राजा की सेविका complete

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Dolly sharma
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Re: राजा की सेविका complete

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अब विक्रम सिंह ने निशा को खड़ा कर लिया और उसकी एक टांग को अपने कंधे पर ले लिया।
जिससे उसकी चूत बिल्कुल खुल सी गई । निशा को गिरने से संभालने के लिए उसके दूसरी तरफ उषा जाकर खड़ी हो गयी और निशा की चुचियों को अपने मुंह में ले कर चूसने लगी ।
इधर विक्रम सिंह ने भी अपना लंड निशा की चूत में सेट कर दोबारा एक जोरदार प्रहार किया। इस तरह चुदाई करने से निशा को और भी ज्यादा मजा आने लगा। विक्रमसिंह तेज गति से धक्के मारते हुए निशा को चोद रहा था। उसकी चूत में विक्रम सिंह के लंड का घर्षण दोनों को बहुत मजा दे रहा था। उषा बुरी तरीके से निशा की चुचियों को चूस रही थी ।वह बीच-बीच में उसकी घुंडीयों को मसल देती ।
करीब 10 मिनट तक इसी पोज़ में चुदाई करते हुए निशा दुबारा जोरदार तरीके से झड़ गई ।और उसका पानी उसकी जांघों पर रिसता हुआ घास पर गिरने लगा।
इस तरह झड़ने से निशा अपने आप को संभाल नहीं पाई और नीचे की तरफ गिरने लगी। विक्रम सिंह का लंड अभी भी निशा की चूत में था। निशा को गिरने से बचाने के लिए विक्रम सिंह ने निशा की कमर को जोर से पकड़ लिया परंतु वह भी अपने आप को संभाल ना सके और निशा के साथ ही घास पर गिर पड़े । उनके इस तरह गिरने से विक्रम सिंह का लन्ड निशा की चूत में पूरी जड़ तक घुस गया और उसकी बच्चेदानी से टकराने लगा ।निशा जोर जोर से आहें भरने लगी। विक्रम सिंह ने भी उसको चोदना जारी रखा और तब तक चोदता रहा जब तक कि निशा चौथी बार झड़ कर पूरी तरीके से शांत ना हुई हो।
अब बारी उषा की थी। विक्रम सिंह ने अपना लंड निशा की चूत से बाहर निकाला और उषा को अपने हाथों से पकड़कर घोड़ी बना लिया। फिर उन्होंने उषा की चूत के मुहाने पर अपने लंड को सेट किया और तुरंत धकाधक उसको चोदने लगे। निशा अभी भी बुरी तरीके से हांफ रही थी ।थोड़ी देर में उसने अपने आप को संभाला और देखा कि विक्रम सिंह उषा को घोड़ी बनाकर चोद रहा है ।
निशा ने तुरंत लपककर उषा की चुचियों को अपने हाथो में भर लिया। उषा भी तकरीबन 2 बार झड़ चुकी थी।

कुछ देर उषा की चुदाई करने के बाद विक्रम सिंह को लगा कि वह झड़ने वाला है ।उसने तुरंत अपना लंड उषा की चूत से बाहर निकाला और खड़ा होकर जोर-जोर से मुठ मारने लगा। उषा और निशा समझ गई कि विक्रम सिंह का पानी निकलने वाला है ।वो दोनों विक्रम सिंह के लंड की ओर मुंह करके बैठ गई ।थोड़ी ही देर में विक्रम सिंह का लंड माल उगलने लगा। जो उन दोनों बहनों के मुंह और चुचियों पर जा लगा। दोनों बहने विक्रम सिंह के माल को चटकारे ले कर खाने लगी। अब वो तीनो लोग थक चुके थे । तीनो वही घास पर लेट गए ।
लेटे-लेटे निशा विक्रमसिंह से बोली-- आपने हम दोनों बहनों को मिलाकर बहुत बड़ा एहसान किया है ।हम दोनों बहने पास होते हुए भी इतनी दूर थी ।पर आज के बाद हम हमेशा खुश रहेंगे यह सब आप ही की वजह से हुआ है। विक्रमसिंह -- मैंने तुम्हारे लिए कुछ नहीं किया किया। किया तो तुम दोनों बहनों ने मेरे लिए है। जो इतनी खूबसूरत चुतें मुझे उपहार में दे दी। मैं जिंदगी भर इस चुदाई को नहीं भूलूंगा। इसी तरह बातें करते करते उन्हें हल्की हल्की नींद आने लगी ।
तो उषा बोली --अब हमें घर में जाना चाहिए।
उसकी बात सुनकर वो तीनो लोग घर में आ गए ।निशा और उषा जाकर अपने कमरे में लेट गयी। और इधर विक्रमसिंह घर के बाहर चारपाई पर आकर लेट गया ।और चुदाई का सुखद अहसास का आनंद करते-करते सो गया।

अगले दिन विक्रमसिंह को अपने राज्य के लिए भी रवाना होना था ।वह सुबह जल्दी उठ गया और थोड़ी देर में ही नित्य क्रिया कलापों से निवृत्त हो गया। घर के बाकी लोग भी उढ़ चुके थे ।
मोहन की मां ,मोहन और उसके मामा का सर नशीली पत्तियों की वजह से थोड़ा थोड़ा दुख रहा था परंतु उन लोगों ने इस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
निशा और उषा भी रात की चुदाई के बाद सुबह उठी तो उनका रूप और भी ज्यादा निखर गया था। थोड़ी ही देर में विक्रमसिंह जाने के लिए पूरी तरीके से तैयार हो चुका था।

विक्रम सिंह बोला -- मोहन ,अब मुझे जाना होगा ।तुम लोगों ने इतने दिन जो मेरी आवभगत की है ,उसके लिए मैं तुम लोगों का हमेशा एहसानमंद रहूंगा। और फिर कभी इस राज्य में आना हुआ तो मैं वादा करता हूं कि मैं तुमसे मिलकर ही जाऊंगा ।

इसी तरीके से थोड़ी देर बातें करने के बाद अब विक्रम सिंह जाने लगा ।उषा और निशा ने नम आखों से विक्रम सिंह को विदाई दी। उनकी आंखों में विक्रमसिंह के लिए प्यार झलक रहा था । परंतु वो उन्हें रोक भी नहीं सकती थी। उन्हें इस बात की खुशी जरूर थी कि उन दोनों को विक्रम सिंह के साथ चुदाई करने का सुख मिला था और विक्रम सिंह की वजह से ही वह दोनों बहने दोबारा बहुत अच्छी सहेलियां बन गई थी।

विक्रम सिंह महल की ओर चलने लगा। उसने सोचा कि जाने से पहले एक बार राजकुमारी मीनाक्षी देवी से मिल लेना चाहिए। मीनाक्षी देवी ने भी विक्रम सिंह को यात्रा के लिए शुभकामनाएं दी और साथ ही साथ उनके जाने के लिए एक घोड़े का इंतजाम कर दिया

विक्रम सिंह करमपुर से जिस घोड़े पर सवार होकर निकले थे वह घोड़ा तो उन्होंने नदी किनारे ही छोड़ दिया था। जिसके बाद वह उन्हें दोबारा दिखाई नहीं दिया। परंतु अब मीनाक्षी देवी ने उनके लिए एक नए घोड़े का इंतजाम कर दिया था। अब विक्रम सिंह उस पर सवार होकर विक्रम नगर की ओर चल पड़े।

लंबी यात्रा करने के बाद विक्रम सिंह अपने राज्य में पहुंच गया। हिमालय की वादियों में बसा उसका राज्य, विक्रम नगर,जहां चारों तरफ हरियाली ही हरियाली और उन पर जमी हुई हल्की-हल्की बर्फ की परतें इस राज्य की सुंदरता को चार चांद लगा देती थी। यहां की जनता अपने राजा विजय सिंह और उनके पुत्र विक्रम सिंह से बहुत खुश थी ।
विक्रम सिंह अपने राज्य में पहुंचकर एक अजीब सा सुकून महसूस करने लगा ।
परंतु जैसे जैसे वह महल की ओर जा रहा था ,उसने महसूस किया कि हमेशा खुश रहने वाले उसके राज्य के लोग दुखी दिखाई दे रहे थे। जहां जाओ, वहां एक अजीब सा सन्नाटा दिखाई दे रहा था।
विक्रमसिंह अचरज में पड़ गया ।उसने सोचा कि उसके जाने के बाद आखिर यहां पर हो क्या गया है ?
विक्रमसिंह थोड़ी देर और चला तो उसने देखा कि बहुत सारे घर खाली पड़े हुए थे। कई जगह समान जला हुआ पड़ा था।और तो और कई जगह खून भी पड़ा था। ऐसा लग रहा था जैसे कि पूरी बस्ती ही किसी ने उजाड़ दी हो।जैसे जैसे वो आगे चले जा रहा था मंज़र और भी भयानक होता जा रहा था।अब वहाँ पर लाशो के ढेर नज़र आ रहे थे।

उसके जाने से पहले यहां पर हमेशा चहल पहल रहा करती थी ।परंतु अब यहां उसे गिनती के कुछ लोग ही नजर आ रहे थे। थोड़ी देर बाद उसने देखा कि कुछ लोग बैलगाडी में अपने घर का सामान भर रहे हैं ।

विक्रम सिंह उन लोगों के पास गया और उनसे पूछा - तुम लोग इस तरह अपने घर का सामान भरकर कहां जा रहे हो । चूँकि विक्रम सिंह ने सामान्य नागरिक के कपड़े पहने हुए थे इसलिए लोग यह समझ नहीं सके कि यह राजा विक्रम सिंह है।

विक्रम सिंह के सवाल पूछने पर एक बंदा बोला तुम यहां से चले जाओ भाई।

हम आगे ही बहुत दुखी हैं ।हमें अपना काम करने दो ।हम जल्द से जल्द इस राज्य को छोड़कर दूसरी जगह जाना चाहते हैं।

विक्रम सिंह के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा ।
उसने सोचा कि इस सुंदर राज्य में आने के लिए तो देवता भी एक दूसरे से लड़ पड़े ,ऐसे में यह लोग यहां से जा क्यों रहे हैं?

विक्रमसिंह को आभास हो गया कि जरूर उसके जाने के बाद यहां पर कुछ गलत हुआ है ।उसने तुरंत घोड़े को महल की ओर दौड़ा दिया ।रास्ते में उसने देखा कि सभी जगह एक जैसे ही हालात है ।कई लोग सामान भर-भरकर बैलगाड़ी में लाद रहे हैं ।

विक्रम सिंह के दिलों की धड़कन और तेज बढ़ गई ।उसने घोड़े को और तेज दौडाया ।
और पलक झपकते ही वह महल के पास पहुंच गया ।जब विक्रमसिंह ने राज दरबार में प्रवेश किया तो उसने देखा की वहां पर उसके पिता विजय सिंह और सारे मंत्रीगण उपस्थित थे। परंतु फिर भी दरबार में एक सन्नाटा पसरा पड़ा था ।
सब लोग एक दूसरे की तरफ देख कर चिंता जता रहे थे। जब उद्घोषक ने विक्रम सिंह के दरबार में आने की घोषणा की तो सारे लोग एकाएक विक्रम सिंह की ओर देखने लगे ।और सभी मंत्रियों में एकाएक कोतूहल मच गया ।
उनमें से एक मंत्री अचानक खड़ा हुआ और बोला --भगवान ने हमारी सुन ली। महाराज विक्रमसिंह वापस आ गए ।अब जरूर इस समस्या का कुछ ना कुछ हल निकल जाएगा ।

विक्रम सिंह तेज कदमों से आगे बढ़ता हुआ अपने पिता विजय सिंह के सिंहासन की ओर बढ़ा ।

(दरबार में विजय सिंह और विक्रम सिंह के सिंहासन ऊंचाई पर थे जहां पर सीढियां भी थी। )

विक्रम सिंह सीढ़ियों पर चढ़ता हुआ अपने पिता विजय सिंह के सामने जा खड़ा हुआ ।महाराज विजयसिंह अभी भी चिंता में दिखाई दे रहे थे ।इधर दरबार में कोतूहल बढ़ने लगा ।उनकी आवाज विक्रमसिंह को परेशान करने लगी ।जब थोड़ी देर बाद भी आवाज़ बन्द न हुई तो,,,

विक्रम सिंह गरज कर बोला -- सारे लोग अभी के अभी चुप हो जाओ।वरना मैं किसी की गर्दन उड़ा दूंगा।

विक्रम सिंह की दहाड़ सुनकर पूरा दरबार सुन्न हो गया। अब विक्रम सिंह बोला --सभी लोग इसी वक्त दरबार से चले जाओ ।मुझे अपने पिता से अकेले में बात करनी है।
इतने में पास खड़ा
सेनापति बोला -- पर महाराज,

वह इतना बोला ही था कि विक्रम सिंह ने उसकी तरफ देखकर आंखें दिखाई। सेनापति विक्रम सिंह के गुस्से से परिचित था ।
वो तुरंत बोला --माफ कीजिए ,महाराज हम अभी जाते है।

यह बोलकर सेनापति के साथ साथ सारे मंत्री गण दरबार से चले गए ।अब दरबार में केवल विक्रम सिंह और विजय सिंह ही बचे थे।

विजयसिंह अभी भी खामोश थे ।उनको इस तरह खामोश देखकर विक्रमसिंह बोला -- पिताजी ,आप इतने चुप क्यों है ?
आखिर यहां पर हुआ क्या है ?
अभी मैं जब महल की ओर आ रहा था तब भी मैंने देखा कि राज्य की हालत खराब हुई पड़ी है।जगह जगह सामान बिखरा पड़ा था। खून के धब्बे नज़र आ रहे थे। लाशो के ढेर लगे पड़े थे।और बहुत सारे लोग तो राज्य छोड़कर भी जा रहे हैं ।
आखिर ऐसा क्या हो गया मेरे यहां से जाने के बाद?

अब विजय सिंह ने अपने चुप्पी तोड़ी और बोले --बेटा ,तुम्हारे जाने के बाद मत्स्य नगर के राजा करण सिंह ने हमारे राज्य पर हमला कर दिया।

युद्ध के मैदान में तो हमारे सैनिक उनको मुंहतोड़ जवाब दे रहे थे। परंतु उस कपटी राजा ने अपनी एक तिहाई सेना हमारे राज्य की सीमा के अंदर प्रवेश करवा दी।

हमने तुरंत युद्ध के मैदान से हमारी आधी सेना को वापस राज्य के अंदर बुला लिया। राज्य के अंदर हमारी सेना ने उनकी सेना को हरा तो दिया परंतु इसका खामियाजा आम जनता को भी भुगतना पड़ा। सैकड़ों लोगों के घर उजड़ गए। बहुत सारे आम लोग भी इस लड़ाई में मारे गए। देखते ही देखते हमारा यह हरा-भरा सुंदर राज्य किसी उजाड़ की तरह नजर आने लगा। हमने राज्य के अंदर तो करण सिंह की सेना को हरा दिया परंतु ......

विक्रम सिंह -- परंतु क्या पिताजी,

विजय सिंह --परंतु युद्ध के मैदान में हमारी शक्ति आधी हो गई थी। शत्रु ने इस परिस्थिति का फायदा उठाकर हमारे हजारों सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। सैकड़ों सैनिकों को मजबूरन घायल होकर वहां से भागना पड़ा। और अब स्थिति यह है कि हमारे पास लगभग एक तिहाई सेना ही बची है जो लड़ने की हालत में है।

उधर करण सिंह ने भी हमारे राज्य के लोगों को चेतावनी दी है कि जल्द से जल्द इस राज्य को छोड़कर चले जाएं। क्योंकि वो जल्दी ही अपनी पूरी सेना लेकर हमारे राज्य पर आक्रमण कर देगा।
लोग बुरी तरीके से डरे हुए हैं और यही वजह है कि वो हमारा राज्य छोड़कर जा रहे हैं।

अपने पिता की बात सुनकर विक्रमसिंह गुस्से से तिलमिला गया। वह बोला -- पिता जी मैं आपसे वादा करता हूं कि जब तक करण सिंह का सर आपके चरणो में लाकर नहीं रख दूंगा, तब तक चैन से नहीं बैठूंगा।

विजयसिंह --बेटा, अब तू ही इस बिखरते राज्य की आखिरी आस हो।

विक्रमसिंह --आप चिंता मत कीजिए पिताजी ,मैं उस करण सिंह के सर को एक झटके में धड़ से अलगकर दूंगा।और उसेे हमारे राज्य की दीवार पर टांग दूंगा ।
विजय सिंह -- पर बेटा, करण सिंह के पास बहुत बड़ी सेना है ।हमारी एक तिहाई सेना उनकी इतनी बड़ी सेना का कैसे मुकाबला कर पाएगी ?


विक्रमसिंह -वो सब आप मुझ पर छोड़ दीजिए पिताजी ।परंतु मुझे एक बात बताइए।
विजयसिंह-- बोलो बेटा

विक्रम सिंह --करण सिंह की सेना हमारे राज्य के अंदर कैसे आ पाई? हमारा राज्य तो तीन तरफ से हिमालय की ऊंची ऊंची वादियों से घिरा है और चौथी तरफ हमने एक मजबूत दीवार बनाई हुई है। तो उनके सैनिक इतनी भारी संख्या में हमारे राज्य के अंदर कैसे आए ?

विजयसिंह --बेटा विश्वासघात बड़े से बड़े राज्यों को भी श्मशान बना देता है। हमारे साथ भी ऐसा ही विश्वासघात हुआ है।

विक्रम सिंह -- कैसा विश्वासघात पिताजी

विजय सिंह-- बेटा तुम्हें उस सुरंग के बारे में पता है ना जो दिवार के नीचे से होते हुए हमारे राज्य के अंदर तक आती है। उसी सुरंग के माध्यम से शत्रु के सैनिक हमारे राज्य के अंदर आ गए।

विजयसिंह -- परंतु पिताजी, सुरंग के बारे में या तो आप जानते थे या फिर मैं। फिर शत्रु को उसका पता किसने बताया।

विजय सिंह -बेटा मेरे और तुम्हारे अलावा उस सुरंग के बारे में तीन और लोग भी जानते थे । वो मेरे विश्वस्त व्यापारी थे जो समय समय पर दूसरे राज्य से हथियारों और अन्य गुप्त वस्तुओं का जखीरा हमारे राज्य के अंदर लाते थे । उनमें से एक व्यापारी ने हमारे साथ विश्वासघात किया और उस सुरंग के बारे में शत्रु को बता दिया। बस उसी की वजह से शत्रु के सैनिक हमारे राज्य के अंदर आ गए। हमने उस विश्वासघाती को पकड़ने के लिए अपने सैनिक भी भेजे थे परंतु तब तक वो और उसकी बेटी इस राज्य को छोड़कर भाग चुके थे।वो तुमसे नही मिले कभी इसलिए न तो वो तुम्हें ओर न तुम उन्हें उनके चेहरे से पहचान सकोगे , वो सिर्फ मुझे ही जानते है।

अब विक्रम सिंह गुस्से से लाल हो चुका था ।वह दहाड़ते हुए बोला - पिताजी मुझे उस विश्वासघाती ओर उसकी बेटी का बस नाम बताइये, मैं कहीं से भी उन दोनों को ढूंढ कर लाऊंगा और पूरी प्रजा के सामने उनका सर धड़ से अलग कर दूंगा।

विजय सिंह ----- बेटा, उस विश्वासघाती व्यापारी का नाम है...…..............
..........
.........
......
......
जयसिंह,
......
ओर उसकी बेटी का नाम है
...........
........
.........
" उषा"

जब विक्रम सिंह ने यह सुना तो उसके तो जैसे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। उसके राज्य का गुनहगार उसकी आंखों के सामने था फिर भी वह उसका कुछ नहीं बिगाड़ सका। विक्रम सिंह की आंखें गुस्से से लाल हो चुकी थी। वह बस किसी भी तरह तुरंत जयसिंह को पकड़कर अपने राज्य में लाना चाहता था। परंतु उसके सामने समस्या यह थी कि अगर वह अपने राज्य को छोड़ कर गया तो पता नहीं पीछे से कोई और अनहोनी ना हो जाए । पूरे राज्य की आस अब सिर्फ विक्रम सिंह पर ही आन पड़ी थी, अगर वो भी राज्य को इस मुसीबत की घड़ी में छोड़कर कहीं और चला जाता, तो युद्ध में उनकी हार निश्चित थी। इसीलिए विक्रम सिंह ने सोचा की जय सिंह को तो वह कभी भी जाकर पकड़ सकता है । उससे पहले करण सिंह से युद्ध में जीतने की योजना तैयार करनी चाहिए।

यह सोचकर विक्रमसिंह अपने पिता विजयसिंह से बोला -महाराज अब आप राज्य की चिंता मुझ पर छोड़ दीजिए। विक्रम सिंह को हराने का मैं शीघ्र ही कोई तरीका ढूंढ निकलूंगा।

विजयसिंह - बेटा हमें भी तुमसे यही आशा है। परंतु हमारे पास समय बहुत ही कम है ।करण सिंह किसी भी समय हमारे राज्य पर हमला कर सकता है।

विक्रम सिंह - पिता जी आप मुझ पर भरोसा रखिए। मैं शीघ्र ही कोई रास्ता निकाल दूंगा।

फिर विक्रम सिंह ने विजय सिंह को आराम करने के लिए भेज दिया और एक पहरेदार को आदेश दिया कि तुरंत सेनापति को उनके पास भेजा जाए। शीघ्र ही सेनापति राजा के सामने हाजिर हो गया।

विक्रमसिंह - सेनापति इस समय हमारे पास कितने सैनिक मौजूद हैं?

सेनापति - महाराज, हम इस आक्रमण में हमारी तकरीबन दो-तिहाई सेना खो चुके हैं ।अब हमारे पास मात्र 10000 सैनिक ही बचे हैं ।

विक्रम सिंह -- करण सिंह की सेना में कितने लोग हैं ?

सेनापति - करण सिंह की सेना में अभी भी तकरीबन 40 से 45000 सैनिक है।

विक्रम सिंह - हमारी सेना ने उनकी सेना को राज्य के भीतर हरा दिया था यानि उनको भी काफी सैनिकों का नुकसान उठाना पड़ा है ।

सेनापति - आपकी बात बिल्कुल सही है महाराज

विक्रम सिंह - इसका मतलब वह अभी तुरंत हम पर हमला नहीं करेंगे। वह अपनी शक्ति को पुनर्गठित करने के बाद ही हम पर हमला करने के बारे में सोचेंगे ।

सेनापति - जी महाराज

विक्रमसिंह - इसका मतलब अभी भी हमारे पास 7 से 10 दिनों का समय है। सेनापति परंतु महाराज उनकी सेना का मुकाबला करने के लिए हमें कम से कम 25000 सैनिकों की और आवश्यकता होगी और इतने कम समय में हम कहां से इतने सैनिक ला पाएंगे।

विक्रम सिंह -- सेनापति शायद तुम भूल रहे हो जहां पर शस्त्र काम नहीं आता वहां पर बुद्धि काम आती है।

सेनापति -- मैं आप का मतलब नहीं समझा

विक्रमसिंह - वह हम तुम्हें बाद में बताएंगे ।सबसे पहले हमें जनता से मिलना होगा ।इस समय हमारी जनता में डर और दुख का माहौल है ।हमें उनसे मिलकर उनमें एक नया विश्वास जगाना होगा ।तुम तुरंत राज्य में ढिंढोरा पीटा दो कि महाराज विक्रम सिंह राज्य की सारी जनता से मिलना चाहते हैं ।वो तुरंत महल के सामने आकर एकत्रित हो जाए ।

विक्रम सिंह की बात सुनकर सेनापति तुरंत वहां से गया और आदेश दे दिया कि राज्य में महाराज के आदेश का ढिंढोरा पीट दिया जाए।
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इधर विक्रम सिंह करण सिंह को हराने के लिए तरकीब खोजने में व्यस्त था।


परंतु लाख माथा पीटने पर भी उसके दिमाग में कोई तरकीब नहीं आ रही थी। शीघ्र ही जनता में यह बात आग की तरह फैल गई कि राज्य में विक्रम सिंह लौट चुके हैं। युद्ध के परिणाम भुगत रही जनता के लिए यह बात उनके दर्द पर मरहम की तरह साबित हुई। जनता को विक्रमसिंह पर पूरा भरोसा था। जल्द ही महल के सामने हजारों लोग एकत्रित हो गए ।जो लोग बैलगाड़ियों में सामान लाद कर इस राज्य से जा रहे थे ,उन्हें भी विक्रम सिंह के आने के बाद एक नई ताकत का एहसास होने लगा।

सेनापति ने महाराज को सूचित कर दिया कि उनके आदेश के अनुसार राज्य की जनता उनसे मिलने के लिए महल के सामने आ गई है। यह सुनकर विक्रम सिंह तुरंत महल के बाहर आए। उन्होंने देखा की महल के सामने हजारों की तादात में जनता एकत्रित हो गई है। अब उन्होंने बोलना शुरू किया

" विक्रम नगर के वासियों ,मैं राजा विक्रम सिंह ,आज इस संकट की घड़ी में आप लोगों के समक्ष कुछ कहना चाहता हूं। वर्षों से इस सुंदर हरे-भरे राज्य में लोग सुखपूर्वक जिंदगी जीते रहे हैं। आज तक किसी को भी किसी भी बात की तकलीफ नहीं होने दी गई है। हमारे राज्य की प्रशंसा सुदूर दक्षिण तक प्रचलित है। परंतु अब हमारे राज्य पर एक विपदा आन पड़ी है। मत्स्य नगर के कपटी राजा करण सिंह ने मौका पाकर हमारे राज्य पर हमला किया। जिसकी वजह से हमारे राज्य को बहुत नुकसान हुआ है। मैं आप लोगों से क्षमा चाहता हूं कि मैं उस संकट के समय यहां पर मौजूद नहीं था। परंतु अब मैं आप लोगों के साथ हूं। और मुझे भी आप लोगों का साथ चाहिए। हम शत्रु को दिखा देंगे कि अगर हम शांतिपूर्वक जिंदगी जीना पसंद करते हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि हम कमजोर है। समय आने पर हम हमारे राज्य के लिए अपने प्राणों को भी न्योछावर कर देंगे। हम उस करण सिंह को बता देंगे कि हमारे राज्य पर हमला कर उसने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती कर दी है। हम हमारे लोगों के प्राणों की आहुति बेकार नहीं जाने देंगे। इसकी कीमत करण सिंह की सेना के हर एक आदमी को चुकानी पड़ेगी। हम उन्हें दिखा देंगे कि हमारी सेना का एक-एक सैनिक उनकी सेना के सो सो सैनिकों के बराबर है।मैं अपनी मातृभूमि के लिए मरने को भी तैयार हूं। पर मैं आप लोगों से जानना चाहता हूं कि क्या आप लोग इस परीक्षा की घड़ी में अपनी मातृभूमि के लिए जान देने को तैयार हो?"

सारी जनता एक साथ जोर से बोली हां हां,हम तैयार हैं।हां हां हम तैयार हैं।

सारी जनता में जोश का एक नया बिगुल बज चुका था। विक्रम सिंह ने अपनी दुखी जनता के मन में जोश का एक नया सवेरा जगा दिया था।

इसके बाद विक्रम सिंह महल में चले गए।

विक्रम सिंह ने सेनापति से पूछा--- सेनापति, हमें यह बताइए कि करण सिंह की सेना इस वक्त कहां रुकी हुई है?

सेनापति --महाराज करण सिंह की सेना ने इस वक्त लालघाटी के मैदान में डेरा डाला हुआ है।

विक्रम सिंह (चौक कर) --लाल घाटी के मैदान में ??

सेनापति -- जी हां महाराज

विक्रमसिंह --परंतु उन्होंने लाल घाटी के मैदान में ही डेरा क्यों डाला ?वह चाहते तो युद्ध के मैदान के पास भी अपना डेरा डाल सकते थे ।ताकि जितनी जल्दी हो सके युद्ध के मैदान में पहुंचा जा सके या फिर हमारे राज्य पर सीधा हमला किया जा सके ।परंतु उन्होंने लालघाटी के मैदान को ही क्यों चुना?

सेनापति --महाराज आश्चर्य तो हमें भी है कि उन्होंने युद्ध के मैदान से इतनी दूर अपना डेरा क्यों डाला ??

विक्रम सिंह --सेनापति जहां तक हमें याद है, लालघाटी का मैदान के चारों तरफ जंगल ही जंगल और हरियाली ही हरियाली है वहां पर खाने के लिए फल और सब्जियां बहुत ही आसानी से मिल जाती है जबकि युद्ध के मैदान के आसपास दूर दूर तक कोई हरियाली नहीं है ।

सेनापति -- आपकी बात ठीक है महाराज, परंतु इससे क्या साबित होता है ।

विक्रम सिंह -- जहां तक मुझे लगता है करण सिंह के सेना का लाल घाटी के मैदान में रुकने का सिर्फ और सिर्फ एक कारण हो सकता है और वह यह कि शायद करण सिंह की सेना अपने साथ ज्यादा दिनों की रसद सामग्री नहीं लेकर आई है और शायद यही वजह है वह लाल घाटी के मैदान में रुके ताकि जरूरत पड़ने पर अगर उनके पास रसद के सामग्री उपलब्ध ना हो तो उनके सैनिक फल और सब्जी खाकर जीवित रह सके।

सेनापति -- हां महाराज आपने जो बताया वह बात सच हो सकती है

विक्रमसिंह --तुम तुरंत अपने एक विश्वस्त गुप्तचर को वहां पर भेजो और पता लगाओ कि उनकी सेना के पास कितने दिन की रसद सामग्री उपलब्ध है।

सेनापति - जैसी आज्ञा महाराज ,मैं अभी अपने एक विश्वस्त गुप्तचर को वहां पर भेजता हूं ।

विक्रमसिंह - रुको सेनापति, एक काम और करना।

सेनापति - क्या महाराज ?

विक्रम सिंह- उस गुप्तचर को हमारे राज्य के बहुत सारे सोने के सिक्के भी दे देना।

सेनापति चौंकते हुए - सिक्के महाराज? परंतु सिक्को का वो क्या करेगा?

विक्रमसिंह- उसे कहना कि वो थोडे थोड़े सिक्के उनके सैनिकों के तंबुओं के पास जमीन में गाड़ दें। कोशिश करें कि ज्यादा से ज्यादा तंबुओं के पास वो सिक्के गाड़ दें।

सेनापति को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि महाराज क्या करना चाहते हैं।वो आश्चर्य से बोला - महाराज मैं अभी भी नहीं समझ पा रहा कि हमारे सिक्के उनके तंबुओं के पास गाड़ने से हमें क्या लाभ होगा?

विक्रमसिंह - तुम उसकी चिंता ना करो बस हमने जो आदेश दिया है उसका पालन करो।

जल्दी ही एक गुप्तचर लाल घाटी के मैदान की ओर रवाना हो गया। उसने करणसिंह की सेना के वस्त्र पहन रखे थे ताकि उसे कोई पहचान ना पाए। घोड़े पे सवार ,जंगलों में छिपता छिपाता वह एक लंबे सफ़र के बाद आधी रात को लालघाटी के मैदान में पहुंच गया।

गुप्तचर ने जब वहां का नजारा देखा तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। लालघाटी के मैदान में हजारों तंबू खड़े हुए थे। करण सिंह के सैनिक उनमें आराम फरमा रहे थे। अब गुप्तचर ने राजा के आदेश के अनुसार अपना काम शुरु कर दिया ।उसने जितने तंबू हो सकते थे उतने तंबुओं के पास जमीन में गड्ढा खोदकर थोड़े थोड़े सिक्के डाल दिए। वह बड़ी सावधानी से ही यह काम कर रहा था वह जानता था कि अगर किसी को थोड़ा सा भी शक हुआ तो उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ सकता है। तकरीबन एक पहर में उसने अपना काम निपटा दिया। और तुरंत अपने घोड़े पर सवार होकर वापस विक्रम नगर की ओर चल पड़ा।

तकरीबन आधे दिन का सफर तय करने के बाद गुप्तचर विक्रम नगर लौटा।
विक्रम नगर पहुंचते ही वह महाराज विक्रम सिंह के पास गया।

विक्रम सिंह --क्या तुमने अपना काम कर दिया ?

गुप्तचर --जी महाराज, आपके आदेश के अनुसार मैंने जितने हो सकते थे, उतने तंबू के पास सोने के सिक्के गाड़ दिए हैं ।

विक्रमसिंह-- वहां पर लगभग कितने तंबू थे ?

गुप्तचर --महाराज वहां पर करीब करीब 4000 से 5000 तंबू थे।

विक्रम सिंह-- और तुमने कितने तंबू के पास सोने के सिक्के गाडे?

महाराज -- मैं सिर्फ 500 तंबूओं के पास ही सोने के सिक्के गाड़ पाया।

विक्रमसिंह --कोई बात नहीं ,इतना ही हमारे लिए काफी है। अब तुम जा सकते हो। और हां ,जाते जाते सेनापति को मेरे पास भेज देना।

गुप्तचर --जैसी आपकी आज्ञा महाराज

*******
थोड़ी देर बाद सेनापति महाराज के सामने उपस्थित हुआ।

विक्रम सिंह-- सेनापति तुरंत एक संदेश वाहक को हमारा यह संदेश लेकर विशाल नगर जाने को कहो।

सेनापति चौंकते हुए --परंतु महाराज, विशाल नगर तो हमारा मित्र राज्य नहीं है। इस समय वहां पर संदेश वाहक भेजने से क्या फायदा?

विक्रमसिंह --आप से जितना कहा जाए उतना कीजिए ।

सेनापति-- जी महाराज।


तुरंत एक संदेश वाहक महाराज विक्रमसिंह का संदेश लेकर विशाल नगर की ओर रवाना हो गया। 1 दिन के लंबे सफ़र के बाद संदेशवाहक विशाल नगर के महल के सामने जा पहुंचा। चूँकि विक्रम सिंह ने यह संदेश विशाल नगर की राजकुमारी मीनाक्षी देवी को देने के लिए ही कहा था इसलिए संदेशवाहक वहां पर खड़े पहरेदार से बोला --कि मुझे विक्रम नगर के राजा विक्रम सिंह ने भेजा है। यह संदेश हम यहां की राजकुमारी मीनाक्षी देवी के लिए लेकर आए हैं ।हमारी प्रार्थना है कि आप उन्हें यह संदेश तुरंत जा कर दिखा दें ।और उनका जवाब हमें लाकर दे दे।

पहरेदार तुरंत संदेश लेकर राजकुमारी मीनाक्षी देवी के कक्ष में गया और मीनाक्षी देवी से बोला कि --विक्रम नगर के राजा विक्रम सिंह का संदेश आपके लिए आया है।
मीनाक्षी देवी तो खुशी के मारे फुले ना समाई ।उसने सोचा जरूर विक्रम सिंह दोबारा उनके पास आकर उनकी वासना को संतुष्ट करेंगे। अपनी चुदाई की सपने देखती हुई मीनाक्षी देवी ने जब पत्र खोला और पढ़ना शुरू किया तो उसके माथे पर शिकन की बूंदे आ गई।

उस पत्र में विक्रम सिंह ने कुछ इस प्रकार लिखा था --"राजकुमारी मीनाक्षी देवी को विक्रम सिंह का प्रणाम। आपके साथ गुजारी हुई रात को याद करके आज भी मैं उत्तेजित हो जाता हूं ।मन करता है कि तुरंत दौड़कर आपके पास आऊं और आपकी प्यारी मुनिया की सेवा करुं। परंतु राजकुमारी ,यह पत्र हमने किसी और उद्देश्य से लिखा है। जब मैं विक्रम नगर से दूर आपके राज्य में था तो मेरे पीछे से यहां पर एक कपटी राजा करण सिंह ने आक्रमण कर दिया। जिसमें हमारी सेना के हजारों सैनिक मारे गए। वह कपटी राजा तुरंत ही हम पर दोबारा आक्रमण करने वाला है हमारे पास समय भी कम है और सैनिक भी इसलिए हम आपसे आग्रह करते हैं कि संकट की इस घड़ी में आप हमारी सहायता करें। क्योंकि हम अकेले इस समय उसकी विशाल सेना का सामना नहीं कर सकते ।इसलिए आपसे दोबारा प्रार्थना है कि जितनी जल्दी हो सके हमारी मदद के लिए अपनी सेना की एक छोटी सी टुकड़ी भेज दे। "

मीनाक्षी देवी ने जब यह पढ़ा तो उसके माथे पर भी शिकन आ गई। उसने तुरंत पत्र लिखना शुरू किया और वह संदेश विक्रम सिंह के संदेशवाहक को देते हुए बोली-- जाओ और जाकर अपने महाराज को शीघ्र ही यह संदेशा दे दो.. हम उनके साथ हैं।

विक्रम सिंह का संदेश वाहक तुरंत वापस विक्रम नगर की ओर दौड़ पड़ा। जब वह विक्रम नगर पहुंचा तो उसने संदेश तुरंत महाराज को दिया। विक्रम सिंह ने संदेश पढ़ना शुरू किया।

"महाराज विक्रम सिंह को राजकुमारी मीनाक्षी देवी का प्रणाम, महाराज हम भी उस रात को याद करते है। जब आपने अपने हथियार से हमारी प्यारी मुनिया का उद्घाटन किया था। आपने हमें जो सुख दिया उसके लिए हम जिंदगी भर आपके कर्जदार हैं। आप चिंता मत कीजिए हम स्वयं हमारी सेना की एक विशाल टुकड़ी लेकर आपकी सहायता के लिए विक्रम नगर की ओर रवाना हो रहे हैं। शीघ्र ही हम विक्रम नगर पहुंच जाएंगे। "

विक्रम सिंह ने जब यह पढ़ा तो उसने चैन की सांस ली ।अब उसे लगने लगा था कि उसकी योजना सफल हो रही है।

विक्रम सिंह ने अपने सेनापति से कहा-- सेनापति विशाल नगर की सेना की एक टुकड़ी हमारा साथ देने के लिए आ रही है ।उनके रुकने का पूरा पूरा प्रबंध किया जाए।

सेनापति --जैसी आपकी आज्ञा महाराज ,परंतु अभी भी हमें एक बात समझ नहीं आ रही ?

विक्रमसिंह --वह क्या ?

सेनापति --- एक अनजान नगर की सेना जिससे विक्रम नगर का कभी वास्ता ना रहा, वह हमारी सहायता के लिए आने को राजी कैसे हो गए?

विक्रम सिंह ने एक कुटिल मुस्कान भरी और बोला --तुम उसकी चिंता मत करो सेनापति ,बस हमने जो कहा है उतना काम करो।

सेनापति --जी महाराज.

विक्रम सिंह --और सुनो एक संदेश वाहक को हमारे पास भेजो। हमें एक संदेश राजा करण सिंह के पास भिजवाना है ।

अब तो सेनापती के आश्चर्य का कोई ठिकाना ना रहा ।

वह चौंकते हुए बोला ---राजा कर्ण सिंह के पास ??

परंतु वह तो हमारा शत्रु है महाराज।

विक्रम सिंह बोला --सेनापति अब उन सिक्कों का रहस्य आपको जल्दी ही समझ में आ जाएगा जो हमने करण सिंह की सेना के तंबू के पास गड़वाये थे।
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Dolly sharma
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Re: राजा की सेविका complete

Post by Dolly sharma »

इधर राजा करण सिंह विक्रम नगर पर जल्दी ही हमला करने की फिराक में था। जब विक्रम सिंह का संदेश वाहक उसके लिए संदेश लेकर आया तो वह चौका। उसने सोचा कि "आखिर उसका शत्रु इस समय उसे संदेश क्यों भेज रहा है ?
कहीं उसने हार तो नहीं मान ली?
कहीं वह मेरे सामने घुटने तो नहीं टेकना चाहता?"
यह सोचते हुए राजा करण सिंह मन ही मन खुश हुआ।

उसने संदेशवाहक को बोला- तुम्हारा जो भी संदेश है, पूरे दरबार में जोर से पढ़ कर सुनाओ ।हम चाहते हैं कि विक्रम सिंह की असलियत सबके सामने आ जाएं ।
लोग समझ जाए की राजा विक्रम सिंह जो अपने आप को बहादुर समझता है ,वो जरासल शेर के भेष में गीदड़ है । वो हमसे डर गया और अब हमारे सामने घुटने टेक कर रहम की भीख मांगना चाहता है ।
करण सिंह की बात सुनकर उसके चापलूस मंत्री और सेनापति हंसने लगे ।

इधर विक्रम सिंह के संदेशवाहक ने संदेश पढ़ना शुरू किया।


"करण सिंह, मेरी अनुपस्थिति में मेरे राज्य पर वार करके, हमारे सैनिकों को मारने को तुम अपनी बहादुरी मत समझना। तुम्हारे पास चाहे जितनी बड़ी सेना हो परंतु मेरे सामने वो सब मिट्टी के पुतले बन जाएंगे।एक बार मैंने मारना शुरू किया तो गिनती भूल जाता हूं मैं ।
युद्ध के नियमों का उल्लंघन करके तुने जिस तरह हमारे राज्य में प्रवेश किया और मासूम लोगों की हत्या की ,उसका बदला मैं तेरे और तेरे सैनिकों के खून से लूंगा। विश्वासघात का जो खेल तुमने शुरू किया है उसका अंत मैं करूंगा। सिर्फ ये मत समझना कि पैसो के दम पर मेरे ही राज्य का कोई आदमी बिक सकता है, अगर ज्यादा पैसे दिए जाए तो तेरी सेना के कुछ लोग भी विश्वासघाती हो सकते है। जिस तरह तूने हमारे ही आदमी को हमारे ही खिलाफ इस्तेमाल किया है उसी तरह मैं भी तेरे ही सैनिकों को तेरे खिलाफ इस्तेमाल करूंगा। युद्ध में तेरी हार निश्चित है। फिर भी मैं तुझे एक आखरी मौका दे रहा हूं। भाग सकता है तो भाग जा। क्योंकि अगर एक बार युद्ध हुआ तो मैं तेरा सर काट कर हमारे राज्य की दीवार पर टांग दूंगा। इसे सिर्फ मेरी धमकी मत समझना क्योंकि सारा संसार जानता है कि विक्रम सिंह ने एक बार जो प्रतिज्ञा ले ली तो चाहे कुछ भी हो जाए फिर वो पीछे नहीं हटता और इस बार मैंने तेरी मौत की प्रतिज्ञा ली है।"

यह संदेश सुनकर दरबार में सन्नाटा छा गया। सब लोग जानते थे कि विक्रम सिंह जैसा साहसी व्यक्ति आसपास के 50 राज्यों में भी नहीं है। अगर उसने एक बार किसी को मारने की प्रतिज्ञा ले ली तो फिर सिर्फ भगवान ही उसे बचा सकता है।


यह सब सुनकर करणसिंह गुस्से से तिलमिला गया। वो गुस्से से चिल्लाया--- जाकर बोल दे उस विक्रम सिंह को, मैं उसके राज्य के हर एक आदमी को मार डालूंगा। उसकी बची-खुची छोटी सी सेना मेरा कुछ नहीं उखाड़ सकती।

फिर संदेश वाहक वापस विक्रम नगर की ओर चल पड़ा।

इधर करण सिंह के दरबार में विक्रम सिंह का संदेश सुन कर खलबली सी मच गई। उनमें से एक मंत्री खड़ा हुआ और करण सिंह को बोला ---महाराज, विक्रम सिंह को अपनी जीत पर अगर इतना विश्वास है तो जरुर उसने कुछ योजना बनाई होगी। हमें उसकी योजना का पता लगाना होगा। जिस तरीके से वो बोल रहा था कि विश्वासघाती लोगों के जरिए वो हमारी सेना को हरा देगा, मुझे इसमें जरूर कुछ राज लगता है। मेरा तो ये मानना है कि जरूर हमारी सेना के कुछ लोग विक्रम सिंह के साथ मिल चुके हैं ।अगर हमने जल्दी कुछ कार्यवाही नहीं की तो यह हमारे लिए खतरनाक साबित हो सकता हैं।

करण सिंह --मुझे भी यही लगता है। विक्रम सिंह के संदेश में भी पैसों का जिक्र हुआ था ,इससे यह साफ है कि जिस तरह हमने उस व्यापारी को पैसे देकर खरीदा था उसी तरह उसने भी हमारे सैनिकों को पैसे देकर खरीद लिया है ।हमें जल्द से जल्द पता लगाना है कि वो कौन से धोखेबाज सैनिक है जो विक्रम सिंह के साथ मिल गए।

विक्रम सिंह की योजना कामयाबी की ओर बढ़ रही थी।

फिर करण सिंह बोला --सेनापति ,तुरंत जाकर सभी सैनिकों के तंबुओं का निरीक्षण किया जाए और जिस किसी के पास विक्रम सिंह के दिए हुए पैसे मिल जाए उसका सिर धड़ से अलग कर दिया जाए।

सेनापति -जैसी आपकी आज्ञा महाराज

फिर सेनापति ने कुछ सैनिकों को अपने साथ लेकर सभी तंबुओं का निरीक्षण करना शुरु कर दिया।

सैनिक भी नहीं समझ पा रहे थे कि अचानक उनके तंबुओं का निरीक्षण क्यों किया जा रहा है?

सेनापति और उसके साथी तंबू के अंदर घुस घुस कर सामान इधर उधर फेंक रहे थे। परंतु उन्हें किसी भी तंबू के अंदर कुछ भी नहीं मिला । जिससे यह साबित हो जाए कि सैनिक विक्रम सिंह से जा मिले हैं।

आखिर में थक हारकर सेनापति वापस जाने के लिए मूडने लगा।
कि अचानक उसे तंबू के पास ताजा मिट्टी दिखी जो अक्सर गड्डा खोदने के समय ऊपर की ओर आ जाती है।

सेनापति को कुछ शक सा हुआ। उसने तुरंत अपने एक साथी को उस जगह पर गड्डा खोदने के लिए कहा। जैसे ही उसने गड्ढा खोदना शुरू किया उसे सिक्कों से भरी हुई एक छोटी सी पोटली दिखी। उस पोटली को देख कर आस पास खड़े सैनिक भी चौक गए।
जब सेनापति ने उस पोटली को खोलकर देखा तो उसमें से उसे कुछ सोने के सिक्के मिले ।ध्यान से देखने पर पता चला की यह तो विक्रम नगर राज्य के सिक्के हैं।

यह देखकर सेनापति को पूरा विश्वास हो गया कि जरूर इस तंबू के सैनिक विक्रमसिंह से मिल गए हैं। वो गुस्से से पागल हो गया। उसने तुरंत अपने साथियों को आदेश दिया कि इस तंबू में रहने वाले हर एक सैनिक को अभी इसी वक्त मार दिया जाए।

सेनापति के साथियों ने भी आव देखा ना ताव ,तुरंत उस तंबू में रहने वाले सभी सैनिकों को मार दिया। उन सैनिकों की मौत देखकर वहां खड़े बाकी सैनिक भी डर के मारे सहम गए।

सेनापति ने तुरंत सभी तंबू के आस-पास गड्डे देखने शुरू कर दिए। और जिस भी तंबू के पास उसे सिक्के मिलते वो उस तंबू में रहने वाले सभी सैनिकों को मरवा देता।

ऐसा करते-करते एक ही दिन में उसने सैकड़ो सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। उसने एक बार भी उन सैनिकों की राय जानने की कोशिश नहीं की।
करण सिंह की सेना में एक डर का माहौल बन गया था। और लड़ने की उनकी हिम्मत भी डर के मारे आधी रह गयी थी।

इधर राजकुमारी मीनाक्षी देवी के साथ उनकी सेना की एक विशाल टुकड़ी विक्रम नगर पहुंची थी ।

पूरे नगर में राजकुमारी मीनाक्षी देवी के स्वागत मे लोगो ने उन पर फूल बरसाए। लोग राजकुमारी मीनाक्षी देवी और राजा विक्रम सिंह के जयकारे लगा रहे थे। सभी को अब यकीन हो चला था कि युद्ध में जीत उनकी ही होगी। विक्रम सिंह ने भी राजकुमारी मीनाक्षी देवी का स्वागत किया और संकट की इस घड़ी में उनका साथ देने के लिए धन्यवाद दिया।

फिर विक्रम सिंह बोले --राजकुमारी आप एक लंबा सफर तय करके आई है। इसलिए आप थोड़ी देर आराम कीजिए। हमने आपके और आपके सैनिकों के रहने के लिए पूरा प्रबंध करवा दिया है ।आपको किसी भी बात की कोई तकलीफ नहीं होने दी जाएगी।

फिर राजकुमारी मीनाक्षी देवी की सेना के सभी लोगों को आराम करने के लिए पहले से ही निश्चित स्थान पर ले जाया गया। इधर राजकुमारी मीनाक्षी देवी को भी एक भव्य राज कक्ष में ठहराया गया। राजकुमारी मीनाक्षी देवी ने सोचा कि सफर की थकान को खत्म करने के लिए उन्हें स्नान कर लेना चाहिए उन्होंने शीघ्र ही स्नान किया और राजा विक्रम सिंह के कमरे की ओर चल पड़ी।

विक्रम सिंह अपने शयन कक्ष में आराम कर रहा था।
जब मीनाक्षी देवी वह पहुंची तो उसने कक्ष के पहरेदारो को कहा --- हमे महाराज से अकेले में बात करनी है, आप लोग यहां से जा सकते है।
राजकुमारी की बात सुनकर सभी पहरेदार वहां से चले गए।

जब राजकुमारी मीनाक्षी देवी ने विक्रम सिंह के शयन कक्ष में प्रवेश किया तो उसने देखा कि विक्रम सिंह बिस्तर पर लेटा हुए है और उनकी आंखें बंद है। राजकुमारी मीनाक्षी देवी के दिमाग में एक शरारत सूझी।
उसने तुरंत कमरे को अंदर से बंद कर लिया

राजकुमारी चुपके से उनके बिस्तर के पास गई। राजकुमारी ने होले से राजा विक्रम सिंह के पजामे के नाड़े को खोल दिया और फिर आहिस्ता आहिस्ता उसे नीचे खिसकाने लगी। थोड़ी सी मेहनत के बाद उसने पजामा घुटनों तक नीचे कर दिया था। अब राजकुमारी मीनाक्षी देवी के आंखो के सामने विक्रम सिंह का सोया हुआ लंड नजर आने लगा। लंड को देखकर राजकुमारी की आंखों में चमक आ गई।उसे विक्रम सिंह के साथ गुजारे हुए पल याद आने लगे। उन पलों को याद करते ही राजकुमारी की चूत में पानी की कुछ बूंदे निकल आयी।

राजकुमारी ने धीरे से विक्रम सिंह के सोये हुए लन्ड को अपने हाथों में लिया और होले से उस पर अपनी जीभ फिरा दी। थोड़ी देर लन्ड को चाटने के बाद राजकुमारी ने विक्रम सिंह के लन्ड को गप्प करके अपने मुंह मे ले लिया और धीरे धीरे चूसने लगी।

इस तरह के हमले से राजा विक्रम सिंह के लन्ड में सुरसुरी सी दौड़ गयी। उन्होंने हड़बड़ाकर आंखे खोली तो राजकुमारी के मुंह मे अपने लन्ड को देख सारा माजरा समझ गए। अब विक्रम सिंह का लन्ड औकात में आने लगा था। राजकुमारी भी जोर जोर से विक्रम सिंह का लन्ड चूसने लगी थी।
फिर विक्रम सिंह ने राजकुमारी को रोका और उसे बिस्तर पर लेट दिया। उसने तुरंत राजकुमारी के रेशमी कपड़ो को उनके बदन से अलग कर दिया। अब राजकुमारी का दमकता गोरा बदन राजा की आंखों के बिल्कुल नंगा सामने था।

क्या सेक्सी बदन था उनका, बिलकुल गोरा ,खुले लम्बे काले बाल ,बड़ी बड़ी काली आँखें ,गुलाबी होंठ, पतली लम्बी सी गर्दन, मोटे टाइट और गोर बोबे ,उनपे छोटे छोटे भूरे निप्पल, पतला सा पेट ,गोरी झांगें ,गुलाबी सी चूत, जिन पर छोटे छोटे बाल आ गये थे । विक्रम सिंह ऐसे ही उसे ऊपर से लेके नीचे तक देखने लगा ।उसका लंड बिलकुल टाइट खड़ा था ।

अब विक्रम सिंह से और सब्र नही हुआ। उसने तुरंत झुकर अपना मुंह उस गुलाबी चुत पे लगा दिया।और तेज़ी से चूसने चाटने लगा।

राजकुमारी तो जोर जोर से सिसकियाँ लेने लगी। राजा एक हाथ से चूत में ऊँगली भी कर रहा था और दूसरे हाथ से उसके नंगे बोबे दबा रहा था ।
तभी राजकुमारी की सिसकियाँ जोर पकड़ने लगी "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स ...आअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह .....हाम्म्म्म्म्म .......उउ "

विक्रम सिंह समझ गया की राजकुमारी को अब पूरा मजा आने लग गया है।
उन्होंने जल्दी जल्दी अपनी ऊँगली उनकी चूत से अंदर बाहर करानी शुरू कर दी। और दूसरे हाथ से उनके बोबे दबाने लगे। साथ ही अपनी उंगलियों से उनके निप्पल को सहलाने लगा।

फिर तो जैसे एक सैलाब आया, विक्रम सिंह दीवानों की तरह उसकी चूत में अपनी जीभ और दांत से हमले करता चला गया....अंत में जब वो धराशायी हुई तो उसका पूरा बदन कांपने लगा और शरीर ढीला हो गया. विक्रम सिंह ने जल्दी से उसका रस पीना शुरू कर दिया...

अब विक्रम सिंह ने राजकुमारी को पलट दिया। वो आधी बिस्तर पर थी और आधी बिस्तर के नीचे झुकी हुई। इस तरह झुकने से उनकी चुत बिल्कुल उभर कर राजा की आंखों के सामने आ गयी। राजा ने अब राजकुमारी को ओर न तड़पाते हुए अपने लन्ड को उसकी चुत के मुंहाने पर फिट किया और एक ही बार मे जोर लगाकर पूरा का पूरा लन्ड उसकी प्यारी सी चुत में उतार दिया। इस अचानक हमले से राजकुंरी की चीख निकल गयी। पर राजा ने उसकी परवाह न करते हुए अब ओर तेज़ तेज़ धक्के लगाने शुरू कर दिए। 10 मिनट तक इसी पोज़ में चोदने के बाद विक्रम सिंह ने राजकुमारी को खड़ा किया और तुरंत उचकाकर अपनी गोद मे ले लिया। राजकुमारी ने भी अपनी टांगे राजा के कमर के दोनों ओर लपेट थी। अब राजा ने अपने लन्ड को उसकी चुत पे सेट किया और फिर दे देना दन धक्के मारने शुरू कर दिए। राजकुमारी भी हर धक्के का जवाब अपनी गांड उचकाकर दे रही थी।

अब राजा ने राजकुमारी को दीवार के सहारे खड़ा किया। और उनके एक पर को अपने कंधे पे रख लिया। फिर दोबारा राजकुमारी की चूत में अपने लैंड को पेलना शुरू कर दिया। 20 मिनट की धक्कापेल ताबड़तोड़ चुदाई के बाद वो दोनों बुरी तरह से झाड़ गए और बिस्तर पर आ गिरे।
फिर दोनों ने एक दूसरे को एक लंबा किस किया और नंगे ही एक दूसरे की बाहों में सो गए।

इधर लालघाटी के मैदान में करण सिंह के सेनापति ने अपनी ही सेना के सैकड़ो सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। उनकी सेना में भी डर का माहौल फैल गया था और यही तो विक्रमसिंह चाहता था।

आखिरकार वो दिन भी आ गया जिस दिन करण सिंह और विक्रम सिंह की सेनाओं में युद्ध होना था। करण सिंह की सेना लाल घाटी के मैदान से चलते हुए युद्ध के मैदान में आ पहुंची और उधर विक्रम सिंह की सेना भी राजकुमारी मीनाक्षी देवी की सेना के साथ उनके सामने खड़ी थी।

युद्ध के मैदान के दोनों तरफ ऊंची ऊंची पहाड़ियां थी। जिन पर बड़े बड़े पत्थर थे।

विक्रम सिंह की बड़ी सेना देखकर करणसिंह को आश्चर्य हुआ की मात्र 1 सप्ताह में ही विक्रम सिंह के पास इतने सैनिक कहां से आ गए? और साथ ही उसे इस बात का भी अचरज हो रहा था की उसकी खुद की सेना में सैनिक कम कैसे हो गए?

पहले के जमाने में यह रिवाज होता था की युद्ध से पहले दोनों सेनाओं के प्रमुख आखरी बार बात करते थे। इसलिए करण सिंह अपने सेनापति और विक्रम सिंह अपने सेनापति और राजकुमारी मीनाक्षी देवी के साथ एक निश्चित स्थान पर आखरी बार बात करने के लिए आ पहुंचे।

करण सिंह बोला ---- विक्रम सिंह, अभी भी मैं तुम्हें आखिरी मौका देता हूं ,अपने हथियार डाल दो और मुझे अपना राजा स्वीकार कर लो। वरना तुझे मारने के बाद मैं तेरे राज्य पर कब्जा कर लूंगा और हर एक आदमी को मार डालूंगा। हर एक लड़की को मेरे सैनिकों की गुलाम बनाकर रखूंगा।वो जब चाहे जैसे चाहे उनकी इज़्ज़त के साथ खिलवाड़ करेंगे। और इस राजकुमारी को मैं खुद अपने हाथों से मसलूंगा।
तेरे मरने के बाद मैं तेरे बाप को कुत्ते की तरह तेरे ही राज्य की गलियों में घुमाऊंगा।

ये बोलकर करण सिंह जोर-जोर से हंसने लगा।

उसे इस तरह हँसता देख विक्रम सिंह गुस्से से तिलमिला गया।
विक्रम सिंह -- अगर मुझे युद्ध के नियमों की परवाह नही होती तो अभी और इसी वक्त तेरी गर्दन उड़ा देता। युद्ध मे कौन जीतेगा ,ये तो आने वाला समय बताएगा। पर एक बात निश्चित है कि ये युद्ध तेरी ज़िंदगी का आखरी युद्ध साबित होगा। तेरे सैकड़ो सैनिकों को तो मैंने युद्ध शुरू होने से पहले ही मरवा दिया, ओर बाकियो को अब मार दूंगा।तेरे मरने के बाद तेरे राज्य पर भी मेरा अधिकार होगा।

करण सिंह ने जब ये सुना कि विक्रम सिंह ने युद्ध शुरू होने से पहले ही सैनिको को मरवा दिया तो उसे इसका मतलब समझते देर न लगी और उसे ये भी समझ आ गया कि उसके सेना में सैनिक कम क्यों लग रहे है। वो गुस्से से पागल हो गया और विक्रम सिंह पर चिल्लाया ---- कपटी , विश्वासघाती , तूने मेरे ही हाथों मेरे सैनिको को मरवा दिया। इसका बदला मैं तेरी सेना के हर एक सैनिक की मौत से लूंगा। तू क्या सोचता है, चंद सैनिको के मर जाने से मेरी सेना छोटी हो जाएगी। नही, अभी भी मेरे पास 35 से 40 हज़ार सैनिक हैं और तेरे पास सिर्फ 20 हज़ार। मैं तुझे चींटी की तरह मसल दूंगा ।

विक्रम सिंह ---ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि कौन किसको मसलता है?

ये बोल कर वो लोग अपने अपने राज्यो की सेनाओं के सामने चले गए।

युद्ध का मैदान सज चुका था। एक तरफ करण सिंह की विशाल सेना थी, और दूसरी तरफ विक्रम सिंह की छोटी पर साहसी सेना।

विक्रम सिंह जनता था कि अगर एक बार करण सिंह को मार दिया जाए तो उसकी सेना मेरे सामने घुटने टेक देगी। और यही सबसे तेज़ तरीका था युद्ध जीतने का।जिसमे उनके कम से कम सैनिक मारे जाते।

परन्तु करण सिंह अपनी सेना के बीच वाली जगह पे था। वो हाथी पर सवार था। उसने पूरे शरीर को लोहे के बने कवच से ढक रखा था ताकि कोई उस पर दूर से तीर न चला दे। सिर्फ उसकी आंखें ही दिखाई दे रही थी।

इधर विक्रम सिंह और मीनाक्षी देवी अपनी सेना की अगुवाई कर रहे थे। सबसे आगे भाला चलाने वाले सैनिक घोड़े पे सवार थे। उनके पीछे तलवारबाज़, उनके पीछे पैदल सेना और सबसे आखिर में तीरंदाज़ थे। विक्रम सिंह जनता था कि उसे करण सिंह के जितने हो सके उतने सैनिको को दूर से ही मार गिराना होगा।इसलिए उसने अपनी सेना के 2500 और मीनाक्षी देवी सेना के भी 2500 सैनिको को तीरंदाज़ी के लिए तैनात किया था।

अब युद्ध के शुरू होने का बिगुल बजा दिया गया। करण सिंह के सैनिक विक्रम सिंह के सैनिकों की तरफ तेज़ गति से बढ़ने लगे। दोनों ही तरफ से तीरों की अंधाधुंध बरसात होने लगी। दोनों ही तरफ के काफी सैनिक तीरो की वजह से घायल हो रहे थे।
पर अब विक्रम सिंह ने अपनी वो चाल चली जिसके बारे में किसी को नही पता था।

विक्रम सिंह के नगर के लोग बचपन से पहाड़ी जगह पर रहते आये थे।इसलिए पहाड़ो पर चढ़ पाना उनके लिए जय मुश्किल नही था विक्रम सिंह ने अपनी सेना के 500 सैनिको को पहले ही युद्ध के मैदान के दोनों तरफ की पहाड़ियों पर तैनात कर दिया था।
विक्रम सिंह के इशारे पर उन सैनिको ने वहां पर पड़े बड़े बड़े पत्थरो को नीचे की ओर ढलकाना शुरू कर दिया। गति पकड़ते ही वो पत्थर तेज़ गति से करण सिंह की सेना की ओर लुढ़कने लगे। पत्थरों को अपनी ओर आता देख करण सिंह की सेना में खलबली सी मच गई। देखते ही देखते सैकड़ो सैनिक उन पत्थरों की चपेट में आ गए।
इस आघात से वो अभी उबरे भी नही थे कि इधर विक्रम सिंह अपनी सेना के साथ घोड़े पे सवार होके उनके ऊपर टूट पड़ा। भयंकर युद्ध शुरू हो चुका। था। विक्रम सिंह की तलवार आग उगल रही थी। वो दोनों हाथों में तलवार लिए करण सिंह के हाथी की तरफ बढ़ा जा रहा था। रास्ते मे जो भी आता, विक्रम सिंह उसकी पलक झपकते ही गर्दन उड़ा देता। इधर राजकुमारी भी अदम्य साहस के साथ सेना की अगुवाई कर रही थी।

इस चौतरफा हमले से करण सिंह की सेना बौखला गई। उन्होंने एसे हमले की उम्मीद भी नही की थी।
चारो तरफ लाशो के ढेर लग चुके थे।युद्ध का मैदान खून से रंगकर लाल हो चुका था।
अब विक्रम सिंह करण सिंह के बिल्कुल पास पहुंच गया था। विक्रम सिंह ने निशाना लगाकर तलवार को करण सिंह की तरफ भेजा परन्तु वो बाल बाल बाख गया। विक्रम सिंह ने तुरंत घोड़े को दुलत्ती लगाई और पालक झपकते ही घोड़े ने अपने आगे के दोनों पैर हाथी की सुन्ड पे रख दिए।

विक्रम सिंह छलांग लगाकर हाथी के ऊपर पहुंच गया। करण सिंह और विक्रम सिंह के बीच लड़ाई शुरू हो गई।

आखिर में विक्रम सिंह ने अपने हाथों के भरपूर प्रहार से करण सिंह की गर्दन पर वार किया। और देखते ही देखते कारण सिंह ढेर हो गया।

अपने राजा को इस तरह मरते देख करण सिंह की सेना भागने लगी । विक्रम सिंह युद्ध जीत चुके थे। उसके जयकारे लगने शुरू हो चुके थे।

विक्रम सिंह और राजकुमारी अपनी सेना के साथ वापस विक्रम नगर लौट पड़े।

विक्रम नगर में खुशीयो का माहौल बन गया।लोग विक्रम सिंह और राजकुमारी मीनाक्षी देवी के जयकारे लगाने लगे। उनके स्वागत में लोगों ने उनके ऊपर फूल बरसाए।
महल में पहुंच कर राजा विक्रम सिंह ने राजकुमारी मीनाक्षी देवी को उनकी सहायता के लिए धन्यवाद दिया।

कुछ दिन महल में रहने और विक्रम सिंह के साथ अपनी चुत की प्यास भुजाने के बाद
मीनाक्षी देवी बोली- महाराज, अब हमें आज्ञा दीजिए, हमे वापस विशाल नगर जाना होगा। हमे आपकी याद आएगी।

विक्रम सिंह ने उनके जाने का पूरा प्रबंध करवा दिया। जल्द ही विक्रम नगर वापस पहले जैसा बन गया था। जहां हर कोई खुश था।

end
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