पीला गुलाब

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rajaarkey
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पीला गुलाब

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पीला गुलाब

सुशान्त सुप्रिय

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”… यार, अठारह-उन्नीस साल से छब्बीस-सत्ताईस साल तक की लड़कियाँ देखते ही कुछ होने लगता है …।”


पतिदेव थे। फ़ोन पर शायद अपने किसी मित्र से बातें कर रहे थे। जैसे ही उन्होंने फ़ोन रखा, मैंने अपनी नाराज़गी जताई।

”अब आप शादी-शुदा हैं। कुछ तो शर्म कीजिए।”

”यार, लड़कियाँ ताड़ना तो मर्द के जीन्स में होता है। तुम इसको कैसे बदल दोगी? फिर मैं तो केवल उन्हें अप्रीशिएट ही करता हूँ। भगवान् ने आँखें दी हैं तो देखूँगा भी। पर डार्लिंग, प्यार तो तुम्हीं से करता हूँ।” यह कहते हुए उन्होंने मुझे चूम लिया और मैं कमज़ोर पड़ गई।



एक महीना पहले ही हमारी शादी हुई थी। लेकिन लड़कियों के मामले में उनके मुँह से ऐसी बातें मुझे बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थीं। लेकिन ये थे कि ऐसी बातों से बाज ही नहीं आते। हर सुंदर युवती के प्रति ये आकर्षित हो जाते। इनकी आँखों में वासना की भूख जग जाती।



हर रोज़ सुबह के अखबार में छपी अभिनेत्रियों की रंगीन अधनंगी तस्वीरों पर ये अपनी निगाहें टिका लेते और शुरू हो जातेः

- क्या ’हॉट फ़िगर’ है!

- क्या ’ऐसेट्स’ हैं!

- यार, आजकल लड़कियाँ ऐसे रिवीलिंग कपड़े पहनती हैं, इतना एक्सपोज़ करती हैं कि आदमी अराउज़ हो जाए!



कभी कहते – ”मुझे तो हरी मिर्च जैसी लड़कियाँ पसंद हैं! काटो तो मुँह सी-सी करने लगे!”

कभी बोलते – ”जिस लड़की में ज़िंग नहीं, बिचिनेस नहीं, वह ’बहन-जी’ टाइप है। मुझे तो नमकीन लड़कियाँ पसंद हैं, यू नो!”

राह चलती लड़कियाँ देख कर कहते – ”क्या मस्त माल है! क्या आइटम है!” जैसे हर लड़की पके हुए फल-सी इनकी गोदी में गिर जाने के लिए ही बनी हो!



कभी किसी लड़की को ’पटाखा’ बोलते, किसी को ’फुलझड़ी’! यहाँ तक कि आँखों-ही-आँखों से लड़कियों के हर उभार को नापते-तौलते रहते। मैं भीतर-ही-भीतर कुढ़ती रहती। कभी गुस्से में इनसे कुछ कह देती तो बोलते – ”कम ऑन, डार्लिंग! ओवर-पज़ेसिव मत बनो। थोड़ा एल्बो-रूम दो। गिव मी सम ब्रीदिंग-स्पेस, यार। नहीं तो दम घुट जाएगा मेरा।”



एक बार हम कार से डिफ़ेंस कॉलोनी के फ़्लाई-ओवर के पास से गुज़र रहे थे तो एक खूबसूरत युवती देख कर ये कहने लगे –

”इस दिल्ली की सड़कों पर

जगह-जगह मेरे मज़ार हैं

क्योंकि मैं जहाँ

खूबसूरत लड़कियाँ देखता हूँ

वहीं मर जाता हूँ।”



मेरी तनी भृकुटि की परवाह किए बिना इन्होंने आगे कहा – ”कई साल पहले यहाँ से गुज़र रहा था तो यहाँ एक ब्यूटी देखी थी। यह स्पॉट इसीलिए आज तक याद है!”



मैंने नाराज़गी जताई तो ये गियर बदल कर मुझसे प्यार-मुहब्बत का इज़हार करने लगे और मेरा प्रतिरोध एक बार फिर कमज़ोर पड़ गया।



लेकिन हर सुंदर युवती को देख कर मुग्ध हो जाने की इनकी अदा से मुझे कोफ़्त होने लगी थी। कोई भी सुंदरी देखते ही ये उसकी ओर आकर्षित हो जाते। उससे सम्मोहित हो कर इनके मुँह से सीटी बजने लगती। मुँह से जैसे लार चूने लगती। हद तो तब पार होने लगी जब एक बार मैंने इन्हें हमारी युवा पड़ोसन से फ़्लर्ट करते हुए देख लिया। घर आने पर जब मैंने इन्हें डाँटा तो इन्होंने फिर वही मान-मनव्वल और प्यार-मुहब्बत का खेल खेल कर मुझे मनाना चाहा। पर मेरा मन इनके प्रति खट्टा होता जा रहा था।



धीरे-धीरे स्थिति मेरे लिए असह्य होने लगी। हालाँकि हमारी शादी को अभी डेढ़-दो महीने ही हुए थे, लेकिन पिछले दस-पंद्रह दिनों से इन्होंने मेरी देह को छुआ भी नहीं था। पर मेरी नव-विवाहित सहेलियाँ बतातीं कि शादी के शुरू के कुछ माह तक तो मियाँ-बीवी लगभग हर रोज़ ही …। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर बात क्या थी। इनकी उपेक्षा और अवज्ञा मेरा दिल तोड़ रही थी। आहत मैं अपमान और हीन-भावना से ग्रसित हो कर तिलमिलाती रहती।



एक रात बीच में ही मेरी नींद टूट गई तो मुझे धक्का लगा। ये एफ.टी.वी. चैनल पर ’बिकिनी डेस्टीनेशन’ नाम के किसी कार्यक्रम में अधनंगी मॉडल्स देख कर…

”जब मैं, तुम्हारी पत्नी, तुम्हारे लिए यहाँ मौजूद हूँ तो तुम यह सब क्यों कर रहे हो? क्या मुझ में कोई कमी है? क्या मैंने तुम्हें कभी ’ना’ कहा है?” मैंने दुःख और गुस्से में पूछा।

”सॉरी डार्लिंग! ऐसी बात नहीं है। क्या है कि तुम बहुत थकी हुई लग रही थी। इसलिए मैं तुम्हें नींद में डिस्टर्ब नहीं करना चाहता था। चैनल बदलते-बदलते इस चैनल पर थोड़ी देर के लिए रुका तो अराउज़ हो गया। भीतर से इच्छा होने लगी…।”

”अगर मैं भी टी.वी. पर अधनंगे लड़के देख कर यह सब करूं तो तुम्हें कैसा लगेगा?”

”अरे, यार! यह सब नॉर्मल है। बहुत से मर्द पॉर्न देखते हैं। यह सब करते हैं। तुम तो छोटी-सी बात का बतंगड़ बना रही हो!”



लेकिन यह बात क्या इतनी-सी थी? कभी-कभी मैं आईने के सामने खड़ी हो कर अपनी देह को हर कोण से निहारती। आखिर क्या कमी थी मुझमें कि ये इधर-उधर मुँह मारते फिरते थे? क्या मैं सुंदर नहीं थी? मैं अपने सोने-से बदन को देखती। अपने हर कटाव और उभार को निहारती। ये तीखे नैन-नक्श। यह छरहरी काया। ये उठे हुए उत्सुक उरोज। जामुनी गोलाइयों वाले ये मासूम कुचाग्र। केले के नए पत्ते-सी यह चिकनी पीठ। नर्तकियों जैसा यह कटि-प्रदेश। भँवर जैसी यह नाभि। जलतरंग-सी बजने को आतुर मेरी यह लरजती देह… इन सब के बावजूद मेरा यह जीवन किसी सूखे फव्वारे-सा क्यों होता जा रहा है – मैं सोचती।



एक इतवार मैं घर का सामान खरीदने बाज़ार गई। तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी, इसलिए जरा जल्दी घर लौट आई। बाहर का दरवाज़ा खुला हुआ था। ड्राइंग रूम में घुसी तो सन्न रह गई। इन्होंने मेरी एक सहेली को अपनी गोद में बैठाया हुआ था। मुझे देखते ही ये घबरा कर ’सॉरी-सॉरी’ करने लगे। मेरी आँखें क्रोध और अपमान के आँसुओं से जलने लगीं…



मैं चीखना चाहती थी। चिल्लाना चाहती थी। पति नाम के उस प्राणी का मुँह नोच लेना चाहती थी। उसे थप्पड़ मारना चाहती थी। मैं कड़कती बिजली बन कर उस पर गिर जाना चाहती थी। मैं हहराता समुद्र बन कर उसे डुबो देना चाहती थी। मैं धधकता दावानल बन कर उसे जला देना चाहती थी। मैं हिचकियाँ ले-ले कर रोना चाहती थी। मैं पति नाम के उस जीव से बदला लेना चाहती थी…



यह वह समय था जब अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन अपनी पत्नी हिलेरी को धोखा दे कर मोनिका लेविंस्की के साथ मौज-मस्ती कर रहे थे और गुलछर्रे उड़ा रहे थे। क्या सभी मर्द एक जैसे बेवफ़ा होते हैं? क्या पत्नियाँ छले जाने के लिए ही बनी हैं – मैं सोचती।



रील से निकल आया उलझा धागा बन गया था मेरा जीवन। पति की ओछी हरकतों ने मन को छलनी कर दिया था। हालाँकि उन्होंने उस घटना के लिए माफ़ी भी माँगी थी किंतु मेरे भीतर सब्र का बाँध टूट चुका था। मैं उनसे बदला लेना चाहती थी। और ऐसे समय में राज मेरे जीवन में आया…



पड़ोस में किराएदार था वह। छह फुट का गोरा-चिट्टा नौजवान। ग्रीको-रोमन चिज़ेल्ड फ़ीचर्स थे उसके। बिल्कुल ऋतिक रोशन जैसे। नहा कर छत पर जब मैं बाल सुखाने जाती तो वह मुझे ऐसी निगाहों से ताकता कि मेरे भीतर गुदगुदी होने लगती। मुझे अच्छा लगता।

धीरे-धीरे हमारी बातचीत होने लगी। प्रोफ़ेशनल फ़ोटोग्राफ़र था राज।

”आपका चेहरा बड़ा फ़ोटोजेनिक है। एोड यू हैव अ ग्रेट फ़िगर। मॉडेलिंग क्यों नहीं करती हैं आप?” वह कहता। और देखते-ही-देखते मैंने खुद को इस नदी में बह जाने दिया।

पति जब दफ़्तर चले जाते तो मैं राज के साथ उसके फ़ोटो-स्टूडियो में जाती जहाँ उसने मेरी प्रोफ़ाइल बनाई।

”बहुत अच्छी आती हैं आपकी फ़ोटोग्राफ़्स।” उसने कहा था…

और मेरे कानों में यह प्यारा-सा गीत बजने लगा थाः

”अभी, मुझ में कहीं

बाकी थोड़ी-सी है ज़िन्दगी

जगी, धड़कन नई

जाना ज़िंदा हूँ मैं तो अभी

कुछ ऐसी लगन

इस लमहे में है

ये लमहा कहाँ था मेरा

अब है सामने, इसे छू लूँ ज़रा

मर जाऊँ या जी लूँ ज़रा…



मैं कब राज को चाहने लगी, मुझे पता ही नहीं चला। अब मुझे उसका स्पर्श चाहिए था। मुझमें उसके आगोश में समा जाने की इच्छा जग गई थी। जब मैं उसके करीब होती तो उसकी देह-गंध मुझे मदहोश करने लगती। मन बेकाबू होने लगता। उसके भीतर से भोर की खुशबुएँ फूट रही होतीं। और मैं अपने भीतर उसके स्पर्श का सूर्योदय देखने के लिए तड़पने लगती। मानो उसने मुझ पर जादू कर दिया हो। मेरे भीतर हसरतें मचलने लगी थीं। ऐसी हालत में जब उसने मेरा टॉपलेस फ़ोटो लेने की इच्छा जताई तो मैंने नःसंकोच हो कर हाँ कह दिया। मैंने परम्परागत संस्कारों की लक्ष्मण-रेखा न जाने कब लाँघ ली थी…



उस दिन मैं नहा-धो कर तैयार हुई। मैंने खुशबूदार इत्र लगाया। फ़ेशियल, मैनिक्योर, पेडिक्योर वगैरह मैं एक दिन पहले ही एक अच्छे ब्यूटी-पार्लर से करवा चुकी थी। मैंने अपने सबसे सुंदर पर्ल इयर-रिंग्स और डायमंड नेकलेस पहने। कलाई में बढ़िया ब्रेसलेट पहना। और सज-धज कर मैं नियत समय पर राज के स्टूडियो पहुँच गई।



उस दिन वह बला का हैंडसम लग रहा था। गुलाबी कमीज़ और काली पतलून में वह मानो कहर ढा रहा था।

”हे, यू आर लुकिंग ग्रेट। जस्ट रैविशिंग।” मेरा हाथ अपने हाथों में ले कर वह बोला। मेरे भीतर सैकड़ों सूरजमुखी खिल उठे।

फ़ोटो-सेशन अच्छा रहा। राज के सामने टॉपलेस होने में मुझे कोई संकोच नहीं हुआ। मेरी नग्न देह को वह एक कलाकार-सा निहार रहा था।

”ब्युटिफ़ुल! वीनस-लाइक!” वह बोला।

किंतु मुझे तो कुछ और की ही चाहत थी। फ़ोटो-सेशन खत्म होते ही मैं उसकी ओर ऐसे खिंची चली गई जैसे लोहा चुंबक से चिपकता है। मेरा दिल तेज़ी से धड़क रहा था।

”होल्ड मी। टेक मी, राज!” मेरे भीतर से कोई यह कह रहा था।

”नहीं, नेहा। यह ठीक नहीं। मैंने तुम्हें कभी उस निगाह से देखा ही नहीं। लेट अस कीप इट प्रोफ़ेशनल!” उसका एक-एक शब्द मेरे तन-मन पर चाबुक-सा पड़ा।

”… पर मुझे लगा, तुम भी मुझे चाहते हो …।” मैं अस्फुट स्वर में बुदबुदाई।

”मुझे गलत मत समझो। यू आर अ ब्युटिफ़ुल लेडी। तुम्हारा मन भी उतना ही सुंदर है, नेहा। लेकिन मेरे लिए तुम केवल एक खूबसूरत मॉडल हो। तुम में मेरी रुचि सिर्फ़ प्रोफ़ेशनल है। किसी और रिश्ते के लिए मैं तैयार नहीं। और फिर पहले से ही मेरी एक गर्लप्रेंड है जिससे जल्दी ही मैं शादी करने वाला हूँ। सो, प्लीज़…।” राज कह रहा था।



तो क्या मेरा प्यार एकतरफ़ा था? ओह, कितनी बेवकूफ़ हूँ मैं । मैं सोचती रही– राज के चरित्र के बारे में, उसकी नैतिकता के बारे में, अपनी चाहत के अपमान के बारे में, अपनी लज्जाजनक स्थिति के बारे में…



कपड़े पहन कर मैं चलने लगी तो राज ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोक लिया। उसने स्टूडियो में रखे गुलदान में से एक पीला गुलाब निकाल लिया था। वह पीला गुलाब मेरे बालों में लगाते हुए उसने कहा – ”नेहा। पीला गुलाब मित्रता का प्रतीक होता है। वी कैन रिमेन गुड प्रेंड्स!” मैं सिहर उठी।

वह पीला गुलाब बालों में लगाए मैं वापस लौट आई। अपनी पुरानी दुनिया में…



उस रात कई महीनों के बाद जब पतिदेव ने मुझे प्यार से चूमा और सुधरने का वादा किया तो मैं पिघल कर उनके आगोश में समा गई। खिड़की के बाहर रात का आकाश न जाने कैसे-कैसे रंग बदल रहा था। आशीष-सी बहती ठंडी हवा के झोंके खिड़की में से अंदर कमरे में आ रहे थे। मेरी पूरी देह एक मीठी उत्तेजना से भरने लगी। पतिदेव प्यार से मेरा अंग-अंग चूम रहे थे। मैं जैसे बहती हुई पहाड़ी नदी बन गई थी। एक मीठा दर्द… फिर सुख … मीठा … और मीठा … बेहद मीठा … आह्लाद … तृप्ति … एक मीठी थकान … और उनके बालों में उंगलियाँ फेरते हुए मैं कह रही थी – मुझे कभी धोखा मत देना … कमरे के कोने में एक मकड़ी अपना टूटा हुआ जाला फिर से बुन रही थी …



इस बात को बीते कई बरस हो गए। कुछ माह बाद राज भी पड़ोस के किराए का मकान छोड़ कर कहीं और चला गया। मैं राज से उस दिन के बाद फिर कभी नहीं मिली। लेकिन अब भी जब कभी कहीं पीला गुलाब देखती हूँ तो सिहर उठती हूँ। एक बार हिम्मत कर के पीला गुलाब अपने जूड़े में लगाना चाहा था तो हाथ काँपने लगे थे…
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