प्यासा समुन्दर --कॉम्प्लीट हिन्दी नॉवल

Post Reply
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: प्यासा समुन्दर

Post by Jemsbond »

अब उन की आँखें बंद हो गयी थीं.....और वो गहरी साँसें ले रहे थे. कुच्छ देर बाद उन्होने कमज़ोर आवाज़ मे कहा....."मुझे नीचे ले चलो..."

"आप पहले ही से उसे देख चुके थे...." इमरान ने धीरे से कहा...."फिर मेरी बात मे ऐसी कॉन सी चीज़ आपको गैर अप्रत्याशित लगी....?"

"क्या तुम्हें विश्वास है कि वो गतिशील नीला विंदु फॅट गया था...." डॉक्टर डॉवर ने हान्फते हुए पुछा.

"मुझे विश्वास है.....वो किसी सॉलिड चीज़ की तरह फॅट का बिखर गया था...."

"मैं अब कुच्छ नहीं रहा इमरान...." उन्होने कमज़ोर सी आवाज़ मे कहा. "मेरी खोज मुझ तक ही सीमित नहीं रही....कोई दूसरा भी या तो पहले से ही इस पर काम करता रहा है.......ये मेरा राज़ किसी ना किसी प्रकार उस तक पहुच गया है...."

"लेकिन वो खोज क्या थी? और इस समय जो कुच्छ मैने देखा उसका इस उस से क्या क्या संबंध?"

"वो नीला विंदु किसी का कृत्रिम उपग्रह था. उस कलर का पहला उपग्रह मेरी निगाह से गुज़रा है..वो चमकीली लकीरें उसी उपग्रह ने बनाई थीं.......और फिर उन्हीं लकीरों ने उसे तबाह भी कर दिया. वो रेखाएँ......इमरान......अब फिर से देखो....क्या अब भी वो वहाँ हैं?"

इमरान टेलिस्कोप के निकट आया और उसे 75° के आंगल पर लाकर उसने चारों तरफ निगाह दौड़ाई......लेकिन चमकीली रेखाएँ उसे कहीं दिखाई नहीं दी.

"जी नहीं........अब वो लकीरें नहीं दिखाई देतीं." उसने कहा.

"अच्छा ठहरो.......मुझे भी देखने दो...."

इमरान टेलिस्कोप के पास से हट गया. डॉक्टर डावर कुच्छ देर तक टेलिस्कोप के पास रहे फिर वो भी हट'ते हुए बोले....."हां...ठीक है. अब कुच्छ भी नज़र नहीं आता. तुम्हारी समझ से वो उपग्रह पृथ्वी से कितनी दूरी पर रहा होगा?"

"मुझे इसका कोई अनुभव नहीं है सर...."

"ये उपग्रह 25-26 किमी से अधिक दूर नहीं था."

"मगर मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे हज़ारो किलोमीटर की दूरी पर हो."

"ओह्हो.....तुम क्या.....बड़े से बड़ा स्पेशलिस्ट भी आजकल धोका खा रहे हैं. मगर मेरी टेलिस्कोप कभी ग़लत बात नहीं बताती. उसको मूव कराने वाले मेकॅनिसम से एक डिस्टेन्स-मीटर भी अटॅच्ड है. ये डिस्टेन्स मीटर भी मेरी अपनी आविष्कार है. इसने आज तक कभी कोई ग़लत जानकारी नहीं दी. अच्छा इमरान मुझे संतुष्ट हो लेने दो. तुम यहीं इसी टेलिस्कोप पर रहो......मैं नीचे जा रहा हूँ. जहाँ वो रेखाएँ तुम ने देखी थीं......टेलिस्कोप ठीक उसी आंगल पर है. इसकी पोज़िशन मे चेंजिंग मत करना. अब मैं उन लकीरों की तरफ अपना दूर-मार रॉकेट फेकुंगा.....जो अभी टेस्ट पीरियड मे है. मैं संतुष्ट होना चाहता हूँ......माइ गॉड......अगर अब भी मेरी शंकाओं की पुष्टि हुई तो मैं कहीं का नहीं रहूँगा."

"मगर अब वो रेखाएँ हैं कहाँ?" इमरान ने हैरत से कहा.

"यही तो देखना है कि वो रेखाएँ अब भी मौजूद हैं या नहीं. अगर मौजूद हैं तो ये समझ लो कि मेरी खोज अब राज़ नहीं रही. मैं रॉकेट फेकने जा रहा हूँ. तुम एक सेकेंड केलिए भी टेलिस्कोप मत छोड़ना."

इमरान ने सर हिला कर सहमति जताई. फिर वो दूरबीन की तरफ आकर्षित हो गया.

डॉक्टर डावर के कहने के अनुसार टेलिस्कोप की दिशा ठीक रेखाओं वाले जाल की तरफ थी......इसलिए इमरान अंधेरे मे आँख फाड़ता रहा......कि शायद वो चमकदार जाल फिर उसे दिखाई देने लगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

लगभग 10 मिनिट बाद डॉक्टर का छोड़ा हुआ रॉकेट टेलिस्कोप की सीध मे दिखाई दिया. वो अपने पिच्छले हिस्से से चिंगारियाँ उगलता हुआ उपर उठता जा रहा था. उसकी रफ़्तार बहुत तेज़ थी. कुच्छ ही देर मे वो एक अकेला चमकदार विंदु दिखाई देने लगा. और तब अचानक इमरान ने उस विंदु को भी बिल्कुल उसी तरह फॅट'ते देखा जैसे कुच्छ देर पहले नीले विंदु को देखा था. उस ने एक लंबी साँस ली. अब फिर सब तरफ अंधेरा ही अंधेरा था.

अचानक इमरान उच्छल पड़ा. और फिर उसे अपने पागलपन पर हँसी आ गयी. क्योंकि आवाज़ उस फोन के रिंग की थी जिसे इमरान ने अनदेखी कर दिया था. ये बाई तरफ लकड़ी के एक ब्रॅकेट पर रखा हुआ था. इमरान ने रिसीवर उठा लिया.

"हेलो.....इमरान......क्या रहा?" दूसरी तरफ से डॉक्टर की आवाज़ आई.

"आपका रॉकेट भी फॅट गया..."

"अच्छा.....तुम रूम नंबर 11 मे आ जाओ." डॉक्टर की आवाज़ काँप रही थी.

इमरान ने रिसीवर रख दिया......और नीचे जाने केलिए सीढ़ियाँ तय करने लगा. डॉक्टर की लब की जादुई फ़िज़ा इमरान जैसे व्यक्ति को भी चकरा देने केलिए काफ़ी थी.

वो रूम नंबर 11 मे आया. ये डॉक्टर का रेस्ट रूम था. उसने डॉक्टर को एक ईज़ी चेर मे पड़े देखा. वो बरसों के बीमार लग रहे थे.

"डॉक्टर.......मुझे इन सारी चीज़ों से अधिक हैरत-अंगेज़ आपकी आप की परेशानी लग रही है..." इमरान ने कहा.

"तुम नहीं समझ सकते." डॉक्टर ने भर्राई हुई आवाज़ मे कहा. "वो लकीरें अब भी वहीं मौजूद हैं. और ना जाने कब तक रहें. वैसे अब उन लकीरों मे चमक बाकी नहीं रही. वो अब धोके की टट्टी हैं. अगर तुम उतनी उँचाई पर फ्लाइट करने वाले किसी जहाज़ मे बैठ कर उन लकीरों की तरफ जाओ तो सही सलामत वापस नहीं आ सकोगे. जहाज़ के परखच्चे उड़ जाएँगे."

"क्यों...?" इमरान ने हैरत प्रकट की.

"वो एक ऐसा ख़तरनाक पदार्थ है जो वायुमंडल मे अपने वॉल्यूम के बराबर वाक्कुम बना लेता है जिसे तुम ब्लॅक-होल कह सकते हो.......और ये ब्लॅक-होल हज़ारो साल तक वैसे ही कायम रह सकता है. जो चीज़ भी इस ब्लॅक-होल मे पहुचि उसके टुकड़े हो जाएँगे. तुम ने जो चमकदार लकीरें देखी थीं वो वास्तव मे रेखाओं के रूप मे ब्लॅक-होल्स थे. जब ये पदार्थ ऑक्सिजन से टकराता है तब इस मे चमक सी पैदा हो जाती है और ये चमक ही वास्तव मे ब्लॅक-होल बनाने की प्रोसेस है. कुच्छ समय बाद चमक गायब हो जाती है और ब्लॅक-होल्स बाकी रह जाते हैं. मगर देखो इमरान तुम इन सब बातों को गुप्त ही रखोगे. हो सकता है कि मेरी या किसी दूसरे की भी ये डिस्कवरी चर्चा मे नहीं आने पाए. क्लियर है कि ये पदार्थ इस समय जिसके क़ब्ज़े मे है वो भी इसे राज़ ही मे रखने की कोशिश करेगा."
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: प्यासा समुन्दर

Post by Jemsbond »

३७
इमरान कुच्छ ना बोला......वो बहुत ध्यान से डॉक्टर डावर की तरफ देख रहा था. कुच्छ सोच कर वो बोला...."उस पदार्थ को संभाल कर रखना अत्यंत कठिन काम होगा..."

"निश्चित रूप से.....उसे तुम केवल शीशे ही मे बंद रख सकोगे. लेकिन ये आवश्यक है कि शीशे कि उस बर्तन मे पहले ही से वाक्कुम पैदा कर दी जाए. अर्थात उस मे किसी प्रकार की गॅस ना हो.....विशेष रूप से ऑक्सिजन का. लेकिन ऑक्सिजन हवा मे भी मौजूद है.....इसलिए बहुत अधिक सावधान रहना पड़ता है. मैं समुद्र से अटॉमिक एनर्जी प्राप्त करने की कोशिश कर रहा था. बस संयोग से ये चीज़ हाथ लग गयी."

"बहुत से देश समुद्र से अटॉमिक एनर्जी हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं....शायद वो भी इस खोज को पा सकते हैं...."

"ज़रूरी नहीं है. कार्य-विधि बहुत से ऐसे परिवर्तन कर देता है जिनके परिणाम एकदम अलग होते हैं.....इसलिए निश्चित रूप से ये नहीं कहा जा सकता कि हर एक्सपेरिमेंट करने वाला इस खोज के स्टेज से ज़रूर गुज़रेगा."

"लेकिन सर......क्या संभव नहीं है कि कोई आप ही की खोज से लाभ उठा रहा हो..."

"इंपॉसिबल.." डॉक्टर डावर बिल्कुल दीवानों की तरह हँसे...."कोई नहीं जानता कि मेरा भंडार कहाँ है......कोई नहीं......कयामत तक नहीं जान सकता..."

"वो जो सुनहरे स्पंज से ट्रांसमीटर का काम ले सकें.......या प्लास्टिक के ऐसे बच्चे बना सके जो बिल्कुल ज़िंदा लगे और उन से भी ट्रांसमेटेर का काम लिया जा सके.....ऐसे लोगों के बारे मे आप को किसी ग़लत-फ़हमी का शिकार नहीं रहना चाहिए."

"नहीं.....किसी की सोच मे भी वो जगह नहीं आ सकेगी..."

"आप मुझे भी वो जगह नहीं बताना चाहते?"

"नहीं...."

"अच्छा तो फिर इसे लिख लीजिए कि आप का भंडार सॉफ हो चुका है. यही कारण है कि उन लोगों ने अपनी गतिविधि अभी बंद की हुई है........और अब लब की तरफ आते भी नहीं."

"डॉक्टर डावर सीधे होकर बैठ गये......और इमरान को इस तरह घूर्ने लगे जैसे खुद इमरान ही ने भंडार सॉफ कर दिया हो.

"तुम क्यँ बेकार मे मुझे उलझन मे डाल रहे हो......बोलो." वो आँखें निकाल कर गुर्राए.

"मैं आप से अपनी आशंका प्रकट कर रहा हूँ........वरना मुझे क्या. वैसे मैं ये कभी नहीं चाहूँगा कि मेरे देश का कीमती पूंजी किसी के हाथ लग जाए."

"उठो....अगर ये सच हुई तो......" डॉक्टर डावर खड़े हो गये. उनकी आवाज़ फिर से गले मे फस्ने लगी थी. "अगर ये बात सच हुई तो इस शताब्दी की सब से बड़ी ट्रॅजिडी होगी.....और शायद फिर मैं जीवित नहीं रह सकूँ....मेरी ज़िंदगी का सब से बड़ा काम मैने यही किया था.....इसका सही उपयोग ढूंड निकालने के बाद मैं इसे सरकार के हवाले कर देता...."

"इस से बड़ा उपयोग क्या होगा डॉक्टर कि ये हमें दूर से मार करने वाले बेलिस्टिक रॉकेट्स से सुरक्षित रख सकेगी."

"देखो इमरान.....युद्ध को होने से कोई रोक नहीं पाता...." डॉक्टर ने सर हिला कर कहा...."लेकिन इस से दुनिया ख़त्म नहीं होगी. लोग युद्ध के बाद भी ज़िंदा रहते हैं. फिर हमेशा केलिए अपने वायुमंडल को क्यों बर्बाद कर दिया जाए. वर्तमान रूप मे तो ये पदार्थ ऐसे ही है कि इसके द्वारा बनाई गयी ब्लॅक-होल्स हज़ारों साल तक मौजूद रहेंगी. हो सकता है कि किसी प्रकार मैं इसके प्रभाव को टेंपोररी बनाने मे सफल हो जाउ. इसी ख़तरे को सोच कर मैं इसे अभी तक सरकार की जानकारी मे नहीं लाया था. मेरा काम तो तभी पूरा होता जब मैं इसके प्रभाव की अवधि को कम करने मे कामयाब हो जाता और इसका कोई दूसरा कन्स्ट्रक्टिव यूज़ भी ढूँढ लेता.......एनीवे चलो......मैं देखूँगा कि तुम्हारी शंकाएँ कहाँ तक सही हैं."

डॉक्टर दरवाज़े की तरफ बढ़ गये. इमरान उनके पिछे चल रहा था. डॉक्टर डावर अपने स्टाफ को कुच्छ आवश्यक निर्देश दे कर लब से बाहर निकल आए. लेकिन इमरान ने महसूस किया कि वो खुद को नॉर्मल रखने की कोशिश कर रहे हैं. स्टाफ से बातें करते समय उनकी आवाज़ मे ना तो पहले जैसी कपकापाहट थी और ना कमज़ोरी. उन्होने अपने चेहरे को फ्रेश बनाने की काफ़ी कोशिश की थी. इमरान का ख़याल था कि उनके स्टाफ ने उन मे किसी प्रकार का मानसिक दबाब नहीं महसूस किया होगा.

बाहर अंधेरा था. इमरान को खुले आसमान के नीचे हल्की ठंडक बहुत भली लगी थी. वो पैदल ही चलते रहे. डॉक्टर डावर का रुख़ अपने बंग्लो की तरफ था.

इमरान इस से पहले भी एक-दो बार अकेला उनके बंग्लो की तरफ जा चुका था......और उसे पता था कि उनकी लड़की सिम्मी वहाँ अकेली रहती है. उसने एक दो बार सिम्मी से बात भी की थी......और इस नतीजे पर पहुचा था कि सिम्मी एक सीधी सादी और सॉफ दिल की लड़की है.

"आप तो शायद बंग्लो की तरफ जा रहे हैं....!" इमरान ने कहा.

"हां...."

"मगर आप अपना कीमती पदार्थ का भंडार देखने का निश्चय रखते थे..."

"वो वहीं है..." डॉक्टर की आवाज़ धीमी थी.

"ओह्ह...." इमरान चलते चलते रुक गया.

"क्यों......क्या हुआ?"

"कुच्छ भी नहीं.......चलिए...." इमरान आगे बढ़ता हुआ बोला. "इस बात पर मुझे हैरत हुई थी कि वो वहीं है."

"तुम्हें हैरत नहीं होनी चाहिए....जब तक वो शीशे मे क़ैद है तब तक उस से कोई ख़तरा नहीं.....मैने ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि उसमे कोई छेड़ छाड़ ना हो..."

"सररर.....आप कहाँ हैं.....मैं ये निवेदन कर रहा था कि सुपुत्री वहाँ अकेली रहती हैं......और कोई ऐसी व्यवस्था भी नहीं है कि मकान की निगरानी हो सके."

"इस से कोई अंतर नहीं पड़ता....वो भंडार ऐसे तहखानों मे हैं जहाँ तक किसी का पहुचना अत्यंत कठिन.....बल्कि असंभव समझो."
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: प्यासा समुन्दर

Post by Jemsbond »

३८

"क्या वो सारे तहख़ाने आप ने खुद ही बनाए थे?"

"नहीं....मज़दूरों ने बनाए थे. मगर ये उस ज़माने की बात है जब इस इलाक़े मे केवल यही एक

इमारत थी और कोई नहीं जानता था कि मैं एक साइंटिस्ट हूँ.......और ये कि कभी मेरे कारण यहाँ

इतनी आबादी हो जाएगी. उस समय इतना बड़ा रिसर्च सेंटर एस्टॅब्लिश करने की कल्पना भी मेरे

दिमाग़ मे नहीं थी. रहा तहखाना तो मुझे तहखानों का शौक हमेशा से रहा है. और मैने

अपने तहख़ाने ससिंटिफिक ढंग से तैयार करवाए हैं. तुम ये नहीं महसूस करोगे कि तहख़ाने

मे हो."

वो चलते रहे. रात सायँ सायँ कर रही थी.......और समंदर की तरफ से आने वाली नमक

मिश्रित ठंडी हवाएँ एक अजीब सा वातावरण पैदा कर रही थीं.

"अच्छा......" इमरान ने धीरे से पुछा "क्या वो पदार्थ आप ने अकेले वहाँ ट्रान्स्फर किया था?"

"बिल्कुल अकेले.......किसी को भी नहीं पता कि भंडार कहाँ होगा. मैने अपनी अनगिनत रातें जाग कर

गुज़ार दी हैं........और सामान ढोने वाले मज़दूरों की तरह काम किया है. केवल इसलिए कि मैं

उस खोज को गुप्त रख सकूँ. तहखानों मे ऐसी जगह भी मैने ही बनाई थी जहाँ उसका भंडार

है."

वो बंग्लो की कॉंपाउंड मे प्रवेश किए. किसी किसी खिड़की मे रौशनी दिखाई दे रही थी. मेन गेट

बंद था. डॉक्टर ने कॉल बेल का बटन दबाया. कुच्छ देर बाद एक नौकर ने गेट खोला.......और

अनएक्सपेक्टेड डॉक्टर को सामने देख कर कुच्छ बौखला गया.

"क्या बेबी जाग रही है?" डॉक्टर डावर ने पुछा.

"जी हां.....सर..." नौकर एक तरफ हट'ता हुआ बोला.

"उसे स्टडी मे भेजो. कहना चाभियों का गुच्छा लेती आए...." डॉक्टर डावर ने स्टडी की तरफ बढ़ते

हुए हुए कहा. नौकर आगे चला गया.

वो दोनों स्टडी मे आए......और इमरान डॉक्टर डावर के इशारे पर एक तरफ बैठ गया. कुच्छ देर बाद

सिम्मी स्टडी मे आई.

"ओह्ह....पापा आप.....बिल्कुल अचानक..." वो घबराई हुई सी थी.

"क्यों...?" डॉक्टर ने उसे घूर कर कहा.

"सीसी...कुच्छ नहीं......कुच्छ भी नहीं. अच्छा आप अचानक नहीं आए.....?"

"हां....आया हूँ.......चाभियाँ..."

"चाभियाँ......इस समय क्या होंगी?"

"बेबी....तुम जानती हो आजकल मैं कितना व्यस्त रहता हूँ. लेकिन कुच्छ दिनों बाद मेरे पास समय ही

समय रहेगा. फिर तुम हर बात पर मुझ से बहस कर लेना."

"चाभियाँ तो मैं नहीं लाई...."

"लाओ.....मुझे तहख़ाने खोलने हैं..."

"त्त....तहख़ाने....!!" सिम्मी हक्लाई. वो कुच्छ व्याकुल सी लगने लगी थी.

"हां.....जल्दी करो...."

इमरान बहुत गौर से सिम्मी को देख रहा था. उसने उसके चेहरे पर भावनाओं के उतार चढ़ाव को

महसूस किया....और मूर्खों की तरह पलकें झपकाने लगा.

"मैं चाभियाँ लाती हूँ...." सिम्मी जल्दी से बोली...."अभी एक मिनट मे आप यहीं रुकिये मैं तुरंत

आई......तुरंत..."

वो दौड़ती हुई चली गयी.......और डॉक्टर डावर हँसने लगे.

"इसका बचपन अभी तक नहीं गया इमरान..." उन्होने कहा...."वो बच्चे जो माँ की ममता के बिना

रहते हैं.....कितने अजीब होते हैं...."

"उठिए...." इमरान उठता हुआ बोला.

"क्यों.....क्या मतलब?"

"मैने अपने बाल अंधेरे मे नहीं काले किए हैं. जल्दी कीजिए.......वरना आपको जीवन भर

पछतावा रहेगा...."

"कुच्छ कहोगे भी....." डॉक्टर डावर झुंजला गये.

"तहख़ाने की तरफ चलिए......जल्दी..."

"क्यों...?"

"डॉक्टर.....!!" अचानक इमरान का चेहरा भयानक हो गया.

"सीसी....क्या बेहुदगि है....!"

"उठिए....." इमरान ने रिवॉल्वार निकाल लिया.....और उसका निशाना डॉक्टर के सीने की तरफ था. डॉक्टर डावर

उच्छल कर खड़े हो गये.

"मैं नहीं जानता था कि तुम फ्रॉड हो...." उन्होने दाँत पीस कर कहा.

"मैं ट्रॅगर दबा दूँगा.....वरना...." इमरान ने दरवाज़े की तरफ इशारा किया.

डॉक्टर डावर ने अपने दोनों हाथ उठा दिए थे. वो इस तरह चल रहे थे जैसे कोई सच की राह पर

चलने के अपराध मे फाँसी के तख्ते पर जा रहा हो. बेपरवाह....ज़मीन की छाति पर धमक

पैदा करता हुआ......गर्व से सीना ताने...

और फिर अचानक चलते चलते वो रुक गये. सामने सिम्मी एक दरवाज़े पर झुकी हुई उसका ताला

खोलने की कोशिश कर रही थी.....और बार बार इस प्रकार कुंजी को झाड़ने लगती जैसे उसके अंदर

फँसे धूल मिट्टी के कारण ताला नहीं खुल रहा हो.

वो उनकी आहट सुन कर सीधी खड़ी हो गयी. और इस बार डॉक्टर ने भी उसके चेहरे पर घबराहट और

भय के भाव महसूस कर लिए थे.

"ये क्या हो रहा है...." उन्होने गरज कर पुछा. "मैने तुम से केवल कुंजीयाँ माँगी थी."

"प्लीज़ आप हाथ नीचे कर लीजिए डॉक्टर...." इमरान ने कहा. "मेरा रिवॉल्वार अब जेब मे है. मैं वास्तव मे

आपको यही दिखाना चाह रहा था."

सिम्मी खड़ी बुरी तरह काँप रही थी. वो कुच्छ कहने केलिए होन्ट हिलाती और फिर मज़बूती से बंद

कर लेती.

"अगर आप देरी करते तो मैं आपको ये सीन नहीं दिखा पाता." इमरान फिर बोला.

"बेबी....!" डॉक्टर ने भर्राई हुई मुर्दा सी आवाज़ मे कहा. अब वो अपना हाथ नीचे कर चुके थे.

"प्प...पापा....खुदा केलिए.....मुझे उसे वहाँ से हटा लेने दीजिए...." सिम्मी रुवान्सि आवाज़ मे

बोली.

"किसे....? तुम क्या बक रही हो?" डॉक्टर की आवाज़ फिर कठोर और उँची हो गयी.

"वो बेचारी मर जाएगी.....वो हमारे लिए एकदम गूंगी है......और कपल टॅगेज़...."

"कपल टॅगेज़...?" डॉक्टर ने हैरत से पलकें झपकाई.

"जी हां...सोच को कम्यूनिकेट करने वाला यंत्रा....."

"बेबी....क्या तुम्हारा दिमाग़ खराब हो गया है....?"

क्रमशः...............................
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: प्यासा समुन्दर

Post by Jemsbond »

३९

"पापा.....खुदा केलिए मेरी बात सुन लीजिए. उसका फेग्राज़ज़ समंदर मे डूब कर नष्ट हो गया था

इसलिए वो वापस नहीं जा सकी."

"कॉन है.....क्या बला है.....कहाँ वापस ना जा सकी??"

"एक लड़की है.....बेचारी.....उसका नाम ही नहीं है.....पापा....स्परसिया मे नामों की जगह नंबर

होते हैं......स्परसिया आप समझते हैं ना.....वीनस वाले उसे स्परसिया कहते हैं...."

"सिम्मी......तुम पागल हो गयी है या मेरा मज़ाक उड़ा रही है.....!!"

"डॉक्टर...." इमरान ने रो देने वाली आवाज़ मे कहा. "सफ़ाया हो गया.....अब मैं तो चला."

"कहाँ...??" वो गुर्रा कर इमरान की तरफ पलटे......और इमरान छत की तरफ उंगली उठा कर

बोला...."चाँद मे.....वहाँ बरेली के सूरमे और लखनऊ की मिसी का बिज़्नेस खूब

चलेगा.....इसके अलावा अब और कोई चारा नहीं रह गया."

"क्या तुम सब मुझे गधा समझते हो...?" डॉक्टर पूरी शक्ति से चीखे.

"नहीं..." इमरान आग्याकारी की तरह सर हिला कर बोला...."मैं तो गधों को भी लॉर्ड डॉल्होज़ी समझता

हूँ.....लेकिन स्परसिया और रयामी की दास्तान मुझ से बार बार नहीं सुनी जाती. कान पक गये हैं.

और अब आप आराम करें. क्योंकि आपका भंडार खाली हो चुका होगा. क़िस्मत वालों ही के यहाँ

शुक्र ग्रह के निवासी पधारते हैं."

"ओ.....सिम्मी....तू ने ये क्या किया." डॉक्टर दाँत पीस कर बोले.

"अगर किसी मुसीबत मे फसे हुए को शरण देना गुनाह है तो मैं अभी ज़हर खा लूँगी." सिम्मी

बिफर गयी. "वो बेचारी चूँकि एक दूसरे ग्रह की है इसलिए हर एक के सामने नहीं आना चाहती."

"तुम उसे तहख़ाने मे क्यों ले गयी थी?"

"उसने कहा था कि अगर मेरे सिवा और किसी दूसरे ने भी उसे देख लिया तो वो आत्महत्या कर लेगी. पापा

मैं सच कहती हूँ.....अगर आप ने उसे तहख़ाने से निकालने की कोशिश की तो मैं दुपट्टे से अपना

गला घोंट लूँगी."

"और मैं रूमाल से....जी हां..." इमरान सर हिला कर बोला.

"तुम चुप रहो...." सिम्मी ने उसे घूँसा दिखा कर कहा....."मैं समझती हूँ.....ये सारा

बखेड़ा तुम ही ने फैलाया है."

"मेरे साथ आओ..." डॉक्टर उसका हाथ पकड़ कर स्टडी की तरफ घसीट'ते हुए बोले. "इमरान तुम यहीं

रूको."

लगभग 15 मिनट तक इमरान को वहीं खड़े रह कर डॉक्टर का इंतेज़ार करना पड़ा.

डॉक्टर डावर अकेले वापस आए. उनका चेहरा उतरा हुआ था.....और कदम लरखड़ा रहे थे. फिर भी

उन्होने आशा भरी आवाज़ मे कहा..."इमरान मेरा ख़याल है कि अभी कुच्छ नहीं बिगड़ा. क्योंकि वो

तहख़ाने मे ही है. और ये भी ज़रूरी नहीं कि वो भंडार तक पहुच ही गयी हो....."

"लेकिन वो है क्या बला...?"

डॉक्टर ने एक लंबी साँस ली. फिर बोले...."सिम्मी बहुत मूर्ख और सीधी है. और इसका भी ज़िम्मेदार मैं

खुद हूँ. मैने उसे फरिश्ता बनाने के चक्कर मे बेवकूफ़ बना दिया."

"एनीवे.....चलिए...." इमरान दरवाज़े के सामने से हट'ता हुआ बोला...."मगर सिम्मी कहाँ है?"

"मैं उसे नौकरों की निगरानी मे छोड़ आया हूँ."

"क्या उसे इस भंडार की जानकारी थी?"

"नहीं.....वो ऐसी जगह नहीं कि हरेक की निगाह उस पर पड़ सके. चलो मैं तुम्हें

दिखाऊ....मुझे विश्वास है कि अभी कुच्छ नहीं बिगड़ा...."

डॉक्टर डावर ने ताला खोल कर दरवाजे को धक्का दिया. कमरा अंधेरा था और उन्होने अंदर घुस कर

लाइट जलाई. इमरान चारों तरफ ध्यान से देख रहा था. उसकी नज़र एक खिड़की पर ठहर गयी.

"ये खिड़की भी शायद बंगले के पीछे की तरफ खुलती होगी?" इमरान ने कहा.

"आन्ं....हन..." डॉक्टर चौंक कर बोले. अब वो भी खिड़की ही को घूर रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे

सोचने की शक्ति ख़तम हो गयी थी. इमरान ने आगे बढ़ कर खिड़की पर हाथ रखा और वो उसे खुलती

हुई सी लगी. उसे बोल्ट नहीं किया गया था.

"ये खिड़की भी असुरक्षित है...." इमरान बडबडाया.

"मगर इसे बोल्ट क्यों नहीं किया गया....!" डॉक्टर के माथे पर बल पड़ गये थे.

"ये तभी पता चलेगा जब आप तहख़ाने मे चेलेंगे."

डॉक्टर डावर ने खिड़की बोल्ट कर दी और फिर दीवार से लगे हुए एक स्विच बोर्ड पर एक बटन दबा दिया.

हल्की सी घरघराहट सुनाई दी और कमरे के फर्श का वो हिस्सा जिस पर वो खड़े थे नीचे धसने

लगा.

इमरान उपर देखने लगा था......क्योंकि फर्श मे बना गॅप भी समाप्त हो रहा था. दीवार की जड़ से

एक दूसरा फर्श निकल कर खाली जगह को भरता जा रहा था. जैसे ही उनके पैरों के नीचे का फर्श

नुमा लिफ्ट रुका उपर का गॅप भी ख़तम हो चुका था. इमरान ने खुद को एक विशाल तहख़ाने मे पाया.

लेकिन उसे इतना समय नहीं मिल पाया कि वो उसका विस्तार से निरीक्षण करता. क्योंकि उसे एक लड़की

दिखाई दी थी जिसने अपना चेहरा दोनों हाथों से छुपा रखा था. वो उन्हें देखते ही बेड से

उच्छल पड़ी थी. डॉक्टर ने होन्ट सिकोड कर सर को धीरे से हिलाया.

"आए श्रीमती जी.." इमरान हाथ फैला कर बोला...."तुम अपना कपल टॅगेज़ तो निकालो ताकि मैं

तुम्हें क्रिसटीना रोज़ पीटी की एक पोएम सुना सकूँ...."

लड़की कुच्छ ना बोली.....वैसे ही अपना चेहरा छुपाये रही. डॉक्टर ने क्रोध भरे ढंग से आगे बढ़

कर उसके उसके चेहरे पर से हाथ हटा दिए...............और.........इमरान इस तरह उच्छल पड़ा जैसे किसी

ने अचानक सर पर डंडे से प्रहार कर दिया हो.......साथ ही उस लड़की के मूह से भी एक डरी हुई सी

चीख निकली.
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: प्यासा समुन्दर

Post by Jemsbond »

४०

इमरान इस तरह उच्छल पड़ा जैसे किसी ने अचानक सर पर डंडे से प्रहार कर दिया हो.......साथ ही उस लड़की के मूह से भी एक डरी हुई सी चीख निकली.

ये लड़की थी थ्रेससिया बिंबोल बी ऑफ बोहीमिया. इमरान ने मूर्खों की तरह अपनी पलकें झपकाइं. लेकिन वो सचेत था. वो जानता था कि थ्रेससिया बिजली है. ज़रा सी नज़र बहकी फिर उसका हाथ आना मुश्किल हो जाएगा.

"अब तो कपल टेगज या जो कुच्छ भी हो उसके बिना ही विचारों का आदान प्रदान हो जाएगा. क्यों?" इमरान मुस्कुराया. लेकिन थ्रेससिया चुप चाप खड़ी रही.

"आए लड़की......अपना मूह खोलो. मुझ से ये ग्रहों वाला फ्रॉड नहीं चल सकेगा." डॉक्टर ने गुर्रा कर कहा.

"डॉक्टर आप उसकी खबर लीजिए.......इसे मैं देख लूँगा."

डॉक्टर डावर कुच्छ कहे बिना एक तरफ चले गये.......और इमरान थ्रेससिया को घूरता रहा. उसने ये नहीं देखा कि डॉक्टर किधर गये हैं.

"क्या तुम अब भी गूंगी बनी रहोगी?" इमरान ने ठंडी साँस लेकर पुछा.

"नहीं......अब उसकी ज़रूरत नहीं रही." थ्रेससिया मुस्कुराइ.

"ये क्या किस्सा है?"

"कुच्छ भी नहीं......मुझे किस्से का पता नहीं.......मैं तो काफ़ी पैसे लेकर काम करती हूँ....."

"काफ़ी से भी अधिक पैसे कहो.....इस बार तुम्हें जो धन-राशि पेमेंट करूँगा वो वो सब से बड़ी होगी. तुम खुश हो जाओगी. क्योकि तुम ने शुक्राल वाली घटनाओं के बाद वादा किया था कि शराफ़त की ज़िंदगी बीताओगी."

"मैं सच मुच शराफ़त की ज़िंदगी गुज़ार रही हूँ."

अचानक इमरान दौड़ते हुए कदमों की आवाज़ सुन कर चौंक पड़ा........और फिर उसे डॉक्टर डावर दिखाई दिए जो दौड़ते हुए एक कैरिडोर से निकले थे.

"ओह्ह.....इमरान.....10000 सीसी गायब है...." उन्होने चीख कर कहा.......और फिर थ्रेससिया पर इस तरह झपटे जैसे उसे मार ही डालेंगे. लेकिन इमरान बीच मे आ गया. थ्रेससिया मुस्कुरा रही थी. उसने कहा...."ख़तरनाक वस्तु है इसलिए थोड़ी थोड़ी ले जाई जा रही है....."

"तुम कॉन हो शैतान की बच्ची...."

"बॅस शैतान की बच्ची..."

"डॉक्टर आप समय नष्ट नहीं कीजिए.....उपर जाइए और शेष बचे हुए की सुरक्षा केलिए जो कुच्छ कर सकते हैं कीजिए.......मगर नहीं.......ठहरिए...."

इमरान थ्रेससिया की तरफ मुड़ा और फिर ठंडे स्वर मे कहा "वो कॉन था जिससे तुम्हें इन तहखानों का पता चला था?"

"जो कोई भी हो उसका पता तुम्हें कभी नहीं चल पाएगा. इमरान तुम मेरे सामने अभी लर्नर किड हो......"

"अर्रे......ये तो ऐसे बात कर रही है जैसे तुम्हें पहले से जानती हो....." डॉक्टर ने हैरत से कहा.

"मुझे इस दीवाने से इश्क़ है डॉक्टर डावर!" थ्रेससिया ने हंस कर कहा.

"तुम कॉन हो बताओ......वरना मैं बहुत बुरी तरह पेश आउन्गा....." डॉक्टर ने कहा....और फिर "अरे..." कह कर उच्छल पड़े. उन्हें ऐसा महसूस हुआ था जैसे कोई कुत्ते का पिल्ला उनके पैरों के नीचे आकर चीख पड़ा हो. इमरान हँसने लगा.......और डॉक्टर मूर्खों की तरह चारों तरफ देखने लगे.

"आप कुच्छ मत सोचिए डॉक्टर...." इमरान ने कहा...."जहाँ ये औरत मौजूद हो वहाँ सब कुच्छ संभव है. वैसे क्या आप ये बताएँगे कि आपका सेक्रेटरी कितने दिनों से आपके साथ है?"

"वो आल्बर्ट......हां वो बहुत समय से मेरे साथ है.......और मैं उस पर विश्वास करता हूँ....."


"क्या ये बिल्डिंग उसके सामने बनी थी?"

"हां....आनन्न.....मगर क्यों....? नहीं तुम उस पर संदेह नहीं कर सकते.......उस से अधिक नेक फ्रांसीसी आज तक दूसरा मेरी नज़रों से नहीं गुज़रा."

"आपकी नज़रों से ना गुज़रा होगा......लेकिन मैने उस से भी अधिक नेक फ्रांसीसी(फ्रेंच) देखे हैं. इसलिए आप प्लीज़ पहले तो उसे अपने आदमियों की निगरानी मे दीजिए और उसके बाद यहाँ एक मिलिटेरी कंपनी मंगाने की कोशिश कीजिए. मुझे विश्वास है कि आप इसमे आसानी से कामयाब हो जाएँगे. लेकिन उस फ्रांसीसी पर नज़र रखिएगा......अगर वो निकल गया तो मैं भी कुच्छ ना कर सकूँगा."

डॉक्टर सर हिलाते हुए चले गये.

"हां अब तुम बताओ थ्रेससिया." इमरान बोला...."तुमने वादा किया था कि तुम अब शराफ़त से ज़िंदगी गुजारोगी...."

"मुझ से कोई कमीनपन नहीं हुआ......मैं अपने देश केलिए काम कर रही हूँ. और अगर अपने देश केलिए काम करना कमीनपन है तो तुम मुझ से भी बड़े कमिने हो......क्योंकि खुद तुम्हारी कोई पोज़िशन नहीं है......तुम तो अपने देश के एजींटो के एजेंट हो...."

"मैं इस बहस मे नहीं पड़ना चाहता." इमरान ने लापरवाही से कहा. "लेकिन मैं उस देश का नाम ज़रूर मालूम करूँगा...."

"मैं नाम भी बता दूँगी.....बिल्कुल नहीं छिपाउन्गी....लेकिन विश्वास नहीं कर सकोगे..."

"ये मुझ पर छोड़ दो..."

"उस देश का नाम 'ज़िरोलॅंड' है. अब तुम तलाश करो नक्शे मे और ना मिले तो केवल बकवास समझो."

"थ्रेससिया मैं सख्ती से भी पेश आ सकता हूँ."

"तुम मुझे मार डालो डियर....पिच्छली मुलाकात से अब तक एक पल केलिए भी मेरा दिल तुम्हारी याद से खाली नहीं रहा. मैने आज तक इतनी गहराई से किसी को भी नहीं चाहा. कभी नहीं....."

"मैं ये सोचे बिना तुम पर थर्ड डिग्री इस्तेमाल करूँगा कि तुम मुझे कितना चाहती हो...."
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Post Reply