प्यासा समुन्दर --कॉम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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Jemsbond
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Re: प्यासा समुन्दर

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४६



कुच्छ देर बाद वो और डॉक्टर बंग्लो के एक कमरे मे एक बड़े टेबल के निकट खड़े उन टुकड़ों को देख रहे थे जो समंदर की लहरों ने किनारे ला फेके थे. उनका रंग काला था लेकिन ये गोश्त के लोथडे ही लग रहे थे.

"तुम....." डॉक्टर डावर इमरान की आँखों मे देखते हुए कुच्छ कहते कहते रुक गये.

"क्या मैने ग़लती की थी?" इमरान ने बोखला कर मूर्खों की तरह पुछा.

डॉक्टर के होंठो पर हल्की सी मुस्कुराहट दिखाई दी.

"मैं सोच रहा हूँ कि तुम्हें आदमी की किस केटेगरी मे रखूं....." उन्होने कहा.

"उस केटेगरी मे जिस का होना और ना होना दोनों समान हैं."

"नहीं.....तुम जैसा आदमी आज तक मेरी नज़रों से नहीं गुज़रा."

"मैं ग़लत नहीं कह रहा.......पहले आपकी निगाह से नहीं गुज़रा था.......अब गुज़रा हूँ......और हो सकता है थोड़ी देर बाद आप मुझे पहचानने से इनकार कर दें....."

ठीक उसी समय सिम्मी ने कमरे मे प्रवेश किया........और डॉक्टर ने जल्दी से आयिल-क्लॉत का एक टुकड़ा उन गोश्त के टुकड़ों पर डाल दिया जो समुद्र तट से लाए गये थे.

"पापा......वो ज़िंदा है.......खुदा की कसम.......उसी की आवाज़ सुनी हूँ......" सिम्मी हाँफती हुई बोली.

"क्या कह रही हो.......किसकी आवाज़ थी?" डॉक्टर डावर ने बहुत ठहरे हुए स्वर मे पुछा.

"सुनहरी लड़की की......खुदा की कसम पापा......उस ने अभी अभी मुझ से फोन पर बात की है."

"अब तुम सो जाओ......" डॉक्टर डावर ने ठंडी साँस लेकर कहा. "तुम उस लड़की से अत्यधिक प्रभावित हुई हो........मुझे डर है कि कहीं तुम्हारे मस्तिष्क पर इसका बुरा प्रभाव ना पड़े......"

"पापा.......विश्वास कीजिए..."

इमरान मूर्खों की तरह हंस पड़ा........औ सिम्मी उसे खा जाने वाली निगाहों से घूर्ने लगी. फिर उसने कोई जली कटी बात कहने केलिए मुहह खोला ही था कि इमरान बोखला कर बोला......"हां.....वो ज़िंदा है."

"क्या मैं झूट बोल रही हूँ?" सिम्मी दाँत पीस कर हिस्टर्रिया वाले ढंग से चीखी.

"बेबी......बेबी....." डॉक्टर डावर उसके कंधे पर हाथ रख कर बोले.

"पापा......ये आदमी मुझे अकारण गुस्सा दिलाया करता है."

"बेबी......ये मेरा बेटा है.......इसलिए इसका अपमान ना करो. क्या तुम सीआइबी के डाइरेक्टर जनरल मिस्टर रहमान को जानती हो?"

"हां.....मैं जानती हूँ...." सिम्मी का लहज़ा अब भी नाराज़गी भरा था.

"ये रहमान का लड़का अली इमरान है.......संभव है तुम ने इसके बारे मे भी सुना होगा...."

"जी हाँ.....सुने हैं......ये सुरैया दीदी के भाई हैं ना...." उसने बुरा सा मूह बना कह कहा.

"अर्रे.....सत्यानाश हो...." इमरान बडबडाया.

"मैने सुरैया दीदी से ही इनके चर्चे सुने हैं....घर मे ही इन से कॉन खुश है...."

"सुरैया कॉन है?" डॉक्टर डावर ने पुछा.

"इन की बहन..."

"ओह्ह......इमरान मेरी ज़िंदगी ऐसी है कि मैं किसी से भी परिचित नहीं हूँ.......यहाँ तक कि अपने जिगरी दोस्तों के बच्चों तक से पहचान नहीं रखता. अब ये सिम्मी आती जाती रहती है तुम्हारे यहाँ और अक्सर सुना है तुम्हारे घर की लड़कियाँ भी यहाँ आती हैं...."

"बॅस ऐसी ही ज़िंदगी मेरी भी है. दो साल बाद अभी पिच्छले दिनों दोबारा घर गया था....." इमरान ने खुश होकर कहा. "मुझे ऐसी ज़िंदगी बहुत पसंद है....अरे माँ बाप तो बहुत मिल जाएँगे.....लेकिन बीता हुआ समय दुबारा नहीं मिल सकता...."

"देखा आप ने........ये ऐसे आदमी हैं." सिम्मी व्यंग से बोली.

"अब तुम लोग लडो मत......मैं वैसे ही बहुत परेशान हूँ...." डॉक्टर डावर ने कहा और इमरान से बोले....."हां.....तुम ने अभी क्या कहा था कि वो ज़िंदा है....?"

"और मैने ग़लत नहीं कहा था.......क्योंकि मैने आप दोनों की मौजूदगी मे ही उस से बात की थी......उसी समय जब मैं हंस रहा था और आप मुझे इस तरह घूर रहे थे जैसे मेरा दिमाग़ खराब हो गया हो.....और फिर उसके बाद मेरे एक साथी ने उसके जीवित होने की पुष्टि भी कर दी थी." फिर उसने थ्रेससिया के छीक्ने और उसके रफू-चक्कर होने की कहानी डॉक्टर डावर को सुना दी.

"मगर ये हुआ कैसे.....उसकी लाश तक अकड़ गयी थी....." डॉक्टर डावर ने हैरत से कहा.

"अर्रे.....वो थ्रेससिया बिंबोल बी ऑफ बोहीमिया है." इमरान ने एक ठंडी साँस लेकर कहा. और फिर उसने उसकी कयि घटनाए छेड़ दी.....इस समय उसे समझ मे नहीं आ रहा था कि उसे क्या करना चाहिए......इसलिए वो टाइम-पास केलिए शुक्राल की कहानी ले बैठा.....कि किस तरह थ्रेससिया और अलफ़ंसे के चक्कर मे पड़ने के बाद शुक्राल तक जा पहुचा.(*)

उन घटनाओ की कहानी इतनी रोचक थी कि डॉक्टर डावर जैसे व्यस्त आदमी भी आराम से एक सोफे पर लेट गये. उनका मूह हैरत से खुला हुआ था. सिम्मी भी कभी भयभीत और कभी उसकी आँखें चमकाने लगती.

अचानक इमरान ने डॉक्टर डावर को संबोधित करते हुए कहा....."आप को याद है ना कि तहखाना मे आप अपने पैरों के नीचे कुत्ते के पिल्ले की आवाज़ सुन कर उच्छल पड़े थे...."

"हां भाई..." डॉक्टर डावर चौंक कर बोले...."वो क्या था.....मुझे ऐसा लगा था जैसे मेरे पैरों के नीचे कोई कुत्ते का पिल्ला दब कर चीख उठा हो...."

"वो थ्रेससिया थी...."
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४७



"लेकिन ये कैसे संभव है....वो तो काफ़ी दूर थी...."

"ये भी एक आर्ट है डॉक्टर...."

"अंकल नहीं कह सकते...." सिम्मी बोल पड़ी...."मैं भी तुम्हारे डॅडी को अंकल कहती हूँ.....डॉक्टर....डॉक्टर....कितना बुरा लगता है...."

"नहीं....." इमरान ठंडी साँस लेकर बोला...."मैं अब अपने डॅडी को भी डॅडी नहीं कहता......क्यों कि कयि साल से किसी दूसरे डॅडी की तलाश मे हूँ......मगर अभी तक नहीं मिल सका."

"ये क्या बकवास शुरू कर दी तुम लोगों ने......हां इमरान फिर क्या हुआ?" डॉक्टर डावर ने ने क्रोधित स्वर मे कहा मगर लहजे मे बनावट थी.

"हां डॉक्टर......फिर जब हम थ्रेसससिया को लेकर शुक्राल से वापस आ रहे थे वो अपने उसी आर्ट का प्रदर्शन की धमकी देकर निकल गयी थी. हम दुर्गम रास्तों से गुज़र रहे थे. आप खुद सोचिए अगर वही कुत्ते का पिल्ला खच्चरों और टट्टू के पैरों के नीचे दब कर भी चीखना शुरू कर देते तो हम कहाँ होते. हज़ारों फीट की उँचाई से नीचे गिरने के बाद हमारा हलवा बन जाता. इस तरह वो निकल जाने मे कामयाब हो गयी थी. डॉक्टर वो दुनिया की सब से शातिर और चालाक औरत है. अब इसी बार देखिए.....वो प्राणायाम की मदद से निकल गयी. मगर आप विश्वास कीजिए कि मैं भी धोका खा गया था.

"आप वैसे भी मुझे कोई अकल्मंद आदमी नहीं लगते." सिम्मी जल कर बोली.

"ना लगता हुंगा..." इमरान ने दर्द भरे स्वर मे कहा...."वैसे क्या मैं पुच्छ सकता हूँ कि सुरैया से कब से जान पहचान है?"

"बहुत दिनों से."

"ओके...." इमरान सर हिला कर रह गया.

"क्यों.....क्या बात है?" डॉक्टर डावर ने चौंक कर पुछा.

"सुरैया इस परिवार मे एक ऐसी लड़की है जिस से शैतान तो बहुत साधारण चीज़ है इमरान भी पनाह माँगता है....." इमरान ने बड़े भोलेपन से कहा.

"ओके....ओके....वो भी तुम्हारी ही बहन है...." डॉक्टर हँसने लगे.

इमरान कुच्छ ना बोला....उसके होन्ट हिल रहे थे और आँखें फर्श पर थीं. ऐसा लग रहा था जैसे कोई कॅम बिलने वाली लेकिन चिडचिडी लड़की अकेलेपन मे बडबडा कर अपने दिल का बुखार निकाल रही हो.

"मगर डॉक्टर...." कुच्छ देर बाद उसने सर उठा कर कहा..."मुझे आपके व्यवहार पर हैरत है. आपका इतना ज़बरदस्त नुकसान हुआ है.....मतलब एक नहीं बल्कि कयि राज़ दूसरों तक पहुच गये होंगे......लेकिन मैने आपके चहरे पर परेशानी के भाव नहीं देखे. बस कुच्छ समय के लिए आप के चेहरे पर कष्ट दिखाई दिया.....लेकिन कुच्छ ही देर बाद आप इस तरह नॉर्मल हो जाते जैसे कोई बात ही ना हुई हो."

"ह्म्म...." डॉक्टर डावर मुस्कुराए.....और उनकी ये मुस्कुराहट बेजान भी नहीं थी. वो कुच्छ पल इमरान की आँखों मे देखते रहे फिर बोले...."मुझे इन बातों की परवाह कम होती है. अभी ऐसे ही सैकड़ों प्लांस मेरे दिमाग़ मे मौजूद हैं. इसलिए एक-दो के नष्ट हो जाने से मेरी थिंकिंग केपॅसिटी पर क्या प्रभाव पड़ सकता है. मेरे लिए क्या ये खुशी कम है कि मैं अपने दिमाग़ की महान उचाईयों से इन तुच्छ चोरों पर घृणा की निगाहें डालता हूँ. तुम इन बातों से मुझ घमंडी समझोगे......मगर मैं इसे घमंड नहीं समझता. वही कहता हूँ जो दूसरे मेरे लिए कहते हैं. मैने दुनिया को बहुत कुच्छ दिया है इमरान....."

तभी फोन की घंटी बजी......और इमरान उठ गया. दूसरी तरफ से बोलने वाला ब्लॅक-ज़ीरो था.

"क्वीन्स रोड वाली बिल्डिंग जिस मे हफ ड्रॅक रहता था शोलों मे घिरी हुई है. फाइयर ब्रिगेड अभी तक आग पर कंट्रोल नहीं पा सके हैं. लेकिन अजीब बात ये है कि उस इमारत से कोई भी बाहर नहीं निकला. फिरे ब्रिगेड के कुच्छ आदमी अंदर इसी लिए गये थे कि लोगों को बाहर निकालें लेकिन उन्हें अंदर कोई भी नहीं मिला."

"हफ ड्रॅक वहाँ मौजूद है?"

"नहीं कोई भी नहीं है. उसकी तलाश चल रही है. जहाँ जहाँ भी उसके मिलने की संभावना हो सकते थे.....खोजा गया लेकिन अभी तक कोई सुराग नहीं मिल सका."

"उसे तलाश करने की कोशिश करो....उसके दूसरे आदमियों पर तो तुम लोगों की निगाहें थी ही....इसलिए उन मे से जो भी जिस समय और जहाँ जिस हाल मे मिले उसे घेरो और हेड क्वॉर्टर पहुचा दो."

"ऑल राइट सर...." ब्लॅक ज़ीरो ने कहा और इमरान ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया. रिसीवर रख कर वो सिम्मी की तरफ मुड़ा.

"हां आप ने ये नहीं बताया कि उसने फोन पर आपको क्या कहा था."

"कुच्छ नहीं....बस वो मुझ से माफी माँग रही थी. कह रही थी कि अब तो तुम्हें हालात का पता चल ही चुका होगा. मगर ये सच है कि मुझे तुम से बहुत प्यार हो गया है. मैं नहीं चाहती कि तुम्हारे दिल मे मेरे प्रति किसी प्रकार का मैल रह जाए. मैं तुम्हें या तुम्हारे पापा को किसी प्रकार का नुकसान पहुचाए बिना वो चीज़ निकाल ले जाती जो मुझे चाहिए थी.....ओह्ह पापा....वो क्या चीज़ थी....."

वो चुप होकर डॉक्टर की तरफ देख कर उत्तर की प्रतीक्षा करने लगी.

"कुच्छ भी नहीं..." डॉक्टर ने आँखें बंद किए किए जवाब दिया. "तुम इन उलझनों मे मत पडो.....जाओ अब सो जाओ."

"अच्छा.....मैं नहीं पुछुन्गि पापा. मगर इस समय आपके निकट रहना चाहती हूँ....."

डॉक्टर कुच्छ ना बोले.

क्रमशः...................................
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ये कुच्छ उस शहर की बात नहीं थी......बल्कि उन घटनाओं से पूरे देश मे बेचैनी फैल गयी थी. लेकिन इसकी जानकारी किसी को नहीं थी कि डॉक्टर डावर की लॅबोरेटरी मे वो घटनाएँ क्यों घटीं. अर्थात डॉक्टर डावर की वो ख़तरनाक खोज अब भी राज़ ही मे थी. वैसे ये और बात है कि नीले उपग्रह और चमकदार लकीरों की चर्चा कयि देशों के न्यूज़ पेपर्स ने की थीं.

लेकिन उन देशों ने भी किसी नीले उपग्रह के अस्तित्व पर आश्चर्या प्रकट किया था....जो इन दिनों कृत्रिम उपग्रहों की दौड़ मे एक दूसरे को पिछे करना चाहते थे.

वो ज़माना भी अजीब था. कृत्रिम उपग्रहों की समास्सया 'कबूतर-बाज़ी' की तरह 'उपग्रह-बाज़ी' की सीमा मे प्रवेश कर गया था. लेकिन ये बात शांतिप्रिय लोगों केलिए अच्छा शगुन था. क्योंकि इंटरनॅशनल गुंडे अब एक दूसरे को युद्ध की धमकियाँ देने की जगह कृत्रिम उपग्रहों के क्षेत्र मे शक्ति प्रदर्शन कर रहे थे. लेकिन उन मे से अभी तक कोई भी हार नहीं माना था.

वो एक दूसरे को कहते फिरते थे कि 'ये रहा हमारा उपग्रह.......ये इतना भारी है और पृथ्वी से इतनी दूरी पर चक्कर लगा रहा है. कोई उस से बड़ा और उस से अधिक दूरी पर चक्कर लगाने वाला उपग्रह अंतरिक्ष मे भेज सको तो ठीक वरना इसे स्वीकार कर लो कि हम तुम से अधिक शक्तिशाली हैं.

प्रतिद्वन्दी देश इस से भी बड़ा उपग्रह छोड़ देता और फिर वही खिचा-तानी शुरू हो जाती. लेकिन कोई किसी से भी हार मानने को तैयार नहीं था.

अचानक एक दिन एक देश का उपग्रह अंतरिक्ष मे टुकड़े टुकड़े होकर बिखर गया. इस पर पूरी दुनिया मे तरह तरह के अनुमान लगाए जा रहे थे. लेकिन जानी पहचानी दुनिया मे केवल 2 व्यक्ति इस राज़ को जानते थे कि क्या हुआ. इमरान और डॉक्टर डावर. वो उपग्रह ठीक उसी जगह पर फटा था जहाँ उन दोनों ने नीले उपग्रह को चमकदार लकीरों का जाल बनाते देखा था.

डॉक्टर डावर की लॅबोरेटरी और और बंग्लो के आस पास अब भी मिलिटेरी का पहरा था. लेकिन उस रात से जब थ्रेससिया फरार हुई थी......अब तक कोई नयी घटना सामने नही आई थी. डॉक्टर डावर भी अक्सर चुप-चाप दिखाई देते. उनका अधिकतर समय अब बंगलो मे ही गुज़रता था. सिम्मी को भी इस पर बड़ी हैरत थी. अक्सर तो वो उस से कहते "बेबी.....ज़रा कैरम तो निकालो......खेलेंगे....."

और फिर वो सच मुच उसके साथ बिल्कुल बच्चों की तरह कॅरोम खेलना शुरू कर देते. सिम्मी केलिए उनका आज-कल का व्यवहार आश्चर्यजनक था. इस से पहले कभी वो अपनी बोद्धिक स्तर(लेवेल) से कभी नीचे नहीं आए थे.

आज कल उन्हें हर समय इमरान की तलाश भी रहती थी. मकसद इसके अलावा और कुच्छ नहीं होता था कि हँसने हँसाने मे टाइम पास किया जाए. मगर इमरान तो इन दिनों सिरे से गायब ही हो गया था. उसके लिए उन्होने कयि बार रहमान साहब को भी फोन किया था......लेकिन वो भी इमरान के बारे मे कुच्छ नहीं बता पाए थे.

आज तो वो दिन भर बंग्लो मे टहलते रहे थे या सिम्मी के साथ कभी ताश खेलते और कभी लुडो या कॅरोम. उन्हें इस बात का बहुत दुख था कि उनके सेक्रेटरी शार्ली ने उनके साथ बड़ा फ्रॉड किया था. उस रात से जब वो हैरत भरी घटनाएँ हुई थीं अब तक शार्ली दिखाई नहीं दिया था.

शाम होते ही उनके चेहरे पर इतनी अधिक बेज़ारी और उकताहट दिखाई देने लगी कि सिम्मी को पुच्छना ही पड़ा.

"हां बेबी मैं आज-कल बहुत अधिक उलझनों से ग्रस्त हूँ." उन्होने उत्तर दिया था.

"मुझे भी बताइए...."

"क्या बताउ......मेरी समझ मे नहीं आता कि क्या करूँ. काश मैं केवल एक लकडहारा होता."

"आप कैसी बातें कर रहे हैं पापा...!"

"मैं खुद भी समझता हूँ कि ये बेतुकी बातें हैं......मगर आदमी इतना मजबूर है कि...........कभी वो इतनी उँचाइयों को छुने लगता है जहाँ फरिश्तों को भी साँस रुकने लगे.......और कभी ऐसी गहराई मे गिरता है जहाँ खुद उसे अपनी अस्तित्व से इनकार कर देना पड़ता है......अर्थात वो खुद को पहचान नहीं पाता."

"क्या बच्चों जैसी बातें कर रहे हैं आप....?" वो दोनों ही इमरान की आवाज़ सुन कर चौंक पड़े. वो दरवाज़े मे इस तरह बुरा सा मुँह बनाए खड़ा था जैसे किसी बुद्धिमान व्यक्ति के मूह से कुच्छ मूर्खता-पूर्ण बातें सुनी हो.

"क्या मतलब....?" डॉक्टर डावर झल्ला कर खड़े हो गये. उन्हें शायद उसकी ये बेतुके ढंग से दखल देना अच्छा नहीं लगा था.

"म्म.....मतलब ये कि आप यहाँ बैठे हैं और वहाँ आप की लॅबोरेटरी पर सात विभिन्न रंगों के उपग्रह मंडरा रहे हैं."

"नहियईईन्न्न्न्...." डॉक्टर डावर के स्वर मे हैरत थी.

"हां....हां....मैं अभी दूरबीन से देख कर आ रहा हूँ. वो उसी जगह हैं जहाँ हम ने चमकदार लकीरों का जाल देखा था.....वो गोल घेरे के रूप मे लगातार चक्कर लगा रहे हैं...."

"ओह्ह...." वो बहुत तेज़ी से दरवाज़े से बाहर निकल गये.

इमरान कुच्छ पर मूर्खों की तरह मूह खोल कर मुस्कुराता रहा फिर बैठता हुआ बोला....."बड़ी उँची उँची बातें कर रहे थे. मगर तुम ने देखा कि किस प्रकार बच्चों की तरह दौड़ते हुए गये......हरे....लाल....नीले पीले उपग्रहों को देखने....."

"चुप रहिए...." सिम्मी बिगड़ गयी...."आप गधे हैं....."

"मुझे गुस्सा नहीं आएगा......मेरे दादी ने तो अक्सर मुझ को गुस्से मे गधे का बच्चा तक कह दिया है.......मगर मैने कभी बुरा नहीं माना......वैसे इसे अच्छी तरह समझ लो कि मनुष्य का सब से महान उपलब्धि मूर्खता है. मैं ये भी मानता हूँ कि मनुष्य को अब तक परम ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई..........जिस दिन प्राप्त कर लेगा वो मूर्ख हो जाएगा....और यही उसकी महानतम उपलब्धि होगी....."

सिम्मी ने मेज़ से पेपर-वेट उठा कर इमरान पर खींच मारा.

"गुड...." इमरान खुद को बचा कर उठता हुआ बोला....."मुझे इतनी ही देर यहाँ रुकना था......टाटा....."

फिर वो भी बाहर निकल गया.

* * * * *

डॉक्टर डावर के कदम तेज़ी से लॅबोरेटरी की तरफ उठ रहे थे. अंधेरा अच्छी तरह फैल चुका था....और समंदर की तरफ से आने वाली हवा सामान्य से अधिक भरी लग रही थी. उनके चारों तरफ सन्नाटा का सम्राज्य था. उन घटनाओं के बीते कयि दिन हो चुके थे. अब फ़ौजियों का पहरा केवल उन बिल्डिंग्स के आस पास था जहाँ डॉक्टर डावर के अनुसार इसकी ज़रूरत थी. लेकिन वो रास्ता तो एकदम वीरान ही था.....जिस पर वो चल रहे थे.

अचानक उन्होने किसी चीज़ से ठोकर खाई......और मूह के बल ज़मीन पर चले आए. फिर संभलने भी नहीं पाए थे कि दो-तीन आदमी उन पर टूट पड़े. एक हाथ उनके मूह पर पड़ा और मज़बूती से जमा रहा. फिर उनका गला भी घोंटा जाने लगा. वो इस तरह बेकाबू कर दिए गये कि हिलना भी कठिन था. धीरे धीरे उनका मस्तिष्क अंधकार मे डूबता चला गया......और वो बेहोश हो गये.
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और फिर जब उन्हें होश आया तब वो अंदाज़ा नहीं कर सके कि कितनी देर बेहोश रहे. वैसे उन्हें अंदाज़ करने का समय ही नहीं मिला था. क्योंकि होश आते ही उनकी नज़र सब से पहले अपने सेक्रेटरी शार्ली पर पड़ी......जो उन पर झुका हुआ था.

वो उठ बैठे और आँखें फाड़ फाड़ कर चारों तरफ देखने लगे. ये एक ट्रॅग्युलर रूम था. लेकिन सब तरफ से बंद. केवल एक तरफ एक छोटा सा दरवाज़ा था. छत भी साधारण कमरों की छतों से नीची थी और दीवारों पर सेमेंट का प्लास्टर नहीं था बल्कि वो किसी मेटल की लग रही थीं. या संभव है लकड़ी की रही हों....और उनकी पोलिश के कारण डॉक्टर सही अनुमान नहीं लगा पा रहे थे.

वहाँ शार्ली के अलावा चार और लोग भी मौजूद थे.

"मुझे तुम से ऐसी आशा नहीं थी." डॉक्टर डावर शार्ली को घूरते हुए बोले.

"आइ'म वेरी सॉरी डॉक्टर......मैं सच मुच बहुत दुखी हूँ कि मुझे ये सब करना पड़ा.......वैसे वास्तविकता ये है कि मैं कभी आपका वफ़ादार नहीं था. मैं तो अपने देश केलिए काम कर रहा था. लेकिन मुझे आप से बहुत अधिक प्रेम है. देखिए अगर हालात इतने नहीं उलझते......तो ना आप को यहाँ लाया जाता और ना मैं ही गायब होता. सब काम पहले की ही तरह चलता रहता."

"ढीठ.....और बेशरम हो तुम...." डॉक्टर डावर गरजे. "तुम इतनी दिलेरी से ये सब कह रहे हो......जैसे बहुत अच्छाई का काम किया हो...."

"यस सर श्योर....." शार्ली ने गंभीरता से कहा....."मुझे अपने उस कारनामे पर गर्व है....क्योंकि इस तरह मैने अपने देश की तरक्की मे हिस्सा लिया है. क्या मेरे देश-वासी इसे एक अच्छा और प्रशन्श्नीय काम नहीं मानेंगे?"

डॉक्टर डावर केवल दाँत पीस कर रह गये.

"देखिए डॉक्टर......आप इस शताब्दी के बहुत बड़े साइंटिस्ट्स मे से हैं....." शार्ली ने कहा..."लेकिन आपका देश आप से कोई लाभ नहीं उठा सकता. क्योंकि वो धनी देश नहीं है. आपके दिमाग़ मे जितनी स्कीम हैं.....सभी शानदार हैं. दुनिया को उन से लाभ मिलना चाहिए. ये आप पर दुनिया का हक़ बनता है. लेकिन आप अगर सही और आप के महत्व को जानने वाले हाथों मे ना पहुचे तो दुनिया आपकी खोजों से कोई लाभ हासिल नहीं कर पाएगी. इस लिए हम ने फ़ैसला किया है कि आप को पूरे सम्मान के साथ अपने देश मे ले जाएँ. मुझे विश्वास है कि आप जल्द ही हमारी सरकार के विग्यान एवं प्राद्योगिकी विभाग के सलाहकार नियुक्त कर दिए जाएँगे."

"तुम्हारा दिमाग़ तो नहीं खराब हो गया है? तुम मुझे मेरी मर्ज़ी के खिलाफ कहीं नहीं ले जा सकोगे."

"मैं आप को किसी काम केलिए मजबूर करना नहीं चाहूँगा. इस पनडुब्बी मे भी आप को अपना बॉस समझता हूँ."

"शार्ली.....इस का परिणाम अच्छा नहीं होगा..."

"बॉस...." शार्ली सम्मान के साथ सीने पर हाथ जोड़ कर बोला...."दो ही उपाए हैं.....या तो आप हमारे साथ चलिए......या फिर आप उस ब्लॅक-होल निर्माण करने वाले पदार्थ का फ़ॉर्मूला बता दीजिए.....जिसे मुझ से भी छुपाया था...."

"किस देश से संबंध है तुम्हारा....?"

"ये मैं तब बता दूँगा जब आप इन दोनों मे से कोई एक बात मानने पर तैयार हो जाएँ...."

"दोनों ही बेकार हैं...वैसे तुम लोग उस पदार्थ की थोड़ी सी मात्रा चुरा ले जाने मे सफल हो गये थे. उस पर प्रयोग करो....खुद ही फ़ॉर्मूला भी पा लोगे...."

"ऐसा हो नहीं सका.....मेरे देश के वैग्यानिको ने प्रयास तो किया था...."

"ये बहुत अच्छा हुआ......मैने भी अपना भंडार नष्ट कर दिया है. अब तुम्हें शीशे के उन पॉट्स मे साधारण पानी के सिवा कुच्छ नहीं मिलेगा. और तुम मुझ से वो फ़ॉर्मूला पुच्छ रहे हो? वो मेरे साथ ही क़बर मे जाएगा. दुनिया की कोई शक्ति भी मुझे उसका फ़ॉर्मूला बताने पर मजबूर नहीं कर सकेगी.....मूर्ख आदमी.....वो दुनिया का सब से विध्वंशक पदार्थ था. उसकी डिस्ट्रक्टिव पवर आटम और हाइड्रोजन बॉंब्स से भी काई गुना अधिक होगी."

"तुम बेकार अपना टाइम बर्बाद कर रहे हो." अचानक एक आदमी ने शार्ली से कहा. "अगर तुम इस पर टॉर्चर करा होता नहीं देख सकते तो यहाँ से चले जाओ. हम देख लेंगे...."

शार्ली कुच्छ ना बोला....वो चिंतित निगाहों से डॉक्टर डावर की तरफ देख रहा था.

डॉक्टर डावर अपनी जेबें टटोल रहे थे. अचानक उन्होने रिवॉल्वार निकाल लिया. इन दिनों वो हर समय जेब मे रिवॉल्वार डाले रहते थे. मगर उन्हें हैरत थी कि उन लोगों ने वो रिवॉल्वार उनकी जेब मे ही क्यों पड़ा रहने दिया.

उन्होने देखा कि वो लोग भयभीत या चकित होने की बजाए मुस्कुरा रहे थे.

"डॉक्टर, ये तीनों पंखे आप देख रहे हैं ना....." शार्ली ने छत की तरफ उंगली से इशारा करते हुए कहा...."ये भी आप ही का आविष्कार था. आप जानते हैं कि जैसे ही आप फाइयर करेंगे.....इन तीनों से तेज़ रौशनी फूटेगी.....और रिवॉल्वार से निकली गोली मोम से भी अधिक नर्म होकर हम मे से किसी के शरीर पर चिपक जाएगी. इसलिए अपनी गोली को व्यर्थ नष्ट मत कीजिए...."

डॉक्टर डावर ने एक लंबी साँस खींची.

"मैं आपको केवल 15 मिनट का समय दे सकता हूँ. आप फिर सोच लीजिए. उसके बाद मैं यहाँ से चला जाउन्गा.....क्योंकि मुझ से आपकी तकलीफ़ देखी नहीं जाएगी....ये चारों तकलीफ़ देने के स्पेशलिस्ट हैं."

डॉक्टर डावर ने अपना मूह मज़बूती से बंद कर लिया था.

15 मिनट बीत गये. फिर शार्ली बोला..."मैं आपका फ़ैसला सुनना चाहता हूँ...."

"मैं तुम्हें फ़ॉर्मूला नहीं बताउन्गा.....और ना तुम मुझे अपने साथ ले जा सकोगे....वैसे हो सकता है कि तुम मेरी लाश यहीं कहीं फेंक जाओ."

"मैं जा रहा हूँ डॉक्टर मुझे बहुत दुख है."

शार्ली दरवाज़े की तरफ बढ़ गया.....लेकिन दरवाज़े मे पैर रखते ही उसके मुँह से हल्की सी कराह निकली और वो उच्छल कर अपने एक साथी पर आ पड़ा.

डॉक्टर डावर भी मूड कर दरवाज़े की तरफ देखने लगे. वहाँ उन्हें एक आदमी दिखाई दिया जो सर से पैर तक गोताखोरी की ड्रेस मे छुपा हुआ था. फिर उन्होने उसका चेहरा खुलते हुए देखा. उसने ड्रेस का उपरी भाग उलट कर पिछे डाल दिया.

"इमरांणन्न्...." डॉक्टर डावर की आवाज़ मे हज़ारों खुशियाँ और ठहाके गूँज रहे थे.

"आओ तुम भी आओ दोस्त...." उन मे से एक आदमी ने मुस्कुरा कर कहा...."मुझे बहुत देर मे पता चल सका कि सारे झंझट की जड़ तुम ही हो....."

"हान मिस्टर हफ ड्रॅक......." इमरान ने गंभीरता से उत्तर दिया. "मुझे भी आशा नहीं थी कि यहीं तुम से भी मुलाकात हो जाएगी. अच्छा अब तुम सब अपने हाथ उपर उठा लो."

शार्ली ने ठहाका लगाया. हफ ड्रॅक भी हँसने लगा. फिर हफ ड्रॅक बोला.....

"डॉक्टर के हाथ मे भी तुम रिवॉल्वार देख ही रहे होगे. लेकिन उन से पुछो कि ये कितने बेबस हैं...."

"रिवॉल्वार.......हुहह....." इमरान बुरा सा मुँह बना कर बोला...."अर्रे मैं केवल तमाचे मार मार कर तुम सबों को ख़तम कर सकता हूँ...."

"पकड़ लो इसे...." अचानक हफ ड्रॅक गुर्राया.......और एक आदमी इमरान की तरफ बढ़ा.
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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Jemsbond
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Re: प्यासा समुन्दर

Post by Jemsbond »

"पीछे हटो...." इमरान ने एक काली सी चीज़ आगे कर दी. और ये काली चीज़ रब्बर के पाइप का एक सिरा था.

"इमरान.....क्या मूर्खता फैला रहे हो....?" डॉक्टर डावर भर्राई हुई आवाज़ मे बोले. "अकल से काम लो."

तभी रब्बर के पाइप से पानी की धार निकली और वो उच्छल कर पिछे हट गया. धार बंद हो गयी.

"ओह्ह.....पकडो...." हफ ड्रॅक दाँत पीस कर चीखा.

वो आदमी फिर झपटा. पाइप से धार फिर निकली. लेकिन इस बार धार के भीतर लाल रंग की बिजलियाँ सी कोंध रही थीं. जैसे ही धार आदमी के शरीर पर पड़ी उसके चीथड़े उड़ कर सारे कमरे मे बिखर गये. कुच्छ लोतड़े उन लोगों से भी टकराए.

धार फिर बंद हो गयी. अब कमरे मे एक डरावनी सी खामोशी छा गयी थी. डॉक्टर डावर तो शायद चेतना शून्य से होकर रह गये थे.

"अब तुम सब......" इमरान मुस्कुरा कर बोला...."मुझे दुनिया का सब से बड़ा साइंटिस्ट मान लो. मेरी रेडी मेड खोपड़ी हर समय चालू रहती है.......और मैं चुटकी बजाते ऐसे ऐसे आविष्कार करता हूँ कि.......ऊपप्स्सस.....क्या तुम सब अब भी अपने हाथ उपर नहीं उठाओगे?"

डॉक्टर डावर कुच्छ ऐसे तल्लीन हो गये थे कि सब के साथ उन्होने भी अपने हाथ उपर उठा दिए.

"शार्ली....बेटा...." इमरान ने मुस्कुरा कर कहा....."अब ये सुखमय कर्तव्य भी तुम ही निभाओ.....अपने तीनो साथियों के हाथ पैर बाँध दो. क्यों कि मैं इनका कीमा बनाना पसंद नहीं करता. ये केवल एक नमूना दिखाया था......"

"ये लो.....ये डोर भी अपने साथ ही लाया था....." इमरान ने भीगी हुई डोर का गोला बाएँ हाथ से उसकी तरफ उच्छाल दिया.

"चलो जल्दी करो....वरना मुझे तुम सब पर थोड़ी सी भी दया नहीं आएगी...."

शार्ली ने झुक कर गोला उठाया. उनके चेहरों से ये साफ झलक रहा था कि वो सब बिल्कुल निराश हो चुके हैं.

शार्ली ने उन से कुच्छ कहा. लेकिन इमरान उनका मतलब नहीं समझ सका. उन तीनो ने उसका उत्तर भी दिया. लेकिन उत्तर देते समय उनके चेहरे और भी अधिक सियाह पड़ गये. फिर इमरान ने उन्हें ज़मीन पर लेट'ते देखा. शार्ली किसी ऐसी विधवा की तरह दुखी लग रहा था जिसका इकलौता जवान बेटा मर गया हो. वो एक एक के हाथ पैर बाँधता रहा. फिर वो उनकी तरफ मुड़ा. उसका चेहरा अत्यंत भयानक हो गया था. आँखों से नफ़रत का ज्वालामुखी फूट रहा था. तभी वो गुर्रा कर बोला...."तुम हमें ज़िंदा नहीं ले जा सकोगे...."

"क्या तुम्हें पता है कि थ्रेससिया किस तरह का फ्रॉड कर के निकल गयी थी?" इमरान ने पुछा.

"मैं जानता हूँ..."

"तो अब अधिक फ्रॉड नहीं चलेगा. मैं तुम्हारी लाशें दफ़न करा के चालीस दिन तक तुम्हारी क़बरों पर धुनि रमाउन्गा. और फिर देखूँगा कि 'प्राणायाम' किस चिड़िया का नाम है....."

"हम सच मुच अपने देश पर बलिदान हो रहे हैं." शार्ली बोला. हमें मेडम थ्रेससिया की तरह वो आर्ट नहीं आता. ये देखो......ये ज़हरीली सुई उन तीनो को समाप्त कर चुकी है........और अब मैं भी......"

"तुम ऐसा नहीं कर सकोगे...."

"मुझे कॉन रोकेगा...."

"मैं....." इमरान बोला और साथ ही रब्बर के पाइप से पानी की धार निकल कर शार्ली के चेहरे पर पड़ी. ये उसके लिए अप्रत्याशित था. इसलिए वो बोखला कर आगे की तरफ झुक गया.....उसने अपने दोनों हाथों से अपना चहरा ढक लिया. ऐसा करते समय सुई उसके हाथों से गिर गयी होगी.....यही सोच कर इमरान ने अगले ही पल उस पर छलान्ग लगा दी......लेकिन शार्ली उस से पहले ही गिर चुका था. इमरान का जिस्म एक बेजान शरीर से टकराया. शार्ली भी ख़तम हो चुका था.

डॉक्टर डावर भी उन आदमियों के शरीर टटोलते फिर रहे थे.

"बड़ा धोका खाया डॉक्टर....." इमरान भर्राई हुई आवाज़ मे बोला. ये 'प्राणायाम नहीं बल्कि सच मुच ज़हर से मर गये हैं. देखिए इनके शरीर नीले पड़ गये हैं. इसी लिए वो बेहिचक तीनो को बाँध रहा था. इस तरह उसे तीनों को ख़तम करने का मौका मिल गया. और फिर उसने खुद को भी मार डाला. ये लोग नहीं बताना चाहते कि ये किस देश के हैं. अच्छा डॉक्टर अभी अब चुप चाप यहाँ से खिसक लीजिए. समंदर बहुत विशाल है....और मुझे विश्वास है कि समंदर ही उनकी विचित्र तरक्की का एक मात्र सोर्स है."

डॉक्टर डावर को भी गोताखोरी की ड्रेस पहना कर यहाँ लाया गया था. वो अब तक उसी ड्रेस मे थे.

इमरान ने बहुत तेज़ी से अपना और उन का ड्रेस ठीक ठाक किया.....फिर वो उस पनडुब्बी से निकल कर पानी मे आ गये. ये पनडुब्बी बनावट के हिसाब से साधारण पनडुब्बियों से अलग था. पानी के भीतर भी इसके दरवाज़े खोले जा सकते थे लेकिन ऐसा करते समय पानी की एक बूँद अंदर नहीं जा सकती थी.

अचानक इमरान के ड्रेस मे लगे हुए हेड-फोन से थ्रेससिया की आवाज़ आई...जो कह रही थी....."जाओ जाओ इमरान....तुम से खुदा ही समझे.....तुम ने बड़ा ज़ुल्म किया है.....मैने तुम्हारी एक एक हरकत अपनी आँखों से देखी है. तुम्हारे कारण उन आदमियों की कीमती जाने गयीं.....जो सही अर्थ मे मेरे देश की बेहतरीन पूंजी थे. मैं दिल के हाथों मजबूर हूँ. वरना तुम अपनी हरकतों का परिणाम देखते. तुम अभी पानी मे हो.....सतह पर नहीं उभरे हो.....मैं पलक झपकते तुम्हें ख़तम कर सकती हूँ. जाओ......अब मैं चाहती हूँ कि फिर कभी तुम से भेंट ना हो. जाओ.....तुम्हारी शकल देखते ही मैं बेबस हो जाती हूँ.....मेरा हाथ तुम पर नहीं उठता......और मैं सोचती हूँ कि मैं कुतिया हूँ. मुझे एक दिन उन चारों आत्माओं से शर्मिंदा होना पड़ेगा. जिन्होने मेरे देखते ही देखते अपनी जाने कुर्बान कर दी. जाओ निकलो.....जल्दी सतह पर उभरो.....कहीं मैं अपना फ़ैसला बदल ना लूँ.......तुम बोलते क्यों नहीं.....बोलो...."

इमरान चुप ही रहा. वो थ्रेससिया की बातों मे नहीं आ सकता था. उसने सोचा संभव है ये भी उसकी चाल हो सकती है. शायद उसके बोलते ही वो उस जगह का लोकेशन जान जाए जहाँ इस समय दोनों हैं. हो सकता है वो इसी लिए उसको संबोधित कर रही हो.

कुच्छ देर बाद वो सतह से बाहर निकल आए.
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