खेल खेल में

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rajaarkey
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खेल खेल में

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खेल खेल में


शिखा के पास उस समय नीरज भी खड़ा था जब अनिता ने उस से कहा, ‘‘मैं ने तुम्हारी मम्मी को फोन कर के उन से इजाजत ले ली है.’’
‘‘किस बात की?’’ शिखा ने चौंक कर पूछा.
‘‘आज रात तुम मेरे घर पर रुकोगी.
कल रविवार की शाम मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आऊंगी.’’
‘‘कोई खास मौका है क्या?’’
‘‘नहीं. बस, बहुत दिनों से किसी के साथ दिल की बातें शेयर नहीं की हैं. तुम्हारे साथ जी भर कर गपशप कर लूंगी, तो मन हलका हो जाएगा. मैं लंच के बाद चली जाऊंगी. तुम शाम को सीधे मेरे घर आ जाना.’’
नीरज ने वार्त्तालाप में हिस्सा लेते हुए कहा, ‘‘अनिता, मैं शिखा को छोड़ दूंगा.’’
‘‘इस बातूनी के चक्कर में फंस कर ज्यादा लेट मत हो जाना,’’ कह कर अनिता अपनी सीट पर चली गई.
औफिस के बंद होने पर शिखा नीरज के साथ उस की मोटरसाइकिल पर अनिता के घर जाने को निकली.
‘‘कल 11 बजे पक्का आ जाना,’’ नीरज ने शिखा को अनिता के घर के बाहर उतारते
हुए कहा.
‘‘ओके,’’ शिखा ने मुसकरा कहा.
अनिता रसोई में व्यस्त थी. शिखा उन किशोर बच्चों राहुल और रिचा के साथ गपशप करने लगी. अनिता के पति दिनेश साहब घर पर उपस्थित नहीं थे. अनिता उसे बाजार ले गई. वहां एक रेडीमेड कपड़ों की दुकान में घुस गई. अनिता और दुकान का मालिक एकदूसरे को नाम ले कर संबोधित कर रहे थे. इस से शिखा ने अंदाजा लगाया कि दोनों पुराने परिचित हैं.
‘‘दीपक, अपनी इस सहेली को मुझे एक बढि़या टीशर्ट गिफ्ट करनी है. टौप क्वालिटी की जल्दी से दिखा दो,’’ अनिता ने मुसकराते हुए दुकान के मालिक को अपनी इच्छा बताई.
शिखा गिफ्ट नहीं लेना चाहती थी, पर अनिता ने उस की एक न सुनी. दीपक खुद अनिता को टीशर्ट पसंद कराने के काम में दिलचस्पी ले रहा था. अंतत: उन्होंने एक लाल रंग की टीशर्ट पसंद कर ली.
शिखा के लिए टीशर्ट के अलावा अनिता ने रिचा और राहुल के लिए भी कपड़े खरीदे फिर पति के लिए नीले रंग की कमीज खरीदी.
दुकान से बाहर आते हुए शिखा ने मुड़ कर देखा तो पाया कि दीपक टकटकी बांधे उन दोनों को उदास भाव से देख रहा है. शिखा ने अनिता को छेड़ा, ‘‘मुझे तो दाल में काला नजर आया है, मैडम. क्या यह दीपक साहब आप के कभी प्रेमी रहे हैं?’’
‘‘प्रेमी नहीं, कभी अच्छे दोस्त थे... मेरे भी और मेरे पति के भी. इस विषय पर कभी बाद में विस्तार से बताऊंगी. पतिदेव घर पहुंच चुके होंगे.’’
‘‘अच्छा, यह तो बता दीजिए कि आज क्या खास दिन है?’’
‘‘घर पहुंच कर बताऊंगी,’’ कह कर अनिता ने रिकशा किया और घर आ गईं.

वे घर पहुंचीं तो दिनेश साहब उन्हें ड्राइंगरूम में बैठे मिले. शिखा को देख कर उन के होंठों पर उभरी मुसकान अनिता के हाथ में लिफाफों को देख फौरन गायब हो गई.
‘‘तुम दीपक की दुकान में क्यों घुसीं?’’ कह कर उन्होंने अनिता को आग्नेय दृष्टि से देखा.
‘‘मैं शिखा को अच्छी टीशर्ट खरीदवाना चाहती थी. दीपक की दुकान पर सब से
अच्छा सामान...’’
‘‘मेरे मना करने के बावजूद तुम्हारी हिम्मत कैसे हो गई उस की दुकान में कदम रखने की?’’ पति गुस्से से दहाड़े.
‘‘मुझ से गलती हो गई,’’ अनिता ने मुसकराते हुए अपने हाथ जोड़ दिए, ‘‘आज के दिन तो आप गुस्सा न करो.’’
‘‘आज का दिन मेरी जिंदगी का सब से मनहूस दिन है,’’ कह कर गुस्से से भरे दिनेशजी अपने कमरे में चले गए.
‘‘मैडम, जब आप को मना किया गया था तो आप क्यों गईं दीपक की दुकान पर?’’
आंखों में आंसू भर कर अनिता ने उदास लहजे में जवाब दिया, ‘‘आज मैं तुम्हें 10 साल पुरानी घटना बताती हूं जिस ने मेरे विवाहित जीवन की सुखशांति को नष्ट कर डाला. मैं कुसूरवार न होते हुए भी सजा भुगत रही हूं, शिखा.
‘‘दीपक का घर पास में ही है. खूब आनाजाना था हमारा एकदूसरे के यहां. दिनेश साहब जब टूर पर होते, तब मैं अकसर उन के यहां चली जाती थी.
‘‘दीपक मेरे साथ हंसीमजाक कर लेता था. इस का न कभी दिनेश साहब ने बुरा माना, न दीपक की पत्नी ने, क्योंकि हमारे मन में खोट नहीं था.
‘‘एक शाम जब मैं दीपक के घर पहुंची, तो वह घर में अकेला था. पत्नी अपने दोनों बच्चों को ले कर पड़ोसी के यहां जन्मदिन समारोह में शामिल होने गई थी.’’
अपने गालों पर ढलक आए आंसुओं को पोंछने के बाद अनिता ने आगे बताया, ‘‘दीपक अकेले में मजाक करते हुए कभीकभी रोमांटिक हो जाता था. मैं सारी बात को खेल की तरह से लेती क्योंकि मेरे मन में रत्ती भर खोट नहीं था.
‘‘दीपक ने भी कभी सभ्यता और शालीनता की सीमाओं को नहीं तोड़ा था.
‘‘दिनेश साहब टूर पर गए हुए थे. उन्हें अगले दिन लौटना था, पर वे 1 दिन पहले
लौट आए.
‘‘मेरी सास ने जानकारी दी कि मैं दीपक के घर गई हूं. वह तो सारा दिन वहीं पड़ी रहती है. ऐसी झूठी बात कह कर उन्होंने दिनेश साहब के मन में हम दोनों के प्रति शक का बीज बो दिया.
‘‘उस शाम दीपक मुझे पियक्कड़ों की बरात की घटनाएं सुना कर खूब हंसा रहा था. फिर अचानक उस ने मेरी प्रशंसा करनी शुरू कर दी. वह पहले भी ऐसा कर देता था, पर उस शाम खिड़की के पास खड़े दिनेश साहब ने सारी बातें सुन लीं.
‘‘उस शाम से उन्होंने मुझे चरित्रहीन मान लिया और दीपक से सारे संबंध तोड़ लिए. और... और... मैं अपने माथे पर लगे उस झूठे कलंक के धब्बे को आज तक धो नहीं पाई हूं, शिखा.’’
‘‘यह तो गलत बात है, मैडम. दिनेश साहब को आप की बात सुन कर अपने मन से गलतफहमी निकाल देनी चाहिए थी,’’ शिखा ने हमदर्दी जताई.
‘‘वे मुझे माफ करने को तैयार नहीं हैं. वे मेरे बड़े हो रहे बच्चों के सामने कभी भी मुझे चरित्रहीन होने का ताना दे कर बुरी तरह शर्मिंदा कर देते हैं.’’
‘‘यह तो उन की बहुत गलत बात है, मैडम.’’
‘‘मैं खुद को कोसती हूं शिखा कि मुझे खेलखेल में भी दीपक को बढ़ावा नहीं देना चाहिए था. मेरी उस भूल ने मुझे सदा के लिए अपने पति की नजरों से गिरा दिया है.’’
‘‘जब आप को पता था कि दिनेश साहब बहुत गुस्सा होंगे, तब आप दीपक की दुकान पर क्यों गईं?’’
शिखा के इस सवाल के जवाब में अनिता खामोश रह उस की आंखों में अर्थपूर्ण अंदाज में झांकने लगी.
कुछ पल खामोश रहने के बाद शिखा सोचपूर्ण लहजे में बोली, ‘‘मुझे दिनेश साहब का गुस्सा... उन की नफरत दिखाने के लिए आप जानबूझ कर दीपक की दुकान से खरीदारी कर के लाई हैं न? मेरी आंखें खोलने के लिए आप ने यह सब किया है न?’’
‘‘हां, शिखा,’’ अनिता ने झुक कर शिखा का माथा चूम लिया, ‘‘मैं नहीं चाहती कि तुम नीरज के साथ प्रेम का खतरनाक खेल खेलते हुए मेरी तरह अपने पति की नजरों में हमेशा के लिए गिर जाओ.’’
‘‘मेरे मन में उस के प्रति कोई गलत भाव नहीं है, मैडम.’’
‘‘मैं भी दीपक के लिए ऐसा ही सोचती थी. देखो, तुम्हारा पति भी दिनेश साहब की तरह गलतफहमी का शिकार हो सकता है. तब खेलखेल में तुम भी अपने विवाहित जीवन की खुशियां खो बैठोगी.
‘‘तुम अपने पति से नाराज हो कर मायके में रह रही हो. यों दूर रहने के कारण पति के मन में पत्नी के चरित्र के प्रति शक ज्यादा आसानी से जड़ पकड़ लेता है. पति के प्यार का खतरा उठाने से बेहतर है ससुराल वालों की जलीकटी बातें और गलत व्यवहार सहना. तुम फौरन अपने पति के पास लौट जाओ, शिखा,’’ अत्यधिक भावुक हो जाने से अनिता का गला रुंध गया.
‘‘मैं लौट जाऊंगी,’’ शिखा ने दृढ़ स्वर में अपना फैसला सुनाया.
‘‘तुम्हारा कल नीरज से मिलने का कार्यक्रम है...’’
‘‘हां.’’
‘‘उस का क्या करोगी?’’
शिखा ने पर्स में से अपना मोबाइल निकाल कर उसे बंद कर कहा, ‘‘आज से यह खतरनाक खेल बिलकुल बंद. उस की झूठीसच्ची प्रशंसा अब मुझे गुमराह नहीं कर पाएगी.’’
‘‘मुझे बहुत खुशी है कि जो मैं तुम्हें समझाना चाहती थी, वह तुम ने समझ लिया,’’ अपनी उदासी को छिपा कर अनिता मुसकरा उठी.
‘‘मुझे समझाने के चक्कर में आप तो परेशानी में फंस गईं?’’ शिखा अफसोस से भर उठी.
‘‘लेकिन तुम तो बच गईं. चलो, खाना खाएं.’’
‘‘आप को शादी की सालगिरह की शुभकामनाएं और कामना करती हूं कि दिनेश साहब की गलतफहमी जल्दी दूर हो और आप उन का प्यार फिर से पा जाएं.’’
‘‘थैंक यू,’’ शिखा की नजरों से अपनी आंखों में भर आए आंसुओं को छिपाने के लिए अनिता रसोई की तरफ चल दी.
शिखा का मन उन के प्रति गहरे धन्यवाद व सहानुभूति के भाव से भर उठा था.
(¨`·.·´¨) Always
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`·.¸.·´ -- Raj sharma
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