'शून्य' - (Shunya)-- Complete Novel

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Jemsbond
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Re: 'शून्य' - (Shunya)-- Complete Novel

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वह आदमी सिर्फ दायी तरफ हाथसे इशारा करते हूए लिफ्टमें घुस गया. सॅम और कुछ पुछे इसके पहलेही लिफ्टका दरवाजा बंद हो गया और वह आदमी लिफ्टमें गायब होगया था. दोनोंने और कोई पुछनेके लिए मिलता है क्या यह देखा. आसपासभी कोई दिख नही रहा था. उन्होने एक पल सोचा और वे दोनो दायी तरफ निकल पडे.
जॉनने फ्लॅटके दरवाजेपर देखा. 1015 नंबर लिखा हूवा था. दोनोने एक दुसरेकी तरफ देखकर स्वीकारातत्मक सर हिलाया. दोनोभी सतर्क हो गए. सॅमने अपनी बंदूक निकाली और सामने जाकर धीरेसे दरवाजा धकेला. दरवाजा खुलाही था. सॅम और जॉन सावधानीसे अंदर घुस गए. अंदर हॉलमे सब तरफ सब सामान पडा हुवा था. और उस सामानके बिचमें फर्शपर खुनके तालाबमें एक शरीर पडा हूवा था.
" माय गॉड" सॅमके मुंहसे निकल गया.
" लेट मी चेक हिज बीट "
जॉनने निचे पडे हूए शरीर की नब्ज टटोली.
जॉनने सॅमकी तरफ देखा.
सॅमने जॉनको इशारेसेही पुछा.
" ही ईज डेड" जॉनने निराशायुक्त स्वरमें कहा.
सॅमने निराशासे भरी एक लंबी सांस छोडी.
और वह पुरा फ्लॅट ढूंढने के लिये अंदर चला गया.
जॉनने हमेशाकी तरह सामने दिवारपर देखा. इसबारभी खुनसे शून्य निकालनेसे कातील नही भूला था. शून्यके बिचमें खुनसे लिखनेसेभी वह नही चूका था. दूरसे कातिलने क्या लिखा है यह पहचानमें नही आ रहा था इसलिए वह दिवारके पास जाकर देखने लगा.
" शून्य जहासे शुरु होता है वही खतम होता है " दिवारपर लिखा था.
दिवारपर लिखे उस मेसेजकी तरफ देखकर जॉन सोचने लगा. उधर अंदर सॅमका कुछ ढूंढनेका आवाज आ रहा था.
सोचते सोचत अचानक जॉनके चेहरेपर डर का साया छा गया.
"सॅम..." जॉनने सॅमको अपने कपकापाते स्वरमें आवाज दिया.
सॅम झटसे अपना काम छोडकर दौडतेही बाहर आ गया.
" क्या हूवा ?" सॅम जॉनके डरे हूए चेहरेकी तरफ देखकर बोला.
अबतक जॉन खुले दरवाजेकी तरफ दौड पडा था और सॅम कुछ समझ पाए इसके पहलेही जॉन दरवाजेके बाहर सॅमके नजरोंसे ओझल हो गया था.
दरवाजेके बाहरसे जॉनका आवाज आया,
" चलो ... चलो हमें जल्दी करनी पडेगी..."
" कहा ?" सॅमने दरवाजेके बाहर जाते हूए पुछा.
बाहर कॉरीडोरमें जॉन लिफ्टकी तरफ दौड पडा था. सॅमको जॉन क्यों दौड रहा है कुछ समझ नही आ रहा था.
सिर्फ उसके हरकतोंसे कुछ तो गडबड है या होनेकी संभावनाका डर झलक रहा था.
कुछ ना समझते हूए सॅमभी उसके पिछे दौडने लगा.
लिफ्टके पास पहूंचकर जॉनने लिफ्टका बटन दबाया. इत्तफाकसे लिफ्ट वही थी. लिफ्टका दरवाजा खुला.
जॉनने सॅमकी तरफ देखकर कहा, " चलो जल्दी ... हमें तुरंत निकलना चाहिए"
जॉन सॅमके लिए ना रुकते हूए लिफ्टमें घुस गया. सॅम और जोरसे दौडते हूए लिफ्टका दरवाजा बंद होनेके पहले लिफ्टमे घुस गया.
अंदर जाते हूए सॅमने दुबारा पुछा, " लेकिन ... हम कहां जा रहे है?"
" बताता हूं ' जॉन अपनी तेज हूई सांसे ठीक करने की कोशीश करते हूए बोला.
सॅम लिफ्टमें घुसकर जॉनकी तरफ आश्चर्यसे देखते हूए उसके पास जाकर खडा होगया और धीरे धीरे लिफ्टका दरवाजा बंद हो गया.

जॉनने धडकते दिलसे फ्लॅटका दरवाजा धकेला. दरवाजा खुलाही था. अंदरका नजारा देखकर जॉनको एक पलके लिए तो ऐसा लगा की उसका दिल धडकना बंद हो जाएगा देगा. उसके सामने हॉलमे उसकी प्रीया अँजेनी खुनसे लथपथ पडी हूई थी. और सामने दिवारपर एक बडा शुन्य निकाला हूवा था. जॉन उसके पास गया. उसको एहसास हूवा की उसके पैर क्षीण होने लगे है मानो पैरोंकी सारी शक्ती निकाल ली हो. इतनी की वह निराशासे निचेही बैठ गया. खुदको संभालकर उसने अँजेनीकी नब्ज टटोली और वह उसकी हथेलीमे अपना चेहरा छुपाकर अनियंत्रीत होकर रोने लगा.
अँजेनीके प्राण कबके जा चूके थे...
सॅमको क्या करे कुछ सुझ नही रहा था. उसने सांत्वनाभरा एक हाथ जॉनके कंधेपर रखा. उसके हाथको जॉनके सिसकीयोंके धक्के किसी भूकंपके धक्के जैसे भयानक प्रतित हो रहे थे. सॅम जॉनके पास घूटने टेककर बैठ गया.
कातिल अपना आखरी शिकार करनेमेभी कामयाब रहा था.
सॅम " शून्य जहासे शुरु होता है वही खतम होता है " इस बातका मतलब समझ गया था.
और 'शून्य' का आखरी अंग्रेजी अक्षर 'ए' का महत्व भी उसे समझ गया था.
अँजेनी - अँजेनीका नामभी 'ए' इस अक्षरसेही शुरु होता था...
जॉनको अपने कर्तव्यका एहसास होगया.
कातिल इतनेमेंही कत्ल कर भाग गया होगा ...
यानीकी वह यही कही आसपासही होना चाहिए...
कुछतो करना चाहिए...
लेकिन जॉनके हाथपैर साथ नही दे रहे थे. उसमें उठनेकी शक्तीही नही बची थी.
" खुनी अभी जादा दूर नही गया होगा ' जॉनने किसी तरह सॅमसे कहा.
सॅम खुदको संभालकर झटसे उठ खडा हूवा और आगेकी कार्यवाहीके लिए तैयार हो गया.

रातका समय था. डॅनने अपने घरका दरवाजा धकेलकर थोडासा खोला और बाहर झांककर देखा. चारो तरफ अंधेरा था. वह धीरेसे घरसे बाहर निकल गया. बाहर आनेके बाद उसने चारो तरफ अपनी नजरे घुमाकर उसे कोई देखतो नही रहा इसकी तसल्ली की. कोई देख नही रहा है इस बातकी तसल्ली होतेही वह कंपाऊंडके बाहर आ गया. फिरसे रस्तेपर उसने चारो ओर अपनी नजरे दौडाई. रास्ता एकदम खाली खाली था. अब वह दाई तरफ मुडकर चलने लगा - अंधेरेमे तेजीसे कदम बढाते हूए. उसके चलनेके गतीके साथही उसके सोचनेभी गती पकड ली. पिछले बार कातिलने हमें भरपूर बक्षिसी देकर खुश कर दिया था. इस बारभी जॉन, सॅम और बॉसको अगला खुन किसका होगा इसकी जानकारी मिलने की बात उसने कातिल को फौरन बताई थी. कातिल उसपर बहूत खुश हो गया था. फिदाही हूवा था.
कातिलने उसे एक जगह बताकर वहा वह सोच भी नही सकता उतना पैसा रखनेका वादा किया था. अब वह वहांही पैसे लेनेके लिए जा रहा था. पैसेका खयाल आतेही उसके दिलमें गुदगुदी होने लगी. पिछले बार मिले पैसेसे दस गुना पैसे उसको अपने आखोंके सामने दिखने लगे. खुशीसे वह झुम उठा. उसके चलनेकी गती धीमी होगई और चालमें एक मस्ती झलकने लगी थी.
होगया अब यह आखरी...
इसके बाद ऐसी बेईमानी नही करुंगा...
इतना पैसा मिलनेके बाद मुझे ऐसी बेइमानी करनेकी फिरसे नौबतही नही आयेगी...
पैसा मिलनेके बाद नौकरी एकदम नही छोडूंगा.. नहीतो किसीको शक हो सकता है...
नौकरीमें कुछ देरतक टाईमपास करेंगे और फिर सही वक्त आतेही नौकरी छोडकर कुछ बिझीनेस करेंगे....
नहीतो पहले बिझीनेस डालूंगा और वह अच्छा खासा चलनेके बाद नौकरी छोड दूंगा....
डॅन सोच रहा था. अचानक असे अहसास हूवा की जिस जगह कातिलने पैसे रखनेका कबुला था वह जगह नजदीक आ चूकी है. वह एक पल रुका. फिरसे एकबार चारो ओर देखकर जिस जगह पर पैसे रखे थे उधर निकल गया. उसके चेहरेपर एक मुस्कुराहट झलक रही थी. स्थान एकदम निर्जन था. चारो ओर अंधेरा छाया हूवा था. बिच बिचमें कुतोंका अजीब आवाज आ रहा था. वह जगह किसीकोभी डर लगेगा ऐसीही थी. लेकिन आज डॅनके डर पर उसका लालच पुरी तरहसे हावी हो चूका था.
सामने एक बडा पेढ था. यही वह पेढ था जिसके निचे कातिलने पैसे रखे थे...
अब मानो डॅनके शरीरमें खुशीकी लहरे दौड रही थी. अब कुछही और पल! कुछ पलमेंही अब मै एक बडे संपतीका मालिक बनने वाला हूं. वह अधीरतापुर्वक पेढके निचे चला गया. वहा एक बडा पत्थर रखा हूवा था. डॅनने एक पलकाभी विलंब ना लगाते हूए वह पत्थर वहासे हटाया. जैसेही उसने वह पत्थर वहा से हटाया एक बडा धमाका हुवा और उसके हाथके टूकडे टूकडे हो गए. उसके बदनमेंभी नुकीले पत्थरके टूकडे गए थे. और खुनसे लथपथ अवस्थामें उसकी जान चली गई. उसे अहसास हो गया था की उसने जैसे ठान लिया था वैसेही यह उसकी आखरी बेइमानी साबित हूई थी.

रातका 1 बजा था. आज कमसे कम तिनचार दिन हूए होंगे जॉनने अपने आपको घरमें बंद करके रखा था. वक्त का, दिनका, रातका उसे कुछभी होश नही था. आजभी उसे होश आया था वह उसके पासके व्हिस्कीका स्टॉक खतम होनेके वजहसे. जैसेही उसे होश आया वैसे उसके सब दर्द जाग उठे थे. उसे अँजनीके साथ गुजारा हूवा एक एक पल याद आने लगा.
उसे कृत्रिम सांस देकर मानो उसके सांसोसे जुडा उसका रिश्ता.....
उसे मिलनेके लिये हमेशा बेचैन रहता उसका मन...
कितनाभी खुदको रोकनेकी कोशीश करनेके बावजुद उसकी घरकी तरफ मुडते उसके कदम..
उसके साथ उसकी पहली डेट...
उसका उसके साथ उत्स्फुर्त, पवित्र प्रथम प्रणय...
उसके सासोंकी गरमाहट...
उसपर होती उसके प्यारकी बारीश...
उसके साथ बिताए वे छुटी के दिन...
उसकी वे नटखट अदाए ...
रातोरात एंगेजमेंट रिंग लाकर उसे प्रपोज किया वह पल ...
उसका वह किसी लता की तरह लिपटकर किया हूवा इकरार ...
उसे निराशाके जंजालसे बाहर निकालकर दिया हूवा उसका प्रोत्साहन..
और ...
और उसका वह क्रुर कत्ल...
उसके आखोंमे आंसू तैरने लगे. आंसू बहकर उसके गालपर आगए. उसे अपने आपकीही चिढ आने लगी.
जब कत्ल का रहस्य खुल गया था तबही उसके क्यों खयालमें नही आया की पांचवे खुनके बाद छटवा खुन उसकी अपनी अँजीकाही होनेवाला है.....
यह इतनीसी बात उसके खयालमें क्यों नही आयी?..
लेकिन पांचवा कत्ल रोकने के चक्करमें वह कत्लके तफ्तीशमेंही इतना व्यस्त हो गया था की उसे छटवे खुन का खयालभी नही आया...
उसने अपने कलाईसे दोनो आंखोके आंसू पोंछ लिए. उसे अभीभी विश्वास नही हो रहा था की वह ऐसी उसे अकेला छोडकर चली गई है. उसने घरमें चारो ओर एक नजर दौडाई.
घरमें कैसा सब कुछ डरावना लग रहा था... ...
घर डरावना हो गया था या उसकी सोच वैसी हूई थी?...
उसने सामने दरवाजे की तरफ देखा. पेपरवालेने दरवाजेके निचेसे खिसकाए हूए तीन चार न्यूज पेपर जैसेकी वैसे पडे हूए थे. उसे ऐसा लग रहा था मानो वे न्यूजपेपरभी दरवाजेके निचेसे उसकी तरफ देखते हूए उसे चिढा रहे हो. वह उठ गया और दरवाजेके पास चला गया. एक पलके लिए उसे ऐसा लगा की दरवाजा खोले और बाहर थोडी देर खुली हवामे जाए.
लेकिन नही अब यह एकांतही अच्छा लगने लगा था..
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
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यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
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Jemsbond
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उसने दरवाजेके निचे पडे हूए पेपर अंदर खिंच लिए. वही खडे होकर उसने दो चार पन्ने पलटे. सब तरफ दंगा फसाद, आग, लाठीमार, टीअर गॅस इसकीही खबरें थी. इतनाही नही अब भारतमेंभी इसकी प्रतिक्रियाएं शुरु हो गई थी. काफी जगह भारतमेंभी दंगे फसाद भडक उठे थे.
मतलब अबभी मामला ठंडा नही हूवा था..
अमेरिकन लोगोने तो मानो भारतिय लोगोंको ही नही तो जो लोग दुसरे किसीभी देशके थे उनको वहांसे भगानेका सिलसिलाही शुरु किया था. और भारतमें भारतीय लोगोंने मल्टीनॅशनल कंपनीयोंको वहांसे भगानेके लिए आंदोलन शुरु किया था. उससे वह पढा नही जा रहा था. उसने वह न्यूज पेपर्स कोनेमें एक जगह डाल दिये और जहांसे उठके आया था वहा फिरसे जाकर बैठ गया. सामने टी पॉयके उपर बहुत सारी व्हिस्कीकी बॉटलें जमा हूई थी और उसके बगलमें एक खाली पडा हूवा ग्लास आराम कर रहा था. जॉनने सामने टी पॉयपर पडा रिमोट लिया और टी. व्ही. शुरु किया. एक एक चॅनल वह आगे जाने लगा. किसीभी चॅनलपर रुकनेकी उसको इच्छा नही हो रही थी. सब तरफ वही खबरें - दंगा फसाद, आगजनी, लाठीमार टीअर गॅस. उसे सब असह्य होकर उसने रिमोटका बटने चिढकर जोरसे दबाते हूए टीव्ही बंद किया और रिमोट बगलमें सोफेके गद्देपर फेंक दिया.
उसे अब अंदरसे लगने लगा की उसे अब इस हतोत्साहसे उभरना पडेगा...
लेकिन कैसे ?...
यही तो उसके समझमें नही आ रहा था.
अगर मैने अपने आपको किसी काममे व्यस्त कर लिया तो? ...
हां यह इससे उभरने एक अच्छा रास्ता है ...
लेकिन डिपार्टमेंटनेभी तो मुंह मोड लिया हूवा है. अभीभी उसे कामपर जानेकी इजाजत नही थी...
और वह यह सब मामला ठंडा हूए बैगर मिलनेकी कोई गुंजाईशभी नही थी...
वह उठ खडा हूवा और हॉलमें चहलकदमी करने लगा.
अबभी अगर मै कातिल को पकड पाया तो?...
कमसे कम यह बाहर बिगडा हूवा सब मौहोल ठिक होनेमे मदत होगी. लेकिन कातिल एक ना होकर वह एक संघटनाही होनेकी जादा संभावना है . संघटना हुई तो क्या हुवा?...
उस संघटनाका एकभी मेंबर अगर मेरे हाथ आया तो एक महत्वपुर्ण धागा हाथ आए जैसा होगा..
नही, कुछ तो करना चाहिए..
वह खिडकीके पास खडा होकर बाहर अंधेरेमे देखने लगा - शुन्यमें. उसकी मुठ्ठी कसने लगी.
अँजेनीकी आत्म्याको शांती मिले इसके लिए मुझे कुछ तो करना चाहिए...
लेकिन शुरुवात कहांसे करु ?..
जंगलमें एक पेढको अगर आग लगी तो वह बुझाना आसान है लेकिन यहा तो सारें जंगलमें आग लगकर फैल गई थी ...
फिर उसने फिरसे चहलकदमी करते हूए केस नए सिरेसे, शुरुसे याद करना शूरु किया.
हो सकता है कोई धागा छुट गया हो?...
पहला खून ...
दुसरा खून ....
तिसरा खून ....
एकदम उसके दिमागमे आया की -
तिसरे खुनके वक्त जो शव बिल्डींगके निचे मिला था, उसका जरुर कत्लसे कोई गहन सबंध रहा होगा...
फिर हम लोगोंने जो शव मिला था उसके मकानपर रेड डाली थी... वहां एकभी फिंगरप्रिन्ट ना हो!... ऐसा कैसे होगा...
वहाके कॉम्प्यूटरकी हार्ड डिस्कभी गायब हुई थी ...
इसका मतलब उसका उस कत्लसे जरुर कोई गहरा संबंध था...
वह बंगला अभीभी पुलीसके कब्जेमें था. उस बंगलेपर किसीनेभी अपना हक नही जताया था.
वही कहीं मुझे कोई मिसींग लिंक मिल सकती है...
जॉनको एकदम उत्साह लगने लगा था. करनेके लिए कुछतो उसे मिला था.
उस बंगलेकी फिरसे अगर ठिक तरहसे छानबीन की तो?...
लेकिन चाबीयां तो पुलिसके पास ही है ...
चलो अब पहले यहांसे बाहर निकलना जरुरी है ...
वहां जानेके बाद देखेंगे आगे क्या करना है ...
उसने अपने सारे निराशायुक्त विचार झटक दिए और एक मजबूत निश्चयके साथ वह घरके बाहर निकल गया.

कमांड2 निश्चिंत होकर कुर्सीपर रिलॅक्स होकर बैठा था. उसके सामने टीव्ही शुरु था. लेकिन उसका टीव्हीके तरफ ध्यान कहा था.? वह तो अपनेही धुनमें था. अबतक बॉसने बताए हूए सब काम उसने इमाने इतबारे पुरे किए थे. और उसकी वजहसे बॉसभी उसपर खुश लग रहा था. सबसे महत्वपुर्ण बात यह थी की कमांड1के कत्लका शक बॉसको उसपर नही आया था. वह बिचबिचमें टिव्हीके चॅनल्स बदलकर खबरें देख रहा था. आगजनी, दंगा फसाद, लाठीमार, यह सब खबरें देखते हूए उसे बडा मजा आ रहा था. उसके चेहरेपर एक शैतानी मुस्कुराहट फैली हूई थी. वह अपनी मस्ती दिमागसे झटककर कुर्सीपर सिधा होकर बैठ गया..
मुझे ऐसे सुस्ताकर नही चलेगा...
मुझे अब आगेकी कार्यवाहीके पिछे लगना चाहिए...
वह कुर्सीसे उठ खडा हो गया. उसने वही दोचार चक्कर लगाए और फिर कुछ ठोस निर्णय लेकर वह कमरेमें कोनेमें रखे आलमारीके पास चला गया. आलमारी खोलकर उसने आलमारीका सबसे निचेवाला ड्रॉवर खोला. ड्रॉवर का बक्सा पुरी तरह बाहर निकालकर अपने पैरके पास निचे रख दिया. ड्रॉवर निकालनेके बाद जो खाली जगह बनी थी वहांसे उसने और एक छूपा कप्पा खोला. उस कप्पेसे कुछ ढूंढकर उसने वह चिज अपने पॅन्टके दाए जेब मे रख दी. फिर उसने वह छुपा कप्पा ठिक तरहसे बंद किया, पैरके पास रखा ड्रॉवर उठाकर उसने उसके पहले जगह पर ठिक तरहसे रख दिया और आलमारी बंद कर वह कॉम्प्यूटरके पास जाकर खडा हो गया. कॉम्प्यूटर शुरु किया और कॉम्प्यूटर बूट होनेकी राह देखते हूए कमरेमे फिरसे चहलकदमी करने लगा.
अगली कार्यवाही करनेके पहले मुझे अब ठिक तरहसे तैयारी कर लेनी चाहिए...
अपना लक्ष अभीभी अधूरा है...
जिस लक्षके लिए मैने कमांड1का कत्ल करनेकी रिस्क ली, वह अभीभी पहूचसे बहुत दूर है...
उसने अपने दाए पॅन्टके जेबसे अभी अभी आलमारीसे रखा हूवा पेन ड्राइव्ह निकाला. पेनड्राईव्हकी तरफ देखते हूए वह सोचने लगा.
मुझे अब एकबार बॉसके बारेमे जो मटेरीयल कमांड1के कॉम्प्यूटरपर मिला था उसको एकबार ठिक तरहसे फिरसे पढ लेना चाहिए..
अचानक कमांड2 चहलकदमी करते हूए रुक गया. उसने कॉम्प्यूटरके मॉनिटरकी तरफ देखा. कॉम्प्यूटर बूट हो गया था. कॉम्प्यूटरके पास जाकर प्रथम उसने पेन ड्राईव्ह कॉम्प्यूटरको लगाया. कुर्सी खिंचकर कॉम्प्यूटरके सामने बैठते हूए वह किसी जादूगरकी तरह कॉम्प्यूटरको कीबोर्ड और माऊसके द्वारा अलग अलग कमांड देने लगा. उसने पहले एक बार कमांड1के मेलबॉक्ससे जो महत्वपुर्ण फाईल अपने पेन ड्राईव्हके उपर कॉपी कर रखी थी, खोली. वह एक रिसर्च पेपर था. पेपरका टायटल था.
"आर्यभट्ट्का साहित्य".
उसका अंदाजा था की इस पेपरमें दिए जानकारीके आधारपर उसे भविष्यमें ऐसी कुछ बाते मिलने वाली थी की जिसकी वजहसे उसका फायदा ही फायदा होने वाला था. कमांड1के होठोंपर एक मुस्कुराहट तैरने लगी. शायद उसे भविष्यमें जो फायदा होने वाला था उसके कल्पना मात्रसे वह गदगद हो गया था. वह पेपरमें दिए महत्वपुर्ण मुद्दे पढने लगा...

भारतीय गणित और खगोलविज्ञान की शुरुवात किसने की यह कहना जरा मुश्कील है फिरभी भारतीय वेदोमें गणित और खगोलविज्ञान की सब जानकारी उपलब्ध है. बहुत ऋषींयोंने पंचांगके नियम, नक्षत्र विभाजन, वैदिक कार्यके लिए आवश्यक तिथी और महुरत निर्धारित करना, ग्रहण, अमावस्या इत्यादि जानकारी देनेके लिए अलग अलग पध्दती विकसित की. वक्त के साथ पैतामह सिध्दांत, वासिष्ठ सिध्दांत, रोमक सिध्दांत, पौलिक सिध्दांत इत्यादि विकसित हुए. लेकिन वे धीरे धीरे पुराने हूए और उनसे एकदम सही परिणाम नही आते थे. इसलिए उस वक्त लोगोंका उसपरसे भरोसा उड रहा था. लेकिन फिर आर्यभट नामके एक विद्वानने गणित और खगोलशास्त्रसे सबंधीत ज्ञानमेंकी त्रुटी दूर कर उस ज्ञानको नये सिरेसे प्रस्तुत किया.
भारतके इतिहासमें जिसे 'गुप्तकाल' या 'सुवर्णयुग'के नामसे जानते है, उस वक्त भारतने साहित्य, कला और विज्ञान इन क्षेत्रोंमे अभूतपूर्व प्रगती की. विज्ञानके क्षेत्रमें गणित, रसायनशास्त्र और जोतिष्यशास्त्र इन विषयोंमे विशेष प्रगती की. उस वक्त आर्यभट नामके एक प्रसिध्द गणितज्ञ और जोतिष्यकार थे. वे अभीके बिहारराज्यकी राजधानी पटना (उस वक्तका पाटलीपुत्र) के पास कुसुमपुर इस गावके निवासी थे. उनका जन्म 13 एप्रिल सन् 476 को और मृत्यू सन् 520 को हूवा था. उस वक्त बौध्द धर्म और जैन धर्म बहुत प्रचलित था. लेकिन वे सनातन धर्मके अनुयायी थे. उन्होने गणित और जोतिष्य इन विषयोंमे बहुत महत्वपूर्ण और वक्तके हिसाबसे विस्मयकारी संशोधन किया था. उन्होने अपना संशोधन ग्रंथरूपमें शब्दबध्द कर अगली पिढीयोंको वह उपलब्ध हो इसकी व्यवस्था कर रखी थी. उस वक्त मगध स्थित नालंदा विश्वविद्याल ज्ञानदानका प्रमुख और प्रसिध्द केंद्र था. वहा देश विदेशसे विद्यार्थी ज्ञानार्जन करनेकेलिए आते थे. वहा खगोलशास्त्रके अध्ययनके लिए एक विशेष विभाग था. एक प्राचीन श्लोकके अनुसार आर्यभट नालंदा विश्वविद्यालयके कभी कुलपतीभी थे.
आर्यभटने लिखे तीन ग्रंथोंकी जानकारी सद्य:स्थितीमें उपलब्ध है. दशगीतिका, आर्यभट्टीय और तंत्र. लेकिन जाणकारोंके हिसाबसे उन्होने और एक ग्रंथ लिखा था. 'आर्यभट्ट सिध्दांत' लेकिन उसके सिर्फ 34 श्लोकही अब उपलब्ध है. उनके इस ग्रंथका सातवे शतकमें जादा उपयोग होता था. लेकिन यह ग्रंथ बाकी ग्रंथोंकी तरह उपयोगमें होते हूए भी उसका ऐसा लोप क्यो हूवा होगा ? यह एक अनाकलनीय पहेली है.
आर्यभट पहले आचार्य थे की जिन्होने ज्योतिषशास्त्रमें अंकगणित, बीजगणित और रेखागणितको शामील किया. 'आर्यभट्टीय' ग्रंथमें उन्होने ज्योतिष्यशास्त्रके मूलभूत सिध्दांतके बारेमें लिखा. इस ग्रंथमें 121 श्लोक है जो उन्होने चार खंडोमें विभाजीत कीये है.
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गीतपादीका नामके पहले खंडमें ग्रहका परिभ्रमण काल, राशी , अवकाशमें ग्रहोंकी कक्षा इस विषयपर जानकारी दी है.
गीतपाद नामके दुसरे खंडमें उन्होने गणितके
वर्गमूल, घनमूल, त्रिकोणका क्षेत्रफल, ज्या (sine) इत्यादींका
विश्लेषन किया है.
उन्होने वृतका व्यास और परिधी इनमेंका संबंध जिसे हम
पाई(Pi) कहते है, उन्होने वह 3.1416 इतना, मतलब लगभग सही आंका था.
इस ग्रंथमें उन्होने बीजगणितके
(अ+ब)2 = (अ2+2अब+ब2)
का भी विस्तृत विष्लेशण किया है.
इस ग्रंथके 'कालक्रिया' इस तिसरे खंडमें
कालके अलग अलग भाग, ग्रहोंका परिभ्रमण , संवत्सर, अधिक मास, क्षय तिथी, वार ,सप्ताह
इनकी गणना इस बारेंमे विवेचन दिया है.
इसी ग्रंथमें एक जगह उन्होने संक्षिप्त स्वरूपमें संख्या लिखनेकी पध्दतीके बारेंमे लिखा है.
तिसरा खंड 'गोलपाद' नामसे प्रचलित है और उसमें खगोल विज्ञानके बारेमे जानकारी है.
सूर्य, चंद्र, राहू ,केतू और बाकी ग्रहोंकी स्थीती , दिन और रातका कारण, राशींका उदय, ग्रहणका कारण इत्यादि विश्लेशन इस खंडमें मिलता है.
आजके वक्तके बडे बडे वैज्ञानिक अबभी आश्चर्य चकीत रह जाते है की उस वक्त आर्यभटने पाई (Pi), वृत्तका क्षेत्रफळ , ज्या (sine) इत्यादिं बातोंका विश्लेषन कैसे किया होगा.
आर्यभट एक युगप्रवर्तक थे. उन्होने अपने वक्तके प्रचलित अंधश्रध्दांओंको झुटा ठहराया. उन्होने सारी दुनियाको बताया की पृथ्वी चंद्र और अन्य ग्रहोंको खुदका प्रकाश नही होता और वे सुरजकी वजहसे प्रकाशित होते है. पृथ्वीके जिस भागपर सूर्यप्रकाश पडता है वहां दिन और जहा सूर्यप्रकाश नही पडता वहा रात ऐसाभी उन्होने बताया था. पृथ्वीपर अलग अलग शहरोंमे सुर्योदय और सुर्यास्त का वक्त इसमें फर्क क्यो होता है इसके कारणोंका विश्लेषनभी उन्होने विस्तृततरहसे किया है. उन्होने यहभी जाहिर किया की पृथ्वी गोल है और वह खुदके आसके सभोवताल घुमती है. उन्होने इस मान्यताको तोडा की पृथ्वी ही ब्रह्मांडका केंद्र है और सुरज और बाकी ग्रह उसके सभोवताल घुमते है. उन्होने पृथ्वीका आकार, गती, और परिधीका अंदाज भी लगाया था. और सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहणके बारेमेंभी संशोधन किया था.
उन्होने त्रेतालीस लाख बीस हजार वर्षका एक महायुग बताया और एक महायुगको चार हिस्सोमे
सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापारयुग और कलियुग इस तरह विभागीत किया. इन चारो युगोंका काल उन्होने दस लाख अस्सी हजार साल इतना आंका है.
भविष्यमें चंद्र और सूर्य ग्रहण कब कब होगे यह निकालनेके लिए उन्होने एक सूत्रका विकास किया और उस सुत्रके हिसाबसे उनकी भविष्यवाणी कभीभी गलत नही निकली.
ज्योतिष्यके अलावा गणितशास्त्रमेंभी आर्यभटने नये नये सिंध्दांतोका अविश्कार किया. भारतमें सबसे पहले उन्होने बिजगणितके ज्ञानका विस्तारसे प्रचार किया. शून्य सिध्दांत और दशमलव संख्याप्रणालीका आविश्कार भारतमें सबसे पहले किसने किया यह बताना जरा मुश्कील है फिरभी आर्यभटने उसका प्रयोग अपने ग्रंथमें कुशलतासे किया हूवा मिलता है. उनकी कामयाबी भारतमेंही नही तो बाहर विदेशमेंभी फैली थी. अरब विद्वानोंको उनके जोतिष्य ज्ञानका बहुत अभिमान था और वे उन्हे 'अरजभट' नामसे पहचानते थे.
तो इस तरह आर्यभट जिन्होने बीजगणितका विकास किया था और ज्योतिष गणितमें अंकगणित, बीजगणित और रेखागणितको शामील किया, उनको भारतीय गणितमें और जोतिष्यशास्त्रमें अगर मिल का पत्थर कहा जाए तो गलत नही होगा. उस वक्त लगभग सब ग्रंथ श्लोकके रुपमें रहते थे और उनको खासकर मुखद्गद कर एक पिढीसे दुसरी पिढीके पास सौंपा जाता था. उनका 'आर्यभट्ट सिंध्दांत' यह ग्रंथ सातवे शतकमें व्यापक रुपसे उपयोगमें लाया जाकरभी वह आगे लोप हूवा यह बात उस ग्रंथमें लिखे ज्ञानके बारेमें एक गूढ जिज्ञासा जागृत करती है. उनका अचूक निकष रहे गणित इस विषयसे और उन्होने जो ज्ञान उनके ग्रंथमें दिया वह एकदम सही रहता था इसकी तरफ गौर करते हूए उनका जो ग्रंथ लोप हुवा जिसमें जोतिष्य ज्ञानके बारेमें ऐसा कुछ लिखा होगा की जो गुप्त रखनेका किसीकोभी मोह हुवा होगा. ऐसाभी हो सकता है की वह ज्ञान गलत हातोंमे पडनेसे विघातक हो सकता था...
वैसे तो कमांड2ने यह रिसर्च पेपर पहलेभी पढा था. फिरभी कमांड2का दिल उत्साहीत हूवा था. बॉसकी शुन्यके बारेंमे, वेदकालीन गणित और जोतिष्याशास्त्रके बारेमें रुची देखते हूए और उनका एकदम सही वक्त बतानेका कौशल्य देखते हूए उसको अब विश्वास हो चला था की बॉसको 'आर्यभट्ट सिंध्दांत' यह ग्रंथ मिला होगा. कमांड2का अब लगभग आधा काम हुवा था, लेकिन आधा, जो की सबसे महत्वपूर्ण था, वह बचा था. उसको सबसे पहले बॉसचा पत्ता लगना बहुत जरुरी लग रहा था. पहले एक बार जब बॉसका फोन आया था तब उसका नंबर उसके फोनपर नही आया था. बॉसने यह करामात कैसी की थी इसका उसे कुछ पता नही लग अहा था. लेकीन फिरभी उसने बॉसको ढुंढनेका मानो बिडाही उठाया था. उसने टेलीफोन कंपनीमें जाकर बॉसको ट्रेस करनेका प्रयत्न किया था. टेलिफोन कंपनीवाले उसे कुछ खास मदत नही कर पाए थे. लेकिन टेलिफोन कंपनीको एक नयाही अविष्कार हुवा था. उनकी फ्रिक्वेन्सी कोई चोरी कर रहा था इसका. इसके अलावा एक मोटे तौरपर फोन किस इलाकेसे आया था इतनाही वे बता पाए थे. जो इलाका उन्होने बताया था वह काफी बडा था. और ना बॉसका नाम ना चेहरा मालूम होनेसे कमांड2को उसे ढुंढना बडा मुश्कील हो गया था. फिरभी लगभग रोज कमांड2 उस इलाकेमे किसी पागल की तरह घुमता था. और जब घुम घुमकर थक जाता था तबही घरकी ओर रुख करता था. लेकिन बॉसका पत्ता मिलनेके कोई आसार नही नजर आ रहे थे. शायद इतनी बार वह किसी पागल की तरह उस इलाकेमें घुमा, ना जाने कभी बॉस उसके सामनेसेभी गया होगा. लेकिन वह उसे कैसे पहचाननेवाला था. ?

रातके ढाई बज चूके थे. रातके भयाण संन्नाटेमें जॉन अकेलाही गाडी तेजीसे चलाते हूए शहरमें घुम रह था. दंगोंकी वजहसे आजकल रास्ते जल्दीही खाली हो जाते थे. और अब तो रातके ढाई बजनेकी वजहसे इस वक्त रास्तेपर कोईभी नही दिख रहा था. अपनेही धुनमें एक चौकसे तेजीसे गुजरते हूए जॉनको पिछेसे सायरनका आवाज सुनाई दिया. उसने मिररमें देखा. एक पुलिसकी गाडी उसका पिछा कर रही थी.
गाडी रोकु या नही ?...
जॉनने एक क्षण के लिए सोचा और फिर गाडीका ब्रेक दबाया. उसने अपनी गाडी रस्तेके किनारे खडी की. पिछेसे पुलिसकी गाडी आकर उसके गाडीके आगे जाकर रुकी. पहले पुलिसने जॉनकी गाडीकी तरफ और फिर गाडीके अंदर झांककर देखा. अबतक जॉन उतरकर गाडीके बाहर आया था. दो पुलिस उतरकर उसके पास गए.
" इतनी रात गए कहा जा रहे हो आप?" एक पुलिसने उसकी तरफ आते आते दुरसेही पुछा.
जॉन कुछ नही बोला. दोनो उसके पास आकर रुके. उनमेंसे दुसरा जॉनकी तरफ गौरसे देखने लगा.
" जॉन सर आप!" दुसरा एकदम जॉनको पहचानते हूए बोला.
जॉन उसे पहचानता नही था. लेकिन शायद वह उसे पहचानता था. वैसेभी शहरमें चल रहे सिरीयल किलर केसकी वजहसे जॉनका अत्यधीक प्रचार हो चूका था. वह डीसमीस होनेसे पहले लगभग रोज उसका फोटो एकतो पेपरमें आता था या फिर टीव्हीपर दिखता था. .
" हां मै जॉन... निंद नही आ रही थी इसलिए ऐसेही एक चक्कर मार रहा था' जॉनने कहा.
" नो प्रॉब्लेम सर... यू कॅरी ऑन प्लीज" वह विनम्रतासे बोला.
जॉन गाडीमें बैठ गया. वे दोनो वही खडे होकर जॉनके गाडीकी शुरु होनेकी राह देखने लगे. जॉनने गाडी शुरु की और उनकी तरफ हाथ हिलाकर वह फिरसे तेजीसे वहांसे चला गया.
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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Re: 'शून्य' - (Shunya)-- Complete Novel

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जॉनकी गाडी एका सुनसान ऐरीयामें एक मकानके सामने आकर रुकी. वह कमांड1का घर था. तिसरे कत्लके वक्त जब कमांड1का शव बिल्डींगके निचे पडा हूवा मिला था तब उन्होने इस घरपर रेड मारकर उसकी चप्पा चप्पा तलाशी ली थी. गाडी रास्तेके किनारे लगाकर वह गाडीसे उतर गया. पहले उसने इधर उधर नजर दौडाई. सब तरफ एक भयाण सन्नाटा छाया हूवा था. रातका वक्त और उपरसे शहरमें दंगे फसाद फैले हूए. वह चलते हूए बंगलेके कंपाऊंड गेटके पास गया. गेटको ताला लगा हूवा था और तालेपर पुलिस डिपार्टमेंटका सिल लगाया हूवा था. उसने एक चक्कर लगाकर बंगलेके कंपाऊड वॉलसे कहीसे घुसनेकी संभावना है क्या यह देखा. कंपाऊंड वॉलपर कांटोवाला तार लगा हूवा था. उसने देखा की गेटके दायी तरफ एक जगह उपरका तार टूटा हूवा है. जॉनको वहांसे अंदर घुसना संभव लग रहा था.
लेकिन अंदर जाए या ना जाए ?...
पहलेही उसे डिसमीस किया हूवा. और ऐसी स्थीतीमें पुलिसका सिल होते हूवे अगर मै छूपकर अंदर गया और उन्हे पता चला तो उन्हे अलगही शक होनेकी संभावना है...
होने दो... कुछ भी होने दो ...
अँजेनी जानेके पश्चात वैसेभी जॉन खुदके जानके बारेमें बेफिक्र हो गया था. उसका सोचना जारीही था जब जॉन कंपाऊंड वॉलके उपर चढने लगा. चढना थोडा मुश्कील जा रहा था. दिवार उंची थी और पकडनेके लिएभी कुछ नही था. जॉनने उछलकर दिवारके उपर टटोलकर देखा - पकडनेके लिए कुछ मिलता है क्या. दिवारपर कुछ पकडनेके लिए उसके हाथ आया. उसने उसे कसकर पकडते हूए वह दिवारपर चढ गया. लेकिन चढते हूए उसे उसके हाथमें बहुत जादा दर्द महसुस हूवा. चढनेके बाद जब उसने देखा तो उसने टूटी हूई कांटोवाली तार ही हाथमे पकडी हूई थी. उसने झटसे वह तार हाथसे छोडी, हाथकी तरफ देखा, तो हाथसे खुनकी धार निकल रही थी. वैसेही उस हाथको दुसरे हाथसे पकडकर उसने दिवारकी दुसरी तरफ, कंपाऊंडके अंदर छलांग लगाई.

दुसरे हाथसे खुनसे सना हाथ पकडते हूए जॉन उठकर खडा हो गया. खुन जादाही बह रहा था इसलिए उसने जेबसे रुमाल निकालकर उस हाथको कसकर बांध दिया. जखमी हाथको संभालते हूए वह बंगलेके दरवाजेके पास गया. वहाभी एक बडा ताला लगा हूवा था और उस तालेकोभी पुलिसका सील लगा हूवा था. उसने वही खडे होकर बंगलेके चारो ओर एक नजर दौडाई. बंगलेके अंदर जाना, कमसे कम यहांसे तो भी मुमकीन नही लग रहा था. पहले जब बंगलेकी तलाशी हूई थी तब वह बाकी लोगोंके साथही अंदर था. और उसे विश्वास था की उन्होने अंदरकी तलाशी ठिक तरहसे की थी. लेकिन उसे याद आया की बाहरके तलाशीको उतना महत्व ना देकर उसने वह जिम्मेदारी किसी एक नये पुलिसको सौंपी थी. उसने फैसला किया की पहले बंगलेके बाहरी हिस्सेकी जांच करना बेहतर होगा. वैसे कुछ मिलनेकी कोई संभावना नहीके बराबर थी. क्योंकी बिचमें बहुत दिन बित चूके थे और इसलिए बंगलेके अंदरके सबुतसे बाहरके सबुत नष्ट होनेकी जादा संभावना थी.
तोभी चान्स लेनेमें क्या हर्ज है...
शायद बंगलेके बाजुसे या पिछेसे अंदर जानेका कोई रास्ताभी मिल सकता है...
उसने जेबसे टॉर्च निकाला और टार्चका प्लॅश इधर उधर मारते हूए वह बंगलेके दाई तरफसे पिछेकी ओर जाने लगा. बिच बिचमें वह बंगलेपरभी फ्लॅश मारकर अंदर जानेके लिए कोई खिडकी है क्या वह देखने लगा. खिडकीयां थी लेकिन मजबुत जाली लगाई हूई.
तोभी किसी खिडकीकी जाली टूटी हूई हो सकती है, जैसे कंपाऊंडका तार एक जगह टूटा हूवा था...
बंगलेके चारो ओर काफी खुली जगह थी. और उस जगहमें गार्डनभी बनाया हूवा था. लेकिन उसे कभी काटा छाटा नही जा चूका था ऐसा लग रहा था. गार्डनमें घांस और झाडी अच्छी खासी कमरतक बढी हूई थी. जॉन अंधेरेमे टॉर्चके सहारे संभालकर उस घाससे और झाडीसे रास्ता बनाते हूए आगे बढ रह था. उस उंची बढी हूई झाडीके वजहसे कुछ सबुतभी होगा तो वह मिलना मुश्कीलही लग रहा था. लेकिन एक फायदाभी था की अगर कुछ सबुत हो तो वह नष्ट होनेका कालावधी उस झाडीके वजहसे बढनेकी संभावना थी. इधर उधर टार्चकी रोशनी डालते हूए वह बंगलेके पिछवाडे आकर पहूंच गया. पिछेतो दरवाजेकोभी जाली लगी हूई थी. इसलिए वहांसे अंदर जानेकी संभावनाभी खत्म हो गई थी. फिर उसने टार्चके रोशनेमे पिछवाडेका चप्पा चप्पा छान मारा. कुछ खास नही मिल रहा था. धीरे धीरे टॉर्चके रोशनीमें घासके और झाडीके तनेके पास ढूंढते हूए उसने बंगलेको एक पुरा चक्कर लगाया. खुले मैदानमेंभी कुछ नही मिल रहा था और एकभी खिडकीकी जाली टूटी हूई नही थी.
चलो मतलब कमसे कम अबतो अंदर जाना मुमकीन नही लग रहा है...
अंदर जानेके लिए मुझे फिरसे कभी सॅमकी मदद लेनी पडेगी...
और बाहरभी एक बार फिरसे दिनके उजेलेमेंही ढूंढना उचीत होगा...
ऐसा सोचकर वह कंपाऊंडके बाहर जानेके लिए मुडा. इतनेमें एक विचार उसके जहनमें कौध गया. वह एकदमसे रुक गया. मुडकर जल्दी जल्दी बंगलेके बाई तरफसे पिछेकी ओर जाने लगा.

बंगलेके बाई तरफ एक जगह एक फुलोंसे लदी हूई लता थी. फुलोकी खुशबुभी मन मोह लेनेवाली थी. वह लता बंगलेके दिवारका, खिडकीका और पाईपका सहारा लेते हूए उपर टेरेसतक पहूंच गई थी. उसने टॉर्चकी रोशनी डालते हूये उस लता को निचेसे उपरतक गौरसे देखा. वह फुलोंसे पुरीतरह लदी हूई थी. फिर उसने उसकी तरफ उपरसे निचे तक गौरसे देखा. लताके तले बहुत सारा कचरा पडा हूवा था. निचे पॉलीथीन बॅग्ज, कागजके मसले हूए टूकडे, इस तरह का बहुत सारा कचरा पडा हूवा था. जॉन घूटनोपर बैठकर उस कचरेमे कुछ मिलता है क्या यह देखने लगा. उसने अपने जेबसे एक बडीसी पॉलीथीन बॅग निकाली और उसमें वह वहा के कचरेसे जो भी महत्वपुर्ण लगा या महत्वपुर्ण होनेकी संभावना थी ऐसा कचरा उस बॅगमे ठूसने लगा. उस कचरेमें ढूंढनेके बाद उसने उस लता को पकडकर जोर जोरसे हिलाया. उसके शरीरपर फुलोंकी बरसात होने लगी. और कुछ गिरनेका 'धप.. धप' ऐसा आवाज आने लगा. उसने टॉर्च के रोशनीमें गौरसे देखा तो उस लताके टहनीयोंमे अटका हूवा और कुछ कचरा निचे गिर गया था. उसमेंकाभी कुछ छाटकर उसने अपने बॅगमें ठूंस दिया. उसे एक पॉलीथीनकी बॅग मिल गई. उसका मुंह गांठ मारकर बंधा हूवा था. उसने वह पॉलीथीन बॅग हिलाकर देखी. अंदरसे कुछ बजनेका आवाज आ रहा था. जो भी होगा बादमें देखेंगे...
ऐसा सोचकर उसने वह बॅगभी अपने बॅगमें डाल दी.
चलो अब बहुत हो गया...
अब मुझे चलना चाहिए...
जॉनने बॅग उठाई और कंपाऊंडकी तरफ वापस जानेके लिए निकल पडा.
जॉनको घर आते आते सुबहके चार बज चूके थे. वह पुरी तरहसे थक चूका था. पॉलीथीन बॅग निचे रखकर दुसरे जखमी हाथको संभालते हूऐ उसने क्वार्टरका दरवाजा खोला. उसे याद आगया की एकबार ऐसेही जब उसका अॅक्सीडेंट हुवा था तब अँजेनीने उसे संभालते हूए घर लाया था. और क्वार्टरका ताला उसनेही खोला था. उसकी याद आतेही उसका मन फिरसे खट्टू होगया.
दरवाजा खोलते खोलते उसे याद आया -
अरे व्हिस्कीकी बॉटल लाना तो मै भूलही गया....
मै बाहर निकलने का एक उद्देश व्हिस्कीकी बॉटल्स लाना यह था और वही मै भूल गया ...
दरवाजा खोलकर निचे रखे पॉलीथीनकी थैलीकी तरफ देखकर उसने सोचा -
चलो तो अपना दर्द भूलनेके लिए अपने पास और एक काम है...
इस कचरेमें कुछ महत्वपुर्ण मिलता है क्या यह ढूंढना...
पॉलीथीनकी थैली उठाकर वह घरके अंदर चला गया. अंदरसे दरवाजा बंद कर लिया और सोफेपर बैठकर वह उस थैलीसे एक एक मसला हूवा कागज बाहर निकालकर उसे ठिक कर उसमें कुछ मिलता है क्या यह देखने लगा. सब कागजके टूकडे टटोलकर खतम होगए लेकिन कुछ खास नही मिल रहा था. फिर वह वहांसे उठाकर लाई पॉलीथीन बॅग्ज खोलकर देखने लगा. कुछ बॅग्जमें बचे हूए, सडे हूए मुंगफलीके दाने थे. तो कुछ बॅग्जकी बहुतही गंदी बदबू आ रही थी. आखिर उसे एक गांठ मारी हूई पॉलीथीनकी थैली मिल गई. उसने उस थैलीकी गांठ बडी सावधानीसे खोली. अंदरसे बदबू आयेगी इस अनुमानसे मुंह बाजू हटाया. लेकिन अंदरसे कोई बदबू नही आयी. उसने थैलीमें झांककर देखा. अंदर कुछ कांचके टूकडे थे.
टूटे ग्लासके होंगे....
वह सोफेसे उठकर निचे मॅटपर घुटने टेंककर बैठ गया. उसने वे टूकडे बडी सावधानीसे थैलीसे बाहर मॅटपर उंडेल दिए. दो-तीन टूकडोंपर उसे खुनके दाग दिखाई दिए.
अरे वा यह तो कातिलका या उसके साथीका खुन दिख रहा है...
उसने खुनके दागवाला एक टूकडा हलकेसे अपने हाथमें लिया.
अब मुझे इस धागेसेही कातिलतक पहूचना है...
लेकिन क्या इस खुनसे मै कातिलके बारेमें कुछ जानकारी पा सकता हू ?
वह सारी संभावनाए टटोलकर देखने लगा. और फिर अचानक उसकी आंखे खुशीसे चमकने लगी. उस कांचके टूकडेपर उसे खुनसे सने हाथके और उंगलियोंके निशान दिखाई देने लगे.
" यस्स" वह खुशीसे चिल्लाया.
दुसरे खुनके दाग लगे टूकडेभी उसने सावधानीसे उठाकर गौरसे देख लिए. उसपरभी उंगलियोंके निशान दिख रहे थे. वैसेही वे कांचके टूकडे हाथमें लेकर वह फोनके पास चला गया. वे टूकडे बगलमें एक टेबलपर रखकर उसने एक नंबर डायल किया.
" सॅम... मै तुम्हारे उधर आ रहा हू... अभी ... एक बहुतही महत्वपुर्ण धागा मेरे हाथ लगा है..." वह अपनी खुशी छिपा नही पाकर उत्साहभरे स्वरमें फोनपर बोल रहा था.

सॅम और जॉन एक कॉम्प्यूटरके सामने बैठे थे. कॉम्प्यूटरपर एक सॉफ्टवेअर रन हो रहा था. उस साफ्टवेअरके सहाय्यतासे वे उनको मिले उंगलीयोंके निशान कॉम्पूटरपर गुनाहगारोंके डाटाबेसमें ढुंढ रहे थे. डाटाबेसमें गुनाहगारोंके लाखो करोडो उंगलियोंके निशान स्टोअर करके रखे होंगे. उस हर उंगलियोंके निशान के साथ उनके पासके उंगलियोंके निशान जोडकर देखना वैसे बडा कठीन काम था. लेकिन आजकल काम्प्यूटरकी वजहसे वह बहुत आसान हो गया था. कॉम्प्यूटर एक सेकंडमें कमसे कम हजारो उंगलियोंके निशान जोडकर देखता होगा. और वहभी बहुत बारीकीसे, एक भी छोटीसे छोटी महत्वपुर्ण जानकारी ना छोडते हूए. मतलब सब निशानोंको जोडकर देखनेके लिए कुछ ही मिनीटोंका अवधी लगने वाला था. वे दोनो बेसब्रीसे कॉम्प्यूटरके मॉनिटरकी तरफ देखने लगे. मॉनिटरपर कितने लोगोंके उंगलियोंके निशान जोडकर देखे यह बतानेवाला एक काऊंटर तेजीसे आगे बढ रहा था. वह काऊंटर शून्यसे शुरु होकर अबतक सात लाखके उपर पहूंच गया था. आखिर अचानक वह काऊंटर 757092 पर रुका .
मॉनिटरपर एक मेसेज झलकने लगा " मॅच फाऊंन्ड".
दोनोंके चेहरे खुशीसे खिल उठे. उन्होने एकदुसरेकी तरफ देखकर एक विजयी मुस्कुराहट बिखेरी और फिर मॉनिटरपर वह किसका रेकॉर्ड है यह देखने लगे.
॥।रेकॉर्ड डिटेल्स ॥।
नाम - विनय जोशी
उम्र - 30 साल
गुनाह - फोर्जरी
निशाणी - बायें हाथको छे उंगलिया.
नॅशनॅलिटी - अमेरिकन
दोनोभी गुनाहगारकी पुरी जानकारी पढने लगे. उसमें गुनाहगारके तीन फोटोभी थे. एक दाई तरफसे लिया हूवा , दुसरा बायी तरफसे लिया हूवा और तिसरा सामनेसे लिया हूवा.
" यह सब जानकारी हमे शहरके सब पुलिस थानोंपर जल्द से जल्द भेजना चाहिए." सॅमने कहा.
" हां सही है ... लेकिन मुझे एक डर है " जॉनने कहा.
सॅमने उसकी तरफ प्रश्नार्थक मुद्रामें देखा.
" की इसबारभी अगर यह जानकारी कातिलतक पहूंच गई तो ? " जॉनने अपनी चिंता जाहिर की.
" इसबार नही पहूंचेगी. उस डॅनको उसके कियेकी सजा मिल चूकी है." सॅमने कहा.
फिर उन्होने उस गुनाहगारकी फोटोके साथ सारी जानकारी शहरके सब पुलिस थानोंपर भेज दी. और वैसा कोई शख्स नजर आतेही ही उसपर वॉच रखकर तुरंत सॅमको सुचीत करनेके लिए बताया गया. क्योंकी वह सिर्फ एक धागा हो सकता है. वहतो उनके हाथका सिर्फ एक मोहरा हो सकता था. असली गुनाहगार कोई और ही हो सकता है. पुरी केसकी तहतक जाकर असली गुनाहगारतक पहूंचना सबसे महत्वपुर्ण था.
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Re: 'शून्य' - (Shunya)-- Complete Novel

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कमांड2की यानीकी विनयकी बॉसको ढुंढनेके लिए इस एरियामें यह हमेशाकी चक्कर थी. वह लगभग रोजही इस एरियामें आकर बॉसको ढुंढनेके लिए घुमता रहता था. उसे खुदको बॉस ना पहचाने इसकी वही पुरी एतीयात बरतता था. न जाने कितनी बार, कमसे कम सौके उपर, वह इस एरीयामें बॉसको ढुंढनेके लिए आया होगा. लेकिन उसने कोशीश जारी रखी थी. निरंतर प्रयास करते रहना यह एक उसका गुण ही था. आज दिनभर घुम घुमकर वह थका हूवा था. शाम हो चुकी थी. शहरका मौहोल अब काफी ठंडा पडा हूवा था. हालहीमें उसे बॉसका इंटरनेटपर एक मेसेज आया था. अब यह खुनी श्रुंखला दुसरे एक शहरमेंभी शुरु करनी थी. बॉस नही चाहता था की मौहोल ठंडा पडे. वैसे दुसरे शहरमें खुनी श्रुंखला शुरु करनेके लिए और वक्त था. लेकिन विनयको दुसरे खुनी श्रुंखलामें बिलकुल रुची नही थी. उसके पहलेही उसे उसने शुरु किए खेल का अंत करना था. लेकिन अभीतक एकभी धागा हातमें नही आ रहा था. वह सोचते सोचते एक बडी बिल्डींगका काम चल रहा था वहा खाली जगहमें जाकर खडा हो गया. उसे थकनेकी वजहसे कही बैठनेकी जरुरत महसुस हूई. बैठनेके लिए कुछ है क्या यह देखनेके लिए उसने आजु बाजु देखा. एक जगह रेत का एक बडासा ढेर पडा हूवा था. कोई हमें देखेगा या कोई हमें पहचानेगा इसकी पर्वा ना करते हूए वह उस ढेरपर बैठ गया.
जहा विनय बैठा हूवा था वहांसे लगभग 200 मीटरपर एक काली कार रस्तेके किनारे रुकी हूई थी. गाडीका काला शिशा चढाया हूवा था. इसलिए अंदरका कुछ दिखाई नही दे रहा था. लेकिन अंदरसे जॉन और सॅम दुर्बिणसे विनयकी सारी हरकते निहार रहे थे.
'आज लगभग 5 दिन होगए है हम इसके पिछे है. लेकिन साला इस एरियामें क्या ढूंढ रहा है कुछ पता नही चल रहा है. " सॅमने जॉनसे कहा.
" मुझे लगता है ईसीमें सारे कत्ल का रहस्य छिपा होगा. " जॉनने कहा.
" लेकिन हम कितने दिन ऐसे इसके पिछे पिछे घुमेंगे ? " सॅमने पुछा.
" जबतक उसे जो चाहिए वह मिलता नही तब तक " जॉनने कहा.
" वह अपना अगला शिकार तो नही ढूंढ रहा है? "
" वही तो हमें ढूंढना है... लेकिन मुझे ऐसा नही लगता " जॉनने अपनी राय बताई.
बैठे बैठे विनयका सामने एक बंगलेकी तरफ ध्यान गया. सामने दरवाजे के खंबेपर पत्थरमें मालिकका नाम खुदा हूवा था. और वहा पत्थरके चारों तरफसे रोशनी आनेके लिए बल्बका इंतजाम किया था. विनयने ऐसेही वह नाम पढा.
'डॉ. कयूम खान'
विनयने वह नाम फिरसे पढा.
'डॉ. कयूम खान'
नाम पहचानका लग रहा था. यह नाम कहीतो पढा या सुना लग रहा है. विनय अपने दिमागपर जोर देकर याद करनेकी कोशीश करने लगा. वैसे उसको सब मुस्लीम नाम सरीके लगते थे. शायद इसलिए वह उसे पहचानका लग रहा हो. वह सोचने लगा. अचानक वह जहा बैठा था उसके पिछे 'घरऽऽ घरऽऽ' ऐसा जोरसे आवाज आने लगा. विनय अप्रत्यक्षित तरहसे आये आवाजसे एकदमसे चौककर लगभग खडाही होगया. उसने पिछे पलटकर देखा. पिछे बिल्डींगका कंस्ट्रक्शन चल रहा था और रेडीमीक्स काँक्रीट मशीन अभी अभी शुरु हूई थी. वह खुदको संभालते हूए बाजू हटने लगा. अचानक उसके दिमागमे मानो रोशनीसी कौंध गई.
" माय गॉड" उसके मुंहसे निकल गया.
उसने एकबार फिरसे सामने खंबेपर लिखा नाम पढा. और फिर उस रेडीमीक्स काँक्रीट मशीनकी तरफ देखा. उसके दिमागमें अब सब पहेलिया सुलझ रही थी. .
'डॉ. कयूम खान' यह तो मैने पढे आर्यभट्टके उपर लिखे रिसर्च पेपरका कोऑथर है...
और यह रेडीमीक्स काँक्रीट मशीनकी घरघर उसे एकबार बॉसके फोनपर सुनाई दी थी. ....
"मतलब डॉ. कयूम खानही अपना बॉस है !"
उसके शरीरमे अब फुर्ती दौडने लगी. वह डॉ. कयूम खानके घरकी तरफ जानेके लिए लपका. फिर ब्रेक लगे जैसा एकदम रुका.
नही अब नही...
मुझे सही समय देखकर सब बराबर प्लॅनींग करते हूए अंदर प्रवेश करना पडेगा...
उसने कैसेतो खुदको रोका.

विनय पुरी तैयारीके साथ रात एक बजेके बाद डॉ. कयूम खानके बंगलेके पास आया. बंगला बाकीके मकानोंसे अलग थलग बंसा हूवा था. इसलिए बंगलेमे पिछेसे प्रवेश करना शायद मुमकीन था. विनयने अंदाजा लगाया. एक बार फिर इधर उधर देखते हूए वह बंगलेके पिछवाडेकी तरफ जाने लगा.
विनयकी नजर पहुचेगी नही ऐसी एक जगह काली कार पार्क की हूई थी. अंदर जॉन और सॅम दुर्बिणसे विनयके हर हरकतको बारकाईसे देख रहे थे. .
" मुझे लगता है अब उसे जाकर पकडनेमें कुछ हर्ज नही होना चाहिए... नहीतो देर हो जाएगी." सॅम ने कहा.
" नही अभी नही ... मुझे पुरा यकिन है की वह अंदर खुनी श्रृंखला आगे बढानेके लिए नही जा रहा है. ' जॉनने कहा.
" फिर किसलिए जा रहा होगा ?" सॅमने पुछा.
"वहीतो हमे पता करना है " जॉनने कहा.
विनय जब बंगलेके पिछेकी तरफ जाने लगा तब अंदर बैठे हूए जॉन और सॅम एकदम अलर्ट हो गए. विनय नजरोंसे ओझल होतेही वे कारसे बाहर निकल आये.
विनय बंगलेके हॉलमें खडा था. हॉलमें अंधेरा था. सामने एक कमरा खुला दिख रहा था और उस कमरेसे धुंधली रोशनी बाहर आ रही थी. बंदूक तानकर धीरे धीरे विनय उस कमरेके दरवाजेके दिशामें चलने लगा. उसको सामने एक कुर्सीपर बैठा हूवा एक आदमीका साया दिखाई दिया. उस सायेका मुंह उस तरफ था. वह साया अंधेरेमें बैठा होनेसे वह कौन है यह पहचानना मुमकीन नही था. वह साया पैर फैलाकर कुर्सीपर आरामसे बैठा हूवा था. विनय उस सायेकी दिशामें चलने लगा. उतनेमें अचानक -
" हॅन्ड्स अप... थ्रो द गन" एक कडा आवाज हॉलमें गुंजा.
जॉन और सॅम विनयके पिछे बंदूक ताने हूए खडे थे. उन्हे वह कुर्सीपर बैठा हूवा साया भी दिख रहा था. इस अचानक हूए अप्रत्याशीत घटनासे विनय घबरा गया और गडबडा गया. उसने अपनी बंदूक जमीनपर फेंक दी और अपने दोनो हाथ उपर हवामें उठाए. सामने धुंधले रोशनीमें बैठे आदमीने अपनी पहियेवाली कुर्सी आवाजकी तरफ घुमाई. विनय अब संभलकर धीरे धीरे मुडने लगा था. सामने धुंधले रोशनीमें बैठा सायाभी उठकर खडा होनेका प्रयास करने लगा.
" डोन्ट मूव्ह" जॉनका कडा स्वर गुंजा.
विनय किसी बूत की तरह अपने जगह बिना हिले खडा हो गया. वह कुर्सीपर बैठा सायाभी अपने जगहपर बैठा रहा.
लेकिन यह क्या ?...
उस सायेके हाथमें शायद बंदूक थी.....
उसके हाथमें बंदूक दिखतेही सॅमने अपने बंदूकसे उस सायेपर गोलीयां की बरसात शुरु कर दी.
" नो...." जॉनने सॅमके हाथसे बंदूक दुसरे तरफ करनेकी कोशीश की.
उनके सामने 'धप' 'धप' ऐसे दो आवाज आये. एक वह साया गिरनेका और दुसरा विनय निचे गिरनेका. सॅमकी बंदूक बाजु हटानेके चक्करमें विनयके मस्तकमें एक गोली घुस गई थी.
" व्हॉट हॅपन्ड टू यू" जॉनने चिढकर सॅमसे कहा.
" अगर मैने बंदूक नही चलायी होती तो उसने चलाई होती " सॅमने कहा.
सॅम उस काले सायेके निचे पडे शरीरकी तरफ दौडा. और जॉन विनयके निचे पडे शरीरकी तरफ दौडा. सॅमने स्टडी रूमका बडा बल्ब जलाया. निचे एक वयस्कर सफेद दाढी रखा हूवा और पुरी मुंछ मुंडाया हूवा एक शख्स पडा हूवा था. वही डॉ. कयूम था. डॉ. कयूमका शरीर एक राखके ढेरपर गिरकर राख इधर उधर बिखर गई थी. वह राख शायद कुछ कागजाद या कोई पुस्तक जलानेसे बनी हूई थी. डॉ. कयूमके हाथमें एक कागजका रोल था. उस रोलकोही अंधेरेमे बंदूक समझकर सॅमने बंदूक चलाई थी.
" उसके हाथमें कागजका रोल देखकर अपने आपपर चिढकर सॅमके मुंहसे निकल गया, " शिट ... व्हाट अ फूल आय अॅम ... यह तो सिर्फ रोल किया हूवा पेपर है.."
सॅमने निचे घुटनेपर बैठकर उस निचे गिरे आदमीकी नब्ज टटोली. उसकी नब्ज पुरी तरहसे बंद हो चूकी थी. " हि इज डेड" सॅमके मुंहसे निकल गया.
जॉनने निचे पडे हूए विनयके शरीरकी तरफ देखा. वह अबभी दर्दसे कराह रहा था. उसने निचे झुककर उसे कहां गोली लगी यह देखा और वह उसके बचनेकी कितनी संभावना है यह देखने लगा.
" इसे किसीभी हालातमें हमें बचाना पडेगा" जॉनने कहा.
उसने वैसेही वहा घुटनेपर बैठकर जेबसे मोबाईल निकाला और एक नंबर डायल करने लगा.
उधर सॅमने निचे गिरे डॉ. कयूम खानके शवके हाथसे कागजका रोल खिंच लिया. वह कागजका रोल उसने खोलकर देखा. उस कागजपर अलग अलग तारख और समय लिखा हूवा था. कही 'लाभदायक समय' तो कही 'अति लाभदायक समय' ऐसा लिखा हूवा था. कही कही 'धोकादायक समय' ऐसाभी लिखा हूवा था. उसमें डॉ. कयूमकी लगभग सब कुंडलीही लिखी हूई थी. पढते पढते सॅमका ध्यान कागजके एकदम आखिरमें गया. .
" माय गॉड !" सॅमके मुंहसे निकल गया.
" जॉन " सॅम आवाज देते हूए जॉनके पास गया.
जॉनने अभी अभी हॉस्पिटलको फोन लगाकर तुरंत यहा आनेके लिए कहा था.
"जॉन यह तो देखो " सॅमने वह कागज जॉनके सामने पकडा.
जॉनने उस कागजको हाथमें लेकर एक नजर दौडाई और वह कागज निचे फेंकते हूए कहा -
" अरे आजकल ज्योतिष्य यह एक फॅशनही हो गया है."
सॅमने वह कागज उठाया और उस कागजके आखिरमें लिखा हूवा जॉनको दिखाकर कहा-
" यह इधर देखो... यहां ... तारीख 17 रातके बारा से आगे 3 दिन 'धोकादायक समय' और यह देखो यहां रातके 12 से 2 तक 'अति धोकादायक समय' "
जॉनने वह कागद अपने हाथमें लेकर ठिकसे देखा. उसने घडीमें देखा 1 बजकर 5 मिनट हो चूके थे. और आज तारीख बराबर 17 थी. जॉन स्तब्ध होकर उस कागजकी तरफ देखने लगा. उसके चेहरेपर एक गूढतापुर्ण आश्चर्य फैल गया था. जॉन जहा खडा था वही निचे जमिनपर विनय कराह रहा था. उसने सॅमने जॉनको पढाकर सुनाया सुना था. उसे बॉसके पास रहे ज्ञानकी पुरी तरह तसल्ली हूई थी. आखिर एक दीर्घ सांस लेते हूए विनयकी गर्दन एक तरफ ढूलक गई. लेकिन उसकी वह ज्ञान हथीयानेकी इच्छा पुरी नही हो सकी थी...

दुसरे दिन अलग अलग हेडींगसे कातिल मिलनेकी खबरे न्यूजपेपरमें आगई.
'झीरो मिस्ट्री' सॉल्व्ड अॅट लास्ट'
'झीरो मिस्ट्री' यह दुष्मनोंकी एक अलग चाल.'
'झीरो मिस्ट्री' यह दुष्मनोंने ललकारा हूवा एक युध्द. सिर्फ ढंग जुदा'
'झीरो मिस्ट्री' के तहत पुलिसका अंदरुनी बेबनाव जाहिर '
'झीरो मिस्ट्री' यह घटना या फेनॉमेनॉ'
'झीरो मिस्ट्री' की गुत्थी सुलझानेमें आखिर डिसमिस पुलिस अफसरही कामयाब'
'झीरो मिस्ट्री' का जनक डॉ. कयूम खान'
'विनय जोशी और डॉ. कयूम खान इनका आपसी संबंध क्या?'
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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