अलिफ लैला की रहस्यमई कहानियाँ

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Jemsbond
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Re: अलिफ लैला की रहस्यमई कहानियाँ

Post by Jemsbond »

उसके अगले दिन भी दंड की यह रस्म पूरी की गई, उस दिन भी नगर में सन्नाटा रहा। इसके अगले दिन जुबैनी ने आज्ञा दे कर घोषणा करवाई कि कोई नगर निवासी इन दोनों स्त्रियों को अपने यहाँ शरण न दे वरना खलीफा के द्वारा निर्धारित दंड का भागी होगा। साथ ही आज्ञा दी कि इन दोनों को नगर की सीमा से बाहर कर दिया जाए ताकि यह जहाँ चाहें चली जाएँ। पहले वे दोनों नगर निवासियों के पास ही गईं कि कुछ सहायता लें किंतु सभी को डर था कि खलीफा के आदेश से जुबैनी उन्हें दंड देगा इसलिए जिसके पास जाती वह या तो उन्हें दुतकार कर भगा देता या खुद भाग जाता।

दो-चार जगह यह व्यवहार देख कर गनीम की माँ ने बेटी से कहा, इस शहर में हमें कोई भी व्यक्ति आश्रय नहीं देगा, सभी को अपनी जान की पड़ी है। यहाँ तो शरण क्या, कोई हमें भीख भी नहीं देगा जिससे हम पेट भर सकें। अब इस के अलावा और कोई उपाय नहीं है कि हम किसी अन्य देश में जाएँ। इधर जुबैनी ने कबूतर द्वारा खलीफा के पास संदेश भिजवाया कि आपके आदेश का पालन कर दिया गया। खलीफा ने उसी कबूतर से यह आदेश भिजवाया कि तीन मंजिल (एकदिवसीय यात्रा की दूरी) इधर-उधर तक के गाँवों में मुनादी करा दो कि इन लोगों की कोई आदमी सहायता न करे ताकि इन लोगों को फिर से अपने शहर में आने की कोई संभावना ही न रहे।

जुबैनी ने खलीफा के आदेशानुसार यह मुनादी तो करवा दी किंतु इन दोनों से कह भी दिया कि नए आदेश के अनुसार तुम्हें कोई शरण तीन मंजिलों तक नहीं मिल सकेगी। साथ ही उन दोनों को आधी-आधी अशर्फी भी चुपके से दे दी कि चार-छह दिन तक खाने का प्रबंध कर लें। वे दोनों जुबैनी के दिए कंबल ओढ़ कर ओर गले में पुराने कपड़ों की बनी भीख की झोली डाल कर शहर से निकलीं। रात के समय वे किसी मसजिद में जा कर पड़ी रहतीं और मसजिद न होती तो किसी टूटी-फूटी सराय के कोनों में ठहर जातीं। काफी दूर जाने पर वे एक गाँव में पहुँची। वहाँ किसानों की स्त्रियाँ उनके चारों ओर एकत्र हो गईं और पूछने लगीं कि कौन हो। उन्होंने बताया कि हम लोग खलीफा के आदेशानुसार प्रताड़ित किए गए हैं। स्त्रियों ने पूछा कि खलीफा ने तुम्हें यह दंड क्यों दिया तो उन्होंने पूरा हाल बताया।

किसानों की स्त्रियों को उनकी इस दशा पर बड़ी दया आई। उन्होंने उनके कंबलों को उतरवा कर उन्हें पहनने के लिए अपने कपड़े दिए और उन्हें भोजन कराया। किंतु वे गाँव में क्या करतीं, उन्हें गनीम को भी खोजना था। इसलिए एक दिन आराम करके दूसरे दिन वे वहाँ से चलीं और पूर्ववत माँगते-खाते हुछ दिनों बाद हलब नगर में पहुँचीं। वहाँ दो-चार दिन घूम कर गनीम का पता लगाने की कोशिश की। फिर वहाँ से रवाना हुईं ओर कई दिन के बाद मोसिल नगर पहुँचीं। वहाँ भी कई दिन तक पूछने पर गनीम का पता न चला तो वे दोनों बगदाद की ओर चलीं कि शायद वह उसी नगर में कहीं छुप रहा हो। यद्यपि इन भिखमंगी बनी हुई स्त्रियों को किसी छुपे हुए अपराधी का पता मिलना असंभव था तथापि आशा बलवती होती है। और वही आशा इन्हें द्वार-द्वार भटका रही थी। बेचारियाँ हर एक से गनीम के बारे में पूछतीं और हर जगह से जवाब मिलता कि हमें कुछ नहीं मालूम।

उधर फितना पर क्या बीती यह भी सुनिए। वह बेचारी अपने कारागार की तंग कोठरी में रात-दिन विलाप किया करती। उसी कोठरी से लगा हुआ खलीफा के आवास का आँगन था। वह अक्सर शाम को उस आँगन में टहलता और उसी समय अपनी प्रशासनिक समस्याओं पर विचार किया करता था। एक शाम को वह वहाँ टहल रहा था कि उसे अत्यंत करुण ध्वनि सुनाई दी। वह उसे सुन कर खड़ा हो गया। उसने ध्यान से सुना तो अपनी प्रेयसी फितना की आवाज पहचानी। वह कान लगा कर सुनने लगा। फितना रो-रो कर कह रही थी, अभागे गनीम, तू कहाँ है? तूने मेरी इतनी सेवा की और मेरी भलाई की और उसका बदला यह मिला कि आर्थिक रूप से बिल्कुल बरबाद हो गया। मालूम नहीं तू अब जिंदा है या खलीफा के डर से मर गया।

कुछ देर बाद उसकी आवाज फिर आई, ओ खलीफा हारूँ रशीद, तूने निरपराध गनीम पर ऐसा अत्याचार किया जैसा किसी बादशाह ने किसी पर नहीं किया होगा। क्या तुझे ईश्वर का भय नहीं है? कयामत में जब सारे लोग ईश्वर के समक्ष होंगे और जब उनसे उनके भले-बुरे कामों की पूछताछ की जाएगी उस समय तू अपने इस महाअन्याय का क्या औचित्य देगा? यह कहने के बाद फितना जोरों से विलाप करने लगी। खलीफा यह सुन कर बड़ी चिंता में पड़ा। उसने सोचा कि अगर फितना सच कह रही है और गनीम निर्दोष है तो वास्तव में उस पर और उससे भी अधिक उसकी बहन पर अन्याय हुआ। खलीफा के लिए जो भगवान का प्रतिनिधि होता है ऐसा अन्याय किसी प्रकार उचित नहीं है।

वह अपने कक्ष में गया और वहाँ राजमहल के मुख्य अधिकारी मसरूर को बुलाया और उसे आदेश दिया कि फितना को कैदखाने से निकाल कर मेरे पास ले आओ। मसरूर को फितना से स्नेह था। वह यह आदेश पा कर बड़ा प्रसन्न हुआ और फितना के पास जा कर बोला, सुंदरी, चलो, तुम्हें खलीफा ने बुलाया है। मुझे विश्वास है कि अब तुम कैद से छूट जाओगी। फितना तुरंत ही तैयार हो गई और मसरूर ने उसे खलीफा के सामने पेश कर दिया। खलीफा ने उसे देखते ही पूछा, तुमने यह कैसे कहा कि कयामत में मैं ईश्वर को मुँह नहीं दिखा सकूँगा। मैंने किस निरपराध व्यक्ति को हानि पहुँचाई है? तुम्हें मालूम है कि मैं न्याय के लिए प्रसिद्ध हूँ और किसी पर भी अन्याय नहीं करता न किसी और को अन्याय करने देता हूँ।

फितना समझ गई कि वह अभी जो विलाप कर रही थी उसे खलीफा ने सुन लिया है। वह जमीन से सिर लगा कर बोली, मालिक, मेरे मुँह से कुछ अनुचित निकला हो तो मैं क्षमा चाहती हूँ। यह जरूर कहूँगी कि दमिश्क का व्यापारी गनीम रंचमात्र भी अपराधी नहीं है। उसने मेरे प्राण बचाए और मुझे अपने घर में आराम से रखा। पहले वह मुझे देख कर मेरी ओर आकृष्ट हुआ था किंतु जब उसे मालूम हुआ कि मैं आपकी सेवा में हूँ तो उसका रवैया बिल्कुल बदल गया। उसने मुझ से स्पष्ट कहा कि शासक की संपत्ति प्रजाजन के लिए त्याज्य है। उसके बाद वह मुझसे पवित्र प्रेम करता रहा है, अपना बिस्तर हमेशा दूसरे कमरे में लगवाता रहा है। यह सुन कर खलीफा ने फितना को जमीन से उठाया और कहा कि तुम अपना पूरा हाल बताओ कि मेरी अनुपस्थिति में तुम्हें क्या-क्या अनुभव हुए हैं।

फितना ने आद्योपरांत अपना वृत्तांत सुनाया। खलीफा ने फितना से कहा, तुम्हारी बात के ढंग से लग रहा है कि तुम झूठ नहीं बोल रही हो। परंतु मेरी समझ में यह नहीं आया कि जब मैं इतने दिनों से आया हुआ हूँ तो तुम अब तक चुप क्यों रही और फिर अपना हाल भेजा भी तो लिख कर भेजा। इस देरी का क्या कारण है? फितना बोली, सरकार, इसका कारण यह है कि एक महीने से अधिक हुआ गनीम अपना तमाम माल-असबाब मेरे सुपुर्द करके बाहर चला गया। इस बीच मेरी किसी आदमी से बात ही नहीं हुई जो आप के आगमन का समाचार देता। बहुत दिनों में अपनी दासी द्वारा आप का समाचार ज्ञात हुआ तो फौरन ही मैंने पत्र भेजा।

खलीफा ने कहा, अब मुझे वास्तव में यह महसूस हो रहा है कि मैंने गनीम और उसकी माँ और बहन के साथ घोर अन्याय किया है। मैं चाहता हूँ कि इस अन्याय का निराकरण करने के लिए उसका कुछ उपकार करूँ। तुम्हारे विचार से मुझे इस दशा में कार्य करने के लिए क्या करना चाहिए। फितना ने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया कि खलीफा का क्रोध दूर हो गया है और वह दया दर्शाना चाहता है। उसने सिर झुका कर कहा, आप यह मुनादी करवा दीजिए कि गनीम का अपराध क्षमा किया गया। वह यह मुनादी सुनेगा तो वापस आ जाएगा। खलीफा ने कहा, ठीक है, मैं ऐसी ही घोषणा करवाए देता हूँ। उसका जो नुकसान हुआ है उससे दुगुना उसे दे दूँगा। और जब वह आएगा तो तुम्हारा विवाह भी उसके साथ कर दूँगा। खलीफा ने यह घोषणा तो करवा दी किंतु उसका कोई फल नहीं हुआ। न गनीम आया न किसी और ने उसका समाचार दिया। इस पर फितना ने खलीफा से कहा कि आप अनुमति दें तो मैं स्वयं गनीम को खोजने निकलूँ। खलीफा ने अनुमति दे दी।

फितना दूसरे दिन सवेरे ही एक तोड़ा अशर्फियों का ले कर निकली। बड़ी मसजिद में जा कर उसने संतों और फकीरों को दान दिया और उनसे अपने मनोरथ की सिद्ध के लिए आशीर्वाद प्राप्त किए। फिर वह जौहरियों के बाजार में गई और एक दलाल से मिली। यह दलाल बहुत ही धर्मप्राण व्यक्ति था और विदेशियों तथा बीमारों को भरसक सहायता किया करता था। इसीलिए कई धनवान व्यक्ति उसके पास पुण्यार्जन के निमित्त धन भेजा करते थे और जिस दीन-दुखी को सहायता चाहिए होती थी वह उसके पास आया करता था।

फितना ने उसे अशर्फियों की थैली दे कर कहा कि इस धन को भी दीन-दुखियों के काम में लगा देना। दलाल ने उसके राजसी वस्त्राभरण देखे तो समझ गया कि यह खलीफा की पत्नी या प्रेयसी है। उसने सिर झुका कर कहा, सुंदरी, मैं तुम्हारी आज्ञा से बाहर नहीं हूँ किंतु अच्छा होगा कि आप अपने हाथों ही से यह पुण्य कार्य करें। आप यदि मेरे घर चलने का कष्ट करें तो बहुत अच्छा रहेगा। मेरे यहाँ दो स्त्रियाँ आई हैं जो अत्यंत दीन दशा में हैं।

वे कल ही इस नगर में आई हैं और यहाँ उनकी कोई जान-पहचान नहीं है। मैंने उन्हें इसलिए अपने घर में ठहराया है कि वे अत्यंत दयनीय दशा में थीं। उनके वस्त्र मैले-कुचैले और फटे-पुराने थे। धूप में चलने के कारण उनका रंग सँवला गया था और भूख-प्यास ने उनके शरीरों को अति दुर्बल कर दिया था और वे हड्डियों का ढाँचा भर रह गई थीं। मैंने उन्हें अपनी पत्नी के सुपुर्द कर दिया कि वह उनकी अच्छी तरह देखभाल करे। मेरी पत्नी ने उन्हें गरम पानी से नहलाया और सुखद शैय्या बिछवा कर उन्हें आराम करने को कहा और पहनने के लिए उचित वस्त्रादि दिए। उनकी ऐसी खराब हालत थी कि मैंने उनसे उनका हाल पूछना ठीक नहीं समझा। अब आप उचित समझें तो मेरे घर पधार कर उनका हाल पूछ लें।

दलाल ने अपने घर का पता बताया तो फितना ने अपना शाही टट्टू तुरंत उस ओर दौड़ा दिया। दलाल भी उसके साथ दौड़ने लगा। फितना ने कहा, आप इस प्रकार न दौड़िए। आप जैसे सज्जन व्यक्ति के साथ मैं यह व्यवहार नहीं करना चाहती। आप अपना एक दास मेरे साथ कर दीजिए और स्वयं बाद में धीरे-धीरे आइए। दलाल ने अपना दास साथ कर दिया और फितना दलाल के घर जा कर सवारी से उतरी। दास ने अंदर जा कर सूचना दी कि एक बादशाही महल की महिला मिलने आई है। दलाल की पत्नी यह सुन कर जल्दी से उठी कि घर के दरवाजे पर जा कर राजमहिषी का स्वागत करे। फितना ने इसका अवसर न दिया। वह स्वयं दास के पीछे-पीछे चल कर जनानखाने में आ गई। दलाल की पत्नी उसके पाँव चूमने को झुकी। फितना ने यह भी न करने दिया। उसका सिर उठा कर वह बोली, महाभागे, मैं उन दो परदेशी स्त्रियों को देखने आई हूँ जो कल आपके घर पर आई हैं। दलाल की पत्नी उसे ले कर आगंतुकाओं की चारपाइयों के पास आ गई।

फितना ने उनके पास जा कर कहा, देवियो, मैं आप लोगों का हाल-चाल पूछने और आपकी सेवा करने के लिए आई हूँ। वे स्त्रियाँ गनीम की माँ और बहन थीं। माँ ने फितना को आशीष दी, भगवान तुम्हें इस सत्कार्य का भरपूर फल दे। हम लोगों पर तो ऐसी आपदा पड़ी है जो कि भगवान शत्रु पर भी न डाले। यह कह कर वह रोने लगी। उसे रोते देख कर फितना और दलाल की पत्नी की आँखों में आँसू आ गए। फिर फितना ने कहा, माताजी, आप कृपया अपना वृत्तांत मुझे बताएँ, मैं भरसक आपकी सहायता करूँगी।

गनीम की माँ ने कहा, बेटी, खलीफा की प्रेयसी फितना हमारे दुर्भाग्य का कारण बन गई है। फितना यह सुन कर भी चुप ही रही और ध्यानपूर्वक प्रौढ़ा की बात ऐसे सुनने लगी जैसे फितना को जानती ही न हो। गनीम की माँ ने कहा, मैं दमिश्क के प्रसिद्ध व्यापारी स्वर्गीय अय्यूब की पत्नी हूँ। मेरा पुत्र गनीम व्यापार के लिए बगदाद आया था। वहाँ उस पर फितना को भगाने का आरोप लगाया गया और खलीफा ने उसके वध की आज्ञा दी। लेकिन वह न मिला तो खलीफा ने दमिश्क के हाकिम को आदेश दिया कि गनीम की माँ और बहन को तीन दिन बीच शहर में कोड़े मारे जाएँ और घर का सामान लुटवा दिया जाए और घर गिरवा कर जमीन के बराबर करवा दिया जाए। हाकिम ने ऐसा ही किया और तीन दिन तक हम माँ-बेटी को पिटवा कर दमिश्क से निकाल दिया। इस सब पर भी हम दोनों को अपने भाग्य से कोई शिकायत नहीं रहेगी अगर मेरा प्यारा बेटा हमें देखने को मिल जाए। खलीफा की प्रेयसी के कारण हम पर और हमारे पुत्र पर जो कुछ अन्याय हुआ है वह हम खुशी से और हमेशा के लिए माफ कर देंगे और हमें उससे पूरी सहानुभूति और पूरा प्यार हो जाएगा अगर हमारा प्यारा गनीम हमें मिल जाए।

फितना बोली, माताजी, मैं ही वह अभागी फितना हूँ जो तुम्हारे दुर्भाग्य का कारण बनी। किंतु मेरे दुर्भाग्य से आप लोगों की जितनी प्रतिष्ठा नष्ट हुई है भगवान चाहेगा तो उस से दुगुनी बनेगी और जो कुछ तुम्हारी धन हानि हुई है उसके बदले कई गुना धन तुम्हें मिलेगा। मेरी बात पर खलीफा ने विश्वास कर लिया है और मुनादी करवा दी है कि गनीम का अपराध क्षमा कर दिया गया और गनीम खलीफा के दरबार में हाजिर हो। माताजी, अब तुम धीरज रखो। खलीफा अब तुम लोगों से कुपित नहीं है। वह गनीम से मिलना चाहता है। वह चाहता है कि जो अन्याय उससे गनीम पर हुआ है उसका पूरा बदला उसे काफी इनाम-इकराम दे कर कर दे। उसने मुझ से यह भी कहा है कि गनीम आएगा तो मैं तेरा विवाह उसके साथ कर दूँगा। आज से तुम मुझे भी अपनी बेटी समझो।

गनीम की माँ यह सुन कर पहले तो स्तंभित रही फिर खुशी के आँसू बहाने लगी। उसने उठ कर फितना को गले लगा लिया और रोने लगी। फितना भी उस से चिमट कर रोने लगी। फिर गनीम की माँ के साथ अलकिंत के पास गई और उसे गले लगा कर प्यार किया। फिर उन दोनों को धीरज बँधाते हुए कहने लगी, यहाँ पर गनीम का जो कुछ धन था उसका नुकसान नहीं हुआ है। वह सुरक्षित है और तुम लोगों को पूरा का पूरा मिलेगा यद्यपि मैं जानती हूँ कि धन से तुम्हारी तसल्ली नहीं होगी क्योंकि तुम गनीम को पाना चाहती हो। भगवान ने चाहा तो वह भी तुम्हें आ मिलेगा। भगवान के लिए कोई बात कठिन नहीं है। जब उसने तुम पर इतनी अनुकंपा की है तो गनीम का तुम से आ मिलना क्या मुश्किल है।

यह लोग यह बातें कर ही रही थीं कि दलाल आ गया और बोला, कुछ देर पहले मैंने देखा कि एक ऊँटवाला एक निर्बल रोगी को कजावे में रस्सी से बाँध कर यहाँ के बड़े औषधालय में लाया है। मैंने और ऊँटवाले ने उसे ऊँट से कजावे समेत उतारा। हमने बहुत कुछ इसका हाल पूछा परंतु उसने रोने के सिवा और कोई जवाब नहीं दिया। मैंने उसे नितांत शक्तिहीन देखा तो यहाँ ले आया और उसे अपने बगलवाले मकान में उतारा। मैंने उसे साफ कपड़े पहनाए हैं और बाजार से उसके लिए परहेजी खाना मँगवाया है। खाना खा कर शायद उसे बोलने की ताकत आ जाए। फिर उनका हाल पूछ कर एक हकीम को लाऊँगा कि उसका ठीक इलाज हो सके।
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Jemsbond
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Re: अलिफ लैला की रहस्यमई कहानियाँ

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फितना ने यह सुना तो बोल उठी, महोदय, मुझे भी उस बीमार के पास ले चलिए क्योंकि मैं भी उस रोगी को देखना चाहती हूँ। दलाल फितना को वहाँ ले गया। गनीम की माता ने कहा, इस धर्मात्मा दलाल के पास दूर-दूर से दीन-दुखी आया करते हैं। बेटी, यह रोगी कहीं तुम्हारा भाई ही न हो। फितना जब उस मकान में पहुँची तो देखा कि एक नौजवान मरीज पलंग पर पड़ा है, उसके बदन की हड्डियाँ भर रह गई हैं, उसका चेहरा बिल्कुल पीला और भयानक हो गया है और उसकी आँखों से निरंतर आँसू बह रहे हैं। फिर भी हृदय की भावनाओं ने अनजाने ही जोर मारा तो उसके पास झपट कर पहुँची और गौर से देखा तो पहचाना कि यह गनीम ही है। वह रो कर कहने लगी, हाय गनीम, तुम्हारी यह दशा। गनीम ने आँखें खोलीं और ध्यान से उसे देख कर बोला, अरे सुंदरी, तुम यहाँ। और यह कह कर बेहोश हो गया।

अब दलाल आगे बढ़ा। उसने फितना से कहा, आप अभी यहाँ से हट जाइए। कहीं ऐसा न हो कि आपको देख कर हर्षातिरेक के मारे मर जाए। फितना चली गई तो दलाल ने गुलाबजल छिड़क कर गनीम को सचेत किया और उसे एक शक्तिवर्धक शर्बत पिलाया। वह होश में आया तो चारों ओर देख कर बोला, सुकुमारी, तुम कहाँ हो? तुम वास्तव में मेरे सामने आई थी या मैंने तुम्हें स्वप्न में देखा था? दलाल बोला, यह स्वप्न नहीं, सत्य था। अब मुझे मालूम हुआ कि तुम्हीं गनीम हो। खलीफा ने मुनादी करवाई है कि तुम्हारा अपराध क्षमा किया गया। तुम धैर्य रखो। तुम्हारी साथिन तुम्हें सब कुछ बताएगी। मैं तुम्हारे लिए भरसक प्रयत्न करूँगा।

फिर दलाल दवा आदि के लिए चला गया। इधर फितना गनीम की माँ और बहन के पास गई और उसने दोनों को बताया कि आगंतुक रोगी गनीम ही है। गनीम की माँ वह सुन कर अपनी खुशी न सँभाल सकी और बेहोश हो गई। दलाल भी दवा लेने के पहले किसी काम से वहाँ आया था। फितना और दलाल के प्रयत्न से वह होश में आई और कहने लगी कि मुझे तुरंत मेरे बेटे के पास ले चलो। दलाल ने उसे रोका और कहा, यह ठीक नहीं रहेगा। बहुत कमजोर है। तुम्हारी दशा देख कर उसे दुख होगा और उसकी हालत और खराब हो जाएगी। इसलिए तुम अभी उसके पास न जाओ। माँ ने यह बात मान ली।

फितना ने कहा, माता जी, चिंता न करें। मैं और आप साथ-साथ ही गनीम के पास चलेंगे। मैं इस समय विदा लेती हूँ। महल में जा कर मुझे खलीफा को गनीम के मिलने का समाचार भी देना है। यह कह कर वह खलीफा के महल की ओर चल दी। महल में जा कर उसने खलीफा के पास संदेश भिजवाया कि मैं तुरंत ही आपको एक महत्वपूर्ण संदेश एकांत में देना चाहती हूँ। खलीफा दरबार से उठ कर अंदर आया। फितना ने उसके पाँव चूम कर कहा, सरकार, गनीम और उसकी माँ-बहन सभी मिल गए हैं। खलीफा को यह सुन कर आश्चर्य और हर्ष हुआ। उसने कहा, भाई, तुमने तो कमाल कर दिया। कैसे उन लोगों का पता लगाया? फितना ने दलाल से मिलने और उसके घर जा कर पहले गनीम की माँ-बहन और फिर स्वयं गनीम से मिलने का हाल कहा और बताया कि यद्यपि दोनों महिलाएँ कठिनाइयों के कारण इस समय कृशगात हो रही हैं किंतु बड़ी सुंदर हैं। खलीफा ने मन में निश्चय किया कि उन्हें देखूँगा और उनके सारे अपमान की भरपाई कर दूँगा।

उसने फितना से कहा, मैं तुम्हें गनीम के साथ जरूर ब्याह दूँगा। अब तुम जाओ उन सब को यहाँ लाओ। दूसरे दिन सुबह फितना अधीरतापूर्वक दलाल के घर पहुँची और गनीम का हाल पूछा। दलाल ने कहा, क्षमादान की बात सुन कर उसकी दशा सँभल गई और अब उसे आपके वियोग के अलावा कोई कष्ट नहीं है। हाँ, वह यह लालसा रखता है कि शीघ्रातिशीघ्र आपको और अपनी माँ-बहन को, जिनका उल्लेख मैंने कर दिया है, देखे।

यह सुन कर फितना पहले अकेली ही गनीम के पास गई, उसकी माँ और बहन को उसने कमरे के बाहर ही छोड़ दिया और कहा कि मैं बुलाऊँ तब अंदर आना। फितना के साथ दलाल भी था। उसने कहा, दोस्त, यही वह सुंदरी है जिसे देख कर कल तुम अचेत हो गए थे और बाद में कह रहे थे कि शायद मैंने स्वप्न देखा है। अब इससे अच्छी तरह मिलो। गनीम ने फितना की ओर देखा और कहा, मेरी प्यारी मित्र, पहले तुम यह बताओ कि तुम महल छोड़ कर मुझसे मिलने किस तरह आई। मैं तो समझता हूँ कि खलीफा एक क्षण को भी अपने पास से जाने नहीं देता। उसने तुम्हें कैसे आने दिया? फितना ने कहा कि मैं खलीफा की पूर्ण अनुमति से यहाँ आई हूँ और उसने मुझसे यह भी वादा किया है कि तुम्हारे साथ मेरा विवाह करवा देगा।

गनीम यह सुन कर बहुत खुश हुआ और बोला, तुम सच कहती हो कि खलीफा तुम्हारा मेरे साथ विवाह करा देगा? क्या इतनी सुखदायी बात संभव है? फितना ने कहा, इसमें आश्चर्य की तो बात ही नहीं है। खलीफा ने तुम्हें मरवा देने की जो आज्ञा दी थी वह गलत संदेह के आधार पर थी। जब तुम उसके हाथ न लगे तो उसने दमिश्क के हाकिम को आदेश दिया कि दमिश्कवाला तुम्हारा घर खुदवा कर जमीन के बराबर करवा दिया जाए, तुम्हारी संपत्ति लुटवा दी जाए और तुम्हारी माँ और बहन को तीन दिन तक सड़कों पर कोड़े लगवा कर दमिश्क से निकलवा दिया जाए। बाद में जब उसे मुझ से मालूम हुआ कि उसके सम्मान के ख्याल से तुमने मुझसे संबंध स्थापित नहीं किया था तो वह अपने जल्दबाजी में लिए हुए अन्याय पर लज्जित हुआ और अब सोच रहा है कि जैसे भी हो सके अपने अन्याय का प्रतिकार करे।

गनीम ने विस्तार से अपनी माँ और बहन के बारे में पूछा। फितना ने बताया तो वह रोने लगा। फितना ने कहा, जो हो गया उसे भूल जाओ। अब रोने की जरूरत नहीं, तुम्हारी माँ और बहन यहीं हैं। गनीम ने कहा कि उन्हें अंदर क्यों नहीं लाती? फितना ने बुलाया तो दोनों अंदर दौड़ी आईं और गनीम को गले लगा कर देर तक रोती रहीं। दलाल ने उन सभी को धीरज बँधाया। फिर गनीम ने अपना पूरा हाल बताया। उसने कहा, खलीफा के भय से बगदाद से भाग कर मैं एक गाँव में जा कर छुपा रहा। वहाँ मैं बीमार हो गया। मैं मसजिद में असहाय पड़ा रहता। एक किसान को मुझ पर दया आई और वह मुझे उठा कर अपने घर ले गया। जहाँ तक उससे हो सका उसने मेरी दवा-दारू कराई। किंतु जब मेरा रोग बढ़ता ही गया तो उसने एक ऊँटवाले को किराया दे कर कहा कि इस रोगी को बगदाद के बड़े शफाखाने में पहुँचा दे जहाँ बड़े-बड़े हकीम इसका इलाज करेंगे। ऊँटवाले ने मुझे रस्सियों से कजावे से बाँध दिया क्योंकि मुझ में बैठने की शक्ति भी नहीं थी और मैं ऊँट से गिर जाता। इसके बाद फितना ने सविस्तार अपना हाल बताया कि किस तरह खलीफा ने उसकी काल्पनिक कब्र पर मातम किया, कैसे उसने महल में पत्र भिजवाया, कैसे वह कैद में डाली गई और फिर दुबारा कैसे खलीफा की निगाहों में चढ़ी। गनीम की माँ और बहन ने भी अपना हाल बताया। फिर फितना ने कहा, अब हम सभी को दयामय भगवान को धन्यवाद देना चाहिए कि हम सब पर मुसीबत डाल कर हमें उससे बाहर निकाला।

दो-चार दिन में गनीम का रोग पूर्णतः जाता रहा और फितना ने सोचा कि उसे खलीफा के सामने पेश किया जाए, लेकिन इसके लिए गनीम के पास उपयुक्त वस्त्र मौजूद नहीं थे।

फितना फिर महल में जा कर धन लाई और हजार अशर्फियाँ दलाल को दे कर कहा कि इससे गनीम और उसकी माँ और बहन के लिए राजदरबार में पहने जाने योग्य कपड़े सिलवा दो। दलाल को इन बातों का बहुत ज्ञान था। उसने बढ़िया रेशमी थान खरीदे और तीन दिन के अंदर होशियार दर्जियों से तीनों के लिए कपड़ों के कई जोड़े तैयार करवा दिए।

फिर फितना ने एक दिन खलीफा से इन लोगों की भेंट का निश्चित किया। उस दिन गनीम और उसकी माँ-बहन नए कपड़े पहन कर दलाल के घर में दरबार में बुलाने की प्रतीक्षा करती रहीं। खलीफा के आदेशानुसार मंत्री जाफर बहुत-से सैनिकों और सरदारों के साथ आया और गनीम का हाल-चाल पूछने के बाद उससे कहा कि मैं तुम्हें और तुम्हारी माँ-बहन को खलीफा के महल में ले जाने के लिए आया हूँ। अतएव गनीम एक बढ़िया घोड़े पर सवार हुआ और फितना ने उसकी माँ और बहन को पर्देदार कजावों में ऊँटों पर बिठाया और एक गुप्त मार्ग से दोनों स्त्रियों को महल में ले आई। गनीम को मंत्री अपने साथ बाजारों से होता हुआ लाया और दरबार में ले गया। दरबार पूरी शान से लगा था।

सारे सरदार और राजदूत उपस्थित थे। गनीम ने भूमि को चूम कर खलीफा को प्रणाम किया और खलीफा की प्रशंसा में एक स्वरचित कसीदा पढ़ा जिसकी सभी लोगों ने प्रशंसा की।

खलीफा ने कहा, गनीम, हम तुम्हें देख कर बहुत खुश हुए। हम चाहते हैं कि तुम हमारे सामने विस्तारपूर्वक बताओ कि तुमने हमारी प्रिय दासी के प्राण किस प्रकार बचाए।

गनीम ने वह सारा वृत्तांत सविस्तार सुनाया। खलीफा उसे सुन कर प्रसन्न हुआ और आज्ञा दी कि गनीम को भारी खिलअत (सम्मान, वस्त्राभरण) दी जाए। गनीम ने खिलअत पहन कर फिर सलाम किया और कहा, मालिक मैं चाहता हूँ कि आजीवन आपकी चरणसेवा में लगा रहूँ। खलीफा ने यह स्वीकार कर लिया और उसे अपना दरबारी बनाने के साथ एक उच्च पद पर आसीन भी कर दिया। इसके बाद वह दरबार खत्म करके महल में आ गया।

महल में आ कर उसने मंत्री को बुलाया और कहा कि गनीम को यहाँ ले आओ। उसने फितना को भी बुलाया और उससे कहा कि गनीम की माँ और बहन को यहीं ले आओ। दोनों स्त्रियों ने भूमिचुंबन करके खलीफा का अभिवादन किया। खलीफा ने कहा, मैंने तुम दोनों को बड़ा कष्ट दिया है किंतु अब उस की पूरी भरपाई कर दूँगा। जुबैदा ने फितना से जलन होने के कारण उसके साथ कमीनी हरकत की। उसका दंड यह है कि उसकी यह जलन और बढ़े। मैं गनीम की बहन से विवाह करूँगा। और उसे रानी का पद दूँगा जिससे वह जुबैदा के अधीन न रहे। गनीम की माँ, तुम्हारी उम्र अभी अधिक नहीं हुई, तुम हमारे मंत्री जाफर से विवाह कर लो। गनीम, तुम्हें फितना से प्रेम है और मैं इसका विवाह तुम्हारे साथ कराऊँगा। यह कह कर खलीफा ने काजी और गवाहों को बुलाया और तीनों निकाह वहीं पढ़वा दिए। गनीम इसी बात को बहुत समझता कि अलकिंत खलीफा की दासी बन जाए, किंतु खलीफा ने उसे रानी का दरजा दे दिया। इस पर गनीम फूला न समाया। खलीफा ने यह भी आज्ञा दी कि यह सारा वृत्तांत लिखवा कर शाही ग्रंथागार में रखा जाए और उसकी नकलें सारे बड़े देशों को भेजी जाएँ।

मलिका शहरजाद ने गनीम और फितना की कहानी समाप्त की तो दुनियाजाद ने इसकी बड़ी तारीफ की। शहरजाद ने कहा कि अगली कहानी इससे भी अच्छी है। शहरयार ने कहा, मैं भी अगली कहानी सुनना चाहता हूँ, लेकिन अब दिन निकल आया है। अगली कहानी कल सुनाना।
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अज्ञात

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पुराने जमाने में बसरा में एक बड़ा ऐश्वर्यवान और न्यायप्रिय बादशाह राज करता था। उसे सबकुछ प्राप्त था किंतु उसे बहुत दिनों तक कोई संतान नहीं हुई जिससे वह बहुत दुखी रहता था। नगर निवासी भी बादशाह के साथ मिल कर भगवान से प्रार्थना किया करते थे कि राजकुमार का जन्म हो। अंत में भगवान ने उन सब की बात सुनी और मलिका को गर्भ रहा और नौ महीने बाद उसके एक पुत्र पैदा हुआ। उसका नाम रखा गया जैनुस्सनम। बादशाह ने अपने राज्य के सभी प्रख्यात ज्योतिषियों को बुला कर आज्ञा दी कि शहजादे का भविष्य पूर्णरूपेण बताएँ। सबने उसकी जन्मपत्री अलग-अलग बनाई किंतु सब ने बाद में एकमत हो कर कहा कि यह शहजादा बड़ा साहसी और प्रतापवान होगा और अपनी पूर्ण आयु को भोगेगा किंतु इसके सामने जीवन में कई खतरे आएँगे। बादशाह ने कहा, इसमें तो चिंता की कोई बात नहीं है। जो साहसी होता है वह खतरों का सामना करता ही है। फिर बादशाहों का तो काम ही है कि खतरों से जूझें। यह खतरे और विपत्तियाँ ही बादशाहों को जीवन का मार्ग दिखाती हैं। तुम लोगों ने जी खुश करनेवाली भविष्यवाणी की है। यह कह कर बादशाह ने ज्योतिषियों को अच्छा इनाम दे कर विदा किया।

शहजादा बड़ा हुआ तो उसकी शिक्षा-दीक्षा के लिए प्रत्येक विषय के लिए योग्यतम गुणी नियुक्त किए गए। कुछ ही दिनों में वह प्रत्येक विद्या और कला में निपुण हो गया। किंतु बुढ़ापे की औलाद होने की वजह से वह लाड़ में कुछ बिगड़ भी गया और अपव्ययी हो गया। कुंछ समय के बाद उसका पिता रोगग्रस्त हुआ और कोई दवा उस पर प्रभावकारी न हुई। मरने के पहले उसने जैनुस्सनम को नसीहत की कि तुम निठल्ले और स्वार्थी लोगों की संगत से बचना और अपव्यय न करना और जैसा बादशाहों को शोभा देता है दंड और उदारता की नीतियों में संतुलन रखना। फिर बूढ़ा बादशाह मर गया। जैनुस्सनम ने निश्चित अवधि तक उस का मातम किया और फिर राजसिंहासन पर बैठा। अनुभव तो था नहीं, एकबारगी इतना कोष पाया तो दोनों हाथों से लुटाने लगा और भोग-विलास में प्रवृत्त हो गया। उसकी माँ ने बहुत समझाने की कोशिश की किंतु उसने उसकी बात अनसुनी कर दी। फलतः खजाना खाली हो गया। राज्य-प्रबंध चौपट हो गया और सैनिक नौकरी छोड़ने लगे।

अब उसकी समझ में आया कि कहाँ गड़बड़ हो गई। उसने अपने नौजवान मित्रों को उच्च पदों से हटा दिया और अनुभवी राज्य-प्रबंधकों को रखा। उन्होंने उसे उसकी भूलें बताई और किसी तरह राज्य-प्रबंध चलाए रखा किंतु अच्छी तरह राज्य संचालन के लिए धन की आवश्यकता थी और जैनुस्सनम रात-दिन इसी चिंता में रहने लगा कि धन कहाँ से प्राप्त किया जाए।

एक रात को उसने स्वप्न में देखा कि एक वृद्ध उससे मुस्कुरा कर कह रहा है - ओ जैनुस्सनम, तुम यह बात समझ लो कि हर रंज के बाद खुशी आती है और हर विपत्ति के बाद सुख मिलता है। इसलिए निराश न हो। यदि चाहते हो कि इस दुख से उबरो तो फौरन अकेले ही काहिरा चले जाओ जो मिस्र की राजधानी है। वहाँ तुम्हारा भाग्य जागेगा और तुम्हारे दुख दूर हो जाएँगे। जगने पर उसने अपनी माँ से सपने का हाल कहा और यह भी कहा कि मैं अपना भाग्य जगाने को काहिरा जाऊँगा। उसकी माँ ने समझाया, बेटे, सपने तो रोजाना ही दिखाई देते हैं और अजीब-अजीब दिखाई देते हैं, वे सच्चे थोड़े ही होते हैं। तुम्हें अकेले इतनी लंबी यात्रा नहीं करनी चाहिए। जैनुस्सनम जिद्दी तो था ही, कहने लगा, अम्मा, तुम कैसी बातें करती हो। ऐसे सपने गलत नहीं होते। बड़े-बड़े नबियों को महत्वपूर्ण बातें सपने ही में दिखाई दीं। मुझे जो वृद्ध सपने में दिखाई दिया वह कोई महान संत था, उसकी बात झूठी नहीं हो सकती। माँ ने उसे बहुत समझाना चाहा कि इस बेकार की खतरनाक यात्रा से बाज आए किंतु जब जैनुस्सनम कोई बात मन में ठान लेता था तो उसे पूरा ही करके छोड़ता था। उसने राज्य का प्रबंध अपनी माँ के सुपुर्द किया और स्वयं गुप्त रूप से महल से निकल कर काहिरा की ओर रवाना हो गया। उसने अपने साथ एक भी आदमी न लिया।

कई दिनों की जोखिम-भरी ओर कष्टदायी यात्रा करने के बाद वह काहिरा के सुंदर और विशाल नगर में जा पहुँचा। हारा-थका वह एक मसजिद के अंदर जा कर सो रहा। उसने फिर स्वप्न में उसी बूढ़े को देखा जो कह रहा था, मैंने तुम्हारा साहस देखने के लिए तुम्हें काहिरा बुलाया था। तुम इस परीक्षा में पूरे उतरे। तुम बड़े शक्तिशाली राजा बनोगे। तुम बसरा लौट जाओ। वहीं पर तुम्हें अपार धन राशि मिलेगी।

जैनुस्सनम जगा तो सोचने लगा कि इस बूढ़े ने मुझे अच्छा बेवकूफ बनाया, अगर बसरा ही में मुझे धन प्राप्ति होनी थी तो काहिरा तक क्यों दौड़ाया। उसने सोचा कि यह भी अच्छा हुआ कि यह बात मैंने अपनी माँ के सिवा किसी और से नहीं कहीं, नहीं तो सभी लोग मेरी मूर्खता पर हँसते। खैर, बेचारा फिर बसरा को चल पड़ा और कुछ दिनों में वहाँ कुशलतापूर्वक पहुँच गया। उसकी माँ को उसके इतनी जल्दी लौट आने पर आश्चर्य हुआ और उसने इसका कारण पूछा तो जैनुस्सनम ने काहिरा की मसजिद में देखे दूसरे सपने का हाल बताया। माँ ने उसे धीरज दे कर कहा, ठीक ही है बेटा, तुम्हें यहीं बसरा में यथेष्ट धन प्राप्त होगा।

रात को जैनुस्सनम ने फिर सपने में उसी बूढ़े को देखा। वह कह रहा था, सुनो जैनुस्सनम, अब वह समय आ गया है जब तुम्हें अतुलित धनराशि मिलनेवाली है। अब मेरी बात को ध्यान दे कर सुनो। तुम्हारे पिता ने पहले अमुक जगह महल बनवाया था और वहाँ रहते थे। फिर उन्होंने यह महल बनवाया। पुराने महल में कोई नहीं रहता था। तुम वहाँ एक फावड़ा ले कर अकेले जाओ और जमीन खोदना शुरू करो। थोड़ी देर बाद तुम्हें बड़ा खजाना मिलेगा।

जैनुस्सनम ने सुबह अपनी माँ को बताया कि रात को वही बूढ़ा फिर मेरे सपने में आया था और उसने यह कहा है। यह सुन कर उसकी माँ हँसने लगी। बोली, यह बूढ़ा भी अजीब है। दो बार सपने में आ कर उसने तुम्हें बेकार इधर से उधर दौड़ाया, अब तीसरी बार भी कुछ बकवास कर गया, जिसका कोई मतलब नहीं हो सकता। जैनुस्सनम ने कहा, अब तो मुझे भी उसकी बात पर विश्वास नहीं रहा है लेकिन यह अंतिम बार है जब उसकी बात मान रहा हूँ। इस बार भी कुछ हाथ न आया तो आयंदा उसकी बात पर ध्यान न दूँगा। माँ ने कहा, चलो, यह भी करके देख लो। इतना तो स्पष्ट है कि पुराने मकान का सहन खोदने में काहिरा की यात्रा से कम मेहनत है। जैनुस्सनम ने कहा, कुछ अजब भी नहीं कि इस बार उसकी बात ठीक निकले। माँ ने कहा, तुम जो चाहो करो, मैं तो अब भी कहती हूँ कि यह सब बेकार की बातें हैं।

जैनुस्सनम ने कुछ उत्तर दिया किंतु माँ से छुपा कर उसने पुराने महल को खोदना शुरू कर दिया। उसने लगभग एक गज गहरा गढ़ा खोद डाला लेकिन वहाँ एक पैसा भी नहीं निकला। वह यकायक बैठ गया और सोचने लगा कि मैं फिर मूर्ख बना। मेरी माँ को मालूम होगा तो बहुत हँसेगी और कहेगी कि लड़का पागल हो गया है, बेकार ही महल खोद कर खराब किया। कुछ देर सुस्ताने के बाद वह फिर उठा और खोदने लगा। अकस्मात उसका फावड़ा किसी कड़ी चीज पर पड़ा और उसने सँभल कर खोदा तो संगमरमर की एक चट्टान पाई। उसको हटाया तो उसके नीचे सीढ़ियाँ दिखाई दीं। उसने एक मोमबत्ती जलाई और उसके उजाले में सीढ़ियों से नीचे उतर गया। अंदर एक बड़ी दालान मिली जिसकी दीवारें चीनी मिट्टी की और छत बिल्लौर पत्थर की बनी थी और उसमें सीप की बनी हुई चार तिपाइयाँ रखीं थीं। हर तिपाई पर दस देंगें समाक पत्थर की बनी थीं। (समाक एक सफेद नरम पत्थर होता है।) पहले उसने सोचा कि देगों में उम्दा शराब होगी। लेकिन उसने एक देंग का ढक्कन खोला तो उसे अशर्फियों से भरा पाया। उसने और देंगें भी अशर्फियों से भरी पाईं।

अब उसने एक मुट्ठी अशर्फियाँ लीं और जा कर अपनी माँ को दिखाईं। वह यह देख कर बड़े आश्चर्य में पड़ी, फिर बोली, बेटे, भगवान ने तुम पर कृपा की है किंतु अब की बार इस धन को पहले की तरह न उड़ा देना। जैनुस्सनम ने कहा, विश्वास रखो, अब मैं तुम से पूछे बगैर कुछ भी खर्च नहीं करूँगा। फिर उसकी माँ ने कहा कि मैं भी उस जगह जा कर वह धन देखना चाहती हूँ।

जैनुस्सनम उसे ले गया। उसने अशर्फियों से भरी चालीस देंगें देखीं। फिर उसकी माँ ने इधर-उधर नजर दौड़ाई तो एक कोने में समाक पत्थर का बना हुआ एक और पात्र दिखाई दिया। जैनुस्सनम ने उसे खोल कर देखा तो उसमें सोने की बनी एक चाबी निकली। राजमाता ने कहा, निश्चय ही यहाँ कोई और खजाना है जिसकी चाबी यहाँ रखी है। वे लोग दालान में घूम कर देखने लगे कि चाबी कहाँ लग सकती है। ढूँढ़ते-ढूँढ़ते उन्हें दालान के एक ओर एक दरवाजा दिखाई दिया जिसमें ताला लगा था। उन्होंने उसमें वह चाबी लगाई तो ताला खुल गया। ताला खोल कर वे लोग अंदर गए तो एक विशाल कक्ष देखा। उसमें आदमी की कमर जितने ऊँचे नौ सोने के खंभे बने थे। आठ खंभों के ऊपर अलग-अलग मनुष्यों की हीरे की बनी मूर्तियाँ रखी थीं जिनके कारण वह कक्ष जगमग कर रहा था। जैनुस्सनम उन मूर्तियों का सौंदर्य देखता ही रहा गया। नवें खंभे पर कोई मूर्ति नहीं थी। उस खंभे पर एक सफेद रेशमी कपड़ा मढ़ा था जिस पर लिखा था, प्रिय पुत्र, यह आठों मूर्तियाँ अनुपम और अमूल्य हैं किंतु नवें खंभे के लिए जो मूर्ति है वह इससे भी बढ़ कर है। अगर तुम उसे भी प्राप्त करना चाहते हो तो काहिरा चले जाओ। वहाँ मेरा पुराना सेवक मुबारक रहता है। वह वहाँ का प्रसिद्ध आदमी है और तुम्हें उसका मकान बगैर दिक्कत के मिल जाएगा। मुबारक को जब मालूम होगा कि तुम मेरे पुत्र हो तो वह उस जगह ले जाएगा जहाँ से नवीं मूर्ति तुम्हें मिल सकती है।

यह पढ़ कर जैनुस्सनम और धन-दौलत को भूल गया और उसे नवीं मूर्ति प्राप्त करने की धुन सवार हो गई। उसने अपनी माँ से कहा, अम्मा, अब मैं नवीं मूर्ति पाए बगैर नहीं रह सकता। मैं फिर काहिरा जाऊँगा। उसकी माँ बोली, अब मैं तुम्हें कैसे रोक सकती हूँ। तुम ऐसे महान सिद्ध के आदेश पर काम कर रहे है जो सर्वज्ञ है। तुम्हें उसके आदेश के पालन से कोई हानि नहीं हो सकती। तुम राज्य-प्रबंध की भी चिंता न करो, मैं मंत्री की सहायता से सब सँभाल लूँगी। लेकिन अब तुम पहले की तरह अकेले न जाना। अब की बार तुम्हें अकेले जाने का आदेश भी नहीं दिया गया है।

चुनांचे दूसरे दिन जैनुस्सनम कुछ चुने हुए सेवकों को साथ ले कर काहिरा की ओर चल दिया। कुछ दिनों बाद वह वहाँ कुशलपूर्वक पहुँचा। वहाँ जा कर लोगों से बातचीत की तो मालूम हुआ कि मुबारक सचमुच ही वहाँ का विख्यात नागरिक है। बादशाह को उसका घर ढूँढ़ने में कोई कठिनाई नहीं हुई। उसका भवन विशाल था। दरवाजे पर आवाज लगाने पर एक नौकर ने द्वार खोला। जैनुस्सनम ने कहा, मैं परदेशी हूँ। तुम्हारे स्वामी की उदारता के बारे में बहुत कुछ सुना है। मैं चाहता हूँ कि उनका मेहमान बनूँ।
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Jemsbond
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Re: अलिफ लैला की रहस्यमई कहानियाँ

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नौकर ने अंदर जा कर अपने स्वामी को यह बताया और उससे आदेश पा कर जैनुस्सनम और उसके आदमियों को अंदर ले गया। जैनुस्सनम ने देखा कि वह मकान अंदर से और भी शानदार था। एक सजी हुई दालान में मुबारक उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। उसे देख कर मुबारक ने उठ कर सलाम किया और पूछा कि आप कौन हैं, कहाँ से आए हैं?

जैनुस्सनम ने कहा, तुमने मुझे पहचाना नहीं। मैं बसरा के स्वर्गवासी बादशाह का पुत्र जैनुस्सनम हूँ। मुबारक ने कहा, मैं तो स्वर्गवासी बसरा नरेश का क्रीतदास हूँ। लेकिन मैंने आपको नहीं देखा। आपकी उम्र कितनी होगी? जैनुस्सनम ने कहा कि मैं बीस वर्ष का हूँ। मुबारक ने कहा, ठीक है, मैं बाइस वर्ष पूर्व बसरा से यहाँ आया था। लेकिन फिर भी मैं आश्वस्त हो जाना चाहता हूँ कि आप उसी बादशाह के पुत्र हैं। क्या आप कोई बात ऐसी बता सकते हैं जिससे इस विषय में मेरी तसल्ली हो जाए।

जैनुस्सनम ने कहा, कुछ दिन पहले एक स्वप्न देख कर मैंने अपने पिता के पुराने महल में खुदाई की थी। मुझे उसमें अशर्फियों से भरी हुई चालीस देंगें मिलीं। मुबारक ने पूछा कि आपने इन देंगों के अलावा और कुछ देखा? जैनुस्सनम ने कहा, एक सोने की चाबी से मैंने एक दरवाजा खोला तो उस कक्ष में मैंने आठ स्वर्ण-स्तंभों पर रखी हुई मानवाकार हीरे की मूर्तियों को देखा। नवाँ खंभा भी सोने का था किंतु उस पर कोई मूर्ति नहीं थी। उस पर एक सफेद रेशमी कपड़ा मढ़ा था जिस पर मेरे पिता की हस्तलिपि में लिखा था कि नवीं मूर्ति सबसे अच्छी है और अगर तुम उसे पाना चाहो तो काहिरा में मुबारक के पास जाओ। मुबारक यह सुन कर उसके पाँव पर गिर कर बोला, निस्संदेह आप मेरे स्वामी हैं। मैं आपको इच्छित स्थान पर अवश्य ले जाऊँगा। किंतु अभी आप थके हैं, दो-चार दिन आराम करें। मैंने काहिरा के प्रमुख व्यक्तियों को भोज दिया है, आप भी वहीं चले। जैनुस्सनम ने सहर्ष यह स्वीकार कर लिया। मुबारक उसे भोज स्थान पर ले गया और स्वयंसेवकों की भाँति बादशाह जैनुस्सनम के पास खड़ा रहा। वहाँ उपस्थित लोग ताज्जुब से देखने और एक-दूसरे से पूछने लगे कि यह कौन है जिसकी मुबारक दासों की भाँति सेवा कर रहा है।

जब सब मेहमान खाना खत्म कर चुके तो मुबारक ने उनसे कहा, आप लोग आश्चर्य में होंगे कि मैं इस नवयुवक की इतनी सेवा क्यों कर रहा हूँ। आश्चर्य की कोई बात नहीं है। यह बसरा के बादशाह हैं मैं, इनके पिता का गुलाम था। वे मुझे मुक्त करने से पहले मर गए। अतएव अब मैं इनका गुलाम हूँ। यह अपने पिता के एकमात्र उत्तराधिकारी हैं। इस पर जैनुस्सनम ने कहा, मैं इस उपस्थित समूह के समक्ष घोषणा करता हूँ कि मैंने इन्हें अपनी दासता से मुक्त किया। सिर्फ एक बात, जो अभी मैंने इनसे कही है, इन्हें करनी पड़ेगी।

यह सुन कर मुबारक ने सिर झुका कर शाहजादे का आभार प्रकट किया। इसके बाद मदिरा का दौर चला। शाम तक सब लोग शराब पीते रहे, फिर मुबारक ने फल आदि दे कर सब को विदा किया। जैनुस्सनम ने रात भर आराम किया और दूसरे दिन कहा, भाई, अब मेरी यात्रा की थकन दूर हो गई है। मैं यहाँ घूमने नहीं बल्कि नवीं मूर्ति लेने आया हूँ। अब यह आवश्यक है कि उस काम के लिए चला जाए। मुबारक ने कहा, अच्छी बात है किंतु आपको एक बात जाननी जरूरी है। मार्ग में बहुत-सी भयोत्पादक बातें होंगी। यह आवश्यक है कि आप किसी बात से भय न खाएँ और किसी बात पर ध्यान न दें। नवयुवक बादशाह ने कहा, आप इत्मीनान रखें। मैं किसी भूत-प्रेत से न डरूँगा और जैसा आप कहेंगे वैसा ही करूँगा। वैसे भी मैं बादशाह हूँ, मुझे किसी बात से डरना नहीं चाहिए।

मुबारक यह सुन कर आश्वस्त हुआ। उसने अपने नौकरों को यात्रा की तैयारी का आदेश दिया। दूसरे दिन वे दोनों घर से चले। मार्ग के दर्शनीय स्थल देखते हुए वे लोग कई दिनों बाद एक बहुत सँकरे रास्ते से चलने लगे। मुबारक ने घोड़े और साथ के नौकर वहीं छोड़ दिए और आदेश दिया कि हम लोगों के लौटने तक तुम लोग यहीं हमारी प्रतीक्षा करना। अब वह जैनुस्सनम को ले कर पैदल चला। एक बार फिर उसने कहा, अब भयानक स्थान शुरू होता है। आप किसी अजीब से अजीब बात को देख कर भी डरिएगा नहीं। फिर वह उसे ले कर एक नदी के तट पर आ कर बैठ गया और बोला, इस नदी को पार करके हमें अपने उद्देश्य की प्राप्ति होगी।

जैनुस्सनम ने कहा, इतनी बड़ी नदी हम कैसे पार करेंगे? यहाँ तो कोई नाव भी नहीं है। मुबारक ने कहा, यहाँ अभी जिन्नों के बादशाह की भेजी हुई जादू की नाव आएगी। आप को मैं फिर चेतावनी देता हूँ कि उसका माँझी कैसा भी अजीब दिखे, आप एक शब्द भी न निकालें और न भयभीत हों। आप आश्चर्यवश हो कर उससे कुछ पूछताछ भी न करें। नाव पर चढ़ने के बाद एक शब्द भी आप के मुख से निकला कि तुरंत यह नाव अथाह जल में डूब जाएगी। जैनुस्सनम ने कहा, मैं बिल्कुल चुप रहूँगा। और भी जो बातें जरूरी हों वह आप मुझे बता दें ताकि मैं उनका ध्यान रखूँ।

वे लोग यह बातें कर ही रहे थे कि उन्होंने एक चंदन की नाव, जिसमें नीला रेशमी पाल लगा हुआ था, अपनी ओर आते देखी। उस बड़ी नाव का केवट एक माँझी था जिसका सिर हाथी का-सा था और शेष शरीर सिंह जैसा। नाव किनारे पर आई तो उसने एक-एक करके दोनों को अपनी सूँड़ से उठा कर नाव में बैठा दिया और पलक झपकते ही पार ले जा कर उसी प्रकार उन्हें दूसरे तट पर उतार दिया। फिर वह नाव अदृश्य हो गई। मुबारक बोला, अब हम लोग जिन्नों के देश में हैं। यहाँ की सुंदरता स्वर्गोपम है। देखिए, कैसे लहललाते खेत हैं जिनके चारों ओर सुंदर फूल और सब्जियाँ लगी हैं। फलदार पेड़ की शाखाएँ फलों के भार से धरती छू रही हैं। जगह-जगह सुंदर पक्षी कलरव कर रहे हैं।

जैनुस्सनम भी उस स्थान की शोभा देख कर मग्न हो गया। उसे लग रहा था कि उसकी रास्ते की सारी थकन उतर गई है, वह बहुत देर तक वहाँ की प्राकृतिक सुषमा का आनंद लेता रहा। फिर दोनों आगे बढ़े और एक दिशा में चलने लगे। काफी देर चलने के बाद वे एक किले के पास पहुँचे। यह किला हीरे से निर्मित था। किले के चारों ओर बड़ी गहरी और चौड़ी खाई थी। खाई और किले की दीवार के बीच लंबे और घने पेड़ थे जिन्होंने किले को लगभग छुपा रखा था। किले के मुख्य द्वार के सामने खाई पर बारह गज लंबा और छह गज चौड़ा सीपी का पुल बना हुआ था। मुख्य द्वार पर भयानक जिन्नों का पहरा बैठा था ताकि बादशाह की अनुमति के बगैर कोई अंदर न आ सके।

मुबारक वहीं ठहर गया। उसने जैनुस्सनम से कहा, अगर हम यहाँ से आगे बढ़े तो यह महाभयानक जिन्न हमें जीवित नहीं छोड़ेंगे। अब मैं हम दोनों की रक्षा के लिए मंत्र पढ़ूँगा जिससे यहाँ जिन्न हमारे समीप न आ सकें। यह कह कर मुबारक ने अपनी कमर से बँधा हुआ एक थैला खोला। उसमें चार पटके थे। उसने एक पटका अपनी कमर और दूसरा अपनी पीठ पर बाँधा। बाकी दो पटके उसने इसी तरह बाँधने के लिए जैनुस्सनम को दिए। फिर उसने जमीन पर दो चादरें बिछाईं। उन चादरों के कोनों और किनारों पर पत्थर रख कर उसने उन्हें स्थिर कर लिया। फिर वह जैनुस्सनम से बोला, अब मैं जिन्नों के बादशाह का आह्वान करता हूँ। उसी का यह किला है। अगर वह यहाँ किसी भयानक रूप में आएगा तो उसका मतलब यह होगा कि वह हमारे आने से प्रसन्न नहीं है और हम लोग बड़े दुख में पड़ जाएँगे। किंतु अगर वह मानवीय रूप में आया तो आप की कामना पूर्ण हो जाएगी। आप इस बात का ध्यान रखें कि वह चाहे जो रूप भी धर कर आए, उसे झुक कर सलाम करें किंतु किसी भी दशा में उस चादर या उन पटकों को अपने शरीर से अलग न होने दें। यह शरीर से अलग हुए कि आपका शरीरांत हो जाएगा। जिन्नों के बादशाह के आगमन पर आप यह कहें कि मेरे पिता का, जो आप का सेवक था, अब देहांत हो चुका है और जो कृपा आप मेरे पिता पर किया करते थे वह मुझ पर भी करें। जब वह पूछे कि मैं तुम पर कौन-सी कृपा करूँ तो आप कहें कि मुझे अपने महल के तहखाने के लिए नवीं मूर्ति भी दे दीजिए।

इस प्रकार मुबारक ने जैनुस्सनम को सारी बातें दुबारा समझाईं और फिर मंत्र पढ़ने लगा। कुछ ही देर में बड़े जोर से बादल गरजने लगा और ऐसा भयंकर शब्द हुआ कि जान पड़ता था कि जमीन फट जाएगी। जैनुस्सनम यह कांड देख कर बहुत डरा। उसने बाहरी तौर पर तो शांति रखी किंतु उसका दिल जोरों से धड़कने लगा। मुबारक ने उसकी यह दशा देखी तो बोला, अब आपको घबराने की जरूरत नहीं। जितनी भयानकता होनी थी हो ली। अब यह अँधेरा भी छँट जाएगा और उजाला हो जाएगा। ऐसा ही हुआ। कुछ ही क्षणों में बादल, बिजली सब गायब हो गए और प्रकाश फैल गया। उसके बाद जिन्नों का बादशाह एक सुंदर मनुष्य के रूप में प्रकट हुआ।

मुबारक के समझाने के अनुसार जैनुस्सनम ने खड़े हो कर झुक कर जिन्नों के बादशाह को सलाम किया। जिन्नों का बादशाह मुस्कुराता हुआ उसके समीप आया और बोला, मेरे बेटे, तुम्हारा स्वर्गीय पिता मेरा बड़ा घनिष्ठ मित्र था, मुझे उससे बड़ा स्नेह था। जब भी वह मेरे पास आता, मैं उसे हीरे की एक सुंदर मूर्ति भेंट में देता। वह उसे अपने साथ ले जाता। इस प्रकार मैंने उसे आठ मूर्तियाँ दीं। मैंने उससे यह भी कहा कि तुम नवीं मूर्ति के लिए भी स्वर्ण-स्तंभ बनवाओ और उस पर एक सफेद रेशमी चादर में अपने बेटे के लिए संदेश लिख कर छोड़ दो। तुमने वह संदेश पढ़ा और उसके अनुसार यहाँ आए हो। मैंने तुम्हारे पिता से प्रतिज्ञा की थी कि नवीं मूर्ति मैं जैनुस्सनम को दूँगा। नवीं मूर्ति सुंदरता में पहले की आठ मूर्तियों से कहीं अच्छी है। मैंने भी अपने प्रण के पालन हेतु वृद्ध के रूप में तुम्हें सपना दिया था और मैंने ही तुम्हारे पहले महल में छुपा हुआ खजाना तुम्हें दिलवाया था और तुमने अशर्फियों की देंगें पाईं और फिर अंदर के कमरे में जा कर उसे खोल कर तुमने स्वर्ण-स्तंभ पर स्थापित हीरक मूर्तियों को देख कर और फिर अपने पिता द्वारा लिखित संदेश को पढ़ा। मुझे मालूम है कि उस संदेश को पढ़ कर ही तुम मुबारक के साथ यहाँ आए हो।

उसके बाद जिन्नों के बादशाह ने कहा, तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूरी होगी और तुम्हें तुम्हारी वांछित वस्तु मिलेगी। अगर मैं तुम्हारे पिता से उसका वादा न करता तो भी नवीं मूर्ति तुम्हें ही देता। लेकिन उससे पहले तुम्हें मेरा एक काम करना होगा। तुम मेरे लिए एक कन्या लाओ। उसकी अवस्था पंद्रह वर्ष की होनी चाहिए। वह रूपवती भी हो और उसका हृदय भी निर्मल हो। किंतु मैं तुम्हें चेतावनी देता हूँ, तुम उसके साथ भूल कर भी दुष्कर्म न करना वरना तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। जैनुस्सनम ने कहा, मैं आपकी आज्ञानुसार आपके उपभोग के लिए एक पंद्रह वर्ष की कन्या जरूर लाऊँगा। किंतु कठिनाई यह है कि मैं उसका वाह्य सौंदर्य तो देख सकता हूँ किंतु उसके अंतःकरण का हाल मुझे किस प्रकार ज्ञात हो सकता है? हम मनुष्य एक- दूसरे के दिल का हाल नहीं जानते।

जिन्नों का बादशाह मुस्कुरा कर बोला, तुम बुद्धिमान हो। तुम्हारी बात ठीक है। तुम मनुष्य तो एक-दूसरे के दिल का हाल नहीं ही जानते, हम जिन्न लोग भी एक-दूसरे के दिल की बात नहीं जान पाते। लेकिन मैं तुम्हारी कठिनाई दूर करूँगा। मैं तुम्हें एक दर्पण दूँगा। इस आईने से तुम्हें हर एक कन्या के अंतःकरण का ज्ञान हो जाएगा। जब तुम्हें कोई पंद्रह वर्ष की सुंदरी मिले तो उसका रूप इस शीशे में देखना। यदि उसका अंतःकरण निर्मल होगा तो वह इस दर्पण में भी सुंदरी दिखाई देगी। किंतु अगर उसका हृदय मलिन होगा तो वह इसमें कुरूप दिखाई देगी। किंतु उसकी पवित्रता अक्षुण्ण रखने की जो शर्त मैंने रखी हैं मैं तुम्हें उसकी याद दिलाता हूँ। यह शर्त टूटी और तुमने उस कन्या को खराब किया तो मैं तुम्हारे प्राण ले लूँगा। इस बात में कोई रियायत नहीं होगी।

जैनुस्सनम ने कहा कि मुझे आपकी शर्त मंजूर है, मैं कन्या को आपके पास पवित्र स्थिति में लाऊँगा। जिन्नों के बादशाह ने वह जादुई शीशा उसे दे कर कहा, बेटे, अब जाओ। यही शीशा तुम्हारे भाग्य को चमकाएगा। जैनुस्सनम और मुबारक दोनों ने जिन्नों के बादशाह को प्रणाम किया और वह गायब हो गया। यह दोनों फिर नदी के तट पर आए जहाँ उस विचित्र माँझी ने उन्हें क्षण भर ही में दूसरे तट पर पहुँचा दिया। फिर वे उस जगह पर गए जहाँ उनके सेवक उनकी प्रतीक्षा में थे। वहाँ जा कर वे अपने घोड़ों पर सवार हुए और काहिरा पहुँच गए।

काहिरा में जैनुस्सनम ने कुछ दिनों तक आराम किया। तत्पश्चात मुबारक से कहा कि अब मैं जिन्नों के बादशाह के लिए कन्या ढूँढ़ने जाता हूँ। मुबारक ने कहा, इसके लिए बाहर जाना बेकार है। काहिरा में जितनी सुंदर कन्याएँ हैं उतनी संसार में कहीं नहीं। जैनुस्सनम ने कहा, आप की बात ठीक है किंतु काहिरा की सुंदरियाँ मिलें कैसे? मुबारक ने कहा, आप इसकी चिंता न करें। यहाँ एक बुढ़िया रहती है। वह सारे नगर की कन्याओं की खबर रखती है। मैं उसे बुला कर यह काम उसके सुपुर्द करता हूँ। मुझे आशा है कि वह बगैर किसी कठिनाई के आपकी वांछित कन्या ले आएगी। यह कह कर मुबारक ने उस बुढ़िया को बुलाया। वह महाधूर्त थी और कुटनीपन के काम में अति निपुण थी। उसने दो-चार दिन ही में बीसियों पंद्रह वर्ष की सुंदरियाँ ला कर खड़ी कर दीं। उन सब के चेहरे तो सौंदर्य में सूरज-चाँद को शरमाते थे किंतु जब जैनुस्सनम ने उनका रूप जादू के दर्पण में देखा तो हर एक को कुरूप पाया, एक भी लड़की ऐसी नहीं मिली जो उस दर्पण में सुंदर दिखाई देती।

अब तो मजबूरी में दूसरी जगह तलाश करना ही था। जैनुस्सनम और मुबारक दोनों बगदाद आए और एक बड़ा-सा मकान ले कर रहने लगे। वे बड़ी उदारता बरतते और रोजाना सैकड़ों आदमी उनके घर खाना खाते। उस मुहल्ले में मुराद नामक एक ईर्ष्यालु व्यक्ति रहता था जो प्रत्येक धनवान से जलता था क्योंकि वह स्वयं निर्धन था। वह जैनुस्सनम की उदारता का यश सुन-सुन कर कुढ़ता रहता था।

एक दिन शाम की नमाज के बाद मसजिद में बैठ कर मुराद ने मुहल्लेवालों से कहा - भाइयो, सुना है हमारी गली में एक आदमी रहने लगा है जो बेतहाशा धन लुटाता है। शहर में शायद ही कोई ऐसा आदमी हो जिसकी उसने सहायता न की हो। मुझे तो ऐसा मालूम होता है कि कोई चोर-डाकू है वरना उसके पास इतना धन कहाँ से आया। हम लोगों को सावधान रहना चाहिए। खलीफा को मालूम हुआ कि हमारी गली में कोई अपराधी रहता है तो हम सब भी जाएँगे। लोगों ने कहा, तुम ठीक कहते हो। हमें इस आदमी की शिकायत कोतवाल से कर देनी चाहिए। तुम खुद ही यह काम क्यों नहीं कर देते? मुराद बोला, अच्छी बात है। कल मैं ही कोतवाल से उसकी शिकायत करूँगा।

मुराद को पता नहीं था किंतु उन आदमियों के बीच मुबारक भी बैठा सारी बातें सुन रहा था। दूसरे दिन सुबह मुबारक एक थैली में पाँच अशर्फियाँ और कुछ रेशमी थान ले कर मुराद के घर गया। मुराद ने उसे देख कर कटु स्वर में पूछा, तुम कौन हो और यहाँ किस लिए आए हो? मुबारक ने अत्यंत विनम्रता से कहा कि हम दो परदेशी हैं जो आपके पड़ोस में रहने लगे। फिर उसने अशर्फियों की थैली और रेशमी थान उसे दे कर कहा, मेरे मालिक शहजादे ने आपकी सच्चरित्रता की ख्याति सुन कर मुझे आपके पास भेजा है और कहलवाया है कि यह तुच्छ भेंट स्वीकार करें, मुझे अपना सेवक समझें और अवसर मिले तो दर्शन दें।

यह सुन कर मुराद बिल्कुल पिघल गया। उसने कहा, शहजादे से कहिए कि मैं इस बात पर बड़ा लज्जित हूँ कि अभी तक आपकी भेंट को न आ सका। कल जरूर आऊँगा। फिर नमाज के बाद मसजिद में उसने मुहल्लेवालों से कहा, उस उदार व्यक्ति के बारे में मुझे भ्रम था। अब मुझे मालूम हुआ है कि वह चोर-डाकू नहीं बल्कि किसी देश का राजकुमार है। अब उसकी शिकायत कोतवाल से करने का कोई मतलब नहीं है। अन्य लोगों ने भी मुराद से सहमति प्रकट की।

दूसरे दिन मुराद अच्छे कपड़े पहन कर जैनुस्सनम के पास गया। जैनुस्सनम ने उसकी बहुत खातिर-तवाजो की। मुराद ने पूछा, आप इस नगर में किस उद्देश्य से आए हैं? जैनुस्सनम ने कहा, मैं एक पंद्रह वर्ष की अत्यंत रूपवती कन्या चाहता हूँ जिस का मन भी उतना ही निर्मल हो जितना उस का मुख। मुराद ने कहा, ऐसी कन्या का मिलना कठिन है किंतु मेरी जानकारी में एक ऐसी लड़की है। उसका पिता एक भूतपूर्व राज्य मंत्री है। उसने अपनी बेटी की संपूर्ण शिक्षा-दीक्षा खुद की है। वह कन्या अनिंद्य सुंदरी भी है। चाहेंगे तो उसका पिता उसका हाथ सहर्ष आपके हाथ में दे देगा। जैनुस्सनम ने कहा, लेकिन मैं उसे पहले खुद देखूँगा। मुझे शरीर के सौंदर्य के साथ मन का सौंदर्य भी चाहिए।

मुराद बोला, मुख दिखाने की बात मैं तय कर दूँगा किंतु आप उसके स्वभाव को कैसे जानेंगे? स्वभाव तो बहुत दिन साथ रहने पर ही जाना जाता है। जैनुस्सनम ने कहा, मैं किसी का मुख देख कर ही उसके मन की बात जान लेता हूँ। मुराद ने कहा कि मैं आज ही जा कर उस लड़की के पिता से बात करता हूँ। दूसरे दिन मुराद के साथ जा कर जैनुस्सनम कन्या के पिता से मिला। भूतपूर्व मंत्री ने जैनुस्सनम के परिवार आदि के बारे में पूछताछ कर अपनी पुत्री के विवाह की सहमति प्रकट की और पुत्री को बुला कर कहा, बेटी, दो क्षणों के लिए इन्हें अपना चेहरा दिखा दो।

लड़की ने चेहरे से नकाब उठाया तो जैनुस्सनम उसका रूप देख कर चकाचौंध हो गया और सोचने लगा कि यह तो मेरी ही हो कर रहे तो अच्छा हो। फिर उसने जादुई शीशे में उसका चेहरा देखा। दर्पण में भी वह पूर्ण सुंदरी दिखाई दी। यानी जैनुस्सनम को ऐसी ही लड़की मिल गई जैसी ढूँढ़ने वह निकला था। दोनों का विवाह तय हो गया। दो-चार दिनों में भूतपूर्व मंत्री ने काजी और गवाहों को बुला कर निकाह पढ़वा दिया। जैनुस्सनम ने लाखों के जेवर चढ़ावे में दिए और भूतपूर्व मंत्री ने भी भारी दहेज दे कर कन्या को विदा कर दिया।

जैनुस्सनम ने भी इस विवाह के उपलक्ष्य में बगदाद के प्रमुख व्यक्तियों को भोज दिया। फिर मुबारक ने उससे कहा कि अब हमें यहाँ रहने की आवश्यकता नहीं है, वापस काहिरा चलना चाहिए। जैनुस्सनम ने कहा, भाई, अब मेरा काहिरा जाने को जी नहीं चाहता। वहाँ जा कर अपनी पत्नी को मुझे जिन्नों के बादशाह को दे देना पड़ेगा। मैं चाहता हूँ कि उसे ले कर अपने देश चला जाऊँ और उसके साथ आराम से रहूँ। मुबारक ने कहा, ऐसी बात मन में भी न लाइए। याद रखिए कि जिन्नों के बादशाह से जो प्रतिज्ञा आपने की है उसे भंग किया तो वह आपको जीवित नहीं छोड़ेगा। आप अपनी पत्नी से संभोग करने के पहले ही काल के ग्रास बन जाएँगे। अब आपके लिए यही उचित है कि अपने चित्त को दृढ़ करें और अपनी इच्छाओं पर संयम रख कर इस कन्या को जिन्नों के बादशाह को सौंप दें। उसके प्रसन्न रहने ही में आपकी हर तरह भलाई हैं।

जैनुस्सनम ने कुछ देर विचार करके कहा, आप की बात बिल्कुल ठीक है। मैंने तय किया है कि इस कन्या के साथ शारीरिक संपर्क नहीं करूँगा। किंतु संभव है कि बाद में मेरा चित्त डाँवाडोल हो जाए। इसलिए आप इस कन्या को अपने जिम्मे रखें और रास्ते भर मुझे उसका मुँह न देखने दें। इसके बाद मुबारक ने यात्रा की तैयारी पूरी की और सारे साज-सामान के साथ काहिरा होते हुए जिन्नों के देश की ओर यह सब लोग चले। सुंदरी ने जब यह देखा कि मेरा पति मेरे सामने नहीं आता तो उसने एक दिन मुबारक से इस बारे में प्रश्न किया। मुबारक ने कहा, सुंदरी, तू अपने पति को कभी नहीं देख सकेगी। उसने तुझ से विवाह अपनी पत्नी बनाने के लिए नहीं बल्कि जिन्नों के बादशाह को देने के लिए किया था। वह तो तुम्हें बहुत चाहता है किंतु अगर उसने तुम्हें जिन्नों के बादशाह को न दिया तो उसके हाथ से मारा जाएगा। वह यह सुन कर रोने लगी और बोली, तुम लोग कयामत में खुदा को क्या मुँह दिखाओगे? तुम विवाह का ढोंग रचा कर मुझे जिन्नों के हाथों से मरवाने के लिए लाए हो। वे दोनों भी दुखी हुए किंतु कर ही क्या सकते थे।

जैनुस्सनम ने कन्या को जिन्नों के बादशाह को भेंट किया तो वह उसे देख कर बड़ा खुश हुआ और बोला, मैं तुम से बहुत खुश हूँ कि तुम मेरे लिए ऐसी अच्छी कन्या लाए। अब तुम तुरंत अपने देश जाओ। वहाँ तुम्हें तहखाने में नवें खंभे पर वांछित हीरक मूर्ति मिलेगी। जैनुस्सनम उससे विदा हो कर मुबारक के साथ काहिरा गया, फिर कुछ दिन वहाँ रह कर बसरा की ओर रवाना हुआ। इस सारे अरसे में वह अपनी सुंदरी पत्नी को याद करके रोता रहा जिसे उसने मरने के लिए जिन्नों के बादशाह को दे दिया था और वह भी उसके और उसके पिता के साथ छल कर के। सारे रास्ते शोकमग्न रह कर वह बसरा पहुँचा।

उसके मंत्री और सभासद उसकी वापसी पर बहुत खुश हुए। सब से मिलने-जुलने के बाद वह अपनी माँ के महल में गया और उसे यात्रा का पूरा वृत्तांत बताया और कहा कि बगदाद के भूतपूर्व मंत्री की पुत्री से विवाह करके उसे जिन्नों के बादशाह को दे आया हूँ। बुढ़िया ने अत्यंत प्रसन्न हो कर कहा, अब तुम्हें जरूर नवीं हीरे की मूर्ति मिल जाएगी। अब तुम उस जगह चलो जहाँ पहलेवाली आठ मूर्तियाँ हैं। जैनुस्सनम ने मुँह से तो कुछ न कहा किंतु मन में कहता रहा कि ऐसी सुंदर जीवित मूर्ति को खोने के बाद मैं मुर्दा मूर्ति ले कर क्या करूँगा। इसी कुढ़न को लिए हुए माँ के साथ तहखाने में आया। किंतु वहाँ जा कर देखा कि नवें खंभे पर हीरे के बदले एक सुंदरी खड़ी है। पास जा कर देखा तो वही कन्या थी जिससे उसने विवाह किया था।

जैनुस्सनम उसे देख कर स्तंभित रह गया। सुंदरी बोली, तुम्हें तो दुख हो रहा होगा कि इसे तो मैं मरने के लिए छोड़ आया था, यह फिर मेरे सिर पड़ गई। जैनुस्सनम ने कहा, भगवान ही जानता है कि तुम्हें छोड़ने का मुझे कितना दुख था। किंतु मैं वचनबद्ध था। और फिर इस बात का डर था कि वचन तोड़ने पर जिन्नों का बादशाह मुझे मार डालेगा। मैंने तो रास्ते में भी कई बार सोचा कि वचन तोड़ कर तुम्हें अपने महल में ले आऊँ, किंतु मेरे वयोवृद्ध मित्र ने मुझे इस बात से रोके रखा। मुझे नवीं मूर्ति की बिल्कुल चिंता नहीं थी किंतु मुबारक ने जिन्नों के बादशाह को नाराज करने से मुझे बाज रखा। अब मैंने तुम्हें बैठे ही पा लिया है। अब मुझे नवीं मूर्ति की तो क्या, सारे संसार के धन-दौलत और राजपाट की कोई परवाह नहीं है।

जैनुस्सनम की माँ आश्चर्य के साथ यह सब बातें देख-सुन रही थी कि अचानक एक घनघोर शब्द हुआ और सारा भवन हिलने लगा। जैनुस्सनम की माँ यह देख कर और घबराई और चीख पड़ी। इतने में जिन्नों का बादशाह मनुष्य रूप में प्रकट हुआ और जैनुस्सनम की माँ से बोला, मलिका, मैं तुम्हारे पुत्र से ही स्नेह रखता था। मैं इसे सफल बादशाह देखना चाहता था इसलिए मैंने तरह-तरह से इसके शौर्य, विनय, आत्मसंयम और प्रतिज्ञा-पालन की परीक्षा ली। यह सुंदरी और सच्चरित्र कन्या भी मैंने अपने लिए नहीं, वास्तव में तुम्हारे पुत्र के लिए चुनी थी। इसलिए मैंने इसे यहाँ पहुँचा दिया और यह लो, नवें खंभे पर लगाने के लिए यह हीरक मूर्ति भी लो। यह कह कर उसने खंभे पर हीरक मूर्ति लगाई और गायब हो गया। सब लोग बहुत खुश हुए और राज्य में कई दिनों तक बादशाह के विवाह का महोत्सव रहा।
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शहजादा खुदादाद और दरियाबार की शहजादी

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शहजादा खुदादाद और दरियाबार की शहजादी

उपर्युक्त कहानी के मध्य में एक यात्रा में जैनुस्सनम के दरियाबार देश मे जाने का भी उल्लेख है। वहाँ की एक चित्ताकर्षक कथा उस ने सुनी थी। वह कथा भी इस जगह कही जाती है।

हैरन नगर में एक बड़ा प्रतापी बादशाह था जिसे भगवान ने सब कुछ दे रखा था। किंतु उस के कोई संतान नहीं थी। एक रात को उसे सपने में दिखाई दिया कि एक दिव्य पुरुष उस से कह रहा है, उठ, भगवान तेरी मनोकामना पूरी करेगा। सुबह माली से अपने बाग का एक अनार मँगा कर खाना।

सवेरे नमाज पढ़ने के बाद उस ने माली से अनार मँगाया और उस में से निकले पचास दाने खाए क्योंकि उस की पचास रानियाँ थीं। इस के बाद वह एक-एक कर सभी के पास गया। ईश्वर की कृपा से एक रानी पीरोज के अलावा उस की सभी रानियाँ गर्भवती हो गईं। बादशाह को इस बात से बड़ी ग्लानि हुई। उसे विश्वास हो गया कि यह रानी बाँझ है। उस ने चाहा कि पीरोज का वध करवा दे किंतु उस के मंत्री ने उसे ऐसा करने से रोका और कहा कि संभव है वह भी गर्भवती हो किंतु उस में गर्भ के लक्षण प्रकट न हुए हों। बादशाह ने कहा, अच्छी बात है। मैं इसका वध नहीं कराऊँगा किंतु इसे अपने पास नहीं रहने दूँगा। मंत्री ने कहा, ठीक है। उसे आप अपने भतीजे सुमेर के पास, जो समारिया देश का हाकिम है, भेज दीजिए।

अतएव बादशाह ने पीरोज को समरिया भेज दिया और साथ ही अपने भतीजे को पत्र लिखा कि हम अपनी रानी को तुम्हारे पास भेज रहे हैं। यदि उस के कोई पुत्र पैदा हो तो मुझे खबर देना। समरिया में दिन पूरे होने पर पीरोज ने एक पुत्र को जन्म दिया। सुमेर ने सूचना भिजवाई कि रानी के पुत्र हुआ है। बादशाह यह सुन कर खुश हुआ किंतु उस ने पीरोज को वापस नहीं बुलाया। उस ने सुमेर को लिखा कि यहाँ भी भगवान की दया से उनचास रानियों के पुत्र हुए हैं, तुम पीरोज के पुत्र का नाम खुदादाद रखो, उस की पैदायश की सारी रस्में करो और उस की अच्छी शिक्षा का प्रबंध करो, हम यहाँ से उस का सारा खर्चा भेजेंगे।

सुमेर नवजात शिशु का पितृवत पालन करने लगा। जब खुदादाद बड़ा हुआ तो उसे बाण-विद्या, घुड़सवारी और तत्कालीन सारी विद्याओं, कलाओं की शिक्षा प्रवीण शिक्षकों से दिलाई गई और वह सारी विद्याओं में पारंगत हो गया। अठारहवाँ वर्ष लगते उस का रूप और शरीर ऐसा निखरा कि वह संसार का सबसे रूपवान पुरुष लगने लगा। उस में जवानी का जोश उभरा तो उस ने अपनी माँ से कहा, अगर तुम अनुमति दो तो मैं समरिया से निकल कर अपने बल की परीक्षा लूँ। मेरे पिता हैरन नरेश के बहुत-से शत्रु हो गए हैं। चारों ओर के बादशाह भी हैरन पर आक्रमण करना चाहते हैं। आश्चर्य है कि ऐसे कठिन समय में भी मेरे पिता ने मुझे क्यों नहीं बुलाया और मेरे शौर्य का उस ने लाभ क्यों नहीं उठाया। फिर भी मेरा घर बैठना उचित नहीं है। मेरे पिता ने मुझे नहीं बुलाया तो न सही, मुझे चाहिए कि मैं स्वयं ही उस की सेवा में उपस्थित हूँ। माँ ने उस से कहा, यह तो ठीक है कि देश को शत्रुओं का भय हो तो तुम्हें घर पर नहीं बैठना चाहिए। किंतु तुम अभी प्रतीक्षा करो। शायद वह तुम्हें बुला भेजे। बगैर बुलाए तुम्हारा जाना ठीक नहीं है।

खुदादाद ने कहा, जब राज्य पर ऐसा संकट पड़ा हो तो बुलावे की प्रतीक्षा करना बेकार बात है। मुझे इस समय इतनी बेचैनी हो रही है कि यदि मैं तुरंत अपने पिता की सेवा में उपस्थित नहीं होता तो शायद जीवित ही न रह सकूँगा। मैं वहाँ अपनी वास्तविकता प्रकट ही नहीं करूँगा। मैं अपने को परेदशी बताऊँगा ओर उस की सेवा करूँगा। मैं तभी यह बात बताऊँगा कि मैं उस का पुत्र हूँ जब वह मेरे शौर्य से प्रभावित हो जाएगा। फिर तो नाराजगी की बात न रहेगी।

किंतु उस की माँ ने उसे जाने की अनुमति नहीं दी। इस पर वह कुछ दिनों बाद एक सफेद घोड़े पर सवार हो कर शिकार के बहाने निकला और अपने साथ कुछ विश्वस्त साथी भी ले लिए। कुछ ही दिनों में वे सब हैरन पहुँच गए। खुदादाद ने बादशाह के दरबार में प्रवेश पा लिया और जा कर उसे फर्शी सलाम किया। बादशाह ने उस का वैभव और व्यवहार देख कर उसे कृपापूर्वक अपने पास बुलाया और उस का परिचय पूछा। खुदादाद ने कहा, मैं काहिरा नगर का निवासी हूँ और एक अमीर का बेटा हूँ। मैं संसार भ्रमण के लिए अपने देश से निकला हूँ। मैं ने सुना है आप को शत्रुओं ने परेशान कर रखा है। अनुमति हो तो आप के लिए रणक्षेत्र में पदार्पण करूँ। बादशाह इस बात से बड़ा खुश हुआ और उसे अपनी निजी सेना का मुख्य अधिकारी बना दिया।

खुदादाद ने कुछ ही दिनों में उस सेना को सज्जित और शिक्षित कर दिया और उस के नायकों को भी पारितोषिक और सम्मान दे कर प्रसन्न कर दिया। मंत्रिगण भी उस के व्यवहार से मुग्ध हो गए। दरबार में उस का सम्मान सारे शहजादों और सरदारों से अधिक होने लगा। उस पर बादशाह की कृपा अधिकाधिक हो गई। उस ने सेना का विस्तार और सुप्रबंध किया। यह देख कर राज्य के शत्रुगण भी बगैर लड़े अपने देशों को खिसक गए। बादशाह ने अपने बेटों के प्रशिक्षण का भार भी खुदादाद पर डाल दिया। यद्यपि वह अपने भाइयों में सबसे छोटा था तथापि सब का अधिष्ठाता हो गया। इस बात से शहजादे उस से और भी जलने लगे। वे आपस में कहने लगे कि हमारे बूढ़े पिता को जाने क्या हो गया है कि इस परदेशी को इतना चाहने लगा है कि हम सब पर उस का आदेश चलवा दिया है। उन्होंने एक मत से कहा कि यह स्थिति असह्य है।

वे सलाह करने लगे कि इस परदेशी का क्या किया जाए। एक ने राय दी कि इसे अकेला पा कर मार डालेंगे। एक अन्य शहजादे ने कहा कि यह ठीक नहीं है, यह बात छुपी न रहेगी और बादशाह हमें कठोरतम दंड देगा। अंत में एक शहजादे की बात सब को सबको पसंद आई। उस की राय थी कि हम लोग इस से शिकार खेलने की अनुमति लें और इस बहाने निकल कर किसी दूर देश को चले जाएँ, इस से हमारे पिता को चिंता होगी और वह खुद ही इसे मरवा डालेगा। इस उपाय पर सारे शहजादे एकमत हो गए और इस योजना को पूरा करने की तैयारी करके लगे। फिर एक दिन उन्होंने खुदादाद से कहा कि हम कल शिकार के लिए जाना चाहते हैं, शाम तक वापस आ जाएँगे। खुदादाद ने अनुमति दे दी। वे लोग तो फिर लौटे ही नहीं। तीसरे दिन बादशाह ने खुदादाद से पूछा कि शहजादे दिखाई नहीं देते, वे कहाँ चले गए।

खुदादाद ने कहा, सरकार, यह सेवक स्वयं इस चिंता में है। वे मुझ से शिकार की अनुमति ले कर गए थे। आज तीसरा दिन है उनका पता नहीं है। बादशाह को भी चिंता हुई। वह रोज खुदादाद से उनका हाल पूछता और वही उत्तर पाता। अंत में एक दिन उस ने क्रोध में आ कर खुदादाद से कहा, परदेशी, तूने इतना साहस कैसे किया कि शहजादों को शिकार पर भेज दिया और खुद उन के साथ नहीं गया। अब खैरियत इसी में है कि तू खुद उनकी खोज में जा और जहाँ भी मिलें उन्हें ले कर आ। तू उन्हें न लाया तो तेरा सिर उतरवा दूँगा।

खुदादाद बादशाह के क्रोध से डर गया और कुछ धन ले कर घोड़े पर सवार हो कर चला गया। वह नगर-नगर और गाँव-गाँव उन्हें तलाश करता रहा किंतु वे कहीं नहीं मिले। वह अक्सर विलाप किया करता और कहता, मेरे भाइयो, तुम लोग कहाँ हो? तुम किसी दुश्मन के हाथ में तो नहीं पड़ गए? जब तक तुम नहीं मिलते मैं हैरन वापस नहीं जा सकता और तुम्हारा कहीं पता नहीं है। अब उस ने बस्तियों को छोड़ कर जंगलों में उन्हें ढूँढ़ना शुरू किया। इसी खोज में वह एक गहन वन में जा पहुँचा। उस में काले पत्थर का एक विशाल भवन बना हुआ था। वह जा कर उस महल के नीचे खड़ा हो गया और ऊपर देखने लगा। काफी ऊँचे पर एक खिड़की खुली और एक अत्यंत सुंदर स्त्री, जिसके बाल बिखरे और वस्त्र मैले और फटे थे, धीरे-धीरे कुछ कहने लगी। खुदादाद ने कान लगा कर सुना। वह कह रही थी, ओ मुसाफिर, यहाँ से फौरन भाग जा, नहीं तो इस भवन का स्वामी तेरी दुर्दशा कर डालेगा। वह महाविकराल नरभक्षी हब्शी है। उस के पंजे में फँसा हुआ आदमी बचता नहीं। वह परदेशियों को पकड़ लाता है, उन्हें एक अँधेरे तहखाने में बंद कर देता है, फिर उन्हें एक-एक करके भून कर खाता है। खुदादाद ने पूछा, तुम कौन हो? स्त्री बोली, मैं काहिरा की रहनेवाली हूँ। बगदाद जा रही थी। इस वन से निकल रही थी कि यही हब्शी आ गया। इस ने मेरे सेवकों को मार डाला और मुझे इस जगह बंद कर दिया। वह मुझ से भोग करना चाहता है किंतु मैं बचती रही हूँ। आज मैं ने उस की बात नहीं मानी तो वह मुझे मार डालेगा। मैं उस का साथ करने से मर जाना पसंद करती हूँ। किंतु तुम क्यों जान देना चाहते हो? तुम भाग जाओ। वह भटके हुए मुसाफिरों को ढूँढ़ने गया है ताकि अपनी खाद्य सामग्री बढ़ाए। वह आता ही होगा। उस की दृष्टि तीक्ष्ण है, वह बहुत दूर से देख लेता है। तुम चले जाओ।

सुंदरी खुदादाद से यह सब कह ही रही थी कि वह राक्षस जैसा मनुष्य आ पहुँचा। वह पर्वताकार लगता था और बहुत ऊँचे तुरकी घोड़े पर बैठा था। उस की तलवार इतनी भारी थी कि उस के अलावा किसी और से उठ ही नहीं सकती थी और उस की गदा कई मन की थी। खुदादाद उसे देख कर डर गया और ईश्वर से प्रार्थना करने लगा कि इस राक्षस से बचा। हब्शी ने उसे तलवार निकाले देखा किंतु उसे तुच्छ जान कर अपने हथियार न सँभाले बल्कि चाहता था कि वैसे ही उसे हाथों से पकड़ ले। यह देख कर खुदादाद ने घोड़ा बढ़ाया और उस के घुटने पर एक तलवार की चोट की। घाव खा कर हब्शी ने घोर गर्जन किया और अपनी भारी तलवार निकाल कर खुदादाद पर चलाई। खुदादाद पैंतरा बदल कर बच गया वरना वहीं खीरे की तरह कट जाता। अब खुदादाद ने अपनी गदा इस कौशल और ऐसे कोण से चलाई कि हब्शी का हाथ ही कट कर गिर गया और वह घोड़े से नीचे आ रहा। खुदादाद झपट कर पहुँचा और अपनी तलवार से हब्शी का सिर उस के शरीर से अलग कर दिया।

वह सुंदरी खिड़की से यह युद्ध देख रही थी और भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि खुदादाद को विजयी बनाए। हब्शी की मृत्यु देख कर खुशी से फूली न समाई और पुकार कर कहने लगी, भगवान की बड़ी दया हुई। अब तुम इसकी कमर से चाबियों का गुच्छा लो और ताला खोल कर मेरे पास आओ।

वह विशाल हब्शी किले की सारी कुंजियाँ अपने पास ही रखा करता था। खुदादाद उस के पास आया। वह सुंदरी उस के पैरों पर गिरने को उद्यत हुई किंतु खुदादाद ने उसे बीच ही में उठा लिया। सुंदरी उस की प्रशंसा करने लगी और बोली कि मैं ने तुम्हारे जैसा वीर पुरुष और कोई नहीं देखा। खुदादाद ने उसे अभी तक दूर से देखा था, पास से देखा तो पहले की अपेक्षा वह कहीं अधिक सुंदर दिखाई दी। वे दोनों बैठ कर बातें करने लगे।

वे दोनों बातें कर ही रहे थे कि एक ओर से चिल्लाने का शब्द सुनाई दिया। खुदादाद ने पूछा, यह आवाज कहाँ से आ रही है और उस का क्या मतलब है? सुंदरी ने कमरे के एक ओर बने हुए दरवाजे की और उँगली उठाई, यानी इशारे से बताया कि आवाज इस दरवाजे के पीछे से आ रही है। और पूछने पर वह बोली, यहाँ एक बड़ा-सा कमरा है। उस हब्शी ने यहाँ बहुत-से मनुष्य कैद कर रखे हैं। नए लोगों को ला कर वह यहीं रखता था और प्रतिदिन वहाँ जा कर एक मनुष्य को चुन कर बाहर लाता था और भून कर खा जाता था।

खुदादाद ने कहा कि मैं उन्हें इस कैद से छुड़ाना चाहता हूँ। वे दोनों उस दरवाजे के पास गए और विभिन्न कुंजियाँ लगा-लगा कर उसे खोलने का प्रयत्न करने लगे। कई कुंजियाँ लगने से ताला देर तक खड़खड़ाता रहा। अंदर से आनेवाली चीख-पुकार और बढ़ गई। खुदादाद को इस बात पर आश्चर्य हुआ कि यह रोना-पीटना क्यों बढ़ गया है। सुंदरी ने कहा कि ताला खड़खड़ाने से वे समझते हैं कि हब्शी आया है और उनमें से किसी को ले जाएगा। उनकी आवाज भी ऐसी थी जैसे किसी गहरे कुएँ के अंदर से आ रही हो। ताला खुलने पर एक लंबा जीना दिखाई दिया। वे उत्तर कर नीचे गए तो देखा कि एक तंग अँधेरी जगह में सौ के लगभग आदमी पड़े हैं जिनके हाथ-पाँव बँधे हैं। खुदादाद बोला, मित्रो, अब भय त्याग दो। भगवान की दया से मैं ने तुम्हारे शत्रु हब्शी को मार डाला है। वे यह सुन कर बड़े खुश हुए।

खुदादाद ने उन के बंधन खोलने शुरू किए। जिनके बंधन खुलते थे वे औरों के भी खोलने लगते थे। इस प्रकार अल्प समय ही में सारे लोग मुक्त हो गए। तहखाने से बाहर निकल कर सबने खुदादाद के पाँव चूमे और उसे आशीर्वाद देने लगे। जब वे महल के बाहर खुले प्रकाश में आए तो खुदादाद ने देखा कि उनमें उस के वे सभी भाई हैं जिन्हें वह ढूँढ़ने निकला था। उस ने कहा, भगवान की बड़ी अनुकंपा है कि तुम लोग सही-सलामत हो। तुम्हारे पिता तुम्हारे वियोग में अति कातर हो रहे हैं। तुम लोगों में से तो कोई राक्षस के पेट में नहीं गया? यह कह कर उस ने उन्हें गिना और शेष समूह से अलग कर दिया। सारे शहजादे एक-दूसरे के गले मिले।

खुदादाद ने सुंदरी से पूछ कर हब्शी के भंडार-गृह का पता लगाया और सब लोगों को भरपेट भोजन कराया। उस ने यह भी देखा कि गोदामों में तरह-तरह की मूल्यवान वस्तुएँ, रत्न, सुगंधियाँ, रेशनी थान, मखमल आदि के ढेर लगे हैं। यह माल हब्शी ने व्यापारियों से लूटा था जिन्हें वह तहखाने के लिए पकड़ लाता था। उस गोदाम में सारे मुक्त बंदियों को ले जा कर खुदादाद ने कहा कि अपना-अपना माल उठा लें। सबने अपनी-अपनी गठरियाँ लीं तो खुदादाद ने शेष वस्तुओं में से भी अधिकांश उन्हें बाँट दीं। किंतु उस ने कहा कि इस सुनसान वन में से तुम लोग इन चीजों को ले कैसे जाओगे। उन्होंने कहा, यह हब्शी हमारे ऊँट और खच्चर भी पकड़ लाता था। वे कहीं बँधे होंगे।

खुदादाद पशुशाला में गया तो उस ने सैकड़ों ऊँटों और खच्चरों के अलावा शहजादों के घोड़े भी बँधे देखे। उनकी रखवाली हब्शी सेवक करते थे। वे सब इन बंदियों को छूटा देख कर समझ गए कि हमारा हब्शी मालिक मारा गया। वे सब जान बचा कर इधर- उधर भाग गए। खुदादाद ने उन्हें जाने दिया। फिर खुदादाद ने उस सुंदरी से कहा, तुम्हें यह हब्शी कहाँ से लाया था? हम तुम्हें वहीं पहुँचा देंगे। यह हैरन के शहजादे तो तुम्हारे देश को जानते ही होंगे, वही तुम्हें पहुँचा देंगे।

लड़की बोली, यह मैं पहले ही बता चुकी हूँ कि मैं काहिरा की रहनेवाली हूँ। तुमने मेरी जान और इज्जत बचाई, इस के लिए तुम्हारी अति आभारी हूँ। मैं अपना और हाल क्या बताऊँ। बस इतना काफी है कि मैं भी एक शहजादी हूँ। एक दुष्ट ने मेरे पिता को मार डाला और उस के देश को लूट लिया। मैं वहाँ से भागी और यहाँ आ कर इस राक्षस जैसे हब्शी के हाथ पड़ गई। इस पर खुदादाद तथा अन्य शहजादों ने जोर दिया तो वह अपना विस्तृत वृत्तांत इस प्रकार बताने लगी।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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