मधु की शादी

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मधु की शादी

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मधु की शादी

लेखक : अवनि श्रीवास्तव



“तुम मुझसे क्या चाहते हो प्रेम,”- मधु ने प्रेम से पूछा. “तुम्हारा साथ और क्या ?”. प्रेम के अह्लाद ने आसमान को हिला दिया. मधु ने व्यंग्य भरी निगाहों से प्रेम को देखा. “तुम्हारी माँ मुझे स्वीकार लेंगीं ?”. मधु की इस बात पर प्रेम का आश्चर्य सातवें आसमान को लांघ गया. “तुम मेरी माँ को नहीं जानती, मेरी खुशी में ही मेरी माँ की खुशी है”. प्रेम और मधु देर तक बादलों को निहारते रहे. कभी कोई झोंका, किसी बादल को किसी ओर ले जाता तो,कोई झोंका किसी बादल को किसी और दिशा में, बिलकुल उन दोनों के अपने – अपने मन की तरह.

“मेरा साथ दोगी ना !”. प्रेम ने मधु को शंका भरी निगाहों से देखा. “मरते दम तक”. मधु के सटीक उत्तर ने प्रेम के ह्रदय से असमंजस के कोहरे को हटा दिया. दूर से गुजरती इंटर सिटी एक्सप्रेस की आवाज ने, दोनों की तन्द्रा को भंग कर दिया था. ठंडी सांसों के स्वर ने वातावारण को काफी भारी कर दिया.



वो एक छोटा क़स्बा था – आमगांव. उन दोनों के घर भी आपस में ज्यादा दूर नहीं थे, बिलकुल रेलवे स्टेशन के पास. परन्तु दोनों के परिवारों में ज्यादा बोलचाल नहीं थी.दोनों परिवारों की रहन सहन और परिवेश में अंतर था. एक मराठी परिवार तो दूसरा उत्तर भारतीय. मधु का घर ज्यादा संपन्न था. मधु अपने चाचा के पास रहती थी.चाचा – चाची ने अपनी बेटी की तरह पाला पोसा था – मधु को.



प्रेम के भी पिता नहीं थे. बूढ़ी माँ थी. पुरखों का बनाया हुआ एक घर था, और साथ में लगा हुआ एक छोटा सा खेत. पढाई पूरा करते ही, प्रेम में कस्बे के अन्य लडकों की तरह, समीप के शहर में “जौब” करने का चस्का लग गया था. माँ ने लाख कहा की, बेटा अपने खेत में हाथ बंटाओ, घर में सोना बरसेगा.पर प्रेम को तो शहर की हवा फांकनी थी.



प्रेम, सुबह की शटल से शहर निकल जाता और शाम की इंटरसिटी एक्सप्रेस से घर आता. साफ़ – सुथरे कपड़ों में बेटे को, शहर जाने को तैयार होता देख माँ संतोष कर जाती की, चलो लड़का अपने पैर पर खड़ा हो गया है.फिर अपने सूने खेत को देखकर माँ की आँखें भर आतीं.



एक सुबह पड़ोस की मधु को ट्रेन की टिकिट की लाईन में खड़ा देखकर ,प्रेम को सुखद आश्चर्य हुआ.उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी की, मधु से कुछ पूछे.परन्तु शहर के रेल्वे स्टेशन के बाहर मधु को प्रतीक्षा में खड़ा देख कर प्रेम से रहा नहीं गया और उसने पूछ ही लिया, –“जाना कहाँ है आपको ?”. मधु का ठहरा हुआ उत्तर सुनकर प्रेम ने कहा, -“फिर तो आप गलत साइड खडीं हैं, आपको ऑटो रोड के दूसरी तरफ से मिलेगा”.बस इतना ही था वह प्रथम संवाद.



टारगेट का दवाब और बॉस की रोज – रोज की किचकिच सुनकर प्रेम को कभी – कभी लगता की, माँ का कहना ही ठीक है. अपने खेत में काम करना ही अच्छा है. ना किसी की डांट,ना कोई टेंशन. फिर प्रेम अपने सिर को बेरहमी से झटक देता, उसके सारे ख्याल हवा हो जाते.



उस रोज प्रेम कुछ ज्यादा ही लेट हो गया था. इंटरसिटी एक्सप्रेस का अनाउंसमेंट काफी दूर से ही सुनाई दे रहा था. था. प्रेम हडबडाहट में बस से उतरा और टिकिट काउंटर की ओर दौड़ा. वहां मधु को देखते ही उसके पैर रुक गए. मधु ने बताया की उसने दोनों के टिकिट ले लिए हैं. ट्रेन ने हलकी स्पीड पकड़ी ही थी की दोनों हिम्मत करके ट्रेन में चढ़ गए. गेट के पास खड़े दोनों के लिए यह एक नया अनुभव था. मधु ने बताया की वह शहर के कॉलेज में पढ़ाई कर रही है.



फिर तो जैसे रोज का क्रम बन गया. कभी सुबह की शटल का टिकिट मधु लेती तो किसी दिन शाम की इंटरसिटी का टिकिट प्रेम लेता. समय गुजरता गया. मधु और प्रेम में प्रगाढ़ता बढ़ती गयी. जब कभी दोनों जल्दी फ्री हो जाते, तो शहर में खूब घुमते. एक शाम मधु ने प्रेम को बताया की उसे लड़के वाले देखने आने वाले हैं. वातावरण में निस्तब्धता छा गई. मधु ने देखा की प्रेम, की आँखों में आंसू आ गए हैं. मधु ने प्रेम का हाथ थाम लिया. मधु ने प्रेम से कहा -,”प्रेम मेरे चाचा से बात करों ना !“.



प्रेम ने सोचा की, माँ को बता दूँ. फिर जाने क्या सोचकर वह रह गया. अगले रविवार की शाम प्रेम, जैसे अपने ह्रदय को अपने हाथों में लेकर मधु के घर पहुंचा. श्वेत वस्त्रों में मधु के चाचा, एक सज्जन पुरुष कम, किसी गाँव के जमींदार ज्यादा लग रहे थे. प्रेम के अभिवादन का उत्तर, उन्होंने प्रेम को बैठने का इशारा कर किया. प्रेम समीप की ही एक कुर्सी पर बैठ गया. प्रेम अपने शब्दों को जुटाने का प्रयत्न करने लगा. चाय का एक घूंठ लेते हुए मधु के चाचा ने कहा,- “काफी समय से हम लोगों का सोने – चांदी का व्यवसाय है. दूर – दूर तक हमारे यहाँ के जेवर प्रसिद्द हैं.” मधु के पिता ने एक काफी पुराना एल्बम दिखाया जिसमें कोई महारानी जेसी महिला आभूषणों से लदी हुयी तस्वीर थी. मधु के चाचा ने बताया की वो किसी राजघराने की महिला थी और उसके सारे जेवरातों का निर्माण उनके वंशजों ने किया था. प्रेम जैसे जमीन में गढ़ गया था. उसकी आँखें व्यथित हो रहीं थीं. मधु के चाचा ने अपने हाथ में पहनीं हुईं अन्गूठीयों के बारे में बताना शुरू किया. प्रेम की निगाहें जमीन खंगालतीं रहीं.

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Re: मधु की शादी

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मधु के चाचा ने प्रेम की ओर मठरी की प्लेट बढ़ायी. “मधु की शादी तय हो गयी है, मोहल्ले के लड़के हो, शादी के कामों में हाथ तो बंटाना ही पड़ेगा”. प्रेम के कानों में जैसे सीसा घुल गया. उसकी आँखों के आगे धुंधलका छा गया. उसने नीचे सिर किये – किये ही मधु के चाचा को प्रणाम किया और तेजी से मधु के घर से बाहर निकल आया. साँसें कितनी भारी हो गयीं थी, उस दिन – प्रेम की. प्रेम ने गली के आखिर में पहुंचकर पीछे मुड़कर, मधु की घर की ओर देखा. लगा की जैसे भरी दुपहरी, रात हो गयी है. उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. उसके पैर पहाड़ों से भी भारी हो गए थे.



धीरे – धीरे सुस्त क़दमों से प्रेम, घर पहुंचा. माँ ने प्रेम को देखा तो कहा,- “बेटा, छुट्टी के दिन तो घर में रहा कर, मैं तरस जातीं हूँ, तेरा मुख देखने को !” माँ के प्रश्न का कोई उत्तर कहाँ था प्रेम के पास ? प्रेम बोझिल तन के साथ पलंग पर पसर गया. माँ ने माथा छूकर कहा,- “तुझे तो बुखार है बेटा, मैं अभी काढा देतीं हूँ !” माँ के शब्द शून्य में बिखरते रहे. प्रेम को होश ही नहीं रहा .बेसुध और बेदम प्रेम जैसे, सदियों का बीमार हो गया था.



सुबह नींद खुलने पर माँ को पैरों के पास, जमीन पर पड़ा देख कर प्रेम का कलेजा मुंह को आ गया. प्रेम को लगा की, कहाँ तो, वह जिंदगी को घर के बाहर ढूँढ रहा था, परन्तु उसकी जिन्दगी, उसका सब कुछ तो घर के अन्दर है – उसकी माँ. प्रेम की आँखें पुनः गीली हों गयीं. प्रेम की आखों में बीते दिन का सारा घटना क्रम एक फिल्म की तरह घूम गया.

माँ जब जागी तो प्रेम को पास ना पाकर चोंक गई. घबडाहट में उसने प्रेम को आवाज लगाई. दूर से ही प्रेम की आवाज आई – “माँ, मैं खेत में हूँ”. बेटे को खेत में काम करते देख माँ की आँखें भर आयीं. धरती की मानो प्यास बुझ गयी.



मधु की शादी की चकाचोंध, प्रेम के घर में सदियों का अँधेरा भर गईं. प्रेम कान में हाथ लगाकर शादी के हुल्लड़ को रोकने की असफल कोशिश करता रहा, और मधु उस घर और उस कस्बे को हमेशा – हमेशा के लिए छोड़ कर चली गयी. प्रेम ने ना,तो उस ओर झाँका,न उस ओर पलटा भी.



प्रेम जी जान लगाकर खेत में काम करता, फिर खेत क्यों ना सोना उगलते. सम्रद्धि, पौरुष की बाट देखती है. माँ कहती,-“प्रेम ब्याह कर ले”. प्रेम कुछ न कहता. माँ चुप रह जाती. प्रेम कहता ,- “माँ,अब मुझे बस तुम्हारी सेवा करनी है”. माँ अपने लाल को गले लगा लेती. अपनी बहु कि आस को यह सोच कर दबा देती की कम से कम श्रवण कुमार जैसा बेटा तो साथ है. माँ – बेटे अपनी दुनिया में बहुत खुश थे.



कभी किसी शाम को इंटरसिटी एक्सप्रेस की आवाज, प्रेम को अन्दर तक हिला जाती. प्रेम, अपना सिर पकड़ कर बैठ जाता. पुराने जख्म हरे हो जाते. प्रेम की सांस पल को रुक जाती. घृणा हो गयी थी, प्रेम को इंटरसिटी एक्सप्रेस से. माँ सब समझती थी. बेटो को दुलारती . उसे अपने बचपन के किस्से सुनाती. जख्म फिर ढँक जाते.



मोहल्ले में शोर सुनकर लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गयी थी. प्रेम भी शोर की आवाज सुनकर वहां पहुंचा तो अवाक रह गया. मधु के चाचा और चाची ने मधु का सामान घर के बाहर फेंक दिया था. मधु…………..प्रेम मधु को देखकर अवाक रह गया. समय की गर्द ने बदन की आभा ही छीन ली थी. मधु अपनी उम्र से काफी बड़ी लग रही थी. मधु की चाची जोर-जोर से कह रही थी, – “कुलच्छिनी को पति ने छोड़ दिया तो, आ गयी हमारी छाती पर मूंग दलने, हमसे नहीं होगा की हम मुफ्त की रोटी तोड़ने वाले को अपने घर में रक्खें.”

चाचा – चाची ने घर का दरवाजा बंद कर लिया. घर के आस – पास लगी भीड़ धीरे- धीरे छंट गयी. घर के बाहर केवल मधु और मधु का हाथ पकड़े नन्ही बिटिया ही रह गयीं थीं. दोनों एक दुसरे को देखकर रोते – रोते बेहाल हो गयीं थी. प्रेम ने मोहल्ले वालों से सुना था की मधु के पति ने मधु को तलाक दे दिया है .एक दो बार माँ ने भी, प्रेम से इस बारे में बात की थी. परन्तु आज का घटनाक्रम बहुत अप्रत्याशित था. मधु सालों बाद, उसे इस हाल में दिखाई देगी, उसने यह सपने में भी नहीं सोचा था.
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Re: मधु की शादी

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प्रेम दूर से खड़ा, माँ – बेटी को रोता हुआ देखता रहा. माँ – बेटी का क्रंदन उसकी आत्मा को चीर रहा था. वह पता नहीं कैसे अपने को रोके हुआ था. लगता था की जैसे सदियाँ बीत गयीं हो, वहां खड़े – खड़े. कहीं दूर से ट्रैन की आवाज ने उसकी सोच को तोड़ दिया. इंटरसिटी एक्सप्रेस ही होगी. एक बार इंटरसिटी एक्सप्रेस ने ही उसकी जिंदगी को नयी दिशा दी थी, आज फिर इंटर सिटी एक्सप्रेस जाने उसके कानों में क्या गुदगुदाकर चली गयी ? प्रेम आगे बड़ा और लपक कर मधु की बिटिया को गोद में उठा लिया. रो – रो कर जार – जार हुयी मधु किसी अजनबी की कल्पना से सिहर गयी उसने लपक कर अपनी बिटिया का पैर पकड़ लिया. “प्रेम”…उसकी आँखें और भी नम हो गयीं. मधु ने बिटिया का पैर छोड़ दिया. प्रेम ,मधु की बिटिया को लेकर तेज चाल से अपने घर की ओर चल दिया. अपनी पुत्री का रोना सुनकर मधु भी प्रेम की पीछे – पीछे भाग चली, बिलकुल वैसे ही, जैसे बछड़े के पीछे गाय भागती चलती है.



प्रेम ने धड़ाक से घर का दरवाजा खोला. गेंहूं बीनती माँ, प्रेम की गोदी में एक बच्ची को देखकर विस्मृत रह गयी. “किसकी बिटिया है,प्रेम ?” .माँ जब तक प्रेम के पास पहुंचतीं, पीछे – पीछे मधु भी दरवाजे पर आकर झूल गयी. अवाक खडी माँ कभी मधु तो कभी प्रेम तो कभी प्रेम की गोदी में झूलती बच्ची को देखती रही. माँ ने मधु का हाथ हौले से पकड़ा और आँगन में रखे तखत पर बैठा दिया. माँ ने प्रेम की गोद से बिटिया को लेकर, प्रेम से कहा,-“प्रेम, जा नुक्कड़ की दूकान से दूध ले आ, बच्ची सुबह से भूखी होगी”. माँ के शब्द ख़तम होने से पहले ही मधु के मुंह से सिसिकारी पुनः निकल पड़ी. माँ ने मधु के सिर पर हाथ फेर कर कहा ,- “मधु, अब ये ही तेरा घर है, अब तुझे ही संभालना है हम सबको”. मधु, माँ के चेहरे को देखते रह गयी. अभी कुछ ही देर पहले तो उसने जिंदगी का नर्क देखा था, और फिर ईश्वर की ऐसी कृपा की उसे अभी स्वर्ग के दर्शन हो रहे हैं. मधु माँजी के चरणों में गिर पड़ी. माँ बोली,- “यह दुनिया बहुत छोटी है बिटिया, किसी का कुछ भी किसी से छुपा हुआ नहीं है, जो भी होता है सब प्रभु की इच्छा है”. माँ कहतीं गयीं और मधु के गालों पर अश्रु धारा बहती गयी .माँ ने मधु और मधु की बिटिया दोनों को गले लगा लिया.





माँ ने अगले दिन ही, एक वकील को घर बुलाया और दो दिनों के भीतर ही , मधु और प्रेम का विवाह करवा दिया. आस – पड़ोस के लोगों ने लाख नाक-मुंह सिकोड़े लेकिन माँ ने किसी की परवाह नहीं की.मधु की बिटिया अनुभा अब घर की बिटिया हो गयी थी. माँ खुश थी, मधु खुश थी,अनुभा खुश थी और प्रेम……



समय गुजरता गया. माँ संतोष से स्वर्ग सिधार गयीं. अनुभा और प्रेम का नाता पिता – पुत्री से से बढ़कर एक सखा और सखी का हो गया था. आरम्भ में मधु को अनुभा की चिंता रह्ती थी. आखिर कितना कुछ सुन रखा था उसने सौतेले पिताओं की कारतूतों के बारे में. लेकिन प्रेम ने मधु की सारी शंकाओं को दूर कर दिया था. प्रेम, अनुभा को अंपने कंधे पर उठाकर स्कूल ले जाता, रोज शाम को रेल्वे स्टेशन पर इंटरसिटी एक्सप्रेस दिखाने ले जाता. प्रेम के कन्धों पर बैठी नन्ही अनुभा खुशी में चिल्ला कर हाथ हिलाती, प्रत्युत्तर में इंटरसिटी के ड्राईवर अपना हाथ हिलाते. प्लेटफार्म पर टिकिट बाबू ,प्रेम को प्लेटफार्म टिकिट देते हुए बहुत हंसता.कहता ,- “ प्रेम बाबू, यहाँ लोग ट्रेन का टिकिट तो लेते नहीं हैं और आप बिना नागा प्लेटफार्म टिकिट लेते हो”. प्रेम कहता ,- “यह टिकिट केवल रेल्वे का टिकिट नहीं है, बल्कि मेरी खुशियों का टिकिट है”. अनुभा और अनुभा के बब्बा यानि प्रेम अपनी ही दुनिया में मस्त थे. निर्दोष और निर्फिकर.



प्रेम और मधु, जब कभी अकेले होते तो अक्सर खमोशी की एक दीवार कायम हो जाती. प्रेम को नजरें झुकाए बैठा देखकर मधु की आँखें भर आतीं. मधु सिसक उठती. मधु को सिसकता देखकर प्रेम से रहा नहीं जाता. प्रेम, मधु के पास आकर कहता, – “जो गुजर गया वो अतीत था मधु. जो सामने है वहीं जिंदगी है”. मधु और प्रेम पुनः एक हो जाते. दो प्रेमी, दो मित्र और एक जान थे, प्रेम और मधु.



कस्बे में एक मेला लगा था. नन्हीं अनुभा कब से मेला देखने के लिए जिद कर रही थी. और एक दिन प्रेम ने मधु को मेले जाने के लिए मना ही लिया. रंग बिरंगी दुकानों, ढेर सारे झूलों और सुनहरी चमक दमक पहली ही दृष्टि में सबका मन मोह लेतीं थी. फोटो वाली दुकान पर नन्हीं अनुभा, जिद करके ही बैठ गयी की अनुभा और प्रेम एक साथ फोटो खिंचवायें. प्रेम और अनुभा दोनों अचकचा गए. शादी से पहले और शादी की बाद भी दोनों ने अब तक एक दूसरे को ठीक से छूआ तक नहीं था, उस पर अनुभा की जिद. आख़िरकार हार कर दोनों को अनुभा की बात माननी पड़ी. एक दूसरे का हाथ पकड़े और शरम से लाल मधु और प्रेम का वह प्रथम स्पर्श, कैमरे में कैद हो गया. मेले से लौटते हुए शाम घिर आई थी. प्रेम ने कहा, – “चलो इंटरसिटी एक्सप्रेस देख कर ही चलते हैं”. स्टेशन की अंतिम बेंच पर बैठे मधु और प्रेम मानो सिरहानों को जी रहे थे. पुरानी यादें ताजा हो गयीं. इंटरसिटी एक्सप्रेस पर परवान चड़ी एक कहानी, नित नए रंग सोख रही थी.

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Re: मधु की शादी

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अनुभा और प्रेम, कौन कह सकता था की दोनों में खून का रिश्ता नहीं है. अगर अनुभा बीमार रहती तो रात – रात भर जागकर प्रेम उसकी तिमार दारी करते. प्रेम को तकलीफ होती तो अनुभा बीमार पड़ जाती. प्रेम कहते, – “अनुभा , तुम मेरी बेटी नहीं, मेरा बेटा हो”. अनुभा खिलखिलाकर प्रेम से झूल जाती. मधु ,अनुभा पर गुस्सा होती , – “ अरे बब्बा का कन्धा ही तोड़ देगी क्या ?”. पर क्या प्रेम, और क्या प्रेम की अनुभा, कहाँ किसी की सुनते थे दोनों.



मधु के पूर्व पति दीपक ने एक – दो बार मधु के घर पर आमद दी. परन्तु मधु की फटकार ने उसके रास्ते घर के लिए बंद कर दिए. दीपक की आमद, प्रेम की घबडाहट बड़ा देती है, यह बात मधु खूब जानती थी. यही हश्र मधु ने चाचा और चाची के लिए भी किया. हालांकि प्रेम चोरी छुपे चाचा – चाची की मदद करता रहता था. लेकिन मधु अपने हर अतीत को पूरी तरह भुलाना चाहती थी.



प्रेम की माँ की इच्छा थी की घर में एक डॉक्टर हो. और अनुभा ने अपनी दादी से किया गया यह वादा भी खूब निभाया. अनुभा कब, कस्बे के स्कूल से शहर के मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरी पढ़ने लगी, पता ही नहीं चला.

आज अनुभा के कॉलेज में दीक्षांत समारोह था. मूख्य अतिथि से अपनी बिटिया को डिग्री लेते देख प्रेम और मधु गर्व से दोहरे हो गए. समारोह के पश्चात अनुभा ने सुधीर और उसके माता पिता से, दोनों को मिलवाया. सुधीर , अनुभा के साथ ही डॉक्टरी पढ़ रहा था. प्रेम और मधु एक दुसरे का मुंह ताकने लगे. सुधीर के पिता दोनों के असमंजस को समझ गऐ. वे प्रेम का हाथ थाम कर बोले, – “ अरे भई, सम्बन्ध बनाने हैं, आप लोगों से”. प्रेम और मधु का मौन, सुधीर के माता – पिता को खूब समझ आ रहा था. सुधीर के माता – पिता ने उन दोनों को अगली सुबह नाश्ते पर आमंत्रित किया तो उन दोनों के समक्ष इनकार करने की कोई वजह ही नहीं थी. अगला दिन एक नयी ही परिभाषा लेकर आया था. सुधीर के माता पिता ने मधु को बहू बनाने की इच्छा व्यक्त कर दी. इतना अच्छा लड़का, वो भी इकलौता, उस पर इतना अच्छा परिवार ना की गुन्जायिश कहाँ थी प्रेम और मधु के लिए. सुधीर के माता पिता के खुले विचारों ने मधु और प्रेम दोनों को ही खूब प्रभावित किया था. सुधीर के माता – पिता ने जिद करके प्रेम,मधु और अनुभा को अपने घर के गेस्ट हॉउस में ही रोक लिया. पूरे दो दिन तक दोनों परिवार सैर सपाटे और पिकनिक में व्यस्त रहे. दोनों परिवार इतना घुलमिल गए , जैसे की सदियों की जान पहचान हो.



तीसरे दिन सुधीर के माता पिता के बहुत रोकने पर भी प्रेम और मधु ने घर जाने का मन ही बना लिया था. सुधीर ने टिकट करने के लिए एजेंट को फोन लगाया ही था की प्रेम ने टोक दिया,- “हम तो इंटरसिटी मय्या से ही जायेंगे”. “इंटरसिटी मय्या ?” सुधीर के पिता ने जब प्रेम के शब्दों पर जब आश्चर्य जताया तो, प्रत्युत्तर में प्रेम हँसते हुए बोले,- “हाँ भाई साहब ,जैसे लोगों के लिए गंगा मय्या और सीता मय्या होतीं हैं, वैसे ही हम दोनों के लिए इंटरसिटी मय्या हैं”. प्रेम ने नटखट नजरों से मधु की ओर देखा तो मधु ने शर्म से नजरें झुका लीं. इससे पहले की इस विषय में और बातें उठतीं, प्रेम ने बात पलट दी. दो परिवार जो कुछ समय तक एक दुसरे को जानते तक नहीं थे ,एक अनूठे रिश्ते में बंधने जा रहे थे.



आज घर में बड़ी रौनक थी, प्रेम की प्यारी बिटिया, अनुभा का ब्याह जो था. पूरा घर दुल्हन की तरह सजा था. प्रेम ने भव्य पंडाल लगवाया था. शहर से ही शहनाई वालों और केटरिंग वालों की व्यवस्था की थी. बारात शाम को शहर से आने वाली थी. बारात के रास्ते पर भव्य स्वागत द्वार लगाये गए थे. फूलों की महक ने मानो पूरे मोहल्ले और कस्बे को महका दिया था. सुबह से ही मंगल ध्वनि माहौल को सुमधुर बना रही थी.



शहर के ब्यूटी पार्लर से आई लड़कियों ने अनुभा को सजाना शुरू कर दिया था. प्रेम और मधु अपनी तय्यारीयों को अंतिम रूप दे रहे थे. पंडित जी विवाह मंडप की सामग्री का निरिक्षण कर रहे थे. केटरिंग वाले भी अपनी तय्यारी में व्यस्त थे. शरबत और खाने पीने की चीजों के स्वाद ने स्वर्ग का अनुभव दे दिया था, उस क्षण को.



प्रेम सारी तय्यारीयों से संतुष्ट थे. हफ्ते भर से शादी की भाग – दौड़ में लगे हुए थे. थकान के मारे उनका शरीर आधा हो गया था. थोड़ा दम लेने के लिए वो पंडाल के एक कोने में पड़ी कुर्सी पर पसर गए. पंडाल के उड़ते हुए पर्दों भी एक अजीब सी खुशबू से लबरेज थे. प्रेम ने गहरी साँस ली. एक फ्लेश बैक उसकी आँखों सामने घूम गया. मधु के साथ इंटरसिटी एक्सप्रेस में आना. फिर मधु का दूर जाना और फिर मिलना.अनुभा का बचपन, उसकी किलकारियां.

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Re: मधु की शादी

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बिटिया की विदाई के बारे में सोच – सोच कर उनकी रुलाई थामे ना थमती थी. प्रेम ने अपना चेहरा हाथों में ढँक लिया. उसके कानों ने तभी को कुछ सुना .उन्हें लगा की, कोई किसी को बता रहा है की, अनुभा का असली पिता , प्रेम न होकर दीपक है. प्रेम के रोंगटे खड़े हो गए . “प्रेम, अनुभा का सौतेला पिता है ?” प्रेम का खून खौल गया. प्रेम ने बाएँ मुड़कर देखा. मधु का पहला पति दीपक सजे धजे कपड़ों में लोगों से बात कर रहा था. “इसे यहाँ किसने बुलाया ? ”. प्रेम क्रोध के कारण कांपने लगे . प्रेम ने देखा की दीपक, मधू के पास चला गया था . प्रेम ने मधु के चेहरे को गौर से देखा. आज मधु के चेहरे पर अपने तलाक शुदा पति दीपक के लिए पहले जैसी घृणा नहीं थीं. “क्या , मधु ने ही आज दीपक को यहाँ बुलाया है ?”. प्रेम का दिल बैठ गया. दीपक के साथ खड़ा आदमीं शायद सब मेहमानों को यही बता रहा होगा की अनुभा का असली पिता दीपक है. प्रेम, पंडाल की ओट में बैठा, दुनिया का सबसे गरीब आदमी हो गया था. प्रेम ने अपने खाली हाथों को देखा, हाथ की रेखाएं आपस में गड्ड- मड्ड हो रहीं थी. क्या जिन्दगी के इस मुकाम पर एक और छल लिखा था, ईश्वर ने . प्रेम को जैसे करंट लग गया था. उन्हें लगा की जैसे उनकी सारी शक्ति किसी ने निचोड़ ली है.





“सौतेला” – प्रेम को यह शब्द कांटे की तरह चुभ रहा था. पहली बार उसे जीवन का यथार्थ अनुभव हुआ. “सही तो है, रहा तो वह सौतेला पिता ही ”. प्रेम की आँखों में व्यथा की पीड़ा उभर आई. उन्होंने पंडाल के उस कोने से देखा की शादी की तय्यारीयां पूरी हो चुकीं हैं. सब लोग अपने में व्यस्त है, और अब किसी को भी उनकी जरूरत नहीं हैं. प्रेम अहिस्ता से उठे और भारी क़दमों से बाहर की ओर चल दिए. कितने लोगों ने उन्हें टोका परन्तु प्रेम जैसे अपनी ही दुनिया में थे.



“कन्या के पिता को बुलाईये”, – पंडितजी ने आग्रह किया. दीपक दांत निकले आगे की ओर आ गया. अनुभा ने घूँघट की ओट से दीपक को देखा तो वह चौंक उठी. “हरगिज नहीं”,- अनुभा गरजी. “तुम मेरे पिता नहीं हो” .दीपक बेशर्मी की हंसी लिए हुए बोला,-“बिटिया,माँ ने बताया नहीं की, मैं ही तुम्हारा …..”दीपक का वाक्य समाप्त होने से पहले ही अनुभा अपनी जगह पर खड़ी हो गयी. “बब्बा”, – अनुभा ने जोर से आवाज लगाई. अनुभा कोई ,प्रत्युत्तर ना पाकर विवाह स्थल से आगे निकल आई. मधु और परिवार जनों ने अनुभा को रोका और प्रेम की खोज खबर ली जाने लगी. एक दरबान ने बताया की उसने प्रेम को पंडाल से बाहर जाते हुए देखा है. मधु और अनुभा एक दुसरे को देखने लगे, मन के तारों ने, अपनों की व्यथा को ताड़ने में देरी नहीं की’. दीपक ने कुछ कहने की कोशिश की परन्तु पहले अनुभा और फिर मधु ने दीपक को विवाह स्थल से बाहर जाने का आदेश दिया . दीपक ने देखा की कुछ लोग, आस्तीन चढ़ाये उसके पीछे खड़े हो गए हैं, दीपक ने रुखसत होने में ही खैरियत समझी.



अनुभा ने अपना सुर्ख लहंगा संभाला और पंडाल के बाहर दौड़ चली. मधु ने भी अनुभा का अनुसरण किया मधु , अनुभा के पीछे – पीछे ,अनुभा – अनुभा आवाज लगते हुए दौड़ पड़ी. फिर तो जैसे, पूरा कुनबा ही दौड़ चला.

दुल्हन के श्रृंगार में सजी, अनुभा सम्पूर्ण वेग से रास्ते पर दौड़ रही थी. पीछे – पीछे मधु और बाकि मेहमान. नौकर – चाकर सब दौड़ रहे थे – पीछे पीछे. सबके सब अनुभा के पीछे. रास्ते के लोग ठिठक कर सारा नजारा देख रहे थे. और अनुभा थी की, पुकारती चली जा रही थी, – “बब्बा……….”



”चौराहे पर एक दूसरी बारात सामने की ओर से रही थी. दुलहन और उसके पीछे – पीछे लोगो के हुजूम को आता देखकर दो पल को सब शांत हो गए. जैसे उन्होंने एक रैले को जगह दी थी. आगे एक मोड़ पर जाम लगा था. गाडीयां और लोगों की भीड़ रास्ते को रोककर कर खड़ी थी. सामने से दुलहन और उसकी बारात की इस तरह भागते आता देख सब एक तरफ हो गए, बिलकुल वैसे ही जैसे सिर पर टोकरी पर बाल कृष्ण को सर पर लिए वासुदेव के लिए यमुना नदी ने रास्ता दे दिया था. अनुभा दौड़ रही थी,दौड़ती ही जा रही थी.

प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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