भूत प्रेतों की कहानियाँ

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भूत प्रेतों की कहानियाँ

Post by xyz »

दोस्तो मैं इस फोरम पर काफी दिनो से कहानियाँ पढ़ रहा हूँ और मुझे यहाँ बहुत अच्छी अच्छी कहानियाँ पढ़ने को मिली हैं
तो मैं भी यहाँ पर भूत प्रेतों की कहानियाँ पोस्ट करने जा रहा हूँ दोस्तो ये सिर्फ़ मेरा नेट कलक्शन है ये कहानियाँ मैने नही लिखी है और ये कलक्शन मैं आपके साथ शेअर कर रहा हूँ दोस्तो हो सकता है आपने कुछ कहानियाँ पढ़ी हों पर जिन्होने नही पढ़ी ये उन सब के लिए हैं



दोस्तो इन घटनाओ को सिर्फ़ मनोरंजन स्वरूप मे लें मेरा कोई दावा नही है कि ये घटनाए सच हैं
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xyz
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Re: भूत प्रेतों की कहानियाँ

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गुना मध्य प्रदेश की एक घटना-वर्ष २०१०


संध्या का समय हो चुका था लगभग, सूर्य अपने अस्तांचल में प्रवेश करने की तैयारी करने ही वाले थे, पक्षी आदि अपने अपने घरौंदों की ओर उड़ रहे थे, कुछ एकांकी और कुछ गुटों में! लोग-बाग़ कुछ पैदल और अपनी अपनी साइकिल पर चले जा रहे थे आगे खाली खाने के डब्बे बांधे और कुछ भाजी-तरकारी लिए, सवारी गाड़ियों में जिसे यहाँ के निवासी आपे कहते हैं, भरे पड़े थे खचाखच! कुल मिलकर लग रहा था की दिवस का अवसान हो चुका है और और अब रात्रि के आगमन की बेला आरम्भ हो चुकी है! सड़क किनारे खड़े खोमचे अब प्रकाश से जगमगा उठे थे, सड़क किनारे एक सरकारी शराब के ठेके पर खड़े वाहन गवाही दे रहे थे कि मदिरा-समय हो चुका है! उधर ही आसपास कुछ ठेलियां भजी खड़ी थीं जिन पर ठेके से सम्बंधित वस्तुएं ही बेचीं जा रही थीं, गिलास, नमकीन, उबले चने इत्यादि! तभी हामरी गाड़ी चला रहे क़य्यूम भाई ने भी गाड़ी उधर ही पास में उसी ठेके के पास लगा दी, थोड़ी सी आगे-पीछे करने के बाद गाड़ी खड़ी करने की एक सही जगह मिल ही गयी, सो गाड़ी वहीँ लगा दी गयी, गाड़ी का इंजन बंद हुआ और हम दरवाजे खोल कर बाहर आये, ये गाड़ी जीप थी, क़य्यूम भाई ने नई ही खरीदी थी और शायद पहली बार ही वो शहर से इतनी दूर यहाँ आई थी!
हम बाहर उतरे तो अपनी अपनी कमर सीधी की, आसपास काफी रौनक थी, ये संभवतः किसी कस्बे का ही आरम्भ था, मदिरा-प्रेमी वहीँ भटक रहे थे, कुछ आनंद ले चुके थे और अब वापसी पर थे और कुछ अभी अभी आये थे जोशोखरोश के साथ!
"क्या चलेगा?" क़य्यूम भाई ने पूछा,
मै कुछ नहीं बोला तो क़य्यूम भाई की निगाह शर्मा जी की निगाह से टकराई, तो शर्मा जी ने मुझसे पूछा, "क्या लेंगे गुरु जी?"
"कुछ भी ले लीजिये" मैंने कहा,
"बियर ले आऊं?" क़य्यूम भाई ने पूछा,
"नहीं, बियर नहीं, आप मदिरा ही ले आइये" मैंने कहा,
क़य्यूम भाई मुड़े और चल दिए ठेके की तरफ!
"अन्दर बैठेंगे या फिर यहीं गाड़ी में?" शर्मा जी ने मुझ से पूछा,
"अन्दर तो भीड़-भाड़ होगी, यहीं गाड़ी में ही बैठ लेंगे" मैंने कहा,
थोड़ी देर बाद ही क़य्यूम भाई आये वहाँ, हाथ में मदिरा की दो बोतल लिए और साथ में ज़रूरी सामान भी, शर्मा जी ने गाड़ी का पिछला दरवाज़ा खोला और क़य्यूम भाई ने सारा सामान वहीँ रख दिया, फिर हमारी तरफ मुड़े,
"आ रहा है लड़का, मैंने मुर्गा कह दिया है, लाता ही होगा, आइये, आप शुरू कीजिये" क़य्यूम भाई ने कहा,
मै और शर्मा जी अन्दर बैठे, एक पन्नी में से कुछ कुटी हुई बरफ़ निकाली और शर्मा जी ने दो गिलास बना लिए, क़य्यूम भाई नहीं पीते थे, ये बात उन्होंने रास्ते में ही बता दी थी, वो बियर के शौक़ीन थे सो अपने लिए बियर ले आये थे, थोड़ी देर में ही दौर-ए-जाम शुरू हो गया, एक मंझोले कद का लड़का मुर्गा ले आया और एक बड़ी सी तश्तरी में डाल वहीँ रख दिया, आखिरी चीज़ भी पूरी हो गयी!
ये स्थान था ग्वालियर से गुना के बीच का एक, हमको ग्वालियर से लिया था क़य्यूम भाई ने, हम उन दिनों ललितपुर से आये थे ग्वालियर, ललितपुर में एक विवाह था, उसी कारण से आना हुआ था, और क़य्यूम भाई गुना के पास के ही रहने वाले थे, उनका अच्छा-ख़ासा कारोबार था, सेना आदि के मांस सप्लाई करने का काम है उनका, तीन भाई हैं, तीनों इसी काम में लगे हुए हैं, क़य्यूम भी पढ़े लिखे और रसूखदार हैं और बेहद सज्जन भी!
"और कुछ चाहिए तो बता दीजिये, अभी बहुत वक़्त है" क़य्यूम भाई ने कहा,
"अरे इतना ही बहुत है!" शर्मा जी ने कहा,
"इतने से क्या होगा, दिन से चले हैं, अब ट्रेन में क्या मिलता है खाने को! खा-पी लीजिये रज के!" क़य्यूम भाई ने कहा,
इतना कह, अपनी बियर का गिलास ख़तम कर फिर से चल दिए वहीँ उसी दूकान की तरफ!
बात तो सही थी, जहां हमको जाना था, वहाँ जाते जाते कम से कम हमको अभी ३ घंटे और लग सकते थे, अब वहाँ जाकर फिर किसी को खाने के लिए परेशान करना वो भी गाँव-देहात में, अच्छा नहीं था, सो निर्णय हो गया कि यहीं से खा के चलेंगे खाना!
गाड़ी के आसपास कुछ कुत्ते आ बैठे थे, कुछ बोटियाँ हमने उनको भी सौंप दीं, देनी पड़ीं, आखिर ये इलाका तो उन्ही का था! उनको उनका कर चुकाना तो बनता ही था! वे पूंछ हिला हिला कर अपना कर वसूल कर रहे थे! जब को बेजुबान आपका दिया हुआ खाना खाता है और उसको निगलता है तो बेहद सुकून मिलता है! और फिर ये कुत्ता तो प्रहरी है! मनुष्य समाज के बेहद करीब! खैर,
क़य्यूम भाई आये और साथ में फिर से पन्नी में बरफ़ ले आये, बरफ़ कुटवा के ही लाये थे, ताकि उसके डेले बन जाएँ और आराम से गिलास में समां सकें! अन्दर आ कर बैठे और जेब से सिगरेट का एक पैकेट निकाल कर दे दिया शर्मा जी को, शर्मा जी ने एक सिगरेट निकाली और सुलगा ली, फिर दो गिलासों में मदिरा परोस तैयार कर दिए! थोड़ी ही देर में वो लड़का आया और फिर से खाने का वो सामान वहीँ रख गया! हम आराम आराम से थकावट मिटाते रहे!
मित्रगण, हम यहाँ एक विशेष कारण से आये थे, क़य्यूम भाई के एक मित्र हैं, हरि, हरि साहब ने गुना में कुछ भूमि खरीदी थी, भूमि कुछ तो खेती-बाड़ी आदि के लिए और कुछ बाग़ आदि लगाने के लिए ली गयी थी, दो वर्ष का समय हो चुका था, भूमि तैयार कर ली गयी थी, परन्तु उस भूमि पर काम कर रहे कुछ मजदूरों ने वहां कुछ संदेहास्पद घटनाएं देखीं थीं जिनका कोई स्पष्टीकरण नहीं हुआ था, स्वयं अब हरि ने भी ऐसा कुछ देखा था, जिसकी वजह से उसका ज़िक्र उन्होंने क़य्यूम भाई से और क़य्यूम भाई ने मेरे जानकार से किया, सुनकर ही ये तो भान हो गया था कि वहाँ उस स्थान पर कुछ तो विचित्र है, कुछ विचित्र, जिसके विषय में जानने की उत्सुकता ने अब सर उठा लिया था, कुछ चिंतन-मनन करने के बाद मैंने यहाँ आने का निर्णय लिया और अब हम उस स्थान से महज़ थोड़ी ही दूरी पर थे!
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Re: भूत प्रेतों की कहानियाँ

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हमको गुना में नाना खेड़ी जाना था, हरि की रिहाइश वहीँ थी, गुना शहर का भी अपना ही एक अलग इतिहास है, इसका इतिहास काफी समृद्ध और रोमांचक है, पुराने अवंति साम्राज्य का ही एक हिस्सा रहा है गुना, बाद में कई और सत्ताधारी हुए और बाद में जा कर गुना मध्य प्रदेश में शामिल हुआ!
"और कुछ ले आऊं गुरु जी?" क़य्यूम भाई के सवाल ने मेरी तन्द्रा भंग की!
"अरे नहीं! यही बहुत है!" मैंने कहा,
"रुकिए, अभी आया" क़य्यूम भाई उठे और चल दिए फिर से ठेके की तरफ,
यहाँ मैंने एक और बड़ा सा पैग बनाया और खींच गया, फिर शर्मा जी से सुलगती हुई सिगरेट ले ली, कश मारा और सिगरेट वापिस उनको पकड़ा दी, उन्होंने भी एक जम कर कश मारा! धुंए को आज़ाद कर दिया उस सिगरेट से!
"गुरु जी, हरि ने जो भी बताया है वो है तो वैसे हौलनाक ही!" वे बोले,
"हाँ, अब तक तो हौलनाक ही है!" मैंने कहा,
"क्या लगता है आपको वहाँ?" उन्होंने पूछा,
"जाकर देखते हैं!" मैंने कहा,
"हाँ! कारण अभी स्पष्ट नहीं है, कभी-कभार प्रेत भी ऐसी माया रच दिया करते हैं!" उन्होंने सुझाया!
"हाँ, ये बात सच है शर्मा जी!" मैंने कहा,
तभी क़य्यूम भाई आये, साथ में वही मंझोले कद का लड़का भी था, उसके हाथ में इस बार कुछ नया ही व्यंजन था, उसने वो हमको थमाया, हमने थामा और वहीँ उस तश्तरी में रख लिया! लड़का चला गया वहाँ से! क़य्यूम भी पानी और बरफ ले आये थे और!
"ज्यादा हो जाएगा ये सब क़य्यूम भाई!" शर्मा जी ने कहा,
"कैसे ज्यादा! आप लीजिये बस!" उन्होंने हंस के कहा!
हमने एक एक टुकड़ा उठाया और फिर शर्मा जी ने मदिरा परोसना आरम्भ किया!
अब क़य्यूम भाई आ बैठे अपनी सीट पर!
"क़य्यूम भाई?" मैंने कहा,
"जी गुरु जी, पूछिए?" उन्होंने ध्यान देते हुए कहा,
"आपने हरि जी के बार में कुछ बातें बतायीं" मैंने कहा,
क़य्यूम भाई अपनी बियर खोलने के लिए अपना अंगूठा चलाया और सफलता मिल गयी! झक्क की आवाज़ करते हुए बियर खुल गयी!
"हाँ, गुरु जी?" क़य्यूम भाई ने पूछा,
"हरि साहब ने ये ज़मीन २ साल पहले ली थी?" मैंने पूछा,
''हाँ गुरु जी" वे बोले,
"किस से?" मैंने पूछा,
"मैंने ही दिलवाई थी, दरअसल मेरे एक जानकार थे उन्ही से" उन्होंने बताया,
"अच्छा, तो उन्होंने क्यों बेचीं?" मैंने पूछा,
"ये तो पता नहीं, उन्होंने जिक्र किया था की वे अपनी ज़मीन बेचना चाहते हैं" वे बोले,
अब तक शर्मा जी ने एक गिलास और बना दिया था, सो मैंने आधा ख़तम किया और बात फिर से ज़ारी रखी,
"मेरा पूछने का आशय था कि क्या ऐसी घटनाएं उनके साथ भी हुई थीं?" मैंने पूछा,
"उन्होंने तो कभी नहीं बताया ऐसा कुछ?'' वे बोले,
"हम्म!" मैंने कहा और बाहर देखा, बाहर दम हिलाते हुए कुत्ते खड़े थे, अबकी बार दो और बढ़ गए थे, मैंने एक एक बोटी उनकी तरफ उछाल दी, बड़ी सहजता से अपनी बारी का इंतज़ार करते हुए सभी का मुंह चलने लगा!
एक बोतल ख़तम हो गयी थी, बड़े सम्मान के साथ मैंने वो बोतल पास में ही लगे एक पेड़ के नीचे फेंक दी!
दूसरी बोतल खोल ली गयी!
"क्या नाम है आपके जानकार का?" मैंने पूछा,
"जी अनिल" वे बोले,
"अच्छा, तो अनिल ने ही ये ज़मीन हरि को बेचीं!" मैंने कहा,
"हाँ जी" वे बोले,
"तो क्या अनिल जी से मिला जा सकता है अगर ज़रुरत पड़ी तो?" मैंने पूछा,
"हाँ हाँ! क्यों नहीं!" वे बोले,
अब तक एक गिलास और बना दिया शर्मा जी ने, एक ही बनाया था, शर्मा जी ने अब ना कर दी थी, उनका कोटा पूरा हो गया था! मै अभी डटा हुआ था! मुठभेड़ ज़ारी थी मेरी अभी मदिरा से! वो मुझे पस्त करना चाहती थी और मै उसको!
मैंने एक टुकड़ा उठाया, फाड़ा और चबाने लगा! साढ़े ८ का समय हो चला था तब तक! शर्मा जी उठे और गाड़ी से बाहर निकले, कमर सीधी की और एक सिगरेट और पजार ली! वो लघु-शंका से निवृत होने चले गए!
"क़य्यूम साहब" मैंने कहा,
"जी?" वे बोले,
"बस अब निकलते हैं यहाँ से" मैंने कहा,
"हाँ, निबट लीजिये, और कुछ चाहिए हो तो बताइये" वे बोले,
"नहीं, और नहीं, बस!" मैंने कहा,
फिर मैंने दो पैग और लिए, निबट गया मै और शर्मा जी भी आ बैठे और हम अब चल पड़े अपनी मंजिल की ओर! गाड़ी दौड़ पड़ी सरपट!
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जिस समय हम वहाँ पहुंचे, रात के पौने दस का समय था, हरि साहब के भी फ़ोन आ गए थे, उनसे बात भी हो गयी थी, तो हम सीधे हरि साहब के पास ही गए, उनके घर पर ही, हरि साहब ने शालीनता से स्वागत किया हमारा, खूब बातचीत हुई और फिर रात्रि में निंद्रा हेतु हमने उनसे विदा ली, एक बड़े से कमरे में इंतजाम किया गया था हमारे सोने का! ये घर कोई पुरानी हवेली सा लगता था! खाना खा ही चुके थे, नशा सर पर हावी था ही, थकावट सो अलग, सो बिस्तर में गिरते ही निंद्रा के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया!
जैसे लेटे थे उसी मुद्रा में सो गए!
सुबह जब आँख खुली तो सुबह के आठ बज चुके थे! हाँ, नींद खुल कर आई थी सो थकावट जा चुकी थी! दो चार ज़बरदस्त अंगडाइयां लेकर बदन के हिस्से आपस में जोड़े और खड़े हो गए!
फिर नित्य-कर्मों से फारिग होने के पश्चात नहाने के लिए मै सबसे पहले गया, स्नान किया, ताजगी आ गयी! फिर शर्मा जी गए और कुछ देर में वो भी वापिस आ गए नहा कर!
"यहाँ मौसम बढ़िया है" वे बोले,
"हाँ, इन दिनों में अक्सर ऐसा ही होता है यहाँ मौसम, दिन चढ़े गर्मी होती है और दिन ढले ठण्ड!" मैंने कहा,
"हाँ, रात को भी मौसम बढ़िया था, सफ़र आराम से कट गया इसीलिए!" वे बोले,
तभी कमरे में हरि साहब ने प्रवेश किया, उनके साथ एक छोटी सी लड़की भी थी, ये उनकी पोती थी शायद, नमस्कार हुई और हम तीनों ही वहाँ बैठ गए, लड़की भी नमस्ते करके बाहर के लिए दौड़ पड़ी! हँसते हुए!
"पोती है मेरी!" वे बोले,
"अच्छा!" शर्मा जी ने कहा,
तभी चाय आ गयी, ये उनका नौकर था शायद जो चाय लाया था, उसने ट्रे हमारी तरफ बढ़ाई, उसमे कुछ मीठा, नमकीन आदि रखा था, मैंने थोडा नमकीन उठाया और हमने अपने अपने कप उठा लिए और चाय पीनी शुरू की, नौकर चला गया तभी,
"और कोई परेशानी तो नहीं हुई आपको?" हरि साहब ने पूछा,
"नहीं नहीं! क़य्यूम भाई के साथ आराम से आये हम यहाँ!" मैंने कहा,
"कुछ बताया क़य्यूम भाई ने आपको?" उन्होंने चुस्की लेते हुए पूछा,
"हाँ बताया था" मैंने कहा,
"गुरु जी, बात उस से भी आगे है, मैंने क़य्यूम भाई को पूरी बात नहीं बतायी, मैंने सोचा की जब आप यहाँ आयेंगे तो आपको स्वयं ही बताऊंगा" वे बोले,
"बताइये?" मैंने उत्सुकता से पूछा,
"गुरु जी, जिस दिन से मैंने वो ज़मीन खरीदी है, उसी दिन से आप लगा लीजिये कि दिन खराब हो चले हैं" वे अपना कप ट्रे में रखते हुए बोले,
"कैसे?" मैंने पूछा,
"जी मेरे तीन लड़के हैं और एक लड़की, दो लड़के ब्याह दिए हैं और लड़की भी, अब केवल सबसे छोटा लड़का ही रहता है, नाम है उसका नकुल, पढाई ख़त्म कर चुका है और अब वकालत की प्रैक्टिस कर रहा है ग्वालियर में, दोनों बेटे भी अपने अपने काम में मशगूल हैं, एक मुंबई रहता है अपने परिवार के साथ, दूसरा आगरे में है अपने परिवार के साथ, उसकी भी नौकरी है वहाँ, अध्यापक है, आजकल यहीं आया हुआ है अपने परिवार के साथ, लड़की जो मैंने ब्याही है वो अहमदाबाद में है, २ वर्ष हुए हैं ब्याह हुए" वे बोले,
"अच्छा" मैंने कहा,
उन्होंने अपना चश्मा उतारा और रुमाल से साफ़ करते हुए बोले, " लड़की ससुराल में खुश नहीं है, बड़े लड़के का बड़ा लड़का, मेरा पोता बीमार हो कर ३ वर्ष का गुजर गया, अब कोई संतान नहीं है उसके, जो लड़का यहाँ आया हुआ है.." वे बोले,
मैंने तभी बात काटी और पूछा, "नाम क्या है जो आया हुआ है?"
"दिलीप" वे बोले,
"अच्छा" मैंने कहा,
"मै कह रहा था कि जो लड़का यहाँ आया हुआ है, उसके २ लडकियां ही हैं, लड़का कोई नहीं, उसकी पत्नी के गर्भ में कोई बीमारी बताई है डॉक्टर्स ने और अब संतान के लिए एक तरह से मना ही कर दिया है" वे बोले,
"अच्छा" मैंने कहा,
"एक बात और, मेरा अपना व्यवसाय है यहाँ, व्यवसाय लोहे का है, वो भी एक तरह से बंद ही पड़ा है दो साल से, कोई उछाल नहीं है" वे बोले,
"अच्छा" मैंने कहा,
"अब वही बात मै कह रहा था, कि जब से मैंने यहाँ वो ज़मीन ली है तबसे सबकुछ जैसे गड्ढे में चला गया है" वे बोले,
"अच्छा, और उस से पहले?" मैंने पूछा,
"सब ठीक ठाक था! कभी मायूसी नहीं थी घर-परिवार में!" वे बोले,
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"अच्छा" मैंने कहा,
"हाँ जी, इस ज़मीन में ऐसा कुछ न कुछ ज़रूर है जिसकी वजह से ऐसा हुआ है हमारे साथ" वे बोले,
"क़य्यूम भाई ने बताया था कि वहाँ कुछ गड़बड़ तो है, अनेक मजदूरों ने भी देखा है वहाँ ऐसा कुछ, मुझे बताएं कि क्या देखा है ऐसा?" मैंने पूछा,
"हाँ जी, देखा है, वहाँ ४ मजदूर अपने परिवारों के साथ रहते हैं, उन्होंने वहाँ देखा है और महसूस भी किया है" वे बोले,
"क्या देखा है उन्होंने?'' मैंने पूछा और मेरी भी उत्सुकता बढ़ी अब!
"वहां एक मजदूर है, शंकर, उसने बताया था मुझे एक बार कि उसने और उसकी पत्नी ने खेत में दो औरतों को देखा है घूमते हुए, हालांकि उन औरतों ने कभी कुछ कहा नहीं उनको" वे बोले,
"दो औरतें?'' मैंने पूछा,
"हाँ जी" वे बोले,
"और कुछ?" मैंने पूछा,
"जहां पानी लगाया जाता है, उसके दो घंटे के बाद वो जगह सूख जाती है अपने आप! जैसे वहाँ कभी पानी लगाया ही नहीं गया हो!" वे बोले,
बड़ी अजीब सी बात बताई थी उन्होंने!
"ये एक ख़ास स्थान पर है या हर जगह?" मैंने पूछा,
"खेतों में ऐसे कई स्थान हैं गुरु जी, जहां ऐसा हो रहा है" वे बोले,
सचमुच में बात हैरत की थी!
"और कुछ?" मैंने पूछा,
"गुरु जी, शुरू शुरू में हमने एक पनिया-ओझा बुलवाया था, उसने पानी का पता तो बता दिया लेकिन ये भी कहा कि यहाँ बहुत कुछ गड़बड़ है और ये ज़मीन फलेगी नहीं हमको, उसका कहना सच हुआ, ऐसा ही हुआ है अभी तक, वहाँ से घाटे के आलावा कुछ नहीं मिला आज तक!" वे बोले,
"तो आपने किसी को बुलवाया नहीं?" मैंने पूछा, मेरे पूछने का मंतव्य वे समझ गए,
"बुलाया था, तीन लोग बुलाये थे, दो ने कहा कि उनके बस की बात नहीं है, हाँ एक ने यहाँ पर पोरे ग्यारह दिन पूजा की थी, लेकिन उसके बाद भी जस का तस! कोई फर्क नहीं पड़ा!" वे बोले,
स्थिति बड़ी ही गंभीर थी!
"आपने अनिल जी से इस बाबत पूछा?" मैंने सवाल किया,
"हाँ, उन्होंने कहा कि ऐसा तो उनके यहाँ न जाने कब से हो रहा है, किसी को चोट नहीं पहुंची तो कभी ध्यान नहीं दिया" वे बोले,
"मतलब उन्होंने अपने घाटे से बचने के लिए और आपने कच्चे लालच में आ कर ये ज़मीन खरीद ली!" मैंने कहा,
"हाँ जी, इसमें कोई शक नहीं, कच्चा लालच ही था मुझमे!" वे हलके से हँसते हुए ये वाक्य कह गए!
"कोई बात नहीं, मई भी एक बार देख लूँ कि आखिर क्या चल रहा है वहाँ?" मैंने कहा,
"इसीलिए मैंने आपको यहाँ बुलवाया है गुरु जी, ललितपुर वाले हरेन्द्र जी से भी मैंने इसी पर बात की थी" वे बोले,
"अच्छा, हाँ, मुझे बताया था उन्होंने" मैंने कहा,
तभी क़य्यूम भाई अन्दर आये, नमस्कार आदि हुई और वो बैठ गए,
"कुछ पता चला गुरु जी?" क़य्यूम भाई ने पूछा,
"अभी तो मैंने वहाँ की कुछ बातें सुनी हैं, आज चलेंगे वहाँ और मै स्वयं देखूंगा कि वहाँ आखिर में चल क्या रहा है?" मैंने कहा,
"ये सही रहेगा गुरु जी!" क़य्यूम भाई ने कहा,
"वैसे क्या हो सकता है? कोई कह रहा था कि यहाँ कोई शाप वगैरह है!" वे बोले,
"शाप! देखते हैं!" मैंने कहा,
"आप खाना आदि खा लीजिये, फिर चलते हैं वहाँ" हरि साहब ने कहा,
"हाँ, ठीक है" मैंने कहा,
"और क़य्यूम भाई आपका घर कहाँ है यहाँ?" शर्मा जी ने पूछा,
"इनके साथ वाला ही है शर्मा जी! आइये गरीबखाने पर!" वे बोले,
"ज़रूर, आज शाम को आते हैं आपके पास!" वे बोले,
"ज़रूर!" क़य्यूम भाई ने मुस्कुरा के कहा!
तभी हरि साहब उठे और बाहर चले गए!
"मौसम बढ़िया है यहाँ क़य्यूम भाई!" शर्मा जी ने कहा,
"खुला इलाका है, पथरीला भी है सुबह शाम ठंडक बनी रहती है, हाँ दिन में पारा चढ़ने लगता है!" वे बोले,
"और सुनाइये क़य्यूम भाई, घर में और कौन कौन है?" शर्मा जी ने पूछा,
"दो लड़के हैं जी, और माता-पिता जी" वे बोले,
"अच्छा! और दूसरे भाई?" उन्होंने पूछा,
"जी एक ग्वालियर में है और एक टेकनपुर में" वे बोले,
'अच्छा!" वे बोले,
"और काम-धाम बढ़िया है?" उन्होंने पूछा,
"हाँ जी, ठीक है, निकल जाती है दाल-रोटी!" हंस के बोले क़य्यूम भाई!
थोड़ी देर शान्ति छाई, इतने में ही हरि साहब अन्दर आ गए, बैठ गए!
"नाश्ता तैयार है, लगवा दूँ?" उन्होंने पूछा,
"हाँ, लगवा लीजिये" मैंने कहा,
वे उठ कर बाहर गए और थोड़ी देर बाद उनका नौकर नाश्ता लेकर आ गया, हम नाश्ता करने लगे!
"नाश्ते के बाद चलते हैं खेतों पर" मैंने कहा,
"जी, चलते हैं" हरि साहब बोले,
"मै आता हूँ फिर, गाड़ी ले आऊं" क़य्यूम भाई ने कहा,
"ठीक है, आ जाओ" हरि साहब बोले,
हम नाश्ता करते रहे, लज़ीज़ था नाश्ते का स्वाद! नाश्ता ख़तम किया और इतने में ही क़य्यूम भाई भी आ गए गाड़ी लेकर, तब हम चारों वहाँ से निकल पड़े खेतों की तरफ!
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