* क्या यही प्यार है *
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" का करूँ सजनी आए ना बलम का करूँ सजनी " गुनगुनाते हुए अमित घर से निकला . आज राधा बहुत दिनो के बाद सहर से आ रही थी उसे लेने के लिए अमित अपनी बाइक से स्टेशन की ओर चल पड़ा. आज वह बहुत खुश था . राधा को वह बहुत शिद्दत से दिल ही दिल मे प्यार करता था पर आजतक कभी खुलकर कहा नहीं था.
स्टेशन पर बहुत ही चहल पहल थी गाड़ियों की अनाउन्स्मेंट और मुसाफिरों की आबा जाहि से पूरा स्टेशन जगा हुआ था.
राधा की गाड़ी भी आने वाली ही थी कुच्छ देर मे , अमित इंतेज़ार करने लगा अचानक से राधा की गाड़ी का अनाउन्स्मेंट हुआ तो अमित का दिल धड़ धड़ सा बजने लगा . खैर गाड़ी आई राधा डिब्बे के गेट पर दिखी अमित का तो मानो खुशियों का ठिकाना ना रहा . वो लपक कर राधा के पास पहुँचा दोनो एक दूसरे को देखकर मुस्कुराए. अमित ने राधा का बॅग उठा लिया. और स्टेशन से बाहर निकलने लगा.
अमित गाँव के एक अच्छे खाते पीते घर का लड़का है उसके पिता का नाम नरहरी सिंग है . सज्जन नरहरी सिंग जैसा नाम वैसा काम कि उक्ति को चरितार्थ करते हैं. गाँव मे उनका बड़ा मान सम्मान है . सब के सुख दुख के साझेदार नरहरी सिंग के एक दोस्त और राधा के पिता राज़बीर जी का असमय निधन सड़क दुर्घटना मे तब हो गया था जब राधा बहुत ही छोटी थी . रज़बीर जी एक छ्होटे किसान थे जो बगल के गाँव मे रहते थे. उनके असमय निधन के बाद नरहरी सिंग ने ना केवल परिवार को भावनात्मक साथ दिया बल्कि रज़बिर जी के परिवार को अपने गाँव मे ही बसा दिया ताकि उनकी देखभाल अच्छे तरीके से किया जा सके. दोस्ती ही नहीं इंसानियत का भी यह तक़ाज़ा नरहरी सिंग ने बहुत ही अच्छी तरह से निभाया था. समय बीतता रहा अब राधा डॉक्टर की डिग्री लेकर वापस आई है.
अमित राधा को लेकर उसके घर के रास्ते पर चल पड़ा.
कहाँ जा रहे हो - राधा ने पुछा
अमित - घर नही जाना है क्या
राधा - पहले दादा से तो मिल लूँ फिर घर चलेंगे
चलो जैसे तुम्हारी इच्छा कहते हुए अमित ने बाइक को अपने घर की तरफ मोड़ लिया. घर पहुँचकर राधा नरहरी सिंग से मिली . नरहरी सिंग एकटक राधा को देखते जा रहे थे उन्हें राधा मे हमेशा रज़बिर जी दिखाई देते थे.
दादा ऐसे क्या देख रहे हैं राधा ने कहा. वैसे तो चाचा का रिस्ता था राधा का नरहरी सिंग से पर रज़बिर जी उन्हें दादा ही बुलाते थे सो राधा भी दादा ही कहने लगी.
"कुच्छ नहीं बेटी तू सुना तेरी पढ़ाई कैसी चल रही है और तुम कैसी हो" नरहरी सिंग के स्वर लरज से गये
राधा उनकी भावनाओं को बड़ी संजीदगी से समझती थी कि वे कहाँ खोए हुए हैं.
दादा मैं तो ठीक हूँ और डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी हो गयी है - राधा ने जवाब दिया
"चल अच्छा है आज रज़बिर होता तो कितना खुश होता तुम्हे डॉक्टर देखकर " नरहरी जी जैसे भावेश मे बह गये . यह पहला अबसर था जब नरहरी जी ने राधा के सामने उसके पिता की बात की थी.
दादा आप खुश तो हो ना ?- राधा ने पुछा
बहुत खुश - नरहरि जी ने स्वयं को संयत करते हुए राधा के बॅग को देखते हुए कहा. चल अब भाभी से मिल ले मुझे पता है कि तू अभी घर नहीं गयी है .
सब लोग राधा के घर पहुँचे और उसकी माँ से मिले .राधा की माँ बहुत ही खुश हुई .
"भाभी आप खुश तो हो ना आज कुच्छ माँगने आया हूँ मैं आपसे" -नरहरी जी ने राधा की माँ उर्मिला देवी से कहा.
भाई साहब सब कुच्छ तो आपका ही है मैं भला आपको क्या दे सकती हूँ - राधा की माँ ने कहा
भाभी आज राधा को मैं अमित के लिए माँगने आया हूँ -नरहरी जी ने कहा
राधा की माँ के आखों से खुशी के आंशु गिरने लगे आख़िर सबकुच्छ तय हो चुका था . नियत समय पर राधा और अमित की शादी बड़े ही धूमधाम से नरहरी जी ने संपन्न करा दी.
आज राधा गाँव मे ही अपना हॉस्पिटल चलाती है और ख़ुसी ख़ुसी अपने परिवार के साथ रहते हुए गाँववालों की सेवा किए जा रही है . अमित राधा के साथ खुश है . नरहरी जी उन्हें खुश देखकर और अपने दोस्त को याद कर कभी खुश तो कभी गमगीन हो जाते हैं.
अब पाठकों से एक सवाल
क्या यही प्यार है ?
अपने बहुमुल्य राय से हमें ज़रूर अब्गत कराएँ .
दा एंड.
* क्या यही प्यार है *
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- Super member
- Posts: 6659
- Joined: 18 Dec 2014 12:09
* क्या यही प्यार है *
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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