चाची की प्यारी सी चूत

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mastram
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चाची की प्यारी सी चूत

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चाची की प्यारी सी चूत

दोस्तो मेरा नाम तो आप जानते नहीं होंगे क्योंकि मैने आज तक किसी को बताया ही नही है फिर भी मेरा उपनाम मस्तराम है सेक्सी दुनिया के पाठक मुझे इसी नाम से जानते है दोस्तो एक कहानी पेश कर रहा हूँ ये तब की बात है

अब आपका अधिक समय व्यर्थ नहीं करते हुए मैं आपको उस घटना का विवरण बताता हूँ जो मेरे साथ लगभग दो वर्ष पहले घटित हुई थी।
यह बात दिनों की है जब मैं 21 वर्ष का था और उस समय मेरी चाची 36 वर्ष की थी।
मैं पास के बड़े शहर के एक कॉलेज इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में पढ़ता था और मेरी चाची की नौकरी वहीं पास के एक छोटे शहर के रेलवे स्टेशन में लगी थी।
रेल से चाची के उस छोटे शहर की दूरी मेरे शहर से सिर्फ 35 मिनट की ही थी।
मुझे भी इंजीनियरिंग कॉलेज के लिए रेलवे की ओर से वृत्तिका तो मिलती थी पर हॉस्टल के लिए खर्चा नहीं मिलता था इसलिए मैंने उस शहर में अपने पिताजी के एक जान पहचान वाले से उसके घर में ऊपर वाला एक कमरा, रसोई और बाथरूम किराये पर लेकर उसमें रहने लगा था।
मैं अधिकतर हर सप्ताह के शनिवार और इतवार को चाची के पास चला जाता था, लेकिन जब कभी कॉलेज में एक्स्ट्रा क्लास होती थी तब नहीं जा पाता था।
उस इतवार को चाची सुबह की गाड़ी से मेरे पास आती थी और दिन भर मेरे साथ रह कर शाम की गाड़ी से वापिस चली जाती थी।
दिन में वह चौका-बर्तन करती, मेरे कपड़े आदि धो देती और कमरे की सफाई आदि भी कर देती थी।
एक बार चाची इतवार की सुबह आई और हर बार की तरह जब शाम को सात बजे वापिस जाने के लिए रेलवे स्टेशन गई तो उन्हें पता चला की गुर्जर आन्दोलन के कारण उस मार्ग की सभी गाड़ियाँ रद्द कर दी गई थीं।
मैं उस समय उनके साथ ही था और क्योंकि बस से जाने से उसके शहर पहुँचने में दो घंटे लग जाते हैं इसलिए मैंने चाची को रात में वहीं रुकने के लिया मना लिया।
वापसी में हम दोनों बाज़ार से रात के लिए खाने और अन्य आवश्यक सामान ले कर कमरे पर आ गए।
कमरे में पहुँच कर चाची ने रात के लिए खाना बनाया और हम दोनों ने खाया। फिर मैं पढ़ाई करने बैठ गया और चाची बर्तन साफ़ कर और रसोई का काम निपटा कर बिस्तर के एक कोने में बैठ कर कुछ सोचने लगी।
जब मैंने चाची से पूछा कि वह क्या सोच रही है तो उसने कहा कि उसके पास तो रात के पहनने के लिए कोई कपड़े नहीं हैं इसलिए वह क्या पहन कर सोयेगी।
तब मैंने उसे कहा कि रात के लिये वह मेरी लुंगी और बाजू वाली बनियान पहन ले तथा मैंने वह सब उसे निकाल कर दे दीं।
चाची ने अपनी साड़ी उतार कर अलमारी में रख कर, लुंगी और बनियान ले कर बदलने के लिए बाथरूम में चली गई।
जब वह बाथरूम से बाहर आई तो मैं उसका यह रूप देख कर दंग रह गया।
चाची ने पेटीकोट, ब्लाउज, ब्रा और पैन्टी उतार कर सिर्फ लुंगी और बनियान ही पहन रखे थे। उनके मादक शरीर की झलक उन कपड़ों में से साफ़ दिख रही थी और वह उन दो कपड़ों में वह बहुत सुंदर तथा कामुक लग रही थी।
उन कपड़ों में उन्हें देख कर कोई भी उनकी उम्र का अंदाज़ नहीं लगा सकता था और सभी उन्हें 25-26 वर्ष की लड़की ही समझता।
इस से पहले भी मैंने चाची को पेटीकोट और ब्लाउज में तो कई बार देखा था पर आज का नज़ारा कुछ और ही था।
इन कपड़ों में चाची की चूचियाँ बनियान से बाहर निकलने को बेताब थीं और उनके चुचूकों का गहरा रंग बनियान में से साफ़ साफ़ झलक रहा था।
उसकी छत्तीस इन्च की चूचियाँ इतनी बड़ी होंगी मुझे इसका अंदेशा नहीं था।
मेरे मन में कई विचार उठने लगे, मेरा मन करने लगा कि मैं भाग कर चाची की चूचियाँ पकड़ लूँ और उनको चूस कर सारा रस पी जाऊँ।
इससे पहले कि मेरे मन कुछ और ऐसे वैसे विचार आते, मैं अपने मन को पढ़ाई में लगाने की चेष्टा करने लगा था।
क्योंकि मेरे कमरे में सिर्फ एक ही बेड था इसलिए चाची ज़मीन पर चटाई बिछा कर सोने की तैयारी करने लगी।
यह देख कर मेरे से रहा नहीं गया और मैंने चाची को कहा कि वह चारपाई पर सो जाये और मैं चटाई पर सो जाऊँगा।
लेकिन चाची नहीं मानी और कहने लगी कि या तो दोनों चारपाई पर सोयेंगे या सिर्फ वह ही चटाई पर ही सोएगी।
काफी बहस के बाद जब चाची ने जब यह कहा कि पन्द्रह वर्ष की उम्र तक मैं उनके साथ एक ही बेड पर सोता था तब मुझे झुकना पड़ा और उनका कहना मानना पड़ा कि हम दोनों एक साथ चारपाई पर सोयेंगे।
कुछ देर बाद चाची मेरी ओर पीठ करके सो गई और मैं अपनी पढ़ाई करता रहा।
रात को करीब 11 बजे मुझे नींद आने लगी, तब मैं टेबल-लैम्प बंद करके चाची की बगल में उसकी ओर पीठ करके सो गया।
मुझे सोये हुए शायद कुछ घंटे ही हुए होंगे कि मेरी नींद खुली और मैंने पाया कि मैंने करवट ले ली थी और मैं चाची की ओर मुख कर के सो रहा था।
मेरा दाहिना हाथ चाची के कमर के ऊपर था और मेरी जांघें चाची की जांघों से सटी हुई थी।
मैं करवट बदलने की सोच रहा था और अपना हाथ उठाने वाला ही था कि चाची ने मेरा हाथ खींच कर अपनी छाती पर रख दिया।
मैं उनकी इस हरकत से सन्न रह गया और चाची जाग न जाये इसलिए मैं उसी हालत में उनकी एक चूची को पकड़ कर लेटा रहा।
मेरी हालत बहुत खराब हो रही थी और मेरा लंड खड़ा हो गया था और वह चाची के नितंबों के बीच कि दरार में घुसने कि कोशिश कर रहा था।
मुझे डर लग रहा था कि अगर चाची जाग गई तो मेरे बारे में क्या सोचेगी और मेरी इस हरकत पर क्या कहेगी।
तभी मैंने महसूस किया कि चाची ने चूची पर रखे हुए मेरे हाथ को दबाया और अपनी टांग उठा कर मेरे लंड को दरार में घुसने के लिए जगहें बना दी।
इस आज़ादी मिलने से मेरा लंड फनफनाने लगा और चाची की जाँघों के अंदर की ओर सरकने लगा।
तभी मैंने एक और चीज़ महसूस की कि मेरा लंड मेरी लुंगी के बाहर था और चाची की लुंगी भी उनके ऊपर नहीं थी।
यानि मेरा नंगा लण्ड चाची की नंगी जांघों के बीच की जगह में घुस रहा था और मैं अपने लंड को रोकने पर भी नहीं रोक पा रहा था।
मैंने जो हो रहा था उसे रोकने की कोशिश छोड़ दी और इंतज़ार करने लगा कि आगे क्या होता है।
कुछ देर के बाद मैंने महसूस किया कि मेरा लंड चाची की टांगों के बीच में चूत की फांकों के मुँह के पास पहुँच कर रुक गया था।
तभी चाची की टांग हिली और मैंने पाया कि मेरा लंड झट से चाची की चूत के होटों से चिपक गया था।
मेरे पसीने छुटने लगे थे क्योंकि चाची की चूत के पास की गर्मी से मेरा लंड फ़ैल कर पूरा सात इंच लंबा और ढाई इंच मोटा तथा लोहे की छड़ की तरह सख्त भी हो गया था।
उस स्थिति में मैं क्या करूँ, मुझे समझ नहीं आ रहा था इसलिए मैंने सब कुछ चाची पर छोड़ दिया और इंतज़ार करने लगा।
कहते हैं कि इंतज़ार का फल मीठा होता है और मुझे जल्द ही महसूस होने लगा कि चाची भी गर्म हो चुकी थी क्योंकि उसकी चूत ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया था, जिसकी वजह से मेरा लंड भी गीला होने लगा था।
तभी चाची ने एक और हरकत की और अपने हाथ से मेरे लंड का सुपारा अपनी चूत के मुँह के आगे करके थोड़ा नीचे सरक गई।
बस फिर क्या था, मेरा गर्म लंड चाची की चूत के अंदर जाने को लपक पड़ा और देखते ही देखते मेरा लंड चाची कि चूत में दो इन्च तक अंदर घुस गया था।
तभी चाची का हाथ मेरे नितम्ब पर पड़ा और उन्होंने मुझे आगे सरकने के लिए दबा कर इशारा किया।
फिर क्या था, मुझे तो खुली इजाजत मिल गई थी और मेरा सारा डर भाग गया था।
मैं आहिस्ते से हिला और आगे की ओर सरका, जिससे मेरा लंड भी चाची की चूत में और आगे घुसने लगा था।
कुछ ही देर में मेरे कुछ हल्के और दो जोरदार धक्कों कि वजह से मेरा लंड पूरा का पूरा चूत के अंदर घुस गया था।
चाची शायद इतना लंबा और मोटा लंड लेने के लिए तैयार नहीं थी इसलिए उसके मुख से जोर से हाएईईई….. निकल गई।
मैं घबरा गया और झट से पूछ बैठा- चाची, सब ठीक है न?
तब उन्होंने कहा- हाँ मस्तराम, सब ठीक है, तुम चुदाई चालू रखो।
फिर क्या था, चाची के मुख से ये शब्द सुनते ही मैं पूरे जोश से चुदाई में पिल गया और तेज तेज धक्के मारने लगा।
चूत गीली होने के कारण लंड बड़े आराम से अंदर बाहर हो रहा था।
चाची की चूत भी तंग होने लगी थी और उसकी पकड़ लंड पर मज़बूत होती जा रही थी जिससे मेरे लंड को रगड़ भी ज्यादा लग रही थी।
चाची की आह्ह… ह्ह्ह्ह… और उंहह्ह… उंहह ह्ह्ह… की आवाजें भी तेज होने लगी थी लेकिन मैंने इसकी परवाह किये बिना उनकी चुदाई चालू रखी।
एक समय आया जब चाची चूत एकदम सिकुड़ गई और मुझे लंड अंदर बाहर करने में मुश्किल होने लगी।
तभी चाची एकदम अकड़ गई और उन्होंने अपनी दोनों टांगें सिकोड़ ली तथा जोर से चिल्ला भी पड़ी- आईईई… ईईईईईईए…
मैं समझ गया कि चाची का पानी छूट गया था। मैंने उनकी चुदाई थोड़ी और तेज कर दी और तब चाची ने भी मेरा साथ देना शुरू कर दिया तथा अपने शरीर को मेरे धक्कों के साथ साथ हिलाने लगी।
वह जोर जोर से आह्ह्ह… आह्ह्ह्ह… उंहह्ह ह्ह्ह…. उम्हह्ह… की आवाजें भी निकालने लगी।
अब चुदाई का आनन्द चार गुना हो गया था और मैं इस इंतज़ार में था कि कब मेरा छूटता है।
अगले दस मिनट तक मैं चाची को उसी तरह चोदता रहा और इस बीच में चाची ने आह… आह्ह… उह्ह… उहह.. की आवाजें की तथा उनकी चूत तीन बार सिकुड़ कर अपना रस छोड़ा था।
जब मुझे लगा कि मेरा भी रस छूटने वाला था, तब मैंने चाची से पूछा- चाची, क्या मैं अपना रस चूत के अंदर छोड़ूँ या बाहर निकालूँ? चाची ने जवाब दिया- मस्तराम बेटे, अंदर ही छोड़ देना।
बस फिर क्या था, मैंने भी चाची की चुदाई फुल स्पीड से करनी शुरू कर दी और जैसे ही चाची अकड़ कर आईईई… ईईईईए… आईईईए… करती हुई छूटी, मैंने भी चाची की प्यारी सी चूत के अंदर अपनी पिचकारी चला दी।
वह पिचकारी इतनी चली और चलती ही गई कि मैं खुद हैरान हो गया था कि मेरे अंदर इंतना रस कहाँ से आ गया था जो मैं आज तक भी समझ पाया।
हम दोनों के छूटने का समय ने बहुत ही मेल खाया था और उस समय मैंने अपने जीवन का सबसे बड़ा आनन्द महसूस किया था।
मैं इस आनन्द की अनुभूति चाची के मुख पर भी देखना चाहता था इसलिए मैंने टेबल लेम्प को ऑन कर दिया।
मुझे चाची के चेहरे पर एक अजीब सा संतोष नज़र आया जो मैंने पिछले दस वर्ष से नहीं देखा था।
चाची रोशनी में मुझे देख कर मुस्करा दी, मेरे होंटों पर होंट रख एक चुम्बन दे दिया और फिर बोली- अब अपना लंड बाहर निकाल दो ताकि मैं शौचालय तो जा सकूँ।
मैं एकदम से अपने होश में आ गया और थोड़ा शरमा भी गया, मैंने अपने लंड को आहिस्ता आहिस्ता बाहर खींचा चाहा, लेकिन वह अभी तक अंदर फंसा हुआ था, चाची की चूत बहुत तंग हो गई थी और लंड को छोड़ ही नहीं रही थी।
मैंने चाची को चूमते हुए धीरे से कहा- आपकी चूत मेरे लंड को छोड़ ही नहीं रही तो बताइये कि मैं उसे बाहर कैसे निकालूँ।
इस पर वह हंस पड़ी और कहा कि अगर वह अभी थोड़ी सी भी ढीली हुई तो सारा रस बाहर आ जायेगा।
तब मैंने कहा- तो फिर ऐसे ही बीच में डाले डाले ही शौचालय में चलते हैं।
चाची खिलखिला कर हंस पड़ी और अपनी चूत ढीली करने के लिए मान गई।
चाची ने अपनी चूत थोड़ी जैसे ही ढीली की, मैंने अपने लंड को बाहर निकाला लेकिन उसके साथ ही चूत में पड़े हुए मेरे और चाची के रस का एक फव्वारा छुट गया।
चाची ने एकदम से अपनी चूत को सिकोड़ लिया और मैंने अपना हाथ उनकी चूत के ऊपर दबा दिया जिससे सब कुछ नियंत्रण में आ गया।
मैं उसी तरह चूत पर हाथ रख कर चाची को बाथरूम तक ले गया और यह देखता रहा कि आगे क्या होता है।
मेरे मन में चाची की चूत में से निकलते हुए रस को देखने की बहुत लालसा हो रही थी और जब चाची ने अपनी चूत को ढीला किया और उस में से फव्वारा छुटा तो मेरी वह हसरत भी पूरी हो गई।
जब चूत के अंदर से खूब रस निकला तो चाची भी बहुत चकित हो गई और बोली- बेटे, यह माल कितने सालों से जमा किया हुआ है? क्या तुमने पहली बार चुदाई की है?
तब मैंने कहा- हाँ चाची, चुदाई तो मैंने पहली बार की है, पर हस्तमैथुन कई बार किया है और यह माल तो सिर्फ एक दिन का है, तो चाची से नहीं रहा गया और बोल पड़ी- अगर इतना रस एक दिन का है तो फिर एक हफ्ते में तो तू इतना तैयार कर देगा कि मैं उसमें डुबकी लगा लूँगी।
चाची की इस बात पर मेरी हसीं निकल गई।
जब चाची की चूत में से सारा रस बाहर निकल गया तब चाची ने चूत को अच्छी तरह से साफ़ की और खड़ी हो गई।
वह इस समय सिर्फ बनियान में थी क्योंकि मेरी और उसकी लुंगी तो चुदाई के समय खुल गई थी और बिस्तर पर पड़ी थी।
चाची अब आगे बढ़ी और बिल्कुल मेरे सामने आकर, नीचे बैठ कर, मेरे लंड को पकड़ कर चूमने लगी।
मुझे यह बहुत अच्छा लगा और मैंने भी लपक कर चाची को गोद में उठा लिया और उसके जिस्म पर चुम्बनों की बौछार कर दी। इसके बाद मैंने चाची की और अपनी बनियान भी उतारी और बिल्कुल नंगे होकर बिस्तर पर एक दूसरे कि साथ लिपट कर सो गए।
सुबह साढ़े पांच बजे जब मेरी नींद खुली और मैंने चाची को बिस्तर पर नहीं पाया तो उठ कर बैठ गया।
तभी मुझे स्नानगृह से पानी बहने कि आवाज़ सुनाई आई तो समझ गया कि चाची नहा रही होगी।
मैं उठ कर स्नानगृह में घुस गया तथा चाची को नहाते हुए देखने लगा। चाची ने जब मुझे देखा तो अपने पास बुलाया और मेरे लंड को पकड़ कर चूमा और कहा- यह तेरे पास मेरी अमानत है, मेरे जाने के बाद इसे तंग मत करना, जब तू घर आएगा तो इसको जितना भी तंग करना है मैं ही करुँगी।
फिर वह उठ कर अपना बदन पोंछने लगी और मुझे कहा- अब जल्दी से यार हो जा, स्टेशन चलना है, देर हो गई तो गाड़ी छूट जाएगी।
मैं भी जल्दी से नहा कर तैयार हो गया और चाची को साईकल पर पीछे बिठा कर स्टेशन छोड़ने चल पड़ा।
चाची रास्ते में मुझे बताती जा रही थी- घर को साफ कर दिया है दो दिन तो झाड़ू पोंछे की जरूरत नहीं पड़ेगी और दोपहर की रोटी बना के रखी है, उसे खा लेना।
छह बजे हम स्टेशन पहुंचे तो पता चला कि गुर्जर आंदोलनकारियों ने सब रेल लाइन घेर रखी थी इसलिए अभी तक गाड़ियाँ चलनी शुरू नहीं हुई थीं।
चाची ने वहाँ के स्टेशन मास्टर के पास जाकर बात की और अपने शहर के स्टेशन मास्टर को फोन कर के काम पर न पहुँच पाने की दुविधा बताई।
उसके शहर के स्टेशन मास्टर ने भी बताया कि वहाँ भी गाड़ियाँ नहीं आ रहीं थी इसलिए वहाँ कोई काम ही नहीं है, और चाची छुट्टी कर सकती है, जब गाड़ियाँ चलनी शुरू हो जाएँ, तब काम पर आ सकती हैं।
फिर मैं चाची को घर पर छोड़ कर आठ बजे नाश्ता करके, कालेज चला गया और दोपहर को तीन बजे वापिस आया।
चाची मेरा इंतज़ार कर रही थी, उसने अपने कपड़े तो धो दिए थे और मेरी लुंगी और बनियान पहन रखी थी।
बनियान में से उसकी चूचियाँ उभर रहीं थीं तथा उसके के ऊपर लगी काली काली डोडियों की झलक दिख रही थी।
मैंने भी लुंगी और बनियान पहन ली और फिर हम दोनों ने साथ बैठ कर खाना खाया।
खाना खाकर हम दोनों बिस्तर पर लेट गए और मैंने चाची कि बनियान के अंदर हाथ डाल कर उनकी चूचियाँ को दबाना तथा चुचूकों को मसलना शुरू कर दिया।
चाची ने न तो कुछ कहा और न ही मेरे हाथ को रोका बल्कि हाथ बढ़ा कर मेरी लुंगी को हटा कर जब मेरा लंड पकड़ने लगी तो उन्हें मेरे जांघिये पहने होने का एहसास हुआ।
तब उसने कहा- “इसे तो उतार देना था, देख मैंने तो नीचे कुछ भी नहीं पहना हुआ है।”
फिर उसने उठ कर मेरा जांघिया उतार दिया और मेरे लंड तथा टट्टों को पकड़ कर मेरे पास लेट गई, थोड़ी थोड़ी देर बाद वह उन्हें दबा तथा मसल देती थीं, उसके ऐसे करने से मेरा लंड एकदम तन गया और उसमें से रस निकलना शुरू हो गया था।
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चाची ने जब यह देखा तो अपने मुँह को लंड के सुपारे पर रखा और उस रस को चूस लिया, सुपारे के छिद्र में भी जो रस था उसे भी खींच कर पी लिया। उनके मुँह मेरे लंड से छूते ही मुझ को जोश चढ़ गया और मैंने चाची की लुंगी में हाथ डाल कर उनकी चूत में ऊँगली डाल दी।
इस पर चाची ने कहा- ऐसे आनन्द नहीं आएगा, अगर सही आनन्द चाहते हो तो तुम उलटे हो कर चूत को चूसो और मैं तुम्हारा लंड चूसती हूँ, फिर आनद ही आनन्द मिलेगा।
चाची के मुँह से यह बात सुन कर मुझे बहुत ख़ुशी हुई, मैं उठ कर चाची के तथा अपने कपड़े उतार कर नग्न हो गया और पलटी होकर चाची की टांगें चौड़ी करके उनकी चूत पर अपना मुँह लगा कर उसे कस कर चूसने लगा।
चाची भी मेरे लंड का सुपारा अपने मुँह में डाल कर चूसने लगी।
तब मैंने चाची से कहा- मेरा पूरा लंड मुँह में डाल कर चूसिये।
उसने कहा- जब सुपारा चूस कर मेरा मन भर जायेगा, तभी मैं पूरा लंड भी मुँह में डाल लूंगी।
फिर मैंने उसकी चूत पर ध्यान दिया और उसके भगांकुर को अपनी जीभ से रगड़ने लगा, उसकी चूत के अंदर जीभ डाल कर घुमाने लगा और उसकी चूत के होंटों को जोर से चूसने लगा।
चाची भी धीरे धीरे मेरा पूरा लंड मुँह के अंदर ले कर चूसने लगी, मुझे भी बहुत मजा आने लगा, मैं हिलने लगा तथा उनके मुँह को चूत समझ कर चोदने लगा।
चाची भी हिलने लगी और अपनी चूत को मेरे मुँह पर रगड़ने लगी।
दस मिनट तक ऐसे ही चूसा चुसाई करने के बाद चाची ने कहा- अब मुझसे और नहीं रहा जाता, तू भी तैयार है और मैं भी तैयार हूँ, अब अपने लंड को मेरी चूत में डाल कर मेरी चुदाई कर दे, खूब अच्छी तरह से चुदाई कर दे।
चाची के कहने पर मैं उठा और चाची के ऊपर लेट गया, चाची ने मेरे लंड को पकड़ा और अपनी चूत के मुँह पर रख दिया और कहा- अब हल्का सा धक्का मार।
मैंने हल्का सा धक्का दिया और सुपारा चाची की चूत के अंदर सरका दिया।
चाची ने एक बार सी सी की और बोली- “शाबाश, तू तो बहुत समझदार हो गया है, अब हल्के धक्के मारता रह और पूरा लंड चूत अंदर घुसेड़ दे।
मैंने वैसा ही किया और पांच-छह धक्कों में ही अपना सात इंच लम्बे और ढाई इंच मोटे सुपारे वाला लंड चाची की चूत में फिट कर दिया।
चाची सी सी तो करती रही पर उसने मुझे रोका नहीं।
जब पूरा लंड उनकी चूत फिट हो गया, तब चाची ने कहा- मैं आज की चुदाई का बहुत आनन्द लेना चाहती हूँ, इसलिए अहिस्ता अहिस्ता अंदर बाहर कर। रात की तरह दस मिनट में नहीं छूट जाना, आज तो कम से कम आधा घंटा, मेरी चूत की रगड़ाई ज़रूर होनी चहिये।
मैंने ‘अच्छा’ कह कर चाची के कहे अनुसार धक्के लगाने शुरू कर दिए, लंड सुपारे तक बाहर आता और फिर अंदर घुस जाता।
चाची कह रही थी- शाबाश मस्तराम शाबाश, बस इसी तरह धक्के लगाते रह, अपनी चाची को ऐसा मज़ा दे जैसा कभी न मिला हो, मेरी पिछले दस साल की प्यास बुझा दे। तेरा लंड तो तेरे चाचाजी से अधिक लम्बा और मोटा तथा जवान भी है इसलिए इससे ज्यादा आनन्द मिलना चाहिये। तेरे चाचाजी का लंड तो सिर्फ 6 इंच लंबा और डेढ़ इंच मोटा था, इसलिए कभी कभी भरपूर आनन्द नहीं दे पाता था।
इसके बाद चाची मेरे धक्कों से मेल मिला कर उछलने लगी और जब मैं लंड को अंदर कि ओर धक्का देता तो वह भी उचक कर चूत ऊपर को उठाती और जब मैं लंड को बाहर खींचता तो वह नीच हो जाती, ऐसी चुदाई करने से हम दोनों को चुदाई का दुगना आनन्द आने लगा।
पन्द्रह मिनट तक ऐसे ही चुदाई करते रहने के बाद चाची की चूत सिकुड़ने लगी थी और मेरे लंड पर उसकी पकड़ मज़बूत होती जा रही थी जिससे मेरे लंड को रगड़ भी अधिक लग रही थी। चाची आह्ह… आहह्ह्ह… उंहह…. उंम्ह… की तेज आवाजें निकालने लगी थी।
मैंने चाची की आवाजों की परवाह नहीं की तथा उसी तरह चाची की चुदाई चालू रखी।
कुछ समय के बाद जब चाची की चूत एकदम सिकुड़ गई और मुझे लंड अंदर बाहर करने में मुश्किल होने लगी, तभी चाची का बदन एकदम अकड़ गया और वह जोर से चिल्ला पड़ी- आईई… ईईईई… माईईई… ईईईईए… मर गईईई….. मस्तराम बहुत अच्छे… बहुत अच्छे… तुमने बहुत बढ़िया धक्के मारे, मुझे बहुत आनन्द आया।
मैं समझ गया कि चाची की चूत ने पानी छोड़ दिया था।
इससे पहले मैं चाची से कुछ कहता, चाची बोल पड़ी- अब थोड़ा रुक जाओ और साँस ले लो, नहीं तो जल्दी छूट जाएगा, मेरे को भी थोड़ा आराम मिल जाएगा, हमें अभी जीवन की सब से बढ़िया चुदाई का आनन्द भी तो लेना है।
मैं रुक गया और अपने लंड को चाची की चूत में फंसे रहने दिया तथा बोला- चाची आपको तो कहना चाहिए जीवन की पहली सबसे बढ़िया चुदाई का आनन्द भी तो लेना है। अभी तो मैं आपको इससे भी बढ़िया चुदाइयों का आनद देने के लिए चोदूंगा कि आप सब चुदाइयाँ भूल जायेंगी।
तब चाची बोली- जीता रह मस्तराम, तेरी इच्छा पूरी हो और तू सदा मेरे को इसी तरह चोदता रहे।
पांच मिनट रुकने के बाद चाची ने कहा- अब चुदाई शुरू कर सकते हो, पहले आहिस्ते आहिस्ते धक्के देना, फिर थोड़ा तेज कर देना और अंत में पूरा जोर लगा कर बहुत तेज तेज चोदना।
मैंने चाची की बात मान कर आहिस्ते आहिस्ते धक्के देने शुरू किये, जब चाची ने मेरे साथ हिलना शुरू किया तो मैंने तेज धक्के देने लगा।
चाची भी तेज हिलने लगी और उसके मुँह से आह्ह… आहह्ह्ह… उंहह…. उंम्ह… आवाजें निकलनी शुरू हो गईं थी।
हमें तेज चुदाई करते हुए दस मिनट हो चुके थे, जब मुझे महसूस हुआ कि मैं अपनी चरम सीमा पर पहुँचने वाला था, तो चाची से बोला- मैं छूटने के करीब हूँ।
तब उसने कहा- मैं भी छूटने करीब ही हूँ, बहुत तेज धक्के लगा दे।
मैंने वैसा ही किया और फिर क्या था, पूरे कमरे में हम दोनों की आवाजें आह… उह… ह्ह्ह… उंहह… उंह… आह… उंहह्ह… आह.. उंह ह्ह्ह… गूंजने लगी। मेरा लंड फूल गया और चाची की चूत सिकुड़ गई और हम दोनों एक दूसरे की रगड़ से बहुत उत्तेजित हो गए।
मैं पूरे जोर और तेज़ी से चाची को चोदने लगा।
तभी चाची एकदम अकड़ गई तथा जोर से चिल्लाई “उंहह… उंह्ह्ह… ओह्ह… मैं गईईई.. मैं गईईईई.. गईईईईई.. गईईईईईई..
और उसके साथ ही चाची की चूत में फुआरा छूटा तथा मेरी पिचकारी भी छूट गई।
दो मिनट तक तो हम वैसे ही लेटे रहे और जब चाची शांत हो गई तब मैंने जैसे ही लंड को बाहर निकाला चाची की चूत से एक दरिया सा बह निकला और बेड पर फ़ैल गया।
चाची उठ कर बैठ गई और हैरानी से चूत में से रस का रिसना देखती रही और मुझे बोली- मस्तराम, तेरे टट्टों में रस की फ़ैक्ट्री है क्या, जो इतना ज्यादा रस बन रहा है। रात को तूने एक कप रस निकला था और अभी चौबीस घंटे भी नहीं हुए और तूने फिर से एक कप भर रस की पिचकारी मार दी।
हमने उठ कर अपने को धोया, चाची ने बेड की चादर धो दी और मैंने बेड पर नई चादर बिछा दी।
इसके बाद हम दोनों एक दूसरे से लिपट के सो गए।
शाम छह बजे हम जागे तब चाची ने चाय बना कर पिलाई। फिर हम तैयार हो कर बाजार गए।
क्यूंकि चाची अपने साथ कपड़े नहीं लाई थी इसलिए वहाँ से चाची को दो साड़ी और उनके साथ के ब्लाउज और पेटीकोट खरीदे, फिर चाची ने दो जोड़ी ब्रा और पेंटी भी ली।
मैंने चाची से गाउन भी लेने को कहा पर चाची ने कहा कि वह मेरी लुंगी और बनियान से ही काम चला लेगी, क्यूंकि उनमे उनको गर्मी कम लगती है और आराम अधिक मिलता है।
उसके बाद हमने एक होटल में जाकर खाना खाया और रात नौ बजे के बाद घर पहुचे।
वापिस आकर मैं कपड़े बदल कर पढ़ने बैठ गया, चाची ने तो पहले अपने नए खरीदे हुए कपड़ों को पहन कर देखा, फिर सिर्फ मेरी लुंगी पहन कर अर्ध-नग्न ही रसोई का काम समेटने लगी।
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दस बजे चाची काम खत्म करके कमरे में आई और अर्धनग्न अवस्था में ही बेड पर लेट गई।
मैं ग्यारह बजे तक पढ़ाई करने के बाद चाची के पास लेटने लगा तो चाची ने कहा- कपड़े उतार कर ही लेटना !
और उसने अपनी लुंगी भी खोल कर मुझे पकड़ा दी।
मैं भी अपने कपड़े उतार कर अपनी नग्न चाची के पास नंगा ही लेट गया और उसके बदन पर हाथ फेरने लगा।
चाची भी मेरे लंड और टट्टों को हाथ में लेकर उनको मसलने लगी।
मैंने चाची को उसके होंटों पर चुम्बन किया तो उसने पूरा सहयोग दिया और अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल कर चूसने दी तथा मेरी जीभ को भी अपने मुँह में ले कर चूसा, फिर मुझे चूचियाँ चूसने को कहा।
मैंने बारी बारी उसकी दोनों चूचियों को चूसा तथा चूत में ऊँगली भी करी, चाची ने भी मेरे लंड को हिलाया तथा लंड के ऊपर के मॉस को कभी सुपारे के ऊपर से उतारती और कभी चढ़ाती रही।
हम दोनों की ऐसी हरकत से दोनों ही गर्म हो गए तब मैंने चाची से कहा- मैंने तुम्हें लेट कर तो सुबह चोदा था, अब मैं तुम्हें खड़े होकर चोदना चाहता हूँ।
उसने कहा- अच्छा ठीक है, पर पहले हम एक दूसरे को चूस के तैयार तो कर लें।
यह सुन कर मैंने उठ कर अपना लंड चाची के मुँह में दे दिया और खुद चाची की चूत को चूसने लगा।
सुबह की तरह जब चाची एक बार छूट गई तब मैंने चाची को नीचे खड़ा कर, उसका ऊपर का हिस्सा बेड पर झुका के घोड़ी बना दिया और उनके पीछे खड़ा हो कर चाची की चूत का मुँह को खोला और उसमें अपने लंड को टिका कर के धक्का दिया।
मेरा आधा लंड चूत के अंदर चला गया, दूसरे धक्के से मेरा पूरा लंड अंदर चला गया।
चाची की चूत अब मेरे लंड के साइज़ की आदि होने लगी थी इसलिए सिर्फ हल्की हल्की सी सी करी और उनकी चूत बड़े आराम से मेरे लंड को गप कर गई।
फिर मैंने आहिस्ते आहिस्ते धक्के देने शुरू किये, चाची ने मेरे साथ हिलना शुरू कर दिया।
दस मिनट के बाद मैं तेज धक्के देने लगा। चाची ने भी मेरी स्पीड के साथ मेल करते हुए तेज हिलने लगी और उसके मुँह से आ… आह… उंह… उंह… की आवाजें निकलनी शुरू हो गईं।
उस तेज चुदाई को करते हुए जब दस मिनट और बीत गए तब मैं बहुत तेज धक्के लगाने लगा।
अब कमरे में हम दोनों की आहें-आवाजें गूंजने लगी।
एकदम से चाची की चूत सिकुड़ने लगी और मेरा लंड भी फूलने लगा। देखते ही देखते हम दोनों एक दूसरे की रगड़ से उत्तेजित होने लगे। मैं चाची को पूरे जोर शोर और तेज़ी से चोदने लगा।
दो मिनट में ही चाची एकदम अकड़ गई और जोर से चिल्लाई “उंहह्ह्ह्ह… उंहह्ह्ह्ह्ह… ओह्ह्ह्ह… मैं तो गईईईई.. मैं तो गईईईई.. इसके बाद चाची की चूत ने मेरे लंड को बहुत कस के जकड़ लिया और अंदर खींच लिया तथा अपना फुआरा छोड़ दिया।
उसी समय मेरा लंड भी फड़का और उसमें से छह-सात पिचकारी की धारा छूटीं।
देखते ही देखते चाची की चूत में हम दोंनो का रस लबालब भर गया और बाहर बहने लगा।
बदन के अकड़ने और चूत में खिंचाव की वजह से चाची की टाँगें कांपने लगी थी, जिससे मेरा लंड बाहर आ गया और चाची वहीं, नीचे जमीन पर ही बैठ गई।
मैं भी चाची से पास बैठ गया और उसकी टाँगें पकड़ कर दबाने लगा।
कुछ देर के बाद वह संभल गई और फिर हमने शौचालय में जा कर एक दूसरे को साफ़ किया तथा बिस्तर पर आकर लेट गए।
जब मैंने चाची को अपने साथ चिपका कर पूछा कि उसे क्या हो गया था तब उन्होंने बताया- मुझे आज तक की सबसे बड़ी सिकुड़न एवं खिंचावट हुई है, सुबह से भी अधिक, बहुत अधिक।
मैंने पूछा- आनन्द तो मिला होगा?
तब वह बोली- मस्तराम औरत को सबसे ज्यादा आनन्द तो इस खिंचावट के समय ही आता है और आज मुझे उस अत्यंत आनन्द का अनुभव हो गया है।
मैं महसूस कर रही हूँ कि मैंने तुझसे चुदाई करा कर कोई गलती नहीं की और अब तो मैं तुझ से किसी भी कीमत तथा किसी भी हालात में चुदाई कराने को तैयार हूँ।
इसके बाद चाची मुझसे लिपट गई और हम दोनों उस रात के लिए नींद के आगोश में खो गए।







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