एक अनोखा बंधन compleet

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Re: एक अनोखा बंधन

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एक अनोखा बंधन--7

गतान्क से आगे.....................

“मेरी प्यारी ज़रीना,

कैसी हो तुम. बहुत मुश्किल से मिला अड्रेस तुम्हारी मौसी का मुझे. अड्रेस मिलते ही आज ये चिट्ठी लिख रहा हूँ. एक बात पूछनी थी तुमसे. क्यों चली गयी थी तुम रेस्टोरेंट से बिना बताए. खाना खाकर रफू चक्कर हो गयी मुझे छोड़ कर. क्या बस इतना ही प्यार था तुम्हारा. तुम्हे नही लगता कि तुमने कुछ ग़लत किया है. मैं ढून्दता रहा तुम्हे वाहा लेकिन तुम कही नही मिली. बताओ क्यों किया तुमने ऐसा.

थक हार कर मैं होटेल वापिस आ गया था. उम्मीद थी कि तुम होटेल में ही मिलॉगी मुझे. पर ये क्या तुम तो वाहा भी नही थी. ऐसा कौन सा तूफान आ गया था कि तुम अचानक मुझे छोड़ कर चली गयी. क्या एक बार भी नही सोचा तुमने की मैं कैसे जीऊँगा. क्या तुम्हे ज़रा भी चिंता नही हुई मेरी.अगले दिन तुम्हारी मौसी की गली में भी घुमा मैं काफ़ी देर. लेकिन तुम तो शायद मुझे भूल कर मज़े की नींद ले रही थी. बहुत बेदर्द हो तुम.

दिल से मजबूर हो कर लिख रहा हूँ ये चित्ति मैं. बहुत कोशिस की तुम्हे भुलाने की पर भुला नही सका. क्या करू प्यार ही इतना करने लगा हूँ तुम्हे. पर तुम्हे क्या, तुम्हे तो मिल गया होगा शुकून मुझे तडपा के.

एक बात और कहनी थी. आज मैने तुम्हारी खातिर वो किया जो मैं कभी नही कर सकता था. आज तुम्हारी फेवोवरिट डिश चिकन कढ़ाई खाई मैने. इतनी बुरी भी नही लगी जितना मैं समझता था.मुश्किल हुई पर खा ही ली. अब जो चीज़ मेरी ज़रीना की फेवोवरिट है उसे तो चखना ही था. अब हमारे बीच कोई भी दिक्कत नही होगी इस बात को लेकर. अब मैं भी नोन-वेज बन गया हूँ. तुम ठीक ही थी ज़रीना. मैने बहुत सोचा और इसी नतीजे पर पहुँचा कि जीवन तो कण-कण में है. यही तो हमारे हिंदू धरम की मान्यता भी है. तुम्हारे भोजन का यू अपमान करना ग़लत था. ये बात अब मैं समझ गया हूँ. अब ये छोटी सी बात हमारे बीच नही आएगी. आ जाओ वापिस मेरी जिंदगी में ज़रीना. तुम्हारे बिना बहुत अकेला महसूस कर रहा हूँ मैं. सब कुछ बिखर गया है.

तुम्हे लेने आ रहा हूँ ज़रीना इस रविवार को मैं. तैयार रहना. कोई बहाना नही चलेगा. तुम सिर्फ़ मेरी हो और मेरी रहोगी. बहुत प्यार करूँगा तुम्हे मैं ज़रीना. तैयार रहना तुम मैं आ रहा हूँ तुम्हे लेने.

तुम्हारा आदित्य”

मैं तो तैयार खड़ी हूँ आदित्य तुम आओ तो सही. आँखे बंद करके चल पड़ूँगी तुम्हारे साथ. जहा चाहे वाहा ले जाना तुम मुझे. आइ लव यू.” बोलते बोलते ज़रीना की आँखे भर आई लेकिन इस बार आँसू कुछ और ही रंगत लिए थे.

ज़रीना ने प्यार की खातिर नोन-वेज छोड़ दिया और आदित्य ने प्यार की खातिर नोन-वेज शुरू कर दिया. वैसे तो बहुत छोटी सी बाते लगती हैं ये. लेकिन ये करना इतना आसान नही होता. अपने अहम यानी कि ईगो को मारना पड़ता है. जो अपनी ईगो को ख़तम कर पाता है वही प्यार की गहराई में उतार पाता है. आदित्या और ज़रीना फैल तो ज़रूर हुवे थे प्यार के इम्तिहान में लेकिन अब उन्होने वो पाया था अपने जीवन में जो की बहुत अनमोल था. प्यार में एक दूसरे के लिए झुकना सीख गये थे वो दोनो. जो कि प्यार के लंबे सफ़र पर जाने के लिए ज़रूरी है.

अब इसे अनोखा बंधन ना कहु तो क्या कहु मैं. ये अनोखा बंधन बहुत प्यारा और सुंदर है जिसमे कि इंसानी जींदगी की वो खुब्शुरती छुपी है जिसे शब्दो में नही कहा जा सकता. बस समझा जा सकता है. बस समझा जा सकता है…………………………

प्यार के दुश्मन हज़ार होते हैं. प्यार को दुनिया की नज़र भी लग जाती है. बहुत खुस थे ज़रीना और आदित्य एक दूसरे का प्यार भरा खत पा कर. ज़रीना के पाँव ज़मीन पर नही थम रहे थे. आदित्य भी ख़ुसी से झूम रहा था.

सनडे को लेने जाना था आदित्य को ज़रीना को. आने जाने की टिकेट उसने बुक करा ली थी. अभी 2 दिन बाकी थे. उसने सोचा क्यों ना ज़रीना के आने से पहले अपने पापा के कारोबार को संभाल लिया जाए. वही बचा था अब इक लौता वारिस उसे ही सब संभालना था. ज़रीना की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए ये ज़रूरी भी था.

बहुत बड़ा कपड़े का व्यापार था आदित्य के पापा दीना नाथ पांडे का. बिना देख रेख के वो यू ही नुकसान में जा रहा था. दंगो के बाद आदित्य ने सुध ही नही ली व्यापार की. लेकिन अब उसे ज़िम्मेदारी का अहसास हो चला था. ज़रीना की खातिर उसे उस बीखरे हुवे व्यापार को फिर से खड़ा करना था. प्यार काई बार ज़िम्मेदारी भी सीखा देता है.

आदित्य सुबह सवेरे ही घर से निकल पड़ा. सभी करम्चारी आदित्य को देख कर बहुत खुस हुवे. सभी परेशान थे कि फॅक्टरी अगर यू ही चलती रही तो जल्दी बंद हो जाएगी और उनका रोज़गार छिन जाएगा. आदित्य ने सभी को भरोसा दिलाया कि वो फिर से फॅक्टरी को पहले वाली स्तिथि में ले आएगा.

पूरा दिन आदित्य ने फॅक्टरी में ही बिताया. किसी बिगड़े काम को ठीक करने के लिए अक्सर एक सच्चे पर्यास की ज़रूरत होती है. उसके बाद सब कुछ खुद-ब-खुद ठीक होता चला जाता है. ऐसा ही कुछ हो रहा था दीना नाथ पांडे की उस फॅक्टरी में. आदित्य के आने से उम्मीद की एक किरण जाग उठी थी सभी के मन में. जो कि एक बहुत बड़ी बात होती है.

काफ़ी दिनो बाद कुछ काम हुवा फॅक्टरी में. आदित्य बहुत खुस था. फॅक्टरी में रहा आदित्य मगर हर वक्त उसके जहन में ज़रीना का चेहरा घूमता रहा.

शाम को वो ख़ुसी ख़ुसी घर लौट रहा था. अंजान था कि काई बार ख़ुसी को किसी की नज़र भी लग जाती है. जब वो अपने घर पहुँचा तो पाया कि कुछ गुंडे टाइप के लोग ज़रीना के टूटे-फूटे घर के बाहर खड़े हैं. वो उन्हे इग्नोर करके अपने घर में घुसने लगता है. मगर उसे कुछ ऐसा सुनाई देता है कि उसके कदम घर के बाहर ही थम जाते हैं.

“यार जो भी हो. क्या मस्त आइटम थी वो ज़रीना. मैं तो दंगो के दौरान बस उसे ही ढूंड रहा था. एक से एक लड़की को ठोका उस दौरान पर ज़रीना जैसी कोई नही थी उनमे. पता नही कहा छुप गयी थी साली. उसकी छोटी बहन की तो अच्छे से ली थी हमने.”

“हो सकता है वो घर पर ना हो कही बाहर गयी हो.”

“हो सकता है? पर यार उसकी लेने की तम्माना दिल में ही रह गयी. अफ क्या चीज़ थी साली. ऐसे दंगो में ही तो ऐसा माल हाथ आता है. वो भी निकल गया हाथ से.”

आदित्य तो आग बाबूला हो गया ये सुन कर. प्रेमी कभी अपनी प्रेमिका के खिलाफ ऐसी बाते नही सुन सकता. भिड़ गया आदित्य उन लोगो से बीना सोचे समझे. जो आदमी सबसे ज़्यादा बोल रहा था वो उस पर टूट पड़ा.

“बहुत बकवास कर रहा है. तेरी हिम्मत कैसे हुई ऐसी बाते करने की” आदित्य ने उसे ज़मीन पर गिरा कर उस पर घूँसो की बोचार कर दी. मगर वो 5 थे और आदित्य अकेला था. जल्दी ही उसे काबू कर लिया गया. ये कोई हिन्दी मूवी का सीन नही था जहा कि हीरो 5 तो क्या 10 लोगो को भी धूल चटा देता है. ये रियल लाइफ का द्रिश्य था.

2 लोगो ने आदित्य को पकड़ लिया और एक ने चाकू निकाल कर कहा, “क्यों बे ज़्यादा चर्बी चढ़ि है तुझे. हम कौन सा तेरी मा बहन के बारे में बोल रहे थे. उन लोगो के बारे में बोल रहे थे जो हमारे दुश्मन हैं. हिंदू हो कर हिंदू पर ही हाथ उठाते हो वो भी हमारे दुश्मनो की खातिर. तुम्हारे जैसे लोगो ने ही हिंदू धरम को कायर बना रखा है.”

“कायरता खुद करते हो और पाठ मुझे पढ़ा रहे हो. छोड़ो मुझे और एक-एक करके सामने आओ. खून पी जाउन्गा मैं तुम लोगो का.”

“ जग्गू मार साले के पेट में चाकू और चीर दे पेट साले का. ज़रूर इसी ने छुपाया होगा ज़रीना को. इसके घर में देखते हैं. क्या पता जो दंगो के दौरान नही मिली अब मिल जाए…हे…हे.”

“उसके बारे में एक शब्द भी और कहा तो मुझसे बुरा कोई नही होगा.” आदित्य छटपटाया. मगर 2 लोगो ने उसे मजबूती से पकड़ रखा था.
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किसी तरह से आदित्य ने दोनो को एक तरफ धकेला और टूट पड़ा उस गुंडे पर जिसके हाथ में चाकू था. होश खो बैठा था आदित्य. होता है प्यार में ऐसा भी कभी. मगर ये ज़्यादा देर नही चला. फिर से उसे जाकड़ लिया गया.

और फिर वो हुवा जिसके बारे में आदित्य ने सोचा भी नही था. चाकू के इतने वार हुवे उसके पेट पर की खून की नादिया बह गयी वाहा. आदित्य को तड़प्ता छोड़ वो गुंडे भाग गये वाहा से.

आदित्य की फॅक्टरी का एक करम्चारी, रमेश आदित्य से कुछ पेपर्स पर साइन लेने उसके घर पहुँचा तो उसने आदित्य को वाहा खून से लटपथ पाया. तुरंत किसी तरह आंब्युलेन्स बुलाई उसने और आदित्य को हॉस्पिटल ले जाया गया.

बहुत सीरीयस हालत में था वो. ऑपरेशन किया डॉक्टर्स ने मगर बचने की उम्मीद कम ही बता रहे थे. खून बहुत बह गया था. चाकू के इतने वार हुवे थे कि पेट छलनी छलनी हो रखा था उसका. बड़ी देर लगी ऑपरेशन में भी. ऑपरेशन के बाद आदित्य को आइक्यू में रख दिया गया. उसे होश नही आया था. सनडे आ गया मगर अभी भी वो कोमा में ही था. आदित्य के बारे में सुन कर मुंबई से उसके चाचा, चाची मिलने आए. दीना नाथ पांडे की मौत के वक्त नही आ पाए थे वो क्योंकि माहॉल ठीक नही था. चाचा का नाम था रघु नाथ पांडे और चाची का नाम था विमला देवी.

“डॉक्टर साहिब कब तक रहेगा कोमा में आदित्य.” रघु नाथ ने पूछा.

“कुछ नही कह सकते. हम जो कर सकते थे हमने किया. अब सब भगवान के उपर है.” डॉक्टर कह कर चला गया.

आज के दिन आदित्य को ज़रीना को लेने देल्ही जाना था. मगर वो तो कोमा में पड़ा था. उशे होश ही नही था कि ज़रीना तड़प रही होगी आदित्य के लिए. या फिर होश था उसे मगर कुछ कर नही सकता था. कोमा चीज़ ही कुछ ऐसी है. बेसहाय बना देती है इंसान को.

………………………………………………………………

ज़रीना तो सुबह से ही बेचैन थी. बेसब्री से इंतेज़ार कर रही थी आदित्य का. उसे मौसी को बिना कुछ कहे घर से निकलना था, आदित्य के पीछे पीछे. बस एक बार दिख जाए आदित्य गली में. आँखे बिछाए बैठी थी वो. छत की बाल्कनी में खड़ी हो गयी सुबह सवेरे ही.

“क्या बात है बेटा आज सुबह जल्दी उठ गयी.” मौसी ने आवाज़ लगाई ज़रीना को.

ज़रीना मौसी की आवाज़ सुन कर चौंक गयी, “सलाम आलेकम मौसी.”

“सलाम आलेकम बेटा. क्या बात है आज सुबह सुबह यहा खड़ी हो. सब ख़ैरियत तो है.”

“हां मौसी सब ख़ैरियत है. बस वैसे ही खड़ी थी.”

“तुमसे कोई मिलने आ रहा है आज.” मौसी ने कहा.

“कौन?”

“एमरान नाम है उसका. यही पड़ोस में रहता है. अछा लड़का है. तेरे बारे में बताया मैने उसे. बहुत दुख हुवा उसे सुन कर तुम्हारे बारे में.

मिलना चाहता है तुम से. आ जाओ नीचे वो आता ही होगा. बहुत अहसान है उसके हम पर. उस से मिलॉगी तो अछा लगेगा हमें.”

“ठीक है मौसी मैं आती हूँ आप चलिए.” ज़रीना ने कहा.

मौसी सोच में पड़ गयी कि आख़िर क्या है बाल्कनी में ऐसा आज जो ज़रीना वाहा से हटना नही चाहती. मौसी के जाने के बाद ज़रीना ने फिर से झाँक कर देखा गली में मगर उसे कोई दीखाई नही दिया. “शायद बाद में आएगा आदित्य. अभी तो सारा दिन पड़ा है. मिल आती हूँ पहले इस एमरान से.”

ज़रीना जब सीढ़ियाँ उतर कर आई तो उसने पाया की एमरान उसका इंतेज़ार कर रहा था.

“तो आप हैं ज़रीना शेख. खुदा कसम बहुत खूबसूरत हैं आप. हमारी नज़र ना लग जाए आपको.” एमरान ने ज़रीना को देखते ही कहा.

“आओ बेटी बैठो. यही है एमरान. बहुत काबिल लड़का है. जब भी कोई काम बोलती हूँ इसे वो ये झट से कर देता है.”

“ये तो आपकी जर्रा नवाज़ी है खाला. हम इतने काबिल भी नही हैं. सब खुदा की रहम है.”

“नही एमरान तुम सच में बहुत काबिल हो. अछा तुम दोनो बाते करो मैं चाय लेकर आती हूँ.”

ज़रीना मौसी को रोकना चाहती थी पर कुछ कह नही पाई.

“लगता है आपको ख़ुसी नही हुई हमसे मिल कर. आप कहें तो हम चले जाते हैं.” एमरान ने कहा.

“जी नही आप हमें ग़लत ना समझे. हम थोड़ा परेशान हैं.” ज़रीना ने कहा.

“समझ सकते हैं हम आपकी परेशानी. हम बेख़बर नही हैं आपकी परेशानी से. खाला हमें सब कुछ बता चुकी हैं. हम यहा आपका गम बाटने आयें हैं.” एमरान ने कहा.

“बहुत बहुत शुक्रिया आपका मगर हम उस बारे में बात नही करना चाहते.”

“समझ सकते हैं हम. गुज़रे दौर की बाते जख़्मो को और हवा ही देती हैं. हम आपसे माफी चाहेंगे अगर हमने आपके जख़्मो को कुरेद दिया हो तो. हमें ज़रा भी इल्म नही था कि इन बातो का जिकर नही होना चाहिए. हम तो बस आपका गम हल्का करना चाहते थे.”

“आपसे इज़ाज़त चाहूँगी. मुझे जाना होगा.”

“रोकेंगे नही आपको. मगर आप बैठेंगी तो हमें अछा लगेगा. आपसे ही मिलने आयें हैं हम.”

क्रमशः...............................
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Ek Anokha Bandhan--7

gataank se aage.....................

“meri pyari zarina,

Kaisi ho tum. bahut mushkil se mila address tumhaari mausi ka mujhe. Address milte hi aaj ye cheethi leekh raha hun. Ek baat puchni thi tumse. Kyon chali gayi thi tum restaurant se bina bataaye. Khana khaakar rafoo chakkar ho gayi mujhe chod kar. Kya bas itna hi pyar tha tumhaara. Tumhe nahi lagta ki tumne kuch galat kiya hai. Main dhundata raha tumhe vaha lekin tum kahi nahi mili. Bataao kyon kiya tumne aisa.

Thak haar kar main hotel vaapis aa gaya tha. ummeed thi ki tum hotel mein hi milogi mujhe. Par ye kya tum to vaha bhi nahi thi. Aisa kaun sa toofan aa gaya tha ki tum achaanak mujhe chod kar chali gayi. Kya ek baar bhi nahi socha tumne ki main kaise jeeunga. Kya tumhe jara bhi chinta nahi huyi meri.agle din tumhaari mausi ki gali mein bhi ghuma main kaafi der. Lekin tum to shaayad mujhe bhool kar maje ki neend le rahi thi. Bahut bedard ho tum.

Dil se majboor ho kar leekh raha hun ye cheethi main. Bahut koshis ki tumhe bhulaane ki par bhula nahi saka. Kya karu pyar hi itna karne laga hun tumhe. Par tumhe kya, tumhe to mil gaya hoga shukun mujhe tadpa ke.

Ek baat aur kahni thi. Aaj maine tumhaari khaatir vo kiya jo main kabhi nahi kar sakta tha. aaj tumhaari favorite dish chicken kadhaayi khaayi maine. Itni buri bhi nahi lagi jitna main samajhta tha.mushkil huyi par kha hi li. Ab jo cheez meri zarina ki favorite hai ushe to chakhna hi tha. Ab hamaare beech koyi bhi dikkat nahi hogi ish baat ko lekar. Ab main bhi non-veg ban gaya hun. Tum theek hi thi zarina. Maine bahut socha aur ishi natije par pahuncha ki jeevan to kan-kan mein hai. Yahi to hamaare hindu dharam ki maanyata bhi hai. Tumhaare bhojan ka yu apmaan karna galat tha. ye baat ab main samajh gaya hun. Ab ye choti si baat hamaare beech nahi aayegi. Aa jaao vaapis meri jeendaki mein zarina. Tumhaare bina bahut akela mahsus kar raha hun main. Sab kuch bikhar gaya hai.

Tumhe lene aa raha hun zarina ish ravivar ko main. Taiyaar rahna. Koyi bahaana nahi chalega. Tum sirf meri ho aur meri rahogi. Bahut pyar karunga tumhe main zarina. Taiyaar rahna tum main aa raha hun tumhe lene.

Tumhaara aditya”

Main to taiyaar khadi hun aditya tum aao to sahi. Aankhe band karke chal padungi tumhaare saath. Jaha chaahe vaha le jaana tum mujhe. I love you.” Bolte bolte zarina ki aankhe bhar aayi lekin ish baar aansu kuch aur hi rangat liye the.

Zarina ne pyar ki khaatir non-veg chod diya aur aditya ne pyar ki khaatir non-veg shuru kar diya. Vaise to bahut choti si baate lagti hain ye. Lekin ye karna itna asaan nahi hota. Apne aham yani ki ego ko maarna padta hai. Jo apni ego ko khatam kar paata hai vahi pyar ki gahraayi mein utar paata hai. Aditya aur zarina fail to jaroor huve the pyar ke imtehaan mein lekin ab unhone vo paaya tha apne jeevan mein jo ki bahut anmol tha. pyar mein ek dusre ke liye jhukna seekh gaye the vo dono. Jo ki pyar ke lambe safar par jaane ke liye jaroori hai.

Ab ishe anokha bandhan na kahu to kya kahu main. Ye anokha bandhan bahut pyara aur shunder hai jishme ki insaani jeendagi ki vo khubshurti chupi hai jishe shabdo mein nahi kaha ja sakta. Bas samjha ja sakta hai. Bas samjha ja sakta hai…………………………

Pyar ke dushman hazaar hote hain. Pyar ko duniya ki nazar bhi lag jaati hai. Bahut khus the zarina aur aditya ek dusre ka pyar bhara khat pa kar. Zarina ke paanv jamin par nahi tham rahe the. Aditya bhi khusi se jhum raha tha.

Sunday ko lene jaana tha aditya ko zarina ko. Aane jaane ki Ticket Ushne book kara li thi. Abhi 2 din baaki the. ushne socha kyon na zarina ke aane se pahle apne papa ke kaarobar ko sambhaal liya jaaye. Vahi bacha tha ab ik lauta vaaris ushe hi sab sambhaalna tha. zarina ki zimmedari uthaane ke liye ye jaroori bhi tha.

Bahut bada kapde ka vyapaar tha aditya ke papa dina nath panday ka. Bina dekh rekh ke vo yu hi nuksaan mein ja raha tha. dango ke baad aditya ne sudh hi nahi li vyapaar ki. Lekin ab ushe jimmedari ka ahsaas ho chala tha. zarina ki khaatir ushe ush beekhre huve vyapaar ko phir se khada karna tha. pyar kayi baar jimmedari bhi seekha deta hai.

Aditya subah savere hi ghar se nikal pada. Sabhi karamchaari aditya ko dekh kar bahut khus huve. Sabhi pareshaan the ki factory agar yu hi chalti rahi to jaldi band ho jaayegi aur unka rojgaar chin jaayega. Aditya ne sabhi ko bharosa dilaaya ki vo phir se factory ko pahle wali stithi mein le aayega.

Pura din aditya ne factory mein hi bitaaya. Kishi bigde kaam ko theek karne ke liye aksar ek sache paryaas ki jaroorat hoti hai. Ushke baad sab kuch khud-b-khud theek hota chala jaata hai. Aisa hi kuch ho raha tha dina nath panday ki ush factory mein. Aditya ke aane se ummeed ki ek kiran jaag uthi thi sabhi ke man mein. Jo ki ek bahut badi baat hoti hai.

Kaafi dino baad kuch kaam huva factory mein. Aditya bahut khus tha. factory mein raha aditya magar har vakt ushke jahan mein zarina ka chehra ghumta raha.

Shaam ko vo khusi khusi ghar laut raha tha. anjaan tha ki kayi baar khusi ko kisi ki nazar bhi lag jaati hai. Jab vo apne ghar pahuncha to paaya ki kuch gunde type ke log zarina ke tute-phute ghar ke baahar khade hain. Vo unhe ignore karke apne ghar mein ghusne lagta hai. Magar ushe kuch aisa shunta hai ki ushke kadam ghar ke baahar hi tham jaate hain.

“yaar jo bhi ho. Kya mast item thi vo zarina. Main to dango ke dauraan bas ushe hi dhund raha tha. ek se ek ladki ko thoka ush dauraan par zarina jaisi koyi nahi thi unme. Pata nahi kaha chup gayi thi saali. Ushki choti bahan ki to ache se li thi hamne.”

“ho sakta hai vo ghar par na ho kahi baahar gayi ho.”

“ho sakta hai? Par yaar ushki lene ki tammana dil mein hi rah gayi. Uff kya cheez thi saali. Aise dango mein hi to aisa maal haath aata hai. Vo bhi nikal gaya haath se.”

Aditya to aag babula ho gaya ye shun kar. Premi kabhi apni premika ke khilaaf aisi baate nahi shun sakta. Bhid gaya aditya un logo se beena soche samjhe. Jo aadmi sabse jyada bol raha tha vo ush par tut pada.

“bahut bakwaas kar raha hai. Teri himmat kaise huyi aisi baate karne ki” aditya ne ushe jamin par gira kar ush par ghunso ki bochaar kar di. Magar vo 5 the aur aditya akela tha. jaldi hi ushe kaabu kar liya gaya. Ye koyi hindi movie ka scene nahi tha jaha ki hero 5 to kya 10 logo ko bhi dhool chata deta hai. Ye real life ka drishya tha.

2 logo ne aditya ko pakad liya aur ek ne chaaku nikaal kar kaha, “kyon be jyada charbi chadhi hai tujhe. Hum kaun sa teri ma bahan ke baare mein bol rahe the. Un logo ke baare mein bol rahe the jo hamaare dushman hain. Hindu ho kar hindu par hi haath uthaate ho vo bhi hamaare dushmano ki khaatir. Tumhaare jaise logo ne hi hindu dharam ko kaayar bana rakha hai.”

“kaayarta khud karte ho aur paath mujhe padha rahe ho. Chodo mujhe aur ek-ek karke saamne aao. Khun pee jaaunga main tum logo ka.”

“ jaggu maar saale ke pet mein chaaku aur cheer de pet saale ka. Jaroor ishi ne chupaaya hoga zarina ko. Ishke ghar mein dekhte hain. Kya pata jo dango ke dauran nahi mili ab mil jaaye…he…he.”

“ushke baare mein ek shabd bhi aur kaha to mujhse bura koyi nahi hoga.” Aditya chatpataaya. Magar 2 logo ne ushe majbooti se pakad rakha tha.

kishi tarah se aditya ne dono ko ek taraf dhakela aur tut pada ush gunde par jishke haath mein chaaku tha. hosh kho baitha tha aditya. Hota hai pyar mein aisa bhi kabhi. Magar ye jyada der nahi chala. Phir se ushe jakad liya gaya.

Aur phir vo huva jishke baare mein aditya ne socha bhi nahi tha. chaaku ke itne vaar huve ushke pet par ki khun ki nadiya bah gayi vaha. Aditya ko tadapta chod vo gunde bhaag gaye vaha se.

Aditya ki factory ka ek karamchaari, ramesh aditya se kuch papers par sign lene ushke ghar pahuncha to ushne aditya ko vaha khun se latpath paaya. Turant kishi tarah ambulance bulaayi ushne aur aditya ko hospital le jaaya gaya.

Bahut serious haalat mein tha vo. Operation kiya doctors ne magar bachne ki ummeed kam hi bata rahe the. Khun bahut bah gaya tha. chaaku ke itne vaar huve the ki pet chalni chalni ho rakha tha ushka. Badi der lagi operation mein bhi. Operation ke baad aditya ko ICU mein rakh diya gaya. Ushe hosh nahi aaya tha. Sunday aa gaya magar abhi bhi vo coma mein hi tha. aditya ke baare mein shun kar mumbai se ushke chacha, chachi milne aaye. Dina nath panday ki maut ke vakt nahi aa paaye the vo kyonki maahol theek nahi tha. chacha ka naam tha raghu nath panday aur chachi ka naam tha vimla devi.

“doctor saahib kab tak rahega coma mein aditya.” Raghu nath ne pucha.

“kuch nahi kah sakte. Hum jo kar sakte the hamne kiya. Ab sab bhagvaan ke upar hai.” Doctor kah kar chala gaya.

Aaj ke din aditya ko zarina ko lene delhi jaana tha. magar vo to coma mein pada tha. ushe hosh hi nahi tha ki zarina tadap rahi hogi aditya ke liye. ya phir hosh tha ushe magar kuch kar nahi sakta tha. coma cheez hi kuch aisi hai. besahaay bana deti hai insaan ko.

………………………………………………………………

Zarina to subah se hi bechain thi. Besabri se intezaar kar rahi thi aditya ka. Ushe mausi ko bina kuch kahe ghar se nikalna tha, aditya ke peeche peeche. Bas ek baar dikh jaaye aditya gali mein. Aankhe beechaye baithi thi vo. Chatt ki balcony mein khadi ho gayi subah savere hi.

“kya baat hai beta aaj subah jaldi uth gayi.” Mausi ne awaaj lagaayi zarina ko.

Zarina mausi ki awaaj shun kar chaunk gayi, “salam alekum mausi.”

“salam alekum beta. Kya baat hai aaj subah subah yaha khadi ho. Sab khairiyat to hai.”

“haan mausi sab khairiyat hai. Bas vaise hi khadi thi.”

“tumse koyi milne aa raha hai aaj.” Mausi ne kaha.

“kaun?”

“emran naam hai ushka. Yahi padosh mein rahta hai. acha ladka hai. Tere baare mein bataaya maine ushe. Bahut dukh huva ushe shun kar tumhaare baare mein.

Milna chaahta hai tum se. aa jaao neeche vo aata hi hoga. Bahut ahsaan hai ushke hum par. Ush se milogi to acha lagega hamein.”

“theek hai mausi main aati hun aap chaliye.” Zarina ne kaha.

Mausi soch mein pad gayi ki aakhir kya hai balcony mein aisa aaj jo zarina vaha se hatna nahi chaahti. Mausi ke jaane ke baad zarina ne phir se jhaank kar dekha gali mein magar ushe koyi deekhayi nahi diya. “shaayad baad mein aayega aditya. Abhi to saara din pada hai. Mil aati hun pahle ish emran se.”

Zarina jab seedhyan utar kar aayi to ushne paaya ki emran ushka intezaar kar raha tha.

“to aap hain zarina sheikh. Khuda kasam bahut khubsurat hain aap. Hamaari nazar na lag jaaye aapko.” Emran ne zarina ko dekhte hi kaha.

“aao beti baitho. Yahi hai emran. Bahut kaabil ladka hai. Jab bhi koyi kaam bolti hun ishe vo ye jhatt se kar deta hai.”

“ye to aapki jarra navaji hai khala. Hum itne kaabil bhi nahi hain. Sab khuda ki raham hai.”

“nahi emran tum sach mein bahut kaabil ho. Acha tum dono baate karo main chaaye lekar aati hun.”

Zarina mausi ko rokna chaahti thi par kuch kah nahi paayi.

“lagta hai aapko khusi nahi huyi hamse mil kar. Aap kahein to hum chale jaate hain.” Emran ne kaha.

“ji nahi aap hamein galat na samjhe. Hum thoda pareshaan hain.” Zarina ne kaha.

“samajh sakte hain hum aapki pareshaani. Hum bekhabar nahi hain aapki pareshaani se. khala hamein sab kuch bata chuki hain. Hum yaha aapka gum baatne aayein hain.” Emran ne kaha.

“bahut bahut shukriya aapka magar hum ush baare mein baat nahi karna chaahte.”

“samajh sakte hain hum. Gujre daur ki baate jakhmo ko aur hawa hi deti hain. Hum aapse maafi chaahenge agar hamne aapke jakhmo ko kured diya ho to. Hamein jara bhi ilm nahi tha ki in baato ka jikar nahi hona chaahiye. Hum to bas aapka gum halka karna chaahte the.”

“aapse izaazat chaahungi. Mujhe jaana hoga.”

“rokenge nahi aapko. Magar aap baithengi to hamein acha lagega. Aapse hi milne aayein hain hum.”

kramashah...............................
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Re: एक अनोखा बंधन

Post by rajaarkey »

एक अनोखा बंधन--8

गतान्क से आगे.....................

ज़रीना बहुत बेचैन हो रही थी ये जान-ने के लिए कि आदित्य आया की नही. उसके चेहरे पर ये बेचैनी सॉफ झलक रही थी.

“आप हमें कुछ बेचैन सी लग रही हैं. सब ख़ैरियत तो है.” एमरान ने कहा.

“सब ख़ैरियत है आप हमारी फिकर ना करें.” ज़रीना थोड़ा गुस्से में बोल गयी.

तभी मौसी चाय ले आई. ज़रीना वाहा से उठी और बोली, “मौसी मैं अभी आती हूँ.”

“चाय ठंडी हो जाएगी बेटा.”

ज़रीना को कुछ नही सुन-ना था. उसे तो बस उपर आ कर बाल्कनी से झाँक कर देखना था कि आदित्य आया है कि नही. दौड़ कर आई वो उपर और दिल में आदित्य को देखने की बेचैनी लिए उसने चारो तरफ देखा गली में. मगर उसे कोई नज़र नही आया. थक हार कर वो वापिस आ गयी.

“चाय ठंडी हो गयी, ऐसा क्या ज़रूरी काम था उपर.” मौसी ने पूछा.

“शायद ज़रीना को चाय पसंद नही है.” एमरान ने कहा.

“बहुत पसंद है इसे चाय. पता नही आजकल क्या हो गया है इसे.”

“खाला ज़रीना गम के ऐसे दौर से गुज़री है कि इंसान की रूह काँप जाए. इंसान का खो जाना लाजमी है. अब इज़ाज़त चाहूँगा खाला. कुछ ज़रूरी काम है मुझे. फिर मिलेंगे. खुदा हाफ़िज़!”

“खुदा हाफ़िज़ बेटा. आते रहना.”

“खुदा हाफ़िज़ ज़रीना जी. हम फिर मिलेंगे.” एमरान ने मुश्कूराते हुवे कहा.

“खुदा हाफ़िज़…” ज़रीना ने जवाब दिया.

“हमारी यही दुवा है कि अल्ला का रहम हो आप पर और आप इस गम के दौर से जल्द निकल आयें बाहर. हम इस खुब्शुरत से चेहरे पर जल्द से जल्द मुश्कान देखना चाहते हैं.” एमरान ने कहा.

ज़रीना ने कुछ नही कहा. उष्का ध्यान ही नही था एमरान की बात पर. वो तो आदित्य के ख़यालो में खोई थी.

“ज़रीना जी हम आपको दुवा दे रहें हैं और आप कबूल नही कर रहीं. क्या हमसे कोई गुस्ताख़ी हुई है.”

ज़रीना को होश आया और वो झट से बोली, “शुक्रिया आपका. बहुत बहुत शुक्रिया.”

एमरान चला गया वाहा से. एमरान के जाने के बाद मौसी बोली, “अछा लड़का है. बहुत मेहनती है. बहुत अहसान है इसके हम पर. बहुत पसंद आई तुम उसे. जब तुम उपर गयी थी तो तुम्हारा हाथ माँग रहा था. एमरान से अछा शोहार नही मिलेगा तुम्हे.”

“मौसी आप सोच भी कैसे सकती हैं ऐसा.” ज़रीना के ये बात ना-गवारा गुज़री.

“बेटा तेरे अब्बा और अम्मी के बाद अब मैं ही हूँ तेरी अपनी. इतना सोचने का हक़ तो शायद मुझे है ही. तुझे ये सुझाव पसंद नही तो ना सही मगर फिर भी गौर करना इस पर. एमरान बहुत ही अछा लड़का है. आछे से जानती हूँ मैं उसे. तुम्हारे लिए उस से बेहतर शोहार नही मिल सकता. उसे तुम पसंद भी आ गयी हो. बाकी तुम्हारी मर्ज़ी है. तुम्हारा निकाह तुम्हारी मर्ज़ी से ही होगा.”

ज़रीना ने कुछ नही कहा और आ गयी सीढ़ियाँ चढ़ कर उपर बाल्कनी में. आदित्य वाहा हो तो दीखे. आँखे नम हो गयी इस बार उसकी.

“क्यों तडपा रहे हो मुझे आदित्य. मर जाउन्गि मैं इस तड़प में. प्लीज़ जल्दी आ जाओ. मैं और इंतेज़ार नही कर सकती.”

सुबह से दोपहर हुई और दोपहर से शाम. शाम से रात भी हो गयी. ज़रीना की आँखे पथरा गयी राह देखते-देखते. बहुत रोई वो बार-बार. आँखे लाल हो गयी उष्की. उसे क्या पता था कि जिसे वो ढूंड रही है वो इस वक्त कोमा में है और शायद गहरी नींद में उसे अपने पास बुला रहा है.

अनोखा बंधन था ये सच में. प्यार इस जानम का नही बल्कि काई जन्मों का लग रहा था. रात तो हो गयी थी पर पता नही क्यों उम्मीद नही छोड़ी थी ज़रीना ने. प्यार हमेसा उम्मीद की किरण जगाए रखता है इंसान में. रात को भी वो काईं बार आई बाल्कनी में चुपचाप दबे पाँव. मगर हर बार निरासा ही हाथ लगी. बहुत मुश्किल से जाती थी वो वापिस अपने कमरे में. मन करता नही था उसका बाल्कनी से हटने का मगर वो वाहा ज़्यादा देर नही रुक सकती थी. दिन में मौसी काई बार पूछ चुकी थी कि क्या कर रही हो बार बार बाल्कनी में. ज़रीना नही चाहती थी कि किसी को भी पता चले उसके और आदित्य के बारे में. उनका प्यार जितना गुमनाम रहे उतना ही अछा. जितना लोगो को पता चलेगा उतनी ही मुसीबत बढ़ेगी. आदित्य की चिट्ठी उसने बहुत ध्यान से छुपा कर रखी थी. फाड़ नही सकती थी उसको. अनमोल प्यार जो था उस चिट्ठी में. ऐसा प्यार जो कि उसे अपनी जींदगी से भी ज़्यादा प्यारा था. होता है ऐसा भी. प्यार अपनी जींदगी से भी ज़्यादा अनमोल हो जाता है.

ज़रीना वापिस आकर गिर गयी अपने बिस्तर पर. थाम नही पाई अपनी आँखो को और वो बह गयी फिर से.

“कहा रह गये तुम आदित्य. क्यों नही आ पाए तुम. ऐसा क्या हो गया कि तुमने मुझे यू तड़प्ता छ्चोड़ दिया. अगर मैं मर गयी तड़प-तड़प कर तो देखना बहुत पछताओगे तुम. मेरे जितना प्यार कोई नही कर सकता तुम्हे. क्यों आदित्य क्यों…….क्यों नही आ पाए तुम.” और बोलते बोलते रो पड़ी ज़रीना फिर से.

“कभी कितनी नफ़रत करती थी तुमसे और आज ये हालत है तुम्हारे कारण. एक पल भी जीना नही चाहती तुम्हारे बिना. याद है तुम्हे वो दिन जब तुम कीचड़ उछाल कर चले गये थे मेरे उपर.

मैं कॉलेज से मार्केट चली गयी थी सुमन और प्रिया के साथ. वापसी में बारिस शुरू हो गयी. शुक्र है छाता था मेरे पास. बचते-बचाते चल रही थी पानी की बूँदो से. नयी जीन्स पहन रखी थी मैने. घर के नज़दीक ही थी मैं. तुम ना जाने कहा से आए अचानक बाइक पर और कीचड़ उछाल दिया मेरे उपर. जीन्स तो मिट्टी से लथपथ हुई ही, मेरे चेहरे पर भी कीचड़ के छींटे डाल दिए तुमने.

तुम रुक गये ये देख कर. तुम्हे लगा कोई और है. छाते के कारण शायद तुम मुझे पहचान नही पाए थे. आए बाइक खड़ी करके नज़रे झुकाए हुवे. मैने तो तुम्हे पहचान ही लिया था. मन कर रहा था कि ईंट उठा कर मारु तुम्हारे सर पर.

“मिस्टर आदित्य क्या समझते हो तुम खुद को. देख कर नही चल सकते क्या. मेरी नयी जीन्स खराब कर दी तुमने.” मैने गुस्से में रिक्ट किया.
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Post by rajaarkey »

तुम तो मुझे देखते ही मूड गये वापिस. इतनी कौटेसी भी नही दीखाई की कम से कम सॉरी ही बोल दो. चल दिए मूह फेर कर जैसे कि सब मेरी ही ग़लती हो. अपनी बाइक पर बैठ गये जा कर और किक मार कर बोले, “मेरी मम्मी से पैसे ले लेना. नयी खरीद लेना. ज़्यादा बकवास करने की ज़रूरत नही है.”

“अपने पैसे अपने पास रखो मिस्टर. पैसो की कमी नही है मुझे. स्टुपिड…...” मैं चिल्ला कर बोली.

“तो खरीद लो ना नयी जा कर. मेरा दिमाग़ क्यों खा रही हो.” चले गये तुम बोल कर.

बहुत गुस्सा आया था तुम्हारे उपर. मन कर रहा था कि तुम्हारी जान ले लूँ. और आज ये दिन है कि तुम्हारे लिए अपनी जान दे सकती हूँ. कितना अजीब होता है प्यार. हम दोनो ऐसे अनमोल प्यार के बंधन में बँध जाएँगे सोचा भी नही था मैने. आ जाओ आदित्य और मेरे लिए एक नयी जीन्स लेते आना. ड्यू है तुम्हारे उपर. वही पहन कर चलूंगी मैं तुम्हारे साथ. बदल लूँगी टाय्लेट में जाकर. तुम बस लेते आओ. या फिर रहने दो जीन्स को….तुम आ जाओ आदित्या प्लीज़….मैं बीखर गयी हूँ पूरी तरह. एक तुम ही तो हो जिसके लिए जीना चाहती हूँ. तुम भी इस तरह तड़पावगे तो क्या होगा मेरा. प्लीज़ आ जाओ.”

ज़रीना से रहा नही गया और वो फिर से उठ कर चल दी बाल्कनी की तरफ. रात के 3 बज रहे थे. मगर उसकी उम्मीद टूटी नही थी अभी. चारो तरफ देखा ज़रीना ने बाल्कनी से झाँक कर. गली में कुत्ते भोंक रहे थे. “ये कुत्ते कही और क्यों नही चले जाते. आदित्य को ना काट लें कहीं ये.”

आदित्य का कही आता पता नही था पर ज़रीना आदित्य के लिए कुत्तो से परेशान हो रही थी. बहुत परवाह रहती है प्यार में एक दूसरे की.

वापिस आना ही पड़ा ज़रीना को. “क्या पता कल आए आदित्य. क्या पता ट्रेन लेट हो गयी हो. या फिर हो सकता है कोई ज़रूरी काम आन पड़ा हो. वो आएगा ज़रूर मुझे यकीन है. बस जल्दी आ जाए तो अछा है वरना पता नही जी पाउन्गि या नही.”

दुबारा नही उठी ज़रीना बाल्कनी में जाने के लिए. थक हार कर उसकी आँख लग गयी थी. सो गयी बेचारी तड़प-तड़प कर. आँखे भारी हो रखी थी. नींद आना लाज़मी था.

…………………………………………………………………..

आदित्य अभी भी कोमा में था. आस पास क्या हो रहा था उसे कुछ नही पता था. लेकिन प्यार का कुछ ऐसा चमत्कार था कि वो थोड़ा-थोड़ा सोच पा रहा था. कुछ केसस हुवे हैं ऐसे कोमा के जिनमे इंसान सोच पाता है. मगर ये थिंकिंग दिमाग़ की बहुत गहराई में होती है. प्यार भी तो कही गहरा छुपा रहता है इंसान के अंदर. शायद वही ये सोचने समझने की ताक़त छुपी रहती है.

“ज़रीना मैं आ रहा हूँ तैयार रहना.” ये विचार खुद-ब-खुद आ गया आदित्य के दिमाग़ में. शायद ज़रीना से मिलने की तड़प बहुत गहराई तक समा गयी थी उसके अस्तित्व में.

आदित्य को पता भी नही था कि सनडे बीत चुका है और ज़रीना का उसके इंतेज़ार में बुरा हाल है. कोमा में था आदित्य जान नही सकता था ये बात. उसका अस्तित्व दिन दुनिया से बहुत परे था जहा टाइम और दिन नही होता. एक गहरी नींद होती है कोमा जहा कुछ उभर आता है अचानक. जैसे की ज़रीना के लिए जीन्स ले जाने का विचार अचानक ही आ गया. पता नही कैसे.

शायद प्यार में बहुत गहराई से जुड़े थे ज़रीना और आदित्य वरना आदित्य को जीन्स का ख्याल आना मुमकिन नही था. आदित्य मन ही मन मुश्कुरआया, “बहुत चिल्लाई थी तुम उस दिन. पूरी जीन्स कीचड़ के रंग में रंग गयी थी. कितना गुस्सा था तुम्हारे चेहरे पर. ला दूँगा नयी जीन्स. मुझे पता है कि ड्यू है जीन्स मुझ पर.”

“ज़रीना! उठो…आज इतनी देर तक कैसे सो रही हो.” मौसी ने आवाज़ लगाई. खूब दरवाजा पीटा उन्होने. पर ज़रीना का कोई जवाब नही आया.

मौसी की आवाज़ सुन कर उनका बेटा शमीम वाहा आ गया और बोला, “अम्मी क्या हुवा?”

“11 बज गये हैं और ये लड़की उठी नही अभी तक.” मौसी ने कहा.

“सोने दो ना अम्मी तुम हमेसा दूसरो की नींद खराब करती हो.” शमीम ने कहा

“ज़रीना इतनी देर तक कभी नही सोती. कल कुछ ज़्यादा ही परेशान लग रही थी. मुझे तो चिंता हो रही है.”

“क्या हुवा शमीम की अम्मी. इतना हंगामा क्यों मचा रखा है.” शमीम के अब्बा ने पूछा. उनका नाम इक़बाल था.

“ज़रीना दरवाजा नही खोल रही. पता नही क्या बात है.” मौसी ने चिंता जनक शब्दो में कहा.

एमरान किसी काम से घर आया था. वो भी उन लोगो की बाते सुन कर वाहा आ गया और बोला, “खाला क्या बात है. सब ख़ैरियत तो है.”

“पता नही एमरान बेटा. ज़रीना दरवाजा नही खोल रही. 11 बज रहे हैं. मुझे तो चिंता हो रही है. कल बहुत बेचैन सी लग रही थी. बार-बार बाल्कनी के चक्कर लगा रही थी. पता नही क्या बात है. कुछ बताती भी तो नही है. अपने आप में खोई रहती है.”

“गहरी नींद में सोई है शायद.” एमरान भी ज़ोर-ज़ोर से दरवाजा खड़काता है.

पर ज़रीना का कोई जवाब नही आता.

“खाला आप हटिए. दरवाजा तौड देते हैं.” एमरान ने कहा.

“हां एमरान भाई ठीक कहा, तौड देते हैं दरवाजा.” शमीम ने कहा.

“हां बेटा कुछ करो…मुझे तो बहुत डर लग रहा है.” मौसी घबरा रही थी.

एमरान और शमीम दरवाजे को धक्का मारते हैं. दरवाजा 2-3 धक्के मारने पर खुल जाता है.

क्रमशः...............................
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