जब मेरी आँख खुली तो मै बिस्तर पर लेटा था, कमरा जाना पहचाना लगा, ये हरि साहब का घर था! चक्र घूमा स्मृति का! सब याद आने लगा! मै चौंक के उठ गया! कमरे में मालती जी, हरि साहब, क़य्यूम भाई और शर्मा जी मेरे बिस्तर पर आ बैठे थे!
"अब कैसे हैं गुरु जी?" उन्होंने पूछा,
"मै ठीक हूँ, कब आया मै यहाँ?'' मैंने पूछा,
"सुबह ५ बजे" वे बोले,
मैंने घडी देखी, दस बज चुके थे!
"उठिए आप सभी" मैंने कहा और मै भी उठ गया, मै जस का तस था, न नहाया था न कुछ और, बस हाथ-मुंह धोया और कपडे बदल कर आया उनके पास!
"कहीं जाना है?" हरि साहब ने पूछा,
"हाँ, खेतों पे" मैंने कहा,
"वहाँ?" वे बोले,
"हाँ, कुछ खुदाई करनी है वहाँ, करवानी है, शंकर और दुसरे मजदूरों को तैयार करवाइए आप अभी" मैंने कहा,
"मै अभी फ़ोन करता हूँ" वे बोले,
और फिर कोई दस मिनट के बाद हम चल पड़े वहाँ से खेतों की और,
वहाँ शंकर और, और ५ आदमी तैयार थे, फावड़े और गैंती लेकर! मै फ़ौरन ही उनको अपने पीछे पीछे ले आया, वहीँ पपीते और केले के पेड़ों के पास, और एक जगह मैंने इशारा किया, मुझे दूर भाभरा खड़ी दिखाई दी, उसने बता दिया इशारा करके, ये वही जगह थी यहाँ से मुझे धक्का देकर भगाया गया था! मैंने वहीँ से खुदाई करवानी आरम्भ की, भाभरा लोप हो गयी!
चारपाइयां आ गयीं, हम वहीँ बैठ गए! खुदाई आरम्भ हो गयी! मै लेट गया, और आँखें बंद कर लीं, गत-रात्रि की सभी घटनाएं मेरे सामने से गुजर गयीं, तभी मेरा हाथ उस गुरु-माल पर गया, आनंद! असीम आनंद!
दोपहर हुई और फिर शाम!
तभी शंकर आया वहाँ, कम से कम दस फीट खुदाई हो चुकी थी और तब एक दीवार दिखाई दी, पत्थर की! अब वहाँ से घड़े, सिल और पत्थर निकलने लगे! और खुदाई की! रात भर खुदाई हुई, बार बार रुक कर और तब एक छोटा गोल मंदिर झाँकने लगा वहाँ! तभी वहाँ एक घडा गिर दीवार में से निकल कर, मैंने वो उठाया, हिलाया, उसमे कुछ था! घड़े का मुंह मिट्ठी की ठेकरी से ही बंद किया गया था! मैंने वो हटाया, अन्दर सोना था! सिक्के, भारी भारी सिक्के! ये मेहनताना था! मंदिर बनवाने का! मै सब जानता था!
भूत प्रेतों की कहानियाँ
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Re: भूत प्रेतों की कहानियाँ
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(मैं और मेरा परिवार Running )........
(रेशमा - मेरी पड़ोसन complete).....(मेरी मस्तानी समधन complete)......
(भूत प्रेतों की कहानियाँ complete)....... (इंसाफ कुदरत का complete).... (हरामी बेटा compleet )-.....(माया ने लगाया चस्का complete). (Incest-मेरे पति और मेरी ननद complete ).
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Re: भूत प्रेतों की कहानियाँ
और मित्रगण! तीन दिवस पश्चात वहाँ से एक मंदिर निकल आया! एक छोटा मंदिर, उसका प्रांगण! ये खेड़ा-पलट था! वस्तुतः ये वही था! इसी में मृत्यु हुई होगी वहाँ उनमे से कईयों की!
अब हरि साहब आये मेरे पास!
"कमाल हो गया गुरु जी" वे बोले,
"अभी काम बाकी है" मैंने कहा,
"नया बनवाना है, यही न?" वे बोले,
"हाँ!" मैंने कहा,
"अवश्य!" वे बोले,
"सिक्कों का कुल वजन कितना निकला?" मैंने पूछा,
"एक किलो और साढ़े सात सौ ग्राम" वे बोले,
"ठीक है" मैंने कहा,
"सब यहीं लगा दूंगा गुरु जी" वे बोले,
"अत्युत्तम!" मैंने कहा,
अब मैंने उनको समझाया कि वहाँ कब, क्या और कैसा करना होगा, उन्होंने इत्मीनान से सुना और अमल करने का फैंसला लिया!
अब शर्मा जी आ गए!
"आइये" मैंने कहा,
"कितना भव्य मंदिर है, मै अभी देख कर आया हूँ, लाल रंग का!" वे बोले,
"हाँ, अब साफ़ सफाई करवा दीजिये वहाँ" मैंने कहा,
"कह दिया मैंने" वे बोले,
"बहुत बढ़िया" वे बोले,
"हरी साहब, आप इन मजदूरों के परिवार को भोजन और नए वस्त्र और कुछ धन दीजिये आज ही!" मैंने कहा,
"जी ज़रूर" वे बोले,
अब मै एक चारपाई पर बैठ गया!
उसके अगले दिन, हरि साहब ने अपने मजदूरों को पैसा दे दिया, उनके बालक-बालिकाओं के नाम पैसा जमा भी करा दिया, कुछ पैसा उन्होंने दान भी कर दिया, सभी खुश थे!
और फि वो तिथि या दिवस या रात्रि आ गयी जिसका मुझे बेसब्री से इंतज़ार था! उस रात करीब १ बजे मै मंदिर पर पहुंचा, मैए किसी को भी साथ ना लिया, शर्मा जी को भी नहीं, ये मुक्ति-क्रिया था, मुझे अकेले को ही करनी थी, मै साजोसामान लेकर आया था, मै उसी मंदिर की भूमि में पहुंचा और आसान लगा लिया, आँखें बंद कीं और बाबा नौमना का आह्वान करने लगा, कुछ देर में ही मेरे सर पर किसी ने हाथ रखा, ये बाबा शाकुण्ड थे!
"उठो!" वे बोले,
मै उठ गया,
"हम सब आ गए हैं!" वे बोले,
मैंने नज़रें घुमा कर देखा, सभी वहाँ खड़े थे! मुस्कुराते हुए!
मै सीधा बाबा नौमना के पास गया! उन्होंने मुझे देखा, मेरे सर पर हाथ रखा! मेरे आंसू छलक गए! मैंने अपने गले से वो गुरु-माल उतार और फिर बाबा के चरणों में रख दिया!
इस से पहले वो कुछ कहते मैंने ही कहा, "मै मनुष्य हूँ, लोभ, लालच, मोह, काम, क्रोध लालसा कूट कूट के भरी है, अब ना सही, कभी बाद में कोई भी एक मेरे हृदय में सत्ता क़ायम कर सकता है, फिर मेरा वजूद नहीं रह जाएगा कुछ भी!कोई भी सत्तारूढ़ हुआ तो मै, मै नहीं रहूँगा और ये गुरु-माल मेरे लिए फंदा बन जाएगा, बाबा!" मैंने कहा,
वो मुस्कुराये और गुरु-माल उठाया! अपने हाथ में रखा!
"इसको धारण कर लो!" उन्होंने खा,
"नहीं कर सकता!" ऩीने कहा,
"ये आदेश है" वे हंस के बोले,
अब मै आदेश कैसे टालता! ले लिया मैंने! मित्रगण! आज भी मेरी हिम्मत नहीं होती उसको धारण करने की! मैंने सम्भाल के रखा है उसको अपने दादा श्री की वस्तुओं के साथ!
"हमे जाना है अब" भेरू ने कहा,
"उफ़! अब सब ख़तम!" मेरे दिल में आया ये विचार!
मित्रगण, मैंने उसी समय मुक्ति-क्रिया आरम्भ की और सबसे पहले रेखा को पार किया बाबा शाकुण्ड ने! आशीर्वाद देते हुए, फिर भामा-शामा, फिर भाभरा, फिर किरली! फिर भेरू और फिर खेचर! जाने से पहले खेचर मुझसे गले मिला!
और अंत में बाबा नौमना उठे! मुझे कुछ बताते हुए, कुछ सिखाते हुए विदा लेते हुए आशीर्वाद देते हुए हाले गए! पार हो गए! रह गया मै अकेला! अकेला ये घटना सुनाने के लिए! लेकिन मै कही भूल नहीं सका आज तक उनको!
मित्रगण! वहाँ एक मंदिर बनवा दिया गया, आज वहाँ भक्तगण आते हैं, वहाँ सभी के स्थान बने हैं! पूजन हो रहा है उनका! सच्चाई मै जानता हूँ, या वो सब जो इस घटना के गवाह हैं!
वक़्त बीत गया है! लेकिन मुझे आज भी लगता है मै आवाज़ दूंगा तो आ जायेंगे बाबा नौमना! लेकिन आवाज़ दे नहीं पाया हूँ आज तक! पता नहीं क्यों!
मै दो महीने पहले गया था वहाँ, जाना पड़ा था, आज वो स्थान रौनकपूर्ण है! फल-फूल सब है वहाँ! वो मंदिर! उस पर लहराता ध्वज! मै देख कर आया वही सब स्थान जो मैंने देखे थे भेरू के साथ, बाबा नौमना के साथ!
मैंने ये घटना इसीलिए यहाँ लिखी कि आप लोगों तक वो गुमनाम साधक प्रकाश में आ जाएँ! आशा करता हूँ इस घटना का एक एक किरदार आपको याद रहेगा, आपकी कल्पना में! साकार हो उठेंगे वे सभी!
आज हरि साहब का काम-काज चौगुना और तीन पोते हैं! छोटे लड़के की भी शादी हो गयी, लड़की भी खुश है! सभी पर नूर बरसा है बाबा नौमना का!
और,
आप सभी का धन्यवाद इस घटना को पढ़ने के लिए!
साधुवाद!
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अब हरि साहब आये मेरे पास!
"कमाल हो गया गुरु जी" वे बोले,
"अभी काम बाकी है" मैंने कहा,
"नया बनवाना है, यही न?" वे बोले,
"हाँ!" मैंने कहा,
"अवश्य!" वे बोले,
"सिक्कों का कुल वजन कितना निकला?" मैंने पूछा,
"एक किलो और साढ़े सात सौ ग्राम" वे बोले,
"ठीक है" मैंने कहा,
"सब यहीं लगा दूंगा गुरु जी" वे बोले,
"अत्युत्तम!" मैंने कहा,
अब मैंने उनको समझाया कि वहाँ कब, क्या और कैसा करना होगा, उन्होंने इत्मीनान से सुना और अमल करने का फैंसला लिया!
अब शर्मा जी आ गए!
"आइये" मैंने कहा,
"कितना भव्य मंदिर है, मै अभी देख कर आया हूँ, लाल रंग का!" वे बोले,
"हाँ, अब साफ़ सफाई करवा दीजिये वहाँ" मैंने कहा,
"कह दिया मैंने" वे बोले,
"बहुत बढ़िया" वे बोले,
"हरी साहब, आप इन मजदूरों के परिवार को भोजन और नए वस्त्र और कुछ धन दीजिये आज ही!" मैंने कहा,
"जी ज़रूर" वे बोले,
अब मै एक चारपाई पर बैठ गया!
उसके अगले दिन, हरि साहब ने अपने मजदूरों को पैसा दे दिया, उनके बालक-बालिकाओं के नाम पैसा जमा भी करा दिया, कुछ पैसा उन्होंने दान भी कर दिया, सभी खुश थे!
और फि वो तिथि या दिवस या रात्रि आ गयी जिसका मुझे बेसब्री से इंतज़ार था! उस रात करीब १ बजे मै मंदिर पर पहुंचा, मैए किसी को भी साथ ना लिया, शर्मा जी को भी नहीं, ये मुक्ति-क्रिया था, मुझे अकेले को ही करनी थी, मै साजोसामान लेकर आया था, मै उसी मंदिर की भूमि में पहुंचा और आसान लगा लिया, आँखें बंद कीं और बाबा नौमना का आह्वान करने लगा, कुछ देर में ही मेरे सर पर किसी ने हाथ रखा, ये बाबा शाकुण्ड थे!
"उठो!" वे बोले,
मै उठ गया,
"हम सब आ गए हैं!" वे बोले,
मैंने नज़रें घुमा कर देखा, सभी वहाँ खड़े थे! मुस्कुराते हुए!
मै सीधा बाबा नौमना के पास गया! उन्होंने मुझे देखा, मेरे सर पर हाथ रखा! मेरे आंसू छलक गए! मैंने अपने गले से वो गुरु-माल उतार और फिर बाबा के चरणों में रख दिया!
इस से पहले वो कुछ कहते मैंने ही कहा, "मै मनुष्य हूँ, लोभ, लालच, मोह, काम, क्रोध लालसा कूट कूट के भरी है, अब ना सही, कभी बाद में कोई भी एक मेरे हृदय में सत्ता क़ायम कर सकता है, फिर मेरा वजूद नहीं रह जाएगा कुछ भी!कोई भी सत्तारूढ़ हुआ तो मै, मै नहीं रहूँगा और ये गुरु-माल मेरे लिए फंदा बन जाएगा, बाबा!" मैंने कहा,
वो मुस्कुराये और गुरु-माल उठाया! अपने हाथ में रखा!
"इसको धारण कर लो!" उन्होंने खा,
"नहीं कर सकता!" ऩीने कहा,
"ये आदेश है" वे हंस के बोले,
अब मै आदेश कैसे टालता! ले लिया मैंने! मित्रगण! आज भी मेरी हिम्मत नहीं होती उसको धारण करने की! मैंने सम्भाल के रखा है उसको अपने दादा श्री की वस्तुओं के साथ!
"हमे जाना है अब" भेरू ने कहा,
"उफ़! अब सब ख़तम!" मेरे दिल में आया ये विचार!
मित्रगण, मैंने उसी समय मुक्ति-क्रिया आरम्भ की और सबसे पहले रेखा को पार किया बाबा शाकुण्ड ने! आशीर्वाद देते हुए, फिर भामा-शामा, फिर भाभरा, फिर किरली! फिर भेरू और फिर खेचर! जाने से पहले खेचर मुझसे गले मिला!
और अंत में बाबा नौमना उठे! मुझे कुछ बताते हुए, कुछ सिखाते हुए विदा लेते हुए आशीर्वाद देते हुए हाले गए! पार हो गए! रह गया मै अकेला! अकेला ये घटना सुनाने के लिए! लेकिन मै कही भूल नहीं सका आज तक उनको!
मित्रगण! वहाँ एक मंदिर बनवा दिया गया, आज वहाँ भक्तगण आते हैं, वहाँ सभी के स्थान बने हैं! पूजन हो रहा है उनका! सच्चाई मै जानता हूँ, या वो सब जो इस घटना के गवाह हैं!
वक़्त बीत गया है! लेकिन मुझे आज भी लगता है मै आवाज़ दूंगा तो आ जायेंगे बाबा नौमना! लेकिन आवाज़ दे नहीं पाया हूँ आज तक! पता नहीं क्यों!
मै दो महीने पहले गया था वहाँ, जाना पड़ा था, आज वो स्थान रौनकपूर्ण है! फल-फूल सब है वहाँ! वो मंदिर! उस पर लहराता ध्वज! मै देख कर आया वही सब स्थान जो मैंने देखे थे भेरू के साथ, बाबा नौमना के साथ!
मैंने ये घटना इसीलिए यहाँ लिखी कि आप लोगों तक वो गुमनाम साधक प्रकाश में आ जाएँ! आशा करता हूँ इस घटना का एक एक किरदार आपको याद रहेगा, आपकी कल्पना में! साकार हो उठेंगे वे सभी!
आज हरि साहब का काम-काज चौगुना और तीन पोते हैं! छोटे लड़के की भी शादी हो गयी, लड़की भी खुश है! सभी पर नूर बरसा है बाबा नौमना का!
और,
आप सभी का धन्यवाद इस घटना को पढ़ने के लिए!
साधुवाद!
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Re: भूत प्रेतों की कहानियाँ
दोस्तोये घटना कैसी लगी ज़रूर बताए आपके विचार मिलने के बाद एक और घटना पेश करूँगा तब तक के लिए राम राम
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Re: भूत प्रेतों की कहानियाँ
mast.... aur bhi hai to post kare