते हुए देखा तो बोली, "कैसी लग रही है मेरी चूचियां? मेरे मम्मे अच्छे लग रहे हैं ना? तुम्हें उनको छूना है क्या?"

मैं घबड़ाया हुआ मंजू की और देखने लगा। मंजू ने मेरा हाथ पकड़ा और अपनी छाती पर रखा और बोली, "दबाओ मेरे शेर, इन्हें खूब दबाओ। आज इन्हें खूब दबना है।"

मैं भी पागलों की तरह मंजू के दोनों स्तनों को अपने दोनों हाथों से उसकी चोली के ऊपर से ही जोर से दबाने लगा। आह! कितने मुलायम और कितने कड़क थे उसके मम्मे! उतने में ही बाहर से देव की जोर से दरवाजा खटखटाने की आवाज आयी। वह हमें दरवाजा खोलने के लिए कह रहा था। मैंने फिर मंजू की देखा। मैंने मंजू से कहा, "आज देव तुम्हें नहीं छोड़ेगा। आज वह पक्के इरादे से आया लगता है। क्या करना करना है, बोलो?"

मंजू की सांस थोड़ी थमी तो वह बोली, "धीरे से अचानक ही दरवाजा खोलना। मैं निकल कर भागुंगी। मैं देखती हूँ वह मुझे कैसे पकड़ पाता है?"

मैं चुपचाप दरवाजे के करीब खड़ा हो गया, और एक ही झटके में मैंने दरवाजा खोल दिया। मंजू एकदम निकल कर भागी। पर उसका इतना बड़ा और मोटा घाघरा उसको ज्यादा तेजी से कहाँ भागने देने वाला था? थोड़ी ही दुरमें देव ने भाग कर पकड़ लिया और उसे अपनी बाहोंमें फिरसे दबोच लिया। अब मंजू कितना भी छटपटाये वह उसे छोड़ने वाला नहीं था। देखने की बात वह थी की मंजू भी उसकी पकड़ से छूटने की बड़ी भारी कोशिश कर रही थी पर थोड़ा सा भी चिल्लाना तो क्या आवाज भी नहीं निकाल रही थी। ऐसा लग रहाथा जैसे वह नहीं चाहती थी की कोई उसे छुड़ाए पर वह जैसे देव की मर्दानगी को चुनौती दे रही थी।

देव की चंगुल से छूटने के लिए वह देव के दोनों हाथों का पाश, जो उसकी छाती पर था उसे खोलने का जोरों से प्रयास कर रही थी। मंजू की छाती फिर से श्रम के कारण हांफने से ऊपर निचे हो रही थी। मंजू की परिपक्व स्तन ऐसे फुले हुए थे जैसे कोई दो बड़े गोल बैंगन उसकी छाती में रख दिए गए हों। मंजू के जोर जोर से सांस लेने से वह ऐसे फ़ैल रहे थे और ऊपर नीचे हो रहे थे जिसको देखकर किसीका भी लण्ड फुफकारे मारने लगे। देव के बाहों में मंजू के बड़े स्तन इतने दबे हुए थे फिर भी वह दबने से फूलने के कारण देव के हाथ के दोनों तरफ फ़ैल रहे थे और साफ दिख रहे थे। देव ने मंजू के दोनों पांवों को अपने दोनों पांवों के बिच में फँसा कर उसकी गांड के पीछे अपना लण्ड दबा रखा था। मंजू असहाय हो कर फड़फड़ा रही थी।

साथ ही साथ मंजू देव को उल्ट पुलट बोल कर उकसा भी रही थी, "साले छोड़ मुझे। तू क्या सोच रहा है, मैं इतनी आसानी से फँस जाउंगी। अरे तू मुझे क्या फाँसेगा, देख मैं कैसे भाग जाती हूँ। ताकत है तो रोक ले मुझे। मैं भी देखती हूँ तू क्या कर सकता है। अरे तुझमें ताकत है तो अपनी मर्दानगी दिखा मुझे।" ऐसा और कई बातें बोलकर जैसे वह देव को और भड़काना चाहती थी। पर देव उसे कहाँ छोड़ने वाला था। देव ने मंजू को अपनी बाहोंमें ऐसे जकड कर कस के पकड़ा था की आज वह छूट नहीं सकती थी।

मंजू के जवाब में देव भी बोलने लगा, "साली, तू क्या समझती है? मैं क्या कोई ऐसा वैसा ढीलाढाला नरम मर्द हूँ जो तु मुझसे इतनी आसानी से पिंड छुड़ा कर भाग जायेगी और फिर मुझे इशारा कर के उकसाती और भड़काती रहेगी? मैं जानता हूँ की तेरी चूत में मेरे लण्ड के लिए बहुत खुजली हो रही है। इसी लिए तू मुझे हमेशा उकसाती और भड़काती रहती है। अगर तु मुझे पसंद नहीं करती है तो मुझे अभी बोल दे, मैं तुझे इसी वक्त छोड़ दूंगा। मैं तेरे पर कोई जबर दस्ती नहीं करूंगा, पर तू मुझे चुनौती मत दे और यह मत सोच की अगर तू मुझे उकसाएगी तो मैं चुपचाप बैठूंगा। तुझे मेरी मर्दानगी देखनी है न? तो मैं तुझे आज मेरी मर्दानगी दिखाऊंगा।"

उस तरफ मंजू भी कोई कम नहीं थी। वह बोली, "अच्छा? तू मुझे चुनौती दे रहा है? अरे तू मुझे अपनी मर्जी से क्या छोड़ेगा? मैं कोई तुझसे कम नहीं हूँ। मैं खुद ही इतनी ताकतवर हूँ की तुझको आसानी से मात दे दूंगी। और तू क्या कहता है, मैं तुझे यह कह कर मुझे छोड़ने के लिए भीख मांगू की तू मुझे पसंद नहीं है? अरे पसंद नापसंद की तो बात ही नहीं है। जो मुझे वश में कर लेगा मैं तो उसीकी बनकर रहूंगी। तुझमें यदि ताकत है तो मुझे उठाकर कमरे में ले जा और दिखा अपनी मर्दानगी। तू क्या सोच रहा था की आज घर में कोई नहीं है तो क्या मैं तुझसे ड़र जाउंगी? मैं डरने वालों में से नहीं।"

यह साफ़ था की मंजू देव से छूटना नहीं चाहती थी। वह देव को मर्दानगी की बार बार चुनौती देकर शायद यह साबित करना चाहती थी की अगर देव को उसे चोदना है तो उसे वश में करना पडेगा। मेरे लिए भी यह प्रसंग कोई पिक्चर के उत्तेजक द्रश्य से कम नहीं था। मेरा भी लण्ड खड़ा हो गया और मेरे जांघिए में फटकार मारने लगा। मेरा हाथ बार बार मेरे पांवों के बिच में जाकर मेरे चिकने लण्ड को सहलाने लगा।

अगर मंजू देव को कहती की देव उसे पसंद नहीं तो देव उसे छोड़ देता। यह साफ़ था की देव उसपर जबरदस्ती या बलात्कार करना नहीं चाहता था। पर वह तो देव को बार बार चुनौती दे कर के उसके चुंगुल में फंसना ही चाहती थी, ऐसा मुझे साफ़ साफ़ लगा। बस फर्क सिर्फ इतना ही था की वह देव को उसे चोदने का खुल्लम खुल्ला आमत्रण नहीं दे रही थी। शायद कोई भी साधारण नारी कोई भी मर्द से चुदवाने के लिए ऐसा खुल्लम खुल्ला निमत्रण नहीं देगी।

जब देव ने मंजू से सूना की वह देव को चुनौती दे रही थी की अगर देव उसे वश में कर लेगा तो मंजू उसीकी बन जायेगी, तो देव में अजब का जोश आगया। उसने मंजू की गांड अपने दोनों पाँव के बिच में फँसायी और पिछेसे उसे धक्का मारने लगा। उपरसे अपने हाथों का पाश थोड़ा ढीला करके एक हाथ उसने हटाया और वह मंजू के मम्मों को दबाने लगा।

मंजू को एक मौक़ा मिल गया। जैसे ही देव का पाश थोड़ा ढीला पड़ा की मंजू ने एक धक्का देकर देव का हाथ हटा दिया और भागने लगी। पर उसके पाँव तो देव के पाँव में फंसे हुए थे। भागती कैसे?मंजू धड़ाम से निचे गिर पड़ी। साथ में अपना संतुलन न रखने के कारण देव भी साथ में मंजू के ऊपर गिरा। तब मंजू निचे और देव ऊपर हो गए। मैंने देखा की देव ने मंजू को जमींन पर लेटे हुए अपनी बाहों में ले लिया। अब उसके होंठ मंजू के होंठों से लगे हुए थे। उसने अपने होंठ मंजू के होंठों पर भींच दिए और मंजू के होंठों को चुम्बन करने लगा। उसका कड़ा लण्ड मंजू के घाघरे के उपरसे उसकी चूत में ठोकर मार रहा था। मंजू देव के दोनों बाँहों में फँसी हुई थी। देव ने मंजू को अपने निचे ऐसे दबा रखा था की हिलना तो दूर की बात, मंजू साँस भी ठीक तरह से ले नहीं पा रही थी।

मुझे तब लगा की मंजू भी अब देव के चुंगल में फँस ही गयी। देव के मुंह की लार उसके मुंह में जाने लगी। देव ने अपनी जीभ से मंजू के होंठ खोले और उसमें अपनी जीभ घुसेड़ी। आखिर में विरोध करते हुए भी मंजू ने अपना मुंह खोला और देव की लार अपने मुंहमें चाव से निगल ने लगी। देव अपनी जीभ मुंह में डाल ने की कोशिश कर रहा था। थोड़े से औपचारिक विरोध के बाद मंजू ने जीभ को मुंह में ले लिया और उसे चूसने लगी। अब ऐसा लग रहा था की मंजू आखिर में देव के चँगुल में फँस ही गयी थी। जब देव ने देखा की मंजू अब उसके जाल में फँस गयी है और देव के वजन से दबने के कारण वह ठीक से सांस नहीं ले पा रही थी, तो देव को मंजू पर तरस आगया। वह थोड़ा शिथिल हो गया। वह मंजू के उपरसे थोड़ा खिसका ताकि मंजू ठीक से सांस ले सके।

पर मंजू भी तो एक जंगली बिल्ली से कम नहीं थी वह इतनी आसानी से फँसने वाली नहीं थी। जैसे ही देव खिसका की मंजू उठ खड़ी हुई और उसने एक जोर का धक्का लगा कर देव को एक तरफ गिरा दिया और एक लम्बी छलांग मार के कमरे में से बाहर की और भागी। भागते हुए वह देव को अपना अंगूठा दिखाकर बोली, "ले लेते जा। मैं देखती हूँ तू मुझे अब कैसे पकड़ता है। अब मैं तेरे हाथ में नहीं आने वाली। बड़ा मर्द बनता फिरता है। हिम्मत है तो अब बाहर रास्ते पर आ और फिर मुझे पकड़ के दिखा।"

उस समय देव के चेहरे के भाव देखते ही बनाते थे। पहले तो वह भौंचक्का सा देखता रहा और फिर वह एकदम झल्लाया और उसके मुंह से निकल ही पड़ा, "यह मादर चोद की औलाद ऐसे नहीं मानेगी। अब मैं तुझे दिखाता हूँ की मर्दानगी किसे कहते हैं।"

ऐसा बोलकर वह भी घर के बाहर मंजू के पीछे दौड़ पड़ा। मंजू भागती हुई थोड़ी आगे निकली की एक और से कोई कार आ रही थी तो उसे रुकना पड़ा। इतना समय देव के लिए काफी था। देव ने एक छलांग लगाई और मंजू को पकड़ा और उसे अपनी बाहों में उठा कर वापस घर में ले आया। मंजू उसकी बाहोंमें छटपटाती रही और बोलती रही, "अरे साले हरामी, एक गाडी आगयी तो मुझे रुकना पड़ा, जो तूने मुझे पकड़ लिया। इसमें कौन सी बहादुरी है?" ऐसा बोलते हुए मंजू कई हलकी भारी गालियां देव को देती रही और जोर जोर से हाथ देव के सीने में पिट पिट कर मारने लगी और जोर से पाँव आगे पीछे करती रही। हाथ पाँव मार कर अपने आपको छुड़ाने की कितनी कोशिशें की। पर अब देव एकदम सतर्क था। उसने मंजू को हिलने का ज़रा भी मौक़ा नहीं दिया।

रास्ते में कई लोग यह तमाशा देखते भी रहे पर देव ने उसकी परवाह किये बिना उसे घर में ले आया। जैसे ही वह घरमें घुसा तो उसने मुझसे कहा, "छोटे भैया, घर का दरवाजा अंदर से बंद करलो प्लीज। आज मैं इस लौंडियाँ को मेरी मर्दानगी दिखाता हूँ। कोई भी आ जाये तो दरवाजा मत खोलना जब तक मैं इस लौंडियाँ से निपट न लूँ। आज मैं इसकी बजा कर ही छोडूंगा। बेशक देखना चाहो तो आप भी देख लो।"

मैं मंजू को देख रहा था। देव की बाहों में वह छटपटा रही थी और छूटने की कोशिश में लगी हुई थी पर उसने एक भी बार न तो मुझे न तो रास्तेमें खड़े तमाशाबीन लोगों को चिल्ला कर बचाने के लिए आवाज लगाई।

मैं सोच रहा था की कहीं देव मंजू पर बलात्कार तो नहीं कर रहा? मैंने थोड़ा घबड़ाते हुए मंजू से चिल्ला कर पूछा, "मंजू, क्या देव तुम पर बलात्कार तो नहीं कर रहा? क्या मैं तुम्हारी मदद करूँ? क्या मैं दूसरे लोगों को बुलाऊँ?"

मंजू ने भी चिल्लाते हुए मुझे जवाब में कहा, "अरे यह भड़वा क्या मुझ पर बलात्कार करेगा? मुझमें अपने आप को छुड़ाने की पूरी क्षमता है। अगर मैं न चाहूँ तो यह मुझे छू भी नहीं सकता। आप निश्चिन्त रहो। मुझे कोई भी मदद नहीं चाहिए। अब यह मामला मेरे और देव के बिच का है।"

मंजू खुद देव से निपटना चाहती थी। वह शायद जानती भी थी की देव उसे नहीं छोड़ेगा। वह जानती थी की देव उसे चोद कर ही छोड़ेगा। यह साफ़ था की वह भी देव से चुदवाना चाहती थी। वह हांफ रही थी, पर उसके चेहरे पर एक अजीब सा भाव था। वह मदमस्त लग रही थी। उसकी जवानी और खिली हुई लग रही थी। मंजू की आँखों में एक अजीब सा नशा छाया हुआ था।

शायद कोई औरत यह जानते हुए की अब थोड़ी ही देर में पहली बार उसकी चुदाई होने वाली है, उसके मुंह पर शायद ऐसे ही भाव होंगे, क्यूंकि अब मुझे पूरा यकीन हो गया था की मंजू देव से उस दिन जरूर चुदने वाली थी। मंजू भी अब अच्छी तरह समझ गयी थी की उसकी सील उसदिन टूटने वाली थी। वह तो कई महीनों से इसका इंतजार कर रही थी। पर शायद वह देव को परखना चाहती थी। वह ऐसे वैसे किसी भी मर्द को अपनी जात आसानी से देने वाली नहीं थी।

देव मंजू को उठाकर मेरे कमरे में ले आया। मंजू अपनी छटपटाहट से देव का काम मुश्किल बना रही थी। मंजू जैसे तैसे देव के चुंगल से छटकना चाहती थी। पर अब देव ज़रा भी असावधान रहने वाला नहीं था। देव ने मंजू को पलंग पर लिटाया। मैं कमरे से बाहर निकल आया और पीछे से दरवाजा बंद किया तो देव ने कहा, "छोटे भैया, दरवाजा खुला ही रहने दो। आज यह छमनियाँ मुझसे कैसे चुदती है वह तुम भी देखो।"

पर मैं बाहर निकल आया। मुझे अंदर से दोनों की आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी। मंजू अभी भी देव को चुनौती दे रही थी। वह बोली, "अच्छा! तो तू सोच रहा है तू मुझे आज चोदेगा? तू अपने आपको क्या समझता है? तू मुझे छूना भी मत। अगर तूने मुझे छुया भी तो मैं तुझे नहीं छोडूंगी।"

तब देव बोला, "अरे छमिया, तू मुझे छोड़ना भी मत। मैं भी तुझे चोदुँगा जरूर, पर छोडूंगा नहीं। आज मैं तुम्हें पहली बार चोदुँगा पर आखरी बार नहीं। अब तू मेरी ही बन कर रहेगी। तू मेरे बच्चों की माँ बनेगी और मेरे पोतों की दादी माँ।"

मंजू ने यह सूना पर पहली बार उसका जवाब नहीं दिया। देव ने उसे मेरे पलंग पर लिटाया और भाग न जाए इसके लिए देव ने मंजू को अपने बदन के नीच दबा कर रखा। देव ने अपना सारा वजन मंजू के बदन पर लाद दिया था। मंजू ने एड़ीचोटी का जोर लगा दिया पर अब देव उसे छोड़ने वाला नहीं था।

मुझसे रहा नहीं। गया मैंने दरवाजे के अन्दर झांका तो देखा की देव मंजू को अपने तले दबा कर उसके ऊपर चढ़ गया था। मंजू को देव ने अपनी दो टाँगों में फाँस कर अपना लण्ड उसकी चूत से सटा कर वह मंजू के ऊपर लेट गया। मंजू के लिए अब थोड़ा सा भी हिलना नामुमकिन था। उसने अपना मुंह मंजू के मुंह पर रखा और अपने होंठ मंजू के होंठ से भींच कर उसे चुम्बन करने लगा। इतना घमासान करने के बावजूद जब देव के होंठ मंजू के होंठ से सट गए तो मंजू चुप हो गयी और देव को चुम्बन में साथ देने लगी। उसके हाथ फिर भी देव की छाती को पिट रहे थे।

देव ने अपनी जीभ मंजू के मुंह में डाली और उसे अंदर बाहर करने लगा। मुझे बड़ा आश्चर्य तब हुआ जब मैंने देखा की मंजू ने अपने होठों से देव की जीभ को जकड लिया और उसकी जीभ को चूसना शुरू किया। अब ऐसा लग रहा था जैसे देव मंजू के मुंहको अपनी जीभ से चोद रहा था। इस तरह देव मंजू के मुंह को अपनी जीभ से काफी समय तक चोदता रहा और मंजू चुपचाप इसे एन्जॉय करती रही।

जब देव ने अपना मुंह मंजू के मुंह से हटाया तो मंजू बोली, "देव तुम अपना शरीर ऊपर से थोड़ा हटा कर तो देखो, मैं कैसे भागती हूँ।"

देव ने मंजू की हुए हँस कर बोलै, "अच्छा? मैं उपर से हट जाऊं तो तुम भाग जाओगी?" मंजू ने मुंडी हिलायी।

अचानक एक ही झटके में देव ने मंजू की चोली जोर से खिंच कर फाड़ डाली। फिर उसने मंजू की ब्रा को पकड़ा और एक ही झटक में तोड़ फेंका। मंजू ऊपर से नंगी हो गयी। उसकी बड़े बड़े स्तन एकदम पहाड़ की दो चोटियों की तरह उन्नत और उद्दण्ड दिख रहे थे। मैं दरवाजे की फाड़ में से मंजू की इतनी सुन्दर रसीली भरी हुई चूचियों को देखता ही रहा। देव ने अपना मुंह मंजू की चूँचियों पर सटा दिया और वह उनको चूसने लगा।

मंजू की शकल उस समय देखने वाली थी। वह अपने मस्त स्तनों को पहली बार कोई मर्द से चुसवा रही थी और उसका नशा उसकी आखों में साफ़ झलक रहा था। अब वह अपने बाग़ी तेवर भूल ही गयी हो ऐसा लग रहा था।

अब वह देव के मुंह को अपने स्तनों पर अनुभव कर रही थी और ऐसा लग रहाथा की वह चाहती नहीं थी की देव वहाँ से अपना मुंह हटाए। देव भी जैसे सालों का प्यासा हो ऐसे मंजू के स्तनों पर चिपका हुआ था। लग रहा था जैसे मंजू के स्तनों में से कोई रस झर रहा था जिसे पीकर देव उन्मत्त होरहा था। ऐसे ही कुछ मिन्टों तक चलता रहा। उसके बाद देव ने अपना मुंह मंजू के स्तनों से हटाया और स्वयं भी बाजू में हट गया। देव मंजू की और देखने लगा। वह मंजू को खुली चुनौती दे रहा था, की अगर मंजू में हिम्मत हो तो वह भाग कर दिखाए।

मंजू ने देव की और देखा। वह धीरे से बैठ गयी। मैं हैरान था की मंजू के बैठने पर भी उसके स्तन ज़रा से भी झुके नहीं। उनमें ज़रा सी भी शिथिलता नहीं थी। उसकी निप्पलेँ कड़क और एकदम अकड़ी हुई थी। उसके स्तन ऐसे भरे हुए अनार के फल के सामान फुले हुए और मंजू की अल्हड़ता को साक्षात् रूप में अभिभूत कर रहे थे।

मंजू ने एक नजर देव की और देखा और बोली, "लेले मजे, तुम मुझे इस तरह नंगी कर के कह रहे हो भग ले? तुम जानते हो की मैं ऐसे बाहर नहीं जा सकती। तुम बहुत चालु हो। आखिर तुमने मुझे फाँस ही लिया। अब मैं तुमको छोडूंगी नहीं। तू क्या समझता है अपने आपको।"

ऐसा कह कर मंजू ने देव का कुरता पकड़ कर उसे अपनी और खींचा। देव असावधान था और धड़ाम से मंजू के ऊपर जा गिरा। अब मंजू ने उसे अपनी बाहों में लिया और कस के पकड़ा और बोली, "अब तू मुझसे दूर जा कर के तो दिखा। अब तक तो इतना फड़फड़ा रहा था। अब आजा, मेरी प्यास बुझा रे! अब तक जो तू मुझे इतने जोर से अपनी मर्दानगी का विज्ञापन कर रहा था तो उसको दिखा तो सही।"

मंजू ने आगे बढ़ कर देव के पाजामे का नाडा खोल दिया और देखते ही देखते देव का पजामा निचे गिर पड़ा। देव अपने निक्कर में अजीब सा लग रहा था। मंजू ने अपना हाथ देव के निक्कर पर उसकी टांगों के बिच में फिराया। वह उसके लण्ड का जैसे मुआयना कर रही थी। मंजू ने देव के निक्कर के ऊपर से ही उसके लण्ड को सहलाना शुरू किया। जरूर उसका हाथ देव ले लण्ड से रिस रही चिकनाहट से चिकना हो गया होगा। मुझे भी देव के लण्ड के फूलने के कारण उसकी निक्कर पर उसके पाँव के बिच बना हुआ तम्बू साफ़ दिखाई दे रहा था। मंजू शायद देव के लण्ड की लम्बाई और मोटाई की पैमाइश कर रही थी। शायद उसके लिए किसी मर्द के लण्ड को छूने और सहलाने का पहला ही मौक़ा था। शायद मंजू देखना चाहती थी की जो लण्ड जल्द ही उसकी चूत में घुसने वाला है वह उसकी चूत को कितना फैलाएगा और उसको कितना मजा देगा।
User avatar
rangila
Super member
Posts: 5698
Joined: 17 Aug 2015 16:50

Re: एक न एक दिन तो फंसेगी ही

Post by rangila »


मंजू के सहलाते ही देखते ही देखते देव का लण्ड फैलता ही जा रहा था। देव के पाँवोँ के बिच का तम्बू बड़ा ही होता जा रहा था। अब तो मुझे भी उसके पाँव के बिच का गीलापन साफ़ नजर आ रहा था। देव के लण्ड की पैमाइश करते ही मंजू की बोलती बंद हो गयी। मंजू शायद यह सोच कर चुप हो गयी की आखिर उसे भी तो देव का लण्ड चाहिए था। उसे भी तो उसके पाँव के बिच जवानी की ललक लगी हुई थी। वह भी तो पिछले कितने हफ़्तों से इस लण्ड के सपने देख रही थी। शायद मंजू ने यह नहीं सोचा होगा की देव का लण्ड उतना बड़ा होगा। जो भी कारण हो। मंजू जो तब तक इतना हंगामा कर रही थी अब जैसे एक अजीब सी तंद्रा में देव के लण्ड का अपने हाथों में अनुभव कर रही थी और मंत्र्मुग्ष जैसी लग रही थी।

जबकि देव की नजरें मंजू के सुगठित दो पके हुए आमके फल सामान स्तनों के मद मस्त आकार को देखने और हाथ दोनों को मसल ने और सहलाने में लगे हुए थे। मंजू के उन्मत्त उरोज की निप्पलेँ आम की डंठल की तरह फूली और कड़क दबवाने और चुसवाने का जैसे बड़ी उत्सुकता पूर्वक इंतजार कर रही थीं। उसकी मदमस्त चूँचियाँ देव के लण्ड पर केहर ढा रही थीं। देव के लिए रुकना तब बड़ा ही मुश्किल हो रहा होगा। तो फिर मंजू का भी तो वैसा ही हाल था। मुझे साफ़ दिख रहा था की मंजू भी देव से चुदवाने के लिए जैसे बाँवरी हो रही थी। अब उसका भी पूरा ध्यान देव के लण्ड पर था।

मंजू ने धीरे से देव के निक्कर के बटनों को अपनी लम्बी उँगलियों से खोला और एकदम देव का लण्ड जैसे एक बड़ा अजगर छेड़ने से अपने बिल में से फुफकार मारते हुए बाहर आता है, वैसे ही देव की निक्कर से निकल कर मंजू के हाथों में फ़ैल गया। देव का फुला हुआ लण्ड मंजू की हथेली में देख कर मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मंजू बड़ी मुश्किल से अपनी हथेली में उसे पकड़ पा रही थी। बार बार देव का लण्ड मंजू की हथेली से फिसल कर निचे गिर कर लटक जाता था। मंजू उसे बार बार वापस अपनी छोटी सी हथेली में ले रही थी।

देव का लण्ड देखते ही मंजू को तो जैसे साप सूंघ गया हो ऐसी शकल हो गयी। वह मंत्रमुग्ध होकर चुपचाप वह एकटक लण्ड को ही देख रही थी। देखते ही देखते मंजू ने पलंग से निचे उतर कर अपना सर देव की टांगों के बिच रखा और देव के लण्ड के करीब अपना मुंह ले गयी। कुछ देर तक तो वह देव के लण्ड को एकदम करीब से निहारती रही फिर धीरे से उसने अपनी जीभ लम्बी करके देव के लण्ड के टोपे को चाटना शुरू किया। देव का पूर्व रस देव के लण्ड के टोपे के केंद्र बिंदु से रिस्ता ही जा रहा था। मंजू उसे अपनी जीभ से चाटकर निगलने लगी।

धीरे से फिर मंजू ने अपना मुंह और निकट लिया और देव के लण्ड को अपने मुंह में अपने होठों के बिच ले लिया। धीरे धीरे उसने अपना सर हिलाना शुरू किया और देव के लण्ड के टोपे को पूरी तरह अपने मुंह में लेकर अपने होंठ और जीभ से अंदर बाहर करने लगी और साथ साथ चूसने लगी। देव भी तो अब मंजू के कार्यकलाप से पागल हो रहा था। उसे तो कल्पना भी नहीं थी की ऐसी शेरनी जैसी लगने वाली यह अल्हड लड़की अब उसकी इतनी दीवानी हो जाएगी और एक भीगी बिल्ली की तरह उसके हाथ लग जायेगी ।

अनायास ही देव भी अब अपना पेडू से अपना लण्ड मंजू के मुंह में धक्के देकर अंदर बाहर करते हुए घुसेड़ने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे देव मंजू के मुंह को चोद रहा था। मंजू देव के इतने मोटे लण्ड को अपने मुंहमें पूरी तरह से ले नहीं पा रही थी। फिर भी अपने गालों को फुलाकर वह देव के लण्ड को चूसने लगी।

देव से रहा नहीं जा रहा था। देव ने हलके से अपने लण्ड को मंजू के मुंह से निकाला और धीरे से मंजू को बोला, "पगली, आज मुझे तुझे तेरी चूत में चोदना है। मैं अब तुझे मेरे इस लण्ड के लिए ऐसा पागल कर दूंगा की तू अब मेरे पीछे पीछे मुझसे चुदवाने के लिए मिन्नतें करेगी और तब ही मैं तुझे चोदूँगा।

यह सुनते ही जैसे मंजू अपने मूल रूप में आ गयी और बोली, "हट बे लम्पट! यह तो मुझे तुझपे रहम आ गया। सोचा, चलो तू इतना पीछे पड़ा था तो तुझे ही देती हूँ। तू भी क्या याद करेगा। वरना मैं और तुझे मिन्नतें करूँ? अरे एकबार अपनी शकल आयने में तो देख।"

मंजू देव को हड़काने में लगी हुई थी, की देव ने मंजू के घाघरे का नाडा खोल दिया और मंजू को पता भी नहीं चला। जैसे ही मंजू समझी तो खड़ी हुई। मंजू के खड़े होते ही उसका घाघरा निचे गिर पड़ा। मंजू अब सिर्फ एक चड्डी जैसी पैंटी पहनी हुई थी। मंजू को इसकी भनक लगे उसके पहले ही एक झटके में देव ने मंजू की पैंटी को निचे की और खिंच लिया और मंजू पूरी नंगी हो गयी।

बापरे! मैंने उससे पहले इतनी खूबसूरत कोई जवान नंगी लड़की नहीं देखि थी। (वैसे भी मैंने तब तक और कोई नंगी लड़की नहीं देखि थी। ) नंगी खड़ी हुई मंजू कोई अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। क्या गजब के घुंघराले बालों के गुच्छे और कान पर और नाक पर फैली उसके बालों की लटें! क्या घनी और धनुष के अकार सामान उसकी भौंहें! ऑयहोय! कैसा गज़ब ढ़ा रही थीं उसकी लम्बी पलकें! क्या मदहोश उसकी आँखें! क्या नशीले और कुदरती लाल होंठ जो कटाक्ष पूर्ण मुद्रा में दिख रहे थे! उसकी लम्बी और पतली गर्दन जो निचे से उसके हसीं कन्धों से जुडी हुई थी। क्या जवान कड़क और ग़ज़ब के खूबसूरत उसके मम्मों का आकार! कैसे फूली हुई करारी उस मम्मों पर उद्दंडता से खड़ी हुई निप्पलेँ! क्या ईमान ख़तम करने वाला उसके पेट, कमर और नितम्ब का घुमाव और क्या उसकी हल्केफुल्के बालों वाली उभरी हुई चूत! उसके नितम्ब और उसकी मदहोश करने वाली चूत से निचे उसकी उत्तेजना से थिरकती हुई सुआकार जांघें ऐसी लग रहीथीं जैसे एक बड़ी नदी में से पतली सी दो नदियाँ निकल रही हों!

उस नंगी मूरत को देख मेरा लण्ड भी खड़ा हो गया। और ऐसा खड़ा हो गया की मुझसे रहा ही नहीं जा रहा था।

जब मैं छुपा हुआ इतनी दूर खड़ा हुआ था और फिर भी मेरा यह हाल था; तो सोचो की उस क़ुदरत की अति सुन्दर नग्न मूरत को इतने करीब से देख रहे देव का हाल क्या हुआ होगा? वह तो कोई दक्ष कलाकार की तराशी हुई अद्भुत संगमरमर की उस नग्न मूरत समान खड़ी मंजू को ठगा हुआ देखता ही रहा। उसका लंबा घंट के सामान लण्ड एकदम सावधान पोजीशन में अकड़ा हुआ खड़ा था जिसमें से उसका पूर्व रस रिसता ही जारहा था।

मंजू ने उसका अक्कड़ खड़ा हुआ घंटा अपने हाथों में पकड़ा और उसे धीरे धीरे हिलाती हुई बोली, "अरे फक्कड़, क्या देख रहा है? मैं यहां एक औरत हो कर नंगी खड़ी हूँ और तू साला पहले तो बड़ी डिंग मारता था, की "तुझे चोदुँगा तुझे चोदुँगा" तो अब तुझे क्या साप सूंघ गया है? कुछ न करते हुए बस मुझे नंगी देखकर घूरता ही जा रहा है? घूरता ही जा रहा है? चल कपडे निकाल! तू भी नंगा होकर दिखा। साले मुझे भी तो तुझे नंगा देखना है। देखूं तो सही की कैसा लगता है मेरा मर्दानगी भरा छैला?"

देव जो मंजू की नग्न अंगभँगिमा में खोगया था उस तंद्रा से वापस धरती पर आया। देव ने पाया की उसके सपनों की रानी जिसे सपनों में देखकर मूठ मारते मारते उसकी हालत खराब हो जाती थी, स्वयं वह तब उसके सामने नग्न खड़ी उसे चोदने का आह्वान कर रही थी।

उस सुबह की और उसके पहले की कई महीनों की उसकी मंजू को फ़साने की मेहनत फलीभूत होती हुई नजर आ रही थी। उस नंगी खड़ी हुई औरत का हरेक अंग देव के सपनों में आयी हुई मंजू के हर अंग से कितना मिलता था! देव तो जैसे नंगी खड़ी हुई मंजू का दीवाना ही हो गया। तब उसे उस देवी को कैसे मैं खूब खुश करूँ? यही बात मन में आ रही थी।

अपने लण्ड की बेचैनी की और न ध्यान देते हुए देव जमीं पर घुटनों के बल आधा खड़ा हुआ और उसने बड़े प्यार से मंजू को पलंग पर बिठाया और मंजू के पैरों को चौड़े कर उनके बीचमें अपना सर घुसेड़ा। उसने देखा की मंजू की चुदवाने की उत्तेजना उसकी चूत में से बूँदें बन कर टपक रही थीं। मंजू की उत्तेजना से भरा उसका पूर्व रस उसकी चूत में से निकल कर उस की जाँघों पर पतली सी धारा बनकर बह रहा था।

देवको उसका आस्वादन करना था। देव ने अपनी जीभ लम्बाई और मंजू की चूत की दरार में घुसादी। देव की जीभ जब मंजू की संवेदनशील त्वचा को चाटने और कुरेदने लगी तो मंजू मारे उत्तेजना से पगला सी गयी। एक अकल्पनीय सिहरन मंजू के बदनमें दौड़ रही थी। उसकी चूत की अंदरूनी त्वचा ऐसे चटक रही थी जैसा मंजू ने पहले कभी अनुभव नहीं किया था।

देव का सर अपने हाथों में पकड़ कर मंजू देव के काले घने घुंघराले बालों को जैसे अपनी उँगलियों से कंघा करने लगी। मंजू देव के बालों द्वारा देव का सर अपने हाथों में पकड़ कर जैसे अपनी चूत में और अंदर घुसेड़ रही थी और अपनी चूत को चटवाने की देव की प्रक्रिया पर अपने उत्तेजित बदन का हाल बयाँ कर रही थी। जैसे देव ने अपनी जीभ और ज्यादा घुसेड़ी और और फुर्ती से चाटना शुरू किया की मंजू कांपने लगी और उत्तेजना के शिखर पर जैसे पहुँचने वाली ही थी। तब शायद देव थोड़ा सा थका सा लगा। उसने थोड़ा पीछे हट कर अपनी दो उंगलियां मंजू की चूत में डाली।

जैसे ही देव की दो उंगलियां मंजू की चूत की अंतर्त्वचा को स्पर्श करने लगी की मंजू उछल पड़ी। शायद मंजू की चूत से उसके पूर्व रस का प्रवाह ऐसा बहने लगा की मैंने देखा की देव ने उसमें से डूबी हुई उंगलियां को मुंह में रखकर उन्हें ऐसे चाटने लगा जैसे वह शहद हो। जब मंजू ने देव को उंगलियां चाटते देखा तो वह अनायास ही हँस पड़ी। उसे तब एहसास हुआ की देव उसे सिर्फ चोदने के लिए ही इच्छुक नहीं है, वह वास्तव मैं मंजू को चाहता है। तब मंजू ने देव के होंठ से अपने होंठ मिलाये और देव की बाँहों में समा गयी। अब उसे देव से चुदने में कोई भी आपत्ति नजर नहीं आ रही थी। बल्कि वह देव से चुदवाने के लिए बड़ी आतुर लग रही थी।

एक हाथ की दो उँगलियों से देव मंजू को चोद रहा था तो उसका दुसरा हाथ मंजू के स्तनों को जोर से पकडे हुए था। बार बार वह उन उन्मत्त स्तनों को कस कर भींचे जा रहा था। तो कभी वह झुक कर उनमें से एक स्तन को अपने मुंह में लेकर उन्हें चूसता था। जैसे जैसे देव की मंजू को उँगलियों से चोदने की रफ़्तार बढ़ने लगी, वैसे वैसे मंजू अपने कूल्हे उठाकर देव को और जोर से उंगली चोदन करने का आह्वान कर रही थी।

उन दोनों प्रेमियों की हालत देखकर मेरा बुरा हाल हो रहा था। पहले मैं जब भी मंजू को देखता था तो मेरी नजर सबसे पहले उसकी चूचियों पर ही जाती थी। उसकी चोली के पीछे उसकी चूचियां इतनी मदमस्त लगती थीं की क्या बताऊँ? मुझे बचपन से ही लडकियां और बड़ी औरतों के मम्मे बहुत भाते थे। जब कोई औरत के भरे हुए स्तनों का उभार ऊपर से अगर नजर आ जाता था तो उन स्तनों का उभार देख कर ही मेरे लण्ड में से पानी झर ने लगता था। जैसे जैसे मैं बड़ा होने लगा तो यह पागल पन बढ़ता ही गया।

जब मैंने मंजू के नंगे स्तन देखे तो मैं पागल सा हो गया। मेरा मन किया की मैं भी अंदर घुस जाऊं और मंजू की चूचियों को चूसने लगूं और उसकी फूली हुई निप्पलों को काट कर लाल करदूँ। पर सब मुझे छोटा मानते थे। देव लगा हुआ था तो मेरा नंबर कहा लगने वाला था? खैर, मैं मन मारकर अपने लण्ड को हिलाता हुआ, जो अंदर चल रहा था वह अद्भूत दृश्य देखने में जुट गया।

देव के दोनों हाथ मंजू को चरम सीमा रेखा पर पहुंचाने में ब्यस्त थे। मंजू की आँखें बंद थीं और वह पूरी तरह से देव के एक हाथ से उंगली चोदन और दूसरे हाथ से अपने स्तनों को जोश से दबवाने का उन्माद भरा आनंद अपनी आखें बंद कर महसूस कर रही थी। मुझे लगा की उसके बदन में अचानक जैसे कोई भूत ने प्रवेश किया हो ऐसे मंजू का बदन कांपने लगा। मैं अचम्भे में पड गया की यह मंजू को क्या हो गया। मंजू के मुंहसे आह... आह... निकलने लगी। मंजू जो कुछ समय पहले देव से भाग रही थी अब देव को चोदने के लिए बिनती कर रही थी। उस के मुंह से बार बार, "ओह... देव... आह... ओह... आह.. मुझे चोदो और.. और..." मंजू का बदन इतने जोर से हिलने लगा की साथ साथ मेरा पूरा पलंग भी उसके साथ हिल रहा था। और फिर अचानक एक झटके में वह शांत हो गयी।

इतनी फुर्ती से मंजू की टांगों के बिच में उसकी चूत में से अपने हाथ और उँगलियों को अंदर बाहर करते हुए देव भी थोड़ा सा थक गया था। थोड़ी देर के लिए दोनों शांत हो गए। मैंने देखा की मंजू पलंग पर से थोड़ी उठी और उसने देव को उसकी बाहों में लेने के लिए अपनी बाहें उठायीं। देव खड़ा हुआ। उसका लंबा घंट जैसा लण्ड एकदम्म कड़क खड़ा हुआ था। वह अपना लण्ड एक हाथ से सेहला रहा था। मंजू ने देव का लण्ड अपनी एक हथेली में पकड़ा और उसे हिलाती हुई वह पलंग पर ठीक तरह से लम्बी होती हुई लेट गयी और तब उसने देव को उसके ऊपर चढने के लिए इंगित किया।

देव मंजू के लेटे हुए नंगे बदन को देखता ही रहा। मंजू की हलके फुल्के बालों से छायी हुई उभरी हुई चूत उसके मोटे लण्ड को ललकार रही थी। देव ने लेटी हुई मंजू की टांगों को अपनी टांगों के बिच में लेते हुए अपने घुटनों के बल दो हाथ और दो पाँव पर झुक कर मंजू के नंगे बदन को निहार ने लगा। नग्न लेटी हुई मंजू गज़ब लग रही थी। मंजू ने अपने दोनों हाथों को लंबाते हुए देव का सर अपने हाथों में लिया और देव का मुंह अपने मुंह से चिपका कर उसके होंठ अपने होठों से चिपका दिए।

दोनों पागल प्रेमी एकदूसरे से चिपक गए और एक अत्यंत गहरे घनिष्ठ अन्तरङ्ग चुम्बन में लिप्त हो गए। देव का लण्ड तब दोनों के बदन के बिच मंजू की जांघों के बिच था। वह मंजू की गीली चूत पर जोर दे रहा था। उनका चुम्बन पता नहीं कितना लंबा चला। थोड़ी देर के बाद मंजू ने देव का मुंह अपने मुंह से अलग किया। मुझे दोनों की गहरी साँसे कमरे के बाहर खड़े हुए भी सुनाई पड़ रही थी। इतना लंबा चुम्बन करने के समय दोनों की साँसे रुकी हुई थी सो अब धमनी की तरह ऑक्सीजन ले रही थी।

मंजू ने देव की आँखों में आँखें मिलाई और थोड़ा सा मुस्कुरा कर बोली, 'देख पगले! कुछ पाने के लिए मेहनत तो करनी पड़ती है। अब मुझे देखता ही रहेगा या फिर अपनी मर्दानगी का अनुभव मुझे भी कराएगा? मैं भी तो देखूं, तू कैसा मर्द है?"

देव चुप रहा। उसने फिर झुक कर मंजू के लाल होठों पर अपने होंठ रख दिए और थोड़ा सा उठकर अपने घोड़े से लण्ड को ऊपर उठाया। मंजू ने देव का लण्ड अपनी हथेली में लिया और उसे हलके से हिलाते हुए धीरे से अपनी चूत के केंद्र बिंदु पर रखा। फिर थोड़ा ऊपर सर करके मंजू देव के कानों में बोली, "देख, अब तू तेरे यह मरद को धीरे धीरे ही घुसेड़ियो। तेरा लण्ड कोई छोटा नहीं है। मेरी बूर को फाड़ न दे।"

मंजू फिर पहली बार देव से डरी, दबी हुई प्यार भरे लहजे में बोली, "देख यार, अच्छी तरह उसे गीला करके हलके हलके डालियो। ध्यान रखना अब मैं और मेरी यह चूत सिर्फ मेरी नहीं है। यह तेरी भी है। अब यह जनम जनम के लिए तेरी हो गयी। जब तू चाहे इसका मजा ले सकता है।"
देव मंजू को देखता ही रहा। उसकी समझ में नहीं आरहा था की उस दिन तक जो मंजू उसकी रातों की नींद हराम कर रही थी और जो मंजू उससे भाग रही थी उस को अपने पास फटक ने नहीं दे रही थी वही मंजू कैसे उससे इतने प्यार से भीगी बिल्ली की तरह अपनी टांगें उठाकर उसे बिनती कर रही थी और उससे चुदवाने के लिए उत्सुक हो रही थी।

देव को भी एहसास हुआ की अब वह कोई साधारण छैला नहीं रहा। अब उसकी सपनों की रानी उस दिन से तन और मन से उसकी हो गयी थी। अब उसे मंजू के पीछे दौड़ने की जरुरत नहीं थी। वह जान गया की जवानी की जो आग उसके बदन में लगी हुई थी वही आग मंजू के बदन में भी लगी हुई थी। उस सुबह वह मंजू के पीछे भागने वाला सड़क छाप रोमियो नहीं बल्कि मंजू का प्रेमी बन गया था। मंजू अब जनम जनम की उसकी संगिनी बनाना चाहती थी। देव भी तो यही चाहता था। पर शायद देव प्यार की जो शरारत भरी हरकतें मंजू ने उसके साथ और उसने मंजू के साथ तब तक की थीं उसकी उत्तेजना खोना भी नहीं चाहता था।

देव ने भी उसी प्यार भरे लहजे में कहा, "देख मेरी छम्मो। तुझे तो मेरी बनना ही है। मैं तुझे छोडूंगा नहीं। पर इसका मतलब यह नहीं है की हमारे बिच जो यह लुका छुपी कहो या पकड़म पकड़ी का खेल चलता आ रहा था वह ख़तम हो जाए। यह तो जारी रहना चाहिए। तुझे तेरे पीछे भागके पकड़ कर चोदने ने का जो मजा है वह मैं खोना नहीं चाहता।"

यह सुनकर मंजू का अल्हडपन सुजागर हो गया। वह देव के नंगे पेट पर अपना अंगूठा मार कर बोली, "साले, एक तरफ मुझे चोदना चाहता है, और फिर कहता है की मैं भाग जाऊं और तू मुझे पकड़ ने आये? अरे साले तू मंजू को नहीं जानता। मेरे पीछे भागने वाले बहुत हैं। तू मुझे क्या पकड़ता। यह तो मुझे तुझ पर तरस आ गया और मैं जानबूझ कर तुझसे पकड़ी गयी। अब चल जल्दी कर वरना मैं कहीं भाग निकली तो तू फिरसे हाथ मलता रह जाएगा।"
User avatar
rangila
Super member
Posts: 5698
Joined: 17 Aug 2015 16:50

Re: एक न एक दिन तो फंसेगी ही

Post by rangila »


देव अपनी मुस्कान रोक न सका। उसे अच्छा लगा की उसकी मंजू कोई साधारण औरत नहीं थी की वह किसी भी मर्द की चगुल में आसानी से फँसे। उसे यह भी यकीन हो गया की आगे की उसकी राह उतनी आसान नहीं रहने वाली की जब उसका जी चाहे तो मंजू उससे चुदने के लिए अपने पाँव फैलाकर सो जायेगी। उसे वही मशक्कत करनी पड़ेगी जो उसने तब तक की थी।

देव ने कहा, "ठीक है मेरी रानी। अब ज़रा मैं तेरी जवानगी का और तु मेरी मर्दानगी का मजा तो लें! हाँ मैं तेरा जरूर ध्यान रखूंगा तू चिंता मत करियो। "

ऐसा कह कर देव ने अपना कड़ा छड़ जैसा मोटा लण्ड मंजू की फैली हुई टांगों के बिच में उसकी उभरी हुई चूत के होठोंको के केंद्र बिंदु पर धीरे से सटाया।

मंजू ने अपनी उँगलियों से अपनी चूत के होठों को फैलाया और देव के फौलादी लण्ड को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर थोड़ी देर के लिए अपनी चूत पर रगड़ा ताकी दोनों का पुरजोर झर रहा पूर्व रस से देव का लण्ड और उसकी चूत पूरी तरह सराबोर हो जाए और मंजू को देव के लण्ड के अंदर घुसनेसे ज्यादा पीड़ा न हो।

उसके बाद मंजू ने अपना पेंडू को ऊपर की और धक्का देकर देव को यह संकेत दिया की वह उसका लण्ड अंदर घुसेड़ सकता है। देव ने जैसे ही अपना लण्ड मंजू की चूत में थोड़ा सा घुसेड़ा की अनायास ही मंजू के मुंह से निकल गया, "धीरे से साले यह मेरी चूत है। तेरे बाप का माल नहीं है।"

देव अपनी हंसी रोक न सका। उसने एक धक्का मारा और अपना लण्ड थोड़ा और घुसेड़ा। मंजू अपनी आखें मूँदे देव के छड़ का उसकी चूत में घुसने का इंतजार कर रही थी। मुझे दोनों की यह प्रेमक्रीड़ा का पूरा आनंद लेना था। मेरा लण्ड भी एकदम कड़क और खड़ा हो गया था।

मैं दरवाजे करीब पहुँच गया और छुप कर दोनों को देखने लगा। मेरा पलंग दरवाजे के एकदम करीब ही था और मुझे दोनों प्रेमियों की हर हरकत साफ़ दिख रही थी और उनका वार्तालाप साफ़ सुनाई दे रहा था। मैं सोच रहा था की शायद वह दोनों मुझे देख नहीं रहे थे। पर मैंने एक बार देखा की मंजू अपनी टांगें उठाकर देव के कन्धों पर रखे हुई थी और उसकी फैली हुई चूत मैं साफ़ देख रहा था तो उसने मुझे आँख मारी। मैं हतप्रभ रह गया। शायद मुझे मंजू ने चोरी से छिप कर उन दोनों को देखते हुए पकड़ लिया था।

पर उसके बाद जब देव ने अपना लण्ड मंजू की चूत में थोड़ा और घुसेड़ा तब मंजू के मुंह से सिसकारी निकल ही गयी। उसे बोले बिना रहा नहीं गया, "साले कितना मोटा है तेरा लण्ड। मेरी चूत फाड़ देगा क्या? साले धीरे धीरे डाल।"

मंजू की दहाड़ सुन कर मुझे हँसी आगयी। मैं अपने मन में सोच रहा था, "यह लड़की कमाल की है. चुदते हुए भी अपनी दादागिरी और अल्हड़पन से वह बाज नहीं आती। कोई और लड़की इसकी जगह होती तो चुप रहकर चुदने का मजा ले रही होती।"

देव ने उसका कोई जवाब न देते हुए एक हल्का धक्का और मारा की उसका आधा लण्ड मंजू की चूत में घुस गया। मंजू के मुंहसे आह.. निकल पड़ी पर वह और कुछ न बोली। देव ने फिर अपना लण्ड वापस खींचा और फिर एक धक्का और दिया। उस बार मंजू ने अपनी आँखें जोर से भिंच दीं। शायद उसने सोचा जो होता है होने दो। देव ने जब एक आखिरी धक्का और दिया और तब उसका फैला हुआ मोटा लण्ड मंजू की चूत में करीब करीब घुस ही गया तब मंजू के मुंह से कई बार "आह... आह... आह..." निकल गयी पर उस "आह.." में दर्द कम और रोमांच ज्यादा लग रहा था।

जब देव ने मंजू को चोदने ने की गति थोड़ी सी बढ़ाई तो मंजू के मुंह से बार बार "आह... आह... उँह..." निकलने लगा। वह दर्द की पुकार नहीं बल्कि मंजू को अपनी पहली चुदाइ का जो अद्भुत अनुभव हो रहा था उसका जैसे पुष्टिकरण था। शायद उसके मनमें यह भाव आरहा होगा की तब तक उसने देव को उकसाने की जेहमत की थी, वह इस चुदवाने के उन्मत्त अनुभव से सार्थक नजर आ रही थी। एक लड़की जो पहली बार चुदने में अद्भुत अनुभव पाने की आशा रखती है, जब उसे चुदने के समय वैसा ही अनुभव होता है तो उसके मन का जो हाल हो रहा होगा वह मंजू की यह "आह.. हम्फ ... उँह..." से प्रतिपादित हो रहा था।

देव की शक्ल भी देखते ही बनती थी। वह आँखें मूंदे मंजू की चिकनाहट भरी गीली चूत में अपना मोटा लण्ड पेले जा रहा था। वह भी मंजू को चोदने का अद्भुत अनुभव का आनन्द ले रहा था। उसके हाथ मंजू के दोनों पके हुए फल सामान गोलाकार स्तनों को कस के दबा रहे थे। मंजू के स्तनों को देव इतनी ताकत से पिचका रहा था जो उसकी उत्तेजना और आतंरिक उत्तेजित मनोदशा का प्रतिक था। मुझे लगा की कहीं देव के नाख़ून मंजू के स्तनों को काट न दे। मंजू के स्तन देव के दबाने से एकदम लाल दिख रहे थे। मंजू के स्तनों की निप्पलं फूली हुई और देव की हथेली से बाहर निकलती साफ़ दिख रही थीं।

देव का पूरा फुला हुआ लण्ड मंजू की चूत में ऐसे अंदर बाहर हो रहा था की देखते ही बनता था। दोनों के रस से लिपटा हुआ देव का लण्ड सुबह के प्रकाश में चमक रहा था। मंजू की चूत दोनों के रस से भरी हुई थी। देव का लण्ड जैसे ही मंजू की चूत में जाता तो एकदम उनका रस चूत में से बाहर निकल पड़ता। मैं जहां खड़ा था वहाँ से मंजू की चूत की ऊपर वाली गोरी पतली त्वचा जो लण्ड के बाहर निकलने पर बाहर की और खिंच आती थी और जब देव का लण्ड मंजू की चूत में घुसता था तो वह पतली सी त्वचा की परत वापस मंजू की चूत में देव के लण्ड के साथ साथ चली जाती थी।

मेरा कमरा उन दोनों की चुदाइ की "फच्च फच्च" आवाज से गूंज रहा था। दोनों की "उन्ह... आह... ओफ्..... हम्म... " की आवाज "फच्च फच्च" की आवाज से मिलकर मेरे कमरे में एक अद्भुत ड्रम के संगीतमय आवाज जैसी सुनाई दे रही थी।

मैं अपने जीवन में पहली बार किसी की चुदाई का दृश्य देख रहा था। मुझे पता नहीं था की किसी औरत की चुदाइ देखना इतना उत्तेजक हो सकता है। देव और मंजू दोनों के चेहरे के भाव अनोखे थे। देव उत्तेजना से भरा अपनी सहभोगिनि को कैसे ज्यादा से ज्यादा उन्माद भरे तरीके से चोद सके उस उधेड़बुन में था और साथ साथ स्वयं भी उसी उन्माद का अनुभव भी कर रहा था। जब की मंजू पलंग पर लेटी हुई, देव के करारे लण्ड का उसकी चूत की गहराईयों में होते हुए प्रहार का आनंद अपनी आँखें मूँदे ले रही थी। उन दोनों में सो कौन ज्यादा उत्तेजित था यह कहना नामुमकिन था।

जैसे जैसे देव ने अपने लण्ड को मंजू की चूत में पेलने की गति बढ़ाई वैसे ही मंजू के मुंह से आह... आह... ओह... हूँ... आअह्ह्ह... इत्यादि आवाजें जोर से निकलने लगी। मंजू को किसी भी तरह के दर्द का एहसास नहीं हो रहा था यह साफ़ लगता था। देव के इतने मोटे लण्ड ने मंजू की चूत को पूरा फैला दिया था और उसका लण्ड अब आसानी से मंजू की चूत में भाँप चालक कोयले के इंजन में चलते पिस्टन की तरह अंदर बाहर हो रहा था। इतना ही नहीं, ऐसा लग रहा था जैसे मंजू भी अपना पेडू उछाल उछाल कर देव के लण्ड को अपनी चूत के कोने कोने से वाकिफ कराना चाहती थी।

धीरे धीरे मंजू की आह... की सिसकारियां बढ़ने लगीं। देव का लण्ड जैसे जैसे मंजू की चूत की गहराईयों को भेदने लगा वैसे वैसे मंजू की चीत्कारियाँ और बुलंद होती चली गयीं।

मंजू जोर से देव को "हाय... ओफ्फ... ओह... ऊँह..." के साथ साथ "ऊँह...साले..."

तो कभी "ओह...क्या चोदता है।"

और फिर थोड़ी देर बाद फिरसे, " ओफ्फ... गजब का चोदू निकला तू तो यार।"

" चोद, और जोर से चोद। आह...मजा आ गया।" की आवाजें और तेज होने लगी।

"ऊई माँ..... मर गयी रे..... यह मुझे क्या हो गया है....? अरे बापरे.... आह.... ऑय..... " मंजू की आवाजें सुनकर ऐसा लग रहा था की वह झड़ने वाली थी। उधर देव के माथे से पसीने की बूंदें बहनी शुरू हो गयी थी। देव ने भी अपनी आँखें मुंद ली थीं और वह बस अपने पेंडू को जोर से धक्का देकर अपना लण्ड फुर्ती से पेल रहा था और उसके ललाट पर बनी सिकुड़न से यह साफ़ लग रहा था की वह भी अपने चरम पर पहुँचने वाला था।

थोड़ी ही देर में देव भी, "आह..... मंजू रे..... आह... ऑफ.... मैं झड़ रहा हूँ रे... अब रोका नहीं जा रहा...." ऐसी आवाज के साथ ऐसा लगा जैसे अपने वीर्य का एक बड़ा फव्वारा उसके लण्ड से पिचकारी सामान छूट पड़ा। उधर मंजू भी, "हाय रे... मैं भी..... गयी काम से..... जाने दे... छोड़ साले... जो होगा देखा जाएगा.... " कहते ही मंजू एकदम थरथराती हुई बिस्तर पर मचलने लगी। उसके मुंह से हलकी सी सिसकारियां निकलने लगी।

देव ने अपना लण्ड मंजू की चूत में ही रखते हुए अपना सर निचे झुका कर मंजू के होठों पर अपने होंठ रख दिए और मंजू को अपनी बाहों में लेकर वह उसे बेइंतेहा चूमने लगा।

ऐसा लग रहा था जैसे अपने प्रेम का महा सागर मंजू की चूत में उंडेलकर देव मंजू को अपने से अलग करना नहीं चाहता था। मंजू भी अपनी गोरी गोरी नंगी टाँगें देव के कमर को लपेटे हुए उसके पुरे बदन को ऐसे चिपक रही थी जैसे एक बेल गोल घूमते हुए एक पेड से चिपक जाती है। दोनों पाँवको कस कर दबाने से देव का लण्ड मंजू की चूत में और घुसता जा रहा था। मंजू की कमर से निचे की और देव के लण्ड की मलाई बह रही थी और मेरी चद्दर को गीला कर रही थी।

दोनों झड़ चुके थे और अत्यंत उत्तेजना पूर्ण चुदाई करने से साफ़ थके हुए भी थे और गहरी साँसे ले रहे थे। देव का बदन गर्मी में परिश्रम के कारण पसीने तरबतर था। मंजू देव को अपने से अलग नहिं करना चाहती थी।

अपनी नंगी टांगों के अंदर देव के धड़ को अपने अंदर और दबाते हुए मंजू बोली, "साले, अब तूने जब अपनी मलाई मेरे अंदर ड़ाल ही दी है तो मैं तेरे बच्चे की माँ भी बन सकती हूँ। अब तो मैं तुझे नहीं छोडूंगी। पहले मैं तुझे पास फटकने नहीं देती थी। अब मैं तुझे दूर जाने नहीं दूंगीं। अब तो मैं तेरे बच्चे की माँ ही बनना चाहती हूँ। अगर आज नहीं बनी तो फिर सही। पर मैं अब तेरे बच्चे की ही माँ बनूँगी। तू क्या बोलता हे रे?"

देव मंजू की कोरी गंवार भाषा सुनकर हंस पड़ा और बोला, "अरे यहां कौन तुझे छोड़ने वाला है, साली? अब तो मैं तुझे माँ बना कर ही छोडूंगा। साली तुझे मैं ब्याह के घर ले आऊंगा और रोज चोदुँगा और कभी नहीं छोडूंगा। अब मुझसे भागके दिखा साली। बड़ी भाग जाती थी पहले।"

मेरे से उन दोनों प्रेमियों की बाते सुनकर हंसी रोकी नहीं जा रही थी। देव और मंजू ने मुझे देखा तो था ही। देव ने मुड़कर मेरी और देखा और बोला, "छोटे भैया, देखा न? बड़ी भगति थी छमियाँ मुझसे। अब कैसे फँस गयी साली? देखा न कैसे उछल उछल कर चुदवा रही थी साली? पहले से ही उसको मेरा लण्ड चाहिए था। पर मांगने की हिम्मत नहीं थी।"

मैं उन दोनों प्रेमियों के प्रेम के सामने नत मस्तक हो गया। गँवार, रूखी और तीखी जबान में भी वह एक दूसरे को कितना प्यार कर रहे थे। अचानक मैंने देखा की घर में चारो और पानी बह रहा था। जो पाइप देव ने टंकी में रखी थी उससे टंकी भर गयी थी और उसमें से पानी ऊपर से बहता हुआ पूरे घर में फ़ैल गया था। बल्कि मैं भी कुछ समय से पानी में ही खड़ा था। पर उन दो प्रेमियों की चुदाई देख कर कुछ भी ध्यान नहीं रहा था।

अचानक मैंने एक अद्भुत दृश्य देखा। देव और मंजू की चुदाई का मंजू की चूत से निकला हुआ देव के प्रेम रस की बूंदें टपक कर चारों और फैले हुए पानी में गिर और उसमें मिल कर एक नया ही रंग पैदा कर रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे देव की पाइप में से मंजू की चूत की टंकी में भरा हुआ प्रेम रस अब पुरे घर में फ़ैल रहा था।

तब अचानक ही मुझे दरवाजे पर माँ की दस्तक और आवाज सुनाई दी। वहचिल्ला कर बोल रही थी, "अरे दरवाजा तो खोलो। "

माँ कैसे जानती की मंजू ने अपना दरवाजा तो खोल ही दिया था। और वो फँस चुकी थी


समाप्त
Post Reply