मधु की शादी

Jemsbond
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Re: मधु की शादी

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उसका दुपट्टा हवा में लहरा रहा था. जैसे की रण भूमि में पताका लहरा रही थी. आलता रंगे उसके नंगे पाँव, पूरे रास्ते को बादामी रंग से रंग रहे थे. बालों में लगे फूल बिखर रहे थे. फूलों की पंखुडियां तारों की तरह आसमान में बिखर रही थीं.उसकी आँख का काजल गालों से होता हुआ दोनों और की दुकानों में समा रहा था. स्तब्ध, दो पल को लोग बुत बन गए थे, पेड़ों की पत्तियां थम गयीं थी, चिड़ियों की चहचाहट बिलकुल शांत हो गयी थी. गति थी, तो बस -अनुभा में. अपना सुन्दर लहंगा संभाले अनुभा हवा को चीरती हुयी दौड़ी जा रही थी, अपने बब्बा की खोज में. बाकि के लोग पीछे थे और दौड़ने में पूरी ताकत लगा रहे थे, लेकिन हिल पा रहे थे केवल एक रत्ती. सब कुछ रुक गया था. सृष्टि थम गयी थी. शान्त सब शांत. बस एक अनुभा, दौड़ी जा रही थी, और उसकी पायल और चूड़ियों की खन – खन और छुन – छुन ने जैसे सबके कानों को बहरा कर दिया था. और अनुभा बस दौड़े जा रही थी, उसे पता था की उसके बब्बा कहाँ होंगे. बब्बा उसके प्यारे बब्बा, केवल उसके बब्बा. आज अनुभा के अन्दर मानो इंटरसिटी एक्सप्रेस सवार हो गयी थी. तेज – तेज और, और भी तेज. अनुभा को पंख लग गए थे. लोगों ने देखा की अनुभा उड़ रही है, जमीन से कुछ ऊपर. रास्ते के कंकड़ – पत्थर और कीचड़ अनुभा के लिए अर्थ हीन हो गए थे. एक बवंडर था जो अनुभा अपने तन में और अपने मन में समेटे दौड़े जा रही थी. अनवरत और लगतार. उस ओर.



प्लेटफोर्म नंबर एक पर इंटरसिटी एक्सप्रेस आने को थी. डिस्प्ले बोर्ड ने डिब्बों की पोजीशन दिखाना शुरू कर दिया था. यात्रियों की भीड़ ट्रेन की प्रतीक्षा कर रही थी. इसी प्लेटफोर्म के एक कोने में, अकेले एक बूढ़ा आदमी अपने घुटनों में सिर छुपाये बैठा था. उसके आंसूयों ने उसके कपड़ों को गीला कर दिया था. इंटरसिटी एक्सप्रेस के इंजन ने दूर से ही सीटी की बजाना शुरू कर दिया था. उस बूढ़े आदमी को लगा की अगर यह ट्रेन चली तो साथ –साथ उसके प्राण भी चले जायेंगें. लगा की – उसे कोई पुकार रहा है. भला कौन है उसका जो उसे पुकारेगा. उसने धीरे – धीरे अपना सिर ऊपर उठाया. सामने अनुभा दौड़ी चली आ रही थी. बूड़े व्यक्ति ने सपना समझ कर अपनी ऑंखें बंद कर लीं.



भागती हुयी अनुभा बब्बा के पेरों में गिर पड़ी. “बब्बा……कहाँ चले गए थे, मुझे अकेला छोड़ कर……….”. अनुभा कहे जा रही थी. “बब्बा………आप ही मेरे पिता हैं……..चाहे कोई कुछ भी कहे”. प्रेम अपने आपको समेटते हुए थरथराती आवाज में बोले,- “बिट्टो, मैं तेरा पिता नहीं हूँ ?”. अनुभा, प्रेम के चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए बोली, – “बब्बा……..मन का नाता,एक दिन में नहीं मिटाता, और फिर आपका और मेरा तो जन्मों का नाता है”. प्रेम और कुछ कहने को हुए लेकिन अनुभा ने प्रेम के होठों पर हाथ रख दिया. प्रेम और अनुभा के आंसूं आपस में घुलमिल जा रहे थे.



बब्बा और अनुभा एक दुसरे के सिर से सिर मिलाकर रोने लगे थे. मधु भी हाँफते हुए कह उठी, -“ भला कोई ऐसे जाता है, बेटी की शादी को बीच में अकेला छोड़कर….आपके सिवा हमारा और है कौन इस दुनिया में ? प्रेम ने मधु की ओर देखा. आंसूओं ने प्रेम के सारे शिकवों को बहा दिया.

मधु ,अनुभा और प्रेम के रुदन सुर पहाड़ों का सीना चीर रहे थे .पीछे – पीछे आते सारे लोग थोडे दूर रहकर नजारा देख रहे थे. इंटरसिटी एक्सप्रेस का इंजन बिलकुल अनुभा और बब्बा के पास आकर रुका. दुलहन के रूप में अनुभा को देकर ट्रेन के ड्राईवर ने, नीचे उतर कर अनुभा के सर पर अपना हाथ रख दिया. “कितनी बड़ी हो गयी बिटिया, अभी कल की ही बात है, जब बब्बा की गोद में बैठी, हम सब को टाटा किया करती थी”. ड्राईवर की बातों ने सबको आँखों को और भी नम कर दिया. इंजन ने हॉर्न दिया. ड्राईवर पुनः इंजिन पर चढ़ गए. इंटरसिटी एक्सप्रेस फिर कुछ जिंदगियों में हलचल मचाकर चल दी थी. ट्रेन के अन्दर से यात्री और प्लेटफोर्म पर अनुभा,मधु और प्रेम हाथ हिला रहे थे. माहौल फिर खुशगवार हो रहा था.
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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