कुछ अटपटा सा

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Kamini
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कुछ अटपटा सा

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कुछ अटपटा सा


आनन्द कुमार


सुबह का समय था, नन्हे भैया की विदाई की तैयारियाँ हो रही थीं। रिक्शे बाहर खड़े थे, और उनका परिवार अपने सामान के साथ दालान में आ चुका था। नन्हे भैया का बेटा जल्दी चलने की ज़िद कर रहा था – उसे अपने दोस्तों के साथ पिकनिक पर जाना था। सुभद्रा, अपने पति शैलेन्द्र को आवाज़ देकर आईं। जब वह वापस पहुँचीं तो नन्हे भैया नदारद थे। परिवार में खलबली मच गई।
“जाओ ढूँढो पापा कहाँ गये।”
“पापा भी ऐन वक़्त पर ना जाने कहाँ गायब हो जाते हैं।”
“मम्मी, हमें पापा को छोड़ कर चल देना चाहिये, वो पीछे से आते रहेंगे।”
इसी बीच सुभद्रा का बेटा अँकुर अपनी नई नवेली दुल्हन के साथ वहाँ पर आया। सुभद्रा ने अँकुर से कहा “बेटा, अपने नन्हे मामा को देख कर आओ, कहीं तुम्हारे पापा के पास तो नहीं बैठे हैं। अपने पापा को भी बुला कर लाओ, इन लोगों को देर हो रही है।”
पिछले एक हफ़्ते से घर मेहमानों से खचाखच भरा हुआ था। सुभद्रा और शैलेन्द्र के बेटे अँकुर की शादी दो दिन पहले हुई थी और अब एक एक कर के मेहमान विदा हो रहे थे। लखनऊ के अमीनाबाद इलाके के मॉडल हाउस मुहल्ले में सुभद्रा और शैलेन्द्र अपने पुश्तैनी मकान में रहते थे।
दस पाँच मिनट तक पूरे घर में ढुँढाई होती रही। उसके बाद मुस्कुराते हुये नन्हे भैया आँगन में दाखिल हुये। सब के सवालों के जवाब में उसी तरह मुस्कुराते हुये बोले “अरे इस सब में देर तो लगनी ही थी, कुछ जानने वाले मिल गये, हम उनके साथ चाय पीने निकल गये थे। अभी अभी तो गये थे. और तुम लोग तो ऐसे हल्ला मचा रही हो, कि जैसे कल से गायब हों।”
शैलेन्द्र फिर भी नहीं पहुँचे थे। सुभद्रा ने झुँझलाते हुये अँकुर से कहा “जाकर अपने पापा को बिस्तर से उठा कर लाओ, इतने बड़े हो गये हैं, फिर भी तहज़ीब और व्यवहार का ज़रा भी खयाल नहीं। पता नहीं कब सीखेंगे।”
अँकुर का चेहरा बुझा बुझा, लौट कर काँपती आवाज़ में बोला “पापा तो जवाब ही नहीं दे रहे हैं, और ना ही हिल डुल रहें हैं”।
सुभद्रा शैलेन्द्र के कमरे में झट पहुँचीं और शैलेन्द्र को हवा करने लगीं। घबराये अँकुर ने तुरन्त शैलेन्द्र के डॉक्टर दोस्त गोविन्द को बुलाया। पूरे घर में सन्नाटा छा गया। गोविन्द जल्दी ही घर पहुँचे। गोविन्द ने शैलेन्द्र की नब्ज़ देखी तो वह गायब थी। वह तुरन्त शैलेन्द्र को अस्पताल लेकर गये। अस्पताल में डॉक्टरों ने उन्हें heart failure से मृत घोषित किया।
एक झटके में घर की ख़ुशियाँ मातम में बदल गईं। क्या घरवाले और क्या रिश्तेदार, पड़ोसी और दोस्त, सब स्तब्ध “यह कैसे हो सकता है कि कल तक हँसता, काम करता इन्सान, सुबह मरा पाया जाये?” बड़े बूढ़ों ने घरवालों को हिदायत दी – सतर्क रहो, सावधान रहो। क्या छोटे क्या बड़े, सभी सहमे सहमे।
दो दिन पहले तेरहवीं हुई थी। सुबह का समय था। सुभद्रा अपनी बहू के साथ चौके में कुछ काम कर रही थीं। तभी घबराई हुई उनकी नौकरानी आँगन में दाखिल हुई।
“अरे भाभी जी तुमका का बताई। हम एक बड़ी भारी बात बाहर सुनि कर आए रहे हँ। बिल्कुल जिउरा घबराए गा है।” चेहरा लाल और साँसें तेज़।
“अरे, बताओ भी क्या बात है, कि बात का ही बखान करोगी।”
“हमका थोड़ा साँस लै लेए देओ। बताइत हई।”
थोड़ी देर के बाद बोली।
“हमरे आगै दुई लड़िका आपस में बतियात जात रहैं। एक हँस कर यऊ घर की तरफ़ हाथ करिकै बौला – यऊ बुढ्ढा तौ बड़ी जल्दी टैं हुई गा। अच्छन गुरू कहत रहै कि उनका उम्मीद नहीं रही कै अत्ती जल्दी और आसानी से चला जाई। भाभी जी अच्छन यऊ इलाके का बड़ा गुंडा अहै। हमका डर लागत है कि कहीं भैया कौ कोऊ मार ना दिये होये।”
सुभद्रा अचानक काम रोक कर चुप हो गईं। घर में सन्नाटा छा गया।
“नहीं, नहीं, यह नहीं हो सकता”, काँपती आवाज़ में बोलीं “डॉक्टरों ने हार्ट अटैक बताया था और वही हुआ होगा”। सुभद्रा का चेहरा लाल और साँसें तेज़ “हे भगवान बजरंग बली, रक्षा करो, रक्षा करो”।
सुभद्रा ने यह बात किसी को नहीं बताई। बस, गोविन्द, को घर पर बुलाया। शाम को सब लोग ड्रॉइंग रूम में बैठे। ड्रॉइंग रूम का एक दरवाज़ा बाहर सड़क पर खुलता था और दूसरा घर के आँगन में। ज़रूरत पड़ने पर शैलेन्द्र इस कमरे में सो जाते थे। अपनी मौत की रात भी वो इसी कमरे में सोये थे।
बात शुरू करने से पहले सुभद्रा ने दबे पाँव बाहर और अन्दर देखा कि कोई है तो नहीं। फिर दबी आवाज़ में अटकते अटकते सुबह वाली बात बताना शुरू की। उनकी आँखें खतरे को टटोलते हुये बार बार बाहर के दरवाज़े और खिड़की की तरफ़ जातीं। इसी बीच घर के आँगन का दरवाज़ा खटका। सुभद्रा चौंक कर एकदम चुप हो गईं। आँगन के दरवाज़े से एक माँ बेटी कमरे में आये। दोनों ने सुभद्रा के पैर छुए पर सुभद्रा ने आशीर्वाद या स्वागत में कुछ भी नहीं कहा। अँकुर ने एक दूसरे का परिचय कराया। माँ, उसकी चाची थीं, और पड़ोस में रहती थीं, और साथ में उनकी बेटी ममता थी। ममता के पापा शैलेन्द्र के चचेरे भाई थे, और दो साल पहले उनकी मौत हो गई थी। इस बीच सुभद्रा उठीं और आँगन के मुख्य दरवाज़े को अन्दर से बन्द कर के आईं। गोविन्द के कहने पर सुभद्रा ने सुबह वाली बात दबी ज़ुबान में रुक रुक कर पूरी की। उनकी निगाहें लगातार बाहर की खिड़की और दरवाज़े की तरफ़ जाती रहीं। काफ़ी देर तक कोई कुछ नहीं बोला।
अँकुर ने बाहर के दरवाज़े को खोल कर देखा। आश्वस्त होकर दबी आवाज़ में बोला “हाँ हमको भी एक बड़ी अटपटी चीज़ उस दिन इस कमरे में मिली थी। जब हम लोग पापा को अस्पताल ले जा रहे थे, तब हमें इस्तेमाल किया हुआ एक गमछा मिला था यहाँ। उस समय हमने ध्यान नहीं दिया था। शादी के काम के सिलसिले में बहुत कारीगर, ठेकेदार, वगैरह मिलने आते थे। हमने सोचा था कि उनमें से ही किसी का होगा।”
“अब चूँकि यह बात निकली है, तो हम भी अपने मन की बात कह रहे हैं”, दबी आवाज़ में गोविन्द बोले। “शैलेन्द्र की मौत हमें भी बेइन्तेहा अटपटी लगी थी। दो दिन पहले हमारे पास आया था खाँसी की शिकायत लेकर, और हमने उसकी जाँच की थी। कहीं भी कुछ भी ऐसा नहीं था कि उसको इतनी जल्दी इतना घातक हार्ट अटैक होगा।”
“पापा जिस बैग में पैसे रखते थे, छोटा से Adidas का था, वो भी नहीं मिल रहा है। हमने तब सोचा था कि उस समय की अफ़रा तफ़री में किसी ने हाथ साफ़ कर दिया होगा। पर अब यह सब अटपटा सा लग रहा है।”
“यह सब बातें जिस तरफ़ इशारा कर रही हैं, वो सही नहीं है। उसके बारे में सोचने में भी डर लगता है।”
“नहीं . . . । ऐसा नहीं हो सकता। इतने अच्छे आदमी के साथ कोई ऐसी हरकत क्यों करेगा?” सिसकते हुये सुभद्रा बोलीं और रोने लगीं।
बाहर खट की आवाज़ हुई। सब अपनी अपनी जगहों में जड़ बैठे रहे। फिर अँकुर धीमे से उठा और दबे कदमों से खिड़की तक गया। कोई नहीं दिखा तो बाहर के दरवाज़ा को सावधानी से खोल कर बाहर देखा। दूर एक आदमी जाता दिखा।
काफ़ी देर तक सन्नाटा रहा।
“वैसे यह तो बस शक है, और बिल्कुल बेबुनियाद हो, इसकी सम्भावना ज़्यादा है। ना गोली लगी, ना चाकू लगा, अगर हत्या हुई तो कैसे हुई? नामुमकिन ही लगती है।” . . . । “पर अगर किसी ने दुश्मनी पाली है, तो वो और नुकसान कर सकता है।”
“हमने Epic चैनल पर अँग्रेजों के समय में ठगी करने वाले लुटेरों के उपर एक एपिसोड देखा था”, ममता ने बात शुरू की। “ठग अपने शिकारों से दोस्ती कर लेते और फिर रेशमी रुमाल में एक चाँदी के सिक्के को फँसा कर उसे अपने शिकार के गले पर कस देते। सिक्का टेंटुए पर फँस जाता, और उसके कसने से दम घुट कर मौत हो जाती थी।”
“अरे हाँ, उस दिन इस कमरे में सफ़ाई करते समय, एक नीला सिल्क का स्कार्फ़ मिला था”, ममता की मम्मी बोलीं।
“अरे हटो, क्या बेवकूफ़ी की बात कर रही हो। एक बात सुनी और झट तुमने उसका नाता जोड़ दिया”, सुभद्रा ने झिड़कते हुये कहा।”किसी बच्चे का रहा होगा।” गुस्से में सुभद्रा उठीं और अन्दर घर में चली गईं।
कुछ देर बाद ममता धीरे से बोली “हो सकता है, उस रात जब चाचा यहाँ पर सोने आये, उसके बाद कोई जानने वाला उनसे मिलने आया। साथ में एक दूसरा इन्सान भी था। चाचा ने उनको अन्दर बैठाया। उन्होंने चाचा को अँकुर भैया की शादी की बधाई दी, और चाचा ने उनको नाश्ता कराया। फिर वो लोग चाचा से कुछ बातें करते रहे। उन्होंने चाचा से कुछ माँगा। चाचा सामान लेने के लिये उठे। वो दोनों भी साथ उठे। एक ने चाचा के मुँह में रुमाल भर कर हाथ से बन्द कर दिया। जबकि दूसरे ने झट से अपने गमछे को चाचा के गले के ऊपर कस कर चाचा का गला घोंट दिया। फिर दोनों ने चाचा के निर्जीव शरीर को दीवान पर लेटा दिया, चद्दर ओढ़ा दी, बिजली बन्द कर दी, और धीरे से दरवाज़ा उढ़का कर बाहर चले गये। साथ में चाचा का Adidas का बैग भी लेते गये – शायद उनमें से किसी को बैग पसन्द आ गया हो। जाने की हड़बड़ी में वो अपना गमछा यहाँ पर ही भूल गये।”ममता ने चमकती आँखों से गोविन्द की ओर देखा, जैसे गोविन्द उसकी इस बुद्धिमानी पर उसे शाबाशी देंगे।
एक स्तब्ध शान्ति।
“लगता है तुम CID सीरियल बहुत देखती हो”, चुप्पी तोड़ते हुये अँकुर बोला।
“नहीं भैया, अगर हत्या हुई है, तो ऐसे ही हुई होगी।”
“पर अभी तो यह भी नहीं मालूम कि हत्या हुई भी है कि नहीं। पर अगर हुई है, तो सोच कर बड़ा क्रोध आता है कि हत्यारे कितनी आसानी से बच कर निकल गये और बाहर आराम से घूम रहे हैं।”
“और हम यहाँ पर डरे सहमे बैठे हैं।”
“बात तो ठीक है”, गम्भीर आवाज़ में गोविन्द बोले। “पर हम लोग उल्टी राह चल रहे हैं। हमारे पास कोई सबूत नहीं है। सोचना यह है कि शैलेन्द्र की हत्या कोई करेगा क्यों? कोई बहुत तगड़ी दुश्मनी होगी तभी। अँकुर सोच कर बताओ, कि कौन हो सकता है, जो शैलेन्द्र से ऐसी दुश्मनी रखता हो?”
ममता मुग्ध होकर गोविन्द को बोलते हुये देखती रही।
“और तो कोई नहीं, बस एक मंगत राम समझ में आ रहा है”, काफ़ी देर सोचने के बाद अँकुर बोला। “हम लोगों की अमीनाबाद में रेडिमेड कपड़ों की दुकान है, और मंगत राम रेडिमेड कपड़े बनाते है। कुछ छह सात महीने पहले की बात है। पापा का उनके साथ दो लाख के एक कन्साइनमेंट को लेकर झगड़ा हो गया था। कन्साइनमेंट रिजेक्ट हुआ था और उस बारे में ही कुछ कहा सुनी हो गई थी। पापा ने हमको इस बारे में कुछ बताया नहीं, और हमने भी इस बारे में कुछ पूछा नहीं। बस इतना ही मालूम है।”
“लगता तो नहीं कि दो लाख के पीछे कोई हत्या करेगा। पर लोगों का कोई भरोसा नहीं होता – पता नहीं किस समय क्या जुनून सवार हो जाये। तुम सब लोग सावधान रहो और चुप रहो। यह सब बातें यहाँ पर ही रहें – याद रहे इस घर के सभी लोग खतरे में हैं।…। और हाँ, मंगत राम के बारे में और जानकारी इकट्ठा करो।”
“हमारी एक दोस्त उनके मुहल्ले में रहती है। उससे कुछ पता करेंगे”, चमकती आँखों से गोविन्द कि तरफ़ देखती हुई ममता बोली।
“चलो अच्छा है, कुछ शुरुआत हो रही है। जितनी जल्दी यह गुत्थी सुलझे उतनी जल्दी मन को शान्ति। पर ध्यान रहे, जो भी जानकारी ली जाये, वो घुमा फिरा कर। यह बात कि हम लोग शैलेन्द्र की मौत पर शक कर रहे हैं, इस कमरे से बाहर ना जाये।”
मंगत राम के बारे में पता चला कि वह कुछ झक्की था – अगर किसी बात पर अड़ गया तो अड़ गया – उससे हटता नहीं था। मुहल्ले वाले उससे कुछ कहने में कतराते थे। अगर किसी से झगड़ा हो गया तो फिर दूसरे का खूब नुकसान करेगा, चाहे इस चक्कर में अपना कितना भी नुकसान क्यों ना हो जाये। मंगत राम की बाँस मण्डी में दुकान – एक बना बनाया कारोबार, भी इसी अड़ के चक्कर में तबाह हो गई। तब मंगत राम ने रेडिमेड कपड़ा बनाने का कारोबार शुरू किया।
ममता ने कई बार मंगत राम के कारखाने पर जाकर जानकारी लाने का मन बनाया। वह मन बनाती और हर बार उसकी हिम्मत छूट जाती। तीन दिन बाद अन्ततः उसने हिम्मत जुटाई और और वो कारखाने पहुँची। अमीनाबाद के फ़तह गंज मुहल्ले में एक पुराने आधे ढहते से दो मंज़िले मकान में कारखाना था। अन्दर से मशीनें चलने की आवाज़ें आ रही थीं। सामने के तीन दरवाज़ों में से सिर्फ़ एक दरवाज़ा आधा खुला हुआ था। ममता सीधे चलते हुये कारखाने के सामने से एक बार गुज़री – चेहरा सामने, कनखियों से कारखाने की तरफ़ देख लेती। पीछे से आते कदमों की आहट सुन कर ममता ने चौंक कर पीछे देखा – एक स्कूली बच्चा बढ़ा आ रहा था। गली के दूसरे छोर पर एक दुकान में बैठी महिला से पूछने पर पता चला कि शाम साढ़े पाँच बजे बहुत सी औरतें कारखाने से निकलती हैं।
शाम के साढ़े पाँच बजे ममता गली से फिर धीरे धीरे चलते हुये कारखाने के सामने से गुज़री – धड़कन तेज़, कान खड़े और चेहरा सामने। कारखाने से तीन महिलायें निकलीं और तेज़ चलती हुई उसके आगे निकल गईं। कारखाना जब काफ़ी पीछे छूट गया तो ममता तेज़ चल कर उन तक पहुँची।
“हमने सिलाई कढ़ाई सीखी है, और काम ढूँढ रहे हैं। आप लोगों के कारखाने में जगह है? कारखाने का मालिक कैसा है? पैसे कैसे मिलते हैं?”
“जगह है कि नहीं यह तो मालिक ही बता पायेगा। पैसे बुरे नहीं हैं, पर मालिक जरा झक्की है।”
महिलायें अपनी बातें करने लगीं। इससे पहले कि ममता और कुछ पूछ पाती, मुख्य सड़क आ गई और महिलायें टैम्पो में बैठ कर निकल गईं।
पहले दिन से उत्साहित होकर ममता ने दूसरे दिन फिर हिम्मत करी। काम छूटने से थोड़ी देर पहले पहुँची, और कारखाने की तरफ़ देखते हुये धीमे धीमे आगे बढ़ी और गली के छोर तक पहुँची। कारखाने में अन्दर हलचल थी, और उसे देखने के लिये फिर उसी तरह वापस लौट रही थी, कि कदमों की आहट सुन कर उसने सामने देखा और ठिठक गई। हल्का साँवला मोटा चेहरा, जिस पर दो तीन दिन की दाढ़ी, बेतरतीब सफेद बाल जिनमें काफी पहले मेंहदी लगी थी। डरा देने वाली बड़ी काली आँखें। भारी डील डौल वाला यह इन्सान ममता को घूर रहा था। मंगत राम को देखते ही ममता के चेहरे का रंग उतर गया और हथेलियों में पसीना आ गया।
ममता के पास आते ही डाँटते हुये बोला “क्या बात है ? तुम्हें क्या चाहिये ? तुम को पिछले दो तीन दिन से हम कारखाने के पास देख रहे हैं। तुम कर क्या रही हो ?”
“जी, जी, काम ढूँढ रहे हैं।”
“क्या कर सकती हो?”
“जी, कढ़ाई, और मशीन की सिलाई।”
“अन्दर आओ तुमसे बात करते हैं”।
ममता ने देखा कि मंगत राम के पास ठीक वैसा ही छोटा Adidas का बैग है, जैसा शैलेन्द्र चाचा के पास था।
बाहर के कमरे में घुसते ही मंगत राम को उसके मुनीम ने घेर लिया और दस मिनट के लिये दोनों कारखाने में अन्दर चले गये। मंगत राम जैसे ही वापस लौटा, उसी समय उसकी बहन भी बाहर से कमरे में अन्दर आई, और ममता को घूरने लगी।
घबराई हुई ममता मंगत राम से बोली “अभी आप के पास बहुत काम लग रहा है। हम कल आ जायेंगे आपसे बात करने”, और यह बोलते हुये वह बाहर निकलने लगी।
मंगत राम की बहन उसका रास्ता रोकते हुये बोली “तुम को कहीं देखा है। तुम्हारा नाम क्या है?”
चेहरा फक, साँसें थोड़ी तेज़, अपने को संभालते हुये ममता बोली “जी, जी, हमारा नाम संगीता है।”
“तुम कहाँ रहती हो?”
“जी, हम रिकाब गंज में रहते हैं।”
“तुम को कहीं देखा है।”
“जी, हमको तो याद नहीं है।”
“अरे याद आया। अभी तुम को शैलेन्द्र भैया के घर पर शादी में देखा था।”
“क्क कौन?”
“मॉडल हाउस वाले। तुम उनकी भतीजी हो।”
“न न नहीं। हम रिकाब गंज में रहते हैं।”
“झूठ मत बोलो।”
गुस्से से मंगत राम का चेहरा लाल और साँसें तेज़ हो गई थीं। वह ममता पर चिल्लाया “यह क्या मज़ाक बना रक्खा है? तुम यहाँ क्या करने आई हो?”
इससे पहले कि मंगत राम की बात पूरी होती, ममता विराट् कोहली के बल्ले से निकली छक्के की गेंद की तरह बाहर निकली, और तेज़ कदमों से घर की तरफ़ चल पड़ी।
ममता ने इस हादसे के बारे में किसी को कुछ नहीं बताया। अगले दिन तबियत ख़राब होने का बहाना बना कर कॉलेज भी नहीं गई।
अपने दोस्त के घर पार्टी में गोविन्द की मुलाकात शम्भू नाथ नाम के एक व्यक्ति से हुई। उसका अमीनाबाद में कागज़ का कारोबार था।
“अमीनाबाद में हमारे एक बड़े अच्छे दोस्त शैलेन्द्र की भी दुकान है। बेचारे की पिछले महीने अचानक मौत हो गई, अपने बेटे की शादी के दो दिन बाद।”
“अरे शैलेन्द्र। बहुत ही वाहियात इन्सान था। उसके जाने से धरती का बोझ कम हुआ।”
“अरे”, अवाक रह गये गोविन्द बोले “आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? शैलेन्द्र ने आपको कुछ नुकसान पहुँचाया था क्या?”
“हमारा क्या नुकसान करता ? उसकी औकात ही क्या थी ? लेकिन था बड़ा वाहियात इन्सान। उसकी हरकतें, उसके तरीके, सब बहुत बेकार, बहुत घटिया थे।”
पार्टी से लौटते ही गोविन्द ने अँकुर को फ़ोन किया और उससे शैलेन्द्र और शम्भू नाथ के सम्बन्धों के बारे में पूछा। अँकुर ने बताया कि शम्भू नाथ और शैलेन्द्र व्यापार मण्डल के दो विरोधी खेमों में थे। शम्भू नाथ कई बार व्यापार मण्डल के चुनाव लड़ चुका है, पर कभी जीता नहीं। अपनी हार का दोष वह शैलेन्द्र पर डालता है, और इस वजह से शैलेन्द्र से दुश्मनी मानता है। शैलेन्द्र की तरफ़ से कोई दुश्मनी नहीं थी।
मंगत राम के कारखाने पर ममता की दुर्घटना के चार दिन बाद ममता के पास एक अनजान नम्बर से फ़ोन आया। ममता ने फ़ोन नहीं उठाया। थोड़ी देर घंटी बजने के बाद फ़ोन काट दिया गया। एक घण्टे बाद फिर से ऐसा ही हुआ, उसी नम्बर से। अगले चौबीस घण्टों में ममता के पास उसी नम्बर से छह मिस्ड कॉल्स और चार ब्लैंक SMS आ चुके थे। सहमी हुई ममता ने इस बवाल से बचने के लिये अपना फ़ोन स्विच ऑफ़ कर दिया। इस दौरान उसकी मम्मी ने कई बार उसको फ़ोन किया और हर बार फ़ोन स्विच ऑफ़ पाया।
कॉलेज से घर लौटने पर मम्मी ममता पर बरस पड़ीं “तुम्हारा फ़ोन क्यों स्विच ऑफ़ था?”
“अरे फ़ोन बन्द था, हमने ध्यान ही नहीं दिया। बैटरी खतम हो गई होगी।”
“ममता हमको बेवकूफ़ मत बनाओ। सच सच बताओ कि क्या कर रही थीं, और फ़ोन क्यों स्विच ऑफ़ था?”
“मम्मी हम पढ़ाई कर रहे थे। चाहें तो हमारी दोस्तों से अभी पूछ लें। क्लास के लिये फ़ोन स्विच ऑफ़ कर दिया था, फिर चालू करना भूल गये।”
“सच बोल रही हो?”
“हाँ, और नहीं तो क्या?”
“तुम समझती नहीं हो। हमारी यहाँ जान सूख गई थी तुम्हारे बारे में। ऐसे ही माहौल खराब है, कितने किस्से सुनने को मिलते हैं। फिर यहाँ शैलेन्द्र भैया कि मौत, और उसमें तुम जासूसी करने कूद गई हो। बेटा, अब तुम्हारे पापा नहीं हैं। हमारी तो जान ही निकली रहती है कि तुम को कुछ हो गया तो हम क्या करेंगे।”
“चिन्ता मत करो मम्मी। सब ठीक हो जायेगा।”
“बेटा, तुम इस जासूसी के चक्कर में मत पड़ो, हमको बहुत डर लगता है। कहानियां पढ़ो – वहाँ तक तो ठीक है।”
“मम्मी, अब और कुछ नहीं कर रहे हैं। जितनी जानकारी लेनी थी, ले ली। आगे गोविन्द अंकल जानें।”
ममता के फ़ोन पर मिस्ड कॉल और ब्लैंक SMS का सिलसिला रुक नहीं रहा था, और उनके ख़ौफ़ ने उसका सोना और जागना दोनों ही हराम कर दिया था। ममता ने भगवान से बहुत प्रार्थना की, हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाने की मन्नत मानी, पर सिलसिला रुका नहीं। घर पर ममता फ़ोन को स्विच ऑफ़ ही रखती, बाहर भी अधिकतर फ़ोन स्विच ऑफ़ ही रहता। पर जब फ़ोन चालू रहता, तो मिस्ड कॉल या ब्लैंक SMS आ ही जाते। फ़ोन की घंटी बजते ही ममता का मुँह सूखने लगता और हथेलियों में पसीना आ जाता। ममता ने अपना घर से निकलना बहुत सीमित कर लिया – घर से कॉलेज और कॉलेज से घर। घर से कहीं जाना भी होता तो छोटे भाई के साथ जाती।
गोविन्द के एक जानने वाले की दवा की दुकान, शम्भू नाथ की दुकान से थोड़ी दूरी पर थी। गोविन्द ने उससे शम्भू नाथ के बारे में और जानकारी लेने के लिये फ़ोन किया।
कुशल क्षेम के बाद गोविन्द ने पूछा “तुम शम्भू नाथ को कितने अच्छे से जानते हो? सुना है झगड़ालू इन्सान है और गुंडई के लिये जाना जाता है?”
“झगड़ालू तो है। बड़बोला है, और अपने को तीस मार खाँ समझता है। सब पर अपना रोब गाँठने की कोशिश करता है। हमसे तो सीधे से रहता है, पर हो सकता है दूसरों से गुंडई करता हो।”
“सुना है उसका शैलेन्द्र – वही रेडिमेड वाले जिनकी अभी पिछले महीने मौत हुई है, के साथ बहुत बुरा झगड़ा हो गया था?”
“सुना तो था कि झगड़ा हुआ था, पर हम वहाँ पर थे नहीं। रुकिये राकेश को बुलाते हैं। वो वहाँ पर था जिस समय झगड़ा हुआ था”। फिर फ़ोन नीचे रखकर “अरे राकेश को बुलाओ, गोविन्द सर बात करना चाहते हैं। वो शम्भू नाथ और शैलेन्द्र भैया के झगड़े के बारे में जानना चाहते हैं।”
शम्भू नाथ की दुकान का नौकर उस समय दुकान पर दवा लेने आया हुआ था, और उसने यह बातचीत सुनी।
तीन दिन बाद सुबह काम पर जाने के लिये गोविन्द ने अपनी गाड़ी को निकाला, फिर रोकने के लिये ब्रेक लगाया। ब्रेक लगाने के बावजूद गाड़ी चलती गई। गोविन्द का घर एक ढलान पर था, गाड़ी नीचे चलती ही जा रही थी, और वो अचम्भित स्टेरिंग पकड़े मूर्तिवत बैठे थे। नीचे मुख्य सड़क पर गाड़ियाँ तेज़ रफ़्तार में एक के बाद एक चली जा रहीं थीं। गाड़ी मुख्य सड़क पर पहुँच ही गई थी कि फ़ुटपाथ पर गोविन्द चौंके और गाड़ी को बैक गियर पर लगा दिया – इंजन से कड़ाक की आवाज़ आई और गाड़ी झटके से बंद होकर खड़ी हो गई। माथे पर से पसीना पोंछते हुये गाड़ी से बाहर निकल कर चारों तरफ़ देखा – अगर गाड़ी ज़रा सा भी और आगे बढ़ गई होती तो किसी आती गाड़ी ने ज़रूर उसको टक्कर मार दी होती।
अगले दिन सुबह सुबह गोविन्द अँकुर और ममता से मिले। अपने कार के ब्रेक फ़ेल होने की घटना बताई।
“हमें लगता है कि यह शम्भू नाथ की साजिश थी। वो हमें धमकाना चाह रहा है कि हम इस मामले में और तहक़ीकात ना करें। पर हम डरेंगे नहीं। हम इस मामले की तह तक जायेंगे।”
“हाँ, पता तो लगाना ही चाहिये”, ममता के मुँह से निकल गया।
ममता ने मंगत राम के कारखाने पर हुये हादसे की बात बताई। पर मिस्ड कॉल और ब्लैंक SMS की बात दबा दी।
गोविन्द ने उसको ढाढ़स बंधाया “घबराने की कोई बात नहीं है बेटा। अगर तुम को ज़रा सा भी कोई डराने धमकाने की कोशिश करे, तो हमें बताओ। हमारी पुलिस में जान पहचान है। उसको सीधा करवा देंगे।”
ममता को कॉलेज जाना था और गोविन्द उसे अपनी कार में कॉलेज छोड़ते हुये निकल गये। कॉलेज में ममता को सहेलियों ने घेरा।
“अरे वाह ममता। आज तो तुम अनिल कपूर के साथ कार में आगे बैठ कर आई हो।”
ममता का चेहरा लाल, झेंपती हुई बोली “अरे कुछ नहीं यह तो गोविन्द अंकल थे। अँकुर भैया से मिलने आये थे, हमको छोड़ते हुये अपने काम पर निकल गये।”
“अरे वाह अनिल कपूर ने तुम को छोड़ने के लिये टाइम निकाल लिया। और तुम्हारे साथ किस काम के लिये टाइम निकाला ? रास्ते में कहीं साथ साथ आइसक्रीम खाने के लिये भी टाइम निकाल लिया होगा ?”
“बकवास मत करो। हम लोग सीधे घर से कॉलेज आये हैं।”
अगले दिन ममता अपनी सहेली के साथ कॉलेज से लौट रही थी। सहेली एक दो बार पीछे मुड़ी और बोली “लगता है वो लड़का हम लोगों का पीछा कर रहा है। ममता भी सावधानी से पीछे मुड़ी और देखा कि एक नौजवान पीछे आ रहा था। देखने में छात्र लगता था – कंधे पर शोल्डर बैग, पैरों में जीन्स और कुछ दिनों की बढ़ी दाढ़ी। पर चेहरे से उम्र ज़्यादा लग रही थी, और उसकी आँखें सामने इन दोनों पर टिकी हुई थीं। सकपका कर ममता ने अपना चेहरा सामने किया और तेज़ चलने लगी। सामने आये पहले मोड़ पर दोनों मुड़ गईं। मुड़ते हुये कनखियों से देखा तो नौजवान भी तेज़ी से उनके पीछे आ रहा था। नये रास्ते पर सहेली ने मुड़ कर देखा तो नौजवान पीछे था और उसकी निगाहें इन पर टिकी हुईं। रास्ता सुनसान। जैसे ही मोड़ दिखा, दोनों सहेलियाँ ने दौड़ते हुये मोड़ पार किया और आगे दौड़ती रहीं। हाँफते हाँफते मुख्य सड़क पर पहुँचीं। किस्मत से यह ऑटो का रूट था और ऑटो आते जाते दिख रहे थे। जब लड़कियाँ खड़ी होकर ऑटो का इंतज़ार करने लगीं, तो वह भी कुछ दूर पर खड़ा हो गया। ममता की सहेली एक शेयर ऑटो पर बैठ कर अपने घर निकल गई। ममता के घर की तरफ का जब शेयर ऑटो आया और ममता उसमें बैठी, तो लपक कर नौजवान भी उसी ऑटो में आगे ड्राइवर के पास बैठ गया। ममता के दिल की धड़कन तेज़ हो गई, चेहरा लाल, और हाथों में पसीना आने लगा। ऑटो में ममता के साथ दो और औरतें थीं, तो ममता की थोड़ी हिम्मत बँधी। बीच में एक चौराहे पर ममता अचानक उतर गई, और दूसरी तरफ जाती एक बस में चढ़ गई। नौजवान भी झट ऑटो से उतरा और दौड़ कर बस पर चढ़ गया।
बस खचाखच भरी थी, ममता आगे की तरफ थी, और नौजवान पीछे की तरफ। ममता ने पीछे देखा तो नौजवान भीड़ के बीच में से उस पर निगाहें गड़ाये हुये था, और आगे आ रहा था। बीच में एक जगह बस धीमी हुई तो ममता अचानक उतरी और एक गली में घुस कर तेज़ कदमों से चलने लगी, और जो मोड़ आया, किसी भी तरफ मुड़ती गई। काफ़ी दूर चलने के बाद साँस लेने के लिये उसने कदम धीमे किये और पीछे घूम कर देखा। दूर तक जब नौजवान नहीं दिखा तो ममता को थोड़ा चैन पड़ा। वह चलते हुये मुड़ मुड़ कर पीछे देखती रही। जब वह आश्वस्त हो गई कि कोई नहीं आ रहा है, तो पूछते पूछते वापस सड़क पर आई और फिर बस पकड़ कर घर लौटी।
घबराई हुई ममता ने शाम को यह सारी बात अँकुर को बताई, और उसने तुरन्त गोविन्द अंकल को फ़ोन कर के यह बात बताई। इस खबर से गोविन्द बौखला गये। उन्होंने ममता को हिम्मत बँधाई, और ममता को भरोसा दिलाया कि वो इस पर ज़रूर कुछ कार्रवाई करवायेंगे। उन्होंने ममता को कुछ दिनों तक कॉलेज जाने से मना किया – तब तक वह इस मसले को थोड़ा सुलझा लेंगे।
दो दिन घर पर बैठने के बाद ममता ने तय किया कि वह कॉलेज जायेगी। इस तरह से डर कर कब तक घर पर बैठी रहेगी? फिर बाहर जायेगी तो शायद उसको कुछ और जानकारी मिले जिससे कि यह सब सुलझे। घर बैठे तो कोई जानकारी नहीं मिलने वाली। अपनी हिफ़ाज़त के लिये एक सहेली के साथ कॉलेज गई। पर हड़बड़ी में अपना फ़ोन घर पर ही भूल गई।
ममता के घर लौटते ही उसकी मम्मी उस पर बरस पड़ीं “तुमसे मना किया था कि फ़िजूल के चक्करों में मत पड़ो। पर तुम तो पुरखन बन गई हो, ना हमारी बात मानती हो, और ना ही हमें सच बताती हो।” यह कह कर वह फूट फूट कर रोने लगीं और बोलीं ” भगवान जानता है और हम जानते हैं कि तुम लोगों के अच्छे कल के लिये हम क्या क्या नहीं कर रहे हैं, और वो भी कितनी मुश्किल से। अब तो शैलेन्द्र भाई साहब भी नहीं रहे, जिनसे थोड़ा सहारा मिल जाता था। चिन्ता के मारे हमको रात में नींद नहीं आती।” थोड़ी देर रोने के बाद , थोड़ा शान्त होकर बोलीं “अब से तुम्हारा बाहर आना जाना बन्द। बस यहाँ से कॉलेज और कॉलेज से घर। अपना टाइम टेबुल हमें दो, हम समय मिला कर देखेंगे कि तुम इधर उधर तो नहीं जा रही हो”
थोड़े दबे हुये स्वर में पर कौतूहल के भाव से आश्चर्य चकित ममता बोली “वो सब तो ठीक है, पर बताइये तो कि हुआ क्या है कि हमारे ऊपर एकदम से इतनी पाबंदियाँ लगा दी जा रही हैं ?”
मम्मी का गुस्सा फिर उफना और ऊँची आवाज़ में बोलीं “इतना कुछ हो गया और तुम भोली बनकर कह रही हो कि हुआ क्या है ? ऐसे बच्चों से भगवान ही बचाये।”
फिर छोटे भाई की तरफ मुड़ कर बोलीं “बताओ अपनी दीदी को कि हुआ क्या है।”
छोटे भाई ने बताया कि ममता अपना फ़ोन घर पर ही भूल गई थी। उसके पीछे फ़ोन पर एक missed call आई। उसने देखा तो पाया कि उस नम्बर से करीब तीस missed calls थीं, और करीब उतनी ही blank SMS। इस नम्बर से कभी बात नहीं हुई थी। मम्मी इसी बात से परेशान थीं।
परेशान ममता अपने भाई के साध पास में रहने वाली एक सहेली से मिलने गई। सहेली के चाचा पुलिस में SSP के दफ़्तर में काम करते थे। जब यह चक्कर शुरू हुआ था तो ममता उनसे मिली थी – उन्होंने कहा था कि जिस दिन उस नम्बर से कोई बात कर के धमकी दे, उस दिन वह पुलिस से इस पर कार्यवाही करवायेंगे। उस समय सहेली के चाचा घर पर नहीं थे।
ममता की हालत देख कर सहेली के भैया ने अपने फ़ोन से वह नम्बर मिलाया। उधर से एक बुज़ुर्ग महिला ने जवाब दिया। भैया के हड़काने पर महिला ने झेंप कर जवाब दिया कि उसकी चार साल की पोती उसके फ़ोन से खेला करती है और कुछ कुछ बटन दबाती रहती है। उसी से missed calls वगैरह चली जाती होंगी। महिला ने missed calls के लिये माफ़ी मांगी।
दूसरे दिन सुबह ममता के भाई के स्कूल जाने का समय हो गया था और मम्मी ने नाश्ता तैयार नहीं किया था। बनाना तो दूर वह तो सो रही थीं। भाई ने झुंझला कर कहा “अरे मम्मी, यह क्या बात है, आपने नाश्ता भी नहीं बनाया, और मजे से सो रही हैं। हमें स्कूल की देर हो रही है। हम जा रहे हैं।” मम्मी ने कुछ जवाब नहीं दिया, तो भाई कुछ मठरी वगैरह खाकर स्कूल चला गया। ममता को चिन्ता हुई। उसने जाकर मम्मी को झकझोरा और कहा “मम्मी आप ठीक तो हैं ना ? सुबह के आठ बजने को आये और आप अभी तक उठी नहीं। आप तो पाँच बजे से ही उठकर खटर-पटर शुरू कर देतीं थीं।”
मम्मी ने एक उबासी ली और बोलीं “ऊँ S S S। देर तो वाकई बहुत हो गई है। कल रात नींद नहीं आ रही थी तो नींद की गोली ले ली थी। उसी का असर है।”
आश्चर्यचकित होकर ममता बोली “नींद की गोली। यह नींद की गोली लेनी आपने कब से शुरू कर दी ? हमको तो पता ही नहीं।”
मम्मी ने धीमे धीमे खुमारी भरी आवाज़ में कहा “अब तो डेढ़ महीने होने को आ रहे हैं। नींद ना आने से बहुत परेशान थे। दिन भर सिर में दर्द रहता था। मेडिकल स्टोर वाले राजेश को बताया तो उसने यह गोलियां दी। बड़ी कारगर हैं। अभी तक आधी से काम चलता था, कल रात एक ले ली थी।”
गोविन्द के एक मरीज़ शम्भू नाथ को बहुत अच्छे से जानते थे। परेशान गोविन्द ने पता किया तो उसने बताया कि शम्भू नाथ हमेशा दूसरों पर रोब गाँठने की कोशिश करता रहता है, पर है बड़ा डरपोक। कोई उसको उल्टा घुड़क दे, या आँखें तरेर दे तो चुप हो जाता है। गोविन्द को जब विश्वास नहीं हुआ तो मरीज़ ने गोविन्द को थाने से शम्भू नाथ के बारे में और जानकारी लेने की सलाह दी। गोविन्द ने एक परिचित के साथ जाकर थाने पर पूछा तो मरीज़ की बात सही निकली। दारोगा ने बताया कि शम्भू नाथ अक्सर थाने आता है दूसरों की शिकायत करने। वह थाने के सहारे दूसरों पर ऐंठ जमाने की कोशिश करता है, पर थाने में उसको कोई भाव नहीं देता। अभी तक ऐसी कोई घटना नहीं हुई है जिसमें शम्भू नाथ ने किसी को नुकसान पहुँचाया हो – बस बोलता है।
दिन में शैलेन्द्र के एक अच्छे व्यापारी दोस्त अँकुर से मिलने आये। बात ही बात में उन्होंने पूछा “क्या मंगत राम तुमसे मिलने आया था ?”
अँकुर ने नकार दिया और उल्टा सवाल किया “वो क्यों आयेंगे, उनका तो पापा के समय से हम लोगों के साथ झगड़ा चल रहा है ?”
शैलेन्द्र के दोस्त हँसे और बोले “ओह तो तुम्हें पूरी बात नहीं मालूम है। तुम अपनी बीबी के खयालों में इतने मगन थे। शैलेन्द्र और मंगत राम का झगड़ा तुम्हारी शादी के करीब दो हफ़्ते पहले ही निपट गया था। वो जो झगड़े वाला कन्साइनमेंट था वो शैलेन्द्र की मार्फ़त किसी सीतापुर के व्यापारी ने लिया था, और उसकी वजह से ही इतना झंझट हुआ था। शैलेन्द्र के दबाव डालने पर वो व्यापारी लाइन पर आया। हमारे सामने ही शैलेन्द्र ने मंगत राम और उस व्यापारी को आमने सामने बैठा कर बात करवा दी। वो व्यापारी अब सीधे मंगत राम को पैसे दे रहा है। मंगत राम तुम्हारी शादी में भी आया था. और बारात में खूब मजे किये उसने।”
शाम को ममता घर लौटी तो उसकी मम्मी पूजा की कोठरी में बैठी कुछ बड़बड़ा रही थीं। ममता ने उसके कुछ हिस्से सुने “भगवान इस मुसीबत से छुटकारा दिलाओ। . . . हमें माफ़ करना, बहुत बड़ी गलती कर डाली।” पूजा की कोठरी से जब मम्मी बाहर निकलीं, तो ममता ने पूछा “सब ठीक तो है, आप परेशान लग रही हैं।”
चिन्तित दिखती मम्मी ने कहा “हाँ, सब ठीक है। कोई ऐसी बात नहीं है जिससे कि तुम लोग परेशान हो। छोटी मोटी बातें तो होती रहती हैं। हम सम्भाल लेंगे।”
पूरी शाम भर मम्मी का चेहरा बुझा बुझा सा रहा। दो तीन बार बिना किसी खास बात के ममता के भाई पर और ममता पर चिड़चिड़ा पड़ीं।
रात में जब उसका भाई सोने चला गया तो ममता ने अपनी मम्मी से कहा “मम्मी कुछ तो बात है, जो आप हमसे छुपा रही हैं। आपको टेंशन बहुत ज़्यादा है। हमसे ही छुपायेंगी तो कैसे काम चलेगा।”
“नहीं, ऐसी कोई खास बात नहीं है। छोटी मोटी चीज़ों का थोड़ा बहुत टेंशन तो होता रहता है। तुम को परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। जाकर सो जाओ।”
“अरे वाह मम्मी, आपने तो हमें छोटा बच्चा समझ लिया है, कि अगर कोई समस्या सुनेंगे तो डर जायेंगे। अब हम बड़े हो गये हैं, और पापा के बाद हमारा फ़र्ज़ बनता है कि आपके साथ घर की ज़िम्मेदारियाँ संभालें।”
“चलो, बड़ी आईं पुरखिन। जब समय आयेगा, तब तुम्हें ज़िम्मेदारी ज़रूर देंगे। यह तुम्हारे मतलब की बात नहीं है। जाकर सो जाओ।”
“मम्मी, बेकार की बात मत कीजिये। बताइये, नहीं तो हम तो सोयेंगे नहीं, भाई को भी जगा देंगे।”
“अच्छा बाबा, जान की आफ़त कर दी। सुनो क्या परेशानी है। आज पूरन आया था पैसे का तगादा करने। हमारे पास पैसे तो थे नहीं – सारे पैसे तुम्हारी ट्रेनिंग और प्रोजेक्ट में खर्च हो गये। फ़िक्स डिपॉज़िट का सूद अगले महीने ही लगेगा। तब तक हम क्या करें? पूरन तीन दिन बात फिर आने को कह गया है। वही थोड़ी चिन्ता थी।”
“तो उसमें कौन सी बड़ी बात है। अँकुर भैया से पैसे ले लेंगे। अगले महीने तो पैसे बैंक में पैसे आ ही जायेंगे, तब लौटा देंगे।”
मम्मी घबराकर “नहीं, नहीं। ऐसा कभी ना करना। तुम को हमारी कसम, तुम अँकुर से पैसे नहीं मांगोगी, और ना ही उससे इस बात का ज़िक्र करोगी।”
“पर ऐसा क्या हो गया? पहले तो आप शैलेन्द्र चाचा से पैसे ले ही लिया करती थीं। अब अँकुर भैया मालिक हैं, तो फ़र्क क्या है?”
मम्मी गुस्से में “चुप रहो और बेकार की बात मत करो। हमने कह दिया कि तुम अँकुर से पैसे नहीं मांगोगी – तो तुम नहीं मांगोगी। बहस नहीं।”
“यह तो फ़िजूल की बात है। आप वजह बताइये, तो हम आपकी बात मान ले। ऐसे ही बिना सिर पैर की बात कैसे मान लें।”
मम्मी लगभग आँसुओं में “अरे बेटा, मान जाओ हमारी बात। तुम्हारी भलाई के ही लिये कह रहे हैं। हमारा कोई अपना फ़ायदा नहीं है इसमें।”
“आप की बात हम मान लेंगे, पर आप बात तो बताइये।”
मम्मी रोते हुये “तुम्हारी ट्रेनिंग और प्रोजेक्ट के लिये हम शैलेन्द्र भाई साहब से पैसे मांगने गये थे। पर तुम्हारी चाची पहले मिल गईं, और उन्होंने हमको बहुत खरी खोटी सुनाई। हमको भिखारन और तुम को बदचलन कहा। यह भी कहा कि हम तुम्हारी छिनारी की कमाई का पैसा खाना चाहते हैं। और यह सब उन्होंने ज़ोर ज़ोर से तेज़ आवाज़ में कहा ताकि सारी दुनिया सुन ले। उस समय तुम्हारे शैलेन्द्र चाचा घर पर नहीं थे। मौका पाकर तुम्हारी चाची मानो जन्मों की दुश्मनी निकाल रही थीं। हमको सड़क पर नंगा करने से बदतर था उनका व्यवहार। और फिर गुस्से में हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई।”
यह कहते ही मम्मी एकाएक चुप हो गईं।
ममता “चाची तो थीं हीं बदज़ुबान, पर इतनी गंदी हो जायेंगी, उफ़्फ़्फ़ – ऐसा तो हमने कभी सोचा भी नहीं था। आप ठीक कहती हैं, अँकुर भैया से पैसे माँगना, मतलब चाची से अपनी और बेइज़्ज़ती कराना। घर का कुछ सामान बेचकर पूरन के लिये पैसों का इंतेज़ाम कर लेंगे कल।”
थोड़ी देर तक किसी ने कुछ नहीं कहा, फिर ममता बोली “पर मम्मी, आपसे बड़ी गलती क्या हो गई, वो तो बताइये।”
अचकचा कर मम्मी ने जवाब दिया “गलती तो कुछ नहीं हुई। हमने कब कहा कि गलती हो गई।”
“आपने कहा था, और पूजा करते समय भी आप भगवान जी से कह रही थीं। अब बताइये। हमसे मत छुपाइये। हम छोड़ेंगे नहीं।”
“अरे कुछ नहीं, वो तो ऐसे ही कह दिया था।”
“बताइये ना, नहीं तो भाई को भी जगा देंगे।”
थोड़ी देर तक चुप रहने के बाद, धीमी आवाज़ में धीरे धीरे मम्मी बोलीं “यह सब हमने तुम्हारे लिये, तुम्हारी इज़्ज़त और नाम के लिये किया। तुम्हारी चाची की ज़ुबान तुम्हारे पापा के ना रहने के बाद से ज़्यादा कड़वी हो गई है। हमने सोचा कि तुम्हारे शैलेन्द्र चाचा नहीं रहेंगे, तो तुम्हारी चाची की सारी हेकड़ी निकल जायेगी। उनके दम पर ही वो इतना कूदती थीं। शैलेन्द्र भाई साहब अच्छे आदमी थे, पर तुम्हारी चाची ने अपने सुहागन होने का फ़ायदा उठाकर हमारा जीना नरक कर दिया था। इसलिये हमने अँकुर की शादी के बाद, भाई साहब के रात के दूध में पिसी हुई नींद की गोलियां मिला दीं। शादी का घर था. भीड़ भाड़ थी और लोगों का आना जाना लगा हुआ था। हमको इतना अच्छा मौका फिर कभी नहीं मिलता।”
काफ़ी देर शान्त रहने के बाद मम्मी फिर बोलीं “लेकिन अब हमें अपनी गलती का अहसास हो रहा है। शैलेन्द्र भाई साहब से बहुत सहारा था। उनकी मौत से हम को भी नुकसान हुआ है। तुम्हारी चाची की हवा निकालने का हमें दूसरा रास्ता निकालना चाहिये था।”


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