पछतावा

Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: पछतावा

Post by Jemsbond »

रामदास की कुल जमा तेरह साल की सेव अवधि थी। इस तरह तेरह साल में दो पदोन्नति हो चुकी थी। सहायक निरीक्षक से उप निरीक्षक बनने के लिए 6 माह का और समय था। रामदास का कार्य एवं गोपनीय चरित्रावली बहुत अच्छी रहती है। उत्कृष्ट श्रेणी होने के कारण पदोन्नति समिती द्वारा विचार क्षेत्र में लिया जाता है। पदोन्नति के योग्य पाया जाता है। रामदास थाने में बैठा कार्य निपटा रहा था। मनमोहन गाँव से कोरबा थाने पहुंचता है। भइया के चरण छूता है। रामदास पूछता है कि गाँव में चुगली-चारी, जुआ चित्ती, दारू मंद पीकर सब कोई बिगड़ गए हैं। एकदूसरे को नीचा दिखाने के लिए झूठमूठ के झगड़े लड़ाई में फंसा देते हैं। गाँव अब रहने लायक नहीं रह गया है। परंतु गाँव में पुश्तैनी घर, खेत, सम्पत्ति है। छोड़कर कहां जाए ? आपने अच्छा किया कि पुलिस विभाग की नौकरी में आ गए। मन मोहन बताता है – चाचा जी की तबीयत कुछ दिनों से खराब है। खाना-पीना बंद हो गया है। इसलिए आया हूं। स्कूलों में गर्मियों की छुट्टियां हो गई है। चाचा ने बच्चों को गांव बुलाया है। वे बच्चों को देखना चाहते हैं। रामदास थाना से निकलकर घर आता है और रामवती को बताता है। रामवती कहती है एक माह की छुट्टी ले लो। पिताजी की बीमारी के कारण अवकाश मिल जाएगा।

रामदास अर्जित अवकाश का फार्म भरकर कतलम साहब को दे देता है। कतलम साहब पिताजी की बीमारी का कारण जानकर अनुशंसा कर देता है और अवकास में जाने के लिए रवाना कर देता है। रामदास बच्चों सहित जीप में गाँव आ जाता है। रामदास को देखकर माँ भी खुश हो जाती है। रामवती, माधुरी, रामदास तीनों माँ के चरण छूकर प्रणाम करते हैं। चन्द्रशेखर को गोदी में लेकर चूमने लगती है। झालरदास परछी के खटिया में खोक, खोक कर रहा था। लेटा हुआ था। उठने की हिम्मत नहीं थी। रामदास, रामवती चरण छूकर प्रणाम करते हैं। वह पैर में हाथ लगने से जाग जाता है। कहता है – बेटा अच्छा हुआ आ गए। मैं तो कब मर जाऊं, भरोसा नहीं। माधुरी दादाजी के पास बैठकर प्रणाम करती है। शांति बाई चन्दू को लेकर पहुंच जाती है। रामदास पिताजी को सांत्वना देता है कि सब ठीक हो जाएगा। मस्तूरी से डॉक्टर बुलाऊंगा। डॉ. गुप्ता बढ़िया इलाज करता है। झालर दास कहता है – नहीं बेटा, अब मेरा जाने का समय आ गया है। खर्च मत करना। चन्दू को देखता है। झालरदास कहता है कि – बिल्कुल मेरे पिताजी के ऊपर गया है। चारों तरफ देखकर सोने का प्रयास करता है। शांति दवाई लाती है। रामवती, रामदास दोनों पकड़कर गोली को खिलाते हैं। गोली खाने से नींद आ जाती है। रामदास रामवती कपड़े बदलने अपने कमरे में चले जाते हैं।

रामवती रसोई में जाकर भोजन बनाती है। सब मिलकर परछी में बैठकर भोजन करते हैं। माधुरी को गाँव की सब्जी, दाल, भात बहुत अच्छा लगता है। दादी माधुरी के लिए पुराना अचार आम, नींबू के निकालती है। माधुरी चटकारे लेकर आम के अचार को काती है। चन्दू को भी दाल भात खिलाती है। भोजन करके रामदास सो जाते हैं। राउत, केवट पास पास के घरों के पास से मुर्गा बांगने की आवाज आती है – कुकडुकूं-कुकडूकूं। रामदास की नींद उचट जाती है। रामवती कहती है – आज तो सो जाओ, ड्यूटी में नहीं जाना है। यहां शांति से तो उठो। रामदास सुनकर सोने का प्रयास करता है परंतु नींद नहीं आती। प्रातः उठकर रामदास लोटा में पानी लेकर नहर पार की ओर चला जाता है। दो किलोमीटर पैदल चलकर शौच के लिए जाता है। शौच से निपटकर तालाब के घाट में आ जाता है। तालाब का दृश्य देखकर अवाक रह जाता है। तालाब में कोई कमल का फूल पत्ती न चिड़ियों कलरव। तालाब के चारों ओर की अमराई को देखता है। सभी वीराना। सभी मीठे आक के पेड़ों को दुष्ट जमींदार ने रहने नहीं दिया था, बल्कि उसे खेत में बदल दिया था। सौ से दो सौ वर्षों के पेड़ों को कटवा दिया था। सभी खाली-खाली दिख रहा था। तालाब के उस पार जमींदार ने एक झोंपड़ी बनवा ली थी। घाट के सामने झोंपड़ी, पशुओं के लिए मकान। अच्छा नहीं लग रहा था। अब वह रामदास के सपनों का आदर्श गाँव नहीं था। बहुत परिवर्तन हो गया था। गाँव एकदम परायालगने लगा था। घाट में रामदास कुछ सोच रहा था। तालाब में नहाने के लिए उतरापर जरा भी मन नहीं लगा। तालाब का पानी मछली मारने के कारण गंदा हो गया था। मछली ठेकेदार जाल डालकर मछली मार लेता था। पानी एकदम खराब हो गया। रामदास का मन खिन्न हो जाता है। कैसं गाँव का विकास हो। सोचने लगता है। ग्राम पंचायत का सरपंच भी खाने पीने में मस्त था। गाँव के विकास से उसे कोई मतलब नहीं था। पूरन और मनमोहन घाट में आ जाते हैं। पूरन दरोगासाहब को नमस्कार करता है। रामदास हाथ मिलाकरबात करताहै। रामदास बदलावों के बारे में पूछता है। वह रामदास को गनी अमराई के ठण्डी जुड़ छांव के उजड़ जाने की सारी कहानी बताता है। तालाब के चारों ओर मीठे-मीठे आम के बड़े-बड़े पेड़ किसी पुण्यात्मा ने ही लगाए थे। जमींदार ने उस सार्वजनिक जमीन को अपने नाम पटवारी अभिलेख में रुपए देकर चढ़वा लिया। फर्जी दस्तावेज के आधार पर पटवारी ने नाम दर्ज कर दिया। गाँव वालों ने बहुत विरोध किया। परंतु उसने बांदा से लठिया मैनेजर रखकर अमराई को काट डाला। जमीन किसानों को बेच दिया। रामदास सुनकर दंग रह जाता है। साले लोग सारी भूमि बेचकर अपनी तिजोरी भर लिए। और अब गाँव छोड़कर भाग गए। रामदास और मनमोहन स्नान कर घर आ जाते हैं। रामवती और माधुरी चाय पीकर रामदास का इंतजार कर रहे थे। रामदास को पीने के लिए गाय का एक गिलास दूध दिया। साथ में चीला रोटी ती, धनिया, मिर्च-लहसुन, टमाटर की चटनी परोसी। बहुत स्वादिष्ट लग रहा था। बहुत दिनों के बाद चीला रोटी खाया था। दूबराज के चावल की सुगंध से ही आधा पेट भर गया था। रामदास गरम-गरम रोटी खा रहा था। रामवती रोटी पका रही थी। सुबह का नाश्ता हो गया था। चन्दू को भी एक दो कौर रोटी खिलाया कपड़ पहनाकर परछी में बैठा दिया, तभी चार सयाने वृद्ध लोग आ जाते हैं। रामदास सभी को नमस्कारकरता है। एक वृद्ध मुनकूराम पूछता है – बेटा कहां रहते हो ? रामदास ने बताया – दादाजी, आजकल कोरबा में रहता हूँ। पिताजी की बीमारी के कारण एक महीने की छुट्टी लेकर आया हूँ। मुनकूराम – अच्छा-अच्छा। झालर बहुत अच्छा आदमी है। बेटा ठीक से इलाज करवा दे। पिता केरहने से घर द्वार ठीक रहता है। कम से कम चौकीदारी तो करता है। रामदास कहता है – मैं तो उन्हें कोरबा बुलाया था। माँ-पिताजी को अपने साथ रखने के लिए बोला था। झालरदास कहता है - कुछ दिन रहने के बाद बोरियत महसूस करने लगा। फिर कुछ दिन के बाद गाँव आया हूँ। मैं क्या करूं ? गाँव का मोह नहीं छूटता। फिर गाँव में खेती किसानी है। गाँव का मान सम्मान वहां कहां मिलेगा। इसलिए गाँव आ गया। झालर महंत अब धीरे-धीरे ठीक होने लगता है। सात दिन में पूर्ण स्वस्थ होकर बाहर-भीतर चल लेता है। गाँव के लफंगे बदमाश लड़के लोग दारू पीकर हुल्लड़ करते दरवाजे के पास आकर गाली बकने लगते हैं। आपस में झगड़ने लगते हैं। गाँव में जुआ का जोर था। आसपास के लोग जुआ खेलने आते हैं। जीतने वाले से दारू के पैसे लेकर पीते थे। गाँव में सूदखोरी बढ़ गई थी। कई किसान के लड़के उधर जुए में हार गए थे। सूदखोर लोग एक हजार रुपए के आठ दिन में पन्दह सौ लेते थे। आठ दिन में नहीं चुकाने पर चवन्नी ब्याज लगाते थे। दो महीने में पाँच हजार रुपए हो जाता था। दस हजार रुपए का तीन माह में तीस हजार रुपए लेता था। कई किसान अपनी जमीन बेचकर कर्ज को चुकाता था। कई किसान भूमिहीन हो गए थे। गाँव में चोरी बढ़ गई थी। सूने मकानों में से धान, बर्तन-भांडे, गहने चुराकर जुआ खेलते थे। गाँव में अभी भी ताले नहीं लगाते थे। परन्तु चोरी के डर स ताला लगाने लगे हैं।जो सम्पन्न किसान थे, उनके दरवाजों में ताला लगा रहता था। छोटे किसान एवं मजदूरों के यहां ताला नहीं लगाते थे। बड़े विश्वास से एक दूसरे की मदद करते थे। कुछ वर्षों से शहर की आबोहवा सिनेमा देखकर बिगड़ गए थे। रामदास गाँव में न रहकर कभी बिलासपुर, कभी मस्तूरी, कभी सेंदरी जाकर समय बिता रहा था। रामवती, माधुरी भी गाँव में ऊब रहे थे। माधुरी कक्षा नवमी की पुस्तक ले आई थी। बेठे-बैठे पढ़ती रहती थी। आसपास के सम्पन्न किसानों को पता जलता है कि जोगी दरोगा साहब के यहां शादी योग्य लड़की है, देखने के लिए आते। रामदास ने रामवती से कहाकि माधुरी को पढ़ा-लिखा कर जज साहब बनाएंगे। इधर माधुरी भी शादी नहीं करना चाहती थी। परछी में बैठकर रामवती माधुरी के सिर में जुए निकाल रही थी। गाँव के तालाब में नहाने से माधुरी के सिर के बालों में जुए अधिक भर गए थे। उसके लंबे-लंबे केश थे। कमर तक आ गए थे। मादुरी दोनो वेणी में लाल फीते बांधकर चलती थी। तितली के समान उड़ती चलती थी। बहुत सुन्दर, गोरी रंगत, पाँच फीट ऊंचाई। देखने वाले एक ही नजर में उसे पसंद कर लेते थे। माधुरी को माहवारी भी शुरू हो गई थी। इसलिए रामवती विवाह करवाना चाहती थी। कुछ ऊंच-नीच न हो जाए। हर माँ अपनी पुत्री को विवाह करके सुखी जीवन की कामना करती है। परन्तु रामदास माधुरी को जज बनाना चाहता था। माधुरी भी पढ़ना चाहती थी। रामवती पढ़ी-लिखी थी। इसलिए लड़की को गाँव में नहीं देना चाहती थी। एक माह का अवकाश अच्छे ढंग से बीत रहा था। आब मात्र चार दिन बाकी थे। मनमोहन जुए में पचास हजार रुपए हार गया था। रोजाना चार-पाँच लोग गाली गलौज कर रहे थे। धमकी भी दे रहे थे। मनमोहन रामदास के बड़े पिताजी का लड़का था। उसके घर का दरवाजा आमने-सामने था। रामदास को बहुत बुरा लग रहा था। परन्तु क्या करता ? मनमोहन को समझाया कि तुम उधार इन लोगों से क्यों लिए ? दूसरे दिन सामलदास नामक बदमाश लठैत, चार लठैत लेकर, दारू पीकर गाली गलौज करने लगा। माँ-बहन कीगाली देने लगे। मनमोहन चुपचाप सुन रहा था। मनमोहन को गर से निकाल कर फिर लाठियों से पीटने लगे, तब रामदास ने मना किया। परंतु दारू के नशे में वे रामदास को ही पीटने लगे। रोकने बचाने पर वे भाग गए। रामदास गुस्से में आगबबूला हो गया। आँखें लाल हो गईं। वह गुस्से में कांपने लगा। रामवती रोककर बोली – तुम्हें क्या करना है ? रामदास क्रोध में पागल हो गया। घर से एक हाथ में लाठी, दूसरे हाथ में तलवार लेकर निकल पड़ा। रामवती गली तक पीछे-पीछे दौड़ती रही परन्तु रामदास दौड़ते हुए दूर जा चुका था। उधर रामदास ललकरता है कि रुको सालों, मुझे मारे हो। मैं दैख लूंग। सामलदास भागने लगता है। कुछ दूरी पर रामदास उसे पकड़ लेता है। सामलदास एवं रामदास में झूमा झटकी होती है। लाठियों से वे एक दूसरे पर वार करते हैं। रामदास घायल हो जाता है। रामदास क्रोध से आगबबूला हो जाता है। तलवार की मूठ पकड़कर एक वार गले पर करता है। सामलदास का गला कटकर अलग हो जाता है। कटा धड़ और सिर तड़पने लगता है। वहां पर खून की धार पहने लगती है। रामदास के कपड़ों में खून के धब्बे लग जाते हैं। रामदास नंगी तलवार खून से सनी लेकर गाँव में घूमने लगता है। रामदास पागलों की तरह हरकत करने लगता है। सामलदास को मार डाला कहकर जोर से अट्टहास करने लगता है। गाँव वाले सभी अपने दरवाजे बंद कर लेते हैं। सामलदास की हत्या हो जाती है। रामदास घर जाता है। रामवती से पानी मांगता है। रामवती बहुत रोती है। माधुरी, शांति, झालरदास भी रोने लगते हैं। यह तूने क्या किया बेटा ? एक मरे हुए को मारकर हत्या का अपराध कर डाला तूने ? जरा चन्दू की ओर ध्यान दिया होता। अब रामवती और माधुरी का क्या होगा ? रामदास का क्रोध शांत होता है। हत्या के अपराधबोध से रोने लगता है। माँ मैंने क्या कर डाला ? हत्या करने के बाद बहुत पछताता है। पर अब पछताने से क्या फायदा ? हत्या तो हो ही गई थी। माँ, अब बच्चों का पालन-पोषण कर शादी कर देना। मेरी किस्मत में यही लिखा था। मैं अपने कर्मों के फल अब जेल जाकर भुगत लूंगा।

रामदास आँखों में आंसू लिए नंगी तलवार और लाठी लिए घर से निकल पड़ता है। गाँव में सभी दरवाजे बंद मिले। कोई देखकर बात नहीं करता बल्कि दरवाजे को बंद कर लेते हैं। एक खूंखार हत्यारे को देखकर सभी भाग खड़े होते हैं। गाँव में सामलदास की हत्या की खबर आग की तरहफैल जाती है। सभीलोग देखने के लिए चल पड़त हैं। वहां सिर और धड़ अलग पड़े थे। जमीन में खून बह रहा थआ। वहां काली मिट्टी लाल हो गई थी। सामलदास की पत्नी और बच्चे व परिवार वाले चिल्ला-चिल्ला कर दहाड़ मारकर रो रहे थे। परिवार के सारे सदस्य रो रहे थे। गाँव वाले सांत्वना दे रहे थे। सामलदास की उम्र लगभग 45 वर्ष रही होगी। सामलदास नम्बरी बदमाश था। निहत्थे लोगों को मारना, पीटना, सूदखोरी, शराब बेचना उसका धंधा था। गाँव में सामलदास का आतंक था। गाँव के लोग दबे जुबान कह रहे थे कि अच्छा हुआ जो उस बदमाश को मार डाला। बेचारा रामदास जबरदस्ती फंस गया। मर्डर हो गया। उसका परिवार बर्बाद हो जाएगा। गाँव का कोटवार सायकिल से मस्तूरी थाना जाकर सामलदास की हत्या की जानकारी देता है। थानेदार बलवान सिंह 302 का जुर्म दर्ज कर एफआईआर रामदास जोगी के विरुद्ध दर्ज कर लेता है। और सूचना बताती है कि हत्या करने के बाद रामदास जोगी गाँव से ईटवा गाँव फिर अरपा नदी की ओर जाते लोगों ने देखा है। थानेदार तुरंत मोटरसाइकिल से पीछे सिपाही बिठाकर टिकारी गाँव तफ्तीश के लिए जाते हैं। गली में लाश पड़ी रहती है। भीड़ इकट्ठा रहती है। थानेदार को देखकर गाँव वाले वहां से खिसक जाते हैं। मात्र परिवार के सदस्य खड़े रहते हैं। कोटवार पास के घर से खाट मांकर ले आता है। मुख्य साक्ष्य में उनकी पत्नी और बच्चों का बयान लेता है। गाँव वाले कोई गवाही नहीं देते। पटवारी से स्थल का नक्शा तैयार कराता है। लाश को पोस्टमार्टम के लिए मस्तूरी शासकीय अस्पताल ले जाने के लिए कोटवार को बोलता है। बैलगाड़ी से लाश को मस्तूरी ले जाते हैं। एक घण्टे के भीतर लाश का पोस्टमार्टम कर थाने में आकर गुप्ता दे देता है। धारदार तलवार से सिर को धड़ से अलग करने की रिपोर्ट देता है। हत्या का पूरा प्रकरण बन जाता है। रामदास गाँव से ईटवा गाँव की ओर जाता है। एक घण्टे चलने के बाद वह अरपा नदी में पहुंचता है। नदी में तलवार लाठी फेंक देता है। अंधेरे तलवार नदी में गहरे डूब जाती है। लाठी धारा में बहने लगती है। रामदास पूरे कपड़े सहित नदी की धारा में मुँह डुबाकर स्नान करता है। एक घण्टे स्नान करते-करते अपने किए पर पछताता है। फिर जोर-जोर से दहाड़ें मारकर रोने लगता है। जितना क्रोध बढ़ाया उसे आंसुओं में बहाकर नदी में प्रवाहित कर देता है। स्नान करने से क्रोध शांत हो जाता है। फिर जीवन के बारे में परिवार की याद आने लगती है। फिर पुलिस का डर सताने लगता है। बहुत सोच विचार कर अन्त में तय कर पाया कि कहां जाया जाए। क्या किया जाए। पुलिस थाने में जाकर आत्म समर्पण किया जाए। अपराध तो हो गया है। क्षणिक उत्तेजना में क्रोध के कारण हत्या हो गई थी। रामदास बहुत पछताता है और अपने किए पर रोता है। क्या करे, कहां जाए – बार-बार दिमाग में उधेड़बुन चल रही थी। उधर रात का अंधेरा बढ़ रहा था। रामदास का मन स्थिर हुआ। बहुत समय बीतने के बाद याद आया चलो आज की रात नगाराडीह में बिताया जाए। सभी कपड़ों को साफ धोकर और सुखाते-सुखाते गाँव की ओर चला गया। कहां थानेदारी की नौकरी। कितने अपराधियों को पकड़ने के ईनाम मिले थे। आज अपराधी बनकर भाग रहा है। रामदास मन में सोचता है क्यों न फांसी लगाकर आत्महत्या कर लूं। परंतु रामवती, माधुरी और चन्द्रशेखर का क्या होगा सोचकर आत्महत्या का विचार छोड़ देता है। गाँव पास में था। जल्दी पहुंच गया। रामदास रात दस बजे दरवाजे को खटखटाता है। दरवाजा मनराखन सिंह खोलता है। रामदास के चरण स्पर्श करता है। रामदास भइया के चेहरे के रूप रंग को देखकर घबरा जाता है। पूछता है – कहां से आ रहे हो रात में ? नदी में नहाकर गाँव से ही आ रहा हूँ। लोटा में पानी पैर धोने के लिए लाता है। रामदास पैर धोकर एक लोटा पानी पीने के लिए मांगता है। रामदास की मूछें हमेशा ऊपर रहती थी। रामदास हट्ट-कट्टा था। चेरहे पर मूछें अच्छी लगती थी। अब पश्चाताप की लहरें चेहरे पर स्पष्ट झलक रही थी। भोजन करके रामदास सोने का प्रयास किया परंतु रात भर नंगी तलवार और कटा सिर बार-बार स्मृति में आ जाता था। रात भर अपराधबोध में खाट में इधर से उधर पलटता रहा। सुबह मनराखन ने पूछा – भइया रात भर सो नहीं पाए क्या कारण है ? रामदास मन के बोझ को हल्का करने करने के लिए हत्या करने की जानकारी दे देता है। रामदास ये भी कहता है – मैं कल मस्तूरी थाना जाकर आत्म समर्पण कर दूंगा। जीवन भर अपराधियों को पकड़ता रहा। आज मैं अपराधी बनकर भाग रहा हूं। रामदास सुबह पानी पीकर गाँव टिकारी के लिए चल पड़ता है। खलिहान की ओर से घर में जाता है। रामवती पूछती है – रात में कहां थे ? रामदास बताता है – मैं रात में नगाराडीह में था। रात भर सो नहीं पाया। रामवती कहती है – कल थानेदार साहब आए थे। गवाहों के बयान लेकर गए हैं। रामवती कहती है खाना खा लो और थाने जाकर अपना जुर्म कबूलकर लो। रामदास कुछ भोजन करता है। मनमोहन को कहता है कि भाई साइकिल में मस्तूरी ले चल। मनमोहन साइकिल में बिठाकर थाने ले जाता है। रामदास हत्या का जुर्म कबूल कर लेता है। थानेदार चालान बनाकर न्यायालय में प्रस्तुत करता है। रामदास को जेल भेजने का आदेश न्यायाधीश दे देता है। शाम को रामदास बिलासपुर जेल में हत्या के अपराध में बंद हो जाता है। रामदास विचाराधीन कैदियों के बीच में रहता है। कैदियों के कपड़े, कम्बल, चादर लेता है। उसके मुरझाए चेहरे को देखकर सभी समझाते हैं कि रामदास भोजन कर लो। परंतु उस रात वह भोजन नहीं कर पाता। पानी पीकर रात बिताता है। वहां के कैदियों को बताता है कि एक छोटी सी भूल क्रोध के कारण एक की हत्या हो गई मेरे हाथ से। मैं सहायक उपनिरीक्षक पुलिस विभाग में था। एक से बढ़कर एक अपराधियों को पकड़-पकड़ कर जेल भेज दिया करता था। आज मैं कैदी स्वयं हूं और एक अपराधी बनकर यहां आया हूं।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: पछतावा

Post by Jemsbond »

केन्द्रीय जेल में रामदास विचाराधीन कैदी के रूप में रह रहा था। रामदासको शुरू में कुछ अटपटा लग रहा था। परंतु नियति मानकर सब कुछ सहकर दिन काटने लगता है। ट्रायल कोर्ट में गवाही, साक्ष्यों का बयान होता है। हत्या के बयान दर्ज किए जाते हैं। सभी साक्ष्यों के बयान लेने में करीब सात महीने लग जाते हैं। समरी ट्रायल के बाद सेशन में प्रकरण ट्रांसफर हो जाता है। रामदास से मिलने रामवती, माधुरी,शांति, झालर आते हैं। मर्डर केस में वकील पचास हजार रुपयों की मांग करता है। झालर पाँच एकड़ खेत में तीन एकड़ बेचकर रामदास तो बचाने के लिए वकील रखता है। तृतीय अतिरिक्त एवं सेशन जज ने पहली पेशी में पूरे प्रकरण को देखा। दूसरी पेशी में हत्या के जुर्म व अपराध सिद्ध होन एवं हत्या का जुर्म कबूल लेने के कारण आजीवन कारावास की सजा सुना देते हैं। रामवती, शांति, माधुरी, झालर बहुत रोते हैं। रामदास को बहुत अफसोस होता है कि मेरे कारण खेत भी बिक गए। अब जीवन के लिए मात्र दो एकड़ खेत बचा है। रामवती और बच्चों के पालन-पोषण, पढ़ाने-लिखाने के लिए ध्यान देने के लिए जवाबदार कौन होगा। रामवती सब के साथ घर लौट जाती है। पहाड़ जैसी जिंदगी एवं बच्चों के भविष्य का क्या होगा ? वह भारी चिंतित हो जाती है। उस दिन तो घर में चूल्हा भी नहीं जलता। मनमोहन अपने घर से भोजन लाकर बच्चों को खिलाता है।

दूसरे दिन सुबह ज्यों ही झालरदास खटिया से उठता है जमीन पर पैर रखते ही चक्कर खाकर गिर जाता है। बेटे को सजा होने का जबरदस्त झटका लगता है, ब्रेन हेमरेज हो जाता है। उसके तुरंत प्राण-पखेरु उड़ जाते हैं। बेटे के गम में झालर मर जाता है। घर में रोना-चिल्लाना शुरू हो जाता है। एक बेटे का गम और दूसरा पति की मृत्यु, शांति बहुत रोती है। भगवान क्या-क्या सहन करें। दहाड़ मारक वह होती है और अचेत हो जाती है। माधुरी चन्दू को गोद लिए रोती फिर रही थी। दादी को समझा भी रही थी। रामवती की आँखें सूज गई थी। उधर मनमोहन खाट से लाश को नीचे उतार कर जमीन मेंरख देता है। नए कपड़ों, सफेद धोती से ढंक देता है। जगतारण पास में बैठकर अगरबत्ती जलाकर रख देता है। गाँव के सभी लोग घर में आकर अंतिम दर्शन करते हैं। महिलाएं शांति को समझाती हैं मत रोओ। शांति दहाड़ मारकर रोती है। सुनने वालों की आँखें भी नम हो जाती हैं। उधर बेटे को आजीवन कारावस की सजा। इधर पति की मृत्यु। दुख का पहाड़ टूट पड़ता है। बेटा एक बूंद पानी बाप के मुख में नहीं डाल पाया, न ही क्रियाकर्म में भाग ले पाया। गाँव वाले मिलकर झालरदास को मुक्तिधाम में दफना देते हैं। वहीं मणिदास के मठ के पास।

झालरदास की मिट्टी में सैकड़ों आदमी आते हैं। मरघट से तालाब में आकर स्नान करके अपने-अपने घर चले जाते हैं। मनमोहन सबी को दरवाजे पर हाथ जोड़े नमस्कार करता है। मेहमान शाम को अपने घर लौट जाते हैं। दूसरे दिन मनमोहन रामदास से भेंट करने जेल जाता है। चाचाजी की मृत्यु के बारे में बतात है। रामदास खूब रोता है। जेलर साहब समझाते हैं, मगर रामदास का मन नहीं मानता, रोते-रोते अपने बैरक में चला जाता है। मनमोहन भेंट करके गांव आ जाता है। झालरदास के दस दिन में दशकर्म करते हैं। कुछ लोगों को भोजन कराना चाहता है। परंतु गाँव वाले भोजन करने से इंकार कर देते हैं। वे हत्यारों के घर में भोजन करना नहीं चाहते, सामाजिक बहिष्कार जो कर रखा है। जगतारण व मनमोहन समाज के लोगों से काफी अनुनय विनय करते हैं। परंतु वे नहीं पिघलते। किसी प्रकार से आए मेहमानों द्वारा नारियल पूजा कराके दशकर्म निबटाते हैं। परिवार पर दुख के बादल छा जाते हैं। उधर रामवती, माधुरी और शांति सोचती हैं कि हम लोगों ने तो कोई अपराध नहीं किया जिसने अपराध किया उसको सजा भी मिल गई है। वह जेल में रह रहा है। किसी प्रकार दशकर्म निपट जाता है।

रामदास बैरक में जाकर बहुत रोता है। खाना-पीना बंद कर देता है। बैरक के सभी कैदी समझाते हैं। जेल में आसपास गाँव बिनेका, बिनौरी, जुनवानी, थेम्हापार के सजायाफ्ता सभी गाँव में एक-एक हत्या करके आजीवन सजा पाए कैदी रहते हैं। बहुत समझाते हैं। रामदास कहता है – मेरी छोटी सी भूल से मेरा हंसता खेलता परिवार तबाह हो गया। मेरे बाप-दादा का जो नाम था वह मिट्टी में मिल गया। रामदास धीरे-धीरे सामान्य हो जाता है। कुछ दिनों बाद रामवती भी मुलाकात के लिए आती है। रामदास उससे सब हाल सुनता है। रामदास चन्द्रशेखर को हाथ से छूता है। रामवती बहुत रोती है। मैं कैसे बच्चों को पालूंगी। पढाउंगी-लिखाउंगी। रामदास कहता है – तुम अभी जवान हो। दूसरा विवाह कर लो। मेरी तरफ से आजाद हो। मैं तो अब जेल में ही सड़ूंगा। जेल से छूटूंगा तो मेरी उम्र पचास साल हो जाएगी। बूढ़ा होकर निकलूंगा। रामवती खूबरोती है। मैं तो चली जाऊंगी पर माधुरी व चन्दू का क्या होगा ? भगवान ने पैदा किया है वही सब बिगड़ी बनाएगा। माँ कैसी है ? रामवती बोलती है आशा नहीं दिखाई पड़ती भला कितने दिन साथ देंगी। रामदास समझाकर रामवती को चन्दू और माधुरी धीरज रखने को कहता है। रामवती अपने मायके में कुछ दिन के लिए चली जाती है। वहां भाई भाभी लोगताना मारते हैं। रामवती दो दिन रहकर अपने गाँव आ जाती है। गाँव में खेती किसानी मजदूरी करने लगती है। गाँव की महिलाएं अपने साथ निंदाई, कटाई, मिंजाई के कार्य के लिए ले जाती हैं। रामवती अपना एवं बच्चों का पेट भरने लगती है। माधुरी बिलासपुर में हॉस्टल में रहकर मेट्रिक में प्रथम श्रेणी में पास होती है। माधुरी पढ़ने में होशियार थी। रामवती कभी-कभी बेटी को देखने हॉस्टल चली जाती थी। इस प्रकार माधुरी बी.ए. पास हो जाती है। माँ मजदूरी करके बेटी को पढ़ाती है। माधुरी दो वर्ष बाद इतिहास में एम.ए. पास करती है। रामवती बेटी की खुशी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर रही थी। माधुरी भी लगन और मेहनत करके पढ़ती है। एमए के बाद एलएलबी भी पास कर लेती है। माधुरी बोलने में होशियार थी। कानून का अच्छा ज्ञान भी प्राप्त कर लिया था। वरिष्ठ अधिवक्ता काला कोट पहनकर कोर्ट जाती थी। देखने वाले देखते रह जाते हैं। माधुरी खूबसूरत लड़की थी। मुसकरा कर सभी से बातें करती थी। आवाज बड़ी मधुर थी।

रामदास जेल में सादा जीवन व्यतीत कर रहा था। रामदास के पुराने दुश्मन दर्शन सिंह को सात साल की कैद हो जाती है। बिलासपुर जेल में भेंट हो जाती है। रामदास से बदले की भावना से चार-पाँच कैदियों को साथ लेकर हमला कर देता है। और उसे मार मार कर अधमरा कर देता है। रामदास उस दिन तो कुछ नहीं बोलता। दूसरे दिन भोजन के समय मौका पाकर रामदास दस साथियों सहित दर्शन सिंह पर हमला बोल देता है। इतना मारता है कि दर्शन सिंह के हाथ पैर टूट जाते हैं। जेल में हड़कम्प मच जाता है। जेलर साहब आकर हवाई फायर कर माहौल को शांत करते हैं। रामदास कहता है – सर, कल ये लोग मेरे साथ मारपीट किए थे। उसका बदला मैंने आज ले लिया। जेल अधीक्षक जेल के भीतर मारपीट से परेशान होकर रामदास व साथियों को केन्द्रीय जेल रायपुर में ट्रांसफर करा देता है। रामदास रायपुर जेल में अच्छे चाल चलन से रहता है। अच्छे चाल चलन के कारण जेलस श्री रंजन सिंह बंजारे उसे बहुत चाहते हैं। रामदास को भोजन व्यवस्था का इंचार्ज बना देते हैं। रामदास का सभी जेल अधिकारियों से अच्छा संबंध रहता है। खुशी से रामदास का जीवन बीतने लगा। रामदास बिलासपुर जेल रायपुर जेल में जाने से जेल परिसर में शांति स्थापित हो जाती है। मगर दर्शन सिंह का वहां एकछत्र राज हो जाता है।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: पछतावा

Post by Jemsbond »

केन्द्रीय जेल रायपुर में रामदास की अच्छी चलती थी। सभी अधिकारी जान पहचान वाले मिल जाते हैं। रामदास का विभाग द्वारा उपनिरीक्षक पद पर पदोन्नति कर दिया गया था। परंतु जेल में बंद होने के कारण पदोन्नति का फल नहीं मिल पाया। इसलिए जेलर लोग दरोगा साहब कहकर इज्जत देते थे। कैदियों में भी दरोगा साहब के नाम से प्रसिद्ध थे। रामदास का जेल भर में अच्छा दबदबा था। खूंखार कैदी भी रामदास के नाम से डर जाते थे। जेल अधीक्षक के.के. गुप्ता साहब जब कोई उत्पात होता था तो रामदास व साथियों ही बुला लेता था। उस कैदी की मरम्मत करा देता था। एक बार किसी कैदी को रामदास का थप्पड़ पड़ जाता तो जिंदगी भर याद रखता था। इसलिए पूरी जेल में अमन चैन बना रहता था। रामदास को अच्छा भोजन, दूध, फल, डबल रोटी सभी चीजें खाने को मिल जाती थी। इसलिए रामदास का शरीर मोटा हो गया था व लाल रंग का गोरा, नाटा हट्टा-कट्टा जवान दिखता था। दो आदमी रामदास से भिड़ नहीं सकते थए। फिर पुलिस विभाग का सर्वोत्तम आरक्षक ठहरा। सभी क्षेत्रों में रामदास प्रज्ञावान, अति प्रख्यात। केन्द्रीय जेल में रामदास जोगी का कैदी नंबर 1985 था। सुबह चार बजे उठकर शौच से निपट कर जेल के भीतर वह दस चक्कर दौड़ता था। सभी कैदियों को योगाभ्यास कराता था। बिना नागा किए सभी कैदी अपने स्वास्थ् के प्रति सजग थे। सायं काल भजन कीर्तन कराता था। सारे कैदी नियति मानकर चल रहे थे। देश दुनिया की फिक्र त्यागकर योगाभ्यास, भजन कीर्तन रामदास के मार्गदर्शन में करते थे। रामदास जेल अधिकारियों के आधे काम स्वयं कर देता था। सभी उसके कामकाज से खुश थे। सुबह से शाम तक रामदास व्यस्त रहता। कोई भी अधिकारी जेल में निरीक्षण करने आता, रामदास ही चक्कर लगाकर पूरा जेल द्खाता था। केन्द्रीय जेल में बढ़ई, कपड़ा, वूलन, दर्जी, सिलाई, कढ़ाई,पेंटिंग के छोटे-मोटे काम कारखाने थे। कैदियों को कार्य सिखाया जाता था। जेल में निवाड़, कपड़े बनाने का धंधा चलता था। बहुत बढ़िया उत्पादन होता था। रामदास निवाड़ बुनने का कार्य सीख गया था। अन्य कैदियों को निवाड़ बुनने के लिए वह प्रशिक्षण दे रहा था। प्रति वर्ष इस यूनिट से जेल विभाग को पचास लाख से अधिक का फायदा होता था। हर कार्य में रामदास प्रवीण था। माधुरी अपनी माँ रामवती के साथ रायपुर जाकर रामदास से भेंट करती है। रामवती को माधुरी के विवाह की चिंता सता रही थी। गाँव में कई लोग उसे देखने के लिए आए थे। परंतु पिता के जेल में होने के कारण शादी करने से इंकार कर दिया था। एक प्रकार से वे समाज से बहिष्कृत हो गए थे। सामाजिक बहिष्कार होने से संबंध नहीं बन पा रहा था। रामवती बहुत दुखी थी। रामवती ने मजदूरी करके माधुरी को पढ़ाया था। अब माधुरी शादी नहीं करने का भी संकल्प ले लेती है। माधुरी मामा के गाँव सेंदरी से आकर वकालत किया करती थी। माधुरी अपना खर्चा वकालत से चला रही थी। वह अपने भाई चन्द्रशेखर को मिशन स्कूल में कक्षा आठवीं में पढ़ा रही थी। चन्द्रशेखर हॉस्टल में रहकर पढ़ रहा थआ। माधुरी वरिष्ठ वकीलों से अच्छा संबंध बनाकर ज्ञान अर्जित कर रही थी। माधुरी को वकालत करते दो वर्ष हो गए थे। माधुरी सिविल जज की परीक्षा देती है। एक ही बार में परीक्षा उत्तीर्ण कर सिविल जज बन जाती है। माधुरी सिविल जज की प्रथम पोस्टिंग रायगढ़ में होती है। माधुरी रायगढ़ जाकर उपस्थिति रिपोर्ट देती है। डी.जे. साहब बहुत खुश होते हैं कि छत्तीसगढ़ की कोई महिला पहली जज बनकर आई है। डी.जे. साहब माधुरी को प्रशिक्षण सभी न्यायालयों में एक-एक करके तीन माह तक देते हैं। इसके बाद प्रशासनिक प्रशिक्षण के लिए वह जबलपुर चली जाती है। रामदास से भेंट करने रामवती, चन्द्रशेखर, शांति रायपुर जेल जाते हैं। वहां रामवती बताती है कि माधुरी के विवाह के लिए कई संबंध आए, परन्तु पिता जेल में होने से शादी तय नहीं हो पाई। हमारा सामाजिक बहिष्कार हो गया है। रामदास कहता है कि जो हुआ अच्छा हुआ। आज शादी न होने के कारण ही तो माधुरी जज बन गई है। शादी हो जाती तो क्या गाँव में रहकर वह गोबर उठाती रहती। रामदास की आँखों में खुशी के आंसू आ जाते हैं। रामवती भी रो पड़ती है। रामदास सारा श्रेय रामवती को देता है। मेरे सपने को पूरा कर दिया। बेटी-बेटा एवं मेरी माँ को खेतों में काम करके, दूसरे खेतों में मजदूरी करके पढ़ाया-लिखाया, पालन-पोषण किया। तुम धन्य हो रामवती। तुम्हारे जैसी पत्नी सभी इंसानों को मिले। तुमने माँ को अपनी माँ मान कर सेवा की है, मेरे घर को आबाद रखा है। धन्य है सतनाम साहब, जय गुरूदेव, जय सतनाम। रामदास के आंसू झरने के समान झर-झर बहने लगते हैं। जेलर साहब देखकर रो पड़ते हैं। सभी कैदियों को सतमार्ग पर चलने के लिए उपदेश देने के बाद रामदास आज रो रहा है। जेलर साहब रंजनसिंह बंजारे से अपने परिवार की भेंट कराते हैं। रामदास बताता है – सर, मेरी बड़ी पुत्री माधुरी रायगढ़ में सिविल जज बन गई है। जेलर साहब बहुत खुश होते हैं। रामदास से भेंटकर अंदर चले जाते हैं। रामवती बस से बिलासपुर आ जाती है। फिर बस द्वारा अपने गाँव आ जाती है। माधुरी के जज बनने के खुशी में रामवती रात में मंगल चौक, आरती का कार्यक्रम कराती है। गाँव में मिठाई बांटी जाती है। माधुरी समाज की पहली महिला जज बनी थी। रात भर मंगल चौक में गीत का आयोजन होता है। सभी लोगों के भोजन करने के बाद कार्यक्रम शुरू होता है और सुबह पाँच बजे तक चलता रहता है। रामवती पान, प्रसाद, नारियल चढ़ाती है। चौका पार्टी को दो सौ इक्यावन रुपए भेंट मेंदेते हैं। सभी लोग खुशी-खुशी अपने घर चले जाते हैं। रामवती का दुख समाप्त नहीं होता है। गाँव के बदमाश लोग रात में घर आ जाते हैं। घर में कोई पुरुष सदस्य नहीं होने से गलत नीयत से आ जाते थे। शांतिबाई लाठी लेकर दरवाजे में सोती थी। किसी को फटकने नहीं देती थी। रामवती सुरक्षित थी। शांतिबाई बेटी के समान बहू को रख रही थी। रामवती अपनी माँ से बढ़कर सास को चाहती थी। रामवती पतिव्रता नारी थी। गाँव में अकेली महिला किसी प्रकार की घटना न हो जाए। बिलासपुर जिला अस्पताल जाकर नसबंदी करा ली थी। रामवती जानती थी कि कुछ ऊंच-नीच हो जाए तो कहीं की नहीं रहूंगी। रामवती पुरुषों के जाल में नहीं फंस रही थी। सभी रामवती के गदराए शरीर को एकटक देखते रहते थे। बड़ी सावधानी से उसने खुद को बचा रखा था। नहीं तो न जाने कौन सूने घर में घुस जाए। माधुरी उच्च न्यायालय जबलपुर से प्रशिक्षण प्राप्त कर रायगढ़ आ जाती है। माधुरी को चक्रधर नगर में एक बंगला मिल जाता है। माधुरी को अच्छा प्रशिक्षण मिल रहा है। डी.जे. साहब रायगढ़ थाना भेजने के लिए न्यायाधीश के कार्यक्षेत्र आबंटित कर देते हैं। माधुरी मन लगाकर कार्य करती है। रामवती, शांति एवं चन्द्रशेखर को अपने पास ही बुला लेती है। चन्द्रशेखर परीक्षा के बाद रायगढ़ में रहता है। रामवती कभी-कभी गाँव की देखरेख के लिए आती जाती थी। रामवती के सुख के दिन आ गए थे। माँ दादी की खूब सेवा करत थी। रामवती बेटी को घर का कोई काम नहीं करने देती थी। रामवती की मेहनत रंग लाई थी। रोजी मजदूरी कर बच्चों को पढ़ाई थी। कितना कष्ट सहकर बड़ा किया था। माधुरी जज बनकर समाज में नाम कमा रही थी। शहर के तमाम गुंडे बदमाशों सख्त से सख्त सजा सुना रही थी। अपराधियों को अधिक से अधिक सजा एवं निरपराधियों को छोड़ देती थी। इसलिए माधुरी अपने पद पर न्यायप्रिय और ईमानदास मानी जाती थी। बहुत ही अच्छा निर्णय भी देती थी। डी.जे. साहब माधुरी के निर्णयों को अन्य जजों को पढ़कर सुनाया करते थे। नजीर के रूप में प्रस्तुत करते थे। रामवती के साथ माधुरी केन्द्रीय जेल रायपुर रामदास से मुलाकात करने जाती है। माधुरी जज का परिचय देने से जेलर साहब सम्मान के साथ अपने कक्ष में ले जाकर बैठाता है। रंजनसिंह बंजारे जेल में रामदास को बुलाने के लिए एक सिपाही भेज देता है। रामदास बढ़ी हुई दाढ़ी के साथ आता है। माधुरी और रामवती उसके चरण छूकर प्रणाम करते हैं। रामदास की आँखों से आंसू गिरने लगते हैं। माधुरी और रामवती भी रोने लगते हैं। जेलर साहब घर से चाय मंगाकर पिलाते हैं। रामदास जेलर साहब से कहता है – सर, रामवती की मेहनत का फल है कि माधुरी जज बन पाई है। मजदूरी करके पढ़ाई है। काश, मैं आज बाहर होता। कितनी खुशी होती मुझे। मूछों में ताव देकर चलता। मेरी छोटी सी भूल के कारण मेरा सुखी परिवार उजड़ गया था। मैं आज डीएसपी पद पर पदोन्नत हो गया होता। जबकि मेरे साथी बन गए हं। मुझे अपने किए पर पछतावा है। मेरी जिंदगी बर्बाद हो गई है। आजजेल ही मेरा घर बन गया है। माधुरी रामदास से दिनचर्या के बारे में पूछती है। रामवती माधुरी के विवाह के संबंध में बताती है। कई लोग देखने आए। पसन्द किए। परन्तु लौटकर कोई नहीं आया। सामाजिक बहिष्कार कर दिया है। हमारी माधुरी कहती है कि माँ मेरी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। माँ बेटा बनकर घर परिवार चलाऊंगी। यदि मुझे कोई योग्य वर जातीय न भी मिले, तो विजातीय से विवाह कर लूंगी। रामदास कहता है – बेटी जो मर्जी में आए अपने मनपसंद का कर लेना। समाज में क्या धरा है ? समाज ने क्या दिया है, उल्टे ताना। दादाजी के समय में सभी हमारे घर में आते थे। पचासों लोग प्रतिदिन भोजन करते थे। रामवती खाना बनाने में परेशान रहती थी। घर में नौकर चाकरों की कोई कमी नहीं थी। लगभग एक घंटे तक चर्चा चलती रही। रामदास फिर चन्द्रशेखर के बारे में पूछता है। चन्द्रशेखर ने मेट्रिक की परीक्षा दी थी। पर रिजल्ट नहीं आया था। रामदास उसे देखने के लिए तरसता है। माधुरी जेलर साहब को पेरोल पर पन्द्रह दिनों के लिए अवकाश हेतु आवेदन करती है। जेलर साहब अधीक्षक को भेज देता है। माधुरी रामवती कुछ उपहार सौंपकर ट्रेन से रायगढ़ चली जाती है। रामदास खुशी के मारे मिठाई के डिब्बे को बैरक भर के केदियों को बांटता है। मेरी बेटी जज साहब बन गई है। मेरा सपना था कि मेरी बेटी जज बन कर समाज में नाम कमाए। सभी कैदी रामदास को बधाई देते हैं। रामदास उस रात निश्चिंत होकर मूछों ऊपर तान कर सोता है। दूसरे दिन सुबह योगाभ्यास के समय सभी कैदियों को छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण हेतु संकल्प कराता है। सभी जय छत्तीसगढ़ का नारा लगाते हैं। जेल परिसर में जय छत्तीसगढ़ का नारा गूंज उठता है। जय छत्तीसगढ़ तेरी जय हो। रामदास मंच पर जाकर भाषण देता है। जेल में राज्य निर्माण हेतु बिगुल फूंका जाता है।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: पछतावा

Post by Jemsbond »

जेल अधीक्षक, रायपुर द्वारा अपनी अनुशंसा सहित नोटशीट एवं आवेदन जिला मजिस्ट्रेट के पास स्वीकृति हेतु भेजता है। रामदास एवं दो अन्य कैदियों को अच्छे चाल-चलन और आठ वर्ष तक सजा भुगतने के बाद 15 दिन के पैरोल पर घर जाने के लिए स्वीकृति प्रदान कर दी जाती है। रामदास को नए कपड़े एवं आने-जाने के ट्रेन, बस किराए के रूप में एक हजार रुपए विभाग से मिलते हैं। शिल्पी के रूप में एकत्र जो भी रुपए जेलर साहब रामदास को देता है। रामदास केन्द्रीय जेल से प्रातः आठ बजे छूट जाता है। रामदास सबसे पहले पास के बजरंगबली मंदिर में मत्था टेकता है। जेलर साहब को नमस्कार करके रायगढ़ जाने के लिए रिक्शे से बाजार चला जाता है। वहां से माँ के लिए साड़ी, रामवती के लिए साड़ी, चन्द्रशेखर के लिए पैंट-शर्ट खरीद कर अपने लिए पैंट-शर्ट लेकर रेलवे स्टेशन रायपुर से मेल में बैटकर रायगढ़ पहुंच जाता है। रायगढ़ रेल्वे स्टेशन से रिक्शा में बैठकर चक्रधर नगर के बंगलों में दाखिल हो जाता है। रामवती और माँ की खुशी का ठिकाना नहीं रहता। माधूरी भी खुशी-खुशी पिताजी के चरण स्पर्श करती है। रामदास माँ के चरण छूकर प्रणाम करता है। शांति बाई खुशी के आंसू बहाती है। कहती है बेटा, देखने के लिए आँखें पथरा रही थीं। चन्द्रशेखर भी रायगढ़ में रहता है। सभी एक जगह मिल जाते हैं। पूरा परिवार एक साथ बैठकर जमीन पर भोजन करते हैं। रामदास सबके कपड़े निकाल कर देता है। माधुरी कहती है इसकी क्या जरूरत थी, बाबूजी क्यों लाए। रामदास कहता है – बेटी मुझ गरीब अपराधी बाप के पास और कुछ नहीं था। मेरी बुद्धि के अनुसार खरीद लाया हूं। मेरा छोटी सी भेंट। माँ, रामवती और माधुरी को साड़ी बहुत पसंद आती है। माधुरी माँ पिताजी के लिए अलग कमरे बिस्तर लगा देती है। दादी के साथ माधुरी सो जाती है। रामवती दस वर्ष के बाद पति के साथ सोती है। पति सुख पाकर रामवती निहाल हो जाती है। अपनी अतृप्त इच्छाओं को पूरा करती है। रात भर दोनों बातचीत करते गुजार देते हैं। सुबह एकाएक दोनों की गहरी नींद लग जाती है।

माधुरी सुबह उठकर सबके लिए चाय बनाकर लाती है। दादी, चन्द्रशेखर बैठकर चाय पीते हैं। मम्मी-पापा के उठने का इंतजार करते हैं। रामदास ने बहुत दिनों के बाद पत्नीसुख पाया था। एकसंग सोने के कारण बहुत रात तक नींद नहीं आई। सुबह दस बजे तक सोते रहे। माधुरी जब नाश्ता बनाकर कार्यालय जाने की तैयारी करती है। रामवती जल्दी-जल्दी उठती है, घड़ी देखती है दिन के दस बज रहे थे। रामवती शरमा जाती है। माधुरी ने सारा काम निपटा लिया था। भोजन पकाकर रख देती है। रामवती मुँह धोकर बेटी के लिए तैयारी करती है। माधुरी स्नान करके जल्दी-जल्दी चावल, दाल, सब्जी खाकर आफिस जाने के लिए तैयार होती है। फिर अन्य जजों के साथ जीप में न्यायालय चली जाती है।

इधर रामवती रामदास के लिए चाय बनाकर लाती है। रामदास प्रश्न करके चाय पीता है। रामवती के हाथ की चाय का अलग स्वाद रहता है। चन्द्रशेखर और शांतिबाई जेल के बारे में रामदास से कई बातें पूछते हैं। रामदास सबकुछ जानकारी देता है। एक से बढ़कर एक खूंखार अपराधियों के बारे में बताता है। रामवती स्नान करके रसोई में चली जाती है। दिन के बारह बजे सब मिल बैठकर भोजन करते हैं। माधुरी, रामदास, माँ, दादी को चन्द्रशेखर को जीप में बैठाकर गौरीशंकर मंदिर दर्शन कराने ले जाता है। रामदास मंदिर देखकर बहुत खुश होता है। रामवती फूल, अगरबत्ती, नारियल चढ़ाती है। माधुरी भी पूजा-अर्चना करती है। रामदास करीब एक सप्ताह तक रायगढ़ मे रहता है। रामवती को लेकर गाँव चला जाता है। दो दिन गाँव में रहते हैं। फिर गाँव से अपनी ससुराल सेंदरी गाँव चले जाते हैं।

वहां एक दिन रहकर बिलासपुर से रायगढ़ चले जाते हैं। रामवती पति को पुनः पाकर खिल गई थी। रामवती को मालूम था कि रामदास पन्द्रह दिनों के बाद फिर जेल चला जाएगा। रामदास चौदह दिन बढ़िया परिवार के साथ गुजारता है। रामदास सोलहवें दिन मेल से रायगढ़ से रायपुर चला जाता है। पेरोल का समय बीत जाता है। सुबह 11 बजे जेल में आकर जेलर साहब को उपस्थिति देता है और रामदास की जेल की दिनचर्या पहले जैसी चलने लगती है।

रामदास के अच्छे चाल-चलन के कारण आजीवन सजा दस वर्ष में पूरी हो जाती है। दो वर्ष की सजा और काटकर रामदास अपने गाँव आ जाता है। कुछ दिन गाँव में रहने लगता है। रामदास की उम्र पचास वर्ष हो गई थी। मनमोहन कुछ दिन तक अपने घर में खइलाता है। फिर रामदास माधुरी के पास रायगढ़ चला जाता है। रामवती, शांति, चन्द्रशेखर कुछ दिन रायगढ़ में रहते हैं। चन्द्रशेखर बी.ए. पास कर लेता है। माधुरी अपने पास रायगढ़ में रखकर पढ़ाती है। चन्द्रशेखर पिताजी के समान 6 फीट लम्बा तगड़ जवान हो गया था। माधुरी भाई को भी नौकरी से लगा देना चाहती थी।

माधुरी का प्रमोशन प्रथम श्रेणी जज के रूप में रायपुर में हो जाता है। माधुरी को बंगला कलेक्टरेट के पीछे मिलता है। पूरा सामान लेकर माधुरी रायपुर आ जाती है। चन्द्रशेखर, रामवती, शांति सभी रायपुर आ कर कुछ महीने रहते हैं। रामवती कहती है कि बाबूजी पुलिस विभाग में तुम्हारी जीपीएफ की राशि जमा होगी। उसे निकलवा लो। जितनी हो। रामदास बिलासपुर पुलिस अधीक्षक से मिलता है। मसीह बाबू जब भर्ती हुआ था तब छोटे बाबू थे। उसने रामदास के शौर्य और साहस को सुना था। रामदास आवेदन बनाकर पुलिस अधीक्षक से मिलता है। अपना परिचय देता है – सर, मैं पुलिस विभाग में सहायक उपनिरीक्षक था, कुछ छोटी सी गलती के कारण मेरे हाथ से एक बदमाश की हत्या हो गई थी। जिसके कारण मुझे आजीवन कारावास की सजा हुई थी। दो माह हुए जेल से छूटा हूं। पुलिस अधीक्षक बैठने के लिए बोलते हैं। कहते हैं – रामदास तुम्हारे साहस एवं शौर्य के किस्से मैंने अभिलेख में देखे हैं। तुम्हारी जांबाजी साहस के लिए पुलिस विभाग गर्व करती है। नियति का खेल है, क्या करोगे। चपरासी चाय लेकर आ जाता है। रामदास चाय पीने लगता है। पुलिस अधीक्षक मसीह बाबू को बुलाता है। कहता है – बड़े बाबू आज ही पूरा हिसाब करके रामदास को चेक दे दो। रामदास कहता है – सर, जब भी आप बुलाएं मैं आ जाऊंगा। मेरी पुत्री प्रथम श्रेणी सिविल जज रायपुर में है सर। मैं वहीं कुछ दिनों से रह रहा हूं। एस.पी. साहब एक सप्ताह बाद रामदास को बुलाते हैं। मसीह बाबू पुराने अभिलेख निकालकर अस्सी हजार रुपए निकालता है। सभी अभिलेख, सेवा पुस्तिका, जीपीएफ पास बुक व्यक्तिगत सिफारिश के लिए टेबल पर रख देता है। पुलिस अधीक्षक स्वीकृत कर देता है। अंतिम भुगतान हेतु व्हाउचर बनाकर ट्रेजरी में भेज देता है। रामदास बिलासपुर से गाँव चला जाता है। गाँव में पाँच एकड़ केत खरीदने के लिए सौदा करता है। बढ़िया सिंचित खेत रहता है। गाँव के किनारे सड़क के पास रहता है। पचास हजार रुपए में पाँच एकड़ खेत लेता है। शेष दस हजार रुपए बीज, खाद, निंदाई, गुड़ाई के लिए। रामदास के पास आठ एकड़ भूमि हो जाती है। एक नौकर भी खेत में काम करने के लिए रख लेता है। गाँव के पुराने घर की मरम्मत कराता है। रामदास गाँव में रहने लगता है। रामवती और माँ को भी गाँव ले आता है। चन्द्रशेखर रायपुर में रहकर पढ़ने लगता है।

माधुरी अकेली पड़ जाती है। माधुरी रामदास को प्रतिमाह पाँच हजार रुपए भेज देती थी। रामदास की स्थिति अच्छी हो जाती है। गाँव में गरीब लोगों को रुपए उधार में बीस हजार रुपए देता है। इस वर्ष फसल भी अच्छी होती है। रामदास के घर में रखने के लिए जगह नहीं रहता है। किसान लोग धान काटने के बाद ब्याज सहित रुपए वापस कर देते हैं। रामदास कुछ रुपए मिलाकर दो एकड़ जमीन और खरीद लेता है। रामदास रामवती का मन पहले जैसा लगा रहता है। दादा मणिदास की तर्ज में चलकर कोई भूखा नंगा दरवाजे से खाली हाथ नहीं जा पाता था। गाँव में भाईचारा, प्रेम-व्यवहार बनाकर वह चल रहा था।

रामवती माधुरी को देखने रायपुर जाती है। रामदास, रामवती दोनों विचार कर माधुरी को विवाह के लिए राजी कर लेते हैं। रामदास कहता है कि तुम अपने मनपसंद वर से शादी कर लो। समाज को मारो गोली। सड़े समाज में क्या रखा है। आजकल सभी समाजों में पढ़े-लिखे लड़कों की कमी नहीं है। परन्तु मेरे कारण सामाजिक बहिष्कार हो गया है। इसका बहुत पछतावा है। मैंने दादाजी के नाम को बदनाम कर दिया। मुझे मर जाना चाहिए। माधुरी कहती है – मरने की बात क्यों करते हो बाबूजी। मुझे समाज की कोई परवाह नहीं है। मैं अब शादी अपने मन से करूंगी। एक माह में मेरा शादी हो जाएगी। रामवती, रामदास बहुत प्रसन्न हो जाते हैं। माधुरी को चन्द्रशेखर की नौकरी लगाने के लिए कहते हैं। उसी समय रायपुर पुलिस विभाग में आरक्षक की भर्ती शुरू हो जाती है। चन्द्रशेखर लाइन में खड़े होकर नापतौल करवाता है। माधुरी डी.जे. साहब से निवेदन कर पुलिस अधीक्षक रायपुर को फोन करा देती है। चन्द्रशेखर पुलिस विभाग में आरक्षक के पद पर प्रशिक्षण रायपुर माना केम्प में लेने लगता है। माधुरी भाई की नौकरी लगाकर निश्चिंत हो जाती है। रामवती और रामदास भी कुछ दिन वहां रहकर अपने गाँव वापस चले जाते हैं।

माधुरी अपना विवाह अपने साथी प्रथम श्रेणी के जज संजय सिंह ठाकुर से करने तैयार हो जाती है। दोनों एक-दूसरे के करीब आ जाते हैं। फिर विधिवत कलेक्टर के यहां आवेदन लगा देते हैं। एक माह बाद रामदास, रामवती, चन्द्रशेखर साक्ष्य बनकर कलेक्टर के समक्ष हस्ताक्षर कर देते हैं। कलेक्टर साहब माधुरी सिंह एवं संजय सिंह के विवाह की बधाई देते हैं। एक-दूसरे को फूल माला पहनाकर पति-पत्नी स्वीकार कर लेते हैं। संजय सिंह के पिताजी भी उपस्थित रहते हैं। संजय सिंह के पिताजी जबलपुर के नामी वकील थे। बेटे की खुशी में अपनी खुशी समझकर सहमत हो जाते हैं। वकील साहब आधुनिक विचारधारा के व्यक्ति थे। जाति-पाति में विश्वास नहीं करते थे।

मानवता को मानव का धर्म मानते थे। इंसानियत से बड़ी कोई चीज दुनिया में नहीं है। रामदास का रूद्रप्रताप सिंह समधी भेंट करता है। दोनों गले मिलकर खुशी का इजहार करते हैं। माधुरी, संजय सिंह, माँ, बाबू जी, पिताजी के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेते हैं। कलेक्टर से विवाह का प्रमाण पत्र लेकर अपने निवास कलेक्ट्रेट के पीछे माधुरी के बंगले में आ जाते हैं।

संजय सिंह जज साहब दूसरे दिन रात्रि में शहर के गणमान्य नागरिकों, अधिकारियों, पत्रकारों, न्यायाधीशों को स्नेहभोज देते हैं। शहर के तमाम नेता, अधिकारी, कलेक्टर, कमिश्नर, डीआईजी, डीजे, पुलिस अधीक्षक लगभग पाँच हजार विशिष्ट व्यक्ति स्नेह भोज में आते हैं। वर-वधु को बधाई एवं शुभकामनाएं देते हैं। चन्द्रशेखर दौड़-दौड़कर लोगों को भोजन करा रहे थे। माधुरी एवं संजय की जोड़ी अच्छी जम रही थी। जितने लोगों ने देखा माधुरी की तारीफ करके गए।

रात्रि भोजन के बाद सुहागरात के लिए चन्द्रशेखर एक कमरे को सजा कर रखता है। माधुरी, संजय सुहागरात में दो शरीर एक जान हो जाते हैं। माधुरी व संजय सिंह प्रसन्न रहते हैं। संजय सिंह को पाकर माधुरी धन्य हो जाती है। घर में दोनों जज साहब, माधुरी और संजय का सुखी जीवन प्रारंभ होता है।

रामवती और रामदासकुछ दिन वहां रहने के बाद गाँव लौट जाते हैं। सभी मेहमान अपने-अपने निवास लौट जाते हैं। बच जाते हैं माधुरी एवं संजय सिंह। जीवन में परम आनन्द और सुख से रहने लगते हैं। भगवान का शुक्रिया अदा करते हैं। भगवान ने पैदा किया है तो वह जोड़ी अवश्य बनाता है।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: पछतावा

Post by Jemsbond »

रामदास एक सम्पन्न किसान बन रहा था। रामवती भी खेती-किसानी का काम सम्हाल रही है। रामदास दादाजी को स्मृति पटल पर अंकित पाता है कि कभी उसके घर पर भी धन धान्य भरा पड़ा रहता था। सैकड़ों आदमी प्रतिदिन भोजन करते थे। मणिदास की मृत्यु के बाद धन सम्पत्ति कहां चली गई। माँ, रामवती, माधुरी, चन्द्रशेखर को दो जून का भोजन भी पर्याप्त नहीं मिल पाता था। रामवती ने किसानों के खेतों में मजदूरी करके बच्चों का पालन-पोषण किया और पढ़ाया-लिखाया था। रामदास कहता है – धन्य हो भारतीय नारी, रामवती साक्षात देवी हो तुम। लोगों के ताने, जलालत सहकर बच्चों को बड़ा किया। मेरे सात जन्म में भी रामवती पत्तनी बने सतनाम साहेब से यही प्रार्थना करूंगा। रामदास की आँखों से आंसू बहने लगते हैं। रामवती यह देख-सुनकर रो पड़ती है। रामदास के चरणों में सिर रख देती है। जब तु हो, तो मैं हूं। जब तुम नहीं थे, तो मैं भी नहीं थी। मैं तो एक लाश की तरह जीती थी। रामवती बताती है – धन्य है मेरी सास शांति बाई। मेरी माँ से ज्यादा देखभाल करती रही है। मजाल है कि रात के सूने घर में कोई मरद आ जाए। लाठी से पीट-पीट कर घायल करना पसंद था। माँ के संबल से ही मैं यहां गाँव में रह पाई। यहां सूने घर में बदमाशों की गिद्ध दृष्टि रही। फिर मैं जवान स्त्री कहां से परुष का मुकाबला कर पाती। इस माँ के कारण ही पुरुष के समान रही हूं। मैंने इसी डर से नसबंदी करा ली थी। कोई ऊंच-नीच न हो जाए। प्रतिदिन मैं डर-डर के जीती थी। भले मैं भूख से मर जाती थी। परन्तु किसी लालच में नहीं पड़ी। खेतों में काम करने जाऊं तो वहां भी भेड़िये बैठे थे। किसी प्रकार आबरू बचाकर जीती रही हूं। रामदास कहता है – रामवती मैंने तुझे तो दूसरा विवाह करने को कहा था। तुम्हारी लाख गलतियों को माफ कर देता। मैं भी तो इंसान हूं। औरत जात भी इंसान है। उसकी भी अपनी आवश्यकताएं हैं। स्त्री-पुरुष दोनों की आवश्यकताएं होती हैं जानकर मैं इंसानी जजबात को समझता हूं। फिर तो मैं जेल में था, जो कभी बाहर नहीं निकल सकता था। रामवती बीते दिनों को याद कर रोने लगती है। घर में एक बीजा चावल नहीं था। उधर चन्द्रशेखर बार-बार खाने को मांगता था। मैं तो पानी पीकर पेट भर लेती थी। परन्तु बच्चे को तो भोजन चाहिए था। मनमोहन ने बहुत साथ दिया। वक्त बेवक्त सहायता कर देते थे। चन्द्रशेखर को गोद में लेकर बाजार, गली में घुमाता था।

रामवती आंसू पोंछते हुए बताती है – मनमोहन से उसके अवैध संबंध हैं कहकर महिलाएं ताने देती थीं। उसकी पत्नी भी शक किया करती थी। देवर-भाभी में सांठगांठ है। परन्तु मनमोहन ने कभी आँख उठाकर नहीं देखा है। कहां पर टिकुली लगी है। भइया मेरे कारण सजा भुगत रहा है, इसलिए मेरी जवाबदारी है आप लोगों की देखभाल करना। मनमोहन, जगतारण दास बड़े ससुर बहुत देखभाल करते रहे हैं। दस वर्ष तक मैं अकेली महिला कैसे दरिंदों के से लड़ती। मैं तो कब की मर गई होती। चन्द्रशेखर, माधुरी के कारण जीवित हूं। रामदास रामवती को बिसरे दिनों को भूल जाने के लिए बोलता है। रामवती का आलिंगन करता है। रामवती भी उसकी बाहों में झूल जाती है। रामदास रामवती को छेड़ता है कि पचास साल की उमर में तुम्हारे गाल सेब के समान हैं। भरापूरा शरीर है। कौन नहीं आकर्षित होगा। कामदेव भी ललचा जाए, ये तो गाँव के छोकरे हैं। रामवती शरमा कर कहती है क्यों छेड़ते हो जी। भला इस उमर में भी कोई पूछेगा ? रामदास कहता है – मैं तो तुम्हारा दीवाना हूं। रामवती कहती है आप तो बचपन से लट्टू कक बराबर घूम रहे हो और दूसरा तो नहीं है। लगातार मैं दस वर्षों से अपनी मन की इच्छा को मार रही हूं। इसी कारण मैंने नसबंदी करा दी थी। भगवान ने ऐसा कुछ नहीं किया। भगवान ने मेरे दोनों बच्चों को नौकरी पर लगा दिया है। अब मैं मर जाऊं तो कोई चिंता नहीं रहेगी। रामदास रामवती से कहता है – मेरी छोटी सी भूल – एक क्रोध के कारण हत्या हो गई थी। यदि मैंने तुम्हारी बात मान ली होती तो ये दिन देखने नहीं पड़ते। रामवती कहती है क्रोध आदमी को शैतान बना देता है। मैं हत्या करने के बाद गाँव नगाराडीह चला गया था। बीच में अरपा नदी के पानी की धार में तीन घण्टे रोता रहा। मन हुआ की पानी में डूब कर मर जाऊं। परन्तु माधुरी, चन्द्रशेखर के मोह ने मुझे मौत के मुँह से बचा लिया। तलवार लाठी को गहरा बहाव पानी में फेंक दिया। तलवार रात के अंधेरे में कहां गया मुझे नहीं मालूम। गीले कपड़े मे मैं नगाराडीह चला गया।

रामवती विगत दस वर्ष के बीते दिनों को याद करके पछतावा कर रहे थे। मनमोहन उसी समय आकर बताता है कि भइया सरपंच का चुनाव आप लड़ो। समाज के मुखिया तो बन गए हो। परन्तु रामदास चुनाव लड़ने से मना कर देता है। हठ करके मनमोहन फार्म को पकड़ा देता है। रामवती भौजी को समझाने को कहकर चला जाता है। रामदास परछी में आकर चार-पाँच लोगों से पूछता है कि किसको सरपंच बना रहे हो। सभी उसे सरपंच का चुनाव लड़ने के लिए आग्रह करते हैं। रामदास रामवती से पूछकर बताऊंगा कहता है। उधर रामवती रामदास को चुनाव लड़ने के लिए सहमति दे देती है। रामदास सरपंच पद हेतु फार्म भर देता है। रामदास के विरुद्ध सामलदास का लड़का हिंछाराम फार्म भरकर चुनाव में खड़ा हो जाता है। गाँव दो भागों में बंट जाता है। रामदास का प्रचार-प्रसार मनमोहन कर रहा था। रामदास बीस हजार रुपए खर्च कर चुका था। विरोधी लोगों ने पचास हजार खर्च करके सारे वोट खरीद लिए थे। गाँव में प्रचार किया गया। एक हत्यारा को सरपंच बनाओगे तो गाँव में गुण्डागर्दी बढ़ जाएगी। सजायाफ्ता अपराधी को वोट देना आत्महत्या होगी। इस प्रकार के नारे घरों की दीवारों पर गेरू से लिखे गए। रामदास की साख में गिरावट आई। एक प्रकार से रामदास का सामाजिक बहिष्कार कर एक तरफा वोट हिंछाराम को देकर सरपंच चुनाव जिता दिया। रामदास को अपराद के कारण चुनाव हारना पड़ा। वह बहुत मायूस होकर गाँव से माधुरी के पास रायपुर चला गया। रामदास को बहुत पछतावा हो रहा था। माधुरी ने बहुत समझाया – पिताजी क्या कमी है ? क्या जरुरत थी चुनाव लड़ने की। गाँव के लोग हमसे जलते हैं। गाँव को आप अपना समझते हो। गाँव तो अब राजनीति का अखाड़ा बन गया है। जबसे पंचायती राज आया है तब से सरपंच का पद बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। न्यायालयों में बेतहाशा मामलों की वृद्धि हुई है। निपटारा नहीं हो पा रहा है।माधुरी कहती है कि पिताजी आप रायपुर में मेरे साथ ही रहिए। आप जेल में अच्छा काम कर रहे थे। रायपुर में रहकर छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के आंदोलन में भाग ले सकते हो। लगभग दस बारह साल तो लग जाएंगे। संजय सिंह भी बाबूजी को समझाता है। अब शेष जीवन मानव कल्याण, भजन, पूजा, कीर्तन में लगाइए। समाज अभी पिछड़ा और अशिक्षित है। इसलिए शिक्षा का प्रसार गाँव में नहीं हुआ है। इसलिए गाँव में शिक्षित चुनाव नहीं जीत सकते। गाँव वालों को साथ में रहने वाला सरपंच ही चाहिए। रामदास हां, हूं करता है। रामवती भी समझाती है, परन्तु रामदास नहीं मानता।

माधुरी से बोलकर चन्द्रशेखर को बुलवाता है। रायपुर पुलिस लाइन में पदस्थापना थी। चन्द्रशेखर शाम को आ जाता है। चन्द्रशेखर के विवाह की चिंता सताती है। परन्तु उसके समाज वाले लड़की देने से इंकार कर देते हैं। रामदास को पछतावा होता है। रामदास बहुत दुखी मन से इस दुनिया को छोड़ने का निर्णय ले लेता है। मेरे एक अपराध के कारण कोई अपनी लड़की नहीं देना चाहता है। इसलिए मैं बच्चों के सुखी जीवन में विष नहीं घोलना चाहता। चन्द्रशेखर, माधुरी, संजय को रुक-रुक कर देखता है। जी भर कर देखता है। मन भर जाने के बाद संजय सिहं को कहता है – बेटा चन्द्रशेखर का ध्यान रखना। इसका विवाह भी किसी गरीब लड़की से करा देना। संजय कहता है – बाबूजी मेरी बुआ की लड़की है, अच्छी है। इसके लिए ब्याह दूंगा। बुआ इंकार नहीं करेगी। कटनी में बुआ रहती हैं। फूफाजी हाई स्कूल में प्राचार्य हैं। रामदास कहता है – जो मिले, शादी करा देना। रामवती, रामदासकुछ दिन रहकर गाँव चले जाते हैं। रामदास को पता चलता है कि गाँव के लोग बस द्वारा गिरौदपुरी मेला जा रहे हैं। मनमोहन भी अपनी पत्नी बच्चों के साथ जा रहे हैं। रामवती से कहता है – चलो हम लोग भी तीनों माँ के साथ मेला देखने जाते हैं। गिरौदपुरी का मेला प्रमुख तीर्थ स्थल है। दूसरे दिन बस से रामदास गिरौदपुरी मेला पहुंच जाते हैं। सभी दर्शनार्थी लाइन में लगकर बाबाजी के चरण पादुका, जोड़ा जैतखाम, दुधिया सांप के दर्शन करते हैं। तीन घण्टे बाद दर्शन कर पाते हैं। लाखों की भीड़। रामवती अगरबत्ती, नारियल चढ़ाकर पूजा करती है। जोड़ा जैतखाम के पुराने ध्वज को फर-फर फहराते देखती है। अच्छा लगता है। शांति बाई को दिखाते हैं। सभी लोग अमृतकुण्ड के दर्शन करते जाते हैं। अपार जनसमूह की भीड़ रहती है। पैर रखने की जगह भी नहीं होती है।

चन्द्रशेखर की मेला ड्यूटी लगी रहती है। तीन दिन पहले आया रहता है। अमृतकुण्ड के पास ड्यूटी लगी होती है। शांति, रामवती, रामदास के चरण स्पर्श करता है। कुएं के आसपास सैकड़ों आदमियों की भीड़ थी। बच्चे कुएं में झांक कर देख रहे थे। स्वच्छ निर्मल पानी भरा था। सभी लोग गुरू की कृपा समझकर पानी पी रहे थे। बाल्टी से निकाल-निकाल कर पानी पीकर तृप्त हो रहे थे। रामदास का परिवार कुएं के चारों ओर परिक्रमा कर रहा था। चन्द्रशेखर उन्हें सब कुछ दिखा रहा था। कुएं की दीवार भारी भीड़ के कारण अचानक धसक जाती है। सभी यात्री मिट्टी-पत्थर के ढेर के साथ सहसा कुएं में दब जाते हैं। रामदास गले तक मिट्टी में धंस जाता है। साथ में शांति, रामवती, चन्द्रशेखर भी मिट्टी के ढेर में डूब जाते हैं। लगभग पचीस आदमी दबे रहते हैं। रामदास दबे रहने के बाद भी अपने हाथों से पाँच बच्चों को गड्ढे से बहर फेंक देता है। उधर मेला में कुण्ड के धसकने की जानकारी मिल जाती है। इधर रामदास कुएं में मिट्टी के ढेर के साथ अंदर समा जाता है। रामदास का पूरा परिवार कुएं में मिट्टी के ढेर के साथ अंदर समा जाता है। रामदास मरते वक्त देखने वाले लोगों से दोनों हाथ जोड़कर जय सतनाम एवं जय छत्तीसगढ़ के नारे लगाता हुआ काल कवलित हो जाता है। मनमोहन एवं गांव वाले सभी इस हादसे से बहुत रोते हैं। मनमोहन मेला अधिकारी को घटना की रिपोर्ट देता है। पुलिस एसडीओ को बताता है कि मृतक रामदास की बेटी श्रीमती माधुरी और संजय सिंह दोनों जज रायपुर में ही पदस्थ हैं। वायरलेस से जानकारी दे दीजिए। एसडीओपी ने तत्काल कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक को इसकी खबर दी। कलेक्टर ने माधुरी सिंह को घटना की जानकारी दी। माधुरी, संजय सिंह तत्काल छुट्टी लेकर कार से घटनास्थल में रोते हुए आए। इस हादसे में पूरे परिवार के लोग मारे गए। बची थी तो सिर्फ माधुरी सिंह।

मेला में भगदड़ मच जाती है। सौ आदमी दब कर मर गए। पुलिस वाले कुएं के आसपास को अपने घेरे में ले लेते हैं। देखने के लिए आदमियों की भीड़ कुण्ड की ओर आने लगी। हजारों लोगों की भीड़ ने देखा। पुलिस शांति व्यवस्था बना रही थी। आखिर उस क्षेत्र को प्रतिबंधित कर दिया गया। भीड़ को इधर-उधर भेजा गया। लोग अपने रिश्तेदारों को खोज रहे थे जो परिसर में भगदड़ के कारण भागे जा रहे थे, एक-दूसरे से जानकारी ले रहे थे। कलेक्टर, कमिश्नर, पुलिस अधीक्षक दल-बल सहित चार बजे शाम को आते हैं। मलमा, मिट्टी हटाने का काम एसडीएम ने शुरू करवा दिया था। गाँव वाले भी सहयोग कर रहे थे। कलेक्टर स्वयं देख-रेख कर रहे थे। मिट्टी हटाना खतरे से खाली नहीं था। धीरे-धीरे मिट्टी धंस रही थी। रायपुर से होमगार्ड के जवान भी बुलाए गए थे। गाँव वाले एवं होमगार्ड के जावानों ने एक-एक करके पच्चीस लाशें निकाली। लाशों में एक सिपाही चन्द्रशेखर जोगी भी था। मनमोहन ने चारों लाशों को पहचान कर अलग कर लिया था। लाश पहचानने के लिए हजारों की भीड़ उमड़ रही थी। कलेक्टर, कमिश्नर तुरंत मुख्यमंत्री को सूचना देते हैं। माधुरी सिंह रोते-रोते लाश के पास आती है। सब लाशों को देखकर वह जोर से रो पड़ती है। मनमोहन एवं गाँव वाले समझाते हैं, संजय सिंह कलेक्टर को कहता है कि ये मेरे सास-ससुर एवं साले की लाश है। खाकी वर्दी में चन्द्रशेखर की लाश पड़ी थी। पुलिस अधीक्षक सिपाही की मृत्यु से दुखी थे। साथ में माँ-पिताजी, दादी के शव। वहां पर हृदय विदारक करुण क्रंदनमय दृश्य बन गया था। सभी लोगों के नेत्रों से अश्रु धारा बह रही थी। गमगीन माहौल था. कलेक्टर, कमिश्नर शांति व्यवस्था भंग न हो कहकर, मेडिकल आफिसर से पोस्टमार्टम रिपोर्ट लेकर शवों को सुपुर्द कर देते हैं। जिन लाशों की शिनाख्त नहीं हो पाई थी उसे पुलिस वाले दफनाने की कार्यवाही करती है। मनमोहन और माधुरी सिंह ने सोचा कि गाँव ले जाकर क्या करेंगे, यहीं सम्मान के साथ लाखों लोगों के साथ दफना देते हैं। कलेक्टर, कमिश्नर, पुलिस अधीक्षक, सभी अधिकारी, समाज के हजारों लोग उन मृतकों को मिट्टी देते हैं। जंगल के भीतर दफनाने के लिए दस गड्ढे खोदते हैं। एक-एक कर दस लाशों पर मिट्टी डालते हैं। माधुरी सिंह का पूरा परिवार दफन हो गया। सभी अधिकारी माधुरी संजय सिंह को बार-बार सांत्वना देते हैं।

रामसनेही महंत सतनाम साहेब के नाम मंत्र पढ़कर लाशों को दफनाते हैं। रामसनेही महंत कहता है कि बेटी रामवती मेरे छेटे भाई आसकरणदास की बेटी थी। तुम तो मेरी नातिन हो। मत रोओ, माधुरी मत रोओ। रुंधे गले से माधुरी ने अंतिम मिट्टी डाली। शांति, रामवती, रामदास चन्द्रशेखर पंचतत्व में विलीन हो गए। रामसनेही ने कहा – जब तक गुरूजी का नाम रहेगा, जोगी परिवार को मेला के वक्त लोग याद करते रहेंगे।

माधुरी निःसहाय बैठी रो रही थी। संजय सिंह माधुरी को सम्हालने में लगा है। रात्रि में मनमोहन एवं उसके साथी गाँव चले जाते हैं। गाँव में समाचार सुनकर हा-हाकार मच जाता है। शोक की लहर फैल जाती है। तीसरे दिन के मेले में माननीय मुख्यमंत्री, श्री धनेश पाटिला जी, डीजी धृतलहरे, मंत्री सांसद परसराम भारद्वाज, डॉ. खेतानराम, सांसद केयूर भूषण, पवन दीवान, बंशीलाल धृतलहरे वरिष्ठ कांग्रेसजन आते हैं। सभी मृतकों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। मुख्यमंत्री सभी मृतकों के परिजनों को एक-एक लाख रुपए अनुदान देने की घोषणा करते हैं। मुख्यमंत्री जी रायपुर कलेक्टर को भुगतान करने के निर्देश देते हैं। गिरौदपुरी के विकास हेतु बीस लाख रुपए देने की घोषणा करते हैं। मेला शोक में डूबारहता है। कोई उत्साह नहीं रहता है। सभी मेला समाप्ति पर अपने-अपने घर चले जाते हैं। माधुरी संजय सिंह को मुख्यमंत्री, मंत्रीगण सांत्वना देते हैं। भगवान की लीला को अपरंपार बताते हैं। माधुरी सिंह रायपुर अपने निवास आ जाती है।

संजय सिंह रायपुर में तीन दिन में क्रियाकर्म कर हजारों लोगों को भोजन कराते हैं। सभी गणमान्य लोग सम्मिलित होते हैं। रायपुर कलेक्टर माधुरी सिंह को चार लाख रुपए का चेक प्रदान करते हैं। संजय माधुरी विचार करते हैं, क्यों न गाँव में कन्या स्कूल रामवती रामदास प्राथमिक पाठशाला खोल दिया जाए। मनमोहन गाँव में दशकर्म करता है। माधुरी संजय सिंह लिवाकर ले जाता है। दशनहा वन में आसपास के हजारों व्यक्ति शामिल होते हैं। रात्रि में पांच हजार लोग भोज में भोजन ग्रहण करते हैं। माधुरी ने दिल खोलकर खर्च किया। एक लाख रुपए खर्च करने की योजना थी।

माधुरी संजय सिंह ने स्कूल खोलने एवं समस्त संपत्ति, मकान, खलिहान को स्कूल में दान कर देती है। पाँच लाख रुपए से भवन का निर्माण के लिए देती है। समस्त उपस्थित लोगों ने माधुरी सिंह की भूरि-भूरि प्रशंसा की। भोज ग्रहण करने के बाद सभी मेहमान चले जाते हैं। मनमोहन सभी रिश्तेदारों को पगड़ी रस्म के लिए रोक कर रखता है। दूसरे दिन गुरू एवं भांजा को दक्षिणा देकर बिदा कर देते हैं। बिदा के बाद माधुरी घर में आ जाती है। रामदास माधुरी के शरीर में प्रवेश कर बोलता है। माधुरी अर्धचेतना में रहती है। रामदास कहता है – मेरी छोटी सी भूल आवेश में आकर क्रोध की ज्वाला में जलकर मैं हत्या कर डाला। मुझे जीवन भर पछतावा रहा। मेरे अपराध के कारण मेरा परिवार बर्बाद हो गया था। मेरे मरने के बाद ही मुझे शांति मिली है। मैं संत पुरुष साहेब की गोद में सोया हूं। मुझे असीम शांति मिल रही है। बेटी अब दुख मत मनाना। अपना काम में मन लगाकर करना। मैं अब जा रहा हूं। रामदास सभी परिवार के सदस्यों को माधुरी के माध्यम से देखकर तृप्त हो गया। रामदास की अतृप्त आत्मा तृप्त होकर सतनाम साहेब के पास चली गई।

माधुरी होश में आती है। संजय पानी पिलाता है। माधुरी पसीने-पसीने हो जाती है। माधुरी एवं सभी सदस्य बहुत रोते हैं। सबको संजय चुप कराता है। आंसू पोंछते हुए माधुरी बताती है – पिताजी आए थे। सबको देखकर चले गए। माधुरी स्कूल बनाने के लिए पाँच लाख रुपए एवं मकान, खेत की देखभाल मनमोहन को देकर चली जाती है। माधुरी स्कूल निर्माण समिति की अध्यक्ष एवं मनमोहन को उपाध्यक्ष, पूरन, उत्तमदास, पद्मन को सदस्य मनमोहन को भार सौंपकर रायपुर चली जाती है। मनमोहन साल भर में स्कूल भवन बनवा देता है। इसका उद्घाटन माधुरी संजय सिंह अपने हाथों से 1 जुलाई को करती है। गाँव के पाँच लड़कों को शिक्षक बना देते हैं। गाँव एवं आसपास की बालिकाएं आकर पढ़ती हैं। गाँव एवं आसपास की सभी लड़कियों में शिक्षा का विकास होने लगता है। स्कूल अच्छा चलने लगता है। लड़कियां वहां से पढ़ाई कर बिलासपुर पढ़ने चली जाती हैं।

माधुरी बीच-बीच में गाँव जाकर देखभाल करती रहती थी। रामदास की आत्मा को शांति मिल गई थी। रामदास जीवनभर अपराध के बोझ से दबा रहा। जीवनभर पछताता रहा। मरने के बाद भी पछताया। अब इससे उसे मोक्ष मिल गया था। सतनाम साहेब ने एक जांबाज वीर सिपाही, सच्चे देशभक्त, एक सच्चा इंसान, दीनदुखियों के साथी, भूखे नंगे के हमदर्द रामदास को अपने महान महाआत्मा में विलीन कर लिया।
................
समाप्त
...............

प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Post Reply