मायाजाल

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Re: मायाजाल

Post by 007 »

बाबा ! वह भावुक होकर बोला - अपनों का गम । उनके बिछुङने का गम । शायद सबसे बङा होता है । भले ही अपनों से बिछङा इंसान जन्म दर जन्म कालखण्डों के तूफ़ानों में अपनी डगमगाती कश्ती यहाँ से वहाँ ले जाता रहे । जुदाई की ये तङप । विरहा की ये आग । उसके अन्दर कभी नहीं बुझती । माया के वशीभूत जीवात्मा पिछली बातों को भूल अवश्य जाता है । पर एक अज्ञात सी हूक उसके कलेजे में जागती रहती है । क्या अजीव विधान है सृष्टि रचियता का । इंसान अपने बीबी बच्चों में खुश होता है । जीवन की बगिया में महकते फ़ूल खिल रहे होते हैं । उसका युवा जवान पुत्र होता है । और उस पुत्र की बहुत सुन्दर पत्नी या प्रेमिका होती है । उसकी खुद की भी पत्नी होती है ।
वह अमीर होता है । या गरीब होता है । इससे ज्यादा मतलब नहीं होता । वह अपनी जीवन की फ़ुल बगिया में सुखी ही महसूस करता है । पर कितना अजीब है ना । तब एक.. तूफ़ान आता है । प्रलयकारी तूफ़ान...।
अचानक बूङे का बदन हिलने लगा । उसने ढोल बजाने वाली लकङी उठा ली । उसके बूङे हाथ तेजी से कांप रहे थे । प्रसून अन्दर ही अन्दर सन्तुष्ट हुआ । पर अभी भी मामला खराब हो सकता था ।
- और वह तूफ़ान । वह फ़िर से सधे स्वर में बोला - कभी कभी जिन्दगियों को उजाङ देने वाला होता है । हँसती खेलती जिन्दगी उजाङ देने वाला तूफ़ान..बिजली कङकङाती है ..और फ़िर..।
बूङे का हाथ हिला । उसकी गर्दन हिल रही थी । और फ़िर मुठिया वाली लकङी की थाप ढोल पर पङी । ढमऽऽ की आवाज गूँजी । मौजूद स्त्री पुरुषों के चेहरे पर अजीव सी रौनक खिल उठी । वे इस जादुई पुरुष को गौर से देख रहे थे ।
- किसी की बीबी ! वह फ़िर से बूङे को गौर से देखता हुआ भावुक होकर बोला - किसी का जवान बेटा । किसी का पति । और किसी की प्रेमिका भी..ये तूफ़ान..भयानक जंगलों में ..
ढम ढम..ढमाढम..बूङा तेजी से हाथ चला रहा था । अब प्रसून की बातों से उसका ध्यान हट चुका था । क्या अजीव जादू था । उस ढोल की लय में । सब उसकी बातें सुनना छोङकर ढोल में मगन हो गये । प्रसून रहस्यमय मुस्कराहट के साथ उन सबको देखने लगा । उसका उद्देश्य पूरा हो चुका था । देखते हैं । आगे क्या होता है । उसने सोचा । बूङा दर्द भरी आवाज में कोई गीत गा रहा था । और वे लोग भीगी आवाज में उसकी किसी मुख्य कङी में सुर मिलाते थे । वे प्रसून को भूल सा गये थे । उसे गीत के बोल और उसका अर्थ समझ नहीं आ रहा था । पर आवाज का गहरा दर्द एक अंधा भी महसूस कर सकता था ।
ये आवाज मानों आत्मा की आवाज थी । तब उसने दर्द की आवृति का गोल छोटा सा भंवर बनते देखा । उसके गानों में रूसी गाने की तरह एक अजीव सी शैली समायी हुयी थी । जो गाते वक्त रोने की फ़ीलिंग देता था । तभी बाहर की तरफ़ से कुछ शोर सा सुनाई दिया । उसे जस्सी द्वारा खुद को पुकारने की आवाज सुनाई दी ।
- सत्यानाश ! उसके मुँह से निकला । सब किया कराया चौपट हो गया था । पूरी मेहनत पर पानी फ़िर गया था । अन्य लोग भी चौंककर उधर ही देखने लगे । व्यवधान आते ही बूङे ने ढोल फ़िर बन्द कर दिया था । उसका भाव रुक गया । बाहर कुछ गणों के साथ जस्सी खङी थी । वे किसी कैदी की भांति उसे पकङे हुये थे ।
वह तुरन्त वहाँ पहुँचा । जस्सी बङी हैरत से उसे देख रही थी । और खुशी से उससे लिपट जाना चाहती थी । उसने एक गहरी सांस भरी । क्या सब कुछ खत्म होने वाला था । कितना बङा हस्तक्षेप हुआ था । बस एक घण्टे भी और वही स्थिति रहती । तो सब कुछ खुली किताब की तरह हो जाने वाला था ।
- महोदय ! एक प्रहरी बोला - आप कोई योगी मालूम होते हैं । पर कृपया आपको प्रेतराज को सूचना देकर उनकी जानकारी में आना चाहिये था । क्या इस जीवात्मा से आपका कोई सम्बन्ध जुङता है ? आपके यहाँ आने का उद्देश्य क्या है ? ये देवी कौन है ? आप कब तक यहाँ रहने वाले हैं ?
उसने जस्सी को देखा । कमाल की लङकी थी । कैसे उसके पास एक जादू की तरह आ गयी थी । और मुश्किल बात ये थी कि अभी यही नहीं पता था कि वो जिन्दा थी । या मर चुकी थी । पर प्रहरी को उसके मनोभावों से कोई मतलब नहीं था । उसे अपने उत्तरों की शीघ्रता थी । वह जानता था कि उसकी जगह कोई रूह भटकती हुयी गलती से इधर पहुँच जाती । तो ये पहरेदार तुरन्त उसे कैद कर लेते । जैसे जस्सी अभी कैद थी । पर वे योगियों के लिये नियम जानते थे ।
- उसे छोङ दो । वह जस्सी की तरफ़ देखता हुआ बोला - वो मेरी प्रेमिका है । उसी की बाधा के चलते मैं यहाँ आया हूँ । दरअसल मैं अपने अभियान के बीच यकायक यहाँ आया । मुझे इसकी अभी की स्थिति का भान था । मैं अपने अभियान के पूरा होते ही वापिस जाऊँगा । ये लङकी और मैं दोनों बाहरी व्यक्ति हैं । इसके अलावा हमारे

साथ कोई नहीं है । तब तक तुम हमारे बारे में यही से पता कर सकते हो । क्योंकि इस बाधा का सम्बन्ध यहीं से है । वैसे तुम जानते ही होगे । फ़िर भी हम दोनों प्रथ्वी से हैं । अनावश्यक चिंता न करो । हम यहाँ कोई परेशानी वाली बात नहीं करेंगे । प्रेतराज को मेरा नमस्कार कहना ।
ये सब बात उसने विशिष्ट अन्दाज में सूक्ष्म लोकों में योगियों की स्थिति अनुसार कही थीं । वे तुरन्त समझ गये । और आदर के साथ उन्होंने जस्सी को छोङ दिया । वह दौङकर प्रसून से लिपट गयी । लोक वायु प्रहरियों ने उसका अभिवादन किया । और वापिस चले गये ।
चाहे वह मामूली चींटी चींटा हो । इंसान हो । या फ़िर देवतुल्य बङी शक्तियाँ ही क्यों न हों । हरेक का जीवन शतरंज पर बिछी बिसात के समान है । एक मामूली मोहरे के इधर से उधर होते ही जिन्दगी के खेल की पूरी चाल ही बदल जाती है । और तब बङे से बङे खिलाङी के माथे पर बल पङ जाते हैं । एक चाल हजारों नई चालों को जन्म देती हुयी आती है । अब क्या हो ? कैसे हो । ऐसा हो । तो वैसा हो । वैसा हो । तो ऐसा हो । फ़िर भी पता नहीं । उसका परिणाम कैसा हो । कभी कभी कितना असहाय महसूस होने लगता है । जब किसी बङे मोहरे से जूझता राजा भी थोङी सी लापरवाही से मामूली पैदल सैनिक के निशाने पर मरने को मजबूर होता है । राजा हो या रंक सभी का अन्त एक सा होय ।
अंधेरा गहराने लगा था । पहले से ही अंधेरे इस लोक में रात होने लगी थी । सो उसकी प्रारम्भिक अवस्था ही प्रथ्वी की आधी रात के समान थी । वह और जस्सी बाहर ही खुले में मिट्टी के चबूतरे पर बैठ गये थे । उन्होंने किसी सोलर सिस्टम के उपकरण की भांति किसी अजीव से साधन से प्रकाश किया था । जिसका उजाला अधिक नहीं पर पर्याप्त था । उसे सिगरेट की भी तलब महसूस हो रही थी । पर इस तलब को पूरा नहीं कर सकता था ।
बूङा मिचमिची आँखों से उन्हें ही देख रहा था । अन्य लोगों को भी उत्सुकता थी । कुछ और लोग भी आने लगे थे । वे यह सब जानना चाहते थे । पर वह क्या बताता । और कैसे बताता । और बताने का शायद टाइम भी नहीं था । उसने जस्सी की तरफ़ देखा । तो उसने शरमाकर नजरें झुका लीं ।
अजीव पागल है । पहले उसने सोचा । ये प्रथ्वी से बहुत दूर कितनी अजीव स्थितियों में है । फ़िर भी कैसी निश्चिन्त सी थी । फ़िर उसे लगा । पागल बह नहीं । बल्कि वह स्वयं पागल है । जब उसने इधर का सफ़र किया होगा । भले ही वह जीते जी या मरे हुये किया होगा । तब उसके दिलोदिमाग में सिर्फ़ वही छाया होगा । वह उससे किसी पूर्ण समर्पित प्रेमिका की तरह एक भाव हो गयी होगी । तब रास्ते में जो भी व्यवधान या डरावनी परिस्थितियाँ बनी होगी । उसका ध्यान सहायता के लिये उसी की तरफ़ गया होगा । तब सूक्ष्म शरीरी होने से उसकी आसान योग स्थिति बनी होगी । और इस तरह उसका एक विशिष्ट वी आई पी दर्जा बन गया होगा । इससे तमाम बाधक तत्व उससे स्वतः दूर हो गये होंगे । दूसरे उससे एकभाव होने से उसके सूक्ष्म शरीर में योगत्व प्रभाव खुद भी पैदा हो गया होगा । तब उसे ये मरना या ये यात्रा भी रोमांचक ही लगी होगी । एकाएक उसके दिल में जस्सी के लिये प्यार सा उमङा । और उसने उसके गले में बाँहें डालकर उसे अपने साथ सटा लिया । वह किसी भयभीत चिङिया सी उसके सीने से लग गयी ।
कितनी मजे की बात थी । वह उसके होते निश्चिन्त थी । और कुछ भी नहीं सोच रही थी । जबकि वह उसके होते परेशानी में उलझा हुआ था । और लगातार उसी के बारे में सोच रहा था । बात शायद अभी वहीं के वहीं थी ।

प्रसून जी ! अचानक उसे कुछ याद सा आया । और वह हँसती हुयी बोली - आपको मालूम है । मैं मर चुकी हूँ । ओह गाड ! कितना अजीव है ना । अब मैं मर चुकी हूँ ।
ये बात उसने ऐसी मासूमियत से कही थी कि सब कुछ भूलकर वह जोर जोर से हँसने लगा । उस अजीव सी लाइट में वह उसके सुन्दर मुखङे को देखता रह गया । उसने आसमान को देखा । वहाँ चाँद कहीं नहीं था । पर तारे बहुत नजर आ रहे थे । गहरे काले घुप्प अंधेरे में वे मद्धिम चमक वाले तारे रात की रानी की काली चुनरी में टंके सितारों के समान थे ।
- जस्सी ! क्या पागल हो तुम । वह हँसता हुआ ही बोला - अगर तुम मर गयी हो । फ़िर मेरे सामने बैठी कैसे हो । बोल कैसे रही हो । क्या तुम्हें किसी तरह लग रहा है कि तुम मर गयी हो । मरा इंसान तो बस बिना हिले डुले एक ही स्थान पर पङा रहता है । क्या तुम्हे अपने अन्दर कोई मरने वाली बात लग रही है ?
वह एकदम झुंझलाई सी हो गयी कि इस पागल को क्या समझाये । फ़िर वह मानों और भी चौंकती हुयी बोली - उफ़ ! आप मेरा यकीन क्यों नहीं करते । सच्चाई..सच्चाई तो ये है । सिर्फ़ मैं ही नहीं आप भी मर चुके हो ।
- ओ गाड । ओ गाड । अबकी वह दुगनी जोर से हँसा - लङकी कहीं तू पागल तो नहीं है । उसने मुझे भी मार डाला । फ़िर ये जो मैं हट्टा कट्टा तेरे सामने बैठा हूँ । ये क्या मेरा भूत है । भूत..हा हा हा हू हू..डर अब तू डर ।
उसने अजीव से असमंजस में नजरें झुका लीं । अब वह क्या बोले । अब वह प्रसून को क्या समझाती कि वाकई वह दोनों मर चुके थे । उसने खुद सब कुछ देखा था । प्रसून उसकी हालत का मजा ले रहा था । जीवन के पार जीवन का ये उसका इस जीवन में पहला अनुभव था । वह उससे अपने पीछे के हालात जानना चाहता था । उसने ऐसा क्या किया था । जो यहाँ तक आ गयी थी । पर ये सब अभी पूछने का समय नहीं था । क्योंकि अपने बारे में तो वह बता आया था । पर जस्सी को मरा देखकर राजवीर और बराङ पर क्या गुजरी होगी ? बस यही ख्याल उसे हलकान कर रहा था । खास उसे बस एक ही चिन्ता थी कि कहीं वे वाकई उनके शरीर का संस्कार करके उसे नष्ट न कर दें । बस उसके दिल में एक ही आशा बनती थी कि अगर वे योग स्थितियों के बारे में थोङा भी जानते होंगे । उसके कहे पर विचार करेंगे । तो फ़िर ऐसा नहीं करेंगे । कम से कम उसने अपनी बातों में उन्हें ऐसी झलक सी महसूस करवा दी थी कि वह उन्हें मरा हुआ भी लग सकता है । और तब वे शायद बाधा के चलते जस्सी को भी ऐसा ही कुछ समझ लें । और धैर्य से कुछ दिन इन्तजार करें । जो भी हो । उसकी समझ में नहीं आ रहा था । वाकई वे क्या सोचेंगे । और फ़िर क्या करेंगे ?
कुछ लोग अतिथि भाव से भोजन ले आये थे । और वे सब भोजन कर रहे थे । पर वह भोजन करता हुआ भी आगे के लिये विचार मग्न था । आगे क्या करना चाहिये ।
- ये सुन्दर सी लङकी मेरी प्रेमिका है । भोजन आदि के बाद वह उन सबका संस्पेंस दूर करता हुआ बोला - मैं अचानक चला आया । तो मेरे पीछे पीछे यह भी चली आयी......।
पर बूङा उनकी बात नहीं सुन रहा था । वह बङे गौर से अति सुन्दर जस्सी को देख रहा था । उसके होंठ कंपकपा रहे थे । उसकी आँखें दूर शून्य 0 में स्थिर हो चुकी थी । उन दोनों को पास पास बैठा हुआ देखकर उसका शरीर जोर जोर से कांप रहा था । उसकी गर्दन हिलने लगी थी ।
क्योंकि सभी लोगों का ध्यान उसकी तरफ़ नहीं था । सो जैसे ही यकायक उसने ढोल पर जोरदार थाप दी । सब चौंक ही गये । प्रसून भी चौंक गया । जस्सी ने अजीव भाव से उसकी तरफ़ देखा । पर बूङा अब किसी को नहीं देख रहा था । वह कृमबद्ध लय से धीरे धीरे ढोल को थाप दे रहा था । जो हर थाप पर तेज हो रही थी । फ़िर ढोल बजने लगा । क्या संगीत था । क्या लय थी । क्या ताल थी । मानों प्रकृति भी झूम उठी हो । पूरा हुजूम संगीत में डूबने लगा । अब उससे किसी को कोई मतलब नहीं रह गया था । सबने अपने अपने सहायक वाध यन्त्र उठा लिये थे । और ताल से ताल मिला रहे थे ।
- हे प्रभु ! वह आसमान की ओर हाथ उठाकर बोला - आपकी लीला अपरम्पार है । इसे बङे से बङे ज्ञानी भी नहीं समझ सकते । मैं मूर्ख कर्ता बना हुआ अभी भी सोच रहा था कि आगे क्या और कैसे करूँगा । पर आपने पल में ही मेरा ये अहम भी चूर चूर कर दिया । कोटिष वन्दन ।

किसी आदिवासी इलाके जैसा माहौल बन गया था । संगीत धीरे धीरे अपने चरम पर पहुँच रहा था । प्रसून की गहरी आँखों में अनोखी चमक सी पैदा होती जा रही थी । वह बङी दिलचस्पी से आने वाले क्षणों का इन्तजार कर रहा था । और सावधानी से अनदेखा सा करते हुये बेहद लापरवाही का प्रदर्शन करता हुआ जस्सी को ही देख रहा था । फ़िर अचानक उसे कुछ याद आया । और वह चौंककर उसके पास से हटकर अलग टहलने लगा । जस्सी मन्त्रमुग्ध सी वहीं बैठी रह गयी । वह पूरी तन्मयता से उन्हें देखती हुयी सुन रही थी ।
फ़िर अचानक उसका शरीर हिलने लगा । उसमें किसी प्रेत के आवेश की भांति वायु भरने लगी । उसका सर बहुत तेज चकरा रहा था । और वह गोल गोल घूम रही थी । घूमती ही चली जा रही थी ।
प्रसून गौर से उसकी एक एक गतिविधि देख रहा था । वह थोङा और थोङा और करके पीछे हटता जा रहा था । उसकी यहाँ मौजूदगी इस रहस्य के खुलने में बाधा हो सकती थी । अतः उस संगीत से और उससे जुङे भावों से जो विचार वृत बन रहा था । वह उससे दो कदम पीछे हटता ही चला जा रहा था । जैसे किसी भीङ के गोल घेरे में किसी जादूगर को तमाशा करता हुअ देख रहा हो ।
- नल्लाऽऽऽऽ ! अचानक संगीत के बीच वह बूङा गला फ़ाङकर चिल्लाया - देख तेरी दमयन्ती आ गयी । वो लौट आयी । नल्ला मेरे लाल । अब तू भी लौट आ । लौट आ मेरे बच्चे ।
ये दर्द भरी पुकार उसने ढोल बजाने के मध्य कही थी । और फ़िर से झूमता हुआ ढोल बजाने लगा था । विचार वृत गहराता जा रहा था । उसके शरीर की भाव रूपी तरंगों से निकली किरणों में अणु परमाणु जमा होते जा रहे थे । तमाम रंगों के अणु परमाणु मानवीय आकार लेते हुये लहराते हुये से उङ रहे थे । और एक बङे गोल दायरे में कैद थे । और फ़िर वो हुआ । जिसका प्रसून जाने कब से बेकरारी से इन्तजार कर रहा था । उन सभी विचार वृतियों का एक छोटा बवंडर बनने लगा । और किसी लट्टू की भांति तेजी से घूमने लगा । धुनी हुयी रुई के बहुत छोटे छोटे रंगीन टुकङों की भांति वे सभी मानव आकृतियाँ उस बवंडर में फ़ँसकर गोल गोल घूमने लगी ।
तब वो क्षण आ गया । जो आगे आना ही चाहिये था । जस्सी अपनी जगह से मदहोश सी उठी । और झूमती हुयी नाचने लगी । उसने पास ही से एक बांस के समान लम्बा डण्डा उठा लिया था । और किसी कुशल नटनी की भांति कलाबाजियाँ दिखा रही थी । पर सिवाय उसके कोई किसी को नहीं देख रहा था ।
सिर्फ़ वह किसी साक्षी की भांति दिलचस्पी से इस खेल को देख रहा था । खेल । असली खेल । जो अब शुरू हुआ था ।
प्रसून इस बात को लेकर स्योर था । अगर नटों की कलाबाजी के तमाशे हेतु बंधी रस्सी पहिया और थाली आदि दूसरे उपकरण होते । तो उसे खूबसूरत जस्सी के यादगार क्षण देखने को मिलते । काश ! ये क्रिया उसके स्थूल शरीर से होती । और उसे शूट करने का कोई साधन उसके पास होता । पर ये दोनों ही बातें फ़िलहाल तो संभव नहीं थी ।
उसने कैसा भी कोई हस्तक्षेप नहीं किया । और जो हो रहा था । उसे साक्षी बनकर सिर्फ़ देखता रहा । काली रात गहराती जा रही थी । स्याह काले अंधेरे ने उस रहस्यमय लोक को अपनी लपेट में ले लिया था ।
उस अंधेरे के बीच मद्धिम प्रकाश में वह दृश्य प्रेतों के उत्सव जैसा नजर आ रहा था ।
तभी उसे एक बात सूझी । उसने जस्सी को मध्यम स्वर में पुकारा । जो उसकी आवाज उस तक आरा्म से पहुँच सके । पर जस्सी की तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुयी । वह पूर्ववत नाचती ही रही । तब उसके चेहरे पर गहन सन्तुष्टि के भाव आये । यानी सब कुछ सही था । उसे बहुत बेकरारी से अगले क्षणों का इन्तजार था । और उन्हीं की सफ़लता पर सारा दारोमदार निर्भर भी था । अगले क्षण । जो अब आने ही वाले थे ।
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

(¨`·.·´¨) Always

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(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !

`·.¸.·´
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Re: मायाजाल

Post by 007 »

बूङे के स्वर में दर्द बढता ही जा रहा था । उसके दिमाग में खुद का अतीत गहराने लगा था । ज्यों ज्यों उसके दिमाग में अतीत गहरा रहा था । अन्दर उसका दृश्य स्पष्ट और स्पष्ट होता जा रहा था । तब बाह्य रूप से भी दृश्य भूमि का निर्माण हो रहा था । अन्दर दृश्य का चित्र और उससे पूरी एकाग्रता से चेतना जुङी होने से बाहर उसका आकार लेना । अलौकिक बिज्ञान का एक सामान्य सूत्र था । सफ़ल योग की एक साधारण क्रिया थी । पर सामान्य इंसान इसी को अदभुत विलक्षण चमत्कारिक मानता था ।
जबकि जीवन में ठीक ऐसा ही घटित होता है । पहले अंतर में विचार चित्र बनता है । फ़िर व्यक्ति की चेतना और उसकी कार्य क्षमता के योग से वह चीज आकार लेती हैं । अन्दर बाहर दो नहीं है । एक ही है । एक दर्पण में नजर आता है । और एक नजर आने वाला स्वयं है । कैसा अदभुत खेल बनाया । मोह माया में जीव फ़ँसाया ।
आज की रात अदभुत रात थी । कितनी अजीव बात थी । उनका विगत जीवन समय के चक्र से उल्टा घूमता हुआ वापिस आ रहा था । और वे स्वयँ ही उसको नहीं जान सकते थे । प्रसून को बीच बीच में बूङे की करुण पुकार में.. नल्ला.. मेरे लाल.. मेरे सुवना..आ जा..सुनाई देता । बीच बीच में वह दुष्यन्ती भी बोलता था ।
वह सब कुछ शान्ति से देख रहा था । और बङी बेकरारी से प्रतीक्षा भी कर रहा था ।
और तब आधा पौन घण्टा बाद वह क्षण आया । जिसका उसे इन्तजार था । चारूऽऽऽ चारूऽऽऽ चारूलता.. तू कहाँ हैं ? जैसी आवाजें पश्चिम दिशा से आने लगी । वह सावधान हो गया । अगला एक एक पल सचेत रहने का था ।
यहाँ की भूमि में उठने वाला बूङे का याद रूपी बवंडर मध्यम आकार लेने के बाद धीरे धीरे वापिस छोटा हो रहा था । और शून्य 0 होने वाला था । उसका दृश्य इतना ही बनता था । तब उसे पश्चिम दिशा से आता विशाल बवंडर और तूफ़ान नजर आया ।
दरअसल जस्सी को देखकर वह बूङा बिना किसी भाव के प्रयास के विगत भूमि में चला गया था । जैसे दुख आपत्तिकाल में किसी बहुत अपने को अचानक आया देखकर स्वतः रुलाई फ़ूट पङती है । आँसू रुकते नहीं । भाव थमते नहीं । वही हुआ था । अब प्रसून को प्रभु की लीला रहस्य और उसका कारण पता चला था । जस्सी के आने का कारण पता चला था । उसने जस्सी की तरफ़ निगाह डाली । वह चबूतरे पर वापिस मुर्दा सी होकर पङी थी ।
प्रसून को उसकी हालत पता थी । उसने उसके पास जाने की कोई कोशिश नहीं की । बवंडर अपनी तेज गति से उधर ही आ रहा था । और आखिरकार वह सबसे खास पल आ ही गया । जिसका प्रसून को बेसबरी से इन्तजार था । बूङे के अनजाने योग द्वारा अतीत की दृश्य भूमि का निर्माण हो चुका था । और वह स्वयं किसी साक्षी की भांति उस दृश्य भूमि के अन्दर मौजूद था । ठीक यही क्रिया वह पंजाव में जस्सी के साथ करना चाहता था । पर तब नहीं हो पायी थी ।
अब यहाँ एक ही भूमि पर दो दृश्य थे । दो भूमियाँ थी । एक बूङा और उसके घर लोगों आदि वाला वर्तमान दृश्य । और दूसरा बूङे के प्रबल भाव से अतीत में जाने से अतीत के किसी कालखण्ड का दृश्य । बस फ़र्क इतना था । उन लोगों के लिये बस अपना दृश्य ही था । पर प्रसून के लिये अब वहाँ अतीत भूमि भी दृश्यमान थी । और प्रसून अब उसी अतीत में अपने वर्तमान के साथ साक्षी बना खङा था ।

वह एक मनोहारी जंगल था । पर अभी भयानक हो चला था । आसमान में काली काली तेज घटायें घिरी हुयी थी । मूसलाधार बारिश हो रही थी । रह रहकर बिजली कङकङाती थी । जस्सी उर्फ़ दमयन्ती उर्फ़ चारूलता इस तूफ़ान में भटक गयी थी । और बेतहाशा भागती हुयी अपने प्रेमी नल्ला उर्फ़ नल को पुकार रही थी । पर उसकी असहाय पुकार को तूफ़ान बारबार उङा ले जाता था । बहुत हल्की हल्की उसकी पुकार हवा के तेज झोंको के साथ नल्ला तक पहुँचती थी । पर वह आवाज की दिशा का सही अनुमान नहीं लगा पा रहा था ।
पहले वह इधर उधर भागता रहा था । उसके जानवर कुत्ता आदि बिछुङ चुके थे । पर उसे उनकी कोई परवाह नहीं थी । वह सिर्फ़ अपनी चारू को खोजना चाहता था । उसे सिर्फ़ उसी की खास चिन्ता थी ।
वह एक सुन्दर बलिष्ठ शरीर का हट्टा कट्टा नट युवक था । और सिर्फ़ कमर पर अंगोछा लपेटे हुये थे । उसके बालों की लम्बी लटें उसके चेहरे पर चिपक गयी थी ।
तूफ़ान मानों प्रलय ही लाना चाहता था । पर नल्ला को उसकी कोई परवाह नहीं थी । उसने उसी तूफ़ान में अपनी कश्ती दरिया में उतार दी थी । और उछलती बेकाबू लहरों पर नाव पर झुककर खङा सन्तुलन बनाता हुआ अपनी प्यारी चारू को देखता खोजता हुआ तलाश कर रहा था ।
चारू उससे सिर्फ़ कुछ सौ मीटर ही दूर थी । वह उसे देख पा रही थी । और हाथ हिला हिलाकर पुकार रही थी । पर दरिया के घुमाव से वीच में वृक्ष और घनी झाङियाँ बाधक थी । होनी के वशीभूत नल्ला भी अपनी कश्ती को दूसरी तरफ़ विपरीत ही ले जा रहा था । और फ़िर चारू डूबने लगी । गोते खाने लगी ।
उसको चारू चारू..पुकारता हुआ नल्ला उससे दूर और दूर होता जा रहा था ।
प्रसून की आँखें हल्की हल्की भीगने सी लगी थी । उसने सोचा । ये वो दृश्य था । जो जस्सी देखती थी । पर करम कौर से इसका क्या सम्बन्ध था ?
लेकिन करम कौर अभी दूर की बात थी । अभी उसे सिर्फ़ वजह और सबूत मिला था । अभी उसे सब कुछ पता करना था । तभी जस्सी अपने अतीत से छूट सकती थी । बूङे का आधा दृश्य वह देख ही चुका था । जस्सी का वह पूरा दृश्य देख चुका था । अब उसे नल्ला का पता करना था । और ये अब उसके लिये बहुत आसान था । नल्ला की रूह वहाँ योग भावना बवंडर के साथ आयी मौजूद थी । एक मामूली सी प्रेत रूह । वह उसे कैप्चर करने लगा । उस घटना और उस जिन्दगी से जुङा पूरा डाटा उसके पास आता जा रहा था ।
क्या हुआ था । इस विनाशकारी तूफ़ान से पहले ?
वह एक बेहद खूबसूरत दोपहर थी । पर ये कौन सी प्रथ्वी थी । और कितने समय पीछे की घटना थी । उन हालिया परिस्थितियों में जानना उसके लिये सम्भव नहीं था । और ये जानना महत्वपूर्ण भी नहीं था । उसे तो बस तूफ़ान से पहले के क्षणों में दिलचस्पी थी ।
चारू एक खूबसूरत नटनी थी । और नल्ला की प्रेमिका थी । बल्कि एक तरह से मंगेतर भी थी । बस अभी उनकी शादी नहीं हुयी थी । वह नटों में अमीरी हैसियत वाली थी । और चटक मटक कपङे पहनने की शौकीन थी । उसके पुष्ट उरोज कसी चोली से बाहर आने को बेताब से रहते थे । नटों की वेशभूषा में वह उस समय के अनुसार ही चोली और घांघरा पहनती थी । उसके दूधिया गोरे स्तन आधे बाहर ही होते थे । उसकी कमर नटी करतबों के फ़लस्वरूप बेहद लचक वाली और विशाल नितम्ब माँस से लबालब भरे हुये थे । उस समय वह दो चोटियाँ करके उनमें प्राकृतिक फ़ूलों का गजरा बांधती थी ।
नट समुदाय के सभी लङके उसके दीवाने थे । और उससे विवाह करना चाहते थे । पर अकेली वह नल्ला की दीवानी थी । और उसे दिल दे बैठी थी । उसका बाप कहीं लालच में आकर उसका लगन और कहीं ना कर दे । उसने नल्ला से पहले ही अपना कौमार्य भंग कराकर अपने बाप को साफ़ साफ़ बोल दिया था । अब ऐसी हालत में वह कोई चालाकी करता । तो इसे नट समाज के तब कानून अनुसार धोखाधङी माना जाता । और उसे सजा मिलती ।
इसलिये चारू और नल्ला अब निश्चिन्त थे । अब उनके विवाह को भगवान भी नहीं रोक सकता था । फ़ूलों और झाङियों से भरपूर उस जंगल में चारू रंगीन तितली सी इठलाती फ़िर रही थी । और पेङ की डाली पर बैठा बांसुरी बजाता नल्ला उसके थिरकते नितम्बों की लचकन देख रहा था । वह सोच रहा था । आज जंगल से लौटने से पहले वह उसको झाङी में नरम पत्तों पर लिटायेगा । वह कहेगी । बङा बेसबरी हे रे तू । अब तो मैं तेरी ही हो चुकी । मुझे पूरा अभी ही खा जायेगा । या आगे को भी कुछ बाकी रहने देगा ।
- आगे किसने देखा है चारू । तब वह भावुक होकर झूठमूठ बोलेगा - इंसान की जिन्दगी का कोई ठिकाना नही । जवानी के ये दिन हमें भरपूर जीना चाहिये । किसकी जिन्दगी में कब क्या तूफ़ान आ जाये । कोई बता सकता है क्या ?
- देख नल्ला । वह उसके मुँह पर हाथ रखकर कहेगी - तुझे जो करना है । कर ले मेरे साथ । पर ऐसा मत बोल यार । मैं तेरे दस बच्चे पैदा करूँगी । हम लौग सौ वर्ष तक जियेंगे । मैं अपने बच्चों के साथ तेरे लिये जंगल में खाना लेकर आऊँगी । और बोलूँगी - खाना खा लो । मन्नू के बापू । अब आपको भूख लगी होगी ।
हमेशा बहुत भूखी ही रहती है ये मौत भी । बूङा दूर कहीं शून्य 0 में देखता हुआ कह रहा था - सदियाँ हो गयी । इसे जिन्दगियों को खाते खाते । पर इसकी भूख नहीं मिटी । ये अपनी भूख के चलते कभी यह भी नहीं देखती कि उससे कौन मिट रहा है । कौन उजङ रहा है ।.. उस हाहाकारी तूफ़ान के साथ ताण्डव नृत्य करती आयी मौत चारू को खा गयी । मेरी घरवाली को भी खा गयी । उसका नाम दुष्यन्ती थी । बङी अच्छी और सुन्दर नटनी थी वो ।
जस्सी एक तरफ़ बिछावन पर लुढकी हुयी सी सो गयी थी । सभी लोकवासी अपने अपने घरों को चले गये थे । सिर्फ़ प्रसून और वह बूङा जाग रहे थे । शायद आज वह किसी को अपना गम सुना पा रहा था । गम जो हजारों साल से उसके सीने में दफ़न था । तब प्रसून को एक बात की कुछ हैरत सी हुयी । बूङा चिलम सुलगा रहा था । वास्तव में उसे भी धूमृपान की तेज इच्छा हो रही थी । सिगरेट तो शायद ही यहाँ मिलती ।
- धुँआ पीते हो कभी । वह उसकी और प्रस्तावित करता हुआ बोला - जिन्दगी भी एक धुँआ ही हैं । ये धुँआ धुँआ कर जलती रहती है ।
उसने चिलम ले ली । और तेज सुट्टा मारा । लम्बे समय बाद तम्बाकू युक्त धुँआ उसको पान करने को मिला था । उसे एक अजीव सी राहत मिली । और वह एक नयी स्फ़ूर्ति का अनुभव करने लगा । कमाल था । बिना धूप के भी यहाँ उगने वाली तम्बाकू एक अलग शाही टेस्ट वाली थी । बूङे ने अपने लिये दूसरी चिलम सुलगा ली थी ।
- आधी रात हो गयी है । बूङा दम लगाता हुआ बोला - परदेसी बाबू ! आपको नींद आ रही होगी ।
- नहीं । नहीं आ रही । फ़िर.. । वह उत्सुकता से बोला - फ़िर क्या हुआ ?
वास्तव में यह सब पूछने की अब उसे कोई जरूरत नहीं थी । घटना का मुख्य विवरण उसके दिमाग में पूरे सही आंकङों सहित अंकित हो चुका था । वह चाहता । तो तुरन्त जस्सी के साथ वापिस प्रथ्वी पर लौट सकता था । और बाधा का समाधान आसानी से कर सकता था । पर उसके अन्दर का योगी उसे ऐसा नहीं करने दे रहा था ।
नल्ला प्रेत योनि में था । दुष्यन्ती मनुष्य रूप में जन्म ले चुकी थी । प्रेत योनि में जा चुके पुत्र के अति मोह वश वह इस सजायाफ़्ता लोक में गिर चुका था । जिसके बहुत से कारण बनते थे । अब उसका एक साधु के तौर पर फ़र्ज था कि वह इन सबके लिये क्या कर सकता था । यही उसकी योग परीक्षा थी । अब वह निमित्त भी था । और कर्ता भी । प्रकृति अपना काम कर चुकी थी । अब उसकी बारी थी ।
- बङा भयानक दिन था । बूङा फ़िर बोला - बहुत भयंकर तूफ़ान आया था । सो तमाशा दिखाकर मैं घर लौट आया था । पर मुझे क्या पता था । मेरे घर में खुद मौत का असली तमाशा हो रहा था । वह जलजला मेरे घर को ही उजाङने आया था ।
उस दोपहर को नल्ला पेङ पर बाँसुरी बजा रहा था । चारू बंसी लेकर दरिया में मछलियाँ पकङने चली गयी थी । वह दो तरह से मछलियाँ पकङती थी । अपनी और नल्ला की पाँच छह बंसी दरिया में चुग्गा लगाकर डुबो देती थी । और फ़िर डण्डे से दरिया की लहरों में उछलती मछलियों को अलग से मारती थी । ऐसे वह अकेले ही दोनों परिवारों के लिये पूरा खाना ले आती थी ।
ये इत्तफ़ाक ही था कि ज्यादातर उसके साथ रहने वाला नल्ला आज उसके साथ नहीं था । उछलती लहरों में मछलियों पर डण्डे चलाती खुद भी उछलती कूदती चारू कितनी दूर निकल गयी थी । उसे ख्याल ही नहीं रहा था । नल्ला उससे बहुत दूर हो चुका था । और तब उत्तर दिशा से तूफ़ान उठा । आसमान में विशाल बवंडर घूमने लगा । मौत का बवंडर । इतनी मूसलाधार बारिश मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देखी ।
मैं घर पर लौट आया था । दुष्यन्ती रह रहकर दरबाजे पर देख रही थी । उसे जंगल से नल्ला और चारू के लौटने का इन्तजार था । तूफ़ान के जोर पकङने से पहले ही हमारे ढोर मवेशी खुद भागते हुये घर आ गये थे । नहीं आये । तो नल्ला और चारू । जब इन्तजार करते करते घण्टा भर से अधिक हो गया । और चारू नल्ला नहीं लौटे । तब मैं उनकी तलाश में जाने लगा । पर दुष्यन्ती ने ये कहकर कि तुम थक गये हो । मैं जाती हूँ । कहकर वह भी चली गयी । और फ़िर कभी नहीं लौटी । आज तक नहीं लौटी ।

तूफ़ान बीच बीच में हल्का होकर फ़िर भयंकर रूप धारण कर लेता था । जब दुष्यन्ती को जाये भी धीरे धीरे एक घण्टा फ़िर दो घण्टा हो गया । तब मुझे बेहद चिन्ता हुयी । पर मुश्किल यह थी कि घर अकेला था । उस तूफ़ान में मवेशी कौन देखता । इसीलिये मैं बारबार जाने की सोचकर भी रह ही जाता था । फ़िर आखिर में मैं उनकी चिन्ता छोङकर दूर दूर तक देखने गया ।
एक भयानक काला अंधेरा सर्वत्र फ़ैला हुआ था । जिन्दगी का चप्पा चप्पा वह अंधेरा निगल गया था । मैं देर तक उस सुनसान जंगल में दरिया के किनारे भटकता हुआ अब उन तीनों को तलाशता रहा । और कोई चार घण्टे बाद निराश खाली हाथ बिना साथ लौट आया । मेरी औरत भी जाने उस तूफ़ान में कहाँ खो गयी थी ।
तब कोई रात के दो बजे आहट हुयी । और मैं चौंक गया । तूफ़ान थम चुका था । नल्ला लौट आया था । मैं जानता था । ये भयंकर तूफ़ान भी उस जवान का कुछ नहीं बिगाङ सकता था । पर वह बेहद निराश था । चारू कहीं नहीं मिली थी । तब उसे और भी झटका लगा । जब उसे पता चला कि उन दोनों को तलाश करने गयी । उसकी माँ भी तूफ़ान से वापिस नहीं लौटी है । वह बेहद थका हुआ था । पर उसी वक्त मशालों का इन्तजाम करके फ़िर से तलाश में जाने लगा । वह मुझे वहीं रोक रहा था । पर अब मुझे उसकी चिन्ता थी । मैं उसको खोना नहीं चाहता था । मैं भी उसके साथ चला गया ।
नल्ला ने कश्ती दरिया में वापिस उतार दी थी । हम दोनों सुबह तक उन दोनों को तलाश करते रहे । तब दुष्यन्ती मिल गयी । मगर मुर्दा । वह मर चुकी थी । वह बवंडर एक साथ हमारी पत्नियों को छीन ले गया था । मेरा भी अब किसी काम में मन नहीं लगता था । मैंने तमाशा दिखाना छोङ दिया था । चारू का कुछ पता नहीं चला था । पर दीवाना सा नल्ला सुबह होते ही उसकी तलाश में निकल जाता था ।
फ़िर महीनों गुजर गये । पर वो नहीं मिली । वह दीवाना सा उसकी याद में जंगल में बाँसुरी बजाता । चारू चारूलता पुकारता । पर वो निर्मोही लङकी उसकी पुकार पर कोई ध्यान नहीं देती थी । उसने बहुत बङी बेबफ़ाई की थी ।
अब ढोल ही मेरा साथी था । और नल्ला का जंगल । वह जंगल में बाँसुरी पर दर्द भरे जुदाई के गीत गाता । और फ़िर एक दिन दोबारा तूफ़ान आया । नल्ला के पास मवेशी चराने गये नटों के लङके भी खेल रहे थे । वह पहले से बहुत कमजोर हो गया था । उसमें अब वो दम खम नहीं था । उसे खाने पीने से कोई मतलब ही नहीं रह गया था । जीने मरने से भी अब उसे कोई मतलब नहीं था ।
तब फ़िर एक दिन तूफ़ान आया । और नल्ला खुशी से चीख पङा । वह अपने साथियों से बोला - देखो चारू लौट आयी । मेरी माँ भी लौट आयी । सुनो । तुम.. सुनो । वे मुझे पुकार रही हैं । ये तूफ़ान ही उन दोनों को ले गया था । और अब लौटा भी लाया है ।
लङके हैरत से उसे देख रहे थे । उन्हें कहीं कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही थी । और न हीं कोई दिखाई दे रहा था । नल्ला ने कश्ती दरिया में डाल दी थी । और तेजी से उसे आगे ले जा रहा था । अचानक बूङे का चेहरा तेजी से कंपकंपाने लगा । वह फ़फ़कता हुआ रोने लगा ।
और हिचकियाँ भरता हुआ बोला - पर नल्ला नहीं जानता था कि उसे पुकारने वाली चारू नहीं मौत थी । मौत । डरावनी मौत । जो उस दिन मेरी एकमात्र बुङापे की आस को भी खा गयी ।
बङे बङे तूफ़ानों का मुँह मोङ देने वाले नल्ला को वो छोटा सा तूफ़ान लील गया था । उसकी कश्ती चट्टान से टकरायी । और उसका सर कहीं टकराकर फ़ट गया । नट समुदाय उसकी लाश लेकर आया था । मैं उस दिन भी बैठा ढोल बजा रहा था । जब दो पैरों पर चलने वाला मेरा बेटा उस दिन आखिरी बार चार कन्धों पर चलकर आया । और फ़िर वो भी मुझसे विदा लेकर हमेशा को चला गया ।
अजीव थी । इस लोक की रात भी । प्रसून बारबार आसमान पर निगाह डाल रहा था । पर उसे अब तक कहीं चांद नजर नहीं आया था । क्या दुनियाँ थी । इन लोगों की भी । न सूरज । न चाँद । बस अंधेरा । अंधेरा ही अंधेरा । उजाले का सबसे बङा शत्रु अंधेरा ।
पर आज एक चाँद इस लोक में निकला था । खूबसूरत जस्सी के रूप में । उसने गौर से उसे देखा । वह किसी मासूम बच्चे की भांति सो रही थी । उसका चाँद सा मुखङा इस अंधेरे में भी चमक रहा था । अब सारी कहानी उसके सामने शीशे की तरह साफ़ हो चुकी थी ।
- बाबा ! वह गम्भीरता से बोला - क्या आप चाहते हो कि आपका बेटा नल्ला और पत्नी और चारू जहाँ भी हैं । हमेशा खुश रहें । तो फ़िर आपको मेरी एक बात माननी होगी ।
बूङे को उसकी बात पर बङी हैरत सी हुयी । उसने चौंककर उसकी तरफ़ देखा । और फ़िर बिना कुछ समझे ही समर्थन में सिर हिलाया ।
- बाबा ! उसने एक बार जस्सी की तरफ़ देखा । फ़िर एक अजीब सी निगाह ढोल पर डाली । और बोला - ये ढोल अभी का अभी फ़ोङ दो । इसके बाद जीवन में कभी ढोल मत बजाना ।
बूङा हैरान रह गया । और इस विलक्षण योगी को देखने लगा ।
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: मायाजाल

Post by 007 »

ये आत्मा । वह प्रभावशाली स्वर में बोला - अनादि अजन्मा अमर अजर और अबिनाशी है । आत्मा अनादि और अनन्त है । आत्मा सब प्रकार से आदि अन्त रहित है । क्षिति जल पावक गगन समीरा । पंच रचित अति अधम शरीरा । प्रगटु सो तनु जो आवा जावा । जीव नित्य तब केहि शोक मनावा ।
बाबा । उसने जस्सी की तरफ़ उंगली दिखाई - ये चारूलता है । ये पंजाब में जन्म ले चुकी है । और अभी देखो इतनी बङी भी हो गयी है । ये पहले की ही तरह सुन्दर है । आपकी पत्नी दुष्यन्ती भी पंजाब में जन्म ले चुकी है । उसका नाम अभी करम कौर है । करम कौर इसकी माँ राजवीर की खास सहेली है । आपका बेटा नल्ला । कहते कहते वह रुका । उसने सोचा । बताना ठीक है । या नहीं । फ़िर उसने बताना ही उचित समझा । किसी को धोखे में रखने से बेहतर उसे कङबी सच्चाई बता देना हमेशा ही ज्यादा उचित होता है - और आपका बेटा नल्ला प्रेत योनि में चला गया है । और ये आप दोनों के मोहवश ही हुआ है । नल्ला चारू का मोह न छोङ सका । और इसके प्रेत जीवन के दौरान इसे याद करता हुआ । वह भी प्रेत हो गया । यह प्राकृतिक दुर्घटना से अकाल मरी थी । पर नल्ला इसके मोह में मरा था । मरने के बाद भी उसका मोह नहीं छूटा । तब वह स्थायी रूप से प्रेत बन गया । करम कौर के जस्सी से अभी भी संस्कार जुङे थे । सो वह उसे खोजते खोजते उसकी माँ की सहेली बनी ।
और आप अपने खोये परिवार को भुला न सके । वह हर पल आपकी यादों में बना रहा । आप भगवान को भूल गये । उससे उदासीन ही हो गये । आप भूल गये । ये परिवार भी आपको उसी प्रभु ने दिया था । और समय आने पर अपनी इच्छानुसार ले लिया । आप भूल गये कि इससे पहले कितने ही लाख परिवार आप पहले भी छोङ आये हैं । आप तुच्छ से तुच्छ कीङा मकोङा जीव भी बन चुके थे । कभी आप राजा भी बने थे । कभी आप राक्षस और फ़िर कभी देवता भी बने थे । पर ये सब झूठा खेल था । एकमात्र ठोस सच्चाई सिर्फ़ यही है - ये आत्मा अनादि अजन्मा अमर अजर और अबिनाशी है । आत्मा अनादि और अनन्त है । आत्मा सब प्रकार से आदि अन्त रहित है ।
पर आप इस ठोस सच्चाई को भूलकर । शाश्वत सत्य को त्याग कर माया के झूठे खेल में उलझ गये । और उस परम दयालु प्रभु से उदासीन हो गये । तब प्रभु नाम सुमरन से रहित परिणाम स्वरूप आपको नियमानुसार इस उदासीन लोक में भेज दिया गया । पर अपनी घोर और मोह जनित अज्ञानता वश आप अभी भी अपने पुत्र पत्नी और चारू को कष्ट पहुँचा रहे हैं । आप उनकी याद में गहरे डूबकर जब ये ढोल बजाते हुये । उसने एक भावहीन निगाह डालते हुये ढोल की तरफ़ उँगली उठाई - अपने परिवार या नल्ला को याद करते हैं ।
तब इसकी ध्वनि का सधा तीवृ कंपन आपकी याद के सहारे खोजता हुआ भाव को लेकर आसमानी शब्द में जाता है । वहाँ से वह भाव चुम्बकीय तरंगों में परिवर्तित होकर नल्ला के पास प्रेतलोक में पहुँचता है । और फ़िर नल्ला चुम्बकत्व के प्रभाव से अपने उस अतीत कालखण्ड में खिंचा चला आता है । तब उसकी प्रबल तरंगे चारू या दुष्यन्ती को वापिस अतीत में खींचने लगती हैं । आप जानते हैं । आपकी वजह से उन तीन आत्माओं को कितना कष्ट होता है । शायद आप नहीं जानते । और उसकी वजह है ये ढोल ।

बूङे के चेहरे पर भूचाल सा नजर आने लगा । उसकी गर्दन तेज तेज हिल रही थी । वह बुरी तरह कंपकंपा रहा था । शायद उतना बङा तूफ़ान उस दिन भी नहीं आया था । जितना आज इस लङके के शब्दों से आया था । फ़िर वह बङी मुश्किल से लङखङाता हुआ सा उठा । उसने एक निगाह सुन्दर जस्सी के चेहरे पर प्यार से डाली । वह उसके पास झुककर बैठ गया । और बङे स्नेह से उसका माथा चूमा ।
फ़िर उसने एक लकङी उठाकर ढोल के पुरे में भोंक दी । ढोल दोनों तरफ़ से फ़ट गया । उसने बेहद नफ़रत से ढोल में एक लात मारी । गोल ढोल बाहर लुढकता ही चला गया । लुङकता ही चला गया । फ़िर उसने घुटनों के बल बैठकर खुदा की इबादत की ।
और कंपकंपाये स्वर में बोला - हे मालिक ! आज तूने मेरी आँखे खोल दी । ये लङका स्वयँ आपका ही रूप है ।
फ़िर वह किसी शराबी के समान झूमता हुआ आया । और प्रसून के पैरों में गिर पङा । प्रसून हतप्रभ रह गया । उसे एकाएक कुछ नहीं सूझा । वह भावुक सा हो उठा था । और बूङे को उठाने की भी हिम्मत नहीं कर पा रहा था । अंधेरा अब पहले की अपेक्षा कम होने लगा था । शायद कुछ ही देर में पौ फ़टने वाली थी । अब उसे वापिसी की भी जल्दी हो रही थी ।
कोई पन्द्रह मिनट तक अपनी भावुकता के चलते वह अनेकों बातें सोच गया । बूङा अभी भी उसके पैरों में गिरा पङा था । तब उसे मानों चौंकते हुये होश आया । उसने कन्धा पकङकर - उठो बाबा ..कहते हुये बूङे को उठाया । मगर वह एक तरफ़ को ढोल की तरह ही लुङक गया । वह एकदम हक्का बक्का रह गया । बूङा मर चुका था । उसकी सजा खत्म हो गयी थी । वह इस उदासीन जेल से रिहा कर दिया गया था ।
राम नाम सत्य है । सत्य बोलो मुक्त है । राम नाम सत्य है । सत्य बोलो मुक्त है । अभी यही तो हुआ था ।
- दाता ! वह फ़ूट फ़ूटकर रोने लगा - कैसा अजीव खेल खेलता है तू भी । शायद इसी को बोलते हैं । खबर नहीं पल की । तेरा खेल । मैं भला मूरख क्या जान सकता हूँ । मैं तो सिर्फ़ निमित्त था । मैं जान गया प्रभु । मैं सिर्फ़ निमित्त था । आपके पवित्र नाम को सुनाने ही मैं यहाँ आया था । जिसके सुनने मात्र से उसकी बेङियाँ कट गयीं । और वह आजाद हो गया । किसी अगली खुशहाल लहलहाती जिन्दगी के लिये ।
उसने अपनी आँखें पोंछी । अंधेरा काफ़ी हद तक छट चुका था । भोर की हल्की हल्की लालिमा फ़ैलने लगी थी । मगर जस्सी अभी भी सो रही थी । अब क्या करना चाहिये । उसने सोचा । जस्सी को यहीं जगा लेने पर उसके दिल पर कोई असर पङ सकता है । आगे के लिये फ़िर कोई बात उसके दिलोदिमाग में अंकित हो सकती है । वह परेशान हो सकती है । तमाम सवाल जबाब कर सकती है ।
तब उसने सोती जस्सी को बाँहो में उठाया । और आखिरी निगाह डालकर वह वहाँ से बाहर निकल आया । काफ़ी आगे निकल आने पर उसने सोती हुयी जस्सी को बाहों में लिये ही खङा किया । और जोर से भींचा । वह हङबङा कर जाग गयी । और हैरानी से उसे देखने लगी ।
- घर नहीं चलना क्या । वह अजीव निगाहों से उसे देखने लगा - क्या ऐसे ही सोती रहेगी ।
- घर । वह बौखलाकर बोली - कौन से घर ? पर मैं तो मर चुकी हूँ । आप भी मर चुके हो । अब हम घर कैसे जा सकते हैं । प्रसून जी ! अब हम लोग हैं ना । भूत बन गये हैं । सच्ची आप मेरा यकीन करो जी । अब हम घर नहीं जा सकते । आप ये बात मानते क्यों नहीं ।
- अरे ! वह झुंझलाकर बोला - भूत क्या घर नहीं जाते । सुबह हो चुकी है । बोल अभी तू टी कैसे पियेगी । ब्रेकफ़ास्ट कहाँ से करेगी । तुझे कालेज भी जाना है ।
- भूत ! वह आश्चर्य से बोली - भूत भी ये सब करते हैं ।
- नहीं रानी । वह प्यार से बोला - भूत सिर्फ़ बियर पीते हैं । भंगङा करते हैं । पप्पियाँ झप्पियाँ करते हैं । अब चल भी दे भूतनी ।
ये प्रसून के लिये अजीव यात्रा थी । वह अक्सर ऊँचे लोकों में ही अधिक जाता था । पर आज वह प्रथ्वी से भी काफ़ी नीचे लोकों में आया था । जहाँ चारो तरफ़ अंधेरे का साम्राज्य कायम था । पर अब अंधेरा छंट चुका था । उसने प्रथ्वी की तरफ़ जाने के लिये यात्रा शुरू कर दी ।

बराङ साहब के घर में एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था । शाम के सात बज चुके थे । सुबह से लेकर अब तक बारह घण्टे गुजर चुके थे । बारबार राजवीर की रुलाई सी फ़ूट रही थी । मनदीप भी भौचक्का सा कुछ समझ ही नहीं पा रहा था कि क्या करे । प्रसून और जस्सी कमरे में मरे पङे थे ।
और वे ठीक से यह भी नहीं कह सकते थे । वे वाकई मरे पङे थे । प्रसून ने कहा था । हो सकता है । उन्हें ऐसा लगे कि वह मर गया है । लेकिन वास्तव में वह मरा नहीं होगा । पर यह बात उसने सिर्फ़ अपने लिये कही थी । उसकी बेटी के लिये नहीं । तब जस्सी क्या मर गयी थी । वह कब और कैसे प्रसून के कमरे में पहुँच गयी थी ।
राजवीर को रह रहकर अपने आप पर क्रोध आ रहा था । क्यों उसने जस्सी को उस रात अकेला छोङ दिया था । सुबह वह उठी । तो जस्सी घर में कहीं नहीं थी । वह देर तक चारों तरफ़ उसे देखती रही । उसने हर तरफ़ जस्सी को खोजा । पर वह कहीं नहीं थी । तब यकायक उन सबका ध्यान प्रसून की तरफ़ गया । क्या वह घर में ही था । या कहीं..कहीं वो साधु युवक उनकी लङकी को चुपके से भगा ले गया था ।
और जैसे ही वो उस कमरे के द्वार पर आये । उनका शक विश्वास में बदल गया । कमरे का लाक खुला था । जस्सी उसके साथ घर छोङकर भाग गयी थी । उन्होंने हङबङाहट में दरबाजे को धक्का मारा । पर दरबाजा अन्दर से बन्द था । अब उनकी उलझन और भी बङ गयी थी । दरबाजा बाहर से लाक था । उसकी चाबी जस्सी के पास थी । क्या वे दोनों अन्दर बन्द थे । फ़िर वे अभी तक क्या कर रहे थे ?
बहुत आवाजें लगाने के बाद आखिर दरबाजा तोङ दिया गया । और अन्दर का दृश्य देखकर उन सबके छक्के छूट गये । वे दोनों मरे पङे थे । इस नई स्थिति की किसी को कल्पना भी नहीं थी । उन्होंने भली प्रकार से चैक किया था । दोनों की सांस नब्ज नाङी का कुछ भी पता नहीं था । बस एक ही बात थी । उनके शरीर हल्के गर्म थे । और मरे के समान नहीं हुये थे । वे दोनों किसी प्रेमी प्रेमिका के समान एक दूसरे से सटे पङे थे । जस्सी उसकी छाती पर सिर रखकर सो रही थी । अब वे कर भी क्या सकते थे ।
उन्होंने कमरा ज्यों का त्यों बन्द कर दिया । और गौर से प्रसून की समझायी हुयी बातों को याद करने लगे । तब उन्हें शान्ति से बिना कोई हंगामा किये इन्तजार करना ही उचित लगा । चाहे इस इन्तजार में दस दिन ही क्यों न लग जायें ।
जीवन में कभी कभी ऐसी स्थितियाँ बन जाती हैं । जब अच्छे से अच्छा इंसान भी कोई निर्णय नहीं ले पाता । सही गलत को नहीं सोच पाता । बराङ को भी जब कुछ नहीं सूझा । तो उसने एक बङा सा पैग बनाया । और धीरे धीरे घूँट भरने लगा । उसके माथे पर बल पङे हुये थे । घर में एक अजीब सी उदासी छायी हुयी थी । वे सब हाल में टीवी के सामने सिर झुकाये गमगीन से बैठे थे ।
और तभी एक चमत्कार सा हुआ । उस रहस्यमय कमरे का दरबाजा खुलने की आवाज आयी । और फ़िर जस्सी प्रसून का हाथ थामे हुये बाहर आयी । राजवीर खुशी से रो पङी । और दौङकर जस्सी से लिपट गयी । बराङ की आँखे भी भीगने लगी ।


- बराङ साहब ! प्रसून उसके सामने बैठता हुआ बोला - नाउ आल इज वेल । जस्सी पूरी तरह ठीक हो चुकी है । इसी खुशी में एक पटियाला पैग हो जाये ।
- ओये जुरूर जुरूर । बराङ भावुक सा होकर आँसू पोंछता हुआ बोला - ज्यूँदा रह पुत्तर । मेरा शेर । पंजाब दा शेर । बब्बर शेरया । वह बाटल से उसके लिये गिलास में व्हिस्की उङेलता हुआ बोला - राजवीर अब तू बैठी बैठी क्या देख रही है । बच्चों के लिये खाना वाना ला । इन्हें भूख लगी होगी ।
- हाँ जी । सरदार जी । वह उठते हुये बोली - आप ठीक ही बोल रहे हो ।
- डैड । जस्सी मनदीप के पास आकर बोली - एक बार एक सरदार था । पर वह कोई सन्ता बन्ता नहीं था । वह बहुत अच्छा और रब्ब दा नेक बन्दा था । और वह आप हो । मेरे प्यारे पप्पा । सच आय लव यू वेरी मच डैड ।
बराङ ने उसे सीने से लिपटा लिया । और कसकर भींचते हुये सुबकने लगा । वाकई सबको ऐसा ही लग रहा था । जैसे जस्सी मरकर जीवित हुयी हो । उसे नयी जिन्दगी मिली हो । सो उस कोठी में अजीब सा खुशी गम का मिश्रित माहौल था ।
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इसके आठ दिन बाद जब जस्सी कालेज में थी । अचानक उसका सेलफ़ोन बजा । कालर आई डी पर निगाह पङते ही वह मुस्करा उठी । अभी वह क्लास से बाहर थीं । उसने चिकन वाली का हाथ पकङा । और तेजी से एक तरफ़ ले गयी । दूसरी तरफ़ से प्रसून बोल रहा था । जस्सी ने जानबूझकर चिकन वाली गगन को उत्तेजित करने हेतु इतना वाल्यूम बङा दिया था कि वह आराम से सुन सके । उसने ये बात प्रसून को भी बता दी थी । जब उसने गगन का हालचाल पूछा था कि वह उसके पास ही खङी है । और आपकी बात भी सुन रही है ।
तब जैसे प्रसून को यकायक कुछ याद आया । और वह सीधा गगन से सम्बोधित होता हुआ बोला - ओ सारी ..सारी गगन जी । वेरी सारी । जल्दी में मैं आपको एक बात बताना भूल गया था । जो आपने खास तौर पर पूछी थी । चलिये अब बताये देता हूँ । मैं राजीव जी को जानता हूँ । और नीलेश को भी । और उसकी गर्लफ़्रेंड मानसी को भी.. । अब तो आपको विश्वास हो गया । मैं नकली प्रसून नहीं हूँ ।
- क्याऽऽ । गगन एकदम से उछलकर बोली - सालिया डफ़र । यू चीटर । भैण..भैण..देख जस्सी..समझा दे इसको । मेरा मूड बिगङ गया है । अब मुझे बहुत गुस्सा चङ गया है । ऐसा न हो कि साली तू भी कुछ और बात कर दे । नहीं तो मैं नाराज हो जाऊँगी । उदास हो जाऊँगी । निराश हो जाऊँगी । मैं रो पङूँगी । गुस्से में आकर प्रसून का... काट दूँगी । टुईं.. टुईं । आई लव यू लल्लू बाबा । बाय बाय ।
जस्सी हौले हौले हँस रही थी । उसे पता था । प्रसून उसकी पगली सहेली का गुस्सा सुन रहा था । उसने फ़ोन काटने की कोई कोशिश नहीं की थी । फ़िर उसने फ़ोन को बेहद करीब लाकर स्वीट किस की ध्वनि की । और शरमा कर जल्दी से फ़ोन काट दिया ।
और अन्त में - वास्तव में इस पूरी कहानी की प्रेरणा मुझे मेरी सहेली से मिली है । उसका बहुत बङा योगदान इसमें रहा है । मैंने तो बस इसे शब्द ही दिये हैं । बाकी सब कुछ उसी का है । अतः मेरी ये कहानी उसी को समर्पित है ।
उसको जो मुझे बहुत प्रिय है ।
और सदा मेरी यादों में रहती है
-साजन लव ।
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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