एक अनोखा बंधन compleet

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Re: एक अनोखा बंधन

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एक अनोखा बंधन--9

गतान्क से आगे.....................

पहले मौसी अंदर आती है क्योंकि जवान लड़की थी कमरे में. मौसी अंदर आकर पाती है कि ज़रीना पाँव सीकोडे पड़ी है. वो उसे हिलाती है पर वो कुछ रेस्पॉंड नही करती. “ये तो बेहोश पड़ी है शायद.”

मौसी बाहर आती है और एमरान से कहती है, “बेटा वो तो बेहोश पड़ी है अंदर. डॉक्टर को बुलाओ जल्दी.”

एमरान फ़ौरन डॉक्टर को लेकर आता है. डॉक्टर ज़रीना को एग्ज़ॅमिन करता है और बोलता है, “सब कुछ नॉर्मल है. शायद किसी सदमें में है. क्या कुछ ऐसा हुवा है इसके साथ जिस से इसके दिल को गहरा झटका लगे.”

“हुवा तो बहुत कुछ है डॉक्टर साहिब अब क्या बतायें. आप कोई दवाई दे दीजिए.” मौसी ने कहा.

“मैं इंजेक्षन दे रहा हूँ. कुछ ही देर में इसे होश आ जाएगा. आप इन्हे खुस रखने की कोशिस करें.” डॉक्टर ने कहा.

डॉक्टर ज़रीना को इंजेक्षन दे कर चला गया. शमीम और उसके अब्बा भी वाहा से चले गये. उन्हे अपने काम के लिए निकलना था. एमरान और मौसी वही बैठ गये दो कुर्सी ले कर.

“कुछ तो है ऐसा जो ये हमसे छुपा रही है.” मौसी ने कहा.

“खाला वक्त लगेगा उसके जख़्मो को भरने में. कुछ वक्त दीजिए उसे.” एमरान ने कहा.

“वक्त तो ठीक है, पर ये हर वक्त खोई-खोई रहती है.”

“खाला आपने ज़रीना से कुछ बात की हमारे बारे में” एमरान ने पूछा.

“की थी बेटा. अभी उसने कुछ बताया नही है पर तुम फिकर ना करो ज़रीना तुम्हारी ही बीवी बनेगी. मैं हूँ ना.”

“खाला अगर ऐसा हो गया तो खुद को ख़ुसनसीब समझूंगा. पहली बार मुझे कोई पसंद आया है.” एमरान ने कहा.

“तुम्हारे बहुत अहसान हैं बेटा. इतना तो तुम्हारे लिए कर ही सकती हूँ. ज़रीना ना नही बोलेगी मुझे यकीन है इस बात का. और तुमसे अछा शोहार नही मिलेगा उसे.”

“खाला हम चाहते हैं कि जितनी जल्दी ये निकाह हो जाए अछा रहेगा. हम ज़रीना को बहुत खुस रखेंगे.” एमरान ने कहा.

“मालूम है बेटा. कोशिस करूँगी कि तुम दोनो का निकाह जल्दी हो जाए. मेरे सर से भी ज़िम्मेदारी का बोझ हटेगा. उमर हो चली है मेरी. जींदगी का क्या भरोसा. जीतनी जल्दी ज़रीना का घर बस जाए अछा है. तुम्हारे हाथ में उसका हाथ दे कर मैं भी निश्चिंत रहूंगी.” मौसी ने कहा.

डॉक्टर के इंजेक्षन के बाद कुछ ही देर में ज़रीना को होश आ गया.

“आदित्य!” ज़रीना चिल्ला कर बोली और बिस्तर पर उठ कर बैठ गयी. तब उसकी मौसी और एमरान वही थे.

एमरान और ज़रीना की मौसी तो हैरान रह गये.

“आदित्य? कौन आदित्य ज़रीना” एमरान ने हैरानी में पूछा.

ज़रीना को होश आया कि वो क्या बोल गयी. “मैं सपना देख रही थी शायद.”

ज़रीना का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा. वो अच्छे से जानती थी कि किसी को भी वाहा आदित्य और उसके बारे में पता चला तो बहुत मुसीबत हो जाएगी. शमीम के अब्बा और शमीम ने खुद सलमा को इश्लीए मार दिया था क्योंकि वो एक हिंदू लड़के से प्यार कर बैठी थी. शमीम की छोटी बहन थी सलमा. ऐसे माहॉल में ज़रीना का डरना लाजमी था. कोई नही था वाहा ऐसा जो कि ज़रीना और आदित्य के रिश्ते को समझता. इश्लीए उसे हर हाल में अपने प्यार को छुपा कर रखना था.

“क्या हुवा था बेटा…पता है तुम बेहोश पड़ी थी यहा. डॉक्टर ने इंजेक्षन दिया तुम्हे तब होश में आई तुम. ऐसी कौन सी बात है अब जो कि तुम्हे अंदर ही अंदर खाए जा रही है. कल बार बार बाल्कनी में घूम रही थी. मैने तुझे रात को भी देखा बाल्कनी में जाते हुवे. पर तुझे टोका नही. कुछ बताओगि अपनी मौसी को ताकि मैं कुछ कर पाव तुम्हारे लिए”

ज़रीना अजीब मुश्किल में पड़ गयी, बोले भी तो क्या बोले. चुप रही बस. अब कैसे कहे कि वो आदित्य को ढूंड रही थी. कुछ और कहने को उसे सूझ नही रहा था. जब दिल प्यार में डूबा हो तो दिमाग़ अक्सर कम चलता है.

“बेटा मैं कुछ पूछ रही हूँ कुछ बताओगि मुझे.” मौसी ने फिर पूछा.

“रहने दीजिए खाला. ज़रीना का जब मन होगा बता देगी.” एमरान ने कहा.

लेकिन कहते हैं कि इश्क़ और मुश्क़ छुपाए नही चूपता. ज़रीना के तकिये के पास आदित्य की चिट्ठी पड़ी थी. मौसी की नज़र पड़ गयी उस चिट्ठी पर. वो आगे बढ़ी और उठा ली वो चिट्ठी. ज़रीना का ध्यान ही नही था इस बात पर कि तकिये के पास चिट्ठी पड़ी है. प्यार में ध्यान व्यान सब गुम हो जाता है शायद. जब उसने मौसी के हाथ में आदित्य की चिट्ठी देखी तो वो चिल्लाई, “मौसी ये मेरी पर्सनल चिट्ठी है. मुझे वापिस दे दो.”

“एमरान बेटा पढ़ना ज़रा इसमे क्या लिखा है. मुझे तो पढ़ना नही आता.” मौसी ने कहा.

“नही एमरान ये मेरी पर्सनल है. कोई नही पढ़ेगा इसे.” ज़रीना ने कहा.

एमरान ने चिट्ठी पकड़ तो ली पर दुविधा में पड़ गया वो कि क्या करे क्या ना करे. मौसी कह रही थी पढ़ो और ज़रीना कह रही थी मत पढ़ो.

“पढ़ो बेटा. शायद ज़रीना की परेशानी का सबब इस चिट्ठी में मिल जाए. ये तो कुछ बताती है नही.”

एमरान ने चिट्ठी हाथ में ली और मन ही मन पढ़नी शुरू की. जब वो चिट्ठी पढ़ कर हटा तो उसके चेहरे पर तनाव था.

“मौसी बाहर आईए बहुत गंभीर बात है.” एमरान ने कहा.

“मेरा खत मुझे वापिस दे दो.” ज़रीना ने भावुक आवाज़ में कहा. वो वैसे ही आदित्य के ना आने से परेशान थी और अब ये नयी मुसीबत आन खड़ी हुई थी.

एमरान ने आदित्य का खत अपनी जेब में डाल लिया और मौसी को साथ लेकर बाहर की ओर चल दिया.

ज़रीना उठी बिस्तर से और चिल्लाई, “मेरा खत है वो कहा ले जा रहे हो. पागल हो क्या तुम. वापिस दो मुझे वो.”

एमरान ने बाहर आकर बाहर से कुण्डी लगा दी दरवाजे की. ज़रीना अंदर से दरवाजा पीट-ती रही. “मेरा खत मुझे वापिस दे दो प्लीज़…….” आँसू आ गये ज़रीना की आँखो में बोलते बोलते.

एमरान पूरा खत पढ़ कर मौसी को सुनाता है.
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“देखा खाला ये कारण है इसकी परेशानी का. इसे अपने अम्मी, अब्बा और बहन के मरने का कोई गम नही है. बल्कि एक काफ़िर के कारण परेशान है ये. वो लेने आने वाला था कल ज़रीना को यहा. तभी ये बाल्कनी में घूम रही थी. हमें तो यकीन ही नही हो रहा. हमें लगा ये अपनो को खोने के कारण गम में है. पर नही ये तो इश्क़ फर्मा रही है वो भी एक फजीर और काफ़िर से.”

“शमीम और उसके अब्बा को पता चला तो सलमा की तरह काट डालेंगे इसे भी. ये लड़की ऐसा करेगी हमने सोचा भी नही था. उन लोगो ने क़त्ले आम किया हमारी क़ौम का और ये उनसे प्यार कर रही है. शरम आनी चाहिए इसे.”

“मौसी मेरा खत मुझे वापिस दे दो. वो मेरी जींदगी है प्लीज़………” ज़रीना ने अंदर से रोते हुवे चिल्ला कर कहा.

“अगर ये आदित्य यहा आया तो हम उसे जींदा नही छोड़ेंगे खाला.” एमरान ने कहा.

“बेटा क्या तुम ये सब जान-ने के बाद भी ज़रीना से शादी करोगे.” मौसी ने पूछा.

“हम शायद मोहब्बत करने लगे हैं ज़रीना से. हम उसी से शादी करेंगे चाहे कुछ हो जाए.” एमरान ने कहा.

“बेटा तुम शादी की तैयारी करो बस अब फिर. ज़्यादा देर करनी ठीक नही है.” मौसी ने कहा.

“मैं तो तैयार हूँ खाला. आप चाहे आज करवा दो शादी.”

“ठीक है बस एक हफ्ते का वक्त दो हमें.”

“ठीक है खाला…आपको किसी भी बात की चिंता करने की ज़रूरत नही है. हम सब इंटेज़ाम कर देंगे.”

“वो तो हम जानते ही हैं.”

ज़रीना सुन रही थी सब कुछ अंदर. इतनी भावुक हो रही थी कि कुछ पूछो मत. कुछ भी नही बोल पा रही थी. गिर गयी रोते-रोते वही ज़मीन पर और बोली, “अब तो आ जाओ आदित्य. या अब भी नही आओगे. प्लीज़…………………………..”

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------------------------एक साल बाद--------------------------

आदित्य ने धीरे से आँखे खोली. कोई नही था आस पास उसके. उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि वो कहा है और क्यों है. कोमा से उठने के बाद अक्सर ऐसा होता है.

“ज़रीना…ज़रीना कहा है? मैं यहा कैसे.” सबसे पहले उसे यही सूझा.

आदित्य अभी गहरी नींद से जागा था. दिमाग़ एक साल तक गहरी नींद में था. वापिस नॉर्मल होने में वक्त तो लगता ही है.

आदित्य उठ कर बैठ गया बिस्तर पर. रघु नाथ पांडे ने देख लिया उसे बैठे हुवे. उनकी ख़ुसी का ठीकाना नही रहा.

“बेटा तुम्हे होश आ गया. अरे सुनती हो आदित्य को होश आ गया.” रघु नाथ पांडे ने अपनी पत्नी को आवाज़ दी. वो भागी भागी आई.

“चाचा जी आप.”

“हां बेटा. हम तुम्हे अपने साथ मुंबई ले आए थे. वाहा गुजरात में हम तुम्हे अकेला नही छोड़ सकते थे.” रघु नाथ पांडे ने कहा.

“मेरा सर बहुत भारी है.” आदित्य ने सर पर हाथ रख कर कहा.

“सर पर भी मारा था उन कमिनो ने. तुम्हे कुछ याद है कौन थे वो.”

आदित्य सोच में पड़ गया. उसे कुछ धुन्द्ला धुन्द्ला याद आ रहा था.

“चलो छोड़ो वो सब. ज़्यादा ज़ोर मत डालो दिमाग़ पर. आ जाएगा सब कुछ याद खुद ही. हम तो उम्मीद छोड़ चुके थे बेटा. तुम्हे आज होश में देख कर जो ख़ुसी मिली है उसे मैं शब्दो में नही कह सकता.” रघु नाथ पांडे ने कहा.

क्रमशः...............................
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Ek Anokha Bandhan--9

gataank se aage.....................

Pahle mausi ander aati hai kyonki jawaan ladki thi kamre mein. Mausi ander aakar paati hai ki zarina paanv seekode padi hai. vo ushe hilaati hai par vo kuch respond nahi karti. “ye to behosh padi hai shaayad.”

Mausi baahar aati hai aur emran se kahti hai, “beta vo to behosh padi hai ander. doctor ko bulaao jaldi.”

Emran fauran doctor ko lekar aata hai. doctor zarina ko examine karta hai aur bolta hai, “sab kuch normal hai. shaayad kishi sadmein mein hai. kya kuch aisa huva hai ishke saath jish se ishke dil ko gahra jhatka lage.”

“huva to bahut kuch hai doctor saahib ab kya bataayein. Aap koyi davaayi de dijiye.” Mausi ne kaha.

“main injection de raha hun. Kuch hi der mein ishe hosh aa jaayega. Aap inhe khus rakhne ki koshis karein.” Doctor ne kaha.

Doctor zarina ko injection de kar chala gaya. shamim aur ushke abba bhi vaha se chale gaye. Unhe apne kaam ke liye nikalna tha. emran aur mausi vahi baith gaye do kursi le kar.

“kuch to hai aisa jo ye hamse chupa rahi hai.” mausi ne kaha.

“khaala vakt lagega ushke jakhmo ko bharne mein. Kuch vakt dijiye ushe.” Emran ne kaha.

“vakt to theek hai, par ye har vakt khoyi-khoyi rahti hai.”

“khaala aapne zarina se kuch baat ki hamaare baare mein” emran ne pucha.

“ki thi beta. Abhi ushne kuch bataaya nahi hai par tum fikar na karo zarina tumhaari hi biwi banegi. Main hun na.”

“khaala agar aisa ho gaya to khud ko khusnasib samjhunga. Pahli baar mujhe koyi pasand aaya hai.” emran ne kaha.

“tumhaare bahut ahsaan hain beta. Itna to tumhaare liye kar hi sakti hun. Zarina na nahi bolegi mujhe yakin hai ish baat ka. Aur tumse acha shohar nahi milega ushe.”

“khaala hum chaahte hain ki jitni jaldi ye nikaah ho jaaye acha rahega. Hum zarina ko bahut khus rakhenge.” Emran ne kaha.

“maalun hai beta. Koshis karungi ki tum dono ka nikaah jaldi ho jaaye. Mere sar se bhi jimmedari ka bojh hatega. Umar ho chali hai meri. Jeendagi ka kya bharosa. Jeetni jaldi zarina ka ghar bas jaaye acha hai. tumhaare haath mein ushka haath de kar main bhi nishchint rahungi.” Mausi ne kaha.

doctor ke injection ke baad kuch hi der mein zarina ko hosh aa gaya.

“aditya!” zarina cheella kar boli aur bistar par uth kar baith gayi. Tab ushki mausi aur emran vahi the.

Emran aur zarina ki mausi to hairaan rah gaye.

“aditya? Kaun aditya zarina” emran ne hairaani mein pucha.

Zarina ko hosh aaya ki vo kya bol gayi. “main sapna dekh rahi thi shaayad.”

Zarina ka dil jor-jor se dhadakne laga. Vo ache se jaanti thi ki kishi ko bhi vaha aditya aur ushke baare mein pata chala to bahut musibat ho jaayegi. Shamim ke abba aur shamim ne khud salma ko ishliye maar diya tha kyonki vo ek hindu ladke se pyar kar baithi thi. shamim ki choti bahan thi salma. aise maahol mein zarina ka darna laajmi tha. koyi nahi tha vaha aisa jo ki zarina aur aditya ke rishte ko samajhta. Ishliye ushe har haal mein apne pyar ko chupa kar rakhna tha.

“kya huva tha beta…pata hai tum behosh padi thi yaha. Doctor ne injection diya tumhe tab hosh mein aayi tum. aisi kaun si baat hai ab jo ki tumhe ander hi ander khaaye ja rahi hai. kal baar baar balcony mein ghum rahi thi. maine tujhe raat ko bhi dekha balcony mein jaate huve. Par tujhe toka nahi. kuch bataaogi apni mausi ko taaki main kuch kar paaaun tumhaare liye”

Zarina ajeeb mushkil mein pad gayi, bole bhi to kya bole. Chup rahi bas. Ab kaise kahe ki vo aditya ko dhund rahi thi. kuch aur kahne ko ushe sujh nahi raha tha. jab dil pyar mein duba ho to deemag aksar kam chalta hai.

“beta main kuch puch rahi hun kuch bataaogi mujhe.” Mausi ne phir pucha.

“rahne dijiye khaala. Zarina ka jab man hoga bata degi.” Emran ne kaha.

Lekin kahte hain ki ishq aur mushq chupaaye nahi chupta. Zarina ke takiye ke paas aditya ki cheethi padi thi. mausi ki nazar pad gayi ush cheethi par. Vo aage badhi aur utha li vo cheethi. Zarina ka dhyaan hi nahi tha ish baat par ki takiye ke paas cheethi padi hai. pyar mein dhyaan vyan sab gum ho jaata hai shaayad. Jab ushne mausi ke haath mein aditya ki cheethi dekhi to vo cheellayi, “mausi ye meri personal cheethi hai. mujhe vaapis de do.”

“emran beta padhna jara ishme kya likha hai. mujhe to padhna nahi aata.” Mausi ne kaha.

“nahi emran ye meri personal hai. koyi nahi padhega ishe.” Zarina ne kaha.

Emran ne cheethi pakad to li par duvidha mein pad gaya vo ki kya kare kya na kare. Mausi kah rahi thi padho aur zarina kah rahi thi mat padho.

“padho beta. Shaayad zarina ki pareshaani ka sabab ish cheethi mein mil jaaye. Ye to kuch bataati hai nahi.”

Emran ne cheethi haath mein li aur man hi man padhni shuru ki. Jab vo cheethi padh kar hata to ushke chehre par tanaav tha.

“mausi baahar aaeeye bahut gambhir baat hai.” emran ne kaha.

“mera khatt mujhe vaapis de do.” Zarina ne bhaavuk awaaj mein kaha. Vo vaise hi aditya ke na aane se pareshaan thi aur ab ye nayi musibat aan khadi huyi thi.

Emran ne aditya ka khatt apni jeb mein daal liya aur mausi ko saath lekar baahar ki aur chal diya.

Zarina uthi bistar se aur cheellayi, “mera khatt hai vo kaha le ja rahe ho. Paagal ho kya tum. vaapis do mujhe vo.”

Emran ne baahar aakar baahar se kundi laga di darvaaje ki. Zarina ander se darvaaja peet-ti rahi. “mera khatt mujhe vaapis de do please…….” Aansu aa gaye zarina ki aankho mein bolte bolte.

Emran pura khatt padh kar mausi ko shunaata hai.

“dekha khaala ye kaaran hai ishki pareshaani ka. Ishe apne ammi, abba aur bahan ke marne ka koyi gam nahi hai. balki ek kafir ke kaaran pareshaan hai ye. vo lene aane wala tha kal zarina ko yaha. Tabhi ye balcony mein ghum rahi thi. hamein to yakin hi nahi ho raha. Hamein laga ye apno ko khone ke kaaran gam mein hai. par nahi ye to ishq farma rahi hai vo bhi ek fajir aur kafir se.”

“shamim aur ushke abba ko pata chala to salma ki tarah kaat daalenge ishe bhi. Ye ladki aisa karegi hamne socha bhi nahi tha. un logo ne katle aam kiya hamaari kaum ka aur ye unse pyar kar rahi hai. sharam aani chaahiye ishe.”

“mausi mera khatt mujhe vaapis de do. Vo meri jeendagi hai please………” zarina ne ander se rote huve cheella kar kaha.

“agar ye aditya yaha aaya to hum ushe jeenda nahi chodenge khaala.” Emran ne kaha.

“beta kya tum ye sab jaan-ne ke baad bhi zarina se shaadi karoge.” Mausi ne pucha.

“hum shaayad mohabbat karne lage hain zarina se. hum ushi se shaadi karenge chaahe kuch ho jaaye.” Emran ne kaha.

“beta tum shaadi ki taiyaari karo bas ab phir. Jyada der karni theek nahi hai.” mausi ne kaha.

“main to taiyaar hun khaala. Aap chaahe aaj karva do shaadi.”

“theek hai bas ek hafte ka vakt do hamein.”

“theek hai khaala…aapko kishi bhi baat ki chinta karne ki jaroorat nahi hai. hum sab intezaam kar denge.”

“vo to hum jaante hi hain.”

Zarina shun rahi thi sab kuch ander. Itni bhaavuk ho rahi thi ki kuch pucho mat. Kuch bhi nahi bol pa rahi thi. gir gayi rote-rote vahi jamin par aur boli, “ab to aa jaao aditya. Ya ab bhi nahi aaoge. please…………………………..”

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------------------------Ek saal baad--------------------------

Aditya ne dheere se aankhe kholi. Koyi nahi tha aas paas ushke. Ushe kuch samajh nahi aa raha tha ki vo kaha hai aur kyon hai. coma se uthne ke baad aksar aisa hota hai.

“zarina…zarina kaha hai? main yaha kaise.” Sabse pahle ushe yahi sujha.

aditya abhi gahri neend se jaaga tha. deemag ek saal tak gahri neend mein tha. vaapis normal hone mein vakt to lagta hi hai.

aditya uth kar baith gaya bistar par. Raghu nath panday ne dekh liya ushe baithe huve. Unki khusi ka theekana nahi raha.

“beta tumhe hosh aa gaya. arey shunti ho aditya ko hosh aa gaya.” raghu nath panday ne apni patni ko awaaj di. vo bhaagi bhaagi aayi.

“chacha ji aap.”

“haan beta. Hum tumhe apne saath mumbai le aaye the. Vaha gujrat mein hum tumhe akela nahi chod sakte the.” Raghu nath panday ne kaha.

“mera sar bahut bhaari hai.” aditya ne sar par haath rakh kar kaha.

“sar par bhi maara tha un kamino ne. tumhe kuch yaad hai kaun the vo.”

Aditya soch mein pad gaya. Ushe kuch dhundla dhundla yaad aa raha tha.

“chalo chodo vo sab. Jyada jor mat daalo deemag par. Aa jaayega sab kuch yaad khud hi. Hum to ummeed chod chuke the beta. Tumhe aaj hosh mein dekh kar jo khusi mili hai ushe main shabdo mein nahi kah sakta.” raghu nath panday ne kaha.

kramashah...............................
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एक अनोखा बंधन--10

गतान्क से आगे.....................

आदित्य को ये ध्यान भी नही था कि वो एक साल बाद होश में आया है. कोमा से उठे व्यक्ति के लिए समय और वक्त का ज्ञान असंभव है. लेकिन आदित्य को इतना ध्यान ज़रूर था कि उसे सनडे को ज़रीना को लेने जाना है. उसे क्या पता था की जिस सनडे को उसे ज़रीना को लेने जाना था वो कब का बीत चुका है और जींदगी एक साल आगे बढ़ चुकी है.

"चाचा जी आज दिन क्या है"

"आज शनिवार है बेटा... क्यों."

"शनिवार... मुझे चलना होगा. मुझे कल हर हाल में देल्ही पहुँचना है." आदित्य धीरे से बड़बड़ाया और उठने की कोशिस करने लगा.

रघु नाथ पांडे समझ नही पाया कि आदित्या ने क्या कहा. उन्होने आदित्य के कंधे पर हाथ रखा और बोले, "बेटा क्या बोल रहे थे तुम. और अभी जल्दबाज़ी मत करो उठने की. एक साल बाद होश आया है तुम्हे. शरीर में जंग लग चुका है.थोड़ा वक्त दो अपने शरीर को."

ये सुनते ही आदित्य भोंचका रह गया. उसका सर घूमने लगा. उसे विश्वास नही हो रहा था अपने कानो पर.

"एक साल बाद होश आया...ये कैसे हो सकता है." आदित्य ये मान-ने के लिए बिल्कुल तैयार नही था.

"हां बेटा तुम कोमा में थे. एक साल बाद उठे हो तुम आज. भगवान का लाख लाख शूकर है कि तुम्हे होश आ गया." रघु नाथ पांडे ने कहा.

आदित्य के दिमाग़ की हालत ऐसी नही थी को वो कुछ भी समझ पाए. उसे तो बस इतना पता था कि आज अगर शनिवार है तो कल उसे ज़रीना को लेने देल्ही जाना है. वो अभी भी बीते कल में जी रहा था. मगर जींदगी उसके चारो और बहुत आगे निकल गयी थी.

आदित्य इतना स्तब्ध था कि कुछ भी नही बोल पाया. उसकी नज़र जब दीवार पर टाँगे कॅलंडर पर गयी तो उसकी आँखे भर आई. 2003 का कॅलंडर था वो.

"चाचा जी कौन सा महीना है."

"20 एप्रिल 2003 है आज बेटा. तुम परेशान मत हो, सब ठीक है. तुम्हारी फॅक्टरी ठीक चल रही है. कोई चिंता की बात नही है."

आदित्य की तो हालत खराब हो गयी. ऐसा लग रहा था जैसे की वो फिर से बेहोश हो जाएगा. "एक साल बीत गया. ज़रीना ने बहुत इंतेज़ार किया होगा मेरा. बहुत रोई होगी मेरे इंतेज़ार में वो. मैं क्यों नही जा पाया...क्यों....हे भगवान क्यों किया ऐसा हमारे साथ." आदित्य चिंता में पड़ गया.

रघु नाथ पांडे नही जानता था कि आदित्य के मन में क्या चल रहा है. आदित्य की हालत वैसे उठने लायक नही थी मगर फिर भी वो उठ गया किशी तरह बिस्तर से और बोला, “चाचा जी मुझे देल्ही जाना है तुरंत.”

प्यार की तड़प और बेचैनी शायद ताक़त भर देती है इंसान के शरीर में. वरना आदित्य नही उठ सकता था.

"क्या बात है बेटा, कुछ बताओ तो सही, तुम बहुत परेशान लग रहे हो."

"मुझे बहुत ही ज़रूरी काम है चाचा जी. मुझे हर हाल में देल्ही जाना है." आदित्य किसी को कुछ नही बताना चाहता था. बात ही कुछ ऐसी थी. वैसे भी अगर वो बताता भी तो शायद ही कोई समझ पाता उसकी बात को.

"आदित्य डॉक्टर को फोन किया है मैने वो आता ही होगा. अगर डॉक्टर सफ़र की इज़ाज़त दे तो तुम बेसक जा सकते हो." रघु नाथ पांडे ने कहा.

"डॉक्टर चाहे कुछ भी कहे मुझे जाना ही होगा." आदित्य ने कहा.

"बेटा ऐसी क्या बात है जो की तुम तुरंत जाना चाहते हो." रघु नाथ ने पूछा.

तभी डॉक्टर आ गया.

"लो डॉक्टर साहिब आ गये." रघु नाथ ने कहा.

"बड़ी ख़ुसी हुई मुझे आपको होश में देख कर मिस्टर आदित्य." डॉक्टर ने कहा.

डॉक्टर आदित्य का चेक उप करने के बाद बोला, "सब कुछ ठीक है अब. चिंता की कोई बात नही है. लेकिन अभी आराम ही कीजिए."

डॉक्टर के जाने के बाद आदित्य ने जाने की बात नही की. उसे पता था कि चाचा जी उसे नही जाने देंगे. मगर उसे हर हाल में देल्ही के लिए निकलना था. वो लेट गया वापिस बिस्तर पर चाचा जी को दीखाने के लिए. शाम घिर आई थी. आदित्य रात को आराम से निकल सकता था. उसने अपना पर्स चेक किया. ज़्यादा पैसे नही थे उसमे. शूकर है एटीम कार्ड था उसमे.

रात को सबके सोने के बाद आदित्य चुपचाप घर से निकल दिया. एक टॅक्सी पकड़ी उसने एरपोर्ट के लिए. रास्ते में उसने एक एटीम से पैसे निकलवाए. एक शोरुम से उसने नये कपड़े भी खरीद लिए, क्योंकि जिन कपड़ो में वो था वो मैले लग रहे थे. ना जाने क्यों उसकी नज़र एक जीन्स पर पड़ी और वो उसने खरीद ली. “ज़रीना को पसंद आएगी ये जीन्स.” शोरुम के ट्राइयल रूम में ही उसने कपड़े चेंज कर लिए. उसने खुद जीन्स ही खरीदी थी और खूब जच रही थी उस पर.

टिकेट आसानी से मिल गयी उसे. सुबह 4 बजे की फ्लाइट थी. आदित्य बोरडिंग पास लेकर सेक्यूरिटी चेक कराने के बाद बैठ गया बोरडिंग के इंतेज़ार में.
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“कैसी होगी मेरी ज़रीना, क्या बीती होगी उस पर उस सनडे को. काश मैं अपने गुस्से को शांत रख पाता तो ये नौबत ना आती. मगर मेरी जगह कोई भी होता तो ऐसा ही करता. मुझे माफ़ करदो ज़रीना, तुम्हारा गुनहगार हूँ मैं. आ रहा हूँ अब तुम्हारे पास. जैसे ही होश आया मुझे मैं निकल पड़ा हूँ तुम्हारे लिए. पता नही किस हाल में हो तुम. तुम ठीक तो हो ना ज़रीना ?” आँखे नम हो गयी आदित्य की ये सब सोच कर.

“अगर मैं कोमा में नही होता तो बिल्कुल आता मैं ज़रीना चाहे पत्तिया बँधी होती चारो और मेरे पर आता ज़रूर.” आदित्य बहुत भावुक हो रहा था.

स्वाभिक भी था. जब प्यार आदित्य और ज़रीना के प्यार जैसा हो तो भावुक हो जाना सावभाविक है.

बोरडिंग की अनाउन्स्मेंट हुई तो आदित्य फ़ौरन उठ गया. ये अहसास कि वो अपनी ज़रीना के पास जा रहा है उसके चेहरे पर रोनक आ गई.

2 घंटे में वो मुंबई से देल्ही पहुँच गया. मगर अभी सुबह के 6 ही बजे थे. “उसी होटेल में चलता हूँ जिसमे ज़रीना के साथ ठहरा था.”

आ गया आदित्य टॅक्सी लेकर उसी होटेल में और रिक्वेस्ट करने पर रूम नो 114 ही मिल गया उसे. सुबह के 7 बज चुके थे. फ्रेश हो कर ब्रेकफास्ट किया उसने. कब 9 बज गये पता ही नही चला. रूम से चेक आउट नही किया उसने. “एक बार यही वापिस आ कर उस दिन की लड़ाई को याद करेंगे. कितने तडपे थे हम दोनो एक दूसरे से लड़ कर.”

चल दिया आदित्य ज़रीना से मिलने की उम्मीद दिल में लेकर उसकी मौसी के घर की ओर. दिल में एक अजीब सी तड़प और बेचैनी थी उसके जिसे सब्दो में नही कहा जा सकता. प्यार करने वाले इस तड़प को बखूबी समझ सकते हैं.

आदित्य को याद था अड्रेस ज़रीना की मौसी का. ठीक 10:30 पर वो ज़रीना की मौसी के घर के बाहर था. दरवाजा खड़काया उसने. मौसी ने दरवाजा खोला.

“किस से मिलना है आपको.” मौसी ने कहा.

“मुझे ज़रीना से मिलना है, प्लीज़ बुला दीजिए उसे.”

मौसी तो हैरान रह गयी ये सुन कर, “क्या तुम आदित्य हो?”

“जी हां मैं आदित्य हूँ.”

मौसी के चेहरे पर डर के भाव उभर आए. उन्होने बाहर दायें..बायें झाँक कर देखा और आदित्य को अंदर खींच लिया.

“किसी और से तो ज़रीना के बारे में नही पूछा तुमने.”

“नही मैं सीधा यहीं आया हूँ.” आदित्य ने हैरानी में कहा.

“कितने दिनो बाद आए हो. कैसी मोहबत थी तुम्हारे दिल में ज़रीना के लिए. बहुत तड़पती थी वो तुम्हारे लिए और तुम आज आए हो, एक साल बाद.”

“ज़रीना कहा है, उशे बुला दीजिए प्लीज़.” आदित्य गिड़गिडया

मौसी कुछ बोलने की बजाए खुद फूट-फूट कर रोने लगी. “वही तो पता नही चल रहा कि कहा है मेरी बच्ची.”

“आप ये क्या कह रही हैं.”

“सच कह रही हूँ बेटा, कुछ नही पता कि वो कहा है, कैसी है, किस हाल में है.”

आदित्य तो सुन ही नही सका ये सब. बहुत बेचैन हो गया वो और बोला, “ये सब कैसे हुवा, क्या आप बताएँगी.”

“पहले तुम ये बताओ कि तुम्हे आज अचानक याद कैसे आ गयी ज़रीना की. चिट्ठी में तो तुमने उसे ले जाने को लिखा था. सारा दिन वो बाल्कनी में आ-आ कर पागलो की तरह तुम्हे ढूंड रही थी. क्यों किया तुमने ऐसा मेरी बच्ची के साथ.”

“मैं कोमा में था, नही आ सकता था..अगर होश होता मुझे तो कोई ताक़त मुझे नही रोक सकती थी यहा आने से.” आदित्य मौसी को पूरी बात सुनाता है.

“अल्लाह रहम करे तुम दोनो की महोब्बत पर. मैं तो समझ ही नही पाई थी शुरू में तुम दोनो के प्यार को. ज़बरदस्ती शादी करवा रही थी ज़रीना की एमरान से.”

“एमरान…कौन एमरान.” आदित्य ने हैरानी में पूछा.

“एमरान एक ऐसा बाहरूपिया है जिसे समझने में मैने बहुत बड़ी भूल की थी. सुनो तुम्हे सब बताती हूँ तभी तुम पूरी बात समझ पाओगे.”

“तुम्हारे बारे में पता चलने के बाद, मैने तो ज़रीना को एक कमरे में बंद कर दिया था. एक हफ्ते के अंदर शादी कर देना चाहती थी ज़रीना की एमरान के साथ. ज़रीना बहुत दरखास्त करती थी मुझसे की मेरी बात सुन लो एक बार. पर मैने उसकी एक नही सुनी. पर एक रात जब मैं उसे खाना देने गयी तो वो फूट-फूट कर रोने लगी और सुबक्ते हुवे बोली, “मौसी थोड़ा सा ज़हर दे दो मुझे. मैं जीना नही चाहती. मैं आदित्य से बहुत प्यार करती हूँ. मैं उसके सिवा किसी और से शादी नही कर सकती. मेरा शरीर और मेरी रूह आदित्य की है मौसी. अगर मेरे साथ ज़बरदस्ती की गयी तो मैं जान दे दूँगी अपनी. पर मैं किसी भी हालत में एमरान शी शादी नही करूँगी. ऐसा होने से पहले मैं अपनी जान दे दूँगी.”

मेरा तो दिल बैठ गया ये सब सुन कर. मैने दरवाजा खोला और ज़रीना के पास आकर उस से पूछा, “आख़िर क्या कारण है की तुम उस काफ़िर के लिए अपनी जान भी देने को तैयार हो.”

“प्यार करती हूँ मैं आदित्य से. वो भी मुझे बहुत प्यार करता है. उसके कारण ही जींदा हूँ मैं वरना मर जाती कब की. उसी ने मुझे दंगो से बचाया और उसी ने मुझे जीने की चाह दी. वरना मैं कब की खुद को ख़तम कर चुकी होती.” ज़रीना ने सुबक्ते हुवे पूरी कहानी सुनाई मुझे

मैने कहा, “हाई रब्बा कितना बड़ा गुनाह करने जा रहे थे हम. मेरी बच्ची मुझे माफ़ कर्दे. नही होगी तुम्हारी शादी एमरान से. लेकिन ये बात अपने तक ही रखना. शमीम और उसके अब्बा को भनक भी नही लगनी चाहिए इस सब की.”

“मौसी मेरा वो खत मुझे वापिस दिलवा दो.”

“दिलवा दूँगी….एमरान अछा लड़का है वो दे देगा चुपचाप वो खत. पर एक बात बताओ तुम्हारा आदित्य तो आया नही तुम्हे लेने. उसे तो आना चाहिए था अगर इतनी महोब्बत थी तुमसे.”

“ज़रूर कोई बात रही होगी मौसी वरना आदित्य ज़रूर आता. बहुत प्यार करता है वो मुझे. मुझे जाने दो मौसी. अगर वो नही आ पाया तो मैं चली जाती हूँ. मैं नही रह सकती उसके बिना” ज़रीना रोने लगी थी ये बोलते हुवे

मुझे वो बिल्कुल दीवानी लग रही थी. मैने कहा, “तुम कैसे जाओगी अकेले और मैं साथ चल नही सकती. क्या करूँ.”

“मैं चली जाउन्गि मौसी…मुझे जाने दो…यहा मैं और रही तो घुट-घुट कर मर जाउन्गि.”

“टिकेट भी तो करवाना पड़ेगा. मैं करती हूँ कुछ. कल या परसो का टिकेट करवा देती हूँ. तुम चिंता मत करो. खाना खाओ चुपचाप मैं टिकेट का इंटेज़ाम करती हूँ.”

क्रमशः...............................
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