मायावी दुनियाँ

Jemsbond
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Re: मायावी दुनियाँ

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तीनों लड़कों के मुंह उतरे हुए थे। अग्रवाल सर के ड्राइंग रूम में अमित, गगन और सुहेल की तिकड़ी मौजूद थी। तीनों अग्रवाल सर के आने का इंतिजार कर रहे थे।
''आखिर कहां से आ गयी रामू में इतनी पावर?" अमित हाथ मलते हुए बोला।
''कहीं उसकी बात सच तो नहीं?" सुहैल ने आँखें फैलाते हुए सबकी तरफ देखा।

''कौन सी बात?"
''यही कि अल्लाह उसके ऊपर मेहरबान हो गया है, और उसे ताकत बख्श दी है?"
''जबरदस्ती की मत उड़ाओ। भला अल्लाह उसे ताकत क्यों देने लगा!" अमित ने सुहेल को घूरा।
''लेकिन अगर तुम गहराई से सोचो। जो रामू क्लास का सबसे घोंचू लड़का था, वह गणित में एकाएक इतना तेज़ हो गया कि अग्रवाल सर को मात देने लगा। फिर उसने मिसेज कपूर का फोन सिर्फ पेन की नोक की मदद से ठीक कर दिया। उसके इक्ज़ाम में जो कुछ आने वाला था वह उसको पहले से पता चल गया। और अब यह ताज़ा घटना।......"

दोनों ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। वे भी अन्दर ही अन्दर सुहेल की बात से कायल थे।
अग्रवाल सर ने अन्दर प्रवेश किया और तीनों उनके सम्मान में खड़े हो गये।
''बैठो बैठो तुम लोग। कहो क्या हाल है?"
''ठीक है सर।" गगन ने धीरे से कहा।

''क्या बात है, आज तुम लोग काफी बुझे बुझे नज़र आ रहे हो! क्या समस्या है?"
''सर समस्या तो हमारी एक ही है। रामू।"
''वह तो हम सब के लिए समस्या बन गया है। एक स्टूडेन्ट की नालेज टीचर से ज्यादा हो गयी है। कहीं स्कूल वाले मुझे निकालकर उसे टीचर न रख लें।" अग्रवाल सर के माथे पर चिन्ता की लकीरें साफ दिख रही थीं।
''लेकिन वो लोग ऐसा क्यों करेंगे? आपके पास तो क्वालिफिकेशन है। जबकि रामू तो अभी हाईस्कूल भी पास नहीं है।" गगन ने हमदर्दी से सर की ओर देखते हुए कहा।

''तुम इस स्कूल के ट्रस्टी को नहीं जानते। महाकंजूस और चीकट टाइप का है। अगर वो रामू को रखेगा तो इसे सैलरी भी कम देनी पड़ेगी और उसका काम भी हो जायेगा। वो मेरी क्वालिफिकेशन को चाटेगा भी नहीं।"
मामला वाकई गंभीर था। सभी अपनी अपनी जगंह सोच में पड़ गये।
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जबकि बन्दर बने असली रामू ने भरपेट खाना खा लिया था और अब उसे नींद आ रही थी।
''लगता है तुम काफी थक गये हो और अब तुम्हें नींद आ रही है।" मिसेज वर्मा ने उसकी तरफ देखा। रामू ने सहमति में सर हिलाया।
''मेरे साथ आओ।" मैं तुम्हारे सोने का इंतिजाम कर देती हूं।

मिसेज वर्मा ने किचन से बाहर जाने के लिये कदम बढ़ाया। रामू उसके पीछे पीछे हो लिया। उसे देखकर सुखद आश्चर्य हुआ कि वह उसे रामू के यानि उसी के कमरे की तरफ ले जा रही थी।
'तो क्या मम्मी ने उसे पहचान लिया है? हो सकता है। भला कौन मां होगी जो अपने लाल को नहीं पहचानेगी।' वह ख़ुशी ख़ुशी उसके पीछे बढ़ने लगा। उसकी मम्मी रामू के कमरे के दरवाजे पर पहुंच गयी।

लेकिन वहां न रुककर वह आगे बढ़ गयी। और एक छोटे से खुले स्थान के पास जाकर खड़ी हो गयी जो रामू के कमरे की बगल में मौजूद था। यहां एक पाइप था जो छत की तरफ गया हुआ था। उस पाइप से बरसात के मौसम में छत का गंदा पानी नीचे बहता था।

''तुम यहां आराम करो। मैं जाती हूं। कुछ और काम निपटाना है।" उसकी मम्मी वहाँ इशारा करके वहां से चली गयी और वह हसरत से उस छोटी सी गंदी जगह को घूरने लगा। उसके कमरे की एक खिड़की उसी तरफ खुलती थी और वह अक्सर उसका इस्तेमाल थूकने के लिए करता था। अब इस जगंह को आराम के लिए इस्तेमाल करना, उसे सोचकर ही उबकाई आ गयी।
लेकिन मरता क्या न करता। और कोई चारा ही न था। वह वहीं एक कोने में पसर गया। और कहते हैं नींद तो फांसी के तख्ते पर भी आ जाती है सो उसे भी थोड़ी ही देर में आ गयी।
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रामू बना सम्राट प्रिंसिपल के आफिस में दाखिल हुआ। प्रिंसिपल ने सर उठाकर उसकी तरफ देखा।
''क्या बात है रामकुमार?" प्रिंसिपल ने पूछा।
''मैडम मैं आपसे एक रिक्वेस्ट करना चाहता हूं।"
''लगता है तुम अग्रवाल सर की शिकायत लेकर आये हो। मैं जानती हूं कि वो तुम्हारे साथ बहुत ज्यादती कर रहे हैं। और तुम्हें परेशान कर रहे हैं। लेकिन तुम घबराओ मत। मैं बहुत जल्दी उन्हें हटाने वाली हूं। नये गणित के टीचर की वैकेन्सी अखबार में दे दी गयी है। जैसे ही कोई नया टीचर आयेगा, उन्हें हम हटा देंगे।"

''मैडम, मुझे अग्रवाल सर से कोई शिकायत नहीं। मुझे तो इस दुनिया के किसी जीव से कोई शिकायत नहीं।" रामू की बात पर प्रिंसिपल मैडम ने हड़बड़ा कर उसकी तरफ देखा, इस समय वह कोई बहुत ही पहुंचा हुआ सन्यासी लग रहा था। बल्कि एक अजीब सी रोशनी उसके चेहरे के चारों तरफ फैली हुई थी।
''क्या बात है रामकुमार? आज तुम कुछ बदले बदले दिखाई दे रहे हो।"

''हाँ मैडम। मैं वाकई बदल गया हूं। मैं क्यों बदला हूं यही बताने के लिए मैं आपके पास आया हूं।"
''तो फिर बताओ। ये सुनने के लिए मैं बेचैन हूं।"
''यहाँ पर नहीं मैडम। ये बात मैं पूरी दुनिया के सामने बताना चाहता हूं और उससे पहले पूरे स्कूल के सामने। आप प्लीज पूरे स्कूल में नोटिस निकलवा दीजिए कि रामू उन्हें कुछ खास बताना चाहता है।"

''ठीक है नोटिस निकल जायेगा।" मैडम रामू से कुछ ज्यादा ही इम्प्रेस हो चुकी थी इसलिए उसकी हर बात बिना चूँ चरा मान रही थी, ''मैं आज ही एनाउंस कर देती हूं कि कल की प्रेयर में सबको हाजिर होना अनिवार्य है। प्रेयर के बाद तुम अपनी बात उनके सामने रख देना।"
''ठीक है मैडम। जो बात मैं कहना चाहता हूं। उसके लिए प्रेयर के बाद का समय ही सबसे अच्छा है।" रामू मैडम को अपनी पहेली में उलझाकर बाहर निकल गया।

''अरे नेहा तुमने ये नोटिस पढ़ा?" पिंकी ने नेहा का ध्यान नोटिस बोर्ड की तरफ दिलाया और वो सब एक साथ नोटिस बोर्ड को पढ़ने लगीं।
''कल प्रेयर के बाद रामू क्या बताने जा रहा है?" तनु ने अपने दिमाग पर जोर डालने के लिए नाक भौं चढ़ाई।
''पता नहीं। अब तो लगता है उसका दिमाग यहाँ के टीचरों की समझ से भी बाहर हो गया है।" नेहा ने कंधे उचकाते हुए कहा।
''मैं बताऊं?" पिंकी बोली और दोनों उसकी तरफ घूम गयीं।

''क्या?" नेहा ने पूछा।
''मुझे लगता है कल रामू पूरे स्कूल के सामने तुम्हारे और अपने प्यार का एनाउंसमेन्ट करने जा रहा है। हो सकता है कल सबके सामने वह तुम्हें सगाई की अँगूठी पहना दे।" पिंकी अपनी गोल गोल आँखें छटकाते हुए बोली।

''यह खुराफाती विचार तुम्हारे भेजे में आया कहाँ से?" नेहा ने उसे घूरा।
''अरी यार, मेरा दिमाग कम्प्यूटर से भी तेज चलता है। मैं उसकी आँखों में बहुत दिन से तुम्हारे लिये प्यार देख रही हूं।"
''काश कि ये सच होता।" नेहा ने एक ठंडी साँस ली, ''लेकिन यह बस एक हसीन सपने के सिवा और कुछ नहीं।"
''क्यों सपना क्यों? मैंने कह दिया सो कह दिया। कल वह यही करेगा जो मैं कह रही हूं।"

पिंकी ने झटके के साथ अपनी उंगली ऊपर उठायी और उसी समय उसे पीछे से एक जोरदार झटका लगा। वह उई कहकर पीछे घूमी तो एक लड़का उसके पीछे औंधे मुंह लेटा हुआ था। एक भारी भरकम गुलदस्ता उसके हाथ से छूटकर साइड में गिर चुका था। फिर कराहते हुए वह लड़का जब ऊपर उठा तो उन्होंने उसके चेहरे पर कीचड़ भरा होने के बावजूद उसे पहचान लिया। यह गगन था।

''अरे गगन! तुम्हें क्या हुआ?" तनु ने हैरत से पूछा।
''ऐक्चुअली अपने भारी भरकम गुलदस्ते की वजह से सामने देख नहीं पाया और नाली से ठोकर खा गया।'' गगन ने खिसियानी हंसी हंसते हुए कहा।
''यह गुलदस्ता मेरे लिये है न। गगन तुम मेरा कितना ख्याल रखते हो।" पिंकी खुश होकर बोली और गगन ने बुरा सा मुंह बनाया। पूरे स्कूल में यही लड़की ऐसी थी जो उसे एक आँख नहीं भाती थी।

''आपको मैं किसी टाइम इमामदस्ता दे जाऊंगा। मसाला कूटने वाला। ये गुलदस्ता तो नेहा तुम्हारे लिये है।" गगन ने गुलदस्ता जमीन से उठाया और नेहा की तरफ बढ़ा दिया।
''मेरे लिये? भला मैं इस गुलदस्ते का क्या करूं?" नेहा ने कोई रिस्पांस नहीं दिया।
''ऐक्चुअली आज मैं तुम्हारे सामने वह बात निकाल देना चाहता हूं जो बरसों से तुमसे कहने के लिये तड़प रहा हूं।" गगन इस वक्त पूरा रोमांटिक होने की कोशिश कर रहा था। यह अलग बात है कि शक्ल से कुछ और ही लग रहा था।

''कमाल है! बात न हुई कब्ज का मर्ज़ हो गया कि जब तक न निकले आदमी तड़पता रहे।" तनु की बीच में टपक कर बोलने की आदत कभी कभी सामने वाले को दाँत पीसने पर मजबूर कर देती थी।
''तो फिर जल्दी बोल कर अपनी तड़प निकालो। मुझे काम से जाना है।" नेहा ने अपनी घड़ी पर नजर की।
''नेहा, आई लव यू सो मच और मैं तुमसे मंगनी और शादी दोनों करना चाहता हूं। ये देखो मैं अंगूठी भी लेकर आया हूं मंगनी के लिये।" गगन ने जेब से अंगूठी निकालकर दिखायी।

नेहा ने एक गहरी साँस ली और पिंकी की तरफ घूमी, ''पिंकी, तुम्हारी भविष्यवाणी तो कल की बजाय आज ही सच हो गयी।"
''अरे क्या मेरे बारे में कोई भविष्यवाणी की गयी थी?" खुश होकर गगन ने पूछा।
''हाँ।" नेहा ने कहा।
''क्या?" दाँत निकालकर गगन ने पूछा।

''यही कि एक गुलदस्ता तुम्हारे सर पर टूटने वाला है।" नेहा ने उसी का गुलदस्ता उसके सर पर दे मारा। और तेजी के साथ वहाँ से निकलती चली गयी। जबकि गगन अपने सर को सहलाता गुलदस्ते वाले को कोसता रह गया जिसने इतने भारी बरतन में रखकर वह गुलदस्ता बनाया था।
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पता नहीं उस वक्त क्या बज रहा था जब खट पट की आवाज सुनकर रामू की आँख खुल गयी। उसने अपनी पोजीशन पर नजर डाली। उस पत्थर पर काफी अच्छी नींद आयी थी उसे। फिर उसका ध्यान अपने कमरे की तरफ गया जिसकी खिड़की उसकी तरफ खुलती थी। उसने देखा कि उसके कमरे में रौशनी हो रही थी। यानि कमरे में कोई मौजूद था। उसने धीरे धीरे अपना सर खिड़की की तरफ बढ़ाया। वह देखना चाहता था कि कमरे में कौन मौजूद है।

उसकी आँखें खिड़की के बराबर में पहुंचीं और तब उसने देखा कि उसकी कुर्सी पर कोई उसी के डील डौल का लड़का मौजूद है जिसकी पीठ खिड़की की तरफ थी। वह लड़का कोई किताब पढ़ रहा था। रामू ने गौर से किताब को देखा और यह देखकर उसके देवता कूच कर गये कि यह किताब उसकी नहीं बल्कि उसके बाप की थी जिसे वह हाल ही में किसी कबाड़ी मार्केट से खरीद कर लाये थे। यह किताब प्राचीन आयुर्वेदिक ज्ञान पर आधारित थी। रामू ने एक बार उसे उठाया था और फिर कवर पेज देखकर रख दिया था।

'तो यह है वह बहुरूपिया जो रामू बनकर मेरे घर पर कब्जा जमाये हुए है।' रामू ने अपने मन में कहा।
वह लड़का तल्लीनता से किताब की स्टडी में जुटा हुआ था। इतनी तल्लीनता से तो रामू अपने कोर्स की किताबें भी नहीं पढ़ता था जैसे वह उसके बाप की किताब पढ़ रहा था।
'मौका अच्छा है। मैं आज इसका सर तोड़ दूंगा। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी।' बन्दर बने रामू ने इधर उधर नज़र दौड़ाई और जल्दी ही एक भारी पत्थर पर उसकी निगाहें गड़ गयीं। वह पत्थर के पास गया और उसे अपने हाथों में थाम लिया। अब वह धीरे धीरे खिड़की की ओर बढ़ा। खिड़की की चौखट पर उसने पत्थर रख दिया और फिर उचक कर खिड़की पर चढ़ गया। जबसे उसे बन्दर का शरीर मिला था, उसकी किसी भी हरकत में कोई आवाज़ नहीं पैदा होती थी। और वह लड़का तो वैसे भी किताब की स्टडी में इतना तल्लीन था कि उसे रामू के अन्दर आने का कोई एहसास ही नहीं हुआ।

रामू धीरे धीरे चलता हुआ उसके ठीक पीछे पहुंच गया। उसने उस लड़के की खोपड़ी तोड़ने के लिये पत्थर को अपने सर से बलन्द किया। और उसी पल वह लड़का उसकी तरफ घूम गया। उसकी आँखें रामू की आँखों से टकराईं और रामू को ऐसा लगा मानो उसके हाथों को किसी ने जकड़ लिया हो। उसने अपने हाथों को हिलाने की कोशिश की लेकिन असफल रहा।
लेकिन रामू को अपनी दशा से भी ज्यादा एहसास उस हैरत का था जो उस लड़के का चेहरा देखकर पैदा हुई थी। वह लड़का हूबहू उसकी फोटोस्टेट कापी था। जरा भी दोनों में फर्क नहीं था। उस लड़के ने अपने सर को झटका दिया और रामू के हाथ से पत्थर छूटकर नीचे गिर गया।

''तो तुम आ ही गये अपने घर।" उस लड़के के मुंह से आवाज़ निकली और रामू को आश्चर्य हुआ। क्योंकि उसने उसे पहचान लिया था। उसके बन्दर की शक्ल में होने के बावजूद।
''कौन हो तुम?" रामू ने पूछना चाहा लेकिन उसकी ज़बान से एक बार फिर बन्दरों वाली खों खों निकल कर रह गयी।

''मैं ... रामू हूं। क्या शक्ल से नहीं दिखाई देता।" उस लड़के ने अपने चेहरे की ओर इशारा किया। रामू ने एक गहरी साँस ली। इसका मतलब उसका हमशक्ल उसकी ज़बान समझ रहा था।
''ल.. लेकिन रामू तो मैं हूं।" उसने हकलाते हुए कहा।
''तुम रामू नहीं हो। तुम सिर्फ एक बन्दर हो, जिसके अन्दर रामू का दिमाग फिट किया गया है।" उस लड़के ने कहा। इसका मतलब उस लड़के को सारी बातें मालूम थीं। और शायद उसी का इन सबके पीछे हाथ भी था।
''तुम हो कौन जिसने मेरे शरीर और घर दोनों पर अपना अधिकार कर लिया है?" रामू ने इसबार बेबसी के साथ पूछा।

''जल्दी ही जान जाओगे मेरे बारे में। अगर तुम अपनी भलाई चाहते हो तो मेरे साथ ही रहना अब। क्योंकि मेरे अलावा इस दुनिया में तुम्हारी भाषा और कोई नहीं समझ सकता है। और तुम्हारे मेरे पास रहने से मेरे बहुत से मकसद आसानी से हल हो जायेंगे?" वह लड़का इस तरह उसकी कुर्सी पर बैठा था मानो कोई सम्राट बैठा हो।
''कैसे मक़सद?" रामू ने पूछा।
''मैंने कहा न उतावली ठीक नहीं। धीरे धीरे तुम्हें सब मालूम हो जायेगा।"

''अरे रामू, किससे बात कर रहा है?" बाहर से उसकी माँ की आवाज़ आयी। और फिर वह अन्दर दाखिल भी हो गयी।
''मैं इस बन्दर से बात कर रहा था माँ।" रामू बने सम्राट ने बन्दर बने रामू की ओर इशारा किया और रामू सिर्फ दाँत पीसकर रह गया।
''अरे! ये अन्दर कैसे आ गया? वैसे बहुत समझदार बन्दर है ये। तुम इसे पालतू बना लो। काम आयेगा।"
''पालतू तो मैं इसे पहले ही बना चुका हूं।" रामू बने सम्राट ने अर्थपूर्ण मुस्कुराहट के साथ जवाब दिया।
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यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
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स्कूल का प्रार्थना स्थल इस समय पूरी तरह फुल था। जो बच्चे कभी स्कूल नहीं आते थे वह भी आज मौजूद थे। क्योंकि सब को यही जिज्ञासा थी कि देखें आज रामू क्या एनाउंस करने जा रहा है। कुछ लड़कों के चेहरे भी उतरे हुए थे। ये लड़के थे अमित, सुहेल और गगन। उन्हें यही डर सता रहा था कि कहीं रामू उनकी उस दिन वाली घटना के बारे में तो नहीं बताने वाला है जब उन्होंने उसे मारने की कोशिश की थी। वहां टीचर व प्रिंसिपल सहित सभी मौजूद थे सिवाय रामू के। प्रिंसिपल बार बार अपनी घड़ी देख रही थीं।


''मैंडम, प्रार्थना का समय हो गया है। क्या मैं प्रार्थना शुरू करवा दूं?" सक्सेना सर ने प्रिंसिपल को मुखातिब किया।
''दो मिनट इंतिजार कर लीजिए सक्सेना जी। रामू को आ जाने दीजिए। उसे आज कुछ एनाउंस करना है।"
''लगता है वह हमारी छूट का कुछ ज्यादा ही नाजायज़ फायदा उठा रहा है। जब सारे बच्चे आ गये तो वह क्यों नहीं आया अभी तक।" सक्सेना सर बड़बड़ाये।

उसी समय रामू वहाँ दाखिल हुआ। उसके साथ साथ एक बन्दर भी चल रहा था।
''अरे रामकुमार। तुम इतनी देर से क्यों आये? और क्या ये बन्दर तुम्हारा पालतू है?" प्रिंसिपल भाटिया ने पूछा।
''मैं किसी भी प्राणी को अपना पालतू बना सकता हूं।" रामू ने अजीब से स्वर में कहा।
''क्या मैं प्रार्थना शुरू करवाऊं?" सक्सेना सर ने प्रिंसिपल की ओर देखा।

''जी हां।" प्रिंसिपल ने सहमति दी और वहाँ ईश्वर की वंदना शुरू हो गयी। बन्दर बने रामू ने भी अपने हाथ जोड़ लिये थे।
वंदना खत्म हुई। अब प्रिंसिपल रामू यानि सम्राट की तरफ घूमी।
''हाँ रामकुमार। तुम्हें जो एनाउंस करना है तुम कर सकते हो।"

रामू बने सम्राट ने माइक संभाला और कहना शुरू किया, ''यहाँ पर मौजूद सभी श्रोताओं। अभी आप लोगों ने ईश्वर की वंदना की। मैं आपसे सवाल करता हूं। क्या आप में से किसी ने ईश्वर को देखा है?"
सभी बच्चों ने नहीं में सर हिलाया।
''अगर तुम लोगों के सामने ईश्वर प्रकट हो जाये तो तुम लोगों को कैसा लगेगा?"

उसके इस सवाल पर सब उसका मुंह ताकने लगे। फिर एक लड़का बोला, ''अगर हमारे सामने ईश्वर प्रकट हो जाये तो हम फौरन उसके सामने अपना सर झुका देंगे।"
उसकी बात पर सब बच्चों ने एक स्वर में 'हाँ कहा।
''तो फिर आओ। मेरे सामने अपना सर झुकाओ। क्योंकि मैं ही हूं ईश्वर। सर्वशक्तिमान इस पूरी सृष्टि का रचयिता।"

रामू की बात सुनकर वहाँ सन्नाटा छा गया। बच्चों के साथ साथ वहाँ मौजूद टीचर्स भी रामू बने सम्राट का मुंह ताकने लगे थे। जबकि बन्दर बना असली रामू भी हैरत में पड़ गया था।
''यह तुम क्या कह रहे हो रामू?" प्रिंसिपल ने हैरत से उसकी ओर देखा।
''अब मैं रामू नहीं हूं। क्योंकि रामू की आत्मा मेरे शरीर से निकल चुकी है और परमात्मा का अंश मेरे शरीर में दाखिल हो चुका है। अब मैं अवतार बन चुका हूं परमेश्वर का। सम्राट के मुंह से निकलने वाली आवाज़ में अच्छी खासी गहराई थी।

''हम कैसे मान लें कि तुम ईश्वर के अवतार हो?" अग्रवाल सर कई दिन बाद रामू से मुखातिब हुए।
''जिस प्रकार से मैंने गणित के सवाल हल किये हैं और तुम्हारे शागिर्दों को नाकों चने चबवाए हैं क्या इससे यह बात सिद्ध नहीं होती कि मैं सर्वशकितमान हूं?
''यह तो मैं मानता हूं कि तुम्हारे अन्दर कोई दैवी शक्ति मौजूद है। लेकिन तुम्हें ईश्वर तो मैं हरगिज़ नहीं मान सकता।" अग्रवाल सर ने टोपी उतारकर अपनी खोपड़ी खुजलाई।
''मैं भी नहीं मानता। मेरा अल्लाह तो वो है जो हर जगह है और किसी को दिखाई नहीं देता। तुम अल्लाह हरगिज नहीं हो सकते।" सुहेल बोला।

''लगता है मुझे अपनी शक्तियां दिखानी ही पड़ेंगी।" सम्राट बोला। फिर उसने अपनी एक उंगली अग्रवाल सर की ओर उठायी और दूसरी सुहेल की तरफ। दूसरे ही पल दोनों उछल कर हवा में टंग गये। वहां मौजूद सारे बच्चे यह दृष्य देखकर चीख पड़े। रामू बने सम्राट ने फिर इशारा किया और दोनों हवा में चक्कर खाने लगे। इस चक्कर में दोनों एक दूसरे से बार बार टकरा रहे थे। फिर उसने एक और इशारा किया और दोनों धप से ज़मीन पर गिर गये। दोनों बुरी तरह हांफ रहे थे।
''किसी और को मेरे ईश्वर होने में शक हो तो वह बता दे।" रामू ने चारों तरफ देखकर कहा।
सब चुप रहे। अगर किसी को शक था भी तो मुंह खोलकर उसे हवा में लटकने का हरगिज़ शौक नहीं था।
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शहर के लोकल न्यूज़ पेपर्स और न्यूज़ चैनल्स को ज़बरदस्त मसाला मिल गया था। सब चीख चीखकर रामकुमार वर्मा के भगवान बन जाने की कहानी सुना रहे थे। रामू के घर में एक आफत मची हुई थी। उसके माँ बाप यानि मिसेज और मि0 वर्मा बदहवास घर के एक कोने में दुबके हुए थे जबकि उनके घर का बाहरी दरवाज़ा जोर जोर से भड़भड़ाया जा रहा था। बाहर पबिलक का एक रैला था जो शायद उनका दरवाज़ा तोड़कर अन्दर घुस जाना चाहती थी। आखिरकार कमज़ोर सा दरवाज़ा भीड़ की ताब न लाकर शहीद हो गया और पब्लिक तले ऊपर गिरती पड़ती अन्दर दाखिल हो गयी। भीड़ की पोजीशन देखकर दोनों और सिमट गये।

''द..देखो, हम कुछ नहीं जानते...हमें..." मिसेज वर्मा ने कुछ कहना चाहा लेकिन उसी वक्त मलखान सिंह बोल उठे जो सबसे आगे मौजूद थे।
''भाइयों यही हैं वह पवित्र हस्तियाँ जिन्होंने हमारे भगवान को जन्म दिया है।"

मलखान सिंह का इतना कहना था कि पब्लिक मि0 एण्ड मिसेज वर्मा पर टूट पड़ी। कोई मि0 वर्मा के हाथ चूम रहा था तो कोई मिसेज वर्मा के पैरों पर गिरा जा रहा था। सब अपनी अपनी इच्छाएं भी मि0 और मिसेज वर्मा से बयान करने लगे थे ताकि वह अपने भगवान सुपुत्र से सिफारिश कर दें।

''कृपा करके आप रामू से कह दें कि वह मेरा इनकम टैक्स का मामला क्लीयर कर दे।" नंबर दो का रुपया धड़ल्ले से कमाने वाले राजू मियां हाथ जोड़कर बोले जिनके घर में कुछ ही दिन पहले इनकम टैक्स की रेड पड़ी थी।

''अबे ओये ऊपर वाला तेरे भेजे को खराब करे। तू भगवान को रामू रामू कहकर पुकारता है मानो वह तेरा खरीदा हुआ है।" मलखान सिंह राजू मियां की गर्दन पकड़ कर दहाड़े।
''तो फिर हम रामू को और क्या बोलें?" मिनमिनाती आवाज में राजू मियां ने पूछा।
''ओये तू अगर रामू को भगवान राम कह देगा तो क्या तेरी ज़बान घिस जायेगी?"

''लेकिन इससे तो कन्फ्यूज़न हो जायेगा मलखान भाई।" पंडित बी.एन.शर्मा पीछे से बोले।
''ओये कैसा कन्फ्यूज़न पंडित।" मलखान ने इस बार बीएनशर्मा की तरफ देखकर आँखें तरेरीं।
''एक भगवान राम जी तो पहले ही पैदा हो चुके हैं त्रेता युग में। अगर हम इन्हें भी भगवान राम कहने लगे तो लोग डाउट में पड़ जायेंगे कि हम कौन से भगवान की बात कर रहे हैं।"

''हाँ यह बात तो है।" मलखान जी सर खुजलाने लगे। फिर बोले, ''आईडिया। हम इन्हें पूरे नाम से बुलाते हैं यानि भगवान रामकुमार वर्मा।"
''हाँ यह ठीक है।" पंडित बीएनशर्मा ने सर हिलाया।

''तो फिर बोलो तुम सब। भगवान रामकुमार वर्मा की - जय हो।" अब मलखान सिंह जी बाकायदा वहाँ रामकुमार वर्मा की जय जयकार कराने लगे थे।
लेकिन जितनी ज्यादा ये लोग जय जयकार करते थे मिस्टर और मिसेज वर्मा उतना ही ज्यादा अपने में दुबके जा रहे थे।
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रामू यानि सम्राट को ईश्वर मानने वालों की संख्या धीरे धीरे बढ़ती जा रही थी। यह देखकर प्रशासन की आँखों में चिन्ता के भाव तैरने लगे थे। क्योंकि इस नये भगवान को मानने वालों और पुराने भगवानों को मानने वालों के बीच झगड़ों के आसार भी बढ़ते जा रहे थे। पुराने धर्मों को मानने वाले इस नये धर्म के भगवान को पाखंडी बता रहे थे। जवाब में सम्राट के अनुयायी उन्हें मरने मारने पर उतारू थे। हालांकि अभी कोई गंभीर घटना नहीं हुई थी। लेकिन आगे क्या होगा इसकी आशंका सभी को थी।

पुलिस विभाग ने इस नये भगवान की तफ्तीश के लिये एक दरोगा को दो सिपाहियों के साथ भेजा।
''यह तुमने क्या नाटकबाज़ी फैला रखी है!" रामू बने सम्राट के सामने पहुंचकर दरोगा ने आँखें तरेरीं। सम्राट इस समय ऊंचे चबूतरे पर विराजमान था। असली रामू बन्दर के जिस्म में उसकी बगल में बैठा हुआ था। अगर वह मानवीय शक्ल में होता तो कोई भी उसकी चेहरे की परेशानी आसानी से देख लेता। जिस चबूतरे पर वे लोग मौजूद थे उसके आसपास लगभग सौ लोगों का मजमा लगा हुआ था जो भगवान रामकुमार वर्मा की जय जयकार कर रहे थे।

''यहाँ कोई नाटक नहीं फैला हुआ है। यहाँ तो शान्ति का साम्राज्य फैला हुआ है।" सम्राट ने शांत स्वर में जवाब दिया।
''कौन शान्ति? सिपाहियों, देखो शान्ति किधर गायब है। ससुर दोनों को ले चलकर हवालात में बन्द कर दो।" दरोगा सिपाहियों की तरफ घूमा।
सिपाही तुरंत शान्ति की तलाश में जुट गये।

उधर सम्राट का प्रवचन जारी था, ''शान्ति, सुख और चैन की तलाश हर एक को होती है। लेकिन शान्ति तो तुम्हारे मन के अन्दर ही बसती है। लेकिन तुम उसे पहचान नहीं पाते। ठीक उसी तरह जैसे तुम लोगों को जीवन भर ईश्वर की तलाश होती है। लेकिन अगर ईश्वर सामने आ जाये तो तुम उसे पहचान नहीं पाते और दीवाने बनकर इधर उधर चकराने लगते हो। ऐ दीवानों मुझे पहचानो। मैं ही ईश्वर हूं। मैं ही हूं इस सृष्टि का निर्माता।

''इस दीवाने को ले चलकर हवालात में बन्द कर दो। जब दो डंडे पड़ेंगे तो अक्ल ठिकाने आ जायेगी। ससुर ईश्वर बना रहा है।" दरोगा ने व्यंगात्मक भाव में कहा। सिपाही सम्राट को पकड़ने के लिये आगे बढ़े लेकिन सम्राट के भक्तों ने सामने आकर उनका रास्ता रोक लिया।
''उन्हें मत रोको। मेरे पास आने दो। सम्राट ने शांत स्वर में कहा।" सिपाही आगे बढ़े और जैसे ही उन्होंने सम्राट को हाथ लगाया। बुरी तरह उछलने कूदने लगे और साथ ही इस तरह हंसने लगे मानो कोई उन्हें गुदगुदा रहा है। पबिलक और दरोगा हैरत से उन्हें देख रहे थे।

''अबे उल्लुओं। ये क्या कर रहे हो तुम लोग। जल्दी से इसे पकड़ो और हवालात में बन्द करो।" दरोगा चीखा। लेकिन सिपाहियों ने मानो उसकी बात ही नहीं सुनी। वे उसी प्रकार उछलने कूदने और कहकहा मारने में व्यस्त थे।

''नर्क में जाओ तुम लोग । मैं ही कुछ करता हूं।" दरोगा इस बार खुद सम्राट को गिरफ्तार करने आगे बढ़ा। सम्राट शांत भाव से उसे देख रहा था। जैसे ही दरोगा ने उसकी तरफ हाथ बढ़ाया, सम्राट ने उसके चेहरे पर एक फूंक मारी। फौरन ही दरोगा दो कदम ठिठक कर पीछे हट गया। अचानक ही उसके चेहरे के भाव बदल गये। चेहरे की सख्ती गायब हो गयी और उसकी जगह ऐसा लगा मानो उसपर दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा। चेहरा कुछ इसी तरह उदास हो गया था।

फिर उसकी आँखें छलछला कर निर्मल धारा भी बहाने लगीं। और उसके मुंह से भर्राई हुई आवाज़ में निकला, ''माँ, तुम कहां हो। मुझे छोड़कर किधर खो गयीं तुम। देखो तुम्हारी याद में तुम्हारे बबलू का क्या हाल हो गया है।
सम्राट के पास बैठे भक्त हैरत से दरोगा को देखने लगे थे।
''बचपन में इसकी माँ अपने आशिक के साथ भाग गयी थी। आज इसे उसकी याद आ रही है।" सम्राट ने बताया।

''लेकिन अभी अचानक इसे कैसे माँ की याद आ गयी?" एक भक्त ने पूछा।
''इसलिए क्योंकि अभी मैंने इसको इसकी माँ की आत्मा के दर्शन कराए हैं।"
''अरे वाह। भगवान, कृपा करके मुझे अपने बाप की आत्मा के दर्शन करा दीजिए। मुझे उससे उस गड़े धन का पता पूछना है जो उसने ज़मीन में कहीं छुपा दिया था। और फिर हमें बताने से पहले ही उसका दम निकल गया था।" भक्त ने आशा भरी नज़रों से भगवान की ओर देखा।

''इसके लिये तुम्हारे बाप की आत्मा से बात करने का कोई फायदा नहीं होगा। क्योंकि करारे नोटों की शक्ल में जो धन उसने गाड़ा था, वह पूरे का पूरा दीमक चाट गयी है।" सम्राट ने भक्त की आशाओं पर तुरंत आरी चला दी।
उधर दरोगा अपनी माँ की याद में एक कोने में गुमसुम बैठ गया था, अत: अब सम्राट को रोकने वाला कोई नहीं था। अब तो वहां अच्छी खासी तादाद में न्यूज़ चैनल वाले भी पहुंच गये थे। और चीख चीखकर रामकुमार वर्मा के बारे में बहस कर रहे थे कि वह असली ईश्वर है या नक़ली। इन चैनलों के ज़रिये इस भगवान को पूरे देश में देखा जा रहा था। दूसरी तरफ बन्दर बना असली रामकुमार वर्मा यानि रामू अपने दाँत पीस रहा था और मन ही मन सम्राट को सबक सिखाने की तरकीबें सोच रहा था। सम्राट इस समय उसकी तरफ मुत्वज्जे नहीं था। जल्दी ही रामू को उसे सबक सिखाने की तरकीब सूझ गयी। इस समय एक धूपबत्ती उसकी बगल में ही जल रही थी। उसने धीरे से उस धूपबत्ती को सम्राट की तरफ खिसकाना शुरू कर दिया।

सम्राट इस समय उपदेश देने में तल्लीन था। उसने रामू की हरकत की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। उसे वैसे भी रामू की कोई चिन्ता नहीं थी। भला बन्दर के जिस्म में मौजूद रामू उसका बिगाड़ ही क्या सकता था।
अचानक रामू ने झपटकर जलती हुई धूपबत्ती सम्राट के पिछवाड़े लगा दी। दूसरे ही पल एक चीख मारकर सम्राट उछल पड़ा। उसने हैरत और गुस्से से बन्दर बने रामू की ओर देखा। पहली बार किसी ने उसे इस धरती पर चोट पहुंचायी थी।

''ओह। तो तुम्हें भी अब सबक देने की ज़रूरत है।" उसने दाँत पीसकर कहा। उधर पूरी पब्लिक हैरत से दोनों की ओर देख रही थी। उन्होंने साफ साफ देखा था कि एक बन्दर ने उनके भगवान को चीख मारने पर मजबूर कर दिया है।
''भगवान, आपका बन्दर तो बड़ा नटखट है।" एक भक्त ने प्यार से भगवान के बन्दर की ओर देखा।
''हाँ। ये मुझे बहुत प्रिय है। सम्राट ने ऊपरी तौर पर मुस्कुराहट सजाकर किन्तु भीतर ही भीतर पेचो ताब खाते हुए कहा।

''अच्छा। अब यह सभा यहीं बर्खास्त की जाती है। मुझे अब ध्यान में लीन होना है।" सम्राट ने उठते हुए कहा।
''किन्तु ईश्वर तो आप स्वयं हैं। फिर आप किसके ध्यान में लीन होंगे?" एक भक्त ने जो कुछ ज्यादा ही खुराफाती दिमाग का था सम्राट को टोक दिया।

''मैं स्वयं के ध्यान में लीन होऊंगा। मैं ईश्वर हूं जिसकी सीमाएं अनन्त हैं। उस अनन्त के बोध हेतु ध्यान की ऊर्जा अति आवश्यक है ताकि मैं अनन्त सृजन कर सकूं।" सम्राट ने इस बार कठिन आध्यात्मिक भाषा का इस्तेमाल किया था जिसने भक्तों को भाव विह्वल कर दिया। उधर सम्राट ने बन्दर बने रामू को पकड़ा और हवा में तैरते हुए एक तरफ को निकल गया।

नीचे पब्लिक खड़ी हुई भगवान रामकुमार वर्मा की जय जयकार कर रही थी।
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Jemsbond
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अपने यान में सम्राट अपने साथियों के साथ मौजूद था। थोड़ी दूरी पर असली रामू भी दिखाई दे रहा था जिसका बन्दर का जिस्म हरे रंग की किरणों के घेरे में था।
''हम काफी हद तक अपने मकसद में कामयाब हो चुके हैं। बहुत जल्द पूरी दुनिया में हमारी पूजा शुरू हो जायेगी। हालांकि कुछ टेढ़े दिमाग वाले अभी भी हमारे रास्ते में टाँग अड़ाने की कोशिश कर रहे हें, लेकिन उनकी औकात कीड़े मकोड़ों से ज्यादा नहीं।" सम्राट अपने साथियों से कह रहा था।

''एक बार पूरी दुनिया के दिमागों पर हमारा कब्ज़ा हो जाये। फिर इस धरती पर हमारी हुकूमत होगी।" रोमियो ने खुश होकर कहा।
''हां। यहाँ के लोग हमारे गुलाम होंगे। जो लोग अभी इस ज़मीन पर पहले दर्जे पर क़ाबिज़ है वह अब दूसरे दर्जे पर आ जायेंगे। हमेशा के लिये। लेकिन शायद उनके दिमाग में विद्रोह की भावना हमेशा रहेगी।" सम्राट ने कुछ सोचते हुए कहा।

''ऐसा क्यों सम्राट?" सिलवासा ने चौंक कर पूछा।
''क्योंकि इन लोगों ने हमेशा ही पृथ्वी पर शासन किया है। अब इस बन्दर को ही देख लो। उस लड़के का दिमाग इस बन्दर के जिस्म में आने के बाद भी अपनी हार कुबूल नहीं कर रहा है। कुछ देर पहले इसने मुझे परेशान कर दिया था।''

''तो फिर इसका पत्ता साफ कर देते हैं।" डोव ने क्रूरता के साथ कहा।
''नहीं। हमें यहाँ मौजूद हर इंसान के दिमाग से अपने लिये विद्रोह की भावना निकालनी है। उनसे अपनी पूजा करानी है।"
''लेकिन कैसे?" सिलवासा ने पूछा।
''उसके लिये हमें कुछ तजुर्बे करने होंगे। और इसके लिये यह बन्दर बना रामू काम आयेगा।"
''आप कैसा तजुर्बा करना चाहते हैं सम्राट?" सिलवासा ने पूछा।

''मैं देखना चाहता हूं कि कोई इंसान कितनी बेबसी के हालात से गुज़रने के बाद हमारा गुलाम बन सकता है। अत: तुम लोग इसे 'एम-स्पेस में भेज दो।" सम्राट की बात सुनकर वहां मौजूद सभी के चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ गयी।
''एम-स्पेस। वो तो मैथेमैटिकल समीकरणों का ऐसा चक्रव्यूह है जहां से निकलना लगभग नामुमकिन है। वहां पर तो ये नाचता रह जायेगा।" सिलवासा ने गहरी साँस लेकर कहा।

''लेकिन मुझे एक डर है।" बहुत देर से खामोश मैडम वान ने अपनी ज़बान खोली।
''शायद तुम ये कहना चाहती हो कि अगर किसी ने एम-स्पेस पार कर लिया तो वह हमें हमेशा के लिये अपने कण्ट्रोल में कर लेगा।" सम्राट ने कहा।

मैडम वान ने सर हिलाया, ''जी हाँ। क्योंकि एम स्पेस हमारा कण्ट्रोल रूम भी है। और उसी के द्वारा हमें अपने ग्रह से शक्तियां मिलती हैं।
''यह नामुमकिन है कि पृथ्वी का कोई दिमाग एम-स्पेस की गणितीय पहेलियों को समझ ले। और ये बच्चा तो बिल्कुल ही नहीं समझ सकेगा। क्योंकि मैं इसकी पूरी हिस्ट्री से वाकिफ हूं। गणित तो इसके लिये हमेशा एक हव्वे की तरह रही है। और बिना एम स्पेस की गणितीय पहेलियों को समझे कोई उसे पार नहीं कर सकता।"

''तो फिर ठीक है। हम इसे एम-स्पेस में डाल देते हैं।" कहते हुए मैडम वान ने डोव को इशारा किया और डोव जो कि यान के स्विच बोर्ड के पास था उसने एक स्विच दबा दिया। दूसरे ही पल यान में उस जगह का फर्श गोलाई में हट गया जहाँ पर बन्दर बना रामू मौजूद था। एक क्षण के अन्दर रामू का जिस्म उस रिक्त स्थान में गायब हो चुका था।
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यह अँधेरी सुरंग पता नहीं कितनी लंबी थी जिसमें रामू गिरता ही जा रहा था। उसे कुछ नहीं सुझाई दे रहा था। वह तो बस उस पल का इंतिज़ार कर रहा था जब वह किसी पक्के फर्श से टकरायेगा और उसके चिथड़े उड़ जायेंगे। उसने अपनी आँखें भी बन्द कर ली थीं। फिर उसे लगा कि उसके चारों तरफ रोशनी फैल गयी है। और उसी पल वह किसी नर्म स्थान पर गिरा था। क्योंकि उसे ज़रा भी चोट नहीं आयी थी।

उसने अपनी आँखें खोल कर देखा। यह तो किसी रेलवे स्टेशन का प्लेटफार्म मालूम हो रहा था। एक ऊँचा स्थान जिसकी साइड में रेलवे ट्रैक भी मौजूद था। जैसे ही उसने अपनी आँखें खोलीं, उस ट्रैक पर कहीं से एक ट्राली आकर रुक गयी। उस प्लेटफार्म पर उसके अलावा और कोई मुसाफिर नहीं था। अचानक वहाँ एक अनाउंसमेन्ट होने लगा। उसने सुना, अनाउंसमेन्ट उसी की भाषा में हो रहा था।

'समस्त यात्रियों से अनुरोध है कि दस मिनट के अन्दर इस जगह से दो सौ किलोमीटर दूर चले जायें क्योंकि दस मिनट के बाद दो सौ किलोमीटर के दायरे में तेज़ाबी बारिश शुरू हो जायेगी। जिसमें हर व्यक्ति गल जायेगा।" अनाउंसमेन्ट सुनते ही उसके होश उड़ गये। दस मिनट में दो सौ किलोमीटर कोई कैसे दूर जा सकता है? असंभव।"

उसने देखा न तो प्लेटफार्म और न ही ट्राली के ऊपर कोई छत जैसी संरचना थी। जो उस बारिश से बचाने वाली होती। फिर उसके दिमाग में एक विचार आया और वह दौड़कर ट्राली पर चढ़ गया। उसके चढ़ते ही ट्राली तेज़ गति से ट्रैक पर भागने लगी। उसने देखा सामने दो इंडिकेटर मौजूद हैं। पहला इंडिकेटर ट्राली की स्पीड को बता रहा था, सौ किलोमीटर प्रति मिनट। जबकि दूसरा इंडिकेटर समय को बता रहा था। उसके फेफड़ों से इत्मीनान की एक गहरी साँस निकली। इस स्पीड से तो ट्राली दो मिनट में ही दो सौ किलोमीटर का रास्ता तय कर लेती। उसने खुश होकर कोई गीत गुनगुनाना शुरू कर दिया। ये अलग बात है कि मुंह से केवल बंदर की खौं खौं ही निकल कर रह गयी। झल्लाकर उसने गाना बन्द कर दिया । और ट्राली के इंडिकेटर को देखने लगा। समय बताने वाले इंडिकेटर ने एक मिनट पूरा किया, और उसी समय ट्राली को एक झटका लगा। उसने चौंक कर देखा, अब ट्राली की स्पीड सौ से कम होकर पचास हो गयी थी।

'कोई बात नहीं। दो मिनट न सही, तीन मिनट में तो ट्राली दो सौ किलोमीटर के दायरे से निकल ही जायेगी। तब भी सात मिनट रह जायेंगे।' उसने अपने लड़खड़ाते दिल को संभाला। और आसमान की ओर देखा जहाँ अब अजीब से बादल छाने लगे थे। ये बादल पूरी तरह सुर्ख थे और शायद यही तेज़ाबी बारिश लाने वाले थे।
एक मिनट और बीता, और ट्राली को फिर एक झटका लगा। अब इंडिकेटर उसकी स्पीड पच्चीस किलोमीटर प्रति मिनट ही बता रहा था।

अचानक एक विचार ने उसके दिल की धडकनें फिर बढ़ा दीं। यानि हर मिनट ट्राली की स्पीड कम होकर आधी रही जा रही थी। इसका मतलब कि, वह मन ही मन कैलकुलेट करने लगा कि अगर इसी तरह हर मिनट ट्राली की स्पीड आधी होती रही तो दो सौ मीटर दूर जाने में उसे कितना समय लगेगा। गणित में हमेशा फिसडडी रहने वाला उसका दिमाग इस समय अपने को मुसीबत से घिरा देखकर बिजली की रफ्तार से चलने लगा था। जब उसने अपनी कैलकुलेशन का रिज़ल्ट देखा तो उसके होश उड़ गये। इस तरह तो अनंत समय तक चलने के बाद भी ट्राली कभी भी दो सौ मीटर के दायरे को पार नहीं कर सकती थी।
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एक मिनट और बीत चुका था और अब ट्राली की स्पीड मात्र साढ़े बारह किलोमीटर प्रति मिनट ही रह गयी थी। उसने सोचा कि ट्राली से कूद जाये और दौड़ना शुरू कर दे। लेकिन उसकी कैलकुलेशन के अनुसार अभी भी 13 किलोमीटर का फासला बाकी था और ये फासला वह बचे हुए छ: मिनट में हरगिज़ तय नहीं कर सकता था। वह ट्राली के फर्श पर बेचैनी से टहलने लगा। आसमान में सुर्ख बादल लगातार गहरे होते जा रहे थे। और उसके दिल पर मायूसी भी उतनी ही गहरी होती जा रही थी।

लेकिन फिर अचानक सम्राट की बात उसके ज़हन में गूंजी जिसने उसके दिल में रोशनी की किरण पैदा कर दी। उसने कहा था, ''बिना एम स्पेस की गणितीय पहेलियों को समझे कोई उसे पार नहीं कर सकता। और ट्राली की स्पीड का हर मिनट इस तरह कम होना भी यकीनन कोई गणितीय पहेली ही थी।

एक बार फिर उसने अपने दिमाग़ को दौड़ाना शुरू किया और आखिरकार उसे इस पहेली का हल मिल गया। यकीनन वह तेज़ाबी बारिश से बच सकता था। लेकिन उसे जो कुछ करना था वह आखिरी नौवें मिनट में ही करना था। जिस तरह हर मिनट ट्राली की स्पीड कम हो रही थी उस आधार पर नौवें मिनट की समाप्ति पर ट्राली एक सौ निन्यानवे किलोमीटर और छ: सौ मीटर की दूरी तय कर लेती। यानि अगर वह उस समय ट्राली से कूदकर आगे की तरफ भागना शुरू कर देता तो एक मिनट में ये बचे हुए चार सौ मीटर तय कर सकता था। अब वह इत्मीनान से बैठकर नौ मिनटों के खत्म होने का इंतिज़ार करने लगा।

वक्त गुज़र रहा था और ट्राली अब लगभग कछुए की रफ्तार से रेंगने लगी थी। सुर्ख बादलों ने पूरे वातावरण को ही सुर्ख कर दिया था। अजीब डरावना मंज़र था वह।
फिर नौवां मिनट भी खत्म हुआ और उसने फौरन ट्राली से छलांग लगा दी। अब वह जान छोड़कर आगे की तरफ भाग रहा था। इस समय उसका बन्दर का जिस्म काफी काम आ रहा था जिसमें बन्दरों की ही फुर्ती भरी हुई थी। बादलों में अब रह रहकर बिजलियां कड़क रही थीं।

दसवाँ मिनट खत्म होने में कुछ ही मिनट रह गये थे जब उसे आगे ज़मीन पर एक चमकदार पीली रेखा दिखाई दी। शायद ये दो सौ किलोमीटर की सीमा को दर्शा रही थी। उसकी एक लंबी छलांग ने उसे रेखा को पार करा दिया। उसी समय उसे अपने पीछे शोर सुनाई दिया। उसने घूमकर देखा, बारिश शुरू हो गयी थी। लेकिन वह बारिश रेखा के इस पर नहीं आ रही थी। लगता था मानो किसी ने वहाँ शीशे की दीवार खड़ी कर दी है। फिर उसने ये भी देखा कि चींटी की रफ्तार से रेंगती ट्राली धीरे धीरे उस पानी में पिघलती जा रही है। उसके बदन में सिहरन दौड़ गयी। अगर वह उस ट्राली पर होता तो उसका भी यही अंजाम होता। उसने एक इतिमनान की गहरी साँस ली और आगे बढ़ने लगा।

आगे बढ़ते हुए उसे लग रहा था कि वह किसी जंगल के अन्दर घुस रहा है। क्योंकि पहले इक्का दुक्का मिलने वाले पेड़ धीरे धीरे बढ़ते जा रहे थे। जल्दी ही वह एक घने जंगल में पहुंच गया। इस जंगल में साँप बिच्छू भी हो सकते थे, अत: वह एहतियात के साथ अपने कदम बढ़ाने लगा। फिर उसे ध्यान आया कि उसका जिस्म तो बन्दर का है। उसने फौरन छलांग लगाकर एक पेड़ की डाल पकड़ ली और फिर एक डाल से दूसरी डाल पर कूदते हुए वह आगे बढ़ने लगा। फिर उसे भूख का एहसास हुआ जो इस धमाचौकड़ी का नतीजा थी।

रामू ने एक डाल पर ठिठककर पेड़ों की तरफ देखा। उसे तलाश थी ऐसे फलों की जो उसकी भूख मिटा सकें। यह देखकर उसकी बांछें खिल गयीं कि पेड़ तो तरह तरह के फलों से लदे हुए थे। उसने फौरन फलों के नज़दीकी गुच्छे की तरफ हाथ बढ़ाया लेकिन उसी समय एक महीन आवाज़ उसके कानों में पड़ी, 'मर जायेगा, मर जायेगा उसने घबराकर अपना हाथ खींच लिया और इधर उधर देखने लगा कि ये आवाज़ किधर से आयी।
उसने फिर गुच्छे की तरफ हाथ बढ़ाया और वही आवाज़ फिर आने लगी। अब उसने ध्यान दिया कि आवाज़ उसी गुच्छे में से आ रही है। यानि कि ये फल ही इंसानों की तरह बोल रहे थे, और शायद ज़हरीले थे, तभी तोड़ने वाले को वार्निंग दे रहे थे।

रामू ने दूसरे पेड़ की ओर देखा। उसकी डालियां भी फलों से लदी हुई थीं। वह फल भी दूसरी तरह के थे। वह छलांग लगाकर उस पेड़ पर पहुंच गया और फल तोड़ने के लिये हाथ बढ़ाया।
'मरा मरा मरा.... इस फल से भी लगातार आवाज़ें लगीं और उसने घबराकर अपना हाथ खींच लिया। यानि कि इस फल का तोड़ना भी खतरनाक था।

'ऐसा तो नहीं कि ये फल अपने को बचाने के लिये इस तरह की आवाज़ लगा रहे हैं। उसके दिमाग में विचार आया और उसने तय किया कि इस बार ये फल कुछ भी बोलें, वह उन्हें तोड़ लेगा। उसने फल की तरफ हाथ बढ़ाया और उसकी वार्निंग के बावजूद उसे तोड़ लिया। तोड़ते ही फल से आवाज़ आनी बन्द हो गयी। फिर उसने उसे खाने के लिये मुंह की तरफ बढ़ाया, लेकिन उसी समय किसी ने झपटटा मारकर उसके हाथ से उस फल को लपक लिया। उसने भन्नाकर लुटेरे को देखा। वो भी एक बन्दर ही था, लेकिन असली।

फिर उस बन्दर ने जल्दी जल्दी उस फल को खाना शुरू कर दिया और साथ ही रामू को इस तरह देखता भी जा रहा था जैसे ठेंगा दिखा रहा हो। रामू ने तय किया कि उसे सबक सिखाये और इसके लिये उसने किसी मज़बूत डण्डे की तलाश में इधर उधर नज़रें दौड़ायीं। लेकिन उसी वक्त उसने देखा कि बन्दर अपना पेट पकड़कर तड़पने लगा था। फिर तड़पते तड़पते वह ज़मीन पर गिर गया और कुछ ही पलों में वह ठण्डा हो चुका था। रामू जल्दी से उसके पास पहुंचा और हिला डुलाकर देखने लगा। लेकिन उसे यह देखकर निराशा हुई कि बन्दर मर चुका था। इसका मतलब कि फलों की वार्निंग सही थी। वे वाकई ज़हरीले थे।

अगर वह उस फल को खा लेता तो? वह अपने अंजाम को सोचकर काँप गया। उसने तय कर लिया कि वह वहाँ की कोई चीज़ नहीं खायेगा। लेकिन कब तक? भूख उसकी आँतों में ऐंठन पैदा कर रही थी। अगर वह कुछ नहीं खाता तो भले ही कुछ समय तक जिंदा रह जाता लेकिन ज्यादा समय तक तो नहीं।

अचानक उसके दिल में फिर उम्मीद की किरण जागी। जैसा कि सम्राट ने कहा था कि इस दुनिया में हर तरफ गणितीय पहेलियां बिखरी हुई हैं। और उन्हें हल करके सलामती की उम्मीद की जा सकती है। तो इन ज़हरीले फलों के बीच जीवन देने वाले फल भी मौजूद होने चाहिए जो शायद किसी गणितीय पहेली को हल करने पर मिल जायें।

यह विचार दिमाग में आते ही वह उठ खड़ा हुआ और पेड़ों पर लदे फलों पर गौर करने लगा। यहाँ पर जिंदगी और मौत का सवाल था। अत: उसका दिमाग अपनी पूरी क्षमता झोंक रहा था। इसके नतीजे में जल्दी ही वह एक नतीजे पर पहुंच गया। उसने देखा कि एक पेड़ पर फलों के जितने भी गुच्छे लगे हुए थे, उनमें फलों की संख्या निशिचत थी।

जिस पेड़ के नीचे वह खड़ा था उसमें हर गुच्छे में पाँच पाँच फल लगे हुए थे। जबकि उसके पड़ोसी पेड़ में सात सात फलों के गुच्छे थे। उसने आसपास के सारे पेड़ देख डाले। किसी में हर गुच्छे में पाँच फल थे, किसी में दो, किसी में तीन तो किसी में सात फल थे। कहीं कहीं ग्यारह फल भी दिखाई दिये। उसने इन गिनतियों को वहीं कच्ची ज़मीन पर एक डंडी की सहायता से लिख लिया और उनपर गौर करने लगा। जल्दी ही ये तथ्य उसके सामने ज़ाहिर हो गया कि ये सभी संख्याएं अभाज्य थीं। यानि किसी दूसरी संख्या से विभाजित नहीं होती थीं। तो अगर कोई गुच्छे के फल को तोड़ता तो वह एक अभाज्य संख्या को विभाजित करने की कोशिश करता जो की असंभव था। इसीलिए फलों का ज़हर उसका काम तमाम कर देता।

इस नतीजे पर पहुंचते ही वह फुर्ती से उठ खड़ा हुआ। अब उसे ऐसे पेड़ की तलाश थी जिसके गुच्छे में विभाज्य संख्या में यानि चार, छ:, आठ इत्यादि संख्या में फल लगे हों। थोड़ी दूर जाने पर आखिरकार उसे ऐसा पेड़ मिल गया। इस पेड़ के हर गुच्छे में छ: फल लगे हुए थे। वह फुर्ती के साथ पेड़ पर चढ़ गया और एक गुच्छे की तरफ डरते डरते अपना हाथ बढ़ाया।

जब उसका हाथ गुच्छे के पास पहुंचा तो उसके फलों से आवाज़ आने लगी - 'आओ...आओ।

इसका मतलब उसका निष्कर्ष सही था। ये फल खाने के लायक़ थे। उसने उन फलों को तोड़ा और खाना शुरू कर दिया। काफी स्वादिष्ट और चमत्कारी फल थे। न केवल उसकी भूख मिटी थी बलिक प्यास और थकान भी मिट गयी थी। रामू अपने को पूरी तरह तरोताज़ा महसूस कर रहा था।
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