राजा की सेविका
फ्रेंड्स एक और कंप्लीट कहानी पोस्ट कर रही हूँ जिसे मैने तो नही लिखा है जिन्होने इसे ना पढ़ा हो वो इस कहानी को एक साथ पूरा पढ़ सकते हैं
यह कहानी है, हिमालय की वादियों में बसे एक राज्य की.. जिसका नाम था, विक्रम नगर .. .
इस राज्य के राजा “विक्रम सिंह ” थे… !!
उसकी शरण में, राज्य बड़ा सुखी और शांत था और राजा ने अपने राज्य को और अधिक समृद्धशाली बनाने के लिए, सुदूर राज्य करमपुर के राजा की बेटी “कामिनी देवी ” से शादी करने का प्रस्ताव लेकर राजा से मिलने गये।
राजकुमारी बहुत ही सुंदर लड़की थी… !!
उसे जब राजा विक्रम सिंह ने देखा तो वो उसके योवन में खो गये..
राजकुमारी का गोरा रंग, दूध जैसा था..
उसके बड़े बड़े खरबूजे जैसे चूचे, जो उसकी चोली को फाड़ कर बाहर निकलने के लिए तड़प रहे थे और उसके चुत्तड़ तो बिलकुल सुडोल और बेहद आकर्षक थे… !!
जब राजा ने उसे देखा तो राजकुमारी अपनी सखी और दसियों के साथ खेल रही थी और भागने दौड़ने के कारण, उसके गाल लाल पड़ गये थे।
राजा का मन तो यह कर रहा था की अभी ही वो राजकुमारी के गालों को चूम ले.. मगर, वो कोई ग़लत काम नहीं करना चाहते थे.. इसलिए, वो सीधे ही करमपुर के राजा के महल में, उनसे उनकी बेटी का हाथ माँगने चले गये..
करमपुर के राजा, राजा विक्रम सिंह को देख बड़े खुश हुए और जब विक्रम सिंह ने उनसे उनकी बेटी का हाथ माँगा तो उन्होंने एक पल भी ना सोचा और तुरंत राजकुमारी की शादी उनसे ही करने का वचन दे दिया।
मगर, राजकुमारी ने जब राजा विक्रम सिंह को देखा तो उन्हें वो पसंद ना आए और उन्होंने जब यह बात अपने पिता और माँ को बताई की वो शादी नहीं करना चाहती तो उनके पिता गुस्सा हो गये और बोले की अब वचन दे दिया है और वो अब कुछ नहीं कर सकते… !!
अब राजकुमारी के पास कोई रास्ता ना था और फिर, उन्होंने सोचा की अगर वो राजाविक्रम सिंह को यह बोले की वो शादी नहीं करना चाहती क्यूंकी वो किसी और से प्यार करती है तो शायद राजा विक्रम सिंह अपने आप शादी से इनकार कर दे… !!
यह सोच, उन्होंने अपनी एक दासी बुलाई..
वो अपने राज्य के किसी भी संदेश वाहक दूत को, यह काम के लिए नहीं कह सकती थी क्यूंकी फिर यह बात उनके पिताजी को पता चल सकती थी.. इसलिए, उन्होंने अपनी सबसे करीबी दासी को बुलाया था और उसे एक संदेश लिख कर दे दिया, जिसमें उन्होंने विक्रम सिंह से शादी से मना करने का लिख रखा थ
उधर राजा विक्रम सिंह , राजकुमारी के रूप में खोए हुए थे और वो अपने दरबार से भी जल्दी चले गये और अपने कक्ष में जाकर, बस कामिनी के बारे में सोचने लग गये।
वो अपने दिमाग़ से, राजकुमारी के बड़े बड़े चूचे निकाल ही नहीं पा रहे थे..
इस मनोरोग को दबाने के लिए, उन्होंने मदिरा का सहारा लिया.. मगर, उसका उल्टा प्रभाव उनके दिमाग़ पर पड़ा और वो जहाँ देखते वहाँ उन्हें राजकुमारी ही दिखने लगी और फिर उन्होंने अपने सारे कपड़े निकाल फेंकें और नंगे ही बिस्तर पर लेट गये और अपने लंड को अपने हाथ से पकड़, हिलाने लग गये..
इतनी देर में, उनके दरवाज़े पर दस्तक हुई तथा एक अंगरक्षक ने उनसे बाहर से पूछा – महाराज, आपसे कोई मिलने आया है… !!
राजाविक्रम सिंह ने कहा – अंगरक्षक, कौन गुस्ताख है… !! अभी हम, किसी से नहीं मिल सकते… !! उनसे कहो, कल आए… !!
अंगरक्षक की आवाज़ आई – महाराज, आपसे कामिनी की दासी मिलने आई है… !! राजकुमारी का कोई संदेश लाई है… !!
राजा बुरी तरह नशे में था उसे सिर्फ़ राजकुमारी ही समझ में आया और उसके मुंह में पानी आ गया और उसने तुरंत बिना कुछ विचारे, अंगरखशक से कहा – उन्हें सम्मान के साथ अंदर भेज दो… !!
राजा यह भी भूल गये की वो कुछ नहीं पहने हैं..
फिर, दरवाज़ा खुला और दासी अंदर आई।
दासी ने मुंह नीचे कर रखा था और उसने यह नहीं देखा की राजा “नंगा” उसकी प्रतीक्षा कर रहा है..
दासी ने आते ही, राजा को नमस्कार किया और बोली – महाराज, मैं आपके लिए कामिनी का… !! … !! और आगे वो कुछ बोल पाती राजा ने उसे अपनी बाहों में भर लिया और तब दासी को एहसास हुआ की राजा तो नंगा था..
वो राजा को दूर हटाने की कोशिश करने लगी और बोली – महाराज, आप यह क्या कर रहे हैं… !! मैं तो एक दासी हूँ… !! और राजकुमारी जी का संदेश लेकर आई हूँ… !!
मगर राजा नशे में चूर था और कुछ समझ नहीं पा रहा था।
वो बोला – हाँ, तू दासी है… !! मगर, सिर्फ़ मेरी, बाकी लोगों के लिए तो तू इस राज्य की रानी है… !!
दासी को समझ में आ गया की राजा नशे में चूर है
दासी को समझ में आ गया की राजा नशे में चूर
उसने राजा को बहुत समझाने की कोशिश की वो कामिनी नहीं, एक दासी है.. मगर, राजा तो बुरी तरह नशे में था और कुछ समझ नहीं पा रहा था..
और फिर उसने ज़बरदस्ती दासी को अपने बिस्तर पर पटक दिया और उसकी चोली को खोलने लगा।
दासी अपने आप को बहुत छुड़ाने की कोशिश कर रही थी.. मगर, राजा बहुत ताकतवर था इसलिए, उसकी एक ना चल पाती..
राजा, जब उसकी चोली को खोल ना पाया तो उसने उसे फाड़ कर बाहर फेंक दिया और दासी के चूचे आज़ाद हो गये..
वैसे तो, वो दासी थी.. मगर, वो भी बहुत खूबसूरत थी..
हाँ, वो राजकुमारी जितनी गोरी नहीं थी.. मगर, उसका रंग भी साफ़ था और उसके चूचे भी कसे हुए और बड़े बड़े थे..
अब राजा उसके चुचों को मसलने लगा और उसके होठों को चूमने की कोशिश करने लगा.. मगर, दासी कभी अपना मुंह इधर उधर करने लगी.. जिससे, राजा उसके होठों का चूँबन ना ले सके.. मगर, राजा ने उसके चूचे मसलने छोड़, उसके मुंह को अपने हाथ से पकड़ सीधा कर दिया और उसके होंठ पर अपने होंठ रख दिए और फिर से अपने एक हाथ से उसके चूचे वा दूसरे हाथ से उसके घाघरे के ऊपर से ही, चूत मसलने लगे..
दासी, बुरी तरह तड़पने लगी। क्यूंकी, वो अभी तक कुँवारी थी और उसने कभी आदमी के स्पर्श तक तो महसूस किया नहीं था और अब उसका हर अंग राजा महसूस कर रहा था।
दासी, बुरी तरह चिल्लाने लगी.. जिसे सुन, राजा के अंगरक्षक भी दहल गये.. मगर, राजा का आदेश के बिना वो कक्ष के अंदर भी नहीं जा सकते थे.. इसलिए, वो भी चुप चाप बाहर उसके चिल्लाने की आवाज़ सुनते रहे..
अब राजा ने चूची चूसना शुरू कर दिया और दासी बुरी तरह तड़पने लगी।
उसने यह एहसास पहले कभी महसूस नहीं किया था और राजा अब धीरे धीरे, उसके घाघरे को भी ऊपर करने लगा और दासी की जांघें बिलकुल नंगी हो गई.. मगर, दासी ने अपने दोनों हाथों से घाघरे को दबा दिया.. जिससे राजा उसकी चूत को नंगा ना कर सके..
फिर राजा ने उसके दोनों हाथ अपने दोनों हाथों से पकड़ लिए और दासी के ऊपर बैठ गये।
दासी रोए जा रही थी और लगातार अपने को छोड़ने की भीख माँग रही थी.. मगर, राजा कहाँ मानने वाला था..
वो नशे में तो था ही और उससे बड़ा नशा था, “वासना” का और उसने दासी के घाघरे में अपना खड़ा लंड फँसाया और उसे कमर तक ऊपर कर दिया.. जिससे, दासी की चूत बिलकुल नंगी हो गई और राजा ने अपने लंड का सुपाड़ा दासी की चूत पर रख दिया और उसे उस पर रगड़ने लगा..
अब दासी से सहन नहीं हो पा रहा था।
वो अपनी कुँवारी चूत पर एक भारी भरकम लंड का एहसास कर रही थी और दूसरी और राजा उसकी चूची अपनी मुंह में दबा कर चूसे जा रहा था.. कभी कभी, हल्का सा काट भी लेता..
वो अब चिल्ला चिल्ला कर भी थक चुकी थी तो वो चुप चाप बिस्तर पर सिसकारी भरने लगी और अपने बदन को भूखे राजा के सामने हल्का छोड़ दिया।
अब राजा जो चाहता, वो उससे करा सकता था.. मगर, अचानक दासी का हाथ पानी के गिलास पर पड़ा और उसने उसे उठ कर राजा के मुंह पर मार दिया..
राजा की आँखो में पानी जाने से, वो तिलमिला गया और दासी के ऊपर से हट गया और उसे हल्का हल्का होश भी आ गया।
तब मौका देख, दासी ने सोचा – यह अच्छा मौका है, भाग जाने का… !! और वो सीधे ही “नंगे बदन”, दरवाज़े की और भागी.. मगर, फिर उसे ख़याल आया की अगर वो उस तरह बाहर गई तो शायद कई लोग उसके साथ बलात्कार कर देंगे… !! यहाँ तो, यह राजा ही उसे चोदेगा… !! यह सोच वो रुक गई..
राजा भी हल्के से होश में आ गये थे।
राजा ने उसकी और देखा और बोले – तुम तो राजकुमारी नहीं हो… !! तुम कौन हो… !! ??
यह सुन, दासी ने सोचा – शायद, राजा को होश आ गया है और वो बच गई… !! वो बोली – क्षमा करें, महाराज… !! मैं कामिनी नहीं हूँ… !! और आप मुझे राजकुमारी समझ कर मुझसे यौन क्रिया करना चाह रहे थे… !! इसलिए, मुझे आपके मुंह पर जल डालना पड़ा… !!
राजा ने अपने मुंह से पानी साफ़ करते हुए कहा – मगर, तुम हो कौन… !! ?? और हमारे कक्ष में क्या कर रही हो और हमारे अंगरक्षक ने तुम्हें अंदर कैसे आने दिया… !! ??
तब दासी ने बताया की वो क्यूँ आई थी और उसने राजा को राजकुमारी का संदेश दे दिया..
राजा ने जब उसे पड़ा तो तिलमिला गये की जिसके ख़यालों में वो खो चुके थे वो किसी और से प्यार करती है.. ..
और उन्होंने संदेश को फाड़ कर कक्ष में जल रही अंगीठी में डाल दिया और फिर वो दासी की और मुड़े और बोले – उसकी यह हिम्मत की हमारा रिश्ता ठुकरा दे… !! मैं चाहूं तो उसके राज्य को कुछ ही पल में, धूल में मिला सकता हूँ… !! और यह कहते हुए उन्होंने दासी का हाथ पकड़ लिया..
दासी डर गई और बोली – महाराज, मैं क्षमा चाहती हूँ… !!
राजा गुस्सा में बोला – नहीं, उस घमंडी राजकुमारी को भी पता चलना चाहिए की हम क्या कर सकते हैं… !!
यह कह राजा ने फिर दासी को बिस्तर पर पटक दिया और फिर उसके सामने जाकर खड़े हो गये और दासी के बाल पकड़ कर उसे बिस्तर पर घुटनों के बल बिठा दिया।
वो फिर से करहाने लगी और राजा से दया की भीख माँगने लगी.. मगर, राजा तो बिल्कुल बहक चुका था और दासी का मुंह अपने लंड के सामने लाकर बोला – चूस इसे… !!
दासी ने अपने दोनों हाथ जोड़ कर, राजा से मना किया तब राजा गुस्से में आकर अपने लंड को दासी के होठों से रगड़ने लगा.. मगर, दासी ने अपने मुंह ना खोला..
फिर, राजा ने उसके मुंह को अपने हाथ से दबाया और दर्द से छटपटाती दासी ने मुंह तुरंत खोल दिया और जैसे ही उसने मुंह खोला, राजा ने लंड उसके मुंह के अंदर डाल दिया और फिर राजा उसके सिर को लंड की और धकेलेने लगे और जैसे चूत को चोदते हैं, वैसे उसके मुंह को चोदने लगे..
राजा का बड़ा लंड, दासी के पूरे मुंह में आ गया था और उसे साँस लेने में भी तकलीफ़ हो रही थी।
दूसरी तरफ, राजा अपने हाथों से बेदर्दी से उसकी चूचियाँ मसले जा रहा था.. उसको दर्द सहन नहीं हो रहा था और उसकी आँखों से आँसू बाहर आ गये.. मगर, राजा यह सब कहाँ देख पा रहा था..
फिर, राजा भी अपने बिस्तर पर बैठ गया और दासी का सिर अपनी गोदी में रख उसके मुंह को चोदता रहा और अपनी उंगलियाँ उसकी कुँवारी चूत में डाल दी, जिससे वो तिलमिला उठी..
वो चीखना तो चाहती थी, मगर आवाज़ कहाँ से बाहर आती। उसके मुंह के अंदर तो लंड था और वो मुंह से लंड निकालना भी चाहती थी.. मगर, राजा के हाथ उसके सिर को पीछे से दबाए रहते.. जिससे, वो लंड को मुंह से निकल ना पाती..
वो बुरी तरह, दर्द के कारण तड़प रही थी।
अब वो समझ चूकि थी की आज उसकी इज़्ज़त नहीं बचने वाली और अगर वो ज़यादा प्रयास करेगी तो दर्द और होगा.. इसलिए, उसने अपने बदन को राजा के समर्पित कर दिया और अब जैसा राजा चाहता, वो करता..
उसने दासी के मुंह को लगातार, जब तक चोदा जब तक वो पूरी तरह झड़ नहीं गया.. यहाँ तक की अपना वीर्य भी, उसने दासी के मुंह में ही निकाला और एक बूँद भी बाहर नहीं गिरने दिया और फिर जैसे ही उसने अपना लंड बाहर निकाला तो दासी को उबकाई सी आई..
राजा मुस्कुराते हुए बोला – क्यों, स्वाद अच्छा नहीं था… !! और फिर हंसते हुए उसने दासी के होठों का चूँबन ले लिया और बोला – आ तुझे दवाई दे दूं… !! जिससे, तेरा दर्द भी कम हो जाएगा और बाद में चुदने में भी मज़ा आएगा… !! और यह कह उसने पास में रखी शराब उठाई और उससे चाँदी के दो गिलासों में पलट दिया और खुद तो एक बार में गाता गत पी गया.. मगर, दासी ने पीने से मना कर दिया तो उसने उसे ज़बरदस्ती पिला दिया और फिर उसने दासी को अपने लंड की मालिश का इशारा किया और फिर दासी बिना प्रतिकार कर, उसके लंड की मालिश करने लगी और राजा उसके चूची चूसने लगा और थोड़ी ही देर में, राजा का लंड फिर खड़ा हो गया और फिर उसने दासी को बगल से पकड़ बिस्तर पर, बिल्कुल सीधा लिटा दिया..
दासी की आँखों में डर था की इतना बड़ा लंड उसकी चूत का क्या हाल करेगा और राजा से प्यार की उम्मीद तो बेकार थी।
राजा ने अपने लंड का सुपाड़ा, दासी की चूत के दरवाज़े पर टीका दिया और उसे उसकी चूत पर मलने लगा।
दासी के दिल की धड़कन, बहुत तेज हो गई और फिर राजा ने अपनी मुंह से थूक निकाल कर दासी की चूत पर मला और फिर हल्का सा झटका दिया.. जिससे, लंड थोड़ा अंदर गया.. मगर, दासी की कुँवारी चूत यह झटका भी संभाल ना पाई और खून उसकी चूत से बाहर आ गया और उसे लगा की वो मर जाएगी..
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- Dolly sharma
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खूनी रिश्तों में प्यार बेशुमारRunning.....परिवार मे प्यार बेशुमारRunning..... वो लाल बॅग वाली Running.....दहशत complete..... मेरा परिवार और मेरी वासना Running..... मोहिनी Running....सुल्तान और रफीक की अय्याशी .....Horror अगिया बेतालcomplete....डार्क नाइटcomplete .... अनदेखे जीवन का सफ़र complete.....भैया का ख़याल मैं रखूँगी complete.....काला साया complete.....प्यासी आँखों की लोलुपता complete.....मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग complete......मासूम ननद complete
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दासी के दिल की धड़कन, बहुत तेज हो गई और फिर राजा ने अपनी मुंह से थूक निकाल कर दासी की चूत पर मला और फिर हल्का सा झटका दिया.. जिससे, लंड थोड़ा अंदर गया.. मगर, दासी की कुँवारी चूत यह झटका भी संभाल ना पाई और खून उसकी चूत से बाहर आ गया और उसे लगा की वो मर जाएगी..
दर्द इतना था की वो लगभग बेहोशी की हालत में थी.. मगर, शायद राजा उतना बुरा ना था जितना, उसने उस रात किया था, इसलिए, उसने दासी को संभाला और हल्के हल्के चूँबन से उसे होसला दिया..
फिर, उसने धीरे धीरे दूसरा झटका दिया और दासी उस दर्द को बर्दाशत ना कर सकी और बेसूध होकर बिस्तर पर गिर गई।
राजा ने, फिर उसे संभाला और कभी उसके सिर पर हाथ फेरा तो कभी उसके होंठ चूमे और फिर उसने तीसरा और आखरी धक्का लगाया.. जिससे, दासी की चूत बिलकुल खुल गई और वो दर्द से चिल्ला उठी..
उसकी आवाज़ इतनी तेज थी की महल में रह रहे, सभी मंत्रियो तक वो आवाज़ पहुँची।
कई लोग, राजा के कक्ष तक आए देखने की क्या हुआ.. मगर, अंगरक्षकों ने उन्हें अंदर जाने से मना कर, किसी तरह बात संभाली..
इधर, दासी दर्द से व्याकुल हो उठी थी.. मगर, राजा कहाँ मानने वाला था और काफ़ी देर तक उसने अपने लंड को साधे रखा और हिला तक नहीं..
दासी तो चाहती थी की राजा लंड बाहर निकाल ले.. मगर, वो जानती थी की उसका चाहना, यहाँ कुछ कीमत नहीं रखता.. इसलिए, वो दर्द से करहती हुई लेटी रही..
बस, अपने दोनों हाथों से अपनी चूत को चौड़ा करने की कोशिश करती रही की थोड़ा दर्द कम हो।
राजा ने जब देखा की दासी थोड़ी शांत हुई है तो उसने अपने लंड को अंदर बाहर करना शुरू किया।
दासी दर्द से बेहाल, करहाती रही।
उसकी सिसकारियाँ, अब सुनने वाला कोई नहीं था और उसकी इज़्ज़त लूट चुकी थी..
उसकी आँखों से आँसू, बाहर लगातार आ रहे थे..
जो चूत, उसने अपने जीवनसाथी के लिए बचाई थी.. वो, अब राजा की हवस का शिकार हो चूकि थी.. मगर, राजा को इस बात से कोई मतलब ना था और वो तो नशे में चूर, उसे चोदने में लगा था..
उसने कुछ देर तक तो, अपने लंड को प्यार से धीरे धीरे अंदर बाहर किया.. मगर, फिर जब उसने देखा की दासी का करहाना बहुत कम हो गया तो अपने लंड को तेज़ी से अंदर बाहर करने लगा.. जिससे, दासी फिर से करहाने लगी..
राजा भी जोश में, आवाज़ें निकालने लगा.. मगर, दोनों की आवाज़ ऐसी थी जैसे कोई शेर किसी बकरी के मेमने को चोद रहा है..
थोड़ी देर तक तो दासी सहन कर पाई, फिर बेचारी बेहोश हो गई..
राजा उसे चोदता रहा, जब तक वो पूरी तरह झड़ ना गया और उसके बाद वो भी ढीला पड़ कर, उसके बगल में ही बेहोश हो कर गिर गया।
सुबह जब राजा की आँख खुली, तब उसने देखा की उसके बिस्तर पर खून था और फिर उसकी नज़र दासी पर पड़ी.. जो, अपने नंगे बदन को छुपाए रोए जा रही थी..
तब राजा को अपनी ग़लती का एहसास हुआ.. मगर, अब कोई कुछ नहीं कर सकता था..
अब राजा को यह भी डर लगने लगा की अगर, दासी ने यह बात बाहर बता दी तो जो मंत्री उसके विरोध में है, उनको राजा की सता छीनने का बहाना मिल जाएगा.. इसलिए, राजा ने दासी को समझाया की जो हो गया सो हो गया.. मगर, राजा की शादी उसकी कामिनी से हो जाए तो वो दासी को पूरी इज़्ज़त से अपने राज्य में शरण देगा और उसका पूरा ख़याल रखेगा और अगर उसके चोदने के कारण दासी को शिशु होता है तो उसका ध्यान भी राजा ही रखेगा..
दासी फिर भी रोती रही और बोली – नहीं महाराज, मुझे न्याय चाहिए… !! आप ऐसे ही, अपने पाप से बच नहीं सकते… !!
राजा, यह सुन भड़क गया और बोला – देख दासी, अगर तूने यह बात बाहर किसी को बताई तो मैं यह शपथ लेता हूँ की उसका नुकसान तुझे अकेले को नहीं, तेरे पूरे परिवार और राज्य को उठना पड़ेगा… !!
दासी डर गई और फिर राजा ने उसे एक बार और प्यार से समझाया की अगर वो राजा की बात मन ले तो वो उसका भविष्य सुधार देगा और उसे कई तरह के प्रलोभन, राजा ने दिए।
दासी को भी लालच आ गया और फिर, राजा ने कहा – मगर, यह सब जब ही हो सकता है, जब तू मेरी शादी कामिनी से करा दे… !!
दासी ने राजा की और देखा और बोली – मेरे साथ जो हुआ है, उसकी वजह कामिनी ही है… !! क्यूंकी, अगर वो मुझे यहाँ ना भेजती तो आप मुझे उन्हें समझकर, मेरा बलात्कार नहीं करते… !! इसलिए, महाराज मैं इसका का बदला तो उनसे लूँगी और उन्हें आपकी रानी बना के अपनी प्रतिज्ञा पूरी करूँगी… !!
फिर राजा मुस्कुराया और बोला – वैसे, वो प्यार किससे करती है… !! ??
दासी ने राजा की और देखा, मुस्कुराई और बोली – किसी से नहीं… !! और यह कह उसने राजा को पूरा सच सुना दिया की राजकुमारी ने क्यों मना किया।
राजा यह सुन और क्रोध में आ गया की राजकुमारी ने उसका रिश्ता इसलिए ठुकराया क्यूंकी वो देखने में उसे सुंदर ना लगा और राजा ने भी एक प्रतिज्ञा ली और बोला – मैं प्रतिज्ञा लेता हूँ की मैं कामिनी को जब तक अपना लंड ना चुसवाऊँ, तब तक मैं अपना लंड नहीं धोऊंगा… !! और फिर उसने दासी की और देखा तो दासी उसके लंड की और देख मुस्कुरा रही थी..
उसने दासी से पूछा – दासी, और तुम्हें मैं रंग रूप में कैसा लगा… !! ??
उसने दासी से पूछा – दासी, और तुम्हें मैं रंग रूप में कैसा लगा… !! ??
दासी मुस्कुराई और बोली – महाराज, मुझे तो आप बहुत सुंदर लगे थे… !! मगर, हम तो ग़रीब लोग हैं… !! हर बड़ा इंसान, हमें सुंदर ही दिखता है… !!
राजा मुस्कुराया और बोला – हम तुम्हारी बातों से खुश हुए… !! इसलिए, अब हम तुम्हें हम अपने हाथ से स्नान कराएँगे और कई आभूषण और कपड़े भेट देंगे और फिर तुम्हें विदा करेंगे… !!
और फिर राजा ने अपने अंगरक्षकों को आवाज़ दी और बोला की दसियों को भेजो… !!
कुछ ही देर में, दासी कक्ष के अंदर आयीं।
वो राजा और दासी को नंगा देख, चौक गईं.. मगर, फिर उसने अपने आप को संभाला और बोली – महाराज, क्या आज्ञा है… !!
राजा बोला – सुनो, दासी हमारे स्नान के लिए गरम पानी का प्रबंध करो और सब दसियों से कहो की स्नान कक्ष में नग्न अवस्था में, हमारे और अब से तुम्हारी प्रमुख दासी की सेवा में उपस्थित (मौजूद) रहें… !!
दासी ने सिर हिलाया और बोला – जो आज्ञा, महाराज… !! और वो कक्ष से बाहर चली गईं और कुछ देर में वापिस आईं और बोलीं – महाराज, सब तैयार है… !! आप स्नान के लिए, आ सकते हैं… !!
राजा ने दासी की और देखा और बोला – अब हम तुम्हें शाही स्नान का मज़ा दिलाते हैं… !! और फिर राजा ने दासी को गोद में उठाया और स्नान कक्ष की तरफ चल दिया और उसने अपने आगे चल रही दासी से बोला – अक्षरा, तुम वस्त्र नहीं उतरोगी… !!
तब आगे चल रही दासी, बोली – महाराज, मैं अपने वस्त्र स्नान कक्ष में पहुचने पर, उतार दूँगी… !!
फिर राजा मुस्कुराया और ललचाई आँखों से आगे चल रही दासी के, चुत्तड़ देखने लगा..
वहाँ जाकर दासी ने देखा की राजा की सारी दासियाँ नंगी खड़ी हैं और फिर राजा ने दासी को गोदी से उतारा और बोला – देखो, यह हमारे विवाह के बाद, तुम सब की प्रमुख होंगी… !! इसलिए, अब से तुम्हें इनकी हर आज्ञा का पालन करना है… !! और फिर उसने अपनी प्रमुख दासी को बुलाया और बोला – अक्षरा, अब आप भी अपने वस्त्र उतार सकती हैं… !!
यह कहते ही, उस दासी ने अपने सारे वस्त्र उतार दिए और नंगी खड़ी हो गई और राजा ने अपनी दासियों को इशारा कर कहा की तुम इनको ठीक से स्नान करवाओ और इनकी चूत भी गरम पानी से धोकर, इनकी चूत की सूजन का भी इलाज़ करो और राजा ने फिर अक्षरा का हाथ पकड़ा और बोला – आप मेरे साथ आएँ… !! और वो अपने चुत्तड़ मटकाते हुए, राजा के साथ चली गई..
फिर सारी दासियाँ, कामिनी की दासी को गरम पानी से स्नान कराने लगीं और एक दासी उसकी चूत और जांघों पर जो खून जमा था, उसे साफ़ करने लगी।
राजकुमारी की दासी, सिसकारियाँ लेने लगी..
कभी कोई दासी उसकी चूत साफ़ करते करते, उसकी चूत में उंगली डाल देती तो कभी उसकी गाण्ड को सहलाती और कोई उसके चूचे धोते धोते, उसकी चूची हल्की सी मसल देती।
वो, एक दम रानी जैसे जीवन का आनंद ले रही थी जो उसने सपने में भी ना सोचा था और उसको रात का अनुभव बिलकुल याद ना रहा..
बस, वो मदहोश अपनी जवानी का आनंद ले रही थी।
वहाँ राजा, अपनी दासी अक्षरा से अपने लंड की मालिश करा रहा था.. उसका लंड, काला ज़रूरी था.. मगर, एक मूसल जैसा मोटा और बड़ा था..
राजा की दासी, राजा के लंड को अपने दोनों हाथो से पकड़ कर मालिश कर रही थी.. जिससे, उसका लंड एक दम तन गया था..
यहाँ दासी की चूत को बाकी दासियाँ, अपनी उंगली से चोदने लगीं और दासी – आँह… !! आह… !! उम्म म म म म म म म म म… !! इयाः उन्ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह… !! आह ह ह ह ह ह आ आ आ आ आ आ… !! की सिसकारियाँ भरने लगीं और कुछ दासी उसके चूचे चूसने लगीं… !!
फिर राजा ने अपनी दासी अक्षरा को घोड़ी की तरह बैठने का आदेश दिया और उसके आदेश देते ही, अक्षरा घोड़ी की तरह बैठ गई और फिर राजा ने अपना लंड अक्षरा की गाण्ड पर रखा और एक ही झटके में अंदर घुसेड दिया..
अक्षरा ने बस हल्की सी सिसकारी ली और फिर आराम से अपनी गांद मरवाने लगी।
ऐसा लग रहा था की उसकी गाण्ड का छेद, अक्सर राजा का लंड लेता रहता था।
यहाँ अब एक एक दासी, राजकुमारी की दासी को छोड़, राजा और अक्षरा के पास जाकर बैठ गई और दासियाँ अब, राजा और अक्षरा के साथ ही लग गईं..
कोई दासी, अक्षरा के चूचे चूस रही थी तो कोई राजा के लंड के टटटे को, तो कोई राजा को चूँबन दे रही थी..
अब राजकुमारी की दासी के साथ, बस एक दासी रह गई थी और वो उसे अकेले ही स्नान करा रही थी तो अब राजकुमारी की दासी का ध्यान भी उसी दासी पर था।
फिर, राजकुमारी की दासी ने उस दासी को खड़ा किया और फिर उसने उसे होंठ पर एक चूँबन दिया और फिर दोनों एक दूसरे के होंठ चूसने लगे और उस दासी ने राजकुमारी की दासी की गाण्ड में, अपनी उंगली डाल दी और उसकी गाण्ड को अपनी उंगली से चोदने लगी।
पहले तो, राजकुमारी की दासी ने हल्की सी सिसकारी ली पर फिर उसने उस दासी को हल्की सी मुस्कुराहट दी और फिर चुदने का आनंद लेने लगी।
फिर, उस दासी ने राजकुमारी की दासी के चूचे चूसने लगी और राजकुमारी की दासी के आनंद की सीमा ना रही और उसने अपना पूरा बदन उस दासी के हाथो में छोड़ दिया और वो दासी उसके चूचे चूसते हुए, उसकी गाण्ड मे अब अपनी दो उंगलियाँ डाल कर, दासी की गाण्ड मारने लगी।
दूसरी ओर, राजा एक एक कर अपनी हर दासी को चोद रहा था।
यहाँ राजकुमारी की दासी अपनी गाण्ड को मरवाने का आनंद ले रही थी और दूसरी दासी ने राजकुमारी की दासी को फर्श पर लेटा दिया और अपनी दो उंगलियाँ उसकी गाण्ड में डालीं और पूरी तेज़ी से उसे चोदने लगी और साथ ही साथ, उसकी चूत को चूसने लगी..
दासी ज़ोर ज़ोर से, सिसकारियाँ लेने लगी और मदहोश सी हो गई और काफ़ी देर तक चुदने के बाद, राजकुमारी की दासी झड़ गई।
यहाँ, राजा भी झड़ चुका था।
फिर, राजा के साथ सभी दसियों ने (राजकुमारी की दासी सहित) स्नान किया और फिर राजा ने राजकुमारी की दासी को फिर से अपनी गोद में उठाया और बोला – यह अब हमारे साथ, हमारे कक्ष में जाएँगी और आप लोग अब जाएँ… !! और फिर अक्षरा से बोला – अक्षरा, आप अपनी नयी प्रमुख दासी के लिए नये वस्त्रो की व्यवस्था करें… !! और फिर वो राजकुमारी की दासी को उठाए, अपने कक्ष में नग्न ही चल दिए।
फिर राजकुमारी की दासी बोली – महाराज, अब मैं ठीक हूँ… !! आप कृपया मुझे गोद में ना लें चलें… !! आप को यह शोभा नहीं देता… !!
दर्द इतना था की वो लगभग बेहोशी की हालत में थी.. मगर, शायद राजा उतना बुरा ना था जितना, उसने उस रात किया था, इसलिए, उसने दासी को संभाला और हल्के हल्के चूँबन से उसे होसला दिया..
फिर, उसने धीरे धीरे दूसरा झटका दिया और दासी उस दर्द को बर्दाशत ना कर सकी और बेसूध होकर बिस्तर पर गिर गई।
राजा ने, फिर उसे संभाला और कभी उसके सिर पर हाथ फेरा तो कभी उसके होंठ चूमे और फिर उसने तीसरा और आखरी धक्का लगाया.. जिससे, दासी की चूत बिलकुल खुल गई और वो दर्द से चिल्ला उठी..
उसकी आवाज़ इतनी तेज थी की महल में रह रहे, सभी मंत्रियो तक वो आवाज़ पहुँची।
कई लोग, राजा के कक्ष तक आए देखने की क्या हुआ.. मगर, अंगरक्षकों ने उन्हें अंदर जाने से मना कर, किसी तरह बात संभाली..
इधर, दासी दर्द से व्याकुल हो उठी थी.. मगर, राजा कहाँ मानने वाला था और काफ़ी देर तक उसने अपने लंड को साधे रखा और हिला तक नहीं..
दासी तो चाहती थी की राजा लंड बाहर निकाल ले.. मगर, वो जानती थी की उसका चाहना, यहाँ कुछ कीमत नहीं रखता.. इसलिए, वो दर्द से करहती हुई लेटी रही..
बस, अपने दोनों हाथों से अपनी चूत को चौड़ा करने की कोशिश करती रही की थोड़ा दर्द कम हो।
राजा ने जब देखा की दासी थोड़ी शांत हुई है तो उसने अपने लंड को अंदर बाहर करना शुरू किया।
दासी दर्द से बेहाल, करहाती रही।
उसकी सिसकारियाँ, अब सुनने वाला कोई नहीं था और उसकी इज़्ज़त लूट चुकी थी..
उसकी आँखों से आँसू, बाहर लगातार आ रहे थे..
जो चूत, उसने अपने जीवनसाथी के लिए बचाई थी.. वो, अब राजा की हवस का शिकार हो चूकि थी.. मगर, राजा को इस बात से कोई मतलब ना था और वो तो नशे में चूर, उसे चोदने में लगा था..
उसने कुछ देर तक तो, अपने लंड को प्यार से धीरे धीरे अंदर बाहर किया.. मगर, फिर जब उसने देखा की दासी का करहाना बहुत कम हो गया तो अपने लंड को तेज़ी से अंदर बाहर करने लगा.. जिससे, दासी फिर से करहाने लगी..
राजा भी जोश में, आवाज़ें निकालने लगा.. मगर, दोनों की आवाज़ ऐसी थी जैसे कोई शेर किसी बकरी के मेमने को चोद रहा है..
थोड़ी देर तक तो दासी सहन कर पाई, फिर बेचारी बेहोश हो गई..
राजा उसे चोदता रहा, जब तक वो पूरी तरह झड़ ना गया और उसके बाद वो भी ढीला पड़ कर, उसके बगल में ही बेहोश हो कर गिर गया।
सुबह जब राजा की आँख खुली, तब उसने देखा की उसके बिस्तर पर खून था और फिर उसकी नज़र दासी पर पड़ी.. जो, अपने नंगे बदन को छुपाए रोए जा रही थी..
तब राजा को अपनी ग़लती का एहसास हुआ.. मगर, अब कोई कुछ नहीं कर सकता था..
अब राजा को यह भी डर लगने लगा की अगर, दासी ने यह बात बाहर बता दी तो जो मंत्री उसके विरोध में है, उनको राजा की सता छीनने का बहाना मिल जाएगा.. इसलिए, राजा ने दासी को समझाया की जो हो गया सो हो गया.. मगर, राजा की शादी उसकी कामिनी से हो जाए तो वो दासी को पूरी इज़्ज़त से अपने राज्य में शरण देगा और उसका पूरा ख़याल रखेगा और अगर उसके चोदने के कारण दासी को शिशु होता है तो उसका ध्यान भी राजा ही रखेगा..
दासी फिर भी रोती रही और बोली – नहीं महाराज, मुझे न्याय चाहिए… !! आप ऐसे ही, अपने पाप से बच नहीं सकते… !!
राजा, यह सुन भड़क गया और बोला – देख दासी, अगर तूने यह बात बाहर किसी को बताई तो मैं यह शपथ लेता हूँ की उसका नुकसान तुझे अकेले को नहीं, तेरे पूरे परिवार और राज्य को उठना पड़ेगा… !!
दासी डर गई और फिर राजा ने उसे एक बार और प्यार से समझाया की अगर वो राजा की बात मन ले तो वो उसका भविष्य सुधार देगा और उसे कई तरह के प्रलोभन, राजा ने दिए।
दासी को भी लालच आ गया और फिर, राजा ने कहा – मगर, यह सब जब ही हो सकता है, जब तू मेरी शादी कामिनी से करा दे… !!
दासी ने राजा की और देखा और बोली – मेरे साथ जो हुआ है, उसकी वजह कामिनी ही है… !! क्यूंकी, अगर वो मुझे यहाँ ना भेजती तो आप मुझे उन्हें समझकर, मेरा बलात्कार नहीं करते… !! इसलिए, महाराज मैं इसका का बदला तो उनसे लूँगी और उन्हें आपकी रानी बना के अपनी प्रतिज्ञा पूरी करूँगी… !!
फिर राजा मुस्कुराया और बोला – वैसे, वो प्यार किससे करती है… !! ??
दासी ने राजा की और देखा, मुस्कुराई और बोली – किसी से नहीं… !! और यह कह उसने राजा को पूरा सच सुना दिया की राजकुमारी ने क्यों मना किया।
राजा यह सुन और क्रोध में आ गया की राजकुमारी ने उसका रिश्ता इसलिए ठुकराया क्यूंकी वो देखने में उसे सुंदर ना लगा और राजा ने भी एक प्रतिज्ञा ली और बोला – मैं प्रतिज्ञा लेता हूँ की मैं कामिनी को जब तक अपना लंड ना चुसवाऊँ, तब तक मैं अपना लंड नहीं धोऊंगा… !! और फिर उसने दासी की और देखा तो दासी उसके लंड की और देख मुस्कुरा रही थी..
उसने दासी से पूछा – दासी, और तुम्हें मैं रंग रूप में कैसा लगा… !! ??
उसने दासी से पूछा – दासी, और तुम्हें मैं रंग रूप में कैसा लगा… !! ??
दासी मुस्कुराई और बोली – महाराज, मुझे तो आप बहुत सुंदर लगे थे… !! मगर, हम तो ग़रीब लोग हैं… !! हर बड़ा इंसान, हमें सुंदर ही दिखता है… !!
राजा मुस्कुराया और बोला – हम तुम्हारी बातों से खुश हुए… !! इसलिए, अब हम तुम्हें हम अपने हाथ से स्नान कराएँगे और कई आभूषण और कपड़े भेट देंगे और फिर तुम्हें विदा करेंगे… !!
और फिर राजा ने अपने अंगरक्षकों को आवाज़ दी और बोला की दसियों को भेजो… !!
कुछ ही देर में, दासी कक्ष के अंदर आयीं।
वो राजा और दासी को नंगा देख, चौक गईं.. मगर, फिर उसने अपने आप को संभाला और बोली – महाराज, क्या आज्ञा है… !!
राजा बोला – सुनो, दासी हमारे स्नान के लिए गरम पानी का प्रबंध करो और सब दसियों से कहो की स्नान कक्ष में नग्न अवस्था में, हमारे और अब से तुम्हारी प्रमुख दासी की सेवा में उपस्थित (मौजूद) रहें… !!
दासी ने सिर हिलाया और बोला – जो आज्ञा, महाराज… !! और वो कक्ष से बाहर चली गईं और कुछ देर में वापिस आईं और बोलीं – महाराज, सब तैयार है… !! आप स्नान के लिए, आ सकते हैं… !!
राजा ने दासी की और देखा और बोला – अब हम तुम्हें शाही स्नान का मज़ा दिलाते हैं… !! और फिर राजा ने दासी को गोद में उठाया और स्नान कक्ष की तरफ चल दिया और उसने अपने आगे चल रही दासी से बोला – अक्षरा, तुम वस्त्र नहीं उतरोगी… !!
तब आगे चल रही दासी, बोली – महाराज, मैं अपने वस्त्र स्नान कक्ष में पहुचने पर, उतार दूँगी… !!
फिर राजा मुस्कुराया और ललचाई आँखों से आगे चल रही दासी के, चुत्तड़ देखने लगा..
वहाँ जाकर दासी ने देखा की राजा की सारी दासियाँ नंगी खड़ी हैं और फिर राजा ने दासी को गोदी से उतारा और बोला – देखो, यह हमारे विवाह के बाद, तुम सब की प्रमुख होंगी… !! इसलिए, अब से तुम्हें इनकी हर आज्ञा का पालन करना है… !! और फिर उसने अपनी प्रमुख दासी को बुलाया और बोला – अक्षरा, अब आप भी अपने वस्त्र उतार सकती हैं… !!
यह कहते ही, उस दासी ने अपने सारे वस्त्र उतार दिए और नंगी खड़ी हो गई और राजा ने अपनी दासियों को इशारा कर कहा की तुम इनको ठीक से स्नान करवाओ और इनकी चूत भी गरम पानी से धोकर, इनकी चूत की सूजन का भी इलाज़ करो और राजा ने फिर अक्षरा का हाथ पकड़ा और बोला – आप मेरे साथ आएँ… !! और वो अपने चुत्तड़ मटकाते हुए, राजा के साथ चली गई..
फिर सारी दासियाँ, कामिनी की दासी को गरम पानी से स्नान कराने लगीं और एक दासी उसकी चूत और जांघों पर जो खून जमा था, उसे साफ़ करने लगी।
राजकुमारी की दासी, सिसकारियाँ लेने लगी..
कभी कोई दासी उसकी चूत साफ़ करते करते, उसकी चूत में उंगली डाल देती तो कभी उसकी गाण्ड को सहलाती और कोई उसके चूचे धोते धोते, उसकी चूची हल्की सी मसल देती।
वो, एक दम रानी जैसे जीवन का आनंद ले रही थी जो उसने सपने में भी ना सोचा था और उसको रात का अनुभव बिलकुल याद ना रहा..
बस, वो मदहोश अपनी जवानी का आनंद ले रही थी।
वहाँ राजा, अपनी दासी अक्षरा से अपने लंड की मालिश करा रहा था.. उसका लंड, काला ज़रूरी था.. मगर, एक मूसल जैसा मोटा और बड़ा था..
राजा की दासी, राजा के लंड को अपने दोनों हाथो से पकड़ कर मालिश कर रही थी.. जिससे, उसका लंड एक दम तन गया था..
यहाँ दासी की चूत को बाकी दासियाँ, अपनी उंगली से चोदने लगीं और दासी – आँह… !! आह… !! उम्म म म म म म म म म म… !! इयाः उन्ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह… !! आह ह ह ह ह ह आ आ आ आ आ आ… !! की सिसकारियाँ भरने लगीं और कुछ दासी उसके चूचे चूसने लगीं… !!
फिर राजा ने अपनी दासी अक्षरा को घोड़ी की तरह बैठने का आदेश दिया और उसके आदेश देते ही, अक्षरा घोड़ी की तरह बैठ गई और फिर राजा ने अपना लंड अक्षरा की गाण्ड पर रखा और एक ही झटके में अंदर घुसेड दिया..
अक्षरा ने बस हल्की सी सिसकारी ली और फिर आराम से अपनी गांद मरवाने लगी।
ऐसा लग रहा था की उसकी गाण्ड का छेद, अक्सर राजा का लंड लेता रहता था।
यहाँ अब एक एक दासी, राजकुमारी की दासी को छोड़, राजा और अक्षरा के पास जाकर बैठ गई और दासियाँ अब, राजा और अक्षरा के साथ ही लग गईं..
कोई दासी, अक्षरा के चूचे चूस रही थी तो कोई राजा के लंड के टटटे को, तो कोई राजा को चूँबन दे रही थी..
अब राजकुमारी की दासी के साथ, बस एक दासी रह गई थी और वो उसे अकेले ही स्नान करा रही थी तो अब राजकुमारी की दासी का ध्यान भी उसी दासी पर था।
फिर, राजकुमारी की दासी ने उस दासी को खड़ा किया और फिर उसने उसे होंठ पर एक चूँबन दिया और फिर दोनों एक दूसरे के होंठ चूसने लगे और उस दासी ने राजकुमारी की दासी की गाण्ड में, अपनी उंगली डाल दी और उसकी गाण्ड को अपनी उंगली से चोदने लगी।
पहले तो, राजकुमारी की दासी ने हल्की सी सिसकारी ली पर फिर उसने उस दासी को हल्की सी मुस्कुराहट दी और फिर चुदने का आनंद लेने लगी।
फिर, उस दासी ने राजकुमारी की दासी के चूचे चूसने लगी और राजकुमारी की दासी के आनंद की सीमा ना रही और उसने अपना पूरा बदन उस दासी के हाथो में छोड़ दिया और वो दासी उसके चूचे चूसते हुए, उसकी गाण्ड मे अब अपनी दो उंगलियाँ डाल कर, दासी की गाण्ड मारने लगी।
दूसरी ओर, राजा एक एक कर अपनी हर दासी को चोद रहा था।
यहाँ राजकुमारी की दासी अपनी गाण्ड को मरवाने का आनंद ले रही थी और दूसरी दासी ने राजकुमारी की दासी को फर्श पर लेटा दिया और अपनी दो उंगलियाँ उसकी गाण्ड में डालीं और पूरी तेज़ी से उसे चोदने लगी और साथ ही साथ, उसकी चूत को चूसने लगी..
दासी ज़ोर ज़ोर से, सिसकारियाँ लेने लगी और मदहोश सी हो गई और काफ़ी देर तक चुदने के बाद, राजकुमारी की दासी झड़ गई।
यहाँ, राजा भी झड़ चुका था।
फिर, राजा के साथ सभी दसियों ने (राजकुमारी की दासी सहित) स्नान किया और फिर राजा ने राजकुमारी की दासी को फिर से अपनी गोद में उठाया और बोला – यह अब हमारे साथ, हमारे कक्ष में जाएँगी और आप लोग अब जाएँ… !! और फिर अक्षरा से बोला – अक्षरा, आप अपनी नयी प्रमुख दासी के लिए नये वस्त्रो की व्यवस्था करें… !! और फिर वो राजकुमारी की दासी को उठाए, अपने कक्ष में नग्न ही चल दिए।
फिर राजकुमारी की दासी बोली – महाराज, अब मैं ठीक हूँ… !! आप कृपया मुझे गोद में ना लें चलें… !! आप को यह शोभा नहीं देता… !!
खूनी रिश्तों में प्यार बेशुमारRunning.....परिवार मे प्यार बेशुमारRunning..... वो लाल बॅग वाली Running.....दहशत complete..... मेरा परिवार और मेरी वासना Running..... मोहिनी Running....सुल्तान और रफीक की अय्याशी .....Horror अगिया बेतालcomplete....डार्क नाइटcomplete .... अनदेखे जीवन का सफ़र complete.....भैया का ख़याल मैं रखूँगी complete.....काला साया complete.....प्यासी आँखों की लोलुपता complete.....मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग complete......मासूम ननद complete
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Re: राजा की सेविका complete
राजा मुस्कुराया और बोला – नहीं, दासी… !! हमने जो आप के साथ कल किया है, वो सच में ग़लत था… !! इसलिए, हम अब आपको कोई और कष्ट नहीं दे सकते… !! हम कल के लिए काफ़ी लज्जित हैं… !!
दासी, यह सुन बोली – नहीं महाराज… !! आप लज्जित ना हो… !! कल जो हुआ, वो मदिरा का नशा तथा हमारी राजकुमारी की वजह से हुआ, जो उन्होंने मुझे आप से बात करने, रात्रि काल में भेज दिया… !! अब मैं ज़रा भी क्रोध में नहीं हूँ… !! आप कृपया कर, मुझे नीचे उतार दीजिए… !!
राजा मुस्कुराया और उसने दासी को अपनी गोद से नीचे उतारा।
फिर, दासी और राजा दोनों अपने कक्ष की और चल पड़े।
राजा के अंगरक्षकों ने, जब दासी को नग्न देखा तो उन सब के चेहरे पर वासना साफ़ दिख रही थी.. मगर, राजा को देख वो सब मुंह नीचे कर खड़े रहे..
जब राजा आगे निकला तो सब दासी के मोटे मोटे गोल चुत्तडों को देखने लगे।
अंदर जाकर, द्वार बंद कर लिए गये और फिर कुछ देर में दासी अक्षरा कपड़े लेकर आ गई और फिर राजा ने दासी को कई तरीके के गहने देकर, अपने राज्य से विदा किया और बदले में दासी ने उसे वचन दिया की वो उसकी शादी राजकुमारी से करवाने के लिए कुछ भी करेगी।
वहाँ करमपुर में, राजकुमारी बड़ी बैचानी से अपनी दासी की रह देख रही थी.. मगर, दासी सीधे पहले महल ना जाकर अपने घर गई और सारे जेवर छुपा दिए और फिर अपने फटे पुराने कपड़े पहन महल पहुँची और सीधे ही राजकुमारी के कक्ष में गई..
राजकुमारी ने तुरंत उसे अपने पास बुलाया और उससे पूछा – क्या हुआ… !! ??
तब उसने बताया – महाराज ने जब आपकी बात सुनी तो उन्होंने तुरंत ही इस शादी से मना करने का आश्वासन दे दिया है और वो कल आकर आपके पिताजी से इस बारे में वार्तालाप कर लेंगे और आपसे शादी करने से मना कर द
राजा यह सुन और क्रोध में आ गया की राजकुमारी ने उसका रिश्ता इसलिए ठुकराया क्यूंकी वो देखने में उसे सुंदर ना लगा और राजा ने भी एक प्रतिज्ञा ली और बोला – मैं प्रतिज्ञा लेता हूँ की मैं कामिनी को जब तक अपना लंड ना चुसवाऊँ, तब तक मैं अपना लंड नहीं धोऊंगा… !! और फिर उसने दासी की और देखा तो दासी उसके लंड की और देख मुस्कुरा रही थी..
उसने दासी से पूछा – दासी, और तुम्हें मैं रंग रूप में कैसा लगा… !! ??
उसने दासी से पूछा – दासी, और तुम्हें मैं रंग रूप में कैसा लगा… !! ??
दासी मुस्कुराई और बोली – महाराज, मुझे तो आप बहुत सुंदर लगे थे… !! मगर, हम तो ग़रीब लोग हैं… !! हर बड़ा इंसान, हमें सुंदर ही दिखता है… !!
राजा मुस्कुराया और बोला – हम तुम्हारी बातों से खुश हुए… !! इसलिए, अब हम तुम्हें हम अपने हाथ से स्नान कराएँगे और कई आभूषण और कपड़े भेट देंगे और फिर तुम्हें विदा करेंगे… !!
और फिर राजा ने अपने अंगरक्षकों को आवाज़ दी और बोला की दसियों को भेजो… !!
कुछ ही देर में, दासी कक्ष के अंदर आयीं।
वो राजा और दासी को नंगा देख, चौक गईं.. मगर, फिर उसने अपने आप को संभाला और बोली – महाराज, क्या आज्ञा है… !!
राजा बोला – सुनो, दासी हमारे स्नान के लिए गरम पानी का प्रबंध करो और सब दसियों से कहो की स्नान कक्ष में नग्न अवस्था में, हमारे और अब से तुम्हारी प्रमुख दासी की सेवा में उपस्थित (मौजूद) रहें… !!
दासी ने सिर हिलाया और बोला – जो आज्ञा, महाराज… !! और वो कक्ष से बाहर चली गईं और कुछ देर में वापिस आईं और बोलीं – महाराज, सब तैयार है… !! आप स्नान के लिए, आ सकते हैं… !!
राजा ने दासी की और देखा और बोला – अब हम तुम्हें शाही स्नान का मज़ा दिलाते हैं… !! और फिर राजा ने दासी को गोद में उठाया और स्नान कक्ष की तरफ चल दिया और उसने अपने आगे चल रही दासी से बोला – अक्षरा, तुम वस्त्र नहीं उतरोगी… !!
तब आगे चल रही दासी, बोली – महाराज, मैं अपने वस्त्र स्नान कक्ष में पहुचने पर, उतार दूँगी… !!
फिर राजा मुस्कुराया और ललचाई आँखों से आगे चल रही दासी के, चुत्तड़ देखने लगा..
वहाँ जाकर दासी ने देखा की राजा की सारी दासियाँ नंगी खड़ी हैं और फिर राजा ने दासी को गोदी से उतारा और बोला – देखो, यह हमारे विवाह के बाद, तुम सब की प्रमुख होंगी… !! इसलिए, अब से तुम्हें इनकी हर आज्ञा का पालन करना है… !! और फिर उसने अपनी प्रमुख दासी को बुलाया और बोला – अक्षरा, अब आप भी अपने वस्त्र उतार सकती हैं… !!
यह कहते ही, उस दासी ने अपने सारे वस्त्र उतार दिए और नंगी खड़ी हो गई और राजा ने अपनी दासियों को इशारा कर कहा की तुम इनको ठीक से स्नान करवाओ और इनकी चूत भी गरम पानी से धोकर, इनकी चूत की सूजन का भी इलाज़ करो और राजा ने फिर अक्षरा का हाथ पकड़ा और बोला – आप मेरे साथ आएँ… !! और वो अपने चुत्तड़ मटकाते हुए, राजा के साथ चली गई..
फिर सारी दासियाँ, कामिनी की दासी को गरम पानी से स्नान कराने लगीं और एक दासी उसकी चूत और जांघों पर जो खून जमा था, उसे साफ़ करने लगी।
राजकुमारी की दासी, सिसकारियाँ लेने लगी..
कभी कोई दासी उसकी चूत साफ़ करते करते, उसकी चूत में उंगली डाल देती तो कभी उसकी गाण्ड को सहलाती और कोई उसके चूचे धोते धोते, उसकी चूची हल्की सी मसल देती।
वो, एक दम रानी जैसे जीवन का आनंद ले रही थी जो उसने सपने में भी ना सोचा था और उसको रात का अनुभव बिलकुल याद ना रहा..
बस, वो मदहोश अपनी जवानी का आनंद ले रही थी।
वहाँ राजा, अपनी दासी अक्षरा से अपने लंड की मालिश करा रहा था.. उसका लंड, काला ज़रूरी था.. मगर, एक मूसल जैसा मोटा और बड़ा था..
राजा की दासी, राजा के लंड को अपने दोनों हाथो से पकड़ कर मालिश कर रही थी.. जिससे, उसका लंड एक दम तन गया था..
यहाँ दासी की चूत को बाकी दासियाँ, अपनी उंगली से चोदने लगीं और दासी – आँह… !! आह… !! उम्म म म म म म म म म म… !! इयाः उन्ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह… !! आह ह ह ह ह ह आ आ आ आ आ आ… !! की सिसकारियाँ भरने लगीं और कुछ दासी उसके चूचे चूसने लगीं… !!
फिर राजा ने अपनी दासी अक्षरा को घोड़ी की तरह बैठने का आदेश दिया और उसके आदेश देते ही, अक्षरा घोड़ी की तरह बैठ गई और फिर राजा ने अपना लंड अक्षरा की गाण्ड पर रखा और एक ही झटके में अंदर घुसेड दिया..
अक्षरा ने बस हल्की सी सिसकारी ली और फिर आराम से अपनी गांद मरवाने लगी।
ऐसा लग रहा था की उसकी गाण्ड का छेद, अक्सर राजा का लंड लेता रहता था।
यहाँ अब एक एक दासी, राजकुमारी की दासी को छोड़, राजा और अक्षरा के पास जाकर बैठ गई और दासियाँ अब, राजा और अक्षरा के साथ ही लग गईं..
कोई दासी, अक्षरा के चूचे चूस रही थी तो कोई राजा के लंड के टटटे को, तो कोई राजा को चूँबन दे रही थी..
अब राजकुमारी की दासी के साथ, बस एक दासी रह गई थी और वो उसे अकेले ही स्नान करा रही थी तो अब राजकुमारी की दासी का ध्यान भी उसी दासी पर था।
फिर, राजकुमारी की दासी ने उस दासी को खड़ा किया और फिर उसने उसे होंठ पर एक चूँबन दिया और फिर दोनों एक दूसरे के होंठ चूसने लगे और उस दासी ने राजकुमारी की दासी की गाण्ड में, अपनी उंगली डाल दी और उसकी गाण्ड को अपनी उंगली से चोदने लगी।
पहले तो, राजकुमारी की दासी ने हल्की सी सिसकारी ली पर फिर उसने उस दासी को हल्की सी मुस्कुराहट दी और फिर चुदने का आनंद लेने लगी।
फिर, उस दासी ने राजकुमारी की दासी के चूचे चूसने लगी और राजकुमारी की दासी के आनंद की सीमा ना रही और उसने अपना पूरा बदन उस दासी के हाथो में छोड़ दिया और वो दासी उसके चूचे चूसते हुए, उसकी गाण्ड मे अब अपनी दो उंगलियाँ डाल कर, दासी की गाण्ड मारने लगी।
दूसरी ओर, राजा एक एक कर अपनी हर दासी को चोद रहा था।
यहाँ राजकुमारी की दासी अपनी गाण्ड को मरवाने का आनंद ले रही थी और दूसरी दासी ने राजकुमारी की दासी को फर्श पर लेटा दिया और अपनी दो उंगलियाँ उसकी गाण्ड में डालीं और पूरी तेज़ी से उसे चोदने लगी और साथ ही साथ, उसकी चूत को चूसने लगी..
दासी ज़ोर ज़ोर से, सिसकारियाँ लेने लगी और मदहोश सी हो गई और काफ़ी देर तक चुदने के बाद, राजकुमारी की दासी झड़ गई।
यहाँ, राजा भी झड़ चुका था।
फिर, राजा के साथ सभी दसियों ने (राजकुमारी की दासी सहित) स्नान किया और फिर राजा ने राजकुमारी की दासी को फिर से अपनी गोद में उठाया और बोला – यह अब हमारे साथ, हमारे कक्ष में जाएँगी और आप लोग अब जाएँ… !! और फिर अक्षरा से बोला – अक्षरा, आप अपनी नयी प्रमुख दासी के लिए नये वस्त्रो की व्यवस्था करें… !! और फिर वो राजकुमारी की दासी को उठाए, अपने कक्ष में नग्न ही चल दिए।
फिर राजकुमारी की दासी बोली – महाराज, अब मैं ठीक हूँ… !! आप कृपया मुझे गोद में ना लें चलें… !! आप को यह शोभा नहीं देता… !!
राजा मुस्कुराया और बोला – नहीं, दासी… !! हमने जो आप के साथ कल किया है, वो सच में ग़लत था… !! इसलिए, हम अब आपको कोई और कष्ट नहीं दे सकते… !! हम कल के लिए काफ़ी लज्जित हैं… !!
दासी, यह सुन बोली – नहीं महाराज… !! आप लज्जित ना हो… !! कल जो हुआ, वो मदिरा का नशा तथा हमारी राजकुमारी की वजह से हुआ, जो उन्होंने मुझे आप से बात करने, रात्रि काल में भेज दिया… !! अब मैं ज़रा भी क्रोध में नहीं हूँ… !! आप कृपया कर, मुझे नीचे उतार दीजिए… !!
राजा मुस्कुराया और उसने दासी को अपनी गोद से नीचे उतारा।
फिर, दासी और राजा दोनों अपने कक्ष की और चल पड़े।
राजा के अंगरक्षकों ने, जब दासी को नग्न देखा तो उन सब के चेहरे पर वासना साफ़ दिख रही थी.. मगर, राजा को देख वो सब मुंह नीचे कर खड़े रहे..
जब राजा आगे निकला तो सब दासी के मोटे मोटे गोल चुत्तडों को देखने लगे।
अंदर जाकर, द्वार बंद कर लिए गये और फिर कुछ देर में दासी अक्षरा कपड़े लेकर आ गई और फिर राजा ने दासी को कई तरीके के गहने देकर, अपने राज्य से विदा किया और बदले में दासी ने उसे वचन दिया की वो उसकी शादी राजकुमारी से करवाने के लिए कुछ भी करेगी।
वहाँ करमपुर में, राजकुमारी बड़ी बैचानी से अपनी दासी की रह देख रही थी.. मगर, दासी सीधे पहले महल ना जाकर अपने घर गई और सारे जेवर छुपा दिए और फिर अपने फटे पुराने कपड़े पहन महल पहुँची और सीधे ही राजकुमारी के कक्ष में गई..
राजकुमारी ने तुरंत उसे अपने पास बुलाया और उससे पूछा – क्या हुआ… !! ??
तब उसने बताया – महाराज ने जब आपकी बात सुनी तो उन्होंने तुरंत ही इस शादी से मना करने का आश्वासन दे दिया है और वो कल आकर आपके पिताजी से इस बारे में वार्तालाप कर लेंगे और आपसे शादी करने से मना कर देंग
जैसे ही, राजकुमारी ने यह बात सुनी की राजा विक्रम सिंह उस से विवाह ना करने के लिए तैयार हो गया है.. वो ख़ुशी से, फूली नहीं समा रही थी और इस ख़ुशी में उसने अपनी दासी जिसका नाम “रूपाली” था, उसे कई उपहार दे दिए..
मगर, दासी ने उन उपहार को लेने से मना कर दिया और बोली – राजकुमारी, यह तो मेरा फ़र्ज़ था और मैं तो सिर्फ़ आपका निवेदन लेकर गई थी और यह तो विक्रम नगर के महाराज का उदार चरित्रा था की उन्होंने आपका निवेदन स्वीकार कर लिया… !!
मगर, राजकुमारी बहुत खुश थी… !! इसलिए, उन्होंने दासी को एक अनमोल हार भेंट किया और दासी से कहा – हम जानते हैं की यह विक्रम नगर के महाराज का उदारता थी… !! मगर, यह काम को सफल बनाने में आपका बहुत बड़ा योगदान है इसलिए, हम आपको यह हार भेट स्वरूप देना चाहते हैं… !! मना ना करें… !! इसे, स्वीकार करें… !!
दासी ने, राजकुमारी से हार ले लिया और उसके कक्ष से बाहर आ गई.. मगर, दासी के दिमाग़ में अभी तक यह विचार चल रहा था की वो ऐसा क्या करे की राजकुमारी का विवाह, राजा विक्रम सिंह से हो जाए..
वहाँ दूसरी ओर, राजा विक्रम सिंह बस यही सोच रहे थे की क्या रूपाली उनका विवाह राजकुमारी से करने के लिए कोई खेल खेल पाएँगी की नहीं… !!
और, जब राजा सोच सोच कर हार गये तो उन्होंने स्वयं ही करमपुर जाकर, रूपाली से मिलने का विचार बनाया और तुरंत अपना भेष बदल कर एक गुप्तचर के भाँति अपने घोड़े पे बैठ रवाना हो गये..
वहाँ दूसरी ओर करमपुर में, दासी रूपाली सोच सोच कर थक चूकि थी.. मगर, कोई भी विचार, उसके दिमाग़ में ऐसा नहीं आ रहा था की जिससे राजकुमारी का विवाह बिना किसी दिक्कत के विक्रम सिंह से हो जाए..
अब आधी रात्रि भी हो चुकी थी तो रूपाली ने सोचा की वह प्रातः काल ही कुछ सोचेगी और यह सोचकर वो लेट गई और लेटने के तुरंत बाद उसे नींद आ गई और वो दिया बुझाना ही भूल गई।
तभी आधी रात के समय, राजा विक्रम सिंह करमपुर में पहुँचा.. मगर, तब उसे याद आया की वो रूपाली का घर तो जानता ही नहीं..
तब उसने सोचा की ज़्यादातर महल में काम करने वाले सेवक, महल के पास ही रहते हैं.. सो, वो महल के पास पहुँचे..
महल में कड़ा पहरा था और आधी रात में अगर कोई पहरेदार, राजा विक्रम सिंह को ऐसे देख लेता तो वो शायद उन्हें डाकू या चोर समझ सकता था.. इसलिए, उन्होंने महल के पहरेदारों की नज़रों में आए बिना, चुप चुप कर सेवक के घर जहाँ थे, वहाँ पहुँचे..
मगर, अब दिक्कत ये थी की रूपाली का घर कौन सा है..
यह सोच कर, राजा परेशान हो गये की तभी उन्होंने देखा की एक घर का दिया, इतनी रात में भी जल रहा था.. उन्होंने, सोचा की शायद वहाँ कोई जाग रहा हो तो वो दासी रूपाली का पता बता दे और वो जब घर के करीब गये तो उन्होंने देखा की घर की खिड़की भी खुल रही है..
उन्होंने उस खिड़की में से झाँका तो सामने खटिया पर, रूपाली सो रही थी।
वो खुश हो गये की उन्हें रूपाली को ढूँढने की ज़्यादा कोशिश नहीं करनी पड़ी।
फिर, वो खिड़की के रास्ते घर में प्रवेश हो गये और रूपाली के खटिया के पास जाकर, रूपाली को दबे स्वर में आवाज़ देकर उठाने की कोशिश करने लग गये.. मगर, वो तो बहुत थक गई थी और पिछले दिन तो बेचारी ने नींद भी कहाँ की थी.. पूरी रात चुदवाती रही थी, राजा से.. इसलिए, वो बहुत गहरी नींद में सोती रही..
जब कुछ देर तक, वो ना उठी तो… !! … !! राजा भी थक गये और राजा को भी बहुत नींद आ रही थी.. इसलिए, वो भी रूपाली के पास खटिया पर, बची जगह पर लेट गये..
तब अचानक, रूपाली को छोटे शिशु की तरह, सोता देख राजा को उस पर प्यार आने लगा।
उसने हल्के से, रूपाली की होठों का चुंबन लिया.. जिससे, रूपाली की नींद मे कोई खलल ना पड़े और फिर उनका प्यार “काम वासना” मे बदलते देर ना लगी।
राजा ने धीरे धीरे, अपने सारे कपड़े निकाल फेंकें और नंगे होकर रूपाली के बगल में लेट गये और फिर धीरे धीरे उन्होंने रूपाली की चोली खोल दी और उसकी चूचियों को आज़ाद कर दिया और फिर उसके घाघरे का नाडा खोल, उसे भी ढीला कर दिया और फिर अपना एक हाथ उसके घाघरे के अंदर डाल उसकी चूत सहलाने लगे और दूसरे हाथ से हल्के हल्के उसकी चूचियाँ मसलने लगे..
मगर, रूपाली बेचारी इतनी गहरी नींद में थी की उसके साथ क्या हो रहा है उसे पता तक ना था..
दासी, यह सुन बोली – नहीं महाराज… !! आप लज्जित ना हो… !! कल जो हुआ, वो मदिरा का नशा तथा हमारी राजकुमारी की वजह से हुआ, जो उन्होंने मुझे आप से बात करने, रात्रि काल में भेज दिया… !! अब मैं ज़रा भी क्रोध में नहीं हूँ… !! आप कृपया कर, मुझे नीचे उतार दीजिए… !!
राजा मुस्कुराया और उसने दासी को अपनी गोद से नीचे उतारा।
फिर, दासी और राजा दोनों अपने कक्ष की और चल पड़े।
राजा के अंगरक्षकों ने, जब दासी को नग्न देखा तो उन सब के चेहरे पर वासना साफ़ दिख रही थी.. मगर, राजा को देख वो सब मुंह नीचे कर खड़े रहे..
जब राजा आगे निकला तो सब दासी के मोटे मोटे गोल चुत्तडों को देखने लगे।
अंदर जाकर, द्वार बंद कर लिए गये और फिर कुछ देर में दासी अक्षरा कपड़े लेकर आ गई और फिर राजा ने दासी को कई तरीके के गहने देकर, अपने राज्य से विदा किया और बदले में दासी ने उसे वचन दिया की वो उसकी शादी राजकुमारी से करवाने के लिए कुछ भी करेगी।
वहाँ करमपुर में, राजकुमारी बड़ी बैचानी से अपनी दासी की रह देख रही थी.. मगर, दासी सीधे पहले महल ना जाकर अपने घर गई और सारे जेवर छुपा दिए और फिर अपने फटे पुराने कपड़े पहन महल पहुँची और सीधे ही राजकुमारी के कक्ष में गई..
राजकुमारी ने तुरंत उसे अपने पास बुलाया और उससे पूछा – क्या हुआ… !! ??
तब उसने बताया – महाराज ने जब आपकी बात सुनी तो उन्होंने तुरंत ही इस शादी से मना करने का आश्वासन दे दिया है और वो कल आकर आपके पिताजी से इस बारे में वार्तालाप कर लेंगे और आपसे शादी करने से मना कर द
राजा यह सुन और क्रोध में आ गया की राजकुमारी ने उसका रिश्ता इसलिए ठुकराया क्यूंकी वो देखने में उसे सुंदर ना लगा और राजा ने भी एक प्रतिज्ञा ली और बोला – मैं प्रतिज्ञा लेता हूँ की मैं कामिनी को जब तक अपना लंड ना चुसवाऊँ, तब तक मैं अपना लंड नहीं धोऊंगा… !! और फिर उसने दासी की और देखा तो दासी उसके लंड की और देख मुस्कुरा रही थी..
उसने दासी से पूछा – दासी, और तुम्हें मैं रंग रूप में कैसा लगा… !! ??
उसने दासी से पूछा – दासी, और तुम्हें मैं रंग रूप में कैसा लगा… !! ??
दासी मुस्कुराई और बोली – महाराज, मुझे तो आप बहुत सुंदर लगे थे… !! मगर, हम तो ग़रीब लोग हैं… !! हर बड़ा इंसान, हमें सुंदर ही दिखता है… !!
राजा मुस्कुराया और बोला – हम तुम्हारी बातों से खुश हुए… !! इसलिए, अब हम तुम्हें हम अपने हाथ से स्नान कराएँगे और कई आभूषण और कपड़े भेट देंगे और फिर तुम्हें विदा करेंगे… !!
और फिर राजा ने अपने अंगरक्षकों को आवाज़ दी और बोला की दसियों को भेजो… !!
कुछ ही देर में, दासी कक्ष के अंदर आयीं।
वो राजा और दासी को नंगा देख, चौक गईं.. मगर, फिर उसने अपने आप को संभाला और बोली – महाराज, क्या आज्ञा है… !!
राजा बोला – सुनो, दासी हमारे स्नान के लिए गरम पानी का प्रबंध करो और सब दसियों से कहो की स्नान कक्ष में नग्न अवस्था में, हमारे और अब से तुम्हारी प्रमुख दासी की सेवा में उपस्थित (मौजूद) रहें… !!
दासी ने सिर हिलाया और बोला – जो आज्ञा, महाराज… !! और वो कक्ष से बाहर चली गईं और कुछ देर में वापिस आईं और बोलीं – महाराज, सब तैयार है… !! आप स्नान के लिए, आ सकते हैं… !!
राजा ने दासी की और देखा और बोला – अब हम तुम्हें शाही स्नान का मज़ा दिलाते हैं… !! और फिर राजा ने दासी को गोद में उठाया और स्नान कक्ष की तरफ चल दिया और उसने अपने आगे चल रही दासी से बोला – अक्षरा, तुम वस्त्र नहीं उतरोगी… !!
तब आगे चल रही दासी, बोली – महाराज, मैं अपने वस्त्र स्नान कक्ष में पहुचने पर, उतार दूँगी… !!
फिर राजा मुस्कुराया और ललचाई आँखों से आगे चल रही दासी के, चुत्तड़ देखने लगा..
वहाँ जाकर दासी ने देखा की राजा की सारी दासियाँ नंगी खड़ी हैं और फिर राजा ने दासी को गोदी से उतारा और बोला – देखो, यह हमारे विवाह के बाद, तुम सब की प्रमुख होंगी… !! इसलिए, अब से तुम्हें इनकी हर आज्ञा का पालन करना है… !! और फिर उसने अपनी प्रमुख दासी को बुलाया और बोला – अक्षरा, अब आप भी अपने वस्त्र उतार सकती हैं… !!
यह कहते ही, उस दासी ने अपने सारे वस्त्र उतार दिए और नंगी खड़ी हो गई और राजा ने अपनी दासियों को इशारा कर कहा की तुम इनको ठीक से स्नान करवाओ और इनकी चूत भी गरम पानी से धोकर, इनकी चूत की सूजन का भी इलाज़ करो और राजा ने फिर अक्षरा का हाथ पकड़ा और बोला – आप मेरे साथ आएँ… !! और वो अपने चुत्तड़ मटकाते हुए, राजा के साथ चली गई..
फिर सारी दासियाँ, कामिनी की दासी को गरम पानी से स्नान कराने लगीं और एक दासी उसकी चूत और जांघों पर जो खून जमा था, उसे साफ़ करने लगी।
राजकुमारी की दासी, सिसकारियाँ लेने लगी..
कभी कोई दासी उसकी चूत साफ़ करते करते, उसकी चूत में उंगली डाल देती तो कभी उसकी गाण्ड को सहलाती और कोई उसके चूचे धोते धोते, उसकी चूची हल्की सी मसल देती।
वो, एक दम रानी जैसे जीवन का आनंद ले रही थी जो उसने सपने में भी ना सोचा था और उसको रात का अनुभव बिलकुल याद ना रहा..
बस, वो मदहोश अपनी जवानी का आनंद ले रही थी।
वहाँ राजा, अपनी दासी अक्षरा से अपने लंड की मालिश करा रहा था.. उसका लंड, काला ज़रूरी था.. मगर, एक मूसल जैसा मोटा और बड़ा था..
राजा की दासी, राजा के लंड को अपने दोनों हाथो से पकड़ कर मालिश कर रही थी.. जिससे, उसका लंड एक दम तन गया था..
यहाँ दासी की चूत को बाकी दासियाँ, अपनी उंगली से चोदने लगीं और दासी – आँह… !! आह… !! उम्म म म म म म म म म म… !! इयाः उन्ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह… !! आह ह ह ह ह ह आ आ आ आ आ आ… !! की सिसकारियाँ भरने लगीं और कुछ दासी उसके चूचे चूसने लगीं… !!
फिर राजा ने अपनी दासी अक्षरा को घोड़ी की तरह बैठने का आदेश दिया और उसके आदेश देते ही, अक्षरा घोड़ी की तरह बैठ गई और फिर राजा ने अपना लंड अक्षरा की गाण्ड पर रखा और एक ही झटके में अंदर घुसेड दिया..
अक्षरा ने बस हल्की सी सिसकारी ली और फिर आराम से अपनी गांद मरवाने लगी।
ऐसा लग रहा था की उसकी गाण्ड का छेद, अक्सर राजा का लंड लेता रहता था।
यहाँ अब एक एक दासी, राजकुमारी की दासी को छोड़, राजा और अक्षरा के पास जाकर बैठ गई और दासियाँ अब, राजा और अक्षरा के साथ ही लग गईं..
कोई दासी, अक्षरा के चूचे चूस रही थी तो कोई राजा के लंड के टटटे को, तो कोई राजा को चूँबन दे रही थी..
अब राजकुमारी की दासी के साथ, बस एक दासी रह गई थी और वो उसे अकेले ही स्नान करा रही थी तो अब राजकुमारी की दासी का ध्यान भी उसी दासी पर था।
फिर, राजकुमारी की दासी ने उस दासी को खड़ा किया और फिर उसने उसे होंठ पर एक चूँबन दिया और फिर दोनों एक दूसरे के होंठ चूसने लगे और उस दासी ने राजकुमारी की दासी की गाण्ड में, अपनी उंगली डाल दी और उसकी गाण्ड को अपनी उंगली से चोदने लगी।
पहले तो, राजकुमारी की दासी ने हल्की सी सिसकारी ली पर फिर उसने उस दासी को हल्की सी मुस्कुराहट दी और फिर चुदने का आनंद लेने लगी।
फिर, उस दासी ने राजकुमारी की दासी के चूचे चूसने लगी और राजकुमारी की दासी के आनंद की सीमा ना रही और उसने अपना पूरा बदन उस दासी के हाथो में छोड़ दिया और वो दासी उसके चूचे चूसते हुए, उसकी गाण्ड मे अब अपनी दो उंगलियाँ डाल कर, दासी की गाण्ड मारने लगी।
दूसरी ओर, राजा एक एक कर अपनी हर दासी को चोद रहा था।
यहाँ राजकुमारी की दासी अपनी गाण्ड को मरवाने का आनंद ले रही थी और दूसरी दासी ने राजकुमारी की दासी को फर्श पर लेटा दिया और अपनी दो उंगलियाँ उसकी गाण्ड में डालीं और पूरी तेज़ी से उसे चोदने लगी और साथ ही साथ, उसकी चूत को चूसने लगी..
दासी ज़ोर ज़ोर से, सिसकारियाँ लेने लगी और मदहोश सी हो गई और काफ़ी देर तक चुदने के बाद, राजकुमारी की दासी झड़ गई।
यहाँ, राजा भी झड़ चुका था।
फिर, राजा के साथ सभी दसियों ने (राजकुमारी की दासी सहित) स्नान किया और फिर राजा ने राजकुमारी की दासी को फिर से अपनी गोद में उठाया और बोला – यह अब हमारे साथ, हमारे कक्ष में जाएँगी और आप लोग अब जाएँ… !! और फिर अक्षरा से बोला – अक्षरा, आप अपनी नयी प्रमुख दासी के लिए नये वस्त्रो की व्यवस्था करें… !! और फिर वो राजकुमारी की दासी को उठाए, अपने कक्ष में नग्न ही चल दिए।
फिर राजकुमारी की दासी बोली – महाराज, अब मैं ठीक हूँ… !! आप कृपया मुझे गोद में ना लें चलें… !! आप को यह शोभा नहीं देता… !!
राजा मुस्कुराया और बोला – नहीं, दासी… !! हमने जो आप के साथ कल किया है, वो सच में ग़लत था… !! इसलिए, हम अब आपको कोई और कष्ट नहीं दे सकते… !! हम कल के लिए काफ़ी लज्जित हैं… !!
दासी, यह सुन बोली – नहीं महाराज… !! आप लज्जित ना हो… !! कल जो हुआ, वो मदिरा का नशा तथा हमारी राजकुमारी की वजह से हुआ, जो उन्होंने मुझे आप से बात करने, रात्रि काल में भेज दिया… !! अब मैं ज़रा भी क्रोध में नहीं हूँ… !! आप कृपया कर, मुझे नीचे उतार दीजिए… !!
राजा मुस्कुराया और उसने दासी को अपनी गोद से नीचे उतारा।
फिर, दासी और राजा दोनों अपने कक्ष की और चल पड़े।
राजा के अंगरक्षकों ने, जब दासी को नग्न देखा तो उन सब के चेहरे पर वासना साफ़ दिख रही थी.. मगर, राजा को देख वो सब मुंह नीचे कर खड़े रहे..
जब राजा आगे निकला तो सब दासी के मोटे मोटे गोल चुत्तडों को देखने लगे।
अंदर जाकर, द्वार बंद कर लिए गये और फिर कुछ देर में दासी अक्षरा कपड़े लेकर आ गई और फिर राजा ने दासी को कई तरीके के गहने देकर, अपने राज्य से विदा किया और बदले में दासी ने उसे वचन दिया की वो उसकी शादी राजकुमारी से करवाने के लिए कुछ भी करेगी।
वहाँ करमपुर में, राजकुमारी बड़ी बैचानी से अपनी दासी की रह देख रही थी.. मगर, दासी सीधे पहले महल ना जाकर अपने घर गई और सारे जेवर छुपा दिए और फिर अपने फटे पुराने कपड़े पहन महल पहुँची और सीधे ही राजकुमारी के कक्ष में गई..
राजकुमारी ने तुरंत उसे अपने पास बुलाया और उससे पूछा – क्या हुआ… !! ??
तब उसने बताया – महाराज ने जब आपकी बात सुनी तो उन्होंने तुरंत ही इस शादी से मना करने का आश्वासन दे दिया है और वो कल आकर आपके पिताजी से इस बारे में वार्तालाप कर लेंगे और आपसे शादी करने से मना कर देंग
जैसे ही, राजकुमारी ने यह बात सुनी की राजा विक्रम सिंह उस से विवाह ना करने के लिए तैयार हो गया है.. वो ख़ुशी से, फूली नहीं समा रही थी और इस ख़ुशी में उसने अपनी दासी जिसका नाम “रूपाली” था, उसे कई उपहार दे दिए..
मगर, दासी ने उन उपहार को लेने से मना कर दिया और बोली – राजकुमारी, यह तो मेरा फ़र्ज़ था और मैं तो सिर्फ़ आपका निवेदन लेकर गई थी और यह तो विक्रम नगर के महाराज का उदार चरित्रा था की उन्होंने आपका निवेदन स्वीकार कर लिया… !!
मगर, राजकुमारी बहुत खुश थी… !! इसलिए, उन्होंने दासी को एक अनमोल हार भेंट किया और दासी से कहा – हम जानते हैं की यह विक्रम नगर के महाराज का उदारता थी… !! मगर, यह काम को सफल बनाने में आपका बहुत बड़ा योगदान है इसलिए, हम आपको यह हार भेट स्वरूप देना चाहते हैं… !! मना ना करें… !! इसे, स्वीकार करें… !!
दासी ने, राजकुमारी से हार ले लिया और उसके कक्ष से बाहर आ गई.. मगर, दासी के दिमाग़ में अभी तक यह विचार चल रहा था की वो ऐसा क्या करे की राजकुमारी का विवाह, राजा विक्रम सिंह से हो जाए..
वहाँ दूसरी ओर, राजा विक्रम सिंह बस यही सोच रहे थे की क्या रूपाली उनका विवाह राजकुमारी से करने के लिए कोई खेल खेल पाएँगी की नहीं… !!
और, जब राजा सोच सोच कर हार गये तो उन्होंने स्वयं ही करमपुर जाकर, रूपाली से मिलने का विचार बनाया और तुरंत अपना भेष बदल कर एक गुप्तचर के भाँति अपने घोड़े पे बैठ रवाना हो गये..
वहाँ दूसरी ओर करमपुर में, दासी रूपाली सोच सोच कर थक चूकि थी.. मगर, कोई भी विचार, उसके दिमाग़ में ऐसा नहीं आ रहा था की जिससे राजकुमारी का विवाह बिना किसी दिक्कत के विक्रम सिंह से हो जाए..
अब आधी रात्रि भी हो चुकी थी तो रूपाली ने सोचा की वह प्रातः काल ही कुछ सोचेगी और यह सोचकर वो लेट गई और लेटने के तुरंत बाद उसे नींद आ गई और वो दिया बुझाना ही भूल गई।
तभी आधी रात के समय, राजा विक्रम सिंह करमपुर में पहुँचा.. मगर, तब उसे याद आया की वो रूपाली का घर तो जानता ही नहीं..
तब उसने सोचा की ज़्यादातर महल में काम करने वाले सेवक, महल के पास ही रहते हैं.. सो, वो महल के पास पहुँचे..
महल में कड़ा पहरा था और आधी रात में अगर कोई पहरेदार, राजा विक्रम सिंह को ऐसे देख लेता तो वो शायद उन्हें डाकू या चोर समझ सकता था.. इसलिए, उन्होंने महल के पहरेदारों की नज़रों में आए बिना, चुप चुप कर सेवक के घर जहाँ थे, वहाँ पहुँचे..
मगर, अब दिक्कत ये थी की रूपाली का घर कौन सा है..
यह सोच कर, राजा परेशान हो गये की तभी उन्होंने देखा की एक घर का दिया, इतनी रात में भी जल रहा था.. उन्होंने, सोचा की शायद वहाँ कोई जाग रहा हो तो वो दासी रूपाली का पता बता दे और वो जब घर के करीब गये तो उन्होंने देखा की घर की खिड़की भी खुल रही है..
उन्होंने उस खिड़की में से झाँका तो सामने खटिया पर, रूपाली सो रही थी।
वो खुश हो गये की उन्हें रूपाली को ढूँढने की ज़्यादा कोशिश नहीं करनी पड़ी।
फिर, वो खिड़की के रास्ते घर में प्रवेश हो गये और रूपाली के खटिया के पास जाकर, रूपाली को दबे स्वर में आवाज़ देकर उठाने की कोशिश करने लग गये.. मगर, वो तो बहुत थक गई थी और पिछले दिन तो बेचारी ने नींद भी कहाँ की थी.. पूरी रात चुदवाती रही थी, राजा से.. इसलिए, वो बहुत गहरी नींद में सोती रही..
जब कुछ देर तक, वो ना उठी तो… !! … !! राजा भी थक गये और राजा को भी बहुत नींद आ रही थी.. इसलिए, वो भी रूपाली के पास खटिया पर, बची जगह पर लेट गये..
तब अचानक, रूपाली को छोटे शिशु की तरह, सोता देख राजा को उस पर प्यार आने लगा।
उसने हल्के से, रूपाली की होठों का चुंबन लिया.. जिससे, रूपाली की नींद मे कोई खलल ना पड़े और फिर उनका प्यार “काम वासना” मे बदलते देर ना लगी।
राजा ने धीरे धीरे, अपने सारे कपड़े निकाल फेंकें और नंगे होकर रूपाली के बगल में लेट गये और फिर धीरे धीरे उन्होंने रूपाली की चोली खोल दी और उसकी चूचियों को आज़ाद कर दिया और फिर उसके घाघरे का नाडा खोल, उसे भी ढीला कर दिया और फिर अपना एक हाथ उसके घाघरे के अंदर डाल उसकी चूत सहलाने लगे और दूसरे हाथ से हल्के हल्के उसकी चूचियाँ मसलने लगे..
मगर, रूपाली बेचारी इतनी गहरी नींद में थी की उसके साथ क्या हो रहा है उसे पता तक ना था..
खूनी रिश्तों में प्यार बेशुमारRunning.....परिवार मे प्यार बेशुमारRunning..... वो लाल बॅग वाली Running.....दहशत complete..... मेरा परिवार और मेरी वासना Running..... मोहिनी Running....सुल्तान और रफीक की अय्याशी .....Horror अगिया बेतालcomplete....डार्क नाइटcomplete .... अनदेखे जीवन का सफ़र complete.....भैया का ख़याल मैं रखूँगी complete.....काला साया complete.....प्यासी आँखों की लोलुपता complete.....मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग complete......मासूम ननद complete
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Re: राजा की सेविका complete
फिर, उन्होंने रूपाली का एक हाथ लेकर, अपने लंड पर रख लिया और धीरे धीरे उसे सहलाने लगे और थोड़ी देर तक यह सब करने के बाद वो झड़ गये और नग्न ही, रूपाली के पास सो गये।
सुबह, जब रूपाली उठी और तब उसे एहसास हुआ की कोई उसके पास सो रहा है और जब वो मूडी और देखा की जो आदमी उसके पास सो रहा था वो बिल्कुल नंगा था और उसके वस्त्र भी उसके शरीर पर नहीं थे.. यानी, वो भी आधी नंगी थी.. तो उसके मुंह से चीख निकल पड़ी और चीख सुन राजा अचानक ही घबरा के उठ खड़ा हुआ और अपने हाथ से रूपाली का चीखता मुंह बंद किया और बोला – रूपाली हम हैं, आपके राजा… !! राजाविक्रम सिंह और उसने फिर उसे रात्रि का पूरा किस्सा सुनाया… !!
किस्सा सुन, रूपाली मुस्कुराई और बोली – महाराज, आपको यह सब नहीं करना चाहिए था… !! क्यूंकी, मेरी माँ वो तो कुछ दिन के लिए बाहर गई है… !! इसलिए, मैं अकेली हूँ नहीं तो बहुत ग़ज़ब हो जाता… !!
राजा मुस्कुराया और बोला – चलिए, कुछ ग़ज़ब हुआ तो नहीं ना… !! अब बताए की आपने हमारे विवाह को लेकर, क्या सोचा… !! कोई खेल आया, आपके दिमाग़ में, जिससे हमारा विवाह कामिनी से हो सके… !!
रूपाली बोली – नहीं महाराज, अभी तक तो नहीं… !! मगर, जल्द ही मैं कोई रास्ता निकल लूँगी… !! जिससे, आपका विवाह आसानी के साथ राजकुमारी के साथ हो जाए… !!
राजा विक्रम सिंह ने अभी तक अपने वस्त्र वापस नहीं पहने थे और उनका लंड बिलकुल तन के खड़ा था.. शायद, रक्तचाप के कारण और राजा के लंड को देख रूपाली मुस्कुराने लगी.
राजा समझ गया की रूपाली क्यूँ मुस्कुरा रही है और उसने वक़्त का फायदा उठाते हुए बिना देर करे, रूपाली को अपनी बाहों में ले लिया और फिर उसके घाघरे को खोल दिया और घाघरे का नाडा खुलते ही, वह रूपाली की चिकनी जांघों से सरकता हुआ उतर गया और रूपाली अब पूर्ण रूप से नंगी राजा विक्रम सिंह के नंगे बदन से टकरा रही थी..
फिर राजा बोला – आप हमारे लिंग को चूसना चाहेंगी… !!
रूपाली ने पहले राजा का चेहरा देखा और फिर उसके खड़े लंड को देखा और बोली – महाराज, क्या मेरा चाहना या ना चाहना यहाँ कोई मोल रखता है… !!
तब राजा मुस्कुराया और बोला – हाँ, बिलकुल… !! अब हम ज़बरदस्ती से आप से कोई क्रिया नहीं करा सकते और हम उस रात के लिए बहुत शर्मिंदा भी है… !!
दासी इतनी इज़्ज़त के आदि नहीं थी.. इसलिए, जब राजा ने उससे इस प्रकार उसकी रज़ामंदी माँगी तो वो उससे मंतर मुग्ध हो गई और बिना कुछ कहे राजा के लंड को मुंह लेकर चूसने लगी..
राजा के लंड को कभी रूपाली मुंह के अंदर बाहर ले लेकर चूसती तो कभी अपनी जीभ से उसके लंड के सिरे को चाट रही थी और फिर उसकी गेंदों को अपने एक हाथ से सहलाती और गेंदों को मुंह में लेती।
राजा बुरी तरह उतेज़ित हो गया और उसने रूपाली के मुंह को चोदना शुरू कर दिया।
राजा के बड़े लंड को, रूपाली किसी तरह अपने मुंह में ले पा रही थी और कुछ ही देर में, राजा रूपाली के मुंह में ही झड़ गया और उसने इतना वीर्य छोड़ा की काफ़ी वीर्य रूपाली के मुंह से बाहर आ गया और फिर दोनों खटिया पर नंगे ही लेट गये।
कुछ देर तक आराम करते करते, अचानक दासी को एक विचार आया की अगर कामिनी का कोई अपरहण कर ले और उन्हें फिर राजा विक्रम सिंह ढूँढ लाए और इस तरह वह राजकुमारी का दिल जीत ले तथा इससे करमपुर के राजा भी उनसे बहुत खुश हो जाएँगे और उनका विवाह राजकुमारी से आसानी से हो जाएगा और फिर उसने जब यह विचार राजा विक्रम सिंह को सुनाया तो वो बहुत खुश हो गये और उन्होंने तुरंत ही, रूपाली के होंठ चूम लिए और बोले – रूपाली, अगर यह योजना सफल होती है तो हम आपको धन में तोल देंगे और आपको जीवन भर, किसी के आगे झुकने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी… !!
रूपाली ने कहा – हाँ महाराज, मगर यह सब तब होगा ना जब राजकुमारी का अपहरण हो… !! मगर, वो तो कड़े पहरे में रहती हैं… !! और उनके रक्षकों की घेरे में सेंध सेंध लगाकर, उनका अपरहण करना बड़ा मुश्किल होगा… !!
यह सुन, राजा मुस्कुराया और बोला – यह सब, आप हम पर छोड़ दें… !! बस, हमें यह जानकारी आप दें की राजकुमारी किस किस समय, क्या क्या करती हैं… !! और आज ही रात को, हम वापस विक्रम नगर जाएँगे और इस योजना के लिए काम प्रारंभ कर देंगे… !!
यह सुन, राजा मुस्कुराया और बोला – यह सब, आप हम पर छोड़ दें… !! बस, हमें यह जानकारी आप दें की राजकुमारी किस किस समय, क्या क्या करती हैं… !! और आज ही रात को, हम वापस विक्रम नगर जाएँगे और इस योजना के लिए काम प्रारंभ कर देंगे… !!
रूपाली बोली – महाराज, आप आज रात निकलेंगे तो फिर आज पूरे दिन आप कहा रुकेंगे, करमपुर में… !!
इस पर राजा बोला – यहाँ पर… !!
यह सुन, रूपाली थोड़ी सोच में पड़ गई।
यह देख, राजा बोला – क्यूँ आपको कोई परेशानी है, क्या… !! ??
रूपाली बोली – नहीं नहीं, महाराज… !! मुझे कोई परेशानी नहीं है… !! मगर, आप मुझ जैसे ग़रीब की कुटिया में… !! और फिर, मैं आपको क्या भोजन करा सकूँगी… !!
राजा मुस्कुराया और बोला – नहीं, हमें यहाँ कोई परेशानी नहीं है… !! और हमने जो परेशानी आपको दी थी, उसके सामने तो यह कुछ भी नहीं… !! हम बस उसका प्रयाश्चित करना चाहते हैं… !!
रूपाली ने कहा – महाराज, भूल जाइए उस दिन को… !! जो आप मुझे दे रहे हैं उसके बदले में वो तो बहुत बड़ा सम्मान है… !! कृपया कर, अगर आप बुरा ना मानें तो आज के दिन के लिए, मुझे अपनी रानी बना लीजये… !!
राजा समझ गया की रूपाली चुदना चाह रही है, उसने कहा – क्यूँ नहीं… !! हम आपके लिए, इतना तो ज़रूर कर सकते हैं… !! और फिर राजा ने रूपाली को अपनी बाहों में ले लिया और उसका पूरे बदन को चूमने लगा और कभी उसके मुलायम होठों को चूसता तो कभी उसकी गर्दन के नीचे चूमता..
फिर, धीरे धीरे उसकी चूचियाँ चूसता और फिर और नीचे जाते हुए, उसकी नाभि को चूमते हुए उसकी चूत पर जाकर रुक गया और धीरे धीरे उसकी चूत को चूसने लगा।
रूपाली मदहोश होने लगी, वो हल्के हल्के मीठे दर्द के कारण, करहाने लगी।
राजा उसकी चूत के अंदर, अपनी जीभ डाल कर चूसने लगा।
रूपाली, बिलकुल मदहोश हो गई।
फिर, राजा वापस उसके होठों को चूमने लगे और फिर अपने लंड को रूपाली की चूत पर रख एक ज़ोर का झटका दिया और रूपाली चीख पड़ी और राजा का लंड आधा, रूपाली की चूत में चला गया।
राजा थोड़ी देर रुका और दर्द से छटपटा रही, रूपाली के बदन को थोड़ा सहलाया और उसके होंठ चूम उसे संभाला और फिर दूसरा झटका दिया।
इसमें, रूपाली की और ज़ोर से चीख निकल गई।
राजा डर गया की कहीं आस पड़ोस वाले ना सुन लें.. यह सोच, उसने रूपाली के मुंह पर हाथ रख दिया और रूपाली की चीख तो दब गई.. मगर, उसकी आँख से आँसू छलक उठे..
फिर क्या था, जब वो संभाली तो राजा ने चुदाई का दौर आगे बड़ाया और लंड अंदर बाहर करने लगा..
पहले, धीरे धीरे और फिर तेज तेज… !! और रूपाली भी मदहोश सी हो गई और अपनी चुदाई का आनंद उठाने लगी… !! जो उसने, उस रात ना उठाया था… !!
उसकी सिसकारियों में, आज दर्द के जगह उतेजना थी और राजा उसकी सिसकारियों से और उतेज़ित हो रहा था और उसकी चूचियों को बुरी तरह मसल रहा था.. तभी, रूपाली झड़ गई और थोड़ी देर बाद ही, राजा उसकी चूत में झड़ गया..
रूपाली, राजा से लिपट गई और राजा ने भी उसे दूर नहीं हटाया।
उसका लंड ढीला पड़ चुका था.. मगर, फिर भी रूपाली की चूत में ही था..
पूरे दिन, राजा ने रूपाली को कई बार चोदा और फिर रात के अंधेरे में, राजा विक्रम नगर के लिए निकलने लगा।
उसने रूपाली को अपनी बाहों में ले लिया और फिर उसके होठों को चूमा और फिर उसके घर से विदाई ली और आधी रात्रि के बाद, वो वापस विक्रम नगर आ गया और अपने कक्ष में जाकर उसने थोड़ी देर आराम किया।
प्रातः काल ही, उसने अपना एक गुप्तचर बुलाया और उससे सारी योजना समझाई और फिर उसने उससे कहा की यह कार्य, आपको ही करना है… !! आपको इसके लिए, जो सैनिक चाहिए, आप अपने आप चुन सकते हैं… !! मगर, इस योजना की जानकारी, सिर्फ़ आपको ही होनी चाहिए… !! इसकी खबर विक्रम नगर और करमपुर में किसी को नहीं चलनी चाहिए… !! अगर, किसी स्थिति में योजना विफल हो जाए और आप सब पकड़े जाएँ तो भी आप लोग हमारा नाम नहीं लेंगे… !! इसके बदले, हम आप के परिवार की हम पूरी जिम्मेदारी लेंगे और उनका पूरा ध्यान रखेंगे और अगर, यह योजना सफल होगी तो हम आप सब को सोने में तोल देंगे… !!
गुप्तचर ने कहा – महाराज, आप चिंता ना करें… !! मैं कसम लेता हूँ की मैं किसी भी तरह, इस योजना को विफल नहीं होने दूँगा और अगर, होती भी है तो इसमें आपका नाम कही नहीं आएगा… !!
यह सुन, राजा बड़ा खुश हुआ।
उसने गुप्तचर से कहा की वहाँ पर एक दासी है, रूपाली… !! जो राजकुमारी की प्रमुख दासी है और वो ही आपको जानकारी देगी की आपको राजकुमारी का अपरहण कब और कहाँ से करना होगा… !!
गुप्तचर बोला – जी, ठीक है… !! महाराज, अब मुझे आज्ञा दें… !! अब मुझे इस योजना के लिए, आदमियों का चयन करने जाना है… !!
राजा बोला – हाँ, आप जाइए और आपको जो सही लगे वो सैनिक चुन लीजिए… !!
गुप्तचर ने कहा – महाराज, मैं इस क्रिया के लिए सैनिक नहीं चाहता… !! मुझे कृपया कर, वो चार डाकू चाहिए जो बंदीग्रह में बंदी हैं… !!
राजा, थोड़ी सोच में पड़ गया।
फिर, उसने बोला की आपको उन पर पूरा भरोसा तो है ना… !!
गुप्तचर बोला – हाँ महाराज… !! मैं उन्हें जानता हूँ… !! वो धन के लिए, कुछ भी कर सकते हैं और कितने भी बड़े कार्य को आसानी से कर सकते हैं… !!
राजा बोला – ठीक है… !! आपको, उन पर भरोसा है तो उनको चुन सकते हैं… !! मगर, ध्यान रहे इसमें राजकुमारी को कुछ नहीं होना चाहिए… !! उनका अपरहण करते समय, उन्हें कोई चोट या उनके साथ कोई ग़लत हरकत नहीं होनी चाहिए… !! समझे आप… !!
गुप्तचर बोला – आप निश्चिंत रहें, महाराज… !! इस बात का, मैं पूरा ध्यान रखूँगा… !!
फिर गुप्तचर, उस दिन रात को उन चार डाकू के साथ करमपुर के लिए रवाना हो गया और 2 दिनों में , वो लोग करमपुर में पहुँच गये।
फिर राजा ने जैसा गुप्तचर को बताया था की रूपाली से संपर्क करे, वैसा ही उसने किया।
सुबह, जब गुप्तचर रूपाली के घर पहुँचा तो रूपाली महल के लिए रवाना हो ही रही थी।
गुप्तचर ने रूपाली से मिलकर, उसे राजा विक्रम सिंह की सारी योजना बताई।
रूपाली ने गुप्तचर को कहा की वो जब संध्या को महल से लौटेगी, तब उसे कामिनी का अपरहण, कब किया जा सकता है यह बताएगी… !! और फिर जब शाम को रूपाली वापस आई तो उसने गुप्तचर को कहा की कल रात्रि काल में, कामिनी का आसानी से अपरहण हो सकता है… !! क्यूंकी, कल नगर में करमपुर के राजा के चचेरे भाई के जनमदिन का उत्सव है और सारे पहरेदार उस उत्सव की देख रेख में रहेंगे और कामिनी भी उस उत्सव के लिए अपने महल से बाहर आएँगी… !! बस, तुम्हें कामिनी के दो निजी अंगरक्षकों को संभालना होगा… !! बाकी सिपाहियों का ध्यान, मैं भटका लूँगी… !!
गुप्तचर बोला – उनकी चिंता, आप ना करें… !! कल, उनकी जगह (उसने डाकुओं की तरफ इशारा करते हुए) यह जायेंगें… !! बस आप मुझे बताएँ, वो दो अंगरक्षक दिखते कैसे हैं और वो लोग रहते कहाँ हैं… !!
रूपाली ने गुप्तचर को उन दोनों का पूरा हुलिया बताया और साथ ही, वो कहाँ रहते हैं यह बताया।
गुप्तचर और चारों डाकुओं ने जाकर, उन दोनों अंगरक्षकों को उन्हीं के घर में बंदी बना दिया और फिर गुप्तचर ने चारों डाकुओं में से, दो उन दोनों अंगरक्षक के लगभग समान कद के डाकू चुने और उन्हें बिलकुल उन दोनों अंगरक्षकों के समान तैयार कर, सुबह सुबह ही महल के लिए रवाना कर दिया और फिर वो दोनों डाकू कामिनी के महल पहुँच उन दोनों अंगरक्षकों की तरह जाकर तैनात हो गये।
जब रात्रि काल में, कामिनी उत्सव के लिए निकली तो दोनों डाकुओं ने जो अब अंगरक्षक थे, अपने साथियों को इशारा कर दिया।
अब बस दासी रूपाली को, कामिनी के पास से सारे पहरेदार हटाने थे और जब राजकुमारी उत्सव में पहुँची तो दासी रूपाली उनके साथ ही खड़ी हो गई और फिर उसने धीरे से एक अंगरक्षक से कहा की मैं पहरेदारों को यहाँ से हटाकर, इशारा करूँगी… !! तभी तुम, राजकुमारी का अपरहण कर लेना… !!
उसने हाँ में सिर हिला दिया और फिर, रूपाली बहाने से एक एक कर हर पहेरेदार को वहाँ से हटाती रही और फिर अंत में, जब कोई पहरेदार राजकुमारी के आस पास नहीं बचा तब रूपाली ने दोनों अंगरक्षकों को इशारा कर बता दिया की कोई पहरेदार अब रूपाली के पास नहीं है।
इशारा मिलते ही, एक अंगरक्षक ने तुरंत ही बेहोशी की दवाई के कपड़े से राजकुमारी का मुंह दबा दिया।
राजकुमारी चिल्ला पाती, उससे पहले वो बेहोश हो गई और फिर दोनों अंगरक्षकों ने चुपके से राजकुमारी की जगह एक राजकुमारी के समान वस्त्र पहना हुआ, पुतला बिठा दिया।
फिर, चुपके चुपके दोनों कामिनी को उत्सव से बाहर ले आए और फिर दोनों ने एक बैलगाड़ी में राजकुमारी को लेटा दिया और बैलगाड़ी चलाते हुए, करमपुर की सीमा पर आ गये।
वहाँ पर, गुप्तचर और दो डाकू उन दोनों का इंतेज़ार कर रहे थे।
गुप्तचर ने, दोनों डाकुओं को शाबाशी देते हुए कहा – अब तुम लोग, घोड़े पर चलो… !! बैलगाड़ी, मैं लेकर आता हूँ… !!
फिर गुप्तचर ने बैल की लगाम अपने हाथ में ली और अंधेरे जंगल में चल दिया और फिर वो सब एक गुफा के पास आकर रुके और फिर गुप्तचर ने कामिनी को अपनी गोद में उठाकर, गुफा के अंदर ले गया और उन्हें एक खंभे से बाँध दिया।
गुप्तचर ने सोचा की अगर, वो महाराज को योजना के सफल होने का समाचार देने गया तो पता नहीं पीछे से यह चारों डाकू राजकुमारी के साथ कुछ कर ना दे.. इसलिए, उसने थोडा सोचा और फिर एक डाकू की और इशारा कर बोला की जाओ, तुम जाकर महाराज को बताओ की योजना सफल रही… !!
सुबह, जब रूपाली उठी और तब उसे एहसास हुआ की कोई उसके पास सो रहा है और जब वो मूडी और देखा की जो आदमी उसके पास सो रहा था वो बिल्कुल नंगा था और उसके वस्त्र भी उसके शरीर पर नहीं थे.. यानी, वो भी आधी नंगी थी.. तो उसके मुंह से चीख निकल पड़ी और चीख सुन राजा अचानक ही घबरा के उठ खड़ा हुआ और अपने हाथ से रूपाली का चीखता मुंह बंद किया और बोला – रूपाली हम हैं, आपके राजा… !! राजाविक्रम सिंह और उसने फिर उसे रात्रि का पूरा किस्सा सुनाया… !!
किस्सा सुन, रूपाली मुस्कुराई और बोली – महाराज, आपको यह सब नहीं करना चाहिए था… !! क्यूंकी, मेरी माँ वो तो कुछ दिन के लिए बाहर गई है… !! इसलिए, मैं अकेली हूँ नहीं तो बहुत ग़ज़ब हो जाता… !!
राजा मुस्कुराया और बोला – चलिए, कुछ ग़ज़ब हुआ तो नहीं ना… !! अब बताए की आपने हमारे विवाह को लेकर, क्या सोचा… !! कोई खेल आया, आपके दिमाग़ में, जिससे हमारा विवाह कामिनी से हो सके… !!
रूपाली बोली – नहीं महाराज, अभी तक तो नहीं… !! मगर, जल्द ही मैं कोई रास्ता निकल लूँगी… !! जिससे, आपका विवाह आसानी के साथ राजकुमारी के साथ हो जाए… !!
राजा विक्रम सिंह ने अभी तक अपने वस्त्र वापस नहीं पहने थे और उनका लंड बिलकुल तन के खड़ा था.. शायद, रक्तचाप के कारण और राजा के लंड को देख रूपाली मुस्कुराने लगी.
राजा समझ गया की रूपाली क्यूँ मुस्कुरा रही है और उसने वक़्त का फायदा उठाते हुए बिना देर करे, रूपाली को अपनी बाहों में ले लिया और फिर उसके घाघरे को खोल दिया और घाघरे का नाडा खुलते ही, वह रूपाली की चिकनी जांघों से सरकता हुआ उतर गया और रूपाली अब पूर्ण रूप से नंगी राजा विक्रम सिंह के नंगे बदन से टकरा रही थी..
फिर राजा बोला – आप हमारे लिंग को चूसना चाहेंगी… !!
रूपाली ने पहले राजा का चेहरा देखा और फिर उसके खड़े लंड को देखा और बोली – महाराज, क्या मेरा चाहना या ना चाहना यहाँ कोई मोल रखता है… !!
तब राजा मुस्कुराया और बोला – हाँ, बिलकुल… !! अब हम ज़बरदस्ती से आप से कोई क्रिया नहीं करा सकते और हम उस रात के लिए बहुत शर्मिंदा भी है… !!
दासी इतनी इज़्ज़त के आदि नहीं थी.. इसलिए, जब राजा ने उससे इस प्रकार उसकी रज़ामंदी माँगी तो वो उससे मंतर मुग्ध हो गई और बिना कुछ कहे राजा के लंड को मुंह लेकर चूसने लगी..
राजा के लंड को कभी रूपाली मुंह के अंदर बाहर ले लेकर चूसती तो कभी अपनी जीभ से उसके लंड के सिरे को चाट रही थी और फिर उसकी गेंदों को अपने एक हाथ से सहलाती और गेंदों को मुंह में लेती।
राजा बुरी तरह उतेज़ित हो गया और उसने रूपाली के मुंह को चोदना शुरू कर दिया।
राजा के बड़े लंड को, रूपाली किसी तरह अपने मुंह में ले पा रही थी और कुछ ही देर में, राजा रूपाली के मुंह में ही झड़ गया और उसने इतना वीर्य छोड़ा की काफ़ी वीर्य रूपाली के मुंह से बाहर आ गया और फिर दोनों खटिया पर नंगे ही लेट गये।
कुछ देर तक आराम करते करते, अचानक दासी को एक विचार आया की अगर कामिनी का कोई अपरहण कर ले और उन्हें फिर राजा विक्रम सिंह ढूँढ लाए और इस तरह वह राजकुमारी का दिल जीत ले तथा इससे करमपुर के राजा भी उनसे बहुत खुश हो जाएँगे और उनका विवाह राजकुमारी से आसानी से हो जाएगा और फिर उसने जब यह विचार राजा विक्रम सिंह को सुनाया तो वो बहुत खुश हो गये और उन्होंने तुरंत ही, रूपाली के होंठ चूम लिए और बोले – रूपाली, अगर यह योजना सफल होती है तो हम आपको धन में तोल देंगे और आपको जीवन भर, किसी के आगे झुकने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी… !!
रूपाली ने कहा – हाँ महाराज, मगर यह सब तब होगा ना जब राजकुमारी का अपहरण हो… !! मगर, वो तो कड़े पहरे में रहती हैं… !! और उनके रक्षकों की घेरे में सेंध सेंध लगाकर, उनका अपरहण करना बड़ा मुश्किल होगा… !!
यह सुन, राजा मुस्कुराया और बोला – यह सब, आप हम पर छोड़ दें… !! बस, हमें यह जानकारी आप दें की राजकुमारी किस किस समय, क्या क्या करती हैं… !! और आज ही रात को, हम वापस विक्रम नगर जाएँगे और इस योजना के लिए काम प्रारंभ कर देंगे… !!
यह सुन, राजा मुस्कुराया और बोला – यह सब, आप हम पर छोड़ दें… !! बस, हमें यह जानकारी आप दें की राजकुमारी किस किस समय, क्या क्या करती हैं… !! और आज ही रात को, हम वापस विक्रम नगर जाएँगे और इस योजना के लिए काम प्रारंभ कर देंगे… !!
रूपाली बोली – महाराज, आप आज रात निकलेंगे तो फिर आज पूरे दिन आप कहा रुकेंगे, करमपुर में… !!
इस पर राजा बोला – यहाँ पर… !!
यह सुन, रूपाली थोड़ी सोच में पड़ गई।
यह देख, राजा बोला – क्यूँ आपको कोई परेशानी है, क्या… !! ??
रूपाली बोली – नहीं नहीं, महाराज… !! मुझे कोई परेशानी नहीं है… !! मगर, आप मुझ जैसे ग़रीब की कुटिया में… !! और फिर, मैं आपको क्या भोजन करा सकूँगी… !!
राजा मुस्कुराया और बोला – नहीं, हमें यहाँ कोई परेशानी नहीं है… !! और हमने जो परेशानी आपको दी थी, उसके सामने तो यह कुछ भी नहीं… !! हम बस उसका प्रयाश्चित करना चाहते हैं… !!
रूपाली ने कहा – महाराज, भूल जाइए उस दिन को… !! जो आप मुझे दे रहे हैं उसके बदले में वो तो बहुत बड़ा सम्मान है… !! कृपया कर, अगर आप बुरा ना मानें तो आज के दिन के लिए, मुझे अपनी रानी बना लीजये… !!
राजा समझ गया की रूपाली चुदना चाह रही है, उसने कहा – क्यूँ नहीं… !! हम आपके लिए, इतना तो ज़रूर कर सकते हैं… !! और फिर राजा ने रूपाली को अपनी बाहों में ले लिया और उसका पूरे बदन को चूमने लगा और कभी उसके मुलायम होठों को चूसता तो कभी उसकी गर्दन के नीचे चूमता..
फिर, धीरे धीरे उसकी चूचियाँ चूसता और फिर और नीचे जाते हुए, उसकी नाभि को चूमते हुए उसकी चूत पर जाकर रुक गया और धीरे धीरे उसकी चूत को चूसने लगा।
रूपाली मदहोश होने लगी, वो हल्के हल्के मीठे दर्द के कारण, करहाने लगी।
राजा उसकी चूत के अंदर, अपनी जीभ डाल कर चूसने लगा।
रूपाली, बिलकुल मदहोश हो गई।
फिर, राजा वापस उसके होठों को चूमने लगे और फिर अपने लंड को रूपाली की चूत पर रख एक ज़ोर का झटका दिया और रूपाली चीख पड़ी और राजा का लंड आधा, रूपाली की चूत में चला गया।
राजा थोड़ी देर रुका और दर्द से छटपटा रही, रूपाली के बदन को थोड़ा सहलाया और उसके होंठ चूम उसे संभाला और फिर दूसरा झटका दिया।
इसमें, रूपाली की और ज़ोर से चीख निकल गई।
राजा डर गया की कहीं आस पड़ोस वाले ना सुन लें.. यह सोच, उसने रूपाली के मुंह पर हाथ रख दिया और रूपाली की चीख तो दब गई.. मगर, उसकी आँख से आँसू छलक उठे..
फिर क्या था, जब वो संभाली तो राजा ने चुदाई का दौर आगे बड़ाया और लंड अंदर बाहर करने लगा..
पहले, धीरे धीरे और फिर तेज तेज… !! और रूपाली भी मदहोश सी हो गई और अपनी चुदाई का आनंद उठाने लगी… !! जो उसने, उस रात ना उठाया था… !!
उसकी सिसकारियों में, आज दर्द के जगह उतेजना थी और राजा उसकी सिसकारियों से और उतेज़ित हो रहा था और उसकी चूचियों को बुरी तरह मसल रहा था.. तभी, रूपाली झड़ गई और थोड़ी देर बाद ही, राजा उसकी चूत में झड़ गया..
रूपाली, राजा से लिपट गई और राजा ने भी उसे दूर नहीं हटाया।
उसका लंड ढीला पड़ चुका था.. मगर, फिर भी रूपाली की चूत में ही था..
पूरे दिन, राजा ने रूपाली को कई बार चोदा और फिर रात के अंधेरे में, राजा विक्रम नगर के लिए निकलने लगा।
उसने रूपाली को अपनी बाहों में ले लिया और फिर उसके होठों को चूमा और फिर उसके घर से विदाई ली और आधी रात्रि के बाद, वो वापस विक्रम नगर आ गया और अपने कक्ष में जाकर उसने थोड़ी देर आराम किया।
प्रातः काल ही, उसने अपना एक गुप्तचर बुलाया और उससे सारी योजना समझाई और फिर उसने उससे कहा की यह कार्य, आपको ही करना है… !! आपको इसके लिए, जो सैनिक चाहिए, आप अपने आप चुन सकते हैं… !! मगर, इस योजना की जानकारी, सिर्फ़ आपको ही होनी चाहिए… !! इसकी खबर विक्रम नगर और करमपुर में किसी को नहीं चलनी चाहिए… !! अगर, किसी स्थिति में योजना विफल हो जाए और आप सब पकड़े जाएँ तो भी आप लोग हमारा नाम नहीं लेंगे… !! इसके बदले, हम आप के परिवार की हम पूरी जिम्मेदारी लेंगे और उनका पूरा ध्यान रखेंगे और अगर, यह योजना सफल होगी तो हम आप सब को सोने में तोल देंगे… !!
गुप्तचर ने कहा – महाराज, आप चिंता ना करें… !! मैं कसम लेता हूँ की मैं किसी भी तरह, इस योजना को विफल नहीं होने दूँगा और अगर, होती भी है तो इसमें आपका नाम कही नहीं आएगा… !!
यह सुन, राजा बड़ा खुश हुआ।
उसने गुप्तचर से कहा की वहाँ पर एक दासी है, रूपाली… !! जो राजकुमारी की प्रमुख दासी है और वो ही आपको जानकारी देगी की आपको राजकुमारी का अपरहण कब और कहाँ से करना होगा… !!
गुप्तचर बोला – जी, ठीक है… !! महाराज, अब मुझे आज्ञा दें… !! अब मुझे इस योजना के लिए, आदमियों का चयन करने जाना है… !!
राजा बोला – हाँ, आप जाइए और आपको जो सही लगे वो सैनिक चुन लीजिए… !!
गुप्तचर ने कहा – महाराज, मैं इस क्रिया के लिए सैनिक नहीं चाहता… !! मुझे कृपया कर, वो चार डाकू चाहिए जो बंदीग्रह में बंदी हैं… !!
राजा, थोड़ी सोच में पड़ गया।
फिर, उसने बोला की आपको उन पर पूरा भरोसा तो है ना… !!
गुप्तचर बोला – हाँ महाराज… !! मैं उन्हें जानता हूँ… !! वो धन के लिए, कुछ भी कर सकते हैं और कितने भी बड़े कार्य को आसानी से कर सकते हैं… !!
राजा बोला – ठीक है… !! आपको, उन पर भरोसा है तो उनको चुन सकते हैं… !! मगर, ध्यान रहे इसमें राजकुमारी को कुछ नहीं होना चाहिए… !! उनका अपरहण करते समय, उन्हें कोई चोट या उनके साथ कोई ग़लत हरकत नहीं होनी चाहिए… !! समझे आप… !!
गुप्तचर बोला – आप निश्चिंत रहें, महाराज… !! इस बात का, मैं पूरा ध्यान रखूँगा… !!
फिर गुप्तचर, उस दिन रात को उन चार डाकू के साथ करमपुर के लिए रवाना हो गया और 2 दिनों में , वो लोग करमपुर में पहुँच गये।
फिर राजा ने जैसा गुप्तचर को बताया था की रूपाली से संपर्क करे, वैसा ही उसने किया।
सुबह, जब गुप्तचर रूपाली के घर पहुँचा तो रूपाली महल के लिए रवाना हो ही रही थी।
गुप्तचर ने रूपाली से मिलकर, उसे राजा विक्रम सिंह की सारी योजना बताई।
रूपाली ने गुप्तचर को कहा की वो जब संध्या को महल से लौटेगी, तब उसे कामिनी का अपरहण, कब किया जा सकता है यह बताएगी… !! और फिर जब शाम को रूपाली वापस आई तो उसने गुप्तचर को कहा की कल रात्रि काल में, कामिनी का आसानी से अपरहण हो सकता है… !! क्यूंकी, कल नगर में करमपुर के राजा के चचेरे भाई के जनमदिन का उत्सव है और सारे पहरेदार उस उत्सव की देख रेख में रहेंगे और कामिनी भी उस उत्सव के लिए अपने महल से बाहर आएँगी… !! बस, तुम्हें कामिनी के दो निजी अंगरक्षकों को संभालना होगा… !! बाकी सिपाहियों का ध्यान, मैं भटका लूँगी… !!
गुप्तचर बोला – उनकी चिंता, आप ना करें… !! कल, उनकी जगह (उसने डाकुओं की तरफ इशारा करते हुए) यह जायेंगें… !! बस आप मुझे बताएँ, वो दो अंगरक्षक दिखते कैसे हैं और वो लोग रहते कहाँ हैं… !!
रूपाली ने गुप्तचर को उन दोनों का पूरा हुलिया बताया और साथ ही, वो कहाँ रहते हैं यह बताया।
गुप्तचर और चारों डाकुओं ने जाकर, उन दोनों अंगरक्षकों को उन्हीं के घर में बंदी बना दिया और फिर गुप्तचर ने चारों डाकुओं में से, दो उन दोनों अंगरक्षक के लगभग समान कद के डाकू चुने और उन्हें बिलकुल उन दोनों अंगरक्षकों के समान तैयार कर, सुबह सुबह ही महल के लिए रवाना कर दिया और फिर वो दोनों डाकू कामिनी के महल पहुँच उन दोनों अंगरक्षकों की तरह जाकर तैनात हो गये।
जब रात्रि काल में, कामिनी उत्सव के लिए निकली तो दोनों डाकुओं ने जो अब अंगरक्षक थे, अपने साथियों को इशारा कर दिया।
अब बस दासी रूपाली को, कामिनी के पास से सारे पहरेदार हटाने थे और जब राजकुमारी उत्सव में पहुँची तो दासी रूपाली उनके साथ ही खड़ी हो गई और फिर उसने धीरे से एक अंगरक्षक से कहा की मैं पहरेदारों को यहाँ से हटाकर, इशारा करूँगी… !! तभी तुम, राजकुमारी का अपरहण कर लेना… !!
उसने हाँ में सिर हिला दिया और फिर, रूपाली बहाने से एक एक कर हर पहेरेदार को वहाँ से हटाती रही और फिर अंत में, जब कोई पहरेदार राजकुमारी के आस पास नहीं बचा तब रूपाली ने दोनों अंगरक्षकों को इशारा कर बता दिया की कोई पहरेदार अब रूपाली के पास नहीं है।
इशारा मिलते ही, एक अंगरक्षक ने तुरंत ही बेहोशी की दवाई के कपड़े से राजकुमारी का मुंह दबा दिया।
राजकुमारी चिल्ला पाती, उससे पहले वो बेहोश हो गई और फिर दोनों अंगरक्षकों ने चुपके से राजकुमारी की जगह एक राजकुमारी के समान वस्त्र पहना हुआ, पुतला बिठा दिया।
फिर, चुपके चुपके दोनों कामिनी को उत्सव से बाहर ले आए और फिर दोनों ने एक बैलगाड़ी में राजकुमारी को लेटा दिया और बैलगाड़ी चलाते हुए, करमपुर की सीमा पर आ गये।
वहाँ पर, गुप्तचर और दो डाकू उन दोनों का इंतेज़ार कर रहे थे।
गुप्तचर ने, दोनों डाकुओं को शाबाशी देते हुए कहा – अब तुम लोग, घोड़े पर चलो… !! बैलगाड़ी, मैं लेकर आता हूँ… !!
फिर गुप्तचर ने बैल की लगाम अपने हाथ में ली और अंधेरे जंगल में चल दिया और फिर वो सब एक गुफा के पास आकर रुके और फिर गुप्तचर ने कामिनी को अपनी गोद में उठाकर, गुफा के अंदर ले गया और उन्हें एक खंभे से बाँध दिया।
गुप्तचर ने सोचा की अगर, वो महाराज को योजना के सफल होने का समाचार देने गया तो पता नहीं पीछे से यह चारों डाकू राजकुमारी के साथ कुछ कर ना दे.. इसलिए, उसने थोडा सोचा और फिर एक डाकू की और इशारा कर बोला की जाओ, तुम जाकर महाराज को बताओ की योजना सफल रही… !!
खूनी रिश्तों में प्यार बेशुमारRunning.....परिवार मे प्यार बेशुमारRunning..... वो लाल बॅग वाली Running.....दहशत complete..... मेरा परिवार और मेरी वासना Running..... मोहिनी Running....सुल्तान और रफीक की अय्याशी .....Horror अगिया बेतालcomplete....डार्क नाइटcomplete .... अनदेखे जीवन का सफ़र complete.....भैया का ख़याल मैं रखूँगी complete.....काला साया complete.....प्यासी आँखों की लोलुपता complete.....मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग complete......मासूम ननद complete
- Dolly sharma
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Re: राजा की सेविका complete
डाकू क्या करता, वो चल दिया राजा को सूचना बताने।
जब डाकू ने राजा को यह सूचना दी तो राजा फूला ना समाया..
उसने तुरंत, कामिनी को देखने की इच्छा प्रकट की और इधर रूपाली ने योजना अनुसार, नगर में हल्ला मचा दिया की राजकुमारी का अपरहण हो गया है।
वहाँ करमपुर के महाराज को जब यह सूचना मिली तो वो स्तब्ध रह गये और राजकुमारी की मां, फुट फुट के रोने लगी।
करमपुर के महाराज ने, तुरंत अपने सैनिकों और गुप्तचरों को, कामिनी की तलाश में लगा दिया और साथ ही, गुप्तचरों से कहा की वो पड़ोसी राज्य के राजाओ को खबर दे दें और उनसे हमारी मदद के लिए प्राथना करें।
उधर, राजा विक्रम सिंह उस गुफा के पास पहुँचा, जहाँ डाकुओं ने कामिनी को रखा था।
वो जब अंदर गया, तब राजकुमारी को बँधा देख उसे बड़ी खुशी हुई.. मगर, राजकुमारी तब भी बेहोश थी..
फिर, राजा ने गुप्तचर को बुलाकर उसके काम के लिए शाबाशी दी और उसे 1000 स्वर्ण मुद्रा भेंट करीं.. जो उसके और उसके साथी डाकुओं के लिए, इनाम था..
अब उसने गुप्तचर से कहा की राजकुमारी, बिलकुल ठीक है ना… !!
तो गुप्तचर ने बताया – हाँ, महाराज… !! राजकुमारी, बिलकुल ठीक हैं… !! बस, बेहोश हैं… !! कुछ देर में, होश में आ जाएँगी… !!
उसने कहा की ठीक है, अब आप लोग राजकुमारी के सारे वस्त्र उतार कर, उन्हें नग्न कर दें और उनको चोदने के सिवा जो करना चाहें, वो आप उनके साथ कर सकते हैं… !!
यह सुन, गुप्तचर और डाकू चौंक गये..
तब गुप्तचर ने कहा – महाराज, आप यह क्या कह रहे हैं… !! यह तो, हमारी होने वाली महारानी हैं और हम कैसे इन्हें नग्न कर सकते हैं… !!
तब राजा ने, नाराज़ होते हुए कहा – गुप्तचर, आप से जितना कहा है, उतना करें… !! बस, ध्यान रहे की आप में से कोई उन्हें चोदेगा नहीं, समझे की नहीं… !!
बिचारा गुप्तचर क्या करता, उसने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा – जैसी आपकी आज्ञा, महाराज… !!
डाकू तो बहुत खुश हो गये की उन्हें अब एक कुँवारी लड़की का बदन छूने को मिलेगा और फिर राजा एक अंधेरे कोने में जाकर, बैठ गया की कोई उसे देख ना पाए और डाकुओं ने राजकुमारी के वस्त्र खोलने शुरू कर दिए।
शरीर पर अनजान स्पर्श पाकर, राजकुमारी भी होश में आने लगी और उसे महसूस हुआ की कोई उसकी चोली को खोल रहा है.. ..
इस स्पर्श को पाकर, उसने अपने हाथ से उसके हाथ हटाने का प्रयास किया.. मगर, उसके हाथ बँधे होने के कारण, वो हाथ हिला ना पाई।
राजकुमारी ने जैसे ही सामने देखा तो चार नकाब पहने, आदमी उसके बदन से वस्त्र खोलने में लगे थे और उसे तब पता चला की उसका अपरहण हो गया है और वो चिल्ला उठी – बचाओ… !! बचाओ… !!
मगर, उस अंधेरी गुफा मे कौन उसकी चीख सुनता और इतने में पहले डाकू ने उसकी चोली खोल, उसके चूचे निर्वस्त्र कर दिए।
उसके गोरे गोरे, गोल गोल और बड़े बड़े चूचे देख, सब स्तब्ध रह गये।
फिर दो डाकू, उसकी दोनों चुचियों को पकड़ उन्हें दबाने लगे और उसके घाघरे के नाडे को खोलने लगे और जैसे ही नाडा खुला घागरा सरकता हुआ, राजकुमारी के पंजों तक उतर गया और उसकी चूत भी नंगी हो चली और डाकुओं ने उसे राजा की और मोड़ा और उसकी चूत दिखाई..
वो बड़ी छोटी और चिकनी थी, उसकी चूत के होंठ गुलाबी थे और फिर डाकुओं ने उसे उल्टा कर उसके गोल गोल और गोरे गोरे चुत्तड़ राजा को दिखाए..
यह देख, राजा भी उतेज़ित हो गया और उसने अपना लंड बाहर निकाल लिया।
अब कामिनी बिलकुल नग्न हो चुकी थी और तीनों डाकू और गुप्तचर उसके बदन के हर अंग को छू रहे थे और राजकुमारी बस चिल्ला रही थी, अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए।
उसका चिल्लाना, राजा को और उत्तेजित कर रहा था और राजा अपने लंड को ज़ोर ज़ोर से हिलाने लगा।
फिर, एक डाकू ने राजकुमारी की सुडोल चुत्तडों को चूमना शुरू कर दिया और एक उसकी चूत चूसने लगा तो बाकी उसकी चूचों को दबाने और चूचियाँ चूसने लगे।
राजकुमारी भी चिल्ला चिल्ला के हार चुकी थी और उसे पता चल गया था की उसे इधर, कोई बचाने नहीं आएगा।
राजकुमारी की चूत में, जब भी डाकू अपनी जीभ डालता तो वो पूरी कांप उठती और उसके मुंह से – उन्ह म्ह आ न्ह आ आ आ ह ह या न्ह इ स्स म्ह्ह्ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह… !! की सिसकारियाँ निकल पड़ती।
इधर, दूसरा डाकू उसकी गाण्ड को अब अपनी उंगली से टटोलने लगा और गाण्ड पर जैसे उसकी उंगली टकराई तो राजकुमारी एक दम सरसारा उठी और अपनी गाण्ड आगे कर डाकू की उंगली से दूर की तो उसकी चूत में दूसरे डाकू की उंगली थोड़े अंदर तक चली गई और उसकी कुँवारी चूत को जब उंगली का स्पर्श पता चला तो उसने अपनी चूत पीछे खींची तो फिर उसकी गाण्ड में पीछे खड़े डाकू की उंगली हल्की घुस गई और फिर राजकुमारी को गाण्ड में उंगली महसूस हुई तो फिर उसने अपनी गाण्ड आगे कर दी और फिर उसकी चूत में आगे खड़े डाकू की उंगली घुस गई..
यह देख, सब ज़ोर ज़ोर से हंस पड़े.. मगर, राजकुमारी की आँखों से तो आँसू टपक रहे थे और वो उन लोगों से बोली – कृपया कर, हमारे साथ यह सब ना करें… !! हमारे पिताजी, आपको मुंह माँगा धन देंगे… !!
तब उनमें से, एक डाकू बोला – हमने धन तो बहुत कमाया है.. मगर, ऐसा बदन कहाँ मिलेगा… !! और फिर उस डाकू ने राजकुमारी की चूचियाँ चूसना शुरू कर दिया..
अब राजकुमारी समझ गई की आज उसकी इज़्ज़त नहीं बचेगी, इन डाकुओं से।
तभी राजा झड़ गया और फिर उसने गुप्तचर को इशारा कर बुलाया।
बेचारे का मन नहीं था की राजकुमारी की चूचियाँ छोड़े.. मगर, राजा का आदेश था तो छोड़ राजा के पास आया और बोला – कहिए महाराज… !! अब क्या आज्ञा है… !!
राजा बोला – अब आप पता करने जाइए की क्या, कोई संदेश आया करमपुर से… !! ??
गुप्तचर, तुरंत गुफा से निकल पता करने गया की कोई संदेश आया की नहीं और कुछ ही देर में, सूचना लेकर आया की करमपुर के राजा ने विक्रम नगर से भी मदद माँगी है..
यह सुन, राजा ने खुशी जताई और बोला की आप इन डाकुओं को यही छोड़ हमारे साथ आएँ… !!
फिर राजा ने गुप्तचर को बताया की अगर, उन्हें अपनी योजना को पूरा करना है तो इन डाकुओं को मारना होगा… !!
गुप्तचर ने बोला, क्यूँ महाराज?
तो वो बोले की हमें राजकुमारी की नज़र में नायक बनना है… हम इन तीनों को मार, राजकुमारी को अकेले बचा लाएँगा और उन्हें करमपुर के राजा के हाथ सोप देंगे…
वहाँ डाकू, अब पागल हो गये थे और जब उन्होंने गुप्तचर और राजा को बाहर जाता देखा तो सोचा की अगर अब वो राजकुमारी को चोद भी दें तो कौन उन्हें रोक लेगा..
यह सोच, वो सब भी निवस्त्र होकर, अपने तने हुए लण्ड राजकुमारी की और लेकर बड़े.
राजकुमारी, उनके बड़े बड़े लण्ड को देख डर गई की कहाँ उनकी कुँवारी चूत इनमें से एक लण्ड भी बर्दास्त नहीं कर सकती और कहाँ उसे इन तीनों से चुदवाना पड़ेगा और राजकुमारी उन तीनों से दया माँगने लगी की उसे छोड़ दें और ना चोदे.. मगर, अब कहाँ किसी की सुनने वाले थे और एक डाकू ने राजकुमारी की रस्सी, थोड़ी ढीली कर बोला – अगर, प्यार से चुदना चाहती है और चाहती है की ज़यादा दर्द ना हो तो हमारे लण्ड बारी बारी से चूस…
वो बेचारी, अब कुछ नहीं कर सकती थी और दर्द से बचने के लिए उसने अपना मुंह खोला और पहले डाकू के लण्ड को चूसने के लिए बड़ाया.. तभी, अचानक राजा विक्रम सिंह
राजकुमारी ने जब राजा को आता देखा तो वो बहुत खुश हो गई और चिल्लाने लगी – महाराज, हमें बचाएँ… महाराज हमें बचाएँ…
और डाकू कुछ समझ पाते, इससे पहले राजा और गुप्तचर ने उनके पेट में तलवारे घुसेड दी, जिसमें से दो डाकू तो तुरंत मर गये.. मगर, एक ने राजा की और इशारा कार राजकुमारी से अंतिम शब्द कहे – धोका…
मगर, राजकुमारी को उस समय कुछ समझ ना आया और वो बहुत खुश थी की उसकी इज़्ज़त बच गई..
फिर, उसे समझ में आया की वो राजा और गुप्तचर के सामने नंगी खड़ी है तो वो अपने पैरों को हल्का सा उठा कर अपनी चूत छुपाने लगी, तभी राजा ने इशारा कार गुप्तचर को बाहर भेज दिया और राजकुमारी के पास आकर बोला – घबराए नहीं, राजकुमारी… अब आप सुरक्षित हैं… और फिर राजकुमारी की रस्सी खोल, उन्हें आज़ाद किया..
राजकुमारी, तुरंत राजा के पैरों में गिर गईं और बोली – महाराज, हमें क्षमा करें… हमने आपको विवाह को ना बोला, फिर भी आप हमें बचाने आए…
राजा के मुंह पर सियार सी मुस्कुराहट आ गई और फिर उसने राजकुमारी को उठाया और बोला – नहीं, यह हमारा फर्ज़ था… आपने को जो अच्छा लगा, वो आपने समय किया था… इसमें, आपकी कोई ग़लती नहीं है… और फिर राजा ने राजकुमारी के घाघरा चोली, उठा कर राजकुमारी को दिए और बोला की आप वस्त्र पहने और बाहर आ जाएँ… फिर, हम आपको आपके महल सुरक्षित पहुँचा देंगे…
राजकुमारी ने अपने घाघरा चोली लिए और राजा गुफा के बाहर चला गया और फिर कुछ देर में राजकुमारी कपड़े पहने बाहर आ गई।
राजा ने उसे अपने घोड़े पर बिठाया और करमपुर चल दिया और जब उसने करमपुर के महाराज को उनकी बेटी लौटाई तो वो खुशी से पागल हो गये और राजा के पैर पर गिर गये.. मगर, राजा ने उन्हें उठाया और बोला – महाराज, आप यह क्या कर रहे हैं… हम तो पड़ोसी राजा है… और यह तो हमारा कर्तव्य था की आपकी मुसीबत में, आपकी मदद करें…
करमपुर का राजा बोला – नहीं, यह तो आपकी माहानता है जो इतना बड़ा काम कर के भी आप इसे अपना कर्तव्या बता रहे हैं… नहीं तो हम तो राजकुमारी के वापस मिलने की उम्मीद ही त्याग चुके थे…
अब राजा ने करमपुर के राजा से कहा – नहीं, महाराज आप बेहद खुश हैं, इसलिए बड़ा चड़ा कर हमारी तारीफ़ कर रहे हैं… अच्छा महाराज, हमें क्षमा करें, हमें हमारे राज्य वापस जाना होगा…
इतने में कामिनी बोल पड़ी – अरे, आप इतनी जल्दी कैसे जा सकते हैं… आपने तो हमारी जान बचाई है… आज हमें अपने सत्कार का मौका दे..
राजकुमारी की बात पर करमपुर के महाराज ने भी राजा से निवेदन किया.. मगर, उसने रुकने से मना कर दिया और करमपुर के राजा से विदाई लेकर, वापस अपने राज्य के लिए रवाना हो गया
राजा खुशि खुशि अपने राज्य में वापस आने के लिए रवाना हो गया। राजा ने सोचा कि अब शीघ्र ही अपने माता पिता को राजकुमारी के बारे में बता देगा कि वह पुनः उससे शादी को तैयार हो गयी है। राजा अपने घोड़े पे सवार थे। काफी सफर के बाद राजा थक गए तो उन्होंने पास ही किसी राज्य में रुकने का निश्चय किया।
राजा ने एक तालाब के पास आकर पानी पिया ओर अपने घोड़े को भी पिलाया। जब राजा वहाँ आराम कर रहे थे तभी उन्हें किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी। राजा तुरंत खड़े हुए और आस पास देखना शुरू किया कि कौन रो रहा है । थोड़ी ही दूर पर राजा को एक 20-21 साल का एक लड़का रोता हुआ दिखाई दिया। राजा उसके पास जाने ही वाले थे कि उस लड़के ने पानी मे छलांग लगा दी और डूबने लगा। राजा ने भी तुरंत पानी मे छलांग लगाई और उस लड़के को बचाकर किनारे पे ले आये। कुछ देर बाद जब लड़के को होश आया तो उसने चौंक कर राजा की ओर देखा और बोला - " कौन हो तुम ओर क्यों मेरी जान बचाई, मुझे मार जाने दिया होता" इतना कहकर वो लड़का जोर जोर से रोने लगा। राजा ने किसी तरह उसे चुप कराया और उससे पूछा -" कौन हो तुम लड़के और क्यों अपनी जान देना चाहते हो"
लड़का - तुम्हे इससे क्या तुम अपने काम से काम रखो
राजा - देखो अगर तुम मुझे बता दो तो सायद मै तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं
लड़का - बात तो इसे कर रहे हो जैसे कहीं के राजा हो , जाओ जाओ अपना रास्ता नापो
राजा - ( राजा ने सोचा की इसे अपनी असलियत बताई तो सायद ये मुझे दोस्त न समझकर डरने लग जाये इसलिए उन्होंने इसे अपनी असलियत बताना मुनासिब नही समझा ) देखो मैं तो एक मुसाफिर
हूँ . दूर देश विक्रम नगर जा रहा हूँ ...वहाँ कोई छोटा मोटा काम करके गुजारा करूंगा
लड़का - क्यों तुम्हारे घर का क्या हुआ
राजा - मैं जहा रहता था उस राज्य में बाढ़ ने तबाही मचा दी थी ......मेरे परिवार को बाढ़ ने मुझसे छीन लिया ...इसलिए उस राज्य को मैंने छोड़ दिया
लड़का - माफ़ करना ...तुम तो मुझसे भी ज्यादा दुखी हो
राजा - कोई बात नही तुम ये बताओ की खुद्खूसी क्यूँ करना चाहते थे
लड़का - सुनकर क्या करोगे
राजा - फिर भी सायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं
लड़का - तुम तो खुद इतनी मुसीबत में हो मेरी क्या मदद करोगे
राजा - फिर भी दोस्त समझकर अपनी तकलीफ मुझे बता दो
लड़का - तो सुनो मेरा नाम मोहन है ! इस राज्य का नाम विशाल नगर है ! यहाँ के राजा विशाल सिंह के सिर्फ एक बेटी थी
बेटी क्या तूफ़ान थी ........उसका गुस्सा पुरे राज्य में मशहूर है ....एक बार उसने किसी चीज़ की जिद कर ली फिर तो चाहे कुछ भी हो जाये उसे वो चाहिए ही चाहिए ।
अपनी माँ के मरने के बाद तो उसका गुस्सा और भी ज्यादा बढ़ता गया । राजा विशाल सिंह भी उसकी जिद के सामने कुछ नही कर सकते ।
राजा - हम्म्म्म । लेकिन तुम्हारा इससे क्या लेना देना ।
मोहन - सुनो तो सही
राजा - माफ़ करना । तुम आगे बोलो ।
मोहन - मैं अपने परिवार में इकलोता मर्द हूँ । मेरे परिवार में मेरी माँ और एक बड़ी बहन है । हम बहुत गरीब लोग है । इसलिए मैंने सोचा की मैं थोड़ी बहुत लड़ाई सीखकर राजा की सेना में शामिल
हो जाऊ ।
इसिलए मैंने बिना किसी ज्यादा तैयारी के सेना में किसी तरह शामिल हो गया । परन्तु मुझे क्या पता था की मेरी अपने परिवार को पलने के लिए किये गये इस काम की मुझे बहुत बडी
कीमत चुकानी पड़ेगी ।
राजा – क्यूँ एसा क्या हुआ ।
मोहन – हुआ यूँ दोस्त कि पता नही राजा की बेटी मीनाक्षी देवी को पता नही कहाँ से ये शौक लग गया कि वो अपने ही राज्य के सैनिको की वीरता परिक्षण करने के लिए उन्हें खतरनाक आदमखोरो के सामने डाल देती है । जो उनसे जीत जाये उसे इनाम देती है और जो हार जाये उसे उन्ही आदमखोरो के सामने खाने के लिए डाल देती है ।
और सबसे बुरी खबर ये है कि आज तक उन दरिंदो से कोई भी नही जीत पाया । न जाने कितने ही वीरो ने अपनी जान राजकुमारी की जिद की वजह से गवां दी । उनके परिवार वाले उनका अंतिम संस्कार भी नही कर सके ।
हद तो तब हो गयी जब राजकुमारी ने अपने ही सेना पति को उन आदमखोरो से लड़ने के लिए मजबूर कर दिया । और हमारे सेनापति भी उन दरिंदो को हरा न सके ।
राजा – हम्म्म्म । तुम्हारी राजकुमारी सच में बहुत निर्दयी है । परन्तु इन सब में तुम क्यूँ अपनी जान देने आ गये हो ।
मोहन – बात ये है कि इस बार उन दरिंदो से लड़ने के लिए जिन लोगो का चयन हुआ है उसमे मैं भी शामिल हूँ । और मैं इतनी भयानक मौत नही चाहता । इसलिए आसन तरीके से मरने आया था ।
परन्तु तुमने मुझे वो भी नही करने दिया ।
राजा – जरा समझदारी से कम लो मोहन । तुमने कभी सोचा है कि तुम्हारे बाद तुम्हारी माँ और बहन का क्या होता ।
मोहन – कम से कम उन्हें मेरा शव तो मिल ही जाता ।
राजा – निर्बलो और कायरों की तरह बात मत करो मोहन ।
मोहन – तो मैं क्या करूं । तुम तो जानते हो की मुझे तो बिलकुल भी लड़ना नही आता । और उन आदमखोरों ने तो उन वीर सैनिकों को भी मार डाला तो मेरी तो औकात ही क्या है ।
राजा – हम्म्म्म । मैं तुम्हारी समस्या समझ गया मोहन । पर मरना इस समस्या का हल नही है ।
मोहन – तो तुम ही बताओ मैं क्या करूं
राजा – अच्छा एक बात बताओ
मोहन – हा बोलो
राजा – जहाँ तक मुझे ज्ञान है राजा या राजकुमारी को अपने इतने सैनकों के नाम तो याद नही होते तो फिर तुम्हारा चयन किस आधार पर हुआ है ।
मोहन – अरे मुर्ख राजा और राजकुमारी तो दूर की बात है यहाँ तक की सेनापति और सिपहसलार को भी अपनी टुकड़ी के सैनिको के नाम याद नहीं होते ।
राजा – हाँ तो फिर तुम्हारा नाम का चयन कैसे हुआ
मोहन – सुनो । हम सैनिको के नाम और अन्य जानकारियां एक पुस्तिका में दर्ज है । राजकुमारी उसी पुस्तिका में से किन्ही भी लोगो को चयन कर लेती है । और इस बार मेरा चयन हुआ है ।
राजा – इसका मतलब ज्यादा लोगो को तुम्हारे नाम के अलावा तुम्हारे शक्ल के बारे में नही पता ।
मोहन – हाँ ये तो सच बात है
राजा – तो इसका मतलब है की हम तुम्हारे स्थान पर किसी और को मोहन बनाकर भेज सकते है
मोहन – तुम पागल हो गये हो । ये जानते हुए की एसा करने का अंजाम सिर्फ मौत है , कौन ये पागलपन करेगा ।
राजा – अगर मैं तुम्हारी जगह मोहन बनकर उन दरिंदो से लडूं तो
मोहन – तुम .......पर तुम एसा क्यूँ करना चाहते हो ।
राजा – देखो एक तो मेरा परिवार नहीं है ,,,और दूसरा मुझे थोडा बहुत लड़ना भी आता है । मेरे पिता ने सिखाया था ।
मोहन - पर मैं किसी निर्दोष की हत्या का इलज़ाम अपने उपर नही लेना चाहता ।
राजा – तुम वो सब छोड़ो और बस खुस होकर अपने घर जाओ और मुझे भी ले चलो । तुम्हरी माँ बहन तुम्हारे लिए परेशां हो रही होगी ।
मोहन – तुम ठीक कहते हो परन्तु एक बार फिर सोच लो
राजा – मैंने सोच लिया है तुम चलो
मोहन – मैं तुम्हारा अहसान ज़िन्दगी भर नही भूलूंगा
राजा – वो सब छोड़ो और अब घर की ओर चलो
मोहन – अरे मैं तुम्हारा नाम पूछना भूल ही गया
राजा - मेरा नाम अम्म्म ....मेरा नाम विक्रम है
(फिर मोहन और विक्रम सिंह मोहन के घर की तरफ चले जाते है )
जब डाकू ने राजा को यह सूचना दी तो राजा फूला ना समाया..
उसने तुरंत, कामिनी को देखने की इच्छा प्रकट की और इधर रूपाली ने योजना अनुसार, नगर में हल्ला मचा दिया की राजकुमारी का अपरहण हो गया है।
वहाँ करमपुर के महाराज को जब यह सूचना मिली तो वो स्तब्ध रह गये और राजकुमारी की मां, फुट फुट के रोने लगी।
करमपुर के महाराज ने, तुरंत अपने सैनिकों और गुप्तचरों को, कामिनी की तलाश में लगा दिया और साथ ही, गुप्तचरों से कहा की वो पड़ोसी राज्य के राजाओ को खबर दे दें और उनसे हमारी मदद के लिए प्राथना करें।
उधर, राजा विक्रम सिंह उस गुफा के पास पहुँचा, जहाँ डाकुओं ने कामिनी को रखा था।
वो जब अंदर गया, तब राजकुमारी को बँधा देख उसे बड़ी खुशी हुई.. मगर, राजकुमारी तब भी बेहोश थी..
फिर, राजा ने गुप्तचर को बुलाकर उसके काम के लिए शाबाशी दी और उसे 1000 स्वर्ण मुद्रा भेंट करीं.. जो उसके और उसके साथी डाकुओं के लिए, इनाम था..
अब उसने गुप्तचर से कहा की राजकुमारी, बिलकुल ठीक है ना… !!
तो गुप्तचर ने बताया – हाँ, महाराज… !! राजकुमारी, बिलकुल ठीक हैं… !! बस, बेहोश हैं… !! कुछ देर में, होश में आ जाएँगी… !!
उसने कहा की ठीक है, अब आप लोग राजकुमारी के सारे वस्त्र उतार कर, उन्हें नग्न कर दें और उनको चोदने के सिवा जो करना चाहें, वो आप उनके साथ कर सकते हैं… !!
यह सुन, गुप्तचर और डाकू चौंक गये..
तब गुप्तचर ने कहा – महाराज, आप यह क्या कह रहे हैं… !! यह तो, हमारी होने वाली महारानी हैं और हम कैसे इन्हें नग्न कर सकते हैं… !!
तब राजा ने, नाराज़ होते हुए कहा – गुप्तचर, आप से जितना कहा है, उतना करें… !! बस, ध्यान रहे की आप में से कोई उन्हें चोदेगा नहीं, समझे की नहीं… !!
बिचारा गुप्तचर क्या करता, उसने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा – जैसी आपकी आज्ञा, महाराज… !!
डाकू तो बहुत खुश हो गये की उन्हें अब एक कुँवारी लड़की का बदन छूने को मिलेगा और फिर राजा एक अंधेरे कोने में जाकर, बैठ गया की कोई उसे देख ना पाए और डाकुओं ने राजकुमारी के वस्त्र खोलने शुरू कर दिए।
शरीर पर अनजान स्पर्श पाकर, राजकुमारी भी होश में आने लगी और उसे महसूस हुआ की कोई उसकी चोली को खोल रहा है.. ..
इस स्पर्श को पाकर, उसने अपने हाथ से उसके हाथ हटाने का प्रयास किया.. मगर, उसके हाथ बँधे होने के कारण, वो हाथ हिला ना पाई।
राजकुमारी ने जैसे ही सामने देखा तो चार नकाब पहने, आदमी उसके बदन से वस्त्र खोलने में लगे थे और उसे तब पता चला की उसका अपरहण हो गया है और वो चिल्ला उठी – बचाओ… !! बचाओ… !!
मगर, उस अंधेरी गुफा मे कौन उसकी चीख सुनता और इतने में पहले डाकू ने उसकी चोली खोल, उसके चूचे निर्वस्त्र कर दिए।
उसके गोरे गोरे, गोल गोल और बड़े बड़े चूचे देख, सब स्तब्ध रह गये।
फिर दो डाकू, उसकी दोनों चुचियों को पकड़ उन्हें दबाने लगे और उसके घाघरे के नाडे को खोलने लगे और जैसे ही नाडा खुला घागरा सरकता हुआ, राजकुमारी के पंजों तक उतर गया और उसकी चूत भी नंगी हो चली और डाकुओं ने उसे राजा की और मोड़ा और उसकी चूत दिखाई..
वो बड़ी छोटी और चिकनी थी, उसकी चूत के होंठ गुलाबी थे और फिर डाकुओं ने उसे उल्टा कर उसके गोल गोल और गोरे गोरे चुत्तड़ राजा को दिखाए..
यह देख, राजा भी उतेज़ित हो गया और उसने अपना लंड बाहर निकाल लिया।
अब कामिनी बिलकुल नग्न हो चुकी थी और तीनों डाकू और गुप्तचर उसके बदन के हर अंग को छू रहे थे और राजकुमारी बस चिल्ला रही थी, अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए।
उसका चिल्लाना, राजा को और उत्तेजित कर रहा था और राजा अपने लंड को ज़ोर ज़ोर से हिलाने लगा।
फिर, एक डाकू ने राजकुमारी की सुडोल चुत्तडों को चूमना शुरू कर दिया और एक उसकी चूत चूसने लगा तो बाकी उसकी चूचों को दबाने और चूचियाँ चूसने लगे।
राजकुमारी भी चिल्ला चिल्ला के हार चुकी थी और उसे पता चल गया था की उसे इधर, कोई बचाने नहीं आएगा।
राजकुमारी की चूत में, जब भी डाकू अपनी जीभ डालता तो वो पूरी कांप उठती और उसके मुंह से – उन्ह म्ह आ न्ह आ आ आ ह ह या न्ह इ स्स म्ह्ह्ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह… !! की सिसकारियाँ निकल पड़ती।
इधर, दूसरा डाकू उसकी गाण्ड को अब अपनी उंगली से टटोलने लगा और गाण्ड पर जैसे उसकी उंगली टकराई तो राजकुमारी एक दम सरसारा उठी और अपनी गाण्ड आगे कर डाकू की उंगली से दूर की तो उसकी चूत में दूसरे डाकू की उंगली थोड़े अंदर तक चली गई और उसकी कुँवारी चूत को जब उंगली का स्पर्श पता चला तो उसने अपनी चूत पीछे खींची तो फिर उसकी गाण्ड में पीछे खड़े डाकू की उंगली हल्की घुस गई और फिर राजकुमारी को गाण्ड में उंगली महसूस हुई तो फिर उसने अपनी गाण्ड आगे कर दी और फिर उसकी चूत में आगे खड़े डाकू की उंगली घुस गई..
यह देख, सब ज़ोर ज़ोर से हंस पड़े.. मगर, राजकुमारी की आँखों से तो आँसू टपक रहे थे और वो उन लोगों से बोली – कृपया कर, हमारे साथ यह सब ना करें… !! हमारे पिताजी, आपको मुंह माँगा धन देंगे… !!
तब उनमें से, एक डाकू बोला – हमने धन तो बहुत कमाया है.. मगर, ऐसा बदन कहाँ मिलेगा… !! और फिर उस डाकू ने राजकुमारी की चूचियाँ चूसना शुरू कर दिया..
अब राजकुमारी समझ गई की आज उसकी इज़्ज़त नहीं बचेगी, इन डाकुओं से।
तभी राजा झड़ गया और फिर उसने गुप्तचर को इशारा कर बुलाया।
बेचारे का मन नहीं था की राजकुमारी की चूचियाँ छोड़े.. मगर, राजा का आदेश था तो छोड़ राजा के पास आया और बोला – कहिए महाराज… !! अब क्या आज्ञा है… !!
राजा बोला – अब आप पता करने जाइए की क्या, कोई संदेश आया करमपुर से… !! ??
गुप्तचर, तुरंत गुफा से निकल पता करने गया की कोई संदेश आया की नहीं और कुछ ही देर में, सूचना लेकर आया की करमपुर के राजा ने विक्रम नगर से भी मदद माँगी है..
यह सुन, राजा ने खुशी जताई और बोला की आप इन डाकुओं को यही छोड़ हमारे साथ आएँ… !!
फिर राजा ने गुप्तचर को बताया की अगर, उन्हें अपनी योजना को पूरा करना है तो इन डाकुओं को मारना होगा… !!
गुप्तचर ने बोला, क्यूँ महाराज?
तो वो बोले की हमें राजकुमारी की नज़र में नायक बनना है… हम इन तीनों को मार, राजकुमारी को अकेले बचा लाएँगा और उन्हें करमपुर के राजा के हाथ सोप देंगे…
वहाँ डाकू, अब पागल हो गये थे और जब उन्होंने गुप्तचर और राजा को बाहर जाता देखा तो सोचा की अगर अब वो राजकुमारी को चोद भी दें तो कौन उन्हें रोक लेगा..
यह सोच, वो सब भी निवस्त्र होकर, अपने तने हुए लण्ड राजकुमारी की और लेकर बड़े.
राजकुमारी, उनके बड़े बड़े लण्ड को देख डर गई की कहाँ उनकी कुँवारी चूत इनमें से एक लण्ड भी बर्दास्त नहीं कर सकती और कहाँ उसे इन तीनों से चुदवाना पड़ेगा और राजकुमारी उन तीनों से दया माँगने लगी की उसे छोड़ दें और ना चोदे.. मगर, अब कहाँ किसी की सुनने वाले थे और एक डाकू ने राजकुमारी की रस्सी, थोड़ी ढीली कर बोला – अगर, प्यार से चुदना चाहती है और चाहती है की ज़यादा दर्द ना हो तो हमारे लण्ड बारी बारी से चूस…
वो बेचारी, अब कुछ नहीं कर सकती थी और दर्द से बचने के लिए उसने अपना मुंह खोला और पहले डाकू के लण्ड को चूसने के लिए बड़ाया.. तभी, अचानक राजा विक्रम सिंह
राजकुमारी ने जब राजा को आता देखा तो वो बहुत खुश हो गई और चिल्लाने लगी – महाराज, हमें बचाएँ… महाराज हमें बचाएँ…
और डाकू कुछ समझ पाते, इससे पहले राजा और गुप्तचर ने उनके पेट में तलवारे घुसेड दी, जिसमें से दो डाकू तो तुरंत मर गये.. मगर, एक ने राजा की और इशारा कार राजकुमारी से अंतिम शब्द कहे – धोका…
मगर, राजकुमारी को उस समय कुछ समझ ना आया और वो बहुत खुश थी की उसकी इज़्ज़त बच गई..
फिर, उसे समझ में आया की वो राजा और गुप्तचर के सामने नंगी खड़ी है तो वो अपने पैरों को हल्का सा उठा कर अपनी चूत छुपाने लगी, तभी राजा ने इशारा कार गुप्तचर को बाहर भेज दिया और राजकुमारी के पास आकर बोला – घबराए नहीं, राजकुमारी… अब आप सुरक्षित हैं… और फिर राजकुमारी की रस्सी खोल, उन्हें आज़ाद किया..
राजकुमारी, तुरंत राजा के पैरों में गिर गईं और बोली – महाराज, हमें क्षमा करें… हमने आपको विवाह को ना बोला, फिर भी आप हमें बचाने आए…
राजा के मुंह पर सियार सी मुस्कुराहट आ गई और फिर उसने राजकुमारी को उठाया और बोला – नहीं, यह हमारा फर्ज़ था… आपने को जो अच्छा लगा, वो आपने समय किया था… इसमें, आपकी कोई ग़लती नहीं है… और फिर राजा ने राजकुमारी के घाघरा चोली, उठा कर राजकुमारी को दिए और बोला की आप वस्त्र पहने और बाहर आ जाएँ… फिर, हम आपको आपके महल सुरक्षित पहुँचा देंगे…
राजकुमारी ने अपने घाघरा चोली लिए और राजा गुफा के बाहर चला गया और फिर कुछ देर में राजकुमारी कपड़े पहने बाहर आ गई।
राजा ने उसे अपने घोड़े पर बिठाया और करमपुर चल दिया और जब उसने करमपुर के महाराज को उनकी बेटी लौटाई तो वो खुशी से पागल हो गये और राजा के पैर पर गिर गये.. मगर, राजा ने उन्हें उठाया और बोला – महाराज, आप यह क्या कर रहे हैं… हम तो पड़ोसी राजा है… और यह तो हमारा कर्तव्य था की आपकी मुसीबत में, आपकी मदद करें…
करमपुर का राजा बोला – नहीं, यह तो आपकी माहानता है जो इतना बड़ा काम कर के भी आप इसे अपना कर्तव्या बता रहे हैं… नहीं तो हम तो राजकुमारी के वापस मिलने की उम्मीद ही त्याग चुके थे…
अब राजा ने करमपुर के राजा से कहा – नहीं, महाराज आप बेहद खुश हैं, इसलिए बड़ा चड़ा कर हमारी तारीफ़ कर रहे हैं… अच्छा महाराज, हमें क्षमा करें, हमें हमारे राज्य वापस जाना होगा…
इतने में कामिनी बोल पड़ी – अरे, आप इतनी जल्दी कैसे जा सकते हैं… आपने तो हमारी जान बचाई है… आज हमें अपने सत्कार का मौका दे..
राजकुमारी की बात पर करमपुर के महाराज ने भी राजा से निवेदन किया.. मगर, उसने रुकने से मना कर दिया और करमपुर के राजा से विदाई लेकर, वापस अपने राज्य के लिए रवाना हो गया
राजा खुशि खुशि अपने राज्य में वापस आने के लिए रवाना हो गया। राजा ने सोचा कि अब शीघ्र ही अपने माता पिता को राजकुमारी के बारे में बता देगा कि वह पुनः उससे शादी को तैयार हो गयी है। राजा अपने घोड़े पे सवार थे। काफी सफर के बाद राजा थक गए तो उन्होंने पास ही किसी राज्य में रुकने का निश्चय किया।
राजा ने एक तालाब के पास आकर पानी पिया ओर अपने घोड़े को भी पिलाया। जब राजा वहाँ आराम कर रहे थे तभी उन्हें किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी। राजा तुरंत खड़े हुए और आस पास देखना शुरू किया कि कौन रो रहा है । थोड़ी ही दूर पर राजा को एक 20-21 साल का एक लड़का रोता हुआ दिखाई दिया। राजा उसके पास जाने ही वाले थे कि उस लड़के ने पानी मे छलांग लगा दी और डूबने लगा। राजा ने भी तुरंत पानी मे छलांग लगाई और उस लड़के को बचाकर किनारे पे ले आये। कुछ देर बाद जब लड़के को होश आया तो उसने चौंक कर राजा की ओर देखा और बोला - " कौन हो तुम ओर क्यों मेरी जान बचाई, मुझे मार जाने दिया होता" इतना कहकर वो लड़का जोर जोर से रोने लगा। राजा ने किसी तरह उसे चुप कराया और उससे पूछा -" कौन हो तुम लड़के और क्यों अपनी जान देना चाहते हो"
लड़का - तुम्हे इससे क्या तुम अपने काम से काम रखो
राजा - देखो अगर तुम मुझे बता दो तो सायद मै तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं
लड़का - बात तो इसे कर रहे हो जैसे कहीं के राजा हो , जाओ जाओ अपना रास्ता नापो
राजा - ( राजा ने सोचा की इसे अपनी असलियत बताई तो सायद ये मुझे दोस्त न समझकर डरने लग जाये इसलिए उन्होंने इसे अपनी असलियत बताना मुनासिब नही समझा ) देखो मैं तो एक मुसाफिर
हूँ . दूर देश विक्रम नगर जा रहा हूँ ...वहाँ कोई छोटा मोटा काम करके गुजारा करूंगा
लड़का - क्यों तुम्हारे घर का क्या हुआ
राजा - मैं जहा रहता था उस राज्य में बाढ़ ने तबाही मचा दी थी ......मेरे परिवार को बाढ़ ने मुझसे छीन लिया ...इसलिए उस राज्य को मैंने छोड़ दिया
लड़का - माफ़ करना ...तुम तो मुझसे भी ज्यादा दुखी हो
राजा - कोई बात नही तुम ये बताओ की खुद्खूसी क्यूँ करना चाहते थे
लड़का - सुनकर क्या करोगे
राजा - फिर भी सायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं
लड़का - तुम तो खुद इतनी मुसीबत में हो मेरी क्या मदद करोगे
राजा - फिर भी दोस्त समझकर अपनी तकलीफ मुझे बता दो
लड़का - तो सुनो मेरा नाम मोहन है ! इस राज्य का नाम विशाल नगर है ! यहाँ के राजा विशाल सिंह के सिर्फ एक बेटी थी
बेटी क्या तूफ़ान थी ........उसका गुस्सा पुरे राज्य में मशहूर है ....एक बार उसने किसी चीज़ की जिद कर ली फिर तो चाहे कुछ भी हो जाये उसे वो चाहिए ही चाहिए ।
अपनी माँ के मरने के बाद तो उसका गुस्सा और भी ज्यादा बढ़ता गया । राजा विशाल सिंह भी उसकी जिद के सामने कुछ नही कर सकते ।
राजा - हम्म्म्म । लेकिन तुम्हारा इससे क्या लेना देना ।
मोहन - सुनो तो सही
राजा - माफ़ करना । तुम आगे बोलो ।
मोहन - मैं अपने परिवार में इकलोता मर्द हूँ । मेरे परिवार में मेरी माँ और एक बड़ी बहन है । हम बहुत गरीब लोग है । इसलिए मैंने सोचा की मैं थोड़ी बहुत लड़ाई सीखकर राजा की सेना में शामिल
हो जाऊ ।
इसिलए मैंने बिना किसी ज्यादा तैयारी के सेना में किसी तरह शामिल हो गया । परन्तु मुझे क्या पता था की मेरी अपने परिवार को पलने के लिए किये गये इस काम की मुझे बहुत बडी
कीमत चुकानी पड़ेगी ।
राजा – क्यूँ एसा क्या हुआ ।
मोहन – हुआ यूँ दोस्त कि पता नही राजा की बेटी मीनाक्षी देवी को पता नही कहाँ से ये शौक लग गया कि वो अपने ही राज्य के सैनिको की वीरता परिक्षण करने के लिए उन्हें खतरनाक आदमखोरो के सामने डाल देती है । जो उनसे जीत जाये उसे इनाम देती है और जो हार जाये उसे उन्ही आदमखोरो के सामने खाने के लिए डाल देती है ।
और सबसे बुरी खबर ये है कि आज तक उन दरिंदो से कोई भी नही जीत पाया । न जाने कितने ही वीरो ने अपनी जान राजकुमारी की जिद की वजह से गवां दी । उनके परिवार वाले उनका अंतिम संस्कार भी नही कर सके ।
हद तो तब हो गयी जब राजकुमारी ने अपने ही सेना पति को उन आदमखोरो से लड़ने के लिए मजबूर कर दिया । और हमारे सेनापति भी उन दरिंदो को हरा न सके ।
राजा – हम्म्म्म । तुम्हारी राजकुमारी सच में बहुत निर्दयी है । परन्तु इन सब में तुम क्यूँ अपनी जान देने आ गये हो ।
मोहन – बात ये है कि इस बार उन दरिंदो से लड़ने के लिए जिन लोगो का चयन हुआ है उसमे मैं भी शामिल हूँ । और मैं इतनी भयानक मौत नही चाहता । इसलिए आसन तरीके से मरने आया था ।
परन्तु तुमने मुझे वो भी नही करने दिया ।
राजा – जरा समझदारी से कम लो मोहन । तुमने कभी सोचा है कि तुम्हारे बाद तुम्हारी माँ और बहन का क्या होता ।
मोहन – कम से कम उन्हें मेरा शव तो मिल ही जाता ।
राजा – निर्बलो और कायरों की तरह बात मत करो मोहन ।
मोहन – तो मैं क्या करूं । तुम तो जानते हो की मुझे तो बिलकुल भी लड़ना नही आता । और उन आदमखोरों ने तो उन वीर सैनिकों को भी मार डाला तो मेरी तो औकात ही क्या है ।
राजा – हम्म्म्म । मैं तुम्हारी समस्या समझ गया मोहन । पर मरना इस समस्या का हल नही है ।
मोहन – तो तुम ही बताओ मैं क्या करूं
राजा – अच्छा एक बात बताओ
मोहन – हा बोलो
राजा – जहाँ तक मुझे ज्ञान है राजा या राजकुमारी को अपने इतने सैनकों के नाम तो याद नही होते तो फिर तुम्हारा चयन किस आधार पर हुआ है ।
मोहन – अरे मुर्ख राजा और राजकुमारी तो दूर की बात है यहाँ तक की सेनापति और सिपहसलार को भी अपनी टुकड़ी के सैनिको के नाम याद नहीं होते ।
राजा – हाँ तो फिर तुम्हारा नाम का चयन कैसे हुआ
मोहन – सुनो । हम सैनिको के नाम और अन्य जानकारियां एक पुस्तिका में दर्ज है । राजकुमारी उसी पुस्तिका में से किन्ही भी लोगो को चयन कर लेती है । और इस बार मेरा चयन हुआ है ।
राजा – इसका मतलब ज्यादा लोगो को तुम्हारे नाम के अलावा तुम्हारे शक्ल के बारे में नही पता ।
मोहन – हाँ ये तो सच बात है
राजा – तो इसका मतलब है की हम तुम्हारे स्थान पर किसी और को मोहन बनाकर भेज सकते है
मोहन – तुम पागल हो गये हो । ये जानते हुए की एसा करने का अंजाम सिर्फ मौत है , कौन ये पागलपन करेगा ।
राजा – अगर मैं तुम्हारी जगह मोहन बनकर उन दरिंदो से लडूं तो
मोहन – तुम .......पर तुम एसा क्यूँ करना चाहते हो ।
राजा – देखो एक तो मेरा परिवार नहीं है ,,,और दूसरा मुझे थोडा बहुत लड़ना भी आता है । मेरे पिता ने सिखाया था ।
मोहन - पर मैं किसी निर्दोष की हत्या का इलज़ाम अपने उपर नही लेना चाहता ।
राजा – तुम वो सब छोड़ो और बस खुस होकर अपने घर जाओ और मुझे भी ले चलो । तुम्हरी माँ बहन तुम्हारे लिए परेशां हो रही होगी ।
मोहन – तुम ठीक कहते हो परन्तु एक बार फिर सोच लो
राजा – मैंने सोच लिया है तुम चलो
मोहन – मैं तुम्हारा अहसान ज़िन्दगी भर नही भूलूंगा
राजा – वो सब छोड़ो और अब घर की ओर चलो
मोहन – अरे मैं तुम्हारा नाम पूछना भूल ही गया
राजा - मेरा नाम अम्म्म ....मेरा नाम विक्रम है
(फिर मोहन और विक्रम सिंह मोहन के घर की तरफ चले जाते है )
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