कानपुर की एक घटना
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Re: कानपुर की एक घटना
मै अपनी क्रिया में लगातार तेज़ होता जा रहा था, शिवानी फर्श पे बेहोश पड़ी थी, रमेश जी, कमरे के बाहर थे, मेरे साथ शर्मा जी ही थे जो की लगातार मेरी मदद कर रहे थे, अशफाक अब बेचैन होने लगा था, वो बार बार 'रुक जा, रुक जा' कहे जा रहा था, आखिर मेरी क्रिया समाप्त हुई, क्रिया समाप्त होते ही अशफाक ग़ायब हो गया! वो गया नहीं था, वो मेरी क्रिया का तोड़ लेने गया था, लेकिन मैंने आज ठान ली थी की इसका आज काम तमाम कर के ही रहूँगा!
अचानक कमरे में धुआं भर गया, तेज़ गरम झोंके हमारे चेहरों पर लगने लगे, मैंने ये अपनी विद्या से ख़तम कर दिया, फिर सब-कुछ पहले जैसा हो गया, अशफाक फिर हाज़िर हो गया था, और बेचैन था, बहुत, अब मै उसकी कोई बात नहीं सुन रहा था, वो वहाँ की तमाम चीज़ें उठा उठा के पटक रहा था, उसने फिर टीवी उठा के हमारे ऊपर फेंका, हम हट गए, मै चिल्लाया,
"अशफाक, बदतमीज़, बेगैरत, आज तू नहीं बचेगा, मैंने अपने मंत्र पढने शुरू किये, अपनी ताकतें बुलानी शुरू की, अब अशफाक गिडगिडाने लगा, कहने लगा,
"मुझे खाक करके तुझे क्या मिलेगा, इसके बाप से कह मै इसको इसकी ज़मीन से खजाना निकाल के दे दूंगा, मुझे इस लड़की से जुदा नहीं करो", वो जो चाहेगा मै दूंगा, उसको मन लो, मेरी मुहब्बत की खातिर"
मै अब हंसने लगा! मैंने कहा "अशफाक, तुझे मैंने कई मौके दिया, लेकिन तू समझा नहीं, अब तू खाक होने वाला है" ये कहते हुए मैंने एक खंजर निकाला और उस से अपना हाथ काटा, और खून के छींटे उसके ऊपर डाल दिए, वो धडाम से नीचे गिरा, और बोला,
"माफ़ करदे, मुझे बख्श दे, मुझे बख्श दे, तू जैसा कहेगा मै करूँगा, मै करूँगा, मुझे बख्श दे"
लेकिन मै रुका नहीं , एक बार और छींटे उस पर डाल दिए, वो कराह उठा!
अब अशफाक पे मै हावी हो गया था, वो मेरे सामने गिडगिडाता रहा, तेज़ तेज़ सांस लेने लगा, वो मेरी ओर ऐसे देख रहा था की जैसे कि कोई जल्लाद को देख के उस से माफ़ी कि पुकार करता है! मैंने अशफाक से कहा,
"सुन, अब जो मै कहता हूँ, सुन ले, तू अभी इसको छोड़ के जायेगा, तूने जिस हालात में इसको पकड़ा था, वैसा ही करेगा, मेरा मतलब सेहतमंद होनी चाहिए, बोल करेगा ऐसा?"
"बिलकुल करूँगा, बिलकुल करूँगा" उसने कहा,
"और तू अब यहाँ से मेरे साथ जाएगा, तेरी पेशी मै तेरे बादशाह के पास कराऊंगा, तू सजा का हक़दार है, तुझे सजा मिलनी ही चाहिए नहीं तो तू इसको छोड़ के फिर किसी को तंग करेगा, अब तैयार होजा मेरे साथ चलने के लिए, मंज़ूर है?"
"बिलकुल मंज़ूर है, बिलकुल मंज़ूर है" वो बोला,
मेरे पास, एक डिबिया है, हर एक तांत्रिक के पास होती है, ये मनुष्य की हड्डियों से बनती है, इसी में महाप्रेत, जिन्न आदि को क़ैद किया जाता है, मैंने अशफाक से कहा की अब वो आराम से इस डिबिया में आ जाये, वो मायूस सा होने लगा, मैंने फिर से उसे डांटा,
"आता है या नहीं?"
"आ रहा हूँ, लेकिन एक बार मुझे इसको देख लेने दो, मैंने इस से वादा किया था कि मै इसको खुद अपने हाथों से सजाऊंगा" उसने बेहोश शिवानी कि तरफ देखते हुए बोला,
मैंने कहा, "बिलकुल नहीं"
फिर मैंने उस से पूछा, "एक बात बता, तू इसके पीछे कहाँ से लगा?"
उसने कहा, "ये एक बार अपनी एक सहेली के पास गयी थी, वहाँ कुछ मज़ार हैं, ये वहाँ खड़ी हुई थी, अपनी सहेली से बातें कर रही थी, मै उड़के जा रहा था, मेरी नज़र इसपे पड़ी, ये मुझे बेहद सुन्दर लगी, मैंने तभी इसको दिल दे दिया और ये कहा कि ये मेरी ही बनेगी, कोई और इसको हाथ भी नहीं लगा सकता"
"लेकिन अब सब खाक हो गया, तूने मुझसे मेरी मुहब्बत छीन ली" वो बार-बार शिवानी को देखे जा रहा था,
मैंने उसको समझाया, "देख अशफाक, तेरी दुनिया और मेरी दुनिया में ज़मीन आसमान का फर्क है, तू अभी अपनी जिन्नाती उम्र में १३-१४ साल का है, इसिलए ऐसी बातें कर रहा है, अब तूने गलती तो की है, और तुझे तेरे गुनाह की सजा ज़रूर मिलेगी" इतना कहते हुए मैंने अशफाक की तरफ पानी फेंका, वो तिलमिला उठा........
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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Re: कानपुर की एक घटना
मैंने डिबिया, जो कि मेरे हाथ में थी, खोली और अशफाक उड़ के उस डिबिया में समां गया! सब ख़तम हो गया था, शिवानी को मैंने मंत्र पढ़े सरसों के दाने मारे और मै और शर्मा जी कमरे से बाहर निकल आये, सुबह हो चुकी थी, सारा परिवार जागा हुआ था, एक दो पडोसी भी आ गए थे, मैंने रमेश जी कि पत्नी से कहा, कि वो शिवानी के पास जाएँ, अब वो होश में आने वाली है, आप उसको नहलवा दें, अब सब कुछ ठीक है!
इतना सुनते ही रमेश जी और उनकी पानी कि रुलाई फूट पड़ी, मुंह से शब्द नहीं निकले, रमेश जी मेरे से लिपट के रो रहे थे, शर्मा जी ने उनको संयत किया,
"मै कैसे चुकाऊंगा आपका एहसान साहब, आपने मुझे बर्बाद होने से बचा लिया, आप मेरे लिए मेरे भगवान कि तरह हो" वो रोते भी जा रहे थे और कहते भी जा रहे थे, उनका बीटा भी आँखों में आंसू लेकर वहीँ खड़ा था, मैंने रमेश जी से कहा,
"रमेश जी आप ज़रा हमारा नहाने का प्रबंध करवा दीजिये"
उन्होंने देर नहीं लगाई और प्रबंध हो गया, मै नहाने चल दिया, शर्मा जी कमरे से बाहर निकले और अपना सारा सामान इकठ्ठा करने लगे,
कोई सुबह १० बजे, मै शिवानी से मिलने गया, वो अब बिलकुल ठीक थी, रमेश जी वहां मौजूद थे, मेरे अन्दर आते ही वो खड़े हो गए, मैंने शिवानी से पूछा,
"अब कैसी हो आप"
उसने बस हाँ में अपना सर हिलाया,
रमेश जी को मैंने कमरे में आने के लिए इशारा किया और मै दूसरे कमरे कि तरफ बढ़ गया, करीब १० मिनट के बाद रमेश जी और उनकी पत्नी कमरे में आये, रमेश जी ने मेरे हाथ में ५०० के नोटों कि एक गड्डी मेरे हाथ में थमा दी, मैंने कहा,
"नहीं रमेश जी, मै नहीं लूँगा, ये पैसा आप शिवानी के ब्याह में लगा देना, उन्होंने बहुत मिन्नत कि लेकिन मै नहीं माना,
हमने दोपहर में खाना खाया और शाम को चलने कि तैयारी करने लगे, रमेश जी ने बहुत रोका लेकिन हमारा रुकना अब उचित नहीं था, शाम को रमेश जी के परिवार से विदा ली और रमेश जी हमको छोड़ने बस-अड्डे तक आये, हमने आखिरी नमस्कार किया और हम दिल्ली के लिए रवाना हो गए!
वर्ष २००६, अक्टूबर महीने में, रमेश जी मेरे पास दिल्ली आये, काफी खुश थे, उन्होंने बताया कि शिवानी बाद में सामान्य हो गयी थी, उसे सदमे से उबरने में २ महीने लगे, लेकिन बिलकुल ठीक हो गयी!
"ये लीजिये!" उन्होंने कहा,
मैंने पूछा, "ये क्या है?"
उन्होंने कहा, "शिवानी कि शादी ही २९ अक्टूबर कि, और मुझे और शर्मा जी को अवश्य ही आना है!"
मैंने कहा," बिलकुल रमेश जी बिलकुल, मै अवश्य ही आऊंगा" थोड़ी देर बाद वो लोग चले गए!
"२९ अक्टूबर को हम कानपुर पहुंचे, विवाह में शामिल हुए, शिवानी को देखा, बहुत सुंदर लग रही थी शिवानी उस दिन!
रमेश जी आज तक मेरे संपर्क में हैं, मै कभी कानपुर जाऊं तो वो हमे अपने घर में ही ठहराते हैं!
-------------------समाप्त------------
इतना सुनते ही रमेश जी और उनकी पानी कि रुलाई फूट पड़ी, मुंह से शब्द नहीं निकले, रमेश जी मेरे से लिपट के रो रहे थे, शर्मा जी ने उनको संयत किया,
"मै कैसे चुकाऊंगा आपका एहसान साहब, आपने मुझे बर्बाद होने से बचा लिया, आप मेरे लिए मेरे भगवान कि तरह हो" वो रोते भी जा रहे थे और कहते भी जा रहे थे, उनका बीटा भी आँखों में आंसू लेकर वहीँ खड़ा था, मैंने रमेश जी से कहा,
"रमेश जी आप ज़रा हमारा नहाने का प्रबंध करवा दीजिये"
उन्होंने देर नहीं लगाई और प्रबंध हो गया, मै नहाने चल दिया, शर्मा जी कमरे से बाहर निकले और अपना सारा सामान इकठ्ठा करने लगे,
कोई सुबह १० बजे, मै शिवानी से मिलने गया, वो अब बिलकुल ठीक थी, रमेश जी वहां मौजूद थे, मेरे अन्दर आते ही वो खड़े हो गए, मैंने शिवानी से पूछा,
"अब कैसी हो आप"
उसने बस हाँ में अपना सर हिलाया,
रमेश जी को मैंने कमरे में आने के लिए इशारा किया और मै दूसरे कमरे कि तरफ बढ़ गया, करीब १० मिनट के बाद रमेश जी और उनकी पत्नी कमरे में आये, रमेश जी ने मेरे हाथ में ५०० के नोटों कि एक गड्डी मेरे हाथ में थमा दी, मैंने कहा,
"नहीं रमेश जी, मै नहीं लूँगा, ये पैसा आप शिवानी के ब्याह में लगा देना, उन्होंने बहुत मिन्नत कि लेकिन मै नहीं माना,
हमने दोपहर में खाना खाया और शाम को चलने कि तैयारी करने लगे, रमेश जी ने बहुत रोका लेकिन हमारा रुकना अब उचित नहीं था, शाम को रमेश जी के परिवार से विदा ली और रमेश जी हमको छोड़ने बस-अड्डे तक आये, हमने आखिरी नमस्कार किया और हम दिल्ली के लिए रवाना हो गए!
वर्ष २००६, अक्टूबर महीने में, रमेश जी मेरे पास दिल्ली आये, काफी खुश थे, उन्होंने बताया कि शिवानी बाद में सामान्य हो गयी थी, उसे सदमे से उबरने में २ महीने लगे, लेकिन बिलकुल ठीक हो गयी!
"ये लीजिये!" उन्होंने कहा,
मैंने पूछा, "ये क्या है?"
उन्होंने कहा, "शिवानी कि शादी ही २९ अक्टूबर कि, और मुझे और शर्मा जी को अवश्य ही आना है!"
मैंने कहा," बिलकुल रमेश जी बिलकुल, मै अवश्य ही आऊंगा" थोड़ी देर बाद वो लोग चले गए!
"२९ अक्टूबर को हम कानपुर पहुंचे, विवाह में शामिल हुए, शिवानी को देखा, बहुत सुंदर लग रही थी शिवानी उस दिन!
रमेश जी आज तक मेरे संपर्क में हैं, मै कभी कानपुर जाऊं तो वो हमे अपने घर में ही ठहराते हैं!
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