मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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Jemsbond
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मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल



गणेशराव नहा धोकर अपने कपडे पहन रहे थे. सफेद रंगका टेरीकॉटसे बना हुवा नेहरु शर्ट और सफेद उसी कपडेसे बना हुवा पैजामा. उनके शरीरके हरकतोंसे उम्रके लिहाजसे उनका शरीर कुछ जादाही थका हुवा लग रहा था. क्या करेंगे बेचारे उम्र से ज्यादा बीपी, शूगर, अॅसीडीटी ऐसे अलग अलग बिमारीयोंनेही उन्हे परेशान कर रखा था. उन्हे याद आया ...

जब मै जवान था तब पँट शर्ट पहनता था ...

वह भी शुरुवाती दिनोंमे इन वैगेरे करते हूए .... एकदम साफ दुथरे ढंगसे ...

सचमुछ आदमीमें धीरे धीरे कैसा बदलाव आता है ...

अपने चारो ओरके मौहोलका आदमीपर कितना बडा असर होता है ...

इधर गणेशरावकी कपडे पहननेकी जल्दी चल रही थी तो उधर रसोईघरमें उनके बिवीकी बर्तनोकें आवाजके साथ मुंहसे बकबक चल रही थी - हमेशा की तरह.

" 25 साल होगए नौकरी कर रहे है और ... इतने दिनोंमे क्या हासिल किया तो डीपार्टमेंटमें थोडीभी पहचान नही ... अच्छा खासा तालूकेका गाव था ... और उपरसे अपना घरभी यहांही है ... उठा दिया उन लोगोंने और ट्रान्सफर कर फेंक दिया 70 किलोमिटर दूर ... किसी देहातमें ... मतलब हमेशाकी मुश्किल दुर होगई ... मैने कितनी बार कहा ... जादा इमानदारी कुछ कामकी नही ... इमानदार लोगोंको ही इस तरह भूगतना पडता है ''

गणेशरावके दिमागमें एक मुहावरा आगया - 'स्ट्रेट ट्रीज आर कट र्फस्ट' ...

यह मेरे बारें मे लागू होता है क्या ?...

होता है थोडा थोडा ...

किसका वाक्य है यह ?...

किस किताबसे है ?...

कुछ याद नही आ रहा है ...

लेकिन इसी मतलबका कुछ अपने चाणक्यनेभी संस्कृतमें लिख रखा है ...

उसके बिवीकी बकबक अभीभी चल रही थी, "... लेकिन सुनता कौन है ... मै अनपढ जो ठहरी ... किताबोंके ज्ञानसे व्यावहारीक ज्ञान कभीभी श्रेष्ठ होता है ... लेकिन सुनता कौन है मेरी ..."

लेकिन अब गणेशरावसे रहा नही गया. किताबी ज्ञानका उल्लेख उनपर सिधा हमला बोल गया था.
" ... अब तूम जरा तुम्हारी फालतू बकबक बंद करोगी ... अब जाही तो रहा हूं ... उसके लिएही तो बंगलेपर जा रहा हूं ..."वे चिढकर बोले.

" मतलब मेरा बोलना आपको फालतू बकबक लगता है ... इतने सालसे अपनी गृहस्थी मै ही तो संभालती आई हूं ...पिछले बार मेरे भाईने अगर मदत नही की होती तो ना जाने कहा तबादला कर फेंक दिए जाते सडने के लिए ..."

" वह तुम्हारा फेंकु भाई ... कैसी मदत करता है ... उंची उंची फेंकता है सिर्फ "
गणेशरावभी अब झगडनेके मूडमें आये थे.

" देखो ... मै बताके रखती हूं ... मेरे मायकेके बारेंमें कुछ नही कहना "उनके बिवीने कहा.

" और अगर बोला तो क्या करोगी... मुझे छोड दोगी.."

'' वही चाहिए ना तुम्हे... छोडनेके बाद दुसरीसे शादी करनेके लिए''

तभी अंदरसे 25-26 सालका उनका लडका विन्या वहां आगया. वह अच्छा खासा ताकदवर गबरु जवान था और चेहरेसे एकदम कठोर था.

" ए चूप ... एकदम चूप" वह जोरसे चिल्लाया.

" साला ... यहां जीना मुष्किल कर दिया इन बूढों ने "

तब कहा दोनो एकदम चुप हो गए.

अब क्या कहना है इस आजकलके लडकोंको ...

एकदम बुढा कहता है मां बापको ...

लेकिन जानेदो कमसे कम अबभी 'आप' वैगेरा कहनेका लिहाज बाकी है उसमें ...

उतनेपरही संतोष मानना चाहिए ...

उनके लडकेने एक दो बार गुस्सेसे अंदर बाहर किया और गणेशरावका अबभी धीमी गतीसे चल रहा है यह देखकर गुर्राया , " तो बंगलेपर जाना है ना ?"

" हां ... यह देखो हो ही गया है " गणेशराव जल्दबाजी करते हुए बोले.

" और सिर्फ तुम्हारे ट्रान्सफरका लेकर मत बैठो ... मेरे नौकरीकाभी देखो ... वही सबसे महत्वपुर्ण है "

" हां ..." गणेशरावके मुंहसे निकला.

विन्या काला टी शर्ट और निचे जिन्सका पँट पहनकर तैयार था.

" तूम ये कपडे पहनने वाले हो ?... "

" हां .. क्यों क्या हुवा ?... "

" वह दिवालीमें खरीदा हुवा ड्रेस पहनतेतो ... उन लोगोंके सामने यह टी शर्ट और यह पँट अच्छा नही लगेगा.."
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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" अच्छा नही लगेगा ?... उनको कहना यह ऐसा है मेरा लडका ... और आजकल यही फॅशन है "

" अरे लेकिन ... "

" आप मेरे कपडेबिपडेका मत देखो ... उनसे क्या बात करना है ... कैसी बात करनी है वह देखो बस ."

गणेशराव कुछ नही बोले. उन्होने सिर्फ 'अब इसे क्या कहा जाए ?' इस तरह अविर्भाव करते हूए सिर्फ हवामें हाथ लहराया.

गणेशराव और उनका लडका विन्या एक रिक्षामें बैठकर निकल दिए - बंगलेकी तरफ रिक्षामें गणेशरावके बगलमें स्पंजके सिटपर एक सीट खाली थी. लेकिन विन्या गणेशरावके बगलमें ना बैठते हूए सामने एक लकडीका तख्त था उसपर बैठ गया. गणेशरावने उसे उनके बगलमें बैठनेका आग्रहभी किया लेकिन,


" नही यहीं ठिक है ... यहा हवा अच्छी लगती है " उसने कहा.


गणेशरावको पता था की वहा लकडीके तख्तपर बैठनेसे या यहां स्पंचके सीटपर बैठनेसे लगनेवाली हवामें कुछ फर्क नही पडनेवाला था.


जनरेशन गॅप दुसरा क्या ...

या शायद मै ही अपने लडकेके साथ एक दोस्तकी तरफ नजदिकी बनानेमें नाकामयाब रहा हू....


क्या करे अपने जिंदगीका गणित पहलेसेही गलत होता गया ...

शादीके लिए लडकियां देखते वक्त गडबड हो गई और ऐसी गुसैल बिवीसे पाला पडा..

लेकिन पहले वह इतनी गुसैल नही थी ...

वह अभी अभी पिछले पाच छे सालोंसे इतनी गुसैल हो गई ...

की उसेभी ऐसाही लगता होगा की गलत शौहर मिल गया ...

और वह तो वह यह बददिमाग लडका पल्ले पड गया ...

अपने नौकरीकी वजहसे मै उसके पढाईपर उतना ध्यान नही दे सका शायद यहभी वजह होगी ...

लेकिन लोगोंके बच्चे तो हैही जो अपने लडकोंके पढाईपर बिलकूल ध्यान नही दे सकते...

फिर वे कैसे आगे जाते है ..

अपना लडकाही मुढ है और क्या ...

उसकी उम्रके जब मै था तब उसका जनम हुवा था ..

और इसका तो अभी नौकरीकाही कुछ नही है ...

शादीकी तो दूरकी बात है ...

क्या करे अपनी किस्मतही खोटी है और क्या ?...

तभी रस्तेपर चढाई आ गई थी और रिक्षावाला निचे उतरकर रिक्षा खिच रहा था. रिक्षा खिंचनेवाला अपनी पुरी ताकदके साथ रिक्षा खिंच रहा था. रिक्षा खिंचते हूए उसके काले पैर और हाथकी मांसपेशीयां कैसी उपर निचे हो रही थी. और नसें तो ऐसी फुल गई थी मानो ऐसा लग रहा था की कब फट जाएगी ? उपरसे ग्रिष्मकी सुबहकी तपती धुपसे उसे पसिना छुट गया था. पसिना शायद धूपसे जादा उसे होनेवाले शारीरीक कष्टसे छुट गया था. गणेशको रिक्षावालेकी दया आ रही थी.

" रुको मै उतरता हूं ... ताकी आपको आसान जाएगा .." गणेशरावने कहा. .

रिक्षावाला कुछ नही बोला. वह अपना रिक्षा खिंचनेमेंही लीन था. गणेशराव रिक्षा धीमा होनेपर रिक्षासे निचे उतर गए. विन्याने तुच्छताके साथ अपने बापकी तरफ देखा और रास्तेके किनारे दिखनेवाले दुकानोंकी तरफ देखता हुवा रिक्षामे बैठा रहा.


" अरे उतर क्यों गए ... बैठीए ... यह खतम होगई चढाई... और फिर ढलानही ढलान ..." रिक्षावालेने कहा. .

चढाई खत्म होगई वैसे रिक्षावाला रुक गया और गणेशराव रिक्षेमें चढ गए. रिक्षावालाभी उसके सिटपर चढकर बैठ गया. और फिर ढलानपर रिक्षा पायडल ना मारते हूएभी दौडने लगी. वही अभी अभी दुखी परेशान दिख रहा रिक्षाचालक मस्तीसे उलटा पायडल घुमाते हूए खुशीसे सिटी बजाने लगा था.

अब इसे क्या कहा जाए ...

गणेशराव सोच रहे थे.

आदमी इतने मुष्कीलोंमेभी खुशी ढुंढ सकता है ...

इसका मतलब खुश रहना तुम्हारे हालातपर निर्भर नही करता तो वह तुम्हारे जीवनकी तरफ देखनेके दृष्टीकोणपर निर्भर करता है ..

इस रिक्षावालेसे अपने हालात हजार गुना अच्छे है ...

फिरभी हम ऐसे हमशा दुखी क्यो रहते है ...

रिक्षा एक चारो तरफसे बडे बडे पेढ थे ऐसे एक विस्तीर्ण कंपाऊंडके सामने रुक गई. गणेशराव और विन्या रिक्षासे निचे उतर गए.

" कितने हो गए " गणेशरावने पुछा.

" चार" रिक्षावाला कंधेपर रखे रुमालसे अपना पसिना पोंछते हूए बोला.

गणेशरावने एक पांच रुपएकी नोट निकालकर उसके हवाले कर दी. उसने वह ली और पैजामेंके पहले दाई और फिर बाई जेबमें वह एक रुपएका सिक्का ढूंढने लगा.

' रहने दो ... वह एक रुपया अपने पासही रख लो ' ऐसा लगभग गणेशरावके मुंहमें आया था.

लेकिन नही ...

विन्या घर जानेके बाद चिल्लाएगा ...

मुझे देनेके लिए आपकेपास पैसे नही होते है ...और उस रिक्षावालेको मुफ्तमें देनेके लिए होते है ...
उस रिक्षावाल्याने एक रुपएका सिक्का ढुंढकर गणेशरावके हाथपर रख दिया. उन्होने वह अपने शर्टके बाएं जेबमें रख दिया. उन्होने वैसी आदतही डाल रखी थी. रेजगारी नोट सब उपरकी जेबमें, रेजगारी सिक्के सब बाई जेबमें और बडी नोट सब शर्टके निचे पहने कपडेके बनियनकी छुपी जेबमें.


गणेशराव और विनय सामने एक बडेसे कंपाऊंडमें जाने लगे. कंपाऊंडके गेटपर उन्हे वहां तैनात सेक्यूरीटी गार्डने रोका. जब उन्होने अपनी पहचान बताकर उनकी अंदर जानेकी वजह बताई, तभी उन्हे अंदर जानेकी रजामंदी दे दी गई. वे कंपाऊंडके गेटसे अंदर जाकर एक चौडे रस्तेसे, जिसकी दोनो तरफ उंचे उंचे पेढ लगे गए थे, अंदर जाने लगे. रास्तेके दोनो तरफ अशोक और निलगीरीके काफी उंचे पेढ लहरा रहे थे. जैसे जैसे वे अंदर जा रहे थे बंगलेका थोडा थोडा हिस्सा उनके दृष्टीके दायरेमें आने लगा था. जब वे बंगलेके एकदम पास गए, तब पुरा बंगला उनको दिखने लगा था.

वह बंगला कहां ! वह तो एक राजमहल था....
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उसके चारो तरफसे काफी खुली जगह थी, जिसमें बडे बडे पेढ उगाए गए थे, जिसकी वजहसे बाहरसे आनेवालेको पहले वह पेढही दिखते थे. बाहरसे देखनेके बाद उन पेढोंके भिडमें कही बंगला छुपा हुवा होगा ऐसा कतई लगता नही था. जब वे बंगलेके करीब पहुंच गए, उन्होने देखा की वहां तो मानो लोगों का जुलुस लगा हुआ था . बंगलेके आसपासके पेढोंके साएमें लोगोंके समुह बैठे हुए थे. कोई धोती पहने हुए, कोई पैजामा पहने हुए तो कोई पँट शर्ट पहने हुए, वहां हर तरहके लोग मौजुद थे. धोती पहने हुए गांवके लोग वहा जादा मात्रामें नजर आ रहे थे. उसीमें कुछ खादीके कपडे पहने हूए और पैजामा या धोती पहने हूए लिडर लोग या खुदको लिडर समझने वाले लोग इधर उधर घुम रहे थे. गांधी टोपी और वहभी अगर तिरछी पहना हुवा आदमी हो तो वह लिडर होना चाहिए ऐसा गणेशरावके मनमें कही संग्रहीत किया गया हुवा था. ऐसे लोगोंके बारेमें गणेशरावके मनमें एक डरसा बैठा हुवा था. इसलिए गणेशराव जितना हो सके उतना इन लोगोंके आसपास जानेसे बचते थे. लेकिन आज नौबत ही वैसी आ गई थी, जिसपर उनका कोई काबु नही था.

लोग बाहर अपनी बारी कब आती है इसकी राह देखते हूए रुके हूए थे.

लेकिन मुझे ऐसे राह देखनेकी कोई जरुरत नही होगी ...

मेरीतो सरकारके साथ एकदम नजदिकी पहचान है ...

ऐसा सोचते हूए गणेशरावने उनके आसपास अपनी बारी आनेके लिए रुके हूए लोगोंपर अपनी नजरे घुमाई. उस नजरमें, कोशीश करनेके बावजुत एक कुत्सित भाव आ ही गया था.

" विनू चलो हम सिधे अंदर जाएंगे " गणेशरावने विनूसे शेखी बघारते हूए कहा.

दोनो बंगलेके अंदर गए. बंगलेके अंदर, बिचोबीच लोगोंको प्रतिक्षा करनेके लिए एक बडा हॉल था. उसमें लोगोंको बैठनेकी व्यवस्था की हुई थी. गणेशराव विनयको लेकर उस हॉलमें आ गए. हॉल लोगोंसे खचाखच भरा हुवा था. गणेशरावने एक बार उन प्रतिक्षा कर रहे लोगोंपरसे अपनी नजरे घुमाई. कुछ लोग किसी लिडरकी तरह अच्छी तरहसे इस्त्री किए हूए कपडे पहनकर बडे ठाठके साथ वहां बैठे हूए थे. कुछ लोग बेबस लाचारसे, अपनी बारी कब आती है यह देखते हूए दरवाजेकी तरफ टकटकी लगाकर बैठे हूए थे. इतने सारे लोग और उनमेसे कुछ अपनेसे बडे लोग पाकर गणेशको अपना आत्मविश्वास डगमगासा लगने लगा. लेकिन नही अपनी सरकारके साथ इतनी नजदिकी पहचान होनेके बाद डरनेकी कोई बातही नही होनी चाहिए. उन्होने अपने दिमागमें आए हिनताके भावनाको झटक दिया. उन्होने इधर उधर देखते हूए, वहां मौजुद चारपाच दरवाजोंमेसे सरकारसे मिलनेके लिए जानेका कौनसा दरवाजा होगा यह निश्चित किया और वे सिधे उस दरवाजेसे अंदर जाने लगे. .
एक तगडा आदमी उनके बिच आया और उसने इशारेसेही 'क्या काम है ?' ऐसे अशिष्टतासे पुछा. .

'' सरकारसे मिलना है ? "

" यह सारे लोगभी उनसे मिलनेके लिएही बैठे हूए है "उसने गुस्ताखी करते हुए कहा.

" नही मेरी सरकारसे एकदम नजदिकी पहचान है " गणेशरावने गर्वके साथ कहा.

उसने गणेशरावकी तरफ उपरसे निचे देखा और कुत्सित भावसे हसते हूए बोला.
" भाई साहब ... सारे लोग यही कहते है ... वो वहां ... उस तरफ उस काऊंटरपर जावो ... अपना नाम पत्ता और क्या काम है यह एक परची पर लिखकर यहां दे दिजीएगा. ..और फिर आपका नाम जब पुकारा जाएगा तब आप अंदर जाईए.

"लेकिन .."

" भाई साहब अगर आपकी सचमुछही नजदिककी पहचान होगी तो आपको जल्दीही अंदर बुलाया जाएगा." उस आदमीने जैसे उन्हे बेवकुफ समझते हुए कहा.

फिरभी गणेशराव वहांसे हटनेके लिए तैयार नही है ऐसा पाकर एक दुसरे आदमीने हस्तक्षेप करते हूए उन्हे सबकुछ ठिकसे समझाया. अपना हुवा अपमान गणेशरावके चेहरेपर स्पष्ट दिख रहा था. आपना अपमान पिकर विन्याकी नजरसे बचते हूए वे चुपचाप उस काऊंटरके पास गए. वहांभी कतार लगी हुई थी. चुपचाप जाकर वे कतारमें लग गए. विन्याभी जानबुझकर उनकी आखोंमे देखनेकी कोशीश कर रहा है ऐसे गणेशरावको महसूस हुवा.

यह ऐसी है तुम्हारी नजदिकी पहचान? ...

इस अपमानसे तो पहचान नही होती तो अच्छा होता ...

कमसे कम इतना अपमान तो नही हुवा होता ...

शायद ऐसा विन्याको कहना होगा ऐसे गणेशरावको तिरछी नजरसे विन्याकी तरफ देखते हूए महसुस हुवा.

कतारमें अपना नंबर आनेके बाद काऊंटरपर अपना नाम पता और मिलनेका उद्देश लिखा हुआ परचा देकर गणेशराव हॉलमें बैठनेके लिए खाली कुर्सी ढूंढने लगे. पहले हॉलमें एक नजर दौडाई, फिर हॉलमें एक चक्कर लगाया. हॉलमें एकभी कुर्सी खाली नही थी. विन्या दरवाजेमेंही अपने पिताकी तरफ चिढकर देखता हूवा खडा हो गया. आखिर गणेशराव अपने लडकेकी तरफ उसकी तिखी नजरसे बचते हूए जाने लगे.

" गणेशराव सायेब... " अचानक पिछेसे आवाज आ गया. .

गणेशरावने आश्चर्यसे मुडकर देखा.

चलो कमसे कम यहां कोईतो मुझे पहचानता है ...

उन्हे राहतसी महसूस हुई थी. उन्होने पिछे मुडकर देखनेसे पहले गर्वसे एक कटाक्ष अपने लडकेकी तरफ डाला. उसके चेहरेके भावमें कोई फर्क नही था. उन्होने पिछे मुडकर देखा तो एक देहाती उन्हे आवाज देते हूए कुर्सीसे उठकर खडा हुवा था. वे उसे नही पहचानते थे. लेकिन शायद वह उन्हे जानता था. अब नोकरीके वजहसे हजारो लोगोंसे पाला पडता है. सबकी पहचान रखना जरा मुश्किलही था और उपरसे ढलती उमर. याददाश्त भी पहलेजैसी तेज नही रही थी. मुस्कुराकर उन्होने उसकी तरफ देखा .

" आईए साहेब ... यहां बैठिए. "

उस देहातीने उन्हे कुर्सी ऑफर करते हूए कहा. वे खुशीसे चलते हूए उस देहातीके पास गए. उस देहातीके पिठपर प्यारसे थपथपाते हूए बोले.

" अरे ... रहने दो ... तूम बैठोना ... हम बाहर जाकर रुकते है ... "

" नही साब ... ऐसा कैसे ... हमने बैठना और आपने खडा रहना ...आप बैठिए .." उसने नम्रतासे कहा. .

उन्हे उसे वहांसे उठाकर वहा बैठना ठिक नही लग रहा था और उसने दिया सन्मानभी तोडनेका मन नही कर रहा था. आखिर वह उसके आग्रहका मान रखते हूए उस कुर्सीपर बैठ गए. कुर्सीपर बैठकर उन्होने दरवाजेकी तरफ देखा. उनका लडका वहां नही दिख रहा था.

शायद बाहर जाकर खडा हुवा होगा... खुली हवामें ...

" मै बाहर हूं साब .. " कहते हूए वह देहातीभी हॉलसे बाहर निकल गया.


वह इतने जल्दी बाहर निकल गया की गणेशरावको उसे 'धन्यवाद' कहनेकाभी मौका नही मिला.
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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गणेशराव कुर्सीपर आरामसे पैर फैलाकर बैठे थे. बिच बिचमें वे दरवाजेसे अंदर बाहर कर रहे लोगोंकी तरफ देख रहे थे. उन्होने एकबार हॉलमे चारो तरफ जमी भिडकी तरफ देखा.


भगवान जाने अब इतने लोगोंमें मेरा नंबर कब आएगा ?...


तभी उन्हे अचानक हॉलमें कही हरकत महसूस हुई. कुछ लोग उठकर खडे हो रहे थे तो कुछ अपनी गर्दन उंची कर एक तरफ देख रहे थे तो कुछ लोग किसीको अभिवादन कर रहे थे.


कौन है ?... सरकार तो नही ?...


उन्हे लोगोंकी भिडसे गुजरता हुवा एक गोरा चिट्टा, उंचा और मजबुत शरीरयष्टीवाला आदमी दिखाई दिया.


अब ये महाशय कौन ?...

वह आदमी दरवाजेसे अंदर चला गया - सरकारसे मिलनेके लिए - बिना झिझक. उसे किसीने नही रोका. वह जानेके बाद भिड फिरसे शांत होकर अपनी जगहपर बैठ स्थिर हो गई.


" कौन था वह ?" गणेशरावने अपनी दाई तरफ बैठे एक आदमीसे पुछा,


उस आदमीने वडी ताज्जुबके साथ गणेशरावकी तरफ देखते हूए पुछा, " क्या इतनाभी नही जानते ?"
गणेशरावने अपनी झेंप छिपानेकी कोशीश करते हूए अपना अज्ञान प्रकट किया.


"अरे वे तो अपने मधूकरराव है ... सरकारका खास आदमी ... या दाया हाथही बोल सकते है "


" अच्छा ... अच्छा"

गणेशरावकी बाई तरफ एक सफेद कुर्ता पैजामा पहने एक आदमी अखबार पढते हूए बैठा था. उन्होने जाम्हाई देते हूए उस आदमी की तरफ देखकर कहा , " अब पता नही कितना टाईम लगता है तो ?"
उस आदमीने अखबार वैसाही सामने रखकर अखबारके उपरसे उसकी तरफ गौरसे देखा . " आप तो अभी अभी आए ना ? "
" जी हां " गणेशरावने जवाब दिया.

" मै पिछले दो दिनसे चक्कर काट रहा हूं ... लेकिन उनसे मिलनेका मौकाही नही मिल रहा है ... '"ऐसा मानो वह गर्वके साथ कहकर फिरसे अपना अखबार पढनेमें व्यस्त हो गया.


गणेशरावके चेहरेपर मायूसी छा गई थी. पलभरके लिए उसका वहांसे उठकर जानेका मन हुवा.


लेकिन नही ... मिलना तो जरुरी है ...

अपने लिए नही तो कमसे कम अपने लडके के लिए ...

कुछ देर बाद कुर्सीपर बैठे बैठे ही उनकी विचारोंकी श्रुंखलाने अपना रुख अतितकी तरफ किया. उन्हे याद आ रहा था की 20-25 साल पहले एकबार उन्हे ऐसेही, इससे मिल - उससे मिल ऐसा करना पडा था. और इतने सारे प्रयास करनेके बादभी उनकी पोस्टींग देहातमेंही हो गई थी.


अबभी तो वैसाही नही होगा ना ? ...

पिछली बारसे इसबार उन्हे अपना तबादला रोकना जादा जरुरी लग रहा था. क्योंकी तब वे जवान थे. सारी मुश्कीले सहन कर सकते थे. सोचते हूए उन्हे अपने जवानी के बिती हुई बाते याद आने लगी थी .....




.... बस घाटीमे दाएं-बाएं मुडती हुई आगे चल रही थी. गणेश बसके खिडकीके पास अपने सिटपर बैठा था. उसकी बगलमें एक देहाती बैठा था. बसकी चलनेकी वजहसे होनेवाली मचलनसे बचनेके लिए गणेश खिडकीसे बाहर घाटीमें दिख रही हिरियालीपर अपना ध्यान केंद्रीत करनेकी कोशीश कर रहा था. उसने बसमें बैठे बाकी यात्रीयोंपरसे अपनी नजरे घुमाई. कोई बैठे बैठेही झपकियां ले रहे थे तो कोई आपसमें बाते हाक रहे थे. गाडीके बिचवाले खाली जगहमेंभी कुछ यात्री खडे हूए थे. कोई बिचमें खडे लोहेके खंबेका सहारा लेकर खडे थे तो कोई बगलके सिटका सहारा लेकर खडे थे. उस भिडसे रास्ता निकालते हूए कंडक्टर अपनी जगहपर चला गया. अपने सिटपर बैठे आदमी की तरफ उसने सिर्फ घूरकर देखा. उस बैठे हूए आदमीने चुपचाप वहांसे उठकर कंडक्टरको बैठनेकी जगह दे दी. कंडक्टरने बैठतेही अपनी टिकटवाली बॅग खोली और उसमेंसे एक कागज और पेन निकाला. पेन कानके पिछे लगाते हूए उसने कचरेके टोकरीमें फेंकनेके लायक एक सिकुडा हुवा कागज खोला. फिर वह एक हाथसे टिकटकी बॅग उलटपुलटकर टिकटके नंबर देखकर दुसरे हाथसे कानके पिछेसे पेन निकालकर कागजपर लिख रहा था. वह यह सब इतनी सफाईके साथ कर रहा था की मानो उसे उसका कोई खास ट्रेनिंग दिया गया हो. नही तो बस चलते वक्त -इतनी हिलनेके बाद किसी कागजपर लिखना मुश्कीलही नही तो लगभग नामुमकीन था.


गणेशने फिरसे अपनी नजर बाहर हरियालीपर जमाई. उसका सोचचक्र फिरसे शुरु हो गया था. कितनी जी तोड कोशिश करनेके बादभी उसपर यह नौबत आ गई थी. पांच सालतक वही तालूकेकी कोर्टमें उसने डेली वेजेसपर कुछ लिखापढीका काम किया था. फिर शादीभी की. अब पांच सालके बाद काफी मशक्कतके बाद गणेशका ग्रामसेवककी हैसीयतसे चयन हुवा था. ग्रॅजूएट होकरभी उसपर ग्रामसेवक के हैसियतसे काम करनेकी नौबत आई थी. वहभी सर्विस इतनी आसानीसे नही मिली थी. सतरा लोगोंको मिलकर, पहचान निकालकर, मन्नते करकर, उनके पैर पकडकर और उपरसे पैसेभी देकर... तब कहा उसे ग्रामसेवककी सर्विस मिली थी. सर्विस मिलनेके बाद सवाल था कहां जॉइन करना पडेगा. गणेशको तहसिलके पास लगभग 4-5 किलोमिटरके दायरेके अंदरही जॉइन करना पडे ऐसी इच्छा थी. फिरसे मिन्नते, हाथपैर जोडना और पैसे देनाभी आगया था. वहभी किया. लेकिन नही. जो नही होना था वही हो गया था. वह अपनी पोस्टींग आसपास कही नजदिक नही कर पाया था. नौकरी लगानेके वक्त लगाए वजनसे इसबार लगाया गया वजन शायद कम पड गया था. और आखिर अपनी इच्छाको मोडकर उसे तहसिलसे 50 किलोमिटर दुर बसे उजनी नामके देहातमें जाकर जॉईन करना था. आज वहां जानेका उसका पहला दिन था.
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कंडक्टरने बजाए बेलसे गणेश होशमें आगया. गाडी रुक गई. उसने बाहर झांककर देखा. उजनी अभीतक नही आई थी.


" उजनी और कितनी दूर है ? " उसने अपने बगलमें बैठे देहातीसे पुछा.


" बहुत दूर है... आरामसे एक झपकी लियो ... आनेके बाद मै जगाये दूंगा जी ... " वह देहाती बोला.


'इतने गढ्ढोसे धक्के देते हूए चल रही बसमें निंद आना कैसे मुमकिन है ? ' उसने मनही मन सोचा.


"धक्कोंका मत सोचियो जी ... मानो की झूला झुलाये रहा ... "


गणेशने चौंककर उस देहातीकी तरफ देखा. उसे इस बातका आश्चर्य हो रहा था की उसने उसके मनकी बात कैसे जान ली थी. उस देहातीने फिरसे अपनी निर्विकार नजर सामने रास्तेपर जमाई. गणेश फिरसे अपने विचारोंके दुनियामें चला गया.
वह तहसिलकी जगह और वहांके मौहोलसे अच्छा खासा घुल मिल गया था. इसी बिच उसकी शादी होकर उसे एक बच्चाभी हो गया था.


विनय - कितना प्यारा बच्चा....

और पहलाही लडका होनेसे मांको कितनी खुशी हो गई थी...


अपने परिवारको अकेला छोडकर यहां नौकरीके लिए आना उसके जानपर आया था. लेकिन कोई चाराभी तो नही था. उसके बिवीको और बच्चेकोभी यहां देहातमें लाना एक रास्ता था. लडकेको उसने इसी साल केजीमें डाला था. और यहां देहातमें केजी वैगेरा तो कुछ नही था उपरसे पढने पढानेके लाले थे.


आखिर अपने परिवारके उत्कर्षके लिए उसे इतना त्याग करना जरुरी अपरिहार्य था....

एक जगह बसकी गति कम हो गई और बस मेन रोडसे दाई तरफसे एक कच्चे रास्तेपर उतर गई. जैसेही बस कच्चे रास्तेसे चलने लगी बसमें बैठनेवाले धक्कोमें वृध्दी हुई थी. गणेश सामनेके सिटके डंडेको पकडकर सहमकर बैठ गया. गणेशने खिडकीके बाहर झांककर देखा. बाहर हरेभरे खेतमें मजूर काम करते हूए दिख रहे थे. बिचमेंही कही कुव्वेके बगलमें पाणीके पाईपसे गिरता हुवा कांचकी तरह निर्मल पाणी दिख रहा था. खेतमें बसी छोटी छोटी झुग्गी झोपडीयां और उपर आसमानमें उड रहे पंछी और उन्हे डरानेके लिए जगह जगह खडे किए मटकेके सरके पुतले. गणेशका मन मानो उस खेतके दृष्योंमें खो गया था. मानो बसमें बैठरहे जानलेवा झटकोंका उसे विस्मरण हो गया . सचमुछ कितना सुंदर जिवन है यहां देहातका. लेकिन फिर रास्तेके एक तरफसे दौडनेसमान चल रहे कृश और पतले लकडीवालोंको देखकर उसका यहांके जिवनके बारेमें फिरसे मतपरिवर्तन होकर पहलेजैसा हो गया .


अचानक बसमें यात्रीयोंकी हरकत बढ गई. और धुलके बादल बसके चारो तरफ मंडराने लगे. बसने गांवकी हदमें प्रवेश किया था.


" अब आवेगी उजनी " , बगलमें बैठा देहाती बोला.


बाहर मंडरा रहा धुलका बादल खिडकीके रास्ते बसके अंदर घुस गया. गणेश जल्दी जल्दी खुले खिडकीकी कांच निचे खिसकाने लगा. लेकिन वह कांच अपनी जगहसे हिलनेको तैयार नही थी. वह अब उठ खडा होकर प्रयास करने लगा. वह जी तोड कोशिश करने लगा. तब तक उसका चेहरा धुलसे मलिन हो गया. उसके बगलमें बैठा देहाती उसे देखकर मुस्कुराया.


"कोई फायदा ना होवे साब ... उसमें धुल घुसकर वहभी पक्का हो गया है जी ... हमारे जैसा ... तुमभी आदत डालियो ... आगे अच्छा होवेगा "


गणेशने उस देहातीकी तरफ सिर्फ देखा और चुपचाप निचे बैठकर खिडकी बंद करनेका प्रयास छोड दिया. अचानक किसी चिजकी बदबु खिडकीके रास्ते गणेशके नाकमें घुस गई. उसने जेबसे रूमाल निकालकर अपने नाकको लगाया. वह देहाती फिरसे मुस्कुराया. गणेशने खिडकीसे बाहर झांककर देखा तो बाहर रास्तेके दोनो तरफ सुबह सुबह लोग लॅटरीनके लिए बैठे थे. और बस आ रही है यह देखकर वे एक एक कर उठ खडे हो रहे थे, मानो बसके सम्मानमें अदबके साथ एक एक करके उठ खडे हो रहे हो. वह गांवके बाहर लोगोंकी शौच के लिए जानेका खुला मैदान था. और उसके बाद एक झरना था, जिसे वहां के लोग नाला कहते थे. नालेपर बिछा टूटनेको आया पुल पार कर बस गांवमें घुस गई.


बस गांवमें घुसतेही चारपांच छोटे छोटे नग्न बच्चोंका कांरवा बसके पिछे दौडने लगा. और बसके दुसरी ओर चारपांच लावारिस कुत्ते बसके पिछे दौडने लगे. मानो बस आनेसे उस मरीयल देहातमें जान आ गई हो.


' आ गई आ गई ...' कहते हूए, एक जगह रास्तेके किनारे खडे लोगोंने बसका स्वागत किया.


उन लोगोंको बसमें बैठकर आगे जाना था. ड्रायव्हरनेभी, शायद उनका मजाक करनेके लिए, बस उन लोगोंसे काफी आगे ले जाकर खडी की. जैसेही बस आगे जाने लगी वे लोगभी बसके पिछे दौडने लगे. पहलेही वे नग्न बच्चे और कुत्ते उस बसकी पिछे दौड रहे थे, और अब वे लोगभी बसके पिछे दौडने लगे थे. दृष्य काफी मजेदार था. .


जैसेही बस रुक गई, अंदर आनेवालोंकी और बाहर जानेवालोंकी दरवाजेमें काफी भिड जमा हो गई. गणेशने सोचा, थोडी देर रुकते है और भिड कम होनेके बादही बाहर निकलते है. ...


लेकिन कोई रुकनेके लिए तैयार नही था. बाहेरके लोगोंको अंदर आनेकी और अंदरके लोगोंको बाहर निकलनेकी मानो बहुत जल्दी हो गई थी. उपरसे बाहरके कुछ लोग बंदर जैसे खिडकीयोंकों लटक लटककर खिडकीके अंदर रूमाल, टोपी या अपनी थैली सिटपर रखकर अपनी जगह आरक्षीत करने लगे. गणेश वह सारा नजारा देख रहा था. भिड कम नही हो रही है यह देखकर वहभी उतरने लगा, उतरते हूए उसका ध्यान एक खिडकीकी तरफ गया. एक बाहरके अंदर आनेके लिए उत्सुक यात्रीने तो हद्द कर दी थी. उसके पास जगह आरक्षीत करनेके लिए शायद कुछ सामान नही रहा हो, तो उसने सिधे खिडकीसे लटकर अपनी जगह आरक्षीत करनेके लिए खिडकीसे अपनी चमडेकी चप्पल अंदर सिटपर रख दी. गणेशको चिढभी आ रही थी, और हंसी भी. भिडसे किसी तरह जगह बनाकर बाहर उतरते हूए गणेशकी सांस चढ गयी थी. किसी तरह लोगोंसे उलझते सुलझते हूए वह बससे निचे उतर गया. जब वह बाहर आया उसके सारे बाल बिखरे हूए, अस्त व्यस्त हो गए थे. और कपडोंपर झुरीया आकर अव्यवस्थित हो गए थे और शर्टकी इनभी बाहर निकल आई थी. उसे क्या मालूम था की शायद उसने की हुई वह शर्टकी आखरी इन होगी. बाहर आए बराबर खुली हवामें सांस लेनेके बाद कहा उसे अच्छा लगा. वह पल दो पल वही रुक गया. अगले पलही वह बस फिरसे रास्तेकी धुल और डिजलका धुंआ उडाती हूई आगे निकल गई.
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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