तवायफ़ की प्रेम कहानी complete

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jay
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Re: तवायफ़

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"कोहिनूर ! अब तक तो इतना यकीन नहीं था, लेकिन आज मैं कह सकती हूँ कि तेरी मुहब्बत की तड़प बेवजह नहीं है.......देख उसकी आँखो की दीवानगी,बावरा लग रहा है.... पागलो की तरह भागा चला आया है तेरे लिए....अब वक़्त आ गया है कि एक मौका उसे भी दिया जाए........तूने तो सारे फ़ैसले खुद कर लिए....तब भी और आज भी करना चाह रही है......क्या कसूर है उसका ??...बता ?......ऐसा ना कर मेरी बच्ची...एक मौका उसे भी दे अपनी मुहब्बत साबित करने का...एक बार आज़मा ले अपनी मुहब्बत को........"



ऋुना काजल को समझा रही थी लेकिन काजल उसकी ओर ऐसे देखती है जैसे ऋुना ने कोई बचकानी बात कह दी हो........हल्की सी हँसी आ जाती है काजल के होंठो पे....



"ऋुना बाजी ! आपको क्या लगता है कि मुझे आलोक की मुहब्बत पर यकीन नहीं था ??...नहीं बाजी ! आप ग़लत समझी....एक लड़की की आँखे कभी ये धोखा नहीं खा सकती ...आलोक तो लाखों मे एक हैं....वो मुझसे बहुत प्यार करते हैं...तब भी करते थे और आज भी, लेकिन अपनी सच्चाई जानकार मैने खुद को उनके लायक ही नहीं समझा और उसके बाद जो कुछ किया मैने......." काजल की बात अधूरी रह गयी...... उनकी इस बहस के बीच जाने कब जुंमन बाहर निकल चुका था....दरवाज़ा एक झटके मे खुला और काजल के सामने आलोक खड़ा था.......उफफफफफफ्फ़!!!! कितनी बेबसी थी उन आँखो मे.......!!




काजल भी एक तक आलोक को देखे जा रही थी ...बिखरे बाल, बढ़ी हुई शेव....लाल सूजी हुई आँखे और मैंले से कपड़े....काजल की आँखे डबडबा गयी ...क्या हाल बना लिया था अपना आलोक ने...कहा वो कॉलेज वाला चहकता स्मार्ट सा आलोक और कहाँ ये मुहब्बत की दीवानगी मे पागल सा आलोक...बहुत कुछ बदल गया था लेकिन दिल तो आज भी वही था.......काजल का दिल रो उठा आलोक की दशा देख कर.......बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू किया हुआ था उसने.


दोनो एक दूसरे को देख रहे थे और ऋुना उन्हे...जुंमन बाहर ही रह गया था...ऋुना ने आगे बढ़कर आलोक के कंधे पर हाथ रखा और बाहर निकल गयी.




आलोक चन्द पल काजल को देखता रहा और फिर अपने घुटनो के बल गिरकर तड़प तड़प कर रोने लगा..... अब बर्दाश्त कर पाना काजल के बस मे ना था..दौड़कर आलोक को अपने सीने से लगा लिया........



"मत रोइए आलोक... प्लीज़ मत रोइए.......मैं हू आपके पास .....प्लीज़ मत रो...."



आलोक ने अपना सर उपर उठाया.........



"कहाँ हो तुम मेरे पास ??...तुम तो मुझसे बहुत दूर निकल गयी काजल.........बिना कुछ कहे , बिना कुछ बताए..कोई शिकवा ही कर लेती...कुछ सज़ा देती कोई खता हुई थी तो...लेकिन ऐसा क्यू किया.........बताओ.......मुझ पर यकीन नहीं था या मेरी मुहब्बत पर यकीन नहीं था ??? बोलो ??क्यू चली गयी बिना कुछ कहे......" आलोक आज बरसो से दिल मे दबे सारे सवाल कर रहा था काजल से. करता भी क्यू ना, हक़ था उसे..




और काजल !!... कदम कदम पर मजबूर, आज एक बार फिर से मजबूर ..होठ सिल गये थे मानो.




"बोलो काजल, कुछ तो कहो......क्यू किया ऐसा तुमने....एक बार मुझे कहकर तो देखती..सारी दुनिया से टकरा जाता तुम्हारा आलोक.....तुम मिली भी तो इस रूप मे, क्यू हुआ ये सब.....कैसे बन गयी मेरी काजल कॉहनूर ??.....बोलो प्लीज़.......बहुत दिनो से ये सवाल मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रहा है कि मेरा कसूर क्या था , आज मुझे जवाब चाहिए काजल...बोलो...प्लीज़ चुप मत रहो...तुम्हारी ये खामोशी मेरी जान ले लेगी....??” आलोक आज सब कुछ जानना चाह रहा था...लेकिन काजल अभी भी कुछ कह नहीं रही थी.



काजल की आँख से आँसू निकले और उसके होंठो से शब्द...




“आलोक ,मेरी ममा ..एक.....एक.... तवायफ़ थी मेरी माँ.....!” काजल ने बड़ी मुश्किल से ये अल्फ़ाज़ अदा किए, और सर झुका लिया..काजल को शायद लग रहा था कि उसने आलोक के सवालो का जवाब दे दिया...लेकिन उसका ये भरम सिर्फ़ कुछ पल ही रहा....




“ तो ???????........काजल , तवायफ़ कोई औरत अपनी ख़ुसी से नहीं बनी होगी.....”



आलोक काजल की आँखो मे देख रहा था, और वो खूबसूरत आँखे सावन की बदली के जैसे बरसे ही जा रही थी.....आलोक से बर्दाश्त नहीं हो रहे थे उन आँखो के आँसू......



“जाने दो काजल !!!, अगर तुम नहीं बताना चाहती तो मैं वो वजह भी नहीं पूछूँगा ...तुम्हारी मॉं क्या थी, तुम क्या बन गयी....कुछ मत बताओ मुझे...बस अब मेरे पास चली आओ..........और बर्दाश्त नहीं कर पाउन्गा मैं.”आलोक की बात सुन काजल का दिल फिर से तड़प उठा.....क्या था वो , इंसान या कोई फरिश्ता ?...काजल उसे बेयकीनी से देखने लगी.......इतनी बड़ी बात कितनी आसानी से कह गया था आलोक........कुछ पल बेयकीनी मे बीते, फिर उन निगाहो मे मान था...अपनी मुहब्बत के लिए मान .



“हां काजल, बहुत तड़पा हू मैं इस जवाब के लिए कि मेरा कसूर क्या था , क्यू गयी तुम मुझे छोड़ कर...लेकिन आज ऐसा लग रहा है कि वजह ऐसी है शायद जिसे कहने मे तुम्हे तकलीफ़ होगी...और ये मुझे बर्दाश्त नहीं.....तो नहीं जान’ना मुझे कुछ भी........कोई वास्ता नहीं मुझे तुम्हारी माझी से........बस अब मैं तुम्हे जाने नहीं दूँगा. ......कभी कह नहीं पाया , शायद मौका ही नहीं मिला..आज कहता हू.....आइ लव यू काजल, आइ लव यू वेरी मच........जान से ज़्यादा चाहता हूँ मैं तुम्हे...दीवानगी की हद तक, पागलपन की इंतेहा तक....बस अब मेरी हो जाओ.....चलो यहाँ से ..कही दूर चल कर एक प्यार का आशियाना बसा लें...चलो मेरे साथ...”आलोक ने आज दिल चीरकर रख दिया था, काजल की आँखे बरस रही थी.




क्या चाहती है एक लड़की?? यही कि कोई उसे इतना चाहे जितना आजतक किसी ने किसी को ना चाहा हो...कोई हो जो सिर्फ़ उसका हो, उसके लिए हो....काजल ने भी यही चाहा था...उसके आँखो मे भी बरसो यही ख्वाब पाला था...लेकिन आज जब वो ख्वाब हक़ीक़त बन कर उसके सामने आ गया था, तो काजल आगे बढ़कर उस हक़ीक़त को महसूस नहीं कर पा रही थी....कैसा अजीब इत्तेफ़ाक़ था, जो कभी उसका तस्स्वुर होता था आज वो हक़ीक़त था, लेकिन वो हक़ीक़त होकर भी एक ख्वाब था.




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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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Re: तवायफ़

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काजल के दिल मे टीस उठ रही थी.......दिल की बगिया मुहब्बत से महक गयी थी...उसके डर पर आज मुहब्बत के समुंदर हिलोरे ले रहा था ,..लेकिन वाह री किस्मत !!, काजल को तन्हाई का अंधेरा ही रास आ रहा था....चाह कर भी वो कुछ कह नहीं पा रही थी...ना आलोक को मुहब्बत का भरोसा दे सकती थी, ना मुहब्बत होने से इनकार कर पा रही थी..करती भी कैसे, नज़रों ने तो पहले ही गुस्ताख़ी कर दी थी...एकरार तो नज़रों ने कर ही लिया था, लफ़ज़ो की ज़रूरत कहाँ थी ?




आलोक उठकर खड़ा हो गया, काजल बुत बनी रही...क्या करे उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था.आलोक मानो उसके जवाब का इंतज़ार कर रहा था और हर बीत’ते पल के साथ उसके दिल की बेचैनी बढ़ती जा रही थी..अब जब हर हाल मे उसने काजल को अपना लिया था तो काजल को उसकी मुहब्बत पर ऐतबार क्यू नहीं आ रहा था, अब क्यू परेसान थी काजल, आलोक समझ नहीं पा रहा था.




“हम आपके साथ नहीं आ सकते आलोक..हम आपके लायक नहीं हैं.....”काजल ने बड़ी मुश्किल से पत्थर का कलेजा करके बस इतना ही कहा और आलोक के हाथो से अपना हाथ छुड़ा लिया..




“ये फ़ैसला करने का हक़ सिर्फ़ मुझे है...तुम्हे कोई हक़ नहीं ये कहने का ...समझी..चलो मेरे साथ ..”आलोक ने फिर से उसका हाथ पकड़ लिया.



“छोड़िए !!...प्लीज़ आलोक...हम ...हम नहीं आ सकते आपके साथ........”



“नहीं आ सकती??...क्यू???क्यू ही आ सकती?...क्यू कर रही हो ऐसा...कुछ बताती भी नहीं,कुछ मानती भी नहीं..क्या करू मैं बताओ....क्यू कसूर है मेरा काजल........”आलोक बहुत बेबस हो गया था और उस से भी कही ज़्यादा बेबस खुद को काजल महसूस कर रही थी.




दोनो ही चुप थे,दोनो ही मजबूर थे....दरवाज़े पर हल्की सी दस्तक के साथ ऋुना चली आई........




“काजल, जा आलोक बाबू के साथ...चली जा बेटा...किस्मत फिर कभी ऐसा मौका नहीं देगी....निकल जा इस दलदल से...सदा बाबू कब पहुच जाएँ कुछ नहीं पता..और एक बार वो आ गये तो...........”ऋुना ने शायद उनकी बाते सुन ली थी, और काजल को समझाने की पूरी कोसिस कर रही थी...वहीं आलोक अपने बाप का नाम सुनकर चौंक गया.



“पापा,यहाँ आ रहे हैं ?...नहीं नहीं...उनकी कोई रॅली है आज तो....वो यहाँ कैसे...”




“आलोक बाबू ! आप कुछ नहीं जानते अपने पापा के बारे मे...लेकिन उसके लिए शायद फिर कभी मौका मिल जाए...अभी आप प्लीज़ जाइए यहाँ से.........वक़्त ज़्यादा नहीं है..”जुंमन ने अंदर आते हुए कहा.



“आप लोगो का अहसान रहेगा......बहुत बहुत शुक्रिया.....इस अहसान को मैं जान देकर भी नहीं चुका पाउन्गा.......आइए चले....चलो काजल......”आलोक की बात ख़त्म भी नहीं हुई थी कि एक बार फिर से गाड़ी के टाइयरो की चर्राहट से फ़िज़ा गूँज उठी.



एक तवायफ़ की बदक़िस्मती इतनी आसानी से उसका पिछा नहीं छ्चोड़ने वाली थी.जुंमन के चेहरे पर परेशानी के भाव थे, ऋुना के चेहरे पर डर के ,आलोक के चेहरे पर गुस्से के और काजल के चेहरे पर दर्द के.....शायद अभी और तमाशा बन’ना था उसका.

गाडियो की आवाज़ पर सबका ध्यान बाहर की ओर चला गया...ऋुना के चेहरे पर मायूसी की रेखाए सॉफ झलक रही थी जबकि काजल का चेहरा बिल्कुल शांत था..शायद मुहब्बत की शिकस्त मान ली थी उसने.....आलोक ने एक बार उसकी आँखो मे देखा और बाहर निकल गया, जुंमन पहले ही बाहर पहुच चुका था...काजल ऋुना के पास खड़ी रही....सबकुछ उसकी वजह से हो रहा था , यही उसे लग रहा था..एक बाप बेटे का टकराव होने जा रहा था...लेकिन आज वो इसे रोक नहीं सकती थी.




तीन गाड़ियाँ थी..एक मे से सदानंद बाहर निकले अपने बॉडीगार्ड के साथ, दूसरे मे से लैला और 2-3 गुंडे सी शकल वाले आदमी...तीसरी गाड़ी मे से कोई 4-5 लोग निकले सबके हाथ मे गन. सदानंद के चेहरे से ही लग रहा था कि वो कितने गुस्से मे हैं..लेकिन जैसे ही सामने खड़े आलोक पर नज़र पड़ी सारा गुस्सा मानो झाग की तरह बैठ गया ...कम से कम चेहरे से तो यही लग रहा था.



"आलोक तुम यहाँ???....ओह तो आख़िर तुम पहुच ही गये....कोई बात नहीं.....आओ... ..यहाँ आओ मेरे पास...मैं सब जानता हू बेटा, लेकिन तुम बहुत बड़े धोखे मे हो.....वो ..वो लड़की....वो ...मैं कैसे समझाऊ तुम्हे...अरे ...अरे..बाज़ारु है वो..."



" बसस्स पापा !!!, मेरे सब्र का इम्तेहान मत लीजिए...मैने आपसे पहले भी कहा था कि मैं अपनी काजल के बारे मे एक शब्द बर्दाश्त नहीं करूँगा....और आप !.......क्यू आए हैं आप यहाँ....??...बताइए.....क्यू??" आलोक ज़ोर से दहाडा.....

सब लोग चुप थे....जुंमन एक ओर खड़ा था ,हाथ मे एक मोटा सा लट्ठ था...लैला एक टक उसे घूर रही थी और वो लैला को, जबकि सदानंद के साथ आए आदमी कुछ दूरी पर ही रुक गये थे.आलोक को देख सदानंद सकते मे थे, शायद डर था कि आज उनके काले कारनामो का चिट्ठा उनकी अपनी औलाद के सामने ना खुल जाए.



आलोक किसी ज़ख्मी शेर की तरह अपने ही बाप को घूर रहा था...


"बोलिए, कैसे जानते हैं आप काजल को....और क्यू आए हैं आप यहाँ......"


"तेरे लिए आया हूँ बेटा, मुझे पता था कि ये कोठी वाली....मेरा मतलब.. ये....ये लड़की तुझे फाँसने के चक्कर मे है... इधर आया था रॅली मे तो इसे हिदायत देने आ गया.....पुछ लेता हूँ कितने पैसे लेगी....." सदाननद की आवाज़ फिर से हलक मे ही रह गयी.....




"बंद कीजिए ये नाटक......चुप हो जाइए....!!!!!!...सच सच बताइए......? कैसे जानते हैं आप काजल को??.......पहले से जानते हैं आप???...पापा, काजल मेरी ज़िंदगी है, एक बार खो कर बड़ी मुश्किल से पाया है.....अब दुनिया की कोई ताक़त मुझे उस से जुदा नहीं कर सकती.....आपके हाथ जोड़ता हूँ, मुझे काजल से फिर से जुदा मत कीजिए, ....बेहतर होगा आप लौट जाइए.. ....." सीधा साधा सा आलोक आज अपने ही बाप से बग़ावत कर गया था.सदाननद हक्का बक्का उसे देखते रह गये.



उन्हे समझ मे आ गया था कि जबतक आलोक बीच मे है वो काजल तक नहीं पहुच पाएँगे......और अब उनके दिमाग़ मे राजनीति का कीड़ा कुलबुलाने लगा....चाल चलने की सोची............
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jay
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Re: तवायफ़

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"एक बार ऋुना से बात करने दो फिर मैं चला जाउन्गा."इस बार सदानंद ने जुंमन की ओर देखते हुए कहा.



जुंमन ने एक पल को कुछ सोचा, फिर आलोक की ओर देखा और फिर चुपचाप दरवाज़े की ओर बढ़ गया...सदानंद उसके पिछे , आलोक भी पिछे पिछे आने लगा.



इस खेल की सबसे बड़ी खिलाड़ी लैला चुपचाप सारा तमाशा देख रही थी...वो अभी शायद हालात का जायज़ा ले रही थी......अपनी बारी का इंतज़ार ,उसके ख्याल से तो उसके पास तुरुप का इक्का था, बस इस्तेमाल ऐसा सोच समझकर करना था कि फ़ायदा ज़्यादा से ज़्यादा हो सके.वो सबको जाता देख बस मुस्कुरा कर रह गयी.



इधर शेरा , अंजलि और सोफी, दो बार रास्ता भटक चुके थे...



"शेरा भाई, जल्दी चलिए कही देर ना हो जाए..." अंजलि की आँखो मे आँसू थे जबकि शेरा के चेहरे पर परेशानी और झल्लाहट के भाव, वो तो बेचारा बिना किसी वजह के ही इन सब लफडो मे फँस गया था...लेकिन शेरा का दिल भी आज ज़िंदगी मे पहली बार कुछ अच्छा करके सुकून महसूस कर रहा था...जो कहानी उसे अंजलि ने सुनाई थी वो सुनकर तो एक बार को पत्थर भी पिघल जाए,वो तो फिर भी इंसान था.......उसने अपनी आँखे रगड़ डाली और गाड़ी को एक बार फिर से फुल स्पीड के साथ सड़क पर दौड़ा दिया.



आलोक ,ऋुना ,जुंमन, काजल और सदानंद ....कमरे मे 5 लोग थे इस समय....लैला बाहर थी..और उसने शायद सदानंद को उतना ही बताया था जितने की उन्हे ज़रूरत थी....अपने सारे पत्ते कैसे खोल देती.......आख़िर उसे भी तो अपने "मुनाफ़े" का ख्याल करना था...उसका तो "कोहिनूर" दाव पर लग गया था ..भला ऐसे कैसेमुफ्त मे जाने देती.



सदानंद ने एक नज़र घूर कर काजल को देखा..उन नफ़रत भरी निगहो की तपिश से सहम कर वो मासूम फिर से ऋुना के पिछे सिमट गयी............उसे तो कोई ऐतराज़ ही नहीं था अपनी उसी तवायफ़ वाली दुनिया मे लौट जाने पर,क्यूकी उसने इसे ही अपनी किस्मत मान लिया था, लेकिन आज ये फ़ैसला वो अकेले नहीं ले सकती थी....क्यूकी बात आज मुहब्बत की थी, सिर्फ़ किस्मत की नहीं......और आज उसका "प्यार"चट्टान की तरह उसके और उसके मुक़द्दर के बीच आ खड़ा हुआ था.......



डरी-डरी ,सहमी सी काजल हर बीत'ते पल के साथ अपने रब को याद कर रही थी...उसका तो सबकुछ दाव पर लगा था...बरसो पहले दी गयी वो मुहब्बत की कुर्बानी भी..!!!...क्या आज फिर से किस्मत उसे मात देने वाली थी ??



"ऋुना, मैं तुमसे कुछ अकेले मे बात करना चाहता हू......" सदानंद एक एक शब्द को चबाते हुए बोले..........अपने खून के हाथो मजबूर आज वो ऋुना से इस ढंग से बात करने को मजबूर थे, नहीं तो फ़ैसला कब का बंदूक की नाल के ज़ोर पर हो चुका होता.



"नहीं !!!...मुझे मंजूर नहीं आपकी ये शर्त..........मेरी काजल से जुड़े किसी फ़ैसले का हक़ मुझे है या काजल को...... तो अब जो कुछ होगा मेरे सामने होगा...." आलोक ऋुना से पहले ही बोल पड़ा...उसे डर था कि आज फिर से एक "राइश" मजबूर कर देगा, एक "ग़रीब" मजबूर हो जाएगा . आलोक के रहते तो आज तक किसी गैर के साथ ऐसा नहीं हुआ था, तो फिर अपनी मुहब्बत के साथ वो कैसे ये हो जाने देता.



आलोक की बात पर सदानंद ने खीझ कर उसकी ओर देखा...ज़िंदगी मे आजतक किसी का बर्दाश्त नहीं किया था उन्होने...लेकिन आज चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा था...सदानंद का चेहरा कठोर हो गया...ऋुना की ओर देखा उन्होने...ऋुना जानती थी सदानंद अपनी झूठी शान बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है......



"आलोक बाबू, भरोसा रखिए हम पर....आपकी काजल की किस्मत का फ़ैसला हम या कोई और नहीं कर सकेगा...आप और आपकी काजल करेंगे......" ऋुना ने बड़े मान के साथ आलोक को देखा.......उसी पर तो दाव लगाया था ऋुना ने और आज गर्व हो रहा था उसे इन मुहब्बत वालो को देखकर............

आलोक ने एक बार काजल की ओर देखा , उसे आँखो ही आँखो मे अपने होने का भरोसा दिलाया और घर से बाहर निकल आया.जुंमन भी पिछे पिछे चला आया, काजल को ऋुना ने रोक लिया...



"कहिए सदा बाबू, आज कौन सा सौदा करना चाहते हैं...."ऋुना ने बड़ी सर्द आवाज़ मे कहा.



"तुम बोलो ऋुना बाई !,आज किस्मत ने तुम्हे भी मौका दिया है.....माँगो क्या मांगती हो "इसे" आलोक की ज़िंदगी से दूर ले जाने का......." सदानंद ने काजल की ओर घूरते हुए कहा.



"छोड़िए सदा बाबू, मैं जो माँगूंगी ,आप दे नहीं पाएँगे...तो अच्छा यही रहेगा कि सौदा ही करले......जो आप खादी वाले अक्सर करते हैं......" ऋुना ने दिल के दर्द को सीने मे ही दबा लिया था,

"बोलो !"


"सदा बाबू, जानते हैं ये कौन है.....??"


"हां, एक तवायफ़ ..एक बाज़ारु....." सदानंद ने बड़े भद्दे लहजे मे गाली दी काजल को.


"हां, आप जैसे के लिए हमारी यही पहचान होती है........लेकिन एक और पहचान है इसकी...जान'ना चाहेंगे........"


"??"

"??"


सदानंद के चेहरे पर हर पल गुस्सा बढ़ता जा रहा था, और काजल के चेहरे पर दर्द.




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Re: तवायफ़

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"मोहिनी याद है सदाबाबू ?.......उसी मोहिनी की बेटी है ये काजल जिसके जिस्म को सीढ़ी बनाकर आप अपनी ताजपोशी की गद्दी तक पहुचे.........उसी मोहिनी की बेटी.." ऋुना की बात सुनकर सदानंद एक पल को चौंक गया...लेकिन था वो भी शातिर खिलाड़ी , अगले ही पल खुद को संभाल लिया.



"हां तो ठीक ही है , एक तवायफ़ की बेटी तवायफ़ है...इसमे आस्चर्य की कोई बात नहीं है....सौदा बोलो अपना ...मेरे पास फालतू बातो का वक़्त नहीं है........." सदानंद के चेहरे पर सिर्फ़ नफ़रत थी.



"जितना सोचा था उससे ज़्यादा घटिया निकले आप सदा बाबू....खैर, तो मेरा सौदा ये है कि आप काजल और आलोक को यहाँ से जाने दे...इस देश से दूर......हमेशा हमेशा के लिए...वरना......"



"वरना???...वरना क्या........तू दो कौड़ी की रंडी मुझे धमकी दे रही है...अपनी औकात भूल गयी साली...... एक मिनिट मे तेरा वो हाल...." ऋुना की बात सख़्त नागवार गुज़री थी सदाननद को.




"गुस्से से नहीं होश से काम लो एमएलए सदानंद चौहान.......अगर एक रंडी अपनी पे आ गयी तो फिर बहुत कुछ कर जाएगी.............मैं खुद तुम्हारी पार्टी मे ये खुलासा करूँगी कि किस तरह से तुमने मोहिनी के साथ मिलकर अपनी ही पार्टी के नेताओ का खून किया था.......कैसे सत्ता के लालच मे आकर तुमने हर उस शख्स के खून से होली खेली जो तुम्हारी राह मे रोड़ा था.......और फिर पार्टी को और जनता को जवाब तुम देना सदानंद चौहान....और हां , इसे धमकी मत समझना.....ये सौदा है..वरना हर जुर्म का सबूत मेरे पास मौजूद है...........जो मुझे मोहिनी देकर गयी थी...."


ऋुना ने अंधेरे मे तीर चलाया था लेकिन लगा बिल्कुल निशाने पर था.



"ओह्ह्ह...तो ये बात है....लेकिन मैं क्यू मान लूँ कि ये सच है....अगर ऐसा होता तो बहुत पहले तुम मुझे बर्बाद कर चुकी होती....! " सदानंद के माथे पर शिकन की लकीरे आ गयी थी.



" हां ज़रूर कर देती..........लेकिन तब मुझे पता नहीं था कि जो खेल तुमने माँ के साथ खेला वही बेटी के साथ भी खेल रहे हो..........एक और वजह थी............क्यूकी मुझे लगता था कि मोहिनी के साथ तुमने जिन लोगो को मारा वो मोहिनी की मुहब्बत के हत्यारे थे.........इसीलिए उनके लिए वो सज़ा थी....और मुझे तुम इतने बुरे नहीं लगे....इसलिए मैं अब तक चुप थी.....लेकिन आज नहीं.....मैं मोहिनी को ना बचा सकी...लेकिन काजल को कुछ नहीं होने दूँगी...और ये रहा पहला सबूत मेरी बात का." ऋुना ने वो तस्वीर सदानंद की ओर बढ़ा दी जिसमे वो और मोहिनी एक साथ बैठे थे.




ऋुना की बातों से और वो तस्वीर देख कर सदानंद को यकीन हो चला था कि ऋुना सच मुच बहुत कुछ जानती है, और पार्टी तो दूर, क़ानून की शिकंजे भी उसकी गर्दन पर कस सकते थे.....फिर अपोजीशन वालो का हंगामा........पूरा पोलिटिकल करियर दाव पर लगा नज़र आ रहा था सदानंद को.



अब उसे समझ आ रहा था कि ऋुना ने वाकाई "सौदा" बराबरी का किया था........एक क्षण को तो उसका चेहरा सफेद पड़ गया....ऋुना से अपनी शिकस्त उसे बर्दाश्त नही थी...और आलोक और काजल को जाने देना तो ज़िंदगी की सबसे बड़ी शिकस्त होती......अब सदानंद के पास एक ही रास्ता था, वो रास्ता जो उसके जैसे बाहुबली अपने राजनीति मे अक्सर इस्तेमाल करते थे.



"ऋुना बाई, मान'ना पड़ेगा ,.....सौदा तो वाकाई बराबरी का किया है तुमने....लेकिन मुझे मंजूर नहीं..." सदानंद के होंठो पर एक ज़हरीली मुस्कान फैल गयी..उसने तस्वीर को एक कोने मे फेंक दिया.

बाहर खड़ा आलोक बेचैन हुए जा रहा था , उसकी मुहब्बत पर इतने पहरे क्यूँ..??..क्यू हर बार ग्रहण लग जाता था उसके प्यार को...??....लेकिन उन आँखो मे एक जुनून था, वो आँखे बोल रही थी....”दुनिया इधर से उधर हो जाए, तुम्हे जाने नहीं दूँगा”...किस्मत और मुहब्बत की जंग मे एक “तवायफ़” की ज़िंदगी का क्या खूब खेल हो रहा था.

सदानंद की बात सुनकर ऋुना का चेहरा एकदम से गंभीर हो गया...उसका दाव बेकार होने वाला था और अब वो कुछ नहीं कर पा रही थी....सदानंद ने एक लंबी साँस ली और बोलना सुरू किया.......



"तो ऋुना बाई, बेसिकली अब बात ये है कि मुझे ये सौदा बड़ा महँगा पड़ रहा है और इतनी कीमत तो मैं चुका नहीं सकता...अब एक ही रास्ता है मेरे पास......"




"तुम सबको यही मार कर दफ़न कर दूं और अपने बेटे को लेकर जाउ यहाँ से.." अपने जेब से सिगार निकाल कर सुलगाते हुए सदानंद ने बड़े आम से लहजे मे कहा....जैसे मानो कोई बड़ी मामूली बात कह रहा हो.



" सदानंद बाबू, ये मुहब्बत भी बड़ी कमीनी चीज़ है,जिसको हो जाए पंगा ही कर देती है...........आलोक की आँखो मे मुहब्बत की जो तड़प है ,आपने शायद देखी नहीं....उस मुहब्बत को झुकाने की कोसिस मत करो, हार जाओगे.... " ऋुना कुछ ज़्यादा कह नहीं पाई, इस बार जवाब दिल से दिया उसने.



"ऋुना बाई, इश्क़ -मुहब्बत सब किताबी बातें हैं....तुम मुझे जानती नहीं अभी...पहले बात सिर्फ़ मेरी इज़्ज़त की थी..मैं नहीं चाहता था कि मेरा बेटा किसी तवायफ़ को मेरे घर की बहू बनाए, लेकिन अब बात ज़िद की है, अब बात मेरे गुरूर की है.....और उसके लिए मैं किसी भी हद तक जा सकता हू...या यूँ कह लो गिर सकता हू.." सदानंद ने अपने इरादे जाहिर कर दिए.




"ठीक है सदानंद बाबू , तो फिर पहले अपने बेटे को मार दो...क्यूकी मुझे नहीं लगता कि उसके रहते आप कोहिनूर को छु भी पाओगे "ऋुना ने भी उसी अंदाज मे जवाब दिया.



"मेरा बेटा मेरे साथ जाएगा.....अब तुमने मेरे पास कोई रास्ता नहीं छोड़ा...तुम मेरे लिए एक बहुत बड़ा ख़तरा हो और अब मैं तुम्हे छोड़ नहीं सकता...." सदानंद सिगार फूंकता हुआ बाहर निकला, बाहर आलोक खड़ा था कुछ दूर पर..सदानंद ने एक नज़र उस पर डाली और अपने आदमियो की ओर बढ़ गया.


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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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jay
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Re: तवायफ़

Post by jay »


ऋुना काजल को लेकर बाहर आ गयी..आलोक जल्दी से उनके पास पहुचा......ऋुना के चेहरे पर मायूसी थी और काजल की आँखो मे आँसू.



"क्या हुआ ऋुना जी...काजल क्या हुआ...क्या कहा पापा ने..? रो क्यूँ रही हो काजल...मैं हूँ ना...कुछ नहीं होने दूँगा तुम्हे..." आलोक ने काजल के कंधे पर हाथ रखा ....काजल ने सूनी सूनी आँखो से उसकी ओर देखा.....आज भी वही लाचारी और बेबसी थी उन सूनी आँखो मे.




"सदाबाबू, !" लैला जो बहुत देर से ये तमाशा देख रही थी अब और चुप ना रह सकी....उसे लगा अब सही टाइम आ गया है अपना दाव लगाने का.....उसकी आवाज़ पर सदानंद ने मुड़कर उसे देखा...लैला जल्दी से उनके पास पहुचि.



"मैं दो मिनट आपसे बात कर सकती हू क्या...." लैला ने कहा.....सदानंद ने खीझ कर उसे देखा ,


"अब तुझे क्या बात करनी है..."

"कुछ बात बनी ???, वो मान गयी आने को....?? "

"नहीं"

"नहीं मानी !!...अच्छा वो..बस...2 मिनट..आप अकेले मे...??"


"यही बोल ! जल्दी टाइम नहीं है मेरे पास......."



"वो...वो...काजल को कैसे वापस लाना है मेरे को पता है...मैं उस से बोलेगी तो वो आएगी....मैं जानती हूँ , वो कही नहीं जा सकती...बस वो ...वो ...कीमत थोड़ी......कुछ और.." लैला को अभी कुछ पता नहीं था ,लेकिन सदानंद के तेवर देखकर ये समझ चुकी थी कि सदानंद का सौदा ऋुना के साथ हो नहीं पाया था...और वैसे भी उसे ये पता ही था कि सदानंद दौलत का जाल ही बिच्छाएँगे और ऋुना को दौलत से मोह कभी नहीं रहा .




"लैला बाई, यहाँ से अब लाशे उठने वाली हैं, बोल तो तेरी भी उठवा दूं....."सदानंद ने घूर कर उसे देखा, लैला की हालत खराब हो गयी.



"लाशें... ?? किसकी लाशें...औक्क.....मैने क्या किया सदा बाबू...मैं तो यू ही....माफ़ कर दीजिए..." लैला जो करोड़ो के सपने देख रही थी अपने "हीरे" से ,बेचारी को मौत नज़र आने लगी.




"तो चली जा यहाँ से....मैने सौदा करना चाहा सिर्फ़ अपने बेटे से उस लड़की को अलग करने का !...अपनी मौत का सौदा नहीं कर सकता...मैं अपने सर पर नंगी तलवार लटकती नहीं छोड़ सकता...अब दफ़ा हो यहाँ से...और कुछ बोली तो....." सदानंद कुछ बातें मानो खुद से कह रहे हो, आख़िरी बात ही लैला की समझ मे आई और उतना ही काफ़ी था.


"ज्ज्ज..जी..मैं अभी चली जाती हू......"



"नहीं अभी नहीं जा सकती...जा..जाकर गाड़ी मे बैठ...."



"ज्ज्ज..जी..." लैला पल भर मे सर अपने घुटने के बीच छुपाए, अपनी कार मे बैठी हुई नज़र आई...



सदानंद ने अपने आदमियो को पास बुलाया और कुछ कहा...सब भी उनके पिछे आने लगे, सबके पास ही गन थी...दो आदमी बाहर की ओर खड़े थे ताकि कोई और बाहर से ना आ पाए इस ओर...और बाकी आदमियो ने और खड़ी गाडियो ने एक घेरा सा बना लिया था चारो ओर से.......





आलोक सब देख रहा था और ऋुना ने भी कुछ कहा था उस से....उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसका अपना बाप इतना गिर सकता है कि उसके सामने उसकी मुहब्बत का खून करने वाला है...आलोक के आँखे अंगारे सी दहक रही थी,उसकी जबड़े भिन्च गये और नथुने फूलने लगे..




सदानंद आलोक की ओर बढ़ा...उन्हे खुद भी समझ मे नहीं आ रहा था कि आलोक से कैसे कहे और क्या कहे... वो खुद भी जानते थे कि आलोक का जवाब क्या होगा..और ये भी पता था कि आज आलोक यहा से काजल को लेकर निकल गया तो फिर कभी उनके पास लौटकर नहीं आएगा....और कही ऋुना ने उनकी असलियत बता दी तो...आलोक ने पोलीस को बता दिया तो...?????.....बेटा तो हाथ से जाएगा ही इज़्ज़त और शोहरत भी जाएगी, और कौन जाने बुढ़ापा जैल की चक्की पीसते बीते.....सदानंद ने सोच लिया था कि किसी भी हाल मे वो ऋुना और काजल को यहा से नहीं जाने दे सकते.




"आलोक बेटा, देखो मेरी बात सुनो...तुम इन दोनो को छोड़कर गाड़ी मे चलकर बैठो...बल्कि तुम जाओ यहा से चले जाओ......मैं इन्हे सब समझा दूँगा..."सदानंद खुद से ही नज़रे चुरा रहे थे, आलोक की आँखो की दीवानगी बहुत कुछ कह रही थी और सदा को पता था आलोक मानेगा नहीं, लेकिन किसी भी तरह से आलोक को वहाँ से हटाना ही था और इसके लिए कुछ सोचा था उन्होने.


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