मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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Jemsbond
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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बंगले के आगे गेट के सामने एक रिक्शा आ कर रुका. बालों में खिजाब लगाए गणेश बाबू खादी का कुर्ता - पयज़ामा पहने हुए नीचे उतरे. उन्होने कुर्ते की दाई जेब से पाँच का नोट निकाल कर रिक्शा वाले के हवाले किया और तेज़ कदमों से बंगले की तरफ बढ़ चले. इतने में पीछे से आवाज़ आई

"साहब"

उन्होने पलट कर देखा.

"साहब ए लीजिए एक रुपये ... किराया चार रुपये ही बनता है"

रिक्शा वाले ने एक रुपये का सिक्का देने के लिए हाथ आगे बढ़ाया.

"रहने दो" गणेश बाबू मना करते हुए बोले और बंगले के फाटक की दिशा में चल पड़े. आज वे आत्मविश्वास से लबरेज नज़र आ रहे थे .

बंगले के बरामदे में दाखिल होते हुए, आस पास जमी भीड़ को अनदेखा कर, वे सीधे बंगले में घुसे. हमेशा की तरह आज भी मधुरानी से मिलने कई लोग आए थे . बेधड़क काग़ज़ की पर्ची पर अपना नाम लिख वह पर्ची उन्होने दरवाज़े के पास बैठे चपरासी के हवाले की और अपनी बारी का इंतेजार करने लगे . हालाँकि आज एक भी कुर्सी खाली न थी लेकिन वहाँ बैठे 2-4 गाँव वालों ने उन्हें अपनी कुर्सी दे दी. गाँववाले उन्हें पहचानते न थे लेकिन शायद यह खादी के कपड़ों का ही जादू था जो आज लोग उन्हें इतनी इज़्ज़त दे रहे थे. उन्हें हर चीज़ काफ़ी बदली बदली सी लग रही थी. जल्दी ही उनका नाम पुकारा गया . अपना नाम सुनते ही वे बड़े आत्मविश्वास से दरवाज़े के अंदर दाखिल हुए . भीतर कॅबिन का दरवाज़ा धकेल कर वे अंदर आए . भीतर मधुरानी मानों उनकी ही राह देख रही थी.

"आइए गणेश" उसने मुस्कुराकर उनका स्वागत करते हुए कहा.

वे भी मुस्कुराते हुए उसके बगल में जा कर बेहिचक बैठ गये. अपने अंदर आए इस बदलाव से वह खुद हैरत में थे..

क्या एक चीज़ इंसान को इतना बदल सकती है?...

हां यक़ीनन आज वह मधुरानी के राज़ से वाकिफ़ थे ... और यही उनमें आए बदलाव की वजह थी.

कुछ पल यूँ ही चुप्पी में गुज़र गये. दोनो एकदुसरे का चेहरा पढ़ने में व्यस्त थे. आख़िरकार गणेश बाबू ने अपना मुँह खोला:

" पाटिल जी के बारे में जान कर बड़ा अफ़सोस हुआ..."

मधुरानी अपनी नज़रें चुराती हुई बोली " हाँ .. बहुत बुरा हुआ उनके साथ"

गणेश बाबू ने महसूस किया की वह आज नज़रें चुरा रही है .

"उनका लड़का भी सयाना है?" गणेश बाबू ने आगे कहा.

"हाँ अब पिता के बाद उसी के कंधों पर ज़िम्मेदारी आ पड़ी है" मधुरानी बोली

"सोचता हूँ उससे एक बार मिल लूँ" मधुरानी सुन कर चौंक उठी.

"म..मेरा मतलब है..उस से मिल कर उसका ढाँढस बँधाऊं" गणेश बाबू का तीर ठीक निशाने पर जा लगा था...

मधुरानी उनका मतलब जान गयी थी, बात बदलते हुए वह बोली

"चलिए न गणेश ज़रा उपर चल कर आरामसे बैठ कर बतियाते हैं.. सुबह से कई लोगों से मिल कर उकता गयी हूँ"

गणेश बाबू की बाँछें खिल गयी लेकिन इतमीनान से बोले:

"चलिए"

चलते चलते उन्होने मधुरानी की आँखों में देखा लेकिन शायद आज पहली बार वह बड़ी हिम्मत से उसकी आँखों में झाँक रहे थे. वह अब आगे आगे चलने लगी और गणेश बाबू उसके पीछे पीछे , वह सीधा दूसरी मंज़िल पर अपने शयनकक्ष में उनको ले गयी. उनके मन में लड्डू फुट रहे थे , इस पल का न जाने उन्हे कब से इंतेज़ार था. वह कमरे में दाखिल हुए. उन्होने देखा पूरा कमरा कीमती चीज़ों से सज़ा हुआ था . इतनी कीमती चीज़ें गणेश बाबू अपनी ज़िंदगी में पहली बार देख रहे थे . उन्होने मधुरानी का हाथ अपने हाथों में कस कर पकड़ लिया और अचानक ही उसे अपनी बाहों में भींच लिया . ना जाने आज उनमें इतना हौसला कहाँ से आ गया था. मधुरानी ने भी कोई विरोध नहीं किया मानों उनकी बाहों में आने के लिए वह मचल रही थी. और फिर दोनो एक दूसरे की बाँहों में खो गये.


धीरे धीरे गणेश बाबू का मधुरानी के बंगले पर आना जाना काफ़ी बढ़ गया था. उनका लिबास भी अब बदल गया था. वे हरदम खादी के कपड़ों में नज़र आते - ठीक किसी नेता के जैसे. रोज़ाना सुबह कसरत करने से वह चुस्त लगने लगे थे. घर पर भी उनकी पूछ बढ़ गयी थी. बेटा नौकरी दिलाने से खुश था तो बीवी इस बात से खुश थी की बुढ़ापे में ही सही पर देर आए दुरुस्त आए. मधुरानी की पंहुच से उनका तबादला रुक गया था और तो और आफ़िस में उनके वरिष्ठ सहकर्मी भी उनसे आदर से पेश आने लगे. अपने काम कराने के लिए वे गणेश बाबू के ज़रिए जुगाड़ लगवाते.

अब गणेश बाबू की गिनती मधुरानी के करीबी लोगों में होती थी. इसलिए रात दिन उनका उठना बैठना बंगले पर ही होता. कई कई दिन तो वह वहीं ठहर जाते. अब उन्हें उसकी बातें पता चलने लगी थी , काम के बहाने दौरे पर मधुरानी और मधुकर बाबू अक्सर शहर से बाहर जाया करते और रात किसी फार्म हाउस पर साथ बिताया करते. इस एक बात को छोड़ वह मधुरानी से बड़े प्रभावित थे. वे सोचा करते की उनके भी दिन आएँगे. उन्हें इसका ज़्यादा इंतेजार नहीं करना पड़ा. जल्दी ही वह वक्त भी आया कि जब मधुकर बाबू शहर से बाहर होते तो गणेश बाबू मधुरानी के साथ हम बिस्तर होते . कहावत है चपरासी के कान उपर के बयासी और नीचे के तिरासी.... और ऐसी बातें भला छुपती कहाँ हैं ? इस कान से उस कान होते हुए आख़िरकार इस बात की भनक मधुकर बाबू को हो ही गयी ...

एक दिन बिना किसी बात के मधुकर बाबू ने गणेश बाबू से झगड़ा मोल लिया और बात बढ़ते बढ़ते अछे खासे बखेडे में तब्दील हो गयी. अपने गणेश बाबू डरने वालों में से न थे उन्होने भी मधुकर बाबू को खूब हड़काया और उनके हर हमले का मुँहतोड़ जवाब दिया. हार कर मधुकर बाबू को पीछे हटना पड़ा. लेकिन इस खेल में गणेश बाबू अनाड़ी न थे. वे इस बात से अंजान न थे कि राजनीति में बंदा चार कदम आगे बढ़ने के लिए ही दो कदम पीछे हटता है . इन्ही मधुकर बाबू ने पाटिल जी के साथ जो किया उसके मद्देनज़र गणेश बाबू पर ख़तरा बढ़ गया था. अब गणेश बाबू को अहसास हुआ की नर मक्खी की ज़िंदगी कितनी कठिन होती है. उन्हें कदम कदम पर ख़तरे का अहसास होने लगा था. लेकिन वह इस सब से बिल्कुल न घबराते थे. डर को उन्होने तभी मात दे दी थी जब उन्होने मधुरानी का उस दिन शयनकक्ष में हाथ पकड़ा था.

एक दिन गणेश बाबू की मुलाकात बंगले पर किसी पुराने परिचित से हुई , हालाँकि गणेश बाबू ने उन्हें पहचाना न था. वहीं आदमी उनको पहचान कर करीब आया .

उसने कहा "नमस्ते गणेश बाबू...पहचाना?"

"जी ज़रूर ज़रूर.." गणेश बाबू अपनी याददाश्त पर ज़ोर डालते बोले .

बीते सालों में नौकरी के चलते कई लोगों से उनकी पहचान हुई थी सबका नाम थोड़े ही न याद रखते ? और अब तो बतौर कार्यकर्ता कई लोगों से रोज़ाना मिलना होता ऐसे में उनसे हंस बोल कर न मिलना भारी अशिष्टता होती.

वह आदमी हंस कर बोला " क्या गणेश बाबू आप तो छुपे रुस्तम निकले .....क्या उड़ान भरी है आपने यहाँ ... हमारी जिंदगी बतौर ग्रामसेवक गाँव के गाँव में गुज़र गयी"

अब कहीं जा कर गणेश बाबू के दिमाग़ की बत्ती जली . यह खराडे साहब थे जिन्होने उजनी गाँव का चार्ज गणेश बाबू को दिया था .

" मैने सोचा समाजसेवा में भी हाथ आज़मा लिए जाए" गणेश बाबू झेंप कर बोले.

" अरे बाबू जी वह बातें भी सबके किस्मत में कहाँ लिखी रहती है... वहाँ आफ़िस में मुझे पता चला आजकल आपके बड़े ठाठ हैं ....आफिसर लोग भी आपके नाम से ख़ौफ़ खाते हैं"

"आप जैसों की दुआ है बस" गणेश बाबू बोले.

"गणेश बाबू एक काम था आपसे" खराडे साहब बोले.

गणेश बाबू सावधान हो गये.

अच्छा तो जनाब इसलिए इधर का रास्ता भूले हैं...

"अजी बोलिए हमारे बस में होगा तो हम ज़रूर करेंगे" गणेश बाबू बोले.

" वह मामला ज़रा तबादले का था" खराडे साहब बोले.

"उसके अलावा कुछ और कहिए आजकल जिसे देखो वही तालुके के आस पास की जगह तबादले की सिफारिश करने आता है..सब लोग आएँगे तो फिर बात कैसे बनेगी..?" गणेश बाबू बोले.

"नही साहब मुझे तालुके के पास नहीं गाँव में तबादला चाहिए" खराडे साहब बोले.

गणेश बाबू चौंक कर बोले "गाँव में?" "सब तहसील या तालुके में तबादला चाहते हैं आप पहले आदमी होंगें जिसे गाँवमें तबादला चाहिए"

" हाँ साहब मुझे उजनी गाँवमें तबादला चाहिए.. वह मेरे गांवके करीब पड़ता है न" खराडे साहब समझाते बोले.

"अच्छा.. अच्छा... आजकल वहाँ कौन हैं" गणेश बाबू ने पूछा.

" हैं कोई साहब..देशमुख नाम है उनका" खराडे साहब बोले.

"क्या उन्हें वहाँ से तबादला चाहिए" गणेश बाबू ने सवाल किया.

"पता नही?"

"क्या साहब...पहले पता तो कर लीजिए , आपसी समझ से काम बनता हो तो यहाँ आपको एडीया घिसनी न पड़ेगी" गणेश बाबू बोले.

"मुझे खबर लगी थी कि देशमुख साहब का गाँव भी उजनी के करीब ही है.. लिहाज़ा वह वहाँ से हटने को तैयार न होंगे" खराडे साहब बोल पड़े.

"आख़िर बात बाहर आ ही गयी न... वह कहते हैं न की बैद्य और नेता से कोई बात छुपाना न चाहिए" गणेश बाबू उलाहना देते बोले.

" नही साहब वह बात नहीं...मैने सुना था उन्होने भी पाटिल साहब के ज़रिए जुगाड़ लगाई थी"

"पाटिल जी की जुगाड़?....उनकी जुगाड़ तो उपर लग गयी" गणेश ने मज़ाक में कहा.

"लेकिन वे मंत्री जी के ख़ास आदमी थे"

"उसकी आप परवाह मत करो.." गणेश बाबू बोले " और पूरी जानकारी एक काग़ज़ पर लिखकर मुझे दे दें ... मैं आपका काम करवाता हूँ"

"मतलब..? मंत्री जी से मिलने की ज़रूरत नहीं?" खराडे साहब बोले.

"आपको मुझ पर भरोसा नही तो उनसे जा कर मिलिए" गणेश बाबू सख्ती से बोले.

"न.. नहीं बाबू जी वह बात ना है..." खराडे साहब किसी पालतू कुत्ते की तरह पुंछ हिलाते गणेश बाबू के पीछे पीछे चलने लगे.

शाम के सात बजे थे . मधुरानी बालकनी में बैठ कर आराम फर्मा रही थी. तभी एक कार्यकर्ता उसके करीब आ खड़ा हुआ.

"क्या बात है" उसने पूछा.

"जी नीचे एक आदमी आपसे मिलना चाहता है " जवाब आया.





"मिलने का वक्त ख़त्म हो गया है.. और इस वक्त मैं किसी से नहीं मिलती" मधुरानी बोली.

"लेकिन वह जाने को तैयार नही है ...बहस कर रहा है...और तो और हाथा-पाई पर उतर आया है... माफ़ करिएगा बीबीजी लेकिन बस आपके नाम की रट लगाए हुए है .. मुझे मधी से मिलना है..मधी से मिलना है..." कार्यकर्ता ने कहा.

"मधी" यह नाम सुनकर वह मानो बीते दिनो में चली गयी. बहुत पहले उसे इस नाम से एक ही आदमी पुकारा करता था ...जब उसने जवानी में कदम रखा ही था. उसका अतीत उसकी आँखों के सामने किसी फिल्म की तरह सरकता चला गया. ...
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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मधुरानी को अपने आप में खोया देख , कार्यकर्ता वहाँ से जाने को हुआ तभी उसे पीछे से मधुरानी की आवाज़ सुनाई दी.

"ठहरो"

वह रुक गया.

"उसे उपर भेज दो" उसने हुक्म सुनाया.

"जी अच्छा" कार्यकर्ता ने जवाब दिया और वह सीढ़ियाँ उतरने लगा.

मधुरानी को कुछ देर बाद पदचाप सुनाई दी, उसकी पीठ दरवाजे तरफ भले ही थी, वह अपना ध्यान दरवाज़े के तरफ ही लगाए थी . आने वाला उसके एकदम करीब आ खड़ा हुआ उसके सारे बदन पर मानो रोंगटे खड़े हो गये .

"मधी.." उसे आवाज़ सुनाई दी.

वही आवाज़ और वही कशिश....

उसने पलट कर देखा . उसके सामने उसका पहला और आखरी प्यार शंकर खड़ा था. समय के साथ उसका चेहरा- मोहरा बदल गया था ..कमज़ोर लग रहा था. इतनी देर खड़े होने से शायद वह थक गया था इसलिए कुर्सी पर बैठ गया .

"शंकर.." मधुरानी के होंठ बोल पड़े " और उसका अतीत उसकी आँखों के सामने आता गया.

....उनका वह कच्ची उमर का पहला प्यार...

....उसे याद आया वह वाक़या जब उसने शंकर को यह बताया की वह उसके बच्चे की माँ बनने वाली है...

....इसके बाद उसका गाँव से गायब हो जाना ...और उसका टकटकी लगाए उसकी राह देखना ...

.... जब उसके बापू को यह बात पता चली तो उसने उसके बालों का झोंटा पकड़ कर बेदर्दी से पीटना ...

...बापू ने कहीं से पैसों का इंतेजाम कर उसे शहर ले जा कर उसका गर्भपात कराया..

...गर्भपात कराने के खबर समाज में पता चलते ही लोगों का उससे नज़रें चुराना और पीठ पीछे बुराई करना.

....हार कर बापू ने उसका ब्याह उजनी गाँव के किसी दुकानदार से तय कर दिया.

.... उसकी वह पहली रात .. सुहागरात पति के साथ अंधेरे में मनाई ...और दिन के उजाले में उसने देखा जिसके साथ उसने रात बिताई वह उसका पति न हो कर गाँव के पाटिल बाबू थे...

....और फिर कई बार पाटिल का उसके साथ उसी के घर पर रातें गुज़ारना...

....उसका पति उसे छूता भी न था , शायद इसकी उसे इजाज़त न थी और फिर उसने अपने पति को अपनी पहली नर मधुमक्खी बनाने का प्रसंग ..

उसने अपने पति को अपनी मादक अदाओं से उकसाया.. फिर जब उसका पति उसके साथ संभोग कर रहा था तो पाटिल का वहाँ आना और आग-बबूला हो कर उसे जान से मार डालना...
.
...बाद में पाटिल ने उसकी लाश गाँव से दूर ले जा कर बीच रास्ते में फेंक दी और पुलिस के सामने यह कहलवाया कि शराब के नशे में वह उसकी जीप के नीचे आ गया ,और फिर पाटिल का मामले से बाइज़्ज़त बरी होना.

अतीत की भूली बिसरी यादें मानो किसी फिल्म के भाँति उसकी आँखों के सामने एक-एक कर गुज़र गयीं.

शंकर यूँ ही कुछ पल कुर्सी पर बैठा और एकदम उठ कर माधुरानी के पैरों में गिर पड़ा

"हमका माफ़ कर दे मधु ....मधु हमका माफ़ कर द्यो ....हम इसी जनम में अपने कु-कर्मों का फल भुगत रहा हूँ ....जब से गाँव छोड़ा तब से हम दर - दर की ठोकरें खा बेघर आवारा इधर-उधर घूम रहा हूँ ....आज चार दिन हो गये पेट में एक दाना तक न गया"

माधुरानी के मन में उसके प्रति सारी भावनाएँ बीती घटना के साथ ही मर गयीं थी , तब से ले कर आजतक उसने कभी भी अपने जज्बादोंके के आगे घुटने न टेके थे . शायद इस घटना से उसने यही सीख ली थी. मधुरानी ने उसके कंधो को सहारा दे कर उपर उठाया. उसने महसूस किया उसके कंधो पर हाथ रखते ही जसबादों को काबू कर पाना मुश्किल हो रहा था.. और फिर जज्बादोंका जो उफान आया, उसने उसे अपनी बाँहों में भर लिया.शायद वह उन अतीत के लम्हों को दोबारा जीना चाहती थी. जो उस घटना के बाद वह कभी जी न सकी थी.

लेकिन उसे एहसास हुआ की यूँ भावनाओं में बहना ठीक नहीं . यह भावनाएँ ही थी जो उसे कमज़ोर बना रही थी. लेकिन तरक्की की सीढ़ी चढ़ती हुई वह अगर आज इस मकाम पर आ पंहुची थी तो इसकी सबसे बड़ी वजह यही थी की उसने अपनी भावनाओं को काबू में रखा और उन्हें कभी खुद पर हावी न होने दिया. यहाँ जजबादों में बहने की कोई गुंजाइश न थी और ना किसी कमज़ोरी की. उस से परे हट उसके कंधे को सहारा देते हुए वह उसे शयनकक्ष में ले जाने लगी. उसने फ़ैसला कर लिया था उसे कमज़ोरी का एहसास दिलाने वाले ज़स्बादों का आज वह गला ही घोंट देगी.

पौ फटने में देर थी. तड़के अंधेरे में माधुरानी के बंगले के परिसर में पुलिस की जीप और एक एंबुलेंस आकर रुकी. पुलिस की जीप में से एक महिला इनस्पेक्टर और कुछ हवालदार उतरे और सीधे बंगले में प्रवेश कर गये. वह दूसरी मंज़िल तक आ पंहुचे. अंदर हाल में माधुरानी बैठी उनकी राह देख रही थी. माधुरानी ने कीमती मखमली गाऊन पहना था. इनस्पेक्टर और हवलदार के आते ही वह उठ खड़ी हुई और उन्हें अपने शयनकक्ष में ले गयी. वहाँ का नज़ारा देख कर उन पुलिसवालों के रोंगटे खड़े हो गये. बिस्तर पर शंकर नग्न अवस्था में पेट के बल ऐसे लेटा था जैसे किसी हवस के भूखे वहशी दरिंदे ने उसके साथ पूरी रात ज़ोर ज़बरदस्ती की हो.

हवालदार ने शंकर के पास जा कर उसकी नब्ज़ जाँची , साँसे चल रहीं थी . हवलदार ने उसे पकड़ कर बिस्तर पर सीधा करने की कोशिश की तो वह दर्द से चिल्ला पड़ा .

"क्या हुआ इन्हें?" इनस्पेक्टर बोल पड़ी

"कुछ नही..कुछ नही...इनसे हमारी पुरानी पहचान है..कल जब ये आए तो इनकी तबीयत अचानक बिगड़ गयी , हमने इनसे कहा कि आज की रात यहीं ठहर जाएँ ..लेकिन आज सुबह जब देखा तो यह यहाँ इस हाल में मिले" माधुरानी ने जवाब दिया.

महिला इनस्पेक्टर माजरा समझ गयी और हवलदारों की मदद से उसे उठा कर अपने साथ नीचे ले जाने लगी. वह सीढ़ियों तक पंहुचे ही थे की माधुरानी ने आवाज़ दी

"इनस्पेक्टर साहिबा..."

महिला इनस्पेक्टर ने माधुरानी की ओर देखा और उनका इशारा समझ कर हवलदारों से कहा

"आप आगे बढ़िए ..मैं पीछे से आती हूँ" उन लोगों के नज़रों से ओझल होते ही माधुरानी उससे बोली

"बैठिए.."

दोनो आमने -सामने सोफे पर बैठ गये.

"सब ठीक तो है ना ?" माधुरानी ने उसकी आँखों में आँखें डाल कर पूछा.

"जी मॅडम" महिला इनस्पेक्टर ने जवाब दिया.
.
"तुम्हारा प्रमोशन इस साल ड्यू है?" माधुराने ने यूँ ही पूछ लिया.

"नहीं..अगले साल" उसने जवाब दिया.

"अच्छा..." माधुरानी बोली.

"ठीक है...इनको तुरंत किसी सरकारी हस्पताल में भर्ती करवाईए ...और इस बात का ख्याल रखिए क़ि मेरा नाम इसमे कहीं न आ पाए" माधुरानी ने हुक्म सुनाया.

"जी मॅडम..." महिला इनस्पेक्टर ने जवाब दिया.

"आप जानती हैं ..यह मीडीया वाले आज कल हम नेताओं के पीछे कैसे हाथ धो कर पड़े रहते हैं...निजी बातों को भी खबरें बना कर चटखारे ले ले कर जनता के सामने परोसते हैं ...फिर चाहे उनकी बात सरासर झूठी क्यों न हो" माधुरानी बोली.

"जी हाँ मॅडम...आपकी बात सही है " महिला इनस्पेक्टर ने कहा.

अब तक माधुरानी ने उससे बतियाते उसके हाव भाव से यह अंदाज़ा लगा लिया था कि वह राज़ कायम रख सकती है...वह उठ कर खड़ी हो गयी. उसके सामने बैठी महिला इनस्पेक्टर भी उठ कर खड़ी हो कर सीढ़ियों की तरफ जाते बोली

"ठीक है मॅडम...आप फ़िक्र न करें..मैं संभाल लूँगी"

उस दिन के बाद चार पाच दिन ही गुजर गए होंगे. मधुरानी अपनी पार्टी मीटिंग में व्यस्त थी . तभी मधूराणीका एक सहायक उसके कान में आकर खुस्फुसाया -
'' मॅडम आपके लिए . सरकारी अस्पताल से शिंदेंमॅडम का फोन है ...''

'' किसलिए ?...'' मधूराणी..

'' वह उस दिन भरती किया हुवा आदमी ... अभी अभी गुजर गया ... वह बोल रही थी ... '' वह सहाय्यक फिरसे उसके कान के पास फिर से धीरेसे खुस्फुसाया.

'' उसे कहना ...मै एक महत्वपूर्ण मीटिंग में हु ... और फिरसे इस सिलसिलेमे मुझे किसीकाभी फोन नहीं आना चाहिए ... ऐसे बता दो उसे '' मधूराणीने आदेश दिया .

'' जी मॅडम'' उसका सहाय्यक वहासे हटकर फोनकी तरफ चला गया .

चुनावों की घोषणा हो गयी थी और अब चुनावों की तारीख अधिक दूर न थी. लिहाज़ा चुनाव प्रचार का दौर शुरू हो गया था. इसी के चलते आज माधुरानी की चुनावी सभा का शहर में आयोजन था. चार पाँच लाख के करीब जनता आने वाली थी . माधुरानी ने मंच की व्यवस्था और मेहमानों की सुरक्षा का जिम्मा अपने नज़दीकी सहकारियों को सौंप रखा था . माधुरानी का चुनावी मॅनेज्मेंट बढ़िया था .. गणेश बाबू ने भी इस बात को कई दफे महसूस किया. माधुरानी की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी गणेश बाबू के कंधो पर आन पड़ी थी. यूँ तो सुरक्षा में पुलिस लगी हुई थी लेकिन गणेश बाबू को उनके संपर्क में रह कर पूरी सुरक्षा व्यवस्था पर नज़र रखनी थी . मधुकर बाबू जनता को लाने ले जाने का जिम्मा निभा रहे थे. उन्होने आस पास के गाँवों से जनता को लाने के लिए बस - ट्रक लगा रखे थे. गाँववाले भी खुश थे की मुफ़्त में तालुके की सैर कर आएँ.

सभा आमराई में रखी गयी थी असल में वहाँ एक बड़ा सा मैदान था . अभी वहा आम के बस दो चार पेड़ ही बचे होंगे , लेकिन किसी जमाने में वहाँ आम के पेड़ों का बगीचा था इसलिए लोग उस मैदान को आमराई के नाम से पुकारते थे. सभा का समय दोपहर का तय होने के कारण लाइटिंग करने का सवाल ही न था. मंच का काम जिन कार्यकर्ताओं को सौंपा गया था वे मंच खड़ा करते हुए देख रहे थे.

धीरे-धीरे लोगों की भीड़ वहाँ इकट्ठा होनी शुरू हुई . आस पास के गाँवों से ट्रक और बस भर-भर के लोग लाये जा रहे थे. शहर के लोग भी आना शुरू हो गये लेकिन उनकी संख्या मामूली थी. मंच पर लाउड स्पीकर की टेस्टिंग चल रही थी वे लोग माइक पर कुछ बड़बड़ा रहे थे. गाँव वाले लोग चारों तरफ इस नज़ारे का लुत्फ़ उठा रहे थे. इतनेमे एक आलीशान कार आ कर रुकी उसमें से गणेश बाबू , मधुकर बाबू और माधुरानी के अन्य नज़दीकी कार्यकर्ता उतरे.

मधुकर बाबू ने इधर-उधर देखते हुए कार्यकर्ताओं से पूछा :

"सब ठीक है न?"

पूछ कर तसल्ली कर ली और कार में बैठ कर चले गये. शायद अगली बार वह माधुरानी को ले कर वहाँ आने वाले थे.

पुलिस वालों की टुकड़ियाँ भीड़ में इधर उधर बिखर गयी . गणेश बाबू के ज़िम्मे अब बस एक ही काम बचा था - वह था उनके तले काम करने वाले लगभग सौ कार्यकर्ताओं को मंच के इर्द गिर्द फैलाना. जनता की सुरक्षा का जिम्मा पुलिस का था गणेश बाबू का नहीं . और माधुरानी की सुरक्षा में जो पुलिस वाले लगे थे उनके साथ साथ गणेश बाबू और उनके कार्यकर्ता तैनात थे.
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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उजनी गाँव के लोग जब ट्रक से आने लगे तो गणेश बाबू का ध्यान उस तरफ गया. उनमें से कई लोग गणेश बाबू के जान पहचान वाले निकले. गणेश बाबू उनसे मिलने उस ओर गये. गणेश बाबू की मुलाकात सदा से हुई. सदा से मिल कर उन्हें पुरानी बात याद आ गयी, जब उसने नशे में धुत्त हो कर उन्हें माँ-बहन की गालियाँ दी थीं. वह हंस पड़े. सदा दुबला पतला और बूढ़ा हो गया था. यूँ तो वह गणेश बाबू से उम्र में एक दो साल ही बड़ा होगा.

"क्यों सदा भाई क्या हाल चाल?" गणेश बाबू ने पूछा.

वह गणेश बाबू की ओर अचंभे से देखने लगा.

"गणेश बाबू?" वह खुशी से चहका.

"क्या तबीयत नासाज़ है?" गणेश बाबू ने उसकी ओर देखते कहा.

"आप भी बदल गये हैं बाबू जी...अच्छी सेहत बना ली है आपने...और ई का ? नेता-वेता बन गये हो का? " उसने कहा.

"और..? शराब पीना छोड़ दिया क्या?" गणेश बाबू ने मज़ाक मज़ाक में पूछा.

उसके चेहरे से सारी खुशी काफूर हो गयी.

"अब तो ऐसा लागे है की ई जिंदगी के साथ ही शराब छूटेगी" वह निराश हो कर बोला.

गणेश बाबू को यह सुनकर बुरा लगा.

"और कौन कौन आया है गाँव से?" उन्होने ट्रक से उतरते लोगों को देखकर कहा.

"कई लोग आए हैं बाबू जी.. हम सुने हैं और एक ट्रक आएगा लोगों को ले कर"

"सरपंच जी आएँगे क्या?" गणेश बाबू ने पूछा.

यह सुन उसके चेहरे की रंगत बदल गयी.

"सरपंच जी पाँच-छ: साल पहले गुज़र गये" उसने उदासी से कहा.

"कैसे?" गणेश बाबू आश्चर्य से कह उठे.

"उम्र हो चली थी...खैर चल बसे ई एक तरह से अच्छा ही हुआ....बहुत परेशानी में दिन काटे उन्होने...आँखों से उनको दिखता न था...पैरों ने साथ छोड़ दिया था...शौच इत्यादि भी वहीं के वहीं करते थे...बच्चों ने मुँह फेर लिया...अंतिम दिनो में हम ही उनकी देख रेख किए ...उ सरपंच जी ने हमका सीलिंग की ज़मीन बहाल की थी...उनके बच्चे उनको भूल सकते हैं हम कभी न भूलेंगे... उ सरपंच किसी को भी ज़मीन दे सकता था लेकिन उनने हमको ही दी.." सदा रुआंसा हो गया था.

गणेश बाबू को पहली बार उसकी शख्सियत के इस पहलू के दर्शन हो रहे थे. वे बड़े आदर से उसे देख रहे थे.
तभी गणेश बाबू के पैरों में कोई गिर पड़ा.

"राम.. राम साहब जी"

यह उनके उजनी के दिनों में साथ काम करने वाला आफ़िस का पांडु चपरासी था.

"अरे पांडु भैया... कैसे हो?" गणेश बाबू ने पूछा.

भले ही पांडु समय के साथ बूढ़ा और कमज़ोर हो चला था लेकिन इसके बावजूद उसने अपनी चापलूसी करने का स्वभाव न छोड़ा था.

"अब कौन ग्राम सेवक है?" गणेश बाबू ने पूछा

"अब कुछ पता न है साहब जी...आप जब से गये तब से काम में मज़ा न आता था..नये साहब खुद ही सारा पैसा लेते थे फिर हमारी शादी हो गयी और मैने नौकरी छोड़ दी...अब मेरा बीजों का कारोबार है गार्ड साहब की मदद से.

"बढ़िया है...मतलब हँसी खुशी से गुज़र रही है तुम्हारी ज़िंदगी" गणेश बाबू बोले.

"हाँ वैसे बढ़िया ही है ....लेकिन आपके समय गाँव में जो बातें थी अब ना हैं"


पूरा मैदान लोगों से खचाखच भरा हुआ था , कहीं पैर रखने की जगह न थी. अब तो बस मधुरानी की राह देखी जा रही थी. तयशुदा समय से 1 घंटे से उपर हो चुके थे ...दो-तीन बार उसके आने की अफवाह उड़ती तो कार्यकर्ता सक्रियता दिखाते ...या अफवाह उड़ाने का काम शायद कोई जान बूझ कर करता था. जो नेता जितनी देर से चुनावी सभा में आएगा उतनी ही बेसब्री से उसकी राह देखी जाएगी..वरना वहाँ इकट्ठा हुए लोग बेवजह हल्ला न मचाएँ .

तभी गणेश को दूसरे ट्रक से उतरते हुए उजनी गाँव के लोग दिखाई दिए. यह ट्रक देर से आया था क्योंकि अब तक सभा शुरू होने का वक्त हो चला था. वैसे भी गणेश बाबू का काम ख़त्म हो चला था . अब बस मधुरानी के आने का इंतेज़ार हो रहा था. वे उन लोगों के करीब गये. उनकी बबन मेकॅनिक से मुलाकात हुई जो उजनी में मोटर, पंखे और पंप सुधारा करता था. अब भी वह गाँव में वही काम कर रहा था . गाँव के लोग जिसे पगला कह कर बुलाता थे वह भी मिला . वाकई वह पगला ही था. सब लोग आपस में बैठ कर यही चर्चा कर रहे थे कि सभा कब शुरू होगी...उसी भीड़ में उन्हें माधुरानी के खेत संभालने वाले संभाज़िराव भी दिखाई दिए लेकिन वह वहाँ से खिसक गया . मारुति टेलर भी मिला लेकिन उससे कोई बात न हुई. गाँव के महड़ू , लोहा सिंह , भोला वग़ैरह दिखाई दिए जिनके साथ कभी वह क्रिकेट खेला करता था . उनसे मिल कर पता चला अब उनके बाल-बच्चे क्रिकेट खेला करते है . गाँव के नौजवान पहले ही सभा में आ चुके थे. उनका माधुरानी से क्रिकेट किट माँगने का इरादा था . उनसे बातें हुईं तो पता चला पिछले चुनाव में माधुरानी ने उनको क्रिकेट किट दिलाई थी . माधुरानी की यह बात अच्छी थी . बच्चों को क्रिकेट कीट दिलाई तो सारा गाँव खुश. दो तीन लड़के दिखाई दिए गणेश ने पूछा तो पता चला वे बॅंडू होटेल वाले के लड़के थे. माँ बाप अब भी वहाँ होटेल चलाते थे और यह आवारा गर्दी करते फिरते थे. कोई उनकी बुराई कर रहा था..उन लड़कों में एक 15-16 साल का लड़का भी था ... वह गूंगे का बेटा था. गणेश बाबू को गूंगे और गूंगी की याद हो आई.

गूंगी का आगे क्या हुआ..?

उसका ब्याह हुआ या नही?...

वह यह सब गाँव वालों से पूछने ही वाले थे कि उनके कार्यकर्ता ने उनके पास आ कर कान में फुसफुसाते हुए खबर दी "आज सभा में कुछ गड़बड़ी होने का अंदेशा है...मधुकर बाबू ने सतर्क रहने को कहा है.."

आख़िरकार माधुरानी की गाड़ी और उसकी गाड़ी के सामने सायरन बजाती हुई पुलिस की गाड़ी वहाँ आ खड़ी हुई. पूरी भीड़ में उत्साह की लहर दौड़ गयी. सब लोग उचक-उचक कर माधुरानी को देखना चाह रहे थे. मंच पर जाते समय कई लोगों ने वहाँ जा कर माधुरानी के गले में फूलों के हार पहनाए. किसको माला पहनाने का मौका देना है और किसको नहीं यह तय करने का काम गणेश बाबू का था सो उन्होने अच्छी तरह निभा दीया था . हार पहनाते समय कोई गड़बड़ न हुई थी.

जिनको हार पहनाने के लिए चुना गया था उनको गणेश बाबू और उनके आदमियों ने मंच के पास ही जहाँ से माधुरानी गुज़रने वाली थी वहाँ खड़ा कर दिया था . लोगों से फूल मालाएँ स्वीकार कर माधुरानी उसे लोगों की भीड़ में उछाल रही थी. लोग उसे पाने के लिए हो हल्ला मचाने लगे.


फिर भाषण शुरू हुआ. माधुरानी के साथ आए मंच पर बैठे नेता एक-एक कर भाषण झाड़ रहे थे. उन्हें यह अच्छा मौका मिला था . भाषण के दौरान किसी वाक्य पर माधुरानी के आदमी तालियाँ बजाते थे.उनकी देखा देखी जनता भी तालियाँ बजाती थी. उन कार्यकर्ताओं की मानों यह ज़िम्मेदारी थी और वे बीच बीच में इसी तरह तालियाँ जब बजाते तो जनता भी उनका साथ देती. भाषण पर भाषण हो रहे थे. माधुरानी का भाषण सब से आखरी में होना था.

गणेश बाबू को उन उकताऊ भाषण को सुनने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. उन्होने जमुहाई लेते हुई आस पास नज़रें दौड़ाई , एक कोने में उन्हें एक बूढ़ा बैठा हुआ दिखाई दिया. वह बूढ़ा उन्हें जाना पहचाना लग रहा था. उन्होने याददाश्त पर ज़ोर डाला लेकिन उन्हें याद न आया. उस आदमी का ध्यान भी उनकी ओर गया लेकिन उसने झटसे अपनी नज़रें दूसरी ओर फेर लीं. गणेश बाबू चलकर उस आदमी के पास गये. उस आदमी ने चोर निगाहों से उन्हें अपने पास आते हुए देखा. गणेश बाबू उसके बगल में आ कर बोले "आपको पहले भी कहीं देखा हुआ सा लग रहा है?"

"आप गणेश बाबू हैं ना?" उसने पूछा.

"हाँ लेकिन माफ़ कीजिए मैने आपको पहचाना नहीं"

"हम उजनी गाँव से आए हैं" उनको याद आया की यह तो गूंगी का बाप है ...पांडुरंग? ना ना .. पांडुरंग तो गूंगे का बापू था यह शायद रघुजी होंगे...

"हां..हां... याद आया" गणेश बाबू फट से बोल पड़े "सब कुशल मंगल है?"

"हां सब ठीक ही है..दो वखत की रोटी मिल जात है...और हम जैसे ग़रीब आदमी अधिक क्या चाहे?" उसने जवाब दिया.
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

Post by Jemsbond »

गणेश बाबू को जो बात जानना चाह रहे वह उसके दिए हुए जवाब से जान न पाए थे. वे और खुल कर बोले
"आपकी बेटी कैसी है?"

"बेटी?" उसने सवालिया निगाहों से पूछा.

"मेरा मतलब...आपकी गूंगी से है" गणेश बाबू ने साफ कहा .

गणेश बाबू को गूंगी का नाम मालूम न था यूँ भी सारा गाँव उसे गूंगी कह कर ही पुकारता था. रघुजी ने अपनी नज़रे चुरा लीं और मंच की ओर देखने लगे. शायद वह अपनी भावनाएँ छुपाने की कोशिश कर रहे थे. गणेश बाबू ने सोचा

कहीं मैने ग़लत बात तो न कह दी...बेकार में दिल दुखा दिया...

"माफ़ करिएगा...मुझे कुछ पता न था इसलिए ऐसे ही पूछ लिया" गणेश बाबू रघुजी के कंधे पर हाथ रखते बोले.

उसने दोबारा पलट कर गणेश बाबू की ओर देखा इस बार उसकी आँखें भर आईं थी. वह मंच की ओर देखते बोला " साहब उसकी किस्मत ही फूटी थी..."

"क्यों क्या हुआ" गणेश बाबू ने पूछा.

"उस हरामजादे गूंगे के ब्याह के बाद हम लोगन ने उसके लिए दूसरा लड़का पसंद किया था..." बोलते वक्त उसकी आवाज़ भर्रा गयी थी. गूंगी का बाप बोलते समय थोड़ा रुका. गणेश बाबू भी कहानी जानना चाह रहे थे.

"उसका ब्याह भी तय हो गया था....हमने खेती बाड़ी बेच कर दहेज की रकम भी खड़ी कर ली थी...लेकिन" वह बोला.

गणेश बाबू के दिमाग़ में तरह तरह के विचार आने लगे थे .

लेकिन..? लेकिन..क्या हुआ? उस लड़के ने भी गूंगी को नकार दिया क्या?… गणेश बाबू ने सोचा

"लेकिन जैसे ही बेटी को पता चला उसने खाना पीना छोड़ दिया...15 दिन से उसने कुछ न खाया पिया..ब्याह के ठीक एक दिन पहले वह चल बसी... हमको छोड़ कर चली गयी...." वह बूढ़ा अपनी आँखों के आँसू पोंछते हुए बोला.

"क्या????" गणेश बाबू चौंक कर बोले..आगे उस बूढ़े से और सवाल पूछने की उनमें कोई हिम्मत न थी. वह बूढ़ा अब मंच की ओर देख रहा था अपनी बेटी की यादों को छुपाते हुए.

बेचारी गूंगी... वह गूंगे से सच्चा प्यार करती थी...लोगों को उनके बीच यूँ आना न चाहिए था..उन्हें क्या हक था?… गणेश बाबू ने सोचा.

उन्हें थपथपा कर भारी कदमों से वहाँ से चले गये. और वे कर भी क्या सकते थे.


अन्य नेताओं का भाषण होने के बाद मधुरानी भाषण देने के लिए खड़ी हुई. माइक्रोफोन के सामने जा कर उसने वहाँ उमड़ी भीड़ को निगाह भर कर देखा . चारों ओर शांति छा गयी. लोग उसको सुनने के लिए बेताब थे.

"भाइयों और बहनों..." उसने पॉज़ लिया. लोगों ने ज़ोरदार तालियाँ बजा कर उसका स्वागत किया. आख़िरकार उसने अपना भाषण शुरू किया.

करिश्मा शायद इसी को कहते हैं… गणेश बाबू ने सोचा.

मधुरानी का भाषण जो चला वह पौन घंटे तक चला. लोग मंत्रमुग्ध हो कर उसे सुन रहे थे. गणेश बाबू ने उसके भाषणों के बारे में आज तक केवल सुना ही था. आज वह शिद्दत से यह महसूस कर रहे थे की वाकई वह एक बेहतरीन वक्ता है.

अचानक "मधुरानी मुर्दाबाद...." भीड़ के एक कोने से किसी ने तेज आवाज़ में कहा ..

नारा सुन कर गणेश बाबू होश में आए. उन्होने पलट कर देखा वहाँ कुछ लोग लाल झंडा और लाठियाँ पकड़े दिखाई दिए.

वैसे इस बात का अंदेशा था की सभा में कुछ गड़बड़ होने वाली है...यह ज़रूर संपत राव पाटिल जी के बेटे दीपक का किया धारा है... गणेश ने सोचा.

संपत राव पाटिल की मौत के बाद उनके बेटे दीपक ने उनकी जगह ले ली थी. शायद उसे मालूम था की पाटिल जी का क़त्ल मधुरानी ने करवाया है. क्योंकि उनके बीच अनबन की खबरें बहुत पहले से जाहिर हो चुकीं थी. पाटिल जी आज होते तो वे ऐसा कदम कभी न उठाते लेकिन यह जोशीला नौजवान था.....गर्म खून था.

"मधुरानी मुर्दाबाद" नारे अब पूरी सभा में गूंजने लगे थे.

चारो ओर अफ़रा-तफ़री मच गयी. मधुरानी भाषण देते हुए एक पल रुकी उसने मधुकर बाबू और अन्य कार्यकर्ताओं की ओर एक नज़र डाली. मधुकर बाबू बड़े तैश में अपने आदमियों को लेकर उस कोने में बढ़ने लगे जहाँ नारेबाज़ी चल रही थी. इधर मधुरानी का भाषण जारी था.

मधुकर बाबू और उनके चालीस पचास आदमियों के जाने पर स्थिति बद से बदतर हो गयी. उन लोगों ने लाठियाँ निकाल लीं और उन्हें मधुरानी के समर्थकों पर चलाना शुरू कर दिया. भागा-दौड़ी शुरू हो गयी. मधुरानी को मजबूरन भाषण रोकना पड़ा.

एक पुलिस अधिकारी माइक्रोफोन के सामने खड़े हो कर लोगों से शांति बनाए रखने की अपील करने लगा . लेकिन अब भीड़ काबू के बाहर हो चुकी थी. वह लाल झंडे वाले और लाठीधारियों की संख्या देखते देखते बढ़ने लगी. मधुरानी के कार्यकर्तों के पास कोई हथियार न था वह पत्थर उठा उठा कर उन्हें मारने लगे. इधर लाल झंडे वाले लाठियाँ भंज रहे थे. एक कार्यकर्ता ने जो पत्थर ले कर मारने के लिए फेंका वो सीधे एक आम के पेड़पर लटके मधुमखियोंकी छत्ते से जा लगा..सारी मक्खियों ने वहाँ मौजूद भीड़ को निशाना बनाना शुरू किया.

मधुमक्खियों के कारण और भी भगदड़ मच गयी .. धक्कामुक्की बढ़ गयी...यह पूरा प्लान मधुरानी के विरोधियों का ही था. लेकिन हालात इस कदर बेकाबू हो जाएँगे किसी को अंदाज़ा न था. पुलिस अधिकारी ने वायरलेस पर संदेश भेज कर और मदद माँगी.


वह लाल झंडे वाले लोग अब मंच की दिशा की ओर बढ़ चले थे . लेकिन गणेश बाबू और उनके कार्यकर्ता उन्हें रोकने लगे. उन्हें मालूम था की एक बार यह लोग मंच तक पंहुच गये तो मधुरानी और उसके साथ मौजूद अन्य नेताओं की खैर नहीं. मधुरानी की जान को ख़तरा था इसलिए वह जी जान लगा कर लड़ रहे थे. मधुमक्खियों का छत्ता वहाँ से पास ही था. उन्होने वहाँ भी हमला बोल दिया था. गणेश बाबू और उनके लोगों को एक साथ दो चीज़ों से बचना पड़ रहा था , एक तो उन गुण्डों की लाठियों से और दूसरे उन मधुमक्खियों से. खुद गणेश बाबू का चेहरा भी डंक से सूज कर लाल हो गया था लेकिन उन्हें इसकी परवाह न थी.

चाहे जान चली जाए मधुरानी का बाल भी बांका नही होना चाहिए..आख़िरकार अब वही तो मेरे जीने का सहारा थी...

शायद मैं उस से प्यार करने लगा हूँ ... वरना क्या मैं उसके लिए जी जान लड़ा कर लड़ता?...

उनके साथ के कुछ कार्यकर्ता वहाँ से भाग खड़े हुए , लेकिन गणेश बाबू को न जाने आज क्या हो गया था इस उम्र में भी वह लाल झंडे वाले लोगों को मार रहे थे. अब उनके हाथों में भी एक लाठी आ गयी थी जिससे वह अब जी जान से लड़ रहे थे.

जब यह बमचक मची थी तो गणेश बाबू को मधुकर बाबू मंच की ओर जाते दिखे.

" गणेश बाबू एक भी लौंडा उपर नहीं पंहुच ना चाहिए … जान ले लो इन सालों की..मैं उपर मधुरानी की सुरक्षा की व्यवस्था देखता हूँ" मधुकर बाबु ने कहा.

अब तक मैदान में पुलिस बल आ चुका था. उन्होने आँसू गैंस के गुब्बारे छोड़े और लाठी चार्ज करने लगे. लेकिन भगदड़ कायम थी. पुलिस बल भी वहाँ जमे लोगों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए काफ़ी न था.
गणेश बाबू हमलावरों को मार भागने मे लगभग कामयाब हो गये थे इतने में उनके करीब तीन कार्यकर्ता आ पंहुचे. गणेश बाबू समझ गये की उन्हें कोई खबर बतानी है.. वहाँ का इंतेज़ाम दूसरे कार्यकर्ता को सौंप कर वह उन तीनों के साथ एक कोने में आ खड़े हुए.

"साहब बुरी खबर है" एक आदमी बोला.

"क्या हुआ..ज़रा खुल कर बताओ" गणेश बाबू का कलेजा मुँह को आ रहा था "कही माधुरानी को कुछ हो तो न गया" उन्होने सोचा.

"मधुकर बाबू आज आपका गेम बजाने की फिराक में हैं" दूसरा आदमी बोला.

"क्या?!!..तुम लोगों को कैसे पता चला?" गणेश बाबू ने हैरान हो कर पूछा.

उन्हें मालूम था की मधुकर बाबू कभी न कभी यह चाल चलेंगे. लेकिन वह वक्त इतनी जल्दी आएगा उन्हें ऐसी उम्मीद न थी.

"राजू ने अपने कानों से सुना ...मधुकर बाबू को काशीनाथ से कहते हुए " तीसरा बोला..

"क्या कहा उसने?" गणेश बाबू ने पूछा.

" आ..आज अच्छा मौका है....इस की बजा डालो आज ... मुझसे ज़बान लड़ाता है हरामज़ादा...उसे मालूम नहीं म्यान में एक ही तलवार रह सकती है.. - ऐसा काशीनाथ को बोला वह"

"ऐ ..सा..?" गणेश बाबू सोचते हुए बोले.

"अब क्या करें?" गणेश बाबू बोले.

"साहब जी आप बस हुक्म कीजिए" राजू बोला .
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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गणेश बाबू ने उसकी ओर देखा. उसका फ़ैसला हो चुका था. उसे आदेश देने पर वह जान की परवाह किए बगैर उसकी खातिर जी जान लड़ा देने वाला था. गणेश बाबू के जबड़े भींच गये थे.

"हाँ वह सही है..एक म्यान में एक ही तलवार रह सकती है.." गणेश बाबू अपनी सोने की चेन और अंगूठियाँ निकाल कर उनके हवाले करते हुए बोले.

" जी साहब जैसी आपकी आज्ञा...वैसे वह भी मंच के नीचे भीड़ में उतरा हैं … एक ही लाठी से उसका सिर फोड़ दूँगा" एक दूसरा बंदा बोला.

"जी साहब" बाकी दोनों ने भी हामी भर दी और फिर वह सब अपनी लाठियों को संभालते हुए मधुकर बाबू की दिशा में बढ़ चले.


अन्य जगहों पर चाहे हालत बेकाबू हो गये हों लेकिन गणेश बाबू और उनके साथी पूरी ताक़त से लोगों को मंच की ओर जाने से रोके हुए थे. उनकी लाठीधारियों के साथ मुठभेड़ अब भी जारी थी. रह रह कर गणेश बाबू का ध्यान उस दिशा में चला जाता जहाँ उन्होने उन तीनों को मधुकर बाबू का गेम बजाने भेजा था. वैसे उन पर उनका पूरा भरोसा था लेकिन काफ़ी देर होने पर भी जब वे न लौटे तो उन्हें चिंता हुई.

इतने में वह तीनो गणेश बाबू को अपनी ओर आते हुए दिखाई दिए ...तीनों के चेहरे पर मुस्कुराहट थी...

यानी उन्होने सौंपा गया काम कर दिया... उन्होने सोचा.

अब उनके चेहरे पर भी मुस्कुराहट तैरने लगी . वे अब उनके मुँह से खुशख़बरी सुनना चाह रहे थे . इस दौरान वे तीनों उनके पीछे आ कर खड़े हो गये. वे पलटकर उनसे मुखातिब होने ही वाले थे की उन पर किसी ने पीछे से लाठी चलाई और वह लड़खड़ा कर नीचे गिर पड़े.

उन्होने पलटकर देखा तो उन तीनो में से ही एक बंदे ने पीछे से उनके सिर पर लाठी चलाई थी. उन्हें आश्चर्य हुवा था. वे थोडा सम्हलने को हुए थे की इतने में दूसरा ज़ोरदार वार उनके माथे पर हुआ ..इस बार यह वार उनके विश्वासपात्र राजू ने किया था.

.... अब तक गणेश बाबू को समझ आ गया कि उनके साथ धोखा हुआ है.

लेकिन क्यों? और कैसे?...

इसके बाद उनके शरीर पर लाठियों के अनगिनत वार किए गये . हमलावर वही तीन थे. उन तीनो ने लाठियाँ मार मार कर उन्हें अधमरा कर दिया था. तभी लाठीधारियों का एक बड़ा झुंड अपनी तरफ आते देख तीनों वहाँ से भाग खड़े हुए. नीचे पड़े खून से लथपथ कराहते हुए गणेश बाबू का ध्यान अचानक मंच के कोने में गया..चार पाँच कार्यकर्ता मधुरानी को उसकी गाड़ी तक पंहुचने में कामयाब हो गये थे , उन लोगों में मधुकर बाबू भी थे. वह लोग गाड़ी में झटसे बैठ गये. मधुकर बाबू और गणेश बाबू की नज़रें आपस में मिलीं . मधुकर बाबू उनकी ओर देख एक शैतानी हँसी हँसे. फिर मधुकर बाबू ने माधुरानी से बात करते हुए गणेश बाबू की ओर उंगली से इशारा किया.मधुरानी और गणेश बाबू की नज़रें मिली.

यानी..यानी...मुझ पर जो हमला हुआ वह मधुकर बाबू ने किया और वह भी माधुरानी की सहमति से?...

लेकिन क्यों...और कैसे??...

इतने में गणेश बाबू को मधुकरबाबू के गले में अपनी सोने की चेन दिखाई दी.

अच्छा तो ऐसा हुआ...

गणेश बाबू को सब समझ आया . गणेश बाबू को जो उन तीनो ने खबर दी इसमें भी मधुकर बाबू की चाल थी...उन्होने पहले उनको हमला करने के लिए उकसाया और जब गणेश बाबू ने उन तीनों को मधुकर बाबू का गेम बजाने भेजा तो उसने यह बात जा कर मधुरानी को बता दी और सुबूत के तौर पर उनकी चेन और अंगूठियाँ दिखा दी. और फिर जब मधुरानी को यह बात मालूम पड़ी की गणेश बाबू उनको बताए बगैर इतना बड़ा कदम उठा सकते हैं तो वे भरोसे के काबिल नही हैं. फिर मधुकरबाबू ने गणेश बाबू का गेम बजाने के लिए मधुरानी से इजाज़त माँगी - जो उसने दे दी. लेकिन गणेश बाबू के मन में एक झूठी आशा पल्लवित हुई.

अब वह भी मुझे यहाँ से ले जाने का इन्तेजाम कराएगी... वे जाने के लिए तैयार ही थे.

लेकिन यह क्या ? ... वह नज़र अब उनको पहचानती तक न थी , इतना बड़ा दंगा फ़साद होने के बावजूद उन नज़रों में डर भी न था.. दुख भी न था और न दया थी..उन नज़रों में थी एक महत्वकांक्षा..,,,.रास्ते में जो भी आए उसे पैरों तले निर्ममता से रौंदने की चाहत....

मधुरानी ने उन्हें देख कर अनदेखा कर दिया और ड्राईवर को वहाँ से ले चलने का आदेश दिया. उनकी गाड़ी देखते ही देखते नज़रों से ओझल हो गयी. गणेश बाबू देखते ही रह गये. गणेश बाबू को अपनी आँखों पर विश्वास न हुआ. अन्य कार्यकर्ता अब भी लाठीधारियों से लड़ रहे थे।… यह सोच कर की मधुरानी अब भी वहाँ मौजूद है. यानी इन सब लोगों को यूँ ही मरने के लिए छोड़ मधुरानी वहाँ से भाग खड़ी हुई थी.

गणेश बाबू अब नीचे पड़े हुए अपनी जान बचाने की कोशिश कर रहे थे. इतने में लोगों का बदहवास झुंड उस ओर आया ...वह संख्या में इतने ज़्यादा थे की गणेश बाबू बच ना सके . उस भगदड़ में गणेश बाबू को भीड़ ने बेदर्दी से अंजाने में पैरों तले कुचल डाला..उनकी दर्द भरी चीखें किसी को शोर गुल में सुनाई न दी.

लोगों की भीड़ अब जा चुकी थी लेकिन गणेश बाबू के शरीर का एक भी हिस्सा साबुत न बचा था. थोड़ा हिलाने पर भी उन्हें बहुत दर्द होता था. उन्होने उसी हाल में पड़े पड़े आस पास देखा मधुमक्खियाँ अब भी लोगों को डंस रही थी.....लोगों ने उनसे बचने के लिए उनमें से कई मक्खियों को मसल दिया था. लेकिन वह कार्यकर्ता मक्खियाँ थी..उनका काम अपनी रानी को बचाना था..

गणेश बाबू अब अपनी मौत की प्रतीक्षा करने लगे. अब मौत ही उन्हें इस जानलेवा दर्द से छुटकारा दिला सकती थी. अचानक उनकी नज़र आकाश में गयी उन्होने देखा उस छत्ते की रानी मक्खी अपने साथ कुछ नर मधुमक्खियों और कुछ कार्यकर्ता मक्खियों को ले पूर्व दिशा की ओर उड़ रही थी...... नयी जगह की खोज में....और वह जा रही है इस बात से बेख़बर उसके अन्य कार्यकर्ता अब भी लोगों को डंस रहे थे.......ठीक माधुरानी के कार्यकर्ताओं की तरह.....

गणेश बाबू ने आखरी बार इधर उधर देखा उनके साथी भी लाठी खा कर मर रहे थे तो कुछ अब भी लड़ रहे थे. गणेश बाबू ने सोचा:

इनमें से प्रत्येक आदमी एक कार्यकर्ता मक्खी की मौत मर रहा है....…

उन हालात में भी गणेश बाबू के चेहरे पर समाधान की एक झलक दिखने लगी. उन्हें इस बात की खुशी थी की उनके आस पास मधुरानी के कार्यकर्ता एक कार्यकर्ता मधु मक्खी की मौत मार रहे थे.…

लेकिन जो मौत उनको मिल रही थी वह मौत थी एक नर मधुमक्खी की....

- समाप्त -
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