मायाजाल

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007
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Re: मायाजाल

Post by 007 »

ये आत्मा । वह प्रभावशाली स्वर में बोला - अनादि अजन्मा अमर अजर और अबिनाशी है । आत्मा अनादि और अनन्त है । आत्मा सब प्रकार से आदि अन्त रहित है । क्षिति जल पावक गगन समीरा । पंच रचित अति अधम शरीरा । प्रगटु सो तनु जो आवा जावा । जीव नित्य तब केहि शोक मनावा ।
बाबा । उसने जस्सी की तरफ़ उंगली दिखाई - ये चारूलता है । ये पंजाब में जन्म ले चुकी है । और अभी देखो इतनी बङी भी हो गयी है । ये पहले की ही तरह सुन्दर है । आपकी पत्नी दुष्यन्ती भी पंजाब में जन्म ले चुकी है । उसका नाम अभी करम कौर है । करम कौर इसकी माँ राजवीर की खास सहेली है । आपका बेटा नल्ला । कहते कहते वह रुका । उसने सोचा । बताना ठीक है । या नहीं । फ़िर उसने बताना ही उचित समझा । किसी को धोखे में रखने से बेहतर उसे कङबी सच्चाई बता देना हमेशा ही ज्यादा उचित होता है - और आपका बेटा नल्ला प्रेत योनि में चला गया है । और ये आप दोनों के मोहवश ही हुआ है । नल्ला चारू का मोह न छोङ सका । और इसके प्रेत जीवन के दौरान इसे याद करता हुआ । वह भी प्रेत हो गया । यह प्राकृतिक दुर्घटना से अकाल मरी थी । पर नल्ला इसके मोह में मरा था । मरने के बाद भी उसका मोह नहीं छूटा । तब वह स्थायी रूप से प्रेत बन गया । करम कौर के जस्सी से अभी भी संस्कार जुङे थे । सो वह उसे खोजते खोजते उसकी माँ की सहेली बनी ।
और आप अपने खोये परिवार को भुला न सके । वह हर पल आपकी यादों में बना रहा । आप भगवान को भूल गये । उससे उदासीन ही हो गये । आप भूल गये । ये परिवार भी आपको उसी प्रभु ने दिया था । और समय आने पर अपनी इच्छानुसार ले लिया । आप भूल गये कि इससे पहले कितने ही लाख परिवार आप पहले भी छोङ आये हैं । आप तुच्छ से तुच्छ कीङा मकोङा जीव भी बन चुके थे । कभी आप राजा भी बने थे । कभी आप राक्षस और फ़िर कभी देवता भी बने थे । पर ये सब झूठा खेल था । एकमात्र ठोस सच्चाई सिर्फ़ यही है - ये आत्मा अनादि अजन्मा अमर अजर और अबिनाशी है । आत्मा अनादि और अनन्त है । आत्मा सब प्रकार से आदि अन्त रहित है ।
पर आप इस ठोस सच्चाई को भूलकर । शाश्वत सत्य को त्याग कर माया के झूठे खेल में उलझ गये । और उस परम दयालु प्रभु से उदासीन हो गये । तब प्रभु नाम सुमरन से रहित परिणाम स्वरूप आपको नियमानुसार इस उदासीन लोक में भेज दिया गया । पर अपनी घोर और मोह जनित अज्ञानता वश आप अभी भी अपने पुत्र पत्नी और चारू को कष्ट पहुँचा रहे हैं । आप उनकी याद में गहरे डूबकर जब ये ढोल बजाते हुये । उसने एक भावहीन निगाह डालते हुये ढोल की तरफ़ उँगली उठाई - अपने परिवार या नल्ला को याद करते हैं ।
तब इसकी ध्वनि का सधा तीवृ कंपन आपकी याद के सहारे खोजता हुआ भाव को लेकर आसमानी शब्द में जाता है । वहाँ से वह भाव चुम्बकीय तरंगों में परिवर्तित होकर नल्ला के पास प्रेतलोक में पहुँचता है । और फ़िर नल्ला चुम्बकत्व के प्रभाव से अपने उस अतीत कालखण्ड में खिंचा चला आता है । तब उसकी प्रबल तरंगे चारू या दुष्यन्ती को वापिस अतीत में खींचने लगती हैं । आप जानते हैं । आपकी वजह से उन तीन आत्माओं को कितना कष्ट होता है । शायद आप नहीं जानते । और उसकी वजह है ये ढोल ।

बूङे के चेहरे पर भूचाल सा नजर आने लगा । उसकी गर्दन तेज तेज हिल रही थी । वह बुरी तरह कंपकंपा रहा था । शायद उतना बङा तूफ़ान उस दिन भी नहीं आया था । जितना आज इस लङके के शब्दों से आया था । फ़िर वह बङी मुश्किल से लङखङाता हुआ सा उठा । उसने एक निगाह सुन्दर जस्सी के चेहरे पर प्यार से डाली । वह उसके पास झुककर बैठ गया । और बङे स्नेह से उसका माथा चूमा ।
फ़िर उसने एक लकङी उठाकर ढोल के पुरे में भोंक दी । ढोल दोनों तरफ़ से फ़ट गया । उसने बेहद नफ़रत से ढोल में एक लात मारी । गोल ढोल बाहर लुढकता ही चला गया । लुङकता ही चला गया । फ़िर उसने घुटनों के बल बैठकर खुदा की इबादत की ।
और कंपकंपाये स्वर में बोला - हे मालिक ! आज तूने मेरी आँखे खोल दी । ये लङका स्वयँ आपका ही रूप है ।
फ़िर वह किसी शराबी के समान झूमता हुआ आया । और प्रसून के पैरों में गिर पङा । प्रसून हतप्रभ रह गया । उसे एकाएक कुछ नहीं सूझा । वह भावुक सा हो उठा था । और बूङे को उठाने की भी हिम्मत नहीं कर पा रहा था । अंधेरा अब पहले की अपेक्षा कम होने लगा था । शायद कुछ ही देर में पौ फ़टने वाली थी । अब उसे वापिसी की भी जल्दी हो रही थी ।
कोई पन्द्रह मिनट तक अपनी भावुकता के चलते वह अनेकों बातें सोच गया । बूङा अभी भी उसके पैरों में गिरा पङा था । तब उसे मानों चौंकते हुये होश आया । उसने कन्धा पकङकर - उठो बाबा ..कहते हुये बूङे को उठाया । मगर वह एक तरफ़ को ढोल की तरह ही लुङक गया । वह एकदम हक्का बक्का रह गया । बूङा मर चुका था । उसकी सजा खत्म हो गयी थी । वह इस उदासीन जेल से रिहा कर दिया गया था ।
राम नाम सत्य है । सत्य बोलो मुक्त है । राम नाम सत्य है । सत्य बोलो मुक्त है । अभी यही तो हुआ था ।
- दाता ! वह फ़ूट फ़ूटकर रोने लगा - कैसा अजीव खेल खेलता है तू भी । शायद इसी को बोलते हैं । खबर नहीं पल की । तेरा खेल । मैं भला मूरख क्या जान सकता हूँ । मैं तो सिर्फ़ निमित्त था । मैं जान गया प्रभु । मैं सिर्फ़ निमित्त था । आपके पवित्र नाम को सुनाने ही मैं यहाँ आया था । जिसके सुनने मात्र से उसकी बेङियाँ कट गयीं । और वह आजाद हो गया । किसी अगली खुशहाल लहलहाती जिन्दगी के लिये ।
उसने अपनी आँखें पोंछी । अंधेरा काफ़ी हद तक छट चुका था । भोर की हल्की हल्की लालिमा फ़ैलने लगी थी । मगर जस्सी अभी भी सो रही थी । अब क्या करना चाहिये । उसने सोचा । जस्सी को यहीं जगा लेने पर उसके दिल पर कोई असर पङ सकता है । आगे के लिये फ़िर कोई बात उसके दिलोदिमाग में अंकित हो सकती है । वह परेशान हो सकती है । तमाम सवाल जबाब कर सकती है ।
तब उसने सोती जस्सी को बाँहो में उठाया । और आखिरी निगाह डालकर वह वहाँ से बाहर निकल आया । काफ़ी आगे निकल आने पर उसने सोती हुयी जस्सी को बाहों में लिये ही खङा किया । और जोर से भींचा । वह हङबङा कर जाग गयी । और हैरानी से उसे देखने लगी ।
- घर नहीं चलना क्या । वह अजीव निगाहों से उसे देखने लगा - क्या ऐसे ही सोती रहेगी ।
- घर । वह बौखलाकर बोली - कौन से घर ? पर मैं तो मर चुकी हूँ । आप भी मर चुके हो । अब हम घर कैसे जा सकते हैं । प्रसून जी ! अब हम लोग हैं ना । भूत बन गये हैं । सच्ची आप मेरा यकीन करो जी । अब हम घर नहीं जा सकते । आप ये बात मानते क्यों नहीं ।
- अरे ! वह झुंझलाकर बोला - भूत क्या घर नहीं जाते । सुबह हो चुकी है । बोल अभी तू टी कैसे पियेगी । ब्रेकफ़ास्ट कहाँ से करेगी । तुझे कालेज भी जाना है ।
- भूत ! वह आश्चर्य से बोली - भूत भी ये सब करते हैं ।
- नहीं रानी । वह प्यार से बोला - भूत सिर्फ़ बियर पीते हैं । भंगङा करते हैं । पप्पियाँ झप्पियाँ करते हैं । अब चल भी दे भूतनी ।
ये प्रसून के लिये अजीव यात्रा थी । वह अक्सर ऊँचे लोकों में ही अधिक जाता था । पर आज वह प्रथ्वी से भी काफ़ी नीचे लोकों में आया था । जहाँ चारो तरफ़ अंधेरे का साम्राज्य कायम था । पर अब अंधेरा छंट चुका था । उसने प्रथ्वी की तरफ़ जाने के लिये यात्रा शुरू कर दी ।

बराङ साहब के घर में एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था । शाम के सात बज चुके थे । सुबह से लेकर अब तक बारह घण्टे गुजर चुके थे । बारबार राजवीर की रुलाई सी फ़ूट रही थी । मनदीप भी भौचक्का सा कुछ समझ ही नहीं पा रहा था कि क्या करे । प्रसून और जस्सी कमरे में मरे पङे थे ।
और वे ठीक से यह भी नहीं कह सकते थे । वे वाकई मरे पङे थे । प्रसून ने कहा था । हो सकता है । उन्हें ऐसा लगे कि वह मर गया है । लेकिन वास्तव में वह मरा नहीं होगा । पर यह बात उसने सिर्फ़ अपने लिये कही थी । उसकी बेटी के लिये नहीं । तब जस्सी क्या मर गयी थी । वह कब और कैसे प्रसून के कमरे में पहुँच गयी थी ।
राजवीर को रह रहकर अपने आप पर क्रोध आ रहा था । क्यों उसने जस्सी को उस रात अकेला छोङ दिया था । सुबह वह उठी । तो जस्सी घर में कहीं नहीं थी । वह देर तक चारों तरफ़ उसे देखती रही । उसने हर तरफ़ जस्सी को खोजा । पर वह कहीं नहीं थी । तब यकायक उन सबका ध्यान प्रसून की तरफ़ गया । क्या वह घर में ही था । या कहीं..कहीं वो साधु युवक उनकी लङकी को चुपके से भगा ले गया था ।
और जैसे ही वो उस कमरे के द्वार पर आये । उनका शक विश्वास में बदल गया । कमरे का लाक खुला था । जस्सी उसके साथ घर छोङकर भाग गयी थी । उन्होंने हङबङाहट में दरबाजे को धक्का मारा । पर दरबाजा अन्दर से बन्द था । अब उनकी उलझन और भी बङ गयी थी । दरबाजा बाहर से लाक था । उसकी चाबी जस्सी के पास थी । क्या वे दोनों अन्दर बन्द थे । फ़िर वे अभी तक क्या कर रहे थे ?
बहुत आवाजें लगाने के बाद आखिर दरबाजा तोङ दिया गया । और अन्दर का दृश्य देखकर उन सबके छक्के छूट गये । वे दोनों मरे पङे थे । इस नई स्थिति की किसी को कल्पना भी नहीं थी । उन्होंने भली प्रकार से चैक किया था । दोनों की सांस नब्ज नाङी का कुछ भी पता नहीं था । बस एक ही बात थी । उनके शरीर हल्के गर्म थे । और मरे के समान नहीं हुये थे । वे दोनों किसी प्रेमी प्रेमिका के समान एक दूसरे से सटे पङे थे । जस्सी उसकी छाती पर सिर रखकर सो रही थी । अब वे कर भी क्या सकते थे ।
उन्होंने कमरा ज्यों का त्यों बन्द कर दिया । और गौर से प्रसून की समझायी हुयी बातों को याद करने लगे । तब उन्हें शान्ति से बिना कोई हंगामा किये इन्तजार करना ही उचित लगा । चाहे इस इन्तजार में दस दिन ही क्यों न लग जायें ।
जीवन में कभी कभी ऐसी स्थितियाँ बन जाती हैं । जब अच्छे से अच्छा इंसान भी कोई निर्णय नहीं ले पाता । सही गलत को नहीं सोच पाता । बराङ को भी जब कुछ नहीं सूझा । तो उसने एक बङा सा पैग बनाया । और धीरे धीरे घूँट भरने लगा । उसके माथे पर बल पङे हुये थे । घर में एक अजीब सी उदासी छायी हुयी थी । वे सब हाल में टीवी के सामने सिर झुकाये गमगीन से बैठे थे ।
और तभी एक चमत्कार सा हुआ । उस रहस्यमय कमरे का दरबाजा खुलने की आवाज आयी । और फ़िर जस्सी प्रसून का हाथ थामे हुये बाहर आयी । राजवीर खुशी से रो पङी । और दौङकर जस्सी से लिपट गयी । बराङ की आँखे भी भीगने लगी ।


- बराङ साहब ! प्रसून उसके सामने बैठता हुआ बोला - नाउ आल इज वेल । जस्सी पूरी तरह ठीक हो चुकी है । इसी खुशी में एक पटियाला पैग हो जाये ।
- ओये जुरूर जुरूर । बराङ भावुक सा होकर आँसू पोंछता हुआ बोला - ज्यूँदा रह पुत्तर । मेरा शेर । पंजाब दा शेर । बब्बर शेरया । वह बाटल से उसके लिये गिलास में व्हिस्की उङेलता हुआ बोला - राजवीर अब तू बैठी बैठी क्या देख रही है । बच्चों के लिये खाना वाना ला । इन्हें भूख लगी होगी ।
- हाँ जी । सरदार जी । वह उठते हुये बोली - आप ठीक ही बोल रहे हो ।
- डैड । जस्सी मनदीप के पास आकर बोली - एक बार एक सरदार था । पर वह कोई सन्ता बन्ता नहीं था । वह बहुत अच्छा और रब्ब दा नेक बन्दा था । और वह आप हो । मेरे प्यारे पप्पा । सच आय लव यू वेरी मच डैड ।
बराङ ने उसे सीने से लिपटा लिया । और कसकर भींचते हुये सुबकने लगा । वाकई सबको ऐसा ही लग रहा था । जैसे जस्सी मरकर जीवित हुयी हो । उसे नयी जिन्दगी मिली हो । सो उस कोठी में अजीब सा खुशी गम का मिश्रित माहौल था ।
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इसके आठ दिन बाद जब जस्सी कालेज में थी । अचानक उसका सेलफ़ोन बजा । कालर आई डी पर निगाह पङते ही वह मुस्करा उठी । अभी वह क्लास से बाहर थीं । उसने चिकन वाली का हाथ पकङा । और तेजी से एक तरफ़ ले गयी । दूसरी तरफ़ से प्रसून बोल रहा था । जस्सी ने जानबूझकर चिकन वाली गगन को उत्तेजित करने हेतु इतना वाल्यूम बङा दिया था कि वह आराम से सुन सके । उसने ये बात प्रसून को भी बता दी थी । जब उसने गगन का हालचाल पूछा था कि वह उसके पास ही खङी है । और आपकी बात भी सुन रही है ।
तब जैसे प्रसून को यकायक कुछ याद आया । और वह सीधा गगन से सम्बोधित होता हुआ बोला - ओ सारी ..सारी गगन जी । वेरी सारी । जल्दी में मैं आपको एक बात बताना भूल गया था । जो आपने खास तौर पर पूछी थी । चलिये अब बताये देता हूँ । मैं राजीव जी को जानता हूँ । और नीलेश को भी । और उसकी गर्लफ़्रेंड मानसी को भी.. । अब तो आपको विश्वास हो गया । मैं नकली प्रसून नहीं हूँ ।
- क्याऽऽ । गगन एकदम से उछलकर बोली - सालिया डफ़र । यू चीटर । भैण..भैण..देख जस्सी..समझा दे इसको । मेरा मूड बिगङ गया है । अब मुझे बहुत गुस्सा चङ गया है । ऐसा न हो कि साली तू भी कुछ और बात कर दे । नहीं तो मैं नाराज हो जाऊँगी । उदास हो जाऊँगी । निराश हो जाऊँगी । मैं रो पङूँगी । गुस्से में आकर प्रसून का... काट दूँगी । टुईं.. टुईं । आई लव यू लल्लू बाबा । बाय बाय ।
जस्सी हौले हौले हँस रही थी । उसे पता था । प्रसून उसकी पगली सहेली का गुस्सा सुन रहा था । उसने फ़ोन काटने की कोई कोशिश नहीं की थी । फ़िर उसने फ़ोन को बेहद करीब लाकर स्वीट किस की ध्वनि की । और शरमा कर जल्दी से फ़ोन काट दिया ।
और अन्त में - वास्तव में इस पूरी कहानी की प्रेरणा मुझे मेरी सहेली से मिली है । उसका बहुत बङा योगदान इसमें रहा है । मैंने तो बस इसे शब्द ही दिये हैं । बाकी सब कुछ उसी का है । अतः मेरी ये कहानी उसी को समर्पित है ।
उसको जो मुझे बहुत प्रिय है ।
और सदा मेरी यादों में रहती है
-साजन लव ।
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

(¨`·.·´¨) Always

`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &

(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !

`·.¸.·´
-- 007

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