'शून्य' - (Shunya)-- Complete Novel

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Jemsbond
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Re: 'शून्य' - (Shunya)-- Complete Novel

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जॉनकी कार तेज गतिसे रास्तेपर दौड रही थी. कार जैसे जैसे शहरके बाहर जा रही थी वैसे वैसे रास्तेपर यातायात कम होती नजर आ रही थी. जॉनको अकेलापण कुछ जादाही महसूस होने लगा. जॉन रास्तेके किनारे देखने लगा. रास्तेके किनारेभी अब मकानोकी भिड कम होती नजर आ रही थी. थोडा आगे जाकर जॉनकी कार रास्तेके बायी तरफ मुडकर एक कच्चे रास्तेपर दौडने लगी. गाडी चलाते वक्त रास्तेपर मानो धुलके बादल उठ रहे थे. उस वजहसे और रास्ताभी कच्चा होनेसे जॉनके गाडीकी गती कम हो गई थी. आखीर जॉनकी गाडी एक बडे खाली फेन्सके पास रुक गई. गाडी रास्तेके किनारे पार्क कर जॉन गाडीसे उतर गया. गाडीके पिछले सिटपर रखा एक बडा फुलोंका हार उसने अपने हाथोंमें लिया. उसने सामने देखा. फेन्सके दरवाजेपर एक बडा सिमेटरीका पुराना हूवा बोर्ड लगा हूवा था. जॉन वह फुलोंका बडा गोल हार (रीथ) लेकर सिमेटरीमें दाखील हूवा. अंदर जानेके बाद उसका दिल और ही भारी भारी हो गया था. उसके चलनेकी गती धीमी हो गई थी. वह वैसेही भारी मनसे अंदर जाकर एक समाधीके सामने खडा हो गया. उसने समाधीपर खुदे अक्षरोंपर एक नजर घुमाई. वह अँजेनीकी समाधी थी. थोडी देर वैसेही स्तब्ध खडे रहकर उसने झुककर वह गोल हार उसके समाधीपर रखा और घूटने टेककर वह शांतीसे आंखे मुंदकर उसको आत्मशांती मिलनेके लिए प्रार्थना करने लगा. उसे उसकी वह गंभीर, अल्लड, भोली, लोभस, अदाए याद आने लगी. उसका दिल भर आने लगा था.
उसने अँजेनीके साथ पूरी जिंदगी व्यतित करनेका निश्चय किया था. लेकिन नियतीके सामने उसके निश्चयको क्या किमत थी?..
शून्य...
उसखी आंखे भर आयी और उससे आंसू बहने लगे. एक वडासा आंसू बहते हूए उसके गालपरसे होकर अँजेनीके समाधीपर रखे गोल हारके एकदम बिचोबिच जाकर गिरा. थोडी देर बाद उसने किनारेंको आंसू लगी हूई अपनी पलके खोली. उसकी नजर सामने रखे गोल हारकी तरफ गई.
' सचमुछ कितना अनोखा है आदमीका जिवन..' वह सोचने लगा. '... शून्यसे आना और आखिर शून्यमेंही विलीन हो जाना'

शहर पोलीस ब्रांचप्रमुख बाहर बाल्कनीमें बैठे हूए चायका आनंद ले रहा था. वह अब रिटायर हो चूका था. सच कहा जाए तो वह रिटायर होनेसेही जॉन केसपर ठिक ढंगसे काम कर पाया था. और तहकिकात का पुरा जिम्मा और क्रेडीट उसे मिल पाया था. शहर पोलीस शाखाप्रमुख एक आतंकवादी ऑरगनायझेशनका मेंबर था. उसी आतंकवादी ऑरगनायझेशनके उपरके पदाधिकारीयोंसे जॉन जिस केस पर काम कर रहा था उसमें रुकावट डालनेके उसको आदेश थे. डॉ. कयूम खान और शहर पोलीस शाखाप्रमुख उनका वैसे आमनेसामने कोई संबंध नही था. जिस ऑरगनायझेशनका डॉ. कयूम खान मेंबर था उसी आतंकवादी ऑरगनायझेशनका शहर पोलीस शाखाप्रमुखभी मेंबर था. जब डॉ. कयूम खानको अपने भविष्यमें आनेवाले खतरेका अहसास हूवा तभी उसने उसका काम किसी औरके पास सौपानेकी बिनती उपरके अधिकारीयोंके पास की थी. और उसके वरिष्ठोने उसे रिटायर्ड शहर पोलीस शाखाप्रमुखका नाम सुझाया था.
आरामसे चायका एक एक घूंट लेकर रिटायर्ड शहर पोलीस शाखाप्रमुख एक एक बात याद कर रहा था. मरनेके एक दिन पहले डॉ. कयूम खान उसे मिलनेके लिए आया था. वह जब आया था तब उसने सिर्फ इतनीही अपनी पहचान बताई थी की उसे ऑरगनायझेशनके वरिष्ठोंने उसके पास भेजा है. वैसे वह जादा कुछ बोला नही था. सिर्फ प्लास्टीकमें लपेटी हूई कुछ चिज उसके हवाले कर वह उसे कामयाबीकी दुहाई देकर वहांसे चल दिया था. जब डॉ. कयूम खान मारा गया और उसके फोटो न्यूज पेपरमें आगए तभी रिटायर्ड शहर पोलीस शाखाप्रमुखको पता चला था की वह डॉ. कयूम खान था.
चाय खतम कर रिटायर्ड शहर पोलीस शाखाप्रमुखने अपनी गोदमें रखी प्लास्टीकमें लपेटी हूई वह चिज खोली. उसमें सूचनावजा जानकारी देनेवाले कुछ कागजाद थे. उसने वह कागजाद पढकर देखे. जैसे जैसे वह आगे पढने लगा उसके सासोंकी गती बढने लगी. उसमें एक नवचैतन्य दिखने लगा था. वह भलेही शहर पोलीस शाखाप्रमुखके पदसे रिटायर हो गया था, ऑरगनायझेशनने उसे डॉ. कयूम खानकी तरफसे झीरो मिस्ट्रीकी अगली जिम्मेवारी सौंपी थी. उसने वह कागजाद बाजूमें रखकर उस प्लास्टीकके अंदर झांककर देखा. उसमें एक पुराना जिर्ण हूई किताब रखी थी. उसने वह किताब अपने हाथमें लिया और वह उसके पन्ने बडी सावधानीके साथ पलटने लगा. उस किताबके बारेंमे अंग्रेजी नोट्सभी उस किताबके पन्नोके बिच रखे थे. वह वह नोट्स पढने लगा. डॉ. कयूम खानने आपनेपास था वह ज्ञान रिटायर्ड शहर पोलीस शाखाप्रमुखाकके पास हस्तांतरीत किया था. रिटायर्ड शहर पोलीस शाखाप्रमुख खुशीसे फुला नही समा पा रहा था. वह सोचने लगा ...
की यह उसका ऑरगनायझेशनके प्रति जो निष्ठा उसने रखीथी उसका नतिजा था या फिर विधीलिखीत...
उस किताबमें लिखी नोट्स पढते पढते उसका विश्वास दृढ होने लगा था की यह सब शायद विधीलिखीतही होना चाहिए...
स्वच्छ और शुभ्र नदीका बहता हूवा पाणी मधूर संगीत बिखेर रहा था. उस बहते पाणीकी साथ नदीके किनारेसे वह ऋषी चलने लगा. थोडी देरमें चलते हूए वह अपनी गुंफाके पास पहूंच गया. गुंफाके पास पहूचतेही वह रुका और उसने चारो ओर अपनी नजर दौडाई. मानो प्रकृतीका सौंदर्य उसने अपने तेजस्वी आंखोसे पी लीया हो. फिर धीरे धीरे मंद गतीसे वह अपने गुंफाकी तरफ जाने लगा. गुंफाके द्वारमें रुककर उसने फिरसे एक बार मुडकर नदीकी तरफ देखा. फिर उसने अपनी गुंफामें प्रवेश किया. गुंफामें मंद मंद रोशनी थी. धुंधली रोशनीमें वह अपने आसनके पास चला गया. अपना आसन ठिक कर वह फिरसे ध्यान धारणाके लिए उसपर बैठ गया. धुंधली रोशनीमेंभी उसके चेहरेपर एक तेज झलक रहा था. उसके सरके आसपास एक गोल आभा फैली हूई दिख रही थी.
गोल... किसी बडे शून्यक तरह ...
फिर उसकी दृष्टी धीरे धीरे स्थिर हो गई ... शून्यमें...
आंखे धीरे धीरे बंद होगई. और वह ध्यानस्थ हो गया. काल स्थल और अपने नश्वर शरीर के परे उसका सुक्ष्म अहसास मानो आजाद होकर विचर करने लगा.
फिर कुछभी नही ...
शून्य विचार, शून्य अस्तित्व...
बिलकूल शून्य!
सब कुछ शून्यही शून्य!





- समाप्त -





प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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