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“साहब, यहाँ दो लाशें मिली है” हवलदार ने बोला तो इनस्पेक्टर विक्रांत वॉकी टॉकी रख कर दौड़ा दौड़ा उस जगह पर पहुँच गया. “पानी में रहने के कारण शरीर इतना फूल गया है के शिनाख्त करना मुश्किल है अभी” विक्रांत के वहाँ पहुँचते ही हवलदार बोला. यह सॉफ पता चल रहा था के एक लाश लड़की की है और दूसरी किसी आदमी की.

“ह्म्म..एक लाश तो इनस्पेक्टर विक्रम की लग रही है. हाथ के टॅटू से पता चलता है. लगता है विक्रम के केस से इस का कुछ लेना देना है. ले चलो इससे मुर्दाघर में. देखते हैं के इसका क्या कर सकते हैं.” विक्रांत बोला और फिर अपनी जीप में बैठ कर पोलीस स्टेशन चला गया.

2 दिन पहले

“सुन बे.. तू कोमिशनर होगा अपने घर का. तेरे को एक बार बोला के कल पप्पू को एक जैल में से दूसरी में शिफ्ट करना है, तो मान जा.”

“यह धमकी तुम किसी और को देना. अगर मैं ऐसी गीदड़ धमकियों से डरने वाला होता तो कभी पोलीस फोर्स जाय्न नही करता. मैं जानता हूँ के पप्पू को तुम इसलिए शिफ्ट करवाना चाहते हो ताकि उसको रास्ते में से उठा सको. मेरे जीते जी यह मुमकिन नही होगा”

“अपना नहीं तो अपनी 19 साल की बच्ची का तो कुछ सोच कमिशनर. महानगर जैसी जगह पर तूने उससे भेज तो दिया है, लेकिन उसस्की हिफ़ाज़त कैसे करेगा? चल सौदा कर लेते हैं. तेरी बेटी की जान के बदले में पप्पू की जैल बदली का ऑर्डर. मंज़ूर है?”

“मुझे कुछ भी मंज़ूर नही है. और जहाँ तक मेरी बेटी का सवाल है, वो बिल्कुल सुरक्षित है. मैने भी कोई कच्ची गोलियाँ नही खेली हैं.”

“ठीक है.. तो फिर कल सुबह 10 बजे तुझे कॉल करूँगा. उम्मरर्द करता हूँ के तब तक तू सारे पेपर्स तय्यार रखेगा पप्पू की रिहाई के लिए” और फोन कट गया

कमिशनर ने फटाफट एक और फोन घुमाया. “विक्रम.... सब कुछ ठीक है ना वहाँ... आज हमला हो सकता है. मेरी बेटी को मेरे तक पहुँचाना तुम्हारी ज़िम्मेदारी है”

“सब कुछ बिल्कुल ठीक है. वो मेरी नज़रों के सामने ही है सर. मैं उससे लेकर वापस मुंबई आता हूँ” विक्रम ने बोला और फोन काट दिया. कमिशनर ने फिर से एक फोन घुमाया.

“हेलो बेटी.. कैसी हो.. और यह शोर कैसा है”

“पापा मैं दोस्त की पार्टी में हूँ. बाद में बात करते हैं”

“बेटी मेरी बात ध्यान से सुनो. तुम्हारी जान को ख़तरा है. मेरा एक इनस्पेक्टर तुम्हारे पास आएगा और जल्द ही तुम्हें ले कर वापस यहाँ आएगा. इनस्पेक्टर का नाम विक्रम है. ध्यान से रहना”

“क्या पापा आप भी. छ्होटी छ्होटी बातों पर चिंतित हो जाते हैं.. कुछ नही होगा मुझे..”

“जैसा मैं कहता हूँ, वैसा करो बस. मुझे आगे कुछ नही सुनना” कमिशनर ने कहा और फोन काट दिया. “यह आज कल के बच्चे.. यह सोचते हैं के इनके मा बाप बस पागल ही हैं. इतनी इंपॉर्टेंट बात है और साहबज़ादी को पार्टी की पड़ी है” उसने अपनी पत्नी से कहा.

दूसरी तरफ महानगर के एक बहुत ही पॉपुलर डिस्को में निशा का पारा चढ़ा हुआ तहा. “यार यह तो हद ही हो गयी है. किसी भी छ्होटे-मोटे क्रिमिनल की धमकियों से डर कर पापा पता नही मेरी ज़िंदगी में क्यूँ अड़चने डालते हैं. कभी यहाँ शिफ्ट करते हैं तो कभी वहाँ. यही कारण है के इस उमर में आज तक मेरा कोई बॉय फ्रेंड नही बना” अपने बालों को पीछे करते हुए और वोड्का का शॉर्ट लेते हुए निशा ने अंजलि से कहा
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“अर्रे कह रहे हैं तो कुछ इंपॉर्टेंट ही होगा. चिंता मत कर सब कुछ ठीक हो जाएगा.. वो देख वो हॅंडसम घूम रहा है जो काई दिन से तेरा पीछा कर रहा है” अंजलि ने बोला तो निशा ने उसके इशारे की ओर देखा जहाँ वो आदमी खड़ा हुआ था. एक दम कसा हुआ शरीर, छ्होटे छ्होटे बॉल, आँखों पे इतनी रात में भी काला चश्मा और हल्की मूँछे. उसको अपने पास आते देखते ही निशा का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा.

“निशा.. आइ एम इनस्पेक्टर विक्रम. हमारे पास टाइम बहुत कम है. जल्दी से मेरे साथ चलो”

“मुझे कहीं नही जाना” निशा उसको बोली

“टाइम नही है निशा.. मुझे मजबूर मत करो” वो उसके थोड़ा और पास होते हुए बोला. तभी एक गोली चली जो विक्रम के कान के पास से होकर गुज़री और पीछे रखी बॉटल्स से टकराई. पूरे डिस्को में अफ़रा तफ़री मच गयी. “देखा.. जल्दी उठो” विक्रम ने कहा और निशा का हाथ पक्कड़ के उसको पीछे वाले दरवाज़े की तरफ खींचने लगा. उसने अपनी जॅकेट में से एक पिस्टल भी निकाल ली थी. जैसे ही वो बाहर आए तो विक्रम उसे ले कर अपनी वहाँ पर पहले से रखी लॅंड रोवर की तरफ चलने लगा. तभी कदमों की आहट हुई और विक्रम ने निशा को चाबी पकड़ाते हुए बोला, “यह लो चाबी. गाड़ी को बॅक कर के यहाँ ले कर आओ. मैं इन लोगों को रोकता हूँ” निशा चाबी ले कर गाड़ी की तरफ भागने लगी और विक्रम पास में पड़े एक लोहे के बोर्ड के पीछे चुप गया. तभी उसने देखा के सामने से दो लोग भागे भागे आ रहे हैं. निशानेबाज़ी में तो विक्रम चॅंपियन ही था. उससने निशाना साधा और ठीक उनके माथे के बीच एक एक गोली मार दी. दोनो वहीं पस्त हो गये. तब तक निशा भी गाड़ी ले कर आ गयी तही. उसने जल्दी से निशा को पर्सेंजर सीट पर जाने का इशारा किया और उसके शिफ्ट होते ही खुद ड्राइवर सीट में बैठ गया और गाड़ी भगा दी.

वो थोड़ी ही दूर गये थे के विक्रम ने अपना फोन उठाया और एक नंबर मिला दिया. “निशा मेरे साथ ही है. हम जल्द ही पहुँच जाएँगे.” उससने बोला और फोन काट दिया. फिर गाड़ी में रखे वॉकी टॉकी को ट्यून करने लगा. “उन्न गुण्डों ने मोबाइल्स की जगह वॉकी टॉकी का यूज़ करना उचित समझा हैं क्यूंकी महानगर का एरिया ज़्यादा नही है. किस्मत से उनकी फ्रीक्वेन्सी मैं कॅच कर लूँगा और पता चल जाएगा के वो कहीं छुप के हमारा इंतेज़ार तो नही कर रहे.” उसका इतना कहना ही था के सिग्नल रिसेव होने लग गये.

“ब्रिड्ज के पास गाड़ियाँ खड़ी कर दो. कोई भी गाड़ी ना निकल पाए. हमे हर हाल में निशा चाहिए” एक गरजती हुई आवाज़ सुनाई पड़ी.

“ओह्ह नो. लगता है हम फँस गये हैं. मुझे गाड़ी कच्चे रास्ते पर उतारनी पड़ेगी. क्यूंकी हम इस हिल के एंड पर ही हैं, इस लिए ड्रॉप ज़्यादा नहीं होगा, लेकिन वो जगह पक्का उबड़ खाबड़ होगी. कस के पकड़ना. तुम्हें कोई चोट लग गयी तो मेरी नौकरी जाएगी” विक्रम ने कहा

निशा इतनी देर से बस विक्रम को ही देखे जा रही थी. वो सोच रही थी के जिस आदमी को मॉडेल होना चाहिए, वो पोलीस की नौकरी कर रहा है. देखकर ही लगता था के विक्रम को जाइम्मिंग का बहुत शौक था. उसके बड़े बड़े डॉल देख कर तो कोई भी लड़की उस पर एक पल में ही फिदा हो जाए, तो निशा क्यूँ ना हो. उसने अपनी सीट बेल्ट पहनी और बोली, “आप इतनी रात में भी काला चश्मा क्यूँ लगाते हैं?”

“मेडम यह दुनिया बड़ी खराब है. कुछ पता नही होता के किसका दिल गोरा है और किसका काला. किसी से धोखा खाने से अच्छा है सब काले ही नज़र आयें. कम से कम आदमी संभाल के तो रहेगा”

“ अच्छा.. तो मैं भी तुम्हें काली ही अच्छी लगती हूँ क्या..”

“ऐसी क्या बात है मेडम.. लो उतार देता हूँ अपना चश्मा” उसने कहा और चश्मा उतार दिया. “और यह मूचे और दादी और मेकप मास्क भी” उसने कहा और यह सब भी उतार दिया.

“यह सही शकल ना दिखाना भी कोई फंडा है क्या?”

“मेडम हर आदमी की अपनी भी एक ज़िंदगी होती है. पोलीस वालों की 3/4थ ज़िंदगी तो ऐसे ही ड्यूटी में ख़तम हो जाती है. मैं नही चाहता के गुंडे मुझे मेरी बची हुई ज़िंदगी में भी तंग करें. एक बार कोई चेहरा पहचान ले तो फिर कहीं भी छुप जाओ, आ ही जाते हैं दरवाज़े पे दस्तक देने.” उसने कहा तो निशा हस्ने लग गयी

“वैसे आदमी बड़े दिलचस्प हो ...” अभी वो अपना वाक्य ख़तम भी नही कर पाई थी के विक्रम ने गाड़ी कच्चे रास्ते पर उतार दी. बहुत ही झटके लग रहे थे और निशा ने कस के खिड़की के उपर वाला हॅंडल पक्कड़ा हुआ तहा. कुछ दूर जा कर जब समतल ज़मीन आई तो विक्रम ने गाड़ी रोक दी और हेडलाइट्स बंद कर दी.

“बाहर आ जाओ मेडम. लगता है आज की रात यहीं बितानी पड़ेगी.”

“क्यूँ... हम यहाँ से जा क्यूँ नही सकते...”

“जा तो सकते हैं लेकिन सिर्फ़ उल्टा. यह जो नदी यहाँ पे बह रही है, इसको पार करने के लिए उस ब्रिड्ज से जाना ज़रूरी है. वहाँ पे वो हमारा इंतेज़ार कर रहे हैं. रात यहीं काटनी पड़ेगी.”

“चलो अच्छा है.. खुल्ले में ही रहेंगे. लेकिन यहाँ ठंड बड़ी है. चलो आग जला लेते हैं”

“आग जला के उसको अपनी पोज़िशन और बता दे क्या.. आप आराम कीजिए. यह सोचने समझने का काम मुझ पर छ्चोड़ दीजिए. मैं कर लूँगा जो करना है.”

“पर इस ठंड का क्या करें” निशा को बस बहाना चाहिए तहा विक्रम से लिपटने का
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“गाड़ी में एक कंबल है और आपकी पसंदीदा वोड्का. उसको पी लो और कंबल में सिमट जाओ. ठंड भाग जाएगी”

“और आप ??”

“हमारा क्या है मेडम.. सरकारी नौकर है. ठंड में ही पड़े रहेंगे. वैसे मुझे तो सोना भी नही है रात भर. यहाँ मेरी आँख लगी, वहाँ वो गुंडे आ कर कोई खेल खेल देंगे और पता भी नही चलेगा”

“तुम किसी पर विश्वास नही करते ना...”

“बिल्कुल भी नहीं. ज़माना ही ऐसा है. जिस पर विश्वास करो, वो ही गोली मारता है” विक्रम ने कंबल अंदर से निकाल लिया और वोड्का की बॉटल भी. फिर नाइट विषन बीनोकुलर्स से इधर उधर देखने लग गया. “अभी तो रास्ता सॉफ है. दूर दूर तक कोई नही है. बस चंद घंटों की बात है. उमीद करता हूँ के कोई रुकावट नही आएगी” फिर उसने फोन उठाया और फिर से मिला दिया. “हम ब्रिड्ज से दूर हैं. मेरे को-ओर्डीनटेस नोट करो. पिकप चाहिए मुझे जल्द से जल्द” और कुछ नंबर्स बताने लगा. “हां. दिन का इंतेज़ार करना ही ठीक रहेगा” और फोन काट दिया.

“तो सुबह तक हम दोनो यहीं रहेंगे क्या इस जंगल में... अकेले??”

“बिल्कुल.. और कोई चारा नहीं है. तुम्हें डर तो नही लग रहा ना..”

“बिल्कुल भी नहीं. मुझे विश्वास है के तुम मेरी रक्षा करोगे. आख़िर पापा ने कुछ सोच कर ही तुम्हें मेरा बॉडी गार्ड रखा होगा”

“हां हां. बॉडी गार्ड बना दो अब मुझे. चलो अब यह कंबल ओढ़ लो. अगर तुम्हें ज़ुकाम भी हो गया तो मेरी खैर नही होगी” विक्रम ने बोला

“तुम कब तक ऐसे ही पहरा देते रहोगे. आ कर मेरे पास बैठ जाओ. घुस जाओ तुम भी कंबल में.” वोड्का के सीप लेते हुए निशा ने बोला

“अगर आपके पापा को पता चल गया ना मेडम.. तो मुझे हमेशा के लिए ठंडा करवा देंगे. मैं यहीं ठीक हूँ”

“अर्रे आओ ना.. कौन बताएगा पापा को? तुम या यहाँ की खामोशी? मैं तो नही बताउन्गि” निशा के काई बार आग्रह करने पर विक्रम उसस्के साथ संबल में घुस गया. उन दोनो ने अपनी पीठ एक पेड़ से सटाई हुई थी और कंबल ओढ़े नदी की तरफ देख रहे थे. नदी का बहाव काफ़ी तेज़ था.

“तुम्हें कभी डर नही लगता इस नौकरी से?” उसस्के जिस्म का स्पर्श पा कर निशा को मज़ा आने लग गया था..

“डरते वो हैं जिनको अपने उपर विश्वास नही होता. मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं है. ड्यूटी करता हूँ और अपना घर चलाता हूँ”

“कौन कौन है तुम्हारे घर में”

“कोई नही है और. अकेला हूँ. खुश हूँ” निशा के बार बार वोड्का उसके आगे करने से अब उसका भी मॅन बन गया था और उसने भी एक बड़ा घूंठ मार ही लिया

“कैसी बीवी चाहिए तुम्हें” निशा उसस्के और करीब होते हुए बोली. अब वो एकदम उससे चिपक ही गयी थी.

“कभी सोचा नहीं मेडम. और प्लीज़ थोड़ा सास लेने के लिए तो जगह दीजिए. पता है के ठंड है, लेकिन इतना करीब होना अच्छा नही लगता पराई लड़की के”

“हा हा हा.. बॉल ब्रह्मचारी टाइप्स हो तुम मतलब. अर्रे कभी तो ऐसा करोगे ही... मुझमें क्या बुराई है...”

“बुराई कोई नहीं है, रिस्क बहुत है यहाँ. मेरी नौकरी का रिस्क, हमारी जान को रिस्क. बस चुप चाप यह गटक जाओ और सो जाओ” विक्रम ने बॉटल वापस उसकी तरफ करते हुए कहा. निशा तो पहले से ही सुरूर में थी. और पी कर कब उसकी आँख लग गयी, उससे पता भी नहीं चला. जब सुबह उसकी नींद खुली तो उसने पाया के कंबल के साथ साथ विक्रम का जॅकेट भी उसके उपर पड़ा हुआ है, लेकिन फिर भी उसकी ठंड नही रुक रही थी. विक्रम भी उसके साथ नही था. उसने नज़र इधर उधर दौड़ाई तो पाया के दूर विक्रम खड़ा हुआ है और बीनोकुलर्स से कुछ देख रहा है. वो खड़ी हुई और अपने कपड़े झाड़ने लगी. कुछ ही पलों में विक्रम उसके पास आ गया था.
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“आप तो बड़ा ज़्यादा गहरा सोती हो मेडम जी. 11 बज गये हैं. मुझे दूर से एक बोट आती दिख रही है. शायद आपको लेने के लिए ही भेजी है. लगता है काम बन गया”

“चलो अच्छा हुआ. वैसे यह इतनी गंदी बदबू कहाँ से आ रही है?”

“पता नहीं.. शायद आस पास कोई जुंगली जानवर मर गया होगा. उससी की होगी.. जा कर नदी पे अपना मूह हाथ धो लो...”

“वैसे हम निकले क्यूँ नही अभी तक.. हम गाड़ी में बैठ कर भी तो जा सकते थे..”

“गाड़ी का टाइयर पंक्चर हो गया है. जैसा मैं कहता हूँ वैसा करो प्ल्ज़. ज़्यादा टाइम नही है” विक्रम ने कहा तो निशा भाग के जा कर अपना मूह धोने लगी. तभी उससने देखा के एक बोट उनकी तरफ आ रही है. देखने में तो मोटरबोट जैसी लग रही थी पर आवाज़ बिल्कुल नही थी. उसने थोड़ा इंतेज़ार किया और जैसे जैसे मोटरबोट पास आती गयी, उसके अंदर डर बढ़ता गया. उस मोटरबोट के सामने काले कपड़े पहने कुछ गुंडे टाइप के लोग खड़े थे जिनके हाथ में बड़ी बड़ी बंदूके थी. वो दौड़ कर वापस आई और सब कुछ विक्रम को बता दिया.

“डरो मत. मैं हूँ ना. बस मेरे साथ रहना. सब ठीक हो जाएगा” उसने कहा और अपनी पिस्टल निकाल ली. दोनो पेड़ों के बीच छिप कर मोटरबोट के आने का इंतेज़ार करने लगे. “मेरे पीछे पीछे आओ. मेरे कंधे पे अपना हाथ रख लो ताकि तुम मुझसे अलग ना हो” उसने कहा और धीरे धीरे पेड़ों की आड़ में निशा को नदी की तरफ ले जाने लगा. अब मोटरबोट पहुँच चुकी थी. उसमे से वो लंबे चौड़े 4 आदमी निकले और उनके साथ एक सफेद कपड़े पहना आदमी भी निकला. निशा और विक्रम उन लोगों के काफ़ी पास आ गये थे. विक्रम ने निशा का हाथ पकड़ा और उससे खींचते हुए जल्दी से उन आदमियों के पास ले गया.

“वेलकम अमर. हमे पूरा यकीन था के तुम हमारा काम ज़रूर करोगे.”

“काम हो गया है. पैसे कहाँ है” विक्रम बोला. निशा का दिल उसके गले में आ कर अटक गया.

“यह रहे पैसे. पूरे 5 लाख हैं. जैसा के तय हुआ था” उस आदमी ने नोटों से भरा बॅग विक्रम को देते हुए कहा.

“और यह रही लड़की, जैसा के तय हुआ था”

निशा निशब्ध वहाँ खड़ी हुई थी. रह रह कर उसके ज़हेन में विक्रम की कही बातें आ रही तही. “यह दुनिया बड़ी खराब है. कुछ पता नही होता के किसका दिल गोरा है और किसका काला. किसी से धोखा खाने से अच्छा है सब काले ही नज़र आयें. कम से कम आदमी संभाल के तो रहेगा”

“इसका बाप तो जितना सोचा था, उससे कहीं ज़्यादा फटतू निकला. पप्पू को सुबह 9 बजे ही ट्रान्स्फर करने का प्लान बना लिया. ठीक 10.30 पर हमने उसको अगुवा भी कर लिया. अब इसकी हमे कोई ज़रूरत नही है. इसको वापस छ्चोड़ आओ” वो आदमी बोला. उसके साथ के गुंडे विक्रम की कार में से कुछ निकाल रहे थे.

“वापस तो नही छ्चोड़ सकता इसे. आज तक पोलीस से बचा हुआ हूँ क्यूंकी यह चेहरा किसी ने नही देखा. लेकिन यह लड़की तो सारा खेल बिगाड़ सकती है”

“तो इसका जो करना है करो.”

“प्लीज़ मुझे छ्चोड़ दो. मैं किसी को कुछ नही बताउन्गी. प्लीज़. मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ”

“मैने पहले ही कहा था के मैं किसी पर विश्वास नही करता” निशा के दिमाग़ में फिर उसके वो शब्द गूँजे “ज़माना ही ऐसा है. जिस पर विश्वास करो, वो ही गोली मारता है” और इससे पहले वो कुछ कह या कर पाती, एक तेज़ आवाज़ हुई और उसकी आँखों के बीच में आ के एक गोली लगी. वो वहीं गिर के मर गयी. “तुम्हारे गुण्डों ने मेरी गाड़ी से विक्रम की लाश भी निकाल ली होगी. दोनों लाशों को नदी के बीच में फेंक देना. जब तक कोने पे आएँगी, मैं इस देश से बाहर होऊँगा” अमर ने कहा और पैसों का बॅग ले कर अपनी कार की तरफ चल पड़ा.

समाप्त


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“Sahab, yahan do laashein mili hai” hawaldar ne bola to inspector vikrant walky talky rakh kar dauda dauda uss jagah par pahunch gaya. “paani mein rehne ke karan shareer itna phool gaya hai ke shinaakht karna mushkil hai abhi” vikrant ke wahan pahunchte hi hawaldar bola. Yeh saaf pata chal raha thha ke ek laash ladki ki hai aur doosri kisi aadmi ki.

“hmm..ek laash to inspector vikram ki lag rahi hai. Haath ke tatoo se pata chalta hai. lagta hai Vikram ke case se iss ka kuch lena dena hai. Le chalo isse murdaghar mein. Dekhte hain ke isska kya kar sakte hain.” Vikrant bola aur fir apni jeep mein baith kar police station chala gaya.

2 Din Pehle

“Sun be.. tu comissioner hoga apne ghar ka. Tere ko ek bar bola ke kal pappu ko ek jail mein se doosri mein shift karna hai, to maan jaa.”

“yeh dhamki tum kisi aur ko dena. Agar main aisi geedad dhamkiyon se darne waala hota to kabhi police force join nahi karta. Main jaanta hoon ke pappu ko tum isliye shift karwana chahte ho taaki ussko raste mein se utha sako. Mere jeete ji yeh mumkin nahi hoga”

“apna nahin to apni 19 saal ki bachchi ka to kuch soch commissioner. Mahanagr jaisi jagah par tune usse bhej to diya hai, lekin usski hifazat kaise karega? Chal sauda kar lete hain. Teri beti ki jaan ke badle mein pappu ki jail badli ka order. Manzoor hai?”

“mujhe kuch bhi manzoor nahi hai. Aur jahan tak meri beti ka sawaal hai, wo bilkul surakshit hai. Maine bhi koi kachchi goliyan nahi kheli hain.”

“theek hai.. to fir kal subah 10 baje tujhe call karunga. Umeed karta hoon ke tab tak tu saare papers tayyar rakhega pappu ki rihai ke liye” aur phone kat gaya

Commissioner ne phatafat ek aur phone ghumaya. “Vikram.... sab kuch theek hai na wahan... aaj hamla ho sakta hai. Meri beti ko mere tak pahunchaana tumhaari zimmedari hai”

“sab kuch bilkul theek hai. Wo meri nazaron ke saamne hi hai sir. Main usse lekar waapas Mumbai aata hoon” vikram ne bola aur phone kaat diya. Commissioner ne phir se ek phone ghumaya.

“hello beti.. kaisi ho.. aur yeh shor kaisa hai”

“papa main dost ki party mein hoon. Baad mein baat karte hain”

“beti meri baat dhyaan se suno. Tumhaari jaan ko khatra hai. Mera ek inspector tumhaare paas aayega aur jald hi tumhein le kar waapas yahan aayega. Inspector ka naam Vikram hai. Dhyaan se rehna”

“kya papa aap bhi. Chhoti chhoti baaton par chintit ho jaate hain.. kuch nahi hoga mujhe..”

“jaisa main kehta hoon, waisa karo bas. Mujhe aage kuch nahi sunna” commissioner ne kaha aur phone kaat diya. “yeh aaj kal ke bachche.. yeh sochte hain ke inke maa baap bas pagal hi hain. Itni important baat hai aur sahabzaadi ko party ki padi hai” ussne apni patni se kaha.

Doosri taraf mahanagar ke ek bahut hi popular disco mein nisha ka paara chadha hua thha. “yaar yeh to hadh hi ho gayi hai. Kisi bhi chhote-mote criminal ki dhamkiyon se darr kar papa pata nahi meri zindagi mein kyun adchane daalte hain. Kabhi yahan shift karte hain to kabhi wahan. Yehi karan hai ke iss umar mein aaj tak mera koi boy friend nahi bana” apne baalon ko peeche karte hue aur vodka ka short lete hue nisha ne anjali se kaha

“arrey keh rahe hain to kuch important hi hoga. Chinta mat kar sab kuch theek ho jayega.. wo dekh wo handsome ghoom raha hai jo kayi din se tera peecha kar raha hai” anjali ne bola to nisha ne usske ishaare ki ore dekha jahan wo aadmi khada hua thha. Ek dum kasaa hua shareer, chhote chhote baal, aankhon pe itni raat mein bhi kala chashma aur halki moonchien. Ussko apne paas aate dekhte hi nisha ka dil zor zor se dhadakne laga.

“nisha.. i m inspector vikram. Humaare paas time bahut kam hai. Jaldi se mere saath chalo”

“mujhe kahin nahi jaana” nisha ussko boli

“time nahi hai nisha.. mujhe majboor mat karo” wo usske thoda aur paas hote hue bola. Tabhi ek goli chali jo vikram ke kaan ke paas se hokar guzari aur peeche rakhi bottles se takrayi. Poore disco mein afra tafri mach gayi. “dekha.. jaldi utho” vikram ne kaha aur nisha ka haath pakkad ke ussko peeche waale darwaaze ki taraf kheenchne laga. Ussne apni jacket mein se ek pistol bhi nikal li thhi. Jaise hi wo bahar aaye to vikram usse le kar apni wahan par pehle se rakhi land rover ki taraf chalne laga. Tabhi kadmon ki aahat hui aur vikram ne nisha ko chaabi pakdaate hue bola, “yeh lo chaabi. Gaadi ko back kar ke yahan le kar aao. Main in logon ko rokta hoon” nisha chaabi le kar gaadi ki taraf bhaagne lagi aur vikram paas mein pade ek lohe ke board ke peeche chup gaya. Tabhi ussne dekha ke saamne se do log bhaage bhaage aa rahe hain. Nishaanebaazi mein to vikram champion hi thha. Ussne nishaana saadha aur theek unke maathe ke beech ek ek goli maar di. Dono wahin past ho gaye. Tab tak nisha bhi gaadi le kar aa gayi thhi. Ussne jaldi se nisha ko pessenger seat par jaane ka ishaara kiya aur usske shift hote hi khud driver seat mein baith gaya aur gaadi bhaga di.
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