राजा की सेविका complete

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Dolly sharma
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Re: राजा की सेविका complete

Post by Dolly sharma »

कुछ समय पश्चात दोनों लोग मोहन के घर के पहुचे । वहाँ उसकी माँ और बहन दरवाजे पर ही मोहन का इंतज़ार कर रही थी । मोहन आज सुबह से ही गायब था । उसकी माँ और बहन ने जब उसे सही सलामत देखा तो तुरंत उसके पास आकार उसके गले लग गयी । और खूब रोने लगी ।
कुछ देर बाद मोहन ने उन दोनों को चुप कराया और अब तक जो कुछ भी हुआ वो सब बता दिया ।और ये भी बताया की विक्रम उसकी जगह पर उन दरिंदो से लड़ेगा ।
राजा विक्रम सिंह पास खड़े हुए मोहन के घर की हालत देख रहे थे । एक टुटा फूटा घर जिसकी घास की छत थी । घर के नाम पर सिर्फ दो कमरे थे । एक में मोहन रहता था और एक में उसकी माँ और बहन । घर के आँगन में एक बकरी थी ।कमरे भी बहुत बुरी हालत में थे ।
उधर जब मोहन की माँ और बहन को जब ये पता चला कि विक्रम की वजह से उनका मोहन सही सलामत है तो वो बहुत खुश हुई और उसे घर के अन्दर ले आई ।
मोहन ने विक्रम से अपनी माँ और बहन का परिचय कराया ।

मोहन – विक्रम ये मेरी माँ रत्ना देवी है । मेरे पिता आज से 10 साल पहले ही चल बसे थे ।
विक्रम ने उसकी माँ के पैर छुए ।
मोहन – और ये मेरी बहन निशा है ।
विक्रम ने उसकी बहन की और देखा तो उसे महसूस हुआ कि उससे सुंदर लड़की शायद उसने अपने जीवन में भी नही देखि होगी । घाघरा चोली और उस पर दुप्पटा लिए हुए कुछ मलिन सी परन्तु फिर भी इतनी खूबसूरत । विक्रम उसकी और पलक बिना झपकाए देखता रहा । उसका ध्यान जब टूटा तब मोहन ने उसे हाथ मुह धोने को कहा और साथ में खाना खाने के लिए कहा ।
निशा भी इतने रुबिले और सुंदर पुरुष को देखकर उसकी ओर आकर्षित हुई । उपर से विक्रम ने उसके भाई को मरने से बचाया था इसलिए उसके मन में उसके प्रति और ज्यादा इज्ज़त बढ़ गयी । पर साथ ही उसे इस बात का भी बुरा लग रहा था की उसके भाई की जगह विक्रम को उन दरिंदो से लड़ना पड़ेगा और शायद वो वापस न लौट सके । इसलिए उसने अपने आकर्षण को विक्रम को ज़ाहिर नही होने दिया

कुछ समय बाद मोहन और विक्रम हाथ मुह धोकर खाना खाने के लिए बैठे । राजा ने आज तक सिर्फ शाही पकवान और अन्य राजशी चीज़े ही खायी थी । इसलिए उसे लगा की शायद वो खाना न खा पाए ।
मोहन की माँ ने बाजरे की रोटी और कढ़ी बना दी । उनके घर में वैसे भी मुश्किल से दो वक्त का गुज़ारा होता था ।

राजा ने पहली बार बाजरे की रोटी चखी और उन्हें वो बहुत ही अच्छी लगी । राजा इस तरह उंगलिया चाट कर बाजरे की रोटी और कढ़ी खा गए जैसे फिर कभी एसा स्वादिस्ट भोजन खाने को ही न मिले ।
उसे देखकर मोहन उसकी माँ और बहन हसने लगे । राजा ने उन्हें हस्ते हुए देखा तो बोले

राजा – मैंने अपने जीवन में इतना स्वादिस्ट भोजन कभी नही किया । आपका बहुत बहुत आभार ।
रत्ना देवी – बेटा ये तो हम गरीबो का हमेशा का ही खाना है । मोहन कह रहा कि तुम भी गरीब परिवार से हो और अभी कुछ दिनों पहले ही बाढ़ में तुमने अपने परिवार को खो दिया । हमे ये जानकर बहुत दुःख हुआ । बेटा हमे ये अच्छा नही लग रहा की हमारे बेटे की जान बचाने की लिए तुम अंपनी जान खतरे में डाल रहे हो ।
राजा – माजी आप चिंता मत कीजिये भगवन ने चाहां तो सब ठीक होगा ।
निशा – आप बहुत नेक दिल इंसान है ।
राजा – जी बस मैं तो एक इंसान का ही फ़र्ज़ निभा रहा हूँ ।

थोड़ी देर बाद जब सभी ने खाना खा लिया तो राजा ने मोहन से कहा
राजा – मोहन यार मुझे अपना राज्य नही दिखाओगे
मोहन – पर विक्रम अभी तो रात होने वाली है मै कल सुबह तुम्हे राज्य में घूमा दूंगा ।
राजा – चल ठीक है । पर मुझे एक बात कहनी थी ।
मोहन – हाँ बोल
राजा – मुझे तुम्हारी सिपाही वाली पोशाक चाहिए होगी । अच्छा तुम महल में कब जाओगे ।
मोहन – हमें महल में जाने की अनुमति नही होती । सैनिको को सैनिकघर में रखा जाता है । कल मुझे उन दरिंदो से होने वाले युद्ध के लिए राजकुमारी के सामने पेश किया जायेगा और फिर परसों उन दरिंदो से लड़ाई करनी होगी ।
राजा – ह्म्म्म तो मैं कल तुम्हारी जगह रानी के सामने पेश हो जाऊंगा ।
मोहन – पर जरा संभल के । अगर राजकुमारी को जरा सा भी शक हुआ तो तुझे और मुझे दोनों को मार डालेगी ।
राजा – तू चिंता मत कर मै संभल लूँगा । पर मुझे तुम्हारी पोशाक चाहिए होगी और समस्या ये भी है की मेरी ऊंचाई तुमसे कहीं अधिक है तो वो मुझे कैसे आ पायेगी ।
मोहन – तुम उसकी चिंता मत करो । उसका हल मैंने पहले ही निकल लिया है । मैंने अपनी माँ को बोल दिया है कि वो मेरी पोशाक में थोडा सा कपडा जोड़कर उसे तुम्हारे लायक बना दे ।
मेरी माँ बहुत जल्द ही कपडे सी देती है । सुबह तक तुम्हारे कपडे तैयार भी हो जायेंगे ।
राजा – ये तो अच्छा हुआ । तुम मुझे और भी कुछ अपने सेना के बारे में और रानी के बारे में बताओ ताकि कल कोई समस्या न आये ।

इसी तरह बाते करते करते जब उन्हें नींद आने लगी तो राजा ने कहा की उसकी चारपाई बहार आँगन में ही डाल दे ।
मोहन – पर यहाँ ठंडी हवाएं चलती है रात को तो हो सकता है की तुम्हे सर्दी लग जाये ।
राजा – मुझे सर्दी में रहने की आदत है ( क्यूंकि विक्रम नगर हिमालय की वादियों में बसा था इसलिए राजा विक्रम सिंह को सर्दी में रहने की आदत बचपन से ही थी )
मोहन – जैसा तुम ठीक समझो

उधर मोहन की माँ और बहन मोहन की पोशाक को ठीक करने में लगी हुई थी ।
रत्ना देवी – बेचारा कितना भोला भला और परोपकारी लड़का है ये विक्रम
निशा – हाँ माँ । एक अजनबी होते हुए भी हमारी कितनी मदद कर रहा है ।
रत्ना देवी – मैं तेरी शादी ऐसे ही किसी भले इंसान से करूंगी
निशा ये सुनकर थोड़ी शर्मा जाती है । जल्दी ही दोनों ने मिलकर पोशाक को सी दिया और दोनों सोने के लिए बिस्तर पर चली गयी ।
वृद्ध होने के कारण रत्ना देवी को जल्द ही नींद आ गयी पर निशा अभी भी सुबह से अब तक हुई घटना को याद कर रही थी ।
उसे मन ही मन विक्रम से प्यार होने लगा था पर वो ये भी जानती थी की उसका ये प्यार सिर्फ एक दिन का ही होगा क्यूंकि लड़ाई में जीत पाना लगभग नामुमकिन सा था ।
रात्रि के दो बजने वाले थे पर अभी भी निशा को नींद नही आ रही थी । उसने सोचा कि जिस इंसान ने उसके भाई को मौत के मुंह से दो बार बचाया है उसके लिए उसे कुछ करना चाहिए ।
वो दबे पांव कमरे से बहार आई और मोहन के कमरे में गयी । जब उसे ये पक्का हो गया कि मोहन भी सो गया है तो वो आँगन में गयी ।
वहाँ विक्रम सिंह आराम से सो रहा था ।

विक्रम सिंह को देखते हुए निशा के मन में उसके प्रति प्यार जाग गया । वह दबे पांव उसकी और बढ़ी। और जाकर उसके चारपाई के पास बैठ गई।
विक्रमसिंह सोते हुए बड़ा ही मासूम लग रहा था। निशा ने हल्के से उसके माथे को चूम लिया। धीरे-धीरे निशा उसके गालों की ओर बढ़ने लगी । इस वक्त निशा की ह्रदय गति बहुत ही तेज चल रही थी ।उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह कहीं बहुत दूर से भाग कर आई हो । निशा को विक्रम सिंह के गालों के चुंबन का एहसास बहुत ही अच्छा लग रहा था। धीरे-धीरे निशा उसके लबो की ओर बढ़ने लगी । विक्रमसिंह अभी भी बहुत गहरी नींद में सोया हुआ था । निशा ने धीरे से उसके होठों को चूम लिया । वह उसके होठों को अभी चूम हीं रही थी कि पास खड़ी बकरी मिमियाने लगी। निशा डरकर तुरंत अंदर भाग गई । इधर बकरी की आवाज से विक्रम सिंह की भी नींद खुल गई । उसे अपने चेहरे पर कुछ गीला गीला महसूस हुआ। परंतु उसने इसकी और ज्यादा ध्यान नहीं दिया और दोबारा सो गया ।निशा ने कमरे के अंदर आ कर अपने बिस्तर पर गर्दन टीका दी। उसने अब सोने का निश्चय किया परंतु उसके मन में विक्रमसिंह के लिए प्यार जाग गया था।

सुबह तड़के ही मोहन और विक्रमसिंह जग गए। नित्यक्रिया आदि से निवृत होने के बाद दोनों ने कुछ नाश्ता किया। इधर निशा विक्रमसिंह से आंखें मिलाने में शरमा रही थी। उसके मन में प्यार के साथ-साथ डर का एहसास भी था। मोहन और विक्रम सिंह दोनों जल्द ही तैयार होकर राज्य भ्रमण के लिए निकल पड़े । चूँकि मोहन को तकरीबन 12:00 बजे सैनिकघर में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी थी अतः तब तक मोहन और विक्रम सिंह दोनों विशाल नगर में घूमते रहे और मोहन ने उसे कई अन्य जानकारियां बताइ। विक्रम सिंह लगभग बहुत सी बातें उस राज्य के बारे में समझ चुका था। तकरीबन 12:00 बजे वो दोनों सैनिकघर के पास पहुंचे । वहां विक्रम सिंह ने मोहन को घर जाने के लिए कहा। और खुद अंदर सैनिकघर चला गया । वहां पहले से ही 3 और सैनिक खड़े थे , जिनका चयन उन दरिंदों से लड़ने के लिए हुआ था । चूँकि सभी सैनिक अलग-अलग टुकड़ियों से थे इसलिए उन्हें एक दूसरे के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं थी । विक्रम सिंह सैनिक घर के अंदर आकर उनके पास खड़ा हो गया। उसे उन तीनों के अंदर बहुत डर महसूस हो रहा था ।उनका चेहरा डर के मारे पीला पड़ चुका था । विक्रम सिंह ने उनके पास आकर अपना परिचय कराया । वह लोग तो बेचारे डर के मारे इतने परेशान थे कि उन्होंने उसकी तरफ ध्यान भी नहीं दिया। विक्रम सिंह ने सोचा अगर यह लोग ऐसे ही डरते रहे तो ये जरूर हार जाएंगे। इसलिए विक्रम सिंह ने उनको हिम्मत बंधाने की कोशिश की और बोला कि तुम लोग चिंता मत करो हम लोग मिलकर उन दरिंदों का सामना कर सकते हैं । कुछ देर समझाने के बाद विक्रम सिंह ने उनका डर कुछ हद तक कम कर दिया।
तभी वहां पर सिपहसालार आकर खड़ा हो गया। उसने हम चारों से अपना परिचय दिया और फिर बोला

सिपहसालार -- रानी तुमसे आज नही मिल सकती ।वो कल सीधा खेल में ही आएंगी । देखो मैं जानता हूं कि तुम चारों डरे हुए हो और हो भी क्यों ना । उन दरिंदों से आज तक कोई नहीं बच पाया । हमारे पुराने सेनापति भी उन दरिंदों का कुछ नहीं बिगाड़ पाए पर फिर भी तुम थोड़ी हिम्मत करके लड़ना और वीरों की तरह अपनी जान देना । मुझे पता है कि तुम लोगों के बचने के आसार बहुत कम है फिर भी अपनी पूरी हिम्मत से लड़ना। उसकी बात सुनकर बाकी तीनों सैनिकों ने तो कुछ नहीं कहा परंतु विक्रम सिंह बोला
विक्रम सिंह -- हम अपनी वीरता दिखाने के लिए पूरे जोर से लड़ेंगे । चाहे जो हो जाए मैं कायरों की भांति नहीं मरने वाला। अपनी अंतिम सांस तक मैं उन दरिंदों से लडूंगा।
विक्रम सिंह की बात सुनकर सिपहसालार आश्चर्य से भर गया । उसने विक्रमसिंह से पूछा
सिपहसालार -- तुम कौन सी टुकड़ी से हो सैनिक
विक्रम सिंह--- महाराज मैं मणिकर्णिका टुकड़ी से हूं
( क्योंकि मोहन ने पहले ही विक्रमसिंह को अपने बारे में सब कुछ बता दिया था इसलिए विक्रमसिंह जानता था कि वह मणिकर्णिका नामक सैनिक टुकड़ी में है)
सिपहसालार--- हमें तुम पर गर्व है सैनिक ।आज के दिन जो भी तुम लोग करना चाहो कर सकते हो, क्योंकि कल तुम्हें उन दरिंदों से लड़ाई करनी है और हो सकता है कि वह दिन तुम्हारा जिंदगी का आखरी दिन हो। इसलिए राजकुमारी की आज्ञानुसार तुम आज के दिन जो भी करना चाहते हो ,जो भी खरीदना चाहते हो, जिस तरह की सुख सुविधा उठाना चाहते हो, उठा सकते हो ।यह ठीक उसी तरह है जिस तरह काटने से पहले बकरे की खूब सेवा की जाती है।
सिपहसालार की बात सुनकर बाकी तीनों सैनिक डर के मारे थर थर कांपने लगे परंतु वह लोग जानते थे कि वह अब पीछे नहीं हट सकते क्योंकि राजकुमारी की आज्ञा का उल्लंघन का मतलब था सीधा मौत। उसके बाद से सिपहसालार ने उन चारों को अपने-अपने घर जाने के लिए बोल दिया और अगले दिन सुबह 10:00 बजे उन्हें दोबारा सैनिक घर में आने के लिए कहा।
विक्रमसिंह और बाकी तीनों सैनिक अपने अपने घर की तरफ चल पड़े। विक्रम सिंह जैसे ही थोड़ी दूर पर आया उसे मोहन खड़ा हुआ दिखाई दिया मोहन वहां पर विक्रम सिंह का इंतजार कर रहा था ।

विक्रम सिंह ने मोहन को अंदर जो कुछ भी हुआ उसके बारे में बताया ।मोहन भी थोड़ा डरा हुआ था।
मोहन -- देखो विक्रम अभी भी तुम्हारे पास मौका है, तुम क्यों अपनी जान गंवा रहे हो ? क्यों मेरा दुर्भाग्य अपने सर ले रहे हो ?
विक्रम सिंह -- मोहन तुम इस बारे में ज्यादा मत सोचो और हां सिपहसालार ने मुझे कुछ मोहरे दी है ताकि आज के दिन में जो भी खरीदना चाहूं ,जो भी करना चाहूं, कर सकूं । मेरे लिए तो यह किसी काम के नहीं अगर तुम चाहो तो ये रख सकते हो ।
मोहन -- नहीं विक्रम नहीं मुझे अपने एहसान तले और मत दबाओ । आगे ही तुमने मेरे लिए बहुत कुछ किया है । मैं चाहता हूं कि तुम इन मोहरो का अपने लिए उपयोग करो।
विक्रम सिंह -- देखो मोहन , क्या पता मैं उन दरिंदों से बच भी पाऊंगा या नहीं, इसलिए इन मोहरों को तुम अपने पास रखो और अपने परिवार के लिए इनका उपयोग करो।
थोड़ी देर किसी तरह समझाने के बाद विक्रम सिंह ने मोहरे मोहन को दे दी।
विक्रम और मोहन दोनों बाजार की ओर चल पड़े। वहां पर विक्रम ने मोहन के घर के लिए 1 महीने का राशन का सामान खरीद लिया और साथ ही कुछ कारीगरों को उसके घर की मरम्मत के लिए भी पैसे दे दिए। अब दोनों उन कारीगरों के साथ मोहन के घर की ओर चल पड़े ।घर पहुंचकर मोहन ने सारा सामान अपनी मां को दिया। जल्दी ही कारीगरों ने उसके घर की पूरी तरीके से मरम्मत कर दी। उनके घर की छत पर मोटे मोटे बांस के बंबू लगा दिए। और कमरों की भी अच्छे तरीके से मरम्मत कर दी । यह सब देखकर मोहन की मां और उसकी बहन निशा के मन में विक्रम सिंह के लिए इज्जत और भी बढ़ गई । निशा तो विक्रमसिंह को और भी अधिक चाहने लगी ।
शाम तक लगभग पूरा काम हो चुका था मोहन और विक्रम घर के आंगन में चारपाई पर बैठे कल के बारे में बात कर रहे थे।

वहीं पास में निशा बैठे-बैठे बर्तन धो रही थी। उसका घाघरा उसके पिंडलियों से ऊपर तक चढ़ा हुआ था। विक्रम सिंह ने जब उसकी ओर देखा तो उसकी सुंदरता में खो से गए। निशा अंदर से कुछ और बर्तन लेने के लिए कमरे की तरफ चल दी। निशा की ठुमकती चाल पर ना चाहते हुए भी विक्रम सिंह की नजर चली गई। गीला होने की वजह से उसका घाघरा उसके पिछवाड़े से चिपका हुआ था। जिससे उसकी गांड उभर कर सामने आ रही थी। निशा जल्दी ही कमरे से दो चार बर्तन और ले आई। जैसे ही उन बर्तनों को नीचे रखने के लिए वह आगे की ओर झुकी विक्रम सिंह की धोखेबाज नज़रे एक बार फिर ऊपर की ओर उठ गई। जैसे-जैसे निशा बर्तन धो रही थी उसकी गोरी कमर और नितंब होले होले डोल रहे थे। यह देख विक्रम सिंह को उत्तेजना का एहसास होने लगा। पर जल्दी ही उन्होंने अपना ध्यान मोहन किन बातों में लगा दिया।

विक्रम --मोहन एक बात बताओ उन दरिंदों से सैनिकों को लड़ने के लिए कुछ हथियार दिए जाते हैं या निहत्थे ही उनसे लड़ाया जाता है।
मोहन-- यह तो तुम पर निर्भर करता है ..अगर तुम उनसे हथियारों से लड़ना चाहते हो तो उन्हें भी हथियार दिया जाता है ...और अगर तुम निहत्थे लड़ना चाहते हो तो वह भी निहत्थे ही लड़ते हैं ।
विक्रम सिंह ---- हम्ममम्म
मोहन ----तुम बताओ तुम उनसे किस तरह लड़ना पसंद करोगे?
विक्रम सिंह ---मैंने अभी इसके बारे में सोच नही है

( राजा विक्रम सिंह के नगर में राजघराने के लोगों को एक विशेष प्रकार की लड़ने की विधि बताई जाती थी इसलिए राजा विक्रमसिंह मल्ल युद्ध में विशेष रुप से पारंगत थे ।वह अपनी दो अंगुलियों को गर्दन पर इस प्रकार मारते कि बड़े से बड़े योद्धा भी चुटकियों में चित हो जाता था।)
इसलिए विक्रम सिंह ने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि वह उनसे मल्लयुद्ध ही लड़ेंगे ।
इसी तरह बातें करते करते रात होने लगी मोहन की मां ने उन दोनों के लिए खाना बनाया ।
सभी ने खाना खा लिया और सभी लोग अपनी अपनी चारपाई पर लेट गए। विक्रम सिंह घर के आंगन में पड़ी चारपाई पर लेट गया। मोहन अपने कमरे में और मोहन की मां और बहन अपने कमरे में लेट गई।
रात के तकरीबन 2:00 बज रहे थे । नींद निशा की आंखों से कोसो दूर थी । वो विक्रम सिंह के बारे में सोच रही थी । जितना वह विक्रम सिंह के बारे में सोचती उतना ही उसका प्यार उसके लिए बढ़ता जा रहा था ।
इसी तरह सोचते सोचते उसे अपने घाघरा थोड़ा गीला महसूस हुआ। उसने जब हाथ लगाकर देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा । सिर्फ विक्रम सिंह के बारे में सोचने भर से उसकी छोटी सी चूत पनिया गयी थी ।उसने आज तक अपने कामौर्य को संभाल रखा था। पर आज उसकी चूत ने उसके मन मे कोहराम मचा रखा था। जब उससे ये तपिश बर्दाश्त न हुई तो उसने कल की तरह ही विक्रम सिंह के पास जाने का निश्चय किया । वह उठी और दबे पांव विक्रम सिंह की तरफ चल पड़ी । आज उसने मन ही मन कुछ बड़ा निश्चय कर लिया था । उसने सोचा था की अगर कल विक्रमसिंह बच गया तो वह अपना कामौर्य विक्रम सिंह को ही सुपुर्द करेगी।

धीरे-धीरे वो विक्रम सिंह के चारपाई के पास पहुंच गई। विक्रमसिंह अभी भी गहरी नींद में सोया हुआ था । निशा ने धीरे से विक्रम सिंह के माथे पर अपने होठों को छुआ दिया ।और धीरे-धीरे उसके होठों की तरफ बढ़ने लगी।
निशा ने विक्रम के होठों पर अपने होंठ लगा दिए और वो तकरीबन 5 मिनट तक ऐसे ही उसके माथे और होठों को चुमते रही । चुंबन मात्र से ही उसकी चूत बुरी तरीके से पनिया गई। उसका खुद पर नियंत्रण खोता जा रहा था। वह पूरी तरीके से हवस का शिकार हो चुकी थी। उसने धीरे से विक्रम सिंह के पजामे के नाडे की तरफ अपना हाथ बढ़ाया । और पजामे के नाडे को खोल दिया। ऐसा करते हुए उसे बहुत ज्यादा डर भी लग रहा था। ठंडी हवाओं के चलने के बाद भी उसके माथे पर पसीने की बुंदे साफ देखी जा सकती थी ।उसने पजामे को नीचे करना शुरू किया। जैसे-जैसे वह पजामे को नीचे कर रही थी ,उसका दिल जोर से धक धक करने लग गया। एक बार तो उसने वापस जाने का सोचा पर जल्दी ही उसकी हवस ने उसके विचारों को बदल दिया । पजामे को नीचे करने में उसे बहुत ज्यादा तकलीफ हो रही थी, क्योंकि विक्रम सिंह पीठ के बल लेटा था इसलिए पजामे का नीचे वाला भाग ज्यों का त्यों बना हुआ था जैसे ही पजामा थोड़ा ऊंचा हुआ उसके सामने वह मंजर आया जिसकी कल्पना उसने आज तक सपने में भी नहीं की थी ।उसकी आंखों के सामने राजा विक्रम सिंह का सोया हुआ लंड दिखाई पड़ रहा था। हालांकि अभी राजा विक्रम सिंह का लंड उत्तेजित नहीं था फिर भी वह तकरीबन तकरीबन 4.5 इंच के करीब था । निशा ने अपने जीवन में आज तक किसी का भी लंड नहीं देखा था ।वह बिल्कुल कुंवारी थी पर आज उसके प्यार ने हवस का रुप ले लिया था। उसने धीरे से विक्रमसिंह के लंड को छुआ । ठंडी ठंडी हवाओं में जैसे ही राजा विक्रम सिंह के लंड को एक गर्म सा एहसास हुआ ,उसने तुरंत तुनक कर ठुमकी ली।
चूँकि विक्रम सिंह बचपन से हिमालय की वादियों में रहते आए थे इसलिए उनके शरीर के रंग की तरह उनके लंड का रंग भी बिल्कुल गोरा था। निशा ने जब गोरे लंड को देखा तो उसके मुंह में पानी आ गया ।उसके मन में उसको गोरे लंड को मुंह में लेने की इच्छा हुई
उसने पहले धीरे से उस लंड को अपने हाथों से छुआ और फिर धीरे धीरे अपना मुंह लंड की ओर बढ़ाया ।जैसे ही राजा विक्रम सिंह को अपने लंड पर किसी गर्म चीज का एहसास हुआ ,उनकी नींद खुल गई ।उन्होंने अपने लंड की तरफ देखा तो पाया कि कोई उनके लंड को मुंह में लेकर चुप्पे मार रहा है । राजा तुरंत समझ गए कि यह सिर्फ और सिर्फ निशा हो सकती है ।वह बिल्कुल अनजान बन कर लेेटे रहे ।इस बीच निशा को उनका लंड चूसते हुए तकरीबन 5 मिनट हो चुके थे। उनका लंड विकराल रूप में आ चुका था ।पूरी तरीके से तन कर वह तकरीबन 9 इंच लंबा और 3.5 इंच मोटा हो चुका था।
निशा की चूत में पानी की बाढ़ सी आ गई थी ।उसने एक बार राजा के मुंह की तरफ देखा ।विक्रम सिंह सोने का नाटक कर रहा था । हालांकि निशा पहली बार लंड चूस रही थी फिर भी राजा विक्रम सिंह को बहुत ज्यादा आनंद आ रहा था ।निशा ने सोचा कि अगर वो थोड़ी देर और रुकी तो अपने आप को रोक नहीं पाएगी। इसलिए उसने पजामे को ऊपर कर वापस जाने का निश्चय किया और वापस अपने कमरे की ओर चल पड़ी । इधर राजा विक्रम सिंह का लौड़ा पूरी तरीके से तन कर खड़ा हो चुका था। इस तरह निशा के अचानक चले जाने से उनके साथ खड़े लंड पर धोखा जैसी वाली बात हो गई थी। पर अब वह कमरे के अंदर भी नहीं जा सकते थे क्योंकि वहां निशा के साथ उसकी मां भी थी। इसलिए उन्होंने मुठ मारने का निश्चय किया । वो इतने ज्यादा उत्तेजित हो चुके थे कि 10 मिनट में ही उनका वीर्य बाहर की ओर छलक पड़ा ।उन्होंने अपने लंड को पास पड़े कपड़े से साफ किया और जल्दी ही नींद के आगोश में चले गए।
इस बीच पूरे नगर में ढिंढोरा पीट दिया गया कि कल शाही खेल के मैदान में विशाल नगर की सेना के साथ साथ 8 अन्य राज्यो के सैनिक भी खेल में हिस्सा लेंगे।पूरे राज्य में यह बात आग की तरह फैल चुकी थी । सुबह से ही गलियों ,बाज़ारो में सन्नाटा पसरना शुरू हो गया था। लोग शाही खेल के मैदान में सुबह से जुटना शुरू हो चुके थे। मौत का ये खेल देखने के लिए 8 राज्यो के लोगो का हुजूम उमड़ पड़ा ।


( चूंकि विशाल नगर में खेले जाने वाला यह खूनी खेल शीघ्र ही आस-पास के राज्यों में बहुत प्रसिद्ध बन चुका था बड़े-बड़े शाही लोग इसको देखने के लिए आया करते थे और ऊंची ऊंची कीमते लगाकर जुआ खेला करते थे। )

इस बार मुकाबला और भी रोमांचक होने वाला था क्योंकि इस बार राजकुमारी ने और भी खूंखार और खतरनाक दरिंदों को इस खेल में उतारा था ।

इस बार खेल की विशेषता और रोचक बात यही थी कि तकरीबन 8 राज्यों के सैनिक इस मुकाबले में हिस्सा लेने के लिए आए थे ।हर राज्य से चार सैनिकों का चुनाव किया गया था। हालांकि यह पहली बार था कि दूसरे राज्यों के सैनिक भी इस मुकाबले में हिस्सा बने थे इस से पहले सिर्फ राजकुमारी के राज्य विशाल नगर के सैनिक ही इस मुकाबले में खेलते थे और उन्हें ही अपने प्राण गंवाने पड़ते थे परंतु इस बार आस-पड़ोस के राज्यों के राजाओं ने भी राजकुमारी का निमंत्रण स्वीकार कर लिया। क्योंकि वह लोग यह सिद्ध करना चाहते थे कि उनकी सेना के सैनिक सबसे अधिक बलवान और बलिष्ठ हैं। हर राज्य के सैनिकों को अलग-अलग सैनिक घरों में ठहराया गया था। खेल को देखने के लिए दूर दूर से लोग आए हुए थे।

सुबह उठकर विक्रम सिंह और मोहन नित्य क्रियाओं से निवृत हो गए। तैयार होकर दोनों लोगों ने नाश्ता किया। निशा अभी भी विक्रमसिंह से आंखें मिलाने में शरमा रही थी। विक्रम सिंह ने मोहन से कहा
विक्रम सिंह -- मोहन मुझे अपनी सिपाही वाली पोशाक दे दो ताकि मैं जल्दी तैयार हो जाऊं ।हमें 10:00 बजे सैनिक घर भी जाना है मोहन ने निशा से वह पोशाक लाने को कहा। निशा कमरे के अंदर जाकर वह पोशाक ले आई। विक्रम सिंह ने जब अपना पहना हुआ कुर्ता उतारा तो उसकी मांसल भुजाएं और बलिष्ठ रूप देखकर निशा और भी ज्यादा शर्माने लगी। विक्रम सिंह भी जानबूझकर अपने शरीर को निशा का चक्षु दर्शन दे रहा था। थोड़ी देर बाद विक्रम सिंह वह पोशाक पहन कर तैयार हो गया। फिर वह दोनों सैनिक घर जाने के लिए रवाना होने लगे। विक्रम को यूँ जाता देखकर निशा की आंखों में आंसू आ गए। उसे लगा के उसके जीवन का पहला प्यार शायद वापस कभी ना लौट कर आए। उसका दिल डर के मारे बुरी तरह बैठ गया। वह तुरंत कमरे में जाकर भगवान की मूर्ति के सामने प्रार्थना करने लगी कि भगवान विक्रमसिंह को इतनी शक्ति दे कि वह उन दरिंदों का मुकाबला कर सके और वापस यहां पर लौटकर आ जाए। निशा पूरी तरीके से विक्रम सिंह के प्यार में डूब चुकी थी और उसे इस तरह दूर जाता देख कर उसे बहुत बुरा लग रहा था।

इधर विक्रम सिंह और मोहन जल्दी ही सैनिक घर पहुंच गए। विक्रम सिंह ने मोहन से घर जाने को कहा। मोहन बोला
मोहन -- नहीं विक्रम, मैं उस खेल के मैदान में जा रहा हूं जहां पर तुम्हें और इन बाकी लोगों को उन दरिंदों से लड़ना है । मैं तुम्हारा हौसला बढ़ाता रहूंगा ।हिम्मत मत हारना।
विक्रम सिंह -- ठीक है मोहन ,तुम खेल के मैदान में जाओ, मैं सैनिक घर जाता हूं अगर भगवान ने चाहा तो दोबारा मिलेंगे। यह कहकर विक्रम सिंह मोहन के गले लग गया। मोहन खेल के मैदान की ओर रवाना हो गया और विक्रम सिंह सैनिक घर में चला गया। विक्रम सिंह जब अंदर पहुंचा तो उसने देखा कि वहां पर सिपहसालार और बाकी तीन सैनिकों के साथ साथ और भी बहुत से सैनिक हैं। जब सिपहसालार ने विक्रम (उनके लिए मोहन) को देखा तो उससे कहा
सिपहसालार - आओ मोहन( विक्रम) हम लोग तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे। और हाँ बाकी लोग इसलिए आए हैं ताकि तुम्हारा हौसला बढ़ा सकें। ये लोग भी राजकुमारी के इस जिद की वजह से परेशान है । न जाने हमारी सेना के कितने ही वीर जवानों ने रानी की वजह से अपनी जान गंवा दी। और आज तक कोई भी उस खेल के मैदान से जीवित वापस नहीं लौट सका। हम सभी पूरे मन से यही चाहते हैं कि कोई वीर उन दरिंदों को खत्म कर हमारे सैनिकों की मृत्यु का बदला उनसे ले। हालांकि आज तक कोई भी इस में सफल नहीं रहा परंतु मुझे पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि तुम ऐसा करने में सक्षम हो सकते हो। अब मैं तुम्हें खेल के कुछ महत्वपूर्ण नियम बता देता हूं।
पहला नियम --- तुम चारों लोग एक साथ खेल के मैदान में जाओगे जहां तुम्हारा सामना वहां पर भयानक 4 आदमखोर दरिंदों से होगा।
हर राज्य के सैनिकों को अलग अलग दरिंदो से लड़ना पड़ेगा।
दूसरा नियम ---तुम चारों को यह निश्चित करना होगा कि तुम उन से हथियार से लड़ना चाहते होया फिर निहत्थे। तुम लोग जो चाहो हथियार इस्तेमाल कर सकते हो परंतु शर्त यह होगी कि जो हथियार तुम लोग इस्तेमाल करोगे वही हथियार उन दरिंदों को भी दिया जाएगा अतः मेरा सुझाव है कि हथियार का चयन बहुत ही सोच समझ कर करना वरना यह फैसला आत्मघाती भी सिद्ध हो सकता है।
विक्रम सिंह ---आप चिंता मत कीजिए। मेरा सुझाव है कि हम बिना किसी हथियार के लड़े क्योंकि अगर हमने हथियार का इस्तेमाल किया तो शायद वह दरिंदे हम पर भारी पड़े और हथियारों की मदद से वह हमें कुछ ही पलों में मार भी सकते हैं।
यह सुनकर बाकी जो 3 सैनिक थे उन्होंने सिपहसालार से कहा ---महाराज हमें मोहन (विक्रम) का यह प्रस्ताव मंजूर नहीं है क्योंकि वह दरिंदे इतने बलिष्ठ और शारीरिक रूप से मजबूत है कि हम जैसे सैनिकों को चुटकियों में मसल सकते हैं ।
अगर हमारे पास हथियार रहेगा तो शायद हम कुछ देर मुकाबला कर सके।
विक्रम सिंह ---- देखो साथियों मैं जानता हूं कि तुम सब इस समय डरे हुए हो परंतु अगर उन दरिंदों के हाथों में हथियार लगे तो वह और भी खतरनाक साबित हो सकते हैं तो मेरा सुझाव है कि हमें बिना किसी शस्त्र या अस्त्र के ही लड़ना चाहिए।
बाकी तीनों सैनिक अभी भी इस बात से राजी नहीं हुए और उन्होंने सिपहसालार से कहा कि उन्हें हथियारों से ही लड़ने की अनुमति दे दी जाए। आखिर में विक्रम सिंह को भी उनकी जिद के आगे झुकना पड़ा उसने कहा -- जैसी तुम लोगों की मर्जी। परंतु हमें हथियार का चुनाव बहुत ही संभलकर करना होगा। ऐसा ना हो कि हमारा ही चुना गया हथियार हमारे लिए ही घातक सिद्ध हो जाए।
सिपहसालार ---- मेरा सुझाव है कि तुम लोग भाला चुनो ताकि उन दरिंदों को तुमसे जितनी दूर हो सके उतनी दूरी पर ही मारा जा सके और शायद तब 1% संभावना है कि तुम में से कोई एक जीवित वापस आ पाए।
तीनों सैनिकों को और बाकी वहां पर उपस्थित अन्य सैनिकों को भी सिपहसालार का यह सुझाव सही लगा परंतु विक्रम सिंह बोले
विक्रम सिंह ---- क्षमा करें महाराज परंतु मुझे लगता है कि हमें तलवार से ही लड़ना चाहिए। क्योंकि यहां पर सभी लोग भाला के चुनाव पर सिर्फ एक ही पक्ष को देख रहे हैं ।अगर हमें भाला मिल रहा है तो उन्हें भी भाला मिलेगा इसका मतलब वह लोग भी दूर से ही हम लोगों को खत्म कर सकते हैं ।ऐसे में यही अधिक अच्छा तरीका है कि हम उन्हें जितना अपने पास हो सके उतना पास लाए और तलवार से उन लोगों को मारने की कोशिश करें।
यह सब विक्रमसिंह इसलिए कह रहा था क्योंकि वह अपनी विशेष कला अर्थात उंगलियों से गर्दन पर वार करने से ही उन दरिंदों को मार गिराना चाहता था और इसके लिए उन दरिंदों का उसके पास आना बहुत जरुरी था ।अगर उन दरिंदों के पास भाला होता तो शायद वह दूर से ही उन सब का काम तमाम कर सकते थे ।इसलिए विक्रम सिंह ने तलवार के चयन का प्रस्ताव दिया।
परंतु इस बार भी बाकी सैनिकों और अन्य सैनिकों ने सिर्फ भाले के प्रस्ताव को स्वीकार किया ।अंत में विक्रम सिंह ने भी हार मानी और भाले को ही अपने हथियार के रूप में चुन लिया।


सिपहसालार -- देखो मेजबान होने की वजह से हमें सबसे अंत में लड़ने का मौका मिलेगा। इसका कुछ फायदा भी हमें हो सकता है ।शायद तब तक तुम लोग उनके लड़ने के कुछ तरीकों को समझ सको।

सब लोग इसी तरह बातें कर रहे थे कि अचानक बाहर लोगों का बहुत शोर गुल होने लगा। विक्रम ने सिपहसालार से पूछा कि यह किस तरीके का शोर हो रहा है
सिपहसालार ---- मोहन इस बार खेल देखने के लिए बहुत से लोग इकट्ठे हुए हैं यह उन्हीं लोगों का शोरगुल है। जो खेल के मैदान से भी यहां तक सुनाई पड़ रहा है। अब हमें शीघ्र ही वहां पर जाना चाहिए । बाकी सारे राज्यों के सैनिक वहां पर पहुंच चुके हैं।
जब सिपहसालार और चारों सैनिक जिनमें विक्रम भी शामिल था शाही खेल के मैदान के पास पहुंचे तो वह शोरगुल और भी अधिक तेज होने लगा। लोग अपने-अपने राज्यों के सैनिकों का उत्साहवर्धन कर रहे थे। अब विक्रम और बाकी लोग भी वहां पर पहुंच चुके थे। जैसे ही वो लोग वहां पर पहुंचे विशाल नगर की जनता ने तालियां बजाकर उनका उत्साहवर्धन किया। शाही खेल मैदान का दृश्य कुछ इस तरीके का था------- एक गोल मैदान जो हर तरफ से लगभग 100 मीटर लंबा था।

लोगों को बैठने के लिए मैदान के ही चारों तरफ बहुत से आसन थे जिन पर इस समय तकरीबन 30 से 35000 लोग बैठे हुए थे ।
जिन लोगों को बैठने के लिए जगह नहीं मिली वह उनके पीछे खड़े होकर खेल का आनंद ले रहे थे ।
मैदान के एक कोने में बहुत बड़ा मंच लगा हुआ था जहां पर तकरीबन 10 से 12 बहुत बड़े बड़े आसन विराजमान थे।
सबसे बीच में विशाल नगर के राजा और उनके पास उनकी बेटी राजकुमारी मीनाक्षी का आसन था।
उनको दोनों तरफ चार चार राज्यों के राजाओं के लिए आसन विराजमान थे।
उसी मंच के पास एक छोटा मंच और था जिन पर विशेष अतिथियों के लिए आसन विराजमान थे।
अभी तक विशाल नगर के राजा और उनकी बेटी पहुंचे नहीं थे। अन्य राज्य के राजा अपने अपने सिंहासन पर बैठ चुके थे।
विक्रम सिंह जब वहां पहुंचा तो इतने बड़े मैदान को देखकर आश्चर्यचकित हो गया ।
साथ ही इतने लोगों की भीड़ की आवाज से उसके कानों में भी झनझनाहट सी होने लगी ।

तभी विशाल नगर के घोषणा वादक ने घोषणा की-- " विशाल नगर के वासियों आप सभी के प्रिय राजा विशाल सिंह और राजकुमारी मीनाक्षी देवी शाही खेल मैदान में पधार रहे हैं।"
जैसे ही राजा विशाल सिंह और उनकी बेटी मीनाक्षी देवी ने शाही मैदान के मंच पर कदम रखा , सारी जनता उनके सम्मान में खड़ी हो गई।
आज यह पहला मौका था जब विक्रम सिंह ने राजकुमारी मीनाक्षी देवी को देखा था। राजकुमारी मीनाक्षी देवी जितनी अपनी जिद की वजह से मशहूर थी उतनी ही अपनी सुंदरता की वजह से भी ।आस पास के राज्यों में उसकी सुंदरता की तुलना में कोई भी नहीं था ।तीखे नैन नक्श, लंबे घने काले बाल, दूध सी गोरी त्वचा ,देखने में जैसे कोई अजंता की मूरत और उन सब से भी बढ़कर उसके बेहतरीन तरीके से तराशे हुए भारी भरकम नितम्ब। विक्रमसिंह तो उसे देखता ही रह गया।
विक्रम सिंह ने मन ही मन निश्चय किया कि इस घमंडी और जिद्दी राजकुमारी का घमंड तो मैं अपने इस हलब्बी लोड़े से ही उतारूंगा।
इसी बीच राजकुमारी ने सबको चुप होने का इशारा किया।
राजकुमारी मीनाक्षी देवी ---विशाल नगर की जनता और आसपास के राज्यों से आए हुए आगंतुकों का मैं हार्दिक स्वागत करती हूँ। आज के इस खेल में आपको पल-पल का रोमांच देने के लिए हमने सुदूर दक्षिण से बहुत ही भयानक और खतरनाक आदमखोरों को खेल में शामिल किया है।
इस बार हम लोगों ने इस खेल का एक नया नियम भी जोड़ा है क्योंकि इससे पहले अन्य राज्य के योद्धा इस खेल में शामिल नहीं होते थे ,इसलिए इस नियम की कोई जरुरत नहीं थी ।
परंतु हमारे निमंत्रण पर दूसरे देश के राजाओं ने जो अपनी सहमति प्रदान की है उसको देखते हुए हमने यह नया नियम बनाया है।

इस नियम के अंतर्गत -----

हर राज्य के सैनिको को आदमखोरों को मारने के लिए इस घड़ी की रेत गिरने तक का समय (लगभग 45 मिनट) मिलेगा। अगर वो उन्हें न मार पाये तो उनमे से जितने भी सैनिक बचेंगे उन्हें अगले राज्य के सैनिको के साथ दोबारा लड़ना होगा। और तब तक लड़ना होगा जब तक या तो वो खुद नही मरते या फिर जिस समूह में वो शामिल होते है उसके साथ मिलकर आदमखोरों को नही मार देते। और हाँ यही नियम आदमखोरों पर भी लागू होगा।
अर्थात पहले नंबर पर किसी एक राज्य के चार सैनिक चार आदमखोरों से लड़ेंगे।

उन 4 सैनिकों को चारों आदमखोरों को मारना होगा या फिर खुद मरना होगा। अगर उन्होंने चारों आदमखोरों को मार दिया तो ठीक परंतु अगर एक भी आदमखोर समय सीमा खत्म होने तक जीवित रहता है तो उस आदमखोर को भी अगले राज्य के सैनिकों के साथ लड़ने वाले आदमखोरों में शामिल कर दिया जाएगा।
इसी तरीके से यह क्रम आगे की ओर बढ़ता रहेगा ।
अगर पहले आठों राज्यों के सैनिक आदमखोरों को मारने में नाकाम रहे तो उन सभी आदमखोरों को अंतिम राज्य के सैनिकों से लड़े जाने वाले आदमखोरों के समूह में शामिल कर दिया जाएगा।
और चूंकि हम मेजबान है इसिलए हमारे सैनिक सबसे अंत मे लड़ेंगे।

इतना सुनते ही विशाल नगर के तीनों सैनिकों के साथ साथ एक बार विक्रमसिंह भी डर के मारे कांप गया। कहां तो चार आदमखोरों से लड़ना भी मुश्किल था और कहां उन्हें आदमखोरों की पूरी पलटन से लड़ना होगा। अब विक्रम सिंह के चेहरे पर थोड़ी थोड़ी घबराहट होने लगी ।वह उस वक़्त को कोस रहा था जब वह मोहन से मिला। कहां तो वह बेचारा करमपुर की राजकुमारी से विवाह के सपने देख रहा था और कहां वह इस अनजान राज्य विशाल नगर के शाही खेल मैदान में अपनी मौत के सामने खड़ा था। एक बार तो उसने सोचा कि वह सिपहसालार को सब सच बता दें कि वह मोहन नहीं विक्रम है। परंतु दूसरे ही पल उसे मोहन उसकी मां और बहन के बारे में ख्याल आ गया। और साथ ही उन को किया हुआ वादा कि वह मोहन के प्राण बचाने के लिए उसकी जगह इन दरिंदों से लड़ेगा।
और राजपूत धर्म कहता है कि एक बार किसी को वचन दिया तो उसे निभाने के लिए चाहे जान भी चली जाए पर वचन नही टूटना चाहिए।

विक्रम सिंह ने तुरंत निश्चय कर लिया कि चाहे जो भी हो जाए, वह अपने वादे को निभा के रहेगा।
इधर राजकुमारी मीनाक्षी देवी ने आगे बोलना जारी रखा और कहा कि राज्यों के क्रम , उनके नाम के प्रथम अक्षर से निर्धारित किया जाएगा। वर्णमाला में जो अक्सर पहले आता है उस राज्य के सैनिकों को लड़ने का प्रथम अवसर दिया जाएगा और इसी तरह क्रम आगे की ओर बढ़ता रहेगा।
*******
(यहाँ सुगमता के लिए मैंने राज्यो के नाम क,च,ट,त,प... इसी क्रम में रखे है)
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सभी राज्य के सैनिक अपने अपने निर्धारित स्थान पर बैठेगे। उनके आगे लोहे की सलांखे लगाई गई है । जैसे ही उस राज्य के सैनिको का नंबर आएगा, सलांखे तुरंत हटा दी जाएगी और उस राज्य के सैनिकों को मैदान में आना होगा।
दूसरी तरफ आदमखोरों को भी लोहे की सलाखों के पीछे रखा गया है ।
एक बार में चार आदमखोरों को छोड़ा जाएगा।
जैसे ही मैं यह रुमाल नीचे की ओर करूंगी सर्वप्रथम कीर्ति नगर राज्य के सैनिक मैदान में आएंगे और दूसरी तरफ से चार आदमखोरों को मैदान में छोड़ा जाएगा।
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Dolly sharma
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Re: राजा की सेविका complete

Post by Dolly sharma »

लगभग सभी राज्य के सैनिकों के डर के मारे बुरी हालत थी। इधर राजकुमारी मीनाक्षी देवी ने इतना बोल कर अपने हाथों से एक रुमाल को नीचे की ओर फेंक दिया। उनके रुमाल फेकते ही कीर्ति नगर के सैनिकों के सामने लगी सलाखें हटा ली गई और उधर से चार आदमखोरों को भी छोड़ दिया गया। कीर्ति नगर के सैनिकों ने लड़ने के लिए गदा का चयन किया था। लोगों के भारी शोरगुल के बीच लड़ाई शुरू हो गई। उन आदमखोरों को देखते ही सैनिकों की आधी हिम्मत तो वैसे ही टूट गई।

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आप सभी के रिफरेंस के लिए बता दूं कि वह आदमखोर रॉन्ग टर्न मूवी के आदमखोरों की तरह दिखते थे पर कद में और ऊंचे।
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कीर्ति नगर के एक सैनिक ने अपने गदा का भरपूर प्रयोग करते हुए एक आदमखोर के शरीर पर प्रहार किया। परंतु वह आदमखोर अपनी जगह से टस से मस भी नहीं हुआ। फिर उस आदमखोर ने अपनी गदा से कीर्तिनगर के उस सैनिक पर इतना भरपूर प्रहार किया कि उस सैनिक के सर के परखच्चे उड़ गए। खून की पिचकारियां निकल पड़ी। उस की ऐसी हालत देख कर बाकी के तीनों सैनिक डर के मारे पीले पड़ गए। वह अपने-अपने गदा छोड़ कर इधर उधर भागने लगे। लोगों का भारी शोरगुल जारी था। शोरगुल में उन सैनिकों की चीख-पुकार किसी को नहीं सुनाई दे रही थी। जल्दी उन आदमखोरों ने उन तीनों सैनिकों को भी मार दिया और साथ ही उनके शरीर की हर हड्डी को अपने गदा से तोड़ डाला।

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उनकी ऐसी हालत देखकर अगले राज्य के सैनिक बुरी तरीके से कांप गए। जल्दी उनके सामने पड़ी सलांखे खोल दी गई और साथ ही चार और आदमखोरों को भी मैदान में छोड़ दिया गया ।
मतलब अब चार सैनिकों के सामने 8 आदमखोर आ गए थे। परंतु चरणपुर के सैनिक इतने ज्यादा डर गए कि वह अपने सलाखों से बाहर ही नहीं आ रहे थे । इतने में एक आदमखोर उनकी सलाखों के अंदर आ गया। और उस अकेले आदमखोर ने हीं अपने हाथों से उन सभी सैनिकों की गर्दन तोड़ दी। और उनकी लाशों को सलाखों से बाहर मैदान में फेंक दिया।

अब बारी टिकापुरा के सैनिकों की थी। जल्दी ही राजकुमारी ने उनकी सलांखे भी खोलने का आदेश दिया। अब मैदान में मंजर बहुत भयानक हो चला था । 12 खूंखार आदमखोरों के सामने 4 सैनिक खड़े थे। टीका पूरा के सैनिकों ने तलवार को अपने हथियार के रूप में चुना था। वह चारों सैनिक पहले दो राज्यों के सैनिकों की तुलना में थोड़े साहसी दिखाई दे रहे थे। उन्होंने कुछ देर तक उन आदमखोरों का सामना किया और उनमें से तीन आदमखोरों को मार गिराया। परंतु उनमें से समय सीमा समाप्त होने तक सिर्फ और सिर्फ एक ही सैनिक जिंदा बच पाया।

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अब बारी तरणताल नगर के सैनिकों की थी । मैदान में अब 5 सैनिकों के सामने तेरा आदमखोर दरिंदे थे। परंतु तरणताल के सैनिक तो सिर्फ मोम के पुतले भर साबित हुए ।आदमखोरों ने उनके शरीर को दो हिस्सों में काट डाला। उनकी समय सीमा समाप्त होने तक टिकापूरा का वही एक सैनिक जीवित बच पाया।

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इसी तरह करते-करते सभी आठो राज्यो के सैनिकों की बारी खत्म होने तक मैदान का दृश्य खून से लथपथ हो चुका था। और अब वह समय आ गया जब विशाल नगर के सैनिकों के सामने पड़ी सलांखे उठनी थी। मैदान में चारों तरफ लाशें ही लाशें और खून ही खून दिखाई दे रहा था। लोग बुरी तरीके से चिल्ला रहे थे। दर्शकों का शोरगुल इतना ज्यादा था कि पास खड़े दो व्यक्ति भी एक दूसरे की आवाज को ना सुन सके। सभी लोग इस खूनी खेल का आनंद ले रहे थे। कुछ लोग जो इस खेल पर जुआ लगा रहे थे , उनमें से कुछ जीतने की वजह से खुश और कुछ हारने की वजह से दुखी नजर आ रहे थे।

**********

अब मैदान में 9 सैनिकों के सामने 28 आदमखोर दरिंदे थे जिनके हाथों में बहुत ही खतरनाक हथियार थे। विक्रम सिंह ने मैदान के अंदर आते ही खून से लथपथ एक तलवार उठा ली और भाले को फेंक दिया।

क्योंकि विक्रमसिंह को भाले से लड़ने में महारत हासिल नहीं थी। परंतु तलवार और मल्ल युद्ध में वह बिल्कुल पारंगत था ।और अच्छे अच्छों को पलभर में धूल चटा सकता था।

जल्दी ही सैनिकों और आदमखोरों के बीच घनघोर युद्ध शुरू हो गया। विशाल नगर के 3 सैनिकों को उन आदमखोरों ने दूर से ही भाला फेंक कर मार डाला। मैदान में सिर्फ 6 सैनिक बचे थे। टिकापुरा के उस सैनिक को भी लड़ते लड़ते बहुत समय हो चुका था उसने भी हार मान ली थी और तलवार उसके हाथों से अपने आप नीचे गिरने लगी। दो आदमखोर उसकी ओर बढ़ने लगे। जैसे ही उन आदमखोरों ने उस सैनिक की तरफ अपनी तलवार चलानी चाही , विक्रम सिंह ने अपनी तलवार से उन दोनों आदमखोरों के सर धड़ से अलग कर दिए।

********


ये देख जनता जोर जोर से तालियां बजाने लगी और शोर करने लगी । सभी राजा और राजकुमारी मीनाक्षी ने विक्रम की ओर देखा । क्योंकि विक्रम के सिर्फ एक प्रहार से ही दो आदमखोर ढेर हो गए थे। ये पहली बार था जब किसी एक सैनिक ने दो आदमखोरों को मार गिराया हो ।इतने में ठंडी हवाएं चल पड़ी। सूरज को बादलों ने अपनी ओट में ले लिया था। और देखते ही देखते घनघोर बारिश सुरु हो गई। बिजली चमकने लगी।बारिश ने लोगो का मज़ा ओर बढ़ा दिया। सब लोग मैदान में विक्रम सिंह की ओर टकटकी लगाए देखने लगे।

************

इधर अपने साथियों के सर इस तरह जमीन में लौटते देख दो और आदमखोर दरिंदे विक्रम सिंह और टिकापुरा के उस सैनिक की ओर बढ़ने लगे। विक्रम सिंह ने उस सैनिक को एक तरफ बैठाया और खुद उनके सामने आकर खड़ा हो गया।

अब दृश्य कुछ इस प्रकार का था दो आदमखोर विक्रम सिंह की ओर दौड़कर आ रहे थे ।उनमें से एक के पास त्रिशूल ओर एक के पास तलवार थी। बारिश की बूंदे जब विक्रम सिंह की तलवार पर पड़ी तो उस पर लगा खून धीरे-धीरे नीचे की ओर बहने लगा। विक्रमसिंह भी उन दरिंदों की ओर दौड़ने लगा ।जैसे ही वो उनके पास पहुंचने वाला था , विक्रम सिंह ने हवा में एक छलांग लगाते हुए एक हाथ से तलवार को एक दरिंदे के सर में घुसा दिया और दूसरे हाथ की उंगलियों को दूसरे वाले दरिंदे की गर्दन पर इतनी जोर से मारा कि वो दोनों वहीं ढेर हो गए।

*********

सभी लोग विक्रम सिंह के साहस को देखकर आश्चर्य से भर गए। परंतु मंजिल अभी भी भी दूर थी मैदान में सिर्फ और सिर्फ चार ही सेनिक बचे थे जिनमें विक्रमसिंह भी शामिल था। जबकि 15 आदमखोर अभी भी वहां पर थे। टिकापुरा का सैनिक अब लड़ने की हालत में बिल्कुल भी नहीं था। विक्रम सिंह उस सैनिक के साहस से बहुत प्रभावित हुआ था इसलिए उसने निश्चय किया कि जब तक हो सकेगा वह उस सैनिक को इनसे बचाने की कोशिश करेगा।
वो अभी इतना सोच ही रहा था कि उधर दो सैनिकों को एक आदमखोर ने तलवार घुसा कर मार डाला।

अब मैदान पर सिर्फ और सिर्फ विक्रम सिंह ही बचा था जो लड़ने की हालत में था। अकेले विक्रम सिंह के सामने सभी आदमखोर आकर एक पंक्ति में खड़े हो गए और उसकी ओर देख कर हंसने लगे। विक्रम सिंह को बहुत गुस्सा आ गया। विक्रम सिंह ने अपनी तलवार को बाजू में फेंक दिया। उसकी इस हरकत से सारे लोग आश्चर्य में पड़ गए। किसी को समझ में नहीं आ रहा था कि विक्रम सिंह क्या कर रहा है। यहां तक कि कुछ लोगों ने सोचा कि विक्रम सिंह ने हार मान ली है और अब भागने की तैयारी कर रहा है। परंतु इधर विक्रम सिंह के मन में कुछ और ही योजना चल रही थी। उसने अपने राजघराने में सीखी विशेष मल्लयुद्ध तकनीक का उपयोग करने का निश्चय किया। आदमखोर अभी भी उसको देख कर हंस रहे थे। उनमें से एक आदमखोर धीरे-धीरे चल कर विक्रम सिंह की ओर बढ़ा। पर जैसे ही उसने तलवार को हवा मे चलाकर विक्रम सिंह पर वार करने की कोशिश की विक्रमसिंह झुक कर नीचे हुआ और अपने आप को बचा लिया साथ ही उसने तुरंत उसके गर्दन पर अपने हाथ से वार किया।
और ऐसा वार किया कि वह आदमखोर वही का वही ढेर हो गया। पूरे मैदान में जो शोर था, विक्रम सिंह की इस हरकत से सन्नाटा में बदल गया। बारिश हो रही थी , बिजली चमक रही थी और इधर विक्रम सिंह के पास एक भयानक आदमखोर ढेर हुआ पड़ा था।

**********
यह देख तीन आदमखोर उसकी तरफ बढ़े। उनमें से एक ने विक्रमसिंह पर चाकू से वार किया चाकू विक्रम सिंह के पेट के पास होकर निकल गया जिससे उसके पेट पर एक छोटा सा जख्म हो गया पर विक्रम सिंह ने हिम्मत नहीं हारी। उसने उसी तकनीक का प्रयोग करते हुए उन तीनों आदमखोरों को भी जल्दी ढेर कर दिया। विक्रम सिंह के इस अदम्य साहस को देखकर मीनाक्षी देवी भी हतप्रभ रह गई । उसने अपने जीवन में आज तक इतने बड़े वीर और साहसी योद्धा को नहीं देखा था। धीरे-धीरे विक्रम सिंह ने सभी आदमखोरों को मार डाला। सभी लोग अभी भी अचरज में थे कि एक अकेले आदमी ने इतने भयानक आदमखोर दरिंदों को कैसे मार डाला?

जैसे ही विक्रम सिंह ने अंतिम आदमखोर को मारा पूरे मैदान में तालियों की गड़गड़ाहट हो उठी।
लोग उसके जयकारा लगाने लग गये। हालांकि लोगों को उसका नाम नहीं पता था इसलिए उन्होंने विशाल नगर के जयकारे लगाने शुरू कर दीए। सभी राजा और राजकुमारी मीनाक्षी भी उसकी प्रतिभा से गदगद हो उठे।
राजकुमारी को अपने आप पर और अपने राज्य पर गर्व होने लगा। विशाल नगर के राजा भी खुद को गौरवांवित महसूस कर रहे थे कि उनकी सेना के सिर्फ एक बहादुर सैनिक ने ही इतने आदमखोर दरिंदों को मार डाला।

राजकुमारी मीनाक्षी खड़ी हुई और बोली
राजकुमारी---- अपना परिचय दो सैनिक
विक्रम सिंह----- मेरा नाम मोहन है राजकुमारी---- मोहन हम तुम्हारे साहस और प्रतिभा से बहुत खुश हुए ।तुम्हें जो भी इनाम चाहिए, मिलेगा। बोलो ,क्या इच्छा है तुम्हारी?
विक्रम सिंह---- राजकुमारी मुझे किसी तरीके का कोई इनाम नहीं चाहिए। परंतु अगर आप देना ही चाहती हैं तो मैं एक वादा चाहता हूं ।
राजकुमारी ---बोलो क्या वादा चाहिए तुम्हें हमसे?
विक्रमसिंह----- मैं चाहता हूं कि आज के बाद इस खूनी खेल को विशाल नगर में हमेशा हमेशा के लिए बंद कर दिया जाए ।इस खेल की वजह से परिवार के परिवार उजड़ जाते हैं । इसलिए मैं चाहता हूं कि यह खेल अब और परिवारों को उनके प्रिय जनों से दूर ना करें।

विक्रम सिंह की बात सुनकर लोग एक दूसरे की तरफ देखने लगे। राजकुमारी को भी थोड़ी देर के लिए गुस्सा आया परंतु वह विक्रम सिंह की प्रतिभा से खुश थी इसलिए बोली ---देखो सैनिक अगर कोई और होता तो मैं इस तरीके से बोलने पर अभी सभी के सामने उसकी गर्दन कटवा देती परंतु तुमने विशाल नगर की सेना का सर फक्र से ऊंचा किया है और हम तुम्हारी प्रतिभा से खुश हुए हैं। इसलिए हम यह ऐलान करते हैं कि आज के बाद इस खूनी खेल को हमेशा हमेशा के लिए विशाल नगर में बंद कर दिया जाएगा

राजकुमारी की बात सुनकर पूरे मैदान में तालियों की गड़गड़ाहट हो उठी। विक्रमसिंह भी बहुत खुश हुआ ।साथ-ही-साथ मोहन जो दर्शकों के बीच बैठा था, वह भी उनकी बात सुनकर खुश हुआ ।
इस बीच सिपहसालार और अन्य सैनिकों ने विक्रम सिंह और टिकापुरा के उस सैनिक को सहारा देखकर अंदर ले गए।

थोड़े उपचार के बाद विक्रमसिंह ठीक हो गया और सिपहसालार से घर जाने की अनुमति मांगी। सिपहसालार ने उसे घर जाने की अनुमति दे दी विक्रमसिंह जैसे ही वह बाहर आया , उसे मोहन खड़ा हुआ दिखाई दिया मोहन भागकर विक्रम सिंह के गले लिपट गया और बोला
मोहन ----विक्रम तुमने मुझ पर ही नहीं इस पूरे राज्य पर उपकार किया है। अब इस खूनी खेल की वजह से और किसी को अपने भाई या बेटे की बलि नहीं देनी पड़ेगी ।अब चलो घर चलें।

विक्रम सिंह और मोहन घर की तरफ चल पडे।
पूरे राज्य में यह बात आपकी तरह फैल चुकी थी कि मोहन नाम के उस सैनिक ने उन आदमखोरों का हराया है।
जल्दी ही विक्रम सिंह और मोहन घर पहुंच गए। वहां पर निशा और उसकी मां उन दोनों का इंतजार कर रही थी। जैसे ही निशा ने विक्रमसिंह को सही सलामत देखा, वह तुरंत कमरे में दोड़कर गयी और जाकर भगवान को धन्यवाद किया। इधर मोहन ने विक्रम सिंह को सहारा देकर घर के आंगन में बिछी चारपाई पर लेटा दिया।

पर अभी भी हल्की - हल्की बारिश हो रही थी । इसलिए मोहन की मां ने मोहन से विक्रम को अंदर ले जाने के लिए कहा।
मोहन विक्रम को सहारा देकर अपने कमरे में ले गया।
विक्रम चारपाई पर लेट गया। हालांकि विक्रम को ज्यादा चोट नहीं आई थी, परंतु फिर भी थकान की वजह से उसे जल्दी ही नींद आ गई। जब वह उठा तो सूरज छिप रहा था। वह लगभग 4 घंटे से सो रहा था। वो उढकर बाहर आया । उसने बाहर आंगन में नजर घुमाई तो वहां पर किसी को नहीं पाया। वह दूसरे कमरे में गया तो वहां पर मोहन की मां और निशा बैठी थी। विक्रम ने उनसे मोहन के बारे में पूछा।
विक्रम ---माजी ,मोहन कहां गया है?
मोहन की मा---ं बेटा ,मोहन तो पड़ोस के ही राज्य तिलकनगर में गया है ।जब तुम लोग खेल के मैदान में थे, तब पीछे से यहां उसके मामा का संदेश आया था। वहां पर मोहन की कुछ जरुरत थी। इसलिए मोहन अभी थोड़ी देर पहले ही वहां के लिए रवाना हो गया। कल शाम तक वह वापस आ जाएगा। इस बीच निशा विक्रम को कनखियों से देख रही थी और जैसे ही विक्रम की नज़र उससे मिलती वो शर्मा कर नज़रे नीचे झुका लेती। आज निशा का जिस्म कयामत लग रहा था। विक्रम सिंह के आने की खुशि में उसने अपने शरीर को बहुत सुंदर तरीके से संवारा था। आज बारिश के पानी मे नहाकर उसका बदन और भी निखर गया था। उसने एक नई घाघरा चोली पहनी थी। उसके सुंदर अधपके खरबूजों का उभार उसकी चोली से साफ साफ देखा जा सकता था। विक्रम सिंह ने जब उसे इस रूप में देखा तो गले का थूंक गले मे ही अटक गया। उसे घुटन सी महसूस होने लगी। इस गांव की सुंदरता को देखकर उसका मन हिलोरे मारने लगा। अगर मोहन की मां वहां न होती तो न जाने वो अब तक क्या कर चुका होता ।


बारिश पूरी तरीके से बंद हो चुकी थी। अब विक्रम बाहर आंगन में चारपाई पर आकर बैठ गया मोहन की मां ने उससे कहा
मोहन की माँ -- बेटा तुम थोड़ी देर आराम करो ,मैं तुम्हारे लिए खाना बना देती हूं। यहां के जंगलों में एक विशेष प्रकार की जड़ी बूटी मिलती है, जिसे किसी भी जख्म पर लगा दिया जाए तो जख्म तुरंत भर जाता है। मैं निशा को वहां भेज देती हूं , वो जल्दी ही जड़ी-बूटी ले आएगी।
विक्रम सिंह ---अरे माजी, आप तकलीफ मत कीजिए। यह जख्म तो बहुत छोटा सा है । मैंने तो इस से भी बड़े-बड़े जख़्म झेले हैं।
मोहन की मां ---नहीं बेटा , छोटे घाव को नासूर बनते देर नहीं लगती ।इसलिए जितनी जल्दी हो सके ,इसका भर जाना ही ठीक होगा।
विक्रमसिंह -- जैसी आपकी मर्जी, माजी।
मोहन की मां ---बेटी निशा ,जल्दी जाओ और वह जड़ीबूटी ला कर लेप बना दो।

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निशा जब जंगल की ओर जाने लगी तो उसने विक्रम सिंह की ओर देख कर कुटिल मुस्कान भरी। विक्रम सिंह समझ नहीं पाया कि वह इस तरह मुस्कुरा क्यों रही है ?

इधर जब निशा जंगल में पहुंची तो उसके मन में कोई और ही योजना चल रही थी ।उसने जल्दी ही वह जड़ी-बूटी ढूंढ निकाली और उसकी कुछ पत्तियां इकट्ठी कर ली। साथ ही उसने पास खड़े एक विशेष प्रकार के पौधे की पत्तियां भी ले ली।
इस पौधे की पत्तियों के सूंघने पर इंसान कुछ घंटों के लिए पूरी तरीके से बेहोश हो जाता था।
पत्तियां लेकर वह अपने घर की ओर चल पड़ी ।वहां जाकर उसने पाया कि उसकी मां ने खाना बना लिया था। मोहन की मां ---आ गई बेटी । आओ, पहले खाना खा लो ।खाना खाने के बाद लेप बना देना।

फिर जल्दी ही सब ने खाना खा लिया। खाना खाने के बाद

मोहन की मां ---बेटी निशा, अब तुम इसके लिए उन जड़ी बूटियों का लेप बना दो और इन्हें दे दो ताकि इन का जख्म जल्दी से जल्दी ठीक हो सके ।

यह बोल कर वह अपने कमरे में चली गई ।चारपाई पर लेटते ही मोहन की मां को हल्की हल्की नींद आने लगी ।
क्योंकि वह उमर में थोड़ी बड़ी थी, इसलिए लेटते ही उन्हें नींद आ गई ।

इधर विक्रम सिंह मोहन के कमरे में चला गया ।और चारपाई पर लेट गया। उसे पता था कि निशा आज जरूर कुछ ना कुछ करेगी और कल की तरह दुबारा मेरे पास आएगी। उसे बस इंतजार करना था और वह जानता था कि इंतजार का फल बहुत मीठा होता है और यह वाला फल तो मीठा भी था और गीला भी।

निशा ने अब तक जड़ी बूटियों का लेप बना दिया था ।अब उसने अपने पास से उन नशीली पत्तियों को निकाला और अपने मां के कमरे की तरफ चल दी। वहां जाकर उसने देखा कि उसकी मां आंखें बंद किए हुए लेटी है ।
***********

वह उसकी चारपाई के पास गई और उन नशीली पत्तियों को अपनी मां की नाक के पास ले गई ।थोड़ी देर में ही उसकी मां उन पतियों को सूंघने की वजह से बेहोशी की हालत में चली गई।

अब रास्ता बिल्कुल साफ था ।
निशा के पास पूरी रात बाकी थी ।
निशा ने सोचा था कि वह विक्रम सिंह को भी लेप लगाने के बहाने उन पतियों को सुंघा देगी । जिससे विक्रमसिंह भी बेहोश हो जाएगा और वह कल की तरह जी भरकर उसके गोरे लंबे लंड के साथ खेलेगी।

पर उसे क्या पता था कि क्या होने वाला है । विक्रम सिंह ने भी कोई कच्ची गोलियां नहीं खेली थी ।उसे पता था कि निशा उसके पास आएगी और उसे सोता हुआ पाकर जरूर कल की तरह उसके लंड को छूने की कोशिश करेगी ।
इसलिए विक्रम सिंह ने पहले ही अपने मन में एक योजना तैयार कर ली थी। जब निशा उसके कमरे में गई तो वहां पर विक्रम सिंह चारपाई पर लेटा हुआ था । निशा ने विक्रमसिंह से कहा


निशा -- सुनिए आप के जख्म के लिए जड़ी-बूटी का लेप लेकर आई हूं। आप इसे लगा लीजिए । इसे लगा कर आप तुरंत ही ठीक हो जाएंगे।

विक्रमसिंह ---इस जड़ी-बूटी वाले लेप को मेरे पास रख दो और मेरा एक काम करो ।
निशा --जी बोलिए , मैं आपके लिए क्या कर सकती हूं ?
अगर मैं आपके कुछ भी काम आ सकती हूं तो यह मेरा सौभाग्य होगा।

विक्रमसिंह --सुनो ,आज लड़ाई की वजह से मेरा शरीर जगह जगह से दुख रहा है ।अगर तुम्हारे पास किसी तरीके का सरसों का तेल हो तो वह मुझे ला दो ताकि मैं अपने शरीर पर लगा कर उस की मालिश कर सकूं ।

विक्रम सिंह अपने योजना पर चल पड़ा था ।

उसकी बात सुनकर निशा बोली

निशा --- जी हां , हमारे पास सरसों का तेल पड़ा है । मैं अभी तेल को गर्म करके ले आती हूं ।

विक्रमसिंह ---- हां जल्दी ले आओ । एक बार तेल लगाकर मालिश करने के बाद मैं अपने जख्म पर लेप लगवा लूंगा ।
थोड़ी ही देर में निशा तेल को गर्म करके ले आई और उसे देते हुए बोली
निशा --लीजिए ,मैं आपके लिए तेल को गर्म कर कर ले आई हूं । मालिश कर लीजिए मैं बाहर जाती हूं ।
जब मालिश हो जाए तो , मुझे बुला लेना मैं आकर लेप लगा दूंगी।

विक्रमसिंह --- नहीं तुम्हे बाहर जाने की जरूरत नहीं है । मैं जल्द ही मालिश कर लूंगा। उसके बाद तुम तेल लगा देना ।और फिर चली जाना ।वरना तुम्हें दो बार आना पड़ेगा।

निशा उसकी बात सुनकर वही पर रुक गई ।अब विक्रम सिंह ने तेल की कटोरी को एक तरफ रखा और अपने पजामे को घुटनों तक उपर किया ।

उसने धीरे से कटोरी में से कुछ तेल लिया और अपने पैरों पर मलने लगा । फिर अचानक विक्रमसिंह कुछ याद आने का नाटक करने लगा और निशा से बोला --- निशा मुझसे गलती हो गई। अब मैं अपने कुर्ते के नीचे करके ऊपरी भाग पर कैसे मालिश करूंगा??
क्योंकि मेरे हाथ तेल में हो चुके हैं इसलिए मैं अपने कुर्ते को नहीं निकाल सकता ।

इसलिए तुम ही मेरे कुरते को निकाल दो । उसकी बात सुनकर निशा शर्मा सी गई।
परंतु उसने सोचा विक्रम सिंह सही कह रहा है । अगर तेल के हाथों से उसने कुर्ते को ऊपर करने की कोशिश की तो उसका कुर्ता खराब हो जाएगा । इसलिए निशा ने हीं उसका कुर्ता निकालने की सोचा ।

निशा खड़ी हुई और विक्रम सिंह को अपने दोनों हाथ ऊपर करने को कहा।

विक्रम सिंह ने अपने दोनों हाथ ऊपर कर लिये। अब निशा उसके कुर्ते को पेट से ऊपर की ओर करने के लिए आगे की ओर झुकी ।
विक्रम सिंह ने जैसे ही उसको अपने इतने करीब पाया वह उसकी खुशबू में मदहोश हो गए।
फिर विक्रम सिंह के सामने बहुत ही सुंदर नजारा आया। विक्रम सिंह ने निशा की चोली में कैद उन अधपके खरबूजों के बीच की घाटी को देखा तो उनका लौड़ा तुनक कर खड़ा हो गया।

इतनी सुंदर घाटी को देखकर राजा विक्रम सिंह का नियंत्रण अपने ऊपर से खोता जा रहा था ।
जैसे जैसे निशा कुर्ते को ऊपर की ओर कर रही थी कुर्ता और भी सकरा होता जा रहा था। इसलिए निशा ने थोड़ा जोर लगाया ।जोर लगाने के लिए उसे आगे की ओर झुकना पड़ा और इसी असमंजस में उसके मम्मी राजा विक्रम सिंह के कोहनी से छू गए।

राजा विक्रम सिंह और निशा दोनों के मन में सिहरन उठ गई । निशा को पहली बार किसी जवान मर्द का स्पर्श महसूस हुआ था।
उसकी चूत में से पानी की एक लकीर उसके घाघरे को गिली करती हुई बह निकली ।
इधर विक्रम सिंह का भी यही हाल था। उत्तेजना के मारे उसका लंड इतना कड़क हो चुका था कि उसे लग रहा था कि अगर उसने उसे पजामे से बाहर नहीं निकाला तो कहीं उसका लोडा फट ना जाए।
उसके नसों में उबाल आ चुका था।

अब निशा ने विक्रम सिंह के कुर्ते को बाहर निकाल दिया ।
कुर्ते को बाहर निकालते ही उसे वही बलिष्ठ और बलवान रूप देखने को मिला तो वह फिर से शर्मा गई ।
विक्रम सिंह ने उसे पास ही बैठने को कहा और बोला मैं अब तेल मालिश कर लेता हूं, तुम थोड़ी देर रुको।
फिर विक्रम सिंह ने तेल की कटोरी में से थोड़ा तेल अपने हाथों में लिया और अपने छाती और पेट की मालिश करने लगा फिर विक्रम सिंह ने अपनी पीठ की तरफ अपने हाथ किये और ऐसा दिखाने लगा जैसे उसे अपने पीठ पर तेल लगाने में बहुत दर्द हो रहा हो ।

निशा ने जब देखा कि विक्रम सिंह को अपनी पीठ पर तेल लगाने में मुश्किल हो रही है तो वह बोली

निशा ---आप रहने दीजिए मैं आपके पीठ पर तेल लगा देती हूं ।
विक्रमसिंह बोला तुम ठीक कहती हो। वैसे भी मुझे पीठ पर तेल लगाने में मुश्किल हो रही है। विक्रमसिंह चारपाई पर आगे की ओर खिसक गया।

निशा उसके पीछे आकर बैठ गई और कटोरी को अपने एक हाथ में ले लिया। फिर निशा ने धीरे से कटोरी में से तेल अपनी उंगलियों पर लगाया और जैसे ही उसने उन उंगलियों से तेल को विक्रम सिंह के पीठ पर छुआ उसके पूरे शरीर में दोबारा एक सिहरन सी दौड़ गई।
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Re: राजा की सेविका complete

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निशा धीरे-धीरे विक्रम सिंह की पीठ पर तेल लगाने लगी। थोड़ी देर बाद विक्रमसिंह बोला
विक्रमसिंह -- निशा , इस तरीके से तेल लगाने पर तेल नीचे की ओर जा कर मेरे पजामे को भी खराब कर सकता है । इसलिए मैं एक काम करता हूं। मैं पीठ के बल लेट जाता हूं , फिर तुम आराम से तेल लगा देना ।
निशा--- जैसा आप कहें ।

फिर विक्रम सिंह पीठ के बल लेट गया और निशा उसके पेट पर तेल मलने लगी ।
थोड़ी देर इसी तरह तेल मलते रहने के बाद विक्रम सिंह बोला

विक्रम सिंह ---निशा ,अगर मैं तुमसे एक बात कहूं तो तुम बुरा तो नहीं मानोगी।
निशा--- यह आप कैसी बात कर रहे हैं। आपने जो मेरे भाई के लिए किया है, वह तो कोई अपना भी नहीं करता। आप जो भी कहेंगे ,मैं वह करूंगी।
विक्रम सिंह -- मैं चाहता हूं कि जिस तरह तुमने मेरे पेट पर तेल मला है, उसी तरह मेरे पैरों पर भी तेल मल दो । आज लड़ाई करने की वजह से मेरे पैर बहुत ज्यादा दुख रहे हैं ।इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम उन पर भी तेल की मालिश कर दो ।जिससे मुझे थोड़ा आराम मिले ।

निशा ---आपको दर्द से राहत देने के लिए मैं कुछ भी करूंगी ।आप अपने पजामे के दोनों छोरो को थोड़ा ऊपर कीजिए, मैं अभी वहां पर तेल मालिश कर देती हूं।
राजा विक्रम सिंह ने अपने पजामे को नीचे से पकड़कर ऊपर करने की कोशिश की ,परंतु पजामा सकरा होने की वजह से उसके घुटनो में फंस गया। काफी मशक्कत करने के बाद भी जब पजामा ऊपर नहीं हो सका तो विक्रमसिंह बोला-- निशा अगर तुम बुरा ना मानो तो मैं अपना पजामा निकाल ही देता हूं।
यह सुनते ही निशा के गाल शर्म के मारे लाल हो गए। वह कुछ देर तक बिल्कुल चुप रही। उसको इस तरह चुप देखकर
विक्रमसिंह बोला --देखो निशा, अगर तुम्हें बुरा लग रहा है तो कोई बात नहीं। मैं खुद ही अपने शरीर की मालिश कर लूंगा ।
निशा-- ऐसी कोई बात नहीं ।परंतु मुझे आपके सामने शर्म आ रही है ।अगर आप पजामा उतार देंगे तो मैं आपकी तरफ कैसे देख पाऊंगी ।
विक्रमसिंह--- इसका उपाय भी है मेरे पास ।तुम एक काम करो। तुम पास पड़े दिये को बुझा दो ।
जिससे कमरे में अंधेरा हो जाएगा ।
फिर मैं पजामा उतार कर पीठ के बल लेट जाऊंगा। जिससे तुम्हें भी शर्म नहीं आएगी ।उसके बाद तुम आराम से तेल लगा सकती हो।
निशा को भी विक्रम सिंह का यह उपाय भा गया।

फिर निशा ने पास पड़े दिए को बुझा दिया ।
इधर विक्रम सिंह ने अपने लंड को निशा की नजरों के सामने आने नहीं दिया था। अभी तक किसी तरह उसने अपने लन्ड को उसकी नज़रों से बचा कर रखा था। दीया बुझने के बाद विक्रम सिंह ने तुरंत अपने पजामे को नीचे की ओर किया ।
पजामा जैसे ही नीचे हुआ, लंड किसी स्प्रिंग की तरह उछल कर खड़ा हो गया। विक्रम सिंह पेट के बल लेटने की कोशिश करने लगे परंतु उनका लौड़ा बहुत ही ज्यादा तन गया था, जिसकी वजह से उन्हें पेट के बल लेटने में तकलीफ हो रही थी थोड़ी देर इसी तरह करते रहने के बाद विक्रम सिंह बोले --निशा तुम एक काम करो पहले मेरे पेट पर और जांघों पर तेल लगा दो उसके बाद पीठ पर भी तेल लगा देना।

निशा ---जैसा आप ठीक समझे ।

फिर विक्रम सिंह पीठ के बल ही लेट गया उसका लौड़ा आसमान की तरफ सीधा खड़ा हो कर सलामी दे रहा था।

विक्रमसिंह बोला-- निशा तूम मेरे पैरों की तरफ आकर बैठ जाओ ।और फिर वहीं से तेल की मालिश करना शुरू करो ।निशा विक्रम सिंह के पैरों की तरफ आकर बैठ गई। फिर उसने कटोरी में से थोड़ा सा तेल लिया और उसकी पगथली में मलना शुरु किया।

विक्रमसिंह--- निशा मैंने अपने घुटने तक की मालिश कर ली है इसलिए तुम वहां तक के भाग को रहने दो।
फिर निशा थोड़ा और आगे खिसक कर बैठ गई। उसने अपने हाथों से विक्रम सिंह की जांघों पर तेल मलना शुरू किया।
इस दौरान निशा भी बहुत ज्यादा उत्तेजित हो चुकी थी ।उसकी चूत बुरी तरीके से पनिया गई थी ।जैसे-जैसे वह जांघ के ऊपर की ओर बढ़ रही थी, उसका दिल धक-धक कर रहा था।
फिर अचानक वह हुआ जो उसने सोचा भी नहीं था। तेल की मालिश करते करते अचानक उसकी कोहानी विक्रम सिंह के खड़े लंड से लग गई ।यह पहली बार था ,जब निशा ने किसी लंड को छुआ था ।उसका रोम रोम पुलकित हो उठा। उसका शरीर भट्टी की तरह गर्म होने लगा ।उसके माथे पर पसीने की बूंदें चमकने लगी ।
इधर जब विक्रमसिंह को निशा की कोहनी अपने लंड पर महसूस हुई तो उन्हें अपनी योजना सफल होती प्रतीत हुई ।
विक्रमसिंह ---माफ करना निशा ,मैं थोड़ा उत्तेजित हो गया था ।इसीलिए यह इस तरह खड़ा हो गया ।
मैं तुमसे दोबारा माफी मांगता हूं ।

निशा ---आप माफ़ी मत मांगिए ।मैं जानती हूं इस तरीके से उत्तेजित होना साधारण सी बात है ।
निशा खुद भी यह नहीं जानती थी कि वह ऐसा बोलने की हिम्मत कैसे कर गई। शायद विक्रम सिंह के लिए उसके मन में प्यार ही था जिससे वह यह सब बोल पाई। इधर विक्रम सिंह मन ही मन निशा के इस जवाब से मुस्कुरा उठा।

थोड़ी देर बाद निशा जांघों पर और ऊपर की ओर बढ़ती गई । फिर वह विक्रम सिंह से बोली
निशा-- मैंने आपके जांघो पर मालिश कर दी है ।अब मैं आपके पेट पर मालिश कर देती हूं ।
विक्रमसिंह ---निशा तुम बीच वाली जगह भूल गई हो ।
निशा ने जब यह सुना तो शर्म के मारे दोहरी हो गई ।
विक्रमसिंह ---निशा तुम तो जानती हो कि लड़ाई की वजह से मेरा रोम-रोम दुख रहा है तो उस हिस्से को क्यों छोड़ा जाए ।मैं चाहता हूं कि तुम वहां पर भी मालिश कर दो ।अगर तुम्हें कोई ऐतराज है तो मैं तुम्हें ऐसा करने पर मजबूर नहीं करूंगा ।
विक्रम सिंह अपनी चाल बहुत ही शातिर तरीके से चल रहा था।
निशा ---परंतु मैं कैसे आपके इस को छू सकती हूं ।मुझे बहुत शर्म आ रही है।
विक्रमसिंह ---तुम चिंता मत करो निशा ।तुम इसे शरीर के ही किसी अन्य हिस्से की तरह लो और बस जल्दी से मालिश कर दो ।
निशा --- जैसा आप कहें।
निशा ने तेल की कटोरी में से थोड़ा सा तेल लिया और धीरे-धीरे विक्रम सिंह के खड़े हुए लंड की तरफ अपना हाथ बढ़ाने लगी ।आज यह पहली बार था जब वह अपने हाथों में किसी पराए मर्द का लंड लेने वाली थी ।वह यह सोच कर भी खुश थी कि जिस का लंड वह अपने हाथों में ले रही है वह उससे जी जान से प्यार करती है ।

फिर धीरे धीरे निशा ने विक्रम सिंह के लंड को अपने हथेलियों की कैद में ले लिया ।उसने सबसे पहले लंड को उसकी जड़ से पकड़ा था फिर धीरे धीरे उस की मालिश करते हुए ऊपर की ओर बढ़ने लगी। जैसे जैसे वह ऊपर की ओर बढ़ रही थी उसे ऐसा प्रतीत हुआ कि विक्रम सिंह का लंड बहुत ही लंबा था वह किसी गन्ने की भांति महसूस हो रहा था। निशा यह सोचकर ही बहुत ज्यादा उत्तेजित हो गई थी ।निशा की चूत बुरी तरीके से पानी छोड़ रही थी ।उसे अपना घाघरा बहुत ही ज्यादा गीला महसूस हो रहा
था ।
अचानक विक्रमसिंह ने निशा के हाथ पर अपने हाथ रख दिए और निशा के हाथों को ऊपर नीचे करने लगा ।जिससे उसकी मुट्ठी में कैद लंड पर एक तरीके से निशा मुट्ठी मारने लगी ।विक्रमसिंह उत्तेजना की पराकाष्ठा पर पहुंच चुका था। अब उसे और इंतजार करना संभव नहीं था। उसने तुरंत निशा के मुंह को अपने लंड की ओर झुकाया ।निशा ने भी तुरंत उस लन्ड को अपने होठों की कैद में ले लिया। जब निशा के होठ विक्रम सिंह के लंड पर छुए तो विक्रमसिंह को ऐसा लगा जैसे वह स्वर्ग में पहुंच गया है। विक्रमसिंह निशा के सर को पकड़ कर ऊपर नीचे करने लगा ।उत्तेजना के मारे उसने निशा के सर को कुछ ज्यादा ही नीचे कर दिया जिससे उसका लंड निशा के गले तक चला गया। निशा को ऐसा लग रहा था जैसे उसका मुंह पूरी तरीके से भर चुका है ।उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी ।अचानक उसे खांसी चलने लगी। खांसी की आवाज सुनकर विक्रमसिंह को होश आया तो उसने तुरंत निशा का सर छोड़ा ।
विक्रमसिंह ---निशा मुझे माफ करना। मैं थोड़ा उत्तेजित हो गया था।
निशा--- कोई बात नहीं।
और इतना बोलते ही निशा खुद ही विक्रम सिंह के लंड को अपने मुंह में लेकर उस पर चुप्पे मारने लगी ।हालांकि वो लंड चूसने में पारंगत तो नहीं थी फिर भी जैसा उसको आया उसने पूरे मन से विक्रम सिंह के लंड को चूसा ।करीब 5 मिनट तक विक्रम सिंह के लंड को चूसने के बाद विक्रम सिंह ने उसे अपने ऊपर से हटाया और चारपाई पर लिटा दिया ।

अब दृश्य कुछ इस प्रकार का था कि निशा चारपाई पर लेटी थी और विक्रम सिंह उसके पास बैठा था ।दोनों के मन में तूफान सा चल रहा था ।विक्रम सिंह धीरे धीरे निशा के मम्मो को ओर बढ़ने लगा।

विक्रम सिंह ने धीरे धीरे अपने हाथ निशा के मम्मो को ओर बढ़ा दिए।
और चोली के ऊपर से उन्हें अपने हाथों में भर लिया। निशा की उत्तेजना लगातार बढ़ती ही जा रही थी। विक्रम से निशा के मम्मो को मसलन जारी रखा। थोड़ी देर बाद विक्रम सिंह निशा की चोली के पीछे हाथ ले जाकर चोली की डोरियों को खोलने लगा। और फिर धीरे धीरे उसकी चोली को उसके शरीर से अलग कर दिया। अब निशा की नुकीली चुचियाँ जैसे राजा विक्रम सिंह के सम्मान में और भी तनकर फैल गयी।
विक्रम सिंह ने उन गोरी गोरी दूध सी सफेद चुचियों को तुरंत ही अपने मुंह में भर लिया। और उसके नुकीली घुंडीयों को अपनी जीभ से कुरेदने लगे। निशा तो मज़े के मारे दोहरी होती जा रही थी।
अब विक्रम सिंह के हाथ निशा के घाघरे की ओर बढ़ने लगे । निशा को जब विक्रम सिंह के हाथ अपने पैरों पर महसूस हुए तो वो सिहर उठी।
विक्रम सिंह ने एक हाथ से धीरे धीरे निशा के घाघरे को ऊपर उढाना शुरू किया।
उन्होंने घाघरे को जांघो तक उढा दिया तो निशा ने अंतिम बार विक्रम के हाथों को रोकने का बेमन प्रयास किया।
परन्तु राजा विक्रम सिंह ने आखिरकार उसके घाघरे पूरा ऊपर उठ ही दिया।
अब निशा की चूत बिल्कुल बेपर्दा थी।पर अंधेरा होने की वजह से विक्रम सिंह उसे देख नहीं सकता था।
इस दौरान विक्रम सिंह ने निशा की चुचियों का रसपान जारी रखा।
निशा की चूत की पंखुड़ियां फड़क रही थी ।उससे लगातार पानी रिस रहा था।
अब विक्रम सिंह ने धीरे से अपने हाथ निशा की गीली चूत पर रख दिये।
एक तो चुचियों के चूसने से ओर साथ ही अब चुत पर विक्रम सिंह के हाथ पड़ने से निशा तो जैसे स्वर्गलोक में पहुंच गई। पर उस कच्ची कली को क्या पता था पहली बार मे उस स्वर्गलोक तक पहुंचने के लिए दर्द की परीक्षा भी पास करनी पड़ती है।
विक्रम सिंह ने अपनी एक उंगली निशा की चूत में घुसाने की कोशिश की तो वो समझ गए निशा की चूत बिल्कुल कुंवारी है। अगर जल्दबाज़ी की तो लेने के देने भी पड़ सकते है।
उसने धीरे धीरे अपनी उंगली घुसने की कोशिश की। निशा को अभी अब हल्का सा दर्द महसूस होने लगा। पर उस मज़े के सामने इस दर्द की कोई कीमत नही थी। इसलिए उसने भी मज़ा लेना जारी रखा।

अब विक्रम सिंह ने सोचा कि उन्हें एक ही बार मे किला फतह कर लेना चाहिए।वरना बार बार के दर्द को ये सह न पाये।
इसलिए अब विक्रम सिंह ने उसकी चुचियों को छोड़ा और उसके ऊपर आकर लेट गए।
विक्रम सिंह -- निशा अब मैं अपना लैंड तुम्हारे अंदर डालने वाला हूँ। पहली बार मे तुम्हे बहुत दर्द होगा ।पर थोड़ी देर बाद तुम्हें बहुत मज़ा आने लगेगा।
निशा -- ठीक है।आपका साथ पाने के लिए मैं कितना भी दुख सह लुंगी। आप चिंता मत कीजिये।
फिर विक्रम से अपने लंबे लन्ड को उसकी चुत के मुहाने पर रखा और आगे होकर निशा के होठों को अपने होठों में कैद कर लिया ताकि उसकी चींखें कोई सुन न सके।
धीरे धीरे विक्रम सिंह ने अपने लम्बे लन्ड को निशा की चूत में घुसने की कोशिश की। चूंकि तेल की मालिश की वजह से और निशा की चूत गीली होने की वजह से विक्रम सिंह के लन्ड का सुपाड़ा एक ही बार मे निशा की चूत को खोल कर अंदर घुस गया। निशा की चूत से खून बहने लगा। निशा के शरीर मे दर्द की एक तेज लहर दौड़ पड़ी। वो छटपटाने लगी। पर विक्रम सिंघ उसके होठो को लगातार चूसता रहा । और उसके चुचियों को मसलता रहा। कुछ देर तक विक्रम सिंह ऐसे ही स्थिर रहा और जब निशा का दर्द थोड़ा कम हुआ तो वो बोला
विक्रम सिंह ---- निशा अब दर्द कम है क्या?

निशा --- हां थोड़ा कम है अब।
विक्रम सिंह -- निशा अब मैं एक ही बार मे पूरा डालने की कोशिश करूंगा।
निशा - नही मुझे बहुत दर्द होगा ।आप थोड़ा थोड़ा करके ही करो।
विक्रम ने अब थोड़ा और ज़ोर लगाया। तो लन्ड 2 इंच ओर अंदर घुस गया।
निशा को फिर से दर्द होने लगा। अब विक्रम सिंह में सोच लिया कि बार बार दरस देने से अच्छा है कि एक ही बार मे जितना हो सके लंड को अंदर घुसा दूँ।
विक्रम सिंह ने अपने कूल्हों को थोड़ा पीछे की ओर किया और एक ज़ोरदै झटके के साथ लंड को निशा की चूत में घुसा दिया।
निशा दर्द के बारे कराह उठी।उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।
थोड़ी देर तक विक्रम सिंह उसके शरीर को सहलाता रहा ।करीब 7-8 मिनट बाद
निशा बोली --- अब दर्द कम हो गया है आप करिये।
अब विक्रम सिंह ने अपने लंड को पीछे खींच और दोबारा झटका देते हुए चुत में प्रवेश करा दिया।
निशा ने अपनी चिंखो को रोकने के लिए अपने दोनों होंठ कस कर बंद कर लिए।अब विक्रम सिंह के धक्के रफ्तार पकड़ चुके थे। इधर निशा का दर्द अब धीरे धीरे मजे में बदलने लगा।वो अब हर धक्के का जवाब अपनी गांड उठाकर दे रही थी।इतने में ही निशा की चूत जवाब दे गई और वो भलभला कर झाड़ गई। अपने जीवन के पहले स्खलन से उसे ऐसा लगा जैसे वो स्वर्ग में आ गई है, वो अपने आप को भीत ही हल्की महसूस करने लगी। इधर विक्रम सिंह के धक्के बदस्तूर जारी थे।
करीब 20 मिनट में निशा 3 बार झड़ चुकी थी। अब विक्रम सिंह भी ढलान की ओर था। उसने ताबड़तोड़ धक्के लगाने शुरू कर दिए। इधर निशा भी चौथी बार झड़ने के लिए तैयार थी।
विक्रम सिंह अब और भी तेज धक्के लगाने लगा।
विक्रम सिंह---- निशा मैं गया आहहहहहहह
विक्रम सिंह ने अपना वीर्य निशा की चूत में भर दिया। निशा भी उसके साथ ही छड़ गई। उनके वीर्य का मिश्रण निशा की चूत से बहकर नीचे गिरने लगा।
थोड़ी देर बाद विक्रम सिंह ने दोबारा निशा के होठों को चूसा और उसे अपनी बाहों में लेकर खुद भी नींद के आगोश में सो गया।

सुबह तड़के ही निशा नींद से उठ गई। जब उसने खुद को नंगा पाया तो उसे रात की बात याद करके बहुत ही शर्म आई पर उसे मैंने मन ही मन खुशी भी थी कि उसने अपना कामोर्य अपने प्रेमी को दिया ।उसने सोचा कि उसकी मां के जगने से पहले उसे अपने कमरे में वापस चला जाना चाहिए। उसने विक्रम सिंह जो कि अभी भी सोया पड़ा था उसके ऊपर चद्दर डाली और खुद अपनी मां के कमरे में चली गई। कुछ देर बाद विक्रमसिंह भी नींद से जाग गया ।उसने आस पास देखा तो उसे निशा कहीं नजर नहीं आई। उसने सोचा शायद निशा जल्दी उठ कर अपने कमरे में चली गई है।

विक्रम सिंह ने रात की बात को याद करके सोचा कि उसका यहां पर आना सार्थक हो गया है उसे ऐसी मदमस्त जवानी देखने को मिली है ,जिसकी वह कल्पना भी नहीं कर सकता था।
तभी वहां पर निशा दोबारा आ गई। विक्रम सिंह ने उसे देखा तो उसकी ओर देखकर मुस्कुरा दिया ।निशा भी जवाब में होले से मुस्कुरा दी । निशा ने बिस्तर पर पड़ी चद्दर को हटाया जिस पर थोड़ा खून लगा हुआ था ,और उसे बाहर आंगन में ले आई।

उसने जल्दी ही चद्दर को पानी से धो दिया।
तकरीबन 2 घंटे में विक्रम सिंह और निशा नित्य आदि क्रियाओं से निवृत्त हो चुके थे।
निशा की मां अभी भी गहरी नींद में सो रही थी। थोड़ी देर बाद निशा की मां ने आंखें खोली। उसे अपना सर भारी भारी महसूस हो रहा था। जब उसने देखा कि सूरज पूरी तरीके से चढ़ चुका है तो उसे अचरज हुआ कि आज उसकी नींद क्यों नहीं खुली। परंतु उसने इसकी ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
और जल्दी ही घर के कामों में लग गई।

जब वो बाहर आई तो उसे मोहन के कमरे की चद्दर सूखती हुई मिली। उसे थोड़ा आश्चर्य हुआ । उसने निशा से पूछा

मोहन की माँ -- बेटी ये चद्दर किसने धोकर डाली है।
( निशा जिसने पहले से मन मे इसका जवाब सोच रखा था वो बोली )

निशा --- मां वो काल विक्रम जी के जख्म पर लेप लगाया था ना, वो रात में उनके बिस्तर पर भी लग गया। इसलिए मैंने सोचा क्यों न इसे धोकर सुख दूँ। वरना दाग गहरा हो गया तो धोने से भी नही जाता।

विक्रम सिंह जो बाहर चारपाई पर बैठ था, वो निशा का जवाब सुनकर उसकी चतुराई की दाद दे रहा था।

निशा की माँ -- बेटा विक्रम, अब तुम्हारा जख्म कैसा है?
विक्रम --- आप चिंता मत कीजिये माजी, रात में निशा ने जो उपचार किया वैसा तो आज तक किसी ने नही किया होगा।

ये बोलकर विक्रम सिंह ने होले से निशा की ओर आंख मार दी। निशा भी थोड़ा मुस्कुरा दी।
निशा की मां --बेटा, मुझे आज उठने में थोड़ी देर हो गई। इसलिए मैं तुम्हारे लिए नाश्ता नहीं बना सकी ।तुम थोड़ी देर बैठो, मैं तुम्हारे लिए अभी नाश्ते का इंतजाम करती हूं ।

यह सुनकर पास खड़ी निशा बोली

निशा --- मां , आप चिंता मत करो । मैंने पहले ही नाश्ता बना दिया था और इन्होंने अभी अभी नाश्ता किया है।

यह सुनकर निशा के मां को उस पर बहुत गर्व हुआ ।
वह बोली

मां --- यह तो तुमने बहुत ही अच्छा किया बेटी। घर आए मेहमान को भूखा रखना अच्छी बात नहीं होती।

अब निशा की मां विक्रम सिंह की ओर देखकर बोली

निशा की मां--- बेटा अब आगे क्या करने का विचार है?
विक्रम सिंह --- माजी ,अब मोहन की समस्या भी हल हो चुकी है । इसलिए मैं सोचता हूं कि मैं यहां से चला जाऊं ।मुझे विक्रम नगर भी जाना है।

यह सुनकर पास खड़ी निशा का दिल धक से रह गया। उसने विक्रम सिंह की और विनती भरी नजरों से देखा जैसे वह उससे प्रार्थना कर रही हो कि उसे छोड़कर मत जाओ।
यह सुनकर निशा की मां बोली
निशा के मां ---बेटा , तुमने हम गरीबों पर इतना बड़ा उपकार किया है ,हमारे बेटे को मौत के मुंह से बचाया है। कुछ दिन यहां रुक जाओ ताकि हम तुम्हारा अच्छे तरीके से आतिथ्य सत्कार कर सकें।

विक्रम सिंह नहीं मांझी मुझे अब जाना चाहिए मैं आप लोगों पर बोझ नहीं बनना चाहता वैसे भी मुझे विक्रम नगर जल्दी ही जाना है।
यह सुनकर पास खड़ी निशा को गुस्सा आ गया ।
वो बोली

निशा--- इन्हें जाना है तो जाने दो मां, वैसे भी इनका यहां कौन है जिनके लिए यह रुके।
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Re: राजा की सेविका complete

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निशा की आंखों में नमी साफ देखी जा सकती थीे परंतु विक्रमसिंह को अपने नगर में भी जाना था।
निशा की मां --बेटा अगर तुम जाना चाहते हो तो हम तुम्हें नहीं रोकेंगे। परंतु तुम से यह विनती है कि मोहन के आने तक तुम यहीं रुक जाओ। जब वह आ जाए तो उसे मिलकर कल सुबह चले जाना।

अपनी मां की बात सुनकर निशा की आंखों में एक चमक सी आ गई । उसने सोचा कि उसके पास कम से कम एक दिन तो है विक्रमसिंह से प्यार करने के लिए फिर तो वह उसकी यादों के सहारे ही जीने पर मजबूर होगी।

विक्रम सिंह को भी निशा की मां की बात ठीक लगी। उसने सोचा कि जाने से पहले एक बार मोहन से मिल लेना ठीक रहेगा। चूंकि मोहन शाम को आने वाला था, इसलिए विक्रम सिंह ने सोचा कि वह थोड़ी देर बाहर की ओर घूम आएगा।
वह अभी बाहर की ओर जाने ही वाला था कि अचानक उनके दरवाजे पर राजा के कुछ सैनिक आ धमके। चूंकि सैनिक अभी भी विक्रम सिंह को ही मोहन समझ रहे थे इसलिए उन्होंने कहा

सैनिक - मोहन, तुम्हें राजकुमारी मीनाक्षी देवी ने याद किया है ।तुम्हें हमारे साथ अभी चलना होगा।

विक्रम सिंह ने सोचा कि आखिर राजकुमारी मीनाक्षी देवी को मुझसे क्या काम हो सकता है।
विक्रमसिंह ने निशा की मां को बता दिया कि वह राजकुमारी मीनाक्षी देवी के पास जा रहा है और उन सैनिकों के साथ चल दिया। मीनाक्षी देवी के पास जाने की बात सुनकर निशा को न जाने क्यों जलन सी महसूस हुई।

इधर विक्रम सिंह जल्दी ही सैनिकों के साथ महल में पहुंच गया।

वह पहुंच कर सैनिको ने विक्रम सिंह को राज दरबार मे जाने को कहा और वो खुद वापस महल के बाहर आ गए।
अब दरबार मे विक्रम सिंह अकेला था।वो अभी उस दरबार की आभा देख ही रहा था कि अचानक राजकुमारी मीनाक्षी देवी ने दरबार मे प्रवेश किया।

मीनाक्षी देवी गज़ब की सुंदर लग रही थी। कजरारे काले नैन, गांड तक लहराते काले काले घने बाल, और उसके बड़े बड़े पपीते जैसे चुचे जो उसकी चोली को फाड़ने को उतारू थे।
उसकी पारदर्शी रेशम की साड़ी में से उसकी चोली ओर पेटीकोट साफ साफ दिखाई दे रहे थे। उसकी ऐसी छटा देखकर विक्रम सिंह का लोडा धीरे धीरे होश में आने लगा।इससे पहले की उनका लन्ड पूरे शबाब पे आता, राजकुमारी बोली -

मीनाक्षी - आओ मोहन, हम तुम्हारा ही इंतेज़ार कर रहे थे।
विक्रम - प्रणाम राजकुमारी जी , आपने मुझे यहां क्यों बुलाया ?
मीनाक्षी - तुमने हमारे राज्य का सीना गर्व से चौडा कर दिया है। हम तुमसे बहुत खुश है । हम तुम्हे कुछ इनाम देना चाहते थे। इसलिए हमने तुम्हे यह बुलाया।

विक्रम - मैं तो बस अपने सैनिक होने का कर्तव्य निभा रहा था।
मीनाक्षी - फिर भी , तुम्हे कुछ तो चाहिए होगा।
यह बोलकर वो विक्रम की तरफ आगे बढ़ने लगी। उसकी मस्तानी ठुमकती चाल से उसके चुचे बलखाने लगे। उसके दूध से गोरे मम्मो को देखकर अब विक्रम सिंह का अपने लोडे पर वश खत्म हो चुका था और वो पाजामे में ही अपना सर उठाने लगा।

मीनाक्षी ने कनखियों से जब उसके उभर की ओर देखा तो उसकी सांसे रुक सी गई। उसके होंटो पर हल्की सी मुस्कान आ गई।

राजकुमारी के इस तरह देखने पर विक्रम सिंह थोड़ा झेंप सा गया।

विक्रम - आपने मेरे बारे में इतना सोचा, इससे ज्यादा मुझे ओर क्या चाहिए।

मीनाक्षी -- नही, हमने सोच लिया है कि हम तुम्हे ऐसा इनाम देंगे कि तुम ज़िन्दगी भर याद रखोगे। तुम हमारे साथ हमारे आवास पर चलो।

फिर मीनाक्षी ,विक्रम को लेकर अपने कमरे की तरफ चल पड़ी। विक्रम, राजकुमारी के पीछे पीछे चल रहा था।
राजकुमारी के भारी भरकम नितंब देखकर राजा का लन्ड उनका पजामा फाड़ने पर उतारू हो गया। मीनाक्षी भी जान बूझकर अपनी गांड मटकाती हुई चलने लगी।

थोड़ी ही देर में वो दोनों कमरे में पहुच गए। राजकुमारी ने अपने कक्ष के पहरेदारो को जाने के लिए कह दिया।


और विक्रम सिंह को भी थोड़ी देर कमरे के बाहर इंतेज़ार करने को कहा।

मीनाक्षी देवी खुद अंदर चली गई और दरवाज़ा अंदर से बन्द कर लिया पर कुंडी नही लगाई।

थोड़ी देर बाद राजकुमारी मीनाक्षी ने विक्रम को अंदर आने के लिए कहा ओर अंदर आकर दरवाज़ा बन्द करने को कहा।

विक्रम ने हल्के से दरवाज़ा खोला। और अंदर आकर उसने दरवाज़ा बन्द कर लिया।

जब उसने पलटकर राजकुमारी के बिस्तर की ओर देखा तो उसके होश उड़ गए।
राजकुमारी बिस्तर पर पूरी तरह से नंगी लेटी थी। वो स्वर्ग की कोई अप्सरा सी प्रतीत हो रही थी। उसका बदन बहुत ही प्यार से तराशा हुआ लग रहा था।उसे देखकर विक्रम सिंह होशो हवाश खोकर दरवाज़े पर ही बुत की तरह खड़ा रहा।
उसे इस तरह आंखे फाड़ते हुए देख राजकुमारी मुस्कुराई और बोली

राजकुमारी -- अब ऐसे ही बूत की तरह खड़े रहोगे या फिर मेरे पास भी आओगे।
विक्रम सिंह राजकुमारी की बात सुनकर होश में आया।

अब विक्रम सिंह धीरे धीरे राजकुमारी की ओर बढ़ने लगा।
विक्रम सिंह ने पलक झपकते ही अपना कुर्ता और पजामा उतार दिया । अब वह बिल्कुल नंगा राजकुमारी के सामने खड़ा था । उसका 9 इंच का लंड खड़ा होकर राजकुमारी को सलामी दे रहा था । राजकुमारी ने जब इतने लंबे लंड को देखा तो उसने हल्के से अपने होठों पर जीभ फिरा दी। विक्रमसिंह उछलकर बिस्तर पर कुदा। फिर उसने राजकुमारी के टांगों को पकड़कर पूरी तरीके से खोल दिया। राजकुमारी की चूत देखने में ऐसे लग रही थी जैसे गुलाब की दो पंखुड़ियां को आपस मे जोड़ दिया गया हो। पांव जैसी छोटी सी चूत पर 2 इंच लंबा चीरा , जिसे पाने के लिए दुनिया का कोई भी मर्द तड़प उठे।
विक्रम सिंह ने अपनी उंगलियों का इस्तेमाल करके चूत की दोनों फलकों को अलग किया। जैसे ही उसने ऐसा किया सामने गुलाबी रंग की खूबसूरत मांसल झिल्ली दिखाई दी। जिसे देखकर विक्रम सिंह के मुंह में पानी आ गया । उसने बिना देर गंवाए तुरंत अपना मुंह राजकुमारी की चूत के मुहाने पर लगा दिया। विक्रम सिंह के इस हमले से राजकुमारी सिसक उठी। विक्रमसिंह अपनी जीभ को नोकदार बनाकर राजकुमारी की चूत में घुसाने की कोशिश करने लगा । ऐसा लग रहा था जैसे वह अपनी जीभ से ही राजकुमारी की चूत को चोद रहा हो । राजकुमारी मजे के मारे दोहरी हो गई ।
थोड़ी ही देर में राजकुमारी की चूत से फव्वारा फूट पड़ा। राजकुमारी तो जैसे जन्नत की सैर कर रही थी। हालांकि राजकुमारी कुंवारी नहीं थी और उसने पहले भी कई लोगों के साथ सेक्स किया था परंतु ऐसा कोई भी नहीं था जो इतनी जल्दी उसका पानी छुडा सके। विक्रम सिंह की इस हरकत से राजकुमारी को उस पर प्यार आने लगा ।
विक्रमसिंह अभी भी राजकुमारी की चूत चाटने में लगा हुआ था । विक्रम सिंह एक हाथ से राजकुमारी का बायां मम्मा मसलने लगा। साथ ही साथ बीच बीच में वह कभी उसकी घुंडीयों को भी मसल देता जिससे राजकुमारी के शरीर में एक लहर सी दौड़ जाती।

अचानक विक्रम सिंह ने उसकी चूत को चूसना छोड़ दिया । राजकुमारी हैरानी भरी नजरों से विक्रम सिंह की ओर देखने लगी जैसे पूछ रही हो कि तुमने ऐसा क्यों किया।
विक्रम सिंह ने इशारों में राजकुमारी को अपने लंड की ओर दिखाया । राजकुमारी उसका इशारा समझ गई और राजकुमारी ने तुरंत उसके तने हुए लंड को अपने हाथों में ले लिया और थोड़ी देर उसकी मुठ मारने के बाद उसे अपने मुंह में ले लिया।

जब राजकुमारी ने विक्रम के लंड को अपने मुंह में लिया तो विक्रम को असीम आनंद की प्राप्ति होने लगी। वो जोर जोर से राजकुमारी के मुंह को चोदने लगा।

राजकुमारी भी किसी मझे हुए खिलाडी की तरह उसका लौड़ा चूस रही थी ।थोड़ी ही देर में विक्रम को लगा कि अगर राजकुमारी ऐसे ही उसका लोड़ा चुस्ती रही तो वो झड़ जाएगा। इसलिए उसने राजकुमारी को रोका और सीधा लेटा दिया।
विक्रम भी उसके ऊपर आकर लेट गया। विक्रम ने अपने लंड को पकड़ कर उसकी चुत के मुहाने पर रखा और उसने एक झटके में ही 5 इंच लोडा उसकी चूत के अंदर घुसा दिया । इस अचानक हमले से राजकुमारी सिहर गई पर विक्रम ने बिल्कुल भी रहम नहीं दिखाया। वह जोर जोर से धक्के मारने लगा। दो तीन धक्कों में ही उसने अपना पूरा का पूरा लंड राजकुमारी की चूत में घुसा दिया । अब हर धक्के में उसका लंड राजकुमारी की बच्चेदानी को छू रहा था ।थोड़ी ही देर में राजकुमारी को भी इसमें मजा आने लगा। वो हर धक्के का जवाब अपनी गांड को उठा कर दे रही थी।थोड़ी ही देर में राजकुमारी की चुत दोबारा बाह निकली।
इसी तरह 15 मिनट चोदने के बाद विक्रम ने राजकुमारी को घोड़ी बना लिया और पीछे से अपना लंड उसकी चूत के मुहाने पर टिका कर एक बार में ही पूरा का पूरा घुसा दिया। विक्रम राजकुमारी की गांड पर थप्पड़ मार रहा था ।राजकुमारी को इसमे और भी ज्यादा मजा आने लगा। अब विक्रम ने राजकुमारी की एक टांग को हवा में उठाया और दुबारा लंड को चूत में घुसा कर ताबड़तोड़ धक्के मारने लगा। दोनों जने पसीने से बुरी तरह लथपथ हो चुके थे परंतु कोई भी हार मानने को तैयार नहीं था। राजकुमारी जोर जोर से आवाज निकाल रही थी जिसे सुनकर विक्रम का हौसला और भी ज्यादा बढ़ता जा रहा था वह और जोर जोर से धक्के मारने लगा। तकरीबन 30 मिनट चोदने के बाद विक्रम को लगा कि वह झड़ने वाला है वह राजकुमारी से बोला
विक्रम - राजकुमारी मेरा पानी निकलने वाला है ,कहां डालूं ?
राजकुमारी -- मेरा भी पानी निकालने वाला है ।तुम अपने पानी से मेरी चूत को भर दो । मैं तुम्हारे पानी को अपनी चूत में महसूस करना चाहती हूं।

और इसी तरह जोर जोर से धक्के मारते हुए अचानक विक्रम के लंड से फव्वारा फूट पड़ा । आज से पहले उसका इतना पानी कभी नहीं निकला था । उसने राजकुमारी की चूत को पूरी तरीके से भर दिया। राजकुमारी भी साथ साथ में झड़ पड़ी।

राजकुमारी - मोहन , आज तो तुमने हमें जन्नत की सैर करवा दी । आज से पहले इतना सुख हमें कभी नहीं मिला। मैं चाहती हूं कि तुम मेरे निजी अंगरक्षक बन जाओ ताकि मैं जब मन करे तुम्हारे लोड़े की सवारी कर सकूं।

विक्रम सिंह ने सोचा कि राजकुमारी को सब सच बता बता देना ही ठीक होगा।

विक्रमसिंह - राजकुमारी जी मैं आपको कुछ बताना चाहता हूं ।आप मुझे गलत मत समझिएगा ।

राजकुमारी --बोलो मोहन ,तुमने हमें इतना सुख दिया है हम तुम्हें कभी गलत नहीं समझेंगे।
विक्रम सिंह-- राजकुमारी , मैं मोहन नहीं हूं ।

राजकुमारी चौक कर बोली- क्या तुम मोहन नहीं हो ।तो कौन हो तुम?
विक्रमसिंह- राजकुमारी ,मैं यहां से बहुत दूर एक राज्य विक्रम नगर का राजा विक्रम सिंह हूं।

जब राजकुमारी ने यह सुना तो आश्चर्य के मारे उसकी आंखें पूरी खुल गई ।

फिर विक्रम सिंह ने अब तक जो कुछ भी हुआ वह सारी कहानी राजकुमारी को बता दी ।
यह सब सुनकर राजकुमारी बोली - महाराज जिस तरह आपने लड़ाई के मैदान पर उन दरिंदों को मारा उसे देखकर हमें पहले ही शक हो गया था कि दाल में जरुर कुछ काला है ।एक सामान्य सा सैनिक इतने खूंखार दरिंदे को कैसे मार सकता है।
परंतु हम क्षमा चाहते हैं कि आपको एक टूटे फूटे घर में रुकना पड़ा ।हम आपका महल में रुकने का अभी प्रबंध करवाते हैं ।
यह सुनकर विक्रमसिंह बोला -राजकुमारी आप कष्ट मत कीजिए। मैं वही पर ठीक हूं ।उन लोगों ने मेरी बहुत आव भगत की है ।मैं उन लोगों के सामने अपनी सच्चाई जाहिर नहीं करना चाहता। इससे उन को धक्का लगेगा ।इसलिए मैं आप से भी निवेदन करता हूं कि आप भी उन्हें कुछ ना बताए ।
राजकुमारी - ठीक है महाराज, जैसा आप चाहें ।परंतु मेरा क्या होगा ,मैं तो आपके लंड की दीवानी हो गई हूं ।मैंने सोचा था कि आप को निजी अंगरक्षक बनाकर जब चाहूं ,आप के लंड के सवारी कर लूंगी ।
विक्रमसिंह -आप चिंता मत कीजिए राजकुमारी ।आप जब भी बुलावा भेजेंगी मैं विक्रम नगर से तुरंत दौड़ता हुआ आपकी चूत की सेवा में हाजिर हो जाऊंगा ।
राजकुमारी - जाने से पहले एक बार फिर इस निगोड़ी चूत की सेवा कर दीजिए महाराज । जाने फिर कब मुलाकात हो ।

राजकुमारी का इतना बोलना ही था कि विक्रम सिंह ने तुरंत अपने लंड को राजकुमारी के मुंह में घुसा दिया।

राजकुमारी भी चटखारे लेकर विक्रमसिंह के लंड को चूसने लगी ।फिर विक्रम सिंह ने राजकुमारी को घोड़ी बनाकर उसकी चूत में अपना लंड घुसा दिया और दे दना दन धक्के मारने शुरू कर दिया। तकरीबन 30 मिनट की ताबड़तोड़ चुदाई के बाद विक्रम सिंह ने अपना पानी राजकुमारी की चूत में ही डाल दिया। राजकुमारी पूरी तरीके से संतुष्ट नजर आ रही थी। विक्रमसिंह -अब मुझे जाने की आज्ञा दीजिए राजकुमारी। मुझे विक्रम नगर जाने की तैयारी भी करनी है। राजकुमारी - जैसा आप ठीक समझे महाराज । परंतु अपनी इस सेविका को मत भूलिएगा ।यह निगोड़ी चूत आपके लंड की याद में टेसुए बहाएगी।
विक्रम सिंह ने आखरी बार राजकुमारी के होठों का चुंबन लिया और फिर महल से निकलकर मोहन के घर की तरफ चल पड़ा।
जब विक्रम सिंह मोहन के घर पहुंचा तो उसने घर के आंगन में बहुत सारा सामान देखा। उसने आश्चर्य से सोचा कि यह सारा सामान कहां से आया ।

थोड़ी ही देर में मोहन की मां कमरे से निकल कर आई ।
विक्रम सिंह ने उनसे पूछा - माजी यह सामान किसका है ?
मोहन की मां - बेटा कल जब मोहन अपने मामा के यहां गया था तो उसे वहां जाकर पता चला कि उसके मामा का व्यापार पूरी तरीके से ठप हो चुका है ।इसलिए उन्होंने हमारे नगर में आकर व्यापार करने का सोचा ।यह सामान उन्हीं का है ।वो आज से हमारे साथ ही रहेंगे। उनकी एक बेटी भी है,उषा, वह भी हमारे साथ ही रहेगी।

अभी वह निशा के साथ राज्य में घूमने के लिए गई है ।थोड़ी ही देर में वह आ जाएगी। मोहन भी गाड़ी वाले को पैसे देकर अभी आता होगा ।इतनी देर में मोहन अपने मामा जयसिंह के साथ घर में प्रवेश कर चुका था ।जब विक्रम सिंह ने मोहन को देखा तो वह दोनों गले लग गये। फिर विक्रम सिंह ने मोहन और उसके मामा के साथ बैठकर बातें करनी शुरू कर दी। मोहन ने अपने मामा को बताया कि किस तरह विक्रम ने उसकी जान बचाई और किस तरह बहादुरी से उन दरिंदों को मौत के घाट उतारा ।
मोहन का मामा भी विक्रम के बहादुरी से प्रभावित हुआ ।इसी तरह बातें करते-करते शाम होने को आई ।वो सब अभी बातें कर ही रहे थे कि इतनी देर में निशा और उसकी ममेरी बहन घर में प्रवेश कर चुकी थी ।
जब विक्रम सिंह ने निशा की ममेरी बहन को देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना ना रहा। वह दिखने में हूबहू निशा की तरह दिखती थी ।उन दोनों को साथ खड़ा देख ये फर्क बताना मुश्किल था कि कौन निशा है और कौन उसके ममेरी बहन उषा ।
विक्रम सिंह को इस तरह आश्चर्य करता देख
मोहन बोला - मैं जानता हूं विक्रम कि तुम्हें क्यों आश्चर्य हो रहा है । जरासल ये दोनों बहनें हूबहू एक जैसी दिखती है।कभी कभी तो हमें भी धोका हो जाता है।
थोड़ी देर विक्रम सिंह उनको ऐसे ही देखता रहा और फिर होल से मुस्कुरा दिया। उसकी कुटिल मुस्कान बता रही थी कि उसके दिमाग मे एक खुराफाती योजना बन चुकी है।

विक्रम सिंह ने मन में सोचा ये तो बिल्कुल निशा लगती है ।वैसे ही शानदार खरबूजे , वैसे ही तीखे नैन नक्श, वैसे ही काले घने बाल और शायद वैसे ही खूबसूरत चूत भी होगी। अगर इसकी चूत मिल जाए तो इस राज्य में आना पूरी तरीके से सार्थक हो जाएगा। इधर निशा भी विक्रम सिंह को देखकर खुश हो गई उसने सोचा कि कुछ भी करके आज की रात विक्रम के साथ गुजारनी है परंतु यह इतना आसान नहीं था ।घर में इतने सारे लोगों के होते हुए वह विक्रम के साथ कैसे रात गुजारे ।
यही सोच सोच कर उसका दिमाग उलझ जा रहा था। उसने एक बार सोचा की क्यों न नशे की पत्तियों से सभी को बेहोश कर दिया जाए और फिर जैसे चाहूँ विक्रम के लंड के मजे लूं। और आखिर उसने इसी योजना पर अमल करने की ठानी।क्योंकि उसके पास वो पत्तियां अभी तक पडी थी।

फिर निशा, उषा और निशा की मां तीनों खाना बनाने में जुट गई। इधर विक्रम सिंह, मोहन और उसके मामा से बातचीत कर रहा था। विक्रम सिंह ने मोहन को यह भी बता दिया कि वह कल यहां से जाना चाहता है क्योंकि उसे आगे विक्रम नगर भी पहुंचना है । विक्रम सिंह बोला - वैसे भी घर में है अब काफी लोग हो चुके हैं इसलिए मेरा यहां रुकना उचित नहीं ।

कुछ देर समझाने के बाद मोहन भी विक्रम सिंह की बात मान गया। इधर खाना बन चुका था। फिर सभी ने जल्दी ही खाना खाया ।
अब समस्या यह थी कि कौन कहां पर सोए ।क्योंकि चारपाई कम थी और आदमी ज्यादा ।
अंत में यह निश्चित हुआ कि मोहन की मां के कमरे में उसकी मां, निशा और उषा सोएंगे ।
और मोहन के कमरे में मोहन खुद और उसके मामा सोएंगे ।घर के आंगन में विक्रम सिंह के लिए अलग से चारपाई डाली हुई थी
विक्रम सिंह ने उसी चारपाई पर सोने का निश्चय किया। जल्दी ही सब लोग अपनी अपनी जगह पर सो गए। परंतु निशा की आंखों से नींद कोसों दूर थी।

उसे अपनी योजना पर अमल करना था ।उसने पहले ही अपने बिस्तर के पास वह पत्तियां छुपा कर रख ली थी। विक्रम सिंह बाहर अभी सोया हुआ था तभी उसने देखा कि उषा अपने कमरे से बाहर निकल कर बाहर की ओर जा रही है
विक्रम सिंह को उसके कपड़े देख कर पता चल चुका था कि यह निशा नहीं उषा है । विक्रम सिंह के दिमाग में एक खुराफाती तरकीब निकल चुकी थी। विक्रम सिंह ने जानबूझकर कहा

विक्रम सिंह - निशा ,इतनी रात को कहां जा रही हो?
उषा ने सोचा कि शायद यह मुझे निशा समझ रहें है परंतु उसने ज्यादा ध्यान ना देते हुए कहा

उषा - जी मैं बाहर पेशाब करने के लिए जा रही हूं ।
विक्रम सिंह - रुको निशा मैं तुमसे कल रात के बारे में कुछ कहना चाहता हूं ।

उषा चौंकते हुए - जी बोलिये

विक्रम सिंह - निशा, कल की रात मेरे जीवन की सबसे यादगार रात थी ।तुमने जो मुझे आनंद दिया, उसके लिए मैं तुम्हारा एहसानमंद हूं ।तुम्हें बुरा लग रहा होगा कि मैं तुम्हें छोड़कर जा रहा हूं परंतु तुम चिंता मत करो मुझे जैसे ही समय मिलेगा मैं यहां पर आऊंगा। तुम्हारी चूत की खुशबू मुझे अपनी ओर खींच ही लेगी ।तुम्हारी चूत के पानी का एहसास अभी भी मेरी जीभ पर बिल्कुल ताजा है।
तुम रात को सबके सोने के बाद एक बार दोबारा मेरे पास आ जाना मैं जाने से पहले आखरी बार तुम्हारी चूत ढंग से बजाना चाहता हूं ।

उषा ने जब यह सुना तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। उसे पता लग चुका था कि निशा इस से चुद चुकी है ।

निशा और उषा बचपन से ही अच्छी सहेलियां थी ।परंतु उषा को हमेशा इस बात की जलन रहती थी कि लोग निशा को उससे ज्यादा सुंदर कहते हैं। वह हर बार इस ताक में रहती कि कभी न कभी निशा को जरूर नीचा दिखाएगी। और जब आज उसे यह पता चला कि वह तो पहले ही विक्रमसिंह से चुद चुकी है तो उसे बहुत जलन महसूस हुई।
उसने मन ही मन ये निश्चय कर लिया कि अगर निशा उससे चुद चुकी है मैं भी इसी से चुदूँगी।
इतने में विक्रम सिंह बोला - क्या हुआ निशा, तुम क्या सोचने लगी
उषा बोली - सुनिए मुझे बाहर पेशाब करने जाना है। और इस अंधेरे में मुझे बाहर जाते हुए डर लगता है । क्या आप मेरे साथ बाहर तक चल सकते हैं ।
यह सुनकर विक्रमसिंह को तो जैसे मन मांगी मुराद पूरी हो गई हो।
वह लपक कर बोला -क्यों नहीं निशा

विक्रमसिंह समझ चुका था कि मछली खुद ब खुद शिकार होना चाहती है ।बस उसे अभी एक अच्छे मौके का इंतजार था। विक्रम सिंह उषा के साथ घर के बाहर आया ।
थोड़ी ही दूर पर खड़े पेड़ पौधों के झुरमुट के पास आकर उषा विक्रम से बोली आप यहीं रुकिए मैं तुरंत पेशाब कर लेती हूं ।
विक्रमसिंह उसकी तरफ मुँह करके ही खड़ा रहा ।इतने में उषा बोली - सुनिए, आप उधर मुंह कर लीजिए ना। मुझे आपके सामने करते हुए शर्म आती है ।

विक्रमसिंह बोला -अरे निशा, तुमने तो अपना सब कुछ मुझे अर्पण कर दिया है ।कल रात को भी मैंने तुम्हारी चूत जमकर बजाई थी ।अब मुझसे कैसी शर्म?

उषा- फिर भी मुझे आपके सामने पेशाब करते हुए शर्म आती है । आप अपना मुँह उधर कर लीजिए।
विक्रमसिंह भी बोला - चलो ठीक है ,मैं भी तुम्हारी बात मान लेता हूं । मैं अपना मुंह फेर रहा हूं तुम जल्दी से पेशाब कर लो।

उषा जानती थी कि विक्रम सिंह जरूर पीछे मुड़कर देखेगा। इसलिए उसने जानबूझकर अपना घाघरा बहुत ऊपर तक चढ़ाया और उकड़ू बैठकर पेशाब करने लगी। इधर विक्रम सिंह कनखियों से उषा की तरफ देखने लगा। जब उसने उसकी दूध जैसी गोरी बड़ी सी गांड देखी तो उसके लंड में सुरसुरी सी दौड़ गई ।उसका लंड तुरंत तुनक कर खड़ा हो गया।
इधर उषा पेशाब कर चुकी थी। फिर भी वह जानबूझकर बैठी रही। वह जानती थी कि विक्रम सिंह उसकी मतवाली गांड देख रहा है।
विक्रम सिंह ने भी सोचा कि अगर शिकार खुद उसके पास चल कर आ रहा है तो उसे भी और इंतजार नहीं करना चाहिए। वैसे भी घर के अंदर वो उषा की चूत नही मार पाता। इसलिए विक्रम सिंह तेज कदमों से उसकी ओर बढ़ने लगा और जाकर उसके गांड के दोनों बड़े बड़े खरबूज़े अपने दोनों हाथों में दबोच लिये।
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Dolly sharma
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Re: राजा की सेविका complete

Post by Dolly sharma »

विक्रम के इस अचानक हमले से उषा सिहर गई।
विक्रम बोला - निशा जाने से पहले मैं तुम्हारी चूत एक बार फिर ढंग से मारना चाहता हूं ।
घर के अंदर हम यह सब नहीं कर सकते ।इसलिए क्यों ना यही सब कुछ कर लिया जाए।
उषा की तो जैसे मन मांगी मुराद पूरी हो गई हो ।उसने अपना सिर हिलाकर विक्रम सिंह को मौन स्वीकृति दे दी ।

विक्रम सिंह ने तुरंत उषा को पास पड़ी घास के ढेर पर लेटा दिया। उषा के सांसेे तेज तेज चल रही थी ।

विक्रम सिंह ने उषा के घाघरे को पकड़कर ऊपर उठा दिया । जिससे उसकी छोटी सी खूबसूरत चूत विक्रम सिंह की आंखों के सामने आ गइ। चांदनी रात में उषा की गोरी चुत और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी।

विक्रम सिंह मन ही मन उषा और निशा की चुतो की तुलना कर रहा था । दोनों बहनों की चूत एक से बढ़कर एक थी ।यह सोचकर विक्रमसिंह मन ही मन मुस्कुरा दिया।
इधर उषा का शरीर उत्तेजना के मारे बुरी तरीके से गरम हो गया। वह बुरी तरीके से छटपटाने लगी ।अब विक्रम सिंह ने भी ज्यादा देर ना करते हुए उसकी छोटी सी बुर पर अपने मुंह को सटा दिया। और जोर जोर से चूसने लगा ।उसके इस तरह चूसने से उषा तो मजे के मारे पागल सी हो गई।

विक्रम सिंह अपनी जीभ को गोल गोल करके उषा की चूत के अंदर घुसाने लगा। थोड़ी ही देर में उषा बुरी तरीके से हाँफते हुए झढ़ गई। उषा की चूत कुंवारी नहीं थी। उसकी चूत की झिल्ली उसकी उंगलियों की बलि चढ़ चुकी थी। फिर भी उंगली और लंड का अंतर उसे आज पहली बार समझ में आने वाला था। विक्रम सिंह ने मन ही मन सोचा कि -मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है जो करना है एक बार में ही करना है।

वो तुरंत उषा के ऊपर आ गया और अपने लंड को उषा की चूत के मुहाने पर लगा दिया ।उषा की चूत के कपाट लंड को अपने इतने समीप पाकर बुरी तरीके से खुलने और बंद होने लगे। विक्रम सिंह ने एक हाथ से अपने लंड के सुपाडे को उसकी चूत के ऊपर घिसना शुरू कर दिया। इस घर्षण मात्र से ही उषा की चूत टेसुए बहाने लगी।

अब विक्रम सिंह ने जोर लगाकर अपना सुपाडा उषा की चूत में घुसा दिया। सुपाडा घुसने से उषा की चूत का मुंह पूरी तरीके से खुल गया ।और उसको थोड़ा थोड़ा दर्द होने लगा ।परंतु वह जानती थी कि अगर उसने दर्द की परवाह की तो वह आने वाले असीम सुख से वंचित रह जाएगी ।इसलिए उसने अपने दर्द को छुपाए रखा ।
विक्रम सिंह मन-ही-मन उषा की हिम्मत की दाद देने लगा। विक्रम सिंह ने थोड़ा जोर लगाकर लंड को और अंदर घुसा दिया जिससे उषा के मुंह से आह निकल गई।

विक्रमसिंह - क्या हुआ निशा ,अभी भी दुख रहा है ?
मुझे लगा कल रात के बाद तुम्हें नहीं दुखेगा ।
उषा ने सोचा कि अगर उसने विक्रमसिंह पर यह दर्द जाहिर कर दिया तो वह समझ जाएगा कि वह निशा नहीं उषा है और वो यह नहीं चाहती थी।

इसलिए उसने अपने दर्द को छुपाते हुए विक्रम से कहा - जी नहीं, वो बस ऐसे ही मुंह से मजे के मारे आह निकल गई।
आप अपना काम जारी रखें ।
विक्रम सिंह ने सोच लिया कि उसे एक ही बार में किला फतह करना चाहिए। इसलिए उसने थोड़ा जोर लगाकर पूरा का पूरा लंड निशा की चूत में घुसा दिया।
उषा के शरीर में दर्द की एक लहर दौड़ गई । परंतु वो अपना दर्द विक्रम सिंह के सामने जाहिर नहीं कर सकती थी इसलिए उसने अपने दर्द को छुपाने के लिए अपने होंठ विक्रम सिंह के होठों से लगा दिए और वो दोनों गहरे चुंबन में डूब गए।
निशा ने विक्रम सिंह की कमर को जानबूझकर पकड़ा हुआ था ताकि विक्रम सिंह धक्के ना लगा सके ।विक्रम सिंह भी यह बात अच्छी तरीके से जानता था। इसलिए उसने थोड़ी देर धक्के ना लगाकर उषा के गोरे-गोरे मुंम्मो को अपने हाथों में दबोच लिया। और उसकी घुंडीयों को अपने नाखूनों से कुरेदने लगा।
थोड़ी देर में उषा का दर्द बिल्कुल कम हो गया ।उसने इशारे से विक्रम सिंह को धक्के लगाने के लिए कहा ।
विक्रम सिंह ने अपनी कमर को पीछे करते हुए दुबारा एक जोरदार धक्का लगाया।

विक्रम सिंह का पूरा का पूरा लंड उषा की चूत में घुस चुका था। विक्रम सिंह ने अपने लोड़े को उषा की चूत में सरपट दौड़ आना शुरू कर दिया। थोड़ी ही देर में उषा का दर्द मजे में बदल गया और वह सिसकारियां लेते हुए विक्रम सिंह के हर धक्के का जवाब अपनी गांड उठा कर देने लगी। थोड़ी देर इसी पोज में चोदने के बाद विक्रम सिंह ने उसको घोड़ी बनने के लिए कहा और पीछे से अपना लंड उस की चूत में डाल दिया। उषा मजे के मारे आहें भरने लगी। थोड़ी ही देर में उषा की चूत ने अपना काम रस छोड़ दिया और वह बुरी तरीके से झड़ने लगी। वह मजे के समुंद्र में डुबकियां लेने लगी। इधर विक्रमसिंह के धक्के और भी तेज होते जा रहे थे। थोड़ी देर बाद विक्रम सिंह ने उषा को खड़ा किया और उसे आगे की ओर झुका कर खड़े खड़े ही अपना लंड उसकी चूत में दोबारा पेल दिया। उषा अब जोर जोर से आहें भरने लगी थी उसने अपनी आवाज को रोकने के लिए अपने दोनों हाथों को अपने मुंह पर लगा लिया। अब दृश्य कुछ इस प्रकार का था कि उषा आगे की ओर झुकी हुई अपने दोनों हाथों को अपने मुंह पर लगाई हुई थी और विक्रमसिंह पीछे से लगातार धक्के मारे जा रहा था। विक्रम सिंह के हर धक्के से उषा आगे की ओर गिरने को होती परंतु विक्रमसिंह उसकी कमर को पकड़ कर वापस पीछे कर लेता और दोबारा एक जोरदार धक्का मारता। 10 मिनट तक इसी तरीके से दमदार चुदाई करने के बाद विक्रमसिंह झड़ने को हुआ तो उषा को बोला --- आहहहहह उषा मैं झड़ने वाला हूं कहां डालूं ?
उषा - आहहहहहह में भी झड़ने वाली हूँ ।मैं आप के पानी को अपनी चूत के अंदर महसूस करना चाहती हूं। आप मेरी चूत को अपने पानी से भर दीजिए।

मजे मजे में विक्रम सिंह के मुंह से उषा निकल गया पर उषा तो खुद चुदाई में मस्त थी उसे कहाँ इस बात का ख्याल था।

फिर विक्रम सिंह ने 10 -15 जोरदार धक्के लगाये
और वो दोनों एक साथ झड़ गए । इस तरह झड़ने से दोनों संभल नहीं पाए और तुरंत घास के ऊपर गिर पड़े। विक्रम सिंह का लंड अभी भी उसकी चूत में घुसा हुआ था। उन दोनों के पानी का मिश्रण निशा की चूत से रिसता हुआ घास पर गिरने लगा।
वो दोनों एक दूसरे को बुरी तरीके से चूमने लगे।


इतने में उन्हें एक आवाज सुनी यह तुम दोनों क्या कर रहे हो?

यह कोई और नहीं बल्कि निशा की आवाज़ थी ।

जब विक्रमसिंह और उषा चुदाई में मगन थे तो इधर निशा अपने काम को अंजाम देने के लिए उठी ।
उसने अपने बिस्तर के नीचे से वह नशीली पत्तियां निकाली और तुरंत ही अपनी मां को सुंघा दिया।
फिर जैसे ही वह इन पत्तियों को उषा को सुघाने के लिए दूसरी तरफ हुई तो वहां पर उषा को ना पाकर उसके आश्चर्य का ठिकाना ना रहा ।

उसने सोचा इतनी रात में उषा कहां चली गई। वह तुरंत अपने कमरे के बाहर आई। बाहर आकर उसने देखा कि विक्रमसिंह भी अपनी चारपाई पर मौजूद नहीं है ।उसने सोचा पहले मैं मोहन और मामा को यह पत्तियां सुंघा देती हूं ।उसके बाद देखती हूं कि ये दोनों कहां गए ।

वह मोहन के कमरे में गई और बहुत ही शातिर तरीके से उसने मोहन और अपने मामा को वो नशीली पत्तियां सुघा दी । जिससे वो दोनों बेहोशी के आगोश में चले गए।

अब निशा , विक्रम सिंह और उषा को ढूंढने के लिए घर के दरवाजे तक गई। वहां पर उसने हल्की सी आह की आवाज सुनी। उसने इधर उधर नजर दौड़ाई तो थोड़ी दूर पर पड़े घास के ढेर पर कुछ हलचल दिखाई दी ।

वो समझ चुकी थी कि जरूर विक्रमसिंह और उषा चुदाई में मगन है। ये सोचकर निशा के पैरों तले जमीन खिसक गई । उसका पारा गरम हो गया ।

वह दबे पांव उन दोनों की तरफ बढ़ने लगी ।जब वह बिल्कुल नजदीक पहुंच गई तो उसने देखा कि विक्रम सिंह उषा को खड़े-खड़े चोद रहा है ।वो दोनों बस फारिग हो ही रहे थे कि निशा जोर से बोली - यह तुम क्या कर रहे हो?

*********

निशा को वहां पर देख उषा के होश उड़ गए । वो तुरंत अपने घाघरा चोली पहनने लगी।
इधर विक्रम सिंह ने भी अपना पजामा ऊपर कर लिया। परंतु विक्रमसिंह थो़डा निश्चिंत दिखाई दे रहे थे ।उनके दिमाग में पहले से ही तरकीब थी कि अगर निशा वहां पर आ गई तो उन्हें क्या कहना है।
विक्रम सिंह अपनी योजना पर अमल करते हुए बोले -- उषा ,तुम यहां क्या कर रही हो?

जब निशा ने विक्रम सिंह के लिए अपना नाम उषा सुना तो वह पूरा माजरा समझ गई और उसे उषा पर बहुत ज्यादा गुस्सा आया ।

वो जोर से चीखी --उषा ,तुमने ये क्या किया ?
तुमने मुझे बहुत बड़ा धोखा दिया है। तुमने मेरे बहाने इनसे चुदाई कर ली। तुमने अपनी बहन के प्रेमी पर ही डाका डाला है। मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगी ।

इधर उषा ने जब देखा कि उसका भांडा फूट गया है तो वह भी जोर से बोली-- निशा ,अगर मैंने यह सब किया है तो तुम भी कोई दूध की धुली नहीं हो । तुम भी कल रात इनसे मजे लेकर चुद चुकी हो । मुझे सब मालूम पड़ चुका है कि कैसे तुम दोनों ने कल रात रंगीन की थी ।

इधर निशा को जब यह पता चला कि वह सब जान चुकी है तो वो थोड़ा नरम हुई और बोली -- देखो उषा मैं इनसे प्यार करती हूँ। इसलिए मैंने वो सब किया पर तुमने इनसे चोदने के लिए मेरे नाम का गलत इस्तेमाल किया है।

उषा -- निशा , तुम बचपन से ही मुझसे हर चीज में आगे रही हो। हर कोई बस तुम्हारी ही तारीफ करता था। इसलिए मुझे तुमसे जलन होने लगी थी।
मैं बस तुमसे एक बार आगे निकलना चाहती थी। इसलिए जब मुझे पता चला कि तुम इनसे चुद चुकी हो तो मैंने भी मन-ही-मन ठान लिया था कि मैं भी इन्हीं से चुद कर रहूंगी।
इसीलिए मैंने ये सब किया । अगर तुम्हें अभी भी लगता है कि मैंने कुछ गलत किया है तो मुझे जो सजा देना चाहो ,दे सकती हो।

उषा की बात सुनकर निशा भी थोड़ी भावुक हो गई। वो उसके पास गई और प्यार से उसके गले लग गई ।दोनों बहनों की आंखें नम हो गई ।


निशा -- मुझे माफ करना मेरी बहन, मुझे नहीं पता था कि मेरी वजह से तुम्हें इतनी तकलीफ हुई है । अब मैं तुम्हें किसी भी शिकायत का मौका नहीं दूंगी। और हम दोनों बहनें बहुत प्यार से रहेंगे ।

उषा --तो क्या आपने मुझे माफ कर दिया?

निशा --हां पगली ,मैंने तुम्हें माफ कर दिया । पर तुम माफी इनसे मांगो। क्योंकि तुम ने धोखे से इनके साथ यह सब किया है।

विक्रमसिंह इतनी देर से इन दोनों बहनों की बातें सुन रहा था ।

उषा --मुझे माफ कर दीजिए। मैं निशा नहीं उषा हूं । और मैंने जानबूझकर आपके साथ यह किया ।मुझे पता था कि आप निशा समझकर मेरे साथ यह सब कर रहे हैं पर अब आप यह जान चुके हैं कि मैंने यह सब क्यों किया? इसलिए आप भी कृपया करके मुझे माफ कर दें।

विक्रम सिंह ने अपनी अगली चाल चली और बोला -- तुम्हें माफी मांगने की कोई जरुरत नहीं है उषा ।
मैं पहले से ही जानता था कि तुम निशा नहीं उषा हो ।

अब तो होश उड़ने की बारी दोनों बहनों की थी।

वो दोनों कुछ कहती इससे पहले ही विक्रमसिंह बोला -- देखो निशा ,मैं जानता हूं कि तुम मुझसे प्यार करने लगी हो परंतु तुम तो जानती हो कि मैं जल्दी ही तुम लोगों को छोड़कर विक्रम नगर चला जाऊंगा । और तुम भी मेरे साथ बस एक बार जम के चुदना चाहती थी तो मुझे नहीं लगता कि अगर मैंने उषा को चोद दिया तो इसमें कुछ गलती है । तुम दोनों बहने एक से बढ़कर एक हो। मैं तुम दोनों से ही प्यार करता हूं। इसलिए दोनों की चुदाई की। मैं तो कल सुबह चला जाऊंगा इसलिए तुम दोनों को यह निश्चय करना है कि तुम आज की रात खुश होकर गुजारोगी या फिर??


यह बोलकर विक्रम सिंह मंद मंद मुस्कुराने लगा। थोड़ी देर के सन्नाटे के बाद निशा बोली -- इसकी सजा तो आपको मिलेगी ही।

उसकी बात सुनकर उषा और विक्रम सिंह दोनों घबरा गए । फिर निशा हल्के से मुस्कुराते हुए बोली -- सजा तो आपको मिलकर ही रहेगी और आप की सजा ये है कि आपको अभी इसी वक्त मेरी और उषा दोनों की जमकर चुदाई करनी होगी ।और कम से कम 2-2 बार हमें झाड़ना होगा।

उसकी बात सुनकर उषा और विक्रम सिंह दोनों के चेहरे पर मुस्कान आ गई। अब निशा और उषा ने अपने-अपने घाघरा और चोली उतारने शुरू कर दिए। चांदनी रात में उन दोनों के छरहरे बदन को देखकर विक्रम सिंह का लौड़ा तुरंत दुबारा खड़ा होने लगा ।
निशा ने लपक कर उसके लोड़े को अपने मुंह में ले लिया और जोर जोर से चूसने लगी ।इधर उषा भी कुछ कम नहीं थी। उसने तुरंत विक्रम सिंह के आन्डो को अपने मुंह में ले लिया और जी भर कर चूसने लगी।
विक्रमसिंह तो जैसे जन्नत में पहुंच गया ।उसका लोड़ा पुरी औकात में आ चुका था । उसने उन दोनों बहनों का मुंह अपने लोडे से हटाया और उन दोनों को वही घास पर लेटा दिया ।
अब विक्रम सिंह ने भी अपने सारे कपड़े उतार दिए।

पर अचानक विक्रमसिंह को जैसे कुछ याद आया और वो उन दोनों से बोला --- निशा ,हम तीनो पूरी तरीके से नंगे हैं ,अगर तुम्हारे परिवार का कोई आदमी यहां पर आ गया तो गजब हो जाएगा ।

उसकी चिंता में उषा ने भी हां में हां मिलाई। परंतु निशा जोर-जोर से हंसने लगी। उसकी हंसी देखकर उन दोनों को आश्चर्य हुआ ।
उषा बोली -- निशा तुम हंस क्यों रही हो ? ये सही तो बोल रहे हैं ।
अगर घर में से कोई यहां पर अचानक आ गया तो शामत आ जाएगी ।और तुम जोर जोर से हंस रही हो ?

निशा बोली -- तुम लोग चिंता मत करो। उन तीनों में से कोई भी यहां पर नहीं आ पाएगा ।
विक्रमसिंह --पर तुम इतनी निश्चिंत कैसे हो ?

फिर निशा बोली --जरासल मैंने उन तीनों को नशीली पत्तियां सुंघाकर बेहोश कर दिया है। ठीक वैसे ही जैसे मैंने कल रात को अपनी मां को उन्ही नशीले पत्तियों से बेहोश किया था।
ताकि मैं आराम से आपसे चुद सकूं।

उसकी बात सुनकर विक्रम सिंह और उषा भी हंस पड़े। अब विक्रम सिंह ने घास पर लेटी उन दोनों बहनों की चुतों को अपनी दोनों मुट्ठियों में भींच लिया।और उसे जोर जोर से मसल ने लगे।

दोनों बहने अब खुलकर आवाजें निकाल रही थी। विक्रम सिंह चुदाई में माहिर खिलाड़ी था ।उसने तुरंत उन दोनों बहनों के चूत के दाने को मसलना शुरू कर दिया । वो दोनों बहने मजे के मारे झटपटाने लगी।

विक्रम सिंह ने निशा की चूत पर अपना मुंह लगा दिया और अपने जीभ से उसकी चूत के दाने को चाटने लगा।
साथ ही उन्होंने अपनी एक अंगुली उषा की चूत में घुसा दी और उसे जल्दी-जल्दी अंदर बाहर करने लगा।

निशा की बुर की मादक खुशबु विक्रम सिंह के नथुनों में भर गयी । फिर तो जैसे उसे कोई नशा सा चढ़ गया, वो अपनी पूरी जीभ से उसकी चूत किसी मलाई की तरह चाटने लगा।
निशा का तो बुरा हाल था, उसने अपने दोनों हांथो से विक्रम सिंह के बाल पकड़ लिए और खुद ही उसके मुंह को ऊपर नीचे करके उसे नियंत्रित करने लगी।

विक्रम सिंह के जीभ और होंठ उसकी चूत में रगड़कर एक घर्षण पैदा कर रहे थे और विक्रम सिंह को ऐसा लग रहा था कि वो किसी गरम मखमल के गीले कपडे पर अपना मुंह रगड़ रहा है। दोनों बहनों की सिस्कारियां हवा में गूंज रही थी। 5 मिनट में ही निशा का शरीर अकड़ने लगा और वह भलभला कर झड़ गई।

विक्रम सिंह ने उसकी चूत का सारा पानी पी लिया ।
और फिर हंस कर बोले -- निशा, तुम तो बोल रही थी कि कम से कम 2 बार झाड़ू । पर तुम तो खेल शुरु होने से पहले ही एक बार झड़ चुकी हो ।

निशा --आप तो सचमुच चुदाई के खेल में माहिर है ।अपना लंड अभी घुसाया नहीं और मुझे एक बार झाड़ भी दिया।

इधर उषा जो पहले ही चुदाई कर चुकी थी इसलिए वह भी जल्दी झड़ने वाली नहीं थी ।अब विक्रम सिंह ने निशा की दोनों टांगो को फैला दिया जिससे उसकी चूत कि दोनों पंखुड़ियां बिल्कुल खुल गई ।उसकी चूत का गुलाबी द्वार जैसे विक्रम सिंह के लंड को अपने अंदर आने के लिए उकसा रहा हो।

निशा --अब ज्यादा देर मत कीजिए।कल रात के बाद से ही मैं आपके लंड को अपनी चूत में लेने के लिए मरी जा रही हूं ।यह निगोड़ी चूत कल से मुझे परेशान किए हुए है ।अब आप ज्यादा देर ना लगाकर इसकी प्यास बुझा दीजिए।

विक्रम सिंह ने भी अब ज्यादा समय नहीं गंवाते हुए उसकी चूत पर अपने लंड को सेट किया और एक ही धक्के में पूरा का पूरा लंड उसकी चूत के अंदर घुसा दिया।
निशा इस जोरदार धक्के को संभाल नहीं पाई और उसके मुंह से जोरदार आह की आवाज निकल गई ।परंतु विक्रम सिंह ने ठान लिया था कि आज उसकी चूत का भर्ता बना कर छोड़ेगा।

विक्रम सिंह ने उसकी एक बात नहीं सुनते हुए जोरदार तरीके से धक्के लगाने शुरू कर दिए। इधर उषा भी निशा की चुचियों को मसलने लगी और उसके गुलाबी होठों को अपने गुलाबी होठों से सटा लिया।
उन दोनों को ऐसा करता देख विक्रम सिंह का उत्साह और भी ज्यादा बढ़ गया । वह पिस्टन की भांति अपना लंड निशा की चूत में सरपट दौड़ने लगा ।
निशा तो इस दोहरे मजे से पागल सी हो गई और एक बार फिर जोरदार तरीके से झड़ गई।

विक्रम सिंह - तुम तो 2 बार झड़ गई निशा। अब लन्ड बाहर निकल लूं क्या?

निशा - ऐसा जुल्म न करना । मुझे बस चोदते रहिये।
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