प्यासा समुन्दर --कॉम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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Jemsbond
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Re: प्यासा समुन्दर

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33


"अब वो कहाँ है?" डॉक्टर डावर ने कहा.

"पोर्ट ट्रस्ट बिल्डिंग के उपर...." आवाज़ आई.

"ओके..." डॉक्टर डावर बोले. "अब उस पर नज़र रखो......कि वो कहाँ जाता है......मैं उसे उसके रास्ते से हटा रहा हूँ..."

डॉक्टर डावर ने नॉब को थोड़ा सा घुमाया और डाइयल की सुई एक चोकोरे निशान पर रुक गयी. उधर स्क्रीन पर इमरान ने देखा कि रेड पॉइंट ब्लॅक लाइन से हट कर स्क्रीन के सादा भाग की तरफ रेंगने लगा है.

डॉक्टर भी अब स्क्रीन को देखने लगे थे.......और उनके हाथ मे एक पेन्सिल थी.

"अब कहाँ है....?" उन्होने उँची आवाज़ मे कहा.

"ठीक ईगल टवर पर....." आवाज़ आई.....और डॉक्टर ने पेन्सिल की नोक उस गतिशील विदू पर रख दी. वैसे पॉइंट उसके नीचे से निकल गया था और ऐज यूषुयल धीरे धीरे रेंगता हुआ स्क्रीन के उपर ही के हिस्से की तरफ जा रहा था.

डॉक्टर ने जहाँ पेन्सिल की नोक रखी थी वहाँ एक गहरा निशान लगाया और फिर रेग्युलेटिंग नॉब पर हाथ रख दिया. स्क्रीन पर रेड पॉइंट फिर पेन्सिल से लगाए हुए निशान की तरफ वापस आ रहा था.

"अब कहाँ है....?" डॉक्टर डावर ने पुछा. तब तक पॉइंट पेन्सिल के निशान के पास पहुच रहा था.

"ठीक ईगल टवर पर सर.....वो कुच्छ दूर जाकर फिर पलट आया है...."

"ठीक है..."

इसके बाद डॉक्टर डावर स्क्रीन के डिफरेंट भागों से रेड पॉइंट को पेन्सिल के निशान पर लाए और हर बार यही सूचना मिली कि वो "ईगल टवर" पर है. इसके बाद ही पॉइंट का कलर फिर चेंज हो गया और अब वो चमकने लगा था.

"हमारे उपग्रह मे अब अंधेरा हो गया है. डॉक्टर डावर धीरे से बोले.....और उन्होने मईक की तरफ मूह ले जाकर कहा...."एंड टास्क.....डन"

फिर बटन दबाते ही मईक और बॉक्स हल्की सी आवाज़ के साथ अंदर चला गया. चमकदार पॉइंट आप ब्लॅक लाइन पर चल रहा था. फिर वो उस सीधी रेखा पर आ गया जहाँ वो पाइप से गुज़रने के बाद दिखाई दिया था. इमरान की नज़र पाइप की तरफ उठ गयी. कुच्छ ही देर बाद फुटबॉल जैसा मिनी सॅटलाइट पाइप मे दिखाई दिया.....वो धीरे धीरे नीचे आ रहा था. फिर वो अपनी जगह पर रुक गया.....और मशीन की स्क्रीन डार्क हो गयी.

"तुम ने देखा..."

"शानदार...." इमरान जैसे सपने देखते हुए जागा.

"इस प्रकार के डिस्क्स की सहायता से एक इंटरनॅशनल एर जैसा रडार तैयार किया जा चुका है. और उस रडार पर प्लेसस के सही सही लोकेशन भी फिक्स हो चुके हैं. फॉर एग्ज़ॅंपल मान लो कि तुम्हारे शहर पर एक उड़ान तश्तरी दिखाई दी.....और यहाँ से लॅब वालों को इनफॉर्म किया गया. बस दूसरी तरफ के रडार पर तुम्हारे शहर को मार्क कर दिया गया."

"मैं समझ रहा हूँ...." इमरान सर हिला कर कहा.

"उड़ान तश्तरियाँ राज़ बनी रहीं. उनके बारे मे बड़े साइंटिसटिक भी चक्कर मे पड़े हुए थे. अधिक-तर ऐसी ही बातें सुनने मे आती थीं कि वो किसी दूसरे ग्रह एरोप्लेन हैं. चूँकि उस समय उड़ान-तश्तरियों को राज़ ही मे रखना था इसलिए उड़ान-तश्तरियाँ उड़ाने वाले देशों की तरफ से भी अफवाहें ही फैलाई जाती रहीं. जब वो ऐसा रडार बनाने मे सफल हो गये तब घोषणा के साथ उस रडार का परीक्षण किया जाने लगा. इसके लिए आर्टिफिशियल सॅटलाइट की भी आड़ ली गयी. चलो अब इस टॉपिक को ख़तम करो......अब हम उन लोगों के बारे मे बात करेंगे जो विभिन्न समय मे यहाँ रहस्यमई ढंग से घुस कर कुच्छ तलाश करते हैं."

"मेरे विचार से ये स्परसिया......"

"नहीं.....ये ग्रह इत्यादि की कहानी उन लोगों के लिए वॅल्यू रखेगी जो संदेशों को भेजने केलिए ऐसे विचित्र साधन रखते हों." डॉक्टर डावर ने एक लंबी साँस ली और फिर बोले...."वो सुनहरा स्पंज अत्यंत विचित्र है.......और तुम उसे एक विशेष प्रकार का ट्रांसमीटर ही समझ सकते हो."

"मेरा भी यही ख़याल है..."

"मैं समझता हूँ उन्हें जिस चीज़ की तलाश है." डॉक्टर डावर मुस्कुराए...."मगर वो उन्हें यहाँ नहीं मिलेगी....इमरान....वो एक ऐसी खोज(डिस्कवरी) है जिस का ज्ञान अभी मेरे अलावा किसी को नहीं है. अर्थात वो चीज़ किस प्रकार बनती है वो केवल मैं जानता हूँ. वैसे दूसरों को वो चीज़ मेरे पास होने की भनक लग चुकी है. यही कारण है कि यहाँ उसे तलाश करते रहते हैं. इमरान तुम्हें एक काम और भी करना है.....मेरे आदमियों मे से उस चोर का पता लगाओ जो यहाँ के इन्फर्मेशन्स उन लोगों तक पहुचाता है."

"ये मैं कर लूँगा....." इमरान सर हिला कर बोला....."मगर मुझे हैरत है कि आप ने गवर्नमेंट को इस से सूचित क्यों नहीं किया?"

"तुम नहीं समझते....." डॉक्टर डावर धीरे से बोले...."मैं अभी सरकार से इस बारे मे बात नहीं करना चाहता....क्योकि मेरी खोज अभी परीक्षण के स्टेज मे है. रहमान की बात और है.....वो मेरा गहरा दोस्त है. मेरे लिए निजी तौर भी काम कर सकता है..............अगर मैं उन रहस्सयमयी लोगों के बारे मे सरकार को सूचना दूं तो संभव है परीक्षण के स्टेज मे ही मुझे वो चीज़ सामने लानी पड़े. लेकिन ये तो ना मेरे लिए लाभदायक होगा और ना देश के लिए. तुम देख ही रहे हो कि आज की दुनिया अपने एक्सपेरिमेंट्स को कंप्लीट करने केलिए कैसे कैसे ढोंग रचाती है......सिर्फ़ इसलिए कि उनके एक्सपेरिमेंट्स और डिस्कवरीस की भनक भी किसी के कान मे ना पड़ने पाए. क्योंकि एक राज़ दूसरे तक पहुचने मे कुच्छ समय नहीं लगता. मेरी ये खोज भी एक ऐसी ही चीज़ है........बस निकला था किसी चीज़ की तलाश मे लेकिन कुच्छ और मिल गया. अब मुझे चिंता है कि उस का सही उपयोग मालूम करूँ. वैसे वो इतना विध्वंशक है कि..............खैर छोड़ो हटाओ....तुम्हें अब उस चोर को खोजना है जो यहाँ की जासूसी करता है."

"मैं इसी लिए आया हूँ...." इमरान ने कहा और कुच्छ सोचने लगा.
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34


जुलीना फिट्ज़वॉटर बहुत बेचैन लग रही थी. क्योंकि उसने अभी अभी सफदार का फोन रिसीव किया था. इसके बाद उसने X2 से संपर्क करना चाहा लेकिन सफलता नहीं मिली. ब्लॅक ज़ीरो के नंबर से भी रिप्लाइ नहीं मिला......जो अक्सर X2 की हैसियत से दूसरे मेंबर्ज़ केलिए निर्देश जारी करता था.

इस इन्फर्मेशन का X2 तक पहुचना बहुत आवश्यक था....कि सफदार नाकाम हो गया और तनवीर अब भी उसी बिल्डिंग मे है.

तभी फोन की घंटी बजी. उसने रिसीवर उठा लिया. दूसरी तरफ बोलने वाला तनवीर था.

"तुम....!!!" वो गुर्राया. "मैं तुम से अच्छी तरह समझूंगा.......वैसे अब मैं रिज़ाइन ही दे दूँगा."

"मगर तुम कहाँ से बोल रहे हो?"

"नर्क से...." तनवीर चिंघाड़ा.

"क्या तुम क्वीन्स रोड की 18थ बिल्डिंग से निकल आए हो?"

"तुम को कैसे पता?"

"जो कुच्छ भी हुआ है.....X2 के स्कीम से हुआ है.......शायद तुम उस समय भाग निकले जब वहाँ गोलियाँ चल रही थीं...."

"हां.....लेकिन इसका मकसद क्या था?"

"तुम जानते हो कि X2 हमें मकसद कभी नहीं बताता...."

"तो.......मतलब वो चाहता था कि मैं उस इमारत मे उन लोगों के साथ ठहरू..."

"हां....बिल्कुल.....तुम ने वहाँ से निकल कर मूर्खता का सबूत दिया है."

"इस का ज़िम्मेदार मैं नहीं हूँ..." तनवीर गुस्से से बोला..."अगर मुझे हालत का पता पहले से होता तब मैं देखता कि क्या कर सकता हूँ...."

"अच्छा.......अब प्रेज़ेंट्ली तुम अपने साथियों से मिलने की कोशिश मत करना. लेकिन पहले मुझे बताओ कि घर तक तुम्हारा पिच्छा किया गया या नहीं...."

"मैं कुच्छ नहीं जानता."

"ओके.....मैं तुम्हें ऑर्डर देती हूँ कि तुम अपने घर से बाहर कदम भी नहीं निकालना. खुद को वहीं नज़रबंद रखो."

"शट अप...." तनवीर गरजा. "तुम मुझे ऑर्डर देती हो......तुम्हारी क्या हक़ीक़त है?"

"मेरी हक़ीक़त ये है कि तुम सब मेरे चार्ज मे हो.....और इस प्रकार के राइट्स मुझे X2 की तरफ से मिले हैं. तुम घर से बाहर कदम निकाल कर देखो........X2 तुम्हें अपनी पसंद की मौत मरने से भी रोक देगा.......वो सब कुच्छ कर सकता है."

दूसरी तरफ से फोन कट गया. वैसे जूलीया को विश्वास था कि अब तनवीर वही करेगा जिसके लिए उस से कहा गया है."

वो निश्चिंत होकर बेड पर लेट गयी और शायद सो भी गयी थी......लेकिन फोन की घंटी ने उसे इस तरह चौंका दिया जैसे वो बॉम्ब गिरने की आवाज़ रही हो.

"हेलो...." उसने झपट कर रिसीवर उठा कर कहा.

"X2..."

"यस सर..."

"क्या खबर है?"

जूलीया ने सफदार की कहानी सुना दी और ये सूचना भी दी कि तनवीर वहाँ से भाग आया है.

"लेकिन वो लोग तनवीर से क्या चाहते थे?"

"ये अभी नहीं मालूम हो सका. मैं उसे फिर फोन करूँगी..."

"हां.....पता करो.....मैं फिर फोन करूँगा."

दूसरी तरफ से फोन कट गया.

अगले ही पल जूलीया ने तनवीर के नंबर डाइयल किए. उसे यकीन था कि तनवीर सो रहा होगा.

ये सच भी था. क्योंकि कयि बार रिंग जाने पर तनवीर की भर्राई हुई आवाज़ सुनाई दी.

"कॉन है....?" वो किसी कटखने कुत्ते की तरह गुर्राया.

"नींद नहीं आ रही..." जूलीया ने अपनी आवाज़ मे शहद भर कर कहा.

"तो मैं क्या करूँ?" तनवीर ने कहा लेकिन अब उसकी आवाज़ मे गुर्राहट नहीं थी.

"पिच्छली रात तुम ने भी इसी तरह जगा कर बोर किया था."

"ओह्ह.....अच्छा..." तनवीर ने ज़बरदस्ती हँसने की कोशिश की.

"अरे भाई.....मैं ये जान'ने केलिए बेचैन हूँ कि उस इमारत मे तुम पर क्या बीती."

"तुम या X2?"

"ओह्ह.....X2.....मैं उसे फोन कर कर के थक चुकी हूँ.....वो नहीं मिला. उसे तुम्हारे बारे मे भी खबर देनी थी."

"मेरे बारे मे.....एनीवे.....मैं ये सब तुम्हें बता रहा हूँ........मुझे X2 मे अब कोई रूचि नहीं रह गयी...."

"ना हो.....तुम मुझे बताओ..."

"मैं नहीं समझ सका कि वो लोग क्या चाहते थे. वो बूढ़ा जो मुझे ले गया था एक जर्मन है. उसका नाम हफ ड्रॅक है. उसने मेरा काफ़ी सत्कार किया. दो सुंदर लड़कियाँ मेरा दिल बहलाती रहीं."

"और इसके बाद भी तुम निकल भागे.....मुझे हैरत है."

"ओह्ह......वास्तव मे मैं उलझन मे पड़ गया था. क्यूंकी मैने उन्हें अपने बारे मे एक दर्द भरी कहानी सुनाई थी. मैने सोचा कि अगर उन लोगों ने कहानी की सच्चाई का पता करने की कोशिश की तो मेरा क्या अंजाम होगा."

इसके बाद तनवीर ने सौतेली माँ और ज़ालिम बाप की कहानी जूलीया को भी सुनाई.

जूलीया हंस पड़ी और कहा...."पता नहीं उन्हें कैसे विश्वास हुआ कि तुम्हारा बाप ज़िंदा भी हो सकता है."

"क्यों?"

"अरे तुम्हारे चहरे पर तो ऐसी अनाथपन बरसती है कि दूर से ही देख कर किसी को भी दया आ जाए."

"लेकिन तुम्हें दया नहीं आती...." तनवीर बेशार्मों की तरह हंस कर बोला.

"मुझे अनाथों से थोड़ी भी दिलचस्पी नहीं है. हां तो उन लोगों ने तुझ से कोई इच्छा व्यक्त नहीं की?"

"बिल्कुल नही...." तनवीर ने कहा. "लेकिन बूढ़े के अंदाज़ से यही लगता था कि वो मुझ से कोई काम लेना चाहता है......वो बार बार मुझ से कहता था कि तुम किसी बात की चिंता मत करो. ऐसे युवाओं की सहायता करता हूँ जो अपने पैरों पर खड़े होना चाहते हैं."

"तुम से बड़ी ग़लती हुई...."

"मुझे अपनी इस ग़लती पर खुशी है कि अंजाने मे सही....X2 के काम ना आ सका..."

"तनवीर......पागल मत बनो.....इस नौकरी से अलग रह कर भी तुम चैन से नहीं रह सकोगे...."

"हां मैं जानता हूँ कि X2 एक अनदेखी आसमानी बिजली है......पता नहीं कब और कहाँ टूट पड़े. लेकिन अब मुझे ज़िद्द हो गयी है."

"अभी तुम्हें अपने घर मे सीमित रहना है.....X2 का यही आदेश है."

"तुम्हारी क्या राय है?"

"मैं भी तुम्हें यही राय दूँगी कि तुम वही करो जिसके लिए कहा जा रहा है. वो अपने स्टाफ साथियों को खुश रखने की भी कोशिश करता है."

"मैं तो तभी खुश रह सकता हूँ जब वो मुझे इमरान को क़तल कर देने की अनुमति दे देगा."

जूलीया ने बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोकी. लेकिन जब वो बोली तो उसकी आवाज़ मे अनगिनत क़हक़हे मचल रहे थे. उसने कहा.....

"मैं भी कयि बार ये ही सोच चुकी हूँ...."

"क्या मतलब?"

"यही कि किसी दिन कोई इमरान की चटनी बना कर रख दे...."

"मुझ पर भरोसा करो.." तनवीर अत्यंत गंभीर स्वर मे बोला...."एक दिन यही होना है."

"ओके......अब तुम आराम करो." जूलीया ने कहा और फोन काट दिया.
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"ओके......अब तुम आराम करो." जूलीया ने कहा और फोन काट दिया.

कुच्छ देर बाद उसने दुबारा X2 की कॉल रिसीव की और उसे तनवीर की कहानी सुनाई.

"इस समय..." दूसरी तरफ से आवाज़ आई."तुम सब अपने अपने मकानो ही तक सीमित रहो. क्वीन्स रोड वाली बिल्डिंग पर निगाह रखने केलिए केवल सफदार काफ़ी होगा. उस से कहो कि वो उस इमारत मे रहने वालों पर नज़र रखे. वैसे वो उस इमारत की भीतरी माप तो अच्छी तरह समझ गया होगा...."

"जी हां सर..." जूलीया ने उत्तर दिया.

"बॅस ठीक है.....तुम सब इसलिए अपने मकानों मे सीमित किए जा रहे हो कि परिस्थिति बहुत जटिल हो गयी है. और मैं किसी समय भी तुम सब को किसी जगह भी बुला सकता हूँ.......मगर ठहरो.....तुम सब इसी समय दानिश मंज़िल मे शिफ्ट हो जाओ.......अपने घरों को छोड़ दो...."

"ऑल राइट सर.......लेकिन तनवीर....."

"हां.....ठीक है तनवीर को वहीं रहने दो.....उसका बाहर निकलना या तुम सब के साथ देखा जाना अभी ठीक नहीं होगा...."

"ओके सर...."

"दानिश मंज़िल के साउंड प्रूफ कमरे मे एक क़ैदी है. उसके किसी प्रकार के सवाल का जवाब नहीं दिया जाए.......और उसे कड़ी निगरानी में रखा जाए...." दूसरी तरफ से कह कर फोन डिसकनेक्ट कर दिया गया.

********

डॉक्टर डावर के रिसर्च सेंटर मे आए हुए इमरान को आज आठवाँ दिन था. इस बीच उसने ना जाने कितने पापड बेले लेकिन किसी विशेष परिणाम पर नहीं पहुच सका. एक बार उसने गोताखोरी का वही ड्रेस पहन कर समुद्र की तह भी नापी जो एक अग्यात व्यक्ति छोड़ का भागा था......लेकिन उसकी वो कोशिश भी व्यर्थ ही साबित हुई. पानी मे कयि घंटे बिताने के बाद भी वो नहीं जान सका कि डॉक्टर डावर को गोताखोरी पर मजबूर करने का क्या कारण था.

डॉक्टर डावर ने भी अब चुप्पी साध ली थी. इमरान से कभी ये भी नहीं पुछ्ता कि वो क्या कर रहा है......और उसने आप तक कितनी जानकारियाँ जमा कीं. वैसे इमरान ने उन्हें अक्सर उसी सुनहरे स्पंज पर किसी ना किसी प्रकार का एक्सपेरिमेंट करते ज़रूर देखा था.

वो उन आदमियों की खोज मे भी था जिन पर प्रयोग-शाला के राज़ बाहर पहुचाने का संदेह किया जा सकता. लेकिन अभी तक वो उसमे भी सफल नहीं हो सका था. खावीर और नोमानी भी रिसर्च सेंटर के आस पास ही मौजूद रहते थे. उनके पास ज़ीरो नाइन के मोबाइल ट्रांसमीटर भी थे. ये सेट ऐसे थे कि उन पर ज़ीरो नाइन सेट ही की बातें सुनी जा सकती थीं.......और उनके ट्रांसमीटर से होने वाली बातो को सुनने केलिए भी उसी मेक के ट्रांसमीटर की आवश्यकता पड़ती थी.

इमरान ने अपनी कयि रातें जाग कर काटी थीं. उसने और उसके दोनों स्टाफ ने लॅब के बाहरी भाग पर नज़र रखने की कोशिश की थी लेकिन इन दिनों शायद वहाँ घुसने वाले अग्यात व्यक्तियों ने अपने शेड्यूल मे परिवर्तन कर दिया था. इमरान को किसी रात भी कोई संदेहास्पद व्यक्ति नहीं दिखाई दिया.

आज शाम से ही वो काफ़ी चिंतित था क्योंकि उसके लिए ये पहला अवसर था जब किसी केस मे इतने दिन लग जाने के बाद भी कोई काम की बात पता नहीं चली थी.

वो अब्ज़र्वेटरी के नीचे वाली बाल्कनी पर खड़ा शायद समंदर की लहरें गिनने की कोशिश कर रहा था. कोशिश ऐसे कि नीचे अंधेरा था. दिन होता तो वो लहरें गिनने पर मक्खियाँ मारने को अड्वॅंटेज देता. क्योंकि जब हाथ पर हाथ रख कर बैठ जाने का मौका आ जाए तो इस से बढ़िया काम और क्या हो सकता था.

अचानक उसने अब्ज़र्वेटरी की बड़ी टेलिस्कोप(दूरबीन) के मूव करने की आवाज़ सुनी और सर उठा कर उपर देखने लगा. तारों की छान्व मे उपर उठती हुई टेलिस्कोप उसे सॉफ दिख रही थी. वो 75° आंगल पर रुक गयी. फिर इमरान उसे पश्चिम की तरफ मूव करते देखता रहा. फिर कुच्छ देर बाद वो लगातार झुकती चली गयी.

लेकिन दुबारा वो अपनी पोज़िशन मे इस ढंग से आई जैसे उसे बड़ी लापरवाही से छोड़ दिया गया हो. दूसरे ही पल इमरान ने अब्ज़र्वेटरी की सीढ़ियों पर किसी के कदमों की आवाज़ सुनी. उसे ऐसा लगा जैसे कोई दौड़ कर सीढ़ियों से उतरने की कोशिश कर रहा हो. अब्ज़र्वेटरी की सीढ़ियाँ उस बाल्कनी तक आती थीं फिर यहाँ से नीचे पहुचने की सीढ़ियाँ दूसरी तरफ थीं.

इमरान संयोग से सीढ़ियों के गेट के पास ही था. कोई बहुत तेज़ी से बाल्कनी पर आया.

"कॉन है.....?" आने वाले ने चीख कर पुछा......और इमरान ने आवाज़ पहचान ली. ये डॉक्टर डावर थे.

"इमरान....! ओह्ह....इमरान....तुम हो..." वो हान्फते हुए बोले. "नया ग्रह.....एकदम नया ग्रह......जो दूसरों से एकदम अलग था.....आओ मेरे साथ चलो उपर चलो.....शायद....उफ्फ..ओह्ह.......क्या मैं लूट गया.....तबाह हो गया.....?"

"पर बात क्या है.....?" इमरान उनके पिछे बढ़ता हुआ बोला. वो फिर अब्ज़र्वेटरी की चक्करदार सीढ़ियों पर चढ़ रहे थे.....और उनकी रफ़्तार काफ़ी तेज़ थी.

इमरान भी उन्हीं के साथ दौड़ता रहा. वो उपर पहुचे और डॉक्टर डावर ने दुबारा टेलिस्कोप उपर उठाई. इस टेलिस्कोप का डाइयामीटर कम से कम से कम डेढ़ फीट ज़रूर रहा होगा.

"चलो देखो.....वो चमकदार रेखाएँ देखो...." उन्होने इमरान की गर्दन पकड़ कर टेलिस्कोप के सिरे की तरफ धकेलते हुए कहा.

"मैं बर्बाद हो गया.......मैं तुम्हें बताउन्गा.....पहले तुम वो रेखाएँ देखो....."

इमरान ने बहुत दूर आकाश मे चमकदार लकीरों का एक जाल देखा और जाल से एक चमकदार रेखा निकल कर पश्चिमी छितिज तक चली गयी थी. उस रेखा को देखने केलिए इमरान टेलिस्कोप को पश्चिम की तरफ झुकाता चला गया........और फिर उसे एक और चीज़ भी दिखाई दी. ये नीले रंग का अकेला सा शोला था......उसकी गति बहुत तेज़ थी. ये पश्चिमी छितिज से उठ कर पूरब की तरफ आ रहा था. उसके साथ ही साथ इमरान टेलिस्कोप को उठाता चला गया. टेलिस्कोप का मूव्मेंट किसी प्रकार की मेकॅनिसम पर था......वरना इतनी बड़ी टेलिस्कोप को संभालना आदमी के वश की बात नहीं थी.

जैसे ही नीला शोला चमकदार रेखाओं के जाल मे पहुचा उसके चीथड़े उड़ गये. इमरान ने उसे किसी भारी ठोस(सॉलिड) वस्तु की तरह फट'ते देखा था.

"देखा...." डॉक्टर डावर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोले.

"देख लिए......मगर एक नीला शोला भी था जिसे मैने फट'ते देखा."

"नीला शोला.......! फट'ते देखा....!!" डॉक्टर डावर रुक रुक कर बोले. ऐसा लग रहा था जैसे उन्हें कंठ से आवाज़ निकालने मे कठिनाई हो रही हो. उनकी आँखें बाहर की तरफ उबल रही थीं.....उनसे ना हैरत प्रकट हो रही थी ना ही डर....बॅस उनकी आँखें उबली पड़ रही थीं. लेकिन चेहरा हर प्रकार के भाव से खाली था.

फिर इमरान को ऐसा लगा जैसे वो चकरा कर गिर पड़ेंगे. इमरान ने आगे बढ़ कर उन्हें सहारा दिया. वास्तव मे डॉक्टर डावर होश मे नहीं लग रहे थे. इमरान उन्हें चेअर पर बिठा कर दोनों कंधों को पकड़ कर संभाले रहा.

क्रमशः..............................................
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अब उन की आँखें बंद हो गयी थीं.....और वो गहरी साँसें ले रहे थे. कुच्छ देर बाद उन्होने कमज़ोर आवाज़ मे कहा....."मुझे नीचे ले चलो..."

"आप पहले ही से उसे देख चुके थे...." इमरान ने धीरे से कहा...."फिर मेरी बात मे ऐसी कॉन सी चीज़ आपको गैर अप्रत्याशित लगी....?"

"क्या तुम्हें विश्वास है कि वो गतिशील नीला विंदु फॅट गया था...." डॉक्टर डॉवर ने हान्फते हुए पुछा.

"मुझे विश्वास है.....वो किसी सॉलिड चीज़ की तरह फॅट का बिखर गया था...."

"मैं अब कुच्छ नहीं रहा इमरान...." उन्होने कमज़ोर सी आवाज़ मे कहा. "मेरी खोज मुझ तक ही सीमित नहीं रही....कोई दूसरा भी या तो पहले से ही इस पर काम करता रहा है.......ये मेरा राज़ किसी ना किसी प्रकार उस तक पहुच गया है...."

"लेकिन वो खोज क्या थी? और इस समय जो कुच्छ मैने देखा उसका इस उस से क्या क्या संबंध?"

"वो नीला विंदु किसी का कृत्रिम उपग्रह था. उस कलर का पहला उपग्रह मेरी निगाह से गुज़रा है..वो चमकीली लकीरें उसी उपग्रह ने बनाई थीं.......और फिर उन्हीं लकीरों ने उसे तबाह भी कर दिया. वो रेखाएँ......इमरान......अब फिर से देखो....क्या अब भी वो वहाँ हैं?"

इमरान टेलिस्कोप के निकट आया और उसे 75° के आंगल पर लाकर उसने चारों तरफ निगाह दौड़ाई......लेकिन चमकीली रेखाएँ उसे कहीं दिखाई नहीं दी.

"जी नहीं........अब वो लकीरें नहीं दिखाई देतीं." उसने कहा.

"अच्छा ठहरो.......मुझे भी देखने दो...."

इमरान टेलिस्कोप के पास से हट गया. डॉक्टर डावर कुच्छ देर तक टेलिस्कोप के पास रहे फिर वो भी हट'ते हुए बोले....."हां...ठीक है. अब कुच्छ भी नज़र नहीं आता. तुम्हारी समझ से वो उपग्रह पृथ्वी से कितनी दूरी पर रहा होगा?"

"मुझे इसका कोई अनुभव नहीं है सर...."

"ये उपग्रह 25-26 किमी से अधिक दूर नहीं था."

"मगर मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे हज़ारो किलोमीटर की दूरी पर हो."

"ओह्हो.....तुम क्या.....बड़े से बड़ा स्पेशलिस्ट भी आजकल धोका खा रहे हैं. मगर मेरी टेलिस्कोप कभी ग़लत बात नहीं बताती. उसको मूव कराने वाले मेकॅनिसम से एक डिस्टेन्स-मीटर भी अटॅच्ड है. ये डिस्टेन्स मीटर भी मेरी अपनी आविष्कार है. इसने आज तक कभी कोई ग़लत जानकारी नहीं दी. अच्छा इमरान मुझे संतुष्ट हो लेने दो. तुम यहीं इसी टेलिस्कोप पर रहो......मैं नीचे जा रहा हूँ. जहाँ वो रेखाएँ तुम ने देखी थीं......टेलिस्कोप ठीक उसी आंगल पर है. इसकी पोज़िशन मे चेंजिंग मत करना. अब मैं उन लकीरों की तरफ अपना दूर-मार रॉकेट फेकुंगा.....जो अभी टेस्ट पीरियड मे है. मैं संतुष्ट होना चाहता हूँ......माइ गॉड......अगर अब भी मेरी शंकाओं की पुष्टि हुई तो मैं कहीं का नहीं रहूँगा."

"मगर अब वो रेखाएँ हैं कहाँ?" इमरान ने हैरत से कहा.

"यही तो देखना है कि वो रेखाएँ अब भी मौजूद हैं या नहीं. अगर मौजूद हैं तो ये समझ लो कि मेरी खोज अब राज़ नहीं रही. मैं रॉकेट फेकने जा रहा हूँ. तुम एक सेकेंड केलिए भी टेलिस्कोप मत छोड़ना."

इमरान ने सर हिला कर सहमति जताई. फिर वो दूरबीन की तरफ आकर्षित हो गया.

डॉक्टर डावर के कहने के अनुसार टेलिस्कोप की दिशा ठीक रेखाओं वाले जाल की तरफ थी......इसलिए इमरान अंधेरे मे आँख फाड़ता रहा......कि शायद वो चमकदार जाल फिर उसे दिखाई देने लगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

लगभग 10 मिनिट बाद डॉक्टर का छोड़ा हुआ रॉकेट टेलिस्कोप की सीध मे दिखाई दिया. वो अपने पिच्छले हिस्से से चिंगारियाँ उगलता हुआ उपर उठता जा रहा था. उसकी रफ़्तार बहुत तेज़ थी. कुच्छ ही देर मे वो एक अकेला चमकदार विंदु दिखाई देने लगा. और तब अचानक इमरान ने उस विंदु को भी बिल्कुल उसी तरह फॅट'ते देखा जैसे कुच्छ देर पहले नीले विंदु को देखा था. उस ने एक लंबी साँस ली. अब फिर सब तरफ अंधेरा ही अंधेरा था.

अचानक इमरान उच्छल पड़ा. और फिर उसे अपने पागलपन पर हँसी आ गयी. क्योंकि आवाज़ उस फोन के रिंग की थी जिसे इमरान ने अनदेखी कर दिया था. ये बाई तरफ लकड़ी के एक ब्रॅकेट पर रखा हुआ था. इमरान ने रिसीवर उठा लिया.

"हेलो.....इमरान......क्या रहा?" दूसरी तरफ से डॉक्टर की आवाज़ आई.

"आपका रॉकेट भी फॅट गया..."

"अच्छा.....तुम रूम नंबर 11 मे आ जाओ." डॉक्टर की आवाज़ काँप रही थी.

इमरान ने रिसीवर रख दिया......और नीचे जाने केलिए सीढ़ियाँ तय करने लगा. डॉक्टर की लब की जादुई फ़िज़ा इमरान जैसे व्यक्ति को भी चकरा देने केलिए काफ़ी थी.

वो रूम नंबर 11 मे आया. ये डॉक्टर का रेस्ट रूम था. उसने डॉक्टर को एक ईज़ी चेर मे पड़े देखा. वो बरसों के बीमार लग रहे थे.

"डॉक्टर.......मुझे इन सारी चीज़ों से अधिक हैरत-अंगेज़ आपकी आप की परेशानी लग रही है..." इमरान ने कहा.

"तुम नहीं समझ सकते." डॉक्टर ने भर्राई हुई आवाज़ मे कहा. "वो लकीरें अब भी वहीं मौजूद हैं. और ना जाने कब तक रहें. वैसे अब उन लकीरों मे चमक बाकी नहीं रही. वो अब धोके की टट्टी हैं. अगर तुम उतनी उँचाई पर फ्लाइट करने वाले किसी जहाज़ मे बैठ कर उन लकीरों की तरफ जाओ तो सही सलामत वापस नहीं आ सकोगे. जहाज़ के परखच्चे उड़ जाएँगे."

"क्यों...?" इमरान ने हैरत प्रकट की.

"वो एक ऐसा ख़तरनाक पदार्थ है जो वायुमंडल मे अपने वॉल्यूम के बराबर वाक्कुम बना लेता है जिसे तुम ब्लॅक-होल कह सकते हो.......और ये ब्लॅक-होल हज़ारो साल तक वैसे ही कायम रह सकता है. जो चीज़ भी इस ब्लॅक-होल मे पहुचि उसके टुकड़े हो जाएँगे. तुम ने जो चमकदार लकीरें देखी थीं वो वास्तव मे रेखाओं के रूप मे ब्लॅक-होल्स थे. जब ये पदार्थ ऑक्सिजन से टकराता है तब इस मे चमक सी पैदा हो जाती है और ये चमक ही वास्तव मे ब्लॅक-होल बनाने की प्रोसेस है. कुच्छ समय बाद चमक गायब हो जाती है और ब्लॅक-होल्स बाकी रह जाते हैं. मगर देखो इमरान तुम इन सब बातों को गुप्त ही रखोगे. हो सकता है कि मेरी या किसी दूसरे की भी ये डिस्कवरी चर्चा मे नहीं आने पाए. क्लियर है कि ये पदार्थ इस समय जिसके क़ब्ज़े मे है वो भी इसे राज़ ही मे रखने की कोशिश करेगा."
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Jemsbond
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Re: प्यासा समुन्दर

Post by Jemsbond »

३७
इमरान कुच्छ ना बोला......वो बहुत ध्यान से डॉक्टर डावर की तरफ देख रहा था. कुच्छ सोच कर वो बोला...."उस पदार्थ को संभाल कर रखना अत्यंत कठिन काम होगा..."

"निश्चित रूप से.....उसे तुम केवल शीशे ही मे बंद रख सकोगे. लेकिन ये आवश्यक है कि शीशे कि उस बर्तन मे पहले ही से वाक्कुम पैदा कर दी जाए. अर्थात उस मे किसी प्रकार की गॅस ना हो.....विशेष रूप से ऑक्सिजन का. लेकिन ऑक्सिजन हवा मे भी मौजूद है.....इसलिए बहुत अधिक सावधान रहना पड़ता है. मैं समुद्र से अटॉमिक एनर्जी प्राप्त करने की कोशिश कर रहा था. बस संयोग से ये चीज़ हाथ लग गयी."

"बहुत से देश समुद्र से अटॉमिक एनर्जी हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं....शायद वो भी इस खोज को पा सकते हैं...."

"ज़रूरी नहीं है. कार्य-विधि बहुत से ऐसे परिवर्तन कर देता है जिनके परिणाम एकदम अलग होते हैं.....इसलिए निश्चित रूप से ये नहीं कहा जा सकता कि हर एक्सपेरिमेंट करने वाला इस खोज के स्टेज से ज़रूर गुज़रेगा."

"लेकिन सर......क्या संभव नहीं है कि कोई आप ही की खोज से लाभ उठा रहा हो..."

"इंपॉसिबल.." डॉक्टर डावर बिल्कुल दीवानों की तरह हँसे...."कोई नहीं जानता कि मेरा भंडार कहाँ है......कोई नहीं......कयामत तक नहीं जान सकता..."

"वो जो सुनहरे स्पंज से ट्रांसमीटर का काम ले सकें.......या प्लास्टिक के ऐसे बच्चे बना सके जो बिल्कुल ज़िंदा लगे और उन से भी ट्रांसमेटेर का काम लिया जा सके.....ऐसे लोगों के बारे मे आप को किसी ग़लत-फ़हमी का शिकार नहीं रहना चाहिए."

"नहीं.....किसी की सोच मे भी वो जगह नहीं आ सकेगी..."

"आप मुझे भी वो जगह नहीं बताना चाहते?"

"नहीं...."

"अच्छा तो फिर इसे लिख लीजिए कि आप का भंडार सॉफ हो चुका है. यही कारण है कि उन लोगों ने अपनी गतिविधि अभी बंद की हुई है........और अब लब की तरफ आते भी नहीं."

"डॉक्टर डावर सीधे होकर बैठ गये......और इमरान को इस तरह घूर्ने लगे जैसे खुद इमरान ही ने भंडार सॉफ कर दिया हो.

"तुम क्यँ बेकार मे मुझे उलझन मे डाल रहे हो......बोलो." वो आँखें निकाल कर गुर्राए.

"मैं आप से अपनी आशंका प्रकट कर रहा हूँ........वरना मुझे क्या. वैसे मैं ये कभी नहीं चाहूँगा कि मेरे देश का कीमती पूंजी किसी के हाथ लग जाए."

"उठो....अगर ये सच हुई तो......" डॉक्टर डावर खड़े हो गये. उनकी आवाज़ फिर से गले मे फस्ने लगी थी. "अगर ये बात सच हुई तो इस शताब्दी की सब से बड़ी ट्रॅजिडी होगी.....और शायद फिर मैं जीवित नहीं रह सकूँ....मेरी ज़िंदगी का सब से बड़ा काम मैने यही किया था.....इसका सही उपयोग ढूंड निकालने के बाद मैं इसे सरकार के हवाले कर देता...."

"इस से बड़ा उपयोग क्या होगा डॉक्टर कि ये हमें दूर से मार करने वाले बेलिस्टिक रॉकेट्स से सुरक्षित रख सकेगी."

"देखो इमरान.....युद्ध को होने से कोई रोक नहीं पाता...." डॉक्टर ने सर हिला कर कहा...."लेकिन इस से दुनिया ख़त्म नहीं होगी. लोग युद्ध के बाद भी ज़िंदा रहते हैं. फिर हमेशा केलिए अपने वायुमंडल को क्यों बर्बाद कर दिया जाए. वर्तमान रूप मे तो ये पदार्थ ऐसे ही है कि इसके द्वारा बनाई गयी ब्लॅक-होल्स हज़ारों साल तक मौजूद रहेंगी. हो सकता है कि किसी प्रकार मैं इसके प्रभाव को टेंपोररी बनाने मे सफल हो जाउ. इसी ख़तरे को सोच कर मैं इसे अभी तक सरकार की जानकारी मे नहीं लाया था. मेरा काम तो तभी पूरा होता जब मैं इसके प्रभाव की अवधि को कम करने मे कामयाब हो जाता और इसका कोई दूसरा कन्स्ट्रक्टिव यूज़ भी ढूँढ लेता.......एनीवे चलो......मैं देखूँगा कि तुम्हारी शंकाएँ कहाँ तक सही हैं."

डॉक्टर दरवाज़े की तरफ बढ़ गये. इमरान उनके पिछे चल रहा था. डॉक्टर डावर अपने स्टाफ को कुच्छ आवश्यक निर्देश दे कर लब से बाहर निकल आए. लेकिन इमरान ने महसूस किया कि वो खुद को नॉर्मल रखने की कोशिश कर रहे हैं. स्टाफ से बातें करते समय उनकी आवाज़ मे ना तो पहले जैसी कपकापाहट थी और ना कमज़ोरी. उन्होने अपने चेहरे को फ्रेश बनाने की काफ़ी कोशिश की थी. इमरान का ख़याल था कि उनके स्टाफ ने उन मे किसी प्रकार का मानसिक दबाब नहीं महसूस किया होगा.

बाहर अंधेरा था. इमरान को खुले आसमान के नीचे हल्की ठंडक बहुत भली लगी थी. वो पैदल ही चलते रहे. डॉक्टर डावर का रुख़ अपने बंग्लो की तरफ था.

इमरान इस से पहले भी एक-दो बार अकेला उनके बंग्लो की तरफ जा चुका था......और उसे पता था कि उनकी लड़की सिम्मी वहाँ अकेली रहती है. उसने एक दो बार सिम्मी से बात भी की थी......और इस नतीजे पर पहुचा था कि सिम्मी एक सीधी सादी और सॉफ दिल की लड़की है.

"आप तो शायद बंग्लो की तरफ जा रहे हैं....!" इमरान ने कहा.

"हां...."

"मगर आप अपना कीमती पदार्थ का भंडार देखने का निश्चय रखते थे..."

"वो वहीं है..." डॉक्टर की आवाज़ धीमी थी.

"ओह्ह...." इमरान चलते चलते रुक गया.

"क्यों......क्या हुआ?"

"कुच्छ भी नहीं.......चलिए...." इमरान आगे बढ़ता हुआ बोला. "इस बात पर मुझे हैरत हुई थी कि वो वहीं है."

"तुम्हें हैरत नहीं होनी चाहिए....जब तक वो शीशे मे क़ैद है तब तक उस से कोई ख़तरा नहीं.....मैने ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि उसमे कोई छेड़ छाड़ ना हो..."

"सररर.....आप कहाँ हैं.....मैं ये निवेदन कर रहा था कि सुपुत्री वहाँ अकेली रहती हैं......और कोई ऐसी व्यवस्था भी नहीं है कि मकान की निगरानी हो सके."

"इस से कोई अंतर नहीं पड़ता....वो भंडार ऐसे तहखानों मे हैं जहाँ तक किसी का पहुचना अत्यंत कठिन.....बल्कि असंभव समझो."
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