" रहस्य ?" केसरी नाथ ने उसे उलझन भरी नजरों से देखते हुए पूछा था------'"केसा रहस्य?"
"विस्तार से बताने का वक्त नहीं है केसरी साहब । फिलहाल बस इतना समझ लीजिए कि जो नजर आ रहा है और जो कान सुन रहे हैं, वह सच नहीं है ।"
"क...क्या सच नहीं है?"
"न सीकेट सेल खत्म हुई है, न ही धनंजय मरा है ।"
केसरी नाथ उछल पड़ा था----------"य. . तो तुम क्या कह रहे हो? मैं तुम्हें बता चुका हूं उसका अंतिम संस्कार मैंने खुद किया है ।"
"वह धनंजय नहीं, कोई और था ।"
केसरी नाथ का दिमाग नाच गया था------" कौन?"
"अभी मैं इस बारे में कुछ भी नहीं बता सकता लेकिन आपका जी चाहे तो यकीन कर लीजिए, आपकी बेटी का मंगेतर जिंदा है ।"
"है भगवान, ये केसी उम्मीद जगा रहा है तूमेरे अंदर ।" ऊपर की तरफ देखते हुम उसकी आंखे भर आई थी…"अ . . जिगर यह सच है. . . अगर अर्जुन जिदां है तो आज तक मेरे सामने क्यों नहीं आया? उसने दुनिया के सामने आकर अपनी मौत की अफवाह का खंडन क्यों नहीं किया? इस वक्त वह कहाँ है? क्या कर रहा है?"
"आपने खुद कहा-अर्जुन इंसान नहीं एक मकसद है । और मकसद को समझना आसान नहीं होता ।"
"क्या तुम जानते हो अर्जुन कहां है?”
"हां ।" अप्रत्याशित जवाब मिला------'"जानता हूं !"
वह उतावला-सा होकर बोला…“मुझें उसका पता बताओं । तुम उससे कहां मिले थे?"
"'इसी शहर में ।"
" मुम्बई में ?"
“हां ।"
तभी होलकर का मोबाइल बजा । लाइन पर दूसरी तरफ प्रताप था । होलकर ने केसरीनाथ को "एक्सक्यूज' कहकर काल रिसीव
की है दूसरी तरफ़ से जो कुछ वताया गया, उसे सुनकर वह चौंका ।
उसके हाव-भाव एकदम चेंज हो गए । "मैं फौरन अाता हूं।” उसने कहा और फोन डिस्कनेक्ट कर दिया, फिर वह एकाएक उठकर खड़ा हो गया ।
“अरे! " केसरी नाथ बैखलाया---------"अरे तुम कहाँ जा रहे हो?"
"मुझे फौरन ही जाना होगा केसरी साहब ।" वह अधीर स्वर मे बोला------'' जाने से पहले केवल इतना ही कहना चाहूगा कि आपने इतने सालों से इंतजार किया है, वस थोड़ा-सा इंतजार और कर लीजिए------वहुत थोड़ा-सा । मुझे पूरा यकीन है कि चौबीस घंटे से पहले ही आपकी बेटी और दामाद आपके सामने होंगे ।"
केसरी नाथ अवाक्--सा होकर होलकर का मुंह देखने लगा । उसके बाद होलकर एक पल भी वहां नहीं रूका । हवा के झोंके के तरह बाहर निकल गया वह ।
पाकिस्तान के इस्लामाबाद स्थित आईएसआई मुख्यालय में एक अपात मीटिंग बुलाई गई थी । उसमें पाकिस्तानी हुकूमत में गहरा दखल रखने वाले चुनिंदा हुक्मरान शामिल थे ।
पहला-आईएस का चीफ अब्दुल अंसारी ।
दूसरा…राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एहसान इलाही ।
तीसरा-रक्षामंत्री गयासुद्दीन ।
चौथा…आर्मी का जनरल माजिद खान ।
पांचवा-हाफिज लुईस
और छटा--एक वरिष्ट तकनीकी विशेषज्ञ निगार खान । मीटिंग में उपस्थित उन सभी सियारों की हमेशा ऊंट की तरह अकड़ी रहने वाली गर्दन उस वक्त हाथी की सूंड की मानिन्द लटकी हुई थी । हमेशा चरमपंथ से दमकते चेहरों पर उस वक्त ऐसे भाव जैसे कोई जुआरी अपना सबकुछ लुटा बैठा हो । सारे 'सूरमाओं' की उस हालत की वजह वो वीडीयों चिप था, जो कि कुछ ही देर पहले एक प्रोजेक्शन स्क्रीन पर चला था ।
वह वीडियों चिप उम्हें भारत में मौजूद पाकिस्तान के राजदूत सरफ़राज अहमद के माध्यम से आज ही मिला था ।
वीडियों में काला ओवर कोट तथा गोल हैट लगाए वही शख्स नजर आया था, जो दिल्ली की पाकिस्तानी एम्बेसी में सरफ़राज से मिला था । फ़र्क वस इतना था कि उसने अपने हैट को चेहरे पर थोड़ा-सा ज्यादा झुका रखा था । इतना, कि चेहरे को देख पाना मुमकिन नहीं था ।
समूचे हॉल में सन्नटा पसरा पड़ा था और सन्नाटे को तो पसरना ही था क्योंकि छहों अपने चेहरों पर ऐसे भाव लिए बैठे थे जैसे अपने मुल्क की मौत का मातम मना रहे हों । काफी देर बाद सन्नटे को हाफिज लुईस ने तोड़ा-“एक बार और चलाओ ।"
उसके आदेश का तुरंत पालन हुआ ।
स्कीन पर एक बार फिर फिल्म चलने लगी--
विडीयों की शुरुआत ओवरकोट धारी के इन शब्दों के साथ हुई थी…"पाकिस्तानी चूहों को हिंदुस्तानी का सलाम ।"
इन शब्दों के वाद थोडी देर सन्नाटा छाया रहा था । वातावरण में भी और छओं के दिमागों में भी ।
गद्दार देशभक्त complete
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Re: गद्दार देशभक्त
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी
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Re: गद्दार देशभक्त
ओवरकोट धारी पुन: बोला-------"तुम लोग यह सोच-सोचकर जरूर अपना सिर धूनरहे होगे कि हिंदुस्तान में आखिर यह हो क्या रहा है! हाफिज लुईस तू जरूर सोच रहा होगा कि तेरे ऑपरेशन औरंगजेब की धज्जियां कैसे उड़ गई! तुझे अंदाज भी न हो पाया कि क्या से क्या हो गया! वेसे तो मुझे पता है कि मेरे इन अल्फाजों को सुनने के लिए तेरे साथ -आईएसआई का वो चीफ भी मौजूद होगा, जिसका कि तू पालतू कुत्ता है । ऐसे ही बाकी हरामियों की भी पूरी जमात इकटूठा होगी मगर इस वक्त मैं खास तुझी से मुखातिब हूं क्योंकि ऑपरेशन औरंगजेब का मास्टर माइंड तू ही था और हमारे आंपरेशन दुर्ग की नाकामी में आईएसआई से ज्यादा तेरा ही मनहूस हाथ था । आपरेशन दुर्ग पर तेरे मुल्क में गई मेरी टीम को फांसी के फंदे तक तूने ही पहुचाया है ।
सुना है कि उन्हें कल का सूरज निकलने से पहले ही फंसी पर लटका दिया जाएगा !
नहीं हाफिस------नहीं ऐसा भूलकर भी मत कर देना क्योंकि यदि तूने ऐसा किया तो पाकिस्तान में कयामत आ जाएगी और यह
कयामत न्यूक्लियर स्पेस वेपन लेकर आएगा ।
आज सारी दुनिया में हल्ला मचा हुआ है कि आईएसआईएस से उस वेपन को बाईस हजार करोड़ रुपयों में खरीदा जा चुका है और यह कारनामा तेरे हथियार 'मुस्तफा' ने अंजाम दिया है । केवल इतना ही नहीं, वह इस विध्वंसक हथियार से हिंदुस्तान के नेवीगेशन सेटेलाइट्स को तबाह करना चाहता है ।
हालांकि तेरे मुल्क के पास हिंदुस्तान जैसा व्यापक नेवीगेशन सेटेलाइट नेटवर्क नहीं है । केवल दो वड़ीं सेटेलाइट हैं, जिनसे पाकिस्तान का नेवीगेशन सिस्टम संचालित होता है । कल्पना कर हाफिज़, ये दोनों सेटेलाइट तबाह हो जाएं तो क्या होगा!
जाहिर है कि वेसा ही कुछ होगा जैसा मेरे मुल्क के नेवीगेशन सिस्टम के तबाह होने की सूरत में बताया जा रहा है । उस सूरत में तेरे मुल्क का समूचा संचार माध्यम पूरी तरह से ध्वस्त हो जाएगा । पाकिस्तान-क्री सारी सैन्य सुरक्षा प्रणाली छिन-भिन्न हो जाएगी । पब्लिक और फाइनेंस सेक्टर से जुड़े इंटरनेट पर' आधारित सारे इंतजाम नेस्तनाबूद हो जाएंगे । न तो कोईं विमान उडान भर सकेगा, न ही कोई समुद्री पोत मूव कर सकेगा । तेरी मिसाइलें, यहां तक कि परमाणु बम आदि भी, सब खिलौने बनकर रह जाएंगे । जल, थल और आकाश के एक जरे पर भी न तो तेरा कंट्रोल रह जाएगा और न ही नजर । इसके अलावा भी वहुत कुछ ऐसा है जो रोंगटे खड़े कर देने वाला है और अब यहीँ होने जा रहा है । स्पेस वेपन का कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम इस वक्त मेरे हाथ में है । यह देख------'
इन शब्दों के साथ ओवरकोटधारी एक तरफ हटा तो उसके पीछे एक कंट्रोल पैनल जैसा, ऐसा इलेक्ट्रानिक डेस्क नजर आया, जिस पर रंग बिरंगी लाइटे झिलमिला रही थी ।
हाफिस लुईस सहित सभी की निगाहें स्क्रीन पर चिपककर रह गई थी ! खास कर आईटी एक्सपर्ट निगार खान की । कैमरा पुन: ओवरकोटघारी के ऊपर फोकस हो गया । हिंदुस्तानी पुन: बोला-----अपने एक्सपर्ट को वीडियो दिखाकर तस्दीक कर ले कि मैंने जो दिखाया, वह वही है, जिसके बारे में हल्ला
मचा हुआ है, या नहीं । मेरे इशारे की देर है, स्पेस में मौजूद सेटेलाइट को नष्ट करने वाली न्यूक्लियर डिवाइस तेरी दोनों स्टैलाइट को ...........
हाफिस लुईस सहित सभी की निगाहें स्क्रीन पर चिपककर रह गई थी ! खास कर आईटी एक्सपर्ट निगार खान की । कैमरा पुन: ओवरकोटघारी के ऊपर फोकस हो गया । हिंदुस्तानी पुन: बोला-----अपने एक्सपर्ट को वीडियो दिखाकर तस्दीक कर ले कि मैंने जो दिखाया, वह वही है, जिसके बारे में हल्ला
मचा हुआ है, या नहीं । मेरे इशारे की देर है, स्पेस में मौजूद सेटेलाइट को नष्ट करने वाली न्यूक्लियर डिवाइस तेरी दोनों स्टैलाइट को
तबाह का देगी और मैं ऐसा ही करूंगा । ऐसा न हो, इसका केवल एक ही तरीका है । मेरे पांचो सीक्रेट कमांडो की फांसी रदूद कर दे और उन्हें बाइज्जत मुझे सौप दे ।
फैसला तेरे हाथ में है और जो भी फैसला हो, सुबह होने से पहले बता देना । यदि समय रहते हो तेरा माकूल जवाब नहीं मिला तो समझूगा कि तेरा जवाब इंकार है और मेरे कमांडोज को फांसी पर लटका दिया गया है । परिणामस्वरूप कल सूर्योदय के साथ ही तेरे मुल्क में कयामत ता दूगा ।
तुझ जेसे शैतानों को तेरी ही भाषा में जवाब देने का यह हुनर अब इस मुल्क ने सीख लिया है । मैं तेरे ज़वाब का इंतजार कर रहा हूं! जय हिंद । जय भारत ।"
हिंदुस्तानी का चेहरा स्कीन से गायब हो गया । आवाज आनी बंद हो गई और स्कीन पर खाली रोशनी फैल गई ।
निगार खान ने प्रोजेक्टर साफ कर दिया ।
कितने पल यूं ही बीत गए ।
समी के चेहरों पर पैना सन्नाटा छाया रहा ।
सन्नाटे को एक बार फिर हाफिज लुईस ने ही तोड़ा । वहुत गहरी और लम्बी सांस लेने के बाद बह आईएसआई के प्रमुख अब्दुल अंसारी से मुखातिब होता हुआ बोला था----"जनाब अंसारी साहब, मेरा पहाल सवाल आपसे है ।"
"जरूर ।" अंसारी ने मुंह से शब्द धकेले ।
“मैं सेटेलाइट को नेस्तनाबूद करने वाले उस स्पेस वेपन के मुताल्लिक मालूमात चाहता हूं ! जो आपसे बेहतर किसी और के पास नहीं हो सकती । क्या वह हथियार वाकई विक चुका है?”
“यह खबर सौ फीसदी दुरुस्त है ।" अंसारी का मटके जैसा सिर हिला-----"मैं इस बात की तस्दीक कर चुका हूं । आईएसआईएस से उस हथियार का सौदा किया जा चुका है…पूरे बाईस हजार करोड़ रुपए चुकता करके । उसके कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम को तीन दिन पहले ही ईराक से स्मगल करके बाहर ले जाया जा चुका है ।"
" कहां ?"
पहले पाकिस्तान लाया गया था, उसके बाद नेपाल के रास्ते हिंदुस्तान पहुंचाया गया है ।”
"हथियार खरीदा किसने है?"
"मुस्तफा ने ।"
"यानी आईएसआईएस और बाकी दुनिया को यही मालूम है कि स्पेस वेपन उस "जमात उल फिजा' ने खरीदा है, जिसका मुखिया हाफिज लुईस है और मुस्तफा जिसका हुक्मबरदार है !"
“जी !"
हाफिज निगार खान से मुखातिब हुआ……"मेरा अगला सवाल तुमसे है निगार, अगर स्पेस वेपन का हमारे खिलाफ़ इस्तेमाल किया गया तो क्या सचमुच वैसा ही होगा, जिसकी खौफ़नाक तस्वीर अभी-अभी नामुराद हिंदुस्तानी ने खाका खींचकर बताई है?"
"गुस्ताखी माफ जनाब ।" निगार खान थोड़ा सकुचाता हुआ बोला था…“मेरे खयाल से 'हिंदुस्तानी' ने उस बाबत जो बताया है, थोड़ा कम करके बताया है और अपने मुल्क भारत की तकनीक के हिसाब से बताया है, जबकि असल में तकनीक के मामले में हमारा मुल्क भारत से वहुत पीछे है । भारत ने तो जीपीएस सिस्टम पर आधारित स्वतंत्र नेवीगेशन सिस्टम वना लिया है, जबकि हमारे लिए यह अभी तक दूर की कौडी है । इस फ्रंट पर हम पूरी तरह से चीन और अपने दूसरे साथी मुल्कों पर निर्भर हैं, हमारे दोनों सेटेलाइट 'बीटीएस टावर' का काम करते हैं ।"
" हूं ! "
"आप जानते ही होंगे कि किसी व्यापक सेटेलाइट को लांच करना वहुत मुश्किल, खर्चीला और वक्त खाने वाला काम है । हमारे
मुल्क के लिए तो और भी ज्यादा । इसमें कई…क्रई साल लग सकते हैं । ऐसे में अगर हमारी सेटेलइट तबाह हो गई तो यह मुल्क आज से बीस साल पीछे चला जाएगा ।"
रक्षामंत्री गयासुदूदीन दांत किटक्रिटाता हुआ बोला---"उन बीस सालों में हिंदुस्तान पचास साल आगे निकल जाएगा ।"
"आप क्या कहते हैं खान साहब?" हाफिज पाकिस्तानी सेना के जनरल माजिद खान से मुखातिब हुआ ।
" यह नहीं होना चाहिए ।" माजिद खान फिक्रमंद होकर कहता चला गया--“किसी भी सूरत में नहीं होना चाहिए । आज के आईटी दोर में किसी भी मुल्क की सेन्य ताकत पूरी तरह से तकनीक पर आधारित होती है । दुश्मन मुल्क की तुलना में हमारी बेहद कमजोर तकनीक वेसे ही हमेँ आज तक रुलाती आई है । ऐसे में यह बड़ा तक्नीकी हमला हमारी कमर तोड़ देगा और हम अपाहिज हो जाएंगे । उन हालात में अगर हमारे मुल्क पर कोई हमला होता है तो हम उसका मुंहतोड तो क्या जवाब ही देने के लायक नहीं होंगे ।"
“हिंदुस्तान की औकात नहीं है जो वह हमारे मुल्क पर हमला करने की जुर्रत कर सके ।" हाफिज मुट्रिठयां मींचकर बोला-“हमने साठ सालों में हिन्दुस्तान के अंदर इतने पाकिस्तान पैदा कर दिए है कि वह उनसे ही निपटता रह जाएगा ।"
"मैं कबूल करता हूं !” जनरल माजिद खान दृढता से बोला था…“लेकिन इसके साथ ही हमने वहां पर हिंदुस्तानी जैसे दीदावर भी पैदा किए है । क्या आप नहीं जानते कि यह हिंदुस्तानी अपने बाप 'दिनेश राणावत‘ की ट्रेजडी के वाद पैदा हुआ है और राणावत को बीस हजार करोड़ में खरीदकर हमने ही गद्दार वनाया था!"
सुना है कि उन्हें कल का सूरज निकलने से पहले ही फंसी पर लटका दिया जाएगा !
नहीं हाफिस------नहीं ऐसा भूलकर भी मत कर देना क्योंकि यदि तूने ऐसा किया तो पाकिस्तान में कयामत आ जाएगी और यह
कयामत न्यूक्लियर स्पेस वेपन लेकर आएगा ।
आज सारी दुनिया में हल्ला मचा हुआ है कि आईएसआईएस से उस वेपन को बाईस हजार करोड़ रुपयों में खरीदा जा चुका है और यह कारनामा तेरे हथियार 'मुस्तफा' ने अंजाम दिया है । केवल इतना ही नहीं, वह इस विध्वंसक हथियार से हिंदुस्तान के नेवीगेशन सेटेलाइट्स को तबाह करना चाहता है ।
हालांकि तेरे मुल्क के पास हिंदुस्तान जैसा व्यापक नेवीगेशन सेटेलाइट नेटवर्क नहीं है । केवल दो वड़ीं सेटेलाइट हैं, जिनसे पाकिस्तान का नेवीगेशन सिस्टम संचालित होता है । कल्पना कर हाफिज़, ये दोनों सेटेलाइट तबाह हो जाएं तो क्या होगा!
जाहिर है कि वेसा ही कुछ होगा जैसा मेरे मुल्क के नेवीगेशन सिस्टम के तबाह होने की सूरत में बताया जा रहा है । उस सूरत में तेरे मुल्क का समूचा संचार माध्यम पूरी तरह से ध्वस्त हो जाएगा । पाकिस्तान-क्री सारी सैन्य सुरक्षा प्रणाली छिन-भिन्न हो जाएगी । पब्लिक और फाइनेंस सेक्टर से जुड़े इंटरनेट पर' आधारित सारे इंतजाम नेस्तनाबूद हो जाएंगे । न तो कोईं विमान उडान भर सकेगा, न ही कोई समुद्री पोत मूव कर सकेगा । तेरी मिसाइलें, यहां तक कि परमाणु बम आदि भी, सब खिलौने बनकर रह जाएंगे । जल, थल और आकाश के एक जरे पर भी न तो तेरा कंट्रोल रह जाएगा और न ही नजर । इसके अलावा भी वहुत कुछ ऐसा है जो रोंगटे खड़े कर देने वाला है और अब यहीँ होने जा रहा है । स्पेस वेपन का कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम इस वक्त मेरे हाथ में है । यह देख------'
इन शब्दों के साथ ओवरकोटधारी एक तरफ हटा तो उसके पीछे एक कंट्रोल पैनल जैसा, ऐसा इलेक्ट्रानिक डेस्क नजर आया, जिस पर रंग बिरंगी लाइटे झिलमिला रही थी ।
हाफिस लुईस सहित सभी की निगाहें स्क्रीन पर चिपककर रह गई थी ! खास कर आईटी एक्सपर्ट निगार खान की । कैमरा पुन: ओवरकोटघारी के ऊपर फोकस हो गया । हिंदुस्तानी पुन: बोला-----अपने एक्सपर्ट को वीडियो दिखाकर तस्दीक कर ले कि मैंने जो दिखाया, वह वही है, जिसके बारे में हल्ला
मचा हुआ है, या नहीं । मेरे इशारे की देर है, स्पेस में मौजूद सेटेलाइट को नष्ट करने वाली न्यूक्लियर डिवाइस तेरी दोनों स्टैलाइट को ...........
हाफिस लुईस सहित सभी की निगाहें स्क्रीन पर चिपककर रह गई थी ! खास कर आईटी एक्सपर्ट निगार खान की । कैमरा पुन: ओवरकोटघारी के ऊपर फोकस हो गया । हिंदुस्तानी पुन: बोला-----अपने एक्सपर्ट को वीडियो दिखाकर तस्दीक कर ले कि मैंने जो दिखाया, वह वही है, जिसके बारे में हल्ला
मचा हुआ है, या नहीं । मेरे इशारे की देर है, स्पेस में मौजूद सेटेलाइट को नष्ट करने वाली न्यूक्लियर डिवाइस तेरी दोनों स्टैलाइट को
तबाह का देगी और मैं ऐसा ही करूंगा । ऐसा न हो, इसका केवल एक ही तरीका है । मेरे पांचो सीक्रेट कमांडो की फांसी रदूद कर दे और उन्हें बाइज्जत मुझे सौप दे ।
फैसला तेरे हाथ में है और जो भी फैसला हो, सुबह होने से पहले बता देना । यदि समय रहते हो तेरा माकूल जवाब नहीं मिला तो समझूगा कि तेरा जवाब इंकार है और मेरे कमांडोज को फांसी पर लटका दिया गया है । परिणामस्वरूप कल सूर्योदय के साथ ही तेरे मुल्क में कयामत ता दूगा ।
तुझ जेसे शैतानों को तेरी ही भाषा में जवाब देने का यह हुनर अब इस मुल्क ने सीख लिया है । मैं तेरे ज़वाब का इंतजार कर रहा हूं! जय हिंद । जय भारत ।"
हिंदुस्तानी का चेहरा स्कीन से गायब हो गया । आवाज आनी बंद हो गई और स्कीन पर खाली रोशनी फैल गई ।
निगार खान ने प्रोजेक्टर साफ कर दिया ।
कितने पल यूं ही बीत गए ।
समी के चेहरों पर पैना सन्नाटा छाया रहा ।
सन्नाटे को एक बार फिर हाफिज लुईस ने ही तोड़ा । वहुत गहरी और लम्बी सांस लेने के बाद बह आईएसआई के प्रमुख अब्दुल अंसारी से मुखातिब होता हुआ बोला था----"जनाब अंसारी साहब, मेरा पहाल सवाल आपसे है ।"
"जरूर ।" अंसारी ने मुंह से शब्द धकेले ।
“मैं सेटेलाइट को नेस्तनाबूद करने वाले उस स्पेस वेपन के मुताल्लिक मालूमात चाहता हूं ! जो आपसे बेहतर किसी और के पास नहीं हो सकती । क्या वह हथियार वाकई विक चुका है?”
“यह खबर सौ फीसदी दुरुस्त है ।" अंसारी का मटके जैसा सिर हिला-----"मैं इस बात की तस्दीक कर चुका हूं । आईएसआईएस से उस हथियार का सौदा किया जा चुका है…पूरे बाईस हजार करोड़ रुपए चुकता करके । उसके कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम को तीन दिन पहले ही ईराक से स्मगल करके बाहर ले जाया जा चुका है ।"
" कहां ?"
पहले पाकिस्तान लाया गया था, उसके बाद नेपाल के रास्ते हिंदुस्तान पहुंचाया गया है ।”
"हथियार खरीदा किसने है?"
"मुस्तफा ने ।"
"यानी आईएसआईएस और बाकी दुनिया को यही मालूम है कि स्पेस वेपन उस "जमात उल फिजा' ने खरीदा है, जिसका मुखिया हाफिज लुईस है और मुस्तफा जिसका हुक्मबरदार है !"
“जी !"
हाफिज निगार खान से मुखातिब हुआ……"मेरा अगला सवाल तुमसे है निगार, अगर स्पेस वेपन का हमारे खिलाफ़ इस्तेमाल किया गया तो क्या सचमुच वैसा ही होगा, जिसकी खौफ़नाक तस्वीर अभी-अभी नामुराद हिंदुस्तानी ने खाका खींचकर बताई है?"
"गुस्ताखी माफ जनाब ।" निगार खान थोड़ा सकुचाता हुआ बोला था…“मेरे खयाल से 'हिंदुस्तानी' ने उस बाबत जो बताया है, थोड़ा कम करके बताया है और अपने मुल्क भारत की तकनीक के हिसाब से बताया है, जबकि असल में तकनीक के मामले में हमारा मुल्क भारत से वहुत पीछे है । भारत ने तो जीपीएस सिस्टम पर आधारित स्वतंत्र नेवीगेशन सिस्टम वना लिया है, जबकि हमारे लिए यह अभी तक दूर की कौडी है । इस फ्रंट पर हम पूरी तरह से चीन और अपने दूसरे साथी मुल्कों पर निर्भर हैं, हमारे दोनों सेटेलाइट 'बीटीएस टावर' का काम करते हैं ।"
" हूं ! "
"आप जानते ही होंगे कि किसी व्यापक सेटेलाइट को लांच करना वहुत मुश्किल, खर्चीला और वक्त खाने वाला काम है । हमारे
मुल्क के लिए तो और भी ज्यादा । इसमें कई…क्रई साल लग सकते हैं । ऐसे में अगर हमारी सेटेलइट तबाह हो गई तो यह मुल्क आज से बीस साल पीछे चला जाएगा ।"
रक्षामंत्री गयासुदूदीन दांत किटक्रिटाता हुआ बोला---"उन बीस सालों में हिंदुस्तान पचास साल आगे निकल जाएगा ।"
"आप क्या कहते हैं खान साहब?" हाफिज पाकिस्तानी सेना के जनरल माजिद खान से मुखातिब हुआ ।
" यह नहीं होना चाहिए ।" माजिद खान फिक्रमंद होकर कहता चला गया--“किसी भी सूरत में नहीं होना चाहिए । आज के आईटी दोर में किसी भी मुल्क की सेन्य ताकत पूरी तरह से तकनीक पर आधारित होती है । दुश्मन मुल्क की तुलना में हमारी बेहद कमजोर तकनीक वेसे ही हमेँ आज तक रुलाती आई है । ऐसे में यह बड़ा तक्नीकी हमला हमारी कमर तोड़ देगा और हम अपाहिज हो जाएंगे । उन हालात में अगर हमारे मुल्क पर कोई हमला होता है तो हम उसका मुंहतोड तो क्या जवाब ही देने के लायक नहीं होंगे ।"
“हिंदुस्तान की औकात नहीं है जो वह हमारे मुल्क पर हमला करने की जुर्रत कर सके ।" हाफिज मुट्रिठयां मींचकर बोला-“हमने साठ सालों में हिन्दुस्तान के अंदर इतने पाकिस्तान पैदा कर दिए है कि वह उनसे ही निपटता रह जाएगा ।"
"मैं कबूल करता हूं !” जनरल माजिद खान दृढता से बोला था…“लेकिन इसके साथ ही हमने वहां पर हिंदुस्तानी जैसे दीदावर भी पैदा किए है । क्या आप नहीं जानते कि यह हिंदुस्तानी अपने बाप 'दिनेश राणावत‘ की ट्रेजडी के वाद पैदा हुआ है और राणावत को बीस हजार करोड़ में खरीदकर हमने ही गद्दार वनाया था!"
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Re: गद्दार देशभक्त
"साहेबान ।” पाकिस्तानी राषट्रीय सुरक्षा सलाहकार एहसान इलाही बीच में दखलंदाज होता हुआ विनीत भाव से बोला…“माफी चाहता हूं ! यह किसी डिबेट का मंच नहीं है, न ही हम यह बहस करने के लिए इकट्ठा हुऐ हैं कि क्या, कैसे और क्यों हुआ । हमारा मुल्क इस वक्त धोर संकट में है । अगर कहे कि आपातस्थिति में है । जरा भी गलत नहीं होगा । एक बार को मैं हाफिज साहब के इस ख्याल से सहमत हो सकता हूं क्रि रकीब मुल्क हम पर हमला करने की जुर्रत नहीं कर सकता लेकिन हम अपने ही मुल्क में बैठे उन दहशतगर्दों पर यकीन नहीं कर सकते, जो रात-दिन हमे ही खून से नहला रहे हैं । हम बलूचिस्तानियों पर भरोसा नहीं कर सकते, जो हर लम्हे हमारी कमजोरियों पर धात लगाए बैठे हैं । हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हम अपनी एक 'वजीरे आजम' को गंवा चुके हैं । और उन्हें भी हिन्दुस्तान ने नहीं बल्कि हमारे अपने मुत्क के दहशतगर्द संगठनों ने मारा था और. . "
वह जैसे सांस लेने के लिए सका ।
सबकी नजरें एहसान इलाही पर ही टिकी थीं ।
इलाही पुन: बोला------" मुल्क का सुरक्षा सलाहकार होने के नाते मुझे यहां के सुरक्षा इंतजामात की बहुत अंदर तक जानकारी है और मुझे वहुत अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि हमारे मुल्क के हुक्मरानों की दहशतपसंद नीतियों ने हमें कभी सच को जानने ही नहीं दिया । इसीलिए हमारी सैन्य तथा रक्षा से जुडी दूसरी समी तैयारियां इस हद तक खोखली हो चुकी हैं कि हिंदुस्तान तो दूर भी बात है, हम अपने घर में बैठे दुश्मनों से भी लड़ने के लायक नहीं हैं । हमारे लिए तो अपने परमाणु हथियारों की हिफाजत कर पाना भी किसी चुनौती से कम नहीं है । हमारी अर्थव्यवस्था वेंटिलेटर पर है । कानून व्यवस्था का आलम तो यह है कि हमारी तंजीम का हर शख्स खुद को खुदा का बंदा समझता है और अपने आप को मुल्क के कानून से ऊपर मानता है । यह हमारे दुश्मन मुल्क की शराफत है, जो सब कुछ जानते हुए भी, उसने कभी हमारे इन घरेलू हालात का फायदा उठाने की कोशिश नहीं की । अगर हमारा मुत्क ऐसी पोजीशन में होता तो अब तक हिंदुस्तान की न जाने कितनी पीढियों को बरबाद कर चुका होता ।"
इलाही खामोश हो गया और गहरी-गहरी सांसे लेने लगा । किसी ने भी उसका प्रतिकार नहीं किया ।
कुछ पल यूं ही बीत गए ।
अंतत: हाफिज बोला------"लम्बी-चौडी स्पीच का मतलब यह निकला इलाही साहब कि आप सरेडर के हक में हैं?"
“हमने दर्जनों बार हिंदुस्तान से वहुत शर्मनाक सरेंडर करवाए हैं ।" इलाही बोला------" और आने वाले कल में भी इसे दोहराते रहेगे । फिर एक बार खुद सरेंडर कर देने में क्या हर्ज है?"
"आप क्या कहते हैं चीफ़ साहब?" हाफिज ने अंसारी से पूछा ।
"हमने पहली बार शिकस्त खाई है ।" अंसारी कसमसाता खा बोला था-----बहुत करारी शिकस्त । हमारा ऑपरेशन वेहद फूलप्रूफ था लेकिन अफ़सोस कि वह नाकाम हो गया और उस ऑपरेशन पर हिंदुस्तान गए हमारे सभी पांचों दहशतगर्द मारे गए । लिहाजा दुश्मन की बात मान लेने में ही भलाई है ! "
हाफिज ने फैसला सुनाया -----" तो हम एक राय से इस नतीजे पर पहुँचे है कि उन पांचो बंदियों को हिंदुस्तानी के हबाले कर दिया जाऐ! ''
सभी ने मुक्त सहमति दी ॥॥॥॥॥
हाफिज के चेहरे पर जलजला-सा आया ।
फिर, होंठों पर कुटिल मुस्कान फैलती चली गई ।
आईएसआई चीफ ने अर्थपूर्ण स्वर में कहा…“आपकी यह मुस्कराहट बहुत कुछ कह रही है हाफिज साहब ।"
"क्या करू जनाबे आली !" हाफिज असहाय भाव से उसकी तरफ देखता बोला------------'"दिल की लगी है, आसानी से नहीं छूटती। फिर भी यह मामला सीधा हमारे मुल्क की हिफाजत से जुडा है, इसलिए देखता हूं यह 'लगी' क्या गुल खिलाती है । आमीन ।"
रात के दस बज चुके थे और नवाब ने अभी तक पानी का एक पूंट भी हलक से नहीं उतारा था ।
वह अपनी उसी कम्यूटर लेब में था, जहाँ कल तक चौरसिया भी था और जहाँ उसने बीस हजार करोड़ के डिपाजिट वाले बैंक एकाउंट को हैक करने का कारनामा अंजाम दिया था ।
वह बेहद व्याकुल भाव से कालीन पर चहलकदमी कर रहा था और रह…रहकर दीवार पर लगी वॉल क्लाक को देख रहा था।
जैसे-जिसे समय बीत रहा था, उसकी उत्कंठा तथा बेचैनी में इजाफा होता जा रहा था ।
तभी, फोन बजा । वह एक खास किस्म का सेटेलाइट फोन था, जिसकी लोकेशन को नवाब की मर्जी के बगैर दुनिया के किसी भी सर्विलांस से ट्रेस कर पाना सम्भव नहीं था ।
नवाब ने फोन को ऑन किया और कान से लगाया ।
"मुबारक हो हिंदुस्तानी ।" दूसरी तरफ से सरफ़राज़ अहमद का स्वर उभरा-----"तुम्हारे लिए अच्छी खबर है ।"
""शटअप! !!!!'” नवाब के स्वर में कोड़े जैसी फटकार थी------"इस बात को छोडो कि कौन-सी खबर किसके लिए अच्छी है और किसके लिए खराब । बस खबर सुनाओ ।"
"हम तैयार हैं लेकिन...
“लेकिन?" नवाब की मृगुटी तन गई ।
"हमारी भी एक शर्त है ।"
"बोलो ।"
"गारंटी चाहिए कि धोखा नहीं होगा ।"
“क्या गारंटी चाहिए?"
"सेटेलाइट तबाह करने वाले वेपन का कमांड सिस्टम हमारे हवाले करना होगा ।"
"अरे अहमक! अक्ल की बात कर । जिस हथियार ने तुम हरामखोरों को भीगी बिल्ली वना दिया है, उसे ही तुम्हारे हाथो में सौंपकर मैं खुद अपने पेरों पर कुल्हाडी मारूंगा! मैं तुम्हारे मुल्क के हुक्मरानों को ऐसा जाहिल नजर आता हूं ???
मैं उसे तुम्हारी आंखों के सामने ही नष्ट कर दूगा । एक वार वह कमांड सिस्टम नष्ट हो गया तो फिर उसे दोबारा वनाया नहीं जा सकता । उसके खत्म हो जाने की सूरत में अंतरिक्ष की कक्षा में मौजूद न्यूक्लियर डिवाइस खुद…ब....खुद बेकार हो जाएगी । फिर वह किसी सेटेलाइट को नुकसान नहीं पहुंचा सकेगी और एक भयानक खतरा हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा ।"
हिंदुस्तानी ने कुछ क्षण मनन किया । पूछा---------------------"मेरे लोग कहां हैं?"
"इसी मुल्क में ।"
""क्या?"
"हां । उन्हें हिंदुस्तान लाया जा चुका है ।"
"इतनी जल्दी?"
"कैसी जल्दी प्लेन से सरहद पार आने-जाने में टाइम ही कितना लगता है और फिर तुमने हमे वक्त ही कहां दिया था?"
"हिंदुस्तान से कहां हैं?"
सरफराज व्यंगात्मक भाव से हंसा । फिर बोला------" अब तुम मुझे जाहिल समझने की गलती कर रहे हो ।”
"लोमडी ने मक्कारी तुम पाकिस्तानियों से ही सीखी है । मैं तुम्हारी जुबान पर भरोसा नहीं कर सकता । सवूत चाहिए । मुझे इस वात का पक्का सबूत चाहिए कि तुम जो कह रहे हो यह सच है, मेरे लोगों को हिंदुस्तान लाया जा चुका है ।"
"सबूत मिल जाएगा ॥॥॥॥॥॥॥
"फौरन चाहिए ।"
"क्या तुम्हारे पास वीडियों कांफ्रेंसिंग की सुबिधा है?"
" है !"
"अपने सिस्टम को आँन करो और उसकी फ्रीक्वेंसी को मेरी बताई फ्रीक्वेंसी पर लिंक करो ।"
वह जैसे सांस लेने के लिए सका ।
सबकी नजरें एहसान इलाही पर ही टिकी थीं ।
इलाही पुन: बोला------" मुल्क का सुरक्षा सलाहकार होने के नाते मुझे यहां के सुरक्षा इंतजामात की बहुत अंदर तक जानकारी है और मुझे वहुत अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि हमारे मुल्क के हुक्मरानों की दहशतपसंद नीतियों ने हमें कभी सच को जानने ही नहीं दिया । इसीलिए हमारी सैन्य तथा रक्षा से जुडी दूसरी समी तैयारियां इस हद तक खोखली हो चुकी हैं कि हिंदुस्तान तो दूर भी बात है, हम अपने घर में बैठे दुश्मनों से भी लड़ने के लायक नहीं हैं । हमारे लिए तो अपने परमाणु हथियारों की हिफाजत कर पाना भी किसी चुनौती से कम नहीं है । हमारी अर्थव्यवस्था वेंटिलेटर पर है । कानून व्यवस्था का आलम तो यह है कि हमारी तंजीम का हर शख्स खुद को खुदा का बंदा समझता है और अपने आप को मुल्क के कानून से ऊपर मानता है । यह हमारे दुश्मन मुल्क की शराफत है, जो सब कुछ जानते हुए भी, उसने कभी हमारे इन घरेलू हालात का फायदा उठाने की कोशिश नहीं की । अगर हमारा मुत्क ऐसी पोजीशन में होता तो अब तक हिंदुस्तान की न जाने कितनी पीढियों को बरबाद कर चुका होता ।"
इलाही खामोश हो गया और गहरी-गहरी सांसे लेने लगा । किसी ने भी उसका प्रतिकार नहीं किया ।
कुछ पल यूं ही बीत गए ।
अंतत: हाफिज बोला------"लम्बी-चौडी स्पीच का मतलब यह निकला इलाही साहब कि आप सरेडर के हक में हैं?"
“हमने दर्जनों बार हिंदुस्तान से वहुत शर्मनाक सरेंडर करवाए हैं ।" इलाही बोला------" और आने वाले कल में भी इसे दोहराते रहेगे । फिर एक बार खुद सरेंडर कर देने में क्या हर्ज है?"
"आप क्या कहते हैं चीफ़ साहब?" हाफिज ने अंसारी से पूछा ।
"हमने पहली बार शिकस्त खाई है ।" अंसारी कसमसाता खा बोला था-----बहुत करारी शिकस्त । हमारा ऑपरेशन वेहद फूलप्रूफ था लेकिन अफ़सोस कि वह नाकाम हो गया और उस ऑपरेशन पर हिंदुस्तान गए हमारे सभी पांचों दहशतगर्द मारे गए । लिहाजा दुश्मन की बात मान लेने में ही भलाई है ! "
हाफिज ने फैसला सुनाया -----" तो हम एक राय से इस नतीजे पर पहुँचे है कि उन पांचो बंदियों को हिंदुस्तानी के हबाले कर दिया जाऐ! ''
सभी ने मुक्त सहमति दी ॥॥॥॥॥
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फिर, होंठों पर कुटिल मुस्कान फैलती चली गई ।
आईएसआई चीफ ने अर्थपूर्ण स्वर में कहा…“आपकी यह मुस्कराहट बहुत कुछ कह रही है हाफिज साहब ।"
"क्या करू जनाबे आली !" हाफिज असहाय भाव से उसकी तरफ देखता बोला------------'"दिल की लगी है, आसानी से नहीं छूटती। फिर भी यह मामला सीधा हमारे मुल्क की हिफाजत से जुडा है, इसलिए देखता हूं यह 'लगी' क्या गुल खिलाती है । आमीन ।"
रात के दस बज चुके थे और नवाब ने अभी तक पानी का एक पूंट भी हलक से नहीं उतारा था ।
वह अपनी उसी कम्यूटर लेब में था, जहाँ कल तक चौरसिया भी था और जहाँ उसने बीस हजार करोड़ के डिपाजिट वाले बैंक एकाउंट को हैक करने का कारनामा अंजाम दिया था ।
वह बेहद व्याकुल भाव से कालीन पर चहलकदमी कर रहा था और रह…रहकर दीवार पर लगी वॉल क्लाक को देख रहा था।
जैसे-जिसे समय बीत रहा था, उसकी उत्कंठा तथा बेचैनी में इजाफा होता जा रहा था ।
तभी, फोन बजा । वह एक खास किस्म का सेटेलाइट फोन था, जिसकी लोकेशन को नवाब की मर्जी के बगैर दुनिया के किसी भी सर्विलांस से ट्रेस कर पाना सम्भव नहीं था ।
नवाब ने फोन को ऑन किया और कान से लगाया ।
"मुबारक हो हिंदुस्तानी ।" दूसरी तरफ से सरफ़राज़ अहमद का स्वर उभरा-----"तुम्हारे लिए अच्छी खबर है ।"
""शटअप! !!!!'” नवाब के स्वर में कोड़े जैसी फटकार थी------"इस बात को छोडो कि कौन-सी खबर किसके लिए अच्छी है और किसके लिए खराब । बस खबर सुनाओ ।"
"हम तैयार हैं लेकिन...
“लेकिन?" नवाब की मृगुटी तन गई ।
"हमारी भी एक शर्त है ।"
"बोलो ।"
"गारंटी चाहिए कि धोखा नहीं होगा ।"
“क्या गारंटी चाहिए?"
"सेटेलाइट तबाह करने वाले वेपन का कमांड सिस्टम हमारे हवाले करना होगा ।"
"अरे अहमक! अक्ल की बात कर । जिस हथियार ने तुम हरामखोरों को भीगी बिल्ली वना दिया है, उसे ही तुम्हारे हाथो में सौंपकर मैं खुद अपने पेरों पर कुल्हाडी मारूंगा! मैं तुम्हारे मुल्क के हुक्मरानों को ऐसा जाहिल नजर आता हूं ???
मैं उसे तुम्हारी आंखों के सामने ही नष्ट कर दूगा । एक वार वह कमांड सिस्टम नष्ट हो गया तो फिर उसे दोबारा वनाया नहीं जा सकता । उसके खत्म हो जाने की सूरत में अंतरिक्ष की कक्षा में मौजूद न्यूक्लियर डिवाइस खुद…ब....खुद बेकार हो जाएगी । फिर वह किसी सेटेलाइट को नुकसान नहीं पहुंचा सकेगी और एक भयानक खतरा हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा ।"
हिंदुस्तानी ने कुछ क्षण मनन किया । पूछा---------------------"मेरे लोग कहां हैं?"
"इसी मुल्क में ।"
""क्या?"
"हां । उन्हें हिंदुस्तान लाया जा चुका है ।"
"इतनी जल्दी?"
"कैसी जल्दी प्लेन से सरहद पार आने-जाने में टाइम ही कितना लगता है और फिर तुमने हमे वक्त ही कहां दिया था?"
"हिंदुस्तान से कहां हैं?"
सरफराज व्यंगात्मक भाव से हंसा । फिर बोला------" अब तुम मुझे जाहिल समझने की गलती कर रहे हो ।”
"लोमडी ने मक्कारी तुम पाकिस्तानियों से ही सीखी है । मैं तुम्हारी जुबान पर भरोसा नहीं कर सकता । सवूत चाहिए । मुझे इस वात का पक्का सबूत चाहिए कि तुम जो कह रहे हो यह सच है, मेरे लोगों को हिंदुस्तान लाया जा चुका है ।"
"सबूत मिल जाएगा ॥॥॥॥॥॥॥
"फौरन चाहिए ।"
"क्या तुम्हारे पास वीडियों कांफ्रेंसिंग की सुबिधा है?"
" है !"
"अपने सिस्टम को आँन करो और उसकी फ्रीक्वेंसी को मेरी बताई फ्रीक्वेंसी पर लिंक करो ।"
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी
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Re: गद्दार देशभक्त
गद्दार देशभक्त
नवाब उर्फ हिंदुस्तानी ने तुरंत एक पैनल पर रखा रिमोट उठाकर हॉल में मौजूद प्रोजेक्टर आंन किया । हाल की एक सपाट दीवार पर प्रोजेक्ट का बड़ा-सा फोकस फैल गया । हिंदुस्तानी लपककर उस कम्यूटर के सामने जाकर बैठ गया, जिससे प्रोजेक्टर कनेक्ट था और प्रोजेक्टर के अतिरिक्त भी बेव कैमरा तथा वाई फाई जैसे वीडियों कांफेसिंग में काम आने वाले उपकरण उपस्थित थे ।
“फ्रीक्वेंसी बताओ ।" हिंदुस्तानी कम्प्यूटर के कीबोर्ड पर उंगलियां चलाता हुआ बोला । सरफराज ने बताया और फोन डिस्कनेक्ट कर दिया ।
नवाब ने फोन एक तरफ़ रखा । एकाएक वह काफी अधीर हो उठा था ।
फुर्ती से सरफराज की बताई फ्रीक्वेंसी पर लिक अप किया ।
स्कीन पर हलचल पैदा हुई और फिर दृश्य उभरने लगे ।
सबसे पहले जो दृश्य नजर आया, वह किसी कोठी की विशाल लॉबी का था । उसके बाद एक जनाना चेहरा उभरा ।
नीलिमा का चेहरा ।
उसकी नीलम का चेहरा ।
उदास, मुरझाया चेहरा और डूबती-सी ऐसी निस्तेज आंखें, जो बगैर कुछ कहे ही उसके नाजुक मन की पीड़ा को उगल रही थी ।
हिंदुस्तानी का दिल अनायास ही जोर-जोर से धड़क उठा। कितना अरसा हो गया था उसे यह चेहरा देखे हुए!
दूसरी तरफ़ मौजूद नीलिमा को भी सम्भवत: हिंदुस्तानी का चेहरा नजर आ रहा था । उसकी जमी हुई आंखों से हसरत झांकने लगी थी लेकिन उन आंखों में द्धद और असमंजस भी था ।
वह शायद हिंदुस्तानी के नवाब वाले मेकअप की वजह से था ।
"नीलम ।" हिंदुस्तानी के होंठ फङ़फ़ड़ाए । उसकी आवाज दूसरी तरफ मौजूद नीलिमा ने साफ-साफ सुनी थी ।
“अ. . अर्जुन ।" उसके होठो से हठात् निकला था । उसने अपने हमसफ़र की आवाज पहचान ली थी और वह बुरी तरह उतेजित होकर कह उठी थी------"या रब! !! यह मैं क्या देख रही हूं ! मैं तो तुम्हें देखने की उम्मीद ही छोड़ चुकी थी ।"
"मेरी उम्मीदें बरकरार थी ।"
"मुझे पता था तुम जरूर आओगे, मेरे रब ।" नीलिमा का हर लफ्ज ज़ज्वातों से सराबोर था…“मगर आने में बडी देर कर दी ।"
"" आया तो सही !""
"एकदम सही वत्त पर आए हो । वरना कल सुबह ही हमें फासी पर चढ़ा दिया जाने वाला था ।"
"तुम कहां हो?”
"हिंदुस्तानी के हिंदुस्तान में हू लेकिन यह नहीं बता सकती कि कौनसे शहर, कस्बे या गांव मे हू ! थोड़ी देर पहले ही एक विशेष विमान से हमे यहां लाया गया है ।"
"अंजली कहां है? मेरे बाकी जांबाज कहां हैं?"
"साथ ही है । सभी को साथ लाया गया है ।"
"दिखाओ-मुझें उनकी शक्लें दिखाओ ।"
नीलिमा ने अपने इर्द-गिर्द निगाह दोड़ाई! !!
उसका चेहरा जूम आउट हो गया ।
फिर, दुदुस्तानी को चार शक्ले नजर आई । उसने पहचाना ।
उनकी अत्यंत दयनीय हालत के बावजूद पहचाना । वे चारों अंजली, सुबोध, अनिल और समर थे । ऑपरेशन दुर्ग की मुकम्मल टीम । स्रीकेट सेल के पांचों सीक्रेट कमांडो ।
" हेलो कमांडर ।" सुबोध के होंठो में कंपन हुआ । उसे जैसे अपनी आंखो पर यकीन नहीं हो पा रहा था । “म. . .मुझे तो जरा भी यकीन नहीं था कि हम लोग दोबारा एक दूसरे को देखे पाएंगे ।" अनिल के उन अल्फाजों में दर्द छुपा था ।
नीलिमा ने कुछ कहना चाहा , लेकिन तभी स्क्रीन मे हलचल हुई और सारा दृश्य गायब हो गया ॥॥॥॥॥॥॥
हिंदुस्तानी फुर्ती से कंप्यूटर के की-बोर्ड पर झपटा। उसने जल्दी जल्दी कई की पुश की मगर कोई फायदा नही !!!!'
सेटेलाईट फोन बजा !
" सबूत मिल गया !" सरफ़राज़ अहमद ने पूछा ।
“हां ! ”
" डील की जगह मुकर्रर करो ।
“मुम्बई! !"
"नहीं चलेगा ।"
“यह फैसला करने की अथारिटी तुम्हें किसने दी ?"
“मेरे मुल्क ने ।"
"फिर?"
"अगर तुम्हें मुझ पर यकीन नहीं तो मुझें तुम पर यकीन नहीं है । किसी और जगह का नाम लो जो मुझे भी रास आए । शर्त बस इतनी है कि वहां समुद्र जरूर होना चाहिए ।"
" ऐसा क्यों? "
" ताकि विनाशकारी हथियार की 'कुंजी' को ब्लास्ट करके उसका मलबा समुद्र की तलहटी में पहुचा सकू।”
" ऐसी जगह तो मुम्बई भी है ।"
"बंगाल की खाडी सारी दुनिया में मशहूर है ।"
"तुम डील वहां चाहते हो?"
नवाब उर्फ हिंदुस्तानी ने तुरंत एक पैनल पर रखा रिमोट उठाकर हॉल में मौजूद प्रोजेक्टर आंन किया । हाल की एक सपाट दीवार पर प्रोजेक्ट का बड़ा-सा फोकस फैल गया । हिंदुस्तानी लपककर उस कम्यूटर के सामने जाकर बैठ गया, जिससे प्रोजेक्टर कनेक्ट था और प्रोजेक्टर के अतिरिक्त भी बेव कैमरा तथा वाई फाई जैसे वीडियों कांफेसिंग में काम आने वाले उपकरण उपस्थित थे ।
“फ्रीक्वेंसी बताओ ।" हिंदुस्तानी कम्प्यूटर के कीबोर्ड पर उंगलियां चलाता हुआ बोला । सरफराज ने बताया और फोन डिस्कनेक्ट कर दिया ।
नवाब ने फोन एक तरफ़ रखा । एकाएक वह काफी अधीर हो उठा था ।
फुर्ती से सरफराज की बताई फ्रीक्वेंसी पर लिक अप किया ।
स्कीन पर हलचल पैदा हुई और फिर दृश्य उभरने लगे ।
सबसे पहले जो दृश्य नजर आया, वह किसी कोठी की विशाल लॉबी का था । उसके बाद एक जनाना चेहरा उभरा ।
नीलिमा का चेहरा ।
उसकी नीलम का चेहरा ।
उदास, मुरझाया चेहरा और डूबती-सी ऐसी निस्तेज आंखें, जो बगैर कुछ कहे ही उसके नाजुक मन की पीड़ा को उगल रही थी ।
हिंदुस्तानी का दिल अनायास ही जोर-जोर से धड़क उठा। कितना अरसा हो गया था उसे यह चेहरा देखे हुए!
दूसरी तरफ़ मौजूद नीलिमा को भी सम्भवत: हिंदुस्तानी का चेहरा नजर आ रहा था । उसकी जमी हुई आंखों से हसरत झांकने लगी थी लेकिन उन आंखों में द्धद और असमंजस भी था ।
वह शायद हिंदुस्तानी के नवाब वाले मेकअप की वजह से था ।
"नीलम ।" हिंदुस्तानी के होंठ फङ़फ़ड़ाए । उसकी आवाज दूसरी तरफ मौजूद नीलिमा ने साफ-साफ सुनी थी ।
“अ. . अर्जुन ।" उसके होठो से हठात् निकला था । उसने अपने हमसफ़र की आवाज पहचान ली थी और वह बुरी तरह उतेजित होकर कह उठी थी------"या रब! !! यह मैं क्या देख रही हूं ! मैं तो तुम्हें देखने की उम्मीद ही छोड़ चुकी थी ।"
"मेरी उम्मीदें बरकरार थी ।"
"मुझे पता था तुम जरूर आओगे, मेरे रब ।" नीलिमा का हर लफ्ज ज़ज्वातों से सराबोर था…“मगर आने में बडी देर कर दी ।"
"" आया तो सही !""
"एकदम सही वत्त पर आए हो । वरना कल सुबह ही हमें फासी पर चढ़ा दिया जाने वाला था ।"
"तुम कहां हो?”
"हिंदुस्तानी के हिंदुस्तान में हू लेकिन यह नहीं बता सकती कि कौनसे शहर, कस्बे या गांव मे हू ! थोड़ी देर पहले ही एक विशेष विमान से हमे यहां लाया गया है ।"
"अंजली कहां है? मेरे बाकी जांबाज कहां हैं?"
"साथ ही है । सभी को साथ लाया गया है ।"
"दिखाओ-मुझें उनकी शक्लें दिखाओ ।"
नीलिमा ने अपने इर्द-गिर्द निगाह दोड़ाई! !!
उसका चेहरा जूम आउट हो गया ।
फिर, दुदुस्तानी को चार शक्ले नजर आई । उसने पहचाना ।
उनकी अत्यंत दयनीय हालत के बावजूद पहचाना । वे चारों अंजली, सुबोध, अनिल और समर थे । ऑपरेशन दुर्ग की मुकम्मल टीम । स्रीकेट सेल के पांचों सीक्रेट कमांडो ।
" हेलो कमांडर ।" सुबोध के होंठो में कंपन हुआ । उसे जैसे अपनी आंखो पर यकीन नहीं हो पा रहा था । “म. . .मुझे तो जरा भी यकीन नहीं था कि हम लोग दोबारा एक दूसरे को देखे पाएंगे ।" अनिल के उन अल्फाजों में दर्द छुपा था ।
नीलिमा ने कुछ कहना चाहा , लेकिन तभी स्क्रीन मे हलचल हुई और सारा दृश्य गायब हो गया ॥॥॥॥॥॥॥
हिंदुस्तानी फुर्ती से कंप्यूटर के की-बोर्ड पर झपटा। उसने जल्दी जल्दी कई की पुश की मगर कोई फायदा नही !!!!'
सेटेलाईट फोन बजा !
" सबूत मिल गया !" सरफ़राज़ अहमद ने पूछा ।
“हां ! ”
" डील की जगह मुकर्रर करो ।
“मुम्बई! !"
"नहीं चलेगा ।"
“यह फैसला करने की अथारिटी तुम्हें किसने दी ?"
“मेरे मुल्क ने ।"
"फिर?"
"अगर तुम्हें मुझ पर यकीन नहीं तो मुझें तुम पर यकीन नहीं है । किसी और जगह का नाम लो जो मुझे भी रास आए । शर्त बस इतनी है कि वहां समुद्र जरूर होना चाहिए ।"
" ऐसा क्यों? "
" ताकि विनाशकारी हथियार की 'कुंजी' को ब्लास्ट करके उसका मलबा समुद्र की तलहटी में पहुचा सकू।”
" ऐसी जगह तो मुम्बई भी है ।"
"बंगाल की खाडी सारी दुनिया में मशहूर है ।"
"तुम डील वहां चाहते हो?"
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Re: गद्दार देशभक्त
" केबल मिसाल दी है । बाजी तुम्हारे हाथ में है इसलिए मैं तुम्हें इसके लिए फोर्स नहीं कर सकता ! लेकिन अगर मेरी चलती तो मैं इस डील के लिए वंगाल को ही चुनता ।"
"दुश्मनों को घर में घुसकर मारना मेरा शौक भी है और पेशा भी । मे तीन घंटे के अंदर वंगाल पहुच जाऊंगा । वहां जो भी जगह तुम्हें सबसे ज्यादा रास आती हो, उसका नाम बोलो ।"
"कमाल है!"
"तुम्हें लगता होगा ।"
"तुम वाकई हद से ज्यादा दुस्साहसी हो हिंदुस्तानी मैं इसके लिए तैयार नहीं था । फैसला करने के लिए योड़ा-सा वक्त दो! थोडी देर में तुम्हें कॉल बैक करता हू ।”
"ठीक है ।" फोन डिस्कनेक्ट हो गया !
बलवंत राव ने टेलीफोन का रिसीवर उठाकर कान से लगाया और माउथपीस के करीब मुंह ले जाकर अपनी व्यवसाय सुलभ कठोरता से बोला…“यस ।”
" कैसे हो बलवंत !" दूसरी तरफ से पूछा गया । बलवंत राव ने वह आवाज तुरंत पहचानी और उसे पहचानते ही वह उछल पड़ा------------"म................मैं ठीक हूँ ।"
"खबरदार ! ” दूसरी तरफ़ से बोलने वाला रहस्यमय शख्स चेतावनी भरे स्वर में बोला------"मेरा नाम मत लेना ।"
बलवंत राव सकपकाकर चुप रह गया ।
"मेरी बात गोर से सुनो बलवंत ।" दूसरी तरफ़ से सपाट स्वर में कहा गया…“जो पूछू बगैर हुज्जत के उसका जवाब देना ।"
" जी पूछिए ।"
"तुम्हारे धनंजय उर्फ हिंदुस्तानी-की क्या खबर है?"
" क…क्या इस बारे में फोन पर बात करना ठीक होगा?" बलवंत राव सावधान स्वर में बोला ।
"फिक्र मत करो, यह लाइन बिल्कुल सेफ है । मुल्क की सबसे बडी खुफिया एजेंसी की लाइन ही सेफ नहीं होगी तो लानत है ऐसी खुफिया खुजेंसी पर ।"
बलवत कसमसाया ।
जैसे फैसला न कर पा रहा हो कि क्या करे ।
"तुम शायद मेरी वार्निंग को भूल गए बलवंत!" दूसरी और से उभरने वाला स्वर सख्त हो गया था-----"मैंने कहा था कि मुझे हुज्जत करने वाले लोग पसंद नहीं हैं ।"
"उ -उसका मिशन पूरा हो चुका है '" बलवंत राव जैसे घोर विवशता से घिरा बोला था-----------उसने हाफिज और आईएसआई का आपरेशन औरंगजेब पूरी तरह ध्वस्त कर दिया है ।"
"वह सब मुझे मालूम है । उससे आगे की बताओ ।"
"उसके आगे की क्या बताऊं?"
"सेटेलाइट तबाह करने वाला हथियार कहां है?"
"धनंजय के पास ।"
"और धनंजय कहां है?”
"उससे यह सवाल पूछने की हिम्मत भला कौन कर सकता है ?"
"बको मत । मेरे पास पक्की खबर है कि पांचों सीक्रेट कमांडो की फांसी कैंसिल करा दी गई है और वे भारत लाए जा चुके हैं ।"
"मेरे पास ऐसी कोई खबर नहीं है ।"
"अब तो हो गई! "
"मेरे पास ऐसी खबरें हासिल करने के अपने स्रोत हैं । मैं केवल उन्हीं पर भरोसा करता हू ।"
"बाज आ जाओ बलवंत, वरना ये धीगामुश्ती वाले जवाब तुम्हें बहुत मंहगे पड़ेगे ।"
"मुझें क्या करना होगा?"
"तुम्हें धनंजय को रोकना होगा ।"
"अब क्या किया है उसने ?"
"अभी किया नहीं है बल्कि करने वाला है ।” कड़क लहजे में कहा गया……"वह सेटेलाइट तबाह करने वाले हथियार का सौदा करने वाला है और यह मुझें मंजूर नहीं ।"
"क्यों मंजूर नहीं?"
"क्योंकि वह एक निहायत-दुर्लभ और बेशकीमती हथियार है, जिसकी कीमत महज पांच जाने नहीं हो सकती ।"
"फिर?"
"हमे हिंदुस्तानी को रोकना होगा और उससे वह हथियार हासिल करना होगा ।"
"हिंदुस्तानी के जीते जी यह नहीं हो सकता । उसके लिए हमें उसकी लाश से गुजरना होगा !"
“उस हथियार की यह वहुत छोटी-सी कीमत होगी ।" बगैर किसी हिचक के कहा गया-----------हिंदुस्तानी को खत्म कर दो ।"
" ऐसा हुआ तो वे पांचों भी मारे जाएंगे ।"
"आईं डोंट केयर ।"
"सोच लीजिए, यह वहुत बड़ा कदम होगा ।"
"मैंने तुमसे तुम्हारी राय नहीं पूछी बलवंत, यह बताया है कि मैं क्या चाहता हूं और मैं जो चाहता हू अहमियत केवल उसकी है । उसके अलावा किसी बात की नहीं । सुना तुमने !"
“ज...जी हां । मगर…
“शटअप. . .एंड फालो माई आर्डर । अंडरस्टैंड?"
" यस सर ।"
“मुझे नतीजा चाहिए…वह भी फौरन । अगर मुझे माफिक नतीजा नहीं मिला तो तुम जानते हो बलवंत राव कि तुम्हारा क्या हश्र हो सकता है ।"
बलवंत तिलमिलाया, लेकिन विरोध नहीं कर सका ।
"तुम्हारे पास सिर्फ आज की रात है बलवंत ।" रहस्यमय शख्स पुन: बोला…“केवल आज की रात । तुम्हें जो कुछ भी करना है, आज बल्कि अभी करना है । चूक गए तो फिर जान लो कि यह मौका दोबारा कभी हासिल नहीं होगा बल्कि तब तुम्हारी कटी हुई गर्दन हिंदुस्तानी के हाथ में झूल रही होगी । सुना तुमने?"
"दुश्मनों को घर में घुसकर मारना मेरा शौक भी है और पेशा भी । मे तीन घंटे के अंदर वंगाल पहुच जाऊंगा । वहां जो भी जगह तुम्हें सबसे ज्यादा रास आती हो, उसका नाम बोलो ।"
"कमाल है!"
"तुम्हें लगता होगा ।"
"तुम वाकई हद से ज्यादा दुस्साहसी हो हिंदुस्तानी मैं इसके लिए तैयार नहीं था । फैसला करने के लिए योड़ा-सा वक्त दो! थोडी देर में तुम्हें कॉल बैक करता हू ।”
"ठीक है ।" फोन डिस्कनेक्ट हो गया !
बलवंत राव ने टेलीफोन का रिसीवर उठाकर कान से लगाया और माउथपीस के करीब मुंह ले जाकर अपनी व्यवसाय सुलभ कठोरता से बोला…“यस ।”
" कैसे हो बलवंत !" दूसरी तरफ से पूछा गया । बलवंत राव ने वह आवाज तुरंत पहचानी और उसे पहचानते ही वह उछल पड़ा------------"म................मैं ठीक हूँ ।"
"खबरदार ! ” दूसरी तरफ़ से बोलने वाला रहस्यमय शख्स चेतावनी भरे स्वर में बोला------"मेरा नाम मत लेना ।"
बलवंत राव सकपकाकर चुप रह गया ।
"मेरी बात गोर से सुनो बलवंत ।" दूसरी तरफ़ से सपाट स्वर में कहा गया…“जो पूछू बगैर हुज्जत के उसका जवाब देना ।"
" जी पूछिए ।"
"तुम्हारे धनंजय उर्फ हिंदुस्तानी-की क्या खबर है?"
" क…क्या इस बारे में फोन पर बात करना ठीक होगा?" बलवंत राव सावधान स्वर में बोला ।
"फिक्र मत करो, यह लाइन बिल्कुल सेफ है । मुल्क की सबसे बडी खुफिया एजेंसी की लाइन ही सेफ नहीं होगी तो लानत है ऐसी खुफिया खुजेंसी पर ।"
बलवत कसमसाया ।
जैसे फैसला न कर पा रहा हो कि क्या करे ।
"तुम शायद मेरी वार्निंग को भूल गए बलवंत!" दूसरी और से उभरने वाला स्वर सख्त हो गया था-----"मैंने कहा था कि मुझे हुज्जत करने वाले लोग पसंद नहीं हैं ।"
"उ -उसका मिशन पूरा हो चुका है '" बलवंत राव जैसे घोर विवशता से घिरा बोला था-----------उसने हाफिज और आईएसआई का आपरेशन औरंगजेब पूरी तरह ध्वस्त कर दिया है ।"
"वह सब मुझे मालूम है । उससे आगे की बताओ ।"
"उसके आगे की क्या बताऊं?"
"सेटेलाइट तबाह करने वाला हथियार कहां है?"
"धनंजय के पास ।"
"और धनंजय कहां है?”
"उससे यह सवाल पूछने की हिम्मत भला कौन कर सकता है ?"
"बको मत । मेरे पास पक्की खबर है कि पांचों सीक्रेट कमांडो की फांसी कैंसिल करा दी गई है और वे भारत लाए जा चुके हैं ।"
"मेरे पास ऐसी कोई खबर नहीं है ।"
"अब तो हो गई! "
"मेरे पास ऐसी खबरें हासिल करने के अपने स्रोत हैं । मैं केवल उन्हीं पर भरोसा करता हू ।"
"बाज आ जाओ बलवंत, वरना ये धीगामुश्ती वाले जवाब तुम्हें बहुत मंहगे पड़ेगे ।"
"मुझें क्या करना होगा?"
"तुम्हें धनंजय को रोकना होगा ।"
"अब क्या किया है उसने ?"
"अभी किया नहीं है बल्कि करने वाला है ।” कड़क लहजे में कहा गया……"वह सेटेलाइट तबाह करने वाले हथियार का सौदा करने वाला है और यह मुझें मंजूर नहीं ।"
"क्यों मंजूर नहीं?"
"क्योंकि वह एक निहायत-दुर्लभ और बेशकीमती हथियार है, जिसकी कीमत महज पांच जाने नहीं हो सकती ।"
"फिर?"
"हमे हिंदुस्तानी को रोकना होगा और उससे वह हथियार हासिल करना होगा ।"
"हिंदुस्तानी के जीते जी यह नहीं हो सकता । उसके लिए हमें उसकी लाश से गुजरना होगा !"
“उस हथियार की यह वहुत छोटी-सी कीमत होगी ।" बगैर किसी हिचक के कहा गया-----------हिंदुस्तानी को खत्म कर दो ।"
" ऐसा हुआ तो वे पांचों भी मारे जाएंगे ।"
"आईं डोंट केयर ।"
"सोच लीजिए, यह वहुत बड़ा कदम होगा ।"
"मैंने तुमसे तुम्हारी राय नहीं पूछी बलवंत, यह बताया है कि मैं क्या चाहता हूं और मैं जो चाहता हू अहमियत केवल उसकी है । उसके अलावा किसी बात की नहीं । सुना तुमने !"
“ज...जी हां । मगर…
“शटअप. . .एंड फालो माई आर्डर । अंडरस्टैंड?"
" यस सर ।"
“मुझे नतीजा चाहिए…वह भी फौरन । अगर मुझे माफिक नतीजा नहीं मिला तो तुम जानते हो बलवंत राव कि तुम्हारा क्या हश्र हो सकता है ।"
बलवंत तिलमिलाया, लेकिन विरोध नहीं कर सका ।
"तुम्हारे पास सिर्फ आज की रात है बलवंत ।" रहस्यमय शख्स पुन: बोला…“केवल आज की रात । तुम्हें जो कुछ भी करना है, आज बल्कि अभी करना है । चूक गए तो फिर जान लो कि यह मौका दोबारा कभी हासिल नहीं होगा बल्कि तब तुम्हारी कटी हुई गर्दन हिंदुस्तानी के हाथ में झूल रही होगी । सुना तुमने?"
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी
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