मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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Jemsbond
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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गणेश ने फ़ैसला कर लिया की वह अब मधुरानी से कोई रिश्ता नहीं रखेगा. वह उठा और अपने घर जाने के लिए बॅग भरने लगा. लेकिन उसे अहसास हुआ की घर जाने की बात को लेकर वह उतना उत्साहित न था. वह समझ न पा रहा था की ऐसा क्यों था. आख़िर इतने दिनों बाद वह बीवी से मिलने जा रहा था फिर भी उससे मिलने को लेकर वह उत्साहित न था. शायद इस मधुरानी के चक्कर में वह इतना उलझ चुका था की उसे बीवी बच्चों का ख्याल न रहा .

लेकिन अब ऐसा कभी नहीं होगा अब इस मधुरानी का किस्सा ख़त्म .... बिल्कुल ही ख़त्म.... गणेश ने मन ही मन दोहराया.

पिछली दो रातों से गणेश की आँख न लग पाई थी सोमवार रात भी उसने उसी बेचैनी में काटी .

अच्छा हुआ जो समय रहते मुझे माधुरानी का सच पता चल गया...

लेकिन मैं अब भी न जाने क्यों बैचें हूँ? … गणेश परेशन हो उठा .

सुबह उठ कर गणेश नहाया धोया , दाढ़ी बनाई . बैग में से धुले हुए इस्त्री किए हुए कपड़े निकाल कर पहने और बैग बंद करी. सारजा बाई को उसने कल ही इत्तला कर दी थी . बैग ले कर वह घर से बाहर निकला और दरवाज़ा बंद कर ताला लगाया . ताला लगाते समय उसने यह सोच लिया की वह दुकान की ओर न देख कर सीधे बस स्टाप जाएगा.

ताला चढ़ा कर वह मुड़ा और बोझिल कदमों से चलने लगा लेकिन उसके कदम बरबस ही उसे माधुरानी की दुकान की ओर ले जाने लगे .

"कैसे हो गणेश बाबू.. दो रोज हो गये आपको देखे बगैर" मधुरानी उसे दुकान की ओर आते देख बोल उठी " कुछ जी ठीक ना था का?"

" हाँ ज़रा तबीयत ठीक न थी..."

"और ए बॅग उठाए तालुका जा रहे हो का?"

गणेश को अब अहसास हुआ की इसने मज़ाक में ही सही उसकी बीवी के बारे में अब तक कभी कोई पूछताछ न की थी.

" हाँ वहीं जा रहा था"

" ए अच्छा हुआ .... हमरी दुकान का भी काफ़ी समान ख़त्म हुई गवा है और आप तालुका जा रहे हो"

गणेश मौन खड़ा रहा.

" ए लीस्ट लीजियो हमने विलास से बनवाई रही ..."

उसने लिस्ट उसे थमाते हुए कहा , उसने लिस्ट अपनी जेब में रखी और चलने के लिए मुडा.

" ओ गणेश बाबू रुकिये तो ज़रा समान कैसे लावेंगे ? ए बड़ी थैली रखिए "

गणेश ने वह थैली लेने के लिए हाथ बढ़ाया . हाथों में थैली लेते हुए मधुरानी के नर्म मुलायम हाथों का स्पर्श पा कर वह रोमांचित हो उठा.

यही वो नर्म अहसास ... यही वह नाज़ुक सी छुअन....

उसकी सारी उदासी मानों गायब से हो गयी थी एक नया जोश उसकी रगों में दौड़ रहा था. उसने दूसरा हाथ थैली पकड़ने के लिए आगे बढ़ाया और मौका पा कर उसे छू लिया , उसने मधुरानी की आँखों में आँखें डाल कर देखा:

वही शोख नज़र...

वही मीठी मुस्कान ...

उसकी सारी उदासी दूर हो गयी. वह बड़े जोश में थैली उठाए बस स्टाप की ओर बढ़ा . गली में मुड़ते वक्त उसने मधुरानी की ओर देखा. वह अब भी उसकी ओर देख कर मुस्कुरा रही थी. वो गली में मूड गया और तेज कदमों से बस स्टाप को ओर चल पड़ा. उसे अब पूरी तरह अहसास हो गया था की वह भी अब मधुरानी की कार्यकर्ता मक्खियों के झुण्ड में में शामिल हो गया था.

..................गणेश बाबू जब अपने खयालोंसे होश मे आए ....
उन्होने इर्द गिर्द देखा , हॉल लगभग खाली हो गया था. यानी कई लोग सरकार से मिल कर लौट चुके थे . गणेश बाबू का बेटा वीनू भी कहीं दिखाई न पड़ा. गणेश बाबू ने हॉल से बाहर आ कर देखा वीनू वहाँ भी न था

शायद उकता कर घर चला गया होगा..

आजकल लड़कों में कोई सब्र नहीं ..

नौकरी पाने के लिए न जाने कैसे- कैसे पापड़ बेलने पड़ते हैं , द्वारे द्वारे घूमना पड़ता है तब कहीं जा कर नौकरी मिलती है...

उन्होने सोचा इतने में किसी ने पुकारा

"गणेश बाबू गावंडे"

गणेश बाबू का चेहरा खुशी से चमक उठा. खुशी में अपने सामान की थैली लेने के लिए गणेश बाबू अपनी कुर्सी की ओर जाने लगे.

"गणेश बाबू गावंडे.. कौन हैं?" उनका नाम दोबारा पुकारा गया.

"मैं.. मैं.... गणेश बाबू गावंडे .." गणेश बाबू ने अपनी थैली संभालते हुए जल्दबाज़ी में दरवाज़े की ओर आते हुए कहा.

" अरे तो जवाब देने का क्या लेंगे जनाब..यहाँ आपका शुभ नाम चिल्ला चिल्ला कर मेरा हलक सूखा जा रहा है.." वह आदमी गणेश बाबू पर बरस उठा .

गणेश बाबू उसकी ओर देख कर एक खिसियानी हँसी हँसे.

" जाने कैसे कैसे नमूने मुँह उठा कर चले आते हैं यहाँ ... अब इन्ही को देखिए .. मुँह में दही जमा हुआ है इनके .. जवाब देना ज़रूरी नही समझते .. इन्हें लगता है मानों इन्हे सब पहचानते हैं ... खुद को न जाने क्या फिल्मी हीरो समझते हैं.." वह आदमी भुनभुनाते हुए दूसरे आदमी से कहने लगा.

गणेश बाबू ने डरते डरते अंदर जाने के लिए दरवाज़ा धकेला. उन्होने भीतर झाँक कर देखा . सामने ही एक मुलायम सोफे पर बैठी मधुरानी उन्हें दिखाई दी. जिसे लोग अदब से सरकार कहते थे वह मधुरानी ही थी . गाँव की एक मामूली दुकानदार से ... ग्राम पंचायत का चुनाव जीत कर सरपंच बनी ... फिर पंचायत समिति का चुनाव जीतते हुए ....आख़िरकार वह विधायक के पद तक आ पंहुची थी. उसके बगल में ही पाटिल बैठे थे .

उसकी इस उड़ान में यक़ीनन इन पाटिल साहब का ही हाथ होगा ... गणेश बाबू ने सोचा .

गणेश बाबु दरवाजे पर खड़े थे. लेकिन मधुरानी का ध्यान दरवाज़े की ओर न था. वह पाटिल जी से किसी मसले पर बातें कर रही थी . गणेश बाबू ने दरवाज़े को ज़रा और खोला और भीतर आ गये. लेकिन वह अंदर आए इसका ख्याल भी किसी को न था . वह दोनो अभी भी अपनी चर्चा में मग्न थे. गणेश बाबू पास ही एक कुर्सी के सामने जा कर उहापोह की स्थिति में खड़े रहे.

खुद से कैसे बैठूं किसी ने बैठने के लिए कहना चाहिए...

यूँ भी अबतक जो बेइज़्ज़ती हुई है वह कोई कम थोड़े ही है ?...

अंदर चिट्ठी भिजवाने के बावजूद भी मधुरानी ने इतनी देर इंतेजार करवाया...

गणेश बाबू ने सोचा.

मधुरानी ने हालत के मुताबिक खुद को ढाला था , इसका सबसे बड़ा सुबूत यानी उसकी भाषा जो शहर में रह कर साफ़ हो गयी थी. वहीं उनकी अपनी भाषा सुदूर गाँवों में काम कर गँवई हो गयी थी . उनका रहन सहन भी बदल गया था पॅंट शर्ट पहनना छोड़ अब वह शर्ट और पायजामा पहनने लगे थे.

इंसान को हमेशा तरक्की की राह चलना चाहिए .. जैसे मधुरानी चली ...मेरी तरह उल्टी दिशा में नहीं... उन्होने सोचा

उसके हाव भाव में यूँ तो कोई ख़ास फ़र्क नज़र नहीं आया. यूँ भी उसकी अदाएँ किसी रानी से कम न थी.
धीरे - धीरे पाटिल साहब और मधुरानी की चर्चा गर्म होते- होते फिर बहस में बदल गयी. मधुरानी अपनी बात ज़ोर दे कर मनवाना चाहती थी. लेकिन पाटिल जी थे की समझने को तैयार ही न थे , बहस गर्म होती जा रही थी. गणेश बाबू को महसूस हुआ की कहीं वे ग़लत समय पर तो न आ गये ? शायद थोड़ी देर और राह देख सकते थे. गणेश बाबू बाहर जाने को जैसे ही मुड़े तभी मधुरानी का ध्यान उनकी ओर गया.

"आइए गणेश बाबू विराजिये" मधुरानी ने थोड़ी देर अपनी चर्चासे बहार आते हुए कहा.

गणेश बाबू को मानो उसके साथ बिताए हुए पुराने दिन याद आने लगे - उसकी वही चंचल शोख आँखें , वही शरारती मुस्कुराहट. उन्होने उसकी ओर देखा. यही चीज़ें आज भी कायम थी केवल समय के साथ चेहरे पर थोड़ी गंभीरता आ गयी थी. उसने एक पल भी एहसास होने न दिया की कुछ देर पहले वह ताव ताव में बहस कर रही थी, यूँ तो अपने चेहरे के हाव भाव एक पल में बदलने की उसे महारत हासिल थी और गणेश बाबू इस बात से खूब वाकिफ़ थे.
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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गणेश बाबू सकुचाते हुए मधुरानी के सामने सोफे पर बैठ गये.

"बड़े दिनों बाद मिलना हुआ.." मधुरानी ने उलाहना देते हुए कहा.

गणेश बाबू हौले से मुस्कुराए.

"कहिए कैसे आना हुआ..?" मधुरानी ने पूछा

पाटिल जी ने पहचान दिखाना भी ज़रूरी न समझा. पाटिल जी गुस्से में तड़ से उठ बैठे और पैर पटकते हुए वहाँ से चले गये. मधुरानी चोर निगाहों से उनको जाते हुए देख रही थी.

" मधुरानी... मॅडम" सिर्फ़ मधुरानी कहना उचित न होगा ऐसा जानकार गणेश बाबू ने उनके नाम के आगे मॅडम जोड़ा. 'मॅडम' कहते हुए गणेश बाबू थोडा रुके .

मधुरानी ने कोई ऐतराज़ न जताया "हाँ… हाँ .. कहिए रुक क्यों गये?"

"मॅडम वह मेरे तबादले के बारे में कुछ कहना था.."

"याने तबादला कराना है या रुकवाना है..?"

"रुकवाना है.."

"ठीक है ... ठीक है...एक काग़ज़ पर आप अपना पद , वरिष्ठ का नाम और इलाक़ा इत्यादि बातें ज़रा विस्तार में लिखिए...बाकी हम देखते हैं.."

गणेश बाबू ने तुरंत अपनी जेब से एक काग़ज़ निकाला और मधुरानी के सामने रखते हुए बोला " यह रही अर्ज़ी मैने इसमे सब कुछ लिखा है"

"नहीं मेरे पास नहीं .. बाहर दरवाज़े के करीब हमारे सेक्रेटरी साहब बैठे हैं उन्हीं को दीजिए.."

"आपका बहुत बहुत धन्यवाद मॅडम.."

"अरे गणेश बाबू आप तो हमें शर्मिंदा कर रहे हैं" मधुरानी ने कहा.

"लेकिन काम तो हो जाएगा न मॅडम.."

"होगा होगा यक़ीनन होगा...फ़िक्र न करें.." मधुरानी ने जवाब दिया.

मधुरानी का इशारा समझ कर गणेशबाबू वहाँ से चलने को हुए.


गणेश बाबू कमरे से बाहर आए. गणेश बाबू के मन में मधुरानी के प्रति कृतज्ञता थी. उन्होंने महसूस किया की भीतर का गलिचा तो बाहर बिछे गलीचे से भी उम्दा और मुलायम है..उस.... पर चलते हुए उन्हें ऐसा अहसास हो रहा था मानों बादलों पर उड़ रहें हों. गणेश बाबू को उस बंगले में रखी कीमती चीज़ों और उम्दा गालीचे को देख कर मधुरानी की अमीरी का अहसास हो रहा था. गणेश बाबू के मन में एक ही पल जलन और दुसरे पल मधुरानी के प्रति अभिमान उमड़ आने का अहसास हुआ.

वाकई मधुरानी ने कम समय में काफ़ी तरक्की की है....

उसका मुझसे व्यवहार चाहे जैसा हो लेकिन उसने जो हासिल किया है उसके लिए उसे श्रेय देना ही होगा...

उन्होने अपने आप से कहा. इतने में सामने का दरवाज़ा खोल कर भरे पूरे शरीर का एक लंबा चौड़ा आदमी - सफेद लिबास में.. किसी नेता की भाँति चलते हुए अंदर आया.

अरे यह तो मधुकररावजी हैं ...

मधुकर बाबू गणेश बाबू के बगल से गुज़रने लगे लेकिन शायद उनका ध्यान कहीं और था या शायद उन्होने उनको देख कर भी अनदेखा कर दिया .

बाहर जो आदमी कह रहा था वह सब सच ही था. वाकई मधुरानी का आदमी भीड़ से अलग नज़र आता है. तभी मधुकर बाबू मधुरानी के कमरे का दरवाज़ा खोल बेधड़क भीतर चले गये.

यक़ीनन यह मधुरानी का ही आदमी होगा वरना यूँ बेख़टके अंदर कैसे चला गया?...

गणेश बाबू सामने दरवाज़े की तरफ चलने लगे . अचानक उन्हें कुछ याद आया और उनके पैरों मीं मानों ब्रेक लग गये.

अरे वीनू की नौकरी के बारे में कहना तो भूल ही गया ..

अब क्या करूँ?...

अभी मैं बाहर थोड़े ही न गया हूँ ..

वापस लौटता हूँ ..

लेकिन मैं बाहर निकला ही क्यों?...

अब क्या वापस हॉल में सारा दिन इंतेजार करना होगा ?...

वह वीनू पूरा घर सिर पर उठा लेगा..

गणेश बाबू तुरंत ही वापस मुड़े और मधुरानी के कमरे के बंद दरवाज़े के करीब आ कर रुक गये.

अब जाऊं या थोड़ी देर राह देखूं?..

दरवाज़ा थोड़ा खोल कर देखता हूँ...

गणेश बाबू ने हौले से ही दरवाज़े को धकेल कर थोडा टेढ़ा किया और भीतर झाँका . भीतर का दृश्य देख कर उनके तो होशो हवास ही उड़ गये . अभी-अभी अंदर आए मधुकर बाबू मधुरानी से सट कर बैठे थे और उसके माथे पर झूलते हुए बालों की लटों में अपनी उंगलियाँ फँसाए खेल रहे थे. गणेश बाबू ने तुरंत ही दरवाज़ा बंद करना चाहा, लेकिन शायद दरवाज़े में कुछ अटक सा गया था सो बंद न हुआ. दरवाज़े से अंदरूनी दृश्य साफ दिख रहा था और अंदर की आवाज़ें भी साफ साफ सुनाई दे रहीं थी.

"मधु ये यहाँ पर" मधुकर बाबू ने एक काग़ज़ और स्टंप पॅड मधुरानी के सामने रखते हुए कहा.

"यह क्या है..?"

"क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं?.. क्या मैं तुम्हें धोखा दूँगा..? उस दिन जिस कारखाने को खरीदा था यह उसके काग़ज़ात हैं.."

"मेरा वह मतलब न था.. मेरे जानू" उसके गालों को अपने हाथों से खींचते वह बोली.

गणेश बाबू के पाँव काँपने लगे.

"नहीं .. नहीं अब मेरा यहाँ खड़े रहना ठीक नही......कहीं उन्होने मुझे यहाँ खड़ा देख लिया तो" लेकिन उनके पैर थे की वहाँ जम से गये थे.

मधुरानी ने मधुकर बाबू से स्टॅंप पॅड लिया और उसमें अपना अंगूठा दबा कर सामने रखे किसी काग़ज़ पर निशान लगाया.

गणेश बाबू को देख कर यकीन न हुआ , उन्हें आज यह पहली बार पता चला की मधुरानी अनपढ़ थी उसके लिए काला अक्षर भैंस बराबर था.

हद हो गयी...मधुरानी तो अपने राज़ को बनाए रखना खूब जानती है...

" उस पाटिल के पर निकल आए हैं.." मधुरानी ने मधुकर बाबू से कहा

" शायद उसे हमारे बारे में सब पता चल गया.." मधुकर बाबू आँखें मिचका कर हंसते हुए बोले.

" के मतलब ?.. पता चले तो पता चले कल मुए को .. हम का डरे हैं उससे ... का हम उसकी रखैल लागे हैं..? उसका जल्दी ही कोई इलाज करना पड़ेगा"

" उसकी परवाह मत करो.. मैने उसका इन्तेजाम कर लिया है"

"बात कुछ ज़्यादा ही बिगड़ गयी है...एक दो दिन में ही कोई कदम उठना पड़ेगा"

"एक दो दिन कहाँ?...कल का सूरज वह देख नहीं पाएगा"

" ... मेरा जानू" मधुरानी ने दोबारा उसके गाल मसले.

" तुम्हारी इसी मर्दानगी पर मैं फिदा हो गयी...पता है?" मधुरानी उसे सहलाते हुए बोली.

"जानती हो मुझे तुम्हारी कौन सी अदा बड़ी भाती है...?"

मधुरानी उसकी आँखों में देखती हुई धीरे से मुस्कुरा दी.

"तुम्हारी इन क़ातिल मतवाली नज़रों पर हम दिल लुटा बैठे हैं ... हाय! "

गणेश बाबू अब सम्हल गये थे वह घूम कर जाने के लिए मुड़े.

"कौन हैं वहाँ ?" पीछे से मधुरानी की आवाज़ आई गणेश बाबू के मानों पैरों पर ब्रेक से लग गये.

क्या करूँ..वापस जाऊं?… उनका दिल धड़कने लगा.

वह वापस चलकर मधुरानी के दरवाज़े की ओर आए . दरवाज़ा अब भी थोड़ा खुला हुआ था वह खोल कर गणेश बाबू अंदर आए उन्हें हैरत हुई कि वक्त आने पर वह ऐसी हिम्मत भी दिखा सकते हैं.

"मैं हूँ..." गणेश बाबू ने हौले से अंदर आते हुए कहा.
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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मधुरानी और मधुकर बाबू अब दूर दूर बैठे हुए थे. मधुकर बाबू अपने हाथों में काग़ज़ धरे उस काग़ज़ को पढ़ने का ढोंग कर अपने हाव भाव छिपा रहे थे तो मधुरानी के चेहरे पर वापिस वही शरारती मुस्कान खेल रही थी.

"क्या कुछ भूल गये..बाबूजी?" उसने अंजान बनते हुए कहा शायद वह गणेश बाबू के चेहरे के हाव भाव को पढ़ने की कोशिश कर रही थी.

गणेश बाबू इस सबसे अंजान बनते हुए बोले " वह.. म.. मेरे बेटे की नौकरी के ब..बारे में ब.. बतलाना तो मैं भूल ही गया"

"अच्छा .. अच्छा.. आइए बैठिए.." उसने गणेश बाबू को बैठने का इशारा किया.

उसने करीब बैठे मधुकर बाबू को नज़रों से न जाने कौन सा इशारा किया वह वहाँ से उठ कर चलते बने.

मधुरानी सोफे पर आराम से बैठती हुई बोली "गणेश ... यहाँ मेरे बगल में आ कर बैठिए"
गणेश बाबू मानों किसी कठपुतली की तरह उठे और उसके बगल में थोड़ा अंतर रख बैठ गये.

"आजकल वह पहले वाली बात नहीं रही... शायद बढ़ती उम्र का असर है तबीयत कुछ नासाज़ है" मधुरानी बोली.

गणेश बाबू कुछ न बोले

"देखो तो मेरी नब्ज़ टटोलो तो.." उसने अपना हाथ उनके आगे करते हुए कहा , ".. आज कल ब्लड प्रेशर की दिक्कत हो गयी मुझे"

गणेश बाबू ने काँपते हाथों से उसका हाथ अपने हाथों में लिया और उसकी नब्ज़ टटोलने लगे. मधुरानी का हाथ अब भी वैसा ही मुलायम था. उसके हाथों का स्पर्श वह भूले न थे.

"क्या पढ़ा -लिखा है आपका बेटा?"

"बी.कॉम. किया है"

"एक ही बेटा है"

"जी हाँ.."

"एक ही बेटा है...बढ़िया है...मुझे तो मालूम ही न था.."

गणेश बाबू नब्ज़ टटोल रहे थे. लेकिन बीच बीच में मधुरानी के बोलने से उन्हें वापस टटोलना पड़ रहा था.

"बेटे ने कहीं अर्ज़ी दी है?"

"हाँ .. नगर निगम में एक जगह खाली है.. क्लार्क की.. वहीं अप्लाइ किया है.."

"उसका नाम , जिस पद के लिए अर्ज़ी दी इत्यादि बातें विस्तार से एक काग़ज़ पर लिख दें" मधुरानी ने गणेश बाबू के हाथों से अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा.

"हाँ मैं सब लिख कर लाया हूँ" गणेश बाबू जेब से काग़ज़ निकालते हुए बोले.

"मेरे सेक्रेटरी के पास अर्ज़ी दे दीजिए" मधुरानी फ़ोन के पास जाती बोली.

गणेश बाबू चलने की इजाज़त पाते हुए खड़े हो गये . मधुरानी फ़ोन का एक बटन दबाते हुए बोली.

"नारायण बाबू को फ़ोन लगाइए" उसने फ़ोन रख दिया.

"ठीक है... आता हूँ" गणेश बाबू बोले.

मधुरानी गणेश बाबू का हाथ हाथों में लेती हुई बोली "यूँ ही आते रहिएगा ....पुरानी यादें ताज़ा हो जाएँगी"

"हाँ हाँ .. क्यों नहीं? क्यों नहीं?" गणेश बाबू किसी तरह बोले.

"जिंदगी की इस दौड़ में इंसान पीछे छूट गयी बातों को जब याद कर रोता है तो गुज़रे ज़माने की कुछ मीठी यादें ही उसके जीने का एक मात्र सहारा होती हैं .." मधुरानी एकदम दार्शनिक अंदाज़ में बोली, उसने गणेश बाबू का हाथ छोड़ा.

गणेश बाबू मुड़ कर दरवाज़े की दिशा में चलने लगे. वह गणेश बाबू को दरवाज़े तक छोड़ने चल कर आई .

"ठीक है..." गणेश बाबू जाते जाते उसकी ओर देख मुस्कुरा कर बोले. वह गर्दन हिला कर मुस्कुरा उठी और दरवाज़ा बंद हो गया.


आज रात गणेश बाबू की मानों नींद उड़ सी गयी थी. वह करवट पे करवट बदले जा रहे थे. एक ओर जहाँ मधुरानी के नर्म मुलायम हाथों की छुअन से उनकी पुरानी यादें ताज़ा हो गयीं थी वहीं दूसरी ओर दरवाज़े की आड़ से देखे गयी मधुकर बाबू और मधुरानी की रंगरैलियाँ याद आ रहीं थी.

उनकी बीच कुछ बातें हुईं थी..

उनके बीच हुई बातों का एक एक लफ्ज़ उनके दिमाग़ में घूमने लगा

" उस पाटिल के पर निकल आए हैं.."

" शायद उसे हमारे बारे में सब पता चल गया.."

" के मतलब ?.. पता चले तो पता चले कलमुए को .. हम का डरे हैं उससे ... का हम उसकी रखैल लागे हैं..? उसका जल्दी ही कोई इलाज करना पड़ेगा"

यानी की पाटिल जी से भी मधुरानी के रिश्ते होंगे..? गणेश बाबू ने वह बातें याद कर सोचा. फिर दोबारा उनके संवाद उनके दिमाग़ में घूमने लगे.

" उसकी परवाह मत करो.. मैने उसका इन्तेजाम कर लिया है"

"बात कुछ ज़्यादा ही बिगड़ गयी है...एक दो दिन में ही कोई कदम उठना पड़ेगा"

"एक दो दिन कहाँ?...कल का सूरज वह देख नहीं पाएगा"

गणेश बाबू सोच में पड गये… मतलब वह पाटिल जी का कत्ल करेगा? नहीं नहीं... मधुरानी चाहे जैसी भी हो वह इस हद तक नहीं गिर सकती…

गणेश को मधुरानी की कही वह बातें याद आईं

"गणेश ... यहाँ मेरे बगल में आ कर बैठिए..."

उन्होने सोचा:

मधुरानी ने भले ही मुझे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया हो लेकिन आज भी शायद उस के दिल के किसी कोने में आज भी मेरे लिए कुछ जज्बाद होंगे....

..... या शायद वह अभी भी मुझे अपने जाल में फँसाना चाहती है?

लेकिन अब मुझे अपने जाल में फँसा कर भी वह क्या हासिल कर लेगी..

और अब मैं जवान थोड़े ही न रह गया हूँ ...

लेकिन प्यार की कोई उम्र नहीं होती ..

और मेरी उम्र हो गयी तो क्या? वह भी कौन सी जवान है?..

"आजकल वह पहले वाली बात नहीं रही... शायद बढ़ती उम्र का असर है तबीयत कुछ नासाज़ है"

कहीं इन लफ़्ज़ों में मधुरानी की बेबसी तो नज़र नहीं आती? ऐसे हालत में उसको भी किसी की कमी खलती होगी..

कहीं वो मुझमे अपने प्रेमी को तो नही खोजती?…

"देखो तो मेरी नब्ज़ टटोलो तो.."

गणेश के कानों में मधुरानी की बातें गूंजने लगी और उसके रोंगटे खड़े हो गये

उसके वह मुलायम हाथ और नर्म छुअन.
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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"यूँ ही आते रहिएगा ....पुरानी यादें ताज़ा हो जाएँगी" गणेश बाबू को वहाँ से लौटते समय मधुरानी के कहे वह लफ्ज़ याद आए.

उसने ऐसा कह कर कहीं मुझे कोई इशारा तो न किया ?..वरना वह ऐसे बिना किसी वजह से अपनेपन से तो पेश आने से रही.…

फिर यह कम्बख़्त मधुकरबाबू कहाँ से बीच में टपक पड़े?....

वह भी तो मधुरानी के साथ इश्क़ लड़ा रहा था और मधुरानी भी उसको रोक नहीं रही थी..

शायद वह उसके जिस्म से खेलता होगा या फिर उससे किसी राजनैतिक लाभ के लिए मधुरानी उसको अपने जाल में फँसा रही होगी...

लेकिन मेरे प्रति उसका मन साफ है ... सच्चा प्रेम. है ..

ऐसे दो मुंहें लोगों के बीच इंसान को सच्चे प्रेम की कमी खलती है "

करवट बदलते हुए कब सुबह हो गयी गणेश बाबू को पता ही न चला. उनकी बीवी की सुबह किचन में उठा पटक चालू हो गयी थी. लिहाज़ा अब नींद आने का सवाल न था. वह बिस्तर से उठे और कमरे में चहल-कदमी करने लगे. दरवाज़े पर दस्तक हुई तो वह चहल-कदमी बंद कर सामने के कमरे में आए. वहाँ उनका बेटा वीनू घोड़े बेच कर सो रहा था. गणेश बाबू ने उसको जलती निगाहों से देखा और किवाड़ खोल दिए , नीचे आज का अख़बार पड़ा था. गणेश बाबू ने वह अख़बार उठाया और दरवाज़ा बंद कर पन्ने पलटते हुए अंदर आ गए
अख़बार की हेड लाइन पढ़ कर उनके तोते उड़ गये.

"संपत राव पाटिल की सड़क दुर्घटना में दर्दनाक मौत!!"

हे भगवान ..कल ही तो वह मधुरानी के यहाँ दिखाई दिए थे.…

अचानक गणेश बाबू को याद आया कि उनकी मधुरानी से किसी बात को ले कर गर्मागर्म बहस हुई थी
फिर उन्हें मधुकर बाबू और मधुरानी के बीच हुई बातें याद आने लगीं

" उस पाटिल के पर निकल आए हैं.."

" शायद उसे हमारे बारे में सब पता चल गया.."

" के मतलब ?.. पता चले तो पता चले कलमुए को .. हम का डरे हैं उससे ... का हम उसकी रखैल लागे हैं..? उसका जल्दी ही कोई इलाज करना पड़ेगा"

" उसकी परवाह मत करो.. मैने उसका इन्तेजाम कर लिया है"

"बात कुछ ज़्यादा ही बिगड़ गयी है...एक दो दिन में ही कोई कदम उठना पड़ेगा"

"एक दो दिन कहाँ?...कल का सूरज वह देख नहीं पाएगा"

उनकी कही एक- एक बात मानों गणेश के सिर में हथौड़े की तरह बजने लगी.

हे.. भगवान...यानी मधुरानी ने ही पाटिल जी को मरवाया..या यह महज़ एक इत्तेफ़ाक था.....

नही यह इत्तेफ़ाक तो हरगिज़ नही हो सकता ..

शायद इसलिए मधुरानी मुझसे बड़ी नरमी से पेश आ रही थी ...

उसने यह जान लिया था की मैने उसकी बातें सुन ली हैं …

गणेश बाबू धम्म से बिस्तर पर बैठ गए. उनके दिमाग़ में तरह तरह की बातें आ रही थी , उन्हें मधुरानी का इतिहास याद आने लगा.

मधुरानी का पति पाटिल के हाथों दुर्घटना का शिकार हो गया था..

या शायद मधुरानी ने ही उसको पाटिल के हाथों मरवाया होगा..

फिर पाटिल का इस्तेमाल कर मधुरानी ने अपनी राजनैतिक महत्वकांक्षाएँ पूरी कीं और फिर जब उसके पर निकल आए तो उसने पाटिल को भी मरवाया..

यानी उसका पति , पाटिल और अब मधुकर बाबू की उसने बलि चढ़ाई..?

हाँ.... बलि ही चढ़ाई .. जैसे मधुमक्खियों में रानी मक्खी , नर मक्खी के साथ संभोग के बाद उन्हें जान से मार डालती है वैसे ही उसने अपने पति और पाटिल जी को मार डाला..

और अब शायद मधुकर बाबू की बारी है..

और यह बात केवल मुझे मालूम है..

उनकी सारी बातें मैने सुनी है , क्या मुझे पुलिस को इत्तला करनी चाहिए? …

लेकिन मेरी कही बातों पर कौन यकीन करेगा और मधुरानी की ऊँची पंहुच है..

उससे पंगा लेना याने ख़ुदकुशी करने जैसा ही है"

गणेश बाबू दोबारा अख़बार में छपी खबर को बड़े गौर से पढ़ रहे थे.

"आज शाम सात बजे के आस पास संदीप राव पाटिल मधुरानी सावंत जी के बंगले से एक ज़रूरी बैठक में हिस्सा ले कर अपने गाँव लौट रहे थे. सफ़र के दौरान भोजन के लिए रात करीब आठ बजे वे रास्ते में एक ढाबे पर रुके .वहाँ उन्होने शराब पीकर भोजन किया और आगे बढ़े. सूत्रों के अनुसार सफ़र के दौरान नशे की हालत में गाड़ी चलाते हुए उनकी गाड़ी की टक्कर किसी ट्रक जैसे भारी गाड़ी से हुई, जिसमें उनकी घटनास्थल पर ही दर्दनाक मौत हो गयी. ट्रक ड्राइवर अपने ट्रक के साथ मौका-ए-वारदात से फरार है. पुलिस मामले की तहकीकात कर रही है"

गणेश बाबू दोबारा सोच में पड़ गये:

यक़ीनन यह एक बहुत बड़ी साज़िश है.... गणेश बाबू का दिमाग़ सोच सोच कर सुन्न हो गया था.


रात के करीब बारह बजे होंगे लेकिन गणेश बाबू छत पर चहल कदमी कर रहे थे. अचानक एक विचार उनके मन में आया.

पाटिल जी का कत्ल मधुरानी ने ही करवाया है और यह बात मधुरानी और मधुकर बाबू के अलावा सिर्फ़ मुझे मालूम है...

क्या इस बात का लाभ उठाया जा सकता है?....

क्यों नहीं?… यक़ीनन इस बात का फायदा उठाया जा सकता है...

मैं यह बात जानता हूँ ऐसा मान कर ही तो मधुरानी के व्यवहार में अचानक परिवर्तन आया..

बिना कुछ करे धरे मधुरानी ने नब्ज़ टटोलने के बहाने अपना हाथ मेरे हाथों मे दे दिया....

अगर मैं उसको ब्लॅकमेल करूँ तो?...

तो...तो... वह मेरी खातिर कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाएगी...
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

Post by Jemsbond »

गणेश बाबू के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान खेलने लगी थी.

यूँ भी उसने मुझे वहाँ दोबारा आने का न्योता दिया है..

यानी की इतने दिन मैं उसकी कार्यकर्ता मक्खी था और अब उसकी नर मधुमक्खी बनने का मौका हाथ लगा है..

ले..लेकिन.. इसमे ख़तरा है...

इसमें जान भी गँवानी पड़ सकती है..

मधुरानी के मर्द की और पाटिल जी भी अपनी हवस के एवज़ में अपनी जान से हाथ धो बैठे ..

उन्हें मधुरानी की अदाएँ याद आने लगीं

उसकी वह चंचल शोख नज़र...

उसकी वह मदहोश कर देने वाली मुस्कुराहट...

उसका वह नर्म मुलायम स्पर्श.

जी करता है उसकी बाँहों में मर जाऊं....

जब एक नर मक्खी रानी मक्खी से संभोग करती है तो उसे बखूबी मालूम होता है की इसकी कीमत अपनी जान दे कर चुकानी है...

क्योंकि यूँ भी कई नर मधुमक्खियाँ इसी तरह मौत के घाट उतर चुकी होती हैं...

लेकिन केवल उस एक पल की खुशी पाने के लिए वह नर मक्खी रानी मक्खी से संभोग करने के लिए तैयार हो जाती है...

पूरी ज़िंदगी का मज़ा यदि उस एक पल में मिलता हो...

तो पूरी ज़िंदगी यूँ घुट घुट के जीने में क्या मतलब?...

यूँ भी मेरी ज़िंदगी में रखा क्या है?...

वह बेरोज़गार, बद दिमाग़ , बद तमीज़ कपूत जो मुफ़्त की रोटियाँ तोड़ता है ?...

और वह अनाड़ी झगड़ालू औरत जिसने जीना हराम कर रखा है..?

उनके लिए अपनी ज़िंदगी बर्बाद करने से तो अच्छा है की मैं अपनी जिंदगी मधुरानी के नाम कुर्बान कर दूं...


गणेश बाबू आज तड़के ही पाँच बजे उठ कर बड़े जोश में सैर पर निकल पड़े. रास्ते से गुज़रते वक्त उन्हें बगीचे में कसरत करते लोग दिखाई पड़े. वे भी बगीचे में गये और खुद भी कसरत करने लगे.

अब थोड़ा चुस्त तंदुरुस्त बनना पड़ेगा..

तोंद भी निकल आई है उसे भी कम करना पड़ेगा..

कसरत करते हुए वह जल्दी ही थक गये.

आदत नहीं हो तो ऐसा ही होगा...

कोई बात नहीं धीरे धीरे आदत हो जाएगी... उन्होने सोचा.

कसरत करते हुए उन्हें पसीना आ गया था और इसलिए सुबह की ठंडी हवा उन्हे और भी ठंडी लग रही थी.

कितना अच्छा लग रहा है ... तमाम बंधनों से आज़ाद...

लेकिन मैं कहीं ग़लत राह पर तो नही जा रहा?...

इतने साल जिसने मेरा साथ निभाया आख़िर उस बीवी को मैं कैसे छोड़ दूं?...

चाहे अब मुझे वो ज़रा भी पसंद नहीं लेकिन मैने कभी उससे प्यार किया है.....

लेकिन यह प्यार भी बड़ी अजीब चीज़ है...

जैसे किसी रेशम के कीड़े ने अपने इर्द गिर्द बनाया हुआ कवच ...

जहाँ वह सुरक्षित रहे...

लेकिन एक दिन ....जब वह रेशमी कीड़ा बाहर आता है... तो उस कवच की दाज्जियाँ उड़ा कर और फिर सारे बंधनों से आज़ाद.... इस फूल की पंखुड़ी से उस पंखुड़ी पर तितली बन उड़ता है....

उस सुबह दाढ़ी बना कर गणेश बाबू ने अपने बेटे वीनू को हुक्म सुनाया -

"जाओ जा कर अंदर से एक कटोरी ले आओ"

वीनू फटी फटी आँखों से अपने बाप को देख रहा था..

यूँ इस प्रकार उसके बाप ने कभी उसको कोई हुक्म न सुनाया था. उसने हैरत भरी निगाहों से उन पर नज़र डाली और उन्हें अनदेखा कर वह अपने काम में लग गया.लड़के ने हुक्म की तामील न की देखकर फिर उन्होने बीवी को हुक्म सुनाया -

"अरी भागवान अंदर से एक कटोरी लाओ"

थोड़ी देर गुज़र जाने पर भी जब कोई आवाज़ न हुई तो गणेश बाबू गुस्से से आग बबूला हो गये

" चीख चीख कर मेरा गला सूख गया के एक कटोरी भेज दो , बहरे हो गये क्या सब के सब?"

इसके साथ ही हुक्म की तामील हुई उनकी बीवी रसोई से भागी भागी स्टील की कटोरी लेकर आई और उनके सामने रखती हुई बड़बड़ा कर वापस जाने लगी.

" घर में कोई पुराना ब्रश है क्या" उन्होने बीवी से मुखातिब हो कर पूछा.

"ब्रश? कैसा ब्रश?"

"दाँतों का ब्रश और किसका"

"क्यों?"

"ज़्यादा सवाल मत पूछो , जो बात पूछी है उसका जवाब दो" गणेश बाबू दोबारा चिल्लाए.

"देखती हूँ मिलेगा तो ला कर दूँगी" रसोई से उनकी बीवी चीखी.

वीनू अपने बाप के सामने आ कर खड़ा हो गया और बरसा

"फिर शुरू हो गयी तुम्हारी चिल्ला चोट?"

"खामोश! बदतमीज़" गणेश बाबू उस पर बरस पड़े "बड़ों की इज़्ज़त कैसे की जाती है तेरी अम्मा ने न सिखाया तुझको ??? नालयक बड़ों से ज़बान लड़ता है?"

वीनू अपने पिता का यह रूप देख कर भौचक्का रह गया और वहाँ से चला गया

"ब्रश मिला क्या???" गणेश बाबू दुबारा चीखे

"नही मैं घर में पुरानी टूटी फूटी चीज़ें नही रखती" बीवी ने अंदर से चिल्ला कर जवाब दिया.

" फिर मैं जो ब्रश अभी इस्तेमाल करता हूँ वही ले कर आओ" गणेश बाबू ने फरमान सुनाया.

गणेश बाबू की बीवी न कुछ न कहते हुए उनका ब्रश उनके सामने ला पटका और उल्टे पाँव चली गयी.

थोड़ी देर बाद वीनू वापस अपने बाप के सामने आ पंहुचा और अपनी अम्मा को आवाज़ लगाई "अम्मा अरी ओ अम्मा "

"क्या हुआ रे नास्पीटे.. पहले तेरा बाप चिल्ला रहा था अब तू चिल्ला" अंदर से उसकी अम्मा चिल्ला कर बोली.

"अरी अम्मा जल्दी आओ ऐसे ही ... देखो देखो बापू क्या कर रहे हैं"

उसकी अम्मा तेज कदमों से चलती हुई आ कर उसके बगल में खड़ी हो गयी और जो गणेश को बाबू को देखा तो देखती ही रह गयी.

गणेश बाबू कटोरी में खिजाब लिए ब्रश से अपने सफेद बालों को रंग रहे थे.

" वाह ....क्या नज़ारा है" वीनू अपने बाप का मज़ाक उड़ाते हुए बोला.

"बुढऊ सठिया गया है....सच कहते हैं लोग , साठ साल का खूंसठ बुड्ढ़ा खुद को जवान ही समझता है" कहते हुए उनकी बीवी जाने को मुडी और पाँव पटकते हुए रसोई में गयी.

"अरी भागवान ...अभी तो सिर्फ पचास का ही हुआ हूँ ....साठ साल में अभी 10 साल बाकी हैं" गणेश बाबू अपनी मूछों को ताव देते हुए बोले.
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