तवायफ़ की प्रेम कहानी complete

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jay
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Re: तवायफ़

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लगभग आधे घंटे के बाद वो लोग एक बस मे बैठे जुंमन के गाओं को रवाना हो गये थे...काजल ने थोड़ा बहुत पुछा लेकिन ऋुना उसे समझा दिया कि अब वो यहाँ नहीं आएँगे............और जुंमन के गाओं से ही जब लैला कहेगी शहर वापस चले जाएँगे.............काजल ने भी ज़्यादा नहीं पुछा……....क्यूकी उसे खुद पर यकीन था…………..उसने सोच लिया था कि जब फ़ैसले की घड़ी आ जाएगी तो उसे क्या करना है………….....शायद उसने भी खुद को किस्मत के हाथो छोड़ दिया था………...हां इस बात पर कोई बहस उसे बर्दाश्त नहीं थी की वो वही करेगी जो लैला कहेगी.




अपने मन मे जुंमन और ऋुना दुआएँ माँग रहे थे,………..कोहिनूर के फिर से काजल बन जाने की दुआ……...उसकी खुशियों की दुआ……..उसकी मुहब्बत की दुआ…...लगभग 3 घंटे बाद वो लोग एक छोटे से गाओं के एक छोटे से कच्चे घर मे पहुचे.




ऋुना के अनुमान के ठीक विपरीत जुंमन ने सारा इंतज़ाम पहले ही करवा दिया था.....उसकी नज़रो मे आज जुंमन के लिए इज़्ज़त बढ़ती जा रही थी………...वो तो जो भी कर रही थी फिर भी एक वजह थी उसकी............उसने खुद एक तवायफ़ होने का दर्द महसूस किया था…...लेकिन जुंमन?...वो तो बस इंसानियत का फ़र्ज़ निभाने निकल पड़ा था.............जान हथेली पर लेकर.


**********************************************************************************


इधर सदानंद के घर पर.......



"ओये…..अबे…...अबे कौन हो तुम..??..ऐसे कैसे अंदर घुसे चले आ रहे हो ..हैं???......."बंगले के मेन गेट पर खड़ा वॉचमन फ़ोन पर मुस्कुरा मुस्कुरा कर बातें किए जा रहा था जब उसकी नज़र गेट से अंदर घुस चुके मजबूत कद काठी वाली पहलवान जैसे शख्स पर पड़ी जो बिना कुछ पुछे ,बिना किसी की परवाह के अंदर चला जा रहा था…………..जल्दी से दौड़कर वॉचमन ने उसे रोका और बड़ी बुरी तरह से डाँट'ते हुए पुछा.



वो शख्स रुक गया……..वॉचमन उसके करीब पहुचा और एक बार भरपूर नज़र उसपर डाली………...करीब 5,7' कद...मजबूत गठा हुआ बदन......लाल आँखे, गोरा तन्तनाता हुआ सा चेहरा..............कला पाइज़मा कुर्ता और गले मे मोटी सी चैन......शकल से गुरूर और गुसा झलकता हुआ.....उसने वॉचमन को खा जाने वाली नज़रो से देखा.



"ऐसे क्या देखता है बे…....पता भी है ये किसका घर है.......चलो निकलो यहाँ से...........जाने कहाँ कहाँ से आ जाते हैं............"वॉचमन कुछ ज़्यादा ही बदतमीज़ी से बात कर रहा था...शायद सदानंद का वॉचमन होने का असर था....




"अबे चूहे !!....तुझे पता है तू किस'से बात कर रहा है.......अबे जान जाएगा तो मूत निकला जाएगा तोहरा........छोड़ अभी अपुन थोड़ा ज़रूरी काम से इधर आया है……..तेरे कू फिर कभी समझाएगा....... " पलक झपकते ही शेरा का हाथ उस वॉचमन के मूह को बंद कर गया और जेब से तमंचा निकालकर उसके सर पर दे मारा…...बेचारा वॉचमन चीख भी ना पाया और बेहोश हो गया………….शेरा को जो जुंमन ने बताया था उसके बाद उसे शायद अनुमान हो गया था कि यहाँ के हालात ऐसे ही होने वाले हैं……पता था कि किसी अंजान को आलोक से मिलने नहीं दिया जाएगा............और जो उसने किया ये उसी का नतीजा था.



शेरा ने उसे एक कोने मे डालकर पास मे पड़ी टाट उसके उपर डाल दी और तेज तेज कदमो से अंदर को चल दिया………..घर के नौकरो से बचते बचाते आख़िर 15 मिनट की जहमत के बाद वो आलोक के कमरे मे घुसने मे कामयाब हो ही गया.



कोई 20 मिनिट बाद आलोक की गाड़ी हवा की तेज़ी के साथ उस बंगले से निकली और किसी को भी कुछ सोच पाने का मौका मिलने से पहले ही वो गेट से बाहर थी.....



ड्राइविंग सीट पर बैठे आलोक की आँखे रतजगे और रोने के कारण लाल हो गयी थी…..उन आँखो मे सारे जमाने का दर्द उमड़ आया था.....आज किस्मत ने एक बार फिर उसे मौका दिया था……….और इस बार वो हार नहीं मान'ने वाला था.............उसकी चेहरे की सख्ती बता रही थी कि इस बार वो नहीं झुकेगा……….चाहे कोई भी कीमत चुकानी पड़े. चाहे किसी भी हद से गुजर जाना पड़े………उसके ठीक बगल मे बैठा था शेरा और पिछे बैठी थी उसकी दोस्त सोफी



"आलोक बाबू , एक बात बोलू बुरा ना मानो तो.............वैसे मान भी जाओगे तो मेरा क्या ......"शेरा, शायद अकड़ का दूसरा नाम था.



"नहीं शेरा भाई, बिल्कुल नहीं बुरा मानूँगा...बोलो..."आलोक ने धीरे से कहा.



"तुम जाओ जहाँ जाना है.....शायद देर हो जावे, तो बहुत देर हो जावे...इन मेडम को शेरा छोड़ देगा हवाई अड्डे तक......हां, पन अपुन गुंडा है……सोचकर ही भरोसा करियो......"



"आलोक ने एक बार उसके ओर देखा और कुछ ना बोला.....



"ये ठीक कह रहे हैं आलोक.......यू प्लीज़ गो...आइ विल मॅनेज.......माइ हंबल रिक्वेस्ट टू यू...डॉन"ट वेस्ट टाइम........."



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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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Re: तवायफ़

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आलोक भी शायद दिल से यही चाहता था….लेकिन वो सोफी को छोड़ कर भी नहीं जा सकता था…………इतनी दूर एक उसके ही भरोसे पर तो आई थी वो…..…और आज जब वो जा रही थी तो कैसे अकेले उसे जाने देता…….उसे सी-ऑफ करने एरपोर्ट जा रहा था और वहाँ से जुंमन के गाओं…….लेकिन दूसरी तरफ उसकी मुहब्बत थी…………आज उसका बस नहीं चल रहा था कि वो उड़ कर अपनी काजल के पास पहुच जाए…उसने सुनी सुनी आँखो से सोफी को सिर्फ़ देखा.



“प्लीज़ जाओ…..गो!!!!...” सोफी ने ज़ोर देकर कहा और आख़िर आलोक मान गया…



“शेरा भाई , बहुत बड़ा अहसान किया है आपने मुझपर……..…जान रही तो कभी इस अहसान का बदला ज़रूर चुका दूँगा………बस एक अहसान और करदो, सोफी को छोड़ दो एरपोर्ट तक सही सलामत…..” आलोक ने हाथ जोड़ दिए शेरा के आगे.



“ओ हीरो…अपुन को सेनटी मत कर………अभी अपुन के पास अद्धा-पौवा कुछ नहीं है….चल जा तू…अपुन पहुचा देगा इन मादम को…”



आलोक ने साइड मे गाड़ी रोकी………..एक टॅक्सी को रुकवाया………शेरा से हाथ मिलाया और सोफी को गले लगाकर उस टॅक्सी मे बैठा दिया.


“ सी यू सून , आलोक” सोफी ने टॅक्सी के चलने से ठीक पहले कहा.

“प्रे फॉर माइ लव सोफी” आलोक की आँखे दबदबा गयी.

“आइ विल, काजल तुम्हे ज़रूर मिलेगी….गॉड ब्लेस्स यू”


सोफी शेरा के साथ एरपोर्ट को निकल गयी और आलोक गाड़ी मे बैठा जुनूनी अंदाज़ मे जुंमन के गाओं को निकल गया, जहा उसकी मुहब्बत की किस्मत का फ़ैसला होना था.



एरपोर्ट पर सोफी ने शेरा को थॅंक यू बोला और अपने सामान को संभाले अंदर की ओर चल दी….शेरा ने जब देखा कि वो गेट से अंदर घुस गयी तो वो भी वापस चल दिया………..आज ज़िंदगी मे पहली बार उसके दिल को बहुत सुकून मिला था…………उसके दिल मे भी बस यही दुआ थी…… “आलोक को उसकी मुहब्बत मिल जाए…”



सोफी कुछ कदम ही अंदर चली थी कि किसी ने उसे आवाज़ दी “सोफ़ियाअ!!”




किसी लड़की की आवाज़ थी,सोफी ने पलटकर देखा ,उसके पिछे थोड़ी डोर पर एक लड़की खड़ी थी……सोफी को चेहरा जाना पहचाना लग रहा था लेकिन उसे याद नहीं आ रहा था………...वो वही रुक गयी…लड़की भागती हुई उसकी ओर आ गयी…..उसके साथ मे एक लड़का था जिसे सोफी बिल्कुल नहीं पहचान रही थी…….लड़का काफ़ी कमजोर और शक्ल से बीमार-बीमार लग रहा था..




“यू आर सोफ़िया…..राइट…???.व्हेअर ईज़ आलोक….??…....मैने पता किया वहाँ तो पता चला कि तुम दोनो इंडिया आए हो.........मैं उसे दो दिन से लगातार ट्राइ कर रही हू………ना उसका फोन लग रहा है ना वो किसी भी कम्यूनिकेशन का रेस्पॉंड कर रहा है…….…कहाँ है वो…प्लीज़ बताओ…इट”स अर्जेंट…… ?? ही ईज़ ओके ना??”लड़की बहुत घबराई हुई और बदहवास सी लग रही थी.




“आइ एम रियली वेरी सॉरी…बट..मैने पहचाना नहीं ….हू आर यू ??…कभी देखा तो है तुम्हे बट आइ कॅन”ट रीकॉल ”” सोफी ने कहा.




“मे…अंजलि आलोक की सिस्टर…स्काइप पर बात हुई थी एक दो बार जब तुम आलोक के साथ थी…रिमेंबर???...बताओ कहाँ है आलोक…और कुछ मत पुच्छना ….मैं बाद मे सब बताउन्गी,…..”उस लड़की ने जल्दी जल्दी से इतना ही कहा



“ओह…य्स्स…हाई अंजलि..आलोक तो……???...कम फास्ट…जल्दी आओ मेरे साथ..वो अभी अभी इस शहर से बाहर गया है…प्लीज़ कम………” सोफी कुछ कुछ बता रही थी जिसे सुनकर अंजलि और बेचैन होती जा रही थी.



अंजलि , वो लड़का और सोफी भागते हुए एरपोर्ट से बाहर निकले…….सोफी की नज़रे चारो ओर शेरा को तलाश कर रही थी…..उसने आलोक का फ़ोन भी ट्राइ किया पर वो बंद था……….शेरा भी कही नहीं दिख रहा था…..वही एक था जो उन्हे अभी आलोक के पास ले जा सकता था….…सोफी दौड़ती हुई थोड़ी सी और आगे बढ़ी………कुछ दूर पर उसे आख़िर शेरा दिख ही गया…………..फोन कान से लगाए और एक हाथ मे सिगरेट पकड़े वो थोड़ी दूर पर खड़ा शायद किसी का इंतज़ार कर रहा था..



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jay
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Re: तवायफ़

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“एक्सक्यूस मी….!!!...हेल्लूऊओ…”शेरा की नज़रे सोफी की आवाज़ पर उसकी ओर उठ गयी…….उसने फोन काट किया और बड़े गौर से उन सबको देखने लगा…



“ऐंन्न…तू गयी नहीं ??……..और ये सब कौन आ गये??…….चक्कर क्या है मेडम??” शेरा ने आस्चर्य से पुछा .



“देखिए भैया, प्लीज़ आप हमे आलोक तक ले चलिए……..ये बहुत अर्जेंट है…….प्लेअसस्स्स्सीई,,,मैं रास्ते मे सब बता दूँगी…………”अंजलि ने जल्दी से कहा.



“उम्म्ममहूऊऊ…….हा…कहाँ फँसा दिया साले जुंमन ने,,,…..ओके चलो …लेकिन अब मुझे सब बताना पड़ेँगा तुम सबको…साला अपुन का खोपड़ी सटक रही है अब” शेरा बेमतलब दूसरे के लफडे मे पड़ने वाला शक्स नहीं था लेकिन आज वो मना ना कर सका.



“जी मैं सब बता दूँगी…प्लीज़……..”



“ओये जग्गा…..सुन! मेरी गाड़ी, थोड़े पैसे और कुछ “समान” लेकर 10 मिनिट मे, पुराने चर्च के पास मिल………….कोई सवाल नहीं और लेट हुआ तो तू जानता है अपुन को………” शेरा ने फ़ोन पर इतना ही कहा और बिना जवाब सुने फ़ोन काट कर दिया.



तकरीबन 30 मिनिट बाद सोफी, अंजलि और वो लड़का शेरा के साथ उसकी गाड़ी मे जुंमन के गाओं के लिए रवाना हो गये.

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कोई 8 घंटे बाद…



सुबह हो चुकी थी…….और ऋुना के घर पर पहुच चुके सदानंद का गुस्सा देखने लायक था.



“लैला अगर वो लड़की नहीं मिली, और वो हो गया जो मैं नहीं चाह रहा तो तेरा वो हश्र करूँगा…..” सदानंद ने लैला को खा जाने वाली नज़रो से देखते हुए कहा..



“वो कही नहीं जाएगी हुज़ूर………..वो…वो..सब ज़रूर उस कमीने जुंमन के घर गये होंगे…….ये सब उसी का किया धरा है……..आप पता करवाईए जुंमन के घर का अड्रेस्स……..यही से कुछ दूर है पर मुझे ठीक ठीक पता नहीं है……..” लैला की हालत खराब हो रही थी…बड़ी मुश्किल से इतना बोल पाई.



“कमीनी……....रंडी…………मैं कैसे पता करवाऊ..बोल “



“वो ..व..वो….वो एक दो बार जैल गया है…शायद उधर से कुछ पता चल सके……” सदानंद ने उसे घूरा तो लैला की जान हलक मे आ गयी…


“तुझे तो मैं बाद मे देखूँगा…” सदानंद ने दाँत पीसते हुए कहा और अपने किसी खास आदमी को फ़ोन करने लगे………….


“हेलो वेरमा साहब………..एक काम था….” और फिर सदानंद कुछ देर तक बात करते रहे .



कोई 2 घंटे बाद एक बार फिर से सदनादन और उसके आदमियों की गाड़ियों का काफिला निकल पड़ा…..इस बार रुख़ था जुंमन का घर.



जाने किस्मत को क्या मंजूर था……….आलोक , अंजलि और सदानंद, सब जुंमन के गाओं निकल पड़े थे…………...अपने अपने मकसद के लिए……………एक की जीत दूसरे की हार थी………….खून के रिश्ते मे और मुहब्बत के रिश्ते मे टकराव होने वाला था………….. देखना था कौन कमजोर पड़ता है…वो खून का रिश्ता या ये मुहब्बत का रिश्ता…..



ऋुना और काजल जुंमन के साथ उसके घर पहुच चुकी थी...दोपहर का खाना खाकर ऋुना के साथ काजल लेटी थी ...जुंमन कुछ काम है बोलकर कही बाहर गया हुआ था.



"ऋुना बाजी, बताइए ना आप कैसे जानती हैं आलोक के पापा को.....? काजल ने छत को एकटक देखते हुए पुछा.



"कोई ऐसा रिश्ता नहीं है कोहिनूर जिसे नाम दे सकूँ.........बस ये समझ लो कि एक मजबूर लड़की अपना सहारा ढूँढने निकली थी,और धोखा खा गयी........." ऋुना ने कुछ सोचते हुए कहा.



"मैं समझी नहीं....." कोहिनूर बोली.



" मेरी दास्तान भी हर तवायफ़ के जैसे ही मजबूरी की दास्तान है....जिस दिन कोठे पर ये "रानी" ऋुना बन गयी उस रात मेरी इज़्ज़त का पहला सौदागर सदानंद ही था...जानती हो, बड़े सपने दिखाए थे इसने मुझे...."ऋुना अपने बारे मे बताती गयी.....



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Re: तवायफ़

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"मैं दिल्ली से हूँ.......अपने प्यार के साथ मुंबई भाग आई थी..घर वालो के खिलाफ जाकर अपना सब कुछ उसे सौप दिया.....लेकिन ..." ऋुना की आँखे भर आई....मांझी की दर्दनाक यादें उसके सीने मे शूल बनकर चुभ रही थी..........काजल उठकर बैठ गयी, उसके कंधे पर हाथ रख दिया.




"वो बेवफा निकला कोहिनूर...!.दर दर की ठोकरे खाती रही मैं उसके साथ, हर दर्द हर तकलीफ़ सहने को तैयार थी......लेकिन वो कमजोर निकला....उसका दिल मुझसे भर गया, और उस दिल की मुहब्बत मर गयी......मेरे साथ जीने मरने की कसमे खाने वाला, मरते दम तक साथ निभाने के वादे करने वाला, चार कदम भी मेरे साथ ना चल पाया......सोई तो मैं उसकी बाहों मे थी, लेकिन जब नीद खुली तो खुद को एक कोठे पर पाया...उस जगह पर जहाँ पायल की झंकार और तबले की तान के बीच एक मजबूर औरत की दर्दनाक चीख घुट घुट कर दम तोड़ देती है......हां कोहिनूर , मेरे दीपक ने मुझे बेच दिया था...मेरी पहली मुहब्बत ने..मेर अपने दीपक ने." पुराना जख्म आज फिर से उभर आया था.....ऋुना के आँसुओ मे सैलाब आ गया था....पर वो रुकी नहीं, बोलती रही....




" मैं बिल्कुल टूट गयी थी...जिसपर आँख मूंद कर ऐतबार किया था उसी ने खून कर दिया था मेरे ऐतबार का...जीने की कोई वजह नहीं थी, लेकिन मर भी ना सकी........शायद कुछ करना बाकी था इस दुनिया मे........घर वालो ने पहले ही मरा मान लिया था, कोई नहीं था जिसे मेरी हालत से मतलब था.....पैरो मे घुंघरे बँधे तो फिर सिर्फ़ एक पहचान रह गाइिईई - सिर्फ़ एक तवायफ़ .."



"कुछ दिन तक अपना दामन बचाती रही..लेकिन कब तक..सदानंद ने बड़े वादे किए मुझसे...मुझे उस जहन्नुम से निकालने का वादा, एक नयी ज़िंदगी का वादा,हर वादे पर एक और वादा.........कसमों वादो पर ऐतबार तो खैर बहुत पहले ही छोड़ दिया था मैने...बस अपनी बर्बादी का तमाशा देखती रही.....कुछ दिन बाद मुझे उस कोठे वालो ने बेच दिया....सदानंद तो कभी नहीं आया फिर, लेकिन यहाँ मैं तुम्हारी माँ से मिली..मोहिनी से" ऋुना ने काजल की ओर देखा...दोनो की आँखो मे आँसू थे.




"मोहिनी की आँखे बड़ी सुंदर थी काजल...लेकिन उन आँखो मे हमेशा इंतकाम नज़र आता था........मोहिनी हम सबसे अलग थी...हम से ज़्यादा बहादुर थी.....और इसी लिए शायद अपना मकसद पा सकी....एक दिन मोहिनी आई तो बहुत खुश थी...आते ही मुझे गले लगा कर बोली..---



"आज जीने का मकसद पूरा हो गया ऋुना बेहन.......अब जान जब चाहे चली जाए को मलाल नहीं रहेगा........बस एक माँ होने का फ़र्ज़ ना निभा पाई यही दर्द हमेशा डाँसेगा.........अपनी बेटी की गुनहगार हू मैं....."



काजल की आँखे फिर से भर आई...आज उसे लग रहा था कि काश उसकी माँ उसे ये सब पहले बता देती तो वो अपनी माँ को कभी अकेला ना छोड़ती .लेकिन वो ये भी समझ रही थी कि उसकी माँ ने ऐसा क्यू नहीं किया...लेकिन वाह री किस्मत...........उसी राह पर काजल को ले चली जहाँ से बचाने के लिए उसकी माँ सारा दर्द अकेले ही पी गयी थी.



कुछ दूर खड़ा जुंमन बिल्कुल खामोशी से उनकी बात सुन रहा था..........धीरे धीरे चलता हुआ उनके पास आया और थोड़ी दूर पड़ी चारपाई खिचकर बैठ गया.........



ऋुना एक पल को ठिठकी , उसकी ओर देखा और फिर बोलना सुरू किया......



"काजल, उसी रात मोहिनी ने मुझे अपने बारे मे सब बताया था..सदानंद और तुम्हारे पापा के बारे मे भी..........लेकिन अगली सुबह मैं जागी तो मोहिनी वहाँ नहीं थी........शायद तुमसे मिलने कोल्कता गयी थी...और उसके दूसरे ही दिन फिर से मेरा सौदा हुआ......मैं फिर से बेची और खरीदी गयी......मैं यहाँ आ गई...." ऋुना ने अपने आँसू पोन्छे............काजल एक टक उसकी ओर देखती रही......और जुंमन भी.



जुंमन का चेहरा भी गंभीर हो गया था...वो रातें जिन्हे वो "र्नगीं और हसीन " समझता था किसी के लिए कितनी दर्दनाक होती थी आज उसे अहसास हो रहा था. उसके लिए तो जिस्म बेचना भी एक पेशा था, जिसके बदले एक तवायफ़ पैसे लेती थी.........लेकिन तिल तिल कर कैसे एक रूह ज़ख्मी होती थी ये आज उसे समझ आ रहा था.



वही काजल फिर से आज उसी सोच मे डूब गयी थी......कैसा है ये समाज जो एक जीती जागती, विधाता की सबसे सुंदर कृति को एक "वस्तु" समझता है...एक चीज़ समझता है...जिसे खरीदता और बेंचता है.......उसके साथ राते तो रंगीन करता है लेकिन उस रात के बाद होने वाले उजाले मे उसे तवायफ़ नाम की गाली देता है...........कैसा है ये समाज , क्यू ऐसा है ये समाज???.




तीनो ही चुप थे, जैसे कुछ बचा ही ना था कहने सुनने को.........तीनो ही अपनी अपनी सोचो के भवर मे डूबे हुए थे.........बाहर गाड़ी के टायरों की तेज़ी से चर्चराने की आवाज़ पर एक साथ तीनो चौंक पड़े........जुंमन ने भागकर दरवाज़ा बंद किया और आँखे खिड़की से लगा दी.

खिड़की से आँख लगाए जूमन गाड़ी को रुकते और फिर उसमे से निकलते शख्स को देखता है, उसके ठीक पिछे खड़ी ऋुना उस शख्स को देखकर अपनी ख़ुसी छुपा नहीं पाती.


"आलोक बाबू आ गये जुंमन , दरवाज़ा खोलो "


आलोक की कार जुंमन के घर से थोड़ी दूर पर खड़ी थी और कार से निकलकर आलोक बेचैनी से इधर उधर देख रहा था, उसकी आँखो मे मिलन की तड़प सॉफ झलक रही थी.


जुंमन पलट कर ऋुना की ओर देखता है , दोनो के आँखो मे चमक थी ,लेकिन ऋुना की बात सुन काजल के चेहरे का रंग उड़ चुका था.......


"ये क्या कर रहे हो आप लोग.....ऋुना बाजी आप तो सब जानती हो ना...क्या फ़ायदा होगा मेरी इतने दिनो की कुर्बानी का ??....क्या होगा उस....."




" हर बार कुर्बानी तू ही क्यू देगी मेरी बच्ची, तूने तो अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर दी उस मुहब्बत का भरम रखने के लिए जिसके होने का पूरा यकीन भी तुझे नहीं....बता क्या मैं ग़लत कह रही हू.......??" ऋुना एक पल को रुकी, काजल बिल्कुल चुप हो गयी ,
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Re: तवायफ़

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"कोहिनूर ! अब तक तो इतना यकीन नहीं था, लेकिन आज मैं कह सकती हूँ कि तेरी मुहब्बत की तड़प बेवजह नहीं है.......देख उसकी आँखो की दीवानगी,बावरा लग रहा है.... पागलो की तरह भागा चला आया है तेरे लिए....अब वक़्त आ गया है कि एक मौका उसे भी दिया जाए........तूने तो सारे फ़ैसले खुद कर लिए....तब भी और आज भी करना चाह रही है......क्या कसूर है उसका ??...बता ?......ऐसा ना कर मेरी बच्ची...एक मौका उसे भी दे अपनी मुहब्बत साबित करने का...एक बार आज़मा ले अपनी मुहब्बत को........"



ऋुना काजल को समझा रही थी लेकिन काजल उसकी ओर ऐसे देखती है जैसे ऋुना ने कोई बचकानी बात कह दी हो........हल्की सी हँसी आ जाती है काजल के होंठो पे....



"ऋुना बाजी ! आपको क्या लगता है कि मुझे आलोक की मुहब्बत पर यकीन नहीं था ??...नहीं बाजी ! आप ग़लत समझी....एक लड़की की आँखे कभी ये धोखा नहीं खा सकती ...आलोक तो लाखों मे एक हैं....वो मुझसे बहुत प्यार करते हैं...तब भी करते थे और आज भी, लेकिन अपनी सच्चाई जानकार मैने खुद को उनके लायक ही नहीं समझा और उसके बाद जो कुछ किया मैने......." काजल की बात अधूरी रह गयी...... उनकी इस बहस के बीच जाने कब जुंमन बाहर निकल चुका था....दरवाज़ा एक झटके मे खुला और काजल के सामने आलोक खड़ा था.......उफफफफफफ्फ़!!!! कितनी बेबसी थी उन आँखो मे.......!!




काजल भी एक तक आलोक को देखे जा रही थी ...बिखरे बाल, बढ़ी हुई शेव....लाल सूजी हुई आँखे और मैंले से कपड़े....काजल की आँखे डबडबा गयी ...क्या हाल बना लिया था अपना आलोक ने...कहा वो कॉलेज वाला चहकता स्मार्ट सा आलोक और कहाँ ये मुहब्बत की दीवानगी मे पागल सा आलोक...बहुत कुछ बदल गया था लेकिन दिल तो आज भी वही था.......काजल का दिल रो उठा आलोक की दशा देख कर.......बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू किया हुआ था उसने.


दोनो एक दूसरे को देख रहे थे और ऋुना उन्हे...जुंमन बाहर ही रह गया था...ऋुना ने आगे बढ़कर आलोक के कंधे पर हाथ रखा और बाहर निकल गयी.




आलोक चन्द पल काजल को देखता रहा और फिर अपने घुटनो के बल गिरकर तड़प तड़प कर रोने लगा..... अब बर्दाश्त कर पाना काजल के बस मे ना था..दौड़कर आलोक को अपने सीने से लगा लिया........



"मत रोइए आलोक... प्लीज़ मत रोइए.......मैं हू आपके पास .....प्लीज़ मत रो...."



आलोक ने अपना सर उपर उठाया.........



"कहाँ हो तुम मेरे पास ??...तुम तो मुझसे बहुत दूर निकल गयी काजल.........बिना कुछ कहे , बिना कुछ बताए..कोई शिकवा ही कर लेती...कुछ सज़ा देती कोई खता हुई थी तो...लेकिन ऐसा क्यू किया.........बताओ.......मुझ पर यकीन नहीं था या मेरी मुहब्बत पर यकीन नहीं था ??? बोलो ??क्यू चली गयी बिना कुछ कहे......" आलोक आज बरसो से दिल मे दबे सारे सवाल कर रहा था काजल से. करता भी क्यू ना, हक़ था उसे..




और काजल !!... कदम कदम पर मजबूर, आज एक बार फिर से मजबूर ..होठ सिल गये थे मानो.




"बोलो काजल, कुछ तो कहो......क्यू किया ऐसा तुमने....एक बार मुझे कहकर तो देखती..सारी दुनिया से टकरा जाता तुम्हारा आलोक.....तुम मिली भी तो इस रूप मे, क्यू हुआ ये सब.....कैसे बन गयी मेरी काजल कॉहनूर ??.....बोलो प्लीज़.......बहुत दिनो से ये सवाल मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रहा है कि मेरा कसूर क्या था , आज मुझे जवाब चाहिए काजल...बोलो...प्लीज़ चुप मत रहो...तुम्हारी ये खामोशी मेरी जान ले लेगी....??” आलोक आज सब कुछ जानना चाह रहा था...लेकिन काजल अभी भी कुछ कह नहीं रही थी.



काजल की आँख से आँसू निकले और उसके होंठो से शब्द...




“आलोक ,मेरी ममा ..एक.....एक.... तवायफ़ थी मेरी माँ.....!” काजल ने बड़ी मुश्किल से ये अल्फ़ाज़ अदा किए, और सर झुका लिया..काजल को शायद लग रहा था कि उसने आलोक के सवालो का जवाब दे दिया...लेकिन उसका ये भरम सिर्फ़ कुछ पल ही रहा....




“ तो ???????........काजल , तवायफ़ कोई औरत अपनी ख़ुसी से नहीं बनी होगी.....”



आलोक काजल की आँखो मे देख रहा था, और वो खूबसूरत आँखे सावन की बदली के जैसे बरसे ही जा रही थी.....आलोक से बर्दाश्त नहीं हो रहे थे उन आँखो के आँसू......



“जाने दो काजल !!!, अगर तुम नहीं बताना चाहती तो मैं वो वजह भी नहीं पूछूँगा ...तुम्हारी मॉं क्या थी, तुम क्या बन गयी....कुछ मत बताओ मुझे...बस अब मेरे पास चली आओ..........और बर्दाश्त नहीं कर पाउन्गा मैं.”आलोक की बात सुन काजल का दिल फिर से तड़प उठा.....क्या था वो , इंसान या कोई फरिश्ता ?...काजल उसे बेयकीनी से देखने लगी.......इतनी बड़ी बात कितनी आसानी से कह गया था आलोक........कुछ पल बेयकीनी मे बीते, फिर उन निगाहो मे मान था...अपनी मुहब्बत के लिए मान .



“हां काजल, बहुत तड़पा हू मैं इस जवाब के लिए कि मेरा कसूर क्या था , क्यू गयी तुम मुझे छोड़ कर...लेकिन आज ऐसा लग रहा है कि वजह ऐसी है शायद जिसे कहने मे तुम्हे तकलीफ़ होगी...और ये मुझे बर्दाश्त नहीं.....तो नहीं जान’ना मुझे कुछ भी........कोई वास्ता नहीं मुझे तुम्हारी माझी से........बस अब मैं तुम्हे जाने नहीं दूँगा. ......कभी कह नहीं पाया , शायद मौका ही नहीं मिला..आज कहता हू.....आइ लव यू काजल, आइ लव यू वेरी मच........जान से ज़्यादा चाहता हूँ मैं तुम्हे...दीवानगी की हद तक, पागलपन की इंतेहा तक....बस अब मेरी हो जाओ.....चलो यहाँ से ..कही दूर चल कर एक प्यार का आशियाना बसा लें...चलो मेरे साथ...”आलोक ने आज दिल चीरकर रख दिया था, काजल की आँखे बरस रही थी.




क्या चाहती है एक लड़की?? यही कि कोई उसे इतना चाहे जितना आजतक किसी ने किसी को ना चाहा हो...कोई हो जो सिर्फ़ उसका हो, उसके लिए हो....काजल ने भी यही चाहा था...उसके आँखो मे भी बरसो यही ख्वाब पाला था...लेकिन आज जब वो ख्वाब हक़ीक़त बन कर उसके सामने आ गया था, तो काजल आगे बढ़कर उस हक़ीक़त को महसूस नहीं कर पा रही थी....कैसा अजीब इत्तेफ़ाक़ था, जो कभी उसका तस्स्वुर होता था आज वो हक़ीक़त था, लेकिन वो हक़ीक़त होकर भी एक ख्वाब था.




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