अधिकार
वह चुपचाप छोटी कोठरी में खडी है। घर के लोग इसे छोटी कोठरी कहते हैं। यह और बात है कि घर की अन्य दो कोठरियां भी इसी तरह..। तीस साल पहले उसने कहा था कि जंग में प्यार नहीं होता लेकिन प्यार में जंग संभव है। इसलिए तुमसे कहती हूं, अगर इस हादसे को टालना चाहते हो तो मेरी बात मान लो।
तब मैं कैरम का कॉलेज व डिस्ट्रिक्ट चैंपियन था, फुटबाल का भी बेहतरीन खिलाडी था, टीम का कप्तान। हर मैच जीत कर, हाफ पैंट और हरी-सफेद जर्सी में उसके यहां पहुंच जाता। वह दरवाजे पर इंतजार करती। मैं दूर से जीत का इशारा करता और वह तालियां बजा कर मेरा स्वागत करती थी।
ऐसे ही किसी दिन वह गेट पर खडी थी। मैंने उसके करीब आकर कहा था-
इस दरवाजे पर मेरी आहट को रुकी तू, कहीं गुजरे न यहीं से कहारों के कदम.. कि मेले में हाथ छूटी बच्ची की तरह फिर हर शाम मरेगी..हर उम्मीद तोडेगी दम!
अगर ऐसा हुआ..
तो समझ लूंगा मैं-
इस व्यापारी से जग ने
इक और भरम दिया है
कि जैसे- गरीबी से घिरी किसी औरत ने- इक और बीमार-सी बच्ची को जनम दिया है!
वह गुमसुम मुझे देखती रही। सांप सूंघी सी! क्या हुआ गुडिया? मैं जीत कर आया हूं। स्वागत नहीं करोगी एक कप चाय से?
जंग में प्यार नहीं होता, मगर प्यार में जंग संभव है। इसलिए कहती हूं, अगर इस हादसे को टालना चाहते हो तो बात मान लो..।
मैं समझा नहीं..
तुम्हारे दोस्त तुमसे गोल मांगते हैं, लगभग हर मैच में तुम गोल करते हो। तुम भूल जाते हो कि मैंने भी तुमसे कुछ मांगा है।
क्या?
कहानियां और लाल चूडियां..
पर मुझे हरा पसंद है। हरी चूडियां चलेंगी?
नहीं-। यूं समझ लो कि मुझे लाल रंग प्रिय है। अधिकार मांग रही हूं, नहीं मिलेगा तो छीन कर लूंगी। जंग में सब कुछ जायज है।
और सचमुच, वह मुझसे कहानियां लिखवाने लगी। जब भी कहानी छपती, उसे लगता, उसने एक किले का कब्जा कर लिया। वह एक के बाद एक जंग जीतती गई। अचानक एक दिन वक्त के आतंकवादी ने कुछ इस तरह छल से हमला किया कि हमारा प्यार लहूलुहान हो गया। उसकी शादी हो गई। उस रोज मैंने फिर एक कविता लिखी-
ये तू कि जिसने मेरी पीडा को छांव दी
अब होके अलग अश्कों में ढली जाती है..
ये तू नहीं-हर औरत की कोई लाचारी है
जो सिक्के की तरह हाथों से चली जाती है..
ऐसी ढेरों पंक्तियां डायरी के पन्नों के बीच फूलों की तरह दब कर सूख गई। कहीं कोई खुशबू नहीं, हरापन नहीं। लेकिन मुझे हरा रंग पसंद था और तबसे तो और, जबसे बुध की महादशा शुरू हुई- ॐ बुं बुधाय नम:।
अंतिम बार उसने कहा था, मेरी शवयात्रा में आओगे?
शवयात्रा?
डोली उठेगी तो लोग रोएंगे, जैसे अर्थी उठने पर रोते हैं। देखना, लाल साडी और लाल चूडियों में तुम्हारी गुडिया कैसी लगती है!
मैंने कहा, हमारे प्यार को सलीब दी गई है। लहू की बूंदों से हम तर हो गए। तुम मुझे भी प्यार का लाल रंग दिए जा रही हो। अब बाकी की उम्र हमें इस रंग से मुक्ति नहीं मिलेगी।
मगर एक दिन उसे मुक्ति मिल गई। उसके माथे पर लाल रंग पोंछा गया। इन तीस वर्षो में हम नहीं मिले। मैं पटना आ गया और वह बेगमसराय चली गई। अपने-अपने परिवारों में हम खो गए। मैं साहित्यिक कार्यक्रमों के सिलसिले में कई बार बेगमसराय गया, लेकिन उससे नहीं मिला। मुंगेर आने से पहले हम बेगमसराय में रहते थे। 1954 में घर-बार बेच कर मुंगेर आए। उसने कहा, कैसा संयोग है कि तुम बेगम सराय से मुंगेर चले आए, मैं बेगमसराय जा रही हूं। तुम्हें नहीं लगता कि हम खुद से भाग रहे शरणार्थी जैसे हैं?
अधिकतर धार्मिक उन्माद में ऐसे हालात बनते हैं, जब आदमी को शरणार्थी बनना पडता है। हमारे बीच धर्म की दीवार कहां रही? मैंने कहा तो वह बोली, जो पूरे मन व आत्मा की गहराई से धारण किया जाए, वही धर्म है। हम प्यार को धारण कर धार्मिक बन गए। प्यार के धर्म ने हमें 12 वर्षो तक विश्वास की तकली पर चढा कर एहसास के धागे में बदल दिया है। पहले तुम रुई की तरह कहीं उड रहे थे, मैं कहीं और भटक रही थी। अब हम धागा बन चुके हैं। अब हमें कोई अलग करके फिर से रुई में तब्दील नहीं कर सकता। ध्यान रखना, विश्वास की तकली पर काता गया एहसास का धागा तुम्हारी गलती से टूट न जाए। एहसास और सांस, दोनों के टूटने से मृत्यु होती है..।
तुम्हारे जाने के बाद मेरा क्या होगा?
अब तुम कहीं और मैं कहीं! दोनों हम बन चुके हैं। हम यानी विश्वास की तकली पर 12 वर्षो तक काता गया एहसास का धागा। याद रखो, एहसास और रिश्ते में फर्क होता है। रिश्ते में अकसर लोग समझौते करते हैं-झुकते हैं, झेलते हैं। कभी-कभी रिश्तों में एहसास का पौधा भी जन्म लेता है। सांस व एहसास, दोनों के टूटने से मौत होती है। सांस टूटने से इंसान मरता है, एहसास टूटने से प्यार।
..यही वजह थी कि मैं बेगमसराय जाकर भी उससे नहीं मिला। एहसास के उस धागे को रोजरी या जनेऊ की तरह धारण कर मैं धार्मिक बन गया। मैंने धर्म परिवर्तन नहीं किया। लेकिन यह सुन कर कि वह अकेली और दुखी है, मैं खुद को नहीं रोक सका।
..कई लोगों से उसके बारे में पूछा। कोई उसे नहीं जानता था। मन कांच की तरह चटक गया। हे प्रभु! इस शहर में, इस कदर अनजान-अनाम है मेरी गुडिया!
एक आदमी ने कहा, कहीं आप ग्रीन दीदी के बारे में तो नहीं पूछ रहे हो?
मैं चौंका। ग्रीन दीदी.. ग्रीन मैडम.. ग्रीन मेमसाहब..! यहां उन्हें उनके नाम से तो गिने-चुने लोग ही जानते हैं। हरी चूडियों से भरी कलाइयां, हरी साडी.., सभी ने अपनी उम्र के हिसाब से उनका नामकरण किया है। पर अब सफेद सूती साडी..नंगी कलाइयां..।
मैं जाता हूं तो वह दरवाजा खोलती है.. तुम? आओ, भीतर आओ।
मैं उसे देख कर सोचने लगा, कभी इसने कहा था, जंग में प्यार नहीं होता, मगर प्यार में जंग संभव है। वह भीतर जाती है और कुछ देर में ही चाय लेकर आ जाती है।
नंगी कलाइयां, सफेद सूती साडी, सफेद रंग! पर उसे तो लाल रंग प्रिय था!
तुम क्या सोचने लगे? चाय पियो न?
मैंने प्याली हाथ में लेकर चुस्की ली। वह चुपचाप मुझे देखती रही। फिर धीरे से बोली, तुम अपना खयाल नहीं रखते, देखो तो तुम्हारे बाल कितने सफेद हो गए हैं।
और तुमने? जिंदगी के खूबसूरत रुमाल के कोने में तुमने एहसास का जो धागा सहेजा था, उसे कीडों के हवाले क्यों किया?
हां, यह सच है कि इस घर में आकर मेरी देह और इच्छाओं को वक्त की दीमक धीरे-धीरे चाटने लगी। मगर अब तो सब खत्म हो गया है.., वह फफक कर रोने लगी।
खुद को जब्त कर बोला, गुडिया, हम तो समझे थे कि होगा कोई छोटा-सा जख्म, मगर तेरे दिल में तो बडा काम रफू का निकला.., उसके आंसू पोंछने के लिए हाथ बढाया तो वह खडी हो गई, न, मुझे स्पर्श न करना। कल उनकी पत्नी थी, अब विधवा हूं। सांस टूटने से इंसान मरता है-रिश्ता नहीं, चाहे झेला हो या समझौते पर टिका हो।
मैंने देखा, वह आंसू पोंछ रही थी। मैं जेब में हाथ डाल कर कुछ टटोलने लगा। दरवाजे पर आकर कहा, अच्छा ग्रीन, चलता हूं।
वह निकट आ गई, तुम्हें मेरा नया नाम पता चल गया! सच है कि शादी के बाद मैंने हरी चूडियां व साडियां ही पहनीं, ताकि जख्म हरा रहे। पति के होने और प्रेमी के न होने के एहसास को मैंने भरपूर जिया है..। और हां, ये रुपये तुम मेज पर भूल आए थे।
रख लो, शायद तुम्हारे काम आ जाएं।
कुछ लोगों का उसूल है-मुहब्बत करो, खाओ-पिओ-मौज करो। ऐसे लोग मुहब्बत को सिक्के की तरह एक-दूसरे के जिस्मों पर खर्च करते हैं और आखिरी वक्त में कंगाल हो जाते हैं। कुछ इसे बेशकीमती समझ कर खामोशी से दिल के बैंक में रख छोडते हैं। रकम बढती जाती है। मैंने यही किया था। वर्षो का बही-खाता तुम्हारे भी पास होगा?
मैंने हाथ बढाया- उसने मेरी हथेली पर रुपये रख दिए। दरवाजा फिर बंद हो गया।
मैंने देखा, घर की खपरैल छत टूटी हुई थी।
दीवारें दरक गई थीं। बावजूद इसके वर्षो का बही-खाता खोलने पर पता चला, दरवाजे के उस पार एक अमीर औरत रहती है।
अधिकार
-
- Super member
- Posts: 6659
- Joined: 18 Dec 2014 12:09
अधिकार
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************