** काली चिड़िया का रहस्य **

Jemsbond
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Re: ** काली चिड़िया का रहस्य **

Post by Jemsbond »

काली चिङिया पेङ से छत पर उतर आयी थी । और खिलौने की भांति छत पर बैठी थी । कुछ ही देर मैं रेनू का भक्क सफ़ेद रंग एकदम से काला पङ गया । और वो वीनस की प्रतिमा की जगह भयँकर पिशाचनी नजर आने लगी ।
मैंने फ़िर से सिगरेट का धुँआ उसके चेहरे पर फ़ेंका । और मेरी कल्पना के विपरीत वह कामातुर नारी की जगह साक्षात पिशाचनी नजर आने लगी । भयंकर रौद्र रूप पिशाचिनी । उसने शायद मेरी चालाकी भांप ली थी । और मानों मेरे लक्ष्य का उपहास करते हुये उसने घाँघरा फ़ाङ कर फ़ेंक दिया । और बेहद उदंडता से बोली - मुँह पर क्या मारता है । यहाँ मार । नपुंसक मानव ।
मैंने उसके व्यंग्य की कोई परवाह न करते हुये धुँआ योनि पर फ़ेंका । वह पीङा से दोहरी होने लगी । और मेरी आशा के अनुरूप ही उसने चोली भी फ़ाङ दी । और इस तरह के भद्दे भद्दे वाक्य बोलने लगी । जैसे कामातुर हस्तिनी स्त्री व्यवहार करती है ।
काली चिङिया कमरे के दरबाजे तक आ पहुँची थी । अब लगभग क्लाइमेक्स का समय था । और जरा सी चूक बेहद गङबङ कर सकती थी ।
मैंने जल्दी से कटोरे में जलती हुयी आग से ही एक नयी सिगरेट सुलगायी । और उठकर पूर्ण नग्न नगर कालका को दबोच लिया । मैंने उसके झूलते हुये स्तनों को पकङा । और एक बलात्कारी की भाँति व्यवहार करने लगा । मैंने जलती हुयी सिगरेट उसकी हथेली से छुआ दी । वह हाँफ़ती हुयी ढीली पङ गयी । और लगभग मेरी बाहों में झूल गयी । मैंने फ़िर से उसे बैठाया । फ़िर से उसके आसन के सामने बैठा । और फ़िर से धुँआ उसके वक्षों पर फ़ेंका । उसका सीना तेज तेज सांस लेने से ऊपर नीचे हो रहा था ।
अब काली चिङिया बिना किसी भय के यन्त्रवत चलती हुयी जलते कटोरे के पास आकर रुक गयी । नगर कालका ने एक बार फ़िर मेरी तरफ़ वासना की नजर से देखा । और इस तरह से इशारा करने लगी । मानों पूछ रही हो कि अभी अभी जो मैंने उससे सम्भोग आदि का वादा किया । वो पक्का है । या नहीं । मैंने सिर हिलाकर समर्थन में इशारा कर दिया ।
नगर कालका ने हिकारत से काली चिङिया को देखा । और उसकी गरदन मरोङते हुये चिथङे चिथङे कर कटोरे की जलती हुयी आग में डाल दिया

रात के ठीक दो बजे नगर कालका ने रेनू को , उस घर को मेरे कहने पर हमेशा के लिये छोङ दिया । पर ज्यादातर घटनायें मेरे अनुमान के विपरीत ही हुयी । जैसे मैं सोच रहा था कि नगर कालका को छल से निकालूँगा । इसके विपरीत अंतिम समय में मेरी उससे मित्रता हो गयी । जिसमें मेरा एक निजी स्वार्थ भी था । प्रेत लोकों और प्रेतों से मेरा अक्सर सम्पर्क रहता था । तो हर हालत में ये मित्रता मेरे लिये फ़ायदे का सौदा थी ।
दूसरे मैं सोच रहा था कि नगर कालका से किसी भी हालत में सम्भोग नहीं करूँगा । पर वो भी मुझे करना पङा । क्योंकि नगर कालका ने फ़िर कभी इस परिवार को न सताने का वादा किया था । और इसके एवज में मैंने भी उसकी शर्तें मानने का वादा किया था । अतः वादे से मुकरने में किसी तरफ़ से कोई फ़ायदा तो न था । हाँ नुकसान अवश्य थे ।
रेनू पूर्व अवस्था में आ चुकी थी । उसका रंग पहले के समान गोरा हो गया था । और मुख आदि पहले की भाँति ही सामान्य हो गये थे । पर वह अब भी अचेत पङी थी । रात के तीन बजने बाले थे । मैंने रेनू के शरीर पर एक बाल्टी भरा पानी डाल दिया । और सिगरेट सुलगाकर उसके चेतन होने का इंतजार करने लगा ।

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समाप्त
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बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
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यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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