सियालदाह की एक घटना -वर्ष 2012

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सियालदाह की एक घटना -वर्ष 2012

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सियालदाह की एक घटना -वर्ष 2012

मित्रगण, क्या आपने कभी किसी लिबो सिक्के के बारे में सुना है? ये एक चमत्कारी सिक्का है! यदि इसके सामने तेज गति से चलती बस आ रही हो तो ये उसके इंजन को बंद कर सकता है, किसी भी मशीन को रोक सकता है! हाँ, यदि कार्बनपेपर में लपेटा गया हो तो ऐसा नहीं करेगा यह! यदि जलती हुई मोमबत्ती के पास इसको लाया जाए तो उसकी लौ इसको तरफ झुक जाती है! चावल के पास लाया जाए तो चावल इसकी ओर आकर्षित हो जाते हैं! यदि बिजली के टेस्टर को इस समीप लाया जाए तो वो जलने लगता है! आपकी इलेक्ट्रॉनिक घड़ी इसके संपर्क में आते ही बंद हो जायेगी, बैटरीज फट जाएंगी! ए.ए. सेल्स पिघल जायेंगे!
दरअसल इस सिक्के में तीन ऊर्जा-क्षेत्र जोते हैं, जर्मनी में निर्मित एक ख़ास मशीन इसकी इस ऊर्जा को सोखती है! इस मशीन की कीमत दस लाख डॉलर के आसपास है, यदि इस सिक्के को किसी बड़े बिजली के ट्रांसफार्मर के पास लाया जाए तो वो फट जाता है! इसको टेस्ट करने में ०.१ लाख डॉलर का खर्च आता है, और इसका परीक्षण निर्जन स्थान एवं समुद्रीय तट-रेखा के पास ही किया जाता ही!
अब प्रश्न ये कि ये सिक्के आये कहाँ से?? और इसमें इतनी शक्ति कैसे है? कौन सी शक्ति?
बताता हूँ,
सबसे पहले शक्ति बताता हूँ, इस सिक्के में ताम्र-इरीडियम नामक पदार्थ होता है, ये अति विध्वंसक और दुर्लभ तत्व है! अब पुनः प्रश्न ये कि ये सिक्के आये कहा से?
वो भी बताता हूँ!
१६०३ ईसवी में, ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपना व्यापार आरम्भ कर लिया था, इसका मुख्यालय लंदन इंग्लैंड में था, उन्होंने भारत में कुछ सिक्के अथवा मोहरें ढलवायीं ताकि व्यापार को समृद्धि मिले! इस प्रकार वर्ष १६१६ ईसवी, १७ मार्च को एक खास मुहूर्त था, गृह-कुटमी मुहूर्त, ये पांच घंटे का था, ये ग्रहण समय था, एक अत्यंत दुर्लभ खगोलीय घटना! ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस समय पर कुछ भारतीय मनीषियों और खगोल-शास्त्रियों के हिसाब से, अलग अलग वजन और आकार के, अलग अलग सिक्के ढलवाए, ये कुल १६ थे, हाथों से बने, इनमे इरीडियम-ऊर्जा समाहित थी! आज भी कुल सिक्के १६ ही हैं! ऐसा ही एक सिक्का ईस्ट इंडियन कंपनी ने हांगकांग के राजा लियो को भेंट किया था सन १६१६ में ही! बाद में यही सिक्का अमेरिका में १८७१ में २०० बिलियन डॉलर का बिका था!
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Re: सियालदाह की एक घटना -वर्ष 2012

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विशेषताएं:- लिबो सिक्के पर एक ओर जहां उस खुदरा मूल्य अंकित है वहीँ दूसरी ओर उस पर नौ ग्रह भी बने हुए हैं, इसीलिए इनको नवग्रह-सिक्के भी कहा जाता है, लिबो का यूनानी भाषा में अर्थ है सूर्य-प्रहरी! इनमे और भी विशेषताएं हैं, इनको चार्ज मभी किया जा सकता है तब ये अपनी क्षमता में वृद्धि कर लेते हैं! ८७ प्रकार के पदार्थ इसमें संघनित होते हैं प्रत्येक की अपनी विशेषता है! इस पर अंकीर्ण नवग्रह जैसे चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शनि, शुक्र, शनि, राहु और केतु के साथ स्व्यं सूर्य भी होते हैं, कइयों पर नाग बने हैं और कइयों पर कुछ अन्य चिन्ह भी अंकित हैं! ये सभी ग्रह एक दूसरे से शिराओं से जुड़े हुए हैं और इन्ही से इसमें ऐसी शक्तियां निहित हैं! कहा जाता है, इन सिक्कों में सभी ग्रहों के पदार्थ अवशोषित हैं! धातुविद् जानकारों ने ये पदार्थ तीन भाग में बांटे हैं, इनमे इक्कीडयम, इरीडियम और वीरेडियम मुख्य हैं! सन १६१६ में इन सिक्कों की कीमत ही लाखों में थी और आज तो खरबों रुपयों में है!
ऐसा ही एक सिक्का पद्मा जोगन के पास मैंने देखा था! पद्मा जोगन रहने वाली नरसिंहगढ़, मध्य-प्रदेश की थी, लेकिन उस समय वो सियालदाह में रह रही थी, उसको ये सिक्का उसके गुरु योगी राज कद्रुम ने दिया था! वो उसको अपने गले में बंधी एक छोटी सी डिब्बी में रखती थी, कार्बन पेपर में लपेट कर! खूब चर्चा में रही वो! बहुत लोगों ने प्रपंच लड़ाए लेकिन कुछ काम न आये! और फिर वर्ष २०१२ के दशहरे के दिन पद्मा जोगन अपने स्थान से गायब हो गयी! उसने कभी किसी को नहीं बताया कि वो कहाँ जा रही है! कहते हैं उसने जल-समाधि ले ली, कुछ कहते हैं हत्या हो गयी, कुछ कहते हैं भूमि में समाधि ले ली! लेकिन उसका सिक्का? वो कहाँ गया? उस सिक्के का मोल बहुत अधिक है! और इस तरह हुई उस सिक्के की खोज आरम्भ!
मेरे पास ये खबर दिवाली से दो रोज पहले आयी थी, हालांकि मुझे कोई आवश्यकता नहीं थी सिक्के की, मै बस इस से चिंतित था कि पद्मा जोगन का क्या हुआ? वो पैंतालीस साल की थी, हाँ, देखने में कोई तीस साल की लगती थी, सुन्दर और अच्छी मजबूत कद काठी की थी, मेरी मुलाक़ात उस से करीं पद्रह वर्ष पहले हरिद्वार में हुई थी, तभी से वो और मै एक दूसरे को जानते थे, सिक्के वाली बात तो मुझे बाद में पता चली थी! तब मेरी ज़िद पर वो सिक्का उसने मुझे दिखाया था, उसने बिजली का टेस्टर उसके पास रखा था और वो जलने लगा था! बहुत अजीब सा सिक्का लगा था मुझको वो!
खैर, एक दिन मेरा आना हुआ सियालदाह शर्मा जी के साथ, तब मै उसके स्थान पर गया था, तब तक वो समाधि ले चुकी थी, ऐसा मुझे बताया गया, उसने किसी को बताया भी नहीं था और बिना खबर किये वो गायब भी हो गयी थी!
जब मै वहाँ गया तो मुझे वहाँ के संचालक भान सिंह से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ, भान सिंह राजस्थानी थे, उन्होंने भी मुझे पद्मा जोगन के बारे में वही बताया जो कि सुना-सुनाया था! कोई ठोस और पुख्ता जानकारी नहीं मिल सकी थी!
उस दिन शाम के समय मै और शर्मा जी आदि लोग बैठे हुए थे, मदिरा का समय था, वही सब चल रहा था, तभी पद्मा जोगन का ज़िक्र चल पड़ा! मेरी बात हुई इस औघड़ से, वो पद्मा जोगन के गायब होने से कुछ घंटे पहले ही मिला था उस से, नाम था छगन!
"तुम्हे कुछ आभास हुआ था?" मैंने पूछा,
"नहीं तो" वो बोला,
"कोई आया गया था उसके पास से?" मैंने पूछा,
"मै उसके साथ दोपहर से था, कोई आया गया नहीं था" उसने कहा,
"क्या पद्मा ने कुछ कहा था इस बारे में?" मैंने पूछा,
"नहीं तो" वो बोला,
मै सोच में पड़ गया!
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Re: सियालदाह की एक घटना -वर्ष 2012

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पद्मा जोगन के जान-पहचान का दायरा वैसे तो बहुत बड़ा था, परतु उसको एकांकी रहने ही पसंद था, इक्का-दुक्का लोगों के अलावा और किसी से नहीं मिलती थी, तो हत्या वाला सिरा ख़ारिज किया जा सकता था, न उसके पास धन था और न कोई अन्य विशेष सिद्धि, हाँ मसान अवश्य ही उठा लेती थी, हाँ, वो सिक्का किसी से दुश्मनी का सबब बन सकता था, किसी धन की चाह रखने वाले के लिए, ये सम्भव था,
"छगन?" मैंने पूछा,
"जी?" उसने कहा,
"कोई नया आदमी मिलने आता था उस से?" मैंने पूछा,
"नहीं तो" वो बोला,
"कोई औरत?" मैंने पूछा,
"हाँ, एक औरत आती थी" उसने सुलपा खींचते हुए बताया,
"कौन?" मैंने पूछा,
"बिलसा" उसने धुंआ छोड़ते हुए कहा,
और सुलपा मुझे थमा दिया, मैंने कपडे की फौरी मारी और एक कश जम के खेंचा! तबियत हरी हो गयी! बढ़िया सुतवां लाया था छगन!
"कौन बिलसा?" मैंने पूछा,
''रंगा पहलवान की जोरू" उसने सुलपा लेते हुए कहा,
"वो मालदा वाला डेरू बाबा का रंगा पहलवान?" मैंने पूछा,
"हाँ, वही" उसने धुआं छोड़ते हुए गर्दन हिलाई,
"तो बिलसा काहे आई इसके पास?" मैंने पूछा,
"कोई रिश्ता है दोनों में" उसने कहा,
"किसमे?" मैंने पूछा,
"रंगा में और पद्मा में" वो बोला,
'अच्छा?" मैंने हैरत से पूछा,
"हाँ" वो बोला,
"क्या रिश्ता है?" मैंने पूछा,
"ये नहीं पता?" उसने बताया,
मेरे लिए जानना ज़रूरी था!
"अब बिलसा कहाँ है?" मैंने पूछा,
"वहीँ मालदा में" वो बोला,
"अच्छा, डेरू बाबा के पास?" मैंने पूछा,
"हाँ" उसने कहा,
अब मैंने छगन को अंग्रेजी माल बढ़ाया उसके गिलास में! उसने उठाया, बत्तीसी दिखायी और गटक गया!
"छगन?" मैंने कहा,
"हाँ जी" वो बोला,
"पद्मा के सिक्के के बारे में कुछ पता है?" मैंने पूछा,
"नहीं जी" वो बोला,
"कहीं बिलसा इसी मारे तो नहीं आती थी वहाँ?" मैंने शक ज़ाहिर किया,
"पता नहीं जी" उसने कहा,
"चल कोई बात नहीं, मैं खुद बिलसा से पूछूंगा!" मैंने कहा,
"वहाँ जाओगे?" उसने पूछा,
"हाँ" मैंने कहा,
"मैं भी चलूँ?" उसने पूछा,
"चल" मैंने कहा,
"ठीक है" वो बोला,
अब हमारा कार्यक्रम तय हो गया, कल हम मालदा जाने वाले थे!
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Re: सियालदाह की एक घटना -वर्ष 2012

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अगले दिवस हम निकल पड़े मालदा, सुबह कोई सात बजे, ये तीन सौ छब्बीस किलोमीटर दूर है सियालदह से, सो बस पकड़ी और चल दिए, पूरा दिन लग जाना था, अतः नाश्ता-पानी कर के चल दिए थे!
जब हम वहाँ पहुंचे तो रात के ९ बज गए थे, यात्रा बड़ी बुरी और थकावट वाली थी, घुटने, पाँव और कमर दर्द कर रहे थे! हम सीधे अपने जानकार के डेरे पर पहुंचे, हम वहीँ ठहरे, और स्नान आदि से निवृत हो कर भोजन किया और फिर लम्बे पाँव पसार कर सो गए!
सुबह उठे तो ताज़ा थे, थकावट हट गयी थी! दूध आ गया गरम गरम! दूध पिया और साथ में कुछ मक्खन-ब्रेड भी खाये, नाश्ता हो गया!
"छगन?" मैंने कहा,
"हाँ जी?" वो बोला,
"डेरू बाबा का डेरा कहाँ है यहाँ?" मैंने पूछा,
"होगा यहाँ से कोई पचास किलोमीटर" वो बोला,
"चल फिर" मैंने कहा,
"चलो जी" वो बोला.
अब हम उठे, मैं संचालक से मिला उसको बताया और हम वहाँ से निकल गए डेरू बाबा के डेरे के लिए!
सवारी गाड़ी पकड़ी और उसमे बैठ कर चल दिए, डेढ़ घंटा लग गया पहुँचने में वहाँ, ऊंचाई पर बना था डेरा, बड़ा सा स्वास्तिक बना था दरवाज़े पर और झंडे कतार में लगे थे!
हम अंदर गए, परिचय दिया तो उप-संचालक से बात हुई, उसने हमे एक कक्ष में बिठाया, डेरू बाबा वहाँ नहीं था, खैर, हमे तो रंगा से मिलना था, उप-संचालक ने एक सहायक को भेज दिया उसको बुलवाने के लिए और चाय मंगवा दी, हम चाय पीने लगे, पंद्रह मिनट के बाद सहायक आया और बताया कि रंगा गया हुआ है डेरू बाबा के साथ और शाम को आना है उनको वापिस!
खैर जी,
अब हमने रंगा पहलवान की पत्नी से मिलने की इच्छा जताई, उप-संचालक ने सहायक को भेज दिया बिलसा को बुलवाने के लिए!
थोड़ी देर में एक अधेड़ उम्र की औरत आयी वहाँ, उसने नमस्कार किया हमने भी नमस्कार किया,
"बिलसा? तू ही है?" शर्मा जी ने पूछा,
"हाँ" उनसे कहा,
"आदमी कहाँ है तेरा?" उन्होंने पूछा,
''गया हुआ है डेरू बाबा के साथ" उसने बताया,
"अच्छा" अब मैंने कहा,
"शाम तलक आयेंगे" वो बोली,
"एक बात बता, पद्मा जोगन को जानती है तू?" मैंने पूछा,
वो चुप!
"बता?" मैंने पूछा,
"नहीं" उसने कहा,
अब छगन ने मुझे देखा और मैंने बिलसा को!
"वो सियालदाह वाली पद्मा जोगन?" मैंने पूछा,
"हाँ" उसने कहा,
"कहाँ गयी वो?" मैंने पूछा,
"पता नहीं" वो बोली,
"आखिरी बार कब मिली तू उस से?" मैंने पूछा,
"तभी उसके जाने के दो दिन पहले" वो बोली,
"कुछ बताया था उसने?" मैंने पूछा,
"नहीं" वो बोली,
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"मैंने कुछ पूछा?" मैंने कहा,
"नहीं" वो बोली, और फिर एक दम से उठकर चली गयी बाहर!
मैं आश्चर्यचकित!
"ये बहुत कुछ जानती है, या फिर कुछ भी नहीं खाकधूर कुछ भी नहीं" मैंने कहा,
"लेकिन ये उठ क्यों गयी?" शर्मा जी ने पूछा,
"अपने आदमी के सामने बात करेगी" मैंने कहा,
"यानि कि शाम को" वे बोले,
"हाँ, मैंने कहा,
"चलो कोई बात नहीं, शाम को ही सही" उन्होंने कहा,
"हाँ, शाम को सही" मैंने कहा,
अब हम उठे वहाँ से, बिलसा का रवैय्या पसंद नहीं आया मुझे, लगता था कुछ छिपा रही है हमसे! पर अब शाम को ही बात बन सकती थी!
हम कक्ष से बहार आये, उप-संचालक के पास गए और फिर शाम को आने की कह दिया, वो तो हमको वहीँ रोक रहे थे, लेकिन मैंने मना कर दिया,
हम बाहर आ गए, बाहर आकर भोजन किया और फिर अपने डेरे पर वापिस आने के लिए सवारी गाड़ी पकड़ ली, आराम से हम आ गए अपने डेरे पर!
छगन वहाँ से अपने किसी जानने वाले के पास चला गया और अब यहाँ रह गए हम दोनों, हमने आराम किया और एक झपकी लेने के लिए अपने अपने बिस्तर पर लेट गए!
जन आँख खुली तो २ बजे थे, मौसम सुहावना था, शर्मा जी सोये हुए थे अभी, मैं बाहर आ गया और आकर एक पेड़ के नीचे वहाँ पत्थर से बनी एक कुर्सी पर बैठ गया, और पद्मा जोगन के बारे में सोचने लगा, कोई क्यों चाल खेलेगा उस से? सिक्के के लिए? हाँ, ये हो सकता है, लेकिन वो कहाँ गयी? ये था सवाल असली तो!
तभी शर्मा जी भी बाहर आ गए और मेरे पास आ कर बैठ गए!
"कब उठे?'' उन्होंने पूछा,
"अभी बस आधा घंटा पहले" मैंने कहा,
"थक गया था मैं, इसीलिए ज़यादा सो लिया" वो बोले,
"कोई बात नहीं" मैंने कहा,
"चाय पी जाए" वे बोले,
उन्होंने एक सेवक को चाय लाने के लिए कह दिया! वो चला गया और हम बातचीत करते रहे!
"ये पद्मा जोगन शादीशुदा थी?" उन्होंने पूछा,
"हाँ" मैंने कहा,
"तो इसका आदमी?" उन्होंने पूछा,
"शादी के एक महीने बाद ही रेल से कटकर मर गया था" मैंने कहा,
"ओह" वे बोले,
"कोई संतान?" उन्होंने पूछा,
"कोई नहीं" मैंने कहा,
"ओह" वे फिर बोले,
"तो सियालदाह वो अपने गुरु के साथ रहती थी?" वे बोले,
"हाँ, उसके गुरु ने ही उसकी शादी करवायी थी" मैंने कहा,
"अच्छा" वे बोले,
सहायक चाय लाया और हमने चाय की चुस्कियां लेना आरम्भ किया, साथ में चिप्स भी लाया था, देसी चिप्स!
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