रहस्य रोमांच की कहानियाँ

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Jemsbond
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रहस्य रोमांच की कहानियाँ

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रहस्य रोमांच

ऐसा भी एक दीवाना



आपने फिल्मी हीरो-हीरोइनों के बहुत सारे दीवाने देखे होंगे, लेकिन इस विदेशी दीवाने जैसा न देखा होगा और न ही सुना होगा। खुद को ईरान का बताने वाला अब्दुल शरीफ फिल्म अभिनेत्री पूजा भट्ट पर इस कदर फिदा है कि उनसे मिलने के लिए वह 19 साल पहले सरहद लांघ आया और पकड़ा गया, तब से जेल में सड़ रहा है।
पूजा भट्ट का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। अभिनेत्री से प्रोड्यूसर बनीं पूजा भट्ट की गिनती 90 के दशक में बालीवुड की सबसे हाट अभिनेत्री के तौर पर होती थी। 24 फरवरी, 1972 को जन्मी पूजा भट्ट भारतीय सिनेमा जगत के जाने माने निर्देशक महेश भट्ट की बेटी हैं। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अपना सारा ध्यान फिल्मों में ही लगा दिया।
17 साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता महेश भट्ट निर्देशित ‘डैडी’ से अपने फिल्मी कॅरियर की शुरूआत की थी। इसके बाद ‘दिल है कि मानता नहीं’ में एक रोमांटिक किरदार निभा उन्होंने अपने अभिनय की क्षमता को सबको दिखा ही दिया।
अपनी अनोखी संवाद अदायगी और चेहरे के भावों से पूजा भट्ट ने जल्द ही प्रशंसकों का बड़ा वर्ग तैयार कर लिया। सड़क और सर में उन्होंने अभिनय की नयी ऊंचाइयां छूईं। कई बेहतरीन फिल्मों का हिस्सा बनने के बाद धीरे-धीरे पूजा भट्ट के फिल्मों की स्तरीयता कम होती गयी और वे शीर्ष की अभिनेत्रियों में अपना नाम शामिल कराने में असफल रहीं।
पूजा भट्ट की ही एक फिल्म है सड़क 3 दिसम्बर 1991 को रिलीज फिल्म सड़क को महेश भट्ट ने मार्टिन स्क्रोरसेस की ‘टैक्सी ड्राइवर’ से प्रेरित होकर बनाई थी। अपने समय में फिल्म सड़क ने जबरदस्त सफल पाई थी।
इस फिल्म में पूजा भट्ट ने जिस्मफरोशी के धंधे में फंसी एक लड़की का किरदार निभाया है। इस फिल्म के हीरो संजय दत्त एक टैक्सी ड्राडवर है और वह पूजा भट्ट से प्यार करते है। इस फिल्म में पूजा भट्ट ने अपना किरदार बखूबी निभाया है।
फिल्म देखने के बाद अब्दुल शरीफ का दिल अभिनेत्री पूजा भट्ट पर इतना आसक्त हुआ कि उसने फिल्मी हीरो-हीरोइनों के बहुत सारे दीवानों की होड़ में सबसे आगे निकल गया।
फिल्म सड़क में पूजा भट्ट का सेक्सी ग्लैमर देखकर अब्दुल शरीफ दीवाना हो गया और उसने पूजा भट्ट से मिलने की ठान ली। अपने मित्रों से जब उसने इस बात का जिक्र किया तो उसके किसी मित्रा ने उसे पूजा भट्ट का टेलीफोन नम्बर दे दिया।
टेलीफोन नम्बर लेकर लगभग 21 वर्षीय अब्दुल शरीफ पूजा भट्ट से मिलने निकल पड़ा। उस समय शायद उसे यह पता नहीं था कि एक देश से किसी दूसरे देश में प्रवेश के लिए पासपोर्ट व बीजा की भी आवश्यकता पड़ती है।
अपनी धुन में मग्न अब्दुल 1992 में ईरान से अफगानिस्तान और पाकिस्तान होते हुए बाघा बोर्डर पार कर वह भारत तक आ पहुंचा। लेकिन उसकी चाहत पूरी नहीं हो पाई और सेना के जवानों ने उसे पंजाब के गुरदासपुर जिले में पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया।
उसके पास जरूरी दस्तावेज न होने के कारण उसे 2 साल की कैद की सजा सुनाई गई और उसे जेल भेज दिया गया। हांलाकि उसके सजा की मियाद तो 1994 में ही पूरी हो चुकी थी, मगर तब तक वह अपनी याद्दाश्त खो चुका था। उसे उसके मुल्क भी नहीं भेजा जा सका, क्योंकि उसे खुद नहीं मालूम था कि वह कहां से आया है। कहां का रहने वाला है, उसके गांव का क्या नाम है। जेल अधिकारियों के पूछने पर वह कभी कहता है कि ईरान से आया है, तो कभी कहता है पाकिस्तान से।
जेल अधिकारियों के मुताबिक अब्दुल शरीफ को 18 जुलाई 1997 में अमृतसर सेन्ट्रल जेल में शिफ्ट किया गया था। तब से वह यहीं पर है। इससे पहले वह दो अन्य जेल में रह चुका है। जेल उपाधीक्षक आरके शर्मा के अनुसार वह अभी भी पूजा भट्ट से मिलने चाहता है। वह पूजा के साथ फिल्म में काम भी करना चाहता है।
अब्दुल शरीफ की पूजा भट्ट के प्रति दीवानगी का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि उसने भारत आने के बाद अपने शरीर पर पूजा भट्ट का नाम गुदवाया। उसे पूजा भट्ट की फिल्मों के डायलाग भी आज भी याद हैं। साथी कैदियों को वह डायलाग सुनाता रहता है। इसके चलते वह साथी कैदियों और जेल स्टाफ के बीच काफी लोकप्रिय है।
फिलहाल इस समय अब्दुल शरीफ की उम्र 42 साल के आस-पास है। उसका कोई पैरवी करने वाला नहीं है। अमृतसर की सेंट्रेल जेल के सुप्रीटेडेंट अमरीक सिंह का कहना है कि अब्दुल शरीफ की रिहाई के लिए उन्होंने भारतीय विदेश मंत्रालय के जरिए पाकिस्तान की एम्बेसी और ईरान की एम्बेसी से उसके बारे में जानकारी मंगवाई, पर वहां के दूतावासों ने अब्दुल शरीफ को अपना यहां का नागरिक मानने से इन्कार कर दिया। इससे अब्दुल शरीफ की रिहाई का कोई आसार नहीं दिखाई पड़ रहा है।
29 जुलाई 2013 को अमृतसर की सेंट्रेल जेल में रोजा खोलने के समय जब मुस्लिम कैदियों को मिठाई, कपड़े आदि बांटे जा रहे थे तो अब्दुल भी लाइन में खड़ा हो गया। कहने लगा कि वह पूजा भट्ट के लिए पिछले 19 साल से रोजा रख रहा है। उसे पूरी उम्मीद है कि एक दिन पूजा ही जेल से उसे रिहा कराएंगी। नहीं तो उनकी याद में वह जेल की चारदीवारी में दम तोड़ देगा फिर एक गहरी सांस भरकर छोड़ी और सड़क फिल्म का गाना ‘हम तेरे बिन कहीं रह नहीं पाते, तुम न होते तो हम मर जाते’ गुनगुनाने लगा।
अब देखना है कि उसकी यह दिवानगी आखिर क्या रंग लाती है? क्या वह पूजा भट्ट से मिल पाता है? यह तो भविष्य के गर्त में छिपा है।

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जिन्नात की शादी
आरा शहर की घटना है. लगभग 70 वर्ष पुरानी. लेकिन लोगों के बीच अभी भी कही-सुनी जानेवाली.
आरा शहर का एक मोहल्ला है शिवगंज. वहां हाल के वर्षों तक रूपम सिनेमा हॉल हुआ करता था. उसके बगल की गली में एक बड़े ही विद्वान पुरोहित रहा करते थे जो अपनी ज्योतिष विद्या की जानकारी के लिए दूर-दूर तक जाने जाते थे.
एक बार की बात है. रात के करीब 2 बजे वे दूसरे शहर के किसी जजमान के यहां से पूजा संपन्न कराकर लौट रहे थे. अपनी गली के मोड़ पर रिक्शा से उतर कर वे घर की और बढे ही थे कि अचानक एक गोरा चिटठा, लम्बा-चौड़ा आदमी उनके सामने आकर खड़ा हो गया. पंडित जी डर गए. उन्होंने पूछा-'कौन हो भाई! क्या बात है?'
'आप डरें नहीं. मैं एक जिन्न हूं. आपसे बहुत ज़रूरी काम है.' उसने जवाब दिया.
'अरे भाई! एक जिन्नात को मुझसे क्या काम....'
'आपको एक सप्ताह बाद मेरी शादी करनी है. कर्मन टोला की एक युवती का देहांत उसी दिन होना है. उसी के साथ मेरी शादी आपको करनी है. मुहमांगी दक्षिणा दूंगा.'
'जिन्नात की शादी..? मैंने ऐसी शादी कभी कराई नहीं. इसका विधान भी मुझे नहीं मालूम.'
'पंडित जी! शादी तो आप ही को करनी है. कैसे आप जानें. आज से ठीक आठवें दिन आप रात के एक बजे अबर पुल पर आपका इंतज़ार करूँगा. आपको वहां समय पर पहुँच जाना होगा. यह बात किसी को बताना नहीं है.' इतना कहकर जिन्नात गायब हो गया.
पंडित जी घर पहुंचे. रात भर सो नहीं सके. दूसरे दिन तमाम शास्त्रों को पलट डाला लेकिन जिन्नात की शादी की विधि नहीं मिली. अंततः उन्होंने कई किताबों का अध्ययन कर एक अपना तरीका निकाला.
आठवें दिन पंडित जी! डरते-सहमते रात के एक बजे से पहले ही अबर पुल पर पहुँच गए. एक बजे...डेढ़ बजे..दो बज गए लेकिन जिन्न नहीं पहुंचा. वे समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें. तभी अचानक झन्न की आवाज़ के साथ जिन्नात प्रकट हुआ. उसके चेहरे पर परेशानी झलक रही थी.
' माफ़ कीजिये पंडित जी! यह शादी नहीं हो सकेगी.'
'क्यों क्या हो गया.'
'वह लडकी मरी तो ज़रूर लेकिन मरने के वक़्त जब उसे ज़मीन पर लिटाया गया तो रुद्राक्ष का एक दाना उसके शरीर को छू रहा था. इसके कारण मरने के बाद वह सीधे शिवलोक चली गयी. अब वह वहां से वापस नहीं लौटेगी. इसलिए अब उसके साथ मेरी शादी नहीं हो पायेगी.
उसने पंडित जी की ओर चांदी के सिक्कों की एक थैली बढ़ाते हुए कहा, “आप मेरे आग्रह पर यहां तक आये. इसे दक्षिणा समझ कर रख लीजिये. आपकी बड़ी मेहरबानी होगी.”
पंडित जी ने कहा कि जब शादी करवाई नहीं तो दक्षिणा कैसा. लेकिन जिन्नात उनके हाथ में थैली थमाकर गायब हो गया.
पंडित जी घर वापस लौट आये. कई वर्षों तक उन्होंने इस घटना का किसी से जिक्र नहीं किया. बाद में अपने कुछ करीबी लोगों को यह घटना सुनाई. धीरे-धीरे लोगों तक यह किस्सा पहुंचा.
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काला गुलाब

उस दिन रात की घटना को याद कर तरह-तरह के विचारों में खोये मनोज को पता ही नहीं चला की कब अंजली उसके कमरे में आ गई. अचानक अंजली को पता नहीं क्या शरारत सुझी उसने चुपके से विचारो में खोये मनोज की आँखो को अपने दोनो हाथों की हथेली से दबाई, मनोज ने जैसे ही अपनी आंखों को दबा रखी हथेलियों का स्पर्श किया तो वह जोर से चीख पड़ा. अचानक मनोज के जोर से चीख कर बेहोश हो जाने से अंजलि बुरी तरह घबरा गई. मनोज की हालत देखकर वह थर-थर कांपने लगी. उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक मनोज को ऐसा क्या हो गया…..?

मनोज की चीख को सुन कर उसके पड़ौस में रहने वाली अनुराधा दौड़ी चली आई. मनोज की चीख इतनी जोर की थी कि आसपास के लोग भी घबरा कर मनोज के पास दौड़ कर चले आये.बड़े दिन की छुट्टïी खत्म होने वाली थी. स्कूल-कालेज लगना शुरू होने वाले थे. इस बीच अपने गांव से जल्दी लौट आये मनोज को अब सर पर सवार परीक्षा की तैयारी में जुट जाना था. अर्ध वार्षिक परीक्षा के बाद होने वाली पढ़ाई में जरा सी भी बरती ढील पूरा साल बरबाद कर सकती थी. सुबह जल्दी न उठ पाने की आदत के कारण मनोज ने अपने मकान मालिक से कहा था कि अंकल आप जब भी मार्निंग वाक के लिये जाते हैं मुझे भी साथ लेते चलिये मैं भी साथ चलूंगा. पिछले कई सालों से मनोज के मकान मालिक कुंदन मैथ्यू मार्निंग वाक के लिये जाते थे. मनोज ने सोचा कि वह सुबह चार से साढ़े पांच बजे तक मार्निंग वाक के बहानें अपनी किताबें-कापियां लेकर शांति से खुले मैदान में बैठकर पढ़ लेगा. एक पंथ दो काज के बहाने से सुबह देर से जगने की परेशानी से भी मुक्ति मिल जाएगी. अपने कमरे में सोने जाने से पहले मनोज ने एक बार फिर याद दिलाते हुये कहा कि अंकल रात से मैं भी आपके साथ चलूंगा.
मनोज का कमरा ऊपर की मंजिल पर होने की वजह से तीन चार दोस्त साथ मिलकर रहा करते थे. मनोज के सहपाठी आज शाम तक वापस लौट कर आने का कह कर गये थे लेकिन जब वे नहीं आये तो आज शाम को ही अपने गांव से वापस लौटे मनोज को आज की रात अकेले ही काटनी थी. इसलिये वह ज्यादा देर तक जगने के बजाय सोने चला गया. 31दिसंबर की उस रात अपने कमरे में अकेले सोये मनोज ने उस रात को जोर की पडऩे वाली ठंड से बचने के लिए अपने सारे गर्म कपड़े पहनने के बाद अपने गांव से अबकी बार साथ लाई जयपुरी मखमली रजाई को अपने ऊपर डाल कर उसकी गर्माहट में दुबक कर सो गया. सपनों की दुनिया में खोये मनोज की अचानक हुई खटपट की आवाज से नींद खुल गई. उसने अपने कमरे का नाइट लैम्प जलाया तो उसे अचानक नाइट बल्ब की रोशनी में जो दिखाई दिया उससे वह बुरी तरह डर गया. उसे अपने कमरे में एक भयानक डरावनी सूरत वाली काली बिल्ली दिखाई दी. जिसकी आँखो से अंगारे बरस रहे थे. उस काली भयावह डरावनी सूरत वाली बिल्ली से वह कुछ पल के लिये डर गया लेकिन उसने हिम्मत से काम लेते हुए उस बिल्ली को भगाने के लिए डंडा तलाशना चाहा , लेकिन उसे जब कहीं भी डंडा दिखाई नहीं दिया इस बीच डंडा तलाशते समय उसकी न$जर अनायास सामने की ओर बने सेंट पाल चर्च की ओर गई तो उसका कलेजा कांप गया. उसने अपने ऊपर की मंजिल पर स्थित कमरे से देखा कि रात के समय आसमानी तारों की जगमग रोशनी में उस चर्च के सामने बनी बावली के भीतर से एक महिला निकल कर उसके मकान की ओर आती दिखाई दी. सफेद लिबास पहनी वह महिला उसके मकान मालिक कुंदन मैथ्यू के कमरे की ओर आती दिखाई दी वह महिला आई महिला बिना कुछ बोले उसके मकान मालिक के कमरे में चली गई. उसे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था कि उसने अभी कुछ देर पहले क्या देखा. आखिर वह महिला कौन थी. उसका इस मकान मालिक से क्या नाता-रिश्ता है. वह यहां पर इतनी रात को क्या करने आई है……? और न जाने कितने प्रकार के विचारों में खोए मनोज का डर के मारे बुरा हाल था. अगर वह बिस्तर पर जाकर नहीं बैठता तो वह बुरी तरह लडख़ड़ा कर गिर जाता.
मनोज ने जैसे – तैसे पूरी रात को अपनी आँखे के सामने कांटा. उसका एक- एक पल उसे सालो की तरह लग रहा था. सुबह होते ही जब उसके मकान मालिक कुंदन मैथ्यू ने उसे घूमने के लिये चलने को कहा तो उसने पेट दर्द का बहाना बना कर वह अपने बिस्तर में दुबक कर सो गया. उसकी आंखों की नींद उड़ गई थी वह बार-बार यही सोचता रहा कि उस बावली से निकलने वाली महिला कौन थी? उसका इस मकान मालिक से क्या संबंध है? सवालों में उलझे मनोज ने किसी तरह दिन निकलते तक का समय काट लिया पर वह रात की घटना से परेशान हो गया. दिन भर बेचैन मनोज जब आज कॉलेज भी नहीं आया तो उसके मकान मालिक ने उससे आखिर पूछ लिया-बेटा मनोज क्या बात है? तुम्हारा पेट दर्द क्या अब भी कम नहीं हुआ है? अगर तकलीफ अभी भी है तो डाक्टर के पास चलो मैं तुम्हें ले चलता हंू. नहीं अंकल ऐसी कोई बात नहीं है, बस यूं ही इच्छा नहीं हो रही है. आप चिंता न करें मैं ठीक हंू यह कह कर मनोज अपने कमरे से बाहर निकल कर आ गया. रात की घटना को याद करता विचारों में खोये मनोज की अचानक किसी ने आंखों पर हथेली रखकर उसकी आंखोंं को दबा दिया. मनोज ने जैसे ही आंखों को दबा रखी हथेलियों का स्पर्श किया तो वह चीख पड़ा और वह कटे वृक्ष की भॉति जमीन पर धड़ाम से गिर पड़ा. मनोज के चीख कर बेहोश गिर जाने से अंजलि बुरी तरह घबरा गई. वह मनोज की हालत देखकर थर-थर कांप रही थी. उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक मनोज को क्या हो गया. मनोज की चीख को सुनकर आसपास के लोग घबरा कर मनोज के पास दौड़ कर चले आये. कुछ ही पल में पूरा मोहल्ला जमा हो गया. किसी के कुछ समझ नहीं आ रहा था. अंजलि का तो हाल बेहाल था. कुछ लोग मनोज को उठाकर उसके कमरे में ले गये. इस बीच कुछ लोग डाक्टर को तो कुछ लोग झाडऩे-फूंकने वाले को लेकर आ गये. डाक्टरों के लाख प्रयास के बाद रात वाली घटना को याद करके सिहर उठता था. इस बीच जब अंजलि ने चुपके से आकर उसकी आँखे क्या दबाई वह चीख कर ऐसा बेहोश हुआ कि उसे अभी तक होश नहीं आया. जब काफी देर तक मनोज को होश नहीं आया तो फिर क्या था उसके आस – पडौस के लोगो ने ओझा फकीरो को बुलवा लिया. सुबह से लेकर शाम तक झाड़ – फुक जंतर-मंतर का दौर शुरू हो गया. चर्च के फादर राबिंसन इन बातों पर विश्वास नहीं करते थे. इस बीच कोई मौलाना साहब को लेकर आ गया. मौलाना साहब ने कुछ बुदबुदाते हुये मनोज के चेहरे पर पानी के छींटे मारे तो अचानक बड़ी-बड़ी आंखें खोलकर घूरता हुआ जनानी आवाज में बोला ”तुम सब भाग जाओं नहीं तो किसी एक को भी नहीं छोडूंगी. …………. मौलाना साहब ने बताया कि यह लड़का किसी जनानी प्रेत के चक्कर में पड़ गया है. इसे कुछ समय लगेगा. ऐसा करें आप आधा घंटे का मुझे समय दे दीजिये. मैं इसे ठीक कर दूंगा. हां एक बात और भी इस लड़के का कोई अगर अपना है तो वह ही इसके साथ रहे बाकी सब चले जायें. सभी लोग अंजलि को छोड़ जाने लगे तो अंजलि जो कि इन सब बातों से बुरी तरह घबरा गई थी. बोली-प्लीज मेरे पापा को फोन करके बुला दीजिये न. अंजलि के पापा इसी शहर के पुलिस कप्तान थे इसलिये उन तक खबर पहुंचाना कोई बड़ी बात नहीं थी. पुलिस कप्तान साहब की बिटिया की खबर कौन नहीं पहुंचाएगा. लोग खबर देने के लिये दौड़ पड़े.
पुलिस कप्तान ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह का पूरे जिले में दबदबा था. अपराधी तो उसके नाम से ही थर-थर कांपता था. अंजलि उनकी एकमात्र संतान थी. तेजतर्रार पुलिस कप्तान साहब की एकमात्र नस थी तो वह उनकी बिटिया अंजलि जिसे वे बेहद प्यार करते थे. अंजलि मनोज के साथ डेनियल कालेज कला की छात्रा थी. मनोज भी उसी कालेज में साइंस का छात्र था. दोनों एक-दूसरे के विपरीत कोर्स की पढ़ाई कर रहे थे. कालेज की केन्टीन से शुरू हुये अंजलि और मनोज के प्रेम प्रसंग ने उन्हें पूरे कालेज में चर्चित कर रखा था. पुलिस कप्तान की बिटिया होने की वजह से हर कोई उसके आसपास आने से डरता था. वह अक्सर मनोज से मिलने आती थी. पिछले चार-पांच माह से दोनों के बीच चल रहे प्रेम प्रसंग की पूरी कालोनी में चर्चा होती थी. लोग चर्च कालोनी के इन दोनों प्रेमियों की तुलना हिर-रांझा, लैला-मजनू, सोनी-महिवाल से करते थे. अंजलि शहर के पुलिस कप्तान की बिटिया थी इसलिये कोई भी उसके बारे में बुरा भला कह पाने की हिम्मत नहीं कर पाते थे. कई बार तो कप्तान की कार ही मनोज को लेने आती थी. पूरे मोहल्ले में मनोज का जलवा था. अंजलि की मम्मी को ब्लड कैंसर की बीमारी थी. जिसकी वजह से वह असमय ही काल के गाल में समा गई थी. अंजलि की मम्मी का जब निधन हुआ था उस समय वह छ: माह की थी, ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह पर परिवार के लोगों का काफी दबाव आया कि वे दूसरी शादी कर लें, पर कप्तान साहब अपनी जिंदगी में किसी दूसरी औरत को आज तक आने नहीं दिया. अंजलि ही उसके जीने का एक मात्र सहारा थी. जब अंजलि के बीच प्रेम प्रसंग की उन्हें खबर मिली तो सबसे पहले कप्तान साहब ने बिना किसी को कुछ बताये मनोज के पूरे परिवार की जन्म कुंडली अपने मित्र से मंगवा ली थी. मनोज के घर परिवार के तथा उसके आचार विचार ने पुलिस कप्तान का दिल जीत लिया था. पुलिस कप्तान ने मनोज को अपना भावी दामाद बनाने का फैसला कर लिया था. अगले वर्ष दोनों का विवाह कर उनका घर संसार बसा देने का फैसला ठाकुर महेन्द्र प्रतापसिंह तथा मनोज के पापा के बीच हो चुका था लेकिन दोनों के बीच की बातचीत को अभी गुप्त रखा था. इस बात का न अंजलि को पता था और ना ही मनोज को आभास था कि उसके पापा और अंजलि के डैडी के बीच कोई बातचीत भी हुई है.
अंजलि की खबर मिलते ही पुलिस कप्तान दौड़े चले आए. उनके साथ शहर का पुलिस विभाग भी आगे-पीछे दौड़ा चला आया. ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह की बिटिया संकट में है यह खबर सुन कर भला कौन चुप बैठ सकता था. सबसे ज्यादा हैरान – परेशान अखबार और टी.वी. चैनल वाले थे क्येकि उन्हे आपस में इस बात का डर सता रहा था कि कहीं उनकी खबर आने के पहले ही कोई ब्रेकिंग न्यूज न चला दे. शहर में सनसनी खेज खबर के घट जाने के चलते सारे मीडिया कर्मी ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह को खोजते कुन्दन मैथ्यू के घर पर आ धमके. सेंट पाल चर्च कालोनी की इस घटना की चर्चा शहर के पान ठेलो एवं होटलो तथा चाक चौराहो पर होने लगी. कुन्दन मैथ्यू के घर पुलिस कप्तान के पहँुचते ही वहाँ पर जमी भीड़ छटने लगी. ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह उस कमरे में चले गए जहाँ पर गुमसुम अंजलि और मौलवी साहब के अलावा मनोज के अलावा उनके आसपास के लोग बैठे हुए थे. पापा के आते ही अंजलि स्वंय को रोक नही सकी और दहाड़ मार कर रोने लगी. ”पापा देखा न मनोज का क्या हो गया…..? अपनी बेटी की आँखो में आँसू देख महेन्द्र प्रतापसिंह स्वंय को रोक नही सके वे कुछ पुछते इसके पहले ही मौलवी साहब ने उन्हे चुपचाप रहने का इशारा कर दिया. पुलिस कप्तान साहब कमरे के एक कोने में बैठ कर वहाँ पर होने वाली गतिविधियो को देखने लगे. इस बार फिर मौलवी साहब ने गेहूँ के दानो को मनोज पर फेका तो आँखो में अंगारे लिए मनोज सोते से जाग गया. उसने सामने के मौलवी से तू चला जा नहीं तो बात बिगड़ जायेगी…….. मौलवी ने इस बार फिर कुछ बुदबुदाया और मनोज के चेहरे पर वह अभिमंत्रित पानी फेका तो वह जनानी आवाज में बोला मुझे छोड़ दो………… मौलवी साहब बोलें पहले तू यह तो बता आखिर तू है कौन………? तूने इसे क्यो अपने जाल में फँसा रखा है………..? इस बार मनोज के शरीर में समाई प्रेतात्मा बोली………….. मैं मरीयम हँू…………..सिस्टर जूली की छोटी बहन हँू. फादर डिसूजा ने मेरी सिस्टर जूली से मैरिज की थी. मैं अपनी सिस्टर के पास ही रहती थी. आज से 45 साल पहले मेरी चर्च कालोनी की इस सामने वाली बावली में गिरने की वजह से मौत हो गई थी. मेरी मौत लोगो के बीच काफी समय तक चर्चा का विषय बनी क्योकि फादर डिसूजा ने मेरी मौत को आत्महत्या बताया था जिसे आसपास के लोग मानने को तैयार नही थे. उस समय मैं दसवी कक्षा में पढ़ती थी. कुंदन मैथ्यू फादर डिसूजा के घर पर ही रहता था इसलिए हम दोनो के बीच पता नही कब प्यार का बीज अंकुरित हो गया. कुंदन के बचपन मेरी माता-पिता एक दुर्घटना में मारे गये थे . एक दिन फादर डिसूजा को भूखे से व्याकुल कुंदन एक होटल में चोरी करते मिला. फादर डिसूजा को कुंदन पर दया आ गई और उसने उसे पुलिस थाने से जमानत पर छुड़ा कर अपने पास ले आया. सात साल की उम्र से कुंदन फादर डिसूजा के पास ही रहता है. फादर डिसूजा ने कुंदन को ईसाई धर्म की दीक्षा देकर उसका नाम कुंदन मैथ्यू कर दिया. कुंदन ने भी फादर डसूजा को अपने माता- पिता की तरह चाह कर उसकी सेवा चाकरी में कोई कसर नही छोड़ी. फादर ने कुंदन का नाम सामने वाले चर्च स्कूल में लगा दिया. पढऩें में तेज कुंदन ने हर साल अव्वल नम्बर पर आकर पूरे शहर में अपने नाम की पहचान बना ली थी. इस बीच सिस्टर जूली ने चर्च स्कूल में बतौर टीचर के जब नियुक्त हुई तो वह भी कुंदन की पढ़ाई के प्रति लगन और क्लास तथा स्कूल में नम्बर वन आने की वजह से उस पर खास ध्यान देने लगी. सिस्टर जूली भी श्ुारूआती दिनो में चर्च कालानी में रहती थी लेकिन जब फादर डिसूजा से उसकी मैरीज हो गई तो वह अपनी छोटी बहन मरीयम के साथ रहने लगी. मरीयम भी कुंदन के साथ पढ़ती थी इसलिए दोनो साथ – साथ रहने और पढऩे के कारण एक दुसरे के हमजोली बन गये. सिस्टर जूली से मैरीज के बाद फादर डिसूजा का कुंदन के प्रति व्यवहार काफी बदल गया. कुंदन का स्कूल जाना बंद करवा दिया गया. उसे चर्च में चौकीदार की नौकरी पर रखवाने के बाद फादर डिसूजा ने मरीयम की कुंदन से बातचीत तक बंद करवा दी. फादर डिसूजा नहीं चाहतें थे कि मरीयम की मैरीज एक ऐसे लड़के से हो जिसके माता- पिता न हो…… जिसके पास न घर है न दो वक्त की दो का इंतजाम ऐसे लड़के से मैरीज न होने देने की वजह कुछ और ही थी. दर असल फादर मरीयम को पाना चाहते थे लेकिन सिस्टर जूली की वजह से उनकी दाल नही गल पा रही थी. एक दिन सिस्टर जूली और कुंदन किसी काम से दूर किसी शहर गये थे . उस रात को घर में अकेली देख फादर डिसूजा ने मरीयम की इज्जत लूटनी चाही तो वह अपनी जान बचाते समय ऐसी भागी की बावली में जा गिरी. मरीयम की अचानक मौत का सिस्टर जूली पर ऐसा सदमा पड़ा की वह अकसर बीमार पडऩे लगी और एक दिन चल बसी. फादर डिसूजा ने कई लोगो को मेरी मौत को आत्महत्या बताया लेकिन किसी ने भी उसकी बातो पर यकीन नही किया. मैने आखिर मेरी और मेरी सिस्टर जूली की मौत का बदला लेने के लिए मुझे मनोज का सहारा लेना पड़ा .
मैं मनोज को बस एक ही शर्त पर छोड़ सकती हँू यदि आप मेरी कब्र पर एक काला गुलाब वो भी मेरे और कुंदन के प्यार की निशानी बतौर लोगो के बीच लम्बे समय तक जाना – पहचाना जा सके. लोगो ने जूली की मनोज के माध्यम से कहीं बातो पर विश्वास करके एक काला गुलाब की कली की कहीं से व्यवस्था करके ज्यों ही उसकी कब्र पर गाड़ा इधर मनोज अपने – आप ठीक हो गया . आज भी कुंदन और जुली के प्यार का वह प्रतिक लोगो के लिए ऐसा सबक साबित हुआ है कि लोग कभी भी ऐसे प्रेमी के प्यार के बीच में खलनायक बनने का प्रयास नहीं करते जों एक दुसरे को जान से जयादा चाहते है. अभी कुछ दिनो पूर्व ही अंजली अपने पति मनोज और पापा डी .आई .जी . ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह के साथ जब नागपुर जा रही थी तो वह छिन्दवाड़ा होते हुए जूली की कब्रतक पहँुची यह जानने के लिए की उसके द्वाराा अकुंरित काला गुलाब कैसा है………!
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