हीरों का फरेब कॉम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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Jemsbond
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Re: हीरों का फरेब

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"निश्चित रूप से. अब वो इस तरह पता करना चाहते हैं कि मैं कॉन हूँ. दो तरह की शंकाएँ उनके दिमाग़ मे होंगी. क्या वो अंजाने मे किसी सरकारी आदमी से जा टकराए थे........या मेरा संबंध किसी दूसरे गिरोह से है जो उन के बारे मे किसी हद तक जानकारी रखता है. उन मे से किसी एक संदेह कि पुष्टि केलिए ये चाल चली गयी है. लेकिन अब.....हाँ....."

"क्या......?"

"कुच्छ नहीं.....चिंता मत करो. अब उन्हें विश्वास हो जाएगा कि मेरा संबंध किसी सरकारी विभाग से नहीं हो सकता..........फिर वो अपनी गति विधि तेज़ कर देंगे."

"जहन्नुम मे जाओ...." जूलीया ने बुरा सा मूह बना कर कहा. थोड़ी देर तक चुप रही फिर बोली....."वो लड़की कहाँ है?"

"तुम उसकी तलाश मे निकली थीं?" इमरान ने गंभीरता से कहा. मैं तुम्हें वॉर्निंग देता हूँ कि जितना कहा जाए उस से अधिक करने की चाहत को दबा कर ही रखना."

"क्या मतलब?" जूलीया ने आँखें निकालीं लेकिन इमरान उसकी तरफ ध्यान दिए बिना सफदार से बोला....."साड़ी & सन्स के तीनों सेल्स-मॅन को पोलीस की हिरासत से दानिश मंज़िल मे ट्रान्स्फर होना चाहिए."

"कॉन से सेल्समन?"

"ओह्ह.....क्या तुम ने चौहान की रिपोर्ट को ध्यान से नहीं देखा था? वहाँ डावर के मौजूद रहने की अवधि मे तीन तीन स्टाफ भी थे काउंटर पर. वो पोलीस की हिरासत मे हैं......तुम दोनों शहर वापस जाओ."

अचानक इमरान खामोश हो गया.

"ओह्ह.....ये तो फाइयर की आवाज़ थी." उसने चारों तरफ देखते हुए कहा.

जूलीया और सफदार ने भी आवाज़ सुनी थी. वो तीनों अभी मेट्रो के रिक्रियेशन हॉल से अधिक दूरी ऑर नहीं थे. फिर अचानक शोर भी सुनाई दिया. आवाज़ें रिक्रियेशन हॉल ही से आई थीं.

"ओह्ह........" इमरान बडबडाया. "जाओ......अपने कॉटेज मे जाओ.....शायद......."

फिर वो तेज़ी से हॉल की तरफ बढ़ गया.

"समझ मे नहीं आता.......क्या करता फिर रहा है...." जूलीया ने गुस्से से कहा.......और अपने कॉटेज की तरफ मूड गयी.

***************

रेड बालों वाली लड़की फर्श पर पड़ी तड़प रही थी.......और पोलीस ऑफिसर्स हक्का बक्का खड़े थे. फिर वो उस तरफ दौड़ पड़े जिधर से फाइयर हुआ था. :अदकी उसी तरह तड़पति हुई बाईं तरफ लुढ़क गयी. हॉल मे खड़े आदमियों मे से किसी ने भी गल्लारी की तरफ बढ़ने की हिम्मत नहीं की. गॅलरी फर्श से काफ़ी उँचाई पर थी. इसलिए दूसरी तरफ लुढ़क जाने के कारण ज़ख़्मी लड़की उनकी निगाहों से ओझल हो गयी.

"उधर......उधर से..." किसी ने फिरे की दिशा के बारे मे ऑफिसर्स को संकेत दिया. लेकिन जिधर इशारा किया गया वहाँ सपाट दीवार के अलावा कुच्छ भी दिखाई नहीं दिया. ना वहाँ कोई खिड़की थी और ना रौशानदान. कहाँ कोई च्छेद भी नहीं मिला. अगर वहाँ से फाइयर किया गया होता तब हमलावर पर किसी ना किसी की नज़र ज़रूर पड़ती. और वो आसानी से ना निकल सकता.

अचानक एक ऑफीसर ने हॉल के दरवाज़े बंद कराने शुरू कर दिए.......और दूसरे ने चीख कर कहा...."प्लीज़, कोई साहब यहाँ से जाने की कोशिश ना करें.......हम तलाशी लिए बिना किसी को भी नहीं जाने देंगे....."

असंभव था की इमरान बिना समझे बुझे हॉल मे प्रवेश करने की कोशिश करता. वो बाहर ही था कि दरवाज़े बंद कर दिए गये.

बाहर अच्छी ख़ासी भीड़ जमा हो गयी थी. तभी इमरान को मेट्रो होटेल का मॅनेजर दिखाई दिया......जो उधर ही आ रहा था. उसी समय एक पोलीस ऑफीसर भी बाहर निकला. मॅनेजर पर नज़र पड़ते ही उसे तेज़ चलने का इशारा करके वो दरवाज़े ही मे रुक गया. फिर भीड़ को घूरते हुए तेज़ आवाज़ मे बोला.

"जाइए.....हटिए यहाँ से.....भीड़ हटाइए...."

लोग तितर बितर हो गये. इमरान को भी हटना ही पड़ा. लेकिन आधे घंटे के अंदर लड़की की हत्या की खबर सारे कॅंप मे फेमस हो गयी.
***

आईने पर नज़र पड़ते ही मोना उच्छल पड़ी. गुफा मे इमरान ने उसका मेक अप किया था और उसका हुलिया चेंज किया था. और अब वो दोनों पहाड़ों से निकल कर सरदार गढ़ शहर के लिए चल पड़े थे. मोना रास्ते भर पूछती आई थी कि उसकी शकल कैसी लग रही है. और फिर जब वो एक नाइट क्लब मे प्रवेश किए थे तब मोना एक जगह लगे आईने मे अपनी शकल देख कर हैरान रह गयी थी.

"माइ गॉड....." उसने धीरे से कहा. "मैं तो कोई बेंगलन लग रही हूँ....."

बालों का रंग बदल कर नॅचुरल ब्लॅक कर दिया था.....जिन्हे समेट कर बहुत शानदार जूड़ा बनाया गया था...और पता नहीं वो कॉन सा लोशन था जिसने चेहरे की रंगत मे सलोनापन भी पैदा कर दिया था.

वो एक खाली टेबल पर जा बैठे. इमरान ने धीरे से कहा....."बस तुम अपनी चाल को थोड़ा कंट्रोल मे रखो....आँधी और तूफान की तरह चलती हो....."

"कोशिश तो करती हूँ कि धीरे चलूं." वो मिन्मीनाई. फिर चौंक कर बोली...."यहाँ क्यों लाए हो?"

"क्या तुम हमेशा गुफ़ाओं मे ही रही हो?"

"ओह्ह....ये बात नहीं. मुझे बार बार उस बेचारी लड़की का ख़याल आता है. पता नहीं वो कॉन थी."

"क्या तुम सब मे कोई ऐसी लड़की नहीं थी?"

"नहीं....."

"कभी बूढ़े के साथ भी नहीं दिखाई दी?"

"नहीं.....वो हमेशा अकेला ही होता था...."

"तुम्हें यहाँ लाए जाने पर हैरत क्यों है?"

"मतलब ये कि हम यहाँ अक्सर बैठते रहे हैं. डर है की कोई पहचान ना ले...."

"इसकी चिंता मत करो. पोलीस को मेरी भी तलाश है और हमारे दूसरे दुश्मन भी कामन हैं."

"सच बताओ......क्या तुम भी किसी गिरोह से संबंध रखते हो?"

"दुनिया का हर बेवकूफ़ आदमी खुद एक बड़ा गिरोह है."

"बेतुकी बातें ना करो. पता नहीं तुम किस किस्म के आदमी हो. ना तुम्हें बुद्धिमान समझने को दिल चाहता है और ना मूर्ख. तुम क्या करना चाहते हो? तुम्हारी जगह अगर और कोई होता तो कभी इधर का रुख़ भी ना करता."

"मैं पागल हो जाता हूँ जब कोई मुझे उल्लू समझ कर मूर्ख बनाने की कोशिश करता है........आहा....वाहह...." इमरान चुप होकर काउंटर की तरफ देखने लगा जहाँ कॅंप के मेट्रो होटेल का मॅनेजर काउंटर क्लर्क से कुच्छ कह रहा था. वो अभी अभी हॉल मे प्रवेश किया था.

"क्यों......ये तो मेट्रो का मॅनेजर लगता है." मोना बोली.

"लगता नहीं......बल्कि वही है....." इमरान धीरे से बडबडाया. शायद उसके इतने ध्यान से देखने के कारण ही लड़की भी मॅनेजर की तरफ देखी थी.

"ओह्ह.....तो वो यहाँ जुआ खेलने आया है....!"

"तुम्हें कैसे पता कि वो जुआ खेलने आया है?"

"रेड पॅकेट...." मोना बोली. "काउंटर क्लर्क ने उसे रेड पॅकेट दिया था."

"मैं नहीं समझा....."

"यहाँ एक तहखाना भी है जिस मे जुआ होता है. शातिर ने एक बार बताया था. मेरे साथियों मे से एक को अपने साथ वहाँ ले भी गया था. मगर ये जुआ-खाना गैर-क़ानूनी नहीं है. क्लब के पास लाइसेन्स है. हाँ जनरल आदमियों को रोकने केलिए उन्होने ये तरीका अपनाया है. रेड पॅकेट के बिना वहाँ प्रवेश असंभव है."

"तब फिर हम कैसे प्रवेश कर सकेंगे?" इमरान ने निराशा भरे स्वर मे कहा.

"अर्रे......तो इसकी ज़रूरत ही क्या है?"

"हाएन्न......तो क्या हम यहाँ भजन गाने आए हैं....."

"मुझे इंटेरेस्ट नहीं...."

"तब फिर वापस जाओ....यहाँ तो ये हाल है की मैने पैदा होते ही जन्म-घुट्टी की जगह चिड़ी का इक्का माँगा था.............अगर ये पता होगा कि नहीं मिलेगा तो पैदा होने से सॉफ इनकार कर देता. अच्छा तो तुम्हारे उस साथी ने वहाँ के बारे मे तुम लोगों को क्या बताया था?"

"कुच्छ भी नहीं.........लेकिन मैं इतना जानती हूँ कि उन पॅकेट्स के इस्तेमाल के बारे मे भी सब नहीं जानते. चूँकि मॅनेजर ने डाइरेक्ट काउंटर से पॅकेट लिया था इसलिए सोची थी कि वो उसके इस्तेमाल को जानता होगा. अभी जब वेटर बिल लाएगा तो उसके साथ पॅकेट भी होगा. पॅकेट के भीतर एक प्रिंटेड हॅंडबिल्ल होता है जिस पर लिखा होता है "आप के यहाँ पधारने केलिए आपका शुक्रिया....अगर आप रेग्युलर मेंबर बन जाएँ तो आपको कयि सारी साहुलतें अवेलबल होंगी....."

"तब तो हर एक जा सकता है.....क्या बात हुई?"

"जिन्हें जुआ-खाने का पता ही नहीं वो कैसे जाएँगे? वो तो उस पॅकेट को क्लब की फॉरमॅलिटी समझेंगे."

"अच्छा तो अब हमें कुच्छ खा पी कर तुरंत बिल मंगाना चाहिए...." इमरान ने कुच्छ सोचते हुए कहा.

"शायद तुम्हारा ख़याल है कि शातिर यहीं आ छुपा है." लड़की उसे घूरती हुई बोली.

"संभव है ऐसा ही हो......यकीन के साथ नहीं कहा जा सकता. लेकिन मैं जुआ ज़रूर खेलूँगा."

"तुम जानो......लेकिन मैं तो तहख़ाने मे बिल्कुल नहीं जाउन्गि...."

"मैं शायद तुम्हें ले भी नहीं जाउ....." इमरान ने कहा और वेटर को बुला कर कॉफी का ऑर्डर दिया जो जल्दी ही सर्व कर दी गयी.

मोना कुच्छ सोच रही थी. उस ने कॉफी का घूँट लेकर कहा. "समझ मे नहीं आता कि उन्होने उस लड़की को पोलीस तक पहुचा कर फिर मार डाला."

"उसने उस मूर्ख के खिलाफ बयान दिया था.....इसलिए उसका हत्यारा मूर्ख ही हो सकता है."

"तो मकसद यही है कि पोलीस उस मूर्ख को ढूंडती रहे...." मोना बोली,

"बिल्कुल.....इसके अलावा और कोई मकसद नहीं हो सकता.

"कॉफी ख़तम कर के इमरान ने बिल माँगा. बिल के प्लेट मे एक रेड पॅकेट भी था. इमरान ने उसे उठा कर टेबल पर रख दिया और वेटर पैसे लेकर चला गया.

लिफाफे से धन्यवाद-पत्र निकला. लेकिन लेटर के एक कोने मे पेन्सिल से घसीटे हुए दो अक्षर थे "एस पी" अंदाज़ ऐसा था जैसे किसी ने अपने सिग्नेचर किए हों.

इमरान ने उस रात जुआ खेलना पोस्पोंड कर दिया.

दूसरी रात वो क्लब मे अकेला था. आज भी उसने बिल पेमेंट के बाद रेड पॅकेट ले लिया था. आज भी उसके भीतर वैसा ही शुक्रिया वाली चिट्ठी थी लेकिन पेन्सिल से बनाए हुए सिग्नेचर के लेटर्स मे चेंजिंग था. आज "एसपी" के बजाए "एनपी" घसीटा गया था.
***

चौथी रात मोना क्लब मे आई. उसक दिल तेज़ी से धड़क रहा था. हलाकी वो मेक-अप मे थी......और उसे विश्वास था की उसे पहचाना नहीं जा सकेगा. फिर भी रह रह कर ऐसा लगता था जैसे किसी ने पिछे से गर्दन पर चाकू की नोक रख दी हो.

वो ऐसी पोज़िशन मे थी कि जहाँ खुद को परिस्थिति के सहारे छोड़ ही देना पड़ता है, एक तरफ बूढ़ा था और दूसरी तरफ पोलीस. मूर्ख भी अब ख़तरनाक साबित हो रहा था. धीरे धीरे ही वो उसके बारे मे अनुमान लगा सकती थी कि वो मूर्ख नहीं हो सकता. फिर वो एक मूर्ख के रूप मे उसके सामने क्यूँ आया था?

यही सवाल उसे इस नतीजे पर पहुचने मे मदद करता था कि वो भी किसी ऐसे गिरोह से संबंध रखता है जो बूढ़े के गिरोह का विरोधी है. वो चारों तरफ से ख़तरों मे घिरी हुई थी,

एक खाली मेज़ पे बैठते हुए उस ने सोचा कि अंजाने मे बूढ़े का मोहरा बन जाने के बावजूद भी अभी तक उस के हाथ से कोई ऐसा गंभीर अपराध नहीं हुआ है जिस के बदले उसकी जान चली जाए. फिर वो खुद को क्यों ना पोलीस के हवाले कर दे.

मूर्ख के बारे मे वो कुच्छ भी नहीं जानती. हो सकता है कि उसके साथ रहने मे भी गोली का निशाना बनना पड़े. अब इस समय वो अकेली मौत के मूह मे जा रही है. उसे उस मूर्ख के ही एक स्कीम पर चलना था. उस ने चारों तरफ नज़र दौड़ाई. सोच रही थी कि अब यहाँ से उठ कर सीधा पोलीस स्टेशन ही की राह लेनी चाहिए.

लेकिन अचानक उसके दिमाग़ को झटका लगा. दो घूरती हुई आँखों से उसकी नज़र टकराई थी. और उसका सारा शरीर काँप कर रह गया था. मूर्ख ने उसे ये नहीं बताया था कि वो भी पिछे ही पिछे वहाँ पहुचेगा. वो उस से कुच्छ ही दूरी पर मौजूद था.


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Jemsbond
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Re: हीरों का फरेब

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अब वो यहाँ से बाहर कदम नहीं निकाल सकती थी. दिल डूबने लगा. फिर खुद पर गुस्सा भी आया......कि उसने पहले ही ये बात क्यों नहीं सोची थी. वो उसकी अनुपस्थिति मे किसी समय भी गुफा से निकल कर पोलीस तक पहुच सकती थी. तो फिर शायद डूबना ही उसके भाग्य मे लिखा है.

उसने अहमाक़ (मूर्ख) के चेहरे से नज़र हटाई. इस समय पता नहीं वो उसे बहुत ही भयानक लग रहा था. बोखलाए हुए ढंग से उस ने एक वेटर को कुच्छ चीज़ों का ऑर्डर दिया.......और कोशिश करने लगी कि अब उसकी तरफ ना देखे.

अहमाक़ बराबर उसे घूरे जा रहा था. कभी कभी वो भी कनखियों से उसकी तरफ देख ही लेती थी......और उसके शरीर मे ख़ौफ़ की एक लहर दौड़ जाती थी. उसकी नज़रें उसे धमकियाँ और चेतावनी देती हुई लगती थीं.

ओह्ह.....क्या ये वही आँखें हैं जिन मे......जिन मे पहले कभी मुर्ख्ताये और मासूमियत देखने को मिलती थीं. तब उसने यही सोचा था कि वो बिल्कुल डफर है........वरना किसी वीरान गुफा मे एक सुंदर जवान लड़की के साथ बे-ताल्लुक सा बन कर रातें गुज़ार लेना फरिश्तों ही से संभव था.

15 मिनट बाद वो कॉफी ख़तम कर चुकी थी. बिल माँगा और कुच्छ देर बाद रेड पॅकेट हाथों मे था. आज अंदर की चिट्ठी पर पिच्छले दिनों वाले लेटर्स की जगह पेन्सिल से "टीएन" लिखा हुआ था. वो धीरे से कराह कर उठी और अहमाक़ ने फिर उसे घूर कर देखा......और वो सम्भल गयी. अचानक विचार आया कि शायद वो उसे खुद को संभाले रहने का इशारा कर रहा है.

लंबे कॉरिडोर मे जाते समय उस ने मूड कर देखा. अहमाक़ उसे दिखाई नहीं दिया. वो आगे बढ़ती चली गयी. सामने दरवाज़े पर एक वर्दी-धारी गेट-कीपर खड़ा था.

"एक मिनट मेडम..." उसने बड़े अदब से कहा.......और दीवार मे लगे एक बटन को दबा दिया.

वो रुक गयी. पॅकेट हाथ मे वैसे ही दबा हुआ था......कि दूसरों की नज़र उस पर पड़ती रहे.

इतने मे एक आदमी और भी आ कर उसके निकट ही रुका......और कीपर ने उसे भी रुकने को कहा. मोना ने मूड कर नये आने वाले को नहीं देखा.

कुच्छ ही पल बाद दूर से कहीं घंटी की आवाज़ आई और गेट-कीपर ने मोना से कहा....."तशरीफ़ ले जाइए मेडम....." और दूसरे आदमी से वहीं रुकने का रिक्वेस्ट किया.

मोना आगे बढ़ गयी. दस कदम चल कर लेफ्ट साइड मुड़ना पड़ा......क्यों कि सामने रास्ता नहीं था. लेफ्ट साइड मे तहखाना ही था लेकिन सीढ़ियाँ नहीं थीं. रास्ता ढलान नुमा बना हुआ था. नीचे पहुचने पर सामने ही बड़ा सा दरवाज़ा था.....जिसके शीशों से दूसरी तरफ की रौशनी दिखाई दे रही थी.

ढलान उसने तेज़ी से तय की थी लेकिन दरवाज़े के पास पहुच कर उसे रुकना पड़ा. यहाँ भी एक दरबान मौजूद था. लेकिन उसने भी पॅकेट की तरफ ध्यान नहीं दिया......और वो भीतर घुसने केलिए कदम उठा ही रही थी कि एक सुंदर सी बूढ़ी औरत एक तरफ से तेज़ी से आई. उसके हाथ मे पेपर-फ्लवर्स की एक बास्केट थी. मोना इस तरह चौंक पड़ी जैसे कुच्छ याद आ गया हो. उस ने धीरे से कहा "टील" और बूढ़ी हाथ उठा कर बोली....."मैं आज अच्छी तक़दीर के लिए दुआ करती हूँ......मेरा तोहफा......."

फिर उस ने बास्केट से एक लाल फूल निकाल कर उसके जूडे मे लगाते हुए कहा......"वापसी पर मुझे मत भूलिएगा.........दस अनाथों की ज़िम्मेदारी है मुझ पर......"

मोना ज़बरदस्ती मुस्कुराइ......और हॉल मे प्रवेश कर गयी. अभी तक उसे कोई भी कठिनाई नहीं हुई थी. जो कुच्छ भी होता आया था वो उसके लिए अप्रत्याशित नहीं था. अहमाक़ ने पहले ही उसे बता दिया था कि उसे उन सतगेस से गुज़रना होगा. लेकिन वो नहीं जानती थी कि हॉल मे जाने के बाद उसे क्या करना होगा. इसके बारे मे उसने कुच्छ नहीं बताया था.

हॉल मे इंटर करते ही वो चकित रह गयी. ऐसा ही लग रहा था जैसे वो किसी बहुत बड़े और शानदार समुद्रि

जहाज़ का रिक्रियेशन हॉल हो. अनगिनत मेज़ों पर तरह तरह के जुए चल रहे थे. यहाँ उसे अपना वो

विचार भी ग़लत ही लगा कि वो जुआ खाना केवल विशेष लोगों केलिए था. यहाँ तो इतनी ज़्यादा भीड़ थी कि

कभी क्लब के डाइनिंग हॉल मे भी नहीं दिखाई दी थी. फिर रेड पॅकेट के ढोंग का क्या मतलब था?

उस ने मूड कर देखा. उसके बाद आने वाले आदमी के पास रेड फ्लवर भी नहीं था. वो एक मेज़ के पास

रुक कर किसी से बात करने लगा था.

रेड फ्लवर अब मोना केलिए उलझन का कारण बन गया था. कितनी ही लॅडीस हॉल मे मौजूद थीं लेकिन किसी के

भी बालों मे रेडे फ्लवर दिखाई नहीं दे रहा था. फिर उसका मकसद क्या था? वो सोचने लगी संभव

है दूसरों ने वो फूल निकाल कर अपनी जेबों मे डाल लिए हों. तो फिर वो भी यही करे. ज़ूडे मे तो लाल

फूल बहुत बकवास लग रहा होगा.

लेकिन वो ऐसा ना कर सकी. ये भी अहमाक़ ही की हिदायत थी कि फूल को हर हाल मे उजागर रखा जाए. उसने

ठंडी साँस ली और यूँ ही बे इरादा एक तरफ बढ़ती चली गयी.

अचानक एक आदमी ने उसका रास्ता रोकते हुए धीरे से कहा "13 कार्मन स्ट्रीट.......ठीक 10 बजे."

अंदाज़ ऐसा था जैसे किसी परिचित ने दूसरे परिचित को रोक कर उसकी और उसके बाल बच्चों की ख़ैरियत

पूछि हो और फिर अपनी राह लग गया हो.

मोना उसे जुआरियों की भीड़ मे गुम होते देखती रही. फिर चौंकी और उस तरफ आकृष्ट हुई जहाँ

नंबरों पर पैसे लग रहे थे. अभी तो 8.30 ही बजे थे. वो कुच्छ देर यहीं रुक कर हालात पर और

विचार करना चाहती थी.

अब फूल का मकसद कुच्छ कुच्छ समझ मे आने लगा था. हो सकता है कि फूल केवल उन्हीं लोगों को

दिए जाते रहे हों जो धन्यवाद-पत्र पर लिखे लेटर्स बूढ़ी औरत के सामने दुहराते हों. और ये फूल

यहाँ से किसी दूसरी जगह रेफर करने का ज़रिया बनता हो.

उस ने दो तीन बार छोटी छोटी रक़म दाँव पर लगाईं. कभी हारी और कभी जीती. उसका मकसद जुआ

खेलना बिल्कुल नहीं था. वो तो इसी बहाने वहाँ रुक कर समस्या पर गौर करना चाहती थी.

तो क्या अब उसे यहाँ से कार्मन स्ट्रीट की तेरहवीं बिल्डिंग मे पहुचने का निर्देश मिला था. आख़िर ये

सब हो क्या रहा है. इसका क्या मकसद है. अहमाक़ उसे चार दिन पहले इस क्लब मे लाया ही क्यों था. अगर

शातिर किसी ख़तरनाक गिरोह से संबंध रखता है तो वो कैसा गिरोह है?

उलझन बढ़ती गयी और उसे वहाँ से निकल जाना ही ठीक लगा. वरना वो सोचती रहती और दाँव पर

रकमें लगाती रहती और हारती रहती.

वापसी मे फूलों वाली बूढ़ी औरत दिखाई तो दी थी लेकिन उसकी तरफ से बे-परवाह सी दिखाई दे

रही थी. मोना समझी थी कि वो उसकी तरफ बढ़ कर दुआएँ देती हुई कुच्छ ना कुच्छ वसूल करेगी मगर

उसने तो उसकी तरफ देख कर भी कोई ध्यान नहीं दिया.

मोना कुच्छ देर बाद डाइनिंग हॉल मे पहुचि. अभी तो 9 ही बजे थे. पूरा एक घंटा बाकी था. यहाँ से

कार्मन स्ट्रीट पहुचने मे 15 मिनूट से अधिक नहीं लगता. "ठीक 10 बजे" पर विशेष ज़ोर दिया गया था.

इसलिए समय से पहले पहुचना शायद नयी मुसीबतों का कारण बन सकता था.

उसने एक खाली टेबल पर बैठते हुए व्याकुलता से चारों तरफ निगाह दौड़ाई लेकिन इस समय अहमाक़

कहीं दिखाई नहीं दिया था.

****

10 बजने मे अभी 5 मिनट बाकी थे की वो 13 कार्मन स्ट्रीट के कॉंपाउंड मे इंटर की ओर एक दरबान ने

उसे बरामदे तक पहुचा दिया. बरामदे मे धुन्दलि सी रौशनी फैली हुई थी.

कुच्छ देर बाद राइट साइड से आवाज़ आई......"इधर आइए...."

वो चौंक कर मूडी. दरवाज़ शायद उसी केलिए खोला गया था.....और आवाज़ भी उसी दिशा से आई थी. वो

लरखड़ाती हुई उधर ही बढ़ गयी.

कमरा खाली था. लेकिन आवाज़ फिर आई........"किस ने भेजा है?"

"फूल वाली ने." अनायास उसके मूह से निकल गया. लेकिन साथ ही रीढ़ की हड्डी मे एक ठंडी सी लहर दौड़

गयी थी. कहीं जवाब ग़लत तो नहीं था.

"ऑल राइट.......अब अपनी मदद आप करो........इसके बाद उस गेट मे इंटर करना जिस पर ग्रीन लाइट जल रही है."

वो निश्चित रूप से माइक्रोफोन की आवाज़ थी. लेकिन दीवार पर कहीं भी स्पीकेर दिखाई नहीं दिया था.

ओह्ह.......अब ये दूसरी उलझन......अपनी मदद आप किस तरह की जाए. फिर डर की जगह झल्लाहट ने ले ली और

उसने सोचा बेबसी की मौत तो मुक़द्दर बन ही चुकी है......फिर क्यों चिंता की जाए. चलो आगे बढ़ो.

जो भी होगा देखा जाएगा. अगर आराम की ज़िंदगी किस्मत मे होती तो इस चक्कर मे फँसती ही क्यों?

वो उस गेट की तरफ बढ़ी जिस पर ग्रीन लाइट जल रहा था. हॅंडल पर हाथ रखते ही गेट खुल गया. और वो

बेधड़क भीतर घुसती चली गयी.

फिर एक दिमागी झटका. वो इस तरह अचानक रुकी जैसे ज़मीन से उसके पैर चिपक गये हों.
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Re: हीरों का फरेब

Post by Jemsbond »

"Nishchit roop se. Ab wo is tarah pata karna chaahte hain ki main kon hun. Do tarah ki shankaayen unke dimaag me hongi. Kya wo anjaane me kisi sarkaari aadmi se jaa takraaye the........ya mera sambandh kisi dusre giroh se hai jo un ke baare me kisi had tak jaankari rakhta hai. Un me se kisi ek sandeh ki pushti keliye ye chaal chali gayi hai. Lekin ab.....haa....."

"Kya......?"

"kuchh nahin.....chinta mat karo. Ab unhen vishwaas ho jaayega ki mera sambandh kisi sarkari vibhaag se nahin ho sakta..........phir wo apni gati widhi tez kar denge."

"Jahannum me jaao...." Julia ne buraa sa muh bana kar kaha. Thodi der tak chup rahi phir boli....."WO ladki kahaan hai?"

"Tum uski talash me nikli thin?" Imran ne gambhirta se kaha. Main tumhen warning deta hun ki jitnaa kaha jaaye us se adhik karne ki chaahat ko dabaa kar hi rakhnaa."

"Kya matlab?" Julia ne aankhen nikaalin lekin Imran uski taraf dhyaan diye binaa Safdar se bolaa....."Saadi & Sons ke teenon sales-man ko police ki hiraasat se Danish Manzil me transfer hona chaahiye."

"Kon se salesman?"

"Ohh.....kya tum ne Chauhaan ki report ko dhyaan se nahin dekha tha? Wahaan Dawar ke maujood rahne ki avadhi me teen teen staaf bhi the counter par. Wo police ki hiraasat me hain......tum donon shahar waapas jaao."

Achanak Imran khamosh ho gaya.

"Ohh.....ye to fire ki aawaz thi." Usne chaaron taraf dekhte huye kaha.

Julia aur Safdar ne bhi aawaz suni thi. Wo teenon abhi Metro ke recreation hall se adhik doori oar nahin the. Phir achanak shor bhi sunaayi diyaa. Aawazen recreation hall hi se aayi thin.

"Ohh........" Imran barbadaaya. "Jaao......apne cottage me jaao.....shayad......."

Phir wo tezi se hall ki taraf badh gaya.

"Samajh me nahin aata.......kya kartaa phir raha hai...." Julia ne gusse se kaha.......aur apne cottage ki taraf mud gayi.

***************

Red baalon waali ladki farsh par padi tadap rahi thi.......aur police officers hakkaa bakkaa khade the. Phir wo us taraf daud pade jidhar se fire hua tha. :adki usi tarah tadapti huyi baayin taraf ludhak gayi. Hall me khade aadmiyon me se kisi ne bhi gallary ki taraf badhne ki himmat nahin ki. Gallery farsh se kaafi unchaayi par thi. Isliye dusri taraf ludhak jaane ke kaaran zakhmi ladki unki nigaahon se ojhal ho gayi.

"Udhar......udhar se..." Kisi ne fire ki disha ke baare me officers ko sanket diya. Lekin jidhar ishaara kiya gaya wahaan sapaat deewar ke alaawa kuchh bhi dikhayi nahin diya. Na wahaan koi khidki thi aur na raushandaan. Kahan koi chhed bhi nahin mila. Agar wahaan se fire kiya gaya hota tab hamlaawar par kisi na kisi ki nazar zaroor padti. aur wo aasani se na nikal sakta.

Achanak ek officer ne hall ke darwaze band karaane shuru kar diye.......aur dusre ne cheekh kar kaha...."Please, koi sahab yahan se jaane ki koshish na karen.......ham talashi liye bina kisi ko bhi nahin jaane denge....."

Asambhav tha ki Imran bina samjhe bujhe hall me prawesh karne ki koshish karta. Wo baahar hi tha ki darwaze band kar diye gaye.

Baahar achhi khaasi bheed jamaa ho gayi thi. Tabhi Imran ko Metro hotel ka manager dikhayi diya......jo udhar hi aa raha tha. Usi samay ek police officer bhi baahar niklaa. Manager par nazar padte hi usay tez chalne ka ishara karke wo darwaaze hi me ruk gaya. Phir bheed ko ghoorte huye tez aawaz me bolaa.

"Jaaiye.....hatiye yahaan se.....bheed hataaiye...."

Log titar bitar ho gaye. Imran ko bhi hatna hi pada. Lekin aadhe ghante ke andar ladki ki hatyaa ki khabar saare Camp me famous ho gayi.
***

Aaine par nazar padte hi Mona uchhal padi. Gufaa me Imran ne uska make up kiya tha aur uska huliya change kiya tha. Aur ab wo donon pahaadon se nikal kar Sardargadh shahar ke liye chal pade the. Mona raaste bhar puchhti aayi thi ki uski shakal kaisi lag rahi hai. Aur phir jab wo ek Night club me prawesh kiye the tab Mona ek jagah lage aaine me apni shakal dekh kar hairaan rah gayi thi.

"My Godddd....." usne dhire se kaha. "Main to koi Bengalan lag rahi hun....."

Baalo ka rang badal kar natural black kar diya tha.....jinhe samet kar bahut shandar jooda banaaya gaya tha...aur pata nahin wo kon sa lotion tha jisne chehre ki rangat me salonapan bhi paida kar diya tha.

Wo ek khali table par jaa baithe. Imran ne dhire se kaha....."Bas tum apni chaal ko thoda control me rakho....aandhi aur toofan ki tarah chalti ho....."

"Koshish to karti hun ki dhire chalun." wo minminaayi. Phir chaunk kar boli...."Yahaan kyon laaye ho?"

"Kya tum hamesha gufaaon me hi rahi ho?"

"Ohh....ye baat nahin. Mujhe baar baar us bechaari ladki ka khayaal aata hai. Pata nahin wo kon thi."

"Kya tum sab me koi aisi ladki nahin thi?"

"Nahin....."

"Kabhi budhe ke sath bhi nahin dikhayi di?"

"Nahin.....wo hamesha akela hi hota tha...."

"Tumhen yahaan laaye jaane par hairat kyon hai?"

"Matlab ye ki ham yahaan aksar baithte rahe hain. Dar hai ki koi pahchaan na le...."

"Iski chinta mat karo. Police ko meri bhi talash hai aur hamaare dusre dushman bhi common hain."

"Sach bataao......kya tum bhi kisi giroh se sambandh rakhte ho?"

"Duniyaa ka har bewakoof aadmi khud ek bada giroh hai."

"Betuki baaten na karo. Pata nahin tum kis kism ke aadmi ho. Na tumhen buddhimaan samajhne ko dil chaahta hai aur na murkh. Tum kya karna chaahte ho? Tumhari jagah agar aur koi hota to kabhi idhar ka rukh bhi na kartaa."

"Main paagal ho jaata hun jab koi mujhe ulloo samajh kar murkh banaane ki koshish karta hai........aahaa....waahh...." Imran chup hokar counter ki taraf dekhne laga jahaan camp ke Metro hotel ka manager counter clerk se kuchh kah raha tha. Wo abhi abhi hall me prawesh kiya tha.

"Kyon......ye to Metro ka manager lagta hai." Mona boli.

"Lagta nahin......balki wahi hai....." Imran dhire se barbadaaya. Shayad uske itne dhyaan se dekhne ke kaaran hi ladki bhi manager ki taraf dekhi thi.

"Ohh.....to wo yahaan jua khelne aaya hai....!"

"Tumhen kaise pata ki wo jua khelne aaya hai?"

"Red packet...." Mona boli. "Counter clerk ne usay red packet diya tha."

"Main nahin samjha....."

"Yahan ek tahkhaana bhi hai jis me jua hota hai. Shatir ne ek baar bataaya tha. Mere sathiyon me se ek ko apne sath wahaan le bhi gaya tha. Magar ye jua-khana gair-kanooni nahin hai. Club ke paas licence hai. Hann general aadmiyon ko rokne keliye unhone ye tareeka apnaaya hai. Red packet ke bina wahan prawesh asambhav hai."

"Tab phir ham kaise prawesh kar sakenge?" Imran ne nirsha bhare swar me kaha.

"Arre......to iski zaroorat hi kya hai?"

"Haayenn......to kya ham yahan bhajan gaane aaye hain....."

"Mujhe interest nahin...."

"Tab phir waapas jaao....yahaan to ye haal hai ki maine paida hote hi Janm-ghutti ki jagah chidi ka ekka maanga tha.............agar ye pata hoga ki nahin milega to paida hone se saaf inkaar kar deta. Achha to tumhaare us sathi ne wahaan ke baare me tum logon ko kyaa bataaya tha?"

"Kuchh bhi nahin.........lekin main itna jaanti hun ki un packets ke istemaal ke baare me bhi sab nahin jaante. Chunki manager ne direct counter se packet liya tha isliye sochi thi ki wo uske istemaal ko jaanta hoga. Abhi jab waiter bill laayega to uske sath packet bhi hoga. Packet ke bhitar ek printed handbill hota hai jis par likha hota hai "Aap ke yahaan padhaarne keliye aapka shukriyaa....agar aap regular member ban jaayen to aapko kayi saari sahulaten available hongi....."

"Tab to har ek jaa sakta hai.....kya baat huyi?"

"Jinhen jua-khaane ka pata hi nahin wo kaise jaayenge? Wo to us packet ko club ki formality samjhenge."

"Achha to ab hamen kuchh kha pi kar turant bill mangaana chaahiye...." Imran ne kuchh sochte huye kaha.

"Shayad tumhara khayaal hai ki Shatir yahin aa chhupaa hai." Ladki usay ghoorti huyi boli.

"Sambhav hai aisa hi ho......yakeen ke sath nahin kaha jaa sakta. Lekin main jua zaroor khelunga."

"Tum jaano......lekin main to tahkhaane me bilkul nahin jaaungi...."

"Main shayad tumhen le bhi nahin jaaun....." Imran ne kaha aur waiter ko bulaa kar coffee ka order diya jo jaldi hi serve kar di gayi.

Mona kuchh soch rahi thi. Us ne coffee ka ghoont lekar kaha. "Samajh me nahin aata ki unhone us ladki ko police tak pahucha kar phir maar daala."

"Usne us murkh ke khilaaf bayaan diya tha.....isliye uska hatyaara murkh hi ho sakta hai."

"To maksad yahi hai ki police us murkh ko dhoondti rahe...." Mona boli,

"Bilkul.....iske alaawa aur koi maksad nahin ho sakta.

"Coffee khatam kar ke Imran ne bill maanga. Bill ke plate me ek red packet bhi tha. Imran ne usay utha kar table par rakh diya aur waiter paise lekar chala gaya.

Lifaafe se dhanyawaad-patr niklaa. Lekin letter ke ek kone me pencil se ghaseete huye do akshar the "SP" Andaaz aisa tha jaise kisi ne apne signature kiye hon.

Imran ne us raat jua khelna pospond kar diya.

Dusri raat wo club me akela tha. Aaj bhi usne bill payment ke baad red packet le liya tha. Aaj bhi uske bhitar waisa hi shukriya waali chitthi thi lekin pencil se banaaye huye signature ke letters me changing tha. Aaj "SP" ke bajaaye "NP" ghaseeta gaya tha.
***

Cahuthi raat Mona club me aayi. Usak dil tezi se dhadak raha tha. Halaaki wo make-up me thi......aur usay wishvaas tha ki usay pahchana nahin jaa sakega. Phir bhi rah rah kar aisa lagta tha jaise kisi ne pichhe se gardan par chaaku ki nok rakh di ho.

Wo aisi position me thi ki jahaan khud ko paristhiti ke sahaare chhod hi dena padta hai, Ek taraf budha tha aur dusri taraf police. Murkh bhi ab khatarnak saabit ho raha tha. Dhire dhire hi wo uske baare me anumaan laga sakti thi ki wo murkh nahin ho sakta. Phir wo ek murkh ke roop me uske saamne kyun aaya tha?

Yahi sawaal usay is nateeje par pahuchne me madad karta tha ki wo bhi kisi aise giroh se sambandh rakhta hai jo budhe ke giroh ka virodhi hai. Wo charon taraf se khatron me ghiri huyi thi,

Ek khaali mez pe baithte huye us ne socha ki anjaane me budhe ka mohraa ban jaane ke baawajood bhi abhi tak us ke hath se koi aisa gambhir apradh nahin hua hai jis ke badle uski jaan chali jaaye. Phir wo khud ko kyon na police ke hawaale kar de.

Murkh ke baare me wo kuchh bhi nahin jaanti. Ho sakta hai ki uske sath rahne me bhi goli ka nishaana banna pade. Ab is samay wo akeli maut ke muh me jaa rahi hai. Usay us murkh ke hi ek scheme par chalna tha. Us ne chaaron taraf nazar daudaayi. Soch rahi thi ki ab yahaan se uth kar seedha police station hi ki raah leni chaahiye.

Lekin achanak uske dimaag ko jhatkaa laga. Do ghoorti huyi aankhon se uski nazar takraayi thi. Aur uska saara shareer kaanp kar rah gaya tha. Murkh ne usay ye nahin bataaya tha ki wo bhi pichhe hi pichhe wahaan pahuchega. Wo us se kuchh hi doori par maujood tha.

Ab wo yahaan se baahar kadam nahin nikaal sakti thi. Dil doobne laga. Phir khud par gussa bhi aaya......ki usne pahle hi ye baat kyon nahin sochi thi. Wo uski anupasthiti me kisi samay bhi gufaa se nikal kar police tak pahuch sakti thi. To phir shayad doobna hi uske bhaagya me likha hai.

Usne ahmaq (Murkh) ke chehre se nazar hataayi. Is samay pata nahin wo usay bahut hi bhayanak lag raha tha. Bokhlaaye huye dhang se us ne ek waiter ko kuchh chizon ka order diyaa.......aur koshish karne lagi ki ab uski taraf na dekhe.

Ahmaq barabar usay ghoore jaa raha tha. Kabhi kabhi wo bhi kankhiyon se uski taraf dekh hi leti thi......aur uske sharir me khauf ki ek lahar daud jaati thi. Uski nazren usay dhamkiyaan aur chetaawani deti huyi lagti thin.

Ohh.....kya ye wahi aankhen hain jin me......jin me pahle kabhi murkhtaayen aur masoomiyat dekhne ko milti thin. Tab usne yahi socha tha ki wo bilkul duffer hai........warna kisi weeran gufaa me ek sundar jawaan ladki ke sath be-taalluk sa ban kar raaten guzaar lena farishton hi se sambahv tha.

15 minut baad wo coffee khatam kar chuki thi. Bill maanga aur kuchh der baad red packet hathon me tha. Aaj andar ki chtthi par pichhle dinon waale letters ki jagah pencil se "TN" likha hua tha. Wo dhire se karaah kar uthi aur ahmaq ne phir usay ghoor kar dekha......aur wo sambhal gayi. Achanak vichaar aaya ki shayad wo usay khud ko sambhaale rahne ka ishara kar raha hai.

Lambe corridoor me jaate samay us ne mud kar dekha. Ahmaq usay dikhayi nahin diya. Wo age badhti chali gayi. Saamne darwaze par ek wardi-dhaari gate-keeper khada tha.

"Ek minut madam..." usne bade adab se kaha.......aur deewar me lage ek button ko daba diya.

Wo ruk gayi. Packet hath me waise hi dabaa hua tha......ki dusron ki nazar us par padti rahe.

Itne me ek aadmi aur bhi aa kar uske nikat hi rukaa......aur keeper ne usay bhi rukne ko kaha. Mona ne mud kar naye aane waale ko nahin dekha.

Kuchh hi pal baad door se kahin ghanti ki aawaz aayi aur gate-keeper ne Mona se kaha....."Tashrif le jaaiye madam....." aur dusre aadmi se wahin rukne ka request kiya.

Mona age badh gayi. Das kadam chal kar left side mudna pada......kyon ki saamne raasta nahin tha. Left side me tahkhana hi tha lekin seedhiyaan nahin thin. Raasta dhalaan numa bana hua tha. Niche pahuchne par saamne hi bada sa darwaaza tha.....jiske sheeshon se dusri taraf ki raushni dikhayi de rahi thi.

Dhalaan usne tezi se tai ki thi lekin darwaze ke paas pahuch kar usay rukna pada. Yahan bhi ek darbaan maujood tha. Lekin usne bhi packet ki taraf dhyaan nahin diyaa......aur wo bhitar ghusne keliye kadam utha hi rahi thi ki ek sundar si budhi aurat ek taraf se tezi se aayi. Uske hath me paper-flowers ki ek basket thi. Mona is tarah chaunk padi jaise kuchh yaad aa gaya ho. Us ne dhire se kaha "TL" aur budhi hath utha kar boli....."Main aaj achhi taqdeer ke liye dua karti hun......mera tohfaa......."

Phir us ne basket se ek laal phool nikaal kar uske joode me lagaate huye kaha......"Waapasi par mujhe mat bhooliyega.........das anaathon ki zimmedari hai mujh par......"

Mona zabardsti muskuraayi......aur hall me prawesh kar gayi. Abhi tak usay koi bhi kathinaayi nahin huyi thi. Jo kuchh bhi hota aaya tha wo uske liye apratyaashit nahin tha. Ahmaq ne pahle hi usay bata diyaa tha ki usay un satages se guzarna hoga. Lekin wo nahin jaanti thi ki hall me jaane ke baad usay kya karna hoga. Iske baare me usne kuchh nahin bataaya tha.

Hall me inter karte hi wo chakit rah gayi. Aisa hi lag raha tha jaise wo kisi bahut bade aur shandar samudri

jahaaz ka recreation hall ho. Anginat mezon par tarah tarah ke jue chal rahe the. Yahaan usay apna wo

vichaar bhi galat hi laga ki wo jua khana kewal vishesh logon keliye tha. Yahaan to itni zyaada bheed thi ki

kabhi club ke dinning hall me bhi nahin dikhaayi di thi. Phir red packet ke dhong ka kya matlab tha?

Us ne mud kar dekha. Uske baad aane waale aadmi ke paar red flower bhi nahin tha. Wo ek mez ke paas

ruk kar kisi se baat karne laga tha.

Red flower ab Mona keliye uljhan ka kaaran ban gaya tha. Kitni hi ladies hall me maujood thin lekin kisi ke

bhi baalon me rede flower dikhayi nahin de raha tha. Phir uska maksad kya tha? Wo sochne lagi sambhav

hai dusron ne wo phool nikaal kar apni jebon me daal liye hon. To phir wo bhi yahi kare. Joode me to laal

phool bahut bakwaas lag raha hoga.

Lekin wo aisa na kar saki. Ye bhi ahmaq hi ki hidayat thi ki phool ko har haal me ujaagar rakha jaaye. Usne

thandi saans li aur yun hi be iraada ek taraf badhti chali gayi.

Achanak ek aadmi ne uska raasta rokte huye dhire se kaha "13 Carman street.......thik 10 baje."

Andaz aisa tha jaise kisi parichit ne dusre parichit ko rok kar uski aur uske baal bachchon ki khairiyat

poochhi ho aur phir apni raah lag gaya ho.

Mona usay juariyon ki bheed me gum hote dekhti rahi. Phir chaunki aur us taraf aakrisht huyi jahaan

numberon par paise lag rahe the. Abhi to 8.30 hi baje the. Wo kuchh der yahin ruk kar halaat par aur

vichaar karna chaahti thi.

Ab phool ka maksad kuchh kuchh samajh me aane laga tha. Ho sakta hai ki phool kewal unhin logon ko

diye jaate rahe hon jo dhanyawad-patra par likhe letters budhi aurat ke saamne duhraate hon. Aur ye phool

yahaan se kisi dusri jagah refer karne ka zariyaa banta ho.

Us ne do teen baar chhoti chhoti raqam daaon par lagaayin. Kabhi haari aur kabhi jeeti. Uska maksad jua

khelna bilkul nahin tha. Wo to isi bahaane wahaan ruk kar samassya par gaur karna chaahti thi.

To kya ab usay yahaan se Carman street ki terahwin building me pahuchne ka nirdesh mila tha. Aakhir ye

sab ho kya raha hai. Iska kya maksad hai. Ahmaq usay chaar din pahle iss club me laaya hi kyon tha. Agar

Shaatir kisi khatarnaak giroh se sambandh rakhta hai to wo kaisa giroh hai?

Uljhan badhti gayi aur usay wahaan se nikal jaana hi thik laga. Warna wo sochti rahti aur daaon par

rakmen lagaati rahti aur haarti rahti.

Waapasi me phoolon waali budhi aurat dikhayi to di thi lekin lekin uski taraf se be-parwaah si dikhayi de

rahi thi. Mona samjhi thi ki wo uski taraf badh kar duaayen deti huyi kuchh na kuchh wasool karegi magar

usne to uski taraf dekh kar bhi koi dhyaan nahin diya.

Mona kuchh der baad dinning hall me pahuchi. Abhi to 9 hi baje the. poora ek gahnta baaki tha. Yahaan se

carman street pahuchne me 15 minut se adhik nahin lagta. "Thik 10 baje" par vishesh zor diyaa gaya tha.

Isliye samay se pahle pahuchna shayar nayi musibaton ka kaaran ban sakta tha.

Usne ek khali table par baithte huye vyakulta se chaaron taraf nigaah daudaayi lekin is samay ahmaq

kahin dikhayi nahin diya tha.

****

10 bajne me abhi 5 minuts baaki the ki wo 13 carman street ke compound me inter ki aur ek darbaan ne

usay baraamde tak pahucha diyaa. Baraamde me dhundali si raushni phaili huyi thi.

Kuchh der baad right side se aawaz aayi......"Idhar aaiye...."

Wo chaunk kar mudi. Darwaaz shayad usi keliye khola gaya tha.....aur aawaz bhi usi disha se aayi thi. Wo

larkhadaati huyi udhar hi badh gayi.

Kamra khali tha. Lekin aawaz phir aayi........"Kis ne bheja hai?"

"Phool waali ne." anayaas uske muh se nikal gaya. Lekin sath hi reedh ki haddi me ek thandi si lahar daud

gayi thi. Kahin jawaab galat to nahin tha.

"All right.......ab apni madad aap karo........iske baad uss gate me inter karna jis par green light jal rahi hai."

Wo nishchit roop se microphone ki aawaz thi. Lekin diwaar par kahin bhi speeker dikhayi nahin diya tha.

Ohh.......ab ye dusri uljhan......apni madad aap kis tarah ki jaaye. Phir dar ki jagah jhallaahat ne le li aur

usne socha bebasi ki maut to mukaddar ban hi chuki hai......phir kyon chinta ki jaaye. Chalo age badho.

Jo bhi hoga dekha jaayega. Agar aaram ki zindagi kismat me hoti to iss chakkar me phasti hi kyon?

Wo us gate ki taraf badhi jis par green light jal raha tha. Handle par hath rakhte hi gate khul gaya. Aur wo

bedhadak bhitar ghusti chali gayi.

Phir ek dimaagi jhatkaa. Wo is tarah achanak ruki jaise zamin se uske pair chipak gaye hon.
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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Re: हीरों का फरेब

Post by Jemsbond »


सामने ही आठ दस ऐसे आदमी बैठे बैठे दिखाई दिए थे जिनके चेहरों पर काली नक़ाबें थीं और उनके कपड़े भी काले थे.

अचानक उस कमरे मे भी आवाज़ गूँजी जो उस ने पिच्छले कमरे मे सुनी थी. "ये मेडम अपनी मदद आप नहीं कर सकतीं."

इस बार कमरे की फ़िज़ा पर बोझल सी खामोशी छा गयी.

एक लंबी सी मेज़ थी जिसके दोनो तरफ चेर्स पर नक़ाब-पॉश दिखाई दे रहे थे. उन का चेर्मन भी एक नक़ाब पोश ही था.

तभी चेर्मन सीट पर बैठा नक़ाब पोश अपनी अपने साइड मे रखे फोन की तरफ मुड़ा........किसी के नंबर डाइयल कर के माउत पीस मे बोला....."11 वाँ व्यक्ति भी पहुच गया.......क्या और कोई भी है........नहीं?......ओके........थॅंक्स...."

रिसीवर रख दिया गया और चेर्मन नक़ाब पॉश की तेज़ आँखें मोना को अपने दिमाग़ पर चुभती महसूस होने लगी. वो उठता हुआ बोला....."प्लीज़......आप सब दूसरे रूम मे चलिए....."

सब के पिछे पिछे मोना भी दूसरे रूम मे पहुचि. चेर्मन उन से पहले ही रूम मे आ चुका था. मोना ने उसे एक जगह दीवार पर हाथ रखे खड़ा देखा. फिर अचानक सभी लरखड़ाते हुए दिखाई दिए. चेर्मन तेज़ी से कमरे के बीच मे आ गया........और तब मोना ने महसूस किया कि वो क्यों लरखड़ाए थे. कमरे का फर्श धीरे धीरे नीचे धँस रहा था. जैसे जैसे वो नीचे जा रहे थे उपर फर्श का गॅप लेफ्ट साइड से निकलने वाले एक दूसरे फर्श से फिल्ल होता जा रहा था.

फिर कुच्छ ही देर बाद एक हल्के झटके के साथ फर्श की हरकत रुक गयी. एक बार फिर वो लरखड़ा गये थे.........और चेर्मन नक़ाब पॉश ने एक ठहाका लगाया था.

दूसरे नक़ाब पॉश उसे हैरान निगाहों से देख रहे थे. अचानक उस ने मोना की तरफ उंगली उठा कर कहा "क्यों लड़की......लगभग कितने आदमियों का घेरा होगा?"

"घेरा....?" वो थूक निगल कर बोली. "मैं नहीं समझ सकती आप क्या कह रहे हैं."

"तुम कॉन हो?"

"मैं.....!" एका-एक मोना ने खुद को संभाला......वैसे उसका दिमाग़ अब भी हवा मे उड़ा जा रहा था. उस ने सख्ती से दाँत पर दाँत जमा कर अपनी हालत पर काबू पाने की कोशिश की और दिल कड़ा कर के बोली....."मैं मोना क्रिस्टी हूँ......मुझे शातिर की तलाश है.....जिस ने मुझे मौत के मूह मे धकेलने की कोशिश की है."

"तुम किस शातिर की बात कर रही हो.....और यहाँ क्या समझ कर आई हो?"

"मैं तुम्हें चोर, डाकू और हत्यारा समझ कर यहाँ आई हूँ....."

"लड़की तुम वास्तव मे मौत के मूह मे आ कूदी हो. वो अहमाक़(मूर्ख) कहाँ है? आआहा......ये मेक-अप, थोड़ा नज़दीक आओ.....ओह्ह....अब तो तुम्हारे बाल भी काले दिख रहे हैं. क्यों? क्या तुम खुद ही अपनी इस बद-हाली की ज़िम्मेदार नहीं हो?"

"मैं कुच्छ नहीं जानती.....क्या मैं अपनी खुशी से लुटेरों के उस गिरोह मे शामिल हुई थी?"

"क्या किस्सा है?" एक नक़ाब पॉश ने भर्रायि हुई आवाज़ मे पुछा.

"काली भेड़...." चेर्मन का लहज़ा नफ़रत भरा था.

"गंदे सुअर...." मोना बिफर गयी.

"शट अप..." चेर्मन चीख कर आगे बढ़ा और उसका हाथ पकड़ कर बेदर्दी से झटका देते हुए बोला...."बताओ वो अहमाक़ कॉन है?"

मोना मूह के बाल गिर कर चीखी और एक नक़ाब पॉश आगे बढ़ कर बोला...."ओह्ह....नो....नो....प्लीज़ इतनी बेदर्दी नहीं......बेचारी."

पीछे हटो...." चेर्मन ने झल्लाहट मे उसे धक्का दिया.

वो चुप चाप पिछे हट आया. मोना अपनी नाक दबाए हुए उठी.....लेकिन घुटनों के बल बैठी रही. नाक से खून बह रहा था.

"ओह्ह......ये तुम ने क्या किया....?" वही नक़ाब पॉश तेज़ी से आगे बढ़ कर बोला......जिसे चेर्मन ने धक्का दिया था. वो उन दोनों के बीच आ गया.

"क्या तुम्हारा दिमाग़ खराब हो गया है?" चेर्मन गुर्राया.

"नहीं......मेरा ख़याल है कि मैं तुम से अधिक ठंडे दिमाग़ का आदमी हूँ."

"ओह्ह.....तुम मुझ से इस लहजे मे बात कर रहे हो.....!!!" वो किसी ज़ख़्मी कुत्ते की तरह गुर्राया. "तुम से भी समझूंगा."

"अभी तो तुम सीधी साधी हिन्दी समझना सीखो......" नक़ाब पॉश ने जवाब दिया. "मैं कह रहा हूँ लड़की के साथ इस तरह से पेश मत आओ."

"तुम जानते हो इसे?"

"नहीं...."

"इस ने गद्दारी की है...."

"कुच्छ भी किया हो......पिछे हट जाओ....!" नक़ाब पोश ने चेर्मन को इतने ज़ोर से धक्का दिया कि वो दीवार से जा टकराया.

"ओह्ह.....तो तुम भी.....गद्दार्रर...." वो दाँत पीस कर बोला.

"ये सब क्या है...." दो-तीन नक़ाब पॉश आगे बढ़े.

"पीछे हटो...." लड़की की तरफ़दारी करने वाला गुर्राया...."हम सब खाली हाथ हैं......मुझे अच्छी तरह पता है. इसलिए अगर किसी से भी कोई बेवकूफी हुई तो अपने कचूमर होने का वो खुद ज़िम्मेदार होगा."

तभी करकराहट की आवाज़ गूँजी और मोना चीख पड़ी....."बचो..."

चेर्मन ने एक बड़ा सा चाकू खोला था.

लड़की के सपोर्टर ने ठहाका लगाया.......और मज़ाक उड़ाने वाले ढंग से कहा....."मुझे पता है कि तुम चाकू के रोग से ग्रस्त हो...."

"ये शातिर है.....ये शातिर है...." मोना चीखी.

"मैं ये भी जानता हूँ...."

"तब तो तुम ने भी अपनी मौत को दावत दी है...." नक़ाब पॉश ने चाकू के हॅंडल पर अपनी पकड़ मज़बूत करते हुए कहा. फिर दूसरों से बोला....."घेर लो.....क्या देख रहे हो?"

नक़ाब पोषों ने अपने अपने हॅंड बॅग ज़मीन पर डाल दिए.......लड़की का सपोर्टर भी अपने हाथ मे पकड़ा हुआ हॅंड बॅग एक तरफ फेंक दिया.

"संभलो....." मोना चीखी....."ये चाकू का स्पेशलिस्ट है...."

"हाएँन्न्......अर्रे बाप रे...." अचानक मोना का सपोर्टर बोखला कर पिछे हट गया......और मोना को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसकी खोपड़ी गर्दन से निकल कर हवा मे उड़ जाएगी......ये किसकी आवाज़ थी. ये कॉन था? ओह्ह्ह......."

चेर्मन के भी बढ़ते हुए कदम रुक गये. उसे रुकता हुआ देख कोई भला दूसरा क्यों आगे बढ़ता.

"कौन हो तुम?" उसने गूंजिली आवाज़ मे पुछा.

"इन सबों के सामने पुछ कर तुम यहाँ के नियम तोड़ रहे हो. क्या ये सब एक दूसरे को अपनी शकलें दिखाएँगे?"

"नहीं......लेकिन मुझे अधिकार है कि उन के चेहरे देख सकूँ....."

"अच्छा तो आओ देख लो मेरी शकल...."

"मेरा ख़याल है कि मैं ये आवाज़ पहले भी सुन चुका हूँ....." चेर्मन धीरे से बोला और उसे घूर्ने लगा.

अचानक लड़की के सपोर्टर ने अपनी नक़ाब नोच फेकि और चेर्मन उच्छल पड़ा. फिर संभाल कर बोला...."ओह्ह....ओह्ह....ये तुम हो....ओके...अब संभलो....."

"लेकिन मैं एक ही तरह के दाव पेच पसंद नही करता. उस रात जिस प्रकार के हाथ दिखाए थे तुम ने.....आज उन से अलग होना चाहिए....."

मोना सोचने लगी.....फिर मूर्खता हुई है उस से....अकेले उन लोगों मे आ फँसा. और फिर खुद को ज़ाहिर भी कर दिया. प्लॅनिंग से काम लेना चाहिए था. लेकिन वो तो उसे बचाने केलिए अभी आगे आया था...."

"तुम आख़िर चाहते क्या हो?" चेर्मन या बूढ़ा शातिर उसे घूरता हुआ बोला. ना जाने क्यों वो एका-एक नर्म पड़ गया था.

"मैं इसके अलावा और कुच्छ नहीं चाहता कि देश के नमक-हरामों को नर्क का रास्ता दिखा दूं...."

"क्या मतलब?"

"मतलब पूछते हो ज़लील....कमीने....." अहमाक़ का स्वर ख़ूँख़ार हो गया था. "डावर को तुम लोगों ने क्यों मार डाला?"

"ओह्हो......अभी तक वो पागलपन तुम्हारे दिमाग़ से नहीं निकला है? लेकिन तुम हमें देश का नमक हराम क्यों कह रहे हो?"

"हहा.....तो तुम ये समझते हो कि मैं तुम्हें मामूली चोर या डाकू समझता हूँ? क्या तुम उस देश के एजेंट नहीं हो जो पूरी दुनिया मे बेचैनी और हंगामे फैला कर अपनी शैतानी हुकूमत के सपने देख रहा है. क्या तुम अपनी स्कीम के अनुसार यहाँ निराशा और आक्रोश के कीटाणु नहीं फैला रहे थे? निराशा के शिकार आक्रोशित लोगों को अपने बचाव का रास्ता तुम्हारे ही डायलॉग मे दिखाई देता है. तुम लोग ये सब कुच्छ बहुत ही व्यवस्थित ढंग से करते हो...."

चेर्मन कुच्छ देर खामोस रहा......फिर बोला...."हां.....मैने सुना है कि डावर यही करता था मगर हमें उस से क्या लेना देना..."

वो कुच्छ कहने ही वाला था कि चेर्मन ने उस पर छलान्ग लग दी. शायद बातों मे उलझने का मकसद यही था कि गाफील पाकर हमला किया जाए.

लेकिन उसे मायूसी हुई. अहमाक़ गाफील नहीं था. मोना चीखती रही. लेकिन फिर उसने देखा कि अहमाक़ ने शातिर को दोनों हाथों पर उठा कर इस तरह दूसरों पर फेंक मारा था जैसे वो रब्बर की हल्की सी गेंद रहा हो. एक बहुत ही दर्दनाक चीख तहख़ाने की सीमित वातावरण मे गूँजी. आक्रमणकारी शातिर का चाकू उसी के एक साथी के सीने मे घुस गया था.

फिर वो सभी दीवानों की तरह अहमाक़ पर टूट पड़े. मोना बुरी तरह काँप रही थी. अचानक शातिर का चाकू उच्छल कर उसके पैरों के पास आ पड़ा और उस ने उसे उठाने मे देर नहीं लगाई. अब वो किसी हद तक संतुष्ट हो गयी थी. अहमाक़ ने पहले ही उन लोगों के खाली हाथ होने की घोषणा कर दी थी. शायद वो ये भी जानता था कि चेर्मन के पास एक चाकू है.

ये कैसा आदमी है....? मोना ने सोचा. अकेला आठ दुश्मनों मे घिरे होने के बाद भी इतनी लापरवाही से लड़ रहा है जैसे ये उसके लिए केवल एक मज़ेदार खेल हो. जब भी किसी पर हाथ पड़ जाता उस व्यक्ति के कंठ से चीख ज़रूर निकल जाती. अचानक शातिर चीखा...."ओ....हिजड़ों.....एक आदमी भी काबू मे नहीं आता?"

फिर एक हैरत भरा सीन दिखाई दिया. उन सब ने एका-एक अपने हाथ रोक लिए और उन मे से एक हांफता हुआ बोला...."तुम जानते हो कि हम कॉन हैं और हमारे काम से परिचित हो....."

"आहहा...." अहमाक़ हंस पड़ा...."ये गधा क्या जाने.....मैं जानता हूँ....तुम इंटेलेकथुअल्स हो....भला तुम्हें लड़ाई भिड़ाई से क्या काम? इसके लिए तो तुम अनपढ़ लोगों को इस्तेमाल करते हो. तुम्हारा काम तो कॉफी हाउसस. बार्स और रेस्तूरन्टस की टेबल्स तक ही सीमित होता है....."

शातिर खड़ा हांफता रहा......वो लोग भी कुच्छ ना बोले. अहमाक़ ने मोना से चाकू लेकर बंद किया और उसे जेब मे डालते हुए बोला "अब श्रीमान शातिर जी आप को एक ग़ज़ल सुनाएँगे जिसके बोल हैं...'मारे साथी जाने ना पाए...'"

"तुम आख़िर चाहते क्या हो?" शातिर ने बेबस होकर कहा.

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Re: हीरों का फरेब

Post by Jemsbond »


अहमाक़ जेब से चाकू निकाल कर उसे दुबारा खोलते हुए कहा..."समाज के उस नास्सूर का ऑपरेशन खुले-आम ढंग से.........अब तुम इस फर्श को उसकी असली जगह पर पहुचाने की कोशिश करो.......वरना तुम्हारे शरीर पर ज़ख़्म ही ज़ख़्म दिखाई देंगे.....चलो...."

"ठहरो...." शातिर हाथ उठा कर बोला....."क्या तुम मुझे अपनी असलियत नहीं बताओगे?"

"मैं तुम्हारे लिए ईश्वार का कहर हूँ.....जिसके अस्तित्व से तुम्हें इनकार है......जल्दी करो वरना मेरा खेल फिर शुरू हो जाएगा....."

"उपर कॉन हैं......मैं कदमों की आवाज़ें सुन रहा हूँ...."

"पोलीस....."

"पोलीस....." वो सब चीख पड़े. और एक बार फिर उन्होने उस पर धावा बोल दिया. शातिर आगे आगे था. उन्हें ललकार रहा था. गैरत दिला रहा था. ये हमला निश्चित रूप से ख़तरनाक साबित होता......अगर चाकू अहमाक़ के हाथ मे ना होता.

एक गिरा......दूसरा गिरा.....लेकिन तीसरी चीख के साथ ही फिर खेल ख़तम हो गया. वो उस के पास से हट कर दीवार से जा लगे थे.......और शातिर भी उन से पिछे ना रहा था. मोना ज़ोर ज़ोर से ठहाके लगा रही थी.

फिर शातिर को मजबूर हो जाना पड़ा. उसने उस गुप्त मकेनिज़्म को हरकत दी जिस से कमरे का फर्श हरकत करने लगता था.

जैसे जैसे फर्श उपर उठ रहा था उपर कमरे की छत भी एक साइड खिसकती जा रही थी. उपर गॅप होते ही कयि लोगों के पैर दिखाई देने लगे थे. अहमक़ ने चीख कर उपर वालों से कहा था..."वहीं रूको......शिकार मेरे काबू मे है..."

फर्श अपनी असली जगह पहुच गया और वर्दी से लैस पोलीस ऑफिसर्स उनकी तरफ झपटे. उन मे सरदारगढ़ का एसपी भी था. दूसरे लोग नक़ाब पोशो की तरफ बढ़े थे और एसपी सीधा इमरान की तरफ आया था.

"सॉरी सर....." उस ने कहा. "भला मुझे क्या मालूम था.....मैं तो कल से आप की तलाश मे हूँ. फॉरिन सेक्रेटरी मिस्टर सर सुल्तान ने कल ही हमें इनफॉर्म किया था कि ये उनके डिपार्टमेंट का केस है.......और आप फॉरिन डिपार्टमेंट के एजेंट हैं. इस समय आप का फोन मिलते ही यहाँ आया था. इस इमारत से कुच्छ पेपर्स मिले हैं......लेकिन पूरी इमारत खाली पड़ी है."

"इन हॅंड-बॅग्स को भी संभालिए. इन मे सबूत ही सबूत मिलेंगे. मैने सरगना को पकड़ लिया है......ओह्ह....नहीं.....वो मेरा हॅंड बॅग है......मुझे दीजिए......और ये है वही रेड बालों वाली लड़की.....ये सरकारी गवाह बनाई जाएगी."

"रेड बालों वाली लड़की.....!!!" एसपी ने हैरत से कहा...."मगर वो तो......"

"मर गयी.....नहीं. वो कोई और थी. पोलीस को ग़लत रास्ते पर डालने केलिए उसकी हत्या की गयी थी. उसके बाल रेड नहीं थे......उन्हें कलर से रेड किया गया था."

"उफ्फ....." एसपी अपनी पेशानी रगड़ने लगा.

"चिंता मत कीजिए.....अभी इसे ले जाइए. देखिए लड़की को कोई तकलीफ़ ना होने पाए. ये शरीफ लड़की है. अंजाने मे उनके हाथों ब्लॅक मैल होती रही थी.......और मजबूरी मे उनके लिए काम करती थी."

कुच्छ देर बाद वो सब वहाँ से ले जाए जा रहे थे. मोना ने इमरान को रोक कर कपकापाती हुई आवाज़ मे कहा....."मैं सोच भी नहीं सकती थी कि आप इतने............." वो सिसकती हुई फिर बोली "फिर कब मिलोगे?"

"जल्दी ही........तुम्हें परेशान होने की ज़रूरत नहीं. अब तुम सुरक्षित हो..."

मोना ने ठंडी साँस ली और उसे जाते हुए देखती रही.

****

एक हफ्ते बाद इमरान दानिश मंज़िल मे बैठा ट्रांसमीटर के सामने अपनी रिपोर्ट पढ़ रहा था. सीक्रेट सर्विस के सारे मेंबर्ज़ मौजूद थे. रिपोर्ट X2 केलिए थी.

वो कह रहा था...."सरदार गढ़ के उस नाइट क्लब मे मुझे वही आदमी काउंटर क्लर्क के रूप मे दिखाई दिया था जिस की जेब से मैने हॉलिडे कॅंप मे सिगरेट का खाली पॅकेट निकाला था. फिर वहाँ जुआ-खाने का पता चला......जो छिपि हुई चीज़ नहीं थी. सभी उसके बारे मे जानते थे. रेड पॅकेट के बारे मे लड़की को ग़लत-फ़हमी हुई थी. जुआ-खाने मे प्रवेश उसके बिना भी होता था. असली चीज़ तो पेन्सिल से लिखे वो लेटर्स थे जो धनयवाद-पत्र पर पाए जाते थे.

ये लेटर्स उनके लिए थे जो उस गिरोह से संबंध रखते थे......और अपने कामों का रिपोर्ट देने दूसरे शहरों से सरदारगढ़ आते थे. ये लोग गेट पर उन लेटर्स को दुहराते थे. उन्हें बुढ़िया एक रेड फ्लवर देती थी.....और इसी फूल से वो लोग उन्हें पहचान लेते थे.....जिनका काम ये सूचना देना होता था कि आज फलाँ जगह मीटिंग होगी.

डेली वो लेटर्स बदलते रहते थे. उनके वर्क-प्रोसेस को जानने केलिए मैने अपनी तीन रातें बर्बाद की थीं. गिरोह मे दो प्रकार के लोग थे. एक वो जो खुले आम अपनी ड्यूटी निभाते थे. और दूसरे वो जो एक दूसरे को नहीं जानते थे. असली काम यही लोग अंजाम देते थे. मतलब एक दूसरे देश का प्रोपगॅंडा.

ओपन्ली काम करने वाले उसे चोरों और डाकुओं का गिरोह समझते थे.......और एक दूसरे को पहचानते भी थे. वो लोग शातिर को अपना सरदार समझते थे. उसकी दूसरी हैसियत उन लोगों से छुपि हुई थी. वो बाहर से आने वालों को भी अपनी ही तरह चोर और डाकू समझते थे.

असल काम करने वालों ने शातिर की शकल कभी नहीं देखी थी. शातिर उन मे से हरेक को पहचानता था......और नहीं चाहता था कि वो एक दूसरे को भी पहचानें. इसी लिए उसने वो तरीका अपनाया था.

जुएखाने वाले हॉल मे एक समय मे एक ही फूल वाला आदमी प्रवेश कर सकता था. जब तक एक भी रेड प्लवेर वाला आदमी अंदर मौजूद होता दूसरा नहीं जाने पाता था. जब वो वहाँ से मीटिंग वाली जगह मालूम कर के चला जाता था तब दूसरे को अंदर प्रवेश मिल पाता था.

इसी तरह वो उस बिल्डिंग मे भी एक एक ही जाते थे जहाँ मीटिंग होती थी. उन्हें समय ही इस तरह दिया जाता था कि वहाँ एक दूसरे का सामना नहीं हो सके.

मैने छुप कर वहाँ के सिस्टम का बारीकी से निरीक्षण किया था. मईक पर एक आवाज़ खाली करे मे उनका स्वागत करती थी और निर्देश देती थी कि वो अपनी मदद आप करें. जिस का मतलब होता था कि उस कमरे मे रखे अलमारी खोल कर उसमे से काला नक़ाब निकालना और चेहरे पर लगा लेना.

एनीवे उस रात मैं उस लड़की से पहले वहाँ पहुच गया था. उसे वहाँ ले जाने का मेरा मकसद ये था कि उसकी भी परीक्षा हो जाए. मुझे संदेह था कि वो अब भी उन लोगों केलिए काम करती है.

आप ऑब्जेक्षन कर सकते हैं कि मैं अकेले ही वहाँ क्यों गया था. ये चीज़ ख़तरनाक भी साबित हो सकती थी. हां मुझे भी इसकी आशंका थी. लेकिन इस तरह केवल मेरी ज़िंदगी ख़तरे मे पड़ती......दूसरे सुरक्षित रहते. मेरी आदत है कि अनिश्चित परिस्थिति मे अकेले ही काम करता हूँ. वैसे मैं ने सावधानी वश पोलीस को भी फोन कर दिया था. ये बात क्लियर हो चुकी है कि अब शातिर ही यहाँ के संगठन का सरगना था.

पहले दो आदमी थे. एक डावर और दूसरा शातिर. शातिर अपनी बर्टरी दिखाने वाला आदमी है. अपनी बढ़ाई डावर से भी मनवाना चाहता था. लेकिन डावर बुद्धिमानी मे उस से बहुत आगे था. इस कारण अक्सर दोनों मे खट-पट होती रहती थी. अंत-तह शातिर ने प्लान बना कर उसे समाप्त कर दिया.

साड़ी & सन्स के काउंटर पर काम करने वालों मे एक उस संगठन से संबंध रखता था. उसी ने शातिर के कहने पर हीरे उड़ाए थे. शातिर जानता था कि वो कब अपाहिज के रूप मे हॉलिडे कॅंप जाएगा. इसलिए मौका मिलते ही वार कर बैठा.

डावर के फरिश्तों को भी खबर ना थी कि उसके लिए क्या हो रहा है. फिर ऐसा इंतज़ाम किया गया कि डावर की हत्या के बाद ही साड़ी & सन्स का विग्यापन अख़बार मे आए.

एक फसाने वाले हत्यारे की खोज और हीरों की चोरी का वो मकसद नहीं था जो मैं पहले समझा था. वो पोलीस को ग़लत रास्ते पर नहीं डालना चाहते थे. पोलीस डावर की असलियत जान भी लेती तो क्या होता. बात डावर ही पर ख़तम हो जाती. हत्यारे तक पहुचना कठिन होता.

ये प्लॉट शातिर ने इनफॅक्ट अपने विदेशी मालिकों केलिए बनाया था. उन्हें ये फील कराने की कोशिश की थी कि डावर चोर भी था और चोरियों के क्रम मे अपने कुच्छ सहयोगी भी रखता था.......जिन्होने कीमती हीरों की लालच मे उसकी हत्या कर दी.

अगर वो वैसे ही मार डाला जाता तो उसके विदेशी हाकिम लोगों को ज़रूर चिंता होती कि क्या किस्सा है. वो अपने तौर पर छान बीन कराते और हो सकता था कि उस तरह खुद शातिर ही की जान ख़तरे मे पड़ जाती.

डावर उनके लिए बहुत इंपॉर्टेंट था. अकल्मंद था. उनके प्रॉपगॅंड केलिए नित नये नये तरीके अपनाता था.....जो सफल होते थे. अब यही देखिए कि वो अपाहिज के रूप मे उनका प्रोपगॅंडा क्यों करता था.

हॉलिडे कॅंप मे अधिकतर नौजवानों की भीड़ होती थी......जो जोश और एंजाय्मेंट से भरे होते हैं. फ्यूचर के बारे मे उनकी सोच हमेशा पॉज़िटिव और ब्राइट होती है.

लेकिन दावर उन मे मायूसी और निराशा के कीटाणु फैलाता था. वो उसकी बातों को सुन कर सोचते थे कि इतना देवता जैसा नेक आदमी को भगवान ने अपाहिज क्यों बना दिया. क्या ये इंसाफ़ है? बस फिर उनकी सोच बहकने लगती. वो उन्हें अच्छी तरह निराशा के दलदल मे डालने के बाद अपने मालिकों के देश के विचार उन पर चढ़ाता था. तब वो अपने देश से असंतुष्ट हो जाते.

इमरान खामोश हो गया. दूसरी तरफ से ब्लॅक ज़ीरो की X2 जैसी आवाज़ आई...."मैं आप को इस केस की कामयाबी के लिए बधाई देता हूँ."

"केवल बधाई??" इमरान ने बुरा सा मुँह बना कर कहा.

"फिर और क्या चाहिए?"

"एक दर्ज़न चेविन्गुम के पॅकेट्स..."

दूसरी तरफ से हल्के क़हक़हे की आवाज़ आई और ट्रांसमेटेर बंद हो गया.

"तुम उस पत्थर को हंसा तो सकते हो...." जूलीया ने कहा.

"लेकिन अब क्या होगा?" चौहान ने चिंतित स्वर मे कहा...."पूरे देश मे शातिर के एजेंट्स के बारे मे छान बीन करनी होगी."

"शातिर ने सब कुच्छ उगल दिया है. ख़ास एजेंट्स की पूरी लिस्ट उस से प्राप्त की जा चुकी है." इमरान बोला...."और उन्हें ढूंड निकालना कुच्छ मुश्किल ना होगा."

"लेकिन नज़मी का क्या हुआ? क्या वो भी इस गिरोह मे शामिल था?" जूलीया ने पुछा.

"नहीं.....वो नहीं जानता था कि असली चोर कॉन है."

"और ये लोग संयोग से तुम से आ टकराए थे,....." जूलीया बोली.

"क़ुदरत का करिश्मा....." इमरान बुज़ुर्गों की तरह हाथ उठा कर बोला. "दुनिया का कोई भी अपराधी सज़ा से नहीं बच सकता. प्रकृति(क़ुदरत) खुद ही उसे उसके लिए मुनासिब अंजाम की तरफ धकेल्ति है. अगर ऐसा ना हो तो तुम एक रात भी अपनी छत के नीचे आराम की नींद ना सो सको......ज़मीन पर अपराध के अलावा कुछ ना रहे....."

***

मोना ज़मानत पर रिहा कर दी गयी.....और उसे राणा तहय्युर अली वाले महल मे रखा गया था.
[ये महल भी इमरान का या सीक्रेट सर्विस के गुप्त(पोषीदा) अड्डों मे से है लेकिन आम आदमी इसे केवल राणा साहब का महल समझते है और ये कि कभी कभी इमरान जैसे लोग उसका इस्तेमाल कर लेते हैं.... ]

एक दिन मोना........जोसेफ से इमरान के बारे मे बातें कर रही थी.

"क्या उसका दुनिया मे कोई नहीं है?" उसने पुछा.

"वो खुद ही दुनिया मे सब कुच्छ है.......उसके चक्कर मे ना पडो."

"मुझे उस से हमदर्दी है...."

"लड़की.....!! अपनी खोपड़ी से बाहर होने की कोशिश मत करो. वरना नुकसान उठाओगी."

"क्या बकवास कर रहे हो...." मोना झल्ला गयी.

"ठीक कह रहा हूँ.......तुम उस लड़की जूलीया से अधिक हसीन नहीं हो..."

"मैं ये कब कह रही हूँ......तुम बिल्कुल गधे हो....."

.

इतने मे इमरान कमरे मे प्रवेश किया. जोसेफ आपे से बाहर हो रहा था.

"हद हो गयी बॉस...." वो गला फाड़ कर दहाड़ा. "मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता कि कोई औरत मुझे गधा कहे....."

"तो तुम दुआ करो कि गधे भी आदमियों जैसी बातें करने लगें......लेकिन वो सब से पहले मुझ से पुछेन्गे कि मैं लड़कियों को देख कर सर के बल क्यों खड़ा हो जाता हूँ...."

"मैं खुद भी पुछुन्गा....." जोसेफ ने तेज़ स्वर मे कहा....."मुझे भी ये अच्छा नहीं लगता....."

समाप्त
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
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