'शून्य' - (Shunya)-- Complete Novel

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Jemsbond
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Re: 'शून्य' - (Shunya)-- Complete Novel

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टीव्ही चॅनल्सपरभी आज दिनभर 'झीरो मिस्ट्री'के अलावा दुसरी कोई खबरें नही थी. एक तरफ 'झीरो मिस्ट्री'की गुत्थी सुलझानेसे लोगोंमें संतोष था तो दुसरी तरफ उस केस का गांभीर्य और आगे होनेवाले परिणाम लोगोंके चेहरेपर अलग अलग रुपसे झलक रहे थे. इस सब झुट सच के चक्करमें अलग अलग अफवाहें फैल रही थी. ऐसे वक्तमें लोगोंको एक ठोस मार्गदर्शन और 'झीरो मिस्ट्री' का सच जैसे के तैसा उनके सामने रखनेकी जरुरत थी. .
शहरमे दंगे फसाद अब कम होते नजर आ रहे थे. लेकिन बिच बिचमें अंदर जल रही आग घात प्रतिघातके स्वरुपमें बाहर आ रही थी. ऐसे वक्तमें एक स्पेशल प्रेस कॉन्फरंस लेकर लोगोंको 'झीरो मिस्ट्री' और उसके पिछे रहे उन लोगोंके असली उद्देशके बारेमें बताना बहुत जरुरी था. 'झीरो मिस्ट्री' की गुथ्थी सुलझाकर सच बाहर लाने का पुरा श्रेय जॉनको जाता था, इसमें कोई दोराय नही थी. पुलिस डिपार्टमेंटनेभी उसे जिस जोरशोरसे डिसमिस किया था उसी जोरशोरसे सरपर बिठाकर विजयमाला उसके गलेमें पहनाई गई थी. प्रेस कॉन्फरंसमे शहरकेही नही तो सारे देशके टीव्ही चॅनल्स और न्यूजपेपरके रिपोर्टरोंने भिड की थी. प्रेस कॉन्फरंन्समें जॉनका प्रवेश होतेही सबतरफ एक जल्लोष दिखने लगा. जॉनके चेहरेपर कॅमेरेके फ्लॅश गिरानेकी मानो होड लग गई हो. इतने भिडमेंभी सामने चमक रहे फ्लशकी तरह एक विचार जॉन के जहनमें आया.
अँजेनीको खोनेके बाद उसने खुदको इस केसमे पुरी तरह डूबो लिया था और केस सुलझाई थी ...
लेकिन अब बादमें क्या ?...
यह केस ठंडी पडनेके बाद यह जो भिड उसके इर्द गिर्द दिख रही थी वह छटने वाली थी... .
और फिर वह बिलकुल अकेला होनेवाला था... .
और अकेला होनेके बाद फिरसे वह निराशा... फिरसे वह अँजेनीको खोनेका दर्द...
सोच में डूबा जॉन जहां मायक्रोफोन्स किसी गुलदस्तेकी तरह एक जगह इकठ्ठा रखे हूए थे वहा पहूंच गया. वह केस सुलझानेका सम्मान और अँजनीको खोनेका दर्द एकसाथ लेकर वह आज सब रिपोर्टरोंका सामना कर रहा था. आज पहली बार पूर आत्मविश्वासके साथ वह रिपोर्टरोंके सामने खडा था.


रिपोर्टरोंके सवालोंका तांता शुरु हो गया.
" यह डॉ. कयूम कौन है? "
" विनय जोशी और उसका आपसमें क्या संबंध है?"
" वे किस ऑरगनायझेशनके तालूकात रखते थे?"
" दोनोभी एकसाथ कैसे मारे गये? कमसे कम एक तो जिवित रहना चाहिए था"
" पुलिस कुछ छिपानेका प्रयास तो नही कर रही है?"
" दोनोंको मारकर यह केस खत्म हूवा ऐसा कैसे मान ले?"
" यह आतंकवाद अब किस हद तक जायेगा?"
" हिंदू आतंकवाद! यह और एक नया आतंकवाद? "
" वन अॅट अ टाईम प्लीज " जॉनका आत्मविश्वाससे भरा स्वर गुंजा.
उसके आवाजसे सब लोग थोडे शांत होगए.
" आज मेरे पास इस केससे सबंधीत सारे सवालोंके जवाब तैयार है. इसलिए थोडा धीरज रखो और वैसेभी अब केस खतम होनेसे मै एकदम खाली हूं ... मुझेभी कोई जल्दी नही है.. " आज पहली बार जॉन पत्रकारोंके सामने खुलकर बोल रहा था.
पत्रकारोंमे थोडी हंसी की लहर दौड गई. मौहोल थोडा हंसी मजाकका बन गया.
एक रिपोर्टर सवाल पुछनेके लिए सामने आया.
" मुझे लगता है हिंदू आतंकवादसे अमरिकाका पहली बार सामना हो रहा होगा. इसे कितने गंभीरतासे लेना चाहिए.? "
जॉन बोलने लगा -
" यह 'झीरो मिस्ट्री' कोई मामूली घटना ना होकर अमरिकाके इतिहासमें पहली बार दुष्मनने सोच समझकर और चालाकीसे रची हूई एक चाल है. इस घटनाके तहतक जाकर हमें जो तथ्योंका पता चला है वह सारे तथ्य आपके सामने रखनेसे आपको यह बात पता चल जायेगी.
तथ्य क्रमांक 1 - इस 'झीरो मिस्ट्री' का हिंदू आतंकवाद या हिंदू धर्मसे कोई दुरकाभी वास्ता या संबध ना होकर जानबुझकर वैसा आभास तैयार किया गया है.
तथ्य क्रमांक 2 - 'झीरो मिस्ट्री' का जनक 'डॉ. कयूम खान' किसीभी हिंदू ऑर्गनायझेशनसे संबंधित ना होकर उसका सिधा सिधा संबंध 'लष्करे कायदा' इस आतंकवादी ऑर्गनायझेशनसे आता है. यह ऑर्गनायझेशन 'लष्करे तोयबा' या 'अल कायदा' इन आतंकवादी और प्रतिबंधीत ऑर्गनायझेशनका आयसोटोप हो सकती है और ये लोग उनके हस्तक हो सकते है. उनका काम करनेका तरीका और उनके ऑर्गनायझेशनका उगम देखते हूए यह बाते ध्यानमें आती है.
तथ्य क्रमांक 3 - 'झीरो मिस्ट्री' मसलेको हम प्रॉक्सी आतंकवाद कह सकते है. उनका उद्देश भारत और अमेरिकाके सुधरते संबंध, उनका अण्वस्त्र करार, उनकी एक दुसरे पर निर्भर आर्थिक परिस्थिती देखते हूए इन दो देशोमें दरार बनाकर दोनो देशोंको आर्थिक हानी पहूचाना था.."
जॉनने एक दीर्घ सांस लेकर फिर आगे बोलने लगा -
" इसलिए मै सारी दुनियाको तुम पत्रकारोंके जरीये फिरसे बताना चाहता हू की 'झीरो मिस्ट्री' यह हिंदू आतंकवाद ना होकर वैसा आभास तैयार किया गया था... आप लोग अमेरिकन हो या हिन्दोस्तानी हो ... इस आभास के झासें मे नही आना चाहिए... इसमे नुकसान दोनोंका है ... जितना अमेरिकाका उतनाही हिन्दोस्तानकाभी.'
" लेकिन इंटरनेटपर एक ऑडीओ रिलीज की गई थी उसका क्या? ... उससे तो अलग ही मतलब निकलता है...'' एक रिपोर्टरने बिचमेंही पुछा.
फिरसे जॉन बोलने लगा.
" वह एक भारतीय लोगोंको अमेरिकन लोगोंके खिलाफ और अमेरिकन लोगोंको भारतीय लोगोंके खिलाफ भडकानेकी एक साजिश थी और दुर्भाग्यसे वे लोगे उसमें कामयाब भी हूए थे'
" लेकिन इस 'झीरो मिस्ट्री' से अमरिकाको क्यो नुकसान होगा?...मुझे नही लगता की इससे जानमालका जो थोडाबहुत नुकसान हूवा वह छोडकर अमेरीकाको दुसरा कोई नुकसान हो सकता है... "
" उन लोगोंने जैसे इस शहरमें 'झीरो मिस्ट्री' खुनी शृंखला पुरी कर सारी अराजकता मचा दी थी. .. वैसीही अमेरिकाके अन्य बडे शहरोमें 'झीरो मिस्ट्री' खुनी शृंखला चलानेका उनका मनसुबा था. .... सौभाग्यसे हमने उनको उसमें कामयाब नही होने दिया है ... इस सब घटनाक्रममें उपर उपर से ऐसा लगता है की अमेरीकाका उसमें कोई नुकसान नही ...लेकिन सोचसमझकर देखनेके बाद पता चलता है की ... आजके स्थितीमें भारत यह एकमेव ऐसा देश है की जिनके लोग यहां बडे पैमानेपर जॉबके लिए आए हूए है... उनमेंके कुछ लोगोंको अमेरिकन नाकरीकत्वभी मिल चूका है... इन लोगोंको अगर एक साथ भडकाकर उनको नुकसान पहूचाया या फिर उनको सिर्फ निष्क्रीयभी किया तो अमेरिकेमें बडे पैमानेपर काम बंद होगा और परिणामत: अमेरिकाके इकॉनॉमीपर उसका जरुर गलत असर पडेगा. .... उसी तरह आज अमेरिकाकी काफी कंपनीयां भारतमें निवेश कर चूकी है... वहा भारतमेंभी अगर उनके खिलाफ प्रतिकूल परिस्थिती निर्माण हो गई तो उसका सिधा असर उन कंपनीयोंको ... और परीणामत: अमेरिकाकी इकॉनॉमीपर होने वाला है. "
" और इस 'झीरो मिस्ट्री'से भारतका किस तरहका नुकसान होगा?" एक भारतीय मूलके पत्रकारने पुछा. "काफी लोगोंको पता होगा या उन्होने सुना होगा ... की 90 के दशकमें एक वक्त ऐसा आया था की भारतीय अर्थव्यवस्था पुरीतरह ढहनेके कगार पर थी... तब परकीय चलन पानेके लिए रिजर्व बॅकको आखरी उपायके तौर पर बडे पैमानेपर आरक्षित किया हूवा सोना बेचना पडा था. .... लेकिन उस वक्त भारतीय अर्थव्यवस्थाको जो गती मिली थी वह एनआरआय लोगोंके भारतमें किये निवेशकी वजहसे. ... और इस तरह परकीय चलनकी जो कमी थी वह पूरी हो गई थी... उस वक्त एक अच्छी बात भी हूई की ... धीरे धीरे उनकी सॉफ्टवेअर इंडस्ट्रीभी समृध्दीकी ओर बढने लगी थी ... आगे चलकर भारत अमेरिका और वहांके सॉफ्टवेअर कंपनीके लिए आऊट सोर्सीग करने लगा.. .. आजभी ऐसे हालात है की भारतीय अर्थव्यवस्था बडे पैमानेपर आऊट सोर्सीगपर निर्भर है... यह 'झीरो मिस्ट्री' मसला अगर और बिगड गया तो भारतका आऊटसोर्सीग और विदेशी कंपनीयोंका भारतमें निवेश रुक जाएगा... और परीणाम स्वरुप भारतीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह गडबडा जाएगी... कोई माने या ना माने ....आज के स्थितीमें भारत और अमेरिकाका रिश्ता एकदूसरेका हाथ पकडकर आगे चलनेका है... इस रिश्तेमें अगर दरार आ जाये तो हानी दोनोंकोभी भूगतनी पडेगी ... "
जॉनने किसी अर्थतज्ञकी तरह भारतीय और अमेरिकन अर्थव्यवस्थाका तर्कसंगत विश्लेषण किया.
" लेकिन सिर्फ डॉ. कयूम या विनय जोशी सरीके लोगोंको मारकर या पकडकर क्या इस समस्याका समाधान होनेवाला है ?"
एक रिपोर्टरने सवाल पुछा.
"नही ... दुर्भाग्यसे इसका जवाब 'नही' ऐसा है ...क्योकी भारत और अमेरिकामें दरार बनाना उस ऑर्गनायझेशनकी एक कोशीश थी... और डॉ. कयूम क्या या फिर विनय जोशी क्या ये तो उनके हाथके सिर्फ खिलौने थे.... भविष्यमें ऐसे औरभी प्रयास हो सकते है... फर्क सिर्फ इतनाही रहेगा की उस वक्त डॉ. कयूम या विनय जोशीकी जगह दुसरा कोई होगा.. ."
" फिर अब इस सबका हल क्या है ?" एक रिपोर्टरने अगला सवाल पुछा.
" इसका हल एकही है ... की अमेरिकन , भारतीय अमेरिकन और भारतीय लोगोंने अपनी सद्विवेक बुध्दी सही सलामत रखकर इस सबमें छिपी हूई चाल और तीव्रता समझ लेना जरुरी है.. और उन्हे तुरंत सारे दंगाफसाद रोकने चाहिए... अगर वैसा नही हुवा तो दुष्मन अपने इरादोंमें पुरी तरह कामयाब हुये जैसा होगा... अगर हमनें आपसमेंही दंगाफसाद किये तो वह अपनेही पैर पर कुलाडी मारने जैसा होगा... और फिर हमें अपने पतनसे कोई नही बचा पाएगा... अब वक्त आ गया है की लोगोंने होशीयार और सतर्क होना चाहिए... किसीकेभी भडकाने या बहलावेमें ना आकर खुदकी आखे खुली रखकर खुदके सद्विवेक बुध्दीसे खुदके निर्णय लेनेका अब वक्त आया है..."
अब रिपर्टरोंके सवाल उस एक घटनासे संबंधित ना रहकर आतंकवाद इस जागतिक मुद्देपर होने लगे थे. इसलिए जॉनने अब प्रेस कॉन्फरंन्स समेटकर वहांसे निकलना ही बेहतर समझा. क्योकी आतंकवादपर बोलना यह कोई प्रेस कॉन्फरन्स का हेतू नही था. और उस विषयपर भाष्य करना जॉनको उचीत नही लग रहा था. जिस केसपर जानकारी देनेके लिए यह प्रेस कॉन्फरंन्स बुलाई गई थी वह पुरी जानकारी जॉनने दी थी.
"इस तरह सब लोगोंपर सौंपकर पुलिस कैसे क्या अपने कर्तव्यसे मुंह मोड ले सकते है.?... उनकीभी लोगोंके प्रती कुछ जिम्मेदारीयां बनती है.." एक रिपोर्टरने व्यंग और कटूतासे कहा.
वहांसे निकलनेके लिये जॉन मुडनेही वाला था, रुककर बोला,
" मैने ऐसा कभीभी नही कहा... पुलिसको उनका कर्तव्य तो है ही... और वे उसको तत्परतासे निभाएंगे... लेकिन आतंकवाद यह सिर्फ एक घटना ना होकर वह एक फेनॉमेनॉ है ... उसमें आम लोगोंपर जादा जिम्मेदारीयां होती है... वह जिम्मेदारीयां वे निभाएंगे इतनीही हमारी उनसे अपेक्षा है..."
जॉन थोडी देर रुका और बोला,
"अब मुझे लगता है .... की इस घटनासे संबंधित सारी जानकारी मैने आपके सामने जैसी थी वैसी पुरी तरहसे रखी है... थँक यू"
जॉन पलटकर प्रेस कॉन्फरंन्ससे बाहर जानेके लिए निकला. जाते वक्तभी रिपोर्टरोंकी भीड उसे सवाल पुछनेके लिए बिचबिचमें आ रही थी. जो उसके साथ थे उन पुलिसने उसे उस भिडसे रास्ता बनाते हूए बाहर उसके गाडीतक पहुचनेमें उसकी मदत की.
क्रमश:

प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Jemsbond
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जॉनकी कार तेज गतिसे रास्तेपर दौड रही थी. कार जैसे जैसे शहरके बाहर जा रही थी वैसे वैसे रास्तेपर यातायात कम होती नजर आ रही थी. जॉनको अकेलापण कुछ जादाही महसूस होने लगा. जॉन रास्तेके किनारे देखने लगा. रास्तेके किनारेभी अब मकानोकी भिड कम होती नजर आ रही थी. थोडा आगे जाकर जॉनकी कार रास्तेके बायी तरफ मुडकर एक कच्चे रास्तेपर दौडने लगी. गाडी चलाते वक्त रास्तेपर मानो धुलके बादल उठ रहे थे. उस वजहसे और रास्ताभी कच्चा होनेसे जॉनके गाडीकी गती कम हो गई थी. आखीर जॉनकी गाडी एक बडे खाली फेन्सके पास रुक गई. गाडी रास्तेके किनारे पार्क कर जॉन गाडीसे उतर गया. गाडीके पिछले सिटपर रखा एक बडा फुलोंका हार उसने अपने हाथोंमें लिया. उसने सामने देखा. फेन्सके दरवाजेपर एक बडा सिमेटरीका पुराना हूवा बोर्ड लगा हूवा था. जॉन वह फुलोंका बडा गोल हार (रीथ) लेकर सिमेटरीमें दाखील हूवा. अंदर जानेके बाद उसका दिल और ही भारी भारी हो गया था. उसके चलनेकी गती धीमी हो गई थी. वह वैसेही भारी मनसे अंदर जाकर एक समाधीके सामने खडा हो गया. उसने समाधीपर खुदे अक्षरोंपर एक नजर घुमाई. वह अँजेनीकी समाधी थी. थोडी देर वैसेही स्तब्ध खडे रहकर उसने झुककर वह गोल हार उसके समाधीपर रखा और घूटने टेककर वह शांतीसे आंखे मुंदकर उसको आत्मशांती मिलनेके लिए प्रार्थना करने लगा. उसे उसकी वह गंभीर, अल्लड, भोली, लोभस, अदाए याद आने लगी. उसका दिल भर आने लगा था.
उसने अँजेनीके साथ पूरी जिंदगी व्यतित करनेका निश्चय किया था. लेकिन नियतीके सामने उसके निश्चयको क्या किमत थी?..
शून्य...
उसखी आंखे भर आयी और उससे आंसू बहने लगे. एक वडासा आंसू बहते हूए उसके गालपरसे होकर अँजेनीके समाधीपर रखे गोल हारके एकदम बिचोबिच जाकर गिरा. थोडी देर बाद उसने किनारेंको आंसू लगी हूई अपनी पलके खोली. उसकी नजर सामने रखे गोल हारकी तरफ गई.
' सचमुछ कितना अनोखा है आदमीका जिवन..' वह सोचने लगा. '... शून्यसे आना और आखिर शून्यमेंही विलीन हो जाना'

शहर पोलीस ब्रांचप्रमुख बाहर बाल्कनीमें बैठे हूए चायका आनंद ले रहा था. वह अब रिटायर हो चूका था. सच कहा जाए तो वह रिटायर होनेसेही जॉन केसपर ठिक ढंगसे काम कर पाया था. और तहकिकात का पुरा जिम्मा और क्रेडीट उसे मिल पाया था. शहर पोलीस शाखाप्रमुख एक आतंकवादी ऑरगनायझेशनका मेंबर था. उसी आतंकवादी ऑरगनायझेशनके उपरके पदाधिकारीयोंसे जॉन जिस केस पर काम कर रहा था उसमें रुकावट डालनेके उसको आदेश थे. डॉ. कयूम खान और शहर पोलीस शाखाप्रमुख उनका वैसे आमनेसामने कोई संबंध नही था. जिस ऑरगनायझेशनका डॉ. कयूम खान मेंबर था उसी आतंकवादी ऑरगनायझेशनका शहर पोलीस शाखाप्रमुखभी मेंबर था. जब डॉ. कयूम खानको अपने भविष्यमें आनेवाले खतरेका अहसास हूवा तभी उसने उसका काम किसी औरके पास सौपानेकी बिनती उपरके अधिकारीयोंके पास की थी. और उसके वरिष्ठोने उसे रिटायर्ड शहर पोलीस शाखाप्रमुखका नाम सुझाया था.
आरामसे चायका एक एक घूंट लेकर रिटायर्ड शहर पोलीस शाखाप्रमुख एक एक बात याद कर रहा था. मरनेके एक दिन पहले डॉ. कयूम खान उसे मिलनेके लिए आया था. वह जब आया था तब उसने सिर्फ इतनीही अपनी पहचान बताई थी की उसे ऑरगनायझेशनके वरिष्ठोंने उसके पास भेजा है. वैसे वह जादा कुछ बोला नही था. सिर्फ प्लास्टीकमें लपेटी हूई कुछ चिज उसके हवाले कर वह उसे कामयाबीकी दुहाई देकर वहांसे चल दिया था. जब डॉ. कयूम खान मारा गया और उसके फोटो न्यूज पेपरमें आगए तभी रिटायर्ड शहर पोलीस शाखाप्रमुखको पता चला था की वह डॉ. कयूम खान था.
चाय खतम कर रिटायर्ड शहर पोलीस शाखाप्रमुखने अपनी गोदमें रखी प्लास्टीकमें लपेटी हूई वह चिज खोली. उसमें सूचनावजा जानकारी देनेवाले कुछ कागजाद थे. उसने वह कागजाद पढकर देखे. जैसे जैसे वह आगे पढने लगा उसके सासोंकी गती बढने लगी. उसमें एक नवचैतन्य दिखने लगा था. वह भलेही शहर पोलीस शाखाप्रमुखके पदसे रिटायर हो गया था, ऑरगनायझेशनने उसे डॉ. कयूम खानकी तरफसे झीरो मिस्ट्रीकी अगली जिम्मेवारी सौंपी थी. उसने वह कागजाद बाजूमें रखकर उस प्लास्टीकके अंदर झांककर देखा. उसमें एक पुराना जिर्ण हूई किताब रखी थी. उसने वह किताब अपने हाथमें लिया और वह उसके पन्ने बडी सावधानीके साथ पलटने लगा. उस किताबके बारेंमे अंग्रेजी नोट्सभी उस किताबके पन्नोके बिच रखे थे. वह वह नोट्स पढने लगा. डॉ. कयूम खानने आपनेपास था वह ज्ञान रिटायर्ड शहर पोलीस शाखाप्रमुखाकके पास हस्तांतरीत किया था. रिटायर्ड शहर पोलीस शाखाप्रमुख खुशीसे फुला नही समा पा रहा था. वह सोचने लगा ...
की यह उसका ऑरगनायझेशनके प्रति जो निष्ठा उसने रखीथी उसका नतिजा था या फिर विधीलिखीत...
उस किताबमें लिखी नोट्स पढते पढते उसका विश्वास दृढ होने लगा था की यह सब शायद विधीलिखीतही होना चाहिए...
स्वच्छ और शुभ्र नदीका बहता हूवा पाणी मधूर संगीत बिखेर रहा था. उस बहते पाणीकी साथ नदीके किनारेसे वह ऋषी चलने लगा. थोडी देरमें चलते हूए वह अपनी गुंफाके पास पहूंच गया. गुंफाके पास पहूचतेही वह रुका और उसने चारो ओर अपनी नजर दौडाई. मानो प्रकृतीका सौंदर्य उसने अपने तेजस्वी आंखोसे पी लीया हो. फिर धीरे धीरे मंद गतीसे वह अपने गुंफाकी तरफ जाने लगा. गुंफाके द्वारमें रुककर उसने फिरसे एक बार मुडकर नदीकी तरफ देखा. फिर उसने अपनी गुंफामें प्रवेश किया. गुंफामें मंद मंद रोशनी थी. धुंधली रोशनीमें वह अपने आसनके पास चला गया. अपना आसन ठिक कर वह फिरसे ध्यान धारणाके लिए उसपर बैठ गया. धुंधली रोशनीमेंभी उसके चेहरेपर एक तेज झलक रहा था. उसके सरके आसपास एक गोल आभा फैली हूई दिख रही थी.
गोल... किसी बडे शून्यक तरह ...
फिर उसकी दृष्टी धीरे धीरे स्थिर हो गई ... शून्यमें...
आंखे धीरे धीरे बंद होगई. और वह ध्यानस्थ हो गया. काल स्थल और अपने नश्वर शरीर के परे उसका सुक्ष्म अहसास मानो आजाद होकर विचर करने लगा.
फिर कुछभी नही ...
शून्य विचार, शून्य अस्तित्व...
बिलकूल शून्य!
सब कुछ शून्यही शून्य!





- समाप्त -





प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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