तवायफ़ की प्रेम कहानी complete

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jay
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Re: तवायफ़

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"एक बार ऋुना से बात करने दो फिर मैं चला जाउन्गा."इस बार सदानंद ने जुंमन की ओर देखते हुए कहा.



जुंमन ने एक पल को कुछ सोचा, फिर आलोक की ओर देखा और फिर चुपचाप दरवाज़े की ओर बढ़ गया...सदानंद उसके पिछे , आलोक भी पिछे पिछे आने लगा.



इस खेल की सबसे बड़ी खिलाड़ी लैला चुपचाप सारा तमाशा देख रही थी...वो अभी शायद हालात का जायज़ा ले रही थी......अपनी बारी का इंतज़ार ,उसके ख्याल से तो उसके पास तुरुप का इक्का था, बस इस्तेमाल ऐसा सोच समझकर करना था कि फ़ायदा ज़्यादा से ज़्यादा हो सके.वो सबको जाता देख बस मुस्कुरा कर रह गयी.



इधर शेरा , अंजलि और सोफी, दो बार रास्ता भटक चुके थे...



"शेरा भाई, जल्दी चलिए कही देर ना हो जाए..." अंजलि की आँखो मे आँसू थे जबकि शेरा के चेहरे पर परेशानी और झल्लाहट के भाव, वो तो बेचारा बिना किसी वजह के ही इन सब लफडो मे फँस गया था...लेकिन शेरा का दिल भी आज ज़िंदगी मे पहली बार कुछ अच्छा करके सुकून महसूस कर रहा था...जो कहानी उसे अंजलि ने सुनाई थी वो सुनकर तो एक बार को पत्थर भी पिघल जाए,वो तो फिर भी इंसान था.......उसने अपनी आँखे रगड़ डाली और गाड़ी को एक बार फिर से फुल स्पीड के साथ सड़क पर दौड़ा दिया.



आलोक ,ऋुना ,जुंमन, काजल और सदानंद ....कमरे मे 5 लोग थे इस समय....लैला बाहर थी..और उसने शायद सदानंद को उतना ही बताया था जितने की उन्हे ज़रूरत थी....अपने सारे पत्ते कैसे खोल देती.......आख़िर उसे भी तो अपने "मुनाफ़े" का ख्याल करना था...उसका तो "कोहिनूर" दाव पर लग गया था ..भला ऐसे कैसेमुफ्त मे जाने देती.



सदानंद ने एक नज़र घूर कर काजल को देखा..उन नफ़रत भरी निगहो की तपिश से सहम कर वो मासूम फिर से ऋुना के पिछे सिमट गयी............उसे तो कोई ऐतराज़ ही नहीं था अपनी उसी तवायफ़ वाली दुनिया मे लौट जाने पर,क्यूकी उसने इसे ही अपनी किस्मत मान लिया था, लेकिन आज ये फ़ैसला वो अकेले नहीं ले सकती थी....क्यूकी बात आज मुहब्बत की थी, सिर्फ़ किस्मत की नहीं......और आज उसका "प्यार"चट्टान की तरह उसके और उसके मुक़द्दर के बीच आ खड़ा हुआ था.......



डरी-डरी ,सहमी सी काजल हर बीत'ते पल के साथ अपने रब को याद कर रही थी...उसका तो सबकुछ दाव पर लगा था...बरसो पहले दी गयी वो मुहब्बत की कुर्बानी भी..!!!...क्या आज फिर से किस्मत उसे मात देने वाली थी ??



"ऋुना, मैं तुमसे कुछ अकेले मे बात करना चाहता हू......" सदानंद एक एक शब्द को चबाते हुए बोले..........अपने खून के हाथो मजबूर आज वो ऋुना से इस ढंग से बात करने को मजबूर थे, नहीं तो फ़ैसला कब का बंदूक की नाल के ज़ोर पर हो चुका होता.



"नहीं !!!...मुझे मंजूर नहीं आपकी ये शर्त..........मेरी काजल से जुड़े किसी फ़ैसले का हक़ मुझे है या काजल को...... तो अब जो कुछ होगा मेरे सामने होगा...." आलोक ऋुना से पहले ही बोल पड़ा...उसे डर था कि आज फिर से एक "राइश" मजबूर कर देगा, एक "ग़रीब" मजबूर हो जाएगा . आलोक के रहते तो आज तक किसी गैर के साथ ऐसा नहीं हुआ था, तो फिर अपनी मुहब्बत के साथ वो कैसे ये हो जाने देता.



आलोक की बात पर सदानंद ने खीझ कर उसकी ओर देखा...ज़िंदगी मे आजतक किसी का बर्दाश्त नहीं किया था उन्होने...लेकिन आज चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा था...सदानंद का चेहरा कठोर हो गया...ऋुना की ओर देखा उन्होने...ऋुना जानती थी सदानंद अपनी झूठी शान बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है......



"आलोक बाबू, भरोसा रखिए हम पर....आपकी काजल की किस्मत का फ़ैसला हम या कोई और नहीं कर सकेगा...आप और आपकी काजल करेंगे......" ऋुना ने बड़े मान के साथ आलोक को देखा.......उसी पर तो दाव लगाया था ऋुना ने और आज गर्व हो रहा था उसे इन मुहब्बत वालो को देखकर............

आलोक ने एक बार काजल की ओर देखा , उसे आँखो ही आँखो मे अपने होने का भरोसा दिलाया और घर से बाहर निकल आया.जुंमन भी पिछे पिछे चला आया, काजल को ऋुना ने रोक लिया...



"कहिए सदा बाबू, आज कौन सा सौदा करना चाहते हैं...."ऋुना ने बड़ी सर्द आवाज़ मे कहा.



"तुम बोलो ऋुना बाई !,आज किस्मत ने तुम्हे भी मौका दिया है.....माँगो क्या मांगती हो "इसे" आलोक की ज़िंदगी से दूर ले जाने का......." सदानंद ने काजल की ओर घूरते हुए कहा.



"छोड़िए सदा बाबू, मैं जो माँगूंगी ,आप दे नहीं पाएँगे...तो अच्छा यही रहेगा कि सौदा ही करले......जो आप खादी वाले अक्सर करते हैं......" ऋुना ने दिल के दर्द को सीने मे ही दबा लिया था,

"बोलो !"


"सदा बाबू, जानते हैं ये कौन है.....??"


"हां, एक तवायफ़ ..एक बाज़ारु....." सदानंद ने बड़े भद्दे लहजे मे गाली दी काजल को.


"हां, आप जैसे के लिए हमारी यही पहचान होती है........लेकिन एक और पहचान है इसकी...जान'ना चाहेंगे........"


"??"

"??"


सदानंद के चेहरे पर हर पल गुस्सा बढ़ता जा रहा था, और काजल के चेहरे पर दर्द.




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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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Re: तवायफ़

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"मोहिनी याद है सदाबाबू ?.......उसी मोहिनी की बेटी है ये काजल जिसके जिस्म को सीढ़ी बनाकर आप अपनी ताजपोशी की गद्दी तक पहुचे.........उसी मोहिनी की बेटी.." ऋुना की बात सुनकर सदानंद एक पल को चौंक गया...लेकिन था वो भी शातिर खिलाड़ी , अगले ही पल खुद को संभाल लिया.



"हां तो ठीक ही है , एक तवायफ़ की बेटी तवायफ़ है...इसमे आस्चर्य की कोई बात नहीं है....सौदा बोलो अपना ...मेरे पास फालतू बातो का वक़्त नहीं है........." सदानंद के चेहरे पर सिर्फ़ नफ़रत थी.



"जितना सोचा था उससे ज़्यादा घटिया निकले आप सदा बाबू....खैर, तो मेरा सौदा ये है कि आप काजल और आलोक को यहाँ से जाने दे...इस देश से दूर......हमेशा हमेशा के लिए...वरना......"



"वरना???...वरना क्या........तू दो कौड़ी की रंडी मुझे धमकी दे रही है...अपनी औकात भूल गयी साली...... एक मिनिट मे तेरा वो हाल...." ऋुना की बात सख़्त नागवार गुज़री थी सदाननद को.




"गुस्से से नहीं होश से काम लो एमएलए सदानंद चौहान.......अगर एक रंडी अपनी पे आ गयी तो फिर बहुत कुछ कर जाएगी.............मैं खुद तुम्हारी पार्टी मे ये खुलासा करूँगी कि किस तरह से तुमने मोहिनी के साथ मिलकर अपनी ही पार्टी के नेताओ का खून किया था.......कैसे सत्ता के लालच मे आकर तुमने हर उस शख्स के खून से होली खेली जो तुम्हारी राह मे रोड़ा था.......और फिर पार्टी को और जनता को जवाब तुम देना सदानंद चौहान....और हां , इसे धमकी मत समझना.....ये सौदा है..वरना हर जुर्म का सबूत मेरे पास मौजूद है...........जो मुझे मोहिनी देकर गयी थी...."


ऋुना ने अंधेरे मे तीर चलाया था लेकिन लगा बिल्कुल निशाने पर था.



"ओह्ह्ह...तो ये बात है....लेकिन मैं क्यू मान लूँ कि ये सच है....अगर ऐसा होता तो बहुत पहले तुम मुझे बर्बाद कर चुकी होती....! " सदानंद के माथे पर शिकन की लकीरे आ गयी थी.



" हां ज़रूर कर देती..........लेकिन तब मुझे पता नहीं था कि जो खेल तुमने माँ के साथ खेला वही बेटी के साथ भी खेल रहे हो..........एक और वजह थी............क्यूकी मुझे लगता था कि मोहिनी के साथ तुमने जिन लोगो को मारा वो मोहिनी की मुहब्बत के हत्यारे थे.........इसीलिए उनके लिए वो सज़ा थी....और मुझे तुम इतने बुरे नहीं लगे....इसलिए मैं अब तक चुप थी.....लेकिन आज नहीं.....मैं मोहिनी को ना बचा सकी...लेकिन काजल को कुछ नहीं होने दूँगी...और ये रहा पहला सबूत मेरी बात का." ऋुना ने वो तस्वीर सदानंद की ओर बढ़ा दी जिसमे वो और मोहिनी एक साथ बैठे थे.




ऋुना की बातों से और वो तस्वीर देख कर सदानंद को यकीन हो चला था कि ऋुना सच मुच बहुत कुछ जानती है, और पार्टी तो दूर, क़ानून की शिकंजे भी उसकी गर्दन पर कस सकते थे.....फिर अपोजीशन वालो का हंगामा........पूरा पोलिटिकल करियर दाव पर लगा नज़र आ रहा था सदानंद को.



अब उसे समझ आ रहा था कि ऋुना ने वाकाई "सौदा" बराबरी का किया था........एक क्षण को तो उसका चेहरा सफेद पड़ गया....ऋुना से अपनी शिकस्त उसे बर्दाश्त नही थी...और आलोक और काजल को जाने देना तो ज़िंदगी की सबसे बड़ी शिकस्त होती......अब सदानंद के पास एक ही रास्ता था, वो रास्ता जो उसके जैसे बाहुबली अपने राजनीति मे अक्सर इस्तेमाल करते थे.



"ऋुना बाई, मान'ना पड़ेगा ,.....सौदा तो वाकाई बराबरी का किया है तुमने....लेकिन मुझे मंजूर नहीं..." सदानंद के होंठो पर एक ज़हरीली मुस्कान फैल गयी..उसने तस्वीर को एक कोने मे फेंक दिया.

बाहर खड़ा आलोक बेचैन हुए जा रहा था , उसकी मुहब्बत पर इतने पहरे क्यूँ..??..क्यू हर बार ग्रहण लग जाता था उसके प्यार को...??....लेकिन उन आँखो मे एक जुनून था, वो आँखे बोल रही थी....”दुनिया इधर से उधर हो जाए, तुम्हे जाने नहीं दूँगा”...किस्मत और मुहब्बत की जंग मे एक “तवायफ़” की ज़िंदगी का क्या खूब खेल हो रहा था.

सदानंद की बात सुनकर ऋुना का चेहरा एकदम से गंभीर हो गया...उसका दाव बेकार होने वाला था और अब वो कुछ नहीं कर पा रही थी....सदानंद ने एक लंबी साँस ली और बोलना सुरू किया.......



"तो ऋुना बाई, बेसिकली अब बात ये है कि मुझे ये सौदा बड़ा महँगा पड़ रहा है और इतनी कीमत तो मैं चुका नहीं सकता...अब एक ही रास्ता है मेरे पास......"




"तुम सबको यही मार कर दफ़न कर दूं और अपने बेटे को लेकर जाउ यहाँ से.." अपने जेब से सिगार निकाल कर सुलगाते हुए सदानंद ने बड़े आम से लहजे मे कहा....जैसे मानो कोई बड़ी मामूली बात कह रहा हो.



" सदानंद बाबू, ये मुहब्बत भी बड़ी कमीनी चीज़ है,जिसको हो जाए पंगा ही कर देती है...........आलोक की आँखो मे मुहब्बत की जो तड़प है ,आपने शायद देखी नहीं....उस मुहब्बत को झुकाने की कोसिस मत करो, हार जाओगे.... " ऋुना कुछ ज़्यादा कह नहीं पाई, इस बार जवाब दिल से दिया उसने.



"ऋुना बाई, इश्क़ -मुहब्बत सब किताबी बातें हैं....तुम मुझे जानती नहीं अभी...पहले बात सिर्फ़ मेरी इज़्ज़त की थी..मैं नहीं चाहता था कि मेरा बेटा किसी तवायफ़ को मेरे घर की बहू बनाए, लेकिन अब बात ज़िद की है, अब बात मेरे गुरूर की है.....और उसके लिए मैं किसी भी हद तक जा सकता हू...या यूँ कह लो गिर सकता हू.." सदानंद ने अपने इरादे जाहिर कर दिए.




"ठीक है सदानंद बाबू , तो फिर पहले अपने बेटे को मार दो...क्यूकी मुझे नहीं लगता कि उसके रहते आप कोहिनूर को छु भी पाओगे "ऋुना ने भी उसी अंदाज मे जवाब दिया.



"मेरा बेटा मेरे साथ जाएगा.....अब तुमने मेरे पास कोई रास्ता नहीं छोड़ा...तुम मेरे लिए एक बहुत बड़ा ख़तरा हो और अब मैं तुम्हे छोड़ नहीं सकता...." सदानंद सिगार फूंकता हुआ बाहर निकला, बाहर आलोक खड़ा था कुछ दूर पर..सदानंद ने एक नज़र उस पर डाली और अपने आदमियो की ओर बढ़ गया.


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jay
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Re: तवायफ़

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ऋुना काजल को लेकर बाहर आ गयी..आलोक जल्दी से उनके पास पहुचा......ऋुना के चेहरे पर मायूसी थी और काजल की आँखो मे आँसू.



"क्या हुआ ऋुना जी...काजल क्या हुआ...क्या कहा पापा ने..? रो क्यूँ रही हो काजल...मैं हूँ ना...कुछ नहीं होने दूँगा तुम्हे..." आलोक ने काजल के कंधे पर हाथ रखा ....काजल ने सूनी सूनी आँखो से उसकी ओर देखा.....आज भी वही लाचारी और बेबसी थी उन सूनी आँखो मे.




"सदाबाबू, !" लैला जो बहुत देर से ये तमाशा देख रही थी अब और चुप ना रह सकी....उसे लगा अब सही टाइम आ गया है अपना दाव लगाने का.....उसकी आवाज़ पर सदानंद ने मुड़कर उसे देखा...लैला जल्दी से उनके पास पहुचि.



"मैं दो मिनट आपसे बात कर सकती हू क्या...." लैला ने कहा.....सदानंद ने खीझ कर उसे देखा ,


"अब तुझे क्या बात करनी है..."

"कुछ बात बनी ???, वो मान गयी आने को....?? "

"नहीं"

"नहीं मानी !!...अच्छा वो..बस...2 मिनट..आप अकेले मे...??"


"यही बोल ! जल्दी टाइम नहीं है मेरे पास......."



"वो...वो...काजल को कैसे वापस लाना है मेरे को पता है...मैं उस से बोलेगी तो वो आएगी....मैं जानती हूँ , वो कही नहीं जा सकती...बस वो ...वो ...कीमत थोड़ी......कुछ और.." लैला को अभी कुछ पता नहीं था ,लेकिन सदानंद के तेवर देखकर ये समझ चुकी थी कि सदानंद का सौदा ऋुना के साथ हो नहीं पाया था...और वैसे भी उसे ये पता ही था कि सदानंद दौलत का जाल ही बिच्छाएँगे और ऋुना को दौलत से मोह कभी नहीं रहा .




"लैला बाई, यहाँ से अब लाशे उठने वाली हैं, बोल तो तेरी भी उठवा दूं....."सदानंद ने घूर कर उसे देखा, लैला की हालत खराब हो गयी.



"लाशें... ?? किसकी लाशें...औक्क.....मैने क्या किया सदा बाबू...मैं तो यू ही....माफ़ कर दीजिए..." लैला जो करोड़ो के सपने देख रही थी अपने "हीरे" से ,बेचारी को मौत नज़र आने लगी.




"तो चली जा यहाँ से....मैने सौदा करना चाहा सिर्फ़ अपने बेटे से उस लड़की को अलग करने का !...अपनी मौत का सौदा नहीं कर सकता...मैं अपने सर पर नंगी तलवार लटकती नहीं छोड़ सकता...अब दफ़ा हो यहाँ से...और कुछ बोली तो....." सदानंद कुछ बातें मानो खुद से कह रहे हो, आख़िरी बात ही लैला की समझ मे आई और उतना ही काफ़ी था.


"ज्ज्ज..जी..मैं अभी चली जाती हू......"



"नहीं अभी नहीं जा सकती...जा..जाकर गाड़ी मे बैठ...."



"ज्ज्ज..जी..." लैला पल भर मे सर अपने घुटने के बीच छुपाए, अपनी कार मे बैठी हुई नज़र आई...



सदानंद ने अपने आदमियो को पास बुलाया और कुछ कहा...सब भी उनके पिछे आने लगे, सबके पास ही गन थी...दो आदमी बाहर की ओर खड़े थे ताकि कोई और बाहर से ना आ पाए इस ओर...और बाकी आदमियो ने और खड़ी गाडियो ने एक घेरा सा बना लिया था चारो ओर से.......





आलोक सब देख रहा था और ऋुना ने भी कुछ कहा था उस से....उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसका अपना बाप इतना गिर सकता है कि उसके सामने उसकी मुहब्बत का खून करने वाला है...आलोक के आँखे अंगारे सी दहक रही थी,उसकी जबड़े भिन्च गये और नथुने फूलने लगे..




सदानंद आलोक की ओर बढ़ा...उन्हे खुद भी समझ मे नहीं आ रहा था कि आलोक से कैसे कहे और क्या कहे... वो खुद भी जानते थे कि आलोक का जवाब क्या होगा..और ये भी पता था कि आज आलोक यहा से काजल को लेकर निकल गया तो फिर कभी उनके पास लौटकर नहीं आएगा....और कही ऋुना ने उनकी असलियत बता दी तो...आलोक ने पोलीस को बता दिया तो...?????.....बेटा तो हाथ से जाएगा ही इज़्ज़त और शोहरत भी जाएगी, और कौन जाने बुढ़ापा जैल की चक्की पीसते बीते.....सदानंद ने सोच लिया था कि किसी भी हाल मे वो ऋुना और काजल को यहा से नहीं जाने दे सकते.




"आलोक बेटा, देखो मेरी बात सुनो...तुम इन दोनो को छोड़कर गाड़ी मे चलकर बैठो...बल्कि तुम जाओ यहा से चले जाओ......मैं इन्हे सब समझा दूँगा..."सदानंद खुद से ही नज़रे चुरा रहे थे, आलोक की आँखो की दीवानगी बहुत कुछ कह रही थी और सदा को पता था आलोक मानेगा नहीं, लेकिन किसी भी तरह से आलोक को वहाँ से हटाना ही था और इसके लिए कुछ सोचा था उन्होने.


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Re: तवायफ़

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आलोक ने कुछ नहीं कहा बस सवालिया नज़रो से उन्हे घूरता रहा........मानो पुछ रहा हो, सच मे ?? आपको लगता है की मैं ऐसा करूँगा???....



"देखो बेटा........



"बसस्स , एक और बार भी मुझे बेटा मत कहिएगा...!!!!!...कितना बदनसीब हूँ मैं कि आप मेरे बाप हो........नफ़रत हो रही है मुझे अपने वजूद से ,काश मैं अनाथ होता.....काश आप मेरे बाप ना होते..." आलोक की बात मे बहुत दर्द था ,लेकिन आँखो मे उस से कही ज़्यादा नफ़रत.




"आलोक??" सदानंद के अहम को ठेस लगी.




"चिल्लाइए मत मिस्टर सदानंद चौहान.....!!....नहीं तो बाप-बेटे का ये रिश्ता नफ़रत की इसी आग मे भस्म कर दूँगा.....अपनी मुहब्बत की कसम है मुझे अगर काजल को किसी ने हाथ लगा दिया तो वो हाथ उखाड़ दूँगा मैं.......घिंन आ रही है आपसे....कभी सोचा नहीं था कि आप इतना गिर जाएँगे..... !! ..कैसे सोच लिया आपने कि आप मेरी काजल को...मेरी काजल को जान से...."आलोक की आँखे छलक पड़ी, बुरी तरह से अपनी आँखे रगड़ डाली उसने और काजल को अपने सीने मे भींच लिया..आज उसे किसी की परवाह नहीं थी.



नफ़रत से अपने बाप को घूरा, सदानंद को कोई खास फ़र्क नहीं पड़ा.




" मेरे जीते जी मेरी काजल को कोई छु नहीं सकता......खेलिए खून की होली आप ,लेकिन वो खून आपका अपना होगा....आपकी बंदूक से निकली गोली पहले मेरे सीने को छल्नी करेगी फिर मेरी काजल को छु पाएगी...चलाइए गोली....."आलोक अपने बाप के ठीक सामने खड़ा हो गया था....मानो कह रहा हो कि दिखा दो आज अपने नफ़रत की इंतेहा और देख लो आज मेरी मुहब्बत की इंतेहाँ.





आलोक की आँखो से दीवानगी बरस रही थी , चेहरा गुस्से और नफ़रत से सख़्त हो गया था...सारे जमाने का दर्द उसकी उन दो आँखो मे सिमट गया था....उसका अपना बाप आज उसकी मुहब्बत का दुश्मन बन गया था.



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"आलोक, मुझे मजबूर मत करो......कि मैं......" सदानंद ने अपनी गन आलोक पर तान दी...एक दीवाने को डराने चले थे..नादान !



"आप कब से मजबूर होने लगे .....किस बात का इंतजार है आपको......चलाइए गोली..."




आलोक दहाड़ता हुआ बोला.....सदानंद के माथे पर पसीना छलक आया....हाथो मे पकड़ी हुई रेवोल्वेर काँप गयी.




"नहीं आलोक,प्लीज़..आप ऐसा मत कीजिए.....आपको कुछ हो गया तो मैं जी के ही क्या करूँगी.....सदानंद बाबू , मुझे मंजूर है....आपकी हर बात मंजूर है.....मैं चलूंगी आपके साथ......आलोक से फिर कभी नहीं मिलूंगी.......माफ़ कर दीजिए.....प्लीज़......ऋुना बाजी ,बोलो ना आप...प्लीज़ ऋुना बाजी...मेरे आलोक को कुछ हुआ तो....." काजल ये सब देख कर बहुत डर गयी थी, वो फूट फूट कर रोने लगी...इस हालत की ज़िम्मेदार वो खुद को मान रही थी.........उसने ये तो कभी नहीं चाहा था....ऋुना खामोश थी, हर बार कुर्बानी काजल ने दी थी, आज आलोक की बारी थी, ऋुना खामोश ही रही.




कुछ दूरी पर खड़े जुंमन से ये सब बर्दाश्त नहीं हो रहा था...एक आदमी गन के साथ ठीक उसके पिछे खड़ा था....आज कितना बेबस महसूस कर रहा था वो..उसका अपना घर अपना गाओं...लेकिन वो कुछ कर नहीं पा रहा था...काश उसे पता रहा होता कि ये हालत होंगे तो वो भी "तैयार" होकर आया होता मुंबई से ही. ....



उसे पूरा यकीन था कि एक मिनिट को अगर आलोक बीच से हट गया तो काजल और ऋुना की जान लेने मे सदानंद को एक पल नहीं लगेगा....आलोक भले नादान था,जुंमन ने ये सब बहुत देखा था और यही वजह थी कि वो बहुत बेचैन हो रहा था.




"आलोक, देखो.." सदानंद कुछ कहने के अंदाज़ मे आगे बढ़े, और जैसे ही आलोक का ध्यान हटा पिछे से उसके सर पर वार हुआ, इस से पहले वो सम्भल पता उसके पास खड़े 3-4 आदमियो ने उसे दबोच लिया.




उसी पल फुर्ती से जुंमन ने अपने पास खड़े आदमी के हाथ से एक झटके मे गन छीनी और सदानंद की ओर दौड़ लगा दी.........सदानंद ने झपट कर नीचे गिरी गन उठाई और जुंमन की ओर फाइयर कर दिया......



"ढाएँ !!! " एक साथ दो दो गोलियों की आवाज़ें गूँजी और उस तेज आवज़ के बीच एक दर्दनाक चीख दब कर रह गयी.


दनदनाते हुए और गाडियो के बीच रास्ता बनाते हुए सफ़ारी घुसी चली आई और उसके बाहर लटकता हुआ शेरा...हाथ मे गन ताने , जिसके निशाने पर थे सदानंद चौहान....उसकी गन से चली पहली गोली सदानंद के हाथ पर लगी थी और गन छूटकर दूर जा गिरी थी ...उनका पूरा हाथ लाहुलुहान हो गया था....सदानंद की गन से चली गोली जुंमन की राइट थाइ मे लगी थी और वो कुछ दूर पड़ा कराह रहा था.



अपने हाथ को पकड़े सदानंद उन बिन बुलाए मेहमानो को घूर रहे थे.....उसके निशाने पर सदानंद थे और सदानंद के सारे आदमियो की बंदूक उसपर तन गयी थी.....एक दो गोलिया भी चली लेकिन अभी सफ़ारी रुकी नहीं थी ,शायद इसीलिए किसी को लगी नहीं...



जैसे ही सफारी रुकी सबकी नज़र गाड़ी मे बैठे बाकी लोगो पर गयी....गाड़ी के अंदर अंजलि पर नज़र पड़ते ही सदानंद चीख उठे "कोई गोली नहीं चलाएगा....."


सफ़ारी के रुकते ही शेरा नीचे कूदा और वैसे ही अपनी गन ताने सदानंद की ओर बढ़ गया..


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